Jun 28, 2021

धक्के का विश्लेषण

धक्के का विश्लेषण 


आज दूध वाले की गाय उछल गई. कई दिन की ब्याही है सो उछल-कूद स्वाभाविक है. गाय की इस क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरूप पूरा दूध धराशायी हो गया. न तो दूध वाला और न ही हम क्षीर सागर में शयन करने वाले विष्णु हैं कि हाथ में लोटा लेकर लटकाया और भर लिया दूध या क्षीर (खीर) से. अब तो जब दुकान खुलेगी तब थैली लायेंगे तभी चाय बनेगी. जैसे वेक्सीन की शोर्ट सप्लाई में लोग मजबूरी में महामृत्युंजय या संकटमोचन या गायत्री मन्त्र का जाप कर रहे हैं वैसे ही हम भी कप में पानी डालकर 'प्रतीकात्मक चाय' पी रहे थे कि तोताराम ने टोका- अकेले- अकेले.


हमने कहा- पानी पी रहे हैं. तू भी पी ले, कप क्या लोटा भरकर. आज गाय उछल गई. दूध के लिए नुक्कड़ वाली दुकान खुलने का इंतजार करना पड़ेगा. 


बोला- मुझे भी जल्दी नहीं है. आज एक बहुत महत्त्वपूर्ण विश्लेषण करना है. 


हमने कहा- अब जो हो चुका, वह हो चुका. अपने उन बयानों और बकवासों का विश्लेषण करो जिनके कारण 'अबकी बार, दो सौ पार' करते-करते दहाई में ही रह गए. 


बोला- विश्लेषण बंगाल के चुनाव परिणाम का थोड़े ही करना है. उसके लिए तो हमने अपने पास के ही झुंझुनू जिले के धनकड़ जी को बैठा रखा है जैसे केजरीवाल को अटकाने के लिए अनिल बैजल अड़ा रखा है. बंदा ग्राउंड तैयार कर रहा है. थोड़ा सा यह कोरोना वाला धक्का सेटल हो जाए फिर लगा देंगे राष्ट्रपति शासन. आज तो धक्के का विश्लेषण करना है. 


हमने कहा-  आजकल तो सड़कों पर कोई भीड़ भी नहीं फिर तुझे किसने धक्का मार दिया ?


बोला- मेरे मरने-जीने, धक्कों-मुक्कों की किसको फ़िक्र है. मैं कोई फैशन और फ़िल्म की हसीना थोड़े हूँ जिनके बैकलेस ब्लाउज, फटी जींस, टोंड टाँगे और बदन दिखाते फोटो छपेंगे. हम तो धरती पर आए ही धक्के खाने के लिए हैं. निस्पृह भाव से धक्के खाने के लिए. पहले स्कूलों के धक्के, फिर नौकरी के लिए धक्के, फिर नौकरी में ट्रांसफर के धक्के, फिर पेंशन और पे कमीशन के धक्के और अब कोरोना के दूसरे टीके के लिए धक्के. आदरणीय मैं अपनी नहीं, मोदी जी की बात कर रहा हूँ. 


हमने कहा- मोदी जी और धक्का. उन्होंने तो बड़ी चतुराई से अपने बुजुर्गों, समकालीनों और छोटों तक सबको धकियाकर ठिकाने लगा दिया फिर चाहे वे केशू भाई हों, वाघेला हों, अटल-आडवानी-मुरली मनोहर हों, महबूबा मुफ़्ती हों. अंतिम शिकार हुए रामविलास पासवान. अगला नंबर सुशासन बाबू नीतीश कुमार का है.  किसी कार्यक्रम में यदि कोई गैर इरादतन ही आगे आने लगे तो हटा देते हैं फिर वह बाबुल सुप्रियो या मार्क ज़करबर्ग कोई भी हो. कौन पैदा हो गया मोदी जी धक्का मारने वाला या धकियाने वाला ? 


