Jul 31, 2015

बेचारा तोताराम

    बेचारा तोताराम

दावत-ए-इफ़्तार के नाटक के बाद, बीते रविवार को तोताराम धर्म-परिवर्तन के लिए चर्च जा रहा था | उसके बाद अचानक जीते हुए नेता की तरह पता नहीं, कहाँ गायब हो गया ? हमारी उत्सुकता चरम पर | कहीं अपनी ईसाइयत पर पक्की मोहर लगवाने के लिए वेटीकन तो नहीं चला गया |

बरामदे में बैठे सोच-विचार कर ही रहे थे कि किसी ने हमारे सामने सूखी घास का एक बड़ा-सा गट्ठर पटक दिया | हम घबराकर  पीछे खिसककर बोले- कौन है बे ! क्या तमाशा है यह ?

तभी गट्ठर पटकने वाले ने गमछे से अपना चेहरा झाड़ा और हमारे पास आ बैठा- बोला, कोई नहीं, मैं हूँ तोताराम |

हमने पूछा- तो ईसाई बनने के उपलक्ष्य में पुरस्कार स्वरूप यह घास डाली  है पोप साहब ने ?

बोला- न तो मैं वेटिकन गया था और न ही यह घास किसी ने मुझे डाली है | यह तो वह घास है जो मैं बिहार लेकर गया था |

हमने आश्चर्य से पूछा- बिहार ! वहाँ का चारा तो पहले से बहुत प्रसिद्ध है | एक हजार करोड़ के चारे के बाद भी वहाँ अब चारे की क्या ज़रूरत आ पड़ी ?

कहने लगा- मैंने तो समाचार पढ़ा था कि भाजपा की उमा भारती जी द्वारा नव  नियुक्त 'विष्णु' अमित जी एक साथ ही सौ-दो सौ रथ लेकर निकल पड़े हैं | पहले की बात और थी | रामावतार में विभीषण ने राम को रथ पर सवार होने को कहा तो उन्होंने न्याय, संतोष, शील का रथ अधिक महत्त्वपूर्ण होने की बात कही | बाद में ज़रूरत पड़ी तो इंद्र ने रथ भिजवाया जिसे रावण वध के तत्काल बाद इंद्र ने वापिस मँगवा लिया | कृष्णावतार में तो प्रभु को अर्जुन का रथ ही हाँकना पड़ा | सुबह शाम घोड़ों को खिलाना-पिलाना और खरेरा करना सो अलग | एक रथ में यदि चार घोड़े भी हुए तो हजार-पाँच सौ हो जाएंगे | लालू का इलाका | पता नहीं, चारे की कैसी व्यवस्था हो ? सो  मूलचंद के खेत में से कुछ चारा खोद कर ले गया था | देश को अगले २५ वर्ष में जगद् गुरु बनाने में मेरा भी तो कुछ योगदान होना चाहिए कि नहीं ?

हमने कहा- तोताराम,जैसे आजकल भारत ही क्या विश्व भर के विकास का ठेका लोगों ने ले रखा है वैसे ही तूने भी दुनिया भर की अकल का ठेका तो ले रखा है लेकिन वास्तव में है नहीं धेले भर भी | अरे, आजकल कौन घोड़ों वाले रथ रखता है ? आजकल तो दो-पाँच करोड़ की बड़ी वातानुकूलित बस होती है जिसमें बेड रूम, शौचालय, किचन  के साथ-साथ संचार  की समस्त नई से नई तकनीक होती है और ऊपर से बुलेटप्रूफ | तेरे जैसों को तो संदेहास्पद मानकर इन रथों के पास तक नहीं फटकने दिया जाता | और फिर उन रथों का नाम है 'परिवर्तन-रथ' मतलब कि ज़माना परिवर्तित हो गया है | अब राम के 'मर्यादा-रथ' और कृष्ण के 'धर्म-रथ' नहीं रहे, सब 'सत्ता-रथ' हो गए हैं | 

सत्ताधारी कभी बेचारे नहीं होते | बेचारे तो होते हैं तेरे जैसे अतिउत्साही सेवक | क्या हालत हो रही है ? जा अन्दर जाकर अपना मुँह धो, तब तक मैं चाय बनवाता हूँ | 

वास्तव में सूखे चारे के गट्ठर के पास बैठा तोताराम आज बहुत ही बेचारा लग रहा था |


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