Jun 26, 2015

सच्चा योगी

  सच्चा योगी

राजपथ योगपथ बन गया | भारत को इस बहाने फिर जगदगुरु का दर्ज़ा प्राप्त हुआ | हमें भी अध्यापक,  सेवानिवृत्त ही सही, होने के कारण कुछ गर्व की अनुभूति हुई और फिर से भविष्य उज्जवल दिखाई देने लगा | एक रिकार्ड बना, ऐसे ही जैसे १६०० मीटर लम्बे पिज़्ज़ा का  | लेकिन यह क्या ? येचुरी जी ने सारे मूड का सत्यानाश कर दिया | कहा- कुत्ता भी स्ट्रेचिंग करता है | अब कहाँ कुत्ता और कहाँ ऋषियों का योग और देशभक्तों द्वारा विश्व में उसकी पुनर्स्थापना |  

जैसे ही तोताराम आया, हम भिड़ गए- क्या तोताराम ? ये येचुरी जी भी अजीब हैं | नाम तो सीताराम और बातें कहाँ विधर्मियों की सी कर रहे हैं |

बोला- क्या गलत कहा है ? वे सच्चे तत्त्वदर्शी हैं | सत्य के ज्ञाता | अरे, जीव मनुष्य बनने से पहले चौरासी लाख योनियों में भटकता है | अब कैसे इतनी जल्दी अपने भूतकाल को भुला दे ? यदि तूने ध्यान दिया हो तो सारे चौरासी आसनों में एक भी आसन मानवासन या मनुष्यासन नहीं है | सब के सब मानवेतर जीवों से निकले गए हैं | 

कछुआ, ऊँट, खरगोश, मछली, कुत्ता, सिंह, बगुला, मोर, मुर्गा, गरुड़, साँप, पतंगा, कबूतर, क्रौंच, टिटहरी आदि से निकले हैं | और यदि वर्ण क्रमानुसार लिखें तो सबसे पहले जो आसन आता है उसका नाम है- अधोमुख श्वानासन- मुँह झुकाए कुत्ता-विनम्रता और समर्पण की साक्षात् मूर्ति |  कविता में उपमा देखो तो शेर सी कमर, हिरन-कमल सी आँखें, हंस सी चाल आदि | मानव जैसा कुछ भी नहीं | मनुष्य के पास मनुष्य की स्वामीभक्ति का कोई उदाहरण ही नहीं है | वह भी उसे कुत्ते से लाना पड़ता है | 

पत्नी और भाइयों ने साथ छोड़ दिया लेकिन अंत तक युधिष्ठिर का साथ निभाने के लिए स्वयं धर्म को भी कुत्ता  बनना पड़ा | आदमी की तो बात ही छोड़, हिमालय में अंत तक साथ निभाने की बात तो दूर, सत्ता छिनने भनक मिलते ही अपने मालिक को काटकर दूसरी पार्टी में जा मिलता है |  कुत्ता बनना घटिया आदमी के लिए संभव नहीं | कबीर को भी समर्पण भाव के लिए राम का कुत्ता बनने के सिवा और कोई रास्ता नहीं मिला-
कबीर कुतिया राम की मुतिया मेरो नाम |


वास्तव में मनुष्य बनने के बाद ही मनुष्य को अपनी औकात का पता चलता है | कोई भी जीव न तो मनुष्य जितना डरपोक होता है और न ही स्वार्थी | कोई जीव न तो रिश्वत लेता है, न नकली डिग्री लाता है, न भूख से अधिक खाता है, न संग्रह करता है, न झूठ बोलता है | ठीक समय पर उठता है, मेहनत करके अपना भोजन ढूँढ़ता है, और शाम को संतोष पूर्वक सो जाता है | नाईट ड्यूटी वाले जीव यही काम रात को करते हैं | सब सवेरे उठते ही अपने अपने अनुसार योग करते हैं | किसी को योग करने के लिए, रिकार्ड बनाने के लिए, किसी दिन विशेष की ज़रूरत नहीं पड़ती और न ही इस काम के लिए चीन में बनी चटाइयां चाहिएं |  

आदमी तो योग में भी छवि बनाने, ड्रेस बेचने, वोट बैंक बनाने, धार्मिक वितंडा खड़ा करने और योग टीचर बन कर विदेश जाकर डालर कमाने के सपने देखता है | आदमी का मन एकाग्र होता ही कहाँ है ? वह तो शवासन में आँख टेढ़ी करके देखता रहता है कि फोटो खिंच रहा है कि नहीं | वह तो लोगों को ही नहीं, भगवान को भी धोखा देता है | 

हमने कहा- हम तो अभी तक सीताराम येचुरी को केवल कम्यूनिस्ट समझते थे | ये तो पहुंचे हुए योगी निकले | कुत्ता धर्म निभाना वास्तव में बहुत कठिन है | तभी कोई भी आदमी 'कुत्ताआसन' नहीं करना चाहता | सब योग के बहाने 'सिंहासन' पर नज़रें जमाए हुए हैं |

 

Jun 23, 2015

चटाई का चक्कर

   चटाई का चक्कर

२० मई की रात को अर्थात योग-दिवस की पूर्व-रात्रि को बिजली चली गई थी | दिन में भी तापमान ४५ डिग्री के आसपास था | ये तो हम हैं मरुथल के मूल निवासी जो इस पंचाग्नि सेवन के बावजूद बचे हुए हैं | यदि कोई ठंडे देश का निवासी होता तो अब तक तो बिना योग किए ही परमात्मा के पास पहुँच गया होता | दो बजे तक का तो हमें याद है कि बिजली नहीं आई थी | इसके बाद क्या हुआ पता नहीं | जब आँख खुली तो योग- दिवस का आयोजन राजधानी के राजपथ से लेकर हमारे गाँव के गौरव-पथ तक सभी जगह समाप्त हो चुका था | यह पावन-वेला हमारे बिस्तर में पड़े-पड़े ही बीत गई | अब देश-दुनिया को क्या मुँह दिखाएँगे ? पत्नी भी देर से ही उठी | पता नहीं, तोताराम आया भी था या नहीं |

एक और दिन का गैप लग गया तोताराम को | आज सुबह-सुबह आया, खड़े-खड़े ही कहने लगा-अभी दिल्ली से नाईट बस से आया हूँ | मैं नित्य-कर्म से निबट कर आता हूँ | तू भी जल्दी से तैयार हो जा, बैंक चलेंगे | एक जनवरी २०१५ से मिलने वाली महँगाई- भत्ते की किश्त का पता करना है | एक जुलाई को अगली  किश्त घोषित होने का समय आ गया और पिछली के बकाया का ही कोई हील-हवाल नहीं | 

हमें तोताराम के इस स्वार्थी स्वभाव पर बहुत दुःख है | जाने दो दिन में कितने राष्ट्रीय महत्त्व के विषय उपस्थित हो चुके लेकिन इसे डी.ए. की किश्त के रोने से ही फुर्सत नहीं | सारी दुनिया ने योग-दिवस पर हमें 'विश्व-गुरु' स्वीकार कर लिया, बांग्ला देश ने भारत को एक दिवसीय शृंखला में हरा दिया, मानवीय आधार पर सहायता करने पर भी लोग दोषारोपण करने लगे हैं, उपराष्ट्रपति योग-दिवस कार्यक्रम में नहीं थे, ओबामा ने मान लिया है कि नस्ल भेद अमरीका के डी.एन.ए. में है (डाक्टर कहते हैं कि डी.एन.ए. को बदलना असंभव है )|

इतने सारे महत्त्वपूर्ण मुद्दों के बीच यह डी.ए. की किश्त | खैर, हमने पूछा- करवा आया दिल्ली में योग-दिवस का कार्यक्रम सफल | अच्छा रहा, जो तू चला गया अन्यथा इतना बड़ा कार्यक्रम अकेले मोदी जी के वश का नहीं था | लेकिन क्या बताएं, बन्धु ! हम तो योग-दिवस में शामिल नहीं हो सके | पहले बिजली नहीं थी और आधी रात के बाद आई तो ऐसी नींद लगी कि सोते-सोते ही योग-दिवस हो गया | 

अब तोताराम ने हमें पकड़ लिया- बस, अब समझ में आया डी.ए. की किश्त का बैंक में न जाने का कारण | अरे, खटिया तोड़ कर पंद्रह हजार महिने की पेंशन फाड़ रहे हो और सरकारी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए | सरकारी कर्मचारी वह पत्नी है जो न तो दूसरा विवाह कर सकती है और न ही दिवंगत पति के श्राद्ध के उत्तरदायित्व से मुक्त हो सकती है | जब तक जिंदा हैं हम, और हमारे बाद जो भी पेंशन का लाभ लेगा उसे ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होना होगा | 

हम तो घबरा गए | यह क्या हो गया ? कहीं पेंशन तो बंद नहीं हो जाएगी | हमने कहा- तोताराम, किसी से कहना नहीं | गलती तो बहुत बड़ी हो गई | कोई रास्ता सोच | 
बोला- तो मँगा चाय के साथ मिठाई भी | अगर इन्क्वायरी आई तो कह देना उपयुक्त चटाई नहीं थी इसलिए बिस्तर में दरी पर लेटे-लेटे ही साढ़े सात से साढ़े आठ तक 'शवासन' कर लिया | 'अर्द्ध सत्य' | 

हमारी घबराहट कुछ कम हुई | पूछा- तेरा दिल्ली का योग कैसा रहा ?

कहने लगा- मैं कौनसा योग करने गया था | मैं तो उन सरकारी अधिकारियों और देशभक्त योगियों से मुफ्त में मिली चटाइयाँ सस्ते में खरीदने गया था | सोचा था अगले साल मौका लग गया तो सस्ता टेंडर भरकर दो पैसे कमा लूँगा |

हमने पूछा- तो बना कुछ काम | 

बोला- भैया, वह दिल्ली है | जहाँ लोग मूत में से भी मच्छी पकड़ते हैं |  भूले-भटके लंका और पाकिस्तान की जल-सीमा में निकल जाने वाले मछुआरे तो वैसे ही बदनाम हैं | सप्लायर कार्यक्रम समाप्त होते ही योग-पथ से ही सारी चटाइयाँ बीस-बीस रुपए में समेट ले गया |


Jun 20, 2015

सच्चा योग


सच्चा योग
(साउथ कैरोलाइना में कालों के एक चर्च में एक गोर युवक ने नौ काले लोगों की हत्या की-१९-०६-२०१५ )

कहीं धर्म की आड़ ले कहीं नस्ल का नाम
हर कोने में हो रहे जल्लादों से काम
जल्लादों से काम, हुई यह कैसी उन्नति
कैसा हुआ विकास, भले-सीधे  की दुर्गति
कह जोशी कवि धर्म , नस्ल, राष्ट्रों को छोड़ें
साधें सच्चा योग सभी से खुद को जोड़ें |
-२०-०६-२०१५


Jun 12, 2015

डा. तोताराम

डा. तोताराम 

आज तोताराम थोड़ा विलंब से आया | हमने पूछा- क्यों तोताराम, क्या २१ जून के योग-दिवस की तैयारी कर रहा था ?

बोला- क्या कर रहा था, यह बाद में | पहले  मेरा नाम तो ठीक से ले | अब मैं तोताराम नहीं, डा. तोताराम हो गया हूँ |

हमने आश्चर्य से पूछा- रोजाना तो यहाँ आता है फिर कब टेस्ट दिया,कब एम.फिल. किया, कब पी.एच.डी. की और किस विषय पर की और तेरा गाइड कौन था ? 

बोला- तू तो मुझसे इतना त्वरित और इतने सवाल कर रहा है जैसे दिल्ली की पुलिस  किसी तथाकथित नकली डिग्री वाले मंत्री से पूछ रही है | 

हमने कहा- हम पुलिस तो नहीं हैं लेकिन मामला तो संदेहास्पद है ही |और संदेह तब और बढ़ जाता है जब कोई अपनी डिग्री जोड़े जाने के लिए इतना आग्रही होता है | भगवान कृष्ण परमशाक्तिशाली हैं , गोवर्धन धारण करने वाले हैं लेकिन यदि कोई उन्हें मुरलीधर कहे तो भी वे बुरा नहीं मानते | और फिर व्यक्ति डिग्री से बड़ा होता है |सचिन को मानार्थ डाक्टरेट मिली हुई है लेकिन उसके नाम से पहले न तो अखबार वाले और न ही वह खुद डा. लगाता है |

कहने लगा-  तू मेरे ही पीछे क्यों पड़ा है ? ये तो एक दो केस आए हैं और विरोधी पार्टी के होने के कारण इतनी जल्दी और इतनी कठोर कार्यवाही हो रही है अन्यथा सभी पार्टियों में ऐसे लोग भरे पड़े हैं | पकिस्तान में सौ से अधिक ऐसे मामले हैं लेकिन सब चल रहा है |

हमने कहा- देखो, इन लोगों के कारण कोई अतिरिक्त नुकसान नहीं होता | इन्हें तो वही काम करना है जो बिना डिग्री के भी होता रहा है | अपराधियों और अधिकारियों के बीच संपर्क करवाना, ट्रांसफर के लिए डिजायर लिखना और अपनी निधि को,जो भी उसके पद के अनुसार बनती है, निबटाना | अब इसमें क्या फर्क पड़ता है | पंचायत के चुनावों में आठवीं या दसवीं का सर्टिफिकेट आवश्यक किया गया तो बेचारों को तत्काल लाना पड़ा | एक हफ्ते में तो ऐसा ही सर्टिफिकेट आएगा |काम में तो कोई कमी नहीं है ना | उसी तरह से मनारेगा को ठिकाने लगाया जा रहा है जैसे पहले लगाया जाता था |और फिर नेताओं की असली डिग्री है- जिताऊ होना फिर चाहे वे खूनी ही क्यों न हों | और कुछ नेता तो जेल के अन्दर से ही चुनाव जीत जाते हैं फिर इनकी योग्यता में क्या संदेह | ये सब तो अपने फील्ड के स्वप्रमाणित डी.लिट्. हैं |

कहने लगा- तो देश में ये जो बिना डिग्री के लाखों डाक्टर बने प्रेक्टिस कर रहे हैं इनके बारे में क्या ख्याल है ?

हमने कहा- ये कोई नुक्सान नहीं कर रहे हैं | ये शुद्ध डिस्टिल वाटर के इंजेक्शन लगाते हैं, विटामिन की गोली देते हैं और यदि इनके वश का नहीं हो तो ये ईमानदारी से जयपुर रेफर कर देते हैं | 

बोला- तो फिर मैं कौनसा इस डिग्री से कोई इन्क्रीमेंट ले रहा हूँ | जो पेंशन अब तक लेता रहा वही ले रहा हूँ |मेरा दो घड़ी का सुख भी तुझसे नहीं देखा जाता तो कोई बात नहीं, मेरा नाम डा. तोताराम नहीं, केवल तोताराम है, अब तो चाय मँगा |



 

Jun 10, 2015

फतवों की औकात

 फतवों की औकात
(ठेले पर सब्जी की तरह बिकता है फतवा- मुख्तार अब्बास नक़वी-६-६२०१५ )

वह वैसा आदेश दे जिसको जैसी खाज
फतवे रेहड़ी पर बिकें जैसे आलू-प्याज
जैसे आलू-प्याज, सूर्य को शीश झुकाएँ
जाने कैसा धर्म विकट संकट में आए
कह जोशी कविराय इधर भी फतवा सुनिए
संकट में है धर्म आठ-दस बच्चे जानिए

१०-०६-२०१५

एक कुण्डलिया छंद- बिन चालक की ट्रेन

 बिन चालक की ट्रेन
(दिल्ली को मिली बिना चालक की मेट्रो- ९-६-२०१५)

बिन चालक की मेट्रो में क्या बात विशेष
बिन चालक के चल रहा जब सारा ही देश
जब सारा ही देश, लोग परदे के पीछे
सत्ता-कठपुतली के सारे धागे खींचे
कह जोशी कविराय अगर मन हो तो आए
मन हो पटरी छोड़ किसी घर में घुस जाए |
९-६-२०१५

Jun 9, 2015

दो कुण्डलिया छंद

 दो कुण्डलिया छंद
१. मन-मंदिर

मोहन मन में बसे तो मंदिर से क्या काम
मंदिर और प्रसाद में लेकिन मिलते दाम
लेकिन मिलते दाम, तभी सब मिले हुए हैं
और आचरण पर सब के मुँह सिले हुए हैं
कह जोशी कविराय राम का काम कीजिए
बात और बुत नहीं कर्म-सन्देश दीजिए
-९-०६-२०१५




२.  सूट या लँगोट
(सूट पसंद नहीं तो लँगोट पहनें -शिव सेना १-६-१५ )

किसी तरह भी चाहिएँ नेताओं को वोट
चाहे पहनें सूट या बाँधेंभले लँगोट
बाँधें भले लँगोट, मुल्क हो गया अखाड़ा
उनका सधता स्वार्थ हमारा हुआ कबाड़ा
कह जोशी कविराय दीखता नहीं त्राण है
सभी शिकारी सबके हाथों धनुष बाण हैं |

०९-०६-२०१५


Jun 7, 2015

हम विषपायी जन्म के...

हम विषपायी जन्म के......

आजकल भगवान भास्कर पाँच बजे ही निकलूँ-निकलूँ हो जाते हैं |  अभी बरामदे में खड़े आँखों पर पानी के छींटे मार ही रहे थे कि पोलीथिन बीनने वालों जैसा एक बड़ा सा कट्टा कंधे पर रखे तोताराम जयपुर रोड़ की तरफ से आता हुआ दिखाई दिया | हमने हँसते हुए पूछा- क्यों, यह काम कब से शुरू कर दिया ?

बोला- माल है, माल | आधे दामों में मिल गया सो इकठ्ठा ही ले आया | 

हमने पूछा- मगर यह माल है क्या ?

कहने लगा- इस समय कम दामों में मैगी के अलावा और क्या मिल सकता है ? 
हमने कहा- मैगी ? क्यों मरना है क्या ?

-और नहीं खाएँगे तो क्याअमर हो जाएँगे ? भले ही नाम विदेशी हो लेकिन है तो 'मेक इन इण्डिया' |और अब तो सब कुछ मेक इन इण्डिया ही होने वाला है | कब तक बचेंगे | और फिर शुद्ध भारतीय और मेड बाई भारतीय की ही कौनसी शुद्धता की गारंटी है ? यहाँ कौन शुद्ध दूध-घी-मावा, दवाइयाँ, मिलते हैं ? छत्तीसगढ़ में परिवार नियोजन कैम्प में काम मे ली गई दवाइयाँ  तो शुद्ध राष्ट्रीय थीं | कुछ पता चला, कार्यवाही हुई ? अस्पतालों में मुफ्त मिलने वाली दवाइयाँ कोई गरीब भी नहीं लेना चाहता | सबको पता है कि कौन, क्यों और कैसे इन्हें बनाता और कौन क्यों खरीदवाता है |  सब जानते हैं कि च्यवन ऋषि के नाम से बिकने वाले च्यवनप्राश में आँवला कम और शकरकंद ज्यादा होता है | आयुर्वेद की सबसे सस्ती जड़ी सनाय तक तो शुद्ध मिलती नहीं |मसालों का सच हर ग्राहक जानता है | किसी डिटर्जेंट में नीबू नहीं है | साठ प्रतिशत चाय लकड़ी और चमड़े का बुरादा है | जब मरना ही है तो क्यों महँगी चीज खरीदी जाए | 

और फिर किस-किस चीज से बचोगे ? आज तक कोकाकोला वाले ने अपना फार्मूला नहीं बताया है और बताएगा भी नहीं | अमरीका में बड़े-बड़े वैज्ञानिक कहते हैं कि इससे कैंसर हो सकता है लेकिन अमरीका में ही बंद नहीं हुआ | इंदिरा नूई पर हम गर्व करते हैं लेकिन उसे दुनिया की सौ प्रभावशाली महिलाओं में पहला स्थान इसलिए मिल सका कि उसने भारत में कोकाकोला की बिक्री बढ़ा दी | १९७७ में जोर्ज फर्नान्डीज़ ने इसे बंद करवा दिया तो उसके प्रतिशोध में, दो दशक बाद ही सही, अमरीका ने उनके कपड़े उतरवा लिए थे | 

हमने पूछा- तो क्या यह तूफ़ान व्यर्थ है ?

बोला- बिलकुल | ये सब तो झूठी सक्रियता दिखाने के नाटक हैं | वैसे वास्तविक चिंता किसी को नहीं है | यदि चिंता ही होती तो सत्तर साल में जनता को साफ़ पानी तो मिलता |हवा और बातों तक में ज़हर घुला हुआ है |

हमने कहा- तुम्हारी बात तो सच है | स्थिति वास्तव में चिंताजनक है लेकिन करें क्या ?

बोला- करना क्या है ? मौज़ करो, गर्व करो कि कल तक दुनिया के इस पिछड़े देश के लिए विकसित देश सेवइयां, नमकीन, ब्रेड-बिस्किट बना रहे हैं | आज तक इस देश की महिलाओं की जवानी रोटियाँ सेंकने और सेवइयां में ही बीतती थी |अब दो मिनट में खाना तैयार तो  शेष समय में टी.वी.देखो, मोबाइल पर बतियाओ, जिम जाओ, ब्यूटीपार्लर जाओ | देश को स्मार्ट नहीं बनाना क्या ? खाए जाओ, खाए जाओ, मल्टीनेशनल के गुण गाए जाओ | 

और फिर डरें वे जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम है | हम तो विषपायी शिव और मीरा के देश वाले हैं | हमें कुछ नहीं होगा |  जब नेताओं के समाज में विद्वेष फ़ैलाने वाले बयान इस देश के सांप्रदायिक सद्भाव को नहीं मिटा सके तो हम देशी-विदेशी सभी अच्छे बुरे उत्पादों को पचा जाएँगे |और फिर धंधा करने वाला विदेशी हो या देशी सेवा नहीं, मुनाफे के लिए निवेश करता है |
 

Jun 5, 2015

गॉड का लिंग निर्धारण

गॉड का लिंग-निर्धारण

सभी धर्मों में गॉड, खुदा, ईश्वर आदि को पुल्लिंग ही संबोधित किया जाता है लेकिन वास्तव में वह पुल्लिंग है या स्त्रीलिंग, इसका कोई अंतिम निर्णय आज तक नहीं हुआ है | हो सकता है उस समय भी भ्रूण के लिंग परीक्षण पर प्रतिबन्ध रहा हो | अब इंग्लैण्ड में कैंटरबरी के आर्क बिशप के घर हुई बैठक में महिला पादरियों ने यह मुद्दा बड़ी सिद्दत से उठाया है कि गॉड को 'ही' ही क्यों लिखा जाए 'शी' क्यों नहीं ? एक सुझाव यह भी था कि एक बार 'ही' और एक बार 'शी' लिखा जाए |

कन्फ्यूज्ड तो हम भी हैं |

आज हमने तोताराम के सामने यह सनातन समस्या रखी तो बोला- इसमें परेशान होने की क्या बात है ? जब जिससे डर लगता है,  वही बाप है | ईश्वर सबका बाप है जो नाराज़  होकर नरक में डाल सकता है तो प्रसन्न होकर फ्री में सारी फाइव स्टार सुविधाओं वाले स्वर्ग में फिट करवा सकता है इसलिए पुल्लिंग है |  मतलब के लिए तो गधे को भी बाप बनाना शास्त्र सम्मत है फिर गॉड तो वैसे ही बहुत ऊँची चीज है |वैसे महिलाओं को अपने महत्त्व पर शंका नहीं करनी चाहिए क्योंकि गॉड को पुरुष मानने पर भी चर्चों में ननों के बिना काम कहाँ चलता है ?  सभी धर्म वाले स्वर्ग में हूरों, परियों और अप्सराओं का लालच दिए बिना भक्तों को आकर्षित नहीं कर सकते |वैसे ईश्वर के पुत्र को भी इस दुनिया में आने के लिए एक स्त्री को ही माध्यम बनाना पड़ा |

हमने कहा- कुछ भी हो लेकिन सभी तो ज्ञानी और निर्गुण भक्त नहीं हो सकते |मन को एकाग्र करने के लिए कोई न कोई विग्रह (स्वरूप) सामने होना ज़रूरी है |

बोला- झगड़ा क्या है ? ईश्वर को उभयलिंगी माना गया है जैसे आत्मा | कोई उसे पुल्लिंग कहता है तो कोई स्त्रीलिंग |  शिव और देवताओं को बचाने के लिए  विष्णु जी  कई बार अपनी इस प्रातिभा का परिचय दे चुके हैं |
ईश्वर को कोमन जेंडर मानने से और भी फायदा है | महिलाएँ  ईश्वर को अपना मनपसंद हीरो मानें और पुरुष ईश्वर को अपनी मनपसंद हीरोइन | एक पंथ और कई काज |  हमारे यहाँ तो शिव इसीलिए अर्द्धनारीश्वर हैं | कोई झंझट नहीं  | दाईं तरफ महिलाएँ बैठें और पुरुष रूप की आराधना कर लें और बाईं तरफ पुरुष बैठकर महिला रूप की पूजा कर लें | यदि पूजा से मन उचट जाए तो एक दूसरे की आराधना कर लें |

हमने कहा- वैसे हर हालत में धर्म और ईश्वर के नाम का चढ़ावा पुजारी जी के पास ही जाएगा और धर्म की राजनीति के बल पर कुर्सी नेता जी के पास | हमें तो लाउड स्पीकर पर फुल वोल्यूम में जागरण सुनकर मजबूरन जागना है | और कबीर ने कहा ही है-

सुखिया सब संसार है खावे और सोवे |
दुखिया दास कबीर है जागे और रोवे |










 

Jun 3, 2015

अच्छे दिनों की अगवानी

  अच्छे दिनों की अगवानी 

आज तोताराम सुबह-सुबह हाज़िर हुआ तो लगा जैसे कोई चलता फिरता टेंट-हाउस हो | पोलीथिन के एक बैग में तीन-चार पानी की बोतलें, एक कंधे पर गमछा, दूसरे कंधे पर छाता, थर्मस, नाश्ते का डिब्बा, गुलदस्ता, एक बड़ा सा बैनर जिस पर लिखा था-सीकर में आपका स्वागत है, और भी बहुत कुछ |पूछा तो बोला- बिना बात एक साल से यहाँ बैठा सगुन के कौए उड़ा रहा था और मुझे भी साल भर इस चक्कर  में उलझाए रखा | अब देख, देश के सबसे बड़े और विश्वसनीय अखबार में खबर छपी है- अच्छे दिन आ चुके हैं पर कुछ लोग बाधा डाल रहे हैं |

पता नहीं अच्छे दिन कब से आए बैठे होंगे बस अड्डे पर | पता नहीं, पानी पीने को भी पैसे होंगे कि नहीं ? कई दिनों से लू चल रही है, कहीं लू लग गई होगी तो ? इसलिए पानी की बोतलें, छाता, नाश्ता, धूप का चश्मा सब लेकर आया हूँ | जल्दी चल, कहीं किसी लपके के हाथ पड़ गए होंगे तो और मुश्किल |

हमने कहा-  अब तो दिल्ली-जयपुर वाला आन्दोलन के कारण बंद राजमार्ग भी खुल गया | थोड़ा इंतज़ार कर ले | और फिर खबर में यह भी तो नहीं लिखा कि कहाँ से, कैसे और किस स्थान पर पहुँचे ? ये अखबार वाले भी हमेशा आधी-अधूरी खबरें छापते हैं ? कहीं तू बस अड्डे पर पहुंचे और वे स्टेशन पर बैठे हों, तू स्टेशन जाए और पैदल आ रहे हों और यदि बची हो तो सड़क के किनारे किसी खेजड़ी के नीचे बैठे हों | 

बोला- तभी कहा है- संशयात्मा विनश्यति | हर बात में शंका करता है | अरे, अच्छे दिन क्या किसी एक पार्टी, वर्ग या जाति के थोड़े ही आते हैं | जब आते हैं तो सबके लिए आते हैं | सब तरफ से आते हैं | चल तो सही | जहां भी संभव होगा ढूँढेंगे | आए हैं तो जाएंगे कहाँ ? अब जल्दी कर |

वैसे हमारा अनुभव है कि जब आने होते हैं तो अच्छे और बुरे दिन छप्पर फाड़ कर आ जाते हैं और नहीं आने हों तो फाड़ते रहो आँखें | फिर भी तोताराम का साथ देने के लिए चल पड़े | बस अड्डे पर पहुँच कर तोताराम ने फटाफट  फैलाकर बैनर हाथ में उठा लिया जिस पर लिखा था -हे अच्छे दिनो, आपका सीकर में स्वागत है | हम आपको लेने के लिए आए हैं | और हर ठीक-ठाक से दिखने वाले की ओर गुलदस्ता हिलाने लगा | मगर किसी ने उसकी ओर नहीं देखा | वहाँ से निराश होकर हम रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़े | 
रास्ते में कुछ लोग सड़क खोद रहे थे, पता नहीं, पी.डब्लू.डी. वाले थे या जल विभाग वाले या फिर हो सकता है किसी प्राइवेट मोबाइल कंपनी वाले थे | तोताराम ने बड़ी विनम्रता से उनसे कहा- भाइयो, जल्दी से काम निबटाओ, और इस सड़क को हमवार कर दो | जल्दी ही इस सड़क से अच्छे दिनों का काफिला गुजरेगा | एक साल के चले हुए हैं | थके होंगे | पता नहीं धचके बर्दाश्त कर पाएं कि नहीं | 

सड़क खुदाई का ठेकेदार बोला- हमारे  तो अच्छे दिन आ चुके  | तोड़ने वाले भी हम और ठीक करने वाले भी हम | 

खैर, किसी तरह पसीने में तर-बतर स्टेशन पहुंचे तो पता चला कि छः महिने में चालू होने वाली ब्रोडगेज ट्रेन तीन साल में भी शुरू नहीं हुई है | हवाई अड्डा पता नहीं कहाँ है ? सोचा, मंडी के हेलीपैड बना हुआ है शायद वहीं उतरे हुए हों | 

जब लौट रहे थे तो उन्हीं गड्ढा खोदने वालों से पूछा- क्यों भैया, हमारे जाने के बाद कोई काफिला इधर से गुज़ारा क्या ? 

बोले- हाँ, मास्टर जी, दो-तीन एयर कंडीशंड बसें गुजरी तो थीं | उनके आगे-पीछे बीस-तीस बड़ी-बड़ी महँगी कारें थीं |

हमने कहा- तोताराम, अब तो समझ में आया कुछ | दुनिया में हमेशा अच्छे-बुरे दिन रहते हैं |अच्छे दिन एयर कंडीशंड से एयर कंडीशंड तक यात्रा करते हैं और बुरे दिन टूटी-फूटी सड़कों और ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर घूमते रहते हैं और बिना बुलाए किसी भी गरीब के घर में घुस जाते हैं | अब घर चल, एयर कंडीशंड में घुसने की न हमारी औकात है और न हिम्मत |









Jun 1, 2015

फ्री कफ़न

  फ्री कफ़न 


तोताराम आज बड़बड़ाता हुआ प्रकट हुआ- आखिर एक आदमी क्या-क्या करे ?  जो नहीं किया जा सका उसका रोना लेकिन जो हो गया या हो रहा है या होने वाला है उसका कोई श्रेय नहीं | गिनने बैठो तो याद तक नहीं कर पाएँगे कि कितना कुछ हुआ है | भूल गए वे दिन जब पहले ब्लेक में गैस का सिलेंडर लाते थे या गैस वाला महीनों टरकाता था | बारह रुपए में दो लाख का बीमा दे दिया उसका कोई अहसान नहीं, अब बारह रुपए में कफ़न भी चाहिए |

हमने कहा- तो हमें क्यों सुना रहा है ? हम कौनसा बारह रुपए में कफ़न माँग रहे हैं | बारह  रुपए के बीमा और कैबिनेट में जगह से तो वैसे ही हम कानूनन बाहर हैं  |

बोला- तुम्हें नहीं सुना रहा हूँ, मैं तो इस बारह रुपए में कफ़न वाली समस्या का कोई हल सोच रहा हूँ | विदेशों में देख, अंतिम संस्कार के बड़े-बड़े विज्ञापन आते हैं | आप तो बस, पॅकेज पसंद कर लो फिर घर से शव उठाने से लेकर कब्र खोदने, आपका मनपसंद ताबूत,पादरी, भीड़ जुटाने और साल में एक बार कब्र पर दिया जलाने तक के सारे काम कंपनी सँभालेगी |इस जन्म का भले की ढंग से इंतजाम नहीं हुआ हो लेकिन महाप्रयाण का आपके पॅकेज के अनुसार आकर्षक इंतज़ाम का आश्वासन ज़रूर है |अभी इस क्षेत्र में मैदान बिलकुल खाली है |सोचता हूँ एक कंपनी क्यों न बना लूँ |

हमने कहा- ब्राह्मण होकरअब क्या यह डोमों वाला काम करेगा ? 

बोला-क्यों क्या सत्यवादी हरिश्चंद्र ने डॉम का काम नहीं किया था ? काम कोई छोटा-बड़ा नहीं होता जिसमें भी नोट कूटने का अवसर हो वही श्रेष्ठ काम है | क्या दारू का धंधा कोई भले आदमियों का काम है लेकिन सरकारें तम्बाकू के लिए कानून बना देंगी लेकिन दारु के लिए चुप हैं क्योंकि इसमें उसके भी हाथ पीले होते हैं | और फिर मैं कोई मात्र कफ़न वाला काम ही थोड़े करूँगा | पूरा पॅकेज रखेंगे | कफन, लकड़ी, अर्थी, शव-यात्रा, पंडित, गरुड़-पुराण वाले, पिंड दान कराने वाले, हरिद्वार पहुँचाने वाले, ब्राह्मण भोजन, रोने वाले, बूढ़ा हुआ तो बैंड बाजे वाले, फोटोग्राफर जाने कितने लोगों को रोजी मिलेगी | पूरा पॅकेज लेने वालों को कफ़न फ्री में देंगे | विज्ञापन में सबसे पहले लिखेंगे- कफ़न फ्री | और बात तो संपर्क करने पर 'कंडीशन्स अप्लाई'की तरह बाद में बताएँगे | 

अभी से बुकिंग करवाने वालों को और विशेष रियायत की घोषणा करेंगे | मान ले पचास करोड़ ने भी अभी बुकिंग कराई तो सोच कितने बिलियन-ट्रिलियन रुपए इकट्ठे हो जाएँगे ? उन्हें स्विस बैंक में डाल देंगे |एक साथ तो सब मरने से रहे | जो दस-बीस हजार रोज मरेंगे उन्हें निबटा देंगे |और यदि कोई कमी रहा गई तो मरने वाला कौनसा शिकायत करने आ रहा है ?

हमने कहा- मान ले यदि कोई केवल कफ़न का ही पॅकेज ले तो ?

बोला- उसका भी उपाय है | कफ़न को साथ नहीं जलाते | उसे तो अर्थी पर लिटाने से पहले उतार लेते हैं | हम वहाँ एक सी.ई.ओ. श्मशान अर्थात डोम राजा का पद भी बना देंगे जो उन कफनों को इकठ्ठा करता रहेगा और फिर उन्हें किसी भी अगले मुर्दे को उपलब्ध करा देगा, वैसे ही जैसे मंदिर के पुजारी की दुकान से खरीदा नारियल भगवान को चढाने के बाद फिर दुकान में पहुँच जाता है |

हमने कहा- तोताराम, भारत कितना भी गरीब और पिछड़ा हुआ माना जाए लेकिन आज भी भले ही लोग किसी बीमार को दवा के लिए पैसे न दें, भूखे को रोटी न खिलाएँ लेकिन मुर्दे को कफ़न ज़रूर दिला देंगे | यह दुनिया ऐसे ही दानवीरों की है | प्रेमचंद की कहानी 'कफ़न' में कफ़न के पैसों से दारू पी जाने वाला घीसू यही तो तर्क देता है अपने बेटे माधव को |

यहाँ बिना एक भी बच्चे के किसी स्कूल में चार अध्यापकों की पोस्टिंग हो सकती है, नकली दवा का धंधा चल सकता है, नकली घी-दूध का धंधा चल सकता है, बिना गायों के गौशाला ग्रांट उठा सकती है, कागजों पर विकलांगों को व्हील चेयर बाँटी जा सकती है, एक मुर्गी एक दिन में आठ सौ रुपए का दाना खा सकती है, एक भैंस स्कूटर पर बैठकर हरियाणा से पटना जा सकती है लेकिन कफ़न का धंधा तो शायद ही चले |

कहने लगा- कोई बात नहीं लेकिन  यदि किसी अखबार वाले ने ढंग से न्यूज लगा दी तो मोदी जी के मुकाबले में आ जाऊँगा | वे बारह रुपए में कफ़न नहीं दे सकते लेकिन तोताराम दे सकता है |