Dec 26, 2010

२-जी घोटाला या सब्सिडी?


 हम तो जब २००० में पहली बार अमरीका गए थे तो रास्ते में खीरे छीलने के लिए एक छोटा सा चाकू ले गए थे तो चेकिंग वालों ने उसे खतरनाक मान कर रखवा लिया था । अब तो ९/११ के बाद हो सकता है सेफ्टी पिन भी नहीं ले जाने देते होंगे । आज के अखबार में भ्रष्टाचार पर महासंग्राम पर एन.डी.ए. की रैली में कई छोटे-बड़े नेताओं को मंच पर तलवारें लहराते हुए देखा तो अजीब नहीं लगा क्योंकि यह हमारे लोकतंत्र की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है । जब-तब कार्यकर्ता नेताओं को तलवारें देकर अभिनन्दन करते हैं तो क्या वह ऐसे ही है ? कभी न कभी तो उन तलवारों का प्रयोग होना ही चाहिए ।

जब यह समाचार पढ़ रहे थे तो तोताराम आ गया । हमने कहा- तोताराम, अब भ्रष्टाचार को कोई नहीं बचा सकता । देख, जन-सेवक तलवारें लहराते हुए निकल पड़े हैं ।

तोताराम ने कहा- मास्टर, यह विरोध बिना बात किया जा रहा है । राजा, जिनके नाम से सरकार पर निशाना साधा जा रहा है, वे बेचारे कह रहे हैं कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया । वे तो 'पहले आओ : पहले पाओ' की परम्परा का निर्वाह कर रहे थे । यह परंपरा हमारे देश में वैसे भी बहुत पुरानी है । जब किसी राज्य में राजा के बारे में फैसला नहीं हो पाता था यही तरीका अपनाया जाता था । जो भी अगले दिन नगर के मुख्यद्वार पर मिलता था उसी को राजा बना दिया जाता था । उस समय का किसी के भी विरोध करने का प्रमाण नहीं मिलता । फिर आज ही विरोध क्यों ?

हमने कहा- विरोध क्यों नहीं । इससे सरकार को एक लाख छियत्तर हज़ार करोड़ का नुकसान हुआ है ।


बोला- कोई नुकसान नहीं हुआ है । जिसे तुम नुकसान कह रहे हो उसे सब्सिडी क्यों नहीं मान लेते । इस सब्सिडी के कारण ही तो फोन काल इतने सस्ते हुए हैं । यदि फोन कंपनियों को यह स्पेकट्रम सस्ता नहीं मिलता तो फोन काल इतने सस्ते कैसे होते ? इन्हें राजा ने दिया और इन कंपनियों ने प्रजा को दे दिया । ये तो बिजली के तार हैं । उत्पादक और उपभोक्ता तो कोई और हैं । यह एक प्रकार की अप्रत्यक्ष सब्सिडी है । किसानों को सब्सिडी दी जाती है, हज के लिए सब्सिडी दी जाती है तो यह भी देश में फोन सेवा के विस्तार के लिए दी गई सब्सिडी ही है । इसके लिए बेचारे राजा और प्रधान मंत्री को इतना हड़काने की क्या ज़रूरत है ? पहले भी तो, पहले आने वालों को स्पेक्ट्रम पहले दिया गया था । अब इस बात का कोई क्या करे कि इस घोषणा के समय कुछ लोग पहले से ही टेबल के नीचे घुसे बैठे थे । तुझे चाहिए तो चल तुझे भी दिला देते हैं कोई न कोई स्पेक्ट्रम । मगर लेना-देना तो कुछ है नहीं और बिना बात टाँग अड़ाता है ।

तुझे पता है अमरीका में मक्के पर किसानों को सब्सिडी दी जाती है । किसान गायों को मक्का खिलाते हैं तो उनका मांस सस्ता पड़ता है । उस सस्ते मांस से मेकडोनाल्ड सस्ते मीट-बर्गर जनता को बेचता है । अंततः तो यह सब्सिडी जनता को ही मिली ना ? अब बेचारे मोबाइल का धंधा करने वालों को बिना बात लतियाने से क्या फायदा ? वे तो सरकार की जन-कल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुँचा रहे थे । दूत, कुटनी और दलाल अवध्य होते हैं । सरकार और भी तो पैसा जनता में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से बाँट ही रही है । और यह बता, क्या इस तथाकथित घोटाले से क्या सरकार का बजट घाटा बढ़ा ? यदि नहीं, तो फिर कैसा और किसका नुकसान ?

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई । एक युवक अंदर आया और बोला- तोताराम जी कौनसे हैं ? तोताराम ने उत्तर दिया- कहिए, हमीं है ।

युवक ने कहा- टाटा, अम्बानी, राजा और राडिया ने अपना केस लड़ने के लिए आपको याद किया है ।


२३-१२-२०१०


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Dec 24, 2010

सांता क्लाज़ विदाउट दाढ़ी


आज पत्नी का अड़सठवाँ जन्मदिन है | कोई बहुत ज्यादा स्वस्थ तो नहीं है, दवाओं के सहारे काम चल रहा है मगर हिम्मत बाँध कर साथ निभा रही है | शादी को भी साढ़े इक्यावन साल हो गए हैं | आज कई दिनों बाद कोहरा कुछ कम है और धूप भी ठीक-ठाक निकली है | दोपहर का खाना खाकर चबूतरे पर बैठे मूँगफली खा रहे हैं और शाम के खाने के बारे में भी तय किया है कि आज बाज़ार से जलेबी और बड़े ले आएँगे सो 'पौष-बड़ा' के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की नौ प्रतिशत वृद्धि, सचिन का पचासवाँ शतक और भारत को सबसे ईमानदार प्रधान मंत्री मिलने - पत्नी की वर्षगाँठ के बहाने सब को एक साथ सेलेब्रेट कर ही डालेंगे |

तभी एक सज्जन चबूतरे के पास आकर रुके | हम उन्हें पहचान तो नहीं सके मगर कद-काठी कुछ-कुछ जानी-पहचानी सी लगी, कहा- आओ बंधु, आज पत्नी का जन्मदिन है | इसी उपलक्ष्य में मूँगफली खाओ | उसने पत्नी को जन्मदिन की बधाई दी और एक मूँगफली उठाते हुए कहा- आपने मुझे पहचाना कि नहीं ? हमने कहा- झूठ क्यों कहें भाई, नहीं पहचाना |

बोला- मैं सांताक्लाज़ हूँ | पिछली बार आपके यहाँ आया था और एक काली कार से मरते-मरते बचा था | आपने मुझे अपने यहाँ चाय पिलवाई थी और आग जलाकर हम साथ-साथ तापे थे |

हमें सब याद आ गया,पूछा- तो इस बार समय से पहले ही कैसे आ गए और वह भी दिन में ? कहने लगा- क्या बताएँ मास्टर जी, अब रात में घूमने-फिरने का ज़माना नहीं रहा | वैसे ही शाम से लोग पिए हुए घूमते रहते हैं और फिर साल के आखिरी हफ्ते में तो पता नहीं किस नए साल का स्वागत करते हैं और कैसा क्रिसमस मानते हैं कि दारू के अलावा कुछ सूझता ही नहीं | सो सोचा दिन में ही आपसे मिल आऊँ | सो चला आया |
हमने कहा- भैया, अच्छा किया | हम भी सर्दी के मारे इस नए साल के चक्कर में नहीं पड़ते | जैसा भी होगा अगले दिन सुबह उठ कर मना लेंगे | जैसा ३१ दिसंबर वैसा ही १ जनवरी | वही तनाव और अपराध, वही झूठ और फरेब | वही आधी रात को पेट्रोल और खाने-पीने की चीजों के बढ़ते दाम | खैर तुम सुनाओ, हमने देखा कि तुम कुछ लँगड़ा कर चल रहे थे, क्या बात है ?


बोला- क्या सुनाना है | बुढ़ापे में लगी चोट क्या कभी पूरी तरह से ठीक होती है ? बस चल रहा है |

हमने पूछा- और तुमने अपनी ड्रेस भी बदल दी है | न सफ़ेद दाढ़ी, न लाल कपड़े, न पीठ पर उपहारों का थैला | हमारी तरह साधारण मोटा कुर्ता, बंडी और टोपा |

कहने लगा- अब कहाँ पहले वाली बात है | लोगों ने बड़े-बड़े माल्स में संता की ड्रेस पहना कर सेल्समैन खड़े कर दिए है जो बच्चों को ललचाकर पैसे ऐंठते हैं | कुछ लोग संता का वेश बना कर चोरी तक करने लग गए हैं | अभी आपने अमरीका की खबर पढ़ी या नहीं कि एक आदमी सांता का वेश बनाकर चोरी करते हुए पकड़ा गया | मैंने सोचा क्यों बिना बात शंका पैदा की जाए सो सादे वेश में ही चला आया | और आजकल लोग स्वार्थ के लिए वेश को लज्जित कर रहे हैं | बड़े धर्माधिकारियों की सीडियाँ जारी हो रही हैं | स्वामी जी सेक्स के द्वारा आत्मा को परमात्मा से मिलवा रहे हैं | चर्चो में इतने यौन अपराध बढ़ रहे हैं कि पोप तक को उनके लिए माफ़ी माँगनी पड़ रही है | मगर इस ढोंग के तंत्र को तोड़ना किसी के बस में नहीं है | सब धर्म, जाति, रंग नस्ल के बाहरी रूप को लेकर लड़ रहे हैं | इंसानी रिश्तों की किसी को फ़िक्र नहीं है |

खैर मास्टर जी, मेरी क्रिसमस और हैप्पी न्यू ईयर | ये रख लीजिए बच्चों के लिए | और उसने अपनी जेब टटोलते हुए दो छोटी-छोटी टाफियाँ निकालीं और हमारे हाथ पर रख दीं |

हम काफी देर टॉफी सहित उसका हाथ थामे रहे | न वह बोला और न हम |

२३-१२-२०१०
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Dec 23, 2010

साध्य और साधन


गाँधी जी की एक बात बहुत महत्त्वपूर्ण है किन्तु उसको जीवन में उतारना सरल नहीं है । वे कहते थे- यदि आपका लक्ष्य पवित्र है तो उसको प्राप्त करने के साधन भी पवित्र होने चाहिएँ अन्यथा अपवित्र साधनों से प्राप्त किया गया लक्ष्य पवित्र नहीं रह जाएगा । तिलक महाराज ने जब अपना आन्दोलन चलाया तो उन्होंने 'एक पैसा' फंड शुरु किया । इसका सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य यह था कि उनका आन्दोलन वास्तव में जनता का आन्दोलन बने । सब उसमें बराबर के भागीदार बनें । कोई धन-बल से आन्दोलन को हथिया न ले ।

किसी लक्ष्य में सहयोग देने में दाता का भाव सबसे महत्त्वपूर्ण होता है । आज भी गिलहरी द्वारा सेतुबंध के निर्माण में दिए गए सहयोग की चर्चा बड़े आदर से होती है । भगवान बुद्ध जब धर्मप्रचार के लिए निकले थे तो लोग अपने-अपने हिसाब से उसमें सहयोग दे रहे थे । एक दिन शाम को उनके प्रिय शिष्य आनंन्द ने पूछा- शास्ता, आज की सभी भेंटों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भेंट कौनसी है ? बुद्ध ने सारे हीरे-जवाहरात, सोने-चाँदी को छोड़ एक अधखाया अनार उठा कर कहा – यह अधखाया अनार । आनंद चकित । कैसे ? बुद्ध ने स्पष्ट किया- जिस बुढ़िया ने यह अनार भेंट किया है, हो सकता है उसके पास इसके अलावा देने के लिए और कुछ हो ही नहीं । वह इसे खा रही होगी । हो सकता है कि उसे और भूख रही हो किन्तु उसने अपनी भूख की परवाह नहीं की और स्वयं भूखे रहकर यह अनार मुझे भेंट में दे दिया हो । पर जिन लोगों ने स्वर्ण, रत्न दिए हैं उनके पास अभी भी अपार सम्पदा है, उन्हें इस दान से कोई फर्क नहीं पड़ा है । इसलिए बुढ़िया का यह अधखाया अनार सबसे बड़ा दान है, सबसे बड़ी भेंट है, सर्वस्व समर्पण है इसलिए अतुल्य है । भगवान कृष्ण ने दुर्योधन के मेवों से अधिक महत्त्व विदुर-पत्नी के शाक-पात को दिया ।

जिसे भारतीय बोध कथाओं और चिंतन का थोड़ा सा भी ज्ञान है उसे ये बातें बहुत नई और विचित्र नहीं लगेंगी । इस आलेख के शुरु में इन बातों का ज़िक्र करने का कारण है- दो खबरें । एक खबर है इंडोनेशिया की । जहाँ कुछ समय पहले तूफान और उसके बाद ज्वालामुखी के विस्फोट की दो प्राकृतिक आपदाएँ आईं । इन घटनाओं के बाद एक समाचार आया कि किसी पामेला एंडरसन नामक माडल ने किसी पत्रिका को एक न्यूड पोज देकर मिले २५ हजार डालर इंडोनेशिया की एक संस्था 'वेव्स फॉर वाटर' को दान दिए जो लोगों को साफ पानी उपलब्ध करवाती है । इसके बाद एफ.पी.आई. नामक एक इस्लामी संस्था का बयान आया कि इंडोनेशिया पर ये प्राकृतिक आपदाएँ इसलिए आईं कि उसने पामेला एंडरसन की हराम की कमाई का पैसा दान में लिया । किसी माडल का जीविकोपार्जन का साधन ही जब फोटो खिंचवाना है तो यह पैसा चोरी, डाका या हराम का तो नहीं कहा जा सकता । यह बात और है कि आपको इस प्रकार उपार्जन नहीं करना चाहें यदि आपके पास जीविका के कोई और शालीन साधन उपलब्ध है ।

विकिलीक्स के अनुसार इसी प्रकार का एक और समाचार है- पाकिस्तानी आतंकवादी हज के बहाने बार-बार अरब देशों में जाते थे और वहाँ के अमीर लोगों द्वारा निकाली गई ज़कात में से अपने देश के गरीब लोगों को हज़ करवाने के नाम पर चंदा लाते थे । उस चंदे के धन से मुम्बई आतंकवादी हमलों की साजिश रची गई ।

इन दोनों घटनाओं से दो पक्ष उभरते हैं । एक तो माडल द्वारा दिया गया दान- जिसे आप उसके व्यवसाय के प्रति अपनी व्यक्तिगत धारणा के कारण बुरा बता सकते हैं मगर उसका उद्देश्य बुरा नहीं था । यह दान किसी संकीर्ण मज़हबी या सांप्रदायिकता के भाव से भी नहीं दिया गया था । इस मामले में अधिक से अधिक यह हो सकता था कि संस्था के अधिकारी उसमें से गबन करके लाख-दो लाख रुपया हड़प जाते । इसी तरह दूसरा दान है जकात में से हज़ के लिए चंदा । हो सकता है कि चंदा देने वाले का उद्देश्य शुद्ध मज़हबी रहा हो । मगर इसमें कोई बड़ा मानवीय दृष्टिकोण नज़र नहीं आता । यह एक प्रकार से स्वर्ग प्राप्ति के लालच में दी गई फीस है ।

आज जब सारी दुनिया में चंदा एक बहुत बड़ा धंधा बन गया है और सभी तरह के चालाक लोग और यहाँ तक कि सरकारें तक इसमें घुस गए हैं तो फिर या तो पुण्य अपने हाथों से लिया जाए या फिर बहुत सोच-समझकर दान दिया जाए । पाकिस्तानी सरकार आतंकवाद से लड़ने के नाम पर मिल रहे चंदे के बल पर चल रही है । अपने यहाँ भी गौशाला का चंदा खाने का रिवाज़ बहुत पुराना है । अनाथालय, भंडारा, मंदिर निर्माण आदि बहुत से कामों के लिए चंदा चुगने वाले बसों से लेकर टी.वी. तक में दिख जाएँगे ।

इसलिए सबसे मुख्य बात यह है अब दान किसी मज़हब के नाम से नहीं बल्कि महत्त्वपूर्ण मानवीय कार्य के लिए दिया जाए जिस पर निर्विवाद और निःस्वार्थ लोगों की निगरानी हो वरना कोई पता नहीं कि आपका दान किसी आपराधिक कार्य को बल प्रदान कर रहा हो । तभी हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि दान किसे दिया जाए ?

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे ।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् । । गीता १७:२०
अर्थात् 'देना ही है' इस भाव से किसी ऐसे को दिया दान जो बदले में उपकार न कर सके, और स्थान, समय और पात्र की पात्रता को ध्यान में रख कर दिया जाये, वह दान सात्त्विक कहलाता है ।

५-१२-२०१०


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Dec 22, 2010

रिकार्ड और रिजल्ट

आज तोताराम आया तो हमने उसे कहा- पहले चेहरा पोंछ फिर चबूतरे पर चढ़ना । उसे बड़ा अजीब लगा, बोला- क्यों चेहरे पर क्या लगा हुआ है ? हमने कहा- बड़ी मुश्किल से मावठ (राजस्थान में सर्दियों की बरसात) थमी है और चबूतरा सूखा है । तेरे चेहरे से नूर टपक रहा है, कहीं चबूतरा फिर गीला न हो जाए ।

तोताराम चिढ़ कर बोला- तेरे जैसे मनहूस आदमी पर गुस्सा तो बहुत आता है पर क्या करें- 'न तो कूँ और न मो कूँ ठौर' । खैर, कुर्सी तो मँगवा, आज मैं जूट के इस सड़े कट्टे पर नहीं बैठूँगा । आज तो हालत यह हो रही है कि 'आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे' ।

हमने फिर छेड़ा- कभी-कभी ज्यादा शीर्षासन करने से ऐसे हो जाता है ।


तब तक पोता कुर्सी ले आया था । तोताराम हमें घूरता हुआ कुर्सी पर बैठ गया और बोला- आज केवल चाय से काम नहीं चलेगा । पकौड़े भी बनवा ले । खबर ही ऐसी लाया हूँ कि उछल पड़ेगा ।

पूछा- ऐसी क्या खबर है ? क्या भारत को सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता मिल गई या २-जी स्पेक्ट्रम का पैसा रिकवर हो गया या पाकिस्तान ने आतंकवादी शिविर नष्ट कर दिए या स्विस बैंक का काला पैसा देश वापिस आ गया या प्याज फिर से पच्चीस रुपए पर आ गया ?

तोताराम ने कहा - नहीं, ऐसी कोई छोटी-मोटी खबर नहीं है । सचिन ने दक्षिणी अफ्रीका के खिलाफ अपना पचासवाँ टेस्ट शतक बना कर इतिहास रच दिया ! बता, किस खिलाड़ी ने बनाए हैं इतने शतक ? ब्रेडमैन ने भी नहीं । अभी टाइम्स मैगजीन के मुखपृष्ठ पर सचिन का फोटो आया है और उसके वन डे में दोहरे शतक को सबसे बड़ी खेल घटना माना गया है ।

-और पचासवाँ शतक बनाने के बाद भारत आउट हो गया होगा ।
-क्या तूने मैच देखा था ?
-नहीं, मगर जब किसी की केवल रिकार्ड पर ही निगाह होती है तो ऐसा ही होता है । देखा नहीं, द्रविड के भी जैसे ही बारह हज़ार रन पूरे हुए तो वह भी आउट हो गया । पर पारी की हार से तो भारत को कोई नहीं बचा सका, न सचिन, न द्रविड ।
-पर दक्षिणी अफ्रीका की ६२० रन की पारी की चमक तो सचिन के ५० वें शतक से कम हो ही गई ।
-तू चमक को लिए फिरता है । बात तो परिणाम की है । और परिणाम यह है कि भारत एक पारी और २५ रन से हारा और दक्षिणी अफ्रीका जीता । सचिन कितने भी रिकार्ड बना ले पर जब तक भारत वर्ल्ड कप नहीं जीतता तब तक कोई भी चमक कपिल से ज्यादा नहीं हो सकती ।

तोताराम ने कहा- मास्टर, तेरी यही सबसे बड़ी खराबी है कि तू खुश होना जानता ही नहीं ।

हमने कहा- तोताराम, ऐसी बात नहीं है । हमें भी सचिन की उपलब्धि से खुशी है मगर क्या तुझे नहीं लगता कि किसी महल का दीपक देखकर कब तक जमना-जल में खड़े रहकर पूस की रात काटी जा सकती है ? मुकेश अम्बानी ने पाँच हज़ार करोड़ का घर बनवा लिया मगर अपने घर की टपकती छत को इसी आधार पर कैसे भूला जा सकता है ? मुकेश ने 'दुनिया मुट्ठी में कर ली' मगर आम आदमी के हाथ से तो दाल-प्याज तक फिसल गए । करोड़ों बच्चों को क्रिकेट क्या, स्कूल, खेल के मैदान तो दूर, पूरा सा भोजन नहीं मिलता । किसान आत्महत्या कर रहे हैं तो ९ प्रतिशत जी.डी.पी. पर क्या गर्व करें ? मनमोहन जी के ईमानदार होने पर गर्व करें या उनकी नाक के नीचे होने वाले लाखों करोड़ के घोटाले पर सिर पीटें ? गाय बहुत सुन्दर है मगर दूध नहीं देती तो क्या उसे चाटें ? गाँधी जी ने कहा था कि किसी देश की प्रगति उस देश के सबसे गरीब आदमी की हालत से नापी जानी चाहिए । खेल-तमाशे, मेले-उत्सव, नाच-गाने, दो रोटी मिलने के बाद ही अच्छे लगते हैं । सच तो यह है तोताराम, कि यदि आज कोई मृत्यु का सरल, बिना दर्द का साधन निकल आए और सरकार उसे जनता को उपलब्ध करवादे तो सच मान, इस देश के करोड़ों लोग तत्काल तैयार हो जाएँगे । जीवन के प्रति इतनी निराशा हमें तो इस उनहत्तर साल के जीवन मे आज पहली बार दिखाई दी है ।
किस रिकार्ड और किस चमक को देखकर इस सूचीभेद्य अंधकार को काटें । कहते हैं 'रात भर का है मेहमाँ अँधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा' मगर जब रात खत्म होगी तभी तो सवेरा आएगा ।

कहते-कहते हमारी आँखों गीली हो गईं, हमने कंधे पर रखे गमछे से उन्हें पोंछा । तोताराम ने हमारे कन्धे पर हाथ रख दिया, बोल वह भी कुछ नहीं सका । बोलने को था भी क्या ?

इस बीच पता नहीं कब चाय ठंडी हो गई ? पत्नी को फिर से चाय गरम करने के लिए कहने का भी मन नहीं हुआ ।

प्रिय पाठको, हम आपकी खुशी से जलते नहीं है बल्कि यही सोच कर खुश हैं कि चलो कोई तो खुश है, भले ही गफलत में ही सही ।

२०-१२-२०१०


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Dec 20, 2010

हिंदू आतंकवाद


दिग्विजय सिंह जी,
चमचे और मीडिया वाले आपको प्यार से या पता नहीं, उल्लू बनाने के लिए 'दिग्गी-राजा' कहते हैं और आप भी अपने को राजा मानकर खुश हो लेते हैं, वैसे असलियत तो जो है वह है ही । हमें भी कुछ लोग बनाने के लिए प्रिंसिपल साहब कहते हैं जब कि हम भूतपूर्व वाइस प्रिंसिपल हैं । और वाइस प्रिंसिपल भी कैसे ? सारी ज़िंदगी पूरे दिन क्लासें पढ़ाते रहे, कापियाँ जाँचते रहे, हाज़री लेते रहे, फीस जमा करते रहे । केवल रिटायरमेंट से पहले एक साल के लिए इस पद पर स्थापित हुए । तब भी हमने तो प्रिंसिपल से कह दिया- बंधु, न तो हमें पैसे का हिसाब-किताब आता है और न ही प्रशासन । आप कहेंगे तो दो क्लास फालतू पढ़ा देंगे और फिर भी आप नहीं निभा सको तो वापिस लौट जाएँगे । बेचारे भले आदमी थे सो निभ गई । अब जब हमें कोई प्रिंसिपल कहता है तो हम यह सोच कर सावधान हो जाते हैं कि अब यह उल्लू बनाने वाला है सो तत्काल सुधार कर देते हैं कि हम प्रिंसिपल नहीं रहे ।

अब न आपके पास कोई जागीर है और न हमारे पास कोई अधिकार । हमारे पास तो खैर, कभी भी नहीं रहे । आपके पास तो दस साल तक मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्रित्व रहा हुआ है । अब दिल्ली में रह कर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए हिंदू आतंकवाद पर वक्तव्यों से दिग्विजय कर रहे हैं । गृहमंत्री के रूप में चिदंबरम ने सारे देश-दुनिया को देखकर भगवा आतंकवाद का आविष्कार किया और राहुल बाबा ने भी 'भारत की खोज' करने के बाद अमरीकी राजदूत को एक मन्त्र दिया कि इस देश को इस्लामिक आतंकवादी संगठनों की बजाय हिंदू कट्टरपंथी संगठनों से अधिक खतरा है जैसे कि इस्लामिक अतिवादी संगठन तो उनका हुक्म मानते हैं और इनके कहते ही अपनी गतिविधियां बंद कर देंगे ।

हम न तो कहीं के मुख्यमंत्री रहे, न गृहमंत्री हैं और न ही कभी भारत की खोज करने के लिए किसी प्लेन या हेलिकोप्टर का जुगाड़ हुआ, फिर भी नौकरी के दौरान कोई, गोडफादर न होने के कारण बहुत धक्के खाने पड़े हैं । इस चक्कर में हमने भी इस देश को थोड़ा बहुत देखा है । थोड़ा बहुत इतिहास भी पढ़ा है और इतिहास पढ़ने से अधिक उसके शोध में टाँग अड़ाई है और उसी के आधार पर कुछ चामत्कारिक मान्यताएँ स्थापित की हैं । उन्हीं मान्यताओं के आधार पर हम इस हिंदू आतंकवाद के बारे में कुछ कहना चाहते हैं ।

हमारा ख्याल है कि महमूद गज़नवी एक श्रद्धालु तीर्थयात्री था और वह मथुरा और सोमनाथ की यात्रा करने आया था और तीर्थयात्रा करके अपने देश चला गया था । इन मंदिरों के पुजारियों ने खुद ही मंदिर का खजाना चोरी कर लिया और उस बेचारे भले आदमी का नाम लगा दिया । वह तो अपने देश में बैठा था । अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए आ भी नहीं सका और अब तक इतिहास में यही पढ़ाया जा रहा है कि महमूद गज़नवी ने भारत पर आक्रमण किया और सोमनाथ और मथुरा के मंदिरों को लूट ले गया । पता नहीं, अर्जुन सिंह जी से इतिहास की किताबों में यह संशोधन करवाने से कैसे छूट गया । अब तो उनके दुबारा आने की संभावना नहीं है सो अब तो नए मंत्री की जिम्मेदारी है इस झूठ को ठीक करवाने की ।

शाहजहाँ के काल में आने वाले विदेशी पर्यटकों ने बीस करोड़ रुपए खर्च करके बीस साल में ताजमहल बनवाने जैसी छोटी-मोटी घटना का उल्लेख नहीं किया तो यहाँ के कुछ इतिहासकार कहने लगे कि शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया ही नहीं । उसने तो तेजोमहालय नामक एक शिव मंदिर को नया रूप देकर उसे ताजमहल नाम दे दिया । जब शिवाजी ने बघनखे से बेचारे अफज़ल खान को मारना चाहा तो उसने भी तलवार निकाल ली और लोगों ने इतिहास में लिख दिया कि अफज़ल खान शिवाजी को धोखे से मारना चाहता था ।

हमारा ख्याल है कि यह ओसामा भी कोई छद्म हिंदू ही है जो मुसलमान नाम से दुनिया में आतंक फैला कर इस्लाम को बदनाम कर रहा है वरना तो इस्लाम तो शांति और प्रेम का धर्म है । जो भी यहाँ आया प्रेम और शांति का सन्देश लेकर आया जैसे महमूद गज़नवी, मोहम्मद गौरी, बाबर, अहमद शाह अब्दाली, नादिर शाह आदि । और उसी प्रेम से प्रभावित होकर बहुत से हिंदू अपने क्रूर धर्म को छोड़कर मुसलमान बन गए तो इसमें किसका दोष ?

यदि अफगनिस्तान के मुसलमान मूर्ति-भंजक होते तो वे सैंकडों वर्ष पहले ही बामियान में बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ चुके होते । मगर ऐसा नहीं हुआ । दो हजार साल तक ये मूर्तियाँ सुरक्षित खड़ी रहीं । और अब २००० में ही ऐसा क्या हो गया कि ये मूर्तियाँ टूट गईं । इन्हें भी यहाँ के किसी हिंदू ने ही तोड़ा है । ज़रा सख्ती से जाँच करवाएँगे तो सच निकल आएगा । वैसे इसे मान लेने के लिए हमारी यह तर्कपूर्ण मान्यता ही काफी है ।

हमें तो लगता है कि गवांतेनामो की जेल में भी सारे हिंदू ही तो हैं जो मुसलमान नाम और रूप धर कर अमरीका में आतंकवाद फैला रहे थे । इनकी इस चालाकी से बिना बात ही इस्लाम बदनाम हो रहा है ।

कश्मीर के पंडित कश्मीर की सर्दी से बचने के लिए जलवायु परिवर्तन के लिए जम्मू और दिल्ली में आकर बस गए और मजे से सरकारी सहायता के पैसे से मौज कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें कश्मीर से निकाल दिया । जब कि कश्मीर में युवा बेचारे पत्थर फेंक कर दो सौ रुपए में किसी तरह से गुजर कर रहे हैं । आपने अफज़ल गुरु का फोटो देखा ? बेचारा कितना निरीह और डरा हुआ लगता है ? क्या ऐसा सीधा-सादा व्यक्ति कुछ ऐसा-वैसा कर सकता है ? हमें तो लगता है कि बेचारे को बिना बात फँसा दिया गया है । और फिर वह 'उस्ताद' नहीं 'गुरु' है और गुरु तो हिंदू होता है । हमारी संस्कृति में तो गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है और इस गुरु से ऐसा बर्ताव ?

और सारी बातों को छोड़ भी दें तो यह तो सत्य है कि इस्लाम तो केवल १५०० वर्ष पहले आया है इससे पहले तो इस देश में और इसके आसपास सारे हिंदू ही तो थे । इन सब के पूर्वज भी हिंदू ही थे । तो इस बात को मानने में क्या ऐतराज हो सकता है कि यह सारी खुराफात हिंदू ही कर रहे हैं ।

कुछ कट्टर हिंदुओं ने एक यह भी गलत मान्यता फैला रखी है कि फारस में इस्लाम के उदय के बाद अपने धर्म को बचाने के लिए अग्निपूजक पारसियों (राहुल बाबा के दादाजी के पूर्वज भी पारसी ही थे ) को भाग कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी । इसी तरह से अजमेर वाले ख्वाजा साहिब भी अपने आप को मध्य एशिया में एडजस्ट नहीं कर पाने के कारण अजमेर आ गए थे । राहुल बाबा को कह दीजिएगा कि ऐसी अफवाहों पर विश्वास नहीं करें ।

हमारे पास और भी ऐसी राष्ट्रीय एकता बढ़ाने वाली खोजें हैं । जब भी आप कहेंगे तभी उपलब्ध करवा देंगे । बस, आप तो हमारा नाम किसी राज्यपाल , किसी विश्विद्यालय के वाइस चांसलर, पी.एच.डी., राज्य सभा की सदस्यता या शांति पुरस्कार के लिए आगे बढ़वा दीजिए ।

धन्यवाद ।

१-१२-२०१०
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Dec 10, 2010

घर लौटने को बेताब काला धन


७-१२-२०१०

आज कई दिनों के बाद धूप निकली थी और ठण्ड भी कुछ कम थी सो चबूतरे पर बैठ कर तोताराम के साथ चाय पी रहे थे कि एक सज्जन पधारे । आते ही बोले- सर, मैं आपको कुछ लौटने आया हूँ । हमें आश्चर्य हुआ कि आज पहली बार कोई कुछ लौटने आया है नहीं तो कोई आज तक लौट कर नहीं आया- बिना कोई गाना गाए कि 'कोई लौटा दे मेरे ...’ । लगा, शायर के विचारों के विरुद्ध गया वक्त भी लौट कर आ सकता है । मगर हमें यह ध्यान नहीं आ रहा था कि आज तक हमने इसे क्या दिया है जिसे यह लौटने आया है ?

पूछा तो बोला- मास्टर जी, मैं स्विस बैंक का मैनेजर हूँ और बैंक में जमा आपके देश का पैसा लौटाने आया हूँ ।


हमने कहा- मगर अभी तो यह भी तय नहीं हुआ है कि हमारे देश का कितना पैसा तुम्हारे यहाँ जमा है ? सरकार ने चार संस्थानों को ठेका दिया है यह पता करने के लिए कि स्विस बैंक में हमारा कितना पैसा है ? जब सही पता चल जाएगा तब उसके हिसाब से बोरे सिलवाने का टेंडर निकालेंगे, लाने के लिए किसी कंपनी को ठेका देंगे, फिर लाने का काम शुरु होगा । अभी तो संभव नहीं है ।

बोला- कुल पैसे का पता करने के लिए ठेका देने की ज़रूरत नहीं है । वह तो अभी कुछ दिन पहले जब शांताकुमार जी संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष सत्र में भाग लेने के लिए गए थे, तभी हमने उन्हें बता दिया था कि मात्र सत्तर लाख करोड़ रुपया जमा है आपके देश का । सो पता लगाने के लिए ठेका देने की ज़रूरत नहीं है । और हम तो सोच रहे हैं कि आप कहें तो हम खुद ही लाकर यहाँ डाल दें ।

हमने कहा- भाई, अब तक तो कोई यह पता भी नहीं कर सकता था कि आपके बैंक में किसका खाता है और किसके कितने पैसे जमा हैं और अब तुम खुद ही सब बताते फिर रहे हो और बताते भी क्या यहाँ लाकर पटकने के लिए उतावले हो रहे हो । क्या बात है ?

कहने लगा- साहब, हमें अब तक पता नहीं था कि यह पैसा चोरी का है । हमारे यहाँ जमा करवाने वाले तो कहते थे कि साहब किसी तरह लोगों की सेवा करके यह थोड़ा बहुत कमाया है । रखने के लिए घर भी नहीं है । सो आप अपने यहाँ रख लीजिए । जब ज़रूरत होगी तो आकर ले जाएँगे । मगर लेने कोई नहीं आया । अब तो हमारे पास रखने के लिए भी जगह नहीं है ।

हमें भी उसकी बातों में मज़ा आने लगा था सो कहा- मगर तुमने उसकी बातों पर विश्वास कैसे कर लिया ? अरे, महमूद गज़नवी, नादिर शाह, अहमद शाह अब्दाली, अंग्रेजों, फ्रांसीसियों, पुर्तगालियों के लूटने के बाद बचा ही क्या होगा जो लोग इतना धन जमा करवा गए और तुमने बिना सोचे-समझे जमा भी कर लिया ?

कहने लगा- सर, जमा करवाने वालों ने कहा था कि हमारा देश सोने की चिड़िया है । विभिन्न देशों द्वारा इतनी लूट के बाद भी उसकी समृद्धि में कोई कमी नहीं आई है । और आजादी के बाद तो यह चिड़िया केन्द्र में जा बैठी है और उसके पंखों से लगातार काला सोना झरता है । सत्ताधारी, जिनके हाथ लंबे हैं वे अधिक; और जो विपक्षी हैं, जिनके हाथ थोड़े छोटे हैं, वे कुछ कम; और जो बहुत छोटे लोग हैं जैसे सरपंच, पंच, नरेगा वाले, वे भी कुछ न कुछ पा ही जाते हैं । आजकल सेवा में बड़ा स्कोप है ।

तोताराम ने, जो अभी तक चुप बैठा था, चुटकी ली- तभी तुम योरप के गोरे लोग इतना कष्ट उठा कर सेवा करने के लिए एशिया, अफ्रीका गए ।

कहने लगा- वो तो प्रभु की आज्ञा थी कि ये अभागी काली आत्माएँ हैं । जाओ, इन्हें ईसाई बनाओ और इनका उद्धार करो । सो धर्म की आज्ञा का पालन करने के लिए जाना पड़ा । वैसे हमें अब भी धर्म पर पूरी श्रद्धा है । जब हमें पता चला कि यह पाप की कमाई है तो हम उसे वापिस करने के लिए बेताब हो गए । शांताकुमार लाए नहीं, नहीं तो हम उनके साथ ही भेज देते । बोले कि हम सत्ता में नहीं है इसलिए तुम दिल्ली बात करो ।

हमने कहा- तो दिल्ली जाओ ना । यहाँ क्यों आ गए ?

कहने लगा- गया था दिल्ली । अडवानी जी चुनावों के समय कह रहे थे कि काला धन वापिस लाऊँगा । सो पहले उन्हीं से मिला तो कहने लगे- अभी टाइम नहीं है । यदि मैं तुमसे काला धन लेने में लग गया तो यू.पी.ए. ससंद चला लेगा और मैं नहीं चाहता कि संसद चले । अब यही तो एक मुद्दा बचा है अगले चुनाव के लिए ।

हमने कहा - तो फिर मनमोहन सिंह जी से मिल लेते । वे भी कह रहे थे कि चुनावों के बाद सौ दिन में कार्यवाही करेंगे ।
उसने ज़वाब दिया- उनसे क्या मिलता ? वे तो जब भी संसद में कुछ उल्टा-सीधा होने लगता है तो विदेश यात्रा पर चले जाते हैं या मौन व्रत धारण कर लेते हैं ।

तो भाई, वित्त मंत्री प्रणब मुकर्जी हैं, सबसे सीनियर नेता ।


मिला था, मिला था उनसे भी । कहने लगे- यहाँ पैसे की कोई कमी नहीं है । पहले से ही इतना पड़ा है कि कामनवेल्थ गेम्स, २-जी स्केम, नरेगा, अनाज घोटाले, हथियार खरीदने, सड़कें बनवाने के बाद भी खत्म नहीं हो रहा है । विदेशी मुद्रा भण्डार उफना पड़ रहा है । और ऊपर से ग्रोथ-रेट नौ प्रतिशत से ऊपर जाए जा रही है सो अलग । अब क्या-क्या सँभालें ? अगर तुम यह पैसा दे जाओगे तो फिर कोई न कोई स्केम करने के लिए जी ललचाएगा । और फिर वैसे ही लोग दिल्ली से कर्नाटक तक ज़मीन हड़पने में लगे हुए हैं । ज़मीन है ही कहाँ जिस पर इस पैसे को रखने ले किए गोदाम बनवाएँ । अनाज रखने तक के लिए तो जगह नहीं है । वही खुले में पड़ा सड़ रहा है । अभी तुम अपने पास ही रखो ।

कहने लगा - मैं सोचता हूँ यदि यह काम निबट जाए तो क्रिसमस अपने देश जाकर ही मनाऊँ । अभी तो आप लोग चाय पीजिए । कल मैं फिर आपकी सेवा में हाज़िर होऊँगा ।

पता नहीं, भगवान क्या चाहता है ? यह कोई सामान्य स्थिति नहीं है । तोताराम और हमने चुपचाप एक दूसरे की ओर देखते रहे ।




८-१२-२०१०

आज सवेरे-सवेरे स्विस बैंक का मैनेजर तोताराम से भी पहले आ गया । कल भी उसे चाय नहीं पिलवाई थी सो तोताराम का इंतज़ार किए बिना ही चाय बनवा ली । अभी चाय चल ही रही थी कि तोताराम भी आ गया ।

हमने सुझाव दिया- जब कोई भी लेने को राजी नहीं है तो अपने पास ही रख लो ।
बोला- साहब, समझ में आने के बाद चोरी की कमाई अपने पास रखना भी चोरी करने के बराबर ही है ।
- तो फिर हमें ही यह चोरी की कमाई रखने का पाप क्यों चढ़ा रहे हो ?
- हम आपको एक सर्टिफिकेट दे देंगे कि यह धन हमने मास्टर जी को अपने पास तब तक रखने के लिए दिया है जब तक कि इसका मालिक लेने नहीं आए या सरकार इसे लेने के लिए राजी न हो जाए ।

हमने अपनी मज़बूरी बताई- भाई, देखो हमारे कब्जे में यह एक ही कमरा है जिसमें आधे में तो हमारी किताबें भरी हैं और आधे में हम मियाँ-बीवी सोते हैं । नया कमरा बनवाने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं । पेंशन में बस, राम-राम करके काम चलता है । और मान लो यदि टिन का एक कमरा बनवा भी लें तो उसमें इतने पैसे आएँगे नहीं । बरसात आई तो भीग जाएँगे या फिर लोग ही उठा ले जाएँगे । जब सरकार को पता चलेगा तो पता नहीं कौन-कौन हिसाब पूछने लगेगा ? हम कौन से मंत्री हैं जो सारे कुकर्मों के बावज़ूद बच जाएँगे । हमें तो कोई भी बेचारी नीरा यादव की तरह जेल में डाल देगा ।

- तो फिर एक उपाय है कि आप अपने यहाँ स्विस बैंक ही खोल लीजिए ।
- मगर यह तो झूठ है और पेटेंट कानून का उल्लंघन है ।
- अरे जब अमरीका हजारों वर्षों से भारत में इलाज के काम आने वाली हल्दी का पेटेंट ले सकता है, जापान कढ़ी का पेटेंट ले सकता है तो आप स्विस बैंक का नाम यूज क्यों नहीं कर सकते ?
- भाई, अमरीका की बात और है, वह तो बासमती चावल भी बेच रहा है । और फिर स्विस बैंक तो दुनिया में एक ही है और वह स्विटज़रलैंड में है ।
- कोई पूछे तो कह देना इसका फुल फॉर्म 'सकल विश्व इंडियन स्केम सहकारी बैंक' है । आपके यहाँ पहले भी तो 'उल्हासनगर सिंधी एसोसिएशन' की चीजें मेड इन यू.एस.ए. के नाम से बिका करती थीं । 'जैपान' नाम से आपके यहाँ एक कंपनी जापान का भ्रम पैदा कर रही है कि नहीं ?

हमने तंग होकर कहा- ठीक है बैंक खोल लेंगे मगर रुपया रखने को जगह तो हो ।

उसने इसका भी उपाय बताया, कहने लगा- आप यह सत्तर लाख करोड़ का चेक रख लीजिए । हमारे सर से तो यह पाप का भार उतरे, प्रतीकात्मक रूप से ही सही । जब भी कोई माँगने आए तो आप उसे डिमांड ड्राफ्ट बना कर दे दीजिएगा । और जब वह हमारे पास आएगा तो हम उसे पेमेंट कर देंगे ।

हम चुप रहे तो उसने एक तीर और फेंका, कहने लगा- सोचिए , जब इतना धन देश में आ जाएगा तो ३० साल तक टेक्स लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, पचास करोड़ लोगों को नौकरी दी जा सकेगी, ५०० पावर प्रोजेक्ट लगाए जा सकेंगे ।

अब तोताराम बोला- ठीक है, तुम्हारी मर्जी । पर हम जानते है कि चील के घोंसले में कभी मांस सुरक्षित बचा है क्या ? जब तक ये सेवक रहेंगे तब तक कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं है । दो-चार बरस बाद फिर यह धन काला होकर आपके पास ही आना है । आप कहते है तो हम यह चेक रख लेते हैं । पर अगर कभी कोई झंझट पड़ा तो आपकी जिम्मेदारी होगी ।
उसने कहा- उसकी चिंता मत कीजिए । कोई झंझट पड़ा तो हम कह देंगे कि यह हमारी ही फ्रेंचाइजी है ।

उसके जाने के बाद तोताराम ने कहा- मास्टर, मुझे तो लगता है कि इसे योरप और अमरीका वालों ने भेजा है | जब काला धन यहाँ आ जाएगा तो वे लोग हमें फिर से अनाप-शनाप हथियार बेच कर यह पैसा झटक लेंगे | यदि यह पैसा स्विस बैंक के पास ही रहता तो कभी न कभी, वक्त-ज़रूरत देश के काम आ सकता था |

अब हम क्या कहते । आगे क्या होगा, राम जाने । वैसे आप की क्या राय है ?


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Dec 8, 2010

तोताराम और मनमोहन जी का एहसान


इस साल बरसात ज्यादा ही हुई और दिवाली तक भी पीछा नहीं छूटा । अब जाकर बरसात बंद हुई तो सर्दी भी जल्दी ही आ गई । अभी तो दिसंबर शुरु ही हुआ है कि पारा पाँच डिग्री पर चला गया और ऊपर से कोहरा । वैसे हमारी कौन सी फ्लाईट लेट हो रही है मगर दिन में कोहरा पड़ने से फिर रात और दिन बराबर हो जाते हैं । दिन में धूप निकलने से कुछ राहत मिल जाया करती थी मगर अब वह भी नहीं । दिन में भी रात जैसी ठिठुरन । सुबह होते ही लाइट चली गई थी । बाहर बैठने से कोई फायदा नहीं, हवा है । अंदर बैठ कर अखबार पढ़ सकने जैसी रोशनी नहीं सो रजाई में बैठे-बैठे ही समाचार सुन रहे थे कि बाहर से तोताराम की आवाज़ आई- अरे मक्खीचूस, इतनी बचत करके क्या करेगा ? लाइट तो जला ले । हम ज़वाब देते उससे पहले तो तोताराम हमारी रजाई के अंदर ।

कहने लगा- लाइट बंद क्यों कर रखी है ? हमने कहा- तुमने सुना नहीं कि ‘लाइट सेव्ड इज लाइट जेनरेटेड’ मतलब कि ऊर्जा की बचत ही ऊर्जा का उत्पादन है । सो ऊर्जा का उत्पादन कर रहे हैं ।

तोताराम कहने लगा- अरे, अब तो बिजली-बिजली रोना छोड़ । अब तो तेरे लिए मनमोहन सिंह जी, जो भी आता है उसी से, दो-चार परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए करार कर तो रहे हैं । अभी फ़्रांस के राष्ट्रपति आए तो साढ़े छः अरब डालर की दर से छः संयंत्रों का समझौता किया कि नहीं । इससे पहले ओबामा जी आए तो भी दस हजार करोड़ का एक समझौता किया ही था । और अब रूस के राष्ट्रपति आ रहे हैं तो उनसे भी कुछ इंतज़ाम करवाएँगे । अब और क्या चाहता है तू मनमोहन सिंह जी से ? क्या नरेगा वाला पैसा भी लगा दें, तेरे लिए बिजली बनवाने के लिए ?

हमने कहा- भैया, यह खर्चा हमारे लिए नहीं, भारत की सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए कर रहे हैं जिससे अगले चुनाव में कोई तो उपलब्धि बताई जा सके । अब २-जी स्पेक्ट्रम तो कोई उपलब्धि रही नहीं ।

तोताराम बोला- विकास के लिए इतनी सिद्दत से किए गए प्रयत्नों को जान बूझ कर छोटा करने की कोशिश मत कर । अरे, जब बिजली बनेगी तो सारे राष्ट्र के ही काम आएगी । राज चाहे किसी भी पार्टी का हो । यह तो अगली पीढ़ियों के लिए पेड़ लगाने जैसा पवित्र काम है ।

हमने फिर अपनी बात रखी- यदि यह वास्तव में केवल विकास के लिए बिजली की ही बात है तो भी हमें क्या फायदा ? हमें तो दो सौ रुपए महिने से ज्यादा की बिजली जलानी नहीं । यदि सारे महिने भी बिजली न आए तो भी मिनिमम चार्जेज तो देना ही पड़ेगा जैसे कि एक भी काल न करो तो भी लेंडलाइन का दो सौ रुपया महीना तो देना ही पड़ेगा । वैसे यह देश जब बिजली का आविष्कार भी नहीं हुआ था तब मशालों और दिए की रोशनी में ही सोने की चिड़िया बन गया था । ये परमाणु बिजली घर हमारे लिए नहीं, अम्बानियों के लिए लगाए जा रहे हैं । पता है, मुकेश अम्बानी के घर का बिजली का एक महिने का बिल कितना है ? सत्तर लाख रुपए । हमारी-तुम्हारी सारी ज़िंदगी की नौकरी की तनख्वाह और पेंशन भी सत्तर लाख नहीं बनेगी ।

तोताराम अम्बानी का भक्त है क्योंकि आज तक जो दुनिया किसी की मुट्ठी में नहीं हुई उसे मुकेश ने अपनी मुट्ठी में जो कर लिया । बोला- तेरा घर है एक लाख रुपए का और बिजली का बिल आता है दो सौ रुपए महीने । मुकेश का घर है चार हजार पाँच सौ करोड़ का और उसका महीने का बिजली का बिल केवल सत्तर लाख । घर की कीमत के हिसाब से उसका बिजली का बिल आना चाहिए नब्बे लाख रुपए महिना । हर महिने वह बिजली पर बीस लाख रुपए कम खर्च कर रहा है । और क्या चाहता है ? क्या इतना बड़ा आदमी लालटेन जलाकर रहे ? कुछ तो देश की इमेज का ख्याल कर ।

हम ऐसे सकारात्मक चिंतन वाले को और क्या कह सकते थे, कहा- तो ठीक है तोताराम, कल कहीं से एक सोलर लालटेन का इंतज़ाम कर फिर यह बिजली का कनेक्शन ही कटवा देते हैं । वैसे कटवा तो आज ही देते और अपने वाली लालटेन जलाना शुरु कर देते मगर सरकार हमें केरोसिन जलाने जितना गरीब नहीं मानती । उसके हिसाब से हम सवर्ण हैं और हर सवर्ण सेठ होता है । गरीब तो रामविलास पासवान और मायावती जैसे दलित हैं । फिर तेरे मनमोहन जी को लिख देते हैं कि साहब, हमारी तरफ से चाहे जितने अरब-खरब डालर के समझौते करें पर हम पर कोई एहसान लादने की ज़रूरत नहीं है ।

८-१२-२०१०

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Dec 2, 2010

विकिलीक्स का असांज और हिलरी का असमंजस


हिलरी जी,
नमस्ते । हम तो आपके बहुत पहले से ही प्रशंसक हैं । तब से, जब आप मात्र एक वकील और क्लिंटन जी की पत्नी ही थीं सांसद तो खैर आप बाद में बनीं हैं । जब क्लिंटन जी उस प्रशिक्षु मोनिका वाले केस में फँस गए थे तब आपने एक सच्ची और आदर्श भारतीय पत्नी की तरह उनको बचाने के लिए मौन धारण कर लिया था और महिला स्वतंत्रता वाली औरतों के बहकावे में नहीं आईं । बड़ा समझदारी का निर्णय था । जो हो गया सो तो हो ही गया, चाहे क्लिंटन की फजीहत हो और चाहे आपका अपमान । अगर उस समय गुस्से में आकर बोल पड़तीं तो मियाँ जी की और किरकरी होती और राष्ट्रपति पद की पेंशन से भी हाथ धो बैठते । अच्छा किया । पर हम इतना ज़रूर जानते हैं कि आपने घर में उनकी अच्छी तरह से खबर ली होगी । बस उसी दिन से हम आपकी कूटनीति और ज़ब्त करने की क्षमता के कायल हो गए थे ।

अब यह विकिलीक्स वाला लफड़ा आ गया । वैसे लोग कह रहे हैं कि अमरीका की बड़ी किरकिरी हो रही है । पर आप और हम जानते हैं कि इससे कुछ फर्क पड़ने वाला नहीं । यह सब तो होता ही रहता है । क्या घर में नल लीक नहीं करता ? पहले जब स्याही वाला पेन चलता था तो क्या उसकी स्याही लीक नहीं होती थी ? आपने देखा होगा कि बहुत से लोगों की सर्दियों में प्रायः नाक लीक करने लग जाती है । कुछ लोग सावधान नहीं होते तो नाक का वह द्रव पदार्थ कभी-कभी मुँह में भी प्रवेश कर जाता है । कई पशु वर्षा ऋतु में अधिक घास खा जाते हैं तो वे भी पीछे से लीक होकर सड़कें गंदी करते फिरते हैं । जिन देशों के पास बिना मेहनत के जब ज्यादा धन आ जाता है तो वे भी दुनिया में गंदगी लीक करते फिरते हैं, जैसे कि आज कल के नवधनाढ्य वर्ग के लाडले सपूत । क्या जब डेयरी के दूध की थैली लाते हैं तो कभी-कभी वह लीक नहीं होती ? क्या घर-घर की बातें ऐसे ही लीक नहीं होतीं ? मोनिका वाली बात भी तो लीक हो गई थी । निक्सन के वाटर गेट का वाटर भी तो लीक हो गया था । क्या हुआ दो-चार दिन थू-थू हुई और फिर सब ठीक हो गया । क्लिंटन जी फिर से ठहाके लगाने लग गए । सो यह विकी लीक वाला लीकेज भी बंद हो जाएगा ? ‘एम-सील’ की तरह आपके यहाँ भी लीकेज ठीक करने के लिए कुछ न कुछ ज़रूर आता होगा । हमारे यहाँ तो किसी भी केस को निबटाने का सब से बढ़िया तरीका यह है कि या तो फ़ाइल गायब करवादो या उस दफ्तर में ही आग लगवा दो । न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी । लिखने को तो हम ओबामा जी को भी लिख सकते थे मगर वे तो इधर-उधर कम ही जाते हैं मगर आपको तो ट्रेवलिंग सेल्समैन की तरह सारी दुनिया में घूमना पड़ता है । क्या पता, कब कोई, क्या सवाल कर ले ?

वैसे लीक करने को टपकना भी कहते हैं । टपकना एक निरंतर प्रक्रिया है । तभी विद्वानों ने कहा है- 'बूँद बूँद से घट भरे, टपकत रीतो होय' ।
इस सूचना-घट रूपी मोबाइल का मेसेज बोक्स समय-समय पर खाली करते रहना चाहिए । और फिर हम तो कहते हैं कि ऐसे सद्वाक्यों का संग्रह करने से क्या फायदा ? इनका तो मुखारविंद से बोलकर ही सुख लिया जाना चाहिए । मौखिक होने से कभी भी बयानों से मुकरा जा सकता है, जैसे कि हमारे नेता । जब कुछ भी, जिसे हमने अन्तरंग क्षणों में कहा है, सरे आम प्रकट हो जाए तो एक बार तो अजीब लगता ही है । किसी भले आदमी को शर्म भी आ सकती है । मगर यह कमज़ोर आदमियों की बीमारी है । नेताओं को शर्माना शोभा नहीं देता । शर्म तो कुलवधुओं का शृंगार है । वेश्या के मामले में तो यह दुर्गुण माना जाता है । सो शर्म को झटकिये और काम पर चलिए ।

बेताल की तरह हम भी आपको लीक करने, मतलब कि टपकने, के बारे में एक कहानी सुनाते हैं । एक बुढ़िया थी । उसकी झोंपड़ी टपकती थी । एक बार सर्दी का मौसम था । बारिश के आसार बनने लगे । बुढ़िया बड़बड़ाने लगी- मुझे शेर से भी इतना डर नहीं लगता जितना टपूकड़े से लगता है । बरसात में भीगता-भीगता एक शेर उस झोंपड़ी के पास खड़ा था । उसने सोच- यह टपूकड़ा तो लगता है कि मुझ से भी खतरनाक जानवर है । तभी एक कुम्हार अपने गधे को ढूँढता हुआ वहाँ आ गया । बिजली की कौंध में उसने शेर को अपना गधा समझा और कान पकड़ कर घर ले गया । शेर ने उसे टपूकड़ा समझ कर चूँ तक नहीं की ।

सो टपूकड़े को इतना खतरनाक समझने से कभी-कभी उस शेर जैसी हालत हो सकती है । इसलिए आप इससे बिलकुल भी मत घबराइए । वैसे हमें विश्वास है कि आप घबरा भी नहीं रही होंगी । इतने बड़े देश को पता नहीं क्या-क्या करना पड़ता है ? ऐसे ही घबराने लगे तो हो ली दुनिया की थानेदारी ।



अब कोई पूछने वाला तो हो भाई क्या है उस विकीलीक में ? यही कि किसी को 'कुत्ता' कह दिया, किसी को नंगा । अजी हमारे यहाँ कहावत है- ‘हमाम में सभी नंगे होते हैं' । सभी अपनी निजी बातों में ऐसी ही ‘संसदीय-भाषा’ का प्रयोग करते हैं । पहले किसिंगर और निक्सन के निजी वार्तालाप में हमारी नेता इंदिरा जी को 'बूढ़ी चुड़ैल' कहा गया था । यह 'प्रशंसा' तो बहुत पहले लीक हो गई थी मगर किसी भी देश भक्त या कांग्रेस भक्त ने कोई विरोध प्रकट नहीं किया । वैसे आप जानती हैं कि विरोध प्रकट करके भी हम क्या कर लेते ? यह बात और है कि अब, जब सुदर्शनजी ने सोनियाजी के बारे में कुछ कहा तो भक्तों ने बड़ा हल्ला मचाया और एक ने तो कोर्ट में केस भी कर दिया । गोरे लोगों की बात और है । उनकी गाली को हमने कभी गाली नहीं माना । वे हमें प्यार से 'ज़मीन पर हगने वाला काला आदमी' और 'कुत्ता' कहा करते थे । और हम 'यस सर' कह दिया करते थे । ठीक भी है, गोरे लोगों का हगा हुआ तो गुरुत्वाकर्षण के नियमों के विरुद्ध कहीं अंतरिक्ष में चला जाता है ।

वैसे जहाँ तक कुत्ते की बात है तो ओबामा जी ने खुद स्वीकार किया है कि विरोधी पार्टी वाले उन्हें 'कुत्ता' कहते हैं । कुत्ता कोई बुरा शब्द नहीं है । एक फिल्म में तो राजेश खन्ना शर्मीला टैगोर को 'कुत्ती चीज' कहता है । प्यार में इस शब्द के बड़े अध्यात्मिक मायने हैं । कबीर दास तो अपने को 'राम की कुतिया' कहते हैं-
कबीर कुतिया राम की मुतिया मेरो नाउँ ।
गले राम की जेवड़ी जित खेंचे तित जाउँ । ।
राजनीति में इतनी भक्ति और समर्पण संभव नहीं है फिर भी कभी न कभी अपने स्वार्थ ले किए किसी न किसी का कुत्ता बनना ही पड़ता है ।

यदि यह विकिलीक वाला लीकेज नहीं भी होता तो भी सारी दुनिया जानती ही है कि किस देश का क्या चरित्र है । एक बार अमरीका ने रूस की जासूसी करने के लिए यू.टू. नामक बहुत ऊँचाई पर उड़ने वाला एक विमान भेजा जो ज़मीन पर से किसी भी राड़ार की पकड़ में नहीं आता था । यह बात आइजनहावर के ज़माने की है । रूस ने कहा- अमरीका हमारी जासूसी करने के लिए विमान भेज रहा है । अमरीका ने मना किया । रूस ने फिर कहा- हमने उसे मार गिराया है । तो अमरीका ने कहा- हाँ, हमारा एक विमान रास्ता भटक गया था, हो सकता है यह वही विमान रहा हो । रूस ने फिर कहा- हमने उस विमान को गिरा लिया है, उसका पाइलट जिंदा है, हमारी हिरासत में है और उसने सब कुछ कबूल लिया है । तो अमरीका अपने वाली पर उतर आया और कहा- हाँ, हमने जासूसी की है और करते रहेंगे । रूस ने कहा- 'अब की बार जब कोई विमान हमारे यहाँ आया तो हम उस अड्डे को ही नष्ट कर देंगे जिससे वह उड़ कर आया होगा' । इसके बाद अमरीका ने कोई विमान नहीं भेजा । खैर, अभी तो ऐसी कोई चुनौती है नहीं । अगर इस विकिलीक के कारण ऐसी कोई समस्या आई तो देखेंगे । अभी से क्या परेशान होना ।

वैसे दुहरा आचरण करने वाले की भी बड़ी समस्याएँ होती हैं । सच बोलने वाले को कुछ भी याद नहीं रखना पड़ता । चाहे आधी रात को उसे उठाकर पूछो तो भी कोई समस्या नहीं । वही बोलना है जो हमेशा बोलता है । मगर झूठ बोलने वाले को बहुत याद रखना पड़ता है कि किसको, कब, क्या बताया था ? जब अमरीका सारी दुनिया में तरह-तरह के धंधे करता है तो कई तरह की बहियाँ रखनी पड़ती हैं, कई तरह के उलटे-सीधे काम करने पड़ते हैं, जाने किस-किस को क्या-क्या कहना पड़ता है । कभी भी, कुछ भी लीक होने का डर रहता है । नामी-बेनामी प्रोपर्टी का धंधा करने वाले के सैंकड़ों प्लाट होते हैं । तो कभी-कभी चक्कर में भी पड़ ही जाता है । मगर ऐसी छोटी-मोटी बातों के कारण धंधा तो नहीं छोड़ा जा सकता ना ।

खैर, अमरीका की इस स्थिति के बारे में फिर कभी बात करेंगे । अभी तो इस लीकेज को ठीक करवाइए । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाटक का मुखौटा उतार कर, किसी न किसी तरह इस विकी लीक वाले जूलियन असांजे को ठिकाने लगवाइए । वैसे इंटरपोल ने वारंट जारी करके इस शुभ कार्य का श्रीगणेश कर तो दिया है । और आपके बगलबच्चे कनाड़ा के प्रधान मंत्री के सलाहकार कॉलेज के प्रोफ़ेसर टॉम फ्लेनेगन ने तो असांज की हत्या करने की नेक और लोकतांत्रिक सलाह भी साफ़-साफ़ दे ही दी है । यदि ज्ञान के पुजारी एक गुरु ने ही सत्य का गला घोंटने की सलाह दी है, तो ये पश्चिम का पढ़ा-लिखा तालिबान ही है ? अब देर किस बात की- शुभस्य शीघ्रं ।

१-१२-२०१०

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