बोला- सीधे-सीधे तो कौन धक्का दे सकता है, कमांडो से घिरे रहते हैं, कई कई स्तर की सुरक्षा है, वैसे भी वे किसी को ज्यादा नज़दीक नहीं आने देते. बंगाल के चुनाव में एक मुस्लिम को अपने कान में फुसफुसाने देना, कुम्भ के पांच सफाई कर्मचारियों के पैर धोना या बांगला देश में 'नाम शूद्र' मातुआ सम्प्रदाय के मंदिर में पंखा झलना वास्तविक नहीं, चुनावी था. हाँ, कोरोना प्रबंधन में वेक्सीनेशन, ऑक्सीजन, बेड, श्मशान और गंगा में बहती लाशों को लेकर पहले 'लांसेट' और अब 'द गार्डियन' में छपी खबरों ने उनकी छवि को धक्का पहुंचा है. 


हमने कहा- छवि का क्या है ? थोड़ा-सा खर्च करके बन ही जाएगी. अब भी तो गैस सिलेंडरों और कोविड के टीके में छपी उनकी फोटो लोगों को उनकी चरण-वंदना करने को विवश कर देती है. दुनिया मोदी जी की अंतर्राष्ट्रीय छवि से जलने लगी है. अमरीका, फ़्रांस, ब्रिटेन, रूस, आस्ट्रेलिया आदि के राष्ट्रपतियों-प्रधानमंत्रियों को डर लगने लगा है कि कहीं मोदी जी उनकी कुर्सी न हथिया लें. 


बोला- वैसे कुछ सच्ची पत्रकारिता अब भी बची है. कुछ दिन पहले ही 'द डेली गार्डियन' ने लिखा है-  भारत में कोरोना संकट के इस समय में प्रधानमंत्री मोदी बहुत काम कर रहे हैं, इसलिए लोग विपक्ष के भ्रमजाल में ना फंसे. इस आर्टिकल को बीजेपी के लोगों और मोदी सरकार से जुड़े मंत्रियों ने जमकर शेयर किया.


हमने कहा- यह सब 'मेड बाय यू.एस.ए'. है. 


बोला- यह तो और भी बड़ी बात है. 


हमने कहा- तुझे पता नहीं इस रहस्य का. एक बार भारत में बहुत-सा नकली माल उक्त ब्रांड के नाम से आने लगा. संयोग से एक कम चतुर और कम रसूख वाला व्यक्ति पकड़ा गया. उसके माध्यम से कुछ और लोगों तक पहुंचा गया तो पता चला कि इस यू.एस.ए. का फुल फॉर्म था 'उल्हासनगर सिन्धी एसोसियेशन'.अब कर लो बात. 


इस ‘द डेली गार्डियन’ का प्रतिष्ठित ‘द गार्डियन’ अखबार से कोई लेना देना नहीं है. यह एक वेब साईट है. इस पर पीएम मोदी की तारीफ में छपा आलेख एक संपादकीय है जिसे बीजेपी के मीडिया रिलेशंस के कन्वेनर सुदेश वर्मा ने लिखा है जो टीवी डिबेट में पार्टी प्रवक्ता की भूमिका भी निभाते हैं. उन्होंने ‘नरेंद्र मोदी: द गेम चेंजर’ नाम की किताब भी लिखी है. ICANN (Internet Corporation for Assigned Names and Numbers) के मुताबिक ‘thedailyguardian.com’ डोमेन का रजिस्ट्रेशन उत्तर प्रदेश का है. ये डोमेन आईटीवी नेटवर्क के नाम से रजिस्टर्ड है और इसका मेलिंग अड्रेस भी यूपी दिया गया है.


बोला- 'द गार्डियन' रोज छपता है तो 'डेली' हुआ या नहीं. और यह सुदेश वर्मा वाला भी 'डेली' है तो क्या फर्क पड़ता है ? प्रशंसा तो प्रशंसा है, कोई भी करे. 


हमने कहा- कबीर जी ने तो कहा था- निंदक नियरे राखिये....लेकिन यह तो खरीदी गई प्रशंसा है.


बोला- अब कबीर का ज़माना नहीं है. अब पब्लिसिटी का ज़माना है. सेटिंग करो, खरीदो. और कुछ न कर सको तो खुद ही ऑटो रिक्शे पर कैसेट बजाते निकल पड़ो, अपनी प्रशंसा के कैसेट बजाते. कौन ध्यान देता. जो दिखता है सो बिकता है. मनमोहन इसी भलमनसाहत में मार खा गए. समझदार आदमी ऐसा रिस्क नहीं लेते. अब तो दिल्ली में उन से पुलिस द्वारा पूछताछ करवाई जा रही, पूछताछ क्या डराया जा है जो लोगों को अपने स्तर पर ऑक्सीजन, बेड या कोई और मदद कर रहे हैं.आखिर इससे भी कंगना के अनुसार देश के पिता अर्थात मोदी जी की छवि को धक्का लगता है. 


