May 24, 2016

अलर्ट का नहीं, पेट का सवाल है बाबा

 अलर्ट का नहीं, पेट का सवाल है बाबा 


कोई साढ़े दस बजे तोताराम सीटी बजाता हुआ घर में घुसा | इस समय तोताराम ? लू तो दो घंटे पहले ही चलने लगी है |यह कोई समय है घर से निकालने का !  ऐसे समय तो मुर्दे को भी घर से नहीं निकालते, भले ही यह व्यवस्था मुर्दे से अधिक कन्धा देने वालों की सुरक्षा के लिए हो |

पूछा- कहाँ गया था ? क्या शहीद होने का विचार है ?

बोला- बैंक गया था |डी.ए. का एरियर आ गया है | सोचा, तुझे भी बताता चलूँ | 

हमने कहा- सो तो ठीक है लेकिन तुझे पता होना चाहिए कितनी गरमी पड़ रही है ? ४५ से ऊपर है पारा |  ओरेंज अलर्ट जारी कर दी गई है |

बोला- यह क्या होता है ? 

हमने कहा- कल तू हमें कह रहा था कि हमें हिंदी का लिंग-ज्ञान नहीं है और तेरा खुद का अंग्रेजी ज्ञान ? अरे, ओरेंज अलर्ट का मतलब है संतरा चेतवानी | जब ज्यादा गरमी पड़ती है तो यह अलर्ट जारी किया जाता है |इसका मतलब यह कि लोग दोपहर में बाहर न निकलें |

बोला-लेकिन नेता लोग तो सारे देश में भागे फिर रहे हैं |

हमने कहा- वे तो कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने के लिए घूम रहे हैं ?यदि तू उनकी नक़ल करेगा तो ज़रूर यह देश तोताराम-मुक्त हो जाएगा | उनकी क्या नक़ल करता है |उनका तो सब कुछ वातानुकूलित होता है मूत्रालय से लेकर मंच-मंत्रालय तक | और अपनी हालत तो सुबह-सुबह शौचालय में ही उमस के मारे बेहोश होने जैसी हो जाती है |
बोला- बन्धु, फिर भी आम आदमी (केजरीवाल नहीं ) को तो झुलसा देने वाली गरमी हो या हाड़ जमा देनेवाली सर्दी पापी पेट के लिए निकला ही पड़ता है  | वैसे एक बात कहूँ, जब आजकल देश में नारे, कार्यक्रम और जुमले सब अनुप्रास में आबद्ध है तो इस 'ओरेंज अलर्ट' का हिंदी अनुवाद 'संतरा चेतावनी' की जगह 'भगवा-भभका' या 'केसरिया-कहर' नहीं हो सकता क्या ?

हमने कहा- हो तो कुछ भी सकता है पर इसमें देशी दारू के भभके जैसी कुछ गंध आती है |  पहले की बात और थी जब स्वदेशी का ज़माना था अब तो 'मेक इन इण्डिया' का मौसम है जिसमें 'फोरेन का फर्राटा' है | और  फिर तूने अनुपम खेर का नाम सुना है कि नहीं ? अब उनके साथ चिंटू बाबा उर्फ़ ऋषि कपूर भी आ गए हैं | कह देंगे- भाषा तुम्हारे बाप का माल है क्या ? इसलिए तू अनुवाद को छोड़ बस, एक महिने के लिए दोपहर में बाहर निकलना बंद कर दे |

बोला- कहने वालों का क्या जाता है ? सभी कहते हैं भोजन में फल, मेवे,दूध, दालें पर्याप्त होने चाहिएँ लेकिन जब साधारण आदमी की तनख्वाह बीसवें दिन ही निबट जाती है तो ये सब चोंचले और मज़ाक लगने लग जाते हैं | जिनको मुफ्त की अबाध और अनाप-शनाप बिजली मिलती है उनकी बात और है | यहाँ तो चोरों की कृपा से निरंतर महँगी होती जा रही बिजली मिलती है और वह भी जब चाहे कट जाती है |ऐसे में उमस के मारे बाहर निकलना ही पड़ता है |रिक्शेवाला दुपहर और गरमी नहीं देख सकता उसे तो पेट की आग बुझाने के लिए निकलना ही पड़ेगा चाहे बाहर आग की क्यों न बरस रही हो या फिर चाहे 'ओरेंज अलर्ट' हो या 'चीकू चेतावनी' हो या 'सेव सतर्कता' कुछ भी हो |

देखा नहीं, जैसलमेर में सेना के जवान रेत पर पापड़ सेंक रहे हैं |और तो और बेचारे टिम कुक को देखलो, अमरीका के सुहावने मौसम को छोड़कर दिल्ली में अपनी रोटी के नीचे आँच देने के लिए घूम रहा है | 
अलर्ट का नहीं, पेट का सवाल है, बाबा |



No comments:

Post a Comment