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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
गणतंत्र दिवस की बस
आज तोताराम सुबह चाय के समय नहीं आया । हम भी बरामदे में नहीं गए । कमरे में ही बैठे थे ।
व्यस्त थे, बिना किसी सार्थक काम के । काम भी क्या ? अपने फोन से बधाई के मेसेज डिलीट करना । पहले की बात और हुआ करती थी जब एक पोस्टकार्ड लिखना भी काम हुआ करता था । पोस्ट ऑफिस जाना, पचास पैसे खर्च करना, लिखना फिर डाक में डालना । और दोनों तरफ से इसके प्रभाव और पहुँच के लिए आठ-दस दिन का इंतजार । अब तो तकनीक के कारण हाल यह है कि फ्री में दो चार क्लिक करके सैंकड़ों लोगों के फोन में नीरस, हृदयहीन मेसेज फेंक दो ।
आज 26 जनवरी है । जो महाकट्टर हैं, हर समय हिन्दू-मुसलमान, ब्राह्मण-भंगी करते रहते हैं वे तक गणतंत्र की बधाई दे रहे हैं ।जो दारू के लिए पैसे न देने पर बाप का सिर फोड़ दें, जायदाद के लिए अपने भाइयों के साथ अदालत में जिनके केस चल रहे हैं वे ‘बाप का राज बटाऊ की नाईं’ छोड़कर चल देने वाले राम का मंदिर बनने पर बधाई के संदेशों की बारिश करने में लगे हैं । कुछ तो इतने निठल्ले हैं कि रोज सुबह गुड मॉर्निंग के मेसेज भेज देते हैं । और तो और सोमवार को ‘ॐ भौमाय नमः’ मंगलवार को ‘ॐ हनुमंताय नमः’ शनिवार को ‘शनिश्चराय नमः’ जैसे मेसेज आ जाते हैं । ठीक है भाई, क्या करें ? हम शनिवार को पलटकर गुरुवार तो कर नहीं सकते । जहां तक नमस्कार करने की बात है तो हम तो सत्ता में बैठे राहू-केतुओं तक को यहीं बैठे बैठे रोज ‘नमः’ करते रहते हैं फिर भी कोई पीछा थोड़े ही छोड़ देते हैं ।
मेसेज रूपी कीचड़ को फोन से डिलीट कर रहे थे कि तोताराम ने कमरे में प्रवेश किया ।
हमने ससम्मान खटिया से उठते हुए कहा- आइए तोताराम जी, बस आपकी ही प्रतीक्षा थी ।हालांकि न तो यहाँ कोई फ्रांस का राष्ट्रपति मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित है और न ही राम मंदिर के मॉडल की झांकी फिर भी चलिए छत पर चलकर तिरंगा फहराने की रस्म अदा करें ।
तोताराम स्तब्ध होकर हमारी तरफ देखता हुआ बोला- मास्टर तू अपने उसी अबे-तबे वाले लहजे में बोल । वही ठीक है । मुझे तेरे इस सम्मानसूचक सम्बोधन से उसी तरह भय लगता है जैसे किसी नेता के हाथ जोड़े एक छोटी-मोटी भीड़ के साथ घर के दरवाजे पर आने और बड़े विनम्र भाव से झुककर प्रणाम करने से लगता है क्योंकि कुटिल लोग चीते, चोर और कमान की तरह जितना झुकते हैं उतना ही घातक वार करते हैं ।
हमने कहा- हम इतने बड़े सेवक नहीं जिससे तुझे डर लगे । हम तो चूंकि गणतंत्र दिवस है, सभी भेदों और भिन्नताओं के बावजूद सबको समान समझने और सबका सम्मान करने का दिन ।
बोला- तो फिर ऐसा सम्मान रोज क्यों नहीं करता ? यह क्या कि एक तरफ तो दलित आदिवासी के सिर पर पेशाब करो और फिर बदनामी के कारण वोट बैंक खिसकने का डर लगे तो किसी को भी पकड़ बुलाओ और उसके पैर धोने का नाटक करो ।खैर, तेरे साथ यह बात नहीं है । तू नेताओं जितना धूर्त और दुष्ट नहीं है । लेकिन इतना तो सच है कि तू हमेशा अपनी डेढ़ चावल की खिचड़ी अलग ही पकाता है । 15 अगस्त 2022 को जब मोदी जी ने आजादी के अमृत महोत्सव पर 13, 14 और 15 अगस्त को घर-घर तिरंगा फहराने और प्रमाणस्वरूप तिरंगे के साथ सेल्फ़ी भेजने का आदेशात्मक अनुरोध किया था तब तूने तिरंगा नहीं फहराया और आज जब सारा मोहल्ला तिरंगे की बजाय राम चित्र अंकित और एक खास तरह से कटे हुए भगवा झंडों से अटा पड़ा है, कहीं एक भी तिरंगा दिखाई नहीं दे रहा तब तेरा यह ध्वजारोहण समझ में नहीं आता ।
हमने कहा- तोताराम, जब कुछ आरोपित होता है तो न तो वह सबका होता है और न ही सब उसमें दिल से शामिल हो सकते हैं । गणतंत्र में यही होना चाहिए कि कुछ थोपा नहीं जाए । धीरे धीरे जो सबका अपना अलग अलग है वह भी सहज भाव से सबका हो जाए । सब अंदर से उमगे जैसे कुएं में जल संचरित होता है, जैसे पहली बारिश में जो सोंधी गंध होती है वहक् क्या किसी खास खेत या गली-मोहल्ले की होती है । वह तो अम्बर के स्नेह-जल के लिए धरती की प्यास के साथ उमंग की खुशबू होती है । यह क्या कि ऊपर से कोई आदेश दे और हम बिना सोचे समझे उसका हुक्म मानें। किसी के हुक्म से दीये जलाएं, किसी के हुक्म से ताली-थाली बजायें । जब जिस रंग का कहें, उस रंग का झण्डा फहराएं ।क्या किसी नागरिक का, किसी गण का अपना कोई रंग नहीं होता ?
आज भी तो 22 जनवरी 2024 के ‘मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा’ दिवस की तरह इस लोक की साझी विरासत और संघर्ष के सुफल का उत्सव है ।उत्सव संकोच, नहीं विस्तार का शुभ लग्न होता है । क्या होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस, स्वाधीनता दिवस, गणतंत्र दिवस हम सब में समान और सहज रूप से सहज उल्लास नहीं भर सकते ? क्या 15 अगस्त 1947 को किसी आदेश के तहत हमने तिरंगा फहराया था ? तब भी कुछ विघ्नसंतोषी लोगों ने तिरंगे को अशुभ बताया था । क्या हम भारतीय गणतंत्र के इस ‘अमृत वर्ष’ के शुभारंभ में , 75 वर्षों के साथ-संग के बाद भी गण, राष्ट्र, संविधान और उसमें निहित समस्त ‘लोगों’ की समता, बंधुत्व और न्याय का स्वप्न नहीं देख सकते ?
