Feb 4, 2018

गड़े मुर्दे

गड़े मुर्दे

शास्त्र कहते हैं कि दिवाली से एक दिन पहले रूप चौदस के बाद होली तक न तो स्नान करना चाहिए और न ही हजामत बनवानी चाहिए क्योंकि इससे बुजुर्गों को जुकाम लगने का डर रहता है |लेकिन जब संकट आने वाला होता है तो सबसे पहले व्यक्ति शास्त्रों की अवहेलना करता है |उसी का फल भुगतते हुए जुकाम में गुच्च होकर रजाई में घुसे हुए थे कि पोती ने कहा- बाबा, बाहर कोई सज्जन आए हैं |बड़े लम्बे-चौड़े शाही अंदाज़ वाले बुज़ुर्ग लगते हैं |कहें तो यहीं बुला लूँ |

हमने कहा- ठीक है |उनके लिए एक कुर्सी भी यहाँ लाकर रख दे और उन्हें बुला ला |

वाकई क्या शान थी बुज़ुर्ग की |हमने कहा- ज़रा तबियत खराब है इसलिए लेटे हैं |

हम जैसे ही उठने को हुए तो वे बोले- कोई बात नहीं, आप अस्वस्थ हैं |लेटे रहिए |

सज्जन कुछ बोलते कि तोताराम हाज़िर हो गया और उन्हीं की तरफ मुखातिब होते हुए बोला- कहिए हुकम, कहीं किसी ने आपकी आस्था और अस्मिता पर तो चोट नहीं कर दी |किसका कुंडा करने निकले हैं ?

बोले- हम मास्टर जी से बात कर रहे हैं |वैसे जहाँ तक किसीका कुंडा करने की बात है तो उसके लिए हमें इनकी ज़रूरत नहीं है |हम कुछ गंभीर बात करने आए हैं |

हमने तोताराम को चुपचाप बैठने का इशारा किया और उन सज्जन को अपनी बात कहने का निवेदन किया |

वे बोले- मास्टर जी, हमारा नाम भूतपूर्व लंकापति रावण है |हम राम के साथ हमारे युद्ध का केस दुबारा खुलवाना चाहते हैं |

हमने कहा-लेकिन वह तो बहुत पुरानी बात हो गई |अब उस केस को खुलवाने से क्या फायदा ?

बोले- मास्टर जी, बात किसी हानि-लाभ की नहीं है |बात है न्याय की | जब न्याय के नाम पर गाँधी जी की हत्या का केस खुलवाने की याचिका दायर की जा सकती है तो मेरा केस क्यों नहीं खुल सकता ?

हमने कहा- वह मामला दूसरा है |वहाँ सही इतिहास लेखन का प्रश्न है |कहते हैं गाँधी जी गोडसे की गोली से नहीं मरे |वे तो उस चौथी गोली से मरे जो पता नहीं, किसने चलाई थी | लेकिन आपका मामला तो साफ़ है |आपने सीता का अपहरण किया और उसके दंड स्वरूप राम ने आपका वध किया |

बोले- यही तो मैं कहना चाहता हूँ कि मैंने सीता का अपहरण नहीं किया इसलिए केस फिर खुले, सुनवाई हो और मुझे न्याय मिले |और भविष्य में मुझे बुराई का प्रतीक बताकर मेरा पुतला नहीं जलाया जाए |

अब तो हम उठ बैठे |इतने रोमांच के बाद कोई लेटा रह सकता है भला |तोताराम भी नज़दीक खिसक आया |

भूतपूर्व लंकापति बोले- मैं अपने पक्ष में राम के भक्त तुलसीदास के रामचरित से प्रमाण देना चाहता हूँ |उसी के आधार पर विचार किया जाना चाहिए |

अरण्यकांड में खरदूषण के वध के बाद एक दिन जब लक्ष्मण पुष्प लेने गए थे तब पीछे से राम ने सीता से कहा-

सुनहु प्रिया व्रत रुचिर सुसीला | मैं कछु करबि ललित नर लीला |
तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा |जौं लगि करौं निसाचर नासा |

मतलब कि राम ने असली सीता को अग्नि को सौंप दिया था और माया की सीता या किसी डिजिटल सीता को कुटिया में रख दिया |इसप्रकार जिस सीता का मैंने अपहरण किया वह वास्तव में सीता थी ही नहीं |और जब मैंने सीता अपहरण नहीं किया तो मुझे सजा और हजारों वर्ष बाद हर साल यह अपमान क्यों ?

हमने कहा- महाराज, कृपा करके आप जल्दी से खिसक लें और किसी को न बताएँ कि आप हमसे मिले थे |आजकल देश में बहुत कुछ ऐसा-वैसा चल रहा है |और मान लीजिए आप जीत भी गए तो क्या विभीषण आपके लिए गद्दी छोड़ देगा ?






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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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