अच्छा हुआ
तोताराम के आते ही हमने कहा- तोताराम, अच्छा हुआ ।
बोला- इसमें कहने की क्या बात है । इस देश और दुनिया के सौभाग्य से मोदी जी हैं तो अवश्य ही सब कुछ अच्छा ही होगा । 28 वां वैश्विक सम्मान मिल गया । एक तरफ की छाती सम्मानों से ढँक गई । अब अगले 12 सालों में 28 सम्मान और मिल जाएंगे तो दूसरी तरफ का 28 इंच का एरिया भी कवर हो जाएगा । आगे से, पीछे से जिधर से भी देखो सम्मान ही सम्मान । मेडल ही मेडल ।
हमने कहा- तोताराम, तुम्हारी मेडलों की इस बात से हमें अपने बचपन का हिन्दी के नवभारत टाइम्स अखबार याद आ रहा है । हमारे यहाँ दिल्ली वाला संस्करण आया करता था जिसमें दूसरे पेज में छोटे-छोटे विज्ञापन छपा करते थे जैसे पाँच रुपये में डाक्टर बनें, जादुई अँगूठी, ज्योतिषियों-तांत्रिकों के विज्ञापन, दिल्ली के सिनेमा घरों में लगी फिल्मों के विज्ञापन, फिल्म किस सिनेमा घर में कितने सप्ताह से चल रही है, दिल्ली के कई बैंडों के विज्ञापन भी हुआ करते थे । बैंड मास्टरों की छाती पर कई तरह के मेडल, सजावटी झब्बे जैसे लटके हुए होते थे । हमें वे बैंडमास्टर सेना के किसी बड़े जनरल से कम नहीं लगते थे । मोदी जी की छाती के चारों तरह लटके 56 मैडलों की कल्पना करके हमें कुछ कुछ वैसी ही अनुभूति हो रही है ।
बोला- लेकिन मोदी जी की विनम्रता देख कि वे एक भी मेडल अपनी छाती पर लटकाए नहीं घूमते । इतने शर्मीले हैं कि एंटायर पॉलिटिकल साइंस की अद्भुत, अनुपम और अभूतपूर्व डिग्री भी न तो अपने नाम के साथ लगाते हैं और न ही किसी को दिखाते हैं । यह तो पत्रकारों के कुचरणी करने पर शाह साहब ने दिखा दी लेकिन मोदी जी ने ऐसे आत्मप्रशंसा वाले कृत्य को रोकने के लिए हाई कोर्ट से गुप्त रखने की सिफारिश करवा ली ।
हमने कहा- हमारा 'अच्छा हुआ' कहने का अर्थ मोदी जी के डंके और मेडलों से नहीं था ।
बोला- तो फिर ?
हमने कहा- हम तो यह कह रहे थे कि अच्छा हुआ जो हमने नेहरू जी के समय में नौकरी शुरू की और मोदी जी के प्रधान सेवक बनने से पहले ही रिटायर भी हो गए ।
बोला- इसमें क्या अच्छा हुआ ? यह तो हमारा दुर्भाग्य है । अगर आज नौकरी लगी होती तो मोदी जी के हाथों से नियुक्ति पत्र लेते । अब कुछ लोग तो यही समझते हैं कि हमने न तो कहीं कोई सरकारी नौकरी की और शायद पढ़े लिखे भी हैं या नहीं । हो सकता है कि डिग्री भी ऐसी वैसी ही हो ।
हमने कहा- नेहरू जी को लोगों की फिक्र ही कहाँ थी । लगे रहते थे अपने मौज मजे में । मोदी जी 20-20 घंटे रोज काम करते हैं फिर भी ट्रेनों को हरी झंडी दिखाने, मंदिर मंदिर जाकर भगवानों की सुख सुविधा का ध्यान रखने के साथ साथ नौकरियों के नियुक्ति पत्र देने तक का काम करते हैं ।
बोला- और मोदी जी की लोगों का सम्मान करने की इस भावना से प्रभावित होकर मुख्यमंत्री भी लोगों को नियुक्ति पत्र बांटने लगे हैं ।
हमने कहा- वैसे यह काम उस समय 15 पैसे के लिफ़ाफ़े से हो जाता था जबकि आज इस काम के लिए करोड़ों के विज्ञापन और तामझाम वाले आयोजन किए जाते हैं । लेकिन इन आयोजनों में और भी कई तरह के अभद्र नाटक भी तो होने लगे हैं । इसीलिए हम कहते हैं कि अच्छा हुआ जो सारे काम मोदी के आने से पहले ही निबट गए अन्यथा हमारा भी जुलूस निकल जाता ।
बोला- कैसे ?
हमने कहा- पता है, अभी दो पाँच दिन पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश जी ने क्या अनीतिपूर्ण काम कर दिया ?
बोला- क्या ?
हमने कहा-वे कुछ डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र बाँट रहे थे । जब एक मुस्लिम लड़की को नियुक्ति पत्र देने लगे तो अचानक उसका हिजाब खींच दिया ।
बोला- तो इसमें क्या हो गया ? हो सकता है हिजाब में छुपकर कोई और लड़की नियुक्ति पत्र ले जाती तो ? हो सकता है वह कोई आतंकवादी हो, घुसपैठिया हो । आजकल वैसे ही घुसपैठिये देश और विशेषकर बिहार में घुसकर कांग्रेस को चुनाव जिता रहे हैं । इसीके लिए शाह साहब सारे देश में SIR लगाए हुए हैं । बिहार की सुरक्षा के लिए नीतीश जी ने हिजाब खींच दिया तो क्या हो गया । देश की सुरक्षा के लिए सब कुछ जायज है ।
हमने कहा- लेकिन कल्पना कर अगर हमें नियुक्ति पत्र देते हुए कोई नीतीश जी जैसा नेता देश की सुरक्षा के नाते हमारी पहचान जानने के लिए हमारा कुर्ता खींचकर जनेऊ चेक करने लग जाता तो ?
बोला- तो क्या हो जाता ? वैसे भी आजकल बहुत से लोग स्वेच्छा से माला, तिलक, जनेऊ, पार्टी के चिह्न आदि का अशालीन प्रदर्शन करते हैं या नहीं ?
हमने कहा- हम ने तो जनेऊ पहनना वर्षों पहले ही छोड़ दिया है । जब कोई कर्मकांड करते ही नहीं तो दिखावा करने से क्या फायदा । मान लेते हैं जनेऊ चेक करना भी बुरा नहीं है लेकिन कल को नियुक्ति पत्र देने वाले राष्ट्रभक्त नेता को हमारी जनेऊ न मिलने पर उसे हमारे मुसलमान होने का शक हो जाता और वह खतना देखने के लिए हमारा पायजामा खींच देता तो कैसा लगता ?
बोला- मास्टर, तू भी बात को खींच खींचकर जब तक गटर में नहीं डाल देता तब तक तुझे चैन नहीं मिलता ।
हमने कहा- चलो इसे छोड़ते हैं लेकिन इतना तो तय है कि अच्छा हुआ जो हमने नेहरू जी के समय नौकरी शुरू की और मोदी जी के आने से पहले रिटायर हो गए अन्यथा न खिंचता पायजामा लेकिन इतना तो तय है कि इनसे नियुक्ति पत्र लेते तो पेंशन तो नहीं ही मिलती ।
नेहरू जी वाली पेंशन मिल रही है यह क्या कम अच्छा है । बहुत अच्छा है । बस, अब तो भगवान से यही प्रार्थना कर कि मोदी जी हमारे जीते जी पेंशन बंद न कर दें । अन्यथा इनका कोई ठिकाना नहीं । ये कुछ भी कर सकते हैं । स्टेडियम से पटेल और मनरेगा से गाँधी का नाम हटा दिया और 'राम' के दोनों तरफ दो गोडसे 'जी' बैठा दिए । अब दिखा बेटे 'हे राम' बोलकर ।
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