Nov 27, 2021

चैन की नींद

चैन की नींद 


आजकल बड़ी अनिश्चय की स्थिति है हमारी. वैसे ही जैसे कृषि कानून वापिस लें तो जिन्होंने नए कानूनों के भरोसे राजमार्गों के साथ-साथ बड़े बड़े गोदाम बना लिए उन्हें क्या ज़वाब दें. वापिस न लें तो किसान नाराज़. नेताजी द्वारा सुधरने की चेतावनी देने के बाद भी न सुधरने वाले किसानों को समझाने वाली संवैधानिक स्वचालित जीप का उपयोग करें तो  मानवाधिकार वाले चीं-चीं करने लग जाते हैं. दुनिया के इन सिरफिरे लोगों को कैसे समझाएं. 

लेकिन हमारे इस अनिश्चय का कारण न तो राजनीतिक है और न ही आर्थिक. कारण है मौसम जो सरकारों और नेताओं से भी ज्यादा बेईमान होता है. साफ़-साफ़ 'गोली मारो सालों को..' जैसा घातक स्टेटमेंट देकर भी पलट जाता है. शाम को हलकी गरमी, आधी रात के बाद ठण्ड, पंखा चलाना खतरनाक. इन सबके बीच राजस्थान में चल रहा डेंगू का डर. इसी संघर्ष में ढंग से नींद नहीं आई. बरामदे में बैठने का मन नहीं हुआ. सिर में भी हल्का-हल्का दर्द. सिर पर सफ़ेद गमछा बांधे लेटे थे कि तोताराम ने कमरे में घुसते ही प्रश्न फेंका- किसलिए सिर पर कफ़न बाँध रखा है ?

हमने कहा- यह 'सबके साथ और सबके विकास' का मरणान्तक काल है. ऐसी स्थिति में कफ़न नहीं तो क्या सेहरा बांधें ? गीता में कृष्ण के सन्देश- 

हतो व प्राप्यससे स्वर्गम् जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् 

वाली 'विन-विन' सिचुएशन है. जियेंगे तो विकास का आनंद लेंगे और मर गए तो ऊपर जाकर स्वर्ग का मज़ा लेंगे. 

बोला- तुझे ही क्या आफत आ रही है ? रसोई गैस के दाम तो सबके लिए समानभाव से बढ़ रहे हैं. खुश हो कि देश १०० करोड़ टीकों का उत्सव मना रहा है. साफ़-साफ़ बता चक्कर क्या है ? 

हमने कहा- रात को ठीक से नींद नहीं आई. 

बोला- तेरी सोच में ही खोट है. अन्यथा सुना है मोदी जी को लेटते ही दो मिनट में नींद आ जाती है. यही हाल गाँधी जी का भी था. 

हमने कहा- न तो मोदी जी के कमरे के पास दिन-रात कुत्ते भौंकते हैं और न ही जब-तब टूटी सड़क की छाती कूटते बजरी और पत्थरों के ट्रेक्टर गुजरते हैं. फिर यह भी चिंता नहीं कि कोई बाहर सूखते कपड़े या जूते उठा ले जाएगा. या यह कि यदि समय पर नहीं पहुंचे तो दूधवाला दूध में पानी मिला देगा. अन्य पारिवारिक किचर-किचर भी नहीं. मोर तक को दाना देने वाले नियुक्त होंगे. न ही पद, पे और सुविधाओं को कोई खतरा क्योंकि उनका कोई विकल्प ही नहीं है. यही हाल गाँधी जी का था. उनका भी कोई विकल्प नहीं था. कौन आता अंग्रेजों की लाठियां खाने. चतुर लोग तो धार्मिक संगठन बनाकर या माफ़ी मांगकर एक निश्चित भत्ता प्राप्त कर रहे थे. 

हमारे पास न तो घोड़े हैं जिन्हें बेचकर सो सकें, न कोई चैन की बांसुरी है जिसे बजा सकें, 

बोला- गाँधी जी और मोदी जी के अतिरिक्त भी बहुत से व्यक्ति हैं जिन्हें चैन की नींद आती है. जबकि उनके पास न घोड़े हैं और न ही बांसुरी है, जैसे राष्ट्रवादी कांग्रेस से भाजपा में आए हर्षवर्द्धन पाटिल और वर्तमान में भाजपा के सांसद संजय पाटिल. दोनों का ही कहना और मानना है कि वे भाजपा में है इसलिए उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं है कि उनके यहाँ किसी प्रवर्तन निदेशालय या सी बी आई या एन एस ए का छापा पड़ेगा.  स्वतंत्र भारत के पहले आतंकवादी और गाँधी जी के हत्यारे का महिमामंडन करने में भी उन्हें न तो शर्म आती है और न ही किसी समाज और समरसता विरोधी अपराध का आरोप लगने का भय रहता है. 

हमने कहा- तोताराम सुना है, सत्ता में होने के कारण माननीयों और उनके नेताओं को अपने और अपने भक्तों के जघन्य से जघन्य अपराध खुद ही माफ़ कर सकने का अधिकार होता है. कोर्ट, कानून और संविधान सब गए भाड़ में. 

बोला- तभी तो बड़े से बड़े सेठ भी या तो चुनाव लड़कर सभी कानूनों से परे होना चाहते हैं या फिर कानून के ऐसे रखवालों को खरीदकर सर्वशक्तिमान बनना चाहते हैं. लेकिन तू कभी कभी अपने आदर्शवाद के चक्कर में हास्य-व्यंग्य भी लिखता है. तुझे तो और सावधान रहना चाहिए. 