क्या हम तिरंगे में समाहित इस देश की पुरातन और नवीन संस्कृति की आशा-आकांक्षाओं के रंग नहीं देख सकते ? एक सामान्य पहचान के तहत अलग अलग रंग की झंडियाँ हमारे तिरंगे में आत्मा की तरह व्याप्त श्वेत रंग में अवस्थित चक्र की तरह सबके कल्याण की दिशा में क्यों गतिशील नहीं हो सकती ? क्या सांझी गतिशीलता के साथ उल्लसित नहीं हो सकते ? धर्म अकेले की मुक्ति का विधान बताता है जबकि गणतंत्र सामूहिक मुक्ति का पर्व है ।
तोताराम ने ताली बजाई और बोला- वाह मास्टर, वाह ! क्या अद्भुत भाषण है । ठीक वैसा ही जैसे मोदी जी ने राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा के बाद राष्ट्र से प्रतिष्ठित विशिष्ट जनों के सामने दिया था । लेकिन यहाँ कौन है तेरे इस भारत के स्वप्न द्रष्टा ? इस समय तो ‘राम नाम जपना, पराया माल अपना’ और ‘मुख में राम, बगल में छुरी’ वाली बेला चल रही है । जैसे भी, जो भी झण्डा, जो भी नारा, जो भी रंग काम बना सके, अपना लो । ठीक है, तेरा कोई कुत्सित मकसद नहीं है, स्वार्थ नहीं है फिर भी लोक के साथ चलने में कभी-कभी ताली-थाली बजा लेने, किसी खास नाम-रंग का झण्डा फहरा लेने, दीये जला लेने में तेरा क्या जाता है ? और बहुत बार तो लोग झंडे, दीये आदि फ्री में दे जाते हैं ।
हमने कहा- तोताराम, बात पैसे की नहीं है । हमारा कोई खास खर्चा भी नहीं है । अपने पैसे से भी बहुत से सांस्कृतिक कार्यक्रम कर सकते हैं । हम समाज से अलग नहीं हैं लेकिन जिस तरह से हमें धर्म और भगवान के नाम पर भेड़ बनाकर हाँका जा रहा है वह हमें पसंद नहीं है ।हम 75 साल से हनुमान चालीसा और 70 साल से रामचरितमानस पढ़ रहे हैं और ये लफंगे उजड्ड छोरे हमें धर्म सिखाएंगे, जबरदस्ती ‘जयश्री राम’ के नारे लगवाएंगे, यह हमें सहन नहीं होता । कल को धौंस जमाकर कुछ और करने के लिए मजबूर करेंगे ।
हम ऐसे किसी के कहने से न तो बस रोकेंगे और न ही चलाएंगे ।
तोताराम ने ठहाका लगाया, बोला- मास्टर, लगता है तेरा दिमाग कुछ गड़बड़ हो गया है । बात चल रही है झंडों, नारों, धर्म और संस्कृति की और तू बीच में यह बस कहाँ से ले आया । तुझे तो साइकल भी चलनी नहीं आती और आज सीधे बस दौड़ाना चाहता है । भक्तों की भीड़ उमड़ रही है कहीं भिड़ा मत देना ।
हमने कहा- हमें तो आजकल की इस धार्मिक कुचरणी से एक बस यात्रा का बहुत पुराना किस्सा याद आगया । बात 1965 की है। राजस्थान में नई नई रोडवेज सेवा शुरू हुई थी । उन दिनों जयपुर के चांदपोल दरवाजे के बाहर से बसें चला करती थीं । हम उन दिनों सवाईमाधोपुर की सीमेंट फेक्टरी के स्कूल में मास्टर थे । रात की ट्रेन से जयपुर पहुंचे और वहाँ से पिलानी वाली बस पकड़ी । हमारे साथ हमारे गाँव का ही एक युवक भी था । फेक्टरी टाउनशिप में किसी होटल में काम किया करता था । बहुत चंचल और शैतान था ।
बस जयपुर से निकली । जहां बस रोकनी होती कंडक्टर बस में जहां भी होता आवाज लगाता- रोक दे । और ड्राइवर रोक देता । जैसे ही सवारियाँ उतर-चढ़ जातीं वह फिर आवाज लगाता- चलो, चलो। और ड्राइवर चल देता ।
अब जहां भी कोई स्टॉप आता तो हमारे साथ का वह युवक जो ड्राइवर की सीट के पीछे ही बैठा था, बोल पड़ता- रोक दे । जैसे ही ड्राइवर चलने को होता वह फिर बोल देता-चलो, चलो ।
दो बार तो ड्राइवर ने कुछ नहीं कहा लेकिन जैसे ही तीसरी बार उसने कहा- चलो, चलो तो ड्राइवर को गुस्सा आ गया बोला- तेरे बाप का नौकर हूँ क्या ? नहीं चलता ।
और बस से बाहर निकल कर खड़ा हो गया ।
बड़ी मुश्किल से लोगों ने ड्राइवर को मनाया। युवक को सबसे पीछे वाली सीट पर भेज दिया गया, कुछ भी न बोलने की हिदायत के साथ ।
सो यह जो जनता को नचाने की मनोवैज्ञानिकता है वह बहुत दिन नहीं चलेगी । डर बहुत दिन नहीं चलता। ज़िंदगी प्रेम, समझ, सहमति और आपसी लिहाज व सम्मान से चलती है ।
2024-01-22
राम भक्त सप्तक
राम से बड़ा राम का भक्त
राम से बड़ा राम का भक्त ।
चार फीट के राम लला हैं
औ’ दस फुट का भक्त ।
जन गण मन में राम समाए
राज पिता का तज वन जाएँ
मगर भक्त सत्ता का लोभी
सपनों में भी तख्त ।
राम से बड़ा राम का भक्त ।। 1 ।।
सदा राम का मन बैरागी
अनासक्त निर्लोभी त्यागी
भक्त मगर तृष्णा में डूबा
हर पल विषयासक्त ।
राम से बड़ा राम का भक्त ॥ 2 ।।
सबके मन की बात करें प्रभु
सबके मन की बात सुनें प्रभु
निज मन की बातें करने में
भक्त मगर है मस्त ।
राम से बड़ा राम का भक्त ॥ 3 ।।
इस तन को प्रभु कपड़ा मानें
सिर्फ आत्मा को पहचानें
ड्रेस बदलने में पर उनका
भक्त बहुत है व्यस्त ।
राम से बड़ा राम का भक्त ॥ 4 ।।
प्रभु न स्वर्ग संदेश सुनाते
इसी धरा को स्वर्ग बनाते
मगर भक्त नित नभ में उड़ता
धरा पड़ी परित्यक्त ।
राम से बड़ा राम का भक्त ॥5 ।।
राम सदा निर्बल के बल है
दीनों दुखियों के संबल हैं
यह सबलों का परम मित्र है
दीन दुखी पर सख्त ।
राम से बड़ा राम का भक्त ॥ 6 ।।
राम कहाँ है भव्य भवन में
राम तलाशो अपने मन में
आडंबर में, ताम-झाम में
नहीं गँवाओ वक्त ।
राम से बड़ा राम का भक्त ॥ 7 ।।
चार फीट के राम लला हैं
औ’ दस फुट का भक्त ।
-रमेश जोशी
विज्ञापन का बॉयकाट
आज सुबह तोताराम नहीं आया। हो सकता है कोई और कारण रहा हो। अयोध्या जाने का तो प्रश्न नहीं क्योंकि वहाँ तो सचिन की कार को ही पार्किंग की जगह नहीं मिली। प्रतिष्ठितों की भीड़ में तोताराम को अयोध्या में कौन पूछता।चप्पे चप्पे पर तैनात पुलिस दस कोस पहले से ही हड़काकर भगा देती।
लेकिन जैसे महान सेवक छुट्टी के दिन भी २०-२० घंटे काम करने से बाज नहीं आते वैसे ही तोताराम भी हमें रोज अपनी चाय-सेवा का अवसर दे ही देता है। आज कोई ११ बजे आया। आते ही बोला- लंच वंच कुछ नहीं करेंगे, बस प्राणप्रतिष्ठा का सीधा प्रसारण देखेंगे और मंचिंग करेंगे।
हमने कहा- मंच पर तो मोदी जी, योगी जी, भागवत जी, आनंदी बेन, एक दो और ऐसे ही मनोनीत यजमान होंगे । जहां राष्ट्रपति और शंकराचार्य उपेक्षित हैं वहाँ हमें मंच पर कौन चढ़ने देगा ?
बोला- अपनी शेक्सपीयर के युग वाली अंग्रेजी को थोड़ा इम्प्रूव कर। ‘मंचिंग’ का मतलब मंच पर चढ़ना नहीं होता है । मंचिंग का मतलब होता है- ‘नो फॉर्मल लंच ओर डिनर’ ओनली पॉपकॉर्न, चिप्स, वेफर्स, चॉकलेट, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक, चाय एटसेट्रा एटसेट्रा । और इनका सेवन करते करते कोई मैच या फिल्म देखने जैसा कोई ऐसा ही नॉन-प्रॉडक्टिव काम ।
हमने कहा- लेकिन ये सब चीजें पोषणहीन, हानिकारक और महँगी, अराष्ट्रीय और असांस्कृतिक हैं। ये सब तो विज्ञापन के बल पर चल रहे हैं । यदि विज्ञापनों पर रोक लगा दी जाए तो सब ठीक हो जाए।
बोला- बिल्कुल ।तभी तो मेरी आज की ‘मन की बात’ का विषय है ‘बॉयकाट विज्ञापन’ .
हमने कहा- यह बात तो ठीक है । गांधी जी ने बॉयकाट के बल पर अंग्रेज सरकार के घुटने टिकवा दिए थे । भारतीय खादी पहनना गर्व की बात समझने लगे तो मेनचेस्टर की कपड़े की मिलें बंद होने लगीं ।लेकिन बॉयकाट तो मालदीव का करना है । विज्ञापन का नहीं ।वैसे सबसे जरूरी बॉयकाट तो चीन से आयात का करना जरूरी है लेकिन उतनी हमारी हिम्मत और औकात नहीं ।
बोला- हम स्वतंत्र देश के नागरिक हैं । हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है । बॉयकाट और समर्थन सब अभिव्यक्ति ही तो हैं ।
हमने कहा- फिर भी विज्ञापन का पूरी तरह बॉयकाट संभव नहीं है । विज्ञापन के बिना गुड़ को गोबर और गोबर को गणेश बनाना संभव नहीं हो सकता । चोर को विज्ञापन के बल पर तो चाणक्य बनाया जा सकता है । विज्ञापन से ही तो छवि बनती है और छवि के बल पर चुनाव जीते जा सकते हैं । अखबारों और मीडिया को विज्ञापन के बल पर खरीदकर गुणगान के लिए विवश किया जा सकता है ।
मंदिर पहले भी बने थे, शिलान्यास और प्राणप्रतिष्ठा भी हुए ही थे । सोमनाथ का भव्य मंदिर भी हमारे देखते देखते बना ही था लेकिन ऐसा धूम धड़ाका, ऐसी हाय तौबा कभी नहीं देखी । घर-घर दीये जलाने के धमकीनुमा सुझाव कभी नहीं आए थे । न केवल किन्हीं तथाकथित प्रतिष्ठित लोगों को बुलाया गया था और न ही आडवाणी जी की तरह किसी को न आने जैसा नियंत्रण दिया गया था ।जनता को आने से मना नहीं किया गया था । लगता है यह भगवान का नहीं बल्कि किसी खरबपति सेठ का कार्यक्रम था ।
अब निर्बल के बल राम नहीं रहे । धनिकों और बलियों के मनोरंजन राम हो गए ।
यह सब विज्ञापन के बल पर ही तो संभव हुआ । जनता के टेक्स के पैसे से पाँच किलो अनाज बांटकर दाने दाने पर अपना नाम लिखवाना विज्ञापन के बल पर ही तो संभव हुआ है ।
बोला- लेकिन मास्टर, याद रख अति बहुत बुरी होती है । तभी चाणक्य कहते है-
अति रूपेण वै सीता चातिगर्वेण रावणः।
अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत्।।
अत्यधिक सुन्दरता के कारण सीता हरण हुआ। अत्यंत घमंड के कारण रावण का अंत हुआ। अत्यधिक दान देने के कारण
राजा बलि को बंधन में बंधना पड़ा। अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए।
विटामिन सी बहुत महत्वपूर्ण होता है लेकिन अधिक सेवन करने से खुजली होने लगती है । अधिक पालक और टमाटर खाने से पथरी बनने लगती है । अधिक घी खाने से दस्त लगने लग जाते हैं ।
हमने कहा- लेकिन पांच सौ साल के कठिन परिश्रम और त्याग बलिदान से मोदी जी ने राम मंदिर बनवाया है । अब अगर राम का भव्य मंदिर न बने, सारा देश दिवाली न मनाए, घर घर दीये न जलाएं जाएँ, पटाखे न फोड़े जाएँ तो क्या बुराई है ।
बोला- जिस तरह से निठल्ले आवारा युवक राम के नाम से लोगों से जबरदस्ती कर रहे हैं उससे इनका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन लोगों को राम से जरूर चिढ़ होने लग जाएगी । तुझे याद है अपन मार्च 1958 में मेट्रिक की परीक्षा देने पिलानी गए थे और बिरला जी के नोहरे के सामने वाली धर्मशाला में ठहरे थे । याद है तब एक दिन क्या हुआ था ?
हमने कहा- अब 66 साल हो गए । कुछ याद नहीं पड़ रहा ।
बोला- याद है, उस धर्मशाला का चौकीदार था धूँकल । वह रोज शाम को अफीम का अंटा लगाता था । एक दिन जब हम आठ दस लड़के बिट्स पिलानी वाली नहर ‘शिवगंगा’ घूम कर आए थे और सब चबूतरे पर बैठे धूँकल को बारी बारी से ‘राम-राम’ बोले थे । तब उसने क्या कहा था ?
हमने कहा- हाँ, अब याद आ गया । उसने चिढ़कर राम को ही उलट सीधा कह दिया था-
सालो, राम की ....। कुचरणी करके मेरा नशा खराब मत करो ।
अब हम वे शब्द दुहराकर रामभक्तों का दिल नहीं दुखाना चाहते । फिर भी यह ‘राम-राम’ की अति का ही दुष्परिणाम था ।
प्राण, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठित
अब दांतों ने जवाब देना शुरू कर दिया है । जहां नीचे की दाढ़ है वहाँ ऊपर वाली गायब और जहां ऊपर वाली सलामत है तो नीचे वाली पलायन कर चुकी । मतलब सेटिंग बिगड़ गई । अब चक्की के एक पाट से तो पिसाई नहीं हो सकती । ऐसे में चावल, खिचड़ी और दलिया का ही सहारा है । रात को चावल थोड़े ज्यादा बन गए सो पत्नी ने उन्हीं को छौंक कर चाय के साथ दे दिया । एक चम्मच भर ही मुँह में डाला था कि तोताराम ने टोक दिया । ऐसी भी क्या गरीबी आ गई जो राममंदिर प्राणप्रतिष्ठा के निमंत्रण के अक्षत ही खाने लगा ।
हमने कहा- हम तो रात के बचे हुए चावल खा रहे हैं । अक्षत खाए थोड़े जाते हैं, वे सगुन के होते हैं । कुछ बेरोजगार युवक लेकर तो आए थे लेकिन हमने शंकराचार्य जी की तरह कह दिया- हमें तो अपूर्ण मंदिर में नहीं जाना है जीसे जाना हो उसे दे दो । वैसे भी राम हमारे लिए नए नहीं हैं । 1949 में आधी रात को दीवार फांदकर चबूतरे पर राम लला को विराजमान करने के पहले से ही हम तो राम के भरोसे हैं और हनुमान जी की कृपा से भूत-पिशाचों से बचते-बचाते 82 वें वर्ष में चल रहे हैं ।
कल खाटू श्याम जी के पास के अपने पलसाना नामक कस्बे से महंत गोपालदास शेखावाटी की मिट्टी लेकर गए बताए । आज तुझे आने में देर हो गई तो हमने सोचा, लगता है तोताराम कहीं उनके साथ लटककर अयोध्या तो नहीं चला गया । अगर चल गया होगा तो बिना बात परेशान होगा क्योंकि अभी हमने अखबार के पहले पन्ने पर विज्ञापन देखा जिसमें बताया गया है कि भारत की सभी विधाओं के 2500 श्रेष्ठ पुरुषों की उपस्थिति में 22 जनवरी को रामलला प्राण-प्रतिष्ठा समारोह आयोजित होगा । शेष पुरुष अपने निकट के मंदिर में स्वच्छता अभियान चलाएं, निकट के मंदिर में कीर्तन करें, प्रसाद वितरित करें, पाँच-पाँच दीये जलाएं । समारोह के बाद दर्शन हेतु अनुकूल समयानुसार अयोध्या पधारें ।
इस हिसाब से क्या तो तेरे प्राण और क्या तेरी प्रतिष्ठा । क्या करेगा प्राणप्रतिष्ठा में जाकर । जो प्रतिष्ठित हैं वे जा ही रहे हैं ।
बोला- इसका मतलब इनके अलावा शेष सब निकृष्ट पुरुष हैं ? लगता है यह सब चंपत राय की चालाकी है। वही यह सब कर रहा है । उसीने शंकराचार्यों को नहीं बुलाया । वही अब कह रहा है कि रामलला की पूजा रामानंदी पद्धति से होगी ।
तुझे पता होना चाहिए कि रामानंद तो ब्राह्मणवादी सनातन व्यवस्था के विरुद्ध थे । उन्होंने तो सवर्ण, दलित सभी को अपना शिष्य बनाया । यहाँ तक कि उनके शिष्य मुसलमान भी थे । कबीर तो उनके सबसे प्रसिद्ध शिष्य हैं जो सभी प्रकार के कर्मकांडियों, मूर्तिपूजकों को लताड़ते हैं । वे तो कहते हैं पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पुजूँ पहार ।
मैं किसी चंपत राय को कुछ नहीं समझता । मैं तो उस राम को मानता हूँ जो शबरी के जूठे बेर खा सकता है, जो पिता का राज बटाऊ की तरह सहजता से छोड़ सकता है । ये हजारों करोड़ के खजांची मेरे किस काम के । वैसे मेरे न जाने का कारण चंपत राय का निमंत्रण न मिलना नहीं है । उसका क्या, उसने तो आडवाणी जी को कैसा अपमानजनक निमंत्रण भेजा था । शंकराचार्यों को तो उलटे मन से भी नहीं बुलाया ।
मुझे तो मोदी की करबद्ध प्रार्थना ने विवश कर दिया ।
हमने पूछा- मोदी जी तो आजकल भूखे-प्यासे एक एक दिन में चार चार मंदिरों में चक्कर लगा रहे हैं । उन्हें तुझसे प्रार्थना करने का समय कैसे मिल गया ? उन्हें तो नौ महिने हो गए मणिपुर जाने और अपने परिवार के जैसी महिला पहलवान बेटियों तक से मिलने का समय नहीं मिला।
बोला- व्यक्तिगत रूप से मिलन नहीं हुआ लेकिन उन्होंने एक रैली में कहा है - अयोध्या में सबका पहुंचना बहुत मुश्किल है, इसलिए देश भर के राम भक्तों को, विशेषकर उत्तर प्रदेश के राम भक्तों से हाथ जोड़कर प्रणाम के साथ प्रार्थना है, आग्रह है कि 22 जनवरी को विधि पूर्वक कार्यक्रम हो जाने के बाद 23 जनवरी के बाद अपनी सुविधा के अनुसार अयोध्या आएं । अयोध्या आने का मन 22 जनवरी को न बनाएं । प्रभु राम जी को तकलीफ हो, ऐसा हम भक्त कर नहीं सकते । प्रभु श्री राम जी पधार रहे हैं तो हम भी कुछ दिन इंतजार करें. साढ़े पांच सौ साल इंतजार किया है तो कुछ दिन और इंतजार करें । इसलिए सुरक्षा और व्यवस्था के लिहाज से मेरी आप सबसे बार-बार प्रार्थना है कि कृपा करके आप प्रभु राम के दर्शन, अयोध्या का नव्य, भव्य, दिव्य मंदिर आने वाले सदियों तक दर्शन के लिए उपलब्ध है ।
अब उनकी बात भी तो नहीं टाल सकता ना ।
न सही अयोध्या, जहां मर्यादा वहीं राम । तुलसी ने तो बहुत पहले ही कह दिया था- सियाराममय सब जग जानी । जल्दी से ये अक्षत, नहीं सॉरी चावल समाप्त कर और चाय बनवा । साथ में न सही कोई विशिष्ट प्रसाद; संक्रांति का बचा हुआ कोई तिल का लड्डू या घेवर का टुकड़ा ही ले आ ।
नारियल पानी और वह भी दिन में सिर्फ दो बार
आज जैसे ही हमने तोताराम के सामने चाय का गिलास रखा तो बोला- नहीं, मैं इस तामसिक पदार्थ का सेवन नहीं करूंगा । ले जा वापिस।
हम अन्य किसी भी असंभव पर विश्वास कर सकते हैं लेकिन तोताराम चाय के लिए इनकार कर दे यह कदापि विश्वसनीय नहीं । पूछा- पिछले साठ सालों से तो यह अमृतपान था और आज अचानक तामसिक पदार्थ हो गया । कल तक तो मोदी जी का नाम लेकर गुजरात की मसाले वाली चाय की फरमाइशें किया करता था और आज ।
बोला- आज भी मोदी जी के कारण ही चाय के लिए इनकार कर रहा हूँ ।
हमने कहा- मोदी जी एक बार काँग्रेसविहीन भारत अस्वीकार कर सकते हैं लेकिन चायविहीन भारत उन्हें कभी स्वीकार्य नहीं होगा ।चाय के बिना उनकी चर्चा भी वैसे ही अधूरी रहती है जैसे माखन, बाँसुरी और गाय के बिना कृष्ण की छवि अधूरी है । तो फिर चायविहीन बरामद क्यों ?
बोला- मैं भी ऐसा नहीं चाहता लेकिन नियमों से मजबूर हूँ । आजकल मैं भी मोदी जी की तरह अनुष्ठान के नियमों से बंधा हुआ हूँ । यम-नियमों के अनुसार प्रत्येक तामसिक पदार्थ से दूर रहना है ।
हमने कहा- लेकिन आजकल तो लोग निर्जला एकादशी को भी चाय को निषिद्ध नहीं मानते । क्योंकि यह न तो जल है और न ही भोजन । यह चमगादड़ों की तरह लिंग विहीन है; न पश, न पक्षी । सब जगह फिट हो जाता है । तो फिर चाय नहीं तो और क्या ?
बोला- बस, दिन में दो बार नारियल पानी । और कुछ नहीं ।
हमने कहा- लेकिन यह तो भोजन से भी महंगा अनुष्ठान है । मोदी जी की बात अलग है । वे तो दिन भर नारियल पानी ही क्या 40 हजार रुपए किलो का मशरूम तक अफोर्ड कर सकते हैं लेकिन हम नहीं । तुझे पता है सीकर में पानी वाले एक छोटे से नारियल के भी 50 रुपए लगते हैं। क्या मोदी जी भी 11 दिन केवल रोज दो नारियल-पानी पर ही रहेंगे ?
बोला- और क्या ? यह शुद्ध है, सात्विक और सनातनी है । नारियल को लक्ष्मी का फल माना जाता है- श्रीफल ।
हमने फिर पूछा- तो क्या अनुष्ठान के यम नियमों में यह भी लिखा है कि केवल दो ही नारियल-पानी का सेवन करना है ?
बोला- यह तो मुझे पता नहीं लेकिन जो कारण मेरी समझ में आता है वह यह है कि जाड़े और बरसात में वैसे ही पेशाब अधिक आता है । पानी अधिक पीने पर तो और भी हालत खराब हो जाती है। इधर पानी पिया उधर जाओ दो नंबर के लिए ।
फिर अनुष्ठान में तो हर मल-मूत्र विसर्जन के बाद स्नान का विधान है । ऐसे में क्या ग्यारह दिन मूत्र विसर्जन और स्नान ही करते रहो ? फिर एक एक दिन में देश के चार चार दूरस्थ मंदिरों के दर्शन और वहाँ विधि-विधान से पूजन कैसे संभव हो सकता है । हो सकता है बहुमूत्रता से बचने के लिए ही उपवास और थोड़ा सा नारियल पानी का ऐसा विधान किया गया हो ।
हमने कहा- सुना है उत्तरी कोरिया का राष्ट्रपति किम जोंग उन मल-मूत्र विसर्जन नहीं करता । और यह भी सुनते हैं कि वहाँ की जनता को इस पर विश्वास भी करना पड़ता है । पश्चिमी मीडिया विशेषकर अमरीकी मीडिया उन सब के बारे में ऐसी बातें तरह तरह से फैलाता रहता है जिन्हें वह अपने अनुकूल नहीं समझता । यह अफवाह भी उनमें से एक हो सकती है । जो नहीं खाता उसके बारे में तो यह बात किसी हद तक समझ में आ सकती है लेकिन फिर उस हालत में वह सूख-सिकुड़कर महिने-बीस दिन में मर भी जाता है । किम देखने में तो बहुत मोटा-ताजा है। लगता है सारा भोजन और पेय पदार्थ पेट से सीधे-सीधे मांसपेशियों में ही बदल जाते होंगे ।
बोला- मोदी जी न तो खुद ऐसी अवैज्ञानिक बातें करते हैं और न ही पसंद करते हैं । वे तो बहुत वैज्ञानिक सोच के व्यक्ति हैं । हाँ, कुछ लोग मोदी जी के न चाहने पर भी उन्हें शिव, विष्णु, कृष्ण आदि का अवतार बताते हैं उस हिसाब से तो यह सच हो सकता है कि वे दो नारियल पानी ही क्या, खूब खा पीकर भी मल-मूत्र विसर्जन न करें । ऐसी स्थिति में तो वे बिना कुछ खाए-पीए और सोये, बिना मल-मूत्र विसर्जन में समय व्यर्थ किये 24 घंटे देश-दुनिया की सेवा कर सकते हैं ।
हमने कहा- तभी किसी देव मूर्ति के लिए शौचालय का विधान नहीं होता ।
मोदी-गाय
आजकल ठंड अधिक होने के कारण हम सुबह सुबह दूध लेने नहीं जाते । वैसे दूधवाले के घर जाकर दूध लाने वाला यही चाहता है कि दूध उसके सामने निकाला जाए और दूधवाला चाहता है कि किसी तरह ग्राहक के पहुँचने से पहले ही निकालकर जो कुछ घपला करना हो कर लिया जाए ।
आजकल तो खैर, बड़े घरों के बच्चे दूध देने वाले पशु के रूप में फ्रिज का नाम बताने लगे हैं लेकिन गांवों में रहने वाले और विशेषकर आज 60-70 साल की आयु प्राप्त कर चुके भारतीय लोग ग्राहक और दूधवाले के बीच की इस आँख मिचौनी से वाकिफ हैं । हमारी एक परिचित हैं जो ओहायो राज्य में रहती हैं । उनकी माताजी ने हमें एक बार बताया था कि 1970-80 के बीच यहाँ भी कुछ मील जाकर ताज़ा दूध लाया करते थे । ध्यान रहे, ओहायो मध्य अमरीका का एक कृषिप्रधान राज्य है ।
तोताराम और हम चाय का इंतजार कर रहे थे कि पत्नी ने आवाज लगाई-
अगर बिना दूध की नींबू वाली की चाय पीनी है तो बना दें अन्यथा या तो जयपुर रोड़ से मंडी के गेट के पास वाले सरस डेयरी के बूथ से दूध ले आओ या फिर आज फिर मोदी जी की तरह 'राम मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान' स्वरूप चाय न पीकर हनुमान चालीसा, सुंदरकांड का पाठ कर लो । बचत की बचत और परलोक सुधार का परलोक सुधार । अगर अखबार में छप गई और किस्मत तेज हुई तो राजनीतिक कृपा भी प्राप्त हो सकती है ।
पत्नी के इस लघु भाषण से हमें बहुत खुशी हुई और दुख भी हुआ कि इसकी इस प्रतिभा का विस्तार हुआ होता तो शायद किसी राष्ट्रीय महिला मोर्चा की जिला नहीं तो, गाँव-गली-मोहल्ला अध्यक्ष तो बन ही गई होती ।
तोताराम ने सुझाव दिया- मास्टर, इस दूध लाने और दूध में पानी की मिलावट होने या फिर दूध के नकली होने की समस्या के स्थायी हल के लिए एक भैंस क्यों नहीं पाल लेता ।
हमने कहा- तोताराम, हम देव संस्कृति के उपासक है । हमें भैंस महिषासुर की अम्मा दिखाई देती है । और फिर गौ भक्त बताते हैं कि भैंस के दूध में दैवीय गुण नहीं होते । उसके मूत्र और मल में भी वह अलौकिक बात नहीं होती जो गाय के गोबर और गौ मूत्र में होती है ।
बोला- तभी गाय का 'गोबर' होता है और 'पूज्य' होता है । भैंस के मल को इसीलिए कोई 'भैंबर' जैसी विशिष्ट संज्ञा नहीं दी गई । गाय के कत्ल और मांस पर बवाल होता है लेकिन दूध देने वाला पशु होने पर भी भैंस-हत्या और मांस पर किसी को कोई ऐतराज नहीं होता । वैसे तो संविधान कोई भेदभाव नहीं करता लेकिन हिन्दू धर्म में यह नस्ल और जातिवाद होता है । वैसे दोनों के दूध और भैंस-गाय पर लिखे निबंध से दोनों में किसी विशेष अंतर का पता नहीं चलता है ।
तू तो जर्सी गाय पाल ले जो दूध भैंस की तरह देती है और कहलाती गाय है ।
हमने कहा- हम अपने हिन्दुत्व से ऐसा छल नहीं कर सकते । पालेंगे तो शुद्ध देसी गाय - कोई राठी, थारपरकर या गिर नस्ल की । लेकिन गाय लिए बड़ा इंफ्रास्ट्रकचर चाहिए ।
बोला- तो फिर तू बकरी पाल ले । गांधी जी भी बकरी रखते थे । जगह भी कम घेरेगी, साल में दो बार बच्चे देगी। बकरे-बकरी बिक जाएंगे । मोबलिंचिंग का कोई चक्कर नहीं ।
हमने कहा- लेकिन बकरी मुसलमान होती है ।इसीलिए तो सच्चे हिन्दू गांधी को पसंद नहीं करते । मुसलमानों को पालने की जिम्मेदारी मुस्लिम देशों की है । पालना ही होगा तो हिंदुओं को पालेंगे । बेचारे पहले से ही किसी तरह पाँच किलो राशन पर दिन काट रहे हैं ।
बोला- फिर तो मोदी जी से संपर्क करना होगा ।
हमने कहा- मोदी जी को विश्व कल्याण, भारतीय लोकतंत्र की सुरक्षा और देवी-देवताओं के पुनर्वास से ही फुरसत नहीं है ।पहले तीस साल के संघर्ष के बाद जमीन पर कब्जा लिया, अब दस साल में मितव्ययिता करके किसी तरह राम का मंदिर बनवाया । किसी तरह अगले दस साल में कृष्ण की आवास समस्या सुलझानी है । उसके बाद अगले दस साल में ज्ञानवापी का अवैध कब्ज़ा छुड़वाकर बाबा विश्वनाथ के कोरिडोर को कंफरटेबल बनाना है । तब तक उनके अवतार का भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का उद्देश्य भी पूरा हो जाएगा । और उसके बाद अपनी माया भी तो समेटेंगे । ऐसे में हमें पशुपालन के बारे में राय देने का समय कहाँ है । वैसे जहां तक ज्ञान की बात है तो हमारा पूरा विश्वास है कि उनके पास हर समस्या का हल है । उनका अनुभव बहुत विराट है । वे त्रिकालदर्शी और त्रिकालज्ञ हैं ।
बोला- उन्हें इसके लिए अलग से कुछ करने सोचने की जरूरत नहीं है । उन्होंने पहले ही 'मोदी-गाय' विकसित कर ली है । यह गाय-सांड की एक ऐसी नस्ल है जो उनकी कुर्सी के हत्थे तक ही आती है । वे उन्हें कुर्सी पर बैठे बैठे ही सहला सकते हैं ।
ऐसा कहकर तोताराम ने हमारे सामने एक फ़ोटो कर दी जिसमें मोदी जी एक मिनिएचर गाय को सहला रहे हैं और एक वैसा ही मिनिएचर सांड उसके पास खड़ा है ।
हमने कहा- तोताराम, ये तो गाय और सांड हैं, मोदी जी के सामने तो हिमालय भी झुककर घुटनों पर आ जाता है । संतों और अवतारी पुरुषों में बड़ा कमाल होता है ।
राम रोटी , राम चाय
आज ठंड पिछले तीन चार दिनों की बजाय अपेक्षाकृत कम है इसलिए उठने में अतिरिक्त विलंब नहीं किया । पत्नी ने आज लोहड़ी के उपलक्ष्य में चौले की दाल के पकौड़े बनाने का कार्यक्रम रखा हुआ है । चाय के साथ गरम गरम दिए जाएँ इसलिए तोताराम का इंतजार था । तोताराम कोई नेता तो है नहीं । सो कोई इंतजार नहीं करवाया। वैसे भी कुछ अतिरिक्त खाने-पीने का मामला हो तो पता नहीं, उसे कैसे टेलीपैथी हो जाती है कि बचना चाहो तो भी पहुँच ही जाता है ।
आज तोताराम के साथ उसकी पत्नी मैना भी है । हमने छेड़ा- क्या बात है आज जोड़े से ? तुझे कैसे इल्हाम हो गया कि आज चौले की दाल के पकौड़े बन रहे हैं ।
बोला- मैं पकौड़े खाने नहीं आया। आज हम दोनों अनुष्ठान पर निकल रहे हैं तो सोचा तुम लोगों से मिलते हुए निकल जाएँ ।
हमने कहा- तुझे कौनसा राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा करनी है जो अनुष्ठान कर रहा है । और फिर मैना को ठंड में क्यों परेशान कर रहा है ? मोदी जी ने भी सपत्नीक प्राणप्रतिष्ठा करने का कोई संकेत दिया है ?
बोला- मोदी जी की बात और है । वे जो करें वही शास्त्र सम्मत होता है । लेकिन जब मेरे पास सुविधा है तो मैं मैना को अनुष्ठान में अपने साथ क्यों न ले जाऊँ ।
हमने कहा- तो तू यह अनुष्ठान कहाँ से शुरू कर रहा है ? मोदी जी ने तो नासिक में काला राम मंदिर से शुरू किया है । हो सकता है वे राम के वनवास जीवन से जुड़े अन्य स्थानों पर भी जाएँ लेकिन अभी कुछ घोषित नहीं किया गया । मोदी जी अपने सब कामों में ऐसा ही रोमांच बनाकर रखते हैं ।
बोला- मेरे पास उनकी तरह कौनसा विशेष प्लेन है। मैं तो अधिक से अधिक राजस्थान रोडवेज के फ्री पास से जहां तक संभव हो जा सकता हूँ । मजे की बात देख राम मंदिर निर्माण के लिए राजस्थान से बहुत कुछ जा रहा है लेकिन राजस्थान में एक भी ऐसा राम मंदिर नहीं है जो देश के प्रसिद्ध राम मंदिरों में शामिल होने लायक हो । सो सोचा है कि हम दोनों रोज सीकर के एक दो हनुमान मंदिरों में हो आया करेंगे । आज बस से सालासर हनुमान जी के यहाँ जा रहे हैं । शाम तक लौट आएंगे ।
हमने कहा- तो दोनों चाय तो पी लो । साथ में पकौड़े भी हैं ।
बोला- चाय, पकौड़े सामान्य हैं या विशेष ?
हमने कहा- चाय तो वही रोज वाली है लेकिन पकौड़े जरूर तेज मिर्च और लहसुन डालकर स्पेशल बनाए हैं ।
बोला- प्राणप्रतिष्ठा तक मैं केवल 'राम चाय' और 'राम पकौड़े' का ही प्रसाद ग्रहण करूंगा ।
हमने कहा- चाय पकौड़े में राम कहाँ से आगया ।
बोला- सियाराममय सब जग जानी
करहुँ प्रणाम जोरि जग पानी
मेरे लिए सब कुछ राममय है । चाय भी पकौड़े भी, सभी कुछ । कानपुर हृदय रोग संस्थान के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीरज कुमार ने मात्र सात रुपये की एक किट बनाई है जिसमें वे ही तीन दवाइयां हैं एकोस्प्रिन, सोर्बिट्रेट व रोसुवैस 20 टैबलेट जो सामान्य रूप सभी काम में लेते हैं । लेकिन नाम दे दिया 'रामबाण किट' ।
हमने कहा- वैसे हमने राम से जुड़े कई नाम सुने हैं जैसे राम तुलसी, रामनामी, रामबाण, राम रक्षा स्तोत्र, वैष्णव लोग एक प्रकार की पीली मिट्टी से तिलक लगाते हैं जिसे वे 'रामरज' कहते हैं । लोग अपने सुख दुख को 'राम कहानी' कह देते हैं।गांधी जी एक अच्छे शासन की कल्पना 'रामराज' के रूप में करते थे । कुछ लोग नमक को 'रामरस' कहते हैं। आडवाणी जी ने टोयोटा को एक सुविधाजनक वेनिटी वैन के रूप में बनवाया था और सोमनाथ से अयोध्या के लिए निकले थे जिसे उन्होंने 'रामरथ' का नाम दिया था ।देश में बहुत से रामनगर, रामगढ़, रामपुर हैं । और मजे की बात देखो कि रामपुर के नवाब को 'रामपुर' नाम से कोई तकलीफ नहीं हुई । वरना उन्हें भी योगी जी की तरह नाम बदलने से कौन रोक सकता था । किसी एक कीटनाशक का नाम भी 'रामबाण' मिलता है ।
लेकिन यह क्या तमाशा है कि तुम राम चाय, राम पकौड़े बना रहे हो। कल को राम पानी, रामरोटी, राम छाछ, राम सब्जी, राम जूते, राम चप्पल, राम अगरबत्ती कुछ भी बना लोगे। राम का तमाशा क्यों बनाते हो । हो सकता है कल को कोई राम कबाब, राम बिरयानी बना लेगा तो ? तब तुम्हारी भावना आहत हो जाएगी । एफ आई आर कराते फिरोगे ।
बोला- बिल्कुल नहीं चलेगा । जब राम मांस खाते ही नहीं थे तो राम कबाब, राम टिक्का आदि कैसे हो सकते हैं ।
हमने कहा- जब क्षत्रिय ही मांस नहीं खाते थे तो फिर इस देश में माँस खाता कौन है ? ब्राह्मण, बनिए ? फिर ये अश्वमेध, गौमेध आदि यज्ञों के नाम क्यों हैं ? फिर अधिकतर बूचड़खाने हिन्दू मालिकों के क्यों हैं ? यदि राम के मांसाहारी होने से इतनी ही तकलीफ़ है तो हमें इस देश में मांस खाने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए । मांस खाने वाले देशों से संबंध विच्छेद कर लेने चाहियें ।
बोला- क्यों बिना बात की रामायण करता है । कोई बात नहीं 'राम पकौड़े' नहीं हैं तो न सही । ले आ लहसुन मिर्च के पकौड़े । संक्रांति का प्रसाद मानकर खा लेंगे । अन्न भगवान का अपमान ठीक नहीं । भोजन भी तो एक प्रकार का अनुष्ठान ही होता है । तभी तो हमारे यहाँ 'पेट पूजा' को भी एक प्रकार की पूजा ही कहा गया है ।
मोदी नहीं तो कौन ?
हमारे यहाँ हमेशा चहल-पहल रहती है ।सुबह से ही स्कूल बसों, बिल्डिंग मेटीरियल ढोते ट्रेक्टरों और सुबह सुबह की अजान और मंदिरों के फिल्मी धुनों पर बजते भजनों की आवाजें आने लग जाती हैं । आज तो खैर मकर संक्रांति है । मोदी जी की कृपा से सुना है बिना झंडी दिखाए ही सूर्य भगवान उत्तरायण हो गए । वैसे इस उत्तरायण में भारतीय पतंगों, चीनी मंजे और छतों पर जोर जोर से बज रहे लाउडस्पीकरों का योगदान भी कम नहीं है ।
इसी शोरगुल नहीं, पवित्र ध्वनियों के बीच आज जैसे ही तोताराम का पदार्पण हुआ, हमने कहा- तो तोताराम, 22 को मोदी जी प्राणप्रतिष्ठा कर ही रहे हैं ।
बोला- क्या तुझे कोई शक है ?
हमने कहा- हमें कोई शक कैसे हो सकता है ? हम तो उनके अब तक के कामों से यही समझे हैं कि मोदी जी कुछ भी कर सकते हैं । नोटबंदी, तालाबंदी, संसद में एंट्रीबन्दी । लेकिन चर्चा है कि शंकराचार्यों ने इसे ठीक नहीं माना है । वे प्राणप्रतिष्ठा समारोह में नहीं जा रहे हैं ।
बोला- शंकराचार्य तो बिना बात बिफर रहे हैं । अगस्त 2020 में शिलापूजन के समय 36 परंपराओं के संतों महंतों को बुलाया गया था, यहाँ तक कि दो मुसलमानों को भी बुलाया गया था लेकिन शंकराचार्यों, तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द और विपक्षी पार्टियों के किसी नेता को, यहाँ तक कि आडवाणी जी को भी नहीं बुलाया गया था । तब ये लोग क्यों चुप रहे ? असली आयोजक, संयोजक तो आर एस एस, हिन्दू महासभा, विश्व हिन्दू परिषद आदि हैं। आज भी वे ही हैं ।
हमने कहा- लेकिन अब तो बहुत से लोगों को बुलाया गया है, विपक्ष वालों को भी ।
बोला- वह तो उन्हें दुविधा में डालने के लिए बुलाया गया है । जाएँ तो भाजपा के मंदिर एजेंडा पर सहमति की मोहर, न जाएँ तो राम द्रोही । दोनों तरह फायदा भाजपा को । ऐसी किस्त मात फँसाई है कि न निगलते बने और न उगलते । यह तो विपक्षियों को शंकराचार्यों की आड़ मिल गई अन्यथा कोई रास्ता नहीं था ।
हमने कहा- लेकिन काम पूरा तो हो जाने देते । अपूर्ण मंदिर की जो बात बहुत से लोग कह रहे हैं उसमें भी दम तो है । और फिर कहते हैं ये काम सपत्नीक होने चाहियें ।
बोला- तो क्या मोदी जी ने शिलापूजन के रूप में 5 अगस्त 2020 को जो अकेले शिलान्यास किया था वह गलत था ? यदि था तो तब ये क्यों नहीं बोले ? क्या रामसेतु बनाने से पहले राम ने रामेश्वरम की स्थापना अकेले नहीं की थी ? और फिर शस्त्रों में यह भी तो कहा गया है- महाजनो येन गतः सः पन्थाः । सो मोदी जी 'महाजन' हैं । 140 करोड़ भारतीयों ही नहीं बल्कि विश्व के 8 करोड़ लोगों के नेता और मार्गदर्शक । उनसे बड़ा 'महाजन' और कौन हो सकता है ? और फिर मोदी नहीं तो कौन ?
हमने कहा- तो जब मोदीजी का जन्म नहीं हुआ था तब यह सृष्टि कैसे चल रही थी ?
बोला- चल क्या रही थी, घिसट रही थी 2014 से पहले । और फिर जिस काम को जो व्यक्ति सही ढंग से कर सकता हो उसी से करवाना चाहिए । स्पेशियलाइज़ेशन का युग है । कहा भी है-
जिसका काम उसी को साजे
और करे तो डंडा बाजे
जिसे देश के रेलमंत्री को झंडी तक दिखानी नहीं आती उस देश के शंकराचार्य क्या शिलापूजन करवाएंगे और क्या उद्घाटन करेंगे ? एक भले आदमी के सिर सब आ पड़ा । दस साल से 20-20 घंटे काम करना पड़ रहा है । लगता है अब वह दो-चार घंटे का सोना भी बंद ।
कोई बात नहीं । कहा भी है समझवार की मौत ।
हमने कहा- लेकिन अभी तो मंदिर अधूरा है । पूरा होने पर प्राणप्रतिष्ठा और गृहप्रवेश करवा देते । लोग कहते हैं चुनावों में फायदा लेने के लिए यह सब किया जा रहा है ।
बोला- लोगों का काम है कहना । बात वचन और वादे की है ।
रघुकुल रीति सदा चलि आई । प्राण जाइ पर वचन न जाई ।।
इस टर्म के लिए तीन तलाक और धारा 370 के बाद यही वचन बचा था । अगर राममंदिर का वचन पूरा नहीं करते तो तुम लोग वादाखिलाफी का आरोप लगाते ।
और फिर आजकल ठंड कितनी पड़ रही है । बालक रामलला 500 साल से ठंड में बाहर बैठा है । अगर ठंड लगकर निमोनिया हो गया तो ? और फिर कब्जा पक्का करने के लिए रंग-रोगन का इंतजार नहीं किया जाता । जितनी जल्दी अंदर घुसकर बाहर नेमप्लेट लगा दो उतना अच्छा ।
हार्ड वर्क बनाम हार्वर्ड
आज तोताराम एकदम नए नए चुने मुख्यमंत्री /एम एल ए की तरह व्यवहार कर रहा था जो अपनी सदस्यता की शपथ लेने से पहले ही अपने मोहल्ले के अंडे के ठेले वालों को कराची भेजने की धमकी देने लगता है या सीएम बनने के बाद पहला आदेश यही जारी करता है कि धार्मिक स्थलों पर तेज आवाज में लाउड स्पीकर न बजाए जाएँ । और यह तो सब जानते हैं कि किस धर्म के कार्यक्रमों की आवाज तेज और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है ।
बोला- मास्टर, तू कितने घंटे काम करता है ?
हमने कहा- काम करने के समय हमने भी खूब काम किया है । अब अस्सी के हो गए, क्या अब भी काम करते रहेंगे ? वैसे अब भी कुछ न कुछ काम करते ही हैं लेकिन किसी के दबाव में नहीं । अब हम जो भी करेंगे अपने मन से करेंगे । मन करेगा तो दिन में दो बार स्नान करेंगे, मन नहीं करेगा तो चार दिन नहीं नहायेंगे । मन होगा तो रात को 12 बजे तक जागेंगे और मन नहीं होगा तो दस बजे तक सोते रहेंगे ।
बोला- अभी तो तेरे हाथ-पैर चल रहे हैं । कुछ बड़ा सोच, कुछ सार्थक और परमार्थ का सोच, देश-दुनिया का सोच ।इन्फोसिस वाले नारायण मूर्ति को देख । कहते हैं उन्होंने सप्ताह में नब्बे नब्बे घंटे काम किया है ।उन्होंने देश के युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह दी है । उनके अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान और जर्मनी ने भी ऐसा करके ही विकास की बुलंदियों को छुआ है । इस संदर्भ में उन्होंने मोदी जी का भी उदाहरण दिया है ।
हमने कहा- बनिया अपनी दुकान पर सुबह-सुबह आकर बैठ जाता है और ग्राहक के इंतजार में देर रात तक बैठा रहता है । किसान भी दिन रात काम करता है । उत्तर प्रदेश के किसानों को देख, रात रात जागकर खेतों से सांड भगाते हैं । अगर मूर्ति जी ने नब्बे घंटे काम किया है तो उन्हें उसका लाभ मिला है लेकिन अपने कर्मचारियों से इतने काम की आशा क्यों ? और अगर आशा करें तो उसे देश के विकास के नाम पर भावनात्मक शोषण से क्यों जोड़ते हैं ? कर्मचारी से अधिक काम की आशा करें तो उसे अधिक वेतन और सुविधाओं से जोड़ें ।
बोला- लेकिन देश के लिए निस्वार्थ कर्म करने से एक गर्व की अनुभूति तो होती ही है । क्या सब कुछ पैसे के लिए ही होता है ?
हमने कहा- ये नेता और उद्योगपति क्या देश की सेवा करने के लिए लड़-मर रहे हैं ? यह मारामारी शुद्ध पद, पावर, यश और मनमानी का अवसर पाने के लिए है । कोई भी वित्तमंत्री देश प्रतिव्यक्ति औसत ये में दो महिने जिंदा रहकर दिखा दे तो माँ लेंगे।
बोला- फिर भी इतने बड़े और पिछड़े देश को दस-पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए ज्यादा काम करने की जरूरत तो है ही । इसीलिए तो मूर्ति जी 70-80 घंटे प्रति सप्ताह काम करने के लिए कह रहे हैं । मोदी जी खुद 20-20 घंटे काम करते । उनके एक प्रशंसक चंद्रकांत पाटील ने तो कहा है कि वे केवल दो घंटे ही सोते हैं ।अब तो वे यह प्रयोग कर रहे हैं कि बिना सोये ही काम चल जाए और वे दिन-रात चौबीसों घंटे देश की सेवा कर सकें ।
हमने कहा- ज्यादा समय तक काम करने से कोई विशेष फायदा नहीं होता बल्कि काम की गुणवत्ता कम हो जाती है । पहले मजदूरों से अमानवीय तरीके से 20-20 घंटे काम लिया जाता था ।पिछली शताब्दी के शुरू में एक दिन में आठ घंटे काम करने का नियम बनाने के लिए आंदोलन किया जिसमें किसी ने बम विस्फोट कर दिया और पुलिस ने गोली चल दी जिससे 7 मजदूर मारे गए । उसके बाद से दुनिया में 8 घंटे प्रतिदिन काम का नियम बना । इसी उपलक्ष्य में 1 मई को 'मई दिवस' मनाया जाता है । 8 घंटे के इस नियम को सबसे पहले फोर्ड ने अपनी कंपनी में लागू किया और उसके बहुत अच्छे परिणाम मिले । मजदूरों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य ही अच्छा नहीं हुआ बल्कि कारखाने की उत्पादकता भी बढ़ी ।
बोला- फिर भी हमें सेवाभाववश 20-20 घंटे काम करने वाले अवतारी पुरुषों का आभार तो मानना ही चाहिए ।
हमने कहा- विष्णु जो सृष्टि के पालनकर्ता है और राम-कृष्ण सब जिनके अवतार है, वे भी साल में चार महिने सोते हैं जिसे देवशयन के नाम से जाना जाता है । मतलब जिस पर सृष्टि की जिम्मेदारी है वह भी 16 घंटे प्रतिदिन से अधिक काम नहीं करता । तिस पर शौच, खाना, नहाना, तरह-तरह के वस्त्र बदलना, साज-शृंगार, भक्तों के कीर्तन-जागरण अटेंड करना आदि आदि । ईसाई भी अपने भगवान को सप्ताह में एक दिन की छुट्टी भी देते हैं । डाक्टरों का मानना है कि कम सोने से आदमी की निर्णय लेने की क्षमता दुष्प्रभावित होती है । कुछ का कुछ दिखाई देने लगता है। टेलिप्रॉम्प्टर देखकर भी ढंग से नहीं पढ़ सकता ।
बोला- तो फिर यह हार्ड वर्क और हार्वर्ड वाले जुमले का क्या मतलब है ?
हमने कहा- जो हार्वर्ड तो बहुत दूर, यहाँ भी संदेहास्पद डिग्री से काम चला रहे हैं वे ही अपनी झेंप मिटाने के लिए ऐसी चंडूखाने की बातें करते हैं ।
वैसी पीड़ा मुझे देना दाता
चाय में थोड़ा विलंब था । समय बिताने के लिए भरे पेट वाले आजकल अंत्याक्षरी खेलते हैं । सामान्य आदमी की तो दो जून की रोटी जुगाड़ने में ही सांस फूल जाती है । बेकारी में भी वह अंत्याक्षरी नहीं खेलता । भजन करता है कि अच्छे दिन आयें । यह बात और है कि दो आरजू में और दो इंतजार में कट जाते हैं । ऐसे ही भूखा ब्राह्मण भी ज्यादा भजन करता है । सो चाय के इंतजार में तोताराम ने गुनगुनाने लगा, जो कुछ इस तरह था-
वैसी पीड़ा हमें देना दाता ------ ।
हमने कहा- तू कौनसा ईसा है जो सबके पाप अपने सिर लेता है । कमर और घुटनों में दर्द रहता है । पेंशन की रजाई इस ठंड में लगातार छोटी पड़ती जा रही है । अब कौनसी पीड़ा शेष है जिसके लिए गुहार लगा रहा है ।
बोला- जब दर्द-पीड़ा हद से गुजर जाएंगे तो अपने आप ही दवा बन जाएंगे । लोग पता नहीं क्यों आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री जनऔषधि योजना और मोहल्ला क्लीनिक के चक्कर में पड़े है । बढ़ने दे मर्ज को, अपने आप दवा हो जाएगा । गालिब क्या झूठ कहते हैं- दर्द का हद गुजर जाना है दवा होना ।
और फिर पीड़ा का अपना एक मज़ा है । इसी बहाने सही, चार लोग पूछने तोआते हैं ।
हमने कहा- कोई नहीं आता । तुझे पता होना चाहिए जब नवाब साहब की कुतिया बीमार पड़ी तो हजार लोग पूछने आए लेकिन जब नवाब साहब मरे तो जनाजे में चार जन भी नहीं जुटे । कितने लोग हैं जो आडवाणी जी को मंदिर उद्घाटन में न आने का निमंत्रण मिलने पर उनके घावों पर मरहम लगाने या उनके आँसू पोंछने गए ।
वैसे पीड़ा तो पीड़ा होती है, ऐसी वैसी क्या ? फिर भी तू भगवान से 'वैसी' कैसी पीड़ा मांग रहा है ?
बोला- वैसे तो इस गीत के तीन चरण है लेकिन 'मुखड़ा' सुन-
वैसी पीड़ा मुझे देना दाता
जैसी धनखड़ औ' मोदी को दी है
हमने कहा- तो तू धनखड़ और मोदी जी जैसी पीड़ा चाहता है । उन्हें क्या पीड़ा है ? धनखड़ जी का केवल भाजपा के एजेंडे के तहत बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को परेशान करने के अतिरिक्त देश की राजनीति में ऐसा कौन सा योगदान है जिसके लिए उन्हें उपराष्ट्रपति बनाया गया । राजाओं वाली ज़िंदगी जीते हैं। कोई जिम्मेदारी नहीं। सरकारी खर्चे पर तीर्थयात्रा करते फिरो । और मोदी जी को भी मन की बात करने, विदेश यात्रा करने, नेहरू जी को गाली देने और दिन में दस बार कपड़े बदलने के अलावा कौन सा काम है ?
अगर धनखड़ जी के लिए लोकसभा की ऊंची कुर्सी पर बैठना और मोदी जी के लिए कपड़े बदलना ही पीड़ा है तो हमें तो इस पीड़ा से बहुत ईर्ष्या है । भगवान ऐसी पीड़ा सबको दे ।
बोला- तू यहाँ आडवाणी जी की तरह मजे से बरामदा निर्देशक मण्डल में बैठकर चाय पेलता रहता है । तुझे क्या पता अपमान की पीड़ा क्या होती है । वह भी अपना नहीं जाट जाति का, लोकसभा अध्यक्ष के पद का अपमान !कैसे धनखड़ साहब चार दिन में ही सूखकर मात्र एक सौ किलो के रह गए । ऊपर से लोग मिमिक्री और करने लगे ।
हमने कहा- अब धनखड़ साहब को और क्या चाहिए ? जो मोदी जी मणिपुर की महिलाओं पर वीभत्स अत्याचारों के बावजूद एक शब्द नहीं बोले, एक दिन के लिए मणिपुर नहीं गए, जो मोदी जी अपने घर की पहलवान बेटियों के यौन शोषण और सड़क पर घसीटे जाने पर भी मौन रहे, कुश्ती संघ के अध्यक्ष को बचाते रहे वे मोदी जी धनखड़ साहब की पीड़ा से इतने द्रवित हो गए कि ट्वीट कर आँसू पोंछने लगे । इससे ही कल्पना की जा सकती है कि धनखड़ साहब की पीड़ा कितनी दारुण और राष्ट्रीय महत्व की है ।
ठीक भी है घायल की गति गति घायल जाने । मोदी जी को भी ओ बी सी होने के कारण पिछले बीस वर्षों में जाने कितना अपमान सहना पड़ा है ? सुना है गालियां खा खाकर पोषण प्राप्त करते रहे हैं ।
बोला- इसीलिए मैं धनखड़ साहब और मोदी जी जैसी पीड़ा चाहता हूँ जिससे मेरा वजन भी एक सौ नहीं तो कम से कम पचास किलो तो हो जाए और मोदी जी की तरह चेहरे से नूर टपकने लगे ।
हमने पूछा- तोताराम, धनखड़ साहब की इस पीड़ादायक दशा की अब क्या दिशा होगी ?
बोला- यदि मोदी जी को ऐसी पीड़ाओं का पिछले दस वर्षों की तरह पुरस्कार मिलता रहा तो वे फिर प्रधानमंत्री होंगे और धनखड़ साहब की दिशा उपराष्ट्रपति भवन से राष्ट्रपति भवन की तरफ होगी ।
क्रेन लटकिया हनुमान
तोताराम हमेशा हमारी सरकार के एजेंडे में फिट न हो सकने वाली हर लोकतान्त्रिक बात को सकारात्मक सोच की आड़ में उड़ा देता है । लेकिन आज सदैव से विपरीत बहुत बिफरा हुआ आया, बोला- मास्टर, अब तो एफ आई आर दर्ज करवानी ही पड़ेगी ।
हमने कहा- किस लिबराण्डू, छद्म धर्मनिरपेक्ष, राष्ट्रद्रोही या मिमिक्री कलाकार ने तेरी भावना आहत कर दी ? दूसरे धर्म के किस लड़के ने हिन्दू लड़की को अपने प्रेम के धोखे में फँसाया है ? कौन हमसे पूछे बिना गौमाता को काटने के लिए ले जा रहा है क्योंकि ये लोग दूध तो पीते नहीं और अगर पीते भी हैं तो सकता है छुरी दिखाकर बेचारे किसी बकरे का ही निकाल लेते होंगे । किसने भगवा वस्त्र पहनाकर हिन्दू नायिका को नचा दिया ? बता तो सही, अभी आसाम में एफ आई आर दर्ज करवाकर गुजरात से पकड़वाकर मँगवा लेंगे । किसने राष्ट्र-गौरव हिन्दू जाति का अपमान किया है ? केस दर्ज करवाकर अधिकतम सजा दिला कर एक दिन में सदस्यता खत्म करवाकर शाम को ही बँगला भी खाली करवा लेते हैं । अगर किसी ने किसी को अपना पासवर्ड भी दे दिया है तो सफाई देने का मौका दिए बिना ही सांसदी खत्म कर देंगे । बता तो सही, हमारे अनुज की भावना को किसने आहत किया है ?
तोताराम ने हमारे पैर छूने का अभिनय करते हुए कहा- आदरणीय, आप इकतरफा, बदले की तुच्छ राजनीति की बातें कर रहे हैं । मैं तो इन सबसे परे अपने और मेरे जैसे करोड़ों के आराध्य और आम आदमी के सहज-सरल लोकदेव हनुमान जी की बात कर रहा हूँ जो बिना किसी पक्की सरकारी नौकरी, बिना टीए डीए, इंक्रीमेंट और पेंशन के अपने आराध्य की निष्काम सेवा करने वाले हैं । झूठे-सच्चे मेडिकल बिल उठाने का तो प्रश्न ही नहीं। ऐसे मेरे आराध्य हनुमान का अपमान हुआ है । मेरी भावना भयंकर रूप से आहत हुई है ।
हमने पूछा- क्या किसीने हनुमान जी की उल्टी-सीधी जाति बताई है । क्या किसी ने उनके चरित्र या खानपान पर कोई अशोभनीय टिप्पणी की है ।
बोला- ऐसा कुछ नहीं है । यदि कोई व्यक्तिगत कुछ करता तो वे उसे पूंछ में लपेट कर कभी का पाकिस्तान फेंक चुके होते । यहाँ तो किसी ने उनका वेश बनाकर, हवा में लटक कर एक सामान्य मनुष्य को माला पहनाई है । अब बता, क्या ऐसा करने से मेरे आराध्य का अपमान हुआ कि नहीं ?
हमने कहा- कहीं तू उज्जैन में मध्य प्रदेश के नए नए बने युवा और महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री मोहन यादव के स्वागत में कुछ अनोखा करने के चक्कर में हनुमान जी का वेश बनाकर क्रेन से लटककर उन्हें माला पहनाने वाले उत्साही कार्यकर्ता की बात तो नहीं कर रहा ?
बोला- और किसकी बात करूंगा ? ताजा ताजा घटना तो यही है । अब 22 जनवरी तक पता नहीं, हनुमान ही क्या राम तक को लेकर भी जाने क्या-क्या तमाशे हो सकते हैं । लोगों ने राम,हनुमान सबका मजाक बनाकर रख दिया है । एक चित्र देखा कि नहीं, जिसमें मोदी जी राम के वेश में छोटे से बच्चे को अंगुली पकड़ाकर ले जा रहे हैं जैसे कोई पेरेंट बच्चे को स्कूल छोड़ने जा रहा हो । मोदी जी ने तो एक भाषण में यहाँ तक कह दिया कि उन्होंने राम ही नहीं, करोड़ों लोगों के सिर पर छत का इंतजाम किया है । उनके अनुसार अब तक रामलला 500 साल से टेंट में सर्दी,गरमी, बरसात काट रहे थे ।
एक बार तो हद हो गई जब मोदी जी संत तुकाराम का वेश बनाकर मिमिक्री करते हुए पंढ़रपुर पहुँच गए ।
हमने कहा- तोताराम, अब इस मामले में हम कुछ नहीं कह सकते क्योंकि अब यह मामला आधिकारिक सरकारी रामभक्तों का हो गया है । यदि किसी विपक्षी, धर्मनिरपेक्ष, मुस्लिम आदि ने कहा होता तो बात और थी ।अब तक तो बुलडोज़र चलवा देते । देखो, राम जी के आधिकारिक ठेकेदार चंपत राय ने कहा कि मोदी जी विष्णु हैं ।
राम कृष्ण सब विष्णु के ही तो अवतार हैं इसलिए वे विष्णु अर्थात मोदी जी के अंडर में ही आते हैं।
तुझे पता होना चाहिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन अर्थात कृष्ण हैं, तिस पर यादव हैं तो पक्के ही कृष्ण हैं । तभी तो मोदी जी ने उन्हें 'शिव' के ऊपर वरीयता देते हुए चुना है । वे अपने अवतार को नहीं पहचानेंगे क्या ? ऐसे में हनुमान जी कर्तव्य है कि वे उनको माला पहनाएं । माला ही क्या, यदि वे उनके चरणों में भी बैठ जाते तो कोई भावना आहत होने का मामला नहीं बनता । छतीसगढ़ में तो उन्होंने साक्षात विष्णु को ही ढूँढ़ कर मुख्यमंत्री बना दिया । राजस्थान में भी भजन कीर्तन करने वाले संस्कारी को चुना है । अब इनके बारे में कुछ कहने सुनने की कोई जरूरत नहीं है ।
बोला- फिर भी इस तरह हनुमान जी की मिमिक्री करना क्या ठीक है ?
हमने कहा- इससे क्या फ़र्क पड़ता है ?पहले रामलीला के दिनों में रामलीला के पात्रों की मिमिक्री करना बच्चों का प्रिय खेल हुआ करता था । ऐसे ही पूंछ लगाकर हनुमान बने घूमा करते थे । इससे क्या होता है ?
बोला- और अगर रस्सी टूट जाती और हनुमान जी गिर पड़ते तो ?
हमने कहा- तो क्या हुआ खेल तमाशे में ऐसा हो ही जाता है । हमें याद है आज से साठ-सत्तर साल पहले हनुमान जी का आकाश मार्ग से संजीवनी बूटी लाना रामलीला का एक बहुत रोमांचक प्रसंग हुआ करता था । जिस नोहरे, बाड़े या मैदान में रामलीला होती थी उसके पास की किसी हवेली की छत से एक रस्सा बांध दिया जाता था और हनुमान जी उस पर फिसलते हुए आया करते थे ।
एक बार किसी ने रस्सी काट दी तो हनुमान जी गिर पड़े । खैरियत हुई कि ज्यादा ऊंचाई से नहीं गिरे ।
जैसे ही हनुमान गिरे, रस्से के सिरे के पास बैठे भक्त ने डायलाक मारा- हे हनुमान, इतना विलंब कैसे हुआ ?
हनुमान जी गुस्से में थे, बोले-साले, विलंब की बात बाद में । पहले यह बता रस्सी किसने काटी? कहते हुए हनुमान जी ने उसे कसकर एक गदा जमा दी ।
तू तो मस्त रह । हनुमान जी की चिंता मत कर । ये राजनीतिक हनुमान हैं । आज ये क्रेन से लटक कर माला पहना रहे हैं और कल को जब स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा तो ये लंका की जगह अयोध्या को फूँक देंगे ।
जब आज की भाजपा और तब की जनसंघ 1977 में जनता पार्टी बनकर सरकार में शामिल हुई थी तब खुद को चरण सिंह का हनुमान कहने वाले राजनारायण ने क्या किया था ? याद है, ना ?
जब हम पोरबंदर में थे तो वहाँ के 'रोकड़िया हनुमान' के यहाँ हर मंगलवार को जाया करते थे । लेकिन वह युग और था । उनका इस 'क्रेन लटकिया हनुमान' की तरह 'रोकड़ा' से कोई संबंध नहीं था । उस 'रोकड़' का मतलब था- तत्काल फल देने वाला । नकद । कोई पंद्रह लाख जैसा लटकाऊ, उल्लू बनाऊ वादा नहीं ।