May 31, 2023

मोदी जी पर एफआईआर


मोदी जी पर एफआईआर 


आज तोताराम ने आते ही न्यूज ब्रेक की- आज मेरी आत्मा आहत हुई है । 

हमने पूछा- क्यों, क्या स्मृति ईरानी की तरह कहीं तूने भी प्रियंका गांधी को नमाज पढ़ते देख लिया क्या ?

बोला- मेरी आत्मा इतनी भी अंधभक्त नहीं हुई है । नजदीक में राजस्थान में कोई चुनाव भी नहीं है । और फिर मैंने तो पढ़ा था कि रामकृष्ण परमहंस ने भी इस्लाम, ईसाई आदि धर्मों के कर्मकांड करके देख लिया था और बताया  कि धर्मों में कोई अंतर नहीं है । 

हमने फिर कुरेदा- तो क्या पहलवान बेटियों के नई संसद की ओर मार्च करने से संसद की दिव्य गरिमा तो धूमिल नहीं हो गई क्योंकि अब संसद लौकिक तो रही नहीं, राजदंड ने उसे अलौकिक बना दिया है । हो सकता है बेटियों द्वारा अपने मेडल गंगा में प्रवाहित करने से गंगा के प्रदूषित या अपवित्र होने की आशंका से तेरी आत्मा आहत हो गई ? 

बोला- उसकी कोई फिक्र नहीं है क्योंकि ब्रजभूषण शरण का मतलब समझता है ? ब्रज के भूषण कृष्ण की शरण में गए भक्तों में श्रेष्ठ । जैसे महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन को बचाया, जिताया वैसे ही अब लाखों साधु-संत उसके पक्ष में लामबंद होकर उसे बचा लेंगे । 

हमने फिर पूछा- तो फिर कहीं वेश भूषा से किसी को पहचानने, गोली मारने, बहिष्कार करने,  पाकिस्तान भेजने के नारे से तो तेरी लोकतान्त्रिक और धर्मनिरपेक्ष आत्मा आहत नहीं हो गई । 

बोला- ऐसे सद्भावपूर्ण नारों से तो मुसलमानों की आत्मा आहत होगी लेकिन शुक्र है उनके आत्मा होती ही नहीं ।   

हमने हताश होकर पूछा- तो हे तात, तोताराम हमें स्पष्ट कर कि तेरी यह आत्मा किसने आहत की ? 

बोला- क्या बताऊँ । हमें तो अपनों लूटा गैरों में कहाँ दम था । 

हमारी जिज्ञासा बढ़ी, पूछा- ऐसी बात ? तो अब नाम भी बता ही दे उस जालिम का । 

बोला- और कौन हो सकता है । खुद मोदी जी ने आहत की है मेरी भावना । 

हमने कहा- ऐसा कैसे हो सकता है ? मोदी जी ने तो सबकी, विशेषरूप से हिंदुओं की, आत्मा को गदगद करने के लिए ही पूरे नौ वर्ष लगा दिए । तीन तलाक, धारा 370, राम मंदिर, ज्ञानवापी में शिवलिंग, काशी कॉरीडोर, महाकाल कॉरीडोर, पटेल की मूर्ति, आतंकवाद और भ्रष्टाचार की कमर तोड़ने के लिए नोटबंदी और 2000 का नोट जारी और फिर भ्रष्टाचार और आतंकवाद की कमर तोड़ने के लिए 2000 के नोट को वापिस लेना, नई संसद, नेहरू की वाकिंग स्टिक बना दिए सेंगोल को ढूंढकर उसे धारण करके देश को उसकी समाप्त हो चुकी दिव्यता और अलौकिकता लौटाना क्या कोई छोटे काम हैं ? 

