Jun 23, 2022

गुजरात ने फिर लाज़वाब कर दिया


गुजरात ने फिर लाज़वाब कर दिया 


तोताराम ने आज फिर हमें सोचने के लिए मज़बूर कर दिया, बोला- मास्टर, गुजरात ने फिर लाज़वाब कर दिया.

हमने पूछा- अब क्या हो गया ? क्या सबरमती आश्रम के आसपास दारू के साथ-साथ कोई मांसाहारी होटल खोल दिया क्या ?

बोला- नहीं, अबकी बार तो गुजरात की एक लड़की ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है.

हमने कहा- कौन, वही तो नहीं जो दस-पंद्रह दिन से खुद से शादी करने का तमाशा करके फ्री में मीडिया में चर्चित हो रही है. क्या नाम है उसका- क्षमा बिंदु.

बोला- हाँ, वही. परसों उसने शादी कर ली है. खुद से शादी करने वाली यह भारत की पहली लड़की बन गई है. 

हमने कहा- ऐसे ऊटपटांग काम विदेशों में तो कई हुए हैं. एंद्रियाना, लीमा, फेंताशियो बर्रीनो.क्रिस गलेरा, लौरा मेसी आदि ने स्व-विवाह किये हैं जिसे अंग्रेजी में 'सोलोगेमी' कहते हैं. 

गुजरात हमेशा से ही वाइब्रेंट रहा है. यह लड़की भी तो उसी मिट्टी की बनी है जिस मिट्टी के मोदी जी बने हैं. सबसे पहले डिजिटल कैमरा और ईमेल भी भारत में गुजरात के मोदी जी ही लाये थे ना.  लड़की ने बहुत फायदे का सौदा किया. खर्चा कोई नहीं. ज़िन्दगी भर सिंगल बेड से ही काम चल जाएगा. न दो का खाना बनाना और न बाल बच्चों का झंझट. सिंगल टिकट में सिंगल सीटेड रूम में ही हनीमून मन जायेगी. 

बोला- तभी तो कहता हूँ गुजरात ने फिर लाज़वाब कर दिया. 

हमने कहा- वैसे यदि शैव दर्शन के हिसाब से देखा जाए तो सभी जीवों में नर और मादा दोनों के अंश होते हैं. तभी शिव 'अर्द्ध नारीश्वर' कहलाते हैं. वैसे उनके स्वविवाह का कोई उल्लेख किसी पुराण में नहीं मिलता. लेकिन यह भी सच है बिना 'आत्ममुग्धता' के ऐसा होना बहुत कठिन है कि कोई नई नई शादी करके लाये और उसी दिन लीन हो जाए समाधि में.    

बोला- कोई भी महान काम करने के लिए ऐसी ही आत्मनिर्भरता होना बहुत ज़रूरी है. बड़े-बड़े नेता और महापुरुष भी एक प्रकार से खुद से ही विवाह करते हैं. कहीं ध्यान भटकने का प्रश्न ही नहीं. जितने भी महान पुरुष हुए हैं वे या तो अविवाहित रहे या रंडवे होकर कुछ कर सके या बुद्ध की तरह महाभिनिष्क्रमण कर गए. यही सच्ची आत्मनिर्भरता और महानता है. सब झंझट से फ्री. 

हमने कहा- इसे मनोविज्ञान में 'आत्ममुग्धता-ग्रंथि'  कहते हैं. ऐसे लोग नार्सीसस की तरह पानी में खुद की परछाईं को देखते-देखते ही मर जाते हैं.

बोला- इसमें सबसे मज़े की बात तो यह है कि हर समय बिना कुछ खर्चा किये अपने साथी को कुछ न कुछ गिफ्ट देते रहो जैसे कृति सेनन, नोरा फतेही, शहीद कपूर आदि ने खुद को महँगी कार गिफ्ट कर दी. माल घर का घर में. गिफ्ट का मज़ा फ्री में. एक अमरीकन ने तो खुद की कार से ही शादी कर ली. वैसे मास्टर, बिना कोई खर्च किये चर्चित होने का यह सबसे सस्ता तरीका है लेकिन इससे हिंदुत्व जो पहले से ही खतरे में है अब और भी खतरे में पड़ जाएगा. 

हमने कहा- तोताराम, अब तो अपनी ही सरकार है. यदि अब भी हिंदुत्व खतरे  में है तो फिर सुरक्षित कब होगा ?

बोला- संख्या. हिन्दुओं की जनसंख्या का क्या होगा ? सभी शुभचिंतक चाहे वे साक्षी महाराज हों, उमा भारती हों, साध्वी ऋतंभरा हो, प्रज्ञा ठाकुर हों, तोगड़िया या नरसिंहानन्द यती हों, गृहस्थी रूपी बिल में कोई हाथ नहीं डालता सब मन्त्र पढ़ते हैं. बच्चे कोई पैदा नहीं करता, सारी जिम्मेदारी बेचारी हिन्दू जनता की. अब यह आत्मविवाह ! ऊपर से मुसलमानों का लव जिहाद. 

