Dec 1, 2015

इस असहिष्णु समय में

 इस असहिष्णु समय में

एक तरफ विश्व के सभी श्रेष्ठ मस्तिष्क और श्रेष्ठ राष्ट्र इस संसार के कल्याण के लिए हलकान हैं | आजकल विश्व-सरकार संयुक्त राष्ट्र  संघ, विभिन्न देशों के तरह-तरह के एन.जी.ओ. और सभी देशों की सरकारों द्वारा पशु-पक्षियों, पर्यावरण से लेकर समस्त विश्व की भूख, गरीबी, कुछ महामारियों से मुक्त करने, पेय जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानवीय गरिमा, बच्चों- महिलाओं के कल्याण तथा गरिमा के लिए कार्यक्रम और अभियान चलाए जा रहे हैं |विश्व शांति के लिए बड़ी भाग-दौड़ हो रही है | धर्म, संस्कृतियों, भाषाओँ, दुर्लभ पशु पक्षियों, वनस्पतियों  और विश्व धरोहरों को बचाने और उनके संरक्षण का हल्ला है | लगता है बस, यही वह सतयुग है जिसका कलयुग से पीड़ित इस धरती को इंतज़ार था |

और इसके साथ-साथ ही विश्व के सभी संसाधनों पर कब्ज़ा करने, उनका अंतिम बूँद तक दोहन करने , मुनाफा कमाने के लिए किसी को भी कुछ भी बेचने के लिए घेरने ,किसी को भी बिना कुछ सोचे-समझे घातक हथियार बेचने , अमानक दवाएँ और उनके अनधिकृत परीक्षण, एक दूसरे के यहाँ षड्यंत्र करवाने, दंगे भड़काने, सरकारें गिराने-बनवाने, नशीली दवाओं के व्यापार में सरकारों के शामिल होने, माफिया से सांठ-गाँठ, अभिव्यक्ति के नाम पर किसी भी देश, धर्म, सभ्यता, संस्कृति, नस्ल आदि के अपमान को बढ़ावा देने आदि जैसे जाने कितने कुकर्म भी चलते रहे हैं |आज कल जिस तरह धार्मिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं उसी अनुपात में अधर्म का प्रचार भी हो रहा है |मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की |कहीं यह दवा के नाम पर मर्ज़ बढाकर फिर कोई नई दवा का धंधा करने का षड्तंत्र तो नहीं है ?

आज विश्व में असुरक्षा , भय और असहिष्णुता का जो वातावरण बना हुआ है उसे मात्र धर्म की पृष्ठभूमि से जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिन यह समस्या का अत्यंत सरलीकरण है | इसके पीछे स्वार्थ, अहंकार, लालच, घृणा का एक लम्बा इतिहास रहा है |धर्म और नस्ल की आड़ में समस्त विश्व में युद्धों और उपनिवेशवाद का अमानवीय खेल खेला जाता रहा है | यदि यह मात्र संसाधनों का ही मामला होता तो दुनिया से उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद बात सुलझ जाती |वैसे राजा या सत्ता या शासक पार्टी बदलने से सामान्य जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता यदि उसके सहज जीवन और विश्वासों और सुख-दुखों से छेड़छाड़ न की जाए |उसे तो कर देना है और इस या उस माननीय को सम्मान देना है |लेकिन इसके पीछे विजेताओं के अहंकार और श्रेष्ठता के दंभ में विजित देशों की नस्लों और वहाँ  के निवासियों, उनके धर्म, आत्मसम्मान, आस्था केन्द्रों,भाषा, संस्कृति और सभ्यता को अपमानित किए जाने की जातीय स्मृतियाँ भी हैं |

जब ऐसा होता है तो विजित समाज अपने बचाव और सुरक्षा के लिए कछुए की तरह कट्टरता और अलगाव के एक खोल में घुस जाता है |बस, इसी खोल में वैचारिक अँधेरा, अन्धानुकरण, घृणा, भ्रम, शंकाएं पनपते हैं जिनका लाभ विजेता और विजित समाज के स्वार्थी नायक उठाते हैं | दिन पर दिन यह खाई और बढ़ती जाती है क्योंकि सब के अहंकार और स्वार्थ विगत, आगत, अनागत को छोड़ने के लिए विकुंठ नहीं हो पाते |

कुछ दिन पहले फ़्रांस में आतंकवादी घटना हुई जिसे किसी भी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता |इसका विरोध और प्रतिरोध होना चाहिए क्योंकि आग किसी धर्म, जाति, नस्ल, देश की सीमा नहीं मानती |लेकिन इस आग में अधिकतर वे जलते हैं जो न तो यह आग लगवाते है, न ही लगाते हैं |वे किसी से घृणा नहीं करते, वे तो सबके साथ प्रेम से रहना चाहते हैं |