बोला- कल से तू अपने नाम से पहले 'डॉ.' लगाना शुरू कर दे. कोई विरोध करे तो मेरा नाम बदल देना. देश में आज भी 'लाइफ ब्वाय' की जगह 'लाइट बॉय', 'कोलगेट' की जगह 'गोलगेट' धड़ल्ले से बेचे जा रहे हैं. कांग्रेस के नाम का उपयोग करके जाने कितने ही नकली लोगों ने अलग पार्टियां बनाईं. नक़ल और बुराई में मार्जिन ज्यादा है. अब तो गुजरात से लाखों नकली रेमडेसीवेयर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में आ रही है कि नहीं ? लोगों को नोट के तो असली-नकली होने का पता लगता नहीं, नेता के चोर या चौकीदार होने के फर्क की पहचान तो हो नहीं सकती.ऐसे में क्या खाकर 'द गार्डियन' और 'द डेली गार्डियन' का फर्क समझेंगे. सभी बंगालियों की तरह नहीं होते जो दाढ़ी के अन्दर घुसकर टैगोर को ढूँढ़ लेते हैं. देख लेना एक दिन वे नकलचियों के प्रचार की आंधी में धोखा खा ही जायेंगे. बहुत से बच्चों को तो गाँधी के 'हे राम' और 'नाथू राम' में ही फर्क नहीं मालूम.  


हमने कहा- लेकिन धक्के का विश्लेषण कब करेंगे कि धक्का कब, कहाँ, किस दिशा से, किस तीव्रता का, किस इरादे से लगा. सम्प्रति धक्के, धक्के मारने, धक्के खाने वाले और इस धक्के से विचलित होने वालों और इस धक्के से खुश होने वालों का क्या भविष्य है.  


बोला- अब जब इस  'मेड इन यू पी'  'द डेली गार्डियन' का विश्लेषण ही तूने कर दिया तो बाकी रह क्या गया. चलता हूँ.


हमने कहा- इस विश्लेषण के दौरान दूध आ चुका है. अभी चाय बनी जाती है.


बोला- अब इस विश्लेषण के बाद किस मुंह से चाय पियूँ ? लेकिन क्या किया जाए हम लोग इतने असभ्य और असंस्कारी भी तो नहीं हो सकते. लेकिन तेरी इस चाय के प्रति उत्तर में मैं तुम्हारा नाम अपनी संस्था की ओर से साहित्य के 'नो बॉल' या 'जान पीठ' पुरस्कार के लिए प्रस्तावित करवा सकता हूँ.


हमने पूछा- तेरी कौनसी संस्था है ?


बोला- बीजेपी अर्थात  'भारतीय जुगाडू पुरस्कार' . 'द डेली गार्डियन' के विश्लेषण के बाद अभी इस संस्था का जन्म हुआ है. जल्दी ही रजिस्ट्रेशन भी हो जाएगा. 


हमने पत्नी से कहा- तोताराम के लिए एक आम भी काट दे. भले ही झूठी हो लेकिन प्रशंसा से मन गदगद हो गया.


पत्नी ने उत्तर दिया- किसी को दोष देने से कोई फायदा नहीं. ज़रा सी प्रशंसा से तुम्हारी यह हालत हो गई तो  स्वार्थ के कारण ही सही, लेकिन जिसके नाम की करोड़ों लोग माला जपते हों, उसके पैर ज़मीन पर कैसे टिकेंगे.


हमने कहा- इसमें भक्तों का कोई दोष नहीं है. रहीम जी ने ठीक ही कहा है-


रहिमन आटा  के लगे बाजत है   दिन-रात  


घिउ शक्कर जे खात नित तिनके कौन बिसात 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 19, 2021

सिद्धि तो संकल्प से ही होगी


सिद्धि तो संकल्प से ही होगी 


आज तोताराम ने आते ही कहा- चाय की औपचारिकता करने की ज़रूरत नहीं है. मैं ठीक आठ बजे पहुँच जाऊँगा. तू  हैवी नाश्ता करके तैयार रहना. टीके का दूसरा शॉट लगवाने के लिए चलेंगे.

