Jul 21, 2017

नामांकन की नौटंकी

 नामांकन की नौटंकी 


तोताराम ने हमारे सामने अखबार रखते हुए कहा- ठीक है, बुढ़ापे में घर का कंट्रोल बच्चों के हाथों में चला जाता है लेकिन किसी बुजुर्ग को इस तरह दुःखी करना भी कहाँ की शराफत है ?

क्यों क्या हुआ ? बेटे-बहू ने कुछ कह दिया क्या ?- हमने सहानुभूति प्रकार करने के उद्देश्य से पूछा |

बोला- अभी तो मेरे हाथ पैर चल रहे हैं और पेंशन की चादर से बाहर पैर निकालता नहीं ? अपन ने कभी कोई उम्मीद पाली ही नहीं |अपेक्षा ही सब दुखों का कारण होता है |फिर संसार तो नाम ही सरकने का |पता नहीं सरक-सरक कर किस ब्लेक होल में चली जाती है दुनिया ? मैं तो ताऊ की बात कर रहा था |

हमने पूछ-ताऊ को क्या हुआ ?

बोला- हुआ क्या ? अरे, जब बन्दे को चबूतरे ही बैठा दिया तो अब दुनिया को दिखाने के लिए जबरदस्ती नए कपड़े पहनाकर घोड़ी के आगे नचाकर क्यों जुलूस निकाल रहे हो ?

हमने कहा- तोताराम, साफ-साफ कह, हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा है |

तोताराम ने हमारे सामने नामांकन भरने के लिए जाते सभी छोटे-बड़े सेवकों के बीच सर झुकाए चल रहे अडवानी जी का फोटो रख दिया और कहने लगा- अरे, जब तुम्हें पता है, तुम्हारे पास बहुमत है, तुम्हरी जीत पक्की है तो इस नौटंकी की क्या ज़रूरत है ?
और यदि पुलिस के फ्लेग मार्च की तरह शक्ति प्रदर्शन करना ही है तो करो लेकिन बेचारे बुजुर्ग को शांति से घर में पड़ा रहने देते | किसी परित्यक्ता को करवा चौथ के व्रत में घसीटना कौन सा प्रेम या सम्मान है ? यह तो उसके घावों पर नमक छिड़कना है |जच्चा को कुआँ-पूजन के लिए ले जा रहे हो, ले जाओ लेकिन किसी बाल-विधवा को उसमें शामिल करके उसका दिल क्यों जलाते हो ? 

हमने कहा- घर के बुजुर्ग हैं, इतने बड़े काम में उनकी मौजूदगी से शोभा बढ़ेगी | 

बोला- कोई शोभा-वोभा का मामला नहीं है |ताऊ तो बेचारे एक बार थोड़ा पिछड़े भी थे कि खिसक लें लेकिन लोगों ने फिर आगे कर लिया |बार-बार उनके फोटो खींचने का मतलब यही है कि फिर कभी यह न कह दें मेरी सहमति नहीं थी |देखो, रोजों के समय इस्लामिक देशों में दिन के समय खाने-पीने के सामानों की दुकानें बंद रखी जाती है |बड़ी मुश्किल से धर्म का निर्वाह करने वाले का धर्म-भ्रष्ट करने की कोशिश क्यों की जाए ? 

हमने कहा- जब ताऊ ने कुछ नहीं कहा तब तुझे क्या परेशानी है ? आजकल तो पंचायत या छात्र संघ का सदस्य नामांकन भरने जाता है तो जुलूस में बीस जीपें होती हैं | यह तो राष्ट्रपति का नामांकन पत्र है |खैरियत है, रास्ते में गलीचा नहीं बिछाया गया, हेलिकोप्टर से फूल नहीं बरसाए गए, जी.एस.टी. बिल की तरह इस नामांकन को तीसरी आज़ादी का नाम नहीं दिया, टी.वी. पर आँखों देखा हाल प्रसारित नहीं किया |वरना आज के दिन जो चाहे करने की स्थिति में हैं |आखिर ३० साल बाद किसी पार्टी को देश में पहली बार बहुमत मिला है, भले ही वोट ३१% मिले हों |

बोला- मास्टर, एक बात बता |जब पार्टी में बड़े-बड़े काबिल लोग भरे पड़े हैं तो नामांकन पत्र के ये चार सेट भरने का क्या अर्थ है ?

हमने कहा- यह तो सुरक्षा की दृष्टि से ज़रूरी है क्योंकि अति-उत्साह में किसी से भी कोई बड़ी चूक सो सकती है |आदमी जल्दी में गुलाबजामुन की जगह मींगणे भी खा जाया करता है |तूने पढ़ा नहीं कि बहुत लम्बे प्रवास के बाद प्रिय के आने का समाचार सुनकर नायिका जल्दी और उत्साह में आँखों में महावर और पैरों में काजल लगाने लग जाती है |

तोताराम ने एक बार फिर हमारे सामने नामांकन-जुलूस की फोटो रखी और बोला- एक तस्वीर सौ शब्दों के बराबर होती है |बस, एक बार ताऊ की झुकी नज़र और उदास सूरत को फिर ध्यान से देख ले |और कह कि सब ठीक है |

हमने कहा- तोताराम, आशा बलवती राजन....अभी 'भारत-रत्न' का चांस बाकी है |




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jul 18, 2017



 हरियाणा का ट्रंप विलेज 


हमने कहा-तोताराम, सुलभ शौचालय वाले बिहारी बाबू बिन्देश्वरी दुबे जी ने हरियाणा के मेवात क्षेत्र के मरोड़ा नामक गाँव को गोद लिया है |अब वे यहाँ शौचालय बनवाने और विकास करने का काम करेंगे |वैसे आज के दिन यदि घर में शौचालय है तो विकास होकर ही रहेगा |यह  बात और है कि मल को बहाने के लिए तो दूर, पीने के लिए भी पानी हो या न हो | वैसे गाँधी जी कहा करते थे कि एक फिट का गड्ढा खोदकर उसमें किया त्यागा गया मल एक सप्ताह में ही खाद बन जाता है जब कि आजकल घरों में बनने वाले शौचालयों में मल को खाद बनने में बहुत समय लगता है |लेकिन आज तो किसी भी जुमले के खिलाफ कुछ सोचना भी देशद्रोह है |

वैसे बिन्देश्वरी जी का इस गाँव का नाम 'ट्रंप विलेज' रखने वाला आइडिया है बहुत बढ़िया |इस देश में भले ही किसी कवि की बढ़िया से बढ़िया पुस्तक को समीक्षा के लिए जगह न मिले लेकिन अटल चालीसा और लालू चालीसा के लेखकों को अखबार के कई कालम मिल जाते हैं |करोड़ों रूपए खर्च करके मंदिर बनवाने वालों को विज्ञापन देना पड़ता है जब कि अटल, सचिन, अमिताभ,सोनिया के मंदिर बनाने की घोषणा मात्र से ही मीडिया में जगह मिल जाती है | 

बोला- सुरक्षा की दृष्टि से यह टोटका ज़रूरी है |आजकल जब कृषि भूमि पर बिना सरकारी मंजूरी के कोई कॉलोनी काटी जाती है तो उसका नाम सत्ताधारी दल के नेता के नाम पर रखा जाता है जिससे कि बिजली पानी मिलाने में सुविधा रहे और टूटने का भी भय नहीं रहे |देश में इस प्रकार की हजारों कोलोनियाँ हैं |कुछ जातियों की वीरता के कारण लोग उनसे उलझाना नहीं चाहते इसलिए कई लोग अपने वाहन पर अपना जाति सूचक शब्द भी लिखवाते हैं |कुछ लोग किसी गाँव की पंचायत या जाति की पंचायत के तहसील स्तर के भूतपूर्व  पदाधिकारी भी होंगे तो अपने वाहन पर लिखवाएँगे और फिर आशा करेंगे कि उनसे टोल टेक्स नहीं लिया जाए |कुछ लोग वैसे ही सत्ताधारी पार्टी का झंडा अपनी जीप पर लगा लेते हैं |यह वैसे ही है जैसे कोई किसी मुल्ला, मौलवी या बाबाजी का ताबीज अपने बच्चे के गले में लटका दे |यदि किसी के पास विज्ञापन देने के लिए पैसे हों और वह किसी दिन अपने अच्छी तरह दस्त लगने का आभार प्रदर्शक विज्ञापन दे तो प्रधान मंत्री से लेकर अपने वार्ड पार्षद तक का फोटो छापेगा |यह लोकतंत्र की नव-ग्रह शांति है |किसी ज़मीन पर नाजायज़ कब्ज़े के लिए भी तो सबसे सरल उपाय है उस पर कोई मंदिर-मस्जिद बना देना |

हमने कहा- ट्रंप इस समय दुनिया के सबसे ताकतवर देश के महामहिम है और हम सबसे बड़े लोकतंत्र हैं तो हमारा नामकरण ट्रंप से कम पर कैसे हो सकता है |अच्छी बात यह है कि दुबे जी ने साफ-साफ बता दिया कि उन्होंने तो यह नाम किसी सहायता के लालच में रखा है |क्या पता ट्रंप के नाम से कोई फंड, चंदा मिल जाए |

तोताराम ने उत्तर दिया- लेकिन दुबे जी भूल रहे हैं |ट्रंप नेता कम और व्यापारी ज्यादा हैं |वे फालतू बातों में विश्वास नहीं करते |उन्होंने तो संयुक्त राष्ट्र संघ तक के लिए कह दिया कि यह फालतू की गप्प बाज़ी का अड्डा है | इसीलिए उन्होंने पेरिस समझौते को भी नकार कर दिया |धंधे वाले का भगवान पैसा है |इसलिए हमें नहीं लगता कि दुबे जी को कुछ चंदा-चिट्ठा मिलेगा |हाँ, नए आइडिया के चक्कर में बिना पैसे के ही मीडिया कवरेज ज़रूर मिल गया |

हमने कहा- वैसे दुबे जी  निगाह दोनों तरफ रखते हैं तभी कुछ सफाई करने वाली महिलाओं को पीली साड़ी पहनाकर, कुछ मन्त्र रटाकर भारतीय संस्कृति के साथ-साथ उनका भी सशक्तीकरण कर दिया |अंतर्राष्ट्रीय नहीं तो राष्ट्रीय टोटका ही काम आ जाए |

वैसे तोताराम, यदि मोदी जी वाली सामासिक शब्दावली में कहें तो क्या इस 'ट्रंप विलेज' का नाम 'ट्रंप टाउन' नहीं हो सकता ? 

बोला- हरियाणा के हिसाब से 'ट्रंप खुर्द' या 'ट्रंप कलाँ' भी क्या बुरा है |बिहारी अंदाज़ में 'ट्रंप टोला' भी तो हो सकता है |

हमने कहा- और यदि इस ट्रंप विलेज में बनने वाले शौचालयों का नाम 'ट्रंप टॉयलेट' रख दिया जाए, बैठने की सीट योरपियन किस्म की हो, धोने के लिए पानी की जगह पोंछने वाला कागज़ रखा जाए और वहीं पढ़ने के लिए पुस्तकें-अखबार रहें तो कैसा रहे ? 
बोला-वैसे एक उत्सुकता है, क्या उनमें मुसलमानों का प्रवेश होगा ?

हमने कहा-नो पोलिटिकल बातें |

Jul 9, 2017

  तोताराम का ताड़ासन 

आज चाय बनने में कुछ देर हो गई |चाय के बिना इस देश में लोकतंत्र नहीं आ सकता, स्पष्ट बहुमत की सरकार नहीं बन सकती, भारत स्वच्छ और स्वस्थ नहीं हो सकता, सब का साथ, सबका विकास नहीं हो सकता तो यह कैसे हो सकता है कि हमारे और तोताराम के संसद के प्रातः कालीन सत्र का समापन हो  सके | 

हमने तोताराम से कहा- जा, अन्दर जाकर देख कि चाय में क्या देर-दार है ?

तोताराम अपनी जगह से टस से मस भी नहीं हुआ |बस, गर्दन की ताड़ासन जैसी मुद्रा बनाई |पाठकों ने यदि पिंजरे में बैठे तोते को कभी ध्यान से देखा हो तो वे समझ सकते हैं कि कभी-कभी तोता बैठे-बैठे ही अपनी गर्दन को बड़ी शिद्दत से ऊपर की ओर खींचता है मानों आसमान के तारे तोड़ लाएगा |

हमने कहा- तोताराम, ऐसे बैठे-बैठे गर्दन को ऊपर की तरफ तानने से काम नहीं चलने वाला |यह ठीक है कि वैज्ञानिकों के अनुसार रेगिस्तानी इलाकों में गर्दन ऊँची करके पेड़ों की पत्तियाँ खाते रहने से हजारों वर्षों में ऊँट की गर्दन लम्बी हो गई लेकिन यह संभव नहीं है कि तू अपनी गर्दन को तानकर यहाँ से बैठे-बैठे ही देख लेगा कि रसोई में चाय बनी या नहीं ?

बोला- हो क्यों नहीं सकता ? इस समय देश जोश में है |कुछ भी हो सकता है | देखा नहीं, मोदी जी इजराइल गए तो वहाँ के प्रधान मंत्री नेतन्याहू ने क्या कहा ? बोले- जब मैं ताड़ासन करता हूँ और दाहिनी ओर देखता हूँ तो मुझे पहली डेमोक्रेसी के रूप में भारत दिखाई देता है | 

हमने कहा- तोताराम, इस बात में तो दम है |मध्य एशिया के रेगिस्तानी इलाके में गिद्ध बहुत होते हैं और कहते हैं उनकी दृष्टि बहुत तेज़ होती है |रामचरित मानस में भी सीता की खोज करने के लिए गए हनुमान, अंगद, जाम्बवान और बन्दर-भालू जब समुद्र के किनारे जटायु के भाई सम्पाती से मिलते हैं तो वह कहता है- 

मैं देखउँ तुम नाहीं गीधहि दृष्टि अपार |

तेरी तरह ताड़ासन कर-करके शायद गिद्ध की गर्दन भी लम्बी हो गई है | इसलिए यह भी मात्र संयोग नहीं बल्कि वैज्ञानिक सचाई है कि रेगिस्तान में गिद्ध की तरह लोग बहुत दूर-दूर तक देख सकते हैं |और फिर 'हमारे' योग का चमत्कार और ऊपर से नेतान्याहू जी सिखाने को वाले मोदी जी जैसे योगविद |अच्छे-अच्छों को ताड़ासन करवा दिया है, भाई ने  |

बोला- और खुद मोदी जी जब 'वाशिष्ठासन' करते हैं तो उन्हें भी पश्चिम की तरफ मुँह घुमाने पर सबसे पहले डेमोक्रेसी के रूप में इजराइल ही दिखाई देता है |

हमने कहा- तोताराम, जब दो आदमी सब कुछ भुलाकर एकाकार हो जाते हैं तो इसी तरह की केमिस्ट्री पैदा हो जाती है |जैसे एक को दूसरा योग-ऋषि दिखाई देता है तो दूसरे को पहले में  राष्ट्र-ऋषि नज़र आता  है |वैसे भारत के किसी प्रधान मंत्री की इस पहली इजराइल यात्रा से इजराइल की तो दुनिया में ग्राह्यता बढ़ जाएगी लेकिन भारत को क्या मिलेगा ?

बोला- इजराइल हमें आतंकवाद से लड़ने की तकनीक देगा |

हमने कहा- ये लड़ाइयाँ तकनीक से नहीं; एकता और दृढ-संकल्प से लड़ी जाती हैं |हाँ, इस उत्सवी माहौल में इजराइल कुछ अरब के हथियार हमें ज़रूर भिड़ा देगा |इज़राइल में खजूर के पेड़ भी बहुत होते हैं | खजूर के फल दूर और छाया दुर्लभ होती है |

वैसे तू तो एक किस्सा सुन-

किसी ट्रेन में रात को नीचे की बर्थ पर एक बूढ़ा सोने की कोशिश कर रहा था और ऊपर की बर्थ पर एक लड़का और एक लड़की मन की बातें कर रहे थे |लड़का बोला- जब मैं तुम्हारी आँखों में देखता हूँ तो मुझे सारी दुनिया दिखाई देती है |
बूढा बोला- बेटा, दो दिन से मेरी भैंस नहीं मिल रही है |अगर निगाह में आ जाए तो देख कर बता देना |

सो अगर तुझे अपने ताड़ासन के दौरान दिखाई दे जाए तो देख कर बताना कि केंद्र सरकार की ओटोनोमस बोडीज वालों को सातवाँ वेतन आयोग मिलने की कोई संभावनाएँ दिखाई दे रही हैं या नहीं ?