Feb 16, 2024

पहले डंका, अब परचम

पहले डंका, अब परचम 


हमारा घर धार्मिक रूप से बहुत सट्रेजेटिक पॉइंट पर है । दक्षिण में जयपुर रोड़ जहां एक हनुमान और शिव मंदिर है, थोड़ा और दक्षिण में चलें तो इंडस्ट्रियल एरिया की मस्जिद और मंदिर भी हैं । पश्चिम में मंडी के मंदिर-मस्जिद और पूर्व में एक भक्त द्वारा बनवाया गया निजी मंदिर । चारों तरफ सूर्योदय से पहले ही परलोक सुधारने वाली पुण्य ध्वनियाँ मिलकर एक ऐसा कोलाज रचती हैं कि कुछ समझ में नहीं आता । 

वैसे भी धर्म समझने की कम और  अंधानुकरण की चीज अधिक है ।  

इन सब के बीच एक पतली सी आवाज सुनाई दी जैसे किसी कव्वाली में कोई एक अलग सा आलाप । 

लगता है तोताराम आ गया । 

 अंदर घुसते हो बोला- चल, छत पर चलते हैं । 

हमने पूछा- क्यों ? हम कोई इमाम हैं जो देखकर बताएंगे कि ईद का चाँद दिखाई दिया या नहीं । क्या किसी का करवा चौथा का व्रत खुलवाने की उतावली में सबसे पहले चाँद दिख जाने की सूचना देनी है । 

बोला- जब मोदी जी ने दीये जलाने, थाली बजाने का आदेश दिया था तब तो नहीं पूछा कि यह अवैज्ञानिक नाटक क्यों करें । ठीक है मैं प्रधान सेवक नहीं हूँ लेकिन मोदी जी से साढ़े सात साल बड़ा हूँ । महान हिन्दू संस्कृति का उत्तराधिकारी संस्कारी ब्राह्मण हूँ । ऐसे ही कोई बकवास थोड़े कर रहा हूँ । 

अब हम कोई बात बढ़ाए बिना तोताराम के साथ छत पर चले गए । तोताराम ने  मंडी की दीवार के पार इशारा करते हुए पूछा- इधर कौनसी दिशा है ?

हमने कहा- पश्चिम । 

तोताराम ने फिर पूछा- क्या दिखाई दे रहा है ?

हमने कहा- सब कुछ दिखाई दे रहा है , इजराइली बबूल, पॉलिथीन की थैलियाँ, सड़ती सब्जियां, ओने-कोने गर्दन झुकाए खुले में शौच करते लोग और शीतल-मंद-सुगंध पवन जहँ बैठे हैं सब्जी वाले । 

बोला- और उस दुकान की छत पर ?

हमने कहा- एक भगवा झण्डा । 

बोला- गुड । तेरी दृष्टि इस बुढ़ापे में भी ठीक है । और अब ध्यान से सुनकर बात क्या सुनाई दे रहा है ?  

हमने कहा- दलालों की आवाजें सुनाई दे रही हैं- पैंसठ रूपिया, सत्तर रुपिया , सत्तर रुपिया , एक दो तीन । और मंडी के मस्जिद मंदिर से उठता  अजान, भजन आरती और नगाड़ों का मिला जुला शोर जिसमें कुछ समझ नहीं आ रहा है । 

बोला- ठीक है । अब सुन, इसी दिशा में मक्का-मदीना और आबूधाबी हैं । मुसलमान इसी दिशा की ओर मुँह करके नमाज पढ़ते हैं । ये जो नगाड़े की आवाज है वह मोदी जी का डंका बज रहा है और यह जो भगवा झण्डा देख रहा है वह हिन्दू परचम है । हिंदुओं के लिए दोहरी खुशी का अवसर है । अयोध्या के बाद अब एक मुस्लिम देश में मंदिर का उद्घाटन । 

हमने कहा- तोताराम, अपनी भाषा और उसका स्वर ठीक कर । यह कोई इस्लाम को पराजित करके हिन्दू धर्म की ध्वजा लहराने जैसा मामला नहीं है । और न ही अयोध्या जैसा विवादास्पद । तू ये सब हिन्दू-मुस्लिम घृणा फैलाने वाले गोदी मीडिया की हैड लाइनें पढ़ रहा है ।ऐसा लिखने , बोलने और फैलाने वाले बहुत घटिया और खतरनाक लोग हैं । ऐसे लोग इस देश की हजारों साल से चली आ रही सद्भावना को बिगाड़कर चुनाव जीतना चाहते हैं । उन्हें पता नहीं चुनाव जीतने से बड़ी बात है देश की सुख-शांति । एक बार दिलों में घृणा भर जाने के बाद उसे निकालना सदियों तक संभव नहीं होता । नहीं रोका गया तो जो काम अंग्रेज नहीं कर सके वह ये टुच्चे और कमीने लोग कर देंगे । 

तुझे पता होना चाहिए यह मंदिर कोई मस्जिद ढहाकर, किसी को पराजित करके नहीं बनाया जा रहा है । इसके लिए वहाँ के राष्ट्रपति ने यह जमीन खुशी से धर्मिक सद्भाव के तहत  ‘सूरज के चमकने तक के लिए’ दान में दी है । इसका डिजाइन एक ईसाई ने तैयार किया है ।   

इस भाव और अवसर की पवित्रता को छोटा मत कर । नेता आते-जाते रहेंगे लेकिन इंसानी सद्भाव की यह मिसाल हजारों साल सलामत रहेगी । 

हो सके तो अमन और भाईचारे की दुआ मांग । 

तोताराम ने जोर से कहा- आमीन । 

हमने कहा- तो इस खुशी में इस शनिवार को हनुमान जी को एक किलो पेड़ों का प्रसाद चढ़ाएंगे और तेरे दो पेड़े पक्के । 

बोला- इसके लिए और भी जोर से आमीन । 

 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 7, 2024

आत्मनिर्भरता का पहला पाठ


आत्मनिर्भरता का पहला पाठ 


आजकल लोग अपनी और अपने मन की बात नहीं करते बल्कि दूसरों के मन की बातें इधर-उधर फेंकते रहते हैं । इनमें न तो फेंकने वाले का ध्यान होता है और न ही ज्ञान । अगर आपने सहानुभूति प्राप्त करने की आशा से किसी को मेसेज किया कि मुझे आज लूज मोशन हो रहे हैं तो उत्तर आ सकता है- वंडरफुल ।अब बताइए इसमें क्या वंडरफुल है ।किसी को भी हो सकती है यह व्याधि । किसी को अधिक मात्रा में पौष्टिक पदार्थ खाने से तो किसी  निर्धन को भूखे पेट ज्यादा पानी पी लेने से । हम तो साधारण आदमी हैं भगवान बुद्ध को भी कहते हैं अंत काल में पेचिश हो गई थी जिसमें बार बार जाना पड़े और उपलब्धि लगभग शून्य । निष्कासित पदार्थ की मात्रा की अधिकता की अपेक्षा बार बार शौचालय जाने आने में शक्ति के अपव्यय से घुटने टूट जाते हैं । 

हम पतले दस्त को  ‘लूज मोशन’  लिख रहे हैं क्योंकि लेखन में अश्लील को श्लील बनाने के लिए या तो संस्कृत के शुद्ध शब्द चाहियें या फिर अंग्रेजी के । जनता की बोली में बोलने से भाषा गंदी हो जाति है । बेचारे नीतीश कुमार को विधान सभा में ऐसे ही जनसंख्या वृद्धि के बारे में जनभाषा बोलने के कारण सांस्कृतिक पार्टी के द्वारा ट्रोल होना पड़ा । पीछा छुड़ाने के लिए अंत में पार्टी ही बदलनी पड़ी ।  

हमें कल किसी ने संसद में अपनी नाक में अंगुली डालकर सफाई करते हुए गृहमंत्री अमित शाह जी की एक छोटी सी क्लिप फॉरवर्ड कर दी । 

चूंकि आजकल भारत में राष्ट्रभक्ति, धर्म, संस्कृति, हिन्दुत्व, चाल, चेहरा और चरित्र का वाइरल बुखार फैला हुआ है इसलिए हमने इसे गंभीरता से लिया और आते ही तोताराम को वीडियो दिखाकर पूछा- यह क्या है ?

बोला- क्यों ? तुझे साफ दिखाई नहीं देता ? अभी तो मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाने वाले डाक्टर को पूरा भुगतान भी नहीं किया है । चलते हैं, अभी तो लेंस का गारंटी पीरियड चल रहा होगा । 

हमने कहा- शिक्षा, चिकित्सा, न्याय और सेवा में कोई गारंटी नहीं होती । अगर विद्यार्थी फेल हो जाए, मरीज मर जाए, आप केस  हार जाएँ, बैंक में 15 लाख रुपए और अच्छे दिन कभी न आयें तो भी आप स्कूल, डाक्टर, वकील और प्रधानमंत्री के खिलाफ कहीं फ़रियाद नहीं कर सकते, किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं । तो जिसने आँखों का ऑपरेशन किया था वही हमें कौन रसीद देने वाला है । वैसे हमें देखने में कोई समस्या नहीं है । 

बोला- तो फिर इसमें क्या यशोदा की तरह बालकृष्ण में मुँह में ब्रह्मांड देखना है या चंपत राय की तरह मोदी जी में विष्णु के दर्शन करने हैं । ये भारत  के गृहमंत्री, देश के चाणक्य श्री अमित शाह हैं । 

हमने फिर पूछा- लेकिन कर क्या रहे हैं ?

बोला- अपनी नाक में अंगुली कर रहे हैं । 

हमने कहा- तो क्या यह अच्छी बात है ?

बोला- बुरी बात भी क्या है ? अपनी नाक में अंगुली कर रहे हैं । वे गृहमंत्री हैं वे देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए चाहें तो किसी और को भी अंगुली कर सकते हैं । और फिर अंगुली करने क्या पाकिस्तान जाएंगे ? मुसलमानों की बात और है वे हिजाब पहनने, मांस खाने, मस्जिद बनाने, नमाज पढ़ने के लिए पाकिस्तान जा सकते हैं । दुनिया में 50 से ज्यादा मुस्लिम देश हैं वहाँ जा सकते हैं । लेकिन एक हिन्दू के लिए कोई विकल्प नहीं है । उसके लिए तो जीना यहाँ, मरना यहाँ , इसके सिवा जाना कहाँ ।

हमने कहा- लेकिन अजीब नहीं लगता ?

बोला- तो क्या संसद में राष्ट्रहित में चल रही महत्वपूर्ण चर्चा को छोड़कर इस जरा से काम के लिए बाहर चले जाएँ ? या यह काम किसी और से करवाएं ? अगर किसी और से यह काम करवाएं तो भी तुम लोग यही कहोगे कि जो व्यक्ति अपनी नाक खोदने तक में स्वावलंबी नहीं है वह ‘आत्मनिर्भर भारत’  कैसे बनाएगा ? लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि खुदाई से ही सभी आवश्यक और मूल्यवान पदार्थ प्राप्त होते हैं । गहरे कुएं में पानी मीठा होता है । कोयले और ग्रेफ़ाइट के बाद गहरी खुदाई में ही हीरा मिलता है। अगर खुदाई नहीं होती तो हड़प्पा की सभ्यता का कैसे पता चलता ? उसीसे तो पता चला कि वहाँ के बड़े लोग मोदी जी जैसी दाढ़ी रखते थे । और उस समय के लोग मोदी जी की तरह शौचालय का महत्व भी समझते थे । 

हमने कहा- हाँ, यह तो ठीक है कि नाक खोदने, कान कुचरने और खुजाने का काम किसी और से करवाना न तो अच्छा लगता और न ही सुरक्षित होता । किसी और को पता भी कैसे लग सकता है कि वास्तव में कष्ट या आनंद का बिन्दु कहाँ है ? यह तो खुद को ही पता होता है ।हो सकता है कि कोई और कान को ज्यादा कुचर कर आपको बहरा बना दे या खाज आ रही हो कहीं और, और खुजाने वाला अति उत्साह में खुजा खुजाकर खून  कहीं और निकाल दे ।  कभी कान में खुजाते या नाक की खुदाई में मगन व्यक्ति को ध्यान से देखेगा तो पता चलेगा कि ब्रह्मानन्द की स्थिति इससे भिन्न नहीं हो सकती , दीन-दुनिया से बेखबर, तल्लीन, समाधिस्थ ।    

बोला- और तुझे यह भी पता होना चाहिए कि धर्म की रक्षा और पुनरुद्धार के लिए भी खुदाई बहुत जरूरी है । बिना खुदाई के कैसे पता चलेगा कि किस मस्जिद के नीचे किस मंदिर के अवशेष गड़े पड़े हैं  ? 