हमने कहा- चिंता मत कर. यह तमाशा करना था सो कर लिया. अब जब यह दो-चार साल बाद वास्तव में शादी में करेगी तब कोई मीडिया वाला खबर लेने नहीं जाएगा. खबर दो सिर वाले बछड़े की आती है. सामान्य तो समान्य बने रहते हैं. 

बोला- दुनिया सामान्यों से ही चलती है, असामान्यों और उनके तमाशों से नहीं. 



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Jun 20, 2022

भाई साहब, बज गया


भाई साहब, बज गया 


हमारे अनुमान से कुछ पहले ही दरवाजे पर तोताराम का गर्वपूर्ण, हर्ष विगलित और आनंद से गदगद स्वर गूंजने लगा- भाई साहब, बधाई हो, बज गया. 

दरवाजा खोलने के लिए चलते हुए ही हमने उत्तर दिया- तुझे अब सुना है ? यह तो पिछले पांच-सात बरसों से बजता ही आ रहा है. अब तो इसकी तुमुल ध्वनि ने यह हाल कर दिया है कि इसके अलावा और कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा है. 

दरवाजे के अन्दर घुसते हुए तोताराम ने कहा- मैं पिछले सात-आठ साल से विश्व में भारत के जयघोष के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ. वह तो कोई नई बात रह ही नहीं गई है. दुनिया चमत्कृत है भारत की सर्वतोमुखी प्रतिभा से. पिछले दिनों तो जिस शान से जापान के क्वाड सम्मेलन में मोदी जी के रूप में भारत ने विश्व गुरु बनकर सबकी अगुआई की उसके बाद तो कोई संदेह रह ही नहीं जाता. 

हमने कहा- कोरोना और सरकार की नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था, रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा और सप्म्प्रदायिक सद्भाव का बाजा भी बज ही रहा है. 

बोला- कभी कुछ अच्छा भी देख लिया कर. हर समय नकारात्मक समाचारों पर ही निगाह गड़ाए रहता है. 

हमने पूछा- तो बताता क्यों नहीं कि आज किसका बाजा बजने का शुभ समाचार लाया है ?

बोला- बाजा नहीं, डंका बज गया. 

हमने कहा- बजने का क्या है, बजते ही रहते हैं. किसी कमजोर और भले आदमी के सिर पर जूता बजता रहता है,  अधिकतर मेहनत-मजदूरी करने वालों के बारह बजे हुए हैं. गैस का सिलेंडर हजार से ऊपर हो गया. आटा तीस-पैंतीस और दूध पचास रुपए. सरकार का खजाना और जी एस टी की वसूली बढ़ रही है, मंदिरों और मूर्तियों का बजट बढ़ रहा है. रैलियाँ और शोभायात्राएं भव्य होती जा रही हैं.  सरकारों का अभिमान और मनमानी ठोस हो रहे हैं और जनता की हालत पतली. 

बोला- मेरा इन सामान्य बातों से कोई लेना देना नहीं है. मैं तो शुद्ध सांस्कृतिक और गौरववर्द्धक समाचार लाया हूँ. आज दुनिया में हिंदी का डंका बज गया है. 

हमने कहा- अब हिंदी का डंका दुनिया में ही बजेगा. देश में तो हिंदी का बैंड बज रहा है. कोई औकात ही नहीं रह गई है. उत्तर प्रदेश में दसवीं बारहवीं में सबसे ज्यादा बच्चे हिंदी में ही फेल हो रहे हैं. अंग्रेजी और मैथ्स से भी ज्यादा.

वैसे हिंदी के इस डंके का समाचार हमें कल ही मिल गया था. हमारे एक मित्र न्यूयार्क में रहते हैं. उनका घर संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय से बहुत दूर नहीं है. जैसे ही भारतीय राजदूत ने अंग्रेजी में यह सूचना दी- 'अब संयक्त राष्ट्र संघ में सभी सूचनाएं अनुवाद के माध्यम से हिंदी में भी उपलब्ध होंगी' तो उन्होंने वीडियो बनाकर हमें भेज दिया. 

बोला- तो तूने मुझे सूचना क्यों नहीं दी ?

हमने कहा- हमें तो इसमें कोई बहुत बड़ी उपलब्धि लगी नहीं जो तुझे रात को ही सूचना देते. 

बोला- यह क्या कोई छोटी उपलब्धि है. जो साठ साल में नहीं हुआ वह आठ साल में कर दिखाया. यदि तू कहे तो कल ही 'साठ साल बनाम आठ साल : एक उपलब्धि यात्रा' का आयोजन कर लिया जाए.

हमने कहा- ये नाटक उनके लिए छोड़ दे जिन्हें गर्व, आस्था और अस्मिता क धंधा करना है. हम तो तुझे हिंदी के इस डंके का सच बताना चाहते हैं. संयुक्त राष्ट्रसंघ का सब काम मूल रूप से इंग्लिश और फ्रेंच में होता है. जिन देशों जैसे रूस, चीन, स्पेन, जर्मनी, अरब आदि देशों ने अनुवाद का सारा खर्चा देकर अपनी-अपनी भाषाओं को 'संयुक्त राष्ट्रसंघ की अनुवाद के लिए मान्य भाषाओं की सूची' में डलवा रखा है. दक्षिण कोरिया ने भी शायद ऐसा ही कुछ किया था. अब भारत ने भी कुछ ले-देकर हिंदी को इस सूची में डलवाया है. इसके साथ ही उर्दू और बांग्ला को भी यह दर्ज़ा दिया गया है. यदि कोई पैसा खर्च करने वाला हो तो अपनी शेखावाटी की बोली तक को संयुक्त राष्ट्रसंघ में घुसाया जा सकता है.

बोला- इस उपलब्धि का मजाक उड़ाकर  क्या होगा. प्रतीकात्मकता का भी महत्त्व होता है. आज सूची में शामिल  हुई है, कल को लोग सीखने भी लगेंगे.

हमने कहा- जो भाषा काम की होगी उसे तो आदमी लाख पापड़ बेल कर भी सीखेगा. इसके बाद जो सहजता और प्रेम से पेश आती है उस भाषा को भी आपका प्यार मिलने लग जाता है. पहले प्रेमपूर्वक अपने देश के लोगों को तो उनकी मातृभाषा और फिर हिंदी से जोड़ो. 

आज भी मैकॉले को दोष देकर नहीं बचा जा सकता. आज भी क्यों बिना किसी सरकार और संस्थान के प्रयत्नों और प्रेरणा के लोग गाँव-गाँव में अंग्रेजी सीखने के लिए पिले पड़े हैं. 

समस्या का कारण जानो तो फिर निराकरण भी हो जाएगा.  


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Jun 17, 2022

अमिताभ बच्चन फाल्स बनाम रैदास का कठौता


अमिताभ बच्चन फाल्स  बनाम रैदास का कठौता 


आज तोताराम ने आते ही इंग्लिश झाड़ी जैसे कि भारत में 'जय श्रीराम' बोलने वाले विदेश में जाकर 'ओ माई गोड' की टांग तोड़ने लग जाते हैं. विदेश और वह भी गोरों वाला विदेश. नशा होना स्वाभाविक है. गोरे लोगों के तो दर्शन में ही कुछ ख़ास प्रभाव है. हरियाणवी भी 'यस, नो' करने लगता है. जैसे कि गुजरात में पहुंचते ही अच्छा भला बोरिस जॉनसन बोरिया बिस्तर लेकर जेसीबी पर चढ़ जाता है. 

बोला- मास्टर, डू यू नो अमिताभ बच्चन फाल्स ?

हमने कहा- राम-कृष्ण तो आज तक भी 'नायक' से आगे नहीं बढ़ पाए लेकिन ये !  भले ही अमित जी अपने मीडिया मनेजमेंट के बल पर अपने को 'सहस्राब्दि का महानायक' प्रचारित करवा लें लेकिन हैं तो मनुष्य ही. बुढ़ापे का असर तो शेर पर भी पड़ता है. मोदी जी हालांकि योग, प्राणायाम, संयमित आहार-विहार रखते हैं, ब्रह्मचारी भी हैं लेकिन उम्र का प्रभाव तो उन पर भी पड़ा कि नहीं ? दाढ़ी काली से सफ़ेद हुई या नहीं ? बाल पहले जितने घने कहाँ रहे ? सो 'अमिताभ बच्चन फाल्स' तो कोई आश्चर्य की बात नहीं.

एक बार एक मंच पर भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा उठते समय गिर पड़े थे. मोदी जी भी बनारस में सीढियां चढ़ते हुए गिरते-गिरते बचे थे. गड़करी जी भी एक बार मंच पर गिर पड़े थे. 

बोला- लेकिन....

हमने कहा- लेकिन-वेकिन कुछ नहीं. यह स्वाभाविक है. ठीक है अमिताभ अपने को बहुत मेंटेन करके रखते हैं. फिर भी कोई बच्चे थोड़े हैं. हमसे तीन महिने ही तो छोटे हैं. एक बार हम भी दीवार का सहारा लिए बिना पायजामा पहनने लगे तो गिर पड़े थे. उत्थान-पतन तो जीवन का नियम है. बड़े-बड़े संत महात्मा फाल्स. विश्वामित्र मेनका के चक्कर में फाल्स, इंद्रा अहल्या के चक्कर में फाल्स, सभी किसी न किसी चक्कर में फाल्स. कभी न कभी सब फाल्स. इट्स नेचुरल. सो अमिताभ बच्चन फाल्स तो कोई बात नहीं. कह देंगे, ध्यान रखा करें. भले ही बीकानेरी भुजिया खाते हैं, कोकाकोला पीते हैं और नवरत्न तेल लगाते हैं लेकिन उम्र का असर तो पड़ता ही है. 

तोताराम ने हमारे चरण पकड़ते हुए कहा- प्रभु, शांत. विराम दें अपनी वाणी की इस बुलेट ट्रेन को. बोलना होता है पर्यावरण पर और गाली देने लगता है नेहरू, इंदिरा और राजीव को. बात चल रही होती है यूक्रेन संकट की और बांचने लगता है भारत में शौचालय-क्रांति का इतिहास. मैं बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के बारे में उनके एक फैन द्वारा किये गए एक ट्वीट के बारे में बताना चाहता था जिसमें उस फैन ने बताया है कि सिक्किम में एक 'वाटर फाल्स' अमिताभ बच्चन के नाम से जाना जाता है. इस पर अमिताभ बच्चन ने प्रतिक्रिया देते हुए हैरानी जताई है. 

हमने कहा- तो इसमें क्या बड़ी बात है ? यदि तू सच्चा देशभक्त है और योगी जी की तुझ पर कृपा हो जाए तो सिक्किम का एक छोटा सा फाल्स ही क्या, 'नियाग्रा फाल्स' का नाम बदलवाकर तेरे नाम 'तोताराम' की तर्ज़ पर 'महर्षि शुकदेव प्रपात' रखवा दें. 

बोला- योगी जी तो मुस्लिम नामों को बदलने में रुचि रखते हैं जब कि अमिताभ तो बुद्ध का पर्यायवाची है. और फिर कहाँ योगी जी और कहाँ तोताराम ? ज्यादा उछलकूद करूंगा तो मेरा नाम 'तोता' से 'मच्छर' कर देंगे. 'मच्छर' को संस्कृत में 'मत्सर' कहते हैं. 'मत्सर' पञ्च विकारों में से एक विकार होता है. किसी 'विकार' पर बुलडोज़र चढ़वाना पुण्य और धर्म-रक्षा का काम होता है. सो चढ़वा देंगे बुलडोज़र तो....

वैसे सब काम के आदमी में ही प्रभु के दर्शन करते हैं जैसे एक बार उमा भारती को अटल, आडवानी और वेंकैया में ब्रह्मा,विष्णु और महेश दिखाई दिए थे फिर जैसे ही मोदी जी प्रधानमंत्री बने तो उमा जी को मोदी, अमित शाह और अरुण जेटली में ब्रह्मा, विष्णु, महेश दिखाई देने लगे.

हमने कहा- कोई बात नहीं अनुज, हम यहाँ से एक हजार करोड़ प्रकाश वर्ष दूर की एक आकाश गंगा के सबसे बड़े नक्षत्र का नाम तेरे नाम पर रख देते हैं.

बोला- ऐसे सम्मानों और नामों का कोई अर्थ नहीं होता. ये सब कर्म से कटे, हवा में लटके, कागज़ी लोगों के सम्मान और झूठ-मूठ में एक दूसरे को बधाई देने के चोचले होते हैं. रैदास ने कभी खुद के नाम से पहले 'संत-शिरोमणि' नहीं लिखा. ठाठ से खुद को चमार कहते थे क्योंकि उनके चंगे मन के कठौते में सचमुच की गंगा बहती थी. कभी गंगा ने रैदास को नहीं बुलाया. जब मन होता था तो खुद ही उनके कठौते में चली आती थी. 


 



 


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Jun 14, 2022

दिव्यचक्षु तोताराम

दिव्यचक्षु  तोताराम 


दो दिन से बहुत गरमी है. वैसे पिछले हफ्ते छींटा-छांटी हुई थी लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि उमस और बढ़ गई. वैसे ही जैसे पंजाब में जीत के बाद 'आप' अपने आप को भाजपा का विकल्प समझने लगी है. चूंकि 'चाय' के साथ 'चर्चा' का अनुप्रास जुड़ता है इसलिए सभी 'सेवकों' की तरह हम भी चर्चा करने के लिए मजबूरी में चाय पीते हैं. इसके अतिरिक्त 'चाय' नाम की इस संज्ञा के साथ मोदी जी का ग्लेमर तो है ही.

आज तोताराम ने आते ही एक अप्रत्याशित बात कही, बोला- मास्टर, आज चाय नहीं पीनी है. 

हमने पूछा- तो क्या पिएगा ?

बोला- वही जो फ्रिज में रखा है ? दूध और चीनी मिला बेल का शरबत.

हमने कहा- बात तो तेरी सच है. रात को बेल का बहुत सा शरबत बनाया था. अब भी एक जग बचा हुआ है लेकिन तुझे यहाँ बैठे-बैठे कैसे दिखाई दे गया.

बोला- तुलसी बाबा ने कहा तो है- 

जाकी रही भावना जैसी 

प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

प्रह्लाद भक्त को जब उसके पिता ने पूछा, बता तेरा राम कहाँ है ? तो प्रह्लाद ने उत्तर दिया- खंभ में राम, खड्ग में राम, तुझमें राम, मुझमें राम, जहां देखूँ तहँ राम ही राम. जैसे सावन के अंधे हो हरा ही हरा, हिंदुत्व के आवेश में मस्जिदों में शिव लिंग ही शिव लिंग.

भूखे को ऊंट का मींगणा भी गुलाबजामुन दिखाई देता है. 

हमने कहा- लेकिन तोताराम प्रह्लाद और राम के मामले में एक ऐतिहासिक लोचा है. प्रह्लाद सतयुग में हुए और राम त्रेता में. ऐसे में प्रह्लाद 'बिफोर टाइम' कैसे राम का उल्लेख कर रहे हैं. जैसे महाभारत में इंटरनेट, सतयुग में  प्लास्टिक सर्जरी,  १९८८ में ईमेल और १९८९ में  डिजिटल कैमरा.  साहित्य के हिसाब से यह 'काल दोष' हुआ.  

बोला- ये सब अलौकिक विषय और अलौकिक आत्माओं की बातें हैं. ऐसे विषयों में न तो प्रश्न करना चाहिए और न ही जिज्ञासा. शंका तो करनी ही नहीं चाहिए. 'काल दोष' के चक्कर में क्यों अपना 'काल' बुलाता है. कोई भी सच्चा हिन्दू तेरा सिर फोड़ डालेगा.  तुझे ही मारने की धमकी दी जायेगी. तेरी कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जायेगी बल्कि तुझे थप्पड़ मारने वाले की भावना आहत होने के कारण तेरे विरुद्ध की रिपोर्ट लिखी जाएगी. परिचर्चा में पट्टाभि सीतारामैय्या की पुस्तक की एक कहानी का उदाहरण देने वाले लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रविकांत का मामला पता है ना ? 

हमने कहा- वैसे बरामदे में बैठे-बैठे फ्रिज में बेल का ज्यूस देख सकने की तेरी इस दिव्य दृष्टि के राष्ट्र हित में और भी बहुत से उपयोग हो सकते हैं. इस समय मस्जिदों में नीचे हिन्दू देवताओं की मूर्तियाँ और हिन्दू प्रतीक ढूँढ़ने की तत्काल आवश्यकता है जिससे देश को २०२४ से पहले हिन्दू राष्ट्र और २०३० तक अखंड भारत बनाया जा सके.तू देखकर बता देना और फटाफट फैसला.अनावश्यक खुदाई की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. उपलब्ध बुलडोज़रों का देश में न्यायव्यवस्था बनाए रखने के लिए अन्यत्र उपयोग किया जा सकेगा. 

बोला- तेरी बात तो ठीक है लेकिन सरकार वास्तव में सभी मस्जिदों और अन्य  मुस्लिम स्थानों का झंझट तत्काल निबटाना नहीं चाहती. वह ऐसे मामलों को अनन्त काल तक जिंदा रखना चाहती है क्योंकि लोकतंत्र में चुनाव बार- बार आते रहते हैं और चुनाव जीतने के लिए ऐसे मुद्दे बने रहने चाहियें. अगर किसी दिन भारत के सभी मुसलमान एक साथ कह दें कि हम सबके पूर्वज हिन्दू थे और हम सब अब घर वापसी करके हिन्दू बनना चाहते हैं तो सबसे पहले भागवत जी कहेंगे- 'नहीं. फिर तो हमारे लिए कोई काम ही नहीं रहेगा. यही तो चुनाव जीतने का शर्तिया नुस्खा है'. जैसे कि त्वचा रोग के मरीज का इलाज. रोगी न मरे और न ही ठीक हो. डॉक्टर को निरंतर आजीविका उपलब्ध. किसी मुसलमान नेता को भी यह सुझाव पसंद नहीं आएगा. 

हमने पूछा- तोताराम,  तू चाहे तो इस कला से कमाई भी कर सकता है. विज्ञान और तर्क के इस युग में भी भारत में ज्योतिषियों और तांत्रिकों का एक बड़ा बाज़ार है. अब तो विश्वविद्यालयों में भी भारतीय संस्कृति की आड़ में नितांत अवैज्ञानिक ज्योतिष और तंत्र-मन्त्र के विभाग खुल गए हैं. कल से तेरा भी एक वर्गीकृत विज्ञापन शुरू कर देते हैं-

गोल्ड मेडलिस्ट, तांत्रिक सम्राट, तोताराम. फीस नहीं इनाम लूंगा. किया-कराया, वशीकरण, सौतन, गड़ा धन, प्यार में धोखा.शर्तिया समाधान. 

जब नेता तक ज्योतिषियों की राय से उद्घाटन, शिलान्यास और शपथ-ग्रहण करते हैं तो साधारण लोगों का फंस जाना क्या मुश्किल है. वैज्ञानिक कहे जाने योरप में चर्च और वेटिकन तक में भूत-प्रेत भगाने का कोर्स करवाया जाता है. 

वैसे यह जिज्ञासा तो है तोताराम कि तुझे यह दिव्यदृष्टि कैसे प्राप्त हुई ? 

बोला- कोई दिव्यदृष्टि नहीं है. तुक्का है. गरमी में सभी अपने यहाँ प्रायः बेल का शरबत, ठंडाई आदि बनाते ही हैं.सबको अपने-अपने मतलब की चीज ही दिखाई देती है. जैसे बिल्ली को सपने में छीछड़े ही दिखाई देते हैं वैसे ही  नेता को हर स्थिति में कुर्सी दिखाई देती है अन्यथा भाजपा और उसके शीर्ष नेतृत्त्व को सबसे ज्यादा गन्दी गालियाँ देने वाले हार्दिक पटेल का भाजपा में हार्दिक स्वागत नहीं होता. हार्दिक को भी मोदी जी में देश का सर्वस्वीकार्य नेता दिखाई देने लगा है. बिना किसी जनाधार के बरसों कांग्रेस में मलाई काटने वाले कपिल सिब्बल को सपा में अचानक ऐसा क्या दिखाई दे गया ? सिब्बल को कुर्सी चाहिए और समाजवादी पार्टी को केंद्र सरकार के कानूनी पचड़ों का मुकाबला करने के लिए कोई वकील. जैसे कि गौशाला का चंदा निबटाने के लिए सभी गौसेवकों को कोई ढंग का चार्टर्ड एकाउंटेंट चाहिए भले ही वह बीफ खाता हो. नरेशचन्द्र अग्रवालों और कुलदीप सेंगरों के लिए सब पार्टियों में जगह है.

हर उठाईगीरे और पुलिसमैन को, हर सेठ और पुजारी को एक दूसरे में सदैव खुशबू आती है. 

हमने कहा- लेकिन शिवराज सिंह जी की दृष्टि तो तुझसे भी तेज है.उन्हें तो कल भोपाल में गरीब कल्याण सम्मलेन को संबोधित करते हुए अचानक मोदी जी में एक साथ ही गाँधी, पटेल और सुभाष दिखाई दे गए.

बोला- ठीक है, यह सब उनकी अपनी परिस्थिति के कारण है. पहले अटल अडवानी में लोगों को त्रिदेव दिखे थे, फिर मोदी, जेटली और नायडू में त्रिदेव दिखे और अब शिवराज जी ने तो तीनों को एक ही जगह मोदी जी में  देखकर मामला स्पष्ट ही कर दिया. 'प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका'.

हमने कहा- लेकिन तोताराम क्या इससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की दरिद्रता सिद्ध नहीं होती ?

बोला- कैसे ? 

हमने कहा- ये तीनों ही किसी न किसी रूप में कांग्रेस मूल के हैं. क्या शिवराज सिंह जी को मोदी जी में कहीं भी हेडगेवार जी, गोलवलकर जी, उपाध्याय जी या अटल जी आदि की थोड़ी सी भी झलक दिखाई नहीं दी ? हमें तो इसमें भाजपा और संघ का अपमान लगता है. 

बोला- क्या किया जाए, मजबूरी है. सफल स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने के कारण देश का जनमानस इन्हीं तीन महान पुरुषों से परिचित है. संघ परिवार के लोग तो उस समय सांस्कृतिक विकास करने में लगे हुए थे ना. 

हमने कहा- खैर, यह भक्त और भगवान के बीच का मामला है. भक्ति में बहुत शक्ति होती है. भक्त भगवान् को अपनी भक्ति की शक्ति से विवश कर देता है और फिर भगवान उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं. लोक में प्रचलित भगवान द्वारा अपने भक्त का खेत जोतने की कथा तो तुमने सुनी ही होगी. 

बोला- वैसे मास्टर, और सब तो ठीक है लेकिन शिवराज सिंह जी जिन तीन महापुरुषों को एक साथ मोदी जी में देख रहे हैं उनके सम्मिलित विग्रह के रूप में मोदी जी दिखना भी चाहें तो दाढ़ी, मूंछ और लम्बे केश कहाँ एडजस्ट होंगे ?  गाँधी, पटेल के सिर पर  एक भी केश दिखाई नहीं देता. सुभाष के भी बहुत कम केश हैंऔर दाढ़ी तो एक के भी नहीं है.  

हमने कहा- समझदार लोगों को ज्यादा नहीं सोचना चाहिए. बस,अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए ऐसी ही दिव्य और सकारात्मक दृष्टि बनाकर रखनी चाहिए. इसी को प्रकारांतर से नजीर अकबराबादी ने ऐसे कहा है-

कपड़े किसी के लाल हैं रोटी के वास्ते

लम्बे किसी के बाल है रोटी के वास्ते 

बांधे कोई रुमाल हैं रोटी के वास्ते 

सब कश्फ़ * और कमाल हैं रोटी के वास्ते 

*ईश्वरीय प्रेरणा 

क्या बंसीलाल को इमरजेंसी में और सज्जन कुमार को ८४ के दंगों में कभी कोई गलती दीखी ? 

वैसे यह भी एक शाश्वत सत्य है कि जब किसी के चक्षुओं में इस प्रकार की दिव्यता की मात्रा अधिक हो जाती है तो उसे 'प्रज्ञाचक्षु' कहते हैं. 




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Jun 11, 2022

बस, ५ सितम्बर तक.....

बस, ५ सितम्बर तक..... 


तोताराम आ चुका है, चाय अभी नहीं आई है. लेकिन चाय का आना उसी तरह तय है जैसे ज्ञानवापी में  निकली हर वस्तु शिवलिंग होना. 

वैसे  ज्ञानवापी हमारा विषय नहीं है क्योंकि 'ज्ञान' की 'वापी' से 'ज्ञान का जल' किसे पीना है. न किसी को शिव से मतलब है, न अल्लाह से.सबको घृणा का विष उछालना है. लोकहित के लिए विष पीने वाला कोई नहीं. शिव से तो तार तब जुड़ें जब 'महाठगिनी माया' से अवैध संबंध का सिलसिला टूटे. सबके अपने-अपने एजेंडे हैं. 

हमने कहा- तोताराम,  ५ सितम्बर तक. बस, उसके बाद नहीं. 

बोला- क्या तुझे अपने परलोक गमन का इल्हाम हो गया ? वैसे दिन तो शुभ है. अध्यापक दिवस. 

हमने कहा- हमारा अभी परलोक जाने का कोई इरादा नहीं है. अभी तो २०% बढ़ने वाली पेंशन का आनंद लेना है भले ही पेंशन की औकात 'वृद्धावस्था पेंशन' या 'प्रधानमंत्री अन्नदान योजना' जितनी ही रह गई है. फिर भी एक ठसका तो है ही. बैंक वाले अब भी घूर कर देखते हैं कि आ गए बुड्ढे मुफ्त का माल पेलने. 

बोला- तो फिर यह  'बस, ५ सितम्बर तक' वाला क्या चक्कर है. 

हमने कहा- अब इस 'बरामदा निर्देशक मंडल' की अध्यक्षता का कोई इरादा नहीं है. १ अगस्त २००२ से ३१ अगस्त  २०२२ तक २० वर्ष और पांच टर्म पूरे हो जायेंगे. बहुत हैं पांच टर्म. ५ सितम्बर २०२२ तक बढ़ी हुई पेंशन की ईमेल से सूचना आ जाएगी और तब तक पासबुक में नई पेंशन की एंट्री करवा लेंगे. उसके बाद महाभिनिष्क्रमण. 

बोला- जब आदमी की काम करने की नीयत नहीं होती तो ऐसा ही होता है. अभी तो हिन्दू राष्ट्र की प्रक्रिया बड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ने लगी है. हमारी सेवाओं की बहुत ज़रूरत है. ऐसे में हिन्दू राष्ट्र और अखंड भारत का सपना अधूरा छोड़कर निकल लेना चाहता है ? मोदी जी को देख. पहले कहा करते थे- हम तो फकीर हैं, चल देंगे झोला उठाकर. कई बार तो केदारनाथ तक पहुँच भी गए थे. लेकिन अब जब बड़ा मिशन सामने आया है तो ताल ठोंककर, यह कहते हुए डट गए हैं- 'दो टर्म काफी नहीं हैं'. 

काम को 'सेच्यूरेशन' तक पहुंचाए बिना सांस लेने वाले नहीं हैं, भले ही दो क्या, दस टर्म हो जाएँ.

हमने कहा- लेकिन तोताराम, हमने तो बी.ए. में अर्थशास्त्र में 'उपयोगिता ह्रास नियम' पढ़ा था कि हर वस्तु की उपयोगिता एक सीमा के बाद कम होने लगती है.  

बोला- उसके अपवाद भी तो होते हैं. 

हमने कहा- सो तो हमने भी पढ़े हैं लेकिन उनमें कोई दम नहीं है. शराब, धन, दुर्लभ वस्तुएं, मधुर गीत या कविता,    सौन्दर्य आदि. लेकिन पांच-सात पैग के बाद किसे पता है कि आदमी पी रहा है या कपड़ों पर गिरा रहा है. जब संख्या में दस-बीस हो जाए तो फिर वह वस्तु दुर्लभ कहाँ रह गई ? 'भाइयो-बहनो' सुनते ही अब श्रोता खुश होने की बजाय हँसने लगते हैं. अडवानी जी मधुर होते हुए ही 'चित्रलेखा' का 'मन रे तू काहे ना धीर धरे' कब तक सुनें ?  शादी के दो महीने बाद विश्व सुंदरी 'फलां की बहू' और दो साल 'फलां की माई' हो जाती है.  

बोला- मास्टर, अब बात अर्थशास्त्र के इस पुराने नियम तक नहीं रह गई है. अब तो उपयोगिता के नए-नए नियम निकल आये हैं. आदमी चाहे कितना ही योगी और महात्मा बनने का ढोंग करे लेकिन जनता के बीच जाते समय अलग-अलग कोणों से दस बार शीशा देखता है. इस पर कोई उपयोगता ह्रास नियम लागू नहीं होता बल्कि

 'मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की'.

कल को अगर तेरे कहीं भी जाने पर 'जोशी-जोशी' की आवाजें आने लग जाएँ तो तू भी पद छोड़ना तो दूर की बात,  इस 'बरामदा निर्देशक मंडल' का खम्भा पकड़ कर बैठ जाएगा.   




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 8, 2022

ईश्वरीय न्याय बनाम रूल इज रूल

ईश्वरीय न्याय बनाम रूल इज रूल 


हम तो अब तक यही सोचते थे कि ठेकेदारों के बड़े मज़े हैं. करना-धरना कुछ नहीं बस, मज़े से जनता का पैसा विकास के नाम से फूँकने वाले नेताओं से मिलकर पराये माल पर दंड पेलो. वैसे ठेकेदार चाहे धर्मस्थानों में बैठे  भगवान के हों या नेताओं के लिए भले आदमियों से हफ्ता वसूली करने वाले स्वयंसेवक. न कोई ड्यूटी करते, न कोई धंधा-व्यापार. सुहब उठकर, बाल रंगकर, सफ़ेद जूते, पायजामा, कुरता और जैकेट पहनकर, मोबाइल पर बतियाते हुए कभी जिला मुख्यालय, तो कभी राज्य की राजधानी और यदि राष्ट्रीय स्तर के हुए तो देश-विदेश में उड़ते फिरो. अगर हथियारों के ठेकेदार हुए तो भले ही अनुभव साइकल के पंचर निकालने का न हो लेकिन युद्धक विमानों का ठेका दिलवाने बड़े साहब अपने साथ प्लेन में बैठाकर ले जायेंगे. रोज शाम को दारू पीओ,गाली-गलौज करो.

आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, इन ठेकेदारों के बड़े मजे हैं. काम कैसा भी करो, पूरा करो या आधा-अधूरा करो, घटिया, करो या महाघटिया करो, सड़क बनाते ही टूट जाए या पुल उदघाटन से पहले ही गिर पड़े लेकिन इनको कोई फर्क नहीं पड़ता. 

बोला- ऐसा नहीं है मास्टर, जब इनका भी किसी पक्के सेवक से पाला पड़ जाता है तो आगे-पीछे तक का खाया-पीया सब निकल जाता है. अभी सुना नहीं, १२ अप्रैल २०२२ को कर्नाटक के हल्दिंगा गाँव में २०२१ में सड़क निर्माण के चार करोड़ रुपए का भुगतान रुका हुआ था. चेक पास करवाने के लिए मंत्री के सहायकों ने ४०% कमीशन माँगा. इतना मार्जिन नहीं बना होगा सो बेलगावी के ठेकेदार संतोष पाटिल ने एक निजी लॉज में आत्महत्या कर ली. नोट में लिख गया- मेरी आत्महत्या के लिए संबंधित मंत्री जिम्मेदार है.

हमने कहा- तोताराम, रूल इज रूल. ईश्वर के न्याय से कौन बच सकता है ?अपने पड़ोस में हरियाणा में चौधरी  बंसीलाल के सुशासन काल का एक किस्सा है. उनकी पार्टी के किसी बुज़ुर्ग कार्यकर्त्ता से काम करवाने के बदले में किसी अधिकारी ने पैसे मांगे. वह आदमी शिकायत लेकर जब चौधरी साहब के पास गया तो वे बोले- देख भाई, नियम तो नियम सै. इस नै कोई ना तोड़ सकै. तू पैसे ना दे तो कोई बात नहीं,मेरे पास तें लेज्या और अपना काम करवा ले. 

बोला- फिर यह कैसा सुशासन हुआ ? 

हमने कहा- जब किसी शासन में सबसे नियमानुसार रिश्वत लेकर काम किया जाता हो तो वह भ्रष्टाचार नहीं होता.

बोला- जब कुछ अनियमित आमदनी होती है उसका अपना एक रोमांच होता है. जब कोई भ्रष्टाचार नियमित हो जाता है तो उससे सेवक और अधिकारी को संतुष्टि नहीं होती. वह तो तनख्वाह की तरह हो जाता है. 

हमने कहा- मंत्री ईश्वरप्पा जी तो साक्षात् ईश्वर हैं तो उन पर कोई आरोप लगाना उचित नहीं है. उन्होंने तो एक मठ की ग्रांट रिलीज़ करने के लिए भी ३०% कमीशन माँगा था. जो भगवान को भी न बक्शे वह कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति तो वन्दनीय है. 

सतयुग में सत्यवादी हरिश्चंद्र ने बिना आधा कफ़न लिए अपने बेटे तक का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया. ऐसे में यदि ईश्वराप्पा ईश्वरीय नियमों का पालन करते हैं तो आलोचना क्यों ? ठेकेदारों को चाहिए कि सड़क बनाए बिना ही  वेरिफिकेशन करवाकर पेमेंट उठा लें और ४०% क्या ५०% ईश्वर की सेवा में अर्पित कर दें. 

भ्रष्टाचार की परंपरा का पान करना चाहिए. परंपरा 'परम' (ईश्वर) से भी परे होती है. ईश्वर भी उसका उल्लंघन नहीं कर सकता. किसी हनुमान जी के मंदिर में जाओ तो पुजारी एक ही झटके में आधा प्रसाद (४०% की जगह ५०%) निकाल कर शेष तुम्हें लौटा देता है. निकाली हुई मिठाई दुबारा बिकने के लिए मंदिर के पास की पुजारी जी की दुकान में चली जाती है. राम मंदिर तक के चंदे में ३५% की समृद्ध परंपरा निभाई जाती है.

तभी तोताराम ने अखबार पलटते हुए कहा- ले कर्नाटक का एक और समाचार ! उद्घाटन के तीसरे दिन ही पुल गिरा. 

हमने कहा- हो सकता है, अब तक 'सबके साथ : सबके विकास' का रेट ४०% से बढ़कर ५०% हो गया हो. उद्घाटन तक टिक गया यह क्या कम है ? यदि उद्घाटन से समय भी गिर जाता और दस-बीस दबकर मर जाते तब भी जर्मनी में भारत मूल के लोगों के बीच बिना नाम लिए राजीव और  कांग्रेस के पंजे को दोषी ठहराया जा सकता था. 

तोताराम बोला- मेरे ख़याल से अब तो सब कुछ 'आत्मनिर्भर भारत' की वेब साईट पर डिजिटल हो जाना चाहिए. जिसे भी हवाई अड्डा, सड़क, पुल, शौचालय, बुलेट ट्रेन, तरह तरह के कोरीडोर जो भी देखना हो मोबाइल पर देखे और अपने देशी-विदेशी मित्रों को फॉरवर्ड करे



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