हमने कहा- हम शनिवार को गए थे तो बताया गया कि अभी टाइम नहीं हुआ है. आज समाचार है कि अमिताभ बच्चन ने कल दूसरा शॉट लगवाया. पहला शॉट उसने भी हमारी तरह अप्रैल के शुरू में ही लगवाया था. 

बोला- ठीक है अमित जी तुमसे उम्र में छोटे हैं लेकिन वे महानायक है और तुझे आजतक एक्स्ट्रा का भी कोई रोल नहीं मिला. उनके टीका लगवाने से हैड लाइन बनती है, लोगों को प्रेरणा मिलती है कि टीका लगवाएं और मोदी जी के 'टीका-उत्सव' कार्यक्रम को सफल बनाएं. 

हमने कहा- लेकिन जब टीका पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध ही नहीं है तो कैसा तो टीका-उत्सव और कैसी सफलता.  ऊपर से फोन पर टीका लगवाने के लिए डायलर टोन आती है सो अलग.

बोला- कुछ भी हो लेकिन चलेंगे ज़रूर. और रोज चलेंगे. जब तक टीका नहीं लग जाता तब तक रोज चलेंगे. भले ही वहाँ जा जाकर संक्रमण ही क्यों न हो जाए. 

हमने कहा- लोग टीका लगवाकर भी तो मर ही रहे हैं. हम क्यों बिना बात टीके के चक्कर में मरने के काम करें. बचना होगा तो ऐसे भी बच जायेंगे. 

बोला- यही तो कमी है. मोदी जी ने जो कहा है- 'संकल्प से सिद्धि',  वह ऐसे ही नहीं है. इसका मूल भाव समझ. सिद्धि कैसी भी हो, देवों, दानवों, दैत्यों, राक्षसों, देवों, सुरों, सज्जनों और दुष्टों  किसी को भी प्राप्त हुई हो लेकिन  आज तक बिना दृढ संकल्प के प्राप्त नहीं हुई है. संकल्प, अटूट विश्वास और मरणान्तक धैर्यजनित प्रतीक्षा के कारण ही अहल्या और शबरी तक राम खुद पहुंचे थे. 

तुझे वह बोध कथा तो पता ही है. दो व्यक्ति थे. एक नियम से शिव मंदिर में दीया जलाने जाता था और दूसरा बुझाने. एक दिन मौसम भयंकर खराब. दीया जलाने वाला आलस्य कर गया लेकिन बुझाने वाला लगन का पक्का, दृढ  संकल्पी. पहुँच गया. शिव तो आशुतोष. उसके संकल्प से प्रसन्न होकर सिद्धि प्रदान कर दी. 

हमने कहा-  और ऐसे वरदान भी शिव ही देते हैं. सिर्फ संकल्प देखते हैं नीयत नहीं देखते. ये सब बातें बोध कथाओं में ही होती हैं.

बोला- ऐसा नहीं है. तू चाहे तो भारत के विगत एक शताब्दी के इतिहास से इसे भली भाँति समझ सकता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मुस्लिम लीग ने भारत के किसी स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग नहीं लिया फिर चाहे वह गाँधी का आन्दोलन हो, भगत सिंह का या फिर सुभाष का. गाँधी की हत्या के बाद प्रतिबन्ध लगा. १९५२ में जनसंघ बनाकर चुनाव लड़ा. कोई ख़ास सफलता नहीं मिली. फिर दूसरों से साथ मिलकर घुसपैठ की. जनता पार्टी बनी, सत्ता का स्वाद चखा और जिनके सहयोग से आगे बढे थे उन्हें ही धता बता दिया. फिर भारतीय जनता पार्टी बनी. १९८४ में संख्या २ पर पहुँच गई लेकिन अपने संकल्प पर दृढ रहे.  फिर राम मंदिर की राजनीति से २ से १८२ पर पहुँच गए. और अब ३०३.  आज भी आत्मा शांत नहीं है. हर छोटे-बड़े चुनाव में मोदी जी सब काम छोड़कर जीवन-मरण के प्रश्न की तरह पिल पड़ते हैं. भले ही बंगाल को रैलियों के दुष्परिणाम कोरोना के प्रकोप के रूप में भोगने पड़ें. 

हमने कहा- वैसे देश के विकास में कांग्रेस का भी बड़ा योगदान है.

बोला- इससे कौन मना कर सकता है लेकिन हर पीढी को अपने देशकाल के अनुरूप प्रयत्न करने पड़ते हैं. कांग्रेस के पुण्यों का फल नेहरू युग तक लगभग निबट गया. आगे पुण्य और तपस्या का क्रम चला नहीं तो पुण्य का खाता खाली हो गया. ओवर ड्राफ्ट कब तक और कितना मिलेगा. पुण्य क्षीण होने के बाद तो सबको ग्राउंड जीरो पर आना ही पड़ता है. अब आगे जैसे कर्म करेंगे वैसा फल मिलेगा. फिलहाल तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अपने पुण्य, संकल्प और तपस्या का फल भोगने का समय है. 

हमने कहा- लेकिन सत्ता में तो भाजपा है. 

बोला- राहु-केतु दोनों एक ही व्यक्ति के सिर और धड़ हैं.  भाजपा से सभी शीर्षस्थ नेताओं का प्रादुर्भाव संघ में ही हुआ है. सत्ता हथियाने के लिए जिन अन्य दलों और व्यक्तियों को पकड़ा गया है उन्हें न तो कभी विश्वसनीय माना गया और न उन्हें कभी दीवानेखास में प्रवेश मिला.

हमने कहा- तो क्या अब किसी और का भविष्य है या नहीं ? 

बोला- इस समय तो मुस्लिम लीग का ही भविष्य दिखाई देता है. 

हमने कहा- सच है, घृणा से घृणा, कट्टरता से कट्टरता और ध्रुवीकरण से ध्रुवीकरण को ही बढ़ावा मिलता है.   शायद इसी रुझान को देखते हुए फहमीदा रियाज़ ने लिखा था-

तुम भी हम जैसे ही निकले 

अब तक कहाँ छुपे थे भाई. 

 


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 15, 2021

नाम ही काफी है


 नाम ही काफी है 


आज अक्षय तृतीया है, ईद भी, परशुराम जयंती भी और जैनियों का भी कोई त्यौहार. हमारे यहाँ राजस्थान में तुष्टीकरण, पुष्टीकरण या दुष्टीकरण जैसा कुछ नहीं चल रहा है. वैसे यहाँ फिलहल ऐसी कोई समस्या भी नहीं है. यदि किसी के मन में थोड़ी बहुत खुराफात हो तो भी अब कोरोना ने सब की हवा बंद कर रखी है, सिर्फ नाक के दो सिलेंडरों से अबाध ऑक्सीजन खींचने वाले रामदेव के भक्तों के अतिरिक्त. वैसे सुना है उनके सिपहसालार योगी जी इलाज के लिए एम्स में भर्ती हुए थे. अब उनके आश्रम में ४० लोग संक्रमित पाए गए हैं. पता नहीं, किसी अस्पताल में हैं या वहीं कपाल ठोंकते हुए कपालभाति कर रहे हैं.

हमने पहला टीका १ अप्रैल को लगवाया था. पता नहीं, यह दिन हमें क्यों सूझा ? लगता है 'मूर्ख-दिवस' को वास्तव में मूर्ख बन गए. उस समय कहा था- चार हफ्ते बाद दूसरा टीका लगेगा. फिर टीका सप्लाई की कमी हुई तो इसे आठ हफ्ते का कर दिया गया.

हमारे यहाँ जो देश का एकमात्र विश्वसनीय अखबार आता है उसमें 'नमो नमो मोर्चा, भारत' और 'जय जय राजे राजस्थान' के गली मोहल्ला अध्यक्ष के मनोनयन का तो समचार आ जाता है लेकिन यह सूचना कहीं नहीं होती कि आज किस आयु वर्ग वालों को, कौन सा टीका, कहाँ और कितने बजे से कितने बजे तक लगेगा ? हमारे एक परिचित अखबार में हैं. हमने उनसे शिकायत की. उनके प्रयासों से आज टीके के बारे इस आशय का समाचार ढंग से छपा. बहू ने कहा- पिताजी, मौका है, टीका लगवा ही लें. 