हमने कहा- अपने राजस्थान में तो कांग्रेस का शासन है. 

बोला- लेकिन किसी को भी बात, बिना बात फँसा सकने वाले सभी विभाग तो किसी और के पास हैं. इसलिए अच्छी नींद के लिए अपने भगवान, भेष, भाव और भाषा बदल ले; नहीं तो आज मौसम के कारण नींद खराब हुई है, कल कोई और, किसी और बहाने से नींद ही क्या, तेरा मनुष्य जन्म खराब करवा देगा. 

  



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Nov 25, 2021

दूर दृष्टि : पक्का इरादा


दूर दृष्टि : पक्का इरादा 


मोदी जी के 'आत्मनिर्भर भारत' के नारे के बिना भी, हमने मोदी जी के जन्म के तीन साल पहले ही, अपने में बचपन में गांधी जी की बुनियादी शिक्षा के प्रभाव और पाठ्यक्रम के कारण आत्मनिर्भरता के सिद्धांत को समझ लिया था. और कुछ जो बचा-खुचा रह गया वह ज़िन्दगी ने सिखा दिया. वैसे ही जैसे मोदी जी को रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर चाय-विक्रय और बाद में संघ के प्रचारक की मज़बूरियों ने आत्मनिर्भर बना दिया. बस, फर्क इतना सा है कि उन्होंने विक्रय कला में जो  विशेषज्ञता हासिल की वह अब सरकारी उद्योगों को बेचने में काम आ रही है.और हमने गाँधी जी की शिक्षा से आत्मनिर्भरता का जो अर्थ समझा वह हमारे लिए समस्या बना हुआ है. हम भी गाँधी जी की तरह अपने सभी काम खुद ही करने की कोशिश करते हैं. कुछ अपनी स्वभावगत चंचलता और कुछ माँ की दूरदृष्टि कि हम शादी से पहले ही खाना बनाना सीख गए. स्कूल में तकली कातना और सिलाई का छोटा-मोटा काम सिखाया ही जाता था. रिटायर्मेंट से पहले तक हम अपने कपड़ों की छोटी-मोटी मरम्मत, काज, बटन, रफू तथा पट्टे वाला अंडरवीयर, पायजामा सीने जैसे काम कर लिया करते थे. 

 कमीज का ऊपर वाला बटन टूट गया था. अब सर्दी में उसे बंद करना पड़ा करेगा सो उसी को लगा रहे थे, तभी तोताराम आ गया, बोला- मास्टर, ताज्जुब है तेरी नज़दीक की दृष्टि अभी तक ठीक काम कर रही है. इस उम्र में आकर दूर की दृष्टि तो ठीक रहती है लेकिन नज़दीक वाली कमजोर हो जाती है.

हमने कहा- हाँ, बुढ़ापे में ऐसा हो जाता है जैसे अडवानी जी को अब भी अपने घर से राष्ट्रपति भवन में रखी कुर्सी साफ़ दिखाई देती है लेकिन बरामदे में रखी अपनी निर्देशक मंडल वाली दरी दिखाई नहीं देती. इंदिरा जी का नारा तो तुझे याद ही होगा- दूर दृष्टि, पक्का इरादा. वे बुढ़ापे के कारण दिल्ली में बैठे-बैठे स्वर्ण मंदिर तो देख पाती थीं लेकिन अपने नज़दीक ही हत्या का षड्यंत्र रचने वाले अपने दो अंगरक्षकों को नहीं देख पाईं. इसी तरह अमित शाह जी अपने हाथों की दूरबीन बनाकर ही उत्तर प्रदेश में जगह-जगह रात को गहने पहने, स्कूटी पर सुरक्षित घर जाती  लड़कियों को देख सकते हैं लेकिन मंच पर बैठे बाहुबालियों को नहीं. 

बोला- तो क्या तू अस्सी साल में जवान है  और तुझसे २२ साल छोटे अमित शाह बुज़ुर्ग हैं.  

हमने कहा- हम ज़िन्दगी भर १५-२० साल के बच्चों के बीच ही रहे सो हमारी कूटनीतिक समझ अभी तक किशोरों जितनी ही है. हाँ, जहाँ तक अमित शाह जी की बात है तो वे तो 'विश्वगुरु भारत' के चाणक्य हैं. गाँधी और नेहरू तक को एक वाक्य में निबटा देते हैं.   



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Nov 23, 2021

जो चाहसि उजियार....

जो चाहसि उजियार....    


खाना खाकर थोड़ा लेटे ही थे कि तोताराम ने हांक लगाई- अरे मास्टर, आज भी कम्बल में घुसा हुआ है. 

हमने कम्बल से मुंह बाहर निकाला तो बोला- आज तो कम से कम दाढ़ी बना लेता. अब तो मोदी जी ने भी ट्रिम करा ली. 

हमने कहा- ठीक है कि संसद में हमारा बहुमत नहीं है लेकिन क्या लोकतंत्र में इतनी भी स्वतंत्रता नहीं कि हम अपनी दाढ़ी को जिस आकार-फैशन की रखना चाहें, रख सकें.

बोला- आज तो रूप चौदस है. दाढ़ी बना, ढंग के कपड़े पहन और बाज़ार चलकर अपने रूप की छटा बिखेर.

हमने कहा- यस्य पार्श्वे टका नास्ति हाटके टकटकायते. जिसके पास में टका (रुपया) नहीं होता, वह बाज़ार में व्यर्थ में ताकता फिरता है. हम वहाँ जाकर अपनी तपस्या भंग नहीं करना चाहते. 

बोला- मुझे भी कौन बड़ी खरीददारी करनी है. बस,पच्चीस छोटे और दो बड़े दीये लाने हैं.

हमने कहा-हमारे पास तो पिछली दिवाली का एक दीया रखा है उसी को जला लेंगे.

बोला- कंजूस, अधार्मिक, राष्ट्रद्रोही, नास्तिक ! आज के दिन भी ! अरे, जिन राम को गाँधी नेहरू ने अयोध्या में घुसने नहीं दिया उसे योगी जी हेलिकोप्टर में बैठाकर सरयू तट लाये हैं. नाथपंथ तो निर्गुण भक्ति का ही एक रूप है फिर भी योगी जी ने अपने पंथ की कट्टरता को त्याग क,र जनता की भावनाओं का ख़याल रखते हुए राम के स्वागत में ९ लाख ५१ हजार दीयों का विश्व रिकार्ड बनाने का संकल्प किया है. और तू सनातनी, गृहस्थ, ब्राह्मण होकर भी राम के स्वागत से इतना उदासीन ! 

हमने कहा- तेल दो सौ के पार और घी पांच से ऊपर. सर्दी में मालिश भी लगता है सूखी ही करनी पड़ेगी. जब फोटो खिंच जायेंगे, उत्सव समाप्त हो जाएगा, रिकार्ड वाले संतुष्ट होकर चले जायेंगे तब देखना हजारों लोग इन दीयों के बचे हुए तेल के लिए लड़ते नज़र आयेंगे. ऐसी स्थिति में राम होते तो वे दीयों की बजाय अपनी प्रजा की आँतों के लिए तेल का इंतज़ाम करते. 

बोला- फिर भी ..

हमने कहा- फिर भी क्या ?  कौन योगी जी अपनी तनख्वाह या मठ के कोष में से खर्च कर रहे हैं. और खर्च करेंगे तो वोट प्राप्त करके सर्व सिद्धि कारक सत्ता प्राप्त करेंगे. सत्ता प्राप्त करने के बाद उसे कायम रखने के लिए शक्ति का प्रदर्शन ज़रूरी होता है. अब वे योगी नहीं, राजा हैं. वैसे भी मठाधीश एक प्रकार का राजा ही होता है. उसके पास अस्त्र-शस्त्रधारी चेले-भक्त होते हैं.हाथी-घोड़े-ऊंट, नौकर-चाकर होते हैं.हम तो सामान्य आदमी हैं तुलसी बाबा के अनुयायी.

बोला- भगवान राम के स्वागत में दीये जलाने का चार सौ साल का बैकलॉग है. उसे पूरा करने के लिए इतने दीये जलाने ज़रूरी है. और क्या तुलसी बाबा होते तो वे दीये नहीं जलाते ?

हमने कहा- जलाते क्यों नहीं. लेकिन वे भी हमारी तरह एक दीये से ही काम चला लेते. उन्होंने तो साफ़ कहा है-

राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार  

तुलसी भीतर बाहरहि जो चाहसि उजियार 

अर्थात यदि भीतर-बाहर ज्ञान और आचरण का उजाला चाहते हो तो जीभ रूपी द्वार की देहरी पर राम नाम की मणि का दीया धरो. एक ही दीये से अन्दर-बाहर आलोकित हो जाएगा. और यह दीया तेल का नहीं बल्कि एक चिंतामणि का प्रकाश है जो न तो किसी मोह-माया की आंधी से बुझेगा और न ही बार-बार तेल भरने का झंझट. 

याद रख, ज्यादा रोशनी अहंकार का प्रदर्शन है, जिसमें कुछ ढंग से नहीं दीखता. चकाचौंध में जो अपनी सामान्य दृष्टि  है वह भी ढंग से काम नहीं कर पाती. 

रामराज्य तेल के दीयों से नहीं, छोटे-बड़े सबके कल्याण से आएगा, नीरज भी तो कहते हैं- 

दिए से मिटेगा न मन का अँधेरा

धरा को उठाओ गगन को झुकाओ   





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Nov 17, 2021

सूरत जाने वाली डाइरेक्ट बस


सूरत जाने वाली डाइरेक्ट बस 


तोताराम ने बैठते ही ऑर्डर किया- एक फ्री डिश ले आ.

हमने कहा- यह कोई होटल नहीं है. और फिर जहां तक फ्री की बात है तो फ्री में तो गोबर, गू और गाली तक नहीं मिलती.

बोला- आज के इस रिकार्डी गौरवपूर्ण क्षण में  गू जैसी गन्दी चीज का नाम तो मत ले. 

हमने कहा-  यह देश तो जिंदा ही गौरव के भरोसे है. हम तो इस बात पर भी गर्व कर सकते हैं कि हम अब भी भले बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान से हंगर इंडेक्स में पीछे हैं लेकिन अब भी दुनिया के ग्यारह देशों से ऊपर हैं. कोरोना काल में हमने अस्सी करोड़ लोगों को तथाकथित फ्री पांच-पांच किलो सड़े अनाज के लिए भिखारियों की तरह लाइन में लगा दिया.  कोरोना काल में गंगा में तैरती लावारिश लाशों का रिकार्ड अब भी हमारे नाम ही है. 

बोला- लेकिन आज के शुभ दिन लोगों को 'लोचो' नामकी डिश फ्री खिलाने का रिकार्ड भी तो हमारे देश के नाम ही है. 

हमने पूछा- यह कौन सी डिश है ? हमें तो इसके नाम में ही जुमले वाला लोचा लगता है. 

बोला- गुजरात के सूरत में मोहित नाम का एक होटल मालिक देश में १०० करोड़ टीके लग जाने की ख़ुशी में दो दिन तक यह डिश फ्री खिलाएगा. 

हमने कहा- पक्का बिजनेसमैन है. पत्रकार को खिला दी होगी. और उसके जाते ही दुकान बंद. या फिर स्टॉक ख़त्म होने तक की कंडीशन लगा दी होगी. दस-बीस लोगों को पकड़ा दिया होगा एक-एक फाफडा. दो सौ रुपए में लाखों की पब्लिसिटी प्राप्त कर ली. 

बोला- तो तू कम से कम चाय के साथ एक सज्जन के लिए ही हलवा बनवा ले.

हमने कहा- जो जितना कम काम करता है वह उतना ज्यादा हल्ला करता है. चीन पहले ही २२३ करोड़ टीके  लगवा चुका है.

बोला- चीन में अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है इसलिए वह कोई भी आंकड़े दे सकता है. लेकिन हम तकनीकी और अनुशासन के लिए प्रसिद्ध देश जापान से पांच गुना टीके लगा चुके हैं.वह अगले सौ वर्षों में हमारे जितने टीके नहीं लगवा सकता.

हमने कहा- १०० करोड़ टीके कभी नहीं लगवा सकता क्योंकि उसकी जनसंख्या ही कुल १८ करोड़ है. जापान हमारा क्या मुकाबला करेगा. हम तो कुम्भ मेले में बिना टीके लगवाये ही बिल और आंकड़े जारी कर सकते हैं.और अपने राजस्थान में तो भागीरथ नामके एक आदमी को  कोई कोरोना वारियर स्वर्ग में जाकर भी टीका लगा आया. 

बोला- १०० करोड़ टीके लगवाने में ४१ लाख मानव दिवस लगे हैं. यदि एक आदमी यह काम करता तो उसे ११ हजार साल लगते. लेकिन यह इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि अब देश में पिछले सात साल से ऐसी सरकार है जो प्रगति में बाधा नहीं डालती. मोदी जी अपने संबोधन में कहा है- हमने यह उस राष्ट्र में कर दिखाया जहां सरकारों को २०१४ के पहले प्रगति में बाधा माना जाता था.   

हमने कहा- लेकिन हम तेरे लिए किसी फ्री डिश का प्रबंध नहीं कर सकते क्योंकि हमारे पास पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस से २३ लाख करोड़ सूँतकर फ्री टीके का प्रचार करने का अधिकार नहीं है.

बोला- यह बात पहले ही बता देता तो मैं फ्री का 'लोचो' खाने के लिए सूरत चला जाता. अब तो डाइरेक्ट सूरत जाने वाली बस भी निकल गई होगी. 


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Nov 14, 2021

मास्टर जी, सौगात ले जाइए

मास्टर जी, सौगात ले जाइए 


हम और तोताराम आज भी बरामदे की बजाय कमरे में ही बैठे थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई- मास्टर जी, सौगात ले जाइए. 

हमने बैठे-बैठे ही उत्तर दिया- लगता है गलत पते पर आ गए हो. हम कौन किसी को राफाल का ठेका दिला सकते हैं जो कोई हमें सौगात भेजेगा. 

तोताराम बीच में कूद पड़ा, बोला- एक बार देख तो ले. किसी के तोहफे का इस तरह निरादर नहीं करना चाहिए. 

हमने कहा- पहले सौगात और अब यह तोहफा ! हम इतने अधार्मिक और हिंदुत्व विरोधी नहीं है जो इसे स्वीकार करें. उपहार होता तो बात और थी.

बोला-  सौगात और तोहफा या गिफ्ट सब उपहार के ही तो पर्यायवाची हैं. इससे क्या फर्क पड़ता है ?

हमने कहा- तुझे पता नहीं, ये मुसलमान और ईसाई इसी तरह हमारी संस्कृति और धर्म को नष्ट करते हैं. आज उपहार को सौगात और तोहफा का रहे हैं कल को स्वर्ग को जन्नत कहने लगेंगे. भले ही हमें नरक में जाना पड़े लेकिन मुसलमानों की जन्नत और ईसाइयों के हैवन में नहीं जायेंगे. प्यासे मर जाएँ लेकिन पियेंगे जल ही; वाटर पीने से तो रहे. 

बोला- आज अचानक तेरे वसुधैव कुटुम्बकम और सर्व धर्म समभाव को क्या हो गया है. कैसी तालिबानों की सी बातें करने लगा है. कहीं दिवाली पर अब्राहिमी लोगों द्वारा 'फैब इण्डिया' के  विज्ञापन के बहाने भारतीय संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने के सांप्रदायिक षड्यंत्र की आड़ में बेंगलुरु के सूर्या वाले बहकावे में तो नहीं आ गया ?

हमने कहा- अपनी वाणी को संभाल. पूरा नाम ले- तेजस्वी सूर्य. अब जो सत्तर के हो गए हैं वे ढलते सूर्य हैं. पता नहीं कब निर्देशक मंडल में जा बैठें या झोला उठाकर चल दें. यह चढ़ता हुआ तेजस्वी सूर्य है. प्रज्ञा की तरह भविष्य इसी का है भले ही कोई 'मन से माफ़' करे या न करे. न करे तो अपने घर बैठे.  अब तो इन्हीं की चलेगी.

तभी अब तक हमारी चर्चा से बोर हो रहा बेचारा 'सौगात की आवाज़' लगाने वाला बोला- मास्टर जी, मैं तो अखबार वाला हूँ.  मेरे पास मोदी जी द्वारा भेजी किसी वस्तु की सौगात नहीं है. मैं तो पहले पेज पर छपे समाचार को लेकर आपसे मज़ाक कर रहा था जिसमें लिखा है- मोदी जी की केन्द्रीय कर्मचारियों की दिवाली पर ३% डीए की सौगात. 

हमने कहा-  तेरा यह 'मज़ाक' नहीं चलेगा. हाँ, 'परिहास' करे तो बात और है. और हाँ, 'डीए की सौगात' के  अब्राहिमी आदेश को 'महँगाई भत्ते में तीन प्रतिशत की वृद्धि के उपहार'  के हिंदुत्त्ववादी आदेश में बदलने के लिए हम मोदी जी को पत्र लिखेंगे. 

हम तीन प्रतिशत डीए के लिए धर्म को संकट  में नहीं डाल सकते. 

अखबार वाला बोला- मास्टर जी, लगे हाथ मोदी जी को यह भी लिख देना कि संस्कृत में 'स्वतंत्रता' और 'स्वाधीनता' जैसे शब्दों के होते हुए वे 'आज़ादी' के ७५ साल का महोत्सव क्यों मना रहे हैं.


 



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Nov 12, 2021

कामचोरी और मक्कारी के ६० साल


कामचोरी और मक्कारी  के ६० साल 


हमारे यहाँ शेखावाटी में इस साल ठण्ड दस दिन पहले शुरू हो गई. कल दिन में ठीक-ठाक हवा भी चली. बदलते मौसम में यदि आदमी सावधान न रहे तो जुकाम होने की अधिक संभावना रहती. कहावत है- 

पावक बैरी रोग रिण सपनेहुँ राखिय नाहिं.

ये थोड़े ही बढ़हिं पुनि महा जातन से जाहिं.

सो आती सर्दी में ठण्ड खा जाने की सभी संभावनाओं को निरस्त करने के लिए हम आज बरामदे में नहीं बैठे.

पहले तो तोताराम ने बरामदे के पास से ही आवाज़ दी. कोई उत्तर न मिलने पर अन्दर ही आ गया. बोला- लोग तो आज से सुबह-सुबह कार्तिक स्नान के लिए नदी-तालाबों पर जाने लगे हैं और तू इस पुण्य पुरुषोत्तम मास में कमरे में घुसा पड़ा है. तेरा कैसे उद्धार होगा.

हमने कहा- अगर जुकाम, निमोनिया और फिर कहीं डेंगू हो गया तो हमारा किसी प्रधान मंत्री आयुष्य योजना में इलाज़ होने वाला नहीं है. डेंगू टेस्ट का भी कोई ठिकाना नहीं. कौन, किस टेस्ट का कितना मांग ले. इसलिए यह स्वघोषित लॉक डाउन ही ठीक है. अभी-अभी प्रधानमंत्री जी ने १०० लाख करोड़ के गति-शक्ति वाले प्रोजेक्ट का हिसाब किताब दिया है, उसी को समझ रहे थे.

बोला- कोई बाध्यता तो नहीं थी हिसाब देने ही.  फिर भी मोदी जी हैं कि' मन की बात' की तरह किसी से कुछ छुपाते नहीं.सबको सब कुछ बता देते हैं. एकदम ट्रांसपेरेंट. वैसे तुझसे अपनी पेंशन तो ढंग से गिनी नहीं जाती और बात कर रहा है एक सौ लाख करोड़ की.अगर उनका यह गति-शक्ति प्रोजेक्ट कुछ समझ में आये तो मुझे भी बताना. 

हमने कहा- हमें तो इस उम्र में 'गति' से यही समझ में आता है कि बिना ज्यादा दुर्गति के यथासमय सद्गति हो जाए. यदि प्रेमचंद की कहानी 'सद्गति' जैसा कुछ हो गया तो परलोक का तो पता नहीं लेकिन इस लोक में ज़रूर तमाशा हो जाएगा.वैसे मोदी जी हर काम में 'तीव्र गति' के शौकीन हैं. समय बर्बाद नहीं करना चाहते. हनुमान जी की तरह 'खग को खगराज को वेग लजायो' में विश्वास करते हैं. जिससे देश, दुनिया और आकाश-पाताल सबको एक साथ संभाल सकें.लेकिन क्या किया जाए, 'प्रथम ग्रासे की मक्षिका पातः' हो गया.  देश में कोयले की कमी से बिजली का संकट आ गया. इसीलिए हम सुबह-सुबह लैपटॉप पर नेट का काम निबटा रहे थे. उसके बाद क्या पता कब. कितनी देर की बिजली कटौती हो जाए. खराब हो तो भी बिजली के ८१०/-रुपये के मिनिमम बिल की तरह भले ही कनेक्टिविटी न मिले पर नेट का भी तयशुदा बिल तो आएगा ही.  

बोला- और क्या समाचार हैं ?

हमने कहा- और तो बस, मोदी के सेवा और समर्पण के बीस वर्ष की चर्चा है, १३ वर्ष गुजरात की सेवा और विगत सात वर्षों से देश की सेवा. अब कामना कर कि आगे भी आजीवन समस्त विश्व की सेवा करते रहें. 

बोला- हमने भी तो साठ वर्ष सेवा की है. चालीस साल बच्चों को पढ़ाकर राष्ट्रनिर्माण के रूप में और अब विगत २० वर्षों से  बरामदे में बैठकर विश्वा कल्याण का चिंतन करते हुए. भगवान ने चाहा तो दस-बीस साल और भी समर्पण के साथ सेवा करते रहेंगे. तो क्यों न आज हम भी सेवा और समर्पण के साठ वर्ष सेलेब्रेट कर लें. कुछ मीठा हो जाए. 

हमने कहा- यह सेवा भी कोई सेवा है. सेवा करने वाले जीवन के सभी सुख छोड़कर दिन में १८-१८ घंटे काम करते हैं. तूने क्या सेवा की है ? ४० साल की मास्टरी को कामचोरी माना जाएगा क्योंकि आधा समय चाय पीने में और आधा समय पर-निंदा में बिताया. यदि तुम ही सेवा करते होते तो देश की शिक्षा का यह हाल क्यों होता ? लोग अभी तक यही तय नहीं कर पाए हैं कि देश भक्त गोडसे था या महात्मा गाँधी. दोनों तो एक साथ महान हो नहीं सकते राम और रावण, कंस और कृष्ण, महिषासुर और दुर्गा. 

रही बात रिटायर्मेंट से बाद सरकार पर पेंशन का बोझ डालते हुए बरामदे में बैठकर चाय के साथ परनिंदा करने की तो यह शुद्ध हरामखोरी है. चुपचाप जितनी मिल रही है पेंशन लेता रह. कहीं नोटबंदी की तरह मोदी जी ने पूरी 'शक्ति' से तीव्र 'गति' से पेंशन ख़त्म कर दी तो मोदी जी का फोटो छपे 'अन्नदान महोत्सव' के थैले के लिए लाइन में लगा दिखाई देगा. 

बोला- 'अन्नदान महोत्सव' में अस्सी करोड़ लोगों को पांच-पांच किलो अन्न बांटा जा रहा है मतलब कि देश में इतने लोग भिखमंगे बना दिए गए हैं. तभी तो देश 'हंगर इंडेक्स' में ११६ में से १०१ वें नंबर पर है, पकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से भी नीचे.

तभी तो कह रहा हूँ- समय रहते मना ही लें अपने 'सेवा और समर्पण के साठ साल'. जब लोग गाँधी और नेहरू के काल को ही देश का अन्धकार युग सिद्ध करने में लगे हुए हैं तो हमारी क्या औकात है. कल किसे पता क्या हो.

ज्यादा भींच मत. तू भी क्या याद करेगा ? ऐश कर, मेरी तरफ से सेलेब्रेट कर.

और तोताराम ने हमारी तरफ सौ का एक नोट उछाल दिया. 



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Nov 10, 2021

तू क्या अपने को प्रधानमंत्री समझता है ?


तू क्या अपने को प्रधानमंत्री समझता है ?


पता नहीं,कोरोना का प्रकोप कुछ कम हुआ है या इतने दिन डरते-डरते आदमी का डर निकल गया है. जैसे कि नोटबंदी और जीएसटी से किसी ज़माने में घबराया हुआ आम आदमी अब रोज घरेलू गैस और पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने से मरणान्तक निर्भयता की साहसिक मुद्रा में पहुँच गया है और बड़े से बड़े नेता पर भी हँस सक पा रहा है. इसी प्रकार अब हम भी सामान्य हो चले हैं. 

सवेरे बरामदे में दरी पर बैठकर अपनी पुस्तक की प्रूफ रीडिंग में व्यस्त थे कि किसी ने आवाज़ दी- शास्त्री जी नमस्कार. 

हमें पिताजी ने अति उत्साह में पाँचवीं क्लास के पहले छह महिने इतनी संस्कृत पढ़ाई कि हम अर्द्ध वार्षिक परीक्षा में 'महाजनी बहीखाता' में फेल हो गए. सो पिताजी ने हमें सुसंस्कृत बनाने का अभियान स्थगित कर दिया. उसी के बल पर हम आठवीं तक संस्कृत में पास होते गए. ऐसे में हम शास्त्री जी संबोधन से कैसे संगति बैठा सकते थे ? हम अपने काम में व्यस्त रहे. फिर वही 'शास्त्री जी' संबोधन. हमने बिना सिर उठाये ही कहा- भाई , हम शास्त्री जी नहीं  हैं, हम तो मास्टर जी हैं.

तोताराम ने हमें झकझोरा, बोला- मास्टर कहूँ या शास्त्री जी तेरी भव्यता और वैभव में कोई अंतर आने वाला नहीं है. प्रधानमंत्रियों में जो रुतबा शास्त्री जी का था वही मास्टरों में तेरा है.लेकिन याद रख, बरामदे में दरी पर बैठकर काम की व्यस्तता दिखाने मात्र से ही कोई प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री नहीं बन जाता.

फिर तोताराम ने अपने स्मार्ट फोन में एक फोटो दिखाते हुए कहा- यदि नहीं देखा हो तो देख ले  प्लेन में अपनी पत्नी के साथ इकोनोमी क्लास की सीट पर ठुंस कर बैठे फाइल देखते हुए शास्त्री जी का फोटो. लगता ही नहीं कि कोई प्रधानमंत्री बैठा है. सादगी की भी लिमिट होनी चाहिए.  कहे तो और भी दिखाऊँ. बहुत से प्रधानमंत्री हुए हैं जो प्लेन में काम निबटा लेते थे  लेकिन लगता है, ऐसे ही था कि बस, ठीक है.प्लेन में न तो रैली कर सकते हैं और न ही मोर को दाना डाल सकते हैं. मन की बात का तो सवाल ही नहीं.ऐसे में कुछ काम ही कर लिया जाय लेकिन जो रुतबा मोदी जी का वह कुछ और ही है. 

हमने कहा- तोताराम,  पता नहीं, तू कहाँ-कहाँ पहुँच जाता है. हमने तो ऐसे सोचा ही नहीं था. हालांकि हम भी आडवानी जी की तरह निर्देशक मंडल में हैं. कोई उम्मीद शेष नहीं है. फिर भी ले ही ले एक फोटो. क्या पता, कब काम आ जाए. कब, कौन हमें भी नेहरू-गाँधी जी तुलना में खड़ा करने के लिए इस फोटो का इस्तेमाल कर ले जैसे कि राजनाथ जी ने सावरकर जी के सौ साल पुराने माफीनामे को, काल-दोष का ध्यान न रखते हुए, खींच-खांच कर  गाँधी के मत्थे डाल ही दिया. 

बोला- मतलब तू भी शास्त्री जी की सादगी के बहाने से ही सही, कहीं न कहीं अपने को प्रधानमंत्री समझता है क्या ? लेकिन ध्यान रहे, तू इस लुंगी बनियान में बेशर्मी से जयपुर रोड़ तक चला जाता है जब कि बड़े आदमी सोते भी टाई बांधकर हैं. पता नहीं कब किसी देश के राष्ट्रपति से मिलना हो जाए. बरसात न होने पर भी प्लेन से छाता लेकर उतरते हैं. क्या पता, दस सीढियां उतरते-उतरते बीच में ही बरसात हो जाए तो.



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Nov 8, 2021

एक रात चाँद के साथ

एक रात चाँद के साथ 

हमने कहा - तोताराम,  नेट की कम स्पीड से दुखी होकर जब से बीएसएनएल के ब्रोड्बैंड कनेक्शन को फाइबर में बदलवाया है कुछ नई तरह की समस्याएं पैदा हो गई है. बिजली जाते ही लैंड लाइन भी काम करना बंद कर देता है. शिकायत की तो उत्तर मिला इमरजेंसी के लिए इनवर्टर लगवा लीजिये. यह तो बाबाजी वाली वही कहानी हो गई जिसमें एक से दो लंगोटी रखने पर अंततः बाबाजी को फांसी चढ़ने की नौबत आ गई.  

बोला- जो जितनी सुविधाएं चाहेगा उसे उतनी ही असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा.पैदल या साइकल से गिरने पर तो हाथ-पैर ही टूटते हैं लेकिन हवाई जहाज से गिरने पर तो कुरते पायजामे के रंग से ही पहचाना जा सकता कि अमुक श्रीमान की यह अंतिम निशानी हो सकती है. जब बिजली नहीं थी तब आदमी अपनी चिमनी, केरोसिन और माचिस संभालकर रखता था. दिन दिन से खाना बना और खा लेता था. पूरी नींद लेता था और सुबह एकदम फ्रेश उठता था. अब बिजली पर आश्रित रहने की असुविधाओं का पता चल रहा है.लेकिन शुक्र है कि सुविधाओं की असुविधाओं में भटक रहे लोगों के लिए मेघवाल जी जैसे संतों के नुस्खे उपलब्ध हैं.

हमने पूछा- क्या उन्होंने बिजली का कोई विकल्प सुझाया है ? या मीटर को स्लो करने की की कोई तकनीक बताई है ?

बोला- नहीं, उन्होंने तो शुद्ध सात्विक परम्परागत भारतीय नुस्खा बताया है कि बिजली संकट से निबटने के लिए 'एक रात चाँद के साथ' बिताएं.

हमने कहा- वे संस्कृति मंत्री भी हैं इसलिए उनकी बात में दम हो सकता है क्योंकि उनके द्वारा बताये गए 'भाभीजी पापड़' के बल पर ही अपने राजस्थान में कोरोना से मौतें बहुत कम हुईं. फिर भी उनके इस नुस्खे को काम में लेते समय दो बातों का ध्यान अवश्य रखना नहीं तो चक्कर पड़ सकता है.

बोला- रात में परिजनों के साथ घर की छत पर चांदनी रात में बतियाने में क्या चक्कर पड़ सकता है बल्कि इससे तो सांस्कृतिक संबंध और मज़बूत होंगे.

हमने पूछा- यह दिव्य ज्ञान मंत्री जी ने कहाँ और किसे दिया ?

बोला- यह उन्होंने जोधपुर के पास आफरी में स्थित पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों से आज़ादी के अमृत महोत्सव के बारे में चर्चा करते हुए बताया. 

हमने कहा- यह इस स्थान 'आफरी'  का प्रभाव भी हो सकता है. वैसे भी मंत्री बनते ही किसी को भी ज्ञान का 'अफारा' चढ़ जाता है. मंत्रियों के ऐसे ही ज्ञान के 'अफारों' से विज्ञान की दुनिया में भारत का नाम आजकल बड़े आदर से लिया जाता है. बस, जल्दी ही दुनिया सर्वसम्मति से हमें 'विश्वगुरु' स्वीकार करने ही वाली है.

तेरे ज्ञानवर्द्धन के लिए आज से साठ वर्ष पहले की शरद पूर्णिमा की घटना सुनाते हैं.  हमने कुछ मित्रों के साथ खीर बनाकर उसे चन्द्रमा से झरने वाले अमृत से युक्त होने के लिए छोड़ दिया और कविगोष्ठी में मग्न हो गए. जब रात बारह बजे उस अमृतमय हो चुकी खीर को संभाला तब तक एक कुत्ता उसे पूरी तरह साफ़ कर चुका था और जब मित्रमंडली उदास होकर घर जाने लगी तो पता चला कि कइयों की चप्पलें गायब थीं.

इसलिए चाँद के साथ एक रात बिताने से पहले कुत्तों और उचक्कों से बचने का इंतज़ाम अवश्य कर लेना चाहिए.


 




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Nov 5, 2021

अच्छा हुआ जो गाँधी से नहीं मिले

अच्छा हुआ जो गाँधी से नहीं मिले

तोताराम ने बरामदे में सही तरीके से स्थापित होने से पहले ही अपनी प्रतिक्रिया हमारी तरफ उछाल दी, बोला-  अच्छा हुआ जो हम गाँधी से नहीं मिले नहीं. यदि मिले होते तो हमें भी माफ़ी मांगने की सलाह देकर हमारा कैरियर खराब करवा दिया होता. वास्तव में एक सच्चे और आधुनिक वैष्णव जन ने गाँधी का एक 'चतुर बनिए' के रूप में जो मूल्यांकन किया वह सही है. खुद कभी माफ़ी नहीं मांगी लेकिन 'वीर' सावरकर को अंग्रेजों से माफ़ी माँगने की सलाह देकर 'कायर सावरकर' बना दिया और उनका 'भारत रत्न' और 'राष्ट्रपिता' का दर्ज़ा खतरे में डाल दिया. 

हमने कहा- वैसे हमारे ऋषि मुनि तो कहते हैं कि क्षमा मांगना और क्षमा करना दोनों ही वीरों के भूषण हैं. छोटे दिल वाला और दुष्ट न तो कभी सच्चे दिल से क्षमा मांगता है और न ही किसी को क्षमा करता है.  फिर भी यदि गाँधी जी ने क्षमा माँगने के लिए कहा है तो इसके लिए गाँधी स्वयं दोषी हैं. इससे सावरकर जी की वीरता में तो कोई कमी नहीं आती. आजकल तो आत्महत्या के लिए प्रेरित करना भी दंडनीय अपराध माना जाता है. क्या कभी बंदूक या चाकू को जेल की सज़ा या जुर्माना होता है ? इसलिए हम तो सावरकर जी को निर्दोष मानते हैं.

बोला- सावरकर जी को ब्रिटेन से गिरफ्तार करके भारत लाया जा रहा था. हालांकि उन्होंने फ़्रांस के तट के निकट भागने की कोशिश भी की लेकिन पकड़े गए. आरोप था कि उन्होंने एक अंग्रेज अधिकारी की हत्या करने के लिए ब्रिटेन में अपने नाम से खरीदी अपनी लाइसेंसी बंदूक पूना निवासी अपने भाई को उपलब्ध करवाई थी. इसीके फलस्वरूप उन्हें काले पानी की सज़ा भी हुई. इससे भी तुम्हारी बात की पुष्टि होती है.लेकिन यह भी सच है कि गोडसे को गाँधी की हत्या के लिए प्रेरित करने वालों को दण्डित नहीं किया गया.  

हमने कहा- हमारे हिसाब से तो गाँधी जी ने सावरकर जी को हिंसा में लिप्त होने के लिए क्षमा माँगने के लिए कहा होगा. गाँधी जी ने सोचा होगा कि ऐसा करके सावरकर जैसा उत्साही युवक अहिंसक सत्याग्रह में शामिल हो जाएगा. लेकिन वे तो अंग्रेजों के लिए काम करने लगे.

बोला- वैसे मास्टर, एक तरह से देखा जाए तो अच्छा ही हुआ. हमें चालीस साल की नौकरी के बाद सरकार रुला-रुलाकर तीस हजार रुपया महिना पेंशन दे रही है. ऊपर से यह डर लगा रहता है कि पता नहीं, कब मोदी जी को उचंग उठे और नोटबंदी की तरह हमारी पेंशन बंद कर दें. जब कि सावरकार जी को तीन चार माफीनामों के बदले ही साठ रुपये महिने की पेंशन देती थी जो आज के हिसाब से डेढ़ लाख रुपया महिना बैठती है.  

हमने कहा- अब वो ज़माना नहीं रहा. आजकल स्पष्ट बहुमत की सरकार में बड़े से बड़ा गुनाह करके भी माफ़ी न मांगना दृढ़ता माना जाता है. 



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