May 5, 2015

पिद्दी का शोरबा उर्फ़ रसीली बातें

   पिद्दी का शोरबा उर्फ़ रसीली बातें

आज कल तोताराम की रुचि दीन-दुनिया में नहीं है | किस सेवक ने क्या कहा, कहाँ क्या चल रहा है इससे भी कोई मतलब नहीं |यह क्या हो गया तोताराम को ? चलती हवा से पंगा लेने वाला तोताराम आजकल आत्मकेंद्रित हो गया है |हमसे भी कम ही बोलता है | आज जैसे ही आकर बैठा उसके मोबाइल की घंटी बजी | मोबाइल को लेकर से चबूतरे दूर चला गया और अपने मुँह और मोबाइल को हथेली से ढँकता हुआ धीरे से बोला- अभी कहीं बैठा हूँ , थोड़ी देर में बात करता हूँ |

हमें आश्चर्य हुआ |हमसे हगे-मूते तक की बात न छुपा सकने वाले तोताराम को यह क्या हो गया ? वैसे तोताराम में मानसिक ही नहीं, कुछ भौतिक परिवर्तन भी हुआ |रोज प्रेस किए हुए कपड़े पहनने लगा है |दाढ़ी भी लगभग रोज ही बनी हुई होती है |हमें लगा कहीं यह दिए की भभकती हुई अंतिम लौ तो नहीं है ? कभी कभी गुनगुनाने भी लगता है- ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना | यहाँ कल क्या हो किसने जाना |कभी बाहर गाँव जाते वक्त उसकी पत्नी मैना मोबाइल याद रख कर दे देती थी अन्यथा तोताराम कभी मोबाइल भी साथ नहीं रखता लेकिन आजकल हर समय मोबाइल जेब में |

पत्नी ने बताया था कि मैना कह रही थी कि आजकल इनका मोबाइल का बिल भी बहुत आ रहा है |जब तब दो चार सौ का रिचार्ज करवा लेते हैं |एक दिन हमने तोताराम को घेरा तो बड़ी मुश्किल से खुला - क्या बताऊँ, आजकल मेरे मोबाइल पर लड़कियों के मेसेज आते हैं जो कहती हैं-  'आज वह घर पर अकेली हूँ  |बोरियत मिटाने के लिए मुझसे जी खोल कर प्यार भरी बातें करें'  | वैसे तो नेता लोग बातों की ही कमाई खाते हैं लेकिन मुझे इन बातों से कोई कमाई नहीं होती बल्कि एक मिनट के पाँच रूपए लगते हैं | होना-हवाना तो कुछ नहीं लेकिन बातों से बड़ा सुकून मिलता है |क्या पता, कभी कहीं टकरा ही जाए सो थोडा ढंग से भी रहना पड़ता है |और फिर -यहाँ कल क्या हो किसने जाना ? ज़िन्दगी के चार दिन बचे हैं , हँस बोल कर बीत जाएं तो क्या बुरा है ? और फिर छः परसेंट डी.ए. की क़िस्त मिली है सो इसी मनबहलाव पर खर्च हुई सही |

हमने माथा पीट लिया, कहा- तोताराम किस चक्कर में फँस गया ? यह एक बहुत बड़ा धंधा है जो फोन पर चलता है | एक मेसेज का बल्क में करने पर दस पैसे आता होगा  और जब तू फोन करता है तो तुझसे एक मिनट के वसूले जाते हैं पाँच रुपए  | दो-चार सौ रुपए रोज़ की एक लड़की बैठा रखी है तेरे जैसे उल्लुओं को मूँडने के लिए | इस धंधे में दुनिया को मुट्ठी में करने वाली बड़ी-बड़ी कम्पनियां भी शामिल हैं | 'डू नोट डिस्टर्ब' की सुविधा देने का तो नाटक है | हम तो जब भी ऐसा कोई काल आता है, फोन काट देते हैं |

यह बाज़ार है जो लोगों की कुंठाओं का फायदा उठाता है | यदि विश्व की राजनीति को देखेगा तो ऐसे ही रसीली बातें करने का षड्यंत्र चल रहा है | जिस देश के शासनाध्यक्ष को पटाना होता है उसे बड़े-बड़े विशेषणों से संबोधित किया जाता है , अपने यहाँ के मीडिया में उसका गुणगान किया जाता है, उसके लिए लेख लिखे जाते हैं, उसके कपड़ों की प्रशंसा की जाती है  और तेरे जैसा हुआ तो अरबों का ठेका दे आता है |जिसकी गठरी में माल दिखा ठग उसीके पीछे लग लेते हैं |जब बड़े-बड़े फँस जाते हैं तो तू तो पिद्दी का शोरबा भी नहीं है |

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