सो हम टीकाकरण के लिए आधार-कार्ड की फोटो प्रति, मोबाइल जिसमें हमारे पिछले टीके का नाम और  प्रमाण क़ैद था, पानी की बोतल, पूरी बाँहों की कमीज़, डबल मास्क, सिर पर टोपी लगाकर उसी तरह निकले जैसे कि राजपूत अंतिम युद्ध लड़ने के लिए केसरिया अफीम और केसरिया कपड़े पहनकर निकलते हैं. उसी तरह मरणान्तक आस्था लेकर कि उस भीड़ में कोरोना का आक्रमण हो भी जाए तो कोई बात नहीं, आज तो दुर्योधन की तरह दूसरा टीका लगवाकर शरीर को वज्र का करवा ही लेंगे.

वहाँ पहुँच कर कई देर धूप में खड़े रहने के बाद  पता चला कि सरकार ने अपनी ३०३ सीटों के बल पर संविधान के मार्ग दर्शक सिद्धांतों की तरह कोरोना टीकाकरण के नियम भी बदल दिए हैं. बताया गया कि अब टीका चार-छह हफ़्तों की बजाय आठ-बारह हफ़्तों के बाद लगेगा. वहाँ से लौटते समय पसीने में पानी पी लिया और नाक में पानी हो गया. सो आज सुबह-सुबह  बहती हुई नाक को पोंछते हुए बरामदे में बैठे थे कि तोताराम ने हाँक लगाई- मुबारक हो ! 

हमने कहा- क्या इस बहती हुई नाक के लिए है या फिर 'द डेली गार्डियन' में मोदी जी की प्रशंसा के लिए या फिर 'लांसेट' में मोदी जी की निंदा के लिए ? 

बोला- ये कोई चर्चा के विषय नहीं होते. आजकल पुरस्कार और निंदा-स्तुति सब मेनेज किये जाते हैं. 

हमने पूछा- तो बधाई किस बात की ?

बोला- अक्षय तृतीया की. 

हमने कहा- आज ईद भी तो है. 

बोला- मैं ममता की तरह मुसलमानों का तुष्टीकरण नहीं करने वाला. आज तो हिन्दू, जैन और तेरे लिए है यह बधाई.

आज तेरी शादी को बासठ साल हो गए ना. वैसे तेरी नाक को क्या हुआ है ? कैसे मोदी जी के साथ केजरीवाल की वर्चुअल मीटिंग की तरह लीक हो रही है ?

हमने कहा- कल टीके की दूसरी डोज़ लगवाने गए थे. डोज़ तो लगी नहीं. हाँ, पसीने में पानी पीने से नाक में पानी ज़रूर हो गया. 

बोला- अब जिस तरह बेड, ऑक्सीजन, वेक्सीन, एम्बुलेंस आदि की कमी के कारण नाक बचाने के लिए जैसे मध्य प्रदेश की एक मंत्री उषा ठाकुर यज्ञ में आहुति डलवा रही हैं, रामदेव नाक वाले दो सिलेंडरों के ऑक्सीजन खिंचवा रहे हैं. कंगना पीपल के पेड़ के नीचे सोने की सलाह दे रही है वैसे ही सरकार ने तय कर लिया है कि जब तक वेक्सीन की आपूर्ति ठीक नहीं होती तब तक सरकार दूसरी डोज़ के लिए चार से छह, छह से आठ, आठ से बारह, बारह से बावन हफ्ते की गाइड लाइन निकाल देगी. 

हमने कहा- तो फिर क्या करें ?

तोताराम ने अपनी जेब से एक शीशी निकालकर हमारे हाथ पर रख दी. हमने पढ़ा और पूछा- यह कहीं रामदेव वाली तो नहीं है. लिखा है -रामदासवीर.

बोला- ओ अंग्रेज की पूँछ. रामदास वीर नहीं, रेमडेसीवीयर है.  

हमने कहा- कहीं यह गुजरात में बनी नकली रेम डेसीवीयर तो नहीं जो गुजरात से महाराष्ट्र वाया मध्य प्रदेश तेरे पास तो नहीं आ गई. इसमें नमक और ग्लूकोज के अलावा कुछ नहीं होता. गुजरात के बने और पी एम केयर फंड से खरीदे गए वेंटिलेटर भी खराब निकल रहे हैं. 

बोला- जैसे मोदी जी की 'मन की बात'  आजमाने के लिए नहीं बल्कि  एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देने के लिए होती है वैसे ही इसे लगवाना थोड़े है. केवल जेब में रख और दिन में एक माला  'यहाँ-वहाँ मोदी जी सदा सहाय छे' की फेरना.