आज संचार के साधनों के कारण एक छोटी सी भी घटना की खबर तत्काल सही या तोड़मरोड़ कर दुनिया में पहुँच जाती है और उसकी अच्छी-बुरी क्रिया-प्रतिक्रिया होने लगती है |इसलिए विभिन्न  समाजों, सरकारों, व्यक्तियों को अपने व्यवहार, कर्म और वाणी में सतर्क, सार्थक और सावधान और संतुलित रहना चाहिए लेकिन ऐसा कम देखने को मिलता है | अपने स्वार्थ , यश की चाहना, और राजनीतिक लाभ के लिए या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी बोल, कर या लिख देना उचित नहीं है |

पिछले कुछ समय के एक दो उदाहरण देखें जो न तो उचित थे, न आवश्यक, बल्कि किसी न किसी रूप में समाज में शंका, भय, वैमनष्य और भ्रम फ़ैलाने वाले थे |

अमरीका के राज्य डालास के गार्लैंड में रविवार को एक कार्टून प्रतियोगिता के दौरान दो बंदूकधारियों ने कार्यक्रम स्थल के निजी सुरक्षा गार्ड पर हमला कर दिया |पुलिस से मुठभेड़ में दोनों बंदूकधारी मारे गए |यहाँ पैगंबर मोहम्मद पर कार्टून बनाने की विवादित प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। गौरतलब है कि इस्लाम की आलोचना करने वाले न्यू यॉर्क स्थित रूढि़वादी संगठन ने इस प्रतियोगिता का आयोजन किया था। पैगंबर मोहम्मद का 'बेस्ट कार्टून' बनाने वाले के लिए 10 हजार अमेरिकी डॉलर की पुरस्कार राशि दिए जाने की घोषणा भी की गई थी। 

यह प्रतियोगिता कला,संस्कृति और किस मानवीय गुण के विकास के लिए आवश्यक थी ? क्या इससे बचा नहीं जा सकता था ?क्या ऐसी प्रतियोगिताओं से बचा नहीं जाना चाहिए ?


चार्ली हैब्दो का यह कार्टून कौन सी कलात्मक अभिव्यक्ति है, कौन सी मानवीय संवेदना है  ? इससे किस मानवीय गरिमा का सम्मान या समस्या का समाधान होता है ?
 
चार्ली हेब्‍दो ने लिखा- ईसाई पानी पर चलते हैं, मुस्लिम बच्चे डूब जाते हैं; बवाल

ईसाई पानी पर चलते हैं, मुस्लिम बच्चे डूब जाते हैं  

(शरणार्थी और पलायन की समस्या से जूझ रहे सीरिया के तीन साल के एलन का शव पिछले दिनों तुर्की में समुद्र किनारे पाया गया था। )
अमरीका के फ्लोरिडा के एक चर्च के एक पेस्टर (धार्मिक अधिकारी) टेरी जोन्स ने ९/११ की घटना की बरसी मनाने के लिए २९९८ कुरान की प्रतियाँ केरोसिन डाल कर जलाने के लिए ले जाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया |क्या किसी धार्मिक स्थल से संबंधित व्यक्ति से ऐसी आशा की जा सकती है कि वह ऐसा सोचे या करे ? ऐसी सोच से किस धर्म का हित हो सकता है ? और ऐसे व्यक्ति अपने धर्म के लोगों को कौनसी राह दिखाएँगे ? 
अपने यहाँ भी पिछले कुछ दिनों में किसी धर्म विशेष को लेकर अतिउत्साही लोगों द्वारा कुछ ऐसे बयान  दिए गए जो सामाजिक सौहार्द के लिए घातक थे | यदि इतिहास पढ़ा जाए तो सभी समयों में, सभी धर्मों के अनुयायियों ने अपने-अपने अहंकार में बहुत से अनुचित कार्य किए हैं |लेकिन क्या अब उन्हें आधार बना कर लड़ा-मरा जाए या उन भूलों को सुधार कर इस दुनिया-जहान को रहने लायक और सुख-शांति पूर्ण बनाया जाए ? 

यह समय सबके लिए मन, कर्म, वचन से समझदारी अपनाते हुए सहयोग, प्रेम, सहिष्णुता से रहने का है |दुःख तो वैसे भी दुनिया में बहुत हैं , उन्हें और क्यों बढाया जाए ? लेकिन यह सब एकतरफा नहीं हो सकता |ताली एक हाथ से नहीं बजती लेकिन आग लगाने के लिए तो एक हाथ ही काफी है |

अहंकार बीच में आ जाता है | सवाल यह है कि पहल कौन करे ?अपनी चार पंक्तियाँ उद्धृत करना चाहता हूँ-
ख़ुद से ज़रा निकल कर देखो
साथ हमारे चल कर देखो
वे रूठे हैं मन जाएंगे 
तुम ही ज़रा पहल कर देखो |


















No comments:

Post a Comment