Dec 31, 2015

स्वागत है नववर्ष तुम्हारा

 स्वागत  है नववर्ष तुम्हारा


स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष |
करें कामना सब को सुखकर हो यह नूतन वर्ष |

कोई भ्रम, शंका हो तो भी बंद न हो संवाद |
आपस में मिल-जुल सुलझा लें हो यदि कोई  विवाद |
दुःख-पीड़ा आपस में बाँटें, बाँटें उत्सव-हर्ष |
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष |

सभी परिश्रम करें शक्ति भर, पर ना करें प्रमाद |
जले होलिका, विश्वासों का बचा रहे प्रह्लाद |
केवल कुछ का नहीं सभी का हो समुचित उत्कर्ष |
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष |

'स्वार्थ छोड़ कर्त्तव्य करे वह पुरुषोत्तम श्रीराम' |
यह आदर्श हमारा होवे, होंगे शुभ परिणाम |
न्याय-जानकी अपहृत हो तो मिलें, करें संघर्ष |
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष |

-रमेश जोशी 

Dec 30, 2015

सफ़ेद बाल

 सफ़ेद बाल

प्रिय ओबामा जी
वैसे तो यदि हमसे दस-बारह साल छोटे मोदी जी आपको बराक कह सकते हैं तो हम भी इसी तरह संबोधित  कर सकते हैं लेकिन हम इतने फ़ास्ट नहीं हैं |अब देखिए ना, वे बारह महीने में सारी दुनिया का चक्कर लगा आए और एक हम हैं कि सीकर में बैठे-बैठे एक साल निकाल दिया और लेखन का यह हाल है कि एक साल में यह दूसरा पत्र है |

आप एक साल बाद भूतपूर्व हो जाएंगे | जब तक कोई स्केंडल न हो तो भूतपूर्वों को मीडया घास नहीं डालता |जब कोई सत्ता में हो तो छींकने, खाँसने तक के समाचार आते हैं |२० नवम्बर २०१५ को आपने किसी कार्यक्रम में कहा था कि २००९ में जब राष्ट्रपति बना था तो एक भी बाल सफ़ेद नहीं था और अबअधिकतर बाल सफ़ेद हो गए हैं लेकिन मैं बूढ़ा नहीं हूँ |मेरी कैबिनेट के बहुत से लोग बाल रंगते हैं लेकिन मैं नहीं रंगता |

हालाँकि कि लम्पटता का उम्र और बालों के रंग से कोई संबंध नहीं है |८५ साल तक के महामहिमों को लम्पटता के चलते जूते खाते देखा, महाभियोग का सामना करते और रोते देखा है |एक बार आप भी जब जापान में तीए, चौथे या  उठाले में गए तो किसी सुन्दर चेहरे के साथ सेल्फी लेने से अपने को रोक नहीं सके थे |मैडम नाराज़ भी हुई थीं |खैर, अच्छा हुआ, आप जल्दी ही सँभल गए |

उम्र से पहले जब बाल सफ़ेद हो जाते हैं तो आदमी को अन्दर-अन्दर ही थोड़ा अखरता तो है |आपकी तो अभी उम्र ही क्या है ?हमारे बच्चों के बराबर | कवि केशव का किस्सा है जिन्होंने कहा है-

केशव केशनि  अस करी जस अरि हू न कराहिं |
चन्द्र बदनि मृग लोचनी बाबा-बाबा कही कही जाहिं ||
वे अपनी उम्र जानते थे,बाल भी नहीं रँगते थे | केशों के सफ़ेद होने का दुःख इसलिए कि सुंदरियां सफ़ेद केशों के कारण, डीयर की जगह बाबा कह देती हैं |

हमने तो ऐसे-ऐसे बूढों को बाल रंगते देखा है जिनके न मुँह में दांत और न पेट में आंत |लकड़ियाँ श्मशान में पड़ी हैं, बोलते हैं तो चेहरा गुगली हो जाता है |वास्तव में बाल रँगना लम्पटता है, धोखा देने का इरादा है |लेकिन हमारी समझ में नहीं आता कि धोखा किसे देते हैं ये लोग |पत्नी को आपकी मर्दानगी और उम्र दोनों को पता है और  भगवान तो सब कुछ जानता ही है |सही समय पर यमदूतों को भेज देगा |वह यह नहीं सुनेगा कि अभी तो मेरे सारे बाल सफ़ेद हैं, अभी तो मेरी उम्र ही क्या है, अभी क्यों लिए जा रहे हो ?बाल रँगकर जवान दिखने का भ्रम अमरीका ही नहीं भारत में भी कम नहीं है |यहाँ बाल रँगने का प्रतिवर्ष २७००० करोड़ का बाजार है |जो लम्पटता के कारण बढ़ता ही जाएगा |चरित्र न सही, अर्थव्यवस्था तो सुधरे |

हमें तो बाल रँगने का कभी साहस ही नहीं हुआ |अपने अंतरतम को उजागर करना हर एक के वश का नहीं होता |हमारा तो आपसे कहना है कि अब एक साल के लिए इस चक्कर में नहीं पड़िएगा |यह ससुर ऐसी बीमारी है कि मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की |एक बार रंग लो तो जो दो चार काले बचे हैं वे भी सफ़ेद हो जाते हैं | हमारे यहाँ तो कहा जाता है- काले कर्म के और धौले धर्म के मतलब  कर्म करते हुए अपने बालों को सफ़ेद कीजिए |यही धर्म है |जिनके बाल बिना कर्म किए सफ़ेद हो जाते हैं उनके लिए ही कहा जाता कि बाल धूप में सफ़ेद किए हैं |

हमें बहुत से लोग और किसी नहीं तो, कम से कम इसलिए विश्वसनीय लगते हैं कि वे बाल नहीं रँगते जैसे अटल बिहारी, आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा,नरेन्द्र मोदी,अमित शाह, प्रकाश कारत, सीताराम येचुरी और आप |

अब तो अगले साल फ्री हो जाएंगे, लगा जाइए एक चक्कर भारत का |पिछली बार आए थे प्रदूषण के डर से प्रेम का प्रतीक आगरा का ताज नहीं देखा था लेकिन अब मोदी जी ने आपको पेरिस सम्मेलन में समझा दिया है और यहाँ सफाई अभियान भी ज़ोरों से चल रहा है इसलिए अबकी बार पर्यावरण संबंधी समस्या नहीं आएगी |समस्याएँ चाहे वे सुरक्षा की हों या साफ़ हवा की, वे सब कुर्सी पर बैठे लोगों के लिए होती हैं |भूतपूर्व होने पर तो सब धान बाईस पसेरी हो जाता है |

हाँ, उस ट्रिप में यदि दिल्ली भी आना हो तो दो गाड़ियां लाइएगा क्योंकि यहाँ 'सम-विषम' का चक्कर चल रहा है |मतलब एक उस नंबर की जिसमें दो का भाग लग जाए और एक वह जिसमें दो का भाग न लगे |और यदि दिसंबर में आएंगे तो ५० करोड़ रुपए का 'सैफई-महोत्सव' भी देख सकेंगे |आपके यहाँ तो पूंजीवाद है |आपको क्या पता कि समाजवाद क्या होता है ? इसे देखकर आपको लोहिया जी के समाजवाद की जानकारी भी हो जाएगी |

सड़क पर सांड

   सड़क पर साँड़

हालाँकि रात को तापमान शून्य रहा लेकिन सुबह दस-ग्यारह बजे बरामदे में सुहानी धूल निकल आई |पता नहीं, अटल जी के विगत सुशासन या जन्म-दिन का प्रभाव था या वर्तमान में दुनिया में चमक रही इण्डिया की छवि का लेकिन अच्छा लग रहा था |तोताराम और हम चाय के साथ क्रिसमस और पौष-बड़ा दोनों एक साथ मना रहे थे |जैसे ही तोताराम पकौड़ों की अगली खेप लेने गया तो रास्ते से जा रहे सांड पकौड़ों सहित हमारी प्लेट उठा ले गया |हमें गुस्सा तो बहुत आया लेकिन कर क्या सकते थे ? वह धार्मिक, राजनीतिक और शारीरिक तीनों रूपों में हमसे कहीं शक्तिशाली |

जैसे ही तोताराम पकौड़े लेकर आया, हमने उसकी प्लेट को लपक लिया और कहा-अपने लिए दूसरी ले आ |हमारे वाली तो नंदी जी महाराज ले गए | पता नहीं, सरकार इनका कुछ करती क्यों नहीं ?

तोताराम बोला- बन्धु, ये चाहें तो किसी को भी घायल कर दें, सब्ज़ी मंडी में आतंक  फैला दें, छात्र संघ के नेताओं के गैंगवार की तरह मोहल्ले के लोगों का जीना हराम कर दें लेकिन इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |सड़क से संसद तक इन्हीं का राज है |खाएँगे, दहाड़ेंगे, स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद सड़क के बीच लघु और दीर्घ शंका समाधान करेंगे |ये या तो भावी नेता हैं या भूतपूर्व लेकिन साधारण, मेहनत की कमाई खाने वाले आम लोग नहीं हैं | 

हमने कहा- अपने यहाँ सब चलता है लेकिन यदि बनारस हुआ होता तो सब बाड़े में बंद कर दिए गए होते |

बोला-यह तो एक असामान्य घटना है |जापान  के प्रधान मंत्री आने वाले थे इसलिए यह नाटक किया गया था | जैसे लोकतंत्र की शोभा गुंडई, दलाली और भ्रष्टाचार है वैसे ही बनारस की शोभा हैं-सांड,रांड और सन्यासी | देखा नहीं, दो दिन में ही आस्था का प्रश्न उठने लगा | सांड शिव के नंदी हैं |किसी का भी यज्ञ विध्वंस कर सकते हैं | जब किसी को निबटाना होता था तो शिव नंदी को ही भेजते थे |

बनारस में भी इन्हें कोई  'बाड़ा' नहीं सँभाल सकेगा |जब तक इनका पेट नहीं भरेगा, ये गौशाला के अध्यक्ष तक को नहीं खाने देंगे |जब खाने को नहीं मिलेगा तो कौन अध्यक्ष इन्हें रखना चाहेगा | और प्रति गाय भी २५ रूपए और प्रति सांड भी २५ रूपए |कोई संसद की कैंटीन थोड़े ही है जो १२ रूपए में भर पेट माल मिल जाए |यह तो बड़ी नाइंसाफी है, कालिया |गायों की बात और है |खाने को दो या मत दो | पड़ी रहेंगी किसी कोने में लेकिन ये तो भूखे और भरे पेट दोनों स्थितियों में दहाड़ते हैं |और इनके खिलाफ थाने में भी कोई रिपोर्ट नहीं लिखता |कहते हैं- भैया, ये तो हमारे भी बाप हैं |नियुक्ति, प्रमोशन और ट्रांसफर सब इनके हाथ में हैं |

हमने कहा- तो फिर पकौड़ों की यह प्लेट भगवान शिव या लोकतंत्र या सरकार -किसी के भी नाम लिख दे और अपनी भाभी से अपने लिए दूसरी बनवा ले |

 









Dec 28, 2015

सबसे बड़ा नशा

  सबसे बड़ा नशा 

२३ दिसंबर २०१५, पत्नी का जन्म दिन है |बहत्तर वर्ष की हो जाएगी कल |ठण्ड भी कुछ अधिक ही है |पास के कस्बे फतेहपुर में तापमान -०.४ है | हमारे यहाँ का पता नहीं | फिर भी जैसे यमुना के जल में खड़े ब्राह्मण को अकबर के महल के दीये की रोशनी से गरमी मिलती है वैसे ही हम फतेहपर की ठण्ड से ठिठुर रहे हैं | लेकिन इतनी भी कम नहीं कि बरामदे में बैठ सकें सो कमरे में अँगीठी के पास बैठे बिना दूध की चाय पी रहे थे कि तोताराम का अवतरण हुआ |पत्नी से बोला- भाभी, चौबीस घंटे एडवांस में जन्म दिन मुबारक हो | और यह क्या ? यह सूफी इस बुढ़ापे में आज तुम्हारे जन्म-दिन को रम से सेलेब्रेट कर रहा है ?

हमने कहा- ऐसा कुछ नहीं है |रात का दूध बचा नहीं और अभी तक दूध वाला आया नहीं सो बिना दूध  की, नींबू वाली चाय पी रहे हैं |

कहने लगा-  हमें ज़िन्दगी ने इतना अवकाश ही नहीं दिया कि किसी और नशे की सोचते |वैसे यदि तू वास्तव में रम पीता तो भी नशा होने वाला नहीं था |

हमने कहा- यह नया ज्ञान तुझे कहाँ से मिला ? 

बोला- पहले तो मैं भी यही समझता था लेकिन जब से पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री सुरजीत सिंह ज्ञानी जी का स्टेटमेंट पढ़ा है कि शराब में नशा नहीं होता , मेरा विचार बदल गया है | 
हमने कहा- उनके कहने से क्या होता है ? 

बोला- होता क्यों नहीं ? वे कोई साधारण आदमी हैं  ? उनका तो सरनेम ही ज्ञानी है | और नाम शुरू होता है 'सुर' से |अब बता, सुरों से अधिक शराब या सोमरस के बारे में और कौन बता सकता है ? ऊपर से स्वास्थ्य मंत्री अलग | उनके स्टेटमेंट में शंका की गुंजाइश कहाँ रह जाती है ?

हमने पूछा- तो फिर नशा किसमें होता है ?

कहने लगा- वैसे तो लोग कहते हैं कि रूप का नशा होता है, जवानी का होता है, ओफिसरी का होता है लेकिन ये नशे समय के साथ ख़त्म हो जाते हैं |देखा नहीं, मेकअप की हुई बूढ़ी सुंदरी, बूढ़ा पहलवान और रिटायर्ड अफसर कितने दयनीय लगते हैं ?यदि शराब में नशा होता तो हर एक को गाली निकालने वाला शराबी थानेदार को देखते ही नमस्ते क्यों करने लग जाता है ?
एक नशा होता है सत्ता का ? यह सबसे पक्का नशा होता है |एक बार चढ़ गया तो ज़िन्दगी भर नहीं उतरता | बूढ़ा और भूतपूर्व नेता भी अपने को सामान्य नहीं मान पाता | वह भी लोगों पर अकड़ जमाता रहता है |यदि सत्ताधारी हुआ तो फिर कहना ही क्या ? किसी भी पुलिसये या कर्मचारी तो क्या एस.पी. तक पर हाथ छोड़ देता है |निधड़क सब तरह के भ्रष्टाचार और चोरियाँ करता है सो अलग |हारा हुआ नेता तक जब जेल में आता है तो जेल का अधीक्षक, चरण-स्पर्श करता है कि पता नहीं, कब यह पिशाच फिर चुन कर आ जाए | जीते हुए नेता को तो हमने मंच पर चीफ सेक्रेटरी से खैनी बनवाते देखा है |

अब बता, सबसे बड़ा नशा शराब है कि सत्ता ? 










Dec 22, 2015

2015-12-22 राज धर्म



राज-धर्म
( चित्रकूट के गिदुरहा गाँव के किसान घनश्याम की जब भूख से मौत हो गई तो सरकार ने ५० किलो गेहूँ और एक कम्बल उसकी माँ के पास भिजवाया- एक समाचार-२२-१२-२०१५ )

स्वयं तिलक करते रहे राजनीति के राम
चित्रकूट में भूख से मरा कृषक घनश्याम
मरा कृषक घनश्याम, राज ने धर्म निभाया
बाद मौत के गेहूँ एवं कम्बल आया
कह जोशी कवि जिअत बाप को अन्न न ख्वावै
मगर श्राद्ध में बड़ी शान से पिंड भरावै|

२२-१२-२०१५

Dec 13, 2015

भांड को भांड रहने दो

 भांड को भांड रहने दो

प्रिय शाहरुख़
खुश रहो | वैसे तो मीडिया वाले तुम्हें बादशाह, किंग खान आदि कई संबोधनों से प्रचारित करते हैं | हो सकता है तुम्हारे कुछ फैन भी तुम्हें इस नाम से पुकारते हों लेकिन उम्र के हिसाब से तो तुम हमारे एक विद्यार्थी के समान हो | जहाँ तक किसी हॉल में फ़िल्में देखने की बात है तो हमने तो पोर्ट ब्लेयर के 'लाईट हाउस सिनेमा हॉल' में अंतिम बार १९८३ में 'गाँधी' फिल्म देखी थी तब तुम शायद स्कूल में पढ़ते थे | खैर, हमने तुम्हारी फिल्म 'माई नेम इज खान' यूट्यूब पर ज़रूर देखी थी |अच्छी लगी  |

वैसे तो हम बड़े-बड़े लोगों को ही पत्र लिखते हैं लेकिन कल जब तुम्हारा इंटरव्यू पढ़ा तो लगा तुममें कुछ तो बात है |तुमने कहा- हम लोग तो भांड हैं |ज़िन्दगी में जाने कैसे कैसे भेष बदलते हैं, सारे दिन मेकअप में घुसे रहते हैं कि खुद की भी असली सूरत ध्यान में नहीं रहती |हमें दुनिया की बहुत सी जानकारियाँ नहीं होतीं इसलिए बेहतर है कि हम भांड ही रहें |

भई, इस ज़माने में  मज़ा बहुत कम आता है लेकिन तुम्हारी इस बात से मज़ा आ गया | इस ज़माने में तो हालत यह है कि नाव डुबाने का काम माँझी ही करते हैं, चोरी का डर पुलिस वालों से अधिक रहता है, एक बार डाकू छोड़ भी दे लेकिन सेवा के नाम चुना गया नेता नहीं बख्शता, सबसे अधिक यौन शोषण का खतरा खुद को भगवान का अवतार बताने वाले संत पुरुष के आश्रम में रहता है | आत्मा के ज्ञान से शुरू होकर महात्मा जी का समापन पौरुष बढ़ने वाला च्यवनप्राश बेचने में होता है |मंदिर के दान पात्र सबसे अधिक असुरक्षित पुजारी जी पास ही रहता है |किसी अभिनेता को किसी पार्टी ने ज़रा सा मुँह क्या लगाया, बस शुरू हो जाता है हर बात पर एक्सपर्ट कमेंट देने | अच्छा है, तुमने ऐसा दोगला काम नहीं किया |सच कह दिया | सच कहने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए |सत्य कहने वाला सत्यकाम जाबालि ब्राह्मण ही हो सकता है |

वैसे आजकल के अभिनेता बड़े समझदार हैं जो केवल फिल्मों के भरोसे ही नहीं रहते, साइड में अपना कोई और धंधा भी करते हैं क्योंकि अभिनय तो ऐसा धंधा है जो जब तक चले तो ठीक है अन्यथा इसमें कौन सी पेंशन है | और फिर यदि सुपर स्टार का भूत दिमाग में घुस जाए तो छोटा-मोटा रोल करते शर्म आती है और बड़ा रोल मिलता नहीं |सब की किस्मत तो अमिताभ बच्चन जैसी होती नहीं कि साठ के हुए तो वैसा और सत्तर के हुए तो वैसा ही रोल मिल जाए | पहले वाले अभिनेताओं जैसे मोतीलाल, हंगल आदि की अंतिम दिनों में हालत बड़ी पतली रही |हमने देखा है- किसी ज़माने के जमने वाले और अब अस्सी साल के हो चुके कवियों को अपने पोते की उम्र के लोकप्रिय कवि को आदरणीय कह कर कविसम्मेलन माँगते हुए |

वैसे यदि बुरा न मानो तो एक बात पूछें ? क्या वास्तव में ही तुम हकलाते हो या शुरू-शुरू में नर्वस होने के कारण हकलाते थे और अब इसे अपना स्टाइल बना लिया ?

बस, एक सलाह देना चाहते हैं कि कहीं खुद को खुदा समझकर रात को, नशे में, तेज़ गाड़ी मत चलाना क्योंकि हमेशा सलमान वाला संयोग हो, न हो |

























Dec 2, 2015

एक सच्ची और वैश्विक क्षमावणी की आवश्यकता

  एक सच्ची और वैश्विक क्षमावणी की आवश्यकता

आजकल भारत में असहिष्णुता पर चर्चा चल रही है | उसके आयामों पर उड़ती नज़र डालते हुए निकट विगत  के योरप और अमरीका के कुछ उदहारण देते हुए बात की शुरुआत की थी कि छोटी-छोटी छेड़खानियाँ भी किसी समाज को आहत कर व्यर्थ में उकसाकर शांति के माहौल को बिगाड़ सकती हैं |इसलिए इनसे बचा जाना चाहिए |

लेकिन ज्ञात मानव-इतिहास इतना ही तो नहीं है | इस तरह की घटनाओं के पीछे दो हजार वर्ष से भी पुराना इतिहास है इस दुनिया का जिसमें धर्म के नाम पर किए गए युद्धों (ज़िहादों और क्रूसेडों )के रक्तपात की ऊपर से सूख चुकी पपड़ियों के नीचे अभी भी ताज़ा घाव हैं जिनसे विभिन्न समूहों,  समाजों, धर्मों  की जातीय स्मृतियों में रक्त स्राव हो रहा है | यद्यपि गत कुछ सौ वर्षों में जिहाद और क्रूसेड अपने मूल रूप में  दिखाई देने बंद से हो गए और विगत सदी के मध्य में उपनिवेशवाद का खात्मा भी  शुरू हो चुका था फिर भी धर्म के नाम पर न सही,किसी और प्रतीक यथा विभाजन,राष्ट्र, शक्ति संतुलन,लोकतंत्र, विश्व शांति के नाम पर जर्मनी,चीन, वियतनाम, बंगलादेश, कम्बोडिया,  लाओस, अफ्रीका,तिमोर आदि में करोड़ों निर्दोष लोगों की हत्याएँ हुईं |

यदि धर्म और हिंसा के संबंधों पर दृष्टि डालें तो प्रेम के धर्म ईसाइयत और भाईचारे वाले इस्लाम का इतिहास हत्या, लूट, बलात्कार, बलात धर्मान्तरण का क्रमशः दो हजार और डेढ़ हजार साल का  है | इस्लाम के नाम पर जिहाद और अन्य देशों पर कब्ज़ा करने के लिए आक्रमणों में योरप, अफ्रीका, एशिया महाद्वीपों में २७ करोड़ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा जिनमें १२ करोड़ अफ्रीकन, ६ करोड़ ईसाई, ८ करोड़ हिन्दू, १ करोड़ बौद्ध शामिल हैं |वैसे इसमें विभाजन के समय पाकिस्तान में मारे गए हिन्दू, १९७०-७१ में बंगला देश में मारे गए बंगलादेशी मुसलमानों और हिन्दुओं तथा इस्लामी देशों में मारे गए, अत्याचार करके धर्मान्तरण किए गए लोगों का हिसाब नहीं है | इसके अतिरिक्त जलाए गए पुस्तकालय, तोड़े गए धार्मिक स्थल, लूटपाट और बलात्कार की भी अनगिनत घटनाएँ हुईं |आज भी विभिन्न देश शिया और सुन्नी के नाम पर लड़ रहे हैं |आज इसका नवीन संस्करण आइएस है जो निष्काम भाव और  समान रूप से सब को आतंकित कर रहा है और लपेटे में लिए हुए है |

इसी तरह ईसाइयत के नाम पर क्रूसेड और दुनिया के गैर ईसाइयों की आत्माओं का उद्धार करने के लिए योरप, आस्ट्रेलिया,दोनों अमरीका, एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश बनाने के नाम पर २५ करोड़ लोगों  की हत्याएं दर्ज हैं  | इनमें योरप में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए हुई हत्याएं, चुड़ैल बताकर मारी गई लाखों महिलाओं की हत्या, अफ्रीका, दोनों अमरिकाओं में किए अमानवीय कर्म और मूल निवासियों के विनाश भी शामिल हैं | भारत में भी छल-छद्म और डर पैदा करके करवाया गया धर्मान्तरण का भी एक क्रूर इतिहास रहा है |हो सकता है संसार के कुछ अन्य छोटे धर्मों ने भी कुछ ऐसे काम किए हों लेकिन वे इनके सामने किसी गिनती में नहीं आते |

भारत ने एक हजार वर्षों तक इस्लाम और ईसाई दोनों धर्मों के तथाकथित प्रेम और भाईचारे का, जो केवल उनके अपने धर्म तक ही सीमित रहे, मज़ा लिया है और वे सारे सुख उसकी जातीय स्मृतियों में जिंदा हैं जिनमें कहीं कुछ अतिशयोक्ति भी हो सकती हैं लेकिन वे अधिकतर सत्य हैं | सारे देश में टूटे धार्मिक स्थल, आस्था केंद्र, मूर्तियाँ इस सत्य के प्रमाण हैं | विजित जाति विजेता के प्रति अपनी घृणा और पीड़ा को व्यक्त नहीं कर सकती तो वह उसे सांस्कृतिक अलगाव,उपेक्षा को कथाओं, गीतों, साहित्य में संजोती है  | इस पर भी यह इस देश की सहिष्णुता ही है कि यह गृह युद्धों से बचा रहा है |और आज भी दुनिया में एक अजूबे की तरह सभी  धर्मों और सम्प्रदायों को अपने में समाहित किए हुए है |उत्तर पूर्व में ईसाई धर्म का सुनियोजित प्रचार और प्रसार भी इस देश की एकता को नष्ट करने का षड्यंत्र था जिसे उनके जाने के बाद भी सरकारों ने नज़र अंदाज़ किया  |

पराधीनता के समय की एकता, लोकतंत्र आने के बाद सत्ता के सपनों के चक्कर में वोट बैंक की राजनीति में बदल कर देश की एकता के लिए खतरा बन गई | होना यह चाहिए था कि एक समान कानून, शिक्षा का एक समान पाठ्यक्रम,  तुष्टीकरण या पुष्टीकरण से परे एक निष्पक्ष और सच्चा इतिहास इस देश  को दिया जाना चाहिए था जिससे अब तक हम एक संगठित राष्ट्र बन गए होते |राष्ट्र बनने के लिए सब को अपनी छोटी-बड़ी  अस्मिताओं और कुंठाओं, भूतपूर्व विजेता और विजित के मनोविज्ञानों  का विसर्जन करना ज़रूरी भी होता है लेकिन यह किसी एक वर्ग की नहीं वरन समस्त राष्ट्र की बात है |

सुदर्शन की एक कहनी  है- हार की जीत जिसमें  बाबा भारती  विकलांग का वेश बनाकर धोखे से घोड़ा ले जाने वाले खड्ग सिंह से कहते हैं - किसी को यह घटना मत बताना अन्यथा लोग किसी विकलांग की सहायता नहीं करेंगे |या रावण के साधु वेश में सीता हरण से अच्छे साधु भी शंका के घेरे में आ जाते हैं |आज आतंकवादी वास्तव में इस्लाम के सच्चे अनुयायी हैं या नहीं लेकिन वे आड़ तो इस्लाम की लिए हुए  हैं और उनका यह रूप विश्व में सरलता से इस्लाम को सन्देह के घेरे में ले लेता है |इसलिए इस समय इस्लाम को अपनी विश्वनीयता कायम रखने के लिए खुद को हर तरह से इससे अलग करना होगा, और इससे पीड़ित सभी जनों के साथ खड़ा होना होगा |यह उसके और शेष संसार के लिए भी उचित है |क्योंकि यह आइएस किसी न किसी रूप में इस्लाम के विरुद्ध भी है |धर्म की आड़ में इस पर विश्वास करना भारत ही नहीं ,कहीं के भी मुसलमान के लिए भी अनर्थकारी ही है |

भारत के सभी ईसाई, मुसलमान अपने इतिहास, रक्त, परिवेश, रहन-सहन, खान-पान, बोली-भाषा और डी.एन.ए. से भारतीय ही हैं |वे किसी भी तरह से वेटिकन के गोरे ईसाई तंत्र और अरब देशों के नज़दीक नहीं हैं | वे समस्त विश्व में भारतीय के रूप में ही पहचाने जाते हैं |अपने धार्मिक और राजनीतिक स्वार्थ के लिए भले ही उन्हें धर्म के नाम पर जोड़ा जाता हो लेकिन वेटिकन और अरब के मन में वे आज भी दोयम दर्ज़े के ईसाई और दोयम दर्जे  के मुसलमान हैं | उनके हित, भविष्य और भाग्य भारत के साथ जुड़े हैं | ईश्वर और खुदा सब जगह हैं इसलिए वे योरप या अरब में ही नहीं बल्कि यहाँ भी उनके साथ हैं |

भारत का धर्म या किसी भी अन्य कारण से, कहीं भी नर-संहार का इतिहास नहीं रहा है |कुछ तथाकथित प्रगतिवादी इतिहासकारों ने इस पर हुए अत्याचारों को कम करके बताया है, मुसलमान शासकों के अपवाद स्वरुप हिन्दू-प्रेम को और अंग्रेजों के अपने स्वार्थ के लिए किए गए कार्यों को भारत की एकता और विकास का नाम दिया है और भारत में हुए छोटे मोटे धार्मिक संघर्षों को क्रूसेड और जिहाद की तरह चित्रित किया है |इससे भी भारतीय मन आहत होता है और निरंतर ऐसी पीड़ा, हो सकता है शाब्दिक असहिष्णुता में प्रकट हो रही है |  या शताब्दियों से आहत जन को एक शाब्दिक मरहम लगती हो |

भारत में स्वतंत्रता के बाद वोट या तथाकथित अस्मिता या लोकतंत्र के नाम पर इसे तरह-तरह से खंडित करने के प्रयत्न किए गए हैं |अब तो अल्पसंख्यक के नाम पर ईसाई , मुसलमान,पारसी,यहूदी ही नहीं,भारत मूल के चिन्तनों और दर्शनों जैसे बौद्ध, जैन, सिख आदि को भी अलग सा कर दिया है |इसीलिए जैन और सिख भी अब अपने को धर्म की दृष्टि से अलग मानने लगे हैं |यह कोई अच्छा लक्षण नहीं है |भले ही इस देश में किसी एक राजा का शासन नहीं रहा लेकिन संस्कृति, आस्था, इतिहास, दर्शन और डी.एन.ए. के हिसाब से भारत एक रहा है और आज भी एक है |

धर्म और नस्ल के नाम पर विश्व में किए गए नर संहारों के बावजूद किसी में भी इसके लिए पछतावा दिखाई नहीं देता | युद्ध अपराधों के लिए आज भी बहुत से देशों के पीड़ित जन क्षमा की अपेक्षा रखते हैं लेकिन  किसी भी देश, धर्म या समाज ने क्षमा नहीं माँगी है |क्या अत्याचारों, नरसंहारों, अपराधों और लूटपाट के ज़िम्मेदारों को उनके अपने धर्म इतनी भी उदारता, करुणा और संवेदना प्रदान नहीं करते कि वे अपने कुकर्मों के लिए सच्चे दिल से क्षमा माँगें, बिना किसी किन्तु-परन्तु के और इस दुनिया को प्रेमपूर्ण बनाने की कोशिश करें | क्या यह आवश्यक नहीं है ?

जहां तक ईश्वर की बात है तो किसी भी धर्म के मसीहा ने यह नहीं कहा है कि ईश्वर अनेक हैं और वह अपनी संतानों में भेदभाव करता है |यह अँधेरा तो उनके स्वार्थी अनुयायियों का फैलाया हुआ है | क्या वे इतनी विशाल हृदयता,संवेदनशीलता और ईश्वर में सच्ची आस्था दिखाएँगे ? यह पीड़ितों से अधिक पीड़कों के लिए भी उतना ही ज़रूरी है |

रामचरित के सुन्दरकाण्ड में अपनी शरण आए विभीषण से राम,राम जो ईश्वर हैं, कहते हैं-
जों नर होइ चराचर द्रोही
आवै सभय सरन तकि मोही
तजि मद मोह कपट छल नाना
करउँ सद्य तेहि साधु समाना

सच्चे और निर्विकार मन से 'उसके' चरणों में समर्पण करके देखिए तो ?

क्या जलवायु परिवर्तन की तरह संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वावधान में कोई ऐसा सम्मेलन आयोजित करने पर विचार किया जा सकता है जिसमें सभी राष्ट्र और धर्म उनके या उनके पूर्वजों के धर्म या खुदा या गॉड के नाम पर किए गए अपराधों के लिए सच्चे दिल से क्षमा माँग कर इस दुनिया की मानसिक और वैचारिक जलवायु स्वच्छ बनाने की एक ईमानदार कोशिश करने की सोचेंगे ?









Dec 1, 2015

इस असहिष्णु समय में

 इस असहिष्णु समय में

एक तरफ विश्व के सभी श्रेष्ठ मस्तिष्क और श्रेष्ठ राष्ट्र इस संसार के कल्याण के लिए हलकान हैं | आजकल विश्व-सरकार संयुक्त राष्ट्र  संघ, विभिन्न देशों के तरह-तरह के एन.जी.ओ. और सभी देशों की सरकारों द्वारा पशु-पक्षियों, पर्यावरण से लेकर समस्त विश्व की भूख, गरीबी, कुछ महामारियों से मुक्त करने, पेय जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानवीय गरिमा, बच्चों- महिलाओं के कल्याण तथा गरिमा के लिए कार्यक्रम और अभियान चलाए जा रहे हैं |विश्व शांति के लिए बड़ी भाग-दौड़ हो रही है | धर्म, संस्कृतियों, भाषाओँ, दुर्लभ पशु पक्षियों, वनस्पतियों  और विश्व धरोहरों को बचाने और उनके संरक्षण का हल्ला है | लगता है बस, यही वह सतयुग है जिसका कलयुग से पीड़ित इस धरती को इंतज़ार था |

और इसके साथ-साथ ही विश्व के सभी संसाधनों पर कब्ज़ा करने, उनका अंतिम बूँद तक दोहन करने , मुनाफा कमाने के लिए किसी को भी कुछ भी बेचने के लिए घेरने ,किसी को भी बिना कुछ सोचे-समझे घातक हथियार बेचने , अमानक दवाएँ और उनके अनधिकृत परीक्षण, एक दूसरे के यहाँ षड्यंत्र करवाने, दंगे भड़काने, सरकारें गिराने-बनवाने, नशीली दवाओं के व्यापार में सरकारों के शामिल होने, माफिया से सांठ-गाँठ, अभिव्यक्ति के नाम पर किसी भी देश, धर्म, सभ्यता, संस्कृति, नस्ल आदि के अपमान को बढ़ावा देने आदि जैसे जाने कितने कुकर्म भी चलते रहे हैं |आज कल जिस तरह धार्मिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं उसी अनुपात में अधर्म का प्रचार भी हो रहा है |मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की |कहीं यह दवा के नाम पर मर्ज़ बढाकर फिर कोई नई दवा का धंधा करने का षड्तंत्र तो नहीं है ?

आज विश्व में असुरक्षा , भय और असहिष्णुता का जो वातावरण बना हुआ है उसे मात्र धर्म की पृष्ठभूमि से जोड़ कर देखा जा रहा है लेकिन यह समस्या का अत्यंत सरलीकरण है | इसके पीछे स्वार्थ, अहंकार, लालच, घृणा का एक लम्बा इतिहास रहा है |धर्म और नस्ल की आड़ में समस्त विश्व में युद्धों और उपनिवेशवाद का अमानवीय खेल खेला जाता रहा है | यदि यह मात्र संसाधनों का ही मामला होता तो दुनिया से उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद बात सुलझ जाती |वैसे राजा या सत्ता या शासक पार्टी बदलने से सामान्य जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता यदि उसके सहज जीवन और विश्वासों और सुख-दुखों से छेड़छाड़ न की जाए |उसे तो कर देना है और इस या उस माननीय को सम्मान देना है |लेकिन इसके पीछे विजेताओं के अहंकार और श्रेष्ठता के दंभ में विजित देशों की नस्लों और वहाँ  के निवासियों, उनके धर्म, आत्मसम्मान, आस्था केन्द्रों,भाषा, संस्कृति और सभ्यता को अपमानित किए जाने की जातीय स्मृतियाँ भी हैं |

जब ऐसा होता है तो विजित समाज अपने बचाव और सुरक्षा के लिए कछुए की तरह कट्टरता और अलगाव के एक खोल में घुस जाता है |बस, इसी खोल में वैचारिक अँधेरा, अन्धानुकरण, घृणा, भ्रम, शंकाएं पनपते हैं जिनका लाभ विजेता और विजित समाज के स्वार्थी नायक उठाते हैं | दिन पर दिन यह खाई और बढ़ती जाती है क्योंकि सब के अहंकार और स्वार्थ विगत, आगत, अनागत को छोड़ने के लिए विकुंठ नहीं हो पाते |

कुछ दिन पहले फ़्रांस में आतंकवादी घटना हुई जिसे किसी भी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता |इसका विरोध और प्रतिरोध होना चाहिए क्योंकि आग किसी धर्म, जाति, नस्ल, देश की सीमा नहीं मानती |लेकिन इस आग में अधिकतर वे जलते हैं जो न तो यह आग लगवाते है, न ही लगाते हैं |वे किसी से घृणा नहीं करते, वे तो सबके साथ प्रेम से रहना चाहते हैं |

आज संचार के साधनों के कारण एक छोटी सी भी घटना की खबर तत्काल सही या तोड़मरोड़ कर दुनिया में पहुँच जाती है और उसकी अच्छी-बुरी क्रिया-प्रतिक्रिया होने लगती है |इसलिए विभिन्न  समाजों, सरकारों, व्यक्तियों को अपने व्यवहार, कर्म और वाणी में सतर्क, सार्थक और सावधान और संतुलित रहना चाहिए लेकिन ऐसा कम देखने को मिलता है | अपने स्वार्थ , यश की चाहना, और राजनीतिक लाभ के लिए या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी बोल, कर या लिख देना उचित नहीं है |

पिछले कुछ समय के एक दो उदाहरण देखें जो न तो उचित थे, न आवश्यक, बल्कि किसी न किसी रूप में समाज में शंका, भय, वैमनष्य और भ्रम फ़ैलाने वाले थे |

अमरीका के राज्य डालास के गार्लैंड में रविवार को एक कार्टून प्रतियोगिता के दौरान दो बंदूकधारियों ने कार्यक्रम स्थल के निजी सुरक्षा गार्ड पर हमला कर दिया |पुलिस से मुठभेड़ में दोनों बंदूकधारी मारे गए |यहाँ पैगंबर मोहम्मद पर कार्टून बनाने की विवादित प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। गौरतलब है कि इस्लाम की आलोचना करने वाले न्यू यॉर्क स्थित रूढि़वादी संगठन ने इस प्रतियोगिता का आयोजन किया था। पैगंबर मोहम्मद का 'बेस्ट कार्टून' बनाने वाले के लिए 10 हजार अमेरिकी डॉलर की पुरस्कार राशि दिए जाने की घोषणा भी की गई थी। 

यह प्रतियोगिता कला,संस्कृति और किस मानवीय गुण के विकास के लिए आवश्यक थी ? क्या इससे बचा नहीं जा सकता था ?क्या ऐसी प्रतियोगिताओं से बचा नहीं जाना चाहिए ?


चार्ली हैब्दो का यह कार्टून कौन सी कलात्मक अभिव्यक्ति है, कौन सी मानवीय संवेदना है  ? इससे किस मानवीय गरिमा का सम्मान या समस्या का समाधान होता है ?
 
चार्ली हेब्‍दो ने लिखा- ईसाई पानी पर चलते हैं, मुस्लिम बच्चे डूब जाते हैं; बवाल

ईसाई पानी पर चलते हैं, मुस्लिम बच्चे डूब जाते हैं  

(शरणार्थी और पलायन की समस्या से जूझ रहे सीरिया के तीन साल के एलन का शव पिछले दिनों तुर्की में समुद्र किनारे पाया गया था। )
अमरीका के फ्लोरिडा के एक चर्च के एक पेस्टर (धार्मिक अधिकारी) टेरी जोन्स ने ९/११ की घटना की बरसी मनाने के लिए २९९८ कुरान की प्रतियाँ केरोसिन डाल कर जलाने के लिए ले जाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया |क्या किसी धार्मिक स्थल से संबंधित व्यक्ति से ऐसी आशा की जा सकती है कि वह ऐसा सोचे या करे ? ऐसी सोच से किस धर्म का हित हो सकता है ? और ऐसे व्यक्ति अपने धर्म के लोगों को कौनसी राह दिखाएँगे ? 
अपने यहाँ भी पिछले कुछ दिनों में किसी धर्म विशेष को लेकर अतिउत्साही लोगों द्वारा कुछ ऐसे बयान  दिए गए जो सामाजिक सौहार्द के लिए घातक थे | यदि इतिहास पढ़ा जाए तो सभी समयों में, सभी धर्मों के अनुयायियों ने अपने-अपने अहंकार में बहुत से अनुचित कार्य किए हैं |लेकिन क्या अब उन्हें आधार बना कर लड़ा-मरा जाए या उन भूलों को सुधार कर इस दुनिया-जहान को रहने लायक और सुख-शांति पूर्ण बनाया जाए ? 

यह समय सबके लिए मन, कर्म, वचन से समझदारी अपनाते हुए सहयोग, प्रेम, सहिष्णुता से रहने का है |दुःख तो वैसे भी दुनिया में बहुत हैं , उन्हें और क्यों बढाया जाए ? लेकिन यह सब एकतरफा नहीं हो सकता |ताली एक हाथ से नहीं बजती लेकिन आग लगाने के लिए तो एक हाथ ही काफी है |

अहंकार बीच में आ जाता है | सवाल यह है कि पहल कौन करे ?अपनी चार पंक्तियाँ उद्धृत करना चाहता हूँ-
ख़ुद से ज़रा निकल कर देखो
साथ हमारे चल कर देखो
वे रूठे हैं मन जाएंगे 
तुम ही ज़रा पहल कर देखो |