Dec 30, 2016

श्री श्री जगदगुरु परमहंस स्वामी कैशलेसानंद महाराज

 श्री श्री जगदगुरु परमहंस स्वामी कैशलेसानंद महाराज

हमें तो अपने चारों ओर वे ही और वैसे ही लोग दिखाई देते हैं जो आज से सत्तर वर्ष पहले दिखाई दिया करते थे |आज भी मशीनों से अधिक मानव पर विश्वास करनेवाले लोग | सुना है जापान में एक रोबोट ने एक श्रमिक को दबोच लिया |लोगों ने स्विच बंद करके उसे छुड़ाया लेकिन तब तक वह मर चुका था |आदमी हो तो दया की संभावना भी रहती है लेकिन मशीन का क्या | न कोई संवेदना और न ही किसी दंड का भय |

पहले जहाँ आदमी हाट-बाज़ार में जाता था तो घूमने के साथ-साथ चार लोगों से संपर्क भी होता था |दुनिया जहान की चार बातें भी सुनने समझने को  मिलती थीं लेकिन आजकल तो ऐसी-ऐसी दुकाने खुल गई हैं जिनमें सामान उठाओ, मशीन से बिल बन जाएगा और आपके कार्ड से भुगतान हो जाएगा |सामान लो और जाओ |यदि आपने पैसे नहीं चुकाए तो ऐसी व्यवस्था भी है कि आप बाहर नहीं निकल सकेंगे और यदि ज्यादा चालाकी लगाई तो अलार्म बज जाएगा |आपकी हर गतिविधि सी.सी.टी.वी. कैमरे में कैद हो ही रही हैं |मतलब कि आदमी या आदमी के बच्चे का आदमी से कोई संपर्क नहीं |ऐसे में क्या ख़ाक शोपिंग हुई ?

लेकिन आज यही फैशन चल पड़ा और हमारा देश तो हर फैशन में सबसे आगे रहता है |भले ही खाने को दाने नहीं लेकिन विकास के नाम भाड़ के आसपास ज़रूर चक्कर लगाएँगे और मौका लगा तो भुनवाने का बिल भी पास करवा लेंगे |इसके लिए कहा गया है कि घोड़े को देखकर मेंढ़की ने कहा मुझे भी नाल लगवानी है |हमारा राम-राम करके महिना निकलता है |कहीं से कोई उधार मिलने की उम्मीद नहीं |ब्लेक या बेनामी कुछ होने का तो सवाल ही नहीं |रिश्वत का तो जब नौकरी में थे तभी कोई स्कोप नहीं था |किसे शब्द की वर्तनी अशुद्ध होने से फर्क पड़ने वाला था या दोहे-चौपाई की मात्राएँ कम ज्यादा होने से किसे नुकसान होना था |सो रिश्वत की बात तो दूर, लोग फ्री में भी जानना-सुनना नहीं चाहते थे |लेकिन अब सुना है स्मार्ट फोन लेना पड़ेगा, बिना नकदी का डिजिटल कैशलेस लेन-देन करना पड़ेगा | और हमारी हालत यह है कि महामहिम प्रणव दा की तरह एस.एम.एस. करना, किसी का नंबर सेव करना, किसी के आए हुए फोन का नंबर फिर से निकालना और रस भरी  बातों का निमंत्रण देने वाले अनचाहे मेसेज या कॉल आने तक को रोक सकना नहीं जानते | सो अब कैशलेस और डिजिटल होने में डर लगता है |गलत बटन दब  गया तो कहीं महिने की पेंशन से हाथ न धो बैठें |

यदि यह सब नहीं किया तो मोदी जी पता नहीं आतंकवादियों, भ्रष्टाचारियों, रिश्वतखोरों, कालाबाजारियों, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाला और मानव तस्करी करने वाला बताकर जेल में न डाल दें |बंदा कड़क है |कहता है किसी को छोडूँगा नहीं |अब इस  'पोल्यूशन अंडर कंट्रोल' की तरह बात-बात में  'देशद्रोह अंडर कंट्रोल'  की जाँच में पता नहीं कहाँ फँसा दिए जाएँगे | मन में बड़ी घबराहट है |हम कोई गलत धंधा तो कर नहीं रहे कि नैतिक-अनैतिक पुलिस से हमारी जान-पहचान हो और वे कुछ ले-देकर निबट लें |एक्स्ट्रा कमाई नहीं तो एक्स्ट्रा खर्चा कहाँ से करें |

चिंतित थे कि तोताराम प्रकट हुआ |गले में एक लाकेट, माथे पर तिलक, कलाई में मोटा सा कलावा, भगवा कुर्ता और हल्की-हल्की दाढ़ी |बिलकुल शुद्ध भारतीय और देशभक्त |जैसे ही हमने समस्या उसके सामने रखी तो बोला- कोई बात नहीं |आज मेरे साथ चलना |श्री श्री जगदगुरु परमहंस स्वामी कैशलेसानंद महाराज आए हुए हैं |आजकल सब जगह कैशलेस हो रहा है और लोगों को इसे लेकर कई तरह की शंकाएँ और समयाएँ हैं | इसलिए उनके भक्तों ने समस्या-समाधान शिविर लगाया है |अभी तो फ्री एंट्री है |बाद में चल गया तो हो सकता है प्रवेश शुल्क लगना भी शुरू हो जाए |

वे उस शिविर में कैशलेस से घबराने वाले लोगों को विशेष प्रकार के प्राणायाम और आसन करवाएँगे, साइबर हैकिंगरोधी कवच, लाकेटआदि  'ऑफर प्राइस' में बाँटेंगे | एक साइबर यंत्र भी है जिसे अपने आधार कार्ड के साथ चिपकाने से बैंक खाते का पासवर्ड हैक नहीं होगा |जन्म राशि के अनुसार विभिन्न प्रकार से अभिमंत्रित राशि-रत्नों जड़ी अँगूठियाँ भी शिविर में रियायती मूल्यों पर उपलब्ध हैं | कैशलेसेश्वर महादेव और कैशलेसेश्वर हनुमान चालीसा भी हैं जिनका रोज रात को पाठ करने से भी कैशलेसी के कष्टों का निवारण होता है |यह सामग्री खरीदने पर एक पुस्तक भी मुफ्त उपलब्ध है- 'वैदिक काल में कैशलेस व्यवस्था' और 'कैशलेस और सोने की चिड़िया'  |  और भी बहुत कुछ है |

अगले दिन हम तोताराम के साथ शिविर में गए | शिविर में दो द्वार थे एक प्रवेश द्वार और दूसरा  निकास द्वार  | शिविर में आसन, प्राणायाम के बाद हमें लॉकेट आदि सभी सामग्री खरीदने के कारण  'साइबर यंत्र'  मुफ्त में मिला जिसे उन्होंने खुद ही हमारे आधार कार्ड पर चिपका दिया |शिविर समाप्ति के बाद जैसे ही निकास-द्वार से बाहर निकलने लगे तो गेट पर खड़े स्वयंसेवकों के कहा- कैशलेसेश्वर महादेव और केशलेसेश्वर हनुमान मंदिर के निर्माण के लिए सौ-सौ रूपए की रसीद भी कटवा लें और अपने नाम का 'देश भक्ति का प्रमाण पत्र' भी ले जाएँ जो किसी भी आर्थिक आपराधिक गतिविधि में फँसने पर काम आएगा |

मरता क्या न करता |डरता हर-हर करता |

हो सकता है यह हमें कैशलेसी के आर्थिक कष्टों से बचाए या नहीं लेकिन शायद कई प्रकार के सांस्कृतिक पुलिसियों से बचा ले |

अगले दिन जब बैंक में 'जीवन-प्रमाण-पत्र' देने और पासबुक पूरी करवाने के लिए गए तो पता चला कि हमारे खाते में से बीस हजार रुपए गायब हैं | देश को काले धन, आतंकवाद, नशीली दवाओं के व्यापार, भ्रष्टाचार, मानव तस्करी, घूसखोरी आदि जैसी बुराइयों से बचाने के लिए इतनी कीमत कोई बड़ी तो नहीं है |इसके बाद तो आगे अच्छे ही अच्छे दिन हैं |








Dec 24, 2016

हर चेहरे पर मुस्कराहट

  हर चेहरे पर मुस्कराहट 

आज तोताराम आया तो बहुत खुश था |हमें बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ |कल ही हमारी मुख्यमंत्री ने कहा था कि हर चेहरे पर मुस्कराहट लाएँगे | हम इसे गरीबी मिटाओ और अच्छे दिन की तरह का एक जुमला ही समझ रहे थे लेकिन यह क्या ? कल मैडम ने घोषणा की और आज तोताराम के चेहरे पर माधुरी दीक्षित जैसी ब्रोड मुस्कराहट चिपकी हुई है |चमत्कार |

हमने पूछा-तोताराम, क्या तू वास्तव में मुस्करा रहा है या हमारी आँखों में कुछ गड़बड़ है |
बोला- तेरी आँखें बिलकुल ठीक हैं |मैं वास्तव में मुस्करा रहा हूँ |

हमने पूछा- तो क्या सातवें पे कमीशन का एरियर आ गया ? 

बोला- नहीं, लेकिन अब एक बहुत बड़ी समस्या का हल मिल गया |बिजली की जो दरें अब तक बात-बिना बात बढ़ रही थीं वे नहीं बढेंगी |और हो सकता है अब कम भी होने लग जाएँ |

हमने कहा- यह कैसे हो सकता है ? क्या आटा फिर से गेहूँ बन सकता है ? क्या चूजा फिर से अंडा बन सकता है ? क्या महँगाई बढ़कर कम होती है ? 

बोला- हो सकती है क्योंकि पहले बिजली की चोरी होती थी लेकिन अब आगे से नहीं होगी |

हमने कहा- क्यों ? क्या अब दबंग ग्रामीण और उनके नेताओं को देश के विकास में हिस्सेदारी नहीं चाहिए ?

बोला- यह बात नहीं है लेकिन अब से बिजली की चोरी नहीं होगी क्योंकि अब स्कूलों में बच्चों को प्रार्थना-सभा में बिजली चोरी न करने और अपने अभिभावकों को इसके प्रति जागरूक बनाने की शपथ दिलवाएँगे |

हमने कहा- हाँ, यह बात तो है |अब तक बेचारे माता-पिताओं को यह पता ही नहीं था कि बिजली के पैसे भी लगते हैं क्या ? यह भी पता नहीं था कि बिना पैसे दिए  किसी चीज का उपयोग करना चोरी होता है | वे तो यही समझते आ रहे हैं कि जैसे देश का सब कुछ  शासकों, सेवकों, बड़े अधिकारियों, बाहुबलियों और सत्ताधारी पार्टी कार्यकर्ताओं का होता है वैसे ही उन्हें भी सब कुछ मुफ्त में हड़पने या चोरी करने का अधिकार है | यदि प्रार्थना-सभा में शपथ लेकर भी बच्चे बड़े होकर अपने जनसेवकों और अभिभावकों का ही अनुसरण करेंगे तो ?

बोला- शपथ लेने के बाद नहीं करेंगे ?  वचन भी तो कोई चीज होता है |रामायण में लिखा नहीं है-
रघुकुल रीति सदा चलि आई 
प्राण जाय पर वचन न जाई
दशरथ ने प्राण दे दिए लेकिन कैकयी को दिया वचन भंग नहीं किया |और फिर अब तो रघुकुल शिरोमणि राम के भक्तों की सरकार है |

और मान ले फिर भी वे बिजली चोरी करें तो एक ही उपाय है कि उनके स्कूल के प्रधानाध्यापक का वेतन रोक लिया जाना चाहिए क्योंकि हो सकता है उसने ढंग से शपथ नहीं दिलवाई हो |

हमने पूछा- और यदि कोई मंत्री भ्रष्टाचार करे तो ?


-एकदम सिंपल, तो राष्ट्रपति या राज्यपाल की ज़िम्मेदारी- तोताराम ने उत्तर दिया |



Dec 14, 2016

निष्काम वक्ता

  निष्काम वक्ता 

 ११ दिसम्बर २०१६ को मोदी जी ने बनासकांठा में एक चीज़ फेक्ट्री के उद्घाटन के अवसर पर कहा- मुझे लोकसभा में बोलने नहीं दिया जाता तो मैंने जनसभा में बोलने का निश्चय किया है |

हमें बहुत बुरा लगा | जैसे ही तोताराम आया हम उसी पर पिल पड़े- देखा तोताराम, मोदी जी का क्या हाल बना दिया है ?  भले ही १०० में से मात्र ३१ वोट मिले हैं लेकिन सीटें तो दो तिहाई मिली हैं |पिछले २५ वर्षों से देश में जोड़-तोड़ के गठबंधन ही सरकार बनाते रहे हैं |ऐसे में यह बहुत  बड़ी उपलब्धि है |लोकतंत्र के उज्जवल भविष्य का संकेत है | लेकिन उसी दल के नेता को लोकसभा में बोलने तक नहीं दिया जाता | यह हाल तो तब है जब सबसे बड़े विरोधी दल तक को विरोधी दल का संवैधानिक दर्ज़ा तक प्राप्त नहीं है | 

तोताराम बोला- बोलने कौन नहीं दे रहा है ? मोदी जी क्या, उनके सिपहसालार तक संसद में दहाड़ रहे हैं | हर विपक्षी को हर बात पर गरिया और लतिया रहे हैं | बात यह नहीं है कि मोदी जी को बोलने नहीं दिया जा रहा है |बात यह है कि संसद में लोग टोका-टाकी करते हैं | मोदी जी को अपनी प्रायोजित रैलियों में बोलने का अभ्यास है जहाँ या तो पार्टी के टिकटार्थी, मंत्री-पदार्थी और ठेकार्थियों के अलावा वे लोग अधिक होते हैं जो दो सौ रुपए रोज की दिहाड़ी पर आए हुए होते हैं जिन्हें उनके बीच बैठे कार्यकर्त्ता या मंच पर पीछे बैठे निर्देशक बताते रहते हैं कि कहाँ ताली बजानी हैं, कहाँ नारे लगाने हैं और कहाँ 'मोऽदी..मोऽदी..मोऽदी..' चिल्लाना है | और उसमें मोदी जी चाहे जितना बोलें कोई टोकने वाला नहीं |

अब बन्धु, यह तो संसद है |जहाँ दूसरे भी कोई मिट्टी के माधो नहीं है और ये कोई पूर्ण पुरुष नहीं जिससे कि कोई गलती हो ही नहीं सकती |यह तो खुला मंच है कोई टी.वी.और रेडियो स्टेशन का आमंत्रित श्रोताओं वाला सुरक्षित कवि सम्मेलन तो है नहीं जहाँ हूट होने का डर ही न हो |

हमने कहा- तुमने वह किस्सा सुना नहीं ? एक महिला अपने पति को डाक्टर से पास लेकर गई और कहा- साहब, ये रात को नींद में बड़बड़ाते हैं |कोई दवा दीजिए |डाक्टर ने कहा- आप इन्हें दिन में बोलने का अवसर दिया कीजिए | जब दिन में बोलने नहीं देंगी तो फिर यही होगा कि ये नींद में बड़बड़ा कर अपनी खाज मिटाएँगे | बोलने की आदत गैस, दस्त,खुजली की तरह होती है |इसीलिए तो प्रेशर कुकर में प्रेशर रिलीज़ होने की भी व्यवस्था रहती है | 

लोकतंत्र में सभी बोलते हैं और सभी चुप भी रहते हैं |कभी हिट भी होते हैं और कभी पिट भी जाते हैं |इसे खेल भावना से लेना चाहिए |लेकिन आदत धीरे-धीरे ही तो बदलेगी |पहले भी तो गुजरात में स्पष्ट बहुत वाले सदन में बोलते रहे हैं |विपक्षियों को भी इस मामले में थोड़ा धैर्य और संयम से काम लेना चाहिए |अन्यथा उन दो सौ सांसदों की बला बनासकांठा की तरह के बेचारे सीधे-सादे लोगों पर पड़ेगी |

बोला- यह तो होगा ही |यदि बड़े-बड़े महापुरुषों की पत्नियाँ या जिनके नहीं थी तो उनके घर वाले उन्हें घर में थोड़ा बहुत बोलने का मौका देते रहते तो वे घर छोड़कर नहीं जाते और अपने भाषणों से देश-दुनिया के प्राण नहीं खाते फिरते |या फिर इसका एक उपाय और है कि संसद में निर्विघ्न बोलने की कामना करने वालों को प्रोफ़ेसर साहब की तरह अपना स्वभाव बदल लेना चाहिए |

हमने पूछा- कैसे ?

बोला- एक प्रोफ़ेसर साहब छुट्टी के दिन भी नियत समय पर तैयार होकर कॉलेज जाने लगी तो पत्नी ने टोका- आज तो छुट्टी है |कहाँ जा रहे हैं ?

लाचार प्रोफ़ेसर साहब ने घर पर ही अपना लेक्चर शुरू कर दिया तो पत्नी ने पूछा- यहाँ आपका लेक्चर कौन सुन रहा है ?

प्रोफ़ेसर साहब ने कहा- सुनता तो वहाँ भी कोई नहीं |






Dec 8, 2016

ऐसे नहीं चलेगा, रमेश जी भाई साहब

  ऐसे नहीं चलेगा, रमेश जी भाई साहब 

आज आते ही तोताराम ने बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिए जैसे कि पार्टी का कोई अनुशासित सिपाही आत्मा की आवाज़ पर किसी दूसरी पार्टी में जाने से पहले कहा करता है- ऐसे नहीं चलेगा, रमेश जी भाई साहब |

हमने कहा- तोताराम, क्या नहीं चलेगा ? आतंकवादियों, कालेधन वालों और  रिश्वतखोरों की कमर तोड़ने के लिए नरेन्द्र भाई ने जो कदम उठाया है वह तो बड़े मज़े से चल रहा है |देखा नहीं, शादियों में 'आज मेरे यार की शादी है ' वाले पारंपरिक कमर तोड़ने वाले गीत की जगह 'मोदीजी नै काळै धन की वाट लगा दी रै ' गा-गाकर लोग कमर तुड़वाए जा रहे हैं | इससे ज्यादा सुखद परिणति किसी क्रांतिकारी कदम की और क्या हो सकती है ? 

बोला- मेरी भाषा से अपनी पार्टी वाली लाइन मत पकड़ |मैं तुझे पश्चिम वालों की बदमाशी के बारे में बताना चाहता हूँ | अब उनकी यह बदमाशी नहीं चलने वाली है | ज़रूरत हुई तो मैं अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भी जाऊँगा | द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद गाँधी जी को नोबल देते-देते चर्चिल को दे दिया |फिर अटल जी को देते-देते रुक गए |पिछली बार मोदी जी को 'पर्सन ऑफ़ द ईयर  का अवार्ड देते-देते अन्गिला मर्केल को दे दिया |और इस साल फिर मोदी जी को देते-देते ट्रंप को दे दिया |यह तो वैसे ही हुआ जैसे कोई बच्चा किसी बच्चे को देने के लिए टॉफी आगे बढ़ाए और जब वह पास में आए तो 'गप' से अपने मुँह में डाल ले |

हमने कहा- तोताराम, यह हम सबको समझ लेना चाहिए कि ये पश्चिम वाले कभी  पुरस्कारों, कभी सम्मानों और कभी सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता का लालच दिखा-दिखा कर कभी हमें प्लेन बेच जाते हैं, कभी परमाणु रिएक्टर का सौदा पटा ले जाते हैं और करते-कराते कुछ नहीं | 

बोला- इसमें एक और बड़ी बदमाशी है |देख, जैसे ही ओबामा राष्ट्रपति चुने गए तो ऐन वक्त पर भागते-भागते उनका लास्ट डेट पर नोमिनेशन करवा दिया |और अब जब साल के २२ दिन बाक़ी हैं तभी २०१६ का 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' का सम्मान  डिक्लेयर कर दिया |इतने दिन में क्या कोई चमत्कारिक काम नहीं किया जा सकता ? 

हमने कहा- जैसे ? 

बोला- मैं नवम्बर में चार बार-बार लाइन में लगकर अपने खाते में से दस हजार रुपए निकाल लाया |अब तीन चक्कर लगाकर अपनी पूरी पेंशन निकाल लाया और तुम्हारे सामने जिंदा खड़ा हूँ क्या यह 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' के सम्मान के लायक काम नहीं है ?  

हमने कहा- तोताराम, यह ठीक है कि तुमने वास्तव में वीरों वाला काम किया है जिसके लिए किसी ने तुम्हें सम्मानित नहीं किया इसके लिए हम भारत देश और टाइम मैगजीन की तरह से क्षमाप्रर्थी हैं |पर हम मात्र तुझे यह सम्मान न मिलने के कारण दुखी नहीं हैं |हम इसलिए भी दुखी हैं कि ट्रंप मुसलमानों को अमरीका से भगाने के नाम पर जीते हैं |अब हम तो मोदी जी की ओर से चिन्तित हैं |पिछली बार यदि उन्हें 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' का सम्मान दे दिया जाता तो शायद शांति से बैठे रहते |लेकिन नहीं मिला तो यह नोट बंदी वाला नाटक कर बैठे |अब पता नहीं, इस सम्मान के लिए कहीं जनवरी २०१७ में हिमालय को दक्षिण भारत में शिफ्ट करने का काम शुरू न कर दें | 

Dec 3, 2016

बंदियों का बंदी

 बंदियों के बंदी

जब से अर्थव्यवस्था को मुक्त किया गया है, पता ही नहीं चलता कहाँ क्या हो रहा है |पता नहीं, कब कौन सी कम्पनियाँ बना लेता है और कौन किस कंपनी में तालाबंदी करके सार्वजनिक बैंकों का पैसा लेकर लन्दन भाग जाता है |आजादी के समय ज़मीन की चकबंदी का चर्चा चला था |अपनी ज़मीन की बाड़बंदी, तारबंदी, हदबंदी भी होती ही आई है भले ही बाहुबली किसी भी बंदी को तोड़कर कुछ भी कर ले |अब देखिए ना,मध्य प्रदेश और पंजाब में जेलबंदी तोड़ी ही जा रही है | जब ख़रीदे हुए विधान सभा सदस्यों या सांसदों पर विश्वास नहीं होता तो उनकी बाड़ाबंदी की जाती है |इंदिरा जी के समय में नसबंदी चली थी |अब नोटबंदी चल रही है |मतलब लोकतंत्र में किसी न किसी 'बंदी' का बंदी तो आदमी को होना ही पड़ेगा |

पहले कभी हम किसी बंदी में इतने बंद नहीं हुए थे जितने इस नोटबंदी  के बंदी हो गए हैं |समझ लीजिए घर में ही नज़रबंद चल रहे हैं |बैंक की लाइन में लगकर शहीद होने का मन नहीं है |कभी छोटामोटा सामान इधर-उधर अड़ोस-पड़ोस की दुकान से ले आया करते थे |उसमें भी हमारा दर्ज़ा उधारिये का हो गया है |वैसे हमने दुकानदार को, दूधवाले को, दवा वाले को, सब्ज़ी वाले को एडवांस चेक दे दिए हैं लेकिन जब तक पैसे हाथ में न आ जाएँ तब तक वे सब इसे उधार ही मान कर चल रहे हैं |

आजकल हम और तोताराम भी कुछ विशेष बात और चोंच लड़ाई नहीं करते | इसलिए चाय का कार्यक्रम कुछ जल्दी ही निबट जाता है | जैसे ही तोताराम उठने को हुआ एक स्थानीय नौसिखिया पत्रकार हमारे सामने प्रकट हुआ और बोला- मास्टर जी, आजकल हम अपने अखबार में नोटबंदी के बारे में लोगों की फोटो सहित प्रतिक्रिया छाप रहे हैं |आपकी नोटबंदी के बारे में क्या प्रतिक्रिया है ?

हमने कहा- बस, सर्दी बढ़ने लगी है  इसलिए कहीं जाने का मन ही नहीं होता |मोदी जी के राज में मज़े कर रहे हैं |ले रहे हैं मुफ्त का विटामिन डी | वैसे लाइफ सर्टिफिकेट देने की तारीख़ भी तो बढ़ा दी है |हो आएँगे जब मन करेगा |

जब तोताराम का नंबर आया तो बोला- बहुत अच्छा कदम है |सभी बेकार के लोग कम से कम लाइनों में तो खड़े हैं |इसलिए बदमाशियाँ भी कुछ कम हो गई हैं | दो हजार के नोट छापने से एक हजार वाले की बजाय कागज़ कम लगेगा और रखने में भी कम जगह घेरेगा | 

पत्रकार के जाने के बाद हमने कहा- तोताराम, आज तो तेरी बात कुछ जमी नहीं |यह नोटबंदी के समर्थन में बड़ा लचर तर्क है |

बोला- तूने कौनसा बोल्ड स्टेटमेंट दे दिया | वैसे मोदी जी ने नोटबंदी के बारे में स्मार्ट फोन पर राय भी तो माँगी थी जिसमें ९८ प्रतिशत लोगों ने उनका समर्थन किया था |जब ३१ प्रतिशत में सरकार बनाई जा सकती है तो ९८ प्रतिशत वोट मिलने पर तो नोटबंदी ही क्या, 'दस्त बंदी' से 'साँस बंदी' तक कुछ भी 'बंदी' की जा सकती है |ऐसे में और क्या कहा जाए ?अगर कुछ ज्यादा बोल दिया और बात ऊपर तक पहुँच गई तो मेरा नाम काले धन वालों में आ जाएगा और मेरा सातवें पे कमीशन का एरियर बंद कर दिया जाएगा |वैसे इस समय  कोई दुःख, बीमारी और समस्या देश में नहीं है | बस, दो ही तरह के लोग हैं |जो दुखी दिख रहे हैं वे काले धन वाले हैं और जो शांतिपूर्वक लाइन में लगे हुए हैं वे नोटबंदी का समर्थन कर रहे हैं और ईमानदार हैं  | 
मोहल्ले में एक शादी है |जैसे ही तोताराम की बात ख़त्म हुई, माइक पर जोर से गाना शुरू हो गया- 'मोदी जी नै काले धन की वाट लगादी रै' | 
और तोताराम जोर-जोर से कमर मटका-मटकाकर नाचने लगा |सुरक्षा की दृष्टि से ज़रूरी भी है |

Dec 1, 2016

सोच समझकर लिया गया निर्णय

  सोच समझकर लिया गया निर्णय 

पेंशन लेने दूसरे हफ्ते में जाते हैं क्योंकि महिने के पहले हफ्ते पेंशन वालों की बहुत भीड़ रहती है | और फिर इस महिने जीवित होने का प्रमाणपत्र भी देना होता है सो दोनों कामों का तालमेल बैठाते-बैठाते ८ नवम्बर  को यह नोटों वाला चक्कर आगया | सो हमें बैंक जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, नोट बदलवाने वालों की लाइन ही लम्बी होते-होते हमारे घर तक आ गई |किसी तरह गली के दुकानदार से ही बेशर्म होकर उधार खा रहे हैं |सब्ज़ी की जगह दाल और कढ़ी से काम चला रहे हैं |उम्मीद है महिने के अंत तक तो सुधार हो ही जाएगा |


यही सोचते हुए दोपहर की झपकी ले रहे थे कि फोन आ गया |बैंक में पेंशन वाला बाबू थोड़ा परिचित है, उसीका फोन था  |बोला- तोताराम जी, आज लाइन में आकर लगे थे |खड़े-खड़े चक्कर आ गया है |नंबर तो आज क्या आना है |अच्छा हो, आप इन्हें ले जाएँ | 

सो बस, तोताराम के साथ अभी बैंक से लौटे हैं |

हमने कहा- तोताराम, तेरा कौन सा ५००-१००० के नोटों का भंडार बेकार हुआ जा रहा था | ३० दिसंबर तक का समय है |अभी तो काम चल ही रहा है उधार में |क्या ज़रूरत थी ओखली में सिर देने की |अब इस उम्र में ऐसे फालतू के काम करते हुए कुछ सोचकर समझ लिया कर |नोट बदलवाने के चक्कर में कई बुज़ुर्ग लाइन में ही वीरगति को प्राप्त हो गए हैं

बोला- बहुत सोच समझकर ही निर्णय लिया है |

हमने कहा-तेरे इस सोच समझकर लिए गए निर्णय पर एक किस्सा सुन |एक मास्टर जी थे |रोज सवेरे अपने चबूतरे पर बैठकर दातुन किया करते थे |और यही समय होता उनके पड़ोसी का अपनी भैंस को खेत में लेजाने का | भैंस मुर्रा नस्ल की स्वस्थ, सुन्दर और दुधारू थी | सींग एकदम गोल |मास्टर जी रोज सोचते कि इसके सींगों के बीच की गोलाई ठीक मेरे सिर की गोलाई जितनी है | बहुत दिनों तक सोचते रहे और एक दिन साहस करके अपने अनुमान की सत्यता का निर्णय करने के लिए अपना सिर भैंस के सींगों में फिट कर ही दिया |

भैंस के लिए यह एक नया अनुभव था |वह चमक गई और मास्टर जी का सिर अपने सींगों में फँसाए-फँसाए दौड़ पड़ी |मास्टर जी चिल्लाने लगे |लोगों के लिए यह एक अजीब दृश्य था |किसी तरह लोगों ने भैंस को कब्ज़े में किया और मास्टर जी को सिर सहित निकाला |

जब मास्टर की को कुछ साँस आया तो लोगों ने कहा- मास्टर जी, आप पढ़े-लिखे आदमी हो, कुछ तो सोचा होता |

मास्टर जी बोले- तो क्या आप मुझे बेवकूफ समझते हो |सिर फँसाने से पहले पूरे एक साल तक सोचा है |

तोताराम चिढ़ गया, बोला- और मोदी जी ने कहा है कि वे नोट बदलने की दस महीने से तैयारी कर रहे थे तो क्या तू मोदी जी के इस कदम की इस तरह व्याख्या कर रहा है |अरे, उन्हें इस देश की सत्तर सालों की गड़बड़ियों को ठीक करना है तो ऐसे निर्णय तो लेने ही होंगे | 

हमने कहा- बन्धु, उन्हें पूर्णबहुमत मिला है | अब वे भले ही हर छः महीने में नोट बदलें लेकिन तुझे कुछ हो जाता तो पता है, डाक्टर सौ-सौ के नोटों के बिना इलाज भी नहीं करता और कल ही एक और खबर बन जाती- सीकर में नोट बदलवाने की लाइन में खड़े एक ७५ वर्षीय वृद्ध को  दिल का दौरा पड़ा | डाक्टरों ने पुराने नोट लेने से मना किया | मृतक का नाम तोताराम बताया गया है |

 

Nov 26, 2016

महानायक का उल्लेख

  महानायक का उल्लेख 

तोताराम हमें आदिकवि कहता है |सुनकर आपको भी अच्छा लग रहा होगा |हमें भी शुरू-शुरू में बहुत अच्छा लगा था लेकिन जैसे ही उसने हमारे आदिकवि विशेषण के बारे स्पष्ट किया तो हमारी तो हवा ही खिसक गई |बोला- तुम आदिकवि हो |कविता के हर कार्यक्रम के हर समाचार में तुम्हारा उल्लेख होता है |हमने कोई रिपोर्टिंग दिखाने को कहा तो बोला- दिखाना क्या है |कहीं भी पढ़ ले- फलाँ कार्यक्रम में देश के सभी विशिष्ट कवियों ने काव्यपाठ किया जैसे- अ,ब,स,द आदि |अब यह आदिकवि तेरे अतिरिक्त कौन हो सकता है |इसी तरह फोटो के केप्शन में देखले, लिखा होता है मंच पर अ,ब,स,द आदि कवि विराजमान हैं |यह आदिकवि भी तू ही है |

आज सुबह-सुबह समाचार पढ़ा कि अमरीका में राष्ट्रपति पद की डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के ईमेल वाले मामले में एक खुलासा आया है कि उन्होंने एक मेल में अपनी चुनाव सहायिका पाकिस्तान मूल की हुमा आबेदीन से पूछा था कि हमारी भारत यात्रा में जिस बुज़ुर्ग अभिनेता से हम मिले थे उसका नाम क्या था ?दुनिया में सबसे अधिक फ़िल्में बनाने वाले, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और शीघ्र ही दुनिया के किसी भी देश से आगे निकल जाने वाले महान देश जगद् गुरु भारत के एकमात्र महानायक का नाम तक न जानने वाली महिला के अज्ञान के बारे में क्या कहा जाए ?

आते ही हमने तोताराम को आड़े हाथों लिया, कहा- अमरीका में कई नोबल पुरस्कार विजेताओं सहित अमरीका के सौ से भी अधिक अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि लोग ट्रंप को वोट न दें क्योंकि उन्हें अर्थशास्त्र की कोई जानकारी नहीं है |अब यह हिलेरी तो उससे भी संपटपाट निकली | भारत के महानायक तक का नाम नहीं जानती तो भारत के क्या काम आएगी |अमरीका में बसे भारतीयों को क्लिंटन को वोट नहीं देना चाहिए |

हमने कहा- तोताराम, हर गली का अपना-अपना शेर होता है |उसे कभी भी दूसरी गली का शेर बनने की महत्वाकांक्षा नहीं पालनी चाहिए |वैसे ही सभी देशों के अपने-अपने महानायक होते हैं, बादशाह होते हैं, किंग होते हैं | अखबार और टी.वी. वाले सेलेब्रिटीज़ के प्रचार प्रबंधकों से पैसे खाकर उन्हें बड़े-बड़े विशेषणों ने विभूषित करते रहते हैं |जो वास्तव में महानायक थे उन्होंने अपने को कभी महानायक प्रचारित नहीं करवाया और न ही कभी पैसे के लिए उलटे-सीधे विज्ञापन किए |तुझे पता है, ओबामा के पहले चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार सारा पालिन को तो यह भी पता नहीं था कि दुनिया के नक़्शे में भारत कहाँ है ?रेड इंडियंस और इंडियंस में क्या फर्क है ? 

एक बार  प्रधानमंत्री नरसिंहा राव किसी सम्मेलन में भाग लेने अमरीका गए थे किसी ने वहाँ के अखबारों में उनके लिए दो लाइनों की जगह भी नहीं दी थी |एक बार भाजपा के बड़े नेता और अब निष्कासित जसवंत सिंह सिंह जी का हेराल्ड अखबार में एक फोटो छपा जिसमें अमरीका की रक्षा सचिव अल्ब्राईट का चेल्सी क्लिंटन से हाथ मिला रही थीं |  केप्शन में जसवंत सिंह जी का कहीं नाम नहीं था |बस, लिखा था -चेल्सी क्लिंटन से हाथ मिलते हुए अलाब्राईट और एक अन्य व्यक्ति | यह तो हमीं हैं कि योरप-अमरीका की छींक और खाँसी तक की खबरें मुखपृष्ठ पर छापते हैं और उनके लिए हमारा रक्षा मंत्री मात्र 'एक अन्य व्यक्ति' |

तोताराम ने कहा- अच्छा, तू साहित्यकार की दुम बना फिरता है ना | ज़रा, इस वर्ष के साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता का नाम तो बता |

हमने कहा- पता नहीं है |

तो बोला- तो फिर हिलेरी से ही यह उम्मीद क्यों करता है कि वह तुम्हारे महानायक का नाम याद रखे |उसने तो यह भी इसलिए पूछ लिया होगा कि ज़रूरत पड़े तो भारतीयों को लुभाने के लिए कहीं अपने अमित जी के नाम का उल्लेख कर दें |

Nov 23, 2016

पचास दिन मोदी के नाम

  पचास दिन मोदी के नाम 

आज सुबह की चाय अकेले ही पी |तोताराम नहीं आया | सोच रहे थे, उसके घर जाकर पता करके आएँ; तभी तोताराम अपनी पत्नी और पोते बंटी के साथ काफी सारे साज़-ओ-सामान के साथ बरामदे के पास आकर रुका | 

माथे पर मोटा-बड़ा कारसेवकों जैसा टीका, कलाई पर मोटा-सा कलावा, भगवा कुर्ता |लगा जैसे कोई राजपूत केसरिया छककर अंतिम युद्ध में वीर गति प्राप्त करने के लिए जा रहा हो |या कोई क्षत्राणी जौहर की तैयारी में हो |हमने पूछा- क्या धर्मयुद्ध में जा रहा है ?

बोला- हाँ, धर्मयुद्ध की समझले | काले धन, आतंकवाद की फंडिंग, भ्रष्ट लोगों की राजनीति को फेल करने, देश में पिछले सत्तर वर्षों से फैले कलुष को मिटाने और भारतीय जनजीवन, शासन-प्रशासन सबको एक साथ ही शुद्ध करने के लिए जा रहा हूँ | बहुत वर्षों बाद देश में कोई एक परम तेजस्वी, परम प्रतापी, देश का सच्चा सेवक पैदा हुआ है |अब इस देश का भाग्य बदलने वाला है |बस, पचास दिन की बात है |नरेन्द्र भाई ने इस देश के लिए कौनसा त्याग नहीं किया ? अब अपने प्राणों की बाज़ी लगाकर एक बंदा हमसे केवल पचास दिन माँग रहा है |तूने संसद में उनकी भाव विह्वल अपील सुनी या नहीं ? वैसे भी अब और कितना जीना है |यदि शेष बचा यह जीवन देश के काम आ जाए तो जन्म लेना सार्थक हो जाएगा |इसके बाद अच्छे दिन ही क्या इस पुण्य भूमि पर स्वर्ग उतर आएगा |

हमने पूछा- पर जा कहाँ रहा है ?  बंटी के सिर पर यह क्या है ?  मैना को क्यों ले जा रहा है ? 

बोला- बैंक जा रहा हूँ | अब पचास दिन तक वहीं धूनी रमेगी |बंटी के सिर पर एक चटाई और मेरा बिस्तर है |मैं आजकल से भगोड़े सेवकों की तरह पत्नी से छुपकर नहीं जा रहा हूँ |अब तुम्हारी अनुजवधू मैना यशोधरा की तरह नहीं कह सकेगी-
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में 
प्रियतम को प्राणों  के पण में 
हमीं भेज देती हैं रण में 
क्षात्र धर्म के नाते |
सखि, वे मुझसे कह कर जाते |

जब तक मेरे खाते में हैं तब तक रोज सौ- सौ के पाँच नोट निकलवाता रहूँगा | शेष समय में लाइन में लगे लोगों का मनोबल बढ़ाता रहूँगा |कष्ट उठाकर लाइन में शांति और धैर्यपूर्वक लगे लोग भी तो राष्ट्रीय परिवर्तन और क्रांति की इस घड़ी के साक्षी हैं |

हमने कहा- तोताराम, औसतन इतने लोग तो देश की सीमाओं पर भी शहीद नहीं होते जितने नोट बदलवाने के लिए बैंकों की लाइन में लगकर मर रहे हैं | क्यों बिना बात रिस्क ले रहा है |अब तक सत्तर से अधिक लोग मोदी जी के इस क्रांतिकारी कदम की बलिवेदी पर चढ़ चुके हैं |और संसद में कोई सत्ताधारी उनकी देश की अर्थव्यवस्था की सफाई में दी गई इस शहादत के लिए दो मिनट का मौन रखने को भी तैयार नहीं है |

बोला- मास्टर, पता तो मुझे भी है कि इन चोंचलों से इस महान देश को कोई फर्क नहीं पड़ता |पंचों का कहा सिर माथे, नाला वहीँ पड़ेगा | एक हजार का पुराना नोट  बंद करके दो हजार का चला रहे हैं तो फिर पहले से दोगुनी रफ़्तार से काला धन बनेगा |

हमने कहा- जब तू यह जानता है तो क्यों तो मोदी जी की स्तुति में दुहरा हुआ जा रहा है और क्यों लाइन में लग कर मौत को बुलावा दे रहा है |

बोला- मैं ऐसा बावला नहीं हूँ |एक तो बैंक में बिस्तर लगाए पड़ा मैं देश का एक मात्र वरिष्ठ नागरिक हूँगा |संभव है इसकी चर्चा दूर-दूर तक हो और मोदी जी अपनी 'मन की बात' में मेरे नाम का उल्लेख कर दें |दूसरे अभी सौ-सौ के नोटों पर दस प्रतिशत का बट्टा चल रहा है सो पचास रुपए रोज के वे खरे हो जाएँगे |तीसरे बैंक की लाइन में लगे हुए लोगों को चाय-नाश्ता करवाने का फैशन चला है सो वह भी पेलेंगे |चौथे सुना है, मोदी जी केंद्र सरकार के तहत स्वायत्तशासी निकायों के सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों को न तो नया वेतन मान देने जा रही है और न ही सातवें पे कमीशन का एरियर |ऐसी घोषणा नोटबंदी की तरह कभी भी हो सकती है |
इस एक्स्ट्रा आमदनी से शायद यह जोर का झटका धीरे से लगे | तू चाहे तो इस परिवर्तन महायज्ञ में तेरा भी स्वागत है |
 

Nov 13, 2016

अमर सिंह का वात्सल्य

  अमरसिंह का वात्सल्य

आज जैसे ही तोताराम बरामदे में आकर खड़ा हुआ तो उसके रोम-रोम से टपकती बूँदों के कारण बरामदा गीला हो गया |हमने कहा- तोताराम, क्या बात है, इतना पसीना ?खैरियत तो है ? न हो तो, अन्दर चल कर बैठ |थोड़ा सुस्ताले, पानी पीले | 

बोला- चिंता की कोई बात नहीं है | मैनें तो थोड़ी देर पहले अमरसिंह जी का स्टेटमेंट पढ़ा है |

हमने उसे आगे बोलने ही नहीं दिया, कहा- पसीने से लथपथ होगा स्टेटमेंट देने वाला |तू क्यों परेशान है ?

बोला- बात का सत्यानाश मत कर | अमरसिंह जी ने कहा है- यदि अखिलेश मुझे बार-बार मारेंगे तो भी मैं यही पूछूँगा- बेटे, कहीं चोट तो नहीं लगी ?  

हमने कहा- अमरसिंह जी तो दरियादिल शख्स है |यदि कोई उनके सीने पर लात भी मारेगा तो वे कहेंगे- कहीं मेरे सीने की धूल से आपके चरण-कमल गंदे तो नहीं हो गए ? वैसे जहाँ तक चरणों को चोट लगने की बात है तो यह वाक्य भृगु जी को भगवान विष्णु ने कहा था, जब उन्होंने उनके वक्षस्थल पर पदाघात किया था |  भृगु उम्र में बड़े होने के साथ-साथ ब्राह्मण भी थे इसलिए विष्णु का यह कथन ठीक था लेकिन यहाँ तो अमरसिंह खुद को अखिलेश का चाचा मानते हैं |ऐसी स्थिति में यदि अखिलेश ऐसा करे तो यह उद्दंडता है |
  
भृगु विष्णु की सहनशीलता और क्षमाशीलता टेस्ट करना चाह रहे थे |ठीक भी है, समय-समय पर सबकी टेस्टिंग और चेकिंग होती रहनी चाहिए |सो ठीक भी है |अमर सिंह जी सभी तरह की टेस्टिंग के लिए तैयार हैं |तभी वे यह चुनौती देते हैं कि अखिलेश जब चाहे टेस्टिंग कर ले |वे हर परीक्षा में खरे उतरेंगे |वास्तव में अखिलेश ने उन्हें लात थोड़े ही मारी है |

तोताराम कहने लगा- लेकिन अमरसिंह जी का दिल तो देख | वे नाराज़ होने की बजाय अखिलेश में महर्षि भृगु को देख रहे हैं |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, कुछ भी अमरसिंह जी तो बड़े नाज़ुक से, नफीस और बड़े साइस्ता शख्स हैं |वे तो बात भी बहुत धीरे से करते हैं,दोस्ती भी नाज़ुक फ़िल्मी लोगों से है, और नाम भी कोई पत्थर दिल नहीं है जैसे-पहाड़ सिंह, खूँख्वार सिंह,जोरावर सिंह आदि |और फिर अखिलेश भूतपूर्व मुख्यमंत्री और सर्वेसर्वा मुलायम सिंह जी के पुत्र और उत्तर प्रदेश के भावी प्रधान मंत्री के पिता भी हैं |

वैसे अमर सिंह जी हैं भी बहुत उदार |कभी किसी का दिल नहीं तोड़ा |दोस्तों पर दिल और दौलत लुटाते रहे और लुटते रहे |जब एक बार हरकिशन सिंह सुरजीत के साथ सोनिया गाँधी से बिना बुलाए मिलने गए थे तो अपनी उपेक्षा को छुपाया नहीं और बहार निकलते ही पत्रकारों को बताया कि हमें किसी ने नहीं पूछा |हमारी तो कुत्ते जितनी भी कद्र नहीं हुई |   किसी को बड़ा भाई माना, किसी को कुछ | लोगों ने अपने स्वार्थ से पास बुलाया और स्वार्थ से दूर बैठाया लेकिन बन्दे के चेहरे पर कोई शिकन नहीं | 

आज भी लोग कहते हैं- लंका का यह ढहना यह किसी बाहर वाले का काम है | अब और तो सब अपने हो गए और अमरसिंह हो गए बाहर वाले | 

कोई बात नहीं, जैसे उनके दिन फिरे वैसे सब के फिरें | अंत भला सो भला |चलो चुनाव से पहले पार्टी महासचिव बन गए और क्या चाहिए |अब अगले चुनाव तक इस नए सत्ता-सुख का आनंद लें और और यदि पार्टी हार जाए तो हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देकर नैतिकता का उच्च आदर्श स्थापित कर दें | और यदि जीत जाएँ तो संन्यास लेकर त्याग का उच्च आदर्श |

तोताराम बोला- बन्धु, बात तो तुम्हारी सही है लेकिन यह ससुर राजनीति की हड्डी बहुत बुरी होती है |जैसे रंडी करेगी धंधा,  भले ही चाय अपनी जेब से पिलानी पड़े |


Nov 9, 2016

लोक के कल्याण क मार्ग

 
लोक के कल्याण का मार्ग

आज तोताराम ने आते ही हमारे सामने एक लम्बा-सा कागज़ रख दिया और कहा- कर से साइन |

हमने कहा-पहले पढेंगे |जमाना ख़राब, क्या पता कौन किस कागज पर साइन करा ले |अपने सीकर के पास के एक गाँव में तो भाई लोगों ने एक मृत व्यक्ति का अँगूठा लगवाकर उसकी ज़मीन ही हड़प ली |

बोला- तेरी मर्ज़ी, मत कर साइन |पड़ा रह घोड़ों की लीद की बदबू में |

हमने कहा-हमारे साइन का बदबू से क्या संबंध ?

बोला- मैं तो अपने सीकर के तबेला-बाज़ार का नाम बदलवाने के लिए एक मूवमेंट चलाना चाहता हूँ | अच्छा-भला साड़ी-बाज़ार है और नाम है तबेला-बाज़ार |अरे, जब था तब था राजा साहब के घोड़ों का तबेला |ऐसा भी क्या परंपरा-प्रेम |मोदी जी को देखो | आते ही बदल दिया ना, रेसकोर्स का नाम |

हमने कहा- लेकिन इससे क्या फर्क पड़ेगा ? अब भी आप गूगल पर देखेंगे तो पता चलेगा लोक कल्याण मार्ग वही सड़क है जिसे पहले रेस कोर्स रोड़ कहते थे |हमारे गाँव में वैश्यों का एक परिवार है जिनके किसी पूर्वज ने कभी जलेबी चुरा ली थी तो गाँव के लोगों ने उन्हें 'जलेबी चोर' कहना शुरू कर दिया |बहुत वर्षों तक किसी ने कुछ बुरा नहीं माना लेकिन बाद में उनके आधुनिक वंशजों ने कानूनी रूप से अपना सरनेम बदल लिया और 'गुप्ता' बन गए |मज़े की बात यह कि बहुत वर्षों तक जब शुरू-शुरू में लोग बता नहीं पाते तो पूछने वाले को कहना पड़ता- अरे, भई मेरा मतलब 'जलेबी चोरों' से है |श्रद्धानन्द मार्ग को अब भी लोग बदनाम जी.बी रोड़ के नाम से ही जानते हैं |

बोला- इससे एक अपशकुन तो बदल जाएगा कि जब से ७ रेस कोर्स रोड़ को सरकारी अधिसूचना के द्वारा प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास बनाया गया है तब से मनमोहन सिंह जी को छोड़कर प्रधान मंत्रियों की आवाजाही ही लगी रही घुड़दौड़ की तरह  |इस अपशकुन को मिटाने के लिए भी ज़रूरी था नाम बदलना |वैसे मोदी जी भागदौड़ तो बहुत कर रहे हैं लेकिन घोड़े की तरह नहीं कि कोई उस पर जीन कसकर, चाबुक मारकर  दौड़ाए |

हमने कहा- वैसे धीरू भाई अम्बानी ने तो एक बार मोदी जी को लम्बी रेस का घोड़ा कहा था |

बोला- अब तेरी अंग्रेजी का मैं क्या करूँ |अरे, लम्बी रेस के घोड़े का मतलब होता है लम्बे समय तक विकास की दौड़ में डटा रहने वाला |

हमने कहा- देख लेना, भले ही अडवाणी जी को सत्तर साल के नाम पर निदेशक बनाकर चबूतरे पर बैठा दिया हो लेकिन खुद सौ साल की उम्र तक देश का कल्याण करते रहेंगे | कल्याण इस तरह का निर्गुण और अपरिभाषेय शब्द है जिसका दूसरा सिरा किसी को पता नहीं |यह  कभी ख़त्म न होने वाले काम है तभी तो मोदी जी ने अपने निवास-स्थान का नाम लोक कल्याण मार्ग रखवाया है |और जब तक कल्याण का काम नहीं हो जाता उन्हें जनता की बेहद माँग पर यहाँ बने रहना ही पड़ेगा |

  

Nov 7, 2016

बन्दर के हवाले भविष्य

 बन्दर के हवाले भविष्य


आज जैसे ही तोताराम आया हमने कहा- तोताराम, सरकार ने सातवें वेतन आयोग के एरियर के बारे में कहा था कि  ३१ अगस्त २०१६ को कर्मचारियोंके खाते में क्रेडिट हो जाएगा |लेकिन दिवाली भी चली गई कोई सुगबुगाहट तक नहीं |क्या जेतली जी को पत्र लिखें ?

बोला- उन्हें इस छोटे से काम के लिए कष्ट देने की क्या ज़रूरत है | जब फुटबाल वर्ल्ड कप से लेकर अमरीका के राष्ट्रपति-चुनावों के परिणाम के बारे में बन्दर भविष्य वाणी करने लगा तो उसीसे पूछ लेते हैं |एक केले का खर्चा ही तो है |

हमने कहा- पूरा किस्सा बता |

कहने लगा- समाचार है कि चीन में 'जेदा' नाम का एक पालतू बन्दर भविष्य बताता है |उसके मालिक ने दो कट आउट लगाए -एक ट्रंप का और एक हिलेरी का |दोनों के आगे एक-एक केला रखा |बन्दर ने बहुत सोच-विचार के बाद ट्रंप के आगे रखा केला खा लिया और उसके बाद ट्रंप के कट आउट को चूमा भी | सो अपन भी बन्दर के आगे डी.ए. क्रेडिट लिखकर उसके सामने  २१वीं शताब्दी, २२ वीं शताब्दी की दो पर्चियों के साथ एक-एक केला रख देंगे |बन्दर जिस भी शताब्दी की पर्ची का केला खा लेगा उसी शताब्दी में सातवें पे कमीशन का एरियर मिलेगा |और यदि उसने हम दोनों में से किसी को चूम भी लिया तो समझले अभी बढ़ा दो प्रतिशत डी.ए. भी उसके साथ मिल जाएगा |

हमने कहा- इस चूमने वाले काम के लिए तू ही ठीक है |तेरे अलावा इस देश में ट्रंप जितना स्मार्ट और कौन है |

बोला- यह बात सिर्फ सूरत की स्मार्टनेस की ही नहीं है बल्कि यह बन्दर की तरह त्वरित क्रन्तिकारी निर्णय ले सकने की क्षमता की भी है |लगता है बन्दर ने ट्रंप की इस क्षमता को पहचान लिया हो |तभी तो उसने बहुत सोच-विचार के बाद ट्रंप के सामने वाला केला उठाया |

हमने कहा- तोताराम, लगता है, इस दुनिया में लोकतंत्र का भविष्य अब बंदरों के हाथ में ही रह गया चाहे अमरीका का सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र हो या भारत का सबसे बड़ा लोकतंत्र हो |कोई आरती से गंगा की सफाई कर रहा है, कोई मूर्तियों से राष्ट्रीय एकता ला रहा है, कोई करोड़ों के रथ पर चढ़कर समाजवाद का सपना साकार करना चाहता है, कोई समास अलंकर युक्त संदेशों से समस्याएँ सुलझा रहा है, कोई मेक्सिको की सीमा पर दीवार बनाकर अवैध आव्रजन रोकना चाहता है,कोई किसी का नारा चुराकर चुनाव जीतना चाहता है, कोई मतदाताओं के एक वर्ग की भाषा के दो शब्द बोलकर उन्हें लुभाना चाहता है | दोनों जगह ही बंदरो के हाथ में उस्तरे हैं |पता नहीं ,कब अपनी या दूसरों की नाक काट लें |

वैसे अंत में बला तो तेरे हमारे जैसे तबेले वालों के सिर ही पड़नी है |

Nov 4, 2016

लोकतंत्र में ट्रंप के पत्ते

 लोकतंत्र में ट्रंप के पत्ते

हालाँकि लोकतंत्र को अब तक की सभी व्यवस्थाओं में सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है लेकिन दुनिया में अधिकांश देशों में लोकतंत्र के कारण कोई  विशेष प्रगति नहीं हुई है |जो हुई है वह विज्ञान और यंत्रों द्वारा हुई है क्योंकि ये मुनाफा बढ़ने वाले कारक हैं | मानवीय दमन और दुर्दशा में कोई कमी नहीं आई है |हाँ, लोकतंत्र के नाम पर जनमत के बल का एक भ्रम ज़रूर गढ़ा गया है |और शायद इसी के नशे में लोग क्रांति या परिवर्तन का भ्रम पाल लेते हैं |

ताश के खेल में कुछ ट्रंप के पत्ते होते हैं जिनकी दुग्गी भी इतर इक्के को पीट देती है |लोकतंत्र में भी परिवर्तन के नाम पर ऐसे ही ट्रंप के पत्ते रचे जाते हैं |दुनिया से तथाकथित सबसे अधिक गतिशील लोकतंत्र अमरीका के इन चुनावों में राजनीति के एक अज्ञात कुलशील और बड़बोले, मनचले धनवान ट्रंप का उदय 'ट्रंप'  के इस श्लेष की व्याख्या के लिए बहुत उचित शब्द है |

सन  २००० से अमरीका आना जाना लगा रहा जो अब भी जारी है |अध्यापक और जिज्ञासु होने के कारण वहाँ के मॉल, कारों और चौड़ी सड़कों में रुचि कम रही और वहाँ के जीवन को जानने का ललक अधिक रही |इसलिए कई स्कूलों में भी गया और जब भी मौका मिला वहाँ के समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन को नज़दीक से जानने का प्रयत्न भी किया |वहाँ के विद्यार्थियों को सायास धर्मनिरपेक्ष, मुक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला और वैश्विक बनाने  बनाने का प्रयत्न किया जाता है |वहाँ के स्कूलों में निश्चित गणवेश (ड्रेस) नहीं हैं, स्कूल के किसी कार्यक्रम में किसी प्रकार की कोई प्रार्थना नहीं होती | बच्चे की स्वतंत्रता और निजता को बहुत सम्मान दिया जाता है |

वहाँ की सबसे पुरानी हिंदीसेवी संस्था 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति' के त्रैमासिक मुखपत्र 'विश्वा' का  संपादक होने के कारण समाज और जीवन को देखने का यह शौक कुछ आवश्यकता में भी बदल गया है |इसलिए अपने भारत और अमरीका के अनुभवों और अध्ययन के आधार पर कह सकता हूँ कि अपने भारतीय (हिन्दू) जीवन शैली के इतिहास में जाति का जो स्थान है वही योरप और बाद में अमरीका के इतिहास में नस्लभेद या रंगभेद का है हालाँकि अमरीका ने स्वतंत्रता की एक बहुत गतिशील व्याख्या की और उसे अपने संविधान के द्वारा कार्यरूप में उतारने का प्रयत्न भी किया |लेकिन विभिन्न देशों और समाजों में धर्म और नस्ल की मानसकिता को शताब्दियों से, विभिन्न तरीकों से संबंधित लोगों के मन में कुछ इस तरह बिठाया गया है कि उससे मुक्त होना अभी भी असंभव सा नज़र आ रहा है |

सन २००८ में अमरीका के चुनावों में दुनिया और विशेषरूप से अमरीका ने देखा कि गोरी अमरीकी माँ और एक काले अफ्रीकी मुसलमान पिता की संतान बराक हुसैन ओबामा जो अपने नाक-नक्श से कहीं भी गोरा अमरीकी नहीं लगता,  अपनी की डेमोक्रेटिक पार्टी की गोरी और एक पूर्व राष्ट्रपति की पत्नी हिलेरी क्लिंटन हो हराकर पार्टी का उम्मीदवार बनता और जीतता है |इस  जीत को लोकतंत्र की श्रेष्ठता और अमरीकी स्वतंत्रता व मेल्टिंग पॉट की अवधारणा की सत्यता और जीत के रूप में देखा गया और प्रचारित किया गया |लेकिन इस बात का विश्लेषण नहीं किया गया कि इसमें काले और अपने को कालों के निकट मानने वाले एशिया के लोगों के रंग और नस्ल के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण का कितना हाथ था ?

आज अमरीकी लोकतंत्र में डोनाल्ड ट्रंप के उदय और अपने पक्ष में उनके अपने तर्क क्या संकीर्ण नस्लीय और धार्मिक अवधारणा के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण कर सकने की लोकतंत्र की एक बड़ी खामी की तरफ संकेत नहीं करते  ?क्या इस परिप्रेक्ष्य में हम अपने देश भारत में लोकतंत्र की ऐसी बड़ी खामियों की तरफ नज़र नहीं डाल सकते |क्या यहाँ भी वोटों के ध्रुवीकरण और जीत के लिए जाति-धर्म और घृणा के विभिन्न मुद्दों को नहीं उठाया जाता ?

अभी अमरीका के कुछ अर्थशास्त्रियों, विद्वानों और नोबल पुरस्कार विजेताओं ने ट्रंप की अर्थशास्त्र की अज्ञानता पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए उन्हें वोट न देने की अपील की है |जहाँ तक अर्थशास्त्र की बात है तो अभी तक कोई भी अर्थव्यवस्था इस दुनिया और समाज की समस्याओं का हल नहीं खोज सकी है |आज की अर्थव्यवस्था में साधनों की कमी नहीं है लेकिन संवेदना, करुणा और उत्तरदायित्त्व की भावना का नितांत अभाव है जो कि प्रत्येक मनुष्य को अर्थाभाव से भी अधिक सालता है | इसलिए बात अंततः एक श्रेष्ठ और संवेदनशील मनुष्य के निर्माण पर आकर ठहरती है |और लोकतंत्र में जीत का आधार वोटों की संख्या होती है जिसे प्रभावित करने वाले कारक मानवीय गुण नहीं बल्कि मीडिया, भ्रम-उत्पादन, विभेद और धर्म-जाति-नस्ल के आधार पर अपने ट्रंप के पत्ते खोजना और उन्हें सही समय पर किसी भी सद्गुण वाले इक्के पर चला देना है |

Nov 2, 2016

मोर्केला एस्क्यूलेंटा

   मोर्केला एस्क्यूलेंटा
चन्द महिनों में ७५ वर्ष के हो जाएँगे |आश्रम व्यवस्था के अनुसार संन्यास लेने की उम्र मतलब बच्चों को फ्री छोड़कर चारों धाम की पदयात्रा करने की अवस्था |यदि साधन संपन्न हुए तो 'अमृत महोत्सव' का अवसर |हो सकता है बड़े लोगों को इस उम्र में अपने साधनों के बल पर किसी अमृत तत्त्व की प्राप्ति हो जाती हो जिससे वे अमरत्व की रह पर अग्रसर हो जाते हों |पर हमारा तो हाल यह है कि पंद्रह-बीस मिनट बैठ जाओ तो उठते समय परेशानी होती है |ऐसे में चारों धाम की पदयात्रा का प्रश्न ही नहीं |अब तो रेल या बस से भी यात्रा की हिम्मत नहीं होती |पिछले दिनों ही भोपाल गए |ऊपर की बर्थ मिली |किसी युवा ने हमसे अपनी नीचे की बर्थ से अदला-बदली नहीं की |ऊपर चढ़ने में जो हालत हुई उससे अपने स्वास्थ्य के बारे में भ्रम वैसे ही खुल गया जैसे कि भाजपा का बिहार के चुनावों में |

आज दिवाली की 'राम-राम' करने आए तोताराम ने सबसे पहले घुटनों का हालचाल पूछा |क्या उत्तर देते ? अपने ही अंग-प्रत्यंगों के चलते समाजवादी पार्टी जैसी हालत हो रही है |ससुर जी वैद्य और बहू को कुठोड़ फोड़ा |दिखाते भी नहीं बनता |कहा- बस, चल रहा है |जैसी स्थिति है वैसे भी बनी रहे तो ठीक है |

बोला- मास्टर, अब चिंता मत कर |मुझे एक जादुई जड़ी मिल गई है |कीमत थोड़ी ज्यादा है लेकिन कोई बात नहीं |जैसे ही सातवें के कमीशन का एरियर मिलेगा एक किलो खरीद लेंगे |भगवान ने चाहा तो तू फिर से मोदी जी की तरह राजनीति के रेसकोर्स में दौड़ लगाने लग जाएगा |

हमने कहा-तोताराम, हम तो ३१ अगस्त से अब तक कोई बीस बार बैंक जा चुके हैं लेकिन अच्छे दिनों की तरह एरियर की कहीं दूर-दूर तक खोज-खबर ही नहीं है |पहले सर्दियों में मेथी और ग्वारपाठे के  लड् डू  बनवा लिया करते थे लेकिन जब से सरकारी डेरियों में नकली घी पकड़ा गया है, घी खाने तक की हिम्मत नहीं होती |वैसे तू किस जादुई जड़ी के बारे में बता रहा था ?

कहने लगा- जब तू हर बात में एरियर का रोना लेकर बैठ जाता है तो क्या बताऊँ ?वैसे बात में दम तो है |जिस जड़ी के बल पर ६४ वर्ष की उम्र में भी मोदी जी शार्दूल-शावक की तरह समस्त भू मंडल को अपनी दहाड़ से गुंजायमान किए हुए हैं, कहीं ढोल तो कहीं बाँसुरी बजा कर मानवता को लुभाए हुए हैं तो तेरा घुटना दर्द कौन बड़ी बीमारी है |

हमारी हिम्मत बढ़ी, कहा- तो फिर बता ना उस संजीवनी बूटी का बारे में |

बोला- यह हिमाचल में बसंत ऋतु में पाया जाने वाला एक मशरूम है जिसे अंग्रेजी में 'मोर्केला एस्क्यूलेंटा' कहते हैं |एक किलो १५-२० हजार रुपए का आता |मोदी जी जब हिमाचल में भाजपा के प्रभारी थे तब उन्हें इसके बारे में पता चला था |तब से इसी का सेवन करते हैं |उसके बाद से देखले, पहले गुजरात में धमाल मचाया और अब सारे देश-दुनिया में छाए हुए हैं |दिन पर दिन जोश-ए-जवानी बढ़ता ही जा रहा है |

हमने कहा- तोताराम, ग्वारपाठे को एलोविरा कहने से कोई खास बात पैदा नहीं हो जाती |पहाड़ों में तरह-तरह के मशरूम पाए जाते हैं |इस मशरूम का अंग्रेजी नाम 'मोर्केला एस्क्यूलेंटा' रख देने से न तो कोई 'मार्के' की बात पैदा हो जाती है और न ही कोई 'एक्सेलेंस' आ जाती है |इस चमत्कार का रहस्य कोई 'मोर्केला एस्क्यूलेंटा नहीं है | हमें पता है वह जड़ी जो मुर्दे में भी जान  फूँक देती है |

तोताराम ने हमारे पैर पकड़ लिए-बंधुवर, तो फिर बता ही दीजिए |पैसों की कोई फ़िक्र नहीं है |पेंशन से एडवांस लेकर भी खरीद लाऊँगा |

हमने कहा-वह पैसों से नहीं खरीदी जा सकती |वह तो एक छींका है जो किसी किसी बिल्ली के भाग से टूटता है | उसका नाम है कुर्सी अर्थात सत्ता | सत्ता मिलते ही देखले जेतली जी और वेंकैया जी के सिर पर भी काले बाल उगने लगे हैं |अगर एक बार आश्वासन भी मिल जाए तो अडवाणी जी फिर से दहाड़ने लगेंगे |









Oct 6, 2016

सीने का नाप

 सीने का नाप 

 आज तोताराम एक नई ही सजधज में था- नाक की नोक पर नज़दीक की नज़र का चश्मा जो अब गिरूँ तब गिरूँ की मुद्रा में रखा था, कान पर टँगी पेन्सिल, कंधे पर कपड़े का सिलकर बनाया गया इंचीटेप |हमारे बचपन के साथी बशीर से मिलता-जुलता अंदाज़ जो आठवीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़कर सिलाई का काम करने लगा था और आज से कोई तीस-बत्तीस साल पहले अल्लाह को प्यारा हो गया था |एक बार तो हम पहचान ही नहीं पाए |आते ही बोला- मियाँ, ज़रा खड़े तो होइए |आपके सीने का नाप लेना है |

हमने भी उसी के अंदाज़ में कहा- उस्ताद, अब क्या नाप लेना है ? कफ़न की न तो सिलाई होती है और न ही नाप | दो गज का सफ़ेद कपड़ा होता है जिसमें लपेट कर ले जाते हैं और वह भी साथ में नहीं ले जाने देते |वह भी डोम राजा उतरवा लेते हैं |जहाँ तक और कपड़ों की बात है तो अब जो हैं वे भी जीते जी शायद ही फटें |

और अब हमारा क्या तो सीना और उसका क्या नाप |हम जानते हैं- कभी ३६ इंच का रहा हमारा सीना लगता है उम्र के साथ प्रतिवर्ष दो-तीन मिलीमीटर की दर से कम होता जा रहा है | इस उम्र में सारा शरीर थोड़ा घटता ही है, बढ़ता थोड़े ही है |हाँ, जब डी.ए. बढ़ता है तो सीना एक इंच बढ़ जाता है और फिर जब दवा और दूध लेने बाज़ार जाते हैं तो दाम सुनकर फिर एक इंच सिकुड़ जाता है मतलब मूषकः मूषकः पुनः | और यही स्वाभाविक है |इस उम्र में वज़न और नाप घटना-बढ़ना ठीक नहीं |ज्यादा घटे तो कैंसर और ज्यादा बढ़े तो दिल की बीमारी या मधुमेह |

बोला-एक बार मोदी जी ने कहा था- उत्तर प्रदेश का विकास करने के लिए ५६ इंच का सीना चाहिए जिसका लोग आज तक मज़ाक उड़ा रहे हैं |वैसे मैं ऐसे लोगों से सहमत नहीं क्योंकि इतने बड़े देश का प्रधान मंत्री बनने के बाद गर्व और ख़ुशी से इतना फर्क  पड़ना कोई बड़ी बात नहीं है |अब सर्जिकल स्ट्राइक के बाद मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह जी ने कहा- मोदी जी सीना ५६ इंच का नहीं, १०० इंच का है |

अब भाई साहब, मुझे तो चिंता हो रही है लेकिन उन तक मेरी पहुँच नहीं है और फिर लिए उनके लिए तो बहुत से विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध हैं | वैसे इतना चढ़ाव भी स्वाभाविक नहीं है |

वैसे तू भी तो देशभक्त है, सो सोचा तेरा सीना भी ऊपर नीचे हो रहा होगा |इसलिए परहेज की दृष्टि से सोचा- नाप ही ले आऊँ और कोई खतरे की बात हो तो किसी अच्छे डाक्टर को दिखा दें |

हमने कहा-पाकिस्तान हमारे देश को लगी हुई त्वचा की ऐसी बीमारी है जो न तो ठीक होगी और प्राणघातक |बस, इस बीमारी के नाम से चतुर डाक्टर पीढ़ी दर पीढ़ी पलते रहेंगे |इसलिए सावधानी ही उपाय है |सावधानी हटी और दुर्घटना घटी |देश की सभी सीमाओं पर निरंतर चौकसी रखें | ये सर्जिकल स्ट्राइक तो चलते ही रहेंगे |कभी इधर से, कभी उधर से | ये ढोल पीटने के विषय नहीं हैं और न ही कोई बहुत स्तर की कूटनीति | यह तो रोज का खुजलाना है | बिना बात झेंपने और बिना बात मूँछ ऐंठने से कोई फायदा नहीं | बातें बनाने वालों और धंधा करने वाले, बिकाऊ और सनसनी खोजी मीडिया को भी ऐसे कामों में ज्यादा मुँह नहीं लगाना चाहिए |बस, गोलमोल ब्रीफिंग फेंकते रहो |


तू तो उत्तर प्रदेश में गन्ने के खरीद सेंटर का ५० साल पुराना एक सच्ची घटना सुन |एक दिन संयोग से एक बहुत ही साइस्ता मिजाज़ के भूतपूर्व नवाब साहब अपनी गन्ने की गाड़ियों के साथ आ गए |वहाँ एक लफंगा उनसे टकरा गया, गाली दी और बदसलूकी की |नवाब साहब बोले- मियाँ, इस ज़माने कौन किसी को क्या देता है ?शुक्रिया कि आपने गाली ही दी मगर दी तो सही |दूसरे दिन उस लफंगे की लाश रेल की पटरियों पर पाई गई |

Oct 5, 2016

बशर्ते कि......

  बशर्ते कि.....

कल जब तोताराम आया था तो उसे थोड़ा सिर-दर्द हो रहा था और बदन भी टूट रहा था |आज सूरज चढ़ आया और तोताराम अनुपस्थित |सोचा, चलो तोताराम को ही देख आएँ कहीं बुखार,जिसे समझ न पाने के कारण, कोई भी डाक्टर सरलता से वाइरल कह कर पीछा छुड़ा लेता है वैसे ही जैसे सरकार जनहित में पैरासीटामोल का विज्ञापन करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ लेती है |पहले मच्छर रात में मौका देखकर संगीत सुनाकर काटते थे लेकिन आजकल तो चोरों, चेन झपटने वालों और लड़कियों को छेड़ने वालों की तरह दुस्साहसी हो गए हैं, दिन में ही आक्रमण कर देते हैं |

देखा तो तोताराम बरामदे में बैठा तुलसी का काढ़ा पी रहा था |पास में ही पोता बंटी बैठा था |तोताराम ने कहा- बेटा, जा दादाजी के लिए अन्दर से चाय तो ले आ | पता नहीं क्या हुआ, बंटी ने बड़ी बेअदबी से कहा- रोज कहते हैं, किसी भी काम को मन लगाकर करो, धर्म समझकर करो तो शिखर पर पहुँच जाओगे जैसे चाय पहुँचा-पहुँचाकर मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए |ला तो दूँगा चाय बशर्ते कि आप अभी चिप्स के पैकेट के लिए दस रुपए दो तो |मैं इन बातों में आने वाला नहीं |प्रधान मंत्री तो दूर,चाय पहुँचाने से कोई वार्ड मेंबर भी नहीं बनता देखा |मोदी जी चाय बेचने से नहीं बल्कि महँगे तकनीकी इवेंट मैनेजमेंट के बल पर प्रधान मंत्री बने हैं |

हमें भी बुरा तो लगा- कहा बेटा, कोई भी फल की गारंटी नहीं दे सकता |किसान खेत जोतता है , सिंचाई करता है फिर भी कोई गारंटी नहीं कि फसल सही सलामत हो ही जाए |तभी कृष्ण गीता में निष्काम कर्म करने की बात कहते हैं | 

आज तो बंटी किसी पार्टी के प्रवक्ता की तरह तर्क कर रहा था | बोला- नेताओं और व्यापारियों की तो बात छोड़िये , मदर टेरेसा को संत घोषति किए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्यन्यायाधीश काटजू जी ने क्या कहा- मैं भी मदर टेरेसा की तरह बीमारों की सेवा करने को तैयार हूँ बशर्ते कोई मुझे एक करोड़ डालर देने का वादा करे | और आप मुझसे बिना फल की आशा के चाय मँगवा रहे हैं |चाय मैं ला तो बिना किसी शर्त के भी दूँगा बस, चाय लाने से कोई प्रधान मंत्री बन जाएगा यह जुमला मुझे मत सुनाइए | 

हमने कहा-  तोताराम, कुछ भी हो बच्चा कह तो ठीक रहा है | क्या बिना किसी अगर, मगर, किन्तु, परन्तु या बशर्ते...के कुछ काम नहीं किया जा सकता ? मदर टेरेसा को क्या पहले किसी ने कोई गारंटी दी थी कि सेवा के बदले इतना दान मिलेगा ? अब काटजू साहब से कोई क्या कहे | अरे साहब,अगर हममें ही इतना सेवा भाव होता तो अच्छे भले लोग दलित और महादलित नहीं बनते, सदियों से वन-वन भटकने वाले भोले-भालेआदिवासी हथियार क्यों उठाते |

और अपने कटारिया जी को ही देख लो |कह रहे हैं-जितना पैसा सरकारी गौशाला पर खर्च किया जा रहा है उतने में तो कोई भी स्वयंसेवी सस्थान अच्छे तरीके से जिम्मेदारी सँभाल सकता है बशर्ते कि ईमानदारी से काम करे | बस, वही बशर्ते .. का चक्कर |अरे साहब, ईमानदारी से ही काम करना होता तो गौशाला में गोबर -मूत सूँघने की और झूठे-सच्चे बही-कहते बनाने की क्या ज़रूरत थी |दुकान पर बैठ कर डंडी ना मारते लालाजी  | 

जेतली जी भी कहते हैं-देश का विकास बहुत तीव्र गति से हो सकता है और हमारी ग्रोथ रेट नौ प्रतिशत हो सकती है बशर्ते कि... लोग ईमानदारी से टेक्स दें |अजी साहब, दोनों काम नहीं हो सकते, टेक्स भी ईमानदारी से दो और पार्टी को भी चंदा दो |ठीक है, पार्टी को चंदा देंगे बशर्ते कि........

Sep 19, 2016

लोगन राम खिलौना जाना

 2016-09-15 लोगन राम खिलौना जाना 

कोई भी रचनाकार अपनी रचना का सन्देश या कविता का मंतव्य लिख कर नहीं जाता |यह भी ठीक है कि उस पर अपने काल और परिवेश की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का प्रभाव भी रहता है लेकिन वह अपनी कल्पना और बिम्ब विधान से जिस मानव-मन की असीमित और नित नूतन किन्तु साथ ही पुरातन दुनिया में भी पाठक को ले जाता है |इसलिए हर पाठक उसमें अपने अनुसार कल्पना की गुंजाइश पा जाता है और अपने अनुसार उसके अर्थ से साक्षात्कार करता है और आनंदित होता है | इसी अर्थ में हर श्रेष्ठ रचना किसी काल विशेष की होते हुए ही  कालजयी और कालातीत भी होती है |

हो सकता है कि हम अपने प्राचीन ग्रंथों के काल निर्धारण में कुछ भूल कर जाएँ या उससे संबंधित विवाद में उलझ जाएँ लेकिन यह भी सच है कि बहुत समय तक उन्होंने हमारे मन को गढ़ा है, रचा है और आज भी किसी न किसी रूप में हमारे अवचेतन को साहित्य और सृजन के वे रूप प्रभावित करते हैं |हम यहाँ उस सृजन और उसके पठन की उस वर्ग की दृष्टि से बात कर रहे हैं जो निरपेक्ष और निःस्वार्थ है, किसी भी पूर्वाग्रह को लेकर नहीं चलता है |पढ़ते और उसका आनंद लेते समय उसके मन में कहीं भी, किसी भी प्रकार का ओछापन नहीं होता |वह विशाल हृदय और विराट चिंतन के साथ सृजन के इस अतल जल में उतरता है |

आज इस दृष्टि से न तो लोग उस प्राचीन सृजन को पढ़ रहे हैं और न ही उसका आनंद ले रहे हैं | आज तो अधिकतर तथाकथित पाठक पहले से कोई न कोई बहुत ओछी अवधारणा लेकर उन्हें पढ़ना शुरू करते हैं और आनंद और मानव-मन के विचित्र लोक में उतरने की बजाय कोई न कोई पूर्व नियोजित अर्थ या निष्कर्ष लेकर आते हैं | जब धर्म और राजनीति का गठजोड़ हो जाता है जो कि प्रायः हो ही जाता है, तो फिर उसकी ज़द में सभी धर्म ही नहीं, धर्म, नीति, मानव-जीवन और  चिंतन का सभी पुराना सृजन भी जाता है |

आजकल ऐसे लोगों द्वारा कोई नया सृजन कर सकने की कमी को पुराने सृजन के साथ छेड़छाड़ करके पूरा किया जाता है |अभी किसी अक्षत वर्मा की महाभारत के पात्रों को प्राचीन वेशभूषा में दिखाते हुए द्रौपदी के बँटवारे के द्वंद्व को बड़े फूहड़ और मजाकिया ढंग से दिखाया गया है जो किसी भी रूप में हमें उस समस्या की गहराई तक नहीं ले जा सकता | वह युधिष्ठिर को मात्र एक घटिया जुआरी तक दिखाने में ही विश्वास करता है |खैरियत है कि इसमें कृष्ण नहीं है अन्यथा उसकी भी दुर्गति कर दी जाती | बहुत कुछ ऐसा है जो पढ़ने और कल्पना का ही विषय हो सकता है और कुछ मात्र दिखाने का ही | इन दोनों विधाओं का अपना महत्त्व है और अपनी-अपनी सीमाएँ भी |लगता है, आजकल दोनों विधाएँ अपनी-अपनी क्षमताओं का सदुपयोग करने की बजाय एक दूसरे का अतिक्रमण करने में अपना विकास और वर्चस्व खोज रही हैं |

अभी एक और चुनावी विज्ञापन आया है- भाजपा अध्यक्ष ने वामन जयंती पर लोगों को बधाई देते हुए एक पोस्टर प्रकाशित किया है जिसमें वामन को बलि के सिर पर पैर रखे हुए दिखाया गया है और साथ में खुद का फोटो भी है इन दोनों से बड़ा |मतलब यह इन दोनों के बहाने खुद को किसी न किसी रूप में स्थापित करने का प्रयत्न है |यह किसी भी तरह केरल के लोगों की खुशी में शामिल होने का उपक्रम तो कतई नहीं है |आजतक न तो विद्यालयों में वामन जयंती मनाई गई, न ही कभी वामन जयंती की छुट्टी हुई |फिर यह वामन जयंती कहाँ से ले आए ? क्या इस अवसर पर ओणम की बधाई नहीं दी जा सकती थी ? और चित्र भी क्या पारंपरिक वेशभूषा में सजी धजी,फूलों की रंगोली बनती महिलाओं का नहीं हो सकता था ?  यह कहीं भी केरल के लोगों की ख़ुशी में शामिल होने के इरादे से किया विज्ञापन नहीं है  | इसके बहाने केरल के समरस जीवन में वैमनस्य और व्यर्थ का कोई विवाद फ़ैलाने का षडयंत्र अधिक नज़र आता है |

यह ठीक है कि कथा में बलि का पाताल में चले जाने का वर्णन कथा में आता है लेकिन कथा में आना और इस प्रकार उसके सिर पर वामन का पैर रखे चित्र, हो सकता है उन्हें अपने राजा, जिसकी वे पूरे वर्ष भर प्रतीक्षा करते हैं और उसकी प्रसन्नता के लिए अपनी खुशियों और वैभव का प्रदर्शन करते हैं कि उनका राजा उन्हें देखकर प्रसन्न हो तो ऐसे में उन्हें बधाई देने का यह तरीका उचित नहीं कहा जा सकता |इससे पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा के अध्यक्ष और तथाकथित मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी को कृष्ण के रूप में चीर बढ़ाते हुए दिखाया गया और अन्य पार्टियों के नेताओं को जनता रूपी द्रौपदी का चीरहरण करते हुए दिखाया गया था |

अपने छोटे और घटिया स्वार्थों के लिए प्राचीन प्रतीकों और आस्था बिन्दुओं का दुरुपयोग करने पर  चुनाव आयोग और अदालत की ओर से प्रतिबंध होना चाहिए | इसी तरह से प्राचीन पुस्तकों और व्यक्तियों पर भी बात हो तो वह कानूनी और अकादमिक स्तर पर होनी चाहिए |किसी भी ऐरे-गैरे को इनका अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए मनमाना दुरुपयोग करने की छूट नहीं होनी चाहिए |वे हमारे अध्ययन और चिंतन मनन के विषय होने चाहिएँ न कि घटिया मनोरंजन और स्वार्थ-सिद्धि के |ऐसे ही बहुत से विज्ञापन और तमाशे समय-समय पर होते रहते हैं जैसे धोनी को विष्णु के रूप में दिखाना, एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के सी.ई.ओ. को विष्णु के रूप में दिखाना या अभी एक ऑनलाइन सामान बेचने वाली कंपनी 'मिन्त्रा' ने जन्माष्टमी पर अपने विज्ञापन में कृष्ण का उपयोग किया था |जब हमारे राजनीतिक और व्यापारी अपने फायदे के लिए इनका तमाशा बनाएँगे  तो किसी और को भी यह तमाशा बनाने से हम नहीं रोक सकते  |

ऐसे कृत्य व्यर्थ में शांत पानी में पत्थर फेंकना है |

ऐसे लोगों के लिए ही कबीर जी ने कहा था-
लोगन  राम खिलौना जाना |


Sep 15, 2016

अटक गए अच्छे दिन

  अटक गए अच्छे दिन 

बड़े लोग जब ७५वें वर्ष में प्रवेश करते हैं तो चमचे या घर वाले खाते-पीते हुए तो अमृत-महोत्सव की तैयारी करने लग जाते हैं |ज़िन्दगी भर के फोटो ढूँढ़े जाते हैं और लोगों से झूठे-सच्चे संस्मरण लिखवाए जाते हैं | जैसे ही हम भी पचहत्तरवें वर्ष में घुसे, बच्चों ने कहा- बाबा, अब आप भी फुल-बॉडी चेकअप करवा लो, कहीं अन्दर-अन्दर  राजनीतिक पार्टियों की तरह कुछ गड़बड़ न चल रही हो | खैर, आठ हजार रुपए झटककर जब डाक्टरों को कुछ नहीं मिला तो कह दिया- चिकनाई, चीनी और नमक कम खाया करें |

आजकल के बच्चे पता नहीं क्यों, दूध-दही की मलाई से परहेज करते हैं |इसका यह फायदा हुआ कि सारी मलाई हमारी चाय में शामिल हो जाया करती थी |कुछ हिस्सा तोताराम को भी मिल जाया करता था |लेकिन अब चाय में चीनी और दूध दोनों कम हो गए और मलाई का तो प्रश्न ही नहीं | चाय का घूँट मुँह में लेते ही तोताराम रुक गया और कई देर तक उस घूँट को मुँह में ही घुमाता रहा |

हमने छेड़ा- क्यों, कहीं अच्छे दिनों की तरह चाय गले के गुडगाँवा के ट्रेफिक में अटक तो नहीं गई  ? 

बोला- संवेदनशील लोगों के गले में तो साँस भी अटक जाती है | नाक में खुशबू अटक जाती है, स्मृतियाँ अटक जाती हैं | मैं तो यह सोच रहा हूँ कि कहाँ तो वे दिन थे जब चाय में फुल क्रीम मिल्क हुआ करता था, डबल चीनी और कभी-कभी मलाई भी |चाय में ही मिठाई का आनंद आ जाता था | 

और आज यह चाय ! जैसे सहाबुद्दीन राशन की लाइन में खड़ा हो |पतन की भी कोई सीमा होती है | संसार में तीन ही तो स्वाद होते हैं- घी, चीनी और नमक |तीनों ही लगभग बंद | इस संन्यास आश्रम में ये दिन भी देखने को लिखे थे |क्या बताऊँ बन्धु, सचमुच इस चाय का यह घूँट वास्तव में गले से नीचे नहीं उतर रहा है जैसे अडवानी के गले निदेशक मंडल की सदस्यता |

हमने कहा- तोताराम, जीवन में बहुत कुछ गले के नीचे उतारना पड़ता है |जब सारा जीवन सही-सलामत बीत जाए, कुर्सी पर रहते हुए मृत्यु हो जाए, अखबारों में पूरा कवरेज हो जाए, टी.वी. पर अंतिम यात्रा का आँखों देखा हाल प्रसारित हो जाए, भस्म देश के सभी तीर्थों में बिखरा दी जाए, अंतिम दर्शनों के लिए आए सभी विदेशी मेहमान चले जाएँ, पाठ्यपुस्तकों में पाठ शामिल हो जाए और जगह-जगह मूर्तियाँ स्थापित हो जाएँ तब समझना मोक्ष हो गई अन्यथा तो राजनीति में पता नहीं कब, आदमी की हालत कुत्ते से बदतर हो जाए | कब संसद में कुर्सी तो दूर, संसद के दरवाजे से भी दरबानों द्वारा भगा दिया जाए |

बोला- वैसे मेरा विश्वास है कि नेताओं का गला बहुत बड़ा और चौड़ा होता है उसमें से जाने क्या-क्या बह जाता है और गले के गटर से गंगा में होता हुआ जाने कब गंगासागर  पहुँच जाता है |लोग तो थूककर चाट लेते हैं और पकड़े जाने पर साफ़ कह देते हैं- क्यों, तुझे क्या परेशानी है ? मेरा थूक है |थूकने के बाद विचार बदल गया तो थूक को पुनः यथास्थान पहुँचा दिया तो क्या हुआ ? यह या तो मेरा व्यक्तिगत मामला है या फिर मेरे और पार्टी के बीच का |और कभी-कभी अंतरात्मा  का कहना भी तो मानना पड़ता है |

फिर भी अब देख ना, किस तरह 'अच्छे दिनों' का जुमला भाजपा के गले में हड्डी की तरह अटका हुआ है |गड़करी जैसे बात-बात में दो-से चार, चार से छः लेन हाई वे से ट्रेफिक को स्मूथ बना डालने वाले व्यक्ति के गले में भी यह जुमला फँसा हुआ है तो यदि मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के गले में यादों की मलाई वाली चाय फँसी हुई है तो तुझे कुछ तो मदद करनी ही चाहिए |जब डाक्टर मुझे मना करेगा तब देखूँगा , फिलहाल मेरे लिए तो थोडा -सा दूध और चीनी मँगवा दे |

हमने कहा- तू भी क्या याद करेगा |छोड़ दूध और चीनी, ले पेड़े खा, हमारे समधी साहब ने भिजवाए हैं |




Sep 9, 2016

ताऊ चेकिंग करा ले

  ताऊ चेकिंग कराले 

हम तोताराम से उम्र में छः महिने बड़े हैं, एम.ए. में उसके सेकण्ड डिवीज़न है और हमारे फर्स्ट लेकिन यह सब  माथे  पर थोड़े  ही लिखा रहता है |महत्त्व तो जो दिखता है उसका होता है जैसे तोताराम को साइकल चलाना आता है, हमें नहीं | वैसे यदि सड़क खाली हो और कोई हमें बैठाकर धक्का दे दे तो हम भी थोड़ा बहुत  चला लेते हैं लेकिन उतरने में कभी-कभी गिर जाते हैं |

आज तो ऐरे-गैरे के पास बी.एम. डब्लू. मिल जाएगी लेकिन हमारी किशोरावस्था में तो गाँव में साइकल की ही अपनी शान हुआ करती थी | किसी किसी दूल्हे को ही दहेज़ में साइकल मिला करती थी | आज तोताराम अपने पोते की साइकल लेकर आया और बोला- आजा मास्टर, आज साइकल से हनुमान जी के दर्शन करने चलते हैं |

हमने कहा- तोताराम, केन्द्रीय विद्यालय संगठन ने केवल दिल्ली के ही कुछ बड़े अफसरों को सी.जी.एच.एस. की सुविधा दी है | अपने पास  भामाशाह कार्ड भी नहीं है |साइकल से तू भी गिरेगा और हमें भी गिराएगा |हड्डी टूट गई तो कम से कम दो महिने की पेंशन में माचिस लग जाएगी |हाँ, तेरा ज्यादा ही मन है तो साइकल का रौब जमाने के लिए साथ ले चल |हम तो बिलकुल नहीं बैठेंगे |मुलायम सिंह जी की तो मज़बूरी है |चुनाव चिह्न होने के कारण, और नहीं तो चुनावों में तो एक दो बार साइकल पर बैठना ही पड़ता है |हमारी कोई मज़बूरी नहीं है |

खैर, तोताराम साइकल का हैंडिल पकड़े-पकड़े चला और हम उसके साथ-साथ | 

जैसे ही जयपुर रोड़ पर चढ़े, चार-पाँच युवाओं ने रोक लिया, बोले- ताऊ, चेकिंग करवाले |

तोताराम ने कहा- क्या चेकिंग करवालें ? दिन है इसलिए लाईट की ज़रूरत नहीं है, घंटी बजती है, साइकल सवार को हेलमेट लगाना अनिवार्य नहीं होता | 

युवक बोले- चेकिंग तो करवानी है |

अब हमने कहा- क्यों भाई, साइकल की भी प्रदूषण चेकिंग होती है क्या ? तुझे ये ईंट भट्टे की तरह धुआँ उगलते, रोड़ टेक्स न देने वाले पत्थर ढोते ट्रेक्टर नहीं दिखते |

अब तक जो युवक हमारी आशा के विपरीत शालीन बने हुए थे, अपने असली रूप में आगए, बोले- ज्यादा चीं-चीं करोगे तो तुम्हारे थैले से गौमांस बरामद कर लेंगे |

इस ब्रह्मास्त्र के सामने तोताराम ढीला पड़ गया, बोला- भैया , साफ़-साफ़ बताओ क्या चेक करना चाहते हो ?हम तो आज बीस बरस में पहली बार साइकल लेकर हाई वे पर आए हैं |

अब तो युवक भी कुछ सामान्य हुए, बोले- देशभक्ति की चेकिंग कर रहे हैं | हमने पूछा - इसका क्या कोई शुगर या ब्लड प्रेशर नापने जैसा यंत्र होता है ? 

बोले- जो पूरा बन्दे मातरम गा देता है, भारत माता की जय तीन बार जोर-जोर से बोल देता है उसे हम क्लीन चिट दे देते हैं |फिर चाहे वह देश को बहुराष्ट्रीय या देशी कंपनियों को सारे जंगल और नदियाँ ही क्यों न बेच दे |

हमने कहा- हमने तो ज़िन्दगी भर स्कूल में गाया और बच्चों से वन्देमातरम और जन गण मन गवाया है लेकिन जो दो तिहाई सांसद जन गण मन तक नहीं गा सकते उनको कौन सर्टिफिकेट देता है ?

बोले- हमारी उन तक पहुँच नहीं है | हम तो सड़क छाप छुटभैये हैं |जो ऐसे ही शाम की दारू के पैसे जुटाते हैं |

खैर, आप जाओ लेकिन देशभक्ति जाँच कर्ताओं से बहस न करोगे तो सुख पाओगे | सबमें हम जितना धीरज नहीं होता |

हम दोनों हनुमान जी के दर्शन किए बिना ही लौट आए |

ठीक भी है जान है तो पेंशन है | जिसे भी देश भक्ति, विकास और सेवा का नशा चढ़ जाता है वह कुछ भी कर गुजरता है |पगलाए कुत्ते और हरियाए ऊँट किसी के कंट्रोल में नहीं आते |

Sep 8, 2016

शरारती बन्दर : संसद के अन्दर

 शरारती बन्दर : संसद के अन्दर 

समाचार पढ़ा- संसद की लाइब्रेरी में बन्दर घुसा, वहाँ उसने आधा घंटा बिताया | 

बन्दर वास्तव में बहुत खुराफाती जीव होता है | तभी कहा गया है- बन्दर की बला तबेले के सिर | करे कोई भरे कोई |और फिर यह भी कहा गया है कि बन्दर के हाथ में उस्तरा | पता नहीं क्या कर बैठे ? आजकल तो लोकतंत्र है और बंदरों के हाथ में उस्तरा ही क्या, देश आ गया है | पता नहीं, क्या कर बैठेंगे | भगवान ही मालिक है |

एक फिल्म थी सत्यकाम और उसका गाना था- आदमी है बन्दर, रोटी उठा के भागे, कपड़ा चुरा के भागे, कहलाए वो सिकंदर |

वाकई में ऐसा ही ज़माना आ गया है कि जो दूसरों का रोटी-कपड़ा चुरा कर भागता है वही बन्दर सिकंदर कहलाता है |बाकी अपनी मेहनत की कमाई खाने वाला तो आदमी होते हुए भी गधा ही कहलाता है जो जी.एस.टी. में अब बीस परसेंट टेक्स देगा और खाएँगे टेक्स न देने वाले और ये बन्दर |

जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, अब तक तो बन्दर रोटी-कपड़ा उठाकर भागते थे अब तो ये संसद में पहुँच गए हैं और कल तो एक बन्दर संसद की लाइब्रेरी में घुस गया और वहाँ कोई आधे घंटे रहा और फिर वापिस चला गया | बंदरों से निबटना तो रावण की सेना के वश में भी नहीं था तो संसद में कौन सूरमा भोपाली बैठे थे जो इस बन्दर से बचाते | वहाँ तो सब बुलेट प्रूफ शीशे के पीछे से दहाड़ने वाले वाक्वीर हैं | 
हमें तो यही चिंता हो रही है कि कहीं यह बन्दर संविधान में ही तो कोई खतरनाक संशोधन न कर गया हो |

बोला- संविधान को कौन पढ़ता है और कौन आचरण करता है संविधान के अनुसार ?
सब जाति-धर्म और परिवार-पार्टी से आगे सोच ही नहीं पाते |और पार्टी के बारे में भी तभी तक सोचते हैं जब तक पार्टी उन्हें देश का खज़ाना लूटने की छूट देती रहती है अन्यथा तो आत्मा को दूसरी पार्टी में जाने के लिए आवाज़ देने में कितनी देर लगती है |

हमने कहा- तोताराम फिर भी संविधान हमारी कुरान है, बाइबल है, गीता है | आज भी इसके बल पर ही यह देश टिका हुआ है | कभी न कभी समझ में आने पर और मौका लगने पर यह अनपढ़ जनता भी इन बंदरों को इनकी सही जगह दिखा देती है |

तोताराम कहने लगा- सच पूछे तो मुझे इन बंदरों से सबसे बड़ा डर यह लगता है कि ये देश का इतिहास बदलने में लगे हुए हैं |और जब किसी देश का इतिहास इस तरह से बदल दिया जाता है कि वह सबक लेने की चीज होने की बजाय एक दूसरे से लड़ने के बहाने खोजने लगता है तो फिर उस देश को नष्ट होने से कोई नहीं बचा सकता |पाकिस्तान को देखा नहीं- जिसका इतिहास सिन्धु घाटी की सभ्यता से शुरू होना चाहिए था वह मोहम्मद बिन कासिम से शुरू होता है |और फिर कट्टरता के जंगल में भटकता-भटकता शिया-सुन्नी, अहमदिया-मुहाजिर आदि में बँटकर अपने ही कपड़े फाड़ता और लहू-लुहान होता रहता है |यदि ये बन्दर इसी तर्ज़ पर इतिहास से छेड़छाड़ करते रहे तो भारत का हाल भी पाकिस्तान जैसा हो जाएगा | 

इन बंदरों से तो दुश्मनी और दोस्ती दोनों बुरी | बया ने इन्हें बरसात से बचने के लिए अपना घर बनाने की शिक्षा दी तो उसका बेचारे का घर ही तोड़ दिया |और जिस राजा ने इसे अपना सेवक नियुक्त किया उसके नाक पर बैठी मक्खी उड़ाने के लिए तलवार से बेचारे राजा की नाक ही काट डाली |

हमने कहा- तोताराम, अभी तक तो इस देश की जनता के पास अपनी साझी विरासत बची हुई है लेकिन जैसे रस्सी यदि बार-बार आती-जाती रहे तो पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं, अतिशय रगड़ करने से चन्दन से भी आग पैदा हो जाती है  | आशा करनी चाहिए कि चन्दन से आग पैदा होने से पहले ही जनता इन बंदरों को इनकी असली जगह दिखा देगी | 

बोला- लेकिन हनुमान जी भी तो बन्दर थे और बन्दर-भालुओं के बल पर ही तो राम ने रावण जैसे महाबली को हरा दिया था |

हमने कहा- लेकिन वे बन्दर समर्पित थे |ये तो ऐसे बदमाश बन्दर हैं जो लंका जाएँगे ही नहीं,  इधर-उधर घूमघाम कर आ जाएँगे और टी.ए.;डी.ए. का झूठा बिल बना देंगे |

















Sep 1, 2016

राजनीति का दाढ़ी-युग

  राजनीति का दाढ़ी-युग 



 बैंक का  कोई कर्मचारी नहीं चाहता कि उसे किसी ग्राहक की शक्ल दिखाई दे | वे तो चाहते हैं कि लोग ए.टी.एम.से पैसा निकालें, ईबैन्किंग अपनाएँ लेकिन हम जैसे पेंशनर उनका पीछा छोड़ने वाले नहीं हैं |तोताराम और हमने तय किया था कि ३१ अगस्त २०१६ को  अपने  पेंशन  खाते में आए हुए  सातवें  पे कमीशन का एरियर और नई पेंशन  राशि देखने  के लिए  बैंक में सबसे पहले पहुँचेंगे  | हालाँकि पिछले चार  दिनों  से हमारा तोताराम से संपर्क नहीं हुआ  लेकिन वादे के अनुसार तोताराम ठीक नौ बजे हाज़िर होगया |

यह क्या  ? आज का  दिन तो पेंशनरों के लिए  १५ अगस्त से कम नहीं मगर तोताराम तीन मिलीमीटर बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ प्रकट हुआ |पुरानी  फिल्मों के गम में डूबे हुए नायक जैसी छवि  हो रही थी |बस, हाथ में एक बोतल  या जाम की कमी थी |

आते  ही  बोला-  देख,  कैसा  लग  रहा हूँ ?

हमने कहा- समझ ले, लखनऊ लग रहा है ?

बोला- यह क्या उत्तर है ?

हमने कहा- पटना में नीतीश कुमार जी हैं जिनकी  दाढ़ी दो मिलीमीटर की है और दिल्ली में मोदी जी हैं जिनकी दाढ़ी पाँच मिलीमीटर लम्बी है |और तेरी दाढ़ी तीन मिलीमीटर तो पटना और दिल्ली के  बीच लखनऊ हुआ कि नहीं ? लेकिन यह बता, आज ख़ुशी के मौके पर दाढ़ी बढ़ाकर यह रोनी सूरत क्यों बना रखी है ? 

बोला- पहले की बात और थी जब कैसे भी काम चल जाता था |अब ज़माना बहुत आगे बढ़ गया है |आजकल तंत्र-मन्त्र तथा छल-छद्म ही नहीं बल्कि और भी कई तरह के नाटक करने पड़ते हैं |पहले पटेल, नेहरू,मोरारजी, चरणसिंह, राजीव गाँधी, देवे गौड़ा, अटल जी आदि  का  क्लीनशेव्ड से ही  का चल गया  | राजेंद्र बाबू, गोविन्दवल्लभ पन्त, जगजीवन राम, कामराज आदि का केवल  मूँछों से ही काम चल गया लेकिन आजकल हर काम के विशेषज्ञ हैं | वे बताएँगे कि आप दाढ़ी रखें, दाढ़ी-मूँछ दोनों रखें या क्लीन शेव्ड रहें |  पहले नरेन्द्र भाई के, फिर नीतीश कुमार के और अब राहुल गाँधी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत कुमार ने तय किया है कि उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों में राहुल गाँधी को दाढ़ी में प्रोजेक्ट किया जाएगा | 

इसी शताब्दी के शुरू में दाढ़ी वाले मनमोहन सिंह जी दस साल प्रधान मंत्री रहे |उनके बाद मोदी जी आए जो लगता है कम से कम अगले बीस-तीस साल तो प्रधान मंत्री रहेंगे ही |अमित शाह भाजपा के अतुलित बलशाली अध्यक्ष हैं |नीतीश कुमार की दाढ़ी के बल पर ही बिहार में अमित शाह की दाल नहीं गली | बाल ठाकरे जी को अपने उत्तर काल में दाढ़ी के महत्त्व का अहसास हुआ और उन्होंने भी दाढ़ी रखी और एक राज्य को राष्ट्र ही नहीं, महाराष्ट्र बना दिया और आजीवन शेर की तरह दहाड़ते रहे | अमिताभ बच्चन इस उम्र में भी जवानों से ज्यादा फ़िल्में कर रहे हैं, कैसे |दाढ़ी के बल पर |रामविलास पासवान दाढ़ी के बल पर ही हर मंत्रिमंडल में पाए जाते हैं |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, कुछ भी हो दाढ़ी में आदमी कुछ उदास-सा नहीं लगता ?

बोला- उदास नहीं, बल्कि व्यक्ति अधिक गंभीर और अधिक जिम्मेदार लगता है | लगता है देश के विकास के लिए चिंतित है या देश के विकास में इतना मग्न है कि दाढ़ी बनाने तक का समय नहीं मिलता या इतना देश भक्त है कि देश का धन दाढ़ी बनाने जैसे फालतू कामों में खर्च नहीं करता |और फिर दाढ़ी रखने से आदमी का चेहरा भरा-भरा लगता है |यदि दाढ़ी को ढंग से सेट करवा लो तो एक गुठली जैसे चेहरे वाले का भी शेर जैसा लुक आ जाता है | बहुत से शानदार व्यक्तित्त्व वालों की यदि दाढ़ियाँ मुंडवा दो तो चेहरा चूसी हुई आम की गुठली जैसा निकल आएगा |

दाढ़ी का अपना रौब है | यह भारतीय राजनीति का दाढ़ी-युग है |

हमने कहा- लेकिन दुनिया में बहुत से बड़े लोग हुए हैं जिन्होंने बिना दाढ़ी के ही बड़े-बड़े काम कर दिए | वैसे तोताराम, एक बात बता, आजकल के दाढ़ी-युग के इन कलाकारों की दाढ़ियाँ बढ़ती क्यों नहीं ? हमेशा उतनी की उतनी ही रहती है |

बोला- यह सबसे कठिन दाढ़ी है |क्लीन शेव वाला बिना शीशा देखे ही आँख मीचकर दाढ़ी बना लेता है |चला दी घास काटने वाली मशीन |और पूरी दाढ़ी रखने वाले को तो कुछ सोचने की ज़रूरत वैसे ही नहीं |बारानी भूमि है, जो होता रहे सो ठीक है |सबसे कठिन है यह दो-पाँच मिलीमीटर वाली दाढ़ी | दिन भर में एक मिलीमीटर बढ़ती और उसे काटने के लिए एक विशेष नाई रखा जाता है |नेताजी सोते रहते हैं और नाई रात भर नाप-नापकर हर बाल को एक-एक मिलीमीटर छोटा करता रहता है |

तभी तुझे पता है फ़्रांस के राष्ट्रपति के बालों की सँभाल के लिए एक लाख रुपए महीने का एक विशेष नाई रखा हुआ है | इनका नाई का खर्चा कितना है,पता नहीं | 

हमने कहा- तो फिर क्यों यह राजनीतिक दाढ़ी की बला पालता है |इतने खर्च लायक पेंशन नहीं बढ़ी है सातवें पे कमीशन में |

हमने उसके हाथ में रेजर देते हुए कहा- ले, साफ कर ले, फिर ज़रा ढंग से चलते हैं पे कमीशन के एरियर की एंट्री करवाने |

Aug 22, 2016

सिन्धु की जाति

  सिन्धु की जाति

जब सिन्धु ओलम्पिक का फाइनल खेल रही थी तब लोग गूगल पर उसकी जाति खोज रहे थे |गूगल के अनुसार कम से कम नौ लाख लोगों ने उसकी जाति सर्च की |हमें बड़ा अजीब लगा | 

जैसे ही तोताराम आया हमने अपनी खीज उसी पर उतार दी- तोताराम, सत्तर साल हो गए जात-पाँत मिटाने के लिए विकसित न हो सकी जातियों के लोगों को आरक्षण देते हुए, अंतर्जातीय विवाहों को सरकारी प्रोत्साहन देते हुए लेकिन 'कांग्रेस मुक्त भारत' की तरह देश जाति-मुक्त ही नहीं हो रहा |

बोला- कौन चाहता है जाति-मुक्त भारत ? यू.पी. में भर्ती होती है तो ९० प्रतिशत एक खास जाति के उम्मीदवार चुने जाते हैं, जब चुनाव में टिकट दिए जाते हैं तो काबिलियत नहीं, उस जाति के वोटों की गणना का हिसाब लगाया जाता है | गुजरात में ही देख ले, मुख्यमंत्री के मामले में क्या जाति का शुद्ध चुनावी गणित था या नहीं ?

तुझे याद है, जब जनरल चौधरी सेनाध्यक्ष बने तो बहुत से चौधरी भाई बहुत खुश हुए थे | बाद में जब पता चला कि बंदा बंगाली ब्राह्मण है तो जोश ठंडा हुआ |राजस्थान में कुछ बनिए भी चौधरी लिखते हैं | और जाति का क्या है जिसका भी लट्ठ पुजे वही चौधरी |

आजकल जो प्रतिभा-सम्मान-समारोह होते हैं वे प्रतिभा के नहीं, अपनी जाति की प्रतिभा के सम्मान होते हैं | प्रतिभा कुँवारी हुई तो विवाह की संभावना तलाशी जाती है, दलाल सम्मान के बहाने उससे परिचय बढ़ाकर भविष्य में धंधा करने के मौके खोजते हैं | कुछ तो जाति के आधार पर बने संगठन अपने सदस्यों को एक दूसरे की मदद करने ही नहीं बल्कि कुछ चुनी हुई दूसरी जातियों के लोगों के काम अटकाने के लिए योजना बनाते हैं | 

हमने कहा- लेकिन शास्त्रों में तो कहा गया है कि
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान |
मोल करो तरवार का पड़ी रहन दो म्यान ||

बोला- आजकल म्यान की ही कीमत हो गई है |लोग कपड़े देखते, कपड़ों की डिजाइन,कीमत देखते हैं | यह कौन सोचता है कि इनमें कौन चांडाल छुपा हुआ है | लोग लम्बी-बड़ी गाड़ी में बैठकर आए चोर की कार का भी भाग कर दरवाज़ा खोलते हैं |कोई यह नहीं सोचता कि इसके पास दो दिन में ही कहाँ से इतना पैसा आ गया कि पचास लाख की गाड़ी खरीद ले |

बड़े-बड़े नेता अपना प्रभाव जमाने के लिए बार-बार अपनी जाति का उल्लेख करेंगे जैसे कि उन्होंने ही इस देश की जाति-व्यवस्था में सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं | नाखून कटा कर शहीद होना चाहते हैं लोग जाति की आड़ में |अन्यथा मृत पशु उठाने वालों ने यह काम करने से मना कर दिया तो उनकी पिटाई करने लगे |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, सूर्य, नदी, आकाश, समुद्र की कोई जाति नहीं होती |वैसे ही इस प्रतिभाशाली लड़की सिन्धु की जाति न पूछकर इस लड़की के परिश्रम और लगन को सलाम किया जाना चाहिए |वैसे सिन्धु से ही हिन्दू बना है और इसलिए भारत में रहने वाला हर मनुष्य हिन्दू या सिन्धु है लेकिन लोगों को इतने से चैन कहाँ  पड़ता है | 

बोला- बन्धु, इस देश में जहाँ हिन्दी और संस्कृत हिन्दू और उर्दू मुसलमान है, गाय हिन्दू है और बकरी मुसलमान है | जाति-धर्म के बिना इस देश क्या, इस उपमहाद्वीप में न राजनीति चल सकती और न सभ्यता-संस्कृति | छोटे लोग हैं, इनकी सोच इतनी ही है | ऐसे लोग भारत के उन महापुरुषों को एक किनारे करना चाहते हैं जो जाति-धर्म से परे मानव मात्र के बारे में सोचते थे |इनके वश का बड़ी लाइन खींचना है ही नहीं, ये किसी बड़ी लाइन को मिटाने से आगे नहीं सोच सकते |


Aug 20, 2016

डोनाल्ड ट्रंप की तस्वीरों के फ्रेम

  डोनाल्ड ट्रंप की तस्वीरों के फ्रेम 

जब भी हमारा अमरीका जाना होता है तो वहाँ के 'इन्डियन-स्टोर' न जाएँ यह कैसे हो सकता है | भारतीयों में और मामलों में चाहे देशभक्ति को या नहीं लेकिन विदेश जाने वाली पहली पीढ़ी भोजन के मामले में ज़रूर सांस्कृतिक होती है |उसे कैलेफोर्निया में भी ग्वार की फली चाहिए |भले ही और भी बहुत से विकल्प हों लेकिन भारत के बिस्किट, तेल, साबुन, मसालों को देखते ही उनका राष्ट्रप्रेम उफनने लगता है |वैसे अब जब भारत में ही दालें मोज़ाम्बीक से आएँगी तो अमरीका में विदेशी दालें और मसाले कौन बड़ी बात है |  वहाँ कुछ पंजाबी और दक्षिण भारतीय होटल भारतीय खाना खिलाकर देश प्रेम और संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं |फिर भी दूसरी और तीसरी पीढ़ी तक आते-आते इन्हीं भारत प्रेमियों की संतानें पूरी तरह से विदेशी रंग में रँग जाती हैं |

वहाँ जब घर में अन्य सामानों पर निगाह डालते हैं तो कुछ भी भारत निर्मित नहीं मिलता | छोटी से छोटी चीजें भी चीन की बनी हुई होती हैं |यह चीन के कमाल से ज्यादा अमरीका की ग्लोबल अर्थव्यवस्था का कमाल है | जो सामान अमरीका में मज़दूर १०० डालर लेकर बनाएगा उसे चीन का मज़दूर अमरीका के दिए स्पेसिफिकेशन अनुसार दस डालर में बना देगा | चीन के मज़दूर को काम मिला और अमरीका के उद्योगपति को सस्ता माल और सारा प्रदूषण और झिकझिक चीन के सिर |इस वैश्वीकरण के युग में अपने देश के मज़दूर के बारे में सोचने की किसे फुर्सत है ?इसी तर्ज़ पर तो अब 'मेक इन इण्डिया' का शगूफा छूट रहा है |

इन सामानों में हमें भारत निर्मित एक दुर्मट अवश्य मिला | दुर्मट लोहे का एक पाँच-सात किलो का एक टुकड़ा होता है जिसके पीछे एक लकड़ी का हत्था लगा दिया जाता है |पहले यह पत्थर के टुकड़े में डंडा फँसाकर बनाते थे | इसे पत्थर, मिट्टी आदि के असमतल फर्श या मैदान को कूट-कूटकर समतल किया जाता है अर्थात जमाया जाता है | भारत में सभी अच्छे काम कूट-कूट कर ही किए जाते हैं चाहे देश भक्ति भरने का मामला हो या गौप्रेम का |लेकिन वहाँ ऐसे कामों के लिए कूटने की भारत जितनी सुविधा नहीं है | फिर भी चलो, वक्त ज़रूरत के लिए औज़ार तो उपलब्ध है |

अब तो मोदी जी का सूट भी गिनीज़ बुक में आगया है अपने कीमती होने के कारण | लेकिन भारतीय वस्तुओं का सम्मान बढ़ाने वाला एक बयान हिलेरी क्लिंटन ने भी दिया है- उन्होंने कहा- राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की फोटो के फ्रेम भारत में निर्मित हैं | इससे हमें गर्व करने का एक और अवसर मिला |

जैसे ही तोताराम आया, हमने उत्साहित होकर बताया- देख तोताराम, अब डोनाल्ड ट्रंप के फोटो को सजाने और आकर्षक बनाने के लिए भारत निर्मित फ्रेम काम में लिए जा रहे हैं | 

बोला- यह कोई अच्छा कमेंट नहीं है | हिलेरी के कथन की व्यंजना समझ | वे कहती हैं- ट्रंप के फोटो के फ्रेम भारत में निर्मित हैं मतलब ट्रंप अपनी इमेज भारतीय नेतृत्त्व की लाइन पर बना रहे हैं | यह एक कटु सत्य है जिसे भाजपा का थिंक टैंक नहीं समझा या यह बयान उनकी निगाहों से नहीं गुज़रा या समझकर घबरा गया और चुप्पी लगा गया |इसका मतलब है कि ट्रंप भी सत्ता पाने के लिए कट्टरवाद का सहारा ले रहे हैं |जैसे यहाँ भाजपा के कई नेताओं के अतिवादी बयान आते हैं जैसे रामज़ादे-हरामजादे , वन्दे मातरम या भारतमाता की जय नहीं बोलने वालों को भारत से भगा देने की बात, वैसे ही तो ट्रंप कहते हैं कि मेक्सिको से अवैध प्रवेश को बंद करने के लिए एक ऊँची दीवार बनवा देंगे |अमरीका में मुसलमानों का प्रवेश बंद कर देंगे या उनकी अमरीका- भक्ति की परीक्षा होगी जैसे कि आजकल भारत में प्रदूषण-जाँच-केंद्र की तरह जगह-जगह देश भक्ति जाँचने के मोबाइल केंद्र काम कर रहे हैं |  इसका मतलब भारतीय फोटो-फ्रेम का अमरीका को निर्यात नहीं बल्कि ट्रंप द्वारा भारतीय नेताओं की तरह कट्टरता अपनाने से है |

हमने कहा- फिर भी मानना तो पड़ेगा ही कि लोकतंत्र को बचाने और मज़बूत करने के लिए भारतीय तकनीक की श्रेष्ठता तो सिद्ध हो ही गई | अब सस्ते सोफ्टवेयर विशेषज्ञों की तरह भारत से गौरक्षक, देश भक्ति जाँच करने वाले, नदी सफाई के लिए आरती करने और चेतना-यात्रा निकालने वाले, तरह-तरह की रथ-यात्राएँ निकालने वाले, बेरोजगारी मिटाने, सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने के लिए के लिए रंगोली, मेहंदी, कविता, वादविवाद, अन्त्याक्षरी आदि  प्रतियोगिता करवाने वाले विशेषज्ञों की अमरीका में माँग इतनी बढ़ेगी कि भारत खाली  हो जाएगा |बेकारी की समस्या छू और विदेशी मुद्रा भण्डार फुल |




Aug 17, 2016

महाराज की जय हो ....

  महाराज की जय हो....

हम अपने रेडियो पर सत्तरवें स्वतंत्रता दिवस पर मोदी जी का भाषण सुन रहे थे |भाषण बहुत लम्बा था सो नींद सी आने लगी |उपलाब्धियाँ संक्षेप में बताते-बताते भी भाषण लम्बा होना लाज़िमी था क्योंकि इतनी उपलब्धियाँ थीं कि यदि विस्तार से बताते तो अगला आम चुनाव आ लेता |जहाँ तक हमारी स्थिति की बात है तो वैसे भी इस उम्र में व्यक्ति को खुद को ही पता नहीं रहता कि वह सो रहा है या जाग रहा है |एक अनहद सा बजता रहता है, अधोमुख सहस्रार से अमृत सा झरता रहता है |

तभी एक दमदार आवाज़ ने हमारी तन्द्रा भंग की- महाराज की जय हो |

हमने इधर-उधर देखा, कहीं किसी महाराज का महल या दरबार दूर-दूर तक दिखाई नहीं दिया |हालाँकि लोकतंत्र आ गया है लेकिन जनता की हालत अब भी एक निरीह फरियादी की ही है,तभी न लल्लू-पंजू नेता भी दरबार लगाते हैं, जन-सुनवाई करते हैं |

फिर आवाज़ आई-महाराज की जय हो |

हमें लगा- यहाँ कोई महाराज भले ही न हो लेकिन कोई आदमी आसपास है ज़रूर |

तभी तोताराम प्रकट हुआ- महाराज, मैं आपसे ही निवेदन कर रहा हूँ |

हमने झुँझलाकर कहा- जिस देश में प्रधानमंत्री तक खुद को राजा न कहकर प्रधान सेवक कहलवाना पसंद करता हो वहाँ हमें महाराज कहकर क्यों हमारा मज़ाक उड़ा रहा है |

तोताराम बोला- मैं अपनी ओर से कुछ नहीं कह रहा |मैं तो मोदी के शब्द दुहरा रहा हूँ |उन्होंने कहा था- जी.एस.टी. बिल पास हो जाएगा तो कंज्यूमर किंग हो जाएगा |और अब वह बिल पास भी हो गया तो तेरे किंग होने में क्या कमी रह गई |

हमने कहा- मोदी जी तो शब्दों के जादूगर हैं | जब सुनते रहो तक तक एक नशा-सा अनुभव होता रहता है | ऐसा जोश आ जाता है कि इस क्षण ब्रह्माण्ड भी मेरे हाथों में आ जाय तो निचोड़ डालूँ | लेकिन उसके बाद कुछ समझ में नहीं आता कि क्या हुआ और क्या नहीं ? और समास के तो मास्टर हैं अपने नरेन्द्र भाई | और आजकल उनके नारे अंग्रेजी में ज्यादा होने लगे क्योंकि अब उन्हें केवल भारत को ही थोड़े समझाना है, उन्हें तो समस्त विश्व को मेसेज देना होता है |विश्व अपने कल्याण और उद्धार के लिए उनका मुँह जोह रहा है |इसलिए समास मिला दिया- कंज्यूमर इज किंग | वैसे जहाँ सच और समास दोनों के मेल की बात है तो-उपभोक्ता इज उल्लू |

तोताराम को बड़ा अजीब लगा, बोला- अगर उपभोक्ता नहीं होगा तो सारे उत्पादक मक्खियाँ मारेंगे |

हमने कहा- एक बार बाज़ार जा और किसी दुकानदार से बिल माँगकर देख, सामान पर उत्पादन तिथि या अवधि पार तिथि की बात करके देख; अपनी औकात का पता चल जाएगा | दुकानदार कहेगा- मास्टर जी, सामान लेना हो तो लो, नहीं आगे चलो |बिल बनाने और फालतू सवालों का ज़वाब देने का टाइम किसके पास है |नोट गिनने से ही फुर्सत नहीं है |बिल काटे भी क्यों |सारा माल शुरू से बिना बिल के चल रहा है | सारा का सारा १८ परसेंट बंदा अकेला पेल रहा है |राजा तो यह दुकानदार है |या फिर राजा हो गई हैं सरकारें जिसमें बैठे लोगों को अब कम से कम १८ प्रतिशत खाने को मिलेगा |

अपनी हालत तो उन ठाकुर साहब जैसी है जिन्होंने एक नौकर रखा लिया जो उन्हें सोते समय दूध पिलाया करता था |अफीम सेवन के कारण ठाकुर साहब को होश नहीं रहता और नौकर आधा दूध खुद पी जाता | ठाकुर साहब को कमजोरी आने लगी |दूध की बेहतर व्यवस्था के लिए एक और नौकर रखा तो दूध की मात्रा और कम हो गई |होते-होते यह हुआ कि ठाकुर साहब मर गए और उनकी मूँछों पर दूध पीने के प्रमाण स्वरुप ज़रा सी मलाई लगी हुई थी |




Aug 2, 2016

त्याग पत्र का सही समय

  त्याग पत्र का सही समय 

कोई मरना नहीं चाहता इसलिए यह पूछना बेकार है कि मरने का कौन सा सही समय है | फिर भी समझदार आदमी सोचते हैं कि बड़ी बेइज़्ज़ती या बड़ा दुःख देखने से पहले मर जाना ही ठीक रहता है | यदि कोई व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सके तो कम से कम सही समय पर त्याग पत्र ही दे दे तो इतिहास में दर्ज हो सकता है, यशस्वी हो सकता है | जैसे यदि इंदिरा गाँधी १९७५ में अदालत का फैसला आते ही यह कहते हुए त्याग पत्र दे देती कि हालाँकि मैंने सरकारी साधनों का दुरुपयोग नहीं किया फिर भी माननीय न्यायालय ने मेरा चुनाव रद्द करना उचित समझा है तो मैं न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हुए त्याग पत्र देती हूँ या अटल जी १३ दिन के हवाई प्रधान मंत्री बनने से पहले ही कह देते कि हम राम-मंदिर के मुद्दे पर चुनाव लड़े थे |हमें इतना बहुमत नहीं मिला कि हम राम मंदिर बना सकें इसलिए हमारी पार्टी के सभी सांसद त्याग पत्र देते हैं |फिर देखते दोनों का जलवा |

 लेकिन कुर्सी इतनी आसानी से छूटती थोड़े ही है | और छूटे भी क्यों ?एक बार कुर्सी मिल जाए तो सात पीढ़ियों का इंतज़ाम हो जाता है जैसे कि पिछली शताब्दी के भूतपूर्व मुख्यमंत्रीगण भी शान से सरकारी बँगलों में जमे हुए हैं |यदि जाँच करवाई जाए तो हो सकता है बहुत से माननीयों ने इन बँगलों को किराए पर उठा दिया हो |जितना किराया लगता है उतने का तो वहाँ भैंसों के लिए रिज़का हो जाता होगा |

लेकिन आज जब पढ़ा कि गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन ने त्याग पत्र की पेशकश की है तो अच्छा लगा |अच्छा इसलिए नहीं कि हम मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं | अच्छा इसलिए लगा कि कोई तो है जो ७५ का होने के बाद संन्यास की सोच सकता है |वैसे बाल अभी तक काले हैं और फिर जिस देश में  हाई स्कूल के सर्टिफिकेट में जन्म तिथि दर्ज होने पर भी राष्ट्रीय बहस छिड़ सकती है तो बेन के लिए दो साल खींचना कौन बड़ी बात थी | 

वैसे ७५ के तो हम भी होने वाले हैं लेकिन जब कोई पद ही नहीं है तो छोड़ें क्या ? पेंशन छोड़ दें तो खाएँ क्या ? कुछ ज्ञानी लोग कहते हैं कि इस उम्र में रेड वाइन पीने से खून का दौरा ठीक रहता है और धमनियों में खून के थक्के नहीं जमते लेकिन पेंशन छोड़े बिना ही दवाओं के खर्चे के बाद दारू का नंबर तो दूर, तूअर दाल का नंबर ही नहीं आता |हम तो यह कर सकते हैं कि अपने परिवार की भाजपा सरकार के सलाहकार मंडल से इस्तीफा दे सकते हैं | लेकिन यह इस्तीफा भी कोई इस्तीफा है लल्लू ?  

वैसे सब जानते हैं कि ठहरी हुई झील में भी अन्दर अन्दर छोटी मछली,बड़ी मछली का खेल चलता रहता है |ठीक है भागते भूत की लँगोटी ही भली |वैसे कुछ भूत इतने बदमाश होते हैं कि लँगोटी भी नहीं पहनते और ऊपर शरीर पर तेल और लगाकर रखते हैं कि कोई पकड़े तो फिसल जाएँ |

परसाई जी ने अपनी ही शैली में अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मैंने वन -विभाग की सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया |यदि इस्तीफा नहीं दिया होता तो नौकरी से निकाल दिया जाता |कुछ लोग धक्का देकर निकले जाने पर भी चौखट पकड़ कर खड़े रहते हैं |कुर्सी से ऐसे चिपक जाते हैं कि खुरच-खुरचकर निकालने पर भी कुछ न कुछ चिपका रह ही जाता है | सरकारी बँगला भी जब तक सामान फिंकवाया नहीं जाता तब तक नहीं छोड़ते |और छोड़ने से पहले सरकारी पंखे, ट्यूब लाईट, परदे,गद्दे और भी कुछ काम का सामान जो ले जा सकते हैं, ले जाते हैं |अभी कुछ पूर्व मंत्रियों के बँगलों के खाली करवाने की बात आई है लेकिन जब खाली हो तब जानिए |अब तक तो  किसी को पता ही नहीं था कि अमुक-अमुक संत कई दशक गुजरने के बाद भी जमे हुए |कुछ दिन बाद फिर जनता भूल जाएगी और जमाई मुफ्त का माल खाते रहेंगे | 

खैर, आनंदी बेन ने सही समय पर सही काम किया |हार्दिक पटेल के हार्दिक असहयोग के अच्छा तो कहीं के राज्यपाल का पद ही भला | भुगते जो मुख्यमंत्री हो |राज्यपाल का क्या है-कभी तीर्थयात्रा कर ली, तो कभी दीक्षांत समारोह में भाषण दे दिया, किसी की पुस्तक का राजभवन में ही विमोचन कर दिया या कभी अंधे बच्चों से राखी बँधवा ली |उपलब्धियाँ पहुँचीं या नहीं, अच्छे दिन आए या नहीं वे जानें जिन्हें अब पंजाब और यू.पी. में चुनाव लड़ना है |

Jul 19, 2016

राज नीति बिनु.....उर्फ़ गुजरात मॉडल

  राज नीति बिनु ......उर्फ़ गुजरात मॉडल 

आज तोताराम का मूड बहुत खराब था | आते ही बोला- ऐसे तो चल लिया राज ? बहुत भारी पड़ेगा यह आदर्शवाद | अरे, खुद तुलसी बाबा कह गए हैं-
राज नीति बिनु , धन बिनु धर्मा |
मतलब कि राज नीति के बिना ही चलता है और धर्म छोड़कर ही धन कमाया जा सकता है |

हमने माथा पीट लिया, कहा- तोताराम, तुलसी बाबा की चौपाई का ऐसा तो अनर्थ मत कर |सत्ता के प्रेत और धन-पशु ऐसा कहें तो बात और है |क्या जीवन भर तुलसी के नाम पर तुमने यही पढ़ाया है ? 

कहने लगा- अर्थ कभी स्थाई नहीं रहते |यदि ऐसा होता तो सभी कवि अपनी-अपनी रचनाओं के अर्थ लिखकर जाते और फिर गुरूजी को कुछ नहीं करना पड़ता | बस, उसकी फोटोस्टेट निकलवाकर बच्चों को बाँट देते |यदि व्यास जी गीता  का एक सर्वमान्य अर्थ लिख जाते तो बाद में आदि शंकराचार्य, तिलक,गाँधी, विनोबा, कृष्णमूर्ति आदि को बार-बार अर्थ नहीं लिखने पड़ते | तो समझ ले तुलसी बाबा की इस चौपाई का आजकल यही अर्थ है कि राज चलाना है तो नीति को छोड़ो और धन कमाना है तो धर्म को छोड़ो |हाँ, चुनाव के समय नीति और धर्म की बड़ी-बड़ी और अच्छी-अच्छी बातें करो और बाद में भूल जाओ |

आज मुँह अँधेरे से ही बरसात की झड़ लगी हुई है सो अखबार वाला आया नहीं |मजबूरी में  कल वाले अखबार को ही फफेड़ रहे थे जिसमें शराब पीते दिखने पर जदयू के पूर्व विधायक ललन राम को निलंबित करके जेल भेज देने का समाचार था |हमने तोताराम से कहा- कहीं नीतीश जी की इसी नीति की तरफ तो तुम्हारा इशारा नहीं है ? 

बोला- हाँ, बिलकुल इसी की तरफ इशारा है | अरे, आजकल तो कोई वोटबैंक वाली जाति के छुटभैये मवाली तक को शराब तो क्या बिजली चोरी या पुलिस की पिटाई तक पर गिरफ्तार नहीं करवाता |और ये महाराज बने हैं धर्मराज |

मुझे बता कौन नेता नहीं पीता ? तुझे याद होगा एक बार विजय माल्या ने दिवाली पर सभी सांसदों को ब्लेक डॉग व्हिस्की की एक-एक बोतल भिजवाई थी जिनमें से केवल प्रभात झा ने यह कहते हुए बोतल लौटाई थी कि मैं शराब नहीं पीता | अब बता, क्या बाकी सांसदों ने अपनी-अपनी बोतलें पूजा में रख रखी हैं ? इतनी सेवा करते हैं बेचारे जनसेवक कि यदि शाम को न पिएँ तो थकान के मारे नींद तक नहीं आए | यदि शाम को आठ बजे सभी जनसेवकों के यहाँ ईमानदारी से छापा मारा जाए और कार्यवाही की जाए तो सब के सब शराब पीने में धरे जाएँगे | यही नहीं, और भी कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लिप्त पाए जाएँगे |जो सदन तक में पोर्न  फिल्म देखने से खुद को नहीं रोक सकते वे रात में क्या-क्या नहीं करते होंगे |

हमने कहा- तो क्या देश को दारू का अड्डा या चकला बना दें ? शराब से, विशेष रूप से ग़रीबों की खून-पसीने की कितनी कमाई खर्च हो जाती है |परिवार के खाने तक के लिए पैसे नहीं बचते | बीवियों पर कितने अत्याचार होते हैं, परिवार में कितनी अशांति बढ़ती है | तभी गाँधी जी ने कहा था- यदि मैं एक दिन के लिए भी देश का तानाशाह बन जाऊँ तो सबसे पहले शराब बंद करवा दूँ | 

बोला- गाँधी की बात छोड़ | उसकी किसी को ज़रूरत नहीं है |अब यह बात और है कि उसका नाम लिए बगैर काम नहीं चल रहा है अन्यथा मन में तो गोडसे बसा हुआ है | लिख दे नीतीश कुमार को कि इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है-'गुजरात-माडल' | दिखाने को शराब बंदी, वैसे किसी भी तरह की दारू कहीं भी उपलब्ध है |दारू-बंदी के नाम पर सरकारी आय में कमी के बहाने टेक्स और लगा दो | यदि दारू-बंदी न हो तो आबकारी का पैसा खजाने में आता है जिसमें घपला करने में थोड़ा उल्टा-सीधा करना पड़ता है |दारु-बंदी हो तो अवैध दारू बनाने वालों से या  पास के राज्यों से तस्करी करके दारू लाने वालों से सीधा पैसा वसूल कर जेब में रखो और लोकतंत्र को सशक्त बनाओ |