Mar 22, 2017

आदत से मज़बूर

  आदत से मज़बूर 

आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, आज चाय बाद में मिलेगी, पहले एक किस्सा सुन |

बोला- सुन तो लूँगा लेकिन तीन शर्तें हैं |एक तो कहानी दो मिनट से अधिक की नहीं होनी चाहिए, दूसरे मैं बीच में 'हुँकारा' नहीं दूँगा और तीसरे चाय के साथ कुछ मीठा-शीठा भी होगा |

हमने कहा- लेकिन मोदी जी के 'मन की बात' तो तू बिना किसी शर्त के सुनता है |

बोला- उनसे तो डर लगता है |कहीं नाराज़ हो गए तो किसी न किसी राष्ट्रीय हित के नाम फच्चर फँसाकर पेंशन कम न कर दें |लेकिन खैर, तू अपना किस्सा सुना |

हमने कहा- दिल्ली में दो मास्टर थे |एक दिन वे बिरला जी की कोठी के सामने से गुजर रहे थे |एक मास्टर ने कहा- यदि मुझे बिरला जी का सारा बिजनेस मिल जाए तो मैं बिरला जी से भी अधिक धनवान हो जाऊँ |दूसरे ने पूछा- बिजनेस करने की यह योग्यता तुमने कैसे हासिल की ? पहला बोला- इसमें क्या है ? बिरला जी के बिजनेस से बिरला जी जितना तो आएगा ही |फिर मैं दो-चार ट्यूशन तो फिर भी छोड़ने वाला नहीं हूँ |फिर हुई नहीं कि बिरला जी से ज्यादा कमाई ?

बोला- कर दी ना वही पल्लेदार वाली बात |एक पल्लेदार था |उसके करोड़ों रुपए की लाटरी निकली |एक पत्रकार से उससे इंटरव्यू लिया और पूछा- आप इतने रुपयों का क्या करेंगे ? बोला- सारे बाज़ार में कारपेट बिछवा दूँगा | पत्रकार ने कारपेट बिछवाने का कारण जानना चाहा तो बोला- जब पीठ पर बोरी उठाकर नंगे पैरों चलता हूँ तो पैरों में कंकड़ चुभते हैं |

हमने कहा- बन्धु, आदमी आदत से मज़बूर होता है और फिर कुछ अपने धंधे का गर्व और स्टीरियो टाइप भी तो होता है | अब नवजोत सिंह सिद् धू  को ही देख ले |कहता है दिन में मंत्री के रूप में दफ्तर में बैठकर जनता की सेवा करूँगा और रात में कॉमेडी की शूटिंग |

बोला- इसमें क्या बुराई है ? और फिर दोनों कामों में आजकल कोई खास फर्क नहीं रह गया है |पता ही नहीं चलता कि संसद या चुनाव सभा में बैठे हैं या किसी घटिया कॉमेडी शो में |दोनों जगह वही जुमलेबाज़ी और सस्ते चुटकुले |वैसे यह सिद् धू की समझदारी की बात भी है  क्योंकि राजनीति में धंधे में कुछ पता नहीं चलता कब पार्टी का कौन अनुशासित सिपाही धोखा दे जाए या कब कौनसी पार्टी सोशियल इंजीनीयरिंग के नाम किस जाति-धर्म का पत्ता काट दे |

सच पूछो तो बिजनेस से बड़ा साइड बिजनेस होता है |जैसे कि घर की साइड में पड़ा प्लाट जिसमें आप अपने घर का कूड़ा तो डाल ही सकते हैं, मौका लगे और पड़ोसी भला हो तो उसकी एक दो फुट जगह भी दबा सकते हो | तभी समझदार वाहन चालक थोड़ा सा सामने और पीछे वाले की साइड दबाकर चलते हैं जिससे अगल-बगल वाले डरते रहें जैसे कि चतुर नेता समय-समय पर सबको चेताता रहता है- मेरे पास सबकी जन्मपत्री है |

और फिर से धंधे से अपना एक सर्किल और वोट बैंक भी तो बनता है |मोदी जी को ही देख ले प्रधान मंत्री बन गए हैं लेकिन किसी न किसी बहाने ओबामा तक के सामने अपने चाय वाले एजेंडे को घुमा-फिराकर ले ही आते हैं |वैसे भी नाई, चाय वाला, रंडी, भांड और भिखारी अपने जनसंपर्क के कारण अतिरिक्त चतुर और चालक हो जाते हैं |

उनकी इस चाय वाली अदा के कारण तो 'टी-पार्टी' के नाम से एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन हो गया है |सवर्ण कोटे में से काटकर चाय वालों को नौकरियों में दो प्रतिशत आरक्षण भी दिया जा रहा है |

हमने कहा- चुनाव के दिनों में मोदी-भक्तों द्वारा आयोजित 'चाय पर चर्चा' की बात और है अन्यथा कहीं हमारे चाय पीते-पीते तेरी यह आदत हो गई और जेब पैसे हुए बिना ही किसी दुकान पर चाय पी ली तो जुलूस निकल जाएगा |


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