हो के मायूस न उखाड़ो आँगन से पौधे 

धूप बरसी है तो बारिश भी यहीं पर होगी 

इसलिए 

खोदता रह नाक के कीचड़ को गहरे और गहरे 

निकला है जो कीचड़ तो मोती भी यहीं पर होगा 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

चीन से मुकाबला


चीन से  मुकाबला 


कहते हैं- कमजोर गुस्सा ज्यादा । अगर 56 इंच का सीना होता तो शायद गुस्सा नहीं आता । लेकिन आज क्रोधित तोताराम का 28 इंची सीना उच्छ्वास के कारण ऊपर नीचे होता साफ दिखाई दे रहा था । 

हमने कहा- वत्स, शांत । तुम्हारे क्रोध करने से देखो भयभीत होकर यह पृथ्वी किस प्रकार कंपायमान हो रही है, लगता है जैसे 7 डिग्री तीव्रता का भूकंप आ गया हो । 

बोला- मज़ाक मत कर । हर वक्त का मजाक अच्छा नहीं होता । अस्सी साल से ऊपर हो गया लेकिन बचकानापन नहीं गया । मैं वास्तव में क्रोधित हूँ । लगता है अभी सीमा पर जाकर लाल आँखें और अपना 28 इंची  दिखाकर  चीन की हालत खस्ता कर दूँ लेकिन क्या करूँ एक तो ठंड बहुत है दूसरे 'माणा' तक जाने का कोई साधन नहीं है । 

अब हमें लगा तोताराम वास्तव में क्रोधित है । कहा- जब देश का रक्षामंत्री ही कुछ नहीं बोल रहा है तो तुझे क्या पड़ी है । और फिर अपन तो चीन की सीमा से बहुत दूर हैं । उत्तरप्रदेश की तरफ से आएगा तो योगी जी अपने बुलडोज़र से निबट लेंगे । और अगर उत्तराखंड की ओर से घुसेगा तो धामी जी कोई न कोई धमाका कर देंगे ।और कुछ नहीं तो कॉमन सिविल कोड से ही डरा देंगे ।  

बोला-  जब रेलमंत्री को किसी ट्रेन को झंडी दिखाने तक का पावर नहीं है तो रक्षा के लिए रक्षामंत्री से क्या कहना । करना तो मोदी जी को ही चाहिए लेकिन उन्हें राम मंदिर, चुनाव, दुनिया की नेतागीरी करने से ही फुरसत नहीं है । चीन की हिम्मत तो देखो । सीधा सीकर में घुस आया । 

हमने कहा- तोताराम तू क्या कह रहा है ? चीन सीकर में घुस आया और हमें पता ही नहीं । किधर से आ घुसा  ? दिल्ली की तरफ से या जयपुर रोड़ की तरफ से ? क्या किया जाए ? आजकल बेचारे स्वयंसेवक भी अक्षत बांटने, रामजी के स्वागत और जमीन के नीचे त्रिशूल, चक्र, स्वस्तिक आदि ढूँढने में व्यस्त हैं नहीं तो वे अपने सुंदरकांड और हनुमान चालीसा से ही मुकाबला कर लेते । डी जे पर फुल वॉल्यूम में ऐसा शोर मचाते कि चीन की  हालत खराब हो जाती । ऐसी लाठी भाँजते कि मिसाइल तक बेअसर हो जाते ।  

बोला- घबरा मत । सेना लेकर नहीं बल्कि आकाश मार्ग से अपने मंजे से आक्रमण हुआ है । हर मकर संक्रांति पर देश में मंजे से घायल होने और मरने वालों  की संख्या सैंकड़ों में होती है । पहले-पीछे बात तो सब करते हैं। एक दो चरखी जब्त भी की जाती है फिर अखबारों में मोदी, योगी या राम की पतंगों के समाचार आने लगते हैं । पतंग पटाखे बंद करने की बात की जाती है तो धर्म खतरे में पड़ जाता है । 

हमने कहा- क्या चीन जबरदस्ती मंजे की चरखियाँ फेंक जाता है ? बाकायदा चीन से आयात किया जाता है । माँजा  ही क्या जाने क्या-क्या आयात किया जाता है । तुम चार रुपए का आयात करते हो तो बमुश्किल एक रुपए का निर्यात करते हो । 

बोला- क्या करें ? यदि आयात न करें तो वह फिर किसी किसी बहाने छेड़खानी करेगा ।  

हमने कहा- आयात करते-करते भी उसने मेजर शैतान सिंह के स्मारक पर कब्ज़ा कर लिया है । लेकिन मंजे के आयात के लिए तुम्हें कौन मजबूर कर सकता है । धर्म संस्कृति की आड़ में हर चीज का धंधा करने वाले व्यापारी मजबूर करते हैं । जब भी पटाखों पर प्रतिबंध की बात आती है तो ये ही हिन्दू धर्म को खतरा बताकर हाल मचाते हैं ।

जब कल्याण और नैतिकता को व्यापारियों के हवाले करोगे तो यही होगा । इन्हें केवल और केवल नोट चाहियें । भारत दुनिया में बीफ का निर्यात करने वाले प्रमुख देशों में से एक है और उन सभी बूचड़खानों के मालिक हिन्दू हैं । हो सकता है उन्होंने चुनावी बॉन्ड खरीदकर संस्कारी पार्टी को खरीद लिया हो । 

वैसे धैर्य रखो मोदी जी कुछ दिनों पहले चीनी सीमा के सबसे निकट के चमोली जिले के गाँव  'माणा' में हो आए हैं । पहले तो दिल्ली में बैठकर लाल आँख दिखाई थी। शायद इतनी दूर से चीन को दिखाई नहीं दी । लेकिन अब नजदीक से अच्छी तरह से आँख दिखा आए हैं। कुछ न कुछ असर जरूर होगा । 

बोला- मास्टर, क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि हम लोग यहीं से लाउड स्पीकर का मुँह चीन की तरफ करके अखंड कीर्तन शुरू कर दें । चीन भाग जाए तो ठीक न भागे तो भी यहाँ अपने संस्कारी और धार्मिक हिन्दू होने की इमेज तो बनेगी । तुझे पता होना चाहिए अब भविष्य इसी इमेज का लगता है । क्या पता, इसी के चलते तुझे पद्मश्री मिल जाए । 

हमने कहा- लेकिन तुझे पता होना चाहिए इस शोर से चीन का तो कुछ बिगड़ेगा तब बिगड़ेगा लेकिन उससे पहले हमारे कान जरूर फूट जाएंगे । दुनिया में संस्कृति और धर्म के आडंबर के रूप में लाउडस्पीकर का उपयोग करने में हमारा नंबर पहला है ।  

तू तो शांति से चाय पी । चिंता मत कर । इस समय हम कबूतर उड़ाने वाले नहीं, चीता छोड़ने वाले बन गए हैं । दुनिया में डंका बज रहा है ।  

बोला- तभी तक जब तक हम उनका माल खरीद रहे हैं । यह डंका नहीं एक प्रकार की 'चौथ वसूली' है । 

हमने कहा- फिर भी हम मारते जरूर हैं , सर्दी में घर में घुसकर, घर में रजाई में घुसकर और गरमी में बरामदे में बैठकर । 

बोला- यह क्या अजीब स्टेटमेंट हैं ?

हमने कहा- यही कि हम मारते हैं हमेशा । पेट भरा हो तो डींग और खाली हाथ और खाली पेट  हों तो मक्खियाँ ।  



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 5, 2024

मोदी जी का बड़प्पन

मोदी जी का बड़प्पन    


जब कभी दिल्ली को विकास की छींक आती है तो उसके छींटे विज्ञापनों के माध्यम से हम तक भी वैसे ही पहुँच जाते हैं जैसे कि दिल्ली का कोहरा, बारिश के छींटे और सर्द हवाएं । इसलिए एहतियात के तौर पर कमरे में ही बैठे थे, ‘बरामदा विष्ठा’ में नहीं गए ।   

तोताराम ने बाहर से ही चिल्लाकर कहा- बधाई हो, आदरणीय । 

हमने भी कमरे में बैठे-बैठे ही आवाज ऊंची करके कहा- अंदर तो आ जा । न हम भागे जा रहे हैं और न ही तेरी यह बधाई । 

तोताराम अंदर आकर हमारे बगल में बैठ गया, बोला- ‘राम-राम’ भाई साहब । 

हमने कहा- आज तो बहुत संस्कारी आदमी की तरह बात कर रहा है । क्या बात है ?

बोला- हम तो हमेशा से संस्कारी ही रहे हैं ।बस, अब राम की प्राणप्रतिष्ठा हो जाने से उसे राष्ट्रीय मान्यता मिल गई है । 

हमने कहा- राम की इस देश में कब मान्यता नहीं रही ? मंदिर, मार्ग, मूर्ति, विज्ञापन की जरूरत उन्हें पड़ती है जिनके कर्मों में दम नहीं होता ।राम, ईसा, बुद्ध गांधी आदि के विचार और संदेश किसे बुरे और अजीब लगते हैं ? इस देश के करोड़ों लोगों की आदत में ‘राम-राम’ संबोधन रहा है । अपनी मर्यादा के कारण ‘राम’ का विस्तार मुस्लिम देशों तक में हैं । रूस और इंडोनेशिया तक में लोग उन्हें अपने जीवन से जोड़ते हैं । भगवान या खुदा से रिश्ता तो बहुत औपचारिक होता है । कर्मकांड तक का । लेकिन जब जीवन से कोई रिश्ता जुड़ता है तो वह सांस-सांस में बस जाता है ।  


लेकिन यह बधाई वाली क्या बात है ?

बोला- भारतरत्न मिलने की बधाई । 

हमने कहा- हमें तो भारतरत्न क्या, एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका का संपादक और 20-25 पुस्तकों का लेखक होने के बावजूद किसी कलेक्टर ने आज तक गणतंत्र दिवस को जिला स्तर तक पर सम्मानित करने लायक भी नहीं समझा । 

बोला- मैं तेरी बात नहीं कर रहा हूँ । मैं ताऊ आडवाणी की बात कर रहा हूँ । मोदी जी, राजनाथ, गडकरी आदि सभी ने बधाई दे दी तो तुझे क्या परेशानी है ?

भारत के विकास के लिए  ‘रामराज’ की स्थापना में उनके योगदान के लिए हम सबको भी उनका ऋणी होना चाहिए और तू एक जरा सी बधाई देने में कंजूसी कर रहा है ! 

हमने कहा- तोताराम, हम तो सबके लिए शुभकामनाओं में विश्वास करते हैं । सर्वे भवन्तु सुखिनः को मानते हैं । जब सब सुखी होंगे तो हमारे सुख को कौन रोक लेगा । और जब दूसरे दुखी होंगे तो हमारा सुख कितने दिन टिकेगा ? तुम्हें अजीर्ण हो रहा है और तुम्हारा पड़ोसी भूख है तो तुम्हें उसकी हाय लगेगी ।आडवाणी जी का योगदान अपनी हिंदूवादी पार्टी को 2 से 200 तक पहुंचाने में है, पूरे भारत की समस्त जनता के लिए नहीं ।जिस रास्ते पर उन्होंने पार्टी को चलाया उस पर चलकर आज वह 300 से 400 के सपने देख रही है । उन्होंने खुद कहा था कि मंदिर मुद्दा उनके लिए धर्मिक नहीं, राजनीतिक है । हमें उस राजनीति से क्या लेना जो केवल एक वर्ग के प्रति सदाशय हो ।धर्म का काम जीव को वैचारिक मुक्ति प्रदान करना और राजनीति का काम समस्त जन का कल्याण करना होना चाहिए । 

बोला- और कितना कल्याण चाहिए । राम मंदिर जाओगे तो अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी । 

हमने कहा- तो राम के परम भक्त रामभद्राचार्य को अस्पताल में भर्ती क्यों करवाया गया ? तोताराम ये बहुत बचकानी बातें हैं । हम तो एक बात जानते हैं कि रामराज्य का मतलब है धोबी और मंथरा तक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तक को भी दंडित नहीं किया जाना और यहाँ सरनेम की आड़ में अधिकतम दंड और बलात्कारियों को पेरॉल और सजा माफ़ी । 

तोताराम, बहुत कठिन है धरम राम का !

बोला- लेकिन कर्पूरी ठाकुर को भी तो दिया है भारतरत्न । 

हमने कहा- उसके पीछे अगला चुनावी गणित है । हाँ, इसे अपने ही परिवार के एक बुजुर्ग की पीड़ादायक उपेक्षा का प्रायश्चित जरूर कहा जा सकता है ।

अच्छा हुआ जो अटल जी वाली हालत में पहुँचने से पहले यह काम कर लिया गया ।

  

असन्तुष्ट आत्मा सबसे पहले घर वालों को सपने में डराती है ।


बोला- और क्या ? बुजुर्गों के सम्मान की इस परंपरा को देखते हुए हो सकता है कि तेरा भी किसी सम्मान के लिए नामांकन हो जाए ।और नहीं तो गृहस्थ जीवन के मामले में तो तू आडवाणी जी से छह साल सीनियर है । उनकी शादी 1965 में हुई और तेरी 1959 में ।  




पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 3, 2024

मुहूर्त का बड़ा महत्व होता है

मुहूर्त का बड़ा महत्व होता है 

सामान्य लोगों का सब कुछ सामान्य होता है । कभी भी कुछ भी हो जाता है । कभी भी जन्म ले लेते हैं और कभी भी मर जाते हैं । कभी किसी शुभ या अशुभ मुहूर्त का कोई सोच विचार नहीं करते । राम सामान्य नहीं थे । उन्होंने शुभ मुहूर्त चुना ।  राम का जन्म अभिजित मुहूर्त में हुआ ।

मुहूर्त के बारे में ही सोच रहे थे । आज मध्याह्न साढ़े बारह बजे का बड़ा शुभ मुहूर्त है । राम लला की प्राणप्रतिष्ठा का मुहूर्त ।
 
मुहूर्त का बड़ा महत्व होता है ।

जब नई शताब्दी शुरू हो रही थी तो कई प्रतिष्ठित ( प्राणप्रतिष्ठा में बुलाए जाने के मापदंडों के अनुसार) माता-पिताओं ने 1 जनवरी 2001 के शुभ मुहूर्त  (1-1-1) को नहीं हो रहा था तो सिजेरियन प्रसव करवा लिया । इसी तरह कई ने 22 जनवरी 2024 को यादगार बनाने के लिए बच्चों की सिजेरियन डिलीवरी करवा ली । 

मुहूर्त का बड़ा महत्व होता है । 
 
ज्योतिषी तो यहाँ तक बताते हैं कि आज फलां राशि के व्यक्ति को घर से बाहर निकलते समय कौन सा पैर पहले बाहर निकालना चाहिए । किस दिन, कब, किस दिशा में जाना वर्जित या शुभ होता है ? सब कुछ उन्हें ही पता होता है लेकिन दबाव, डर या लालच में जब जैसा चाहो मुहूर्त भी निकाल देते हैं । यदि घर का दरवाजा अशुभ दिशा में हो तो पर्याप्त दक्षिणा देने पर उसे बिना तोड़े, बदले भी कोई नुस्खा बता देते हैं । यदि आप व्रत, उपवास, जप नहीं कर सकते तो उसके लिए सब्स्टीट्यूट का विधान भी उनके पास होता है। अगर कोई पीठ के पीछे सत्ता की बंदूक की नली छुआ दे तो शंकराचार्यों के अनुसार गृह प्रवेश का अशुभ मुहूर्त भी शुभ सिद्ध कर देते हैं । बाजार और पैसे वालों के चोंचलों को देखते हुए ज्योतिषी आजकल उनके कुत्तों, कारों आदि का भी दैनिक भविष्यफल छापने लगे हैं ।

मुहूर्त का बड़ा महत्व होता है ।  

घोर निराश और भरे पेट वाले सब ज्योतिष की घोर अवैज्ञानिकता के बावजूद उस पर विश्वास करते हैं ।कुछ चतुर और धूर्त झूठा ज्ञान झाड़ते हैं और कहते हैं कि ज्योतिष विज्ञान है । लेकिन ऐसा कहते हुए वे अर्ध सत्य का सहारा लेते हैं । कहते हैं अगर ज्योतिष अवैज्ञानिक होता तो ज्योतिषी कैसे  बात देते हैं कि अमुक दिन, अमुक बजे से अमुक बजे तक ग्रहण होगा और अमुक अमुक जगह दिखाई देगा ? जब कि सत्य यह है कि ग्रह-नक्षत्रों की गणना एक विज्ञान और गणित है जो दुनिया के सभी देशों में समान ही है । तभी तो सूर्य का उत्तरायण, दक्षिणायन सभी देशों की गणना के अनुसार एक ही दिन होता है । लेकिन उन ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का किसी व्यक्ति के जीवन पर क्या, कैसा, कितना प्रभाव पड़ेगा यह सब तुक्का है । अगर इस प्रकार  की बात सच है तो कभी किसी मुर्गे या बकरे के लिए कोई दिन ऐसा क्यों नहीं होता कि उस दिन उसे कोई भी काट न सके । 

यह भी सच है कि किसान मजदूर अपना काम रोज बिना किसी ज्योतिषी से पूछे करते हैं । हल चलाने और पानी देने से बीज उगता है किसी मुहूर्त से नहीं । इसलिए किसान बारिश के अनुसार चलता है न कि बकवास से ।  कोई काम करवाने वाला ज्योतिष के हिसाब से राहूकाल में काम बंद करवाकर अपने मजदूर को सवैतनिक छुट्टी नहीं देता । 
रोज अपनी मेहनत से कपड़ा बुनकर, उसे बेचकर रोटी जुटाने वाला कबीर इन झंझटों में नहीं पड़ता । तभी वह चेलेंज दे सकता है-
करम गति टारै नाहिं टरी 
मुनि वशिष्ट से पंडित ज्ञानी शोध के लगन धरी  
दशरथ मरण हरण सीता को बन में बिपत परी  
करम गति —---
कबीर का ‘करम’ श्रम वाला कर्म है न कि ज्योतिषियों वाला ग्रहदशा से फूटने वाला ‘करम’ ।   
लेकिन भक्तो, हम आजकल ज्योतिष वाले करम (भाग्य) के युग में आ पहुंचे हैं ।

 इसलिए मुहूर्त का बड़ा महत्व है । 

तोताराम ने भी आज आते ही यही कहा- मास्टर, मुहूर्त का बड़ा महत्व होता है । 
हमने पूछा- तो क्या करें ?
बोला- क्या, क्या ? बनवा ले हलवा । मीठा का मीठा, मुहूर्त का मुहूर्त और प्रसाद का प्रसाद । एक पंथ तीन काज । जैसे ही प्राणप्रतिष्ठा होगी हम हलवा खाना शुरू कर देंगे । 
हमने कहा- तोताराम, हर क्षण कुछ न कुछ होता ही रहता है । सब कुछ मुहूर्त के विचार के बिना ही निरंतर चलता रहता है । धरती, सूरज, चंद्रमा का परिभ्रमण क्या मुहूर्त के हिसाब के होती है । बस, होती है ।
 
बोला- नहीं, ऐसी  बात नहीं है ।फिर भी कुछ सोच समझकर ही प्राणप्रतिष्ठा का यह मुहूर्त निकाला गया होगा । कोई तो कारण रहा होगा जो राम नवमी तक का इंतजार नहीं किया गया । तब तक शिखर और ध्वजा भी स्थापित हो जाते । शंकराचार्यों का भी मान रह जाता । 

हमने कहा- कुछ लोग तो कहते हैं कि गणतंत्र दिवस की चमक को धुंधला करने के लिए ऐसा किया गया है । कुछ कहते हैं कि यह मुहूर्त रामलला के हिसाब से नहीं लोकसभा चुनाव के हिसाब से निकलवाया गया है । वैसे एक और भी विचित्र संयोग देख कि आज ही के दिन 1999 में आस्ट्रेलिया से आकर ऑडिशा में कोढ़ियों की सेवा करने के लिए रह रहे स्टेंस और उसके दो बेटों की कुछ कट्टर लोगों द्वारा 22 जनवरी को ही जलाकर हत्या कर दी गई थी ।रामराज्य के साथ शंबूक के प्रसंग की तरह यह भी जुड़ जाएगा । 

बोला- ऐसे तो कल को लोग यह भी कह देंगे कि 15 अगस्त को सभी समुदायों के लोगों के सहयोग से मिली आजादी के उल्लास को मुसलमानों के प्रति घृणा का स्थायी भाव भरने के लिए 14 अगस्त को जानबूझकर ‘विभाजनविभीषिका दिवस’ मनाने की धूर्तता की गई है ।
 
हमने कहा- इसे बिल्कुल झूठ और नितांत संयोग नहीं कहा जा सकता क्योंकि संसद के नए भवन के उद्घाटन की जो तिथि चुनी गई है 28 मई वह सावरकर का जन्मदिन है जो भारत को कट्टर हिन्दू राष्ट्र देखना चाहते थे । और 27 मई स्वतंत्र भरत के निर्माता नेहरू जी पुण्य तिथि । अब हर साल नई संसद के उद्घाटन की बात जोर शोर से की जाएगी तो नेहरू धुंधले होकर सावरकर और उजले दिखाई देंगे । 
 
बोला- तो फिर यह भी संयोग नहीं कि मस्जिद को सबकी आजादी और सम्मान से जोड़ने वाले संविधान के रचयिता अंबेडकर के निर्वाण दिवस 6 दिसंबर को तोड़ा गया । वैसे इस दिन को एम्स को आधे दिन बंद रखने के पीछे क्या तर्क हो सकता है ?

हमने कहा- यही कि अब राम आ गए हैं । किसी को भी दैहिक दैविक भौतिक ताप नहीं  व्यापेंगे  ।और अगर कोई इस शुभ मुहूर्त में मर भी जाएगा तो यह उसका सौभाग्य होगा । वह सीधा स्वर्ग जाएगा ।
 
मुहूर्त का बड़ा महत्व होता है । 
 
और तो और देख, इसी दिन के इस पुण्य मुहूर्त को देखते हुए सरकार ने बलात्कार और हत्या के अपराधी राम रहीम इन्साँ को 19 जनवरी को नवीं बार  पेरॉल पर रिहा किया । उसने बाहर आकर आश्रम पहुंचते ही अपने भक्तों से कहा कि 22 जनवरी को पूरे देश में राम जी का पर्व मनाया जा रहा है । सभी लोगों को इस पर्व में भाग लेना है । इस पर्व को दीपावली की तरह मानाना है । 
मुहूर्त का बड़ा महत्व होता है ।
बोला- इसका मतलब बिलकिस बानो के बलात्कारियों को भी किसी विशेष मुहूर्त के तहत ही स्वतंत्रता के ‘अमृतमहोत्सव 15 अगस्त 2022’ को संस्कारी मानकर रिहा किया गया ।
मुहूर्त का बड़ा महत्व होता है ।  



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 2, 2024

ब्रांडिंग बरामदा बार बार


ब्रांडिंग बरामदा बार बार 


आज तोताराम ने अंदर आने की बजाय बाहर से ही आवाज दी- मास्टर, इतनी ज्यादा भी नहीं है सर्दी कि बाहर ही न निकले । 


हमने कहा- बीच का पीरियड तो फिर भी कुछ शांति से निकल जाता है लेकिन जैसे आती-जाती सरकार और अधिकारी ज्यादा उछल कूद करते हैं और कुछ न कुछ उलटा सीधा भी; वैसे ही सर्दी का भी यही स्वभाव होता है ।जब भी थानेदार नया नया आता है तो शराब, जुआ और चोरी-जेबकतरी करने वालों पर सख्ती और धरपकड़ करता है । जब सबसे मुलाकात हो जाती है, हफ्ता तय हो जाता है तो सब सामान्य रूप से चलने लगता है , कानून व्यवस्था कायम हो जाते हैं ।  अब देख नहीं रहा लोकसभा का चुनाव आने वाला है तो कैसे बेचैन हो रहे हैं चाहे जिसको पकड़ने के लिए । गुलकंद के चक्कर में गोबर तक खाने लग रहे हैं । काम होने पर छिटका दिये चिराग को फिर ढूंढकर तेल-बत्ती फिट कर रहे हैं ।इसी तरह हम सर्दी को हलके में लेकर रिस्क नहीं लेना चाहते ।

 

बोला- ज्यादा देर का काम नहीं है । बस, दो चार फ़ोटो लेने हैं । 


हम अनखाते से बरामदे में गए तो देखा दीवार पर कभी विज्ञापन के रूप में छपा मोदी जी के फ़ोटो वाला किसी अखबार का एक पन्ना चिपका हुआ है और उसके नीचे  ‘बरामदा-मंदिर’ लिखा हुआ एक सफेद कागज पर शोभा बढ़ा रहा था । 


हमने पूछा- यह क्या है ? 


बोला-  बार बार बरामदा ब्रांडिंग । 


हमने कहा- ऐ अंग्रेजी की दुम, इसे ‘रीब्रान्डिग’ कहते हैं । यह बार बार लगाने की क्या जरूरत है ? 


बोला- इस तरह से मोदी जी वाले स्टाइल की तरह एक प्रकार का अनुप्रासात्मक सौन्दर्य आ जाता है । 


हमने कहा- रहेगा तो बरामदा ही । जैसा कल था वैसा आज है । जैसे कल बैठते थे वैसे ही आज, अब भी बैठेंगे । 


बोला- तुझे पता नहीं, ब्रांडिंग से भाव जागृत होते हैं । बाजरे, ज्वार और मक्का को मोटा अनाज की बजाय  ‘ऋषि अन्न’ या ‘श्री अन्न’  कहने से एक अलौकिकता आ जाती है। फिर वह किसी को भी महंगे दामों में टिकाया जा सकता है ।  किसी लंगड़े को दिव्याङ्ग, किसी अंधे को प्रज्ञा चक्षु या सूरदास कहने से बुरा नहीं लगता । वैसे ही जैसे मुख्यमंत्री पद के लिए नौ-नौ बार दलबदल का गू खाने को ‘आत्मा की आवाज’ या कहीं दाल न गलने पर ‘खुद को पार्टी का अनुशासित सिपाही’ बताने से कुछ तो झेंप मिट ही जाती है । जैसे किसी चाय पत्ती का नाम ‘मोदी चाय’ रख दिया जाए तो फिर वह पत्ती   विदेश से आया लाभहीन पेय नहीं रह जाती बल्कि उसकी तुलना लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए हनुमान द्वारा लाई गई संजीवनी बूटी से की जाने लगती है । उसे पीना हर राष्ट्रभक्त का कर्तव्य हो जाता है । फिर उसमें मिलावट की शिकायत करना राष्ट्रद्रोह से कम नहीं माना जाता ।  


हमने पूछा- क्या बरामदे का नाम ‘बरामदा-मंदिर’ कर देने से इसमें किसी दैवी शक्ति की प्रतिष्ठा हो जाएगी ? क्या मल-मूत्रालय, पाखाने का नाम ‘स्वच्छता मंदिर’ कर देने से उसमें बदबू की जगह चंदन की खुशबू आने लगेगी ?


बोला- कुछ तो फ़र्क पड़ता ही होगा । तभी तो आजकल लोग प्याऊ को ‘जल-मंदिर’, शिक्षा की दुकान को ‘शिक्षा-मंदिर’, जहां अनाप-शनाप फीस लेकर, बच्चों पीट पीटकर गलत सलत सूचनाएं रटाई जाती हैं उसका नाम ‘शिशु-मंदिर’, इस उस टेस्ट और सुविधा के नाम पर मरीज के परिवार वालों की खाल उतार लेने वाले अस्पतालों को ‘आरोग्य-मंदिर’ कहते हैं । इससे पापों पर  कुछ तो पर्दा पड़ता ही होगा ?


हमने कहा- कोई पर्दा नहीं पड़ता । सब समझते हैं लेकिन किसके आगे रोयें । लोग डर या सौ-पचास रुपए के लिए रैली या रोड़ शो में चले जाते हैं लेकिन वे राजसी ठाठ वाले उस नेता की सब सचाई जानते हैं जो खुद को गरीब और सेवक कहता है और पुराने अय्याश और विलासी राजाओं से भी अधिक शान से रहता है । 


बोला- तो फिर इस समाचार का क्या मतलब है ? ऐसा कहते हुए तोताराम ने हमारे सामने समाचार की एक कटिंग रख दी-

पिछले साल नवंबर में केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने लद्दाख के आयुष्मान भरत स्वास्थ्य और कल्याण का नाम बदलकर ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ करने का फैसला किया था । और 31 दिसंबर 2023 तक नए नाम के साथ इन केंद्रों ( ‘मंदिरों’ ) के फ़ोटो भी भेजने को कहा था । इस रीब्रान्डिंग के लिए प्रति ‘मंदिर’  3000 हजार रुपए भी निर्धारित किए थे ।


हमने पूछा- तो फिर अपने इस 8 गुणा 4 फुट के नाप वाले भव्य बरामदे का क्या नाम रहेगा ? 


बोला- ‘मोदी जी चाय-चर्चा बरामदा मंदिर’ । 


हमने कहा- और अगर इसमें राष्ट्र, अमृत, भव्य और जोड़ दें तो ?


बोला- फिर तो प्राणप्रतिष्ठा ही हो गई समझ ले । 


हमने फिर पूछा- और लाभ ?  


बोला- वही जो भाजपा को राममंदिर से होने की आशा है । अपने लिए तो ब्रांडिंग के 3000 हजार रुपए ही बहुत हैं ।  साल भर रोज चाय के साथ एक एक फंकी नमकीन । 


हमने कहा- तो फिर खींच  ‘मोदी जी चाय-चर्चा बरामदा मंदिर’ के साथ हमारा फ़ोटो और दे आ किसी अखबार में । अखबार वालों को आजकल मंदिर के अलावा और कुछ छापने की फुरसत ही कहाँ है ? 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 1, 2024

चलो अपन तो बचे


चलो अपन तो बचे

आज तोताराम ने आते ही हमारी बजाय हमारी पत्नी को संबोधित करते हुए कहा- भाभी, बहुत दिन हो गए वही चाय, वही गिलास, वही बरामदा । कोई परिवर्तन नहीं । बहुत बोरियत होती है । देअर शुड बी सम चेंज ।

हमें बड़ा अजीब लगा । कहा- अब क्या चेंज होगा । तू भी वही, हम भी वही, तेरी  भाभी भी वही । सब आजादी से पहले वाले ।

बोला- अब देश बदल रहा है । अब बता कौन बचा है आजादी से पहले का ? आडवाणी जी का नाम लेते ही लगता है जैसे मोहनजोदाड़ो-हड़प्पा का जिक्र हो रहा हो ।

हमने कहा- लेकिन गिलास और चाय में क्या बदलें ? दूध का दही बन सकता है ।गिलास का लोटा थाली किया जा सकता है वैसे ही जैसे नीतीश का जे डी एस कर लो या एन डी ए या भाजपा, कपिल मिश्र कांग्रेस में रहे या भाजपा में लेकिन फ़र्क पड़ता है कर्म और चरित्र बदलने वाले नहीं हैं ।

बोला- तो मैं कौन ब्रह्मांड परिवर्तन की बात कर रहा हूँ । अरे, थोड़ा सा परिवर्तन करने से कुछ समय के लिए ही सही कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव तो पड़ता ही है ।झूठा ही सही.... पल भर के लिए कोई .... वाली बात है ।  जैसे इलाहाबाद को प्रयाग कहने से कुछ दिन तो कुछ चेंज लगता है कि नहीं ? पुरानी पेंट रंगवाने के एक बार तो कुछ भ्रम बनता है । बाल रंगने से भले ही मौत से नहीं बचा जा सकता लेकिन एक बार तो आदमी खुद को जवान सा अनुभव करता ही है ।

हमने कहा- तो बता, आज बिना किसी अतिरिक्त खर्चे के क्या परिवर्तन किया जा सकते हैं ?

बोला- आज हम ‘नमो कॉरीडोर’ में बैठकर ‘नमो गिलास’ में ‘नमो चाय’ पियेंगे । ‘नमो’ कहने से सड़ियल चाय भी गले के नीचे उतर जाएगी ।

हमने कहा- अच्छा है यह नमो कॉरीडोर है अगर  ‘राम कॉरीडोर’ होता तो अयोध्याधाम की पार्किंग वाले ‘शबरी रेस्टोरेंट’ की तरह हम भी तुझसे एक चाय के 55/- रुपए रखवा लेते ।लेकिन यह नमो नमो का संपुट किस लिए ?

बोला- यह आज का ‘द्वादश अक्षरी वैष्णव महामंत्र’ है ।

हमें तत्काल स्पष्ट नहीं हुआ तो पूछ लिया- क्या ? ‘नमो भगवते वासुदेवाय’ ।

बोला- वैसे तो ‘नमो’ से मेरा मतलब ‘नरेंद्र मोदी’ से था लेकिन यदि तू इसे ‘नमो भगवते वासुदेवाय’ माने तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि अब दोनों एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं । देखा नहीं, पहली बार वोट डालने जाने वाले मतदाताओं को प्रधानमंत्री द्वारा डिजिटली संबोधित सम्मेलन के नाम से पहले ‘नमो’ लगाकर ‘नमो नवमतदाता सम्मेलन’ कर दिया । ‘प्राणप्रतिष्ठा’ को भी ‘नमो प्राणप्रतिष्ठा’ ही समझो ।

हमने कहा- लेकिन यह ‘नमो’ नए मतदाताओं के लिए प्रधानसेवक का विनम्र प्रणाम भी तो हो सकता है ।

बोला- उनकी विनम्रता में कहीं, कभी कोई शक नहीं है फिर भी वे विश्व विधाता के सामने भी अपना ‘नरेंद्रत्व’ नहीं छोड़ते ।

हमने कहा- ठीक - मतदाता तो हम भी हैं । क्या हमारे लिए इस मतदाता सम्मेलन में नमो जी का कोई संदेश नहीं है ?

बोला- मोदी जी स्वयं चिरयुवा हैं । तुम जैसी ‘बाँची हुई पुरानी चिट्ठियों’ से उन्हें कोई मतलब नहीं। तुम लोग अपने उनसे उम्र में बड़े होने का उन पर नाजायज दबाव बनाते हो । अभी तक तो आडवाणी जी ही उनके पीछे पड़े थे और अब तुम भी । वे तुम्हें इस देश के इतिहास से ही निकाल चुके हैं  ।

हमने पूछा- मतलब ?

बोला- मतलब उन्होंने कहा है कि जिस तरह 1947 से 25 साल पहले भारत के नौजवानों पर देश को स्वतंत्र कराने का दारोमदार था, उसी तरह 2047 तक यानी आने वाले करीब 25 सालों में युवाओं पर विकसित भारत के निर्माण की जिम्मेदारी है।

हमने कहा- इसका मतलब हम तो किसी गिनती में ही नहीं हैं । 1947 में 5 साल के थे और अब 82 साल नाकारा बूढ़े । हमने तो ऐसे ही इस देश में जन्म लिया और ऐसे ही अनदेखे-अनसुने विदा हो जाएंगे । इस हिसाब से तो मोदी जी का भी देश के लिए क्या योगदान है ? आजादी के समय तक पैदा नहीं हुए थे और अब 74 में चल रहे हैं ।

बोला- उनकी क्या बात करते हो । हो सकता है जैसे उन्होंने बांग्लादेश के स्वाधीनता संग्राम में योगदान दिया वैसे ही हो सकता है कि इन्होंने पिछले जनम में नेताजी सुभाष के रूप में अंडमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के टाउन हाल में  तिरंगा फहराया हो ।

हमने कहा- लेकिन एक बात अच्छी हुई कि मोदी जी की इस क्रोनोलॉजी के हिसाब से देश का सत्यानाश करने का दोष हमारे सिर नहीं है और अब आगे देश के निर्माण की जिम्मेदारी से भी बचे । अब मोदी जी जानें, युवा जानें और देश जाने ।

बोला- उसकी चिंता मत कर । अब प्राणप्रतिष्ठा के बाद अगले एक हजार साल का एजेंडा तैयार हो गया है । और जहां तक देश का सत्यानाश करने के दोषारोपण की बात है तो उसके लिए केवल दो लोग हमेशा के लिए जिम्मेदार है - नेहरू और गांधी ।

 -रमेश जोशी



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach