Aug 30, 2022

गुरुर्ब्रह्मा बनाम राज का कुत्ता

गुरुर्ब्रह्मा बनाम राज का कुत्ता 



एक लम्बी निःश्वास छोड़ते हुए तोताराम ने कहा- मास्टर, अब और क्या बाक़ी रह गया ?

हमने कहा- 

अभी आए, अभी बैठे अभी दामन संभाला है 

तुम्हारी जाऊं जाऊं ने  हमारा दम  निकाला है 

बोला- यह सच है कि परेशान हूँ लेकिन जब आडवाणी जी को देखता हूँ तो सोचता हूँ उनकी भारतरत्न की प्रतीक्षा की तरह सौ साल में दुगुनी हो जाने वाली पेंशन तक रुकूँ। जब तीस्ता को ज़किया का केस लड़ने के अपराध में  गिरफ्तार किया गया था और उसके बाद हिमांशु पर आदिवासियों को न्याय दिलाने के दंडस्वरूप पांच लाख का जुर्माना लगाया गया तो लगा कि समय खराब है. जल्दी चल दें तो ठीक रहेगा। फिर जब मोदी जी का  १५ अगस्त २०२२ के अमृत महोत्सव वाला 'संकल्प २०४७' और महिला अस्मिता वाला प्रेरक भाषण सुना तो कम से कम २०४७ तक रुकने का इरादा पक्का हुआ. फिर जब उसी दिन बिलकिस बानो के नृशंस बलात्कारियों की सजा माफ़ की गई और १६ अगस्त को उन्हें छोड़ दिया गया. उसके बाद जिस तरह से उनका फूल मालाओं, तिलक और मिठाइयों से स्वागत हुआ उसे देखने पर लगा कि अभी इस  दुनिया को छोड़ दूँ.  

कुल मिलाकर मेरी हालत तो 'श्रीमान फंटूश' जैसी हो रही है-

 वो झरोखे से जो झांकें 

तो इतना पूछूं कि  

मैं रुकूँ या चला जाऊं ?

मोदी जी कुछ कहें तो. 

हमने कहा-  तोताराम, निराश न हो. मोदी जी के कन्धों पर दुनिया के दूसरे सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश का समस्त भार है. कोई भी इतना काबिल नज़र नहीं आता जो उनका थोड़ा सा भी भार हल्का कर सके. और अब तो शीघ्र ही यह देश जनसंख्या में नंबर वन होने वाला है. ऊपर से दुनिया के सभी देश मार्गदर्शन के लिए उनकी तरफ ही  देखते हैं. वे समय मिलते ही ज़रूर तुझे परेशान करने वाली समस्याओं की तरफ भी ध्यान देंगे। लोगों को लगता था कि मोदी जी किसानों की नहीं सुन रहे हैं लेकिन जैसे ही उन्हें समय मिला तत्काल तीनों कानूनों को वापिस ले लिया कि नहीं। लोगों को लगता था कि प्रज्ञा ठाकुर द्वारा नाथूराम गोडसे को सच्चा देशभक्त बताकर इशारे से गाँधी का अपमान करने को मोदी जी का मौन समर्थन है लेकिन जैसे ही फुर्सत मिली मोदी जी ने कठोरतापूर्वक कह दिया- मैं दिल से माफ़ नहीं कर सकता।और क्या चाहिए। थोड़ा इंतज़ार कर और २०४७ तक रुकने का कार्यक्रम बना.  

वैसे बता आज की तेरी विशेष परेशानी क्या है ? 

बोला- राष्ट्र निर्माताओं का अभिनन्दन। 

हमने कहा- अभी तो ५ सितम्बर दूर है. मोदी जी गुरुओं का भी सफाई कर्मचारियों की तरह किसी दिन चरण धोकर सम्मान करेंगे। लेकिन जिसके बारे में संकेत रहा है वह क्या मामला है ? 


बोला- मुजफ्फरपुर, बिहार में बिहार टीचर्स एंट्रेंस टेस्ट (बी.टी.ई.टी. ) के अभ्यर्थियों का ए. डी.एम. केके सिंह ने अभिनन्दन कर दिया। वैसे तो पुलिस अपने स्तर और क्षमता के अनुसार भावी गुरुओं का अभिनन्दन कर ही रही थी लेकिन सिंह  जी को इससे संतोष नहीं हुआ और वे एक पुलिस मैन का दंड लेकर गुरुओं का अभिनन्दन करने के लिए स्वयं पिल पड़े. 

हमने कहा- डिफेंस की नौकरी ही नहीं, सरकार की तरफ से जो भी थोड़ी बहुत जन कल्याण की संभावनाएं बची हैं वे सब 'अग्निपथ' हो गई हैं.  हम तो पार उतर गए, बिना डंडे खाये, बिना अभिनन्दित हुए ही निभ गई लेकिन अब तो सब सामान्य और मेहनतकशों को इसी अग्निपथ से गुजरना पड़ेगा। 

और फिर इसमें पुलिस और ए.डी.एम. कोई भी दोषी नहीं है. ये सब 'राज के कुत्ते' होते हैं.  