बस, नाम ही काफी है. 


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 13, 2021

कोरोनार बांग्ला

कोरोनार बांग्ला


आज तोताराम ने कहा- मास्टर, अपना राजस्थान 'सोनार राजस्थान' कब बनेगा ?

हमने कहा- बनना ज़रूरी है क्या ? क्या जो हैं उससे काम नहीं चल रहा ? वैसे राजस्थान के लोग इसे 'रंगीलो राजस्थान' कहते तो हैं. जहां तक 'सोनार' को लेकर ही तुझे कोई कुंठा है तो खुश हो जा कि यहाँ जैसलमेर में पीले पत्थरों से बने किले को 'सोनार दुर्ग' कहा जाता है.

बोला- तो मोदी जी जब बंगाल को 'सोनार बांग्ला' बनाने की बात कह रहे थे तो क्या उनका इरादा वहाँ कोई 'पीले पत्थरों का किला बनाने का था ? 

हमने कहा- मोदी जी हैं कोई मज़ाक है क्या ? वे दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति बनवा सकते हैं, सबसे बड़े स्टेडियम को अपने नाम कर सकते हैं, कोरोना के दुष्काल में 'सेन्ट्रल विष्ठा' बनवा सकते हैं तो कुछ भी कर सकते हैं. लेकिन बंगाल को 'सोनार बांग्ला'  बनाने के पीछे उनकी मंशा थी कि टैगोर, विवेकानंद, सुभाष, जगदीश चन्द्र बोस, अमर्त्यसेन, अभिजित बनर्जी, सत्यजित रॉय आदि ने जो 'सोनार बांग्ला'  बनाया उसमें पर्याप्त मिलावट थी, हो सकता है सोने का नाम लेकर पीतल का ही बना दिया हो. लेकिन बंगाल के नासमझ लोगों ने न तो उनसे 'सोनार बांग्ला' बनवाया और न ही टैगोर जैसी वेशभूषा का सम्मान किया.  

बोला- फिर कुछ तो बना ही दिया. 'सोनार बांग्ला' नहीं तो 'कोरोनार बांग्ला' ही सही.

हमने पूछा- यह 'कोरोनार बांग्ला' क्या है ?

बोला- २ मार्च २०२१ को बंगाल में कोरोना से एक भी मौत नहीं हुई थी लेकिन २ मई को जब मोदी जी और उनके सिपहसालारों का धुआँधार प्रचार समाप्त हुआ तब कोरोना पोजिटिव मामले २०० से बढाकर १८ हजार हो गए और मौतें शून्य से एक सौ प्रतिदिन हो गई. तो बन गया ना 'कोरोनार बांग्ला' ?

हमने कहा- लेकिन अमित शाह तो कह रहे थे कि महाराष्ट्र में चुनाव नहीं था फिर भी वहाँ रोज ४० हजार पोजिटिव आ रहे थे. इसका मतलब चुनाव रैलियों का संक्रमण से कोई संबंध नहीं है. और फिर जब मोदी जी को कुछ नहीं हुआ तो उनकी रैलियों पर दोषारोपण उचित नहीं है. 

बोला- मतलब जब तक चुनाव न जिताने वाले बंगाल में रोज ५० हजार संक्रमित नहीं होंगे तब तब अमित जी की आत्म को शांति नहीं मिलेगी. 

हमने कहा-  अपना राजस्थान तो पहले से ही रंगीला है. कई रंग वाला. केवल 'सोनार' ही बनाकर क्या करेंगे. 

बोला- २०२३ का चुनाव कौन सा दूर है ? तब 'रंगीले राजस्थान' को 'केसरिया राजस्थान'  बना देंगे. 

हमने कहा- एक बार इस 'कोरोना कष्ट' से निबटें. बाद की बाद में देखेंगे- काला-पीला, हरा-गेरुआ, भगवा-नीला.




पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 1, 2021

हमारा भी तो कोई फ़र्ज़ है


हमारा भी तो कोई फ़र्ज़ है 


तोताराम सुबह चाय पी गया था लेकिन जैसे ही हम लगभग १२  बजे अपनी पालतू 'मीठी' को लघु शंका करवाने के लिए निकले तो देखा तोताराम एक छोटा-सा थैला लिए जयपुर रोड़ की तरफ जा रहा है. हमने पूछा- इस लॉक डाउन में कहाँ जा रहा है ? किसी पुलिस वाले ने पकड़ लिया तो दो सौ रुपए का चालान काट देगा. नेताओं और संतों की बात और है. वे जो चाहे बोलें, जो चाहे करें. चुनावी रैली करके घृणा और भीड़ के द्वारा अलगाववाद का कोरोना फैलाएं या संत हरिद्वार में कुम्भ स्नान करके पूरे देश को संक्रमण का प्रसाद वितरित करें; उनके सात खून माफ़ हैं.  इस कड़क धूप कहाँ जा रहा हैं ? आ बैठ, पानी पी ले. फिर घर वापिस चले जाना.

बोला- मास्टर, जाना तो पड़ेगा. बिटिया की तबीयत ठीक नहीं है. 

हमे पूछा- क्यों, स्वीटी बिटिया को क्या हुआ ?

बोला- स्वीटी तो ठीक है. कंगना को कोरोना हो गया है. 

हमने कहा- तो उसमें तू क्या करेगा ? वैसे कोरोना हो कैसे गया ? उसे तो वाई प्लस सुरक्षा मिली हुई.

बोला- कोरोना से कोई सुरक्षा नहीं दे सकता. उसका वाइरस कोई दिखाई थोड़े देता है जो कमांडो एनकाउन्टर करके वहीँ ढेर कर देंगे. उसने तो अमित शाह, ट्रंप, जोनसन आदि तक को लपेटे में ले लिया. 

हमने कहा- चिंता की कोई बात नहीं है. मुम्बई में बड़े-बड़े अस्पताल हैं और फिर सिर पर केंद्र सरकार का हाथ है. सब ठीक हो जाएगा. 

बोला- फिर भी ऐसी देशभक्त और भारतीय संस्कृति की भक्त और सच्ची हिन्दू के लिए अपना भी तो फ़र्ज़ बनता है. 

हमने कहा- तू क्या करेगा ? उसके शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ के लिए तेरी कल ही बनी संस्था 'अंतर्राष्ट्रीय अबाध ऑक्सीजन आपूर्ति अभियान' संस्था की तरफ से शुभकामना दे दे.  

बोला- वह तो देंगे ही. फिलहाल एक पीपल का और एक तुलसी का पौधा भेज रहा हूँ.

हमने उसे एक हनुमान चालीसा देते हुए कहा- यह हमारी तरफ से भेज देना. कल ही एक विश्वसनीय अखबार में समाचार छपा है कि वेद-विज्ञान की थोक आपूर्तिकर्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक आनुषांगिक अनुभाग के प्रान्त प्रमुख संजीव गर्ग ने जयपुर में बताया है कि कोरोना संकट मुक्ति के लिए राजस्थान में हनुमान चालीसा के कम से कम सवा लाख पाठ किये जायेंगे. जब बात वैदिक ज्ञान की है तो झूठ होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. यदि उठ भी गया तो बैठा दिया जाएगा. 

बोला-  बिटिया काली की भी भक्त है लेकिन पता नहीं, बंगाल में 'जय श्री राम' के नारे की विफलता के बाद उसे काली में कितना विश्वास रह गया है.  मैंने उसका योग करते हुए फोटो देखा है. बहुत शांत लग रही थी. 

हमने कहा- तू पीपल और तुलसी भेज रहा है तो भेज दे. वैसे कल ही रामकिशन यादव ने भी कहा है कि ऑक्सीजन की चिंता मत करो. ब्रह्माण्ड ऑक्सीजन से भरा पड़ा है. ये दोनों नथुने दो सिलेंडर हैं. भर ले जितनी चाहे ऑक्सीजन. 

बोला- तो फिर ठीक है. घर लौट रहा हूँ. वैसे श्रद्धा और आस्था वाला कोई और उपाय हो तो वह भी बता दे, मेसेज करवा देंगे. 

हमने कहा- वैसे तो कोई चिंता की बात नहीं फिर भी यदि वह चाहे और आसपास कोई हनुमान जी का मंदिर हो तो गुजरात के साणंद की महिलाओं की तरह सिर पर कलश लेकर वहाँ अभिषेक कर आए. इसके बाद तो काम पक्का. कोरोना का बाप भी कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा. 

 


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach