Dec 15, 2017



महापुरुषों को क्लीन चिट

आज तोताराम ने आते ही कहा- देखा, न्याय के घर देर है, अंधेर नहीं |

हमने कहा- ऐसे न्याय को सिर पर रखकर नाचें क्या जो मुद्दई के मरने के बाद फैसला दे |खेती सूखने के बाद वर्षा का क्या अर्थ ?  का बरखा जन कृषी सुखानी |यशवंत सिन्हा जी ने भी अपने बेटे के जी.एस.टी. के बाद में अच्छे परिणाम मिलने वाले वक्तव्य पर कहा था- तब तक तो हम मर जाएँगे |बाद मरने के मेरे उनका सलाम आया तो क्या ?

बोला- न्याय तो न्याय है |और दंड भी दंड है |ये सब जब भी कार्यान्वित हों, अच्छा ही है |रावण ने जब जो किया उसका दंड उसे उस समय मिल गया |फिर भी हर साल उसका पुतला जलाया जाता है |यदि अब अदालत फैसला दे दे कि रावण ने कुछ गलत नहीं किया तो उसका पुतला जलाने पर प्रतिबन्ध लग सकता है |

हमने पूछा- तो क्या अदालत ने रावण के पक्ष में फैसला दे दिया  ?

बोला- रावण तो नहीं लेकिन राम, लक्ष्मण, बुद्ध, तुलसीदास और मोदी जी के पक्ष में ज़रूर फैसला दे दिया है |

हमने कहा- क्या बात कर रहा है ? ये सब तो हमारे देश के वे महान पुरुष हैं जिन पर हम गर्व करते हैं |जिन्हें हम देवता का दर्ज़ा देते हैं |इन पर क्या आरोप हैं जो इन्हें अदालत की क्लीन चिट की ज़रूरत आ पड़ी ?और जहाँ तक मोदी जी बात है तो उन्हें क्या कोई क्या खाकर क्लीन चिट देगा ? वे तो खुद ही सारी दुनिया को क्लीन या डर्टी चिट देने की स्थिति में हैं | वे जो कहें वही सत्य है |

बोला- जब से साहित्य में भक्ति काल समाप्त हुआ है तब से लोग किसी न किसी विमर्श में चक्कर में महापुरुषों में गलतियाँ निकालते रहते हैं |जिसका भी मन हुआ पूछने लगता है- राम ने सीता को क्यों त्याग दिया ? वनवास तो राम को हुआ था फिर लक्ष्मण उनके साथ क्यों गए ? यदि गए तो राम की तरह अपनी पत्नी को साथ क्यों नहीं ले गए ? सिद्धार्थ क्यों अपनी पत्नी यशोधरा को बिना बताए, गुपचुप रात में खिसक लिए ? तुलसीदास जी को भक्ति और कविता करनी थी तो पत्नी को क्यों त्यागा ? और अब तो इनके बहाने से मोदी जी को भी लपेट रहे हैं |कहते हैं जब देश-सेवा ही करनी थी तो शादी क्यों की ?क्या गाँधी की तरह पत्नी के साथ रहते हुए देश सेवा नहीं की जा सकती थी ?

हमने कहा- चलो; सीता, उर्मिला, यशोधरा के साथ तो रोटी-पानी की समस्या नहीं थी लेकिन तुलसीदास की पत्नी रत्नावली और मोदी जी की पत्नी जसोदा बेन ने तो वास्तव में ही कठिन परिस्थितियों में जीवनयापन किया होगा ?

बोला- जिसने चोंच दी है वह चुग्गा भी देता है |पोजिटिव सोच |जब सिर पर जिम्मेदारी आती है तो अबला का भी सशक्तीकरण हो जाता है |वैसे यदि ये महापुरुष इन छोटी-छोटी बातों के बारे में ही सोचते रहते तो देश-दुनिया के दुःख-दर्द कैसे दूर होते ? रावण अब तक तो अपहरण के चक्कर में दण्डकारण्य से दिल्ली तक पहुँच गया होता |बुद्ध के बिना सत्य-अहिंसा का सिद्धांत दुनिया को कौन देता ?

पिछले २५-३० वर्षों से गठबंधन की सरकारें बनती आ रही थीं |किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल रहा था |कांग्रेस देश को गड्ढे में डाले जा रही थी, देश का विकास अवरुद्ध हो गया था |यदि मोदी जी भी गृहस्थी के इस बंधन में चिपके रहते और देश सेवा के लिए पत्नी को त्यागकर घर से नहीं निकलते तो कौन देश को विकास के रास्ते पर ले जाता ? कौन बुलेट ट्रेन लाता ? कौन जी.एस.टी.के रूप में देश में दूसरी आजादी लाता |हर बार वही १५ अगस्त |नोटबंदी नहीं होती तो वे ही 'सोनम गुप्ता बेवफा है' वाले पुराने नोट लिए फिरते |

हमने कहा- तो क्या इन महान पुरुषों के त्याग और बलिदान से औरतें सुरक्षित हो गई हैं ? अमरीका से आसाम तक कहीं सत्य-अहिंसा के दर्शन हो रहे हैं ? क्या अर्थव्यवस्था सुधर गई ? और जहाँ तक तेरी जी.एस.टी. का सवाल है तो भले ही मोदी जी इसे 'गुड एंड सिंपल टेक्स' कहें लेकिन आई. आई. टी. और एम. बी.ए. करके कई फाइनेंस कंपनियों में काम कर चुके चेतन भगत को ही जब जी.एस.टी. समझ में नहीं आई तो इन महानताओं का क्या अचार डालें ?

तोताराम ने कहा- जब सर्वोच्च न्यायालय ने कह दिया है कि अदालतें पत्नी को साथ रखने के लिए पति को मज़बूर नहीं कर सकतीं तो फिर सारा चेप्टर ही क्लोज़ |अब यदि तुझमें हिम्मत है तो तू भी देश सेवा के लिए या फिर साहित्य सेवा के लिए भाभी से दूर रह सकता है |लेकिन याद रख, ये सब केवल कानून के मामले मात्र नहीं हैं |ऐसे कामों में लिए भी बड़ी हिम्मत की ज़रूरत होती है |

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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