बोला- तेरे इस स्टेटमेंट पर यदि किसी की भावना आहत हो गई तो तुझे जेल में सड़ा दिया जाएगा। तू कौनसा बिलकिस बानो के बलात्कारियों की तरह संस्कारी ब्राह्मण है. पुलिस और अन्य बड़े-बड़े अधिकारी संविधान के तहत सुशासन की स्थापना करने वाले होते हैं. इन्हें कुत्ता कैसे कह रहा है ? हम ही तो सरकारी कर्मचारी रहे हैं. 

हमने कहा- हमारी बात और थी. जो पाठ्यपुस्तक आ गई, बच्चों को पढ़ा देते थे. सौभाग्य से हमारे समय में ये विवाद नहीं थे. अब तो यदि सरकार कहेगी कि हल्दीघाटी की लड़ाई में ज्ञानदेव आहूजा जीता था तो तुझे वही पढ़ाना  पड़ेगा। कल को गोडसे को भारतरत्न दे दिया और उसे महान देशभक्त लिखा जाने लगा तो अन्यथा उत्तर देने वाला तो फेल हो जाएगा। मास्टरों को भी वही पढ़ाना पड़ेगा। 

पुलिस अधिकारियों को भी  संविधान, कानून और नियम नहीं बल्कि जो सरकार कहती है वही करना पड़ता है क्योंकि उसका प्रमोशन, ट्रांसफर आदि सब सरकार में बैठे लोग करते हैं.इसलिए संविधान के पक्ष में बहुत कम लोग खड़े हो पाते हैं. 

और 'राज के कुत्ते' तो अकबर बीरबल की कहानी है. हम थोड़े ही कह रहे  हैं.  इस कहानी में बीरबल ने ' राज के कुत्ते' उन सरकारी कर्मचारियों को कहा है जो उसके मित्र थे और बादशाह के कहने पर बिना किसी अपराध के ही बीरबल को घसीटते, अपमानित करते हुए दरबार में ले गए.  इस कहानी का एक और नाम भी है- असल से कमसल, कमसल से असल, राजा के कुत्ते और गधी का गधा.



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Aug 26, 2022

(अ)मृत महोत्सव

 (अ)मृत महोत्सव 


आज तोताराम ने आते ही कहा- मास्टर, फँस गया.

हमने कहा- यह क्या कोई नई बात है. फँसो नहीं तो संसार ही क्या ? हर एक को फंसना पड़ता है. जगत में आते ही जीव जन्म और मृत्यु के बीच फँस जाता है. संत माया और ब्रह्म के बीच फंस जाते हैं. जनता भाजपा और कांग्रेस के बीच फंस जाती है. कर्मचारी महंगाई और डी. ए. के बीच फंसा रहा है. मोदी जी विकास और नेहरू के बीच फंसे हुए हैं. लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की जीभ सरकार के दांतों के बीच फंसी हुई है. 

आज क्या कोई किसी नए फंदे में फंसा है ?

बोला- ये तो सब दुनियादारी के चक्कर हैं. 

को छूट्यो इहि जाल परि.........

मैं तो बेचारे 'अमृत महोत्सव' को लेकर परेशान हूँ. 

हमने कहा- जो बन्दे मातरम, जय श्रीराम नहीं बोलता वह देशद्रोही है, उसे पाकिस्तान चले जाना चाहिए लेकिन जो आज़ादी के अमृत महोत्सव को लेकर परेशान है वह तो पक्का ही देशद्रोही है. उसकी तो तत्काल लॉन्चिंग हो जानी  चाहिए। 

बोला- मुझे अमृत महोत्सव के क्या परेशानी हो सकती है ? यह तो ख़ुशी की बात है कि अनेक विघ्न-बाधाओं को पार करता हुआ यह देश अभी तक सलामत है. ७५ वर्ष का मोड़ मनुष्य के लिए भी मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होने का समय होता है. फंसने से मेरा मतलब था कि मोदी जी ने टाइमिंग गलत चुन ली.

हमने कहा- हम कुछ भी मान सकते हैं लेकिन यह नहीं मान सकते कि मोदी जी की टाइमिंग गलत हो सकती है. जब देश आतंकवाद और भ्रष्टाचार से त्रस्त था तब उन्होंने नोटबंदी का सटीक निर्णय लिया। जब देश पर कोरोना का खतरा मंडरा रहा था तब जनहानि को बचाने के लिए लोकडाउन का निर्णय लिया। क्या टाइमिंग गलत थी ?  

बोला- इन निर्णयों के टाइमिंग की बात नहीं है. मैं तो 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' की बात कर रहा था. 