अब तेरी आत्मा की शांति के लिए और क्या करें ? कारण क्या है तेरी आत्मा के आहत होने का । 

बोला- तुझे पता है संसद में अखंड भारत का जो नक्शा लगाया गया है । बस, उसी से मेरी आत्मा आहत हुई है ।   

हमने कहा- यह तो अच्छी बात , तुझे तो खुश होना चाहिए । उसके अनुसार अब भारत हजारों साल पहले कभी किसी न किसी रूप में भारत से संबंधित रह चुके देशों को वापिस ले लेगा । भारत अब विश्वगुरु ही नहीं विश्व का सबसे बड़ा देश 'विश्वासम्राट' भी बन जाएगा । 

बोला- लेकिन इसमें मोदी जी ने एक बहुत बड़ी भूल कर दी है । अब तो अखंड भारत रिकार्ड पर आगया । अब पता नहीं, इसमें कोई चेंज भी हो सकता है या नहीं ? अरे,  अहिरावण पाताल ( अमरीका ) में रहता था । हनुमान जी का बेटा मकरध्वज उसका रक्षामंत्री था। अहिरावण को मारकर हनुमान जी ने पाताल (अमरीका ) का राज अपने बेटे को दे दिया तो अमरीका अखंड भारत का अंग हुआ कि नहीं ? कुछ वर्षों पहले किसी पारीक जी ने सेन फ्रांसिस्को में एक जगह सड़क पर शिवलिंग भी देख लिया था । दक्षिणी अमरीका की 'मय सभ्यता' तो मेरठ के मय दानव की थी ही । अब जरा सी लापरवाही से अखंड भारत के दो दो महाद्वीप गाँव दिए  । 

जी करता है मोदी जी पर एफआईआर दर्ज करवा दूँ । 

हमने कहा- यह राहुल गांधी पर एफआईआर दर्ज करवाने जितना आसान नहीं है । अरे, जब बलात्कार और पॉक्सो के आरोपी पर ही एफआईआर दर्ज करवाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को आदेश देना पड़ता है तो मोदी जी पर एफआईआर दर्ज करवाने के लिए तो खुद भगवान को भी पसीने आ जाएंगे । 

ऐसी बात भी मुंह से मत निकाल । तेरी तो गुमशुदा की रिपोर्ट भी नहीं लिखी जाएगी ? कहीं भी पुलिस लावारिस लाश बताकर हाथरस वाली पीडिताओं की तरह आधी रात को गन्ने के खेत में केरिसिन डालकर जला देगी । 



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May 28, 2023

बरामदा संसद में लट्ठ-स्थापना


2023-05-28  

बरामदा संसद में लट्ठ-स्थापना 


आज तोताराम देर से आया । ठीक आठ बजे । 

हमने पूछा- आज देर से कैसे आया ? हमने तो सोच लिया था कि शायद एक तिहाई सांसदों, पूर्व दलित राष्ट्रपति, वर्तमान आदिवासी महिला राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति आदि के उद्घाटन समारोह में उपस्थित न होने के कारण बहुत सी सीटें खाली पड़ी होंगी तो उन्हें भरने के लिए मोदी जी ने तुझे बुला लिया होगा । इसलिए चाय के लिए तेरा अधिक इंतजार नहीं किया । 

बोला- चला तो जाता लेकिन महिने के अंतिम सप्ताह में इतने पैसे बचते ही कहाँ हैं कि दिल्ली-दर्शन कर आऊँ । 

हमने कहा- लेकिन तेरा माथा तो चंदन से ऐसे पुता हुआ है जैसे तू ही उद्घाटन में यजमान के रूप में बैठा था । 

बोला- वहाँ नहीं गया तो क्या, सुबह से ही कार्यक्रम से ऑनलाइन जुड़ा तो हुआ था ।मैंने भी वहाँ उपस्थित सभी भद्र जनों की तरह स्नान, तिलक-छापा भी उन सबके के साथ साथ ही कर लिए । जैसे दिल्ली में ध्वजारोहण होने के बाद ही देश के अन्य भागों में स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस के ध्वजारोहण होते हैं । उसी परंपरा के तहत लोकतंत्र की प्रतीक संसद में राजदंड की स्थापना का इंतजार कर रहा था ।जैसे ही वहाँ दंड स्थापित हुआ, अपनी इस 'बरामदा संसद' में यह 'राजदंड' स्थापित करने के लिए चला आया । 


तोताराम ने हमारे हाथ में बेल के पेड़ का एक टेढ़ा-मेढ़ा, पाँच फुट का डंडा थमाते हुए कहा- आदरणीय, इस राजदंड को स्वीकार करें और इसके बल पर 'बरामदा संसद' पर निर्विघ्न राज करें । 

हमने कहा- तोताराम, देश में लोकतंत्र है इसमें न कोई राजा होता है और न कोई प्रजा । सभी इस देश के नागरिक हैं और उन सबको सभी प्रकार की भिन्नताओं के बावजूद समान अधिकार प्राप्त हैं । संविधान और कानून की दृष्टि में सब समान हैं ।  

बोला- ये सब कहने की बातें हैं । संसद में स्पष्ट बहुमत वाला प्रधानमंत्री कुछ भी कर सकता है ।उसकी सनक ही कानून होती है ।अध्यादेश लाकर ही किसी भी चुनी हुई राज्य सरकार के अधिकारों पर डाका डाल सकता है । जरा सी बात पर किसी की भी सदस्यता छीन सकता है । किसी को भी जेल में डलवा सकता है और मरने तक जमानत भी नहीं होने देता । आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन करके 'जय बजरंग बली' बोलकर ईवीएम का बटन दबाने का आदेश दे सकता है । 

हमने कहा- लेकिन यह तीन रुपए की डंडी थमाकर क्यों हमारा मज़ाक उड़ा रहा है । राजदंड तो चांदी का होता है सोने का पानी चढ़ा । देखा नहीं, मोदी जी के हाथ में सेंगोल ? कैसे चमक रहा था । चमड़े, कपड़े या रबर के जूते से ताकतवर आज भी चांदी का जूता होता है । किसी को भी मारो तो दल बदल लेता है।चांदी के जूते जेब में हों तो  बिना चुनाव जीते ही, बनी बनाई संसद ही खरीद लो । 




बोला- मास्टर, ऐसी बात नहीं है ।प्रारम्भिक दंड (लाठियाँ) सोने-चांदी के नहीं, किसी वृक्ष की शाखा के ही होते हैं ।सौ साल तक लकड़ी के दंड धारण करके तपस्या करनी होती है ।तब कहीं जाकर राजदंड हाथ आता है ।  



इस कॉलोनी में लोग घर के सामने पड़ी मिट्टी तक तसले में भर ले जाते हैं । कौन कितने दिन लगा रहने देना इस बरामदे में चांदी का राजदंड । और फिर निर्देशक मण्डल में पटकी गई इस  'बरामद संसद'  की औकात ही क्या है ? संसद के उद्घाटन तक में नहीं बुलाया जाता । 

हमने कहा- संस्कारी लोगों की संस्कारी पार्टी का यह हाल ? लोकतंत्र सहमति, संवाद, संवेदना, समावेशन, समायोजन और समता का नाम है । यहाँ राजा-प्रजा और मालिक-गुलाम का रिश्ता नहीं होता जो डंडे से डराकर शासन किया जाए । 

बोला- मास्टर, यह सब व्यक्ति, उसकी नीयत, परवरिश, शिक्षा और मानसिकता पर निर्भर करता है । जीवन में सब कुछ लिखित ही नहीं, बहुत कुछ अलिखित भी होता है । कोई जन्मजात राजा भी अपने को जनता का सेवक मानकर चलता है तो कोई लोकतंत्र में कुछ समय के लिए वार्ड मेम्बर चुने जाने पर ही खुद को खुदा, देश का बाप, हिटलर और कंस  समझने लगता है । 

चल छोड़ यह प्रकरण । पोती को बुला । कम से कम इसे तू राजदंड या धर्मदण्ड जो भी समझे, ग्रहण करते हुए  एक फ़ोटो तो हो जाए । न सही प्रधान मंत्री, बरामदा संसद का आजीवन अध्यक्ष तो है ही । मैं भी तेरे साथ ओम  बिरला की तरह चिपक लूँगा । 



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May 27, 2023

नया भवन, नई दिशा और आज की तारीख


नया भवन, नई दिशा  और आज की तारीख 


आज 27 मई है । आज ही के दिन 1964 में हमारा बीए का रिजल्ट आया था । बुधवार का दिन था । उन दिनों गाँव में ले देकर कोई पाँच-सात अखबार आते थे और उन्हें भी लोगों तक पहुंचते-पहुंचते पूर्वाह्न के दस-ग्यारह बज जाते थे । उन दिनों पूरे राजस्थान में एक ही यूनिवर्सिटी हुआ करती थी । उस साल पूरे प्रांत में कोई 2 हजार छात्र बीए में बैठे थे । उन दिनों पास हो जाना ही बड़ी बात हुआ करती थी। आज की तरह नहीं कि 100 में से 100 अंक मिल जाएँ तो भी मनचाहे कॉलेज में प्रवेश की कोई गारंटी नहीं ।घर वाले कहते हैं 100 में 100 आगए तो क्या बड़ी बात हो गई । कम से कम  सौ से दो-पाँच तो ऊपर होते । पूरे विश्वविद्यालय में केवल दो प्रथम श्रेणी में थे । हमें सेकंड डिवीजन मिल गई, बहुत बड़ी बात थी। लेकिन रिजल्ट के तीन चार घंटे बाद ही किसी ने आकर बताया कि नेहरू जी का निधन हो गया है। सारी खुश पर पानी पड़ गया ।

 वैसे हम बीए 1962 में ही कर सकते थे लेकिन 1960 में इंटर करते ही सरकारी छात्रवृत्ति पर गांधी जी वाली बेसिक  ट्रेनिंग का अवसर और तत्पश्चात मास्टरी मिल गई। मास्टरी करते हुए जब प्रबंधन की ओर से बाहरी परीक्षार्थी के रूप में परीक्षा देने की स्वीकृति मिली तो कहीं 1964 में  में बीए करना संभव हुआ । 

पता नहीं, आज भी हमें अपना बीए का रिजल्ट नेहरू जी का निधन दिवस होने से बहुत मनहूस लगता है । 

कल 28 मई को मोदी जी की 'मन की बात' का 101 वीं कड़ी का प्रसारण है। कोई नई बात नहीं । जब तक मोदी जी हैं यह 'मन की बात' तो मृत्यु की तरह एक कटु सत्य है । हो सकता है कि उनके बाद कोई सच्चा राष्ट्रभक्त उत्तराधिकारी आ जाएगा तो हो सकता वह ' मन की बात' का पुनः प्रसारण भी शुरू करवा दे जैसे कोरोना के कष्टों से ध्यान बँटाने के लिए 'रामायण' सीरियल का पुनः प्रसारण करवाया गया था । 

लेकिन इस 28 मई के साथ भिन्न संदर्भों वाली कई नई बातें जुड़ रही हैं । 

28 मई स्वघोषित 'वीर' सावरकर का जन्म दिन है जो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते थे । क्या दिन चुना है ! लोकतंत्र के पुरोधा नेहरू जी के अंतिम संस्कार का दिन और  हिन्दू राष्ट्र का सिद्धांत देने वाले व्यक्ति के जन्म दिन पर संसद के नए भवन में प्रवेश । लोकतंत्र का अंतिम संस्कार करके बहुसंख्यकवादी सवर्ण  सत्ता की स्थापना का उद्घोष । 

शुभकामना के बतौर 15 अगस्त 1947  को दक्षिण के कुछ उत्साही लोगों द्वारा दिल्ली आकर सौंपा गया एक उपहार- सेंगोल जो सत्ता हस्तांतरण नहीं बल्कि सुशासन पर प्रतीक है, जैसे अशोक का धर्म-चक्र । 

28 मई को किसी सत्ता का हस्तांतरण नहीं हो रहा है । एक नए भवन में प्रवेश हो रहा है । बदला तो कुछ भी नहीं है ।नीयत के सिवा । वही संविधान है, वही देश और वही लोकतंत्र है । फिर 'सेंगोल' की आड़ में राजदंड कहाँ से आ रहा है । 

अब ऐसी चीजों की जगह अजायबघरों में है जैसे पिरामिडों में रखी ममी ।तभी सेंगोल को नेहरू जी ने म्यूजियम में रखवा दिया था । ये किसी घर में सजाकर रखने या शोभा की चीजें नहीं हैं। अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हैं कि ऐसी व्यक्ति, रूढ़ि या मूर्ति पूजा की कोई गुंजाइश ही न रहे । इनसे कोई प्रेरणा भी क्या ले सकता है ? यह वैसे ही छेड़खानी या कुंठा है जैसे किसी के घर को विवादास्पद बनाने के लिए उसके नीचे शिवलिंग के दर्शन कर लेना । 

राजेन्द्र बाबू ने लोकतंत्र की बात करते हुए एक बार कहा था कि लोकतंत्र की सफलता इस बात में है कि सरकार निरंतर कमजोर होती जाए और जनता सशक्त । आज क्या हो रहा है, समझ सब रहे हैं । 

राम अपने जीवन की उत्तरावस्था में सरयू के तट पर इकट्ठे हुए अयोध्यावासियों से कहते हैं -

जो अनीति कछु भाखों भाई 

तो मोहि  बरजेहु भय बिसराई 

और अब इस अमृत वर्ष में 'जय जय' के अतिरिक्त कुछ बोल कर तो देखिए । प्रश्न उठाकर तो देखिए । 

अब कोई 'भारत के लोग' नहीं  'राजा' होगा जिसके हाथ में दंड होगा । 

भागवत जी ने भी तो एक बार कहा था- हम अहिंसा की बात करेंगे लेकिन हाथ में लाठी (दंड) लेकर । पता नहीं बुद्ध और महावीर कैसे बिना दंड के ही अहिंसा धर्म का निर्वाह कर गए ?  लाठी किसी भीतरी भय का प्रतीक तो नहीं ? 

राममंदिर और संसद भवन के शिलान्यास में दलित राष्ट्रपति  रामनाथ कोविन्द को न बुलाया जाना और अब आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को दर्शक के रूप में भी नहीं बुलाया जाना एक मनुवादी सवर्ण कुंठा का द्योतक है । वरना सोमनाथ मंदिर के शिलान्यास पर तो तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू गए थे । हो सकता है उस समय के प्रधान मंत्री इतने आत्ममुग्ध और धार्मिक राजनीति करने वाले नहीं थे और राजेन्द्र बाबू ब्राह्मणों के पैर धोने वाले कट्टर सनातनी थे । 





नए भवन में जिस अहंकार और आत्ममुग्धता से प्रवेश किया जा रहा है वह लोकतंत्र की छाती में राजतन्त्र और सवर्ण बहुसंख्यकवाद का भाला, अमित शाह का 'सेंगोल' भोंकने जैसा है। एक तीर से और भी कई सतही और रूढ़िवादी  निशाने लगाने हैं । तमिल में सवर्ण राष्ट्रवाद की घुसपैठ , लोकतंत्र की जगह राजतन्त्र का संकेत , गौरव के नाम पर संविधान की हत्या ।  प्रगति के पैर पीछे खींचने का उपक्रम । 

हो सकता है, स्थान बदल जाने से व्यक्ति बदल जाता है । उसकी दृष्टि और दिशा बदल जाती हो जैसे 'नशा' कहानी में अपने एक जागीरदार मित्र की कृपा से  इंटर क्लास में बैठते ही प्रेमचंद की दृष्टि और दिशा बदल गई ।और उन्होंने सामान्य वस्त्रों में उस डिब्बे में आने वाले सज्जन को बड़ी हिकारत से देखा और झिड़क दिया । जब उन सज्जन ने कहा कि मुझे पता है कि यह इंटर क्लास है। मेरे पास इंटर क्लास का टिकट है । तो प्रेमचंद जी का नशा उतर गया । 

कोई भी नशा बहुत देर तक नहीं रहता । और जब टूटता है तब बहुत तकलीफ होती है । 

-रमेश जोशी 

27 मई 2023  


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May 7, 2023

महंगाई राहत कैंप की यात्रा


महंगाई राहत कैंप की यात्रा 

भाई साहब के पोते के यज्ञोपवीत संस्कार में शामिल होने के लिए का साहस जुटाया ।दोनों तरफ की यात्रा कोई १४० किलोमीटर की ही थी । सुबह जाकर शाम को आ गए लेकिन हमारे थकने के लिए तो इतना ही काफी है । कौन हमारी छाती छप्पन इंच की है । और छप्पन इंच की हो भी तो बुढ़ापा तो सभी को आता है जो खुद एक लाइलाज बीमारी है । बूढ़े हाथी की कौए आँखें निकालकर ले जाते हैं । 

थकने के साथ साथ पतले दस्त भी और हल्का बुखार भी । जो कुछ खाकर आए थे उसके साथ पहले का जमा भी  निकल गया । चाय क्या, पानी पीने से भी डर लगता है । कुछ भी पिया तो चलो शौचालय की तीर्थयात्रा पर ।  पड़े थे खाट पर जैसे आदर्श चुनाव संहिता लागू होने पर रैली और रोड़ शो का शौकीन कोई नेता । 

तोताराम कौन पूछकर आता है । किसी मंदिर या भंडारे का चन्दा या वोट मांगने वाला भी कौन पूछकर आता है ।अपराधियों की तरह घर को संसद समझकर घुस आता है । 

बोला- उठ । 

हमने कहा- इसी गति से दस्तों की विकीलीक्स  होती रही तो उठ भी जाएंगे । 

बोला- शुभ, शुभ बोल । अभी आडवाणी जी  भारतरत्न के इंतजार में बैठे हैं । 

जैसे मंचों से रिटायर कर दिए गए कवि को कविसम्मेलन का निमंत्रण या निर्देशक मण्डल में पटक दिए गए नेता को चुनाव का टिकट मिल जाए तो सुनते ही सफेद बाल काले हो जाते हैं, पुराना सिल्क का कुर्ता निकल आता है वैसे ही हम भी उठ बैठे और पूछा- बात, उठकर चलना कहाँ है ?

बोला- राजस्थान सरकार ने 'नगर परिषद में महंगाई राहत कैंप' लगाया है । 

हमने कहा- जैसे सरकार बिना पूछे ही गैस के दाम बढ़ा देती है वैसे ही सरकार घटा दे चीजों के दाम और मिल गई राहत । कैंप की क्या जरूरत है ?

बोला- नहीं, वहाँ जाकर रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ेगा, कुछ कागजात दिखाने होंगे और उसके बाद वे लोग जाँचकर बताएंगे कि तुम्हें कोई राहत मिलेगी या नहीं । 

हमने कहा- इस भागमभाग और प्रक्रिया पूर्ति में हम शहीद हो गए तो ? हम तो बिना सब कुछ स्पष्ट हुए नहीं जाएंगे । 

बोला- जब जिला कलेक्टर ने रजिस्ट्रेशन करवाया है तो तेरी पात्रता में क्या कमी हो सकती है । कहाँ वे क्लास वन ऑफिसर हैं और कहाँ तू एक रिटायर्ड मास्टर । 

हमने कहा- क्या पता, हमारी भी वही हालत हो जो १५ लाख के जुमले से बेवकूफ बनी जनता की हो रही या जैसे विवाह के झांसे में यौन शोषण करवाती रहने वाली महिला की । 

चुनावी वर्ष है, हम किसी सरकारी विज्ञापन का ऐसे ही विश्वास नहीं कर सकते । क्या पता, जिसे भक्तों को बजरंगबाली का अपमान कहकर भड़काया जा रहा हो वह किसी बाबू बजरंगी का मामला हो ।  

तभी एक पड़ोसी निकले । ठीकठाक सरकारी अधिकारी हैं । हमने कहा- शेखावत जी, कभी महंगाई राहत लेने जाओ तो हम दोनों को भी ले चलना । 

बोले- अंकल, सब बी पी एल वालों के लिए हैं जिन्हें पहले से यह सब कुछ मिल रहा है । हमें तो केवल बिजली बिल में १०० यूनिट का लाभ मिलेगा । वह भी कब तक मिलता रहेगा, यह नहीं कहा जा सकता । क्या पता वैसे ही बंद हो जाए जैसे चुनाव जीतने के बाद गैस सबसीडी और आप बुजुर्गों की रेल किराये में छूट। 

हमने कहा- तोताराम, अब जब तेरा मन हो चले जाना । हमें जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि बिजली का कनेक्शन हमारे नहीं, बेटे के नाम से है । 


-रमेश जोशी 

सीकर 

९४६०१-५५७०० 

भाई साहब के पोते के यज्ञोपवीत संस्कार में शामिल होने के लिए का साहस जुटाया ।दोनों तरफ की यात्रा कोई १४० किलोमीटर की ही थी । सुबह जाकर शाम को आ गए लेकिन हमारे थकने के लिए तो इतना ही काफी है । कौन हमारी छाती छप्पन इंच की है । और छप्पन इंच की हो भी तो बुढ़ापा तो सभी को आता है जो खुद एक लाइलाज बीमारी है । बूढ़े हाथी की कौए आँखें निकालकर ले जाते हैं । 

थकने के साथ साथ पतले दस्त भी और हल्का बुखार भी । जो कुछ खाकर आए थे उसके साथ पहले का जमा भी  निकल गया । चाय क्या, पानी पीने से भी डर लगता है । कुछ भी पिया तो चलो शौचालय की तीर्थयात्रा पर ।  पड़े थे खाट पर जैसे आदर्श चुनाव संहिता लागू होने पर रैली और रोड़ शो का शौकीन कोई नेता । 

तोताराम कौन पूछकर आता है । किसी मंदिर या भंडारे का चन्दा या वोट मांगने वाला भी कौन पूछकर आता है ।अपराधियों की तरह घर को संसद समझकर घुस आता है । 

बोला- उठ । 

हमने कहा- इसी गति से दस्तों की विकीलीक्स  होती रही तो उठ भी जाएंगे । 

बोला- शुभ, शुभ बोल । अभी आडवाणी जी  भारतरत्न के इंतजार में बैठे हैं । 

जैसे मंचों से रिटायर कर दिए गए कवि को कविसम्मेलन का निमंत्रण या निर्देशक मण्डल में पटक दिए गए नेता को चुनाव का टिकट मिल जाए तो सुनते ही सफेद बाल काले हो जाते हैं, पुराना सिल्क का कुर्ता निकल आता है वैसे ही हम भी उठ बैठे और पूछा- बात, उठकर चलना कहाँ है ?

बोला- राजस्थान सरकार ने 'नगर परिषद में महंगाई राहत कैंप' लगाया है । 

हमने कहा- जैसे सरकार बिना पूछे ही गैस के दाम बढ़ा देती है वैसे ही सरकार घटा दे चीजों के दाम और मिल गई राहत । कैंप की क्या जरूरत है ?

बोला- नहीं, वहाँ जाकर रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ेगा, कुछ कागजात दिखाने होंगे और उसके बाद वे लोग जाँचकर बताएंगे कि तुम्हें कोई राहत मिलेगी या नहीं । 

हमने कहा- इस भागमभाग और प्रक्रिया पूर्ति में हम शहीद हो गए तो ? हम तो बिना सब कुछ स्पष्ट हुए नहीं जाएंगे । 

बोला- जब जिला कलेक्टर ने रजिस्ट्रेशन करवाया है तो तेरी पात्रता में क्या कमी हो सकती है । कहाँ वे क्लास वन ऑफिसर हैं और कहाँ तू एक रिटायर्ड मास्टर । 

हमने कहा- क्या पता, हमारी भी वही हालत हो जो १५ लाख के जुमले से बेवकूफ बनी जनता की हो रही या जैसे विवाह के झांसे में यौन शोषण करवाती रहने वाली महिला की । 

चुनावी वर्ष है, हम किसी सरकारी विज्ञापन का ऐसे ही विश्वास नहीं कर सकते । क्या पता, जिसे भक्तों को बजरंगबाली का अपमान कहकर भड़काया जा रहा हो वह किसी बाबू बजरंगी का मामला हो ।  

तभी एक पड़ोसी निकले । ठीकठाक सरकारी अधिकारी हैं । हमने कहा- शेखावत जी, कभी महंगाई राहत लेने जाओ तो हम दोनों को भी ले चलना । 

बोले- अंकल, सब बी पी एल वालों के लिए हैं जिन्हें पहले से यह सब कुछ मिल रहा है । हमें तो केवल बिजली बिल में १०० यूनिट का लाभ मिलेगा । वह भी कब तक मिलता रहेगा, यह नहीं कहा जा सकता । क्या पता वैसे ही बंद हो जाए जैसे चुनाव जीतने के बाद गैस सबसीडी और आप बुजुर्गों की रेल किराये में छूट। 

हमने कहा- तोताराम, अब जब तेरा मन हो चले जाना । हमें जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि बिजली का कनेक्शन हमारे नहीं, बेटे के नाम से है । 


 


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