Feb 28, 2022

आ जा, मन की बात सुनें


आ जा, मन की बात सुनें


आज तोताराम दोपहर को फिर आ धमका. वैसे इस 'धमका' का 'धमकी' जैसी किसी कार्यवाही से कोई संबंध नहीं है. इसमें टेनी मिश्रा जी जैसी सुधर जाने वाली नेक सलाह जैसा भी कुछ नहीं है. वैसे इसमें कुछ संदेहास्पद हो तो भी चिंता की कोई बात नहीं हैं क्योंकि तोताराम के पास बिगड़े किसानों को अपने आप ही पहचान कर, उन पर चढ़कर सुधार देने वाली चमत्कारी जीप तो क्या, साइकल भी नहीं है. 

चुनावों के समय फिर फिर चक्कर लगाने का कारण जानना चाहा तो बोला- तीन दिन से तू मेरी हर बात को उसी प्रकार टाल रहा है जैसे नरेन्द्र सिंह तोमर किसानों के मुद्दों को हर बार अगली मीटिंग पर टालते रहे. मैनें तुझे पृथिवी आकाश अम्बानी के जन्मदिन पर मुम्बई जाने को कहा, फिर विकेट (विक्की, कैटरीना का शोर्ट फॉर्म) की शादी में जाने की सलाह दी और आज सुबह देश में प्राचीन काल से अड्डा जमाये महंगाई को हटाने के लिए जयपुर में इकठ्ठा हुए कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ताओं का सहयोग करने के लिए जयपुर जाने के लिए कहा लेकिन तूने एक भी बात नहीं मानी. 

कोई बात नहीं, अब कम से कम देश का मानसिक, सामाजिक, आर्थिक सभी तरह के महायज्ञ में अपनी कुछ आहुतियाँ ही डाल दे.     

हमने कहा- किसी भी प्रकार का यज्ञ या अन्य पूजा-पाठ के बहाने से कुछ भी जलाया जाता है तो उससे कम या ज्यादा कार्बन का ही उत्सर्जन होता है प्रदूषण ही फैलता है.  हम तो यहांतक कहते हैं कि भले चुनाव जीतने के लिए ही हो किसी को कटु बात कहकर उसका दिल जलाया जाता है तो उससे भी घृणा का प्रदूषण ही फैलता है.

बोला- यह वैसा यज्ञ नहीं है. यह तो विचारों का चिंतन का, ज्ञान का यज्ञ है जिससे भारत फिर से विश्वगुरु बन जाएगा. 

ऐसा कहकर तोताराम ने अपने थैले में से कई सीडियां और एक छोटा-सा सीडी प्लेयर निकाल कर हमारे सामने रखा दिया. 

हमने पूछा- क्या इनकी आहुति देनी है ?

बोला- नहीं, ये मोदी जी के मन की बात की सीडियां हैं. हम दोनों चाय और नाश्ते के साथ इन्हें सुनेंगे.और देश के विकास में अपना योगदान देंगे. 

हमने कहा- तोताराम, सच बताएं, जन्म से पहले पिताजी से, फिर अध्यापकों और उसके बाद इस देश में जहां-तहां कुकुरमुत्तों की तरह उग आये भगवानों से और अब नेताओं इतने भाषण सुने हैं कि अब किसी भी अच्छे बुरे भाषण से सिर दर्द होने लगता है. लगता है कि किसी दीवार से सिर भिड़ायें तो कुछ राहत मिले, सब अपने मन की बात कहते हैं. कोई हमारे मन की बात नहीं सुनता.  मन की तो दूर तन की बात भी नहीं सुनता. एक उपदेष्टा थे बुद्ध. उनके उपदेश में आया एक व्यक्ति एकाग्र नहीं हो पा रहा था. बार बार आसन बदल रहा था. बुद्ध ने उसे अपने पास बुलाया, हाल चाल पूछा और फिर कहा- पहले इसे खाना खिलाओ.  तभी से यह कहावत चली है-

ये ले अपनी कंठी माला 

भूखे भजन न होय गोपाला. 

सो जब तक कोई गारंटी नहीं मिलती, हम कुछ नहीं सुनेंगे.

बोला- कैसी गारंटी ?

हमने कहा- जर्मनी में एक व्यक्ति 'वर्क फ्रॉम होम' कर रहा था. जब वह अपने बिस्तर से कम्प्यूटर की डेस्क तक जा रहा था तो उसे हार्ट अटक हुआ और मर गया.कोर्ट ने उस मौत हो ड्यूटी पर हुई मौत माना और उस व्यक्ति को नियमानुसार मुआवज़ा देने के आदेश दिए.

बोला- क्या मतलब ?

हमने कहा- यदि हमें मन की बात सुनते हुए कुछ हो गया तो हमें भी शहीद का दर्ज़ा दिया जाए और हमारे वारिसों को आजीवन पेंशन दी जाए. 

बोला- मास्टर, हद करता है. किस किस बात का मुआवज़ा चाहिए ?  यदि इस देश के सभी लोग तेरे जैसे होते और मैं प्रधानमंत्री होता तो अपना झोला उठाकर केदारनाथ नहीं, बल्कि किसी ऐसी जगह चला जाता जहां कोई मुझे ढूँढ़ भी न सके.

हमने कहा- केदारनाथ जाने से किसने रोका है, लेकिन याद रख यदि वहाँ तेरी गुफा सेंट्रली हीटेड नहीं हुई तो जब मई में गुफा लोगों के लिए खुलेगी तो तेरी नश्वर देह अकड़ी हुई मिलेगी फिर अगले साल अस्सी वर्ष का होने पर २०% बढ़ी हुई पेंशन पर होने वाले गर्व और गौरव को हमारे साथ सेलेब्रेट कौन करेगा ? 

बोला- एक चाय तो बनवा ले. चुनाव में वादों तथा गालियों की कोई दिशा, शर्म-संकोच और नियम नहीं होते वैसे ही सर्दी में चाय का की समय नहीं होता. कभी भी, कहीं भी, जहां भी मिलेगी,चलेगी. झोला उठाकर जाना केंसिल.

 


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Feb 25, 2022

दो लाइन की कविता : चार लाइन का पता


दो लाइन की कविता : चार लाइन का पता 


जैसे ही ओमेक्रोन की दहशत ने दस्तक देनी शुरू कर दी है वैसे ही विरोधाभाषी कृत्य शुरू हो गए हैं. दिन में दो गज की दूरी को धता बताकर रैलियाँ और शाम को दिल्ली में प्रधानमंत्री जी के नेतृत्त्व में ओमिक्रोन से बचाव के लिए रणनीतिक बैठक. हमने भी सोच लिया है कि दिन में बरामदे में, गली में बिना मास्क के घूमेंगे और रात में कर्फ्यू. मनमर्जी और नियमपालन दोनों. इसी दोमुंहे चरित्र के तहत बरामदे में बैठे थे. दूसरा कारण यह भी कि आज चार दिन बाद तापमान शून्य से चार डिग्री ऊपर आया है. भविष्य वैसे ही उज्ज्वल दिखाई देने लगा है जैसे पेट्रोल  ११५ रुपए लीटर से १०५ रुपए होने पर गाड़ी वालों को.

कुछ दूर पर तोताराम चला आ रहा था. लगा, या तो चाल में मस्ती है या फिर जूते में कोई कंकड़ घुस गया है. बरामदे तक पहुंचते न पहुंचते तो लड़खड़ा ही गया. हमने हाथ थामते हुए कहा- क्या बात है ? चक्कर आ गया क्या ?

बोला- नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. बस, अच्छे दिन में पैर उलझ गया था. 

हमने कहा- अच्छे दिन क्या कोई संक्रांति के दिनों में सड़क पर कट कर गिरा चीनी मंझा है जिसमें पैर उलझ जाए ?

बोला- बस, कुछ ऐसा ही समझले. 

हमने कहा- पहले तो हम भी दूसरे मनहूस लोगों की तरह 'अच्छे दिन' को जुमला समझ कर मजाक कर लिया करते थे लेकिन अब विश्वास हो गया कि 'मोदी है तो मुमकिन है'. 

बोला- यह करिश्मा मोदी जी का नहीं, अखिलेश यादव की पार्टी का है. मोदी जी को हमारे लिए कहाँ फुर्सत है.वे तो राजाओं के मंदिर-मूर्तियाँ बनवाते फिरते हैं. आज तक ब्राह्मण क्षत्रिय राम, कृष्ण को पूजते-पुजवाते रहे. क्षत्रियों को राज मिला, वैश्यों ने व्यापार में धन कूटा. है किसी ब्राह्मण की मूर्ति, है किसी ऋषि का मंदिर ? दुर्वासा को क्रोधी कहकर बदनाम कर रखा है, द्रोणाचार्य और सुदामा की गरीबी जगजाहिर है, बूढ़े परशुराम का रामचरितमानस में तुलसी ने जो तमाशा बनवाया है वह सब जानते हैं. लेकिन अब अखिलेश ने कहा है कि वे परशुराम की १०८ फुट ऊंची प्रतिमा बनवायेंगे. अभी नमूने के तौर पर गंगाखेड़ा में परशुराम की सात फुट ऊंची प्रतिमा का उदघाटन किया है. और उस मंदिर के बाहर ६८ फुट का फरसा स्थापित किया गया है. 

हमने पूछा- लेकिन तेरे इस तरह से बरामदे के पास गिरते-गिरते बचने का क्या कारण है ? इसका परशुराम की मूर्ति से क्या संबंध है ? 

बोला- मैं ज़रा ज्यादा ही गौरवान्वित हो गया और परशुराम जी की सात फुट की प्रतिमा के हिसाब से ज्यादा लम्बी जनेऊ पहन ली जो साइड से लटक गई. बस, उसी में पाँव उलझ गया था. 

हमने कहा- किसी को देखकर बिना सोचे समझे नक़ल नहीं करनी चाहिए. 

बोला- जो १०८ फुट की प्रतिमा बनवायेंगे उसका फरसा पता है कितना बड़ा है ?  पूरा ६८ फुट.

हमने पूछा- यह तो बहुत अजीब है. इतना लम्बा फरसा चलाने असुविधा नहीं होगी ?  

बोला- लगता है ये नेता लोग सबका 'यूज़' करते हैं- .'यूज़ एंड थ्रो'. मतलब परशुराम जी फरसे को घसीटते फिरें, चला नहीं सकें. 

हमने कहा- तोताराम, आजकल के नेता, जो अपने को सेवक कहते हैं, पुराने समय के राजा और क्षत्रिय ही हैं.राजा भी ऐसे जो जनता के लिए कुछ न करें. बस, ऐश करें, दिन में चार बार नए नए कपड़े बदलें और जनता को जात-धर्म के नाम पर उल्लू बनाएं. यदि वास्तव में परशुराम जी आज होते तो इस धरती को क्षत्रिय हीन करके 'महिदेवन' को दान में दे देते. 

बोला- मास्टर, परशुराम जी हालत तो वैसे ही कर दी है जैसे- दो लाइन की कविता और चार लाइन का पता. चूहे से लम्बी पूंछ. जैसे मुझ चार फुटे की सात फुटी जनेऊ.  



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Feb 24, 2022

पटेल भाजपा में कब शामिल हुए ?


पटेल भाजपा में कब शामिल हुए  ?


तोताराम ने जैसे ही चाय का गिलास उठाया, हमने पूछा- तोताराम, पटेल ने कांग्रेस कब छोड़ी ?

बोला- किसलिए छोड़ेंगे कांग्रेस ?

हमने कहा- किसलिए क्या ? भाजपा ज्वाइन करने के लिए ?

तोताराम हमें बड़ी अजीब नज़रों से घूरता हुआ बोला- कौन सी भाजपा ? असली या नकली ?

अब हमारा मुंह खुला का खुला रह गया. हमने पूछा- क्या भाजपा में भी असली नकली होता है क्या ? कांग्रेस सबसे पुरानी  राजनीतिक पार्टी है. सभी पार्टियां उसी से निकली हैं. उसमें कई बार, कई फाड़ हुए हैं.इसलिए पता नहीं चलता कि कौनसी कांग्रेस असली है और कौन सी कांग्रेस नकली है. और तो और तुझे जानकर आश्चर्य होगा कि केशव बलीराम हेगड़े जी भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना करने से पहले कांग्रेस में ही थे. इसलिए कांग्रेस के विभिन्न प्रकार हो सकते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ और भाजपा तो एक ही हैं. समय, परिस्थिति और आवश्यकतानुसार नाम, रूप बदलते रहे हैं. बातें करने का अंदाज़ बदलते रहे बस, लेकिन  नीयत, मिशन, कार्यक्रम में कभी कोई फर्क नहीं आया. 

बोला- वह बात ठीक है लेकिन लोकतंत्र में सत्ता प्राप्त करने के लिए संख्या बल दिखाना पड़ता है और वह आपके पास हो यह ज़रूरी नहीं, इसलिए गधे, घोड़े, कुत्ते-बिल्ली, कीड़े-मकौड़े सबका जुगाड़ करना पड़ता है. जिसे बड़ी बेशर्मी से हॉर्स ट्रेडिंग के नाम से स्वीकृति मिली हुई है, तभी प्रधानमंत्री का आवास रेसकोर्स रोड़ पर हुआ करता था जिसे शालीन नाम देकर जनकल्याण मार्ग कर दिया गया है. जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जन्मे हैं वे असली भाजपा और जिन्हें ख़रीदा गया है वे नकली भाजपा हैं जैसे नरेश चन्द्र अग्रवाल, कुलदीप सेंगर, रीता बहुगुणा, ज्योतिरादित्य, जगदम्बिका पाल, नारायण राने, विखे पाटिल, एस एम कृष्णा आदि. 

हमने पूछा- तो क्या नकली का कोई महत्त्व नहीं ? वैसे बाज़ार में बहुत से सामान नकली बिकते हैं बल्कि नकली असली से ज्यादा चमकते हैं, सस्ते बिककर भी अधिक मुनाफा देते हैं. पता ही नहीं चलता.

बोला- तो कू और, न मो कू ठौर. दोनों की ज़रूरत और चालाकी के कारण यह चलता है.  

हमने कहा- फिर भी पहचान का कोई अचूक नुस्खा तो होगा. 

बोला- बिना आरएसएस की डिग्री वाले को कभी भी प्रधानमंत्री नहीं बनाया जाता..

हमने कहा- यह तो बताया ही नहीं कि पटेल कांग्रेस छोड़कर किस भाजपा में और कब शामिल हुए ?

बोला- १९८० में.

हमने कहा-और जनसंघ में ?

बोला- १९५१ में.

हमने फिर पूछा- और आरएसएस में ?

बोला- १९२५ में.

हमने कहा- सब गलत. पटेल कभी आरएसएस में शामिल नहीं हुए. उन्होंने तो गाँधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगाया था. यदि आरएसएस में होते तो उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री कैसे बनते ? १५ दिसंबर १९५० को तो उनका निधन ही हो गया था. ऐसे में जनसंघ और भाजपा में शामिल होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.

बोला- जब तुझे सब पता है तो यह बेकार का सवाल पूछता ही क्यों है ? और अभी तक अज्ञानी या भोले होने का नाटक क्यों कर रहा था ? 

हमने कहा- लेकिन तू भी तो सब जानते हुए उत्तर दिए जा रहा था कि नहीं ? वैसे मोदी जी ने जब कहा- यदि पटेल कुछ समय और जिंदा होते तो गोआ बहुत पहले आज़ाद हो गया होता तो इसका भी कोई तो मतलब होगा ही.

बोला- वो तो सही है. नेहरू ने पटेल को उनकी मर्ज़ी से, कभी कोई अच्छा काम नहीं करने दिया. जब वे कश्मीर को आज़ाद कराने के लिए गए तो नेहरू जी ने रास्ते में उनकी जीप पंचर करवा दी. जब गोआ को आज़ाद कराने गए तो बाधा डालने के लिए रास्ते में लेट गए. यह तो एक बार नेहरू कहीं गए हुए थे तो पटेल ने चुपके से हैदराबाद को भारत में मिला लिया. 

हमने कहा- वैसे यह तो ग़ालिब वाली बात है- 'वो हर बात पर कहना कि यूं होता तो यूं होता'. 

यह क्या, यह हुआ होता तो वह होता.यूं होता तो त्यूं होता.जो है वह है,यदि कुछ ठीक नहीं हुआ तो ठीक करो. अपनी कमी को नेहरू की खूँटी पर क्यों टांगते हो ? 

बोला- क्यों ? इसका भी महत्त्व है. 

हमने कहां- तो कल्पना करते हैं  यदि मोदी जी २५०० साल पहले पैदा हुए होते तो सिकंदर, शक, हूण, तुर्क, तातार, मुग़ल, अंग्रेज ,फ्रेंच, डच कोई भी नहीं आ पाता और अगर आ भी जाता तो मुंह की खाकर जाता.  किसी प्रकार की गुलामी और आज़ादी की कोई समस्या ही नहीं होती. भारत बना बनाया विश्वगुरु रहा आता.जब गोवा गुलाम ही नहीं होता तो नेहरू पर उसे देर से आज़ाद करवाने का आरोप नहीं लगता.और  पटेल को भी भाजपा में मिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. न किसी को पाकिस्तान भेजने की ज़रूरत पड़ती, न किसी को वेशभूषा से पहचानना पड़ता, न कोई देशद्रोही होता और न ही भ्रष्ट. सर्वत्र रामराज. 

बोला- फिर तो प्रसाद जी की कामायनी वाली बात हो जाती-

 नीचे जल था  ऊपर हिम था एक तरल था एक सघन 

एक तत्त्व की ही प्रधानता कहो उसे जड़ या चेतन 

 


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हमारे राम-कृष्ण : तुम्हारे राम-कृष्ण


हमारे राम-कृष्ण : तुम्हारे राम-कृष्ण 


हालाँकि आजकल कुछ भी हो जाए लेकिन वह ब्रेकिंग न्यूज या सनसनी नहीं बनता. मोदी जी बनारस में अब तक उपेक्षित पड़े विश्वनाथ को लाइम लाइट में लाने के लिए 'काशी कोरिडोर' का उदघाटन करने जाएँ तो लोग कोई नोटिस नहीं लेते. चर्चा करते हैं तो बस, उनके छह बार वस्त्र बदलने की करते हैं. अरे, वस्त्र बदलना कोई बड़ी बात है ? भारत में जन्म लेने वाली प्रत्येक महान आत्मा ८४ लाख वस्त्र बदलकर आई है. लेकिन आज तोताराम ने नीतीश बाबू उर्फ़ सुशासन बाबू के समाज सुधार यात्रा पर सासाराम पहुंचने का समाचार ऐसे दिया जैसे अहल्या की अनंत प्रतीक्षा के बाद राम चरणधूलि देने पधारे हों. बोला- नीतीश जी ने बड़ा ऐलान कर दिया है.

हमने कहा- बिहार में अभी ऐलानों की क्या ज़रूरत है ? अब ऐलानों की ज़रूरत तो उत्तर प्रदेश में है. फिर भी बता तो सही क्या ऐलान कर दिया ?

बोला- कहा है, शराब पीकर बिहार आना है या लाकर पीनी है तो मत आइये यहाँ. 

हमने कहा- इसका क्या मतलब हुआ ? 

बोला- असली मतलब तो वे या भगवान् जानें लेकिन इससे तो यही ध्वनि निकलती है कि बिहार में आने वाले को यह नहीं सोचना चाहिए कि बिहार में शराबबंदी है इसलिए वहाँ शराब नहीं मिलेगी. यहाँ आने का कार्यक्रम हो तो यह क्या कि अपनी टंकी फुल करके चलो या अपना पव्वा जेब में रखकर ले जाओ. अरे, आओ. बिहार में सब कुछ उपलब्ध है. बिहार में 'का नहीं बा', बिहार में सब बा.' 

हमने कहा- शराब बंदी भी है और सब कुछ उपलब्ध भी है. क्या मतलब ?

बोला- वही मतलब है जो गुजरात में शराबबंदी का है. 'राम' कहो तो सप्लायर 'रम' पहुंचा देगा और 'कृष्ण' कहो तो 'व्हिस्की'. चवन्नी मतलब पव्वा और अठन्नी मतलब अद्धा. भाई, जब बिहार में काम की चीजें उपलब्ध है तो क्यों अपने साथ दूसरे राज्य की शराब लाकर यहाँ के धंधे और यहाँ की अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठाने पर तुले हैं.

अपने राम और कृष्ण को अपने उत्तरप्रदेश में रखो. हमारे यहाँ तो कम से कम हमारे राम-कृष्ण को अपना धंधा करने दो. उचित धंधा उचित तरह से चले बिना राम-कृष्ण का काम कैसे चलेगा. तभी तो सपा के भूतपूर्व और  भाजपा के वर्तमान नरेश अग्रवाल ने कहा था- 

व्हिस्की में विष्णु बसें, रम में बसते राम.

हमने कहा- यह तो बहुत गलत बात है. यदि नरेश चन्द्र अग्रवाल जैसे बिना पेंदे के संत यह कहें तो समझो और भी गलत, शुद्ध व्यापारी कैलकुलेशन.

बोला- नशा धर्म और राजनीति दोनों के लिए ज़रूरी है फिर चाहे वह इंग्लिश का हो या देसी ठर्रे का. समाजवादी हो या राष्ट्रवादी.

हमने कहा- जैसे अजामिल ने पुकारा तो अपने बेटे नारायण का नाम लेकिन यमदूत इतने मूर्ख निकले कि उसे विष्णु भक्त समझकर स्वर्ग ले गए. हो सकता है कि बिहार में कोई पियक्कड़ संकेतात्मक मेसेज करे ठेकेदार को और हाज़िर हो जाएँ कृष्ण या राम और पूछें कहो- भक्त क्या कष्ट है ?

 


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Feb 22, 2022

ज़माना बहुत ख़राब है

ज़माना बहुत ख़राब है


आज ठिठुरन कुछ कम है. बरामदे में बैठा जा सकता है, सो बैठे थे. कल की कल देखी जाएगी. अब हम और तोताराम सुपर सीनियर सिटिजन की श्रेणी में आने वाले हैं. करे तो हमें ही कोई राम-राम, श्याम-श्याम करे. हम जिन्हें आगे से चलकर राम-राम करें ऐसे बुज़ुर्ग लोग बहुत कम बचे हैं मोहल्ले में. जो एक दो बचे हैं सड़क पर कम निकलते हैं. संयोग से एक निकले. तोताराम ने उन्हें बड़े अदब से राम-राम की तो उत्तर देने की बजाय बोले- तेरा आधार कार्ड कहाँ है ?

हद हो गई. यह ठीक है कि सरकार ने पेंशनरों को आधार कार्ड के बिना पेंशन बंद हो जाने का डर दिखाकर सारी जानकारियाँ ले लीं और उन्हें जिस तिस को बेच दी. लेकिन 'राम-राम' करने पर भी आधार कार्ड मांगना तो ज्यादती की हद है. यदि ऐसा ही है तो आधार कार्ड को सभी लोगों के माथे पर छाप दिया जाना चाहिए. जैसे पुलिस और सेना में सबके सीने पर उनके नाम की एक छोटी सी प्लेट सी लगी रहती है.जब तक यह देशभक्तिपूर्ण नाटक शुरू हो उससे पहले और कुछ नहीं तो सभी अपने आधार कार्ड के डिटेल्स छपा एक झंडा लेकर चलें जिससे व्यक्ति के नकली होने की संभावना कम से कम रहे और उसकी असलियत दूर से ही पहचानी जा सके. 

हमने पूछा- भाई साहब, 'राम राम' में भी इतना खतरा ?

बोले- मास्टर जी, आपको पता नहीं. ज़माना बहुत खराब है. जाने किस वेश में नारायण मिल जाय और बैंक बेलेंस साफ़ कर जाए.

हमने कहा- ज़माना इतना भी खराब नहीं आया है कि 'राम राम' लेने में भी इतना डर लगे. 

बोले- मास्टर जी, ज़माना कब खराब नहीं था ? यह तो अतीत के गर्व की कुंठा है वरना रामायण, महाभारत और यहाँ तक कि सतयुग में भी भरी सभा में कुलवधू को नंगा करने की, वेश बदलकर सीता के हरण की, सपने के बहाने सत्यवादी हरिश्चंद्र का राज हड़पने की साजिश हमारे गौरवमय अतीत की ही घटनाएँ तो हैं. पता नहीं, कब कोई, किस खुसफुस के बहाने आपके फोन या खाते में कोई पेगासस घुसा दे और विनोद काम्बली के बैंक खाते की तरह आपका बैंक खाता साफ हो जाए. 

तोताराम ने बीच में ही लपक लिया, बोला- विनोद काम्बली तो बेचारा भोला है वरना उसके साथ वाले तो क्रिकेट के भगवान बन गए और वह एक धूमकेतु की तरह कुछ समय चमककर सीन से लुप्त हो गया. क्या किया जाए, देश को विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए सब कुछ डिजिटल करना भी तो ज़रूरी है.

हमने कहा- यदि डिजिटल धोखाघड़ी रोकने की समझ और व्यवस्था नहीं है तो चलने देते वही पुराना तरीका. कम से कम कोई भी के. वाई. सी. के चक्कर में भोले और बुज़ुर्ग लोगों को ठगेगा तो नहीं. कोई भी सुरक्षित नहीं है.अब  तो पता चला है कि पी.एम. ओ. का ट्विट्टर अकाउंट भी हैक हो गया है.

बोला- जो लालची, आलसी और लापरवाह होता है वही ज्यादा ठगा जाता है. नहीं तो क्या किसी को पता नहीं है कि कोई रुपये दुगुना नहीं कर सकता. फिर भी लालच के कारण लोग चक्कर में आ ही जाते हैं.   

हमने कहा- कम से कम इतना तो किया जा सकता है कि आगे से 'माई गुव' के नाम से मोदी जी के 'मन की बात' सुनने का जो मेसेज आता है उसे भी इग्नोर करें. क्या पता, उसे खोलते ही हमारा बैंक बेलेंस साफ हो आये. वैसे  लोग कहाँ तक बचें. अब रास्ते में कोई खाकी वर्दी वाला किसी को पकड़कर पूछताछ करने लग जाए तो क्या कोई उससे पूछेगा कि तू असली पुलिस वाला है या नकली ? मान ले कोई ज्यादा साहस दिखाए और पहचान पत्र मांग ले तो भी क्या गारंटी है कि उसका पहचान पत्र असली ही होगा. जब नोट तक नकली छप सकते हैं तो कुछ भी नकली बनवाया जा सकता है. 

भाई साहब बोले- तभी तो मैं कहता हूँ ज़माना बहुत खराब है. 

हमने कहा- तब तो तोताराम, यह भी असंभव नहीं है कि यू. पी. के चुनावों में के बाद सरकार को पता चले कि कोई  बहुरूपिया मोदी जी का वेश धारण करके किसानों से माफ़ी मंगाकर उन्हें उल्लू बना गया हो. तीनों कृषि कानून वापिस हुए ही नहीं हों.क्योंकि लोकतंत्र में वेश, वादों और विचारधारा का कहीं कोई रिश्ता नहीं बचा है.   

तोताराम बोला- लेकिन बाद में पुलिस की सक्रियता से काम्बली की एंट्री रिवर्स तो हो गई.

भाई साहब बोले- तो क्या हम लोग काम्बली, सचिन और गांगुली हैं ? 



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Feb 21, 2022

सेवकों का सोनपुर मेला


सेवकों का सोनपुर मेला 


आज तोताराम ने आते ही कहा- सोनपुर चलने का मन है क्या ?

हमने कहा- न तो हमारे पास जनता के टेक्स के पैसे से फूँकने के लिए तेल है और न ही मोदी जी तरह सरकारी प्लेन. और न ही इस जाती ठण्ड में जुकाम और निमोनिया को निमंत्रण देने का साहस. हम कोई शाह साहब थोड़े हैं जो ज़रा सी छींक आते ही एम्स वाले कॉटेज वार्ड सजाकर बैठ जाएँ. पहले तो कोई भी डाक्टर दो-चार सौ रुपए कंसल्टेशन के धरवा लेगा और फिर दवाई वाला जेब काट लेगा सो अलग. यहीं ठीक हैं,आडवानी जी तरह बरामदा निर्देशक मंडल में. न कोई हालचाल पूछने वाला और न ही कोई डिस्टर्ब करने वाला. सोनपुर बिहार में है. अगर सोनपुर चलना भी होगा तो कार्तिक की पूनम को मेला लगता है तब चलेंगे.अभी तो बहुत दिन हैं. और फिर हमें कौन सोनपुर के पशु मेले में गाय-भैंस या गधे-घोड़े खरीदने हैं. हाँ, चुनाव के बाद जिन्हें हॉर्स ट्रेडिंग करनी है वे सोनपुर क्या, लखनऊ-दिल्ली कहीं भी कर लेंगे. वैसे भी जनसेवक घोड़े किसी सोनपुर की बजाय पांच सितारा होटल या रिसोर्ट में पाए जाते हैं.

बोला- मुझे भी पता है कि सोनपुर बिहार में है और वह मेला कार्तिक की पूनों को लगता है. लेकिन जहाँ जहाँ चुनाव  होता है वहाँ वहाँ बिना पूर्णिमा के ही पशु मेला भरने लगता है. आजकल उत्तर प्रदेश में सोनपुर का मेला चल रहा है. बिहार में तो मामला सुन्न है. हाँ, वहाँ की कैमूर वाली लोक गायिका लकड़ी नेहा राठौड़ ज़रूर धमाल मचाये हुए है.

हमने कहा- कलाकारों को राजनीति से दूर रहना चाहिए.

बोला-  वह राजनीति कहाँ कर रही है. वह तो लोक कवि और गायिका है. लोक के सुख-दुःख गा रही है. ठीक भी है सरकार का यश गान करने वाले चारण तो बहुत हैं लेकिन लोक के सुख-दुःख को वाणी तो लोक कलाकार ही देंगे ना. 

हमने कहा- लेकिन तू सोनपुर के पशु मेले से राजनीति को क्यों जोड़ रहा है ?

बोला- राजनीति भी एक सर्कस है. इसमें भी तरह तरह के तमाशे, रोमांच और अजूबे शामिल किये जाते हैं जैसे मेलों में पांच टांग की गाय, दो सिर वाला बच्चा आदि टिकट लेकर तम्बू में ले जाकर दिखाये जाते हैं वैसे ही यू पी के चुनावों को ध्यान में रखकर अजूबे जुटाए जा रहे हैं. 

हमने पूछा-कैसे ?

बोला- जैसे सपा ने सबसे लम्बे ८ फुट १ इंच के प्रतापगढ़ के धीरेन्द्र प्रताप सिंह को और इसी तरह भाजपा ने पहलवान खली को पार्टी में शामिल किया है. 

हमने कहा- पता नहीं, इससे पार्टियों को कौनसी वैचारिक दिशा और राजनीतिक व आर्थिक विशेषज्ञता प्राप्त होगी. 

बोला- मैंने तो पहले ही कह दिया कि ये सेवकों के सर्कस हैं जिनके लिए कहीं भी सोनपुर का मेला लग जाता है. 

हमने कहा- और क्या ? अपने सीकर में भी तो एक जैन साधु आये थे जिन्होंने अपने कार्यक्रम में भारत की सबसे ठिगनी महिला को बुलाया था, पता नहीं क्यों. इसी तरह मोदी जी ने ८०० किलो की गीता का उदघाटन किया था. इसी तरह सैंकड़ों मीटर लम्बे झंडे फहराकर कर पता नहीं कौनसा पुण्य और कौनसी प्रेरणा मिलती है ?राजनीति द्वारा फैलाए गए विखंडन और अर्थव्यवस्था द्वारा निर्मित असमानता को  'एकता की मूर्ति' और 'समानता की मूर्ति' कैसे कम करेंगी ?

कुछ वर्ष पहले तो जे एन यू के एक राष्ट्रवादी विद्वान ने अपने छात्रों को देश भक्ति की प्रेरणा दिलवाने के लिए विश्वविद्यालय परिसर में टेंक रखवाने की सिफारिश की थी. उनके अनुसार शायद नॅशनल कॉलेज, लाहौर में पढ़ते समय भगत सिंह को देश भक्ति की प्रेरणा वहाँ रखे किसी टैंक से ही मिली होगी.

बोला- फिर भी इन टोटकों और तमाशों से और कुछ नहीं तो मनोरंजन ही सही.

हमने कहा- तो फिर तोताराम तू भी इस चुनाव के मौसम में कहीं भी, किसी भी पार्टी में शामिल हो ही जा. मोदी जी की ५६ इंच की छाती के सामने मुकाबले में तेरी २८ इंच की छाती का चेलेंज और कुछ नहीं तो कुछ मनोरंजन तो कर ही देगा.   


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Feb 18, 2022

दाढ़ी और आवास


दाढ़ी और आवास  


कई दिन से हमारा ट्रिमर हुआ, न हुआ बराबर हो गया है. उसके दाँते इतने भोथरे हो गए हैं कि बात कटते ही नहीं. ज्यादा कोशिश करो तो बाल खिंचने लगते हैं जो बहुत पीड़ादायक होता है. १८०० रुपए में ख़रीदा था. कंपनी भी प्रसिद्ध है. लेकिन हो सकता है नकली हो. आजकल बदमाश नकली इन्स्पेक्टर और पुलिस बनकर लोगों को ठगते फिरते हैं तो यह तो एक छोटी सी मशीन है. हमने सोचा था कि कोरोना के बहाने कैसी भी कटिंग और दाढ़ी चलेगी. ट्रिमर से खुद ही दाढ़ी और कटिंग बनाकर हजारों की बचत कर लेंगे लेकिन संभव नहीं हुआ. 

इसी चक्कर में दाढ़ी मोदी जी की युवावस्था वाली दाढ़ी जितनी बड़ी हो गई है. आज तोताराम ने आते ही कहा- दाढ़ी हिला. 

हमने कहा- अभी बोलते समय हिलने वाली मुल्ला जी की दाढ़ी जितनी बड़ी नहीं हुई है. यदि तुझे नहीं सुहाती तो जितनी है उसी को पकड़ कर हिला दे. हम कौन दशकों बाद स्पष्ट बहुमत से बनी सरकार हैं जिसे मनमानी करने पर भी कोई हिला ही नहीं सकता.

बोला- भाई जान, नाराज़ न हों. मैं ऐसी धृष्टता कैसे कर सकता हूँ. मैं तो देखना चाहता हूँ कि आपकी दाढ़ी हिलने से क्या टपकता है ? 

हमने कहा- यह कोई झाड़ी है जो आंकड़ा डालकर झड़काने से बेर टपकेंगे.इसमें कोई तिनका भी नहीं है जो झटकने से गिर पड़े. 

बोला- चमत्कारी दाढ़ी हो तो तिनका ही क्या, लाखों आवास टपक सकते हैं. 

हमने कहा- कुछ सनकी लोग अपनी दाढ़ी में मधुमक्खियाँ बैठाकर चर्चित हो जाते हैं. कुछ ऐसे की करानामों से गिनीज बुक में नाम लिखवा लेते हैं. यदि कोई सफाई नहीं करे तो उसकी दाढ़ी में जूएँ तो पाई जा सकती हैं लेकिन लाखों आवास ! फालतू बात.

बोला- मैं कुछ नहीं कह रहा हूँ. यह तो रीवां मध्यप्रदेश से भाजपा के सांसद जनार्दन मिश्र की खोज है. वे ३ नवम्बर को भाषण दे रहे थे जो अब वाइरल हो रहा है. कहते हैं- मोदी की दाढ़ी में घर ही घर हैं. एक बार दाढ़ी हिलाते हैं तो ५० लाख घर टपकते हैं. इसलिए आप मोदी की दाढ़ी देखा करो. जब देखना बंद कर दोगे तो आवास मिलना भी बंद हो जायेंगे. 

हमने कहा- अगर हमें पता होता तो 'मन की बात' सुनने में समय ख़राब नहीं करते, नित्य प्रति दाढ़ी-दर्शन ही करते रहते. कम से कम वास्तविक 'गृहस्वामी' तो बन जाते. तोताराम, यह लोकतंत्र का बकवासी युग है. छोटे से छोटे नेता से लेकर बड़े से बड़े नेताओं तक में भांडों और विदूषकों की तरह मजाकिया बयान देने की होड़ लगी हुई है. सोचते हैं जितना बचकाना बयान देंगे उतना ही लोगों का मनोरंजन होगा और वे वोट देंगे. और देश का दुर्भाग्य देख, ऐसे लोग चुनाव जीत भी रहे हैं. ये नेताजी भी उसी बीमारी से ग्रसित हैं. 

हाँ, शरीर पर जीवों की उपस्थिति की एक कथा तो मिलती है कि तपस्या में लीन वाल्मीकि जी के शरीर पर दीमकों ने अपना आवास बना लिया था,

आवास की समस्या सदैव रही है, लोगों ने अपने अपने हिसाब से उनके हल भी तलाशे हैं. कुछ फिल्मों में  कई गीत आये थे जो आवास समस्या के बारे में हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं. किशोर कुमार और लता का गाया 'जोरू का गुलाम' फिल्म का एक दोगाना है- 

-नैनों में

-निंदिया है

- माथे पे

- बिंदिया है

- आँखों में

-कजरा है

- बालों में

- गजरा है

- तो कौन सी जगह है खाली, 

ओ मतवाली, मैं कहाँ रहूँगा ? 

मतलब बालों में केवल जूएँ ही नहीं,कई अन्य प्राणी भी अपना आवास बना सकते हैं. ऐसे में दाढ़ी में भी आवास की संभावना बन तो सकती है.

खैर, दाढ़ी की बात चली है तो एक किस्सा भी सुन ले. एक मुल्ला जी थे. उनके पास लोग तरह-तरह की समस्याएं लेकर आते थे. चूंकि मुल्ला जी मातबर आदमी थे. जैसा कुछ समझ में आता, वैसा हाथ का उत्तर दे देते थे. एक बार एक व्यक्ति को बुखार हो गया. मुल्ला जी ने पीपल के पत्ते पर कुछ लिखकर दिया और कहा इसे पानी में घुमाकर पी लेना, ठीक हो जाओगे. लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ.


अबकी बार उन्होंने एक और टोटका किया. अपनी दाढ़ी का एक बाल उस व्यक्ति को देते हुआ कहा- इसे ताबीज में मँढ़वाकर दायीं बांह पर बांध लेना. अल्ला ने चाहा तो फायदा हो जाएगा. संयोग से वह व्यक्ति ठीक हो गया. लोगों में बात वाइरल हो गई. कुछ दिनों बाद गाँव में बुखार महामारी की तरह फ़ैल गया. लोग मुल्ला जी के पास बाल मांगने आने लगे. मुल्ला जी ने बाल वितरण से मना कर दिया तो लोग जबरदस्ती मुल्ला जी की दाढ़ी उखाड़ ले गए. 

तभी से यह कहावत प्रचलित है- मुल्ला जी की दाढ़ी ताबीजों में काम आई. 

 



 

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Feb 17, 2022

यह कौनसी समता है, भाई


यह कौनसी समता है, भाई 


जैसे ही तोताराम आया, हमने उसे कोई मौका नहीं दिया और कहा- तोताराम, दिनकर जी की कुछ पंक्तियाँ सुन.

बोला- सुना दे. यदि तेरी होतीं तो चाय के साथ नाश्ते के बिना नहीं सुनता. आजकल चुनावों का सीज़न है. कहीं भी चला जाऊँगा. उत्तर प्रदेश में तो अब सड़ा हुआ ही सही, पांच किलो अनाज के साथ ५०० रुपए भी मिल रहे हैं. 'यू. पी. में का बा' और 'यू.पी. में सब बा' के कविता युद्ध से चुनाव प्रचार हो रहा है, कहीं न कहीं तुकबंदी करके भी कमाई की जा सकती है.

हमने कहा- 

शान्ति नहीं तब तक; जब तक
सुख-भाग न नर का सम हो,
नहीं किसी को बहुत अधिक हो,
नहीं किसी को कम हो।

 बोला- तो इस सत्य से किसे इनकार है. लेकिन कांग्रेस का ७० साल का किया हुआ बिगाड़ा एक दिन में थोड़े ही ठीक होगा. कोशिश तो कर रहे हैं. आज ही मोदी जी ने हैदराबाद के पास 'समता की मूर्ति' का उदघाटन किया है.

हमने कहा- लेकिन वह तो एक हजार वर्ष पहले हुए संत रामानुजाचार्य की मूर्ति है जो छुआछूत और भेदभाव को नहीं मानते थे और कहते थे- यदि सब के सुख के लिए मुझे नरक में जाना पड़े तो मैं तैयार हूँ. समता कानून और सुशासन से आती है. हर समय हिन्दू मुसलमान, मंदिर मस्जिद करने से नहीं आती. क्या संविधान में न्याय, समता, सुरक्षा और मानवीय गरिमा का संकल्प नहीं है ? उसमें तो श्रद्धा है नहीं. सामान्य न्याय तक में खयानत. कोई मुसलमान अपनी योग्यता से संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा में सफल हो जाए तो वह देशभक्तों को 'यूपीएससी जिहाद' लगने लग जाता है.

बोला- फिर भी मूर्तियों से प्रेरणा तो मिलती ही है. 

हमने कहा- लेकिन इनके नामकरण तो देख. कितने अकलात्मक किया जाता है. इससे बेहतर तो 'अ' से अनार और 'आ' से आम ही होते हैं. खाने को न मिले पर कम से कम कुछ सीखने को तो मिलता है.  अरे, खुद में अक्ल नहीं तो दिल्ली में आज़ादी के बाद बने हुए स्मारकों से ही कुछ सीख लेते.

दिल्ली में गाँधी, नेहरू, इंदिरा, राजीव, जगजीवन राम, चरण सिंह आदि के स्मारक है लेकिन कहीं कोई मूर्ति नहीं है. सब कुछ प्रतीकात्मक है. भाव वाचक संज्ञाएँ प्रतीकात्मक ही होती हैं. क्या एकता का भाव पटेल की मूर्ति की बजाय 'दो मिले हुए हाथों' या 'बंधी हुई मुट्ठी' से अधिक कलात्मक रूप से स्पष्ट नहीं होता ? 

अमरीका में भी ट्विन टावर के स्मारक में कोई मूर्ति नहीं है. काले संगमरमर का एक गड्ढा सा है जिसके चारों ओर की दीवार पर सभी मृतकों के नाम लिखे है,चारों तरफ पेड़ हैं और उस गड्ढे में पानी का एक झरना सा निरंतर सब तरफ से गिरता रहता है. बहुत शालीन लगता है.

बोला- लेकिन नेहरू ने पटेल को उचित सम्मान नहीं दिया तो हमें तो उस राष्ट्रीय शर्म का कुछ इलाज़ करना ही था. जैसे नेहरू ने सुभाष को उचित स्थान नहीं दिया तो इंदिरा द्वारा बनवाए गए 'अमर जवान ज्योति'  को 'समर स्मारक' में विलीन करवाने का एक न्यायपूर्ण राष्ट्रीय कार्य करना ही पड़ा. 

हमने कहा- तो क्या पटेल की मूर्ति के बाद 'एकता' आ गई ? क्या रामानुजाचार्य की मूर्ति के बाद समता आ जायेगी. और क्या सुभाष की मूर्ति से देश शौर्यवान हो जाएगा. अब तक तो 'एकता' के स्थान पर 'हिन्दू मुसलमान' हो रहा है, 'समता' के नाम पर गरीब का जीना मुश्किल हो रहा है और दो-चार लोगों की संपत्ति बढ़ रही है तथा शौर्य के नाम पर जय श्री राम बुलवाने के लिए लोगों की पिटाई की जा रही है. उधर मर्यादा पुरुषोत्तम राम मंदिर बन रहा है और इधर सभी मर्यादाओं का उल्लंघन हो रहा है. 

बोला- देखो, सद्धर्म का प्रभाव धीरे धीरे होता है लेकिन पक्का होता है जैसे आदमी भूखे रहकर भी मदिर मस्जिद के लिए चंदा और जान दोनों देने के लिए तैयार हो जाता है. अब हम सभी सद्गुणों के विकास के लिए मूर्तियाँ लगावायेंगे जैसे एकता के लिए (पटेल), मर्यादा के लिए (राम)समता के लिए (रामानुजाचार्य ) लगवाईं हैं.

हमने कहा- तो फिर हमारा सुझाव है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अमित शाह जी, विकास के लिए मोदी जी, करुणा के लिए योगी जी, सुव्यवस्था के लिए अजय टेनी, सामाजिक सद्भाव के लिए अनुराग ठाकुर. अल्पसंख्यक कल्याण के लिए यति नरसिंहानंद, गांधीवादी विचारधारा के प्रसार के लिए कालीचरण और प्रज्ञा ठाकुर की मूर्तियाँ लगवानी चाहियें. 

बोला- यह सब तो मेरे हाथ में नहीं है. हाँ यदि 'संवाद' या 'चाय पर चर्चा' की  कोई मूर्ति की बात हो अपनी 'बरामदा संसद' का नाम सुझाया जा सकता है. 

हमने कहा- तोताराम, हम समता की मूर्ति के सन्दर्भ में एक बात कहना चाहते हैं. पता नहीं, लोग किस स्पिरिट में लेंगे लेकिन है सच.  सोमनाथ मंदिर के शिलान्यास में नेहरू जी इसलिए नहीं गए कि हम हिन्दू राष्ट्र नहीं हैं लेकिन राजेंद्र बाबू गए. जब राम मंदिर का शिला पूजन हुआ तब मोदी जी थे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख थे, योगी जी थे, आनंदी बेन पटेल थीं, अशोक सिंघल के बेटे थे लेकिन २ से २०० पहुंचाने वाले, राम-रथ के सूत्रधार अडवानी जी और पांच लाख का चंदा देने वाले, भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद नहीं थे ?  और आज छुआछूत मिटाने, मंदिरों में सबके प्रवेश की वकालत करने वाले रामानुजाचार्य की मूर्ति के लोकार्पण पर भी रामनाथ जी को न बुलाने में किस समता का संकेत है ?


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Feb 16, 2022

ठण्ड कभी भी लौट सकती है


 ठण्ड कभी भी लौट सकती है


दो दिन से ठण्ड कुछ कम हो गई है. कल दोपहर को तो होली खेलने के बाद जैसा सुहावना सा लगने लगा था. 

तोताराम चाय पीकर जा चुका. हमने नाश्ता किया. जैसे ही सूरज कुछ ऊपर आया, लगा कि बरामदे में बैठकर दाढ़ी बनाई जा सकती है.वैसे भी अब बंगाल का चुनाव निबट ही गया. दाढ़ी की कोई लोकतांत्रिक उपादेयता नहीं बची. तभी देखा तोताराम एक बड़ा सा थैला कंधे पर लटकाए चला आ रहा है. 

हमने कहा- तोताराम, तुम्हारा सुबह चाय पीने के अतिरिक्त दिखाई देना वैसे ही आशंकास्पद लगता है जैसे दो चुनावों के बीच किसी सेवक का अपने दल-बल सहित भले घरों के आसपास दिखाई देना. वैसे इस झोले में क्या है ?

बोला- लगता है अब सर्दी का आखिरी राउंड निकल गया सो कुछ गरम कपड़े धोये थे उन्हीं को प्रेस करवाने जा रहा हूँ.

हमने कहा- १० मार्च तक रुक जा. हमने तो समझा था तुझे भी सेवकों की तरह लोक सेवा करते करते अचानक परलोक का ख्याल आ गया हो और झोली लेकर हिमालय की ओर निकल पड़ा हो.

बोला- बन्धु, ये सब सुविधाएं तेरे मेरे जैसे गृहस्थों को कहाँ उपलब्ध हैं. हमें तो कबीर की तरह संसार का यह खटरागी करघा आखिरी दिन तक चलाना पड़ेगा. योगी जी, मोदी जी की बात अलग है. वे तो कभी चल दे सकते हैं. 

हमने कहा- तो क्या समझता है ज़िम्मेदारी या तो तुझ पर है या फिर कबीर पर थी. अरे, मोदी जी और योगी जी तो यदि जाना भी चाहेंगे तो भी यह समस्त संसार उन्हें जाने भी नहीं देगा. 

बोला- क्यों 

हमने कहा- पिछले दिनों मोदी जी ने दुनिया को 'सूर्योपनिषद' के द्वारा ऊर्जा संकट का हल बताया था. सो अब जाने किस किस देश के नेता और सामाजिक कार्यकर्त्ता सूर्योपनिषद का अध्ययन करने मोदी जी के आवास के चारों  तरफ चक्कर लगा रहे हैं. इसके बाद योगी ने ग्लोबल वार्मिंग का हल निकाल लिया है. अब जब तक यह समस्या दुनिया में है तब तक लोग उन्हें झोली उठाकर कैसे जाने देंगे. 

बोला- मतलब ?

हमने कहा- इसका मतलब तूने उनका बुलंदशहर में एक हफ्ते पहले दिया बयान नहीं सुना. उन्होंने कहा है १० मार्च के बाद सब गरमी निकाल देंगे. इसीलिए तो हम तुझे कह रहे थे कि १० मार्च तक रुक जा. क्या पता, योगी जी सारी की सारी गरमी निकाल दें और उत्तर भारत का पारा फिर माइनस में चला जाए और तुझे सर्दी के कपड़े फिर निकालने पड़ जाएँ.  

बोला- और अगर १० मार्च को जनता ने योगी की गरमी निकालने वाली तकनीक अप्लाई करने का अवसर नहीं दिया तो ?

हमने कहा- तब भी मोदी जी की बात और है लेकिन योगी जी झोला या झोली उठाकर नहीं जा सकते. 

बोला- क्यों ? उनके बाल-बच्चे कौन प्लस टू में हैं जिनके कैरियर पर दुष्प्रभाव पड़ेगा.

हमने कहा- वे महंत हैं, संत नहीं. संत के पास तो कमंडल-खड़ाऊँ के अतिरिक्त कुछ नहीं होता लेकिन महंत का तो बड़ा तामझाम होता है. लाव-लश्कर. हाथी-घोड़े, तीर-तमंचा, चेले-चपाटे, खेत-खलिहान. आश्रम ट्रांसफर करें तो महिनों लग जाते हैं. 

बोला- तो चाय बनवा. कपड़े प्रेस करवाने का कार्यक्रम केंसिल. अपने पास कौन मोदी जी की तरह असंख्य कुरते-जाकेट हैं जिनके प्रबंधन के लिए एक स्वतंत्र मंत्रालय चाहिए. चार कपड़े हैं, कभी भी रख, धो, निकाल लेंगे. 




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Feb 12, 2022

महिमा मुंडन


आज भी हमने तोताराम को कोई मौका न देते हुए, सदन की कमान संभालते हुए कहा- बधाई हो तोताराम, आज चचा के वहाँ समता पर ममता वर्षण हो गया. 

बोला- क्यों क्या हुआ ? क्या अमरीका में भी किसी रामानुजाचार्य की मूर्ति का लोकार्पण हुआ है ?

हमने कहा- जिस दुनिया को हम कट्टर और छोटे दिल की बताया करते थे उसने खुद को हमसे ज्यादा उदार और लोकतान्त्रिक सिद्ध कर दिया है. जिन मुसलमानों को हम कट्टर और देशद्रोही बताकर अपना चुनावी उल्लू सीधा कर रहे हैं उनके देशों में मंदिर बन रहे हैं. इस समय भारतेतर देशों में ३४ हिन्दू मंदिर निर्माणाधीन हैं जिन्हें सोमनाथ मंदिर के पारंपरिक वास्तुकार और शिल्पकार सोमपुरा सरनेम वाले लोग बना रहे हैं. 

और यहाँ हम चर्चों और मस्जिदों की राजनीति कर रहे हैं. खुले में जमाज़ पढ़ने और बच्चियों को हिजाब के नाम पर घेर रहे हैं.बुल्ली सुल्ली कर रहे हैं. गाँधी अमरीका कभी नहीं गए लेकिन  दुनिया के किसी भी देश से अधिक गाँधी की मूर्तियाँ अमरीका में हैं. वहाँ के दलित वंचित उन्हें अपने गुरु मार्टिन लूथर किंग का आदर्श मानते हैं. आज भी 'हाउ डी मोदी' के बावजूद अमरीकी भारत को बुद्ध, गाँधी और नेहरू का देश ही मानते हैं. 

बोला- भारत सरकार की तरह महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे से भटकाने के लिए नेहरू-सुभाष और हिन्दू-मुस्लिम मत कर. बात तो समता की चल रही थी. 

हमने कहा- चचा मतलब ट्रंप के भक्तों द्वारा केलिफोर्निया और मैनहट्टन में गाँधी की मूर्तियों से छेड़छाड़ करके अमरीका को फिर से ग्रेट बनाने का, समता-ममता का शुभारम्भ हो गया है. 

बोला- कुछ भी हो, भारत अमरीका से तो बेहतर है. यहाँ गाँधी की कोई मूर्ति तो नहीं तोड़ी गई.

हमने कहा- वहाँ तो मूर्ति का मुंडन ही हुआ है हम तो महिमामंडन के बहाने ही मुंडी उतार लेते हैं.

बोला- क्या मतलब ? 

हमने कहा-गाँधी ने अपने नाम पर कोई पंथ या स्मारक छोड़ने की बजाय खुद को 'अहिंसा' के नाम से याद करने की बात कही थी. गोडसे-आप्टे भारत रत्न सम्मान के नाम पर गाँधी को गाली देने वाले और मुसलमानों के कत्ले आम करने का मन्त्र देने वाले को महिमामंडित करके हम रोज गाँधी की हत्या करते हैं. 

लोगों के मन में कितनी घृणा भरी हुई है ! 


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Feb 10, 2022

वैमनस्य की जलकुम्भी

वैमनस्य की जलकुम्भी


आज तोताराम ने बड़ा अजीब प्रश्न किया- मास्टर, फूंक और थूक में क्या फर्क है ?

हमने कहा- तोताराम, फर्क तो मन का होता है. कोई मन को भाता है तो उसका गुस्सा भी प्यारा लगता है और जिसके लिए मन में खोट होता है उसे किसी का कुछ भी अच्छा तो दूर, बुरा लगता है. नीयत ठीक है तो सब ठीक है नहीं तो कुछ भी ठीक नहीं है. 

बोला- तू तो दार्शनिक बात करने लगा. हम तो साधारण दुनिया में रहते हैं और छोटी-छोटी बातों पर हंसते-रोते, दुखी-सुखी होते हैं.

हमने पूछा- क्या हुआ ?

बोला- लोग लता मंगेशकर के अंतिम संस्कार के समय शाहरुख खान के फूंक मारने को थूकना कहकर बवाल मचा रहे हैं.

हमने कहा- तोताराम, ये ऐसे बदमाश लोग हैं जो इस देश को ख़त्म करके मानेंगे. इन्हें काम तो कुछ है नहीं. दो-दो रुपए और फ्री रिचार्ज में खुराफाती, बनावटी खबरों का कीचड़ फैला रहे हैं जिसमें वैमनस्य की जलकुम्भी फैलती जा रही है जिसने प्रेम और भाईचारे के कमलों और कमलिनियों को ढँक लिया है. 

बोला- फिर भी फूंक और थूक का क्या चक्कर है ?

हमने कहा- फूंक और थूक दोनों ही मनुष्य की छोटी-छोटी, कभी निरर्थक और कभी सार्थक चेष्टाएँ हैं. जब कभी जलन होती है या कहीं चोट लग जाती है तो फूंक मारकर दिल को दिलासा देते हैं. कभी कभी थकान को उड़ाने के लिए एक लम्बी सांस लेते हैं, वह भी एक प्रकार की फूंक ही है. बचपन में जब आज की तरह देशभक्तों द्वारा बात बात में हिन्दू-मुसलमान नहीं हुआ करता था तब बुखार होने पर दादी दवा के साथ मस्जिद में जाकर मुल्ला जी से झाड़ा भी लगवाती थी. तब वे अंत में फूंक मारते थे. इस फूंक का मतलब था बुरी हवा,आत्माओं को फूंक से उड़ा देना. शाहरुख़ खान ने लता जी के लिए दुआ करके वही फूंक मारी थी. लेकिन जिनको देश में अपने चुनावी लाभ के लिए ऐसी अफवाहें फ़ैलाने का ही काम मिला हुआ है वे इसमें और क्या देख सकते हैं ?

क्या जब माँ को अपना बच्चा बहुत अच्छा लगता है तो वह उस पर थुथकारती नहीं कि कहीं नज़र न लग जाए. 

बोला- तो फूंक और थूक में विवाद कैसा ? 

हमने कहा- सारा विवाद नीयत का है. दुनिया की सभी नागर सभ्यताओं में किसी न किसी रूप में कम-ज्यादा परदे का विधान रहा है. अब उसी को लेकर कर्नाटक में हिजाब को धार्मिक रंग दिया जा रहा है. यह भी राष्ट्रीयता की आतंकवादी फूंक नहीं तो और क्या है ?

एक फूंक कृष्ण की.  बांसुरी फूंककर सारी सृष्टि को माया-मोह से मुक्त कर देते हैं, तो कभी पाप को मिटाने के लिए इसी फूंक से 'गीता' का शंख फूँकते हैं. गाँधी अहिंसा का शंख फूँकते हैं और शैतानी अंग्रेज शासन को भगा देते हैं 

फूंक धर्मान्धता और कुटिल राजनीति का एक हथियार भी है. बस, फूँको और लाखों मूर्ख लोग पत्थर फेंकने, गालियाँ निकालने लग जाते हैं.  किसी की जलन कम नहीं होती बल्कि घृणा और हिंसा की आग भड़क उठती है. 

बोला- इनकी फूंक गाँधी वाली नहीं, चूहे वाली है.

हमने पूछा- कैसे ?

बोला-  रेगिस्तानी इलाकों में एक चूहा होता जो रात को, किसी का हाथ खाट से नीचे लटका रह जाए तो कुतर देता है. कुतरते समय बीच-बीच में फूंक मारता रहता है जिससे व्यक्ति को पता नहीं चलता. जब पता चलता है तब तक अंगुली गायब. यह भी राष्ट्रीयता की आड़ में विघटन की फूंक ही होती है. 







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खोटे ग्रह जप दान


खोटे ग्रह जप दान 


आज आते ही तोताराम चुपचाप बैठ गया. कई देर हो गई. कमरे में मनहूसियत पसर गई. अंत में हमने ही मौन भंग किया, क्या बात है ? क्या दुश्मनों की तबीयत नासाज़ है ?

बोला- आजकल खुद की और दोस्तों की तबीयत नासाज़ है. दुश्मन तो चाहे देश के हों या मानवता के या समाज के, मज़े में हैं.

हमने पूछा- क्या बात है ? कोरोना से बच गया तो क्या अब ओमिक्रान का भय सता रहा है ?

बोला- इस उम्र में मौत का क्या भय. अब तो धन का भय ही सबसे चिंताजनक है. आज ही भविष्य पढ़ा है कि अगले दो महिनों में अनिष्ट की संभावना है. संकट मोचन का पाठ किया करें. शायद बचाव हो जाए. मतलब कि कोई बड़ा ही विकट निशाचरी संकट है जो हनुमान जी के भी वश का नहीं लगता.

हमने कहा- भविष्य तो हमारा भी कुछ ऐसे ही है, लिखता है- बहस और विवाद से बचें. चुप रहकर समय निकाल दें. 

बोला- मास्टर, इन बातों को एक साथ जोड़कर देखने से मुझे एक दुखद संयोग बनने और इस भविष्य के सच होने की संभावना लगती है.

हमने पूछा- कैसे ?

तो बोला- देख, अपने विश्वसनीय अखबार में पहले पेज पर ही खबर छपी है- अटल जी के जन्मदिन २५ दिसंबर २०२१ से दीनदयाल उपाध्याय के जन्म दिन ११ फरवरी २०२२ तक भाजपा राजस्थान में १ करोड़ लोगों से चंदा लेगी. भाजपा के स्वयंसेवक होते हैं. वे सेवा के लिए किसी से पूछते नहीं. अपने मन के अनुसार जब, जैसे,, जहाँ, जितनी सेवा उचित और आवश्यक होती है, कर देते हैं. ये बहुत उत्साही होते हैं और उत्साह में सबसे पहले आदमी कानून को हाथ में लेता है जैसे पंजाब में तथाकथित बेअदबी के खिलाफ लोगों ने तत्काल सज़ा-ए-मौत का फैसला सुना दिया और कार्यान्वित भी कर दिया. तेरा भविष्य भी ऐसा ही संकेत करता है.

हमने कहा- वैसे इसी समाचार में आगे प्रदेशाध्यक्ष का एक कथन भी छपा तो है- 'भाजपा सार्वजनिक जीवन में शुचिता, पारदर्शिता व ज़वाबदेही लाने के लिए कृतसंकल्प है'. इसका मतलब है कि शुचिता मतलब चंदा गलत काम के लिए नहीं है, पारदर्शिता मतलब कि कोई भी चंदे का हिसाब जान सकता है, ज़वाबदेही मतलब कि जिस काम के लिए चंदा लिया जा रहा है उसी के लिए खर्च किया जाएगा और जिस काम का संकल्प लिया है उसे पूरा करेंगे. 

बोला- वैसे अभी तक पीएम केयर्स का हिसाब तो नहीं दिया गया, राम मंदिर में भी कुछ ऐसा वैसा ही सुनने में आ रहा है. लेकिन जब दस आदमी देशभक्ति की ड्रेस में, तिलक लगाकर, 'करो या मरो' की मुद्रा में आयेंगे तो क्या करेंगे ?

हमने कहा- कह देना, हम तो सरकारी कर्मचारी रहे हैं, पेंशनभोगी हैं. न तो यह हमारे सर्विस रूल्स के हिसाब से उचित है कि राजनीति में भाग लें. और न ही हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी है.

बोला- वे कहेंगे क्या जनरल वी के सिंह सेना की नौकरी के बाद भाजपा में शामिल नहीं हुए ? राजनीति का असली मज़ा तो है ही रिटायर्मेंट के बाद. पहले डिफेन्स फंड में एक दिन का वेतन देते थे, अब एक दिन की पेंशन दे दो. 

हमने कहा- तो फिर डेढ़ महिने के लिए रोज किसी से बाहर से ताला लगवाकर चुपचाप अन्दर बैठे रहें. या घर के आगे बोर्ड लगा दें कि घर में सभी ओमीक्रोन से पीड़ित हैं.

बोला-जैसे नेता चुनाव में रैली करने से नहीं डरते वैसे ही स्वयंसेवक चंदा वसूली में किसी बाधा को नहीं मानते. यदि कहेंगे कि डिजिटली पार्टी के खाते में ट्रांसफर दो तब ?

हमने कहा- जब कोई भी उपाय नहीं है तो फिर दे देना चंदा. कवि ने भी तो कहा है-

बसे बुराई जासु तन ताही को सनमान

भलो भलो कहि छाँडिये खोटे ग्रह जप दान 

ऐसे में दे-दा कर जान और इज्ज़त दोनों बचाने में ही समझदारी है. जब दस सेवक स्वयं इकट्ठे होकर आयेंगे तो छीन कर भी तो ले जा सकते हैं.

बोला- तो कम से कम कितने में प्राण छूट जायेंगे ?

हमने कहा- ८०० करोड़ रुपए के प्लेन में बैठने वाले मोदी जी ने एक हजार रुपये दिए हैं. इस हिसाब से हम लिए तो पांच पैसे ही बहुत हैं. अढ़ाई तेरे, अढ़ाई हमारे.

बोला- लेकिन अब तो सरकार ने चवन्नी तक के सिक्के बंद कर दिए हैं. 

हमने कहा- लेकिन भाजपा की तो चवन्नी ही क्या, चमड़े का सिक्का चल रहा है. ले लेंगे, मुफ्त में सब चलता है. जब 'पीएम केयर' तक का हिसाब नहीं दिया तो यह तो पार्टी का चंदा है.  एकदम आतंरिक मामला.




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Feb 5, 2022

अति उत्साह के खतरे


अति उत्साह के खतरे 


हमने कहा- तोताराम,  मोदी जी और अन्य मंत्रियों द्वारा खिलाड़ियों का भांति-भांति से उसाहवर्द्धन करने के बावजूद आस्ट्रेलिया ने इतिहास रच ही दिया. 

तोताराम ने कहा- हम तो रोज ही इतिहास रचते हैं. अभी चार दिन पहले ही राष्ट्रवादी कंगना ने सारा ही इतिहास उलट-पलट दिया. इधर मोदी जी 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' मनवा रहे हैं और इस वीरांगना ने आज़ादी के ६८ वर्ष घटाकर आज़ादी को मात्र सात साल का बना दिया. यह तो वैसे ही हुआ जैसे कोई अडवानी को ९४ साल से  घटाकर 'जश्ने रिवाज' वाला युवा तेजस्वी 'सूर्या' बना दे. फिर भी आस्ट्रेलिया ने ऐसा क्या कर दिया ?

हमने कहा- भारत को बुरी तरह से हराने वाले न्यूजीलैंड को हराकर २०-२० का नया विश्व चेम्पियन बन गया है. 

बोला- यह भी क्या कोई इतिहास है ? क्रिकेट मैच तो बाज़ार है जो दिन रात सजा ही रहता है. पांच दिन से पांच मिनट का फोर्मेट भी आ जाएगा. चीयर लीडर के बाद भीड़ जुटाने के लिए 'स्ट्रिपटी डांस' तक मैचों में शामिल कर लिए जायेंगे. ऐसे ही कभी कोई, कभी कोई चेम्पियन बनते ही रहेंगे.

हमने कहा- हाँ, एक बात में आस्ट्रेलिया ने ज़रूर इतिहास रच दिया है. वर्ल्ड कप में विजेता टीम को शैम्पेन की बोतल मिलती है और वे ख़ुशी में उसे खूब हिला हिलाकर खोलते हैं और अपने उत्साह की तरह उसके झाग हवा में उछालते-उड़ाते हैं. 

बोला- हाँ, वह तो हमने १९८३ की जीत के बाद जश्न मनाते कपिल देव वाली भारत की टीम को देखा ही था. 

हमने कहा- लेकिन आस्ट्रेलिया ने ख़ुशी मनाने के मामले में भी इतिहास रच दिया. उसके कई अतिउत्साही खिलाडियों ने ड्रेसिंग रूम में ही जूते में बीयर डालकर पीना शुरू कर दिया. जिसके फोटो भी वाइरल हुए हैं.

बोला- इसमें क्या बड़ी बात है. हमारे यहाँ तो जूतियों दाल बाँटने-बंटने की पुरानी परंपरा है. जिसका १९७७ में जनता पार्टी के कार्यकाल में, जिसमें उस समय की भाजपा अर्थात जनसंघ भी शामिल था. दाल बांटने की प्रक्रिया में चूंकि जूते भी उपलब्ध थे तो जूतम-पैजार का परिवेश भी बना.

हमने कहा- लेकिन आस्ट्रेलिया के विजेताओं ने खेल भावना का परिचय दिया और जीत की दाल के बंटवारे में जूतम-पैजार नहीं की. 

बोला- लेकिन मास्टर,एक बात मुझे बहुत बुरी लगी. सारे दिन पहनकर खेले सड़ते जूते में डालकर बीयर पीते हुए बदबू नहीं आई होगी ?

हमने कहा- तोताराम ! जोश, आवेश, आवेग में आदमी पागल हो जाता है. दिन में अपनी पत्नी की कुटाई करने वाला पति रात को होश खोकर उसके तलवे तक चाट लेता है.  इस मामले में हम मायावती जी की समझ की दाद देते हैं जिन्होंने अपने स्वर्णकाल में तीन जातियों को मारने के लिए चार जूते मंगवाए. उनमें से चौथा जूता बड़ी सवाधानी से बचा कर रख लिया जिससे कभी नौबत आये तो कम से कम पुराने जूते में तो दाल न बांटनी पड़े.

तोताराम बोला- लेकिन अब वह बात नहीं है. २०१४ में में आज़ाद हुए भारत में सब कुछ बहुत शालीनता, सभ्यता और पवित्रता से चल रहा है. 

हमने कहा- नहीं तोताराम, अतिउत्साह हमेशा बहुत बुरी चीज होता है. इसमें बड़े-बड़ों का दिमाग ख़राब हो जाता है. अतिउत्कंठित नायिका नायक के आने का समाचार पाकर आँखों में महावर और पैरों में काजल लगाकर भाग पड़ती है. अभी कुछ वर्षों से इस अतिउत्साह के कई तमाशे हम ही नहीं सारी दुनिया देख चुकी है. जैसे टीकों का रिकार्ड बनाने के चक्कर में मृत लोगों के नाम भी टीकाकरण के मेसेज भेज दिए गए. विकास की उपलब्धियों के प्रचार के अतिउत्साह में पोस्टरों पर चीन, अमरीका और अन्य राज्यों की उपलब्धियों के फोटो छाप दिए.नकली न्यूयार्क टाइम्स यू. पी. में छाप लिया. जल्दी में की गई नोटबंदी और लॉक डाउन  की चर्चा चलने पर बगलें झांकने लगते हैं.और यही हाल कृषि कानूनों का हुआ. हठधर्मिता के चलते अब संसद में भी उसकी चर्चा को टाला जा रहा है. और तो और जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष में किसी भी रूप में भाग नहीं लिया वे 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' मनाने की जल्दी और आत्ममुग्धता में इतने खो गए कि प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु जी का फोटो पोस्टरों पर छापना तक याद नहीं रहा.

बोला- शायद तभी हमारे बुजुर्गों ने जल्दी को शैतान का काम कहा है. 

हमने कहा- बिलकुल. क्योंकि शैतान को अपने काम की वैधता और स्वीकार्यता पर संदेह होता है इसलिए वह चोरी-छुपे, जल्दी से, येन-केन-प्रकारेण उसे कर गुजरना चाहता है. जबकि गाँधी जैसे नेताओं को अपने कर्म, साध्य और साधनों पर इतना विश्वास था कि सिद्धांतों को पटरी से उतरते देखकर चोरी-चौरा की घटना के बाद आन्दोलन को वापिस लेने में संकोच नहीं किया.

बोला- लेकिन तलब के चक्कर में बड़े-बड़ों का मन तो चंचल हो ही जाता है.ग़ालिब ने भी तो कहा है-

पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है

पियाला गर नहीं देता, न दे, शराब तो दे

हमने कहा- लेकिन इसके बाद आगे का वर्णन नहीं मिलता कि ग़ालिब ने ओक से शराब पी या जूते में या प्याले का इंतज़ार किया या साक़ी को सुधारने के लिए लखीमपुर खीरी की तरह किसी माननीय की जीप को अन्य पियक्कड़ों पर चढ़ने की प्रेरणा दे डाली. कहे तो अतिउत्साह में बारे में एक और किस्सा सुना दें.

बोला- सुनाने वाला बहुत बुरा होता है. उसे कोई नहीं मिलता तो वह किसी सूखे पेड़ से लिपटकर भी मन की बात कह ही डालता है. 

हमने कहा- तो सुन. किसी कौवे को एक चावल मिला. उसने सोचा-खीर बनाएं. दूध के लिए गाय के पास गया. गाय ने घास माँगा. घास खोदने के लिए खुरपी चाहिए. खुरपी के लिए लोहार के पास गया. लोहार ने खुरपी बना दी और कहा- ठंडी होने पर ले जाना. कौवे को धैर्य कहाँ ? बारबार कहने लगा- जल्दी से खुरपी मेरे पंखों पर रख दो. तंग आकर किसान ने खुरपी उसके पंखों पर रख दी.

तोताराम ने पूछा- उसके बाद क्या हुआ ?

हमने कहा- हुआ क्या ? खीर का कार्यक्रम कृषि कानूनों की तरह स्थगित हो गया और काकभुशुन्डी जी अब तक सम्पाती की तरह पुनः पंख-प्राप्ति के लिए सीता की सुधि लेने जाते किन्हीं राम दूतों की प्रतीक्षा कर रहे हैं.  



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Feb 4, 2022

तोरा मन दर्पण कहलाये


तोरा मन दर्पण कहलाये   


वैसे तो किसी को किसी भी जालसाजी के तहत कोई भी सम्मान दिया जा सकता है. कौन जानकारी करने जाता है ?और यदि कोई पकड़ा भी जाए तो बचने और कानूनी रूप से मुकरने के बहुत से रास्ते हैं. मोदी जी को भी तो कोई ऐसा ही फिलिप कोर्टल अवार्ड दिया ही गया था. कानपुर में भी कोई नकली डेली टेलेग्राफ़ पैदा हो गया था विकास के आंकड़े देने के लिए. 

फिर भी हम ठहरे मास्टर और वह भी हिंदी के. चिड़िया का दिल. कहाँ से ऐसी हिम्मत लायें ? सो नकली अवार्ड के नाम से ही पेट में ऐंठन होने लगी. स्वामी स्टेंस का महाप्रयाण दिखाई देने लगा. 

हमने कहा- तोताराम, कहीं तेरे इस तोता-मैना भारतरत्न सम्मान के चक्कर में ज़िन्दगी भर की कमाई गई प्रतिष्ठा और प्रामाणिकता का कचरा तो नहीं हो जाएगा ? 

बोला- जब हिन्दू महासभा के गोडसे-आप्टे भारत रत्न से लोकतंत्र और संविधान का कचरा नहीं हुआ, कालीचरण भारत रत्न और यती नर से सिंह होकर आनंद कर रहा है तो यदि कोई और भी कुछ ढंग का काम करेगा तो तेरी प्रमाणिकता को भी बचाने और बहाल करने के लिए सत्ता परोक्ष रूप से सहयोग अवश्य करेगी. हम चाहें तो इंदिरा और राजीव के हत्यारों को भी कोई सम्मान दे दें तो सरकार को कोई समस्या नहीं है.

हमने कहा- ऐसा करने से क्या दुनिया में भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की इमेज का क्या होगा ? 

बोला- आजकल मानवाधिकार का यही फैशन चल रहा है. अपने आप को दुनिया का सबसे धनवान लोकतंत्र कहने वाले अमरीका में भी तो यही सब हो रहा है ?

हमने जिज्ञासा की- तो क्या वहाँ भी लिंकन के हत्यारे जॉन विक्स बूथ, केनेडी के हत्यारे ली हार्वे ओसवाल्ड, मार्टिन लूथर किंग के हत्यारे जेम्स अर्ल रे और काले जोर्ज फ्लोयड के हत्यारे डेरिक चौविन को भी भारत रत्न जैसा कुछ सम्मान दिया जा रहा है ? 

बोला- आश्वासन तो दिया गया है. वहाँ भी तो देशभक्तों का एक चचा चौकीदार है डोनाल्ड ट्रंप.

हमने कहा- लेकिन अब वह तो राष्ट्रपति नहीं है.

बोला- तो क्या हुआ. अब भी बन्दा अमरीका को उसी तरह ग्रेट बनाने के पीछे पड़ा हुआ है जैसे अपने संत 'धर्म संसदों' के माध्यम से भारत को 'असहिष्णुता का विश्वगुरु' बनाने पर तुले हुए हैं.

हमने पूछा- गोडसे भक्तों और हिन्दू महासभा ग्वालियर के मुख्यालय का तो बाकायदा फोटो और समाचार आया है  लेकिन ट्रंप का तुझे कैसे पता ? 

बोला- आज का विश्वसनीय अखबार देख. जहां मोदी जी के संसदीय क्षेत्र में हुई धर्म संसद में भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने और मुसलमानों के कत्ले आम का सन्देश देने वाले नरसिंहानंद की रिहाई की मांग करने का समाचार छपा है उसके पास ही ट्रंप द्वारा कैपिटल हिल के दंगाइयों की रिहाई का वादा और उनकी जांच करने वाले दल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया गया है. 

कल को वहाँ के हत्यारों और दंगाइयों को 'अमरीका रत्न' देते क्या देर लगेगी.   

हमने कहा- जैसे हमारे मोदी जी ने प्रज्ञा ठाकुर और धर्म संसद के दंगाइयों पर कोई एक्शन नहीं लिया.परवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर को भी कुछ नहीं कहा.यह 'मौनं स्वीकृति लक्षणं' नहीं तो और क्या है ? 

बोला- लेकिन 'मन की बात' की तरह सच तो 'मन' ही होता है.  मन से क्षमा भी तो नहीं किया तो समझ ले क्षमा नहीं किय. 'तोरा मन दर्पण कहलाये'. 

हमने कहा- लेकिन एजेंडा तो बदस्तूर चालू है. बस, एजेंडा चलना चाहिए.महत्त्वपूर्ण व्यक्ति नहीं, एजेंडा महत्त्वपूर्ण होता है.

      



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Feb 2, 2022

मास्टर को थैंक्स कहना


मास्टर को थैंक्स कहना  


परसों रात से ही बारिश हो रही है, बारिश भी क्या. बस यह समझो कि किसी भिखारी का किसी महाकंजूस से पाला पड़ गया हो. न धेला दे, न ही साफ़ मना करे. ठीक तीन कृषि कानूनों में नरेन्द्र तोमर की भूमिका की तरह. पहले से कोरोना और विकास की मारी अर्थव्यवस्था की तरह गड्ढेदार सड़कें कीचड़ से परिपूर्ण हो गई हैं. कभी भी दुर्घटना का कमल खिल सकता है. जिस तरह चुनाव जीतने के बाद सेवक गण अपने चहेतों के साथ फार्म हाउसों में तरह तरह के आभासी विमर्शों में व्यस्त हो जाते हैं वैसे ही हम भी धूप निकलने तक के लिए रजाई में घुसे बैठे हैं. अब यह तोताराम पर निर्भर है कि वह इस मौसमी वैतरणी को पार करके आता है या नहीं. यह उसका निजी मामला है जैसे मंत्री अपनी सुरक्षा के लिए तो कमांडो रख लें और जनता के लिए बसों में अपनी जान-माल की रक्षा स्वयं करने की सूचना लिखवा दे.  

तभी हमारा मोबाइल बजा. रसोई में छूट गया था. पत्नी ने उठाया, और तत्काल बोली- पता नहीं किसका फोन है. कह रहा है- मास्टर को थैंक्स कहना, मैं जिंदा लौट पाया. 

हमें भी बड़ा आश्चर्य हुआ. कल किसी को किसी खतरनाक अभियान पर भी विदा नहीं किया. फिर कौन अपने जिंदा लौट पाने का समाचार दे रहा है. फिर भी चलो किसी की भी जान बच गई, अच्छी बात है. 

हमने पत्नी से फोन लेकर कान से लगाया. फिर वही एक वाक्य-  मास्टर को थैंक्स कहना, मैं ज़िन्दा लौट पाया.    'मास्टर' संबोधन तो तोताराम वाला ही है. फिर भी लग रहा था जैसे कोई अपनी आवाज़ को ज़बरदस्ती भारी बनाकर बोल रहा है. 

हमने कहा- अच्छा है, आप जिंदा लौट पाए. भगवान को धन्यवाद दें. वैसे हमने तो आपके सुरक्षित घर लौटने की कोई माकूल सुरक्षा व्यवस्था नहीं की.  

बोला- की कैसे नहीं. गली के कुत्तों को जब-तब रोटी डाल देता है और वे मेरे जैसे भले लोगों का गली में निकलना  हराम कर देते हैं. 

अब तक हम तोताराम की आवाज़ को साफ़ पहचान चुके थे. कहा- हुआ क्या ? हम तो समझ रहे थे कि तू कीचड़ और बरसात के मारे नहीं आया लेकिन मुफ्त की चाय के लिए तू न आये यह हो नहीं सकता. मन की बात, बिजली और फोन के बिल की तरह ठीक समय पर आ जाता है. 

बोला- होना क्या था. तेरे घर के सामने वाली नाली का पानी ओवर फ्लो होकर रोड़ के गड्ढों पर भरा हुआ था तो मैंने दो प्लाट छोड़कर पीछे वाला रास्ता ले लिए. वहाँ एक कुतिया ने बच्चे दे रखे हैं. उसने मुझे दौड़ा दिया. गिरते-गिरते बचा. 

हमने कहा- जब कोई किसी की जान के लिए खतरा बनेगा तो वह उसका प्रतिरोध  करेगा ही. अब जब सरकार ने तीन कृषि कानूनों के द्वारा किसानों की फसलों के समर्थन मूल्य को ही खतरे में डाल दिया तो वे प्रतिरोध नहीं करते तो क्या करते ? 

बोला- तेरी गली की कुतिया में किसान कहाँ से आगये ?  

हमने कहा- तेरे साथ हुई इस घटना की तुलना मोदी जी के साथ पंजाब में हुई और सनसनी के रूप में फैलाई जा रही घटना से की जा सकती है. पंजाब में रैली और कुछ लोकार्पण-फोकार्पण जैसा करने के लिए जा रहे मोदी जी के काफिले ने अचानक रास्ता बदल लिया. और लालकिले पर झंडा फहराने वाले सन्नी देओल के संग फोटो वाले स्वयंसेवकों ने किसी योजना के तहत सड़क से थोड़ा दूर घेराव जैसा नाटक कर दिया.

लोग कहते हैं कि कुछ तो खराब मौसम, कुछ किसानों द्वारा रैली में जाने वाली बसों को रोकने से रैली में भीड़ न के बराबर थी ऐसे में मोदी जी ने फ्लॉप रैली करने से बेहतर लौट जाना ही समझा. 

हो सकता है, तू भी कीचड़-बरसात के चक्कर में घर से निकला ही नहीं हो और कुतिया के बहाने हमसे ठरक ले रहा हो. भले ही इस घटना से भाजपा को चुनावी फायदा हो या नहीं लेकिन आ जा, चाय के साथ तिल का लड्डू भी मिलेगा. 

बोला- फिर भी तुझे मेरी सुरक्षा व्यवस्था में हुई आपराधिक लापरवाही के लिए माफ़ी तो मांगनी ही चाहिए.

हमने कहा- दोनों ही एडवांटेज तुझे ही नहीं मिल सकते. चाय के साथ तिल लड्डू या माफ़ी. च्वाइस इज योअर्स. 

 



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Feb 1, 2022

आस्था की चम्पी ऽऽऽऽ


आस्था की चम्पी ऽऽऽऽ 


जैसे कोरोना के नए-नए वेरिएंट आ रहे हैं और दुनिया को डरा रहे हैं वैसे ही सेवक नए-नए वेश बनाकर, नए-नए  दल बनाकर जनता को मूर्ख बना रहे हैं, डरा रहे हैं. यही सोचते हुए हमने कहा- तोताराम, कूटनीति कहती है-

जोग जुगुति तप मंत्र प्रभाऊ। 

फलइ तबहिं जब करिअ दुराऊ॥ 

(योग, युक्ति, तप और मंत्रों का प्रभाव तभी फलीभूत होता है जब वे छिपाकर किए जाते हैं।)

ठीक है लेकिन जीवन में ऐसे व्यक्तियों से सामान्य जन को तनाव ही अधिक होता है. ऐसे व्यक्ति किसी से खुलकर नहीं मिलते. लोग भी उनसे शंकित होकर ही मिलते हैं. इसी सन्दर्भ में हमने देखा कि कुछ लोग कोरोना से संक्रमित हो जाते हैं लेकिन उनमें लक्षण प्रकट नहीं होते. ऐसे लोग दूसरों में कोरोना अधिक फैलाते हैं. 

वास्तव में बड़ी दुष्ट बीमारी है. बहुत कुटिल है. कुछ पता ही नहीं चलता. कब किस रूप में नारायण मिल जाय. 

बोला- दुष्टों की तुलना नारायण से करके मेरी आस्था को चोट मत पहुंचा. भगवान ही किसी न किसी रूप में दुष्ट-दलन के लिए विधान बनाते हैं. तेरी इसी आशंका का इलाज़ मिल गया है. जापान के कुछ् शोधकर्ताओं ने शुतुरमुर्ग की एंटीबाडीज से एक ऐसा मास्क बनाया कि संक्रमित किन्तु बिना लक्षण वाले व्यक्ति की सांस से उसका मास्क चमकने लग जाएगा. 

हमने कहा-  वैसे हम तो कुछ लोगों की दाढ़ी और नाम से ही पहचान लेते हैं कि ये सुपर और साइलेंट स्प्रेडर हैं. लेकिन शेष दुनिया के लिए तो यह बहुत महंगा सौदा है. दुनिया में क्या इतने शुतुरमुर्ग हैं कि ऐसे करोड़ों मास्क उपलब्ध करवाए जा सकें ? 

बोला- इस दुनिया में शुतुरमुर्गों की क्या कमी है. मेरे ख्याल से तो दुनिया में शुतुरमुर्गों का ही बहुमत है.  अमरीका में आज भी कोरोना का टीका नहीं लगवाने वाले लोगों में ट्रंप की पार्टी के बहुमत वाले राज्यों के लोग ज्यादा हैं. जैसे लाइजोल के इंजेक्शन से कोरोना का इलाज सुझाने वाले उनके नेता वैसे ही उनके अनुयायी. हमारे देश में भी ताली-थाली से कोरोना का मुकाबला करने वाले नेता हैं कि नहीं ? भाभीजी पापड़ से इम्यूनिटी विकसित करने वाले वैज्ञानिक हैं या नहीं ? किसी काढ़े से कोरोना को भगाने वाले बाबा और उनके साथ मंच साझा करने वाले डॉक्टर मंत्री हैं कि नहीं ? ये सब शुतुरमुर्ग ही तो हैं.. शुतुरमुर्गियत एक पक्षी से संबंधित पदार्थ की बात ही नहीं है बल्कि एक इंसानी प्रवृत्ति भी है. किसी संकट के समय अतीत और आस्था की धूल में सिर छुपा लेना और क्या है ? 

हमने कहा- तोताराम, शुतुरमुर्गियत कोरोना के अप्रकट लक्षणों वाले मरीजों से बचने के लिए ही नहीं बल्कि और भी बहुत बीमरियों के इलाज के काम आती है.जब किसी भी समस्या का हल नहीं निकाल सको तो दे दो पिछली सरकारों को दोष या फिर किसी धर्म विशेष के सिर डाल दो आफत.

आ जा प्यारे पास हमारे, काहे घबराये

सभी दु.खों की एक दवा है

रेत में शीश घुसा ले. चम्पी ऽऽऽऽ 


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