हमने कहा- हर समाज को अपने भूतकाल अर्थात इतिहास को ईमानदारी से समझना चाहिए और उससे शिक्षा लेनी चाहिए। गलतियों से सीखना ही तो विकास है. मोदी जी यदि विभाजन के नाम से धार्मिक अंधता और कट्टरता के दुष्प्रभावों को याद करते हैं तो इसमें क्या बुराई है ? विभाजन की विभीषिका को याद करने के लिए १४ अगस्त के अतिरिक्त और कौन सा दिन हो सकता है ? इसी दिन तो हुआ था देश का विभाजन।  

बोला- यह तो ठीक है लेकिन इस तरह १५ अगस्त का अमृत महोत्सव दो  'मृत उत्सवों' के बीच फंस गया है. १४ अगस्त को लाखों लोगों की मौत का मातम। इसके बाद १५ अगस्त को अमृत महोत्सव। फिर १६ अगस्त को अटल जी का श्राद्ध। इतना जल्दी मूड भी तो नहीं बनता। जब सेलेब्रेशन हो तो लॉन्ग वीक एन्ड की तरह होना चाहिए। जैसे अपने हिन्दू धर्म में १५ दिन का श्राद्ध पक्ष होता है. जिसको, जिसके लिए जितना रोना है रो लो. बाद में आगे चलकर एक महिने तक दुर्गापूजा, दशहरा, दिवाली मनाओ प्रेम से. 

हमने कहा- वैसे तोताराम यदि सूक्ष्मता से विचार किया जाए तो यह 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' भी एक प्रकार से ख़ुशी का दिन ही है. 

बोला- यह क्या कह रहा है ? लाखों लोग मारे गए और तू इसे ख़ुशी का दिन कहता है. शर्म नहीं आती. लाशों पर जश्न !

हमने कहा- सोच, विभाजन से पाकिस्तान को जिन्ना जैसा महान नेता मिला। यदि विभाजन नहीं हुआ होता तो जिन्ना बंबई छोड़कर क्यों जाते ? और भारत को आडवाणी जी मिले। यदि विभाजन नहीं हुआ होता तो आडवाणी जी सिंध में ही रहते। फिर कौन भाजपा को २ से २०० तक पहुंचाता ? और यदि भाजपा का विस्तार नहीं होता तो आज मोदी जी प्रधानमंत्री कैसे बनते ?  यदि मोदी जी प्रधानमंत्री नहीं बनते तो देश विकसित कैसे होता, कांग्रेस की गलतियों को कौन सुधारता, कौन भारत को स्वच्छ बनाता, कौन अमृत महोत्सव का आइडिया देता, कौन राम मंदिर बनवाता, कौन पटेल की मूर्ति बनवाता, कौन विश्वगुरु बनाकर विश्व का नेतृत्त्व करता,  

यदि विभाजन नहीं होता तो भी टुच्चे नेता अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए किसी और तरह से विभाजन करवाते। क्या दुनिया में आज भी धर्म, नस्ल का भेदभाव नहीं है ? 


बोला- हो सकता है विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने से लोगों को समझ आ जाए कि धर्म, जाति, नस्ल आदि के नाम पर विभेद फैलाना कभी भी, किसी के लिए भी लाभकारी नहीं होता। इन्हीं कारणों से दुनिया में सबसे ज़्यादा लोग मारे गए हैं. हम मोदी जी पर शंका क्यों करें। वे साफ़ कहते हैं-


विभाजन की पीड़ा को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वहशी नफरत और हिंसा के कारण हमारी लाखों बहनें और भाई विस्थापित हो गए और अनेक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अपने लोगों के संघर्षों और बलिदानों को याद करते हुए 14 अगस्त विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा। हमें यह याद दिलाता रहेगा कि सामाजिक भेदभाव और वैमन्यस्य को मिटाने की तथा एकता, सामाजिक समरसता और मानवीय संवेदनाओं को मजबूत करने की आवश्यकता है।


हमने कहा- हालांकि पाकिस्तान के भी लाखों लोग विभाजन से प्रभावित हुए थे लेकिन वह विभाजन विभीषिका दिवस नहीं मनाता। फिर भी धर्म की राजनीति से वह भी कौन अछूता है. 


बोला-  मास्टर, १५ अगस्त अटल जी के निधन और विभाजन विभीषिका के बीच में फंस गया है. दो मृत महोत्सवों के बीच एक अमृत महोत्सव।


हमने कहा- इतना ही थोड़े है. १९४७ में विभाजन त्रासदी और 'आज़ादी' से इस  'अमृत महोत्सव' के बीच गाँधी-हत्या, १९८४ दंगे,पंडितों का पलायन, गोधरा, नरोदा पाटिया, मुज़फ्फर नगर, दादरी, निर्भया, हाथरस कांड,अखलाक, बिलकीस बानो, शम्भू रेगर, कन्हैयालाल जैसे जाने कितने (अ) मृत  महोत्सव इनके बीच में आते हैं. इनसे आँखें मिलाये और इनका जवाब दिए बिना हम अमृत महोत्सव मनाने के सच्चे अधिकारी नहीं बन सकते।     


बोला- फिर भी क्या अटल-निधन और विभाजन विभीषिका और अटल-निधन के बीच फंसे इस महोत्सव को किसी सुरक्षित जगह पर फिट नहीं किया जा सकता ?  


हमने कहा- स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त को मोदी जी के प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण  २६ मई २०१४  या  राम मंदिर के शिलान्यास दिवस ५ अगस्त २०२० को शिफ्ट कर दिया जाये। 







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Aug 24, 2022

झंडा दिखाई नहीं दे रहा


झंडा दिखाई नहीं दे रहा


वैसे तो पोती देर उठती है लेकिन आज हमारे साथ ही उठ गई. जैसे ही अपनी ‘पेट’ कूरो को घुमाकर लाये, पोती ने कहा- बाबा, दूध बाद में ले आना, पहले झंडा लगा देते हैं.

 हमने कहा- डंडा कहाँ है ? आज बाज़ार से लाएंगे। बिना डंडे के झंडा कैसे फहरेगा. डंडा हो तो बिना झंडे के भी आदमी का रुतबा बढ़ जाता है।  

बोली- एक प्लास्टिक का पक्के वाला पाइप मिल गया है कोई तीन फुट का है. उसीमें फिट करके पानी की टंकी पर लगा देंगे.

हमने कहा- लेकिन आदेश तो १३ से १५ अगस्त तक झंडा फहराने का है. आज तो १२ अगस्त ही है.

बोली- इसमें किसी के आदेश की कोई बात नहीं है. अब तो कोई भी, कभी भी, अपने घर पर तिरंगा फहरा सकता है. शाम को उतारने का झंझट भी नहीं. एक दिन एक्स्ट्रा फहराने में क्या नुकसान है.

किसी तरह एक पुराना गमछा फाड़कर उसकी रस्सी से टंकी की पाइप से तीन फुट की प्लास्टिक की पाइप बांधकर तिरंगा फहरा दिया.

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा.

फिर नीचे आकर देखा। हवा चल रही थी और तिरंगा फहरा रहा था.

हम भूल गए कि हमने इसे किसी के एजेंडे के तहत फहराया है. यह भी भूल गए कि यह तिरंगा तिरंगे के स्थापित कोड के अनुसार नहीं है. बस,अच्छा लग रहा था. बार-बार उधर ही निगाह जा रही थी. लगा जैसे कोई हमारी रखवाली कर रहा है. आकाश में किसी ड्रोन की तरह. आज समझ में आया कि हिमालय की तरह तिरंगा भी हमारा संतरी और पासबाँ है.

झंडा फहराने के बाद जैसे ही बाहर बरामदे में आये तो देखा कि तोताराम सड़क पर खड़ा अपने मोबाइल को हमारी छत  की तरफ करके फोटो ले रहा है. हमें देखकर बोला- ठीक कर, फोटो में झंडा नहीं आ रहा है.

हमने कहा- तो क्या फ़र्क़ पड़ता है. अंदर आकर देख ले.

बोला- अंदर आकर मुझे और तुझे दीखने से क्या होता है. फोटो में भी तो आना चाहिए. उसके बिना क्या प्रूफ है कि तूने झंडा फहराया है ?

हमने कहा- हमें किसी को क्या प्रमाण देना है. हमारा देश, हमारा झंडा। फहरा लिया. फोटो लेकर क्या करना है ?

बोला- फोटो लेकर उत्तराखंड के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष महेंद्र भट्ट को भेजना है. उन्होंने कहा है कि मुझे उस घर का फोटो लेकर भेजें जिस पर तिरंगा नहीं लगा है. बाहर से तेरे घर का फोटो लेने पर तिरंगा दिखाई नहीं दे रहा है. कोई तेरे घर का तिरंगा न दिखता हुआ फोटो लेकर भेज देगा तो तेरा नाम वे देशद्रोहियों की लिस्ट में डाल देंगे। उसके बाद न तो जमानत होगी और न ही दो-पांच साल सुनवाई. स्टेस स्वामी की तरह हिरासत से सीधा ही हैवेन में पहुँच जाएगा.

हमें गुस्सा आ गया, हमने कहा- हमारे दस साल मास्टरी करने, बीसों बार झंडा फहराने और प्रभात फेरी निकालने के बाद पैदा हुआ कल का छोकरा हमसे तिरंगे के साथ देशभक्ति का प्रमाण मांग रहा है. लानत है. कोई ज़रूरत नहीं है किसी को फोटो भेजने की, किसी को तिरंगे के साथ सेल्फी भेजने की. कर ले जिसे जो करना है. अस्सी के हो रहे हैं. हो ले, जो होना है सो.

तोताराम बोला- भाई साहब, गुस्सा थूकें. ये सब पार्टियों के चुनावी नाटक हैं. कोई दूध का धुला नहीं. सब की दाढ़ियों में तिनके ही क्या, झाड़ू हैं. फोटो लेने में क्या है. अपन ही देखे-दिखाएँगे. झंडे के साथ अच्छा लगेगा.

जा, खड़ा हो जा, टंकी के पास;  भाभी और शुभम के साथ.

टेक्नोलॉजी भी है तो कमाल की चीज.  तोताराम ने फोटो लिया और उसी समय दिखा भी दिया. बहुत अच्छा लग रहा था.  

  


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Aug 19, 2022

दंड से आत्मबल पैदा होता है


2022-08-10




दंड से आत्मबल पैदा होता है  



तोताराम यथासमय आ गया. बीच वाली पोती भी हमारे साथ ही उठ गई थी. चाय लेकर वही आई. 


तोताराम ने चाय थामते हुए कहा- जा, दादी से बीस रुपए ले आ. 


हमने कहा- क्या मतलब ? चाय भी पिलायें और बीस रुपए दक्षिणा के भी दें. 


हमें पॉलीथिन की एक थैली पकड़ाते हुए तोताराम बोला-  कोई भीख नहीं मांग रहा हूँ. अगर ऑटो के जोड़ूँ तो चालीस होंगे। कल बाज़ार गया था किसी काम से तो देखा एक दुकान पर झंडे बिक रहे थे. अपने लिए एक लिया तो सोचा एक तेरे लिए भी ले चलूँ. तू तो महाकंजूस है. पता नहीं, खादी भण्डार वाला झंडा कब तक आएगा और तू कब खरीदेगा।

 

कब कब आता है अमृत महोत्सव ! झंडा तो फहराना ही है. 


हमने झंडा निकालकर देखा, बड़ा अजीब।  साइड की सिलाई इस तरह की गई कि उसके हिसाब से फहराएं तो केसरिया रंग नीचे की तरफ आए. ३/२ के साइज से तो ठीक था लेकिन आगे की कटिंग टेढ़ी. और अशोक चक्र भी ठीक बीच में नहीं. 








हमने कहा- तोताराम, यह क्या ? इतनी लापरवाही ? तिरंगे के प्रति इतना असम्मान ! 


बोला- मास्टर, बड़े कामों में सब चलता है. छोटी-छोटी बातों की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता. वैसे भी पांच-सात दिन बाद इन सभी झंडों का भी वही हाल होगा जो दिवाली के बाद अखबारों में छपे लक्ष्मी के फोटो का होता है. या गणेश छाप खैनी के रैपर पर छपे गणेश जी का होता है. 


हमने कहा- फिर भी हम तो जितना सम्मान कर सकते हैं, करेंगे. इस झंडे को संभाल कर रखेंगे। अगले साल फिर काम में ले लेंगे. 


हमने पोती से सुई धागा मंगवाया और दोनों तरफ की सिलाई ठीक की. डंडा लगाने वाली सिलाई को हरे रंग की तरफ से उलटकर केसरिया रंग की तरफ किया. 


हमने तोताराम से कहा- तोताराम,अब तक अपनी मर्जी से २००२ से  १५ अगस्त और २६ जनवरी पर घर पर  नियमित तिरंगा फहराते रहे थे लेकिन पता नहीं, आज क्यों लग रहा है कि हम किसी दबाव में, कोई नाटक कर रहे हैं.  


बोला- यह तेरे साथ ही नहीं है बहुत से लोगों को ऐसा ही लग रहा होगा क्योंकि आदेश ही कुछ इस तरह आ रहे हैं. और फिर कहीं राशन वाला बीस रुपए का झंडा लिए बिना फ्री वाला राशन नहीं दे रहा है, तो कहीं रेलवे वाले बीस रुपए वाले झंडे के नाम से कर्मचारियों की तनख्वाह में से तीस-तीस रूपए काट रहे हैं. झंडा कब मिलेगा पता नहीं. फिर भी कोई बात नहीं देश का मामला है. छोड़ तिरंगे की राजनीति. 




हमने कहा- तोताराम, इसी बात पर एक किस्सा सुन. १९६४-६५ में हम सवाईमाधोपुर सीमेंट फैक्ट्री के स्कूल में थे.राजस्थान रोड़वेज की बसें नई नई चली थीं.  सवाईमाधोपुर से रात की ट्रेन से जयपुर आ जाते थे. फिर अपने यहां के लिए चांदपोल गेट से रोड़वेज की बस लेते थे. 


एक बार हमारे साथ गांव का ही एक युवक भी था. बहुत बातूनी. हम दोनों ड्राइवर के पीछे वाली तीन की सीट पर बैठे थे. जैसे ही स्टॉप आता और ड्राइवर बस रोकने वाला होता, वह बोल पड़ता- रोक दे. रोक दे. इसके बाद जैसे ही ड्राइवर चलने के लिए बस स्टार्ट करता वह फिर बोल पड़ता- चलो, चलो. 


ड्राइवर को बहुत गुस्सा आया. वह चिल्लाया- मैं तेरे बाप का नौकर नहीं हूँ. तेरे कहने से न तो बस रोकता हूँ और न ही तेरे कहने से चलाता हूँ. जा नहीं चलाता बस. अब तो तमाशा खड़ा हो गया. उस युवक को न बोलने के लिए पाबन्द किया और ड्राइवर को किसी तरह मनाया. तब बस चली. 


लेकिन क्या बताएं हमारे पास तो ड्राइवर जितनी भी स्वतंत्रता नहीं.  


बोला- छोड़ ये किस्से। कोई डंडा हो तो ला. झंडे के साथ डंडा नहीं आता. हमें तत्काल कोई डंडा नहीं मिला। तभी देखा, एक सज्जन सदैव सुबह-शाम की भाँति लाठी लेकर घर के आगे से जा रहे हैं. सब उन्हें ‘भाई जी’ कहते हैं. हमें तो हिम्मत नहीं हुई लेकिन तोताराम ने कहा- भाई जी, दो-चार दिन के लिए आपकी यह लाठी दे दें तो मास्टर झंडा फहरा ले. 


सज्जन बोले- तोताराम जी, और कोई काम हो तो आदेश करें. यह दंड तो नहीं दे सकते. इसके बिना हमारा कोई सम्मान नहीं है. इसके कारण ही तो लोग हमें ‘भाई साहब’ कहते हैं. 


दंड से आत्मबल पैदा होता है. 



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झंडा लाया कि नहीं ?



झंडा लाया कि  नहीं ?



तोताराम ने आते ही प्रश्न किया- झंडा लाया कि  नहीं ?


हमने कहा- गए तो थे खादी भण्डार लेकिन झंडे ख़त्म हो गए थे. खादी भण्डार वाला कह रहा था,आये तो हर साल जितने थे लेकिन इस साल मांग कुछ ज़्यादा है इसलिए पूरे नहीं पड़ रहे. 


बोला- झंडे कम तो पड़ेंगे ही. आज तक कोई इतना बड़ा देशभक्त हुआ ही नहीं जो तिरंगे को इतना सम्मान दे, ‘हर घर तिरंगा’ जैसा बड़ा कार्यक्रम सोच भी सके. वास्तव में मोदी जी बड़ा सोचते हैं. हर काम में वर्ल्ड रिकार्ड। अमरीका के टेक्सास राज्य की तरह- एवरीथिंग इज बिग इन टेक्सास. मोदी जी से पहले सब बस, पद के मजे लेकर चलते बने लेकिन मोदी जी काल के कपाल पर कुछ लेख लिखकर जाएंगे. 


हमने कहा- तो जब मोदी जी पहली बार २०१४ में प्रधानमंत्री बने थे तभी से तिरंगे बनवाना शुरू कर देते तो अब तक सही तरीके से २० करोड़ तिरंगे बन जाते। राष्ट्र ध्वज बनाने का मामला है. कोई चुनावी रैली के लिए झंडियां बनाने जैसा थोक और ठेके का काम थोड़े ही है. तिरंगा बनाने का काम बहुत जिम्मेदारी और श्रद्धा का काम है. एक पूजा ही समझो. 


बोला- तो क्या हुआ ? अब बन जाएंगे। रिलायंस के होते कौन पोलिस्टर की कमी है. सूरत के कई लोगों को ठेके दे तो दिए हैं. और कमी पड़ेगी तो चीन को ऑर्डर दे देंगे। जब चीन पटेल और शिवाजी की मूर्ति बना सकता है तो पोलिस्टर के झंडे बनाना कौन बड़ी बात है. अमरीका के झंडे भी तो चीन ही बनाता है. 


हमने कहा- लेकिन पोलिस्टर के झंडे में वह अनुभूति नहीं आती. मोदी जी तो खादी का महत्त्व जानते हैं. साबरमती आश्रम में खुद भी चरखा चलाया है, अपने मित्रों से भी चलवाया है. खादी-ग्रामोद्योग के कलेण्डर पर उनका फोटो भी तो छपा था. ऐसे में यह पोलिस्टर का झंडा लगवाकर बिना बात तिरंगे, खादी और स्वदेशी की आत्मा का हनन क्यों कर रहे हैं ?


बोला- क्या किया जाए मौका ही ऐसा आ गया. एक तो आज़ादी के ७५ वर्ष पूरे हुए हैं तो कुछ नया और बड़ा करना ज़रूरी था. और फिर २०१५ में लोगों को २०२२ तक सभी बेघरबार भारतीयों को पक्के घर बनाकर देने का कार्यक्रम भी तो था. पक्का घर,घर में गैस-कनेक्शन,एल ई डी बल्ब, हर घर में नल, नल में जल, जल से कीचड़, कीचड़ में कमल, कमल पर लक्ष्मी, जहां लक्ष्मी वहाँ दिवाली. अब जब घर हो तो देश के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन के लिए घर पर तिरंगा भी तो होना चाहिए. 




 


हमने कहा- लेकिन घर तो तय से आधे भी नहीं बने.  


बोला- फिर भी लोगों को तिरंगा हाथ में लेकर तैयार तो रहना चाहिए। पता नहीं, बिहार में एक सप्ताह में कई लाख शौचालय की तरह कब करोड़ों घर तैयार हो जाएँ.  


हमने कहा- कोई बात नहीं हम तो देश के पहले ध्वजारोहण से लेकर अब तक झंडे को सलामी देते ही रहे हैं, इस बार खाड़ी का झंडा न मिल पाने के कारण झंडा घर पर लगाने की बजाय मंडी में जाकर कार्यक्रम में शामिल हो जाएंगे. 


बोला- नहीं. यह मोदी जी का मेगा प्रोजेक्ट है. इसमें कोताही नहीं चलेगी. मोदी जी को तिरंगा फहराने का प्रमाण भी भेजना है जिससे तय हो सके कि देश में कितने देशभक्त हैं. वैसे ही जैसे चुनाव में वोट डालने के बाद अमिट स्याही लगी अंगुली के साथ सेल्फी लेकर उन्हें भेजने से लोकतंत्र सुरक्षित हो गया या 'सेल्फी विद डॉटर' के बाद बेटियां सुरक्षित हो गईं.  


हमने कहा- हमें तो लगता है यह देशभक्तों की नहीं बल्कि अपने अंधभक्तों की गिनती करने का कार्यक्रम है. मोदी जी को पता है कि ताली-थाली से कोई कोरोना नहीं भागता है. यह तो चेक करना था कि जनता कितनी आज्ञाकारी हो चुकी है. वैसे ही जैसे करवा चौथ का पति की आयु से कोई संबंध नहीं है बल्कि उसकी पति के प्रति गुलामी का टेस्ट है.

 

और तोताराम, एक मज़े की बात कि थाली बजाते हुए सभी बड़े-बड़े लोगों के फोटो देखे लेकिन मोदी जी का खुद का कोई फोटो कभी देखने को नहीं मिला. 


बोला- फिर भी सलाम के लिए मियाँ को क्यों नाराज़ किया जाए. बिना बात क्यों ई.डी. वालों को निमंत्रण देने का काम करता है. संजय राउत की तरह फांस लेंगे तो ‘सामना’ करने की सारी सामनागीरी निकल जायेगी. 


 



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Aug 2, 2022

2022-07-31 कौन सा झंडा ?


कौन सा झंडा ?

हमारे पास ३१ जुलाई सन 2002 को खरीदा हुआ लगभग ३० गुणा  २० इंच का एक तिरंगा झंडा है जो हम रिटायर होने के दिन खरीदकर लाये थे. इसलिए कि अब १५ अगस्त और २६ जनवरी को झंडे को घर पर ही फहराएंगे और सलामी दे लिया करेंगे.कहीं जाना नहीं पड़ेगा. यह क्रम भगवान की कृपा से अभी तक तो बदस्तूर ज़ारी है. इस १५ अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर ७६ वीं बार झंडा फहराता देखेंगे. 

सबसे पहले झंडा फहराते १५ अगस्त १९४७ को देखा था. स्कूल जाते हुए एक साल हुआ था. छह महीने ‘अ’ और छह महिने  ‘ब’ आजकल की नर्सरी, केजी समझ लीजिये. 

शुक्रवार का दिन था. स्कूल गए तो देखा कि  प्राइमरी, मिडिल और हाईस्कूल के सभी बच्चे मुख्य बिल्डिंग के सामने मैदान में इकट्ठे हुए थे. एक ऊँचे बांस पर तीन रंग का झंडा लगा हुआ था. स्कूल के हेडमास्टर अमीर बहादुर सक्सेना उसके पास खड़े हुए थे. उन्होंने कागज से देख-देखकर ‘जन गण मन’ और ‘सारे जहां से अच्छा’ जैसा कुछ गाया था. हाँ यह बहुत अच्छी तरह से याद है कि कुछ मिठाई भी मिली थी. किसी को लड्डू, किसी को गुड़ और किसी को बताशे, किसी को मिश्री और किसी को मखाने। यह भी बताया गया कि आज से हमारे देश से अंग्रेजों का राज ख़त्म हो गया है. अब हमेशा १५ अगस्त को स्वतंत्रता का दिन मनाया जाएगा और मिठाई बांटी जायेगी. 

इसके बाद हर साल सुबह-सुबह हमारे कुछ अध्यापक बच्चों के साथ ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ गाते हुए प्रभात फेरी लेकर आते थे और गली मोहल्ले के बच्चे उसमें शामिल होते हुए अंत में स्कूल पहुंचा करते थे.  १९६० में जब हम अध्यापक बने तो कई वर्षों तक तिरंगा झंडा लेकर प्रभात फेरी निकालते रहे. 

हमने तिरंगा झंडा पहली बार १५ अगस्त १९४७ को देखा था. उसके बाद भी बहुत वर्षों तक झंडे को छूने का मौका नहीं मिला. हमारे हेडमास्टर सक्सेना जी ने कभी तिरंगा किसी को छूने नहीं दिया. खुद चढ़ाते थे और खुद ही शाम को चपरासी को साथ लेकर उतारते थे. अगली बार फहराए जाने तक हम तह किये तिरंगे को उनके ऑफिस में शीशे के पल्लों वाली अलमारी में देखा करते थे. 

 

 

आज रविवार है. तोताराम ने आते ही कहा- मास्टर, झंडा ढूँढकर, धो, प्रेस करके तैयार कर ले. 

हमने कहा- अभी तो दो सन्डे बीचे में हैं. निकाल लेंगे. 

बोला- नहीं, अबकी बार १३ अगस्त से १५ अगस्त तक तीन दिन-रात तक लगातार तिरंगा फहरेगा. 

हमने कहा- लेकिन यह तो नियम विरुद्ध है. शाम को तो झंडा उतार लिया जाता है. 

बोला- नहीं, अबकी बार शाम को नहीं उतारा जाएगा. 

हमने पूछा- तो क्या अब झंडारोहण संहिता बदल गई है ?

बोला- बहुत कुछ बदल गया है. अब केवल सरकारी कार्यालयों, स्कूलों आदि और कुछ तेरे जैसों के घरों पर ही नहीं बल्कि बल्कि दस-बीस करोड़ घरों पर तिरंगा फहराया जाएगा. 

हमने कहा- क्यों, इस बार ऐसी क्या ख़ास बात हो गई. 

बोला- बहुत ख़ास है. पहली बार देश में राष्ट्रप्रेमी सरकार पूर्ण बहुमत से लगातार आठ वर्षों से देश के निर्माण और गौरव-वृद्धि में लगी हुई है. साथ ही घर-घर पर तिरंगा फहराने से अब तक देशभक्ति में जो कमी आ गई थी उसकी पूर्ति भी हो जायेगी और देशद्रोहियों तथा देशभक्तों की पहचान भी हो जायेगी. और अर्थव्यवस्था की कमज़ोरी, बेरोजगारी और महंगाई से आ रही कुंठा और हीनभावना भी कम हो जायेगी. 

हमने कहा- इसका मतलब है मोदी जी ने २०१४ में ही अपने मन में २०२२ में देश के १०-२० करोड़ घरों पर तिरंगा फहराने का निश्चय कर लिया होगा. अन्यथा कोई एक दो महीने में तो इतने तिरंगे बन नहीं सकते. तिरंगा हाथ से कते -बुने खद्दर से बड़ी सावधानी और पवित्रता से कुछ ख़ास खादी भंडारों में बनाया जाता है. 

बोला- नहीं, समय कम है इसलिए उस प्रक्रिया को अपनाना संभव नहीं है. अब तो अधिकतर तो चीन से, कुछ चीन के पॉलिएस्टर के कपड़े से सूरत में निजी ठेकेदारों से बनवाये जाएंगे. और लोगों को ९, १८ और २७ रुपये में बेचे जाएंगे. और फहराने के लिए डंडा खुद का. जितना ताकतवर व्यक्ति उतना बड़ा डंडा और उतना ही ऊँचा झंडा. जितना ऊँचा झंडा उतना बड़ा देश भक्त और उतना ही देश की सेवा करके मेवा खाने का अवसर. 

हमने कहा-  जब इतना ही ज़रूरी है तो बैठ, अभी देख लेते हैं. आज धो भी लेंगे और प्रेस भी कर ही लेंगे. 

हमने अलमारी से अपना २२ साल पुराना तिरंगा निकाला लेकिन यह क्या ? किसारियों ने कई जगह से कुतर दिया था. हमें बहुत दुःख हुआ और अपशकुन जैसा भी लगा.आज़ादी का अमृतमहोत्सव वर्ष और झंडे की यह दशा !  

हमने कहा- तोताराम, अब क्या करें ? 

तोताराम हमारे पास अलमारी तक चला आया. 

बोला- इसके नीचे यह भगवा रंग का क्या रखा हुआ है. 

हमने कहा- यह तो एक नया गमछा है जो हमारे किसी राष्ट्रभक्त मित्र ने किसी कार्यक्रम में हमें भेंट किया था. 

बोला- तो बस, ठीक है. इसी को फहरा लेना. 

हमने कहा- इसे कैसे फहरा सकते हैं ? यह तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का झंडा है जिसके मुख्यालय पर आज़ादी के ५०-५५ साल  बाद तक तिरंगा नहीं फहराया गया. 

बोला- मैं ज़्यादा तो नहीं जानता लेकिन कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ईश्वरप्पा ने कह तो दिया है कि  एक दिन लाल किले पर भगवा झंडा फहराएगा. 

हो सकता है यह संघ के जन्मशताब्दी २०२५ में ही हो जाये. तो फिर शुभस्य शीघ्रम. इसी १५ अगस्त को क्यों नहीं. 

हमने कहा- लेकिन अगर इस पर किसी को कोई ऐतराज़ हुआ तो ? 

बोला- ऐसा नहीं होगा। जिनका ऐतराज करने और दंड देने  का अधिकार है उनका तो इसे मौन समर्थन है बल्कि हो सकता है तू इस अतिउत्साह के लिए प्रकारांतर से पुरस्कृत भी हो जाए. 

 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, हमें सरकार के इस अति झंडा-प्रेम से बहुत डर लगता है. करोड़ों झंडों का क्या सम्मानपूर्वक विसर्जन संभव है. हो सकता है कल को ये झंडे नालियों में और सड़कों पर लोगों के पैरों में अपमानित होते फिरें. 

बोला- इसमें भी फायदा ही है. हो सकता है, लोग झंडा फहराने की सरकरी ज़बरदस्ती से चिढ़कर तिरंगे पर ही गुस्सा उतारने लगें. जैसे हिजाब छोड़ने की ज़िद के उत्तर में कर्णाटक की मुस्लिम लडकियां हिजाब पहनने की ज़िद करने लगीं. हो सकता है इससे ही ईश्वरप्पा वाले इरादे के लिए मार्ग प्रशस्त हो. 

हमने कहा- तोताराम, हमें तो एक और खतरा नज़र आ रहा है. हो सकता है उत्साही गौरक्षकों की तरह उत्साही ‘घर-घर तिरंगा सैनिक’ किसी को भी पकड़कर इसलिए ठुकाई कर दें कि वह अपने घर पर तिरंगा नहीं फहरा रहा है या ढंग से नहीं फहरा रहा है. या यह भी हो सकता है कि किसी को पीटने के लिए कोई ‘तिरंगा जिहाद’ जैसा अपराध न खोज निकालें. या कागज की छोटी सी तिरंगी झंडी पकड़ाकर तीस-तीस रुपये न वसूलने लग जाएँ. 

और जो न देगा उसका क्या हाल होगा, यह सब जानते हैं.


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach