Dec 31, 2023

चलो एक काम तो हुआ


चलो एक काम तो हुआ 


आज तोताराम के मुखमंडल से एक प्रकार की शांति झलक रही थी। वैसी ही शांति जैसे कि किसी विषय की वार्षिक परीक्षा होने के बाद छात्र के चेहरे से झलकती है कि चलो, एक से तो पीछा छूटा । अचानक एक बोझ सा उतर जाता है । लगता है कि अब  इसकी नोटबुक्स और किताबों को रद्दी में बेचा जा सकता है । और नहीं तो मजे से सुबह तापने के लिए चूल्हा जलाया जा सकता है । 

बोला- चलो मास्टर, नए साल से पहले एक काम तो हुआ । 

हमने पूछा- कौनसा काम हो गया ? दो करोड़ नौकरियां, सबके खाते में 15-15 लाख रुपए, पहलवानों को न्याय, किसानों की आमदनी दुगुनी । 

बोला- अब ये न तो वादे हैं, न जुमले, न किसी बात का विषय । अब तो इनके बारे बात करने पर लोग हँसते हैं । कहते हैं बड़ा बेवकूफ है । इन बातों का कोई मतलब होता है ? जैसे कोई किसी लड़की से बड़े-बड़े वादे करके फँसाता है, शादी का वादा करके कई वर्षों तक यौन शोषण करता है और फिर वह बेवकूफ महिला पुलिस में शिकायत करती है कि उसके साथ धोखा हुआ ? अरे, ऐसे सब काम और बातें धोखा ही हुआ करते हैं । 

हमने पूछा- तो फिर और कौन सा काम हो गया ? 

बोला- ले, 3 दिसंबर को चुनाव का परिणाम आने के बाद से एक महिना होने को आया, और मंत्रीमण्डल का गठन नहीं हो रहा था । चलो, कल भजनलाल ने घोषणा कर ही दी । 

हमने कहा- लेकिन अब भजनलाल कहाँ, अब तो मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर है और उनका तो मंत्रीमंडल बहुत समय से बना हुआ है । 

बोला- मैं हरियाणा की नहीं, अपने राजस्थान की बात कर रहा हूँ । 

हमने कहा- कुछ भी कह तोताराम, जब भी कोई भजनलाल का नाम लेता है तो हरियाणा ही ध्यान में आता है । यह नाम हरियाणा से कुछ इस तरह जुड़ गया है कि कोई और ध्यान में ही नहीं आता । उसने दल बदल का जो  कीर्तिमान बनाया था वह आज तक नहीं टूटा । एक साथ रात रात में अपने सभी 40 विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। कर लो अब क्या करोगे ? लगाओ अब दल-बदल कौनसी धारा लगाओगे ?  

बोला- अपने राजस्थान के पहली बार एम एल ए बने भजनलाल शर्मा ने बड़े इंतजार के बाद आखिर मंत्रीमंडल की  घोषणा कर ही दी । 

हमने कहा- इस नई शताब्दी में राजस्थान की जनता जयनारायण व्यास, मोहनलाल सुखाड़िया, हरिदेव जोशी किसी को नहीं जानती । उसके हिसाब से तो राजस्थान का मुख्यमंत्री मतलब अशोक गहलोत या वसुंधरा राजे ही होता है ।अच्छा होता इन्हें पहले एक दो बार मंत्री बना देते फिर मुख्यमंत्री बनाते । 

बोला- ऐसे ही तो प्रतिभाओं का विकास अवरुद्ध हो जाता है और देश-राज्य बड़े लाभ से वंचित रह जाता है । मोदी जी भी तो गुजरात में सीधे ही मुख्यमंत्री बने थे और जब केंद्र में आए तो सीधे ही प्रधानमंत्री । इसीलिए वे खुद को किसी का मातहत नहीं मानते और कोई भी बड़े से बड़ा निर्णय ले लेते हैं । मातहत रहते रहते आदमी दब्बू हो जाता है । दूसरों से राय लेने में ही पूरा कार्यकाल निकल जाता है । प्रोटोकॉल के चक्कर ही लगा रहता है ।  

मोदी जी ने एक ही झटके में सर्वोच्च न्यायालय से राम मंदिर का फैसला दिलवा दिया ।  फटाफट राष्ट्रपति के बिना ही राम मंदिर का शिलान्यास करवा दिया ।  नया संसद भवन बनवा दिया और फिर बिना राष्ट्रपति के उद्घाटन भी करवा दिया । राजदंड का प्रतीक 'सेंगोल' भी रखवा दिया और 150 सांसदों को निकालकर सेंगोल की शक्ति भी दिखा दी । चुनाव से पहले ही मंदिर का उद्घाटन तय कर दिया भले ही शिखर नहीं बना हो और हो सकता है राष्ट्रपति को एक मूक दर्शक बनाकर रामलला को गृह-प्रवेश  भी करवा दें । 

क्रांतिकारी परिवर्तन घिसट घिसटकर सीढ़ियाँ चढ़ने वालों के वश का नहीं है । यह तो किसी ऊपर से अवतरित अवतारी पुरुष के द्वारा ही संभव है ।  

हमने कहा- तोताराम, तुम्हारी इन बातों से हमें लगता है कि हमारे भजन लाल में भी प्रतिभा की कोई कमी नहीं है । तभी तो चार दिन में ही मोदी जी की तरह प्लेन में बैठकर फ़ाइलें निबटाने लगे और साफ सुथरी जगह पर झाड़ू लगाकर जयपुर को स्वच्छ बनाने लगे हैं ।  





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Dec 30, 2023

सेठ पकौड़ा सिंह

सेठ पकौड़ा सिंह 


आज सुबह-सुबह दरवाजा खटका । हमने कमरे के अंदर से ही पूछा- कौन है ?

उधर से फिल्मों के प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता कन्हैयालाल जैसी मिमियाती आवाज आई- मैं हूँ जी, थारे मोहल्ले को नए स्टार्टअप हालो सेठ पकौड़ा सिंह । 

हमने उसी तरह की टोन में जवाब दिया- थारी आवाज तो बकरी बाई जैसी मरियल है । तू सिंह कैसे हो सकता है ?

फिर उस आवाज ने विनम्र स्वर में कहा- भाई जी, संसद को दरवाजो तो खोलो । मैं कोई विपक्षी निष्कासित सांसद थोड़े हूँ । 

ऐसा नहीं है कि हम उस आवाज को पहचान नहीं रहे थे । तोताराम की श्याम वर्णी आकृति, 28 इंची विशाल वक्षस्थल और गुरुगंभीर आवाज को हम लाखों  में पहचान सकते हैं । 

दरवाजा खोला तो तोताराम ही नहीं उसके साथ एक उठाऊ चूल्हा और कुछ बर्तन भांडे भी थे । 

हमने पूछा- क्या ? यह यह सब ताम झाम लेकर अयोध्या के उद्घाटन उत्सव में पकौड़े का ठेला लगाने जा रहा है ? 

बोला- अयोध्या भी जाऊंगा । मैं  कोई आडवाणी जी और मुरली मनोहर जोशी थोड़े हूँ जिन्हें मोदी जी के ओवर शेडो हो जाने के डर से बहाने से न आने का इशारा किया जा रहा है । फिलहाल तो मैं पकौड़े का  'स्टार्ट अप' अपनी बरामदा संसद के सामने से ही करने वाला हूँ । 

हमने कहा- क्यों, कल्याण बनर्जी की तरह मिमिक्री कर ले ।  पेट पालने के लिए लोग जाने क्या क्या करते हैं । ऐसे में तेरे पकौड़ा का ठेला लगाने से हमें कोई ऐतराज नहीं है लेकिन तेरे इस कुकर्म से किसी क्षत्रिय की भावना आहत हो सकती है । सिंह तो शिकार करते हैं पकौड़े का ठेला नहीं लगाते । सिंहों के मूँछें होती है । उनके नाम के साथ सिंह जुड़ा होता है । उनके बोलने को दहाड़ कहते हैं । वे जब चलते हैं तो धरती कांपती है । वे एक अकेले ही सब पर भारी होते हैं । तेरी इस मरियल देहयष्टि, मिमियाती आवाज और सफाचट मुखमंडल की इस 'सिंह' मिडिल नेम से कोई तुक नहीं बैठती । तेरा नाम तो तोताराम की तरह 'पकौड़ा राम' या 'पकौड़ा प्रसाद' होना चाहिए । 

बोला- क्यों ? कुरुक्षेत्र इंजीनीयरिंग कॉलेज के सहपाठी शिखर सिंह और निधि सिंह ने क्षत्रिय 'सिंह' होते हुए 'समोसा सिंह' के नाम से समोसा बेचने का काम शुरू किया या नहीं ? सुनते हैं अब रोज हजारों समोसे बेचते हैं और महिने के लाखों रुपए कमाते हैं । और लोग हैं कि मोदी जी के 'पकौड़ा रोजगार'  का मजाक उड़ाते हैं ।  

हमने कहा- देखा, दो पैसे कमाने के लिए कैसे 'डबल धमाल' में  'मल्लिका' जलेबी बाई बन गई वैसे ही अच्छे भले 'शिखर' को 'समोसा' बनना पड़ गया । 'शिखर से समोसा तक' ।  लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि उन्होंने इसके लिए बंगलुरु में अपना फ्लेट बेचकर समोसा बनाने की एक फैक्ट्री लगाई थी। तू क्या बेचकर फैक्ट्री लगाएगा ? और फिर यहाँ गली में कौन पकौड़े खाने आएगा । 

बोला- तो फिर भारत की अर्थव्यवस्था को दस-बीस ट्रिलियन का और आत्मनिर्भर बनाने के लिए क्या किया जाए ?

हमने कहा-  इस 21 वीं शताब्दी का टेस्टिड उपक्रम 'चाय विक्रय' ही है । बिलियोनायर नहीं बनेगा तो विश्व का सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता तो बन ही जाएगा ।  

वैसे भी इस 'बरामदा सांसदी' में रखा ही क्या है ? पता नहीं, कब कोई विनम्र और लोकतान्त्रिक अध्यक्ष 150 विपक्षी सांसदों की तरह एक ही झटके में बाहर का रास्ता देखा दे । फिर करते रहना संसद परिसर में गांधी प्रतिमा के सामने मिमिक्री । 

 


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Dec 29, 2023

अब विश्व गुरु बनने में क्या कसर है


अब विश्व गुरु बनने में क्या कसर है 


आज तोताराम को किसी लघु-दीर्घ शंका या प्रश्न-जिज्ञासा का मौका दिए बगैर हमने ही बैटिंग संभाल ली और पूछा- तोताराम, भारत के विश्वगुरु बनने में क्या कसर रह गई ?

बोला- कसर किस बात की है ? चार धामों के चार जगद्गुरुओं के अतिरिक्त पचासों और भी कई लंठ टाइप जगद्गुरु भी इधर-उधर घूमते मिल जाएंगे । जिस पुण्य भूमि पर इतने जगद्गुरु हों उसके जगद्गुरु होने में क्या कमी और क्या कसर ?

और तो और छोटे मोटे धर्मगुरु, बापू और राम-भगवान तो जेलों तक में  भरे पड़े हैं । किसी को जमानत नहीं मिलती और कई इतने संस्कारी होते हैं कि जब जब चुनाव होते हैं जमानत पर बाहर आ जाते हैं और सत्संग (!) करते फिरते हैं । 

हमने कहा- 1986 में एक बार हमने भी बनारस से दिल्ली तक की यात्रा में एक जगद्गुरु के हाथ से बनी 'खैनी' खाई है ।  लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि जगद्गुरु और विश्वगुरु में फ़र्क होता है । जगद्गुरु तो एक साथ कई कई हो सकते हैं । और मजे की बात यह है कि सब एक दूसरे को नकली बताते रहते हैं ।इनको कोई नहीं पूछता । इनको अपनी खुद कि बात तक समझ नहीं आती कि क्या बोल रहे हैं और उसका क्या मतलब है । सब 'एन्टायर हिन्दुत्व'  में एम ए होते हैं ।  लेकिन विश्वगुरु का मामला दूसरा है । जो अपनी वैश्विक दृष्टि और समझ से दुनिया को प्रभावित कर सके और यह विश्व मार्गदर्शन के लिए जिसकी तरफ देखता हो, वही विश्वगुरु हो सकता है । कभी बुद्ध ने अपने सत्य और अहिंसा के सिद्धांत से विश्व को मार्ग दिखाया था तो कभी विवेकानंद ने भारतीय दर्शन के मूलतत्व की अपनी यूनिवर्सल व्याख्या से दुनिया को मुग्ध कर दिया था तो आज पूरी दुनिया को गांधी की समावेशी सोच में भविष्य की रोशनी दिखाई देती  है । 

बोला- तो चल तेरी ही बात मान लेता हूँ । तो आज सारी दुनिया समाधान के लिए मोदी जी की तरफ देखती है । आस्ट्रेलिया का प्रधानमंत्री उन्हें बॉस कहता है। अमरीका का राष्ट्रपति उनके ऑटोग्राफ लेता है । रूस का राष्ट्रपति उनसे रूस और यूक्रेन के संघर्ष के समाधान की आशा लगाए हुए है । जिस  दृढ़ता से नोट बंदी की, जीएस टी लागू किया और जिस तरह ताली-थाली से कोरोना मनेजमेंट किया उसने उन्हें विश्व का सबसे लोकप्रिय नेता बना दिया है । अब विश्वगुरु, जगद्गुरु या ब्रह्मांड गुरु होने में क्या कमी रह गई ?

हमने कहा- ऐसी उपाधियों की कौनसी परीक्षा होती है ? कोई भी जगद्गुरु की तरह खुद को कुछ भी घोषित कर सकता है ? नौकरी करने जाओ तो फिर भी डिग्री की जाँच की संभावना रहती है । महुआ मोईत्रा जैसी नौकरी धुप्पल वाली डिग्रियों से नहीं मिल सकती । हमारी एक परिचित है जो कभी किसी चक्कर में दस दिन के लिए एम आई टी हो आईं सो अब अपने मेल के पते एम आई टी लगाती हैं । एक हमारे परिचित हैं जो एक स्कूल चलाते हैं । एक दिन अचानक अपने नाम से पहले डॉ. लिखने लगे । अब कोई नौकरी तो करते नहीं ।  वैसे भी जब धर्म का धंधा करने वालों तक को इंजीनियरिंग के बड़े बड़े कॉलेज उनके राजनीतिक प्रभाव के कारण डॉ . की मानद डिग्री दे देते हैं तो कोई उनका क्या कर लेगा ? और तो और कई निजी विश्वविद्यालय पैसे लेकर डॉ. की मानद उपाधि बांटते हैं । 

तू चाहे तो आज से हम तुझे 'डॉक्टर' और तू हमें 'विश्वरत्न' कहने लग जा । देखते हैं कौन हमारा किया बिगाड़ लेता है । 

बोला- मैं तुझे इस महान देश के ज्ञान और शिक्षा के दो  उदाहरण देता हूँ जिससे पता चलता है कि इस देश के विश्वगुरु होने में कोई कसर नहीं है । पहला- अमृतसर के डॉ संदीप सिंह चार विषयों में स्नातकोत्तर है और एक पीएचडी डिग्रीधारी हैं। 11 साल पंजाबी यूनिवर्सिटी में एडहॉक प्रोफेसर के पद पर काम करने के बाद अब ठेले पर सब्जी बेचते हैं।

दूसरा- राजस्थान के धौलपुर जिले के एक स्कूल में राजनीति विज्ञान के पेपर में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा और उसकी लंबाई के बारे में एक सवाल पूछा गया, ”भारत बनाम पाकिस्तान के बीच कौन-सी सीमा है, लम्बाई बताओ? 

बालक ने लिखा- दोनों देशों के बीच सीमा हैदर है । उसकी लंबाई 5 फुट 6 इंच है । दोनों देशों के बीच इसको लेकर लड़ाई है । 

हमने कहा- डॉ. संदीप सिंह के बारे में तो क्या कहें। हमसे तो ज़िंदगी में राम राम करके एक एम ए और एक बी एड ही हो पाई लेकिन भारत पाक सीमा के बारे में उत्तर देने वाले इस बालक में हमें जरूर विश्वगुरु नजर आता है । अभी तो बारहवीं में राजनीति विज्ञान पढ़ रहा है । एन्टायर पॉलिटिकाल साइंस में एम ए कर लेने दे । फिर देखना कमाल । जरूर किसी देश का प्रधानमंत्री बनेगा ।  



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Dec 26, 2023

तोताराम चंपत हो गया

तोताराम चंपत  हो गया 


कल शाम को तोताराम का पोता बंटी कह गया था कि बड़े बाबा, कल सुबह का चाय-नाश्ता हमारे यहाँ है । 

जैसे ही हम नाश्ते के समय तोताराम के यहाँ पहुंचे तो देखा बैठक में कोई नहीं । 

हमें बड़ी खीज हुई । एक तो ले देकर इतने बरसों में पहली बार नाश्ते के लिए बुलाया और अब खुद ही गायब ।  हमने कुढ़ते हुए ऊंचे स्वर में हाँक लगाई- हमें नाश्ते पर बुलाकर कहाँ चंपत हो गया, जुमलेबाज !

पीछे से तोताराम की आवाज आई, बोला- मेरा निमंत्रण राम मंदिर वाले चंपत राय का राम मंदिर आंदोलन के आदिपुरुष आडवाणी जी और मुरली मनोहर जोशी को न आने का कपड़े फाड़ू और सिर फोड़ू, अपमानजनक  निमंत्रण जैसा नहीं है । यह वास्तविक निमंत्रण है । मैं तो बाजार से गरमागरम पकौड़े लेने गया था । 

हमने कहा- लेकिन तू चंपत राय जी की बात को सही ढंग से नहीं समझ रहा है । उनका फर्ज बनता है बुजुर्गों के कष्ट का खयाल करने का । बिना बात बुजुर्गों को मात्र शोभा बढ़ाने के लिए इतना कष्ट देना ठीक नहीं लगता । ऐसे कठिन कामों के लिए मोदी जी हैं ना ।  

जब देश के हर क्षेत्र में ' सबका साथ : सबका विकास : सबका विश्वास'  कार्यक्रम चल रहा है तो फिर क्या बुलाना और क्या न बुलाना । यहाँ तो रोम रोम में राम हैं। सियाराममय सब जग जानी है । क्या गुरुद्वारे में लंगर के लिए कोई किसी को निमंत्रण देता है ? क्या केदारनाथ, बद्रीनाथ किसी को निमंत्रण भिजवाते हैं ? वैष्णो देवी के भक्तों की और मोदी जी की बात और है । जब भक्तों को माता का बुलावा आता है तो वे चल पड़ते हैं या फिर जब गंगा मैया बुलाती है तब मोदी जी बनारस चले जाते हैं । आडवाणी जी और जोशी जी भी राम के बुलावे का इंतजार कर सकते हैं । 

बोला- तुझे पता है 'राम का बुलावा' क्या होता है ? फ़ोटो में जोशी जी की हालत तो जरूर दयनीय लगती है लेकिन आडवाणी जी अभी भी फिटफाट हैं । कहीं से नहीं लगता कि 'राम' के बुलावे का इंतजार कर रहे हैं । 

जब 4000 संत और 2200 विशिष्ट जन बुलाए गए हैं तो इन्हें भी साधारण डाक से उलटे मन से भिजवा देते एक निमंत्रण पत्र । लेकिन भिजवाया तो क्या संदेश ! आप मत आना । इतना अपमान तो चंपत राय जी ने हमारा भी   नहीं किया । हमें विधिवत निमंत्रण नहीं भेजा तो कोई बात नहीं लेकिन यह तो नहीं कहा कि मत आना । 

हमने कहा- एक तरह से तो चंपत राय जी ने ठीक ही किया । मान ले बुला लेते और त्रिपुरा में विप्लव देव के शपथ ग्रहण समारोह जैसी अनदेखी होती तो सोच कितनी निंदा होती संस्कारी लोगों की । 

और फिर इस उम्र में दुख सहने की तो आदत हो जाती है लेकिन खुशी बर्दाश्त नहीं होती । कल को खुशी के अतिरेक में कुछ हो जाए तो ! बिना बात रंग में भंग पड़ जाएगा । 





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Dec 23, 2023

दूध पीने वाले मजनू


दूध पीने वाले मजनू 


तोताराम यथासमय हाजिर । 

हमने मजे लेते हुए पूछा-  कल तू जिस तरह अपने को 'मुफ़्तिया' कहे जाने से आहत हुआ था उससे तो लग रहा था  कि या तो सुबह अखबार में तेरे आत्मदाह का समाचार आएगा या फिर रात को ही बंटी आएगा कि चलो दादाजी की तबीयत ठीक नहीं है । लेकिन यह क्या ? तू तो सही सलामत !

बोला- जब धनखड़ जी ने ही न तो अपने अपमान से आहत होकर इस्तीफा दिया, न एक दो दिन का उपवास कर अपना वजन 100 से 99 किलो किया तो फिर मैं ही क्यों अनावश्यक रूप से संवेदनशील होकर रिस्क लूँ । मैंने तो तेरे यहाँ अगले 24 घंटे तक चाय पीने की आहुति देने की बात कही थी । कल से हिसाब लगा ले 24 घंटे से ज्यादा हो गए है। प्रतिज्ञा पूर्ण और मैं बरामद संसद में हाजिर । 

तुझे आश्चर्य होगा कि मैंने 15 अगस्त 1947 को प्रतिज्ञा की थी कि जब तक भारत के हर व्यक्ति को रोजगार नहीं मिलेगा, सब के सिर पर पक्की छत नहीं होगी तब तक मैं आजीवन रात 10 बजे से प्रातः 4 बजे तक का क्रमिक उपवास करूंगा और उसे आज तक निभा रहा हूँ । 

हमने कहा- बिल्कुल मोदी जी वाली गारंटी की तरह । हमें तो यह धनखड़ जी का बिना नाखून कटाये ही शहीद का दर्जा लेने का घटिया नाटक लगता है । खुद्दार आदमी ऐसे मामलों में एक्शन पहले लेता है और घोषणा बाद में करता है । तुझे पता होना चाहिए कि हिन्दी के प्रसिद्ध संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी जी 1904 में रेलवे में 200 रुपए मासिक की नौकरी करते थे ।हिसाब लगा ले । उन दिनों सोने का भाव था 20/- रु। तोला मतलब साढ़े बारह ग्राम ।और आज साढ़े बारह ग्राम सोने का भाव ! तुलना कर ले । उनके एक नए नए अंग्रेज अधिकारी आए जिन्होंने तनिक अशिष्टता का व्यवहार किया तो द्विवेदी जी ने इस्तीफा देकर 20/-रु महिने की सरस्वती पत्रिका की संपादकी कर ली । ये तो अपने अपमान का जातीय कार्ड खेलकर परोक्ष रूप से अगले चुनाव में भाजपा की मदद कर रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप हो सकता है एक स्टेप ऊपर वाली सर्वोच्च कुर्सी मिल जाए । 

हाँ, कल के अपमान प्रकरण से  रात को हमारी तबीयत जरूर खराब हो गई । ढंग से नींद नहीं आई । धनखड़ जी के पद और जाति के अपमान को लेकर सोचते रहे तो अपमान की यह शाब्दिक और नाटकीय खुजली जाने हमें कहाँ-कहाँ ले गई । 

बोला- लेकिन तुझे तो किसी ने कुछ नहीं कहा। उलटे तूने ही मुझे मुफ्ती कहा । एक सड़ियल चाय में अस्सी साल के एक ब्राह्मण अध्यापक को मुफ्ती कहकर अपमान । मेरा तो मन किया था कि इस  बरामदा संसद में कल से पैर तक नहीं रखूँगा लेकिन फिर सोच तेरा अकेले का क्या होगा ? किससे लोकनिंदा करेगा । कैसे दिन कटेंगे । 

कल्पना कर यदि लोकसभा और राज्यसभा दोनों में  सभी सीटें भाजपा की ही हों। कोई विपक्ष हो नहीं । कोई प्रश्न पूछने वाला ही नहीं हो । सभी 'मोदी मोदी' करने वाले ही हों तो धनखड़ जी किसे निलंबित करके मोदी जी को खुश करेंगे । मोदी जी किसकी मिमिक्री करेंगे ? किसकी गर्ल फ्रेंड की कीमत लगाएंगे ?  मैच जीतने से जो खुशी होती है वह 'वाक ओवर' मिलने से नहीं होती । मीठा ही मीठा खाते खाते एक स्थिति में उबकाई आने लगती है । किसको गांधी नेहरू का निंदा-पाठ सुनाएंगे ?

लेकिन तुझे मेरे कल के अपमान और धनखड़ प्रकरण से बेचैनी क्यों हुई ?

हमने कहा- तोताराम, धनखड़ जी के अपमान से हमारे कई और संदर्भ जुड़ गए जिन्होंने हमें बेचैन कर दिया । वे हमारे गाँव चिड़ावा के पास के एक गाँव किठाना के हैं । प्राइमरी में हमारे भाई साहब के शिष्य रहे हैं । उनके सिर के सारे बाल भी हमारी तरह सफेद हो चुके हैं और फिर वे भी हमारी तरह मनुष्य हैं तो उनके हिस्से का कुछ अपमान तो हम पर भी लागू होता ही होगा । 

बोला- लेकिन तुझ पर पूरा अपमान लागू नहीं हो सकता । अगर माने भी तो अपमान अधिक से अधिक उनके अपमान का 50  प्रतिशत हो सकता है क्योंकि उनका वजन 100 किलो है और तेरा 50 किलो । वैसे तू नेताओं को सीरियसली मत लिया कर । ये सब दूध पीने वाले मजनू हैं । 

हमने कहा- संसद में मजनू कहाँ से आ गया  और वह भी दूध पीने वाला । 

बोला- लैला के परिवार वालों और गली मोहल्ले के लोगों द्वारा किए गए अपमान और मिमिक्री के बावजूद मजनू ने  लैला का मोहल्ला नहीं छोड़ा । लोगों ने भी ध्यान देना  बंद कर दिया । लेकिन लैला को मजनू की फिक्र बनी रहती । वह घरवालों से छुपकर अपनी सहेलियों के हाथ मजनू के लिए दूध भिजवाती । मजनू दूध की तरफ देखता भी नहीं । लैला को चिंता लगी रहती । 

एक दिन लैला ने पूछा- अब मजनू का क्या हाल है ? सहेलियों ने बताया- अब तो दूध पी लेता है । स्वास्थ्य भी ठीक हो रहा है । 

लैला को शक हुआ । उसने सहेलियों से कहा- आज जब दूध का लेकर जाओ तो मजनू के दूध पी लेने के बाद कहना कि लैला की तबीयत ठीक नहीं है । हकीम साहब ने कहा है कि मजनू के एक प्याला खून से दवा बनाकर देने से ही लैला ठीक हो सकती है । नहीं तो मर जाएगी । 

 एक प्याला खून की बात पर मजनू ने कहा- असली मजनू तो यहाँ से उठकर उस पेड़ के नीचे जा बैठा है । खून चाहिए तो उसके पास जाओ । हम खून देने वाले नहीं, हम तो दूध पीने वाले मजनू हैं । 

 

 



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Dec 20, 2023

2023-12-20 पूर्णाहुति


पूर्णाहुति 


हमारा घर पर कौन सा जनसेवकों की कुटिया की तरह सेंट्रली हीटिड है जो अंदर-बाहर 'कोज़ी-कोज़ी' लगे । यहाँ तो अगर थोड़ा सा हाथ पैर बाहर निकला रह गया तो बर्फ हो जाता है । फिर नॉर्मल होने में आधा घंटा लगता है । इसलिए हम तो चारों तरफ से रजाई को ऐसे दबाकर सोते हैं जैसे नए संसद भवन की चाक-चौबंद सुरक्षा ।

अब आप हमारी इस तुलना से 'सेंट्रल विष्ठा' की नई नई घटना को लेकर न उलझें । लोग कुछ भी कहें इसमें नए भवन की सुरक्षा में कोई कमी सिद्ध नहीं होती । अरे भाई, जब कोई किसी कील से ताला खोल ले तो आप ताले को घटिया कह सकते हैं लेकिन यहाँ तो घुसने वाले बाकायदा प्रोटोकॉल का पालन करते हुए अंदर गए हैं जैसे कोई ओरिजिनल चाबी से ताला खोले । इसमें सुरक्षा व्यवस्था का क्या दोष ? 

और फिर थोड़ा सा पीला धुआँ ही तो था। दस मिनट में बैठ गया होगा । वैसे भी व्यवस्थाओं और जिम्मेदार  सरकारों  का काम भ्रम का धुआँ फैलाना ही तो होता है । फिर धुआँ पीला ही तो था । फूली सरसों का रंग, वैराग्य का रंग, त्याग का रंग, कृष्ण के पीताम्बर का रंग । कौनसा कोई विधर्मी, देशद्रोही, जनसंख्या बढ़ाने वाला, पंचर निकालने वाला रंग था जो चिंता की बात होती । 

तो हाँ, कल रात अचानक ठंड बढ़ गई ।उठकर अलमारी में से कंबल निकालने का आलस कर गए । न ढंग से सो पाए और न ही शरीर गरम हुआ । बड़ी मुश्किल से सुबह-सुबह आँख लगी ही थी कि तोताराम ने द्वार वैसी ही दबंगई से खटखटाया दिया जैसे कि किसी विपक्षी सांसद की सदस्यता समाप्त किए जाते ही मकान खाली करवाने वाला दस्ता पहुँच जाता है या फिर जिस प्रकार राम की शै पाकर सुग्रीव बाली को ललकारता है- ऐ बाली, क्या कायरों की तरह घर में घुसकर बैठा है , निकल बाहर । 

दरवाजा पत्नी ने ही खोला । तोताराम आकर हमारे पैताने बैठ गया । जैसे ही चाय खत्म हुई, बोला- तो मास्टर, चलता हूँ । 

हमने कहा- तुझसे और क्या उम्मीद की जा सकती है । मुफ्ती भाई किसके, चाय पी और खिसके । 

अचानक तोताराम का टोन बदल गया । बोला- मुफ्ती किसे कहा ? समस्त ब्राह्मण जाति का अपमान, समस्त वर्तमान और भूतपूर्व अध्यापकों का अपमान, समस्त मानवजाति का अपमान । तू मेरा व्यक्तिगत अपमान करेगा तो मैं धनखड़ साहब की तरह एक सज्जन, विनम्र और स्थितिप्रज्ञ  व्यक्ति की भांति सहन कर लूँगा लेकिन समस्त जाति का अपमान बर्दाश्त नहीं करूंगा । 

हमने कहा- जो बिना कोई काम किए मजे करता है वह मुफ्ती ही होता है । सच में देखा जाए तो केवल किसान और मजदूर ही मेहनत की कमाई खाते हैं । बाकी सब तो एक प्रकार से मुफ्ती ही हैं । और फिर तू अकेला ही कैसे सभी ब्राह्मणों और अध्यापकों का प्रतिनिधि हो गया । 

बोला- वैसे ही जैसे कल्याण बनर्जी द्वारा धनखड़ जी की मिमिक्री करने से विश्व के सभी जाटों, किसानों  का अपमान हो गया । वैसे ही जैसे मोदी जी का अपमान समस्त गुजरातियों, ओ बी सी,  140 करोड़ का भारतीयों और यहाँ तक कि समस्त मानव जाति का अपमान हो गया ।

हमने कहा- इस प्रकार तो रमेश विधूड़ी ने तो कटुआ, भड़ुआ कहकर दुनिया के 238 करोड़ मुसलमानों का अपमान किया है । 

बोला- नहीं । एक तो कहने वाले माननीय सांसद हैं, दूसरे वे संस्कारी पार्टी के सदस्य हैं, तीसरे उनकी पार्टी के पास संसद में स्पष्ट बहुमत है, चौथे उन्होंने ने यह सब संसद में कहा है जहां कहे गए किसी भी शब्द पर कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती । और वैसे भी यह नई संसद है जिसकी नई और अपने हिसाब से श्रेष्ठ परम्पराएं एक एक करके उजागर हो रही हैं । 

हमने कहा-  लेकिन कल्याण बनर्जी ने संसद परिसर में मिमिक्री ही तो की है । जाने कौन कौन मोदी जी तक की मिमिक्री करता रहता है लेकिन वे तो कभी आहुति अर्थात आत्मदाह की धमकी नहीं देते । धनखड़ जी ने तो जाट जाति के अपमान और पद की गरिमा के लिए इस हवन में अपनी पूरी आहुति देने का संकल्प जताया है । तू क्या करेगा अगर हमने माफी नहीं मांगी तो ?

बोला- मैं पूर्णाहुति दे दूंगा । अगले 24 घंटे तक के लिए तेरी चाय स्वाहा । 

और इन्हीं शब्दों के साथ तोताराम उठाकर चल दिया  .



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Dec 13, 2023

2023-12-13 मुबारक हो, ट्रिपल इंजन की सरकार


मुबारक हो,   ट्रिपल इंजन की सरकार 

 तोताराम हमारे जाग जाने से पहले ही हाजिर जैसे कि चुनाव की घोषणा होते ही टिकटार्थी नोटों से भरा सूटकेस और अपने जिताऊ उम्मीदवार होने के प्रमाणस्वरूप पुलिस केसों की लिस्ट लेकर पार्टी कार्यालय को घेर लेते हैं । 

हमने छेड़ा- आज कौनसा स्वार्थ भगा लाया भक्त को । 

बोला- हम स्वार्थी भक्त नहीं हैं । हम तो पार्टी के अनुशासित सिपाही है । जनता की सेवा के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं लेकिन अपने कुछ मांगने के मामले में मामा शिवराज सिंह जी की तरह हैं । मर जाएंगे लेकिन कुछ मांगने के लिए दिल्ली नहीँ जाएंगे । आज तो हम तुझे विशेष रूप से 'मुबारकबाद' देने आए हैं । 

हमने कहा- हम भी हिन्दुत्व, राष्ट्रीयता और गुलामी के बचे-खुचे चिह्नों को मिटाने के मामले में तेजस्वी सूर्या से कम नहीं  हैं । शुभकामना दे, बधाई दे लेकिन यह 'इस्लामी' मुबारकबाद किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं है । 

बोला- चल, तेरी ही बात बड़ी कर देता हूँ , ट्रिपल इंजन की सरकार कल्याणकारी हो, शुभ हो, मंगलमय हो । 

हमने तोताराम को फिर फफेड़ा- यह ट्रिपल भी 'घमंडिया' के 'इंडिया' की तरह अंग्रेजी है, इंजन भी अंग्रेजी और 'सरकार' फिर कहीं न कहीं अरबी-फारसी-उर्दू वाली इस्लामी संस्कृति की याद दिलाता है । 

बोला- इस तरह तो हम हिन्दी वालों का बोलना ही मुश्किल हो जाएगा । अंग्रेजी, उर्दू शब्दों के बिना कैसे काम चलेगा ? खैर, कोशिश करता हूँ । 'त्रिगुण अग्निरथ सत्ता' कल्याणकारी हो । 

हमने कहा- सब तो डबल इंजन की सरकार का जुमला फेंकते हैं लेकिन अब यह तीन इंजन की सरकार कहाँ से आ गई  ?

बोला- जो केंद्र में वही राज्य में । तो डबल । और उस पर ब्राह्मण मुख्यमंत्री तो हुई कि नहीं त्रिगुण इंजन सत्ता ? कल पहली बार राज्य में तेरे सरनेम वाले हरिदेव जोशी के 33 साल बाद कोई ब्राह्मण मुख्यमंत्री बना है । अब और क्या चाहिए ?

देखा नहीं, तेरे सरनेम वाले राजस्थान विप्र सेना के अध्यक्ष समेत कितने ब्रह्मज्ञानियों ने भजन लाल शर्मा को पूरे पेज के विज्ञापन द्वारा बधाई दी  है । 


हमने कहा- यह बात तो है । तीन तीन मुस्लिम राष्ट्रपतियों के बाद मुसलमानों का, जेल सिंह के बाद सिक्खों का,  रामनाथ कोविन्द के बाद हरिजनों का, मुर्मू के बाद आदिवासियों का , प्रतिभा सिंह पाटील के बाद महिलाओं का, कल्याण हो गया वैसे ही अब राजस्थान में किसी ब्राह्मण भजनलाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद ब्राह्मणों विशेषकर 'जोशी ब्राह्मणों' का कल्याण पक्का ।  

लेकिन यह मत भूल कि कोविन्द जी को राम मंदिर के शिलान्यास और मुर्मू को संसद के उद्घाटन में नहीं बुलाया गया । मुर्मू के काल में ही मध्यप्रदेश में किसी आदिवासी का लघुशंका वाले तरल पदार्थ से अभिषेक करने की घटना हुई है । झारखंड में बिरसा मुंडा और दाँतेवाड़ा में महाराणा प्रताप की मूर्ति लगा देने से या किसी आदिवासी को छतीसगढ़ का मुख्यमंत्री बना देने से आदिवासियों के संसाधनों पर मित्रों का कब्जा नहीं थम जाएगा । 

बोला- अगर इस खुशखबरी के बदले अगर तिल के लड्डू या जलेबी नहीं खिलाना है तो मत खिला लेकिन कम से कम 33 साल बाद किसी ब्राह्मण के राज्य के मुख्यमंत्री बनने की खुशी का सत्यानाश तो मत कर ।





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Dec 10, 2023

मास्टर सॉन्ग


मास्टर  सॉन्ग  


आज तोताराम ने आते ही बिना हमारी किसी फरमाइश और इरशाद के ही उद्घोषणा की- मास्टर सॉन्ग । 

दो सेकंड बाद भी जब वह शुरू नहीं हुआ तो हमने कहा- मतलब ?

बोला- मतलब क्या ? मास्टर का, मास्टर के लिए, मास्टर द्वारा सृजित गीत । 

हमने कहा- आज तक कोई गीत मास्टर के लिए नहीं हुआ । सब या तो प्रार्थना, भजन और कीर्तन की आड़ में अपने पाप छुपाने के लिए किया गया हल्ला होता है या फिर राजनीति में घुसने का शॉर्ट कट । देखा नहीं, किस तरह आजकल बाबाओं को राजनीति में घुसाया जा रहा है ? लोग धर्म और संतई की आड़ में किए गए नाटकों से रामराज्य की आशा लगा लेते हैं लेकिन मिलता क्या है ? ठुल्लू । वैसे हमने तो 'पनोती' और 'कटुआ' की तरह यह एक नया संस्कारी शब्द भी सुना ही है । इसका वास्तविक अर्थ हमें नहीं मालूम । अगर किसी की भावना आहत हुई तो कह देंगे कि हमने तो यह शब्द कॉमेडियन कपिल शर्मा के शो में सुना था । उसीसे पूछो । 

लोग समझते हैं इन बाबाओं के आगे-पीछे कौन है जिसके लिए कुछ उल्टा-सीधा करेंगे लेकिन लोग भूल जाते हैं कि परिवार वाले की संवेदना का क्षेत्र तो फिर भी विस्तृत होता है । इनका क्या ? न आगे नाथ, न पीछे पगहा । कुछ भी  कर गुजरते हैं । और जब इनका दिमाग खराब होता है तो कोई आसाराम बन जाता है तो कोई राम-रहीम । 

बोला- होता क्यों नहीं । मास्टरों के लिए बहुत कुछ होता है । एक मास्टर के नाम से अध्यापक दिवस मनाते हैं कि नहीं ? 

हमने कहा- एक दिवस या मूर्ति लगा देने से क्या होता है ? एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बना देने से क्या संस्कारी पार्टी के दबंगों ने मध्य प्रदेश में किसी आदिवासी के सिर पर पेशाब करना बंद कर दिया ? क्या किसी दलित को राष्ट्रपति बना देने से सनतानियों की निगाह में सभी दलित मंदिर-प्रवेश के स्वाभाविक अधिकारी बन गए ? कहाँ बुलाया कोविन्द को राममंदिर के शिला पूजन में, कहाँ आमंत्रित की गईं मुर्मू संसद में प्रवेशोत्सव में !   

एक अच्छा अध्यापक जब मास्टरी छोड़कर उपराष्ट्रपति-राष्ट्रपति बना तब अध्यापक दिवस शुरू हुआ । जिस दिन कोई राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री का पद छोड़कर किसी प्राइवेट स्कूल में दस हजार रुपए में दस-दस घंटे खटेगा तब मानेंगे अध्यापक दिवस । 

बोला- अगर तेरा यह आजकल के हालात पर तफ़सरा पूरा हो गया हो तो अपना मास्टर सॉन्ग शुरू करूँ ? 

हमारी अनुमति का इंतजार किए बिना ही तोताराम अपना मास्टर सॉन्ग शुरू कर दिया जिसके बोल थे-

रमेश जोशी ---रमेश जोशी 

इसके बाद तमिल की विशिष्ट शैली और आवाज में जो उत्तर भारत वाले हिन्दी प्रेमियों को कभी समझ में नहीं आती और न ही वे अपने अतिरिक्त हिन्दी अहंकार में समझना चाहते, वाजगनी---वाजगनी जैसा कुछ उच्चरित किया । 

इसके बाद फिर वही 

रमेश जोशी--रमेश जोशी --। 

हमने कहा- यह तो तूने भगवती और श्याम बाबा का जागरण करने वालों की तरह फिल्मी धुनों पर भजन गाने जैसा काम कर दिया । 

बोल- कैसे ? 

हमने कहा- हमें लगता है कि इसी तर्ज पर तमिलनाडु के डॉ. पुष्पवनम  कुप्पू स्वामी का 2020 में लिखा 'नरेंद्र मोडी --नरेंद्र मोडी' गीत हमने सुना है । और फिर हम पर गीत लिखकर तुझे क्या मिलेगा ? 

बोला- अब भक्तों को और धुनें कहाँ मिलेंगी । सब हनुमान चालीसा की तर्ज पर किसी भी विघ्नकारी नेता से लाभ या अभयदान पाने के लिए उसके नाम फिट  कर देते हैं । और जहां तुझ पर गीत लिखने की बात है तो मोदी जी पर तो इतने गीत लिखे जा चुके हैं कि लोगों ने उनका नोटिस लेना ही बंद कर दिया है । मेरा तो मास्टर सॉन्ग, मास्टर स्ट्रोक, मास्टर की, मास्टर माइंड सभी कुछ तू ही है । मोदी जी के चारों तरफ तो भक्तों की इतनी भीड़ लगी है कि सबकी आवाजें , भजन, पूजा-अर्चना, हिन्दुत्व की आड़ में उत्तेजक धार्मिक वक्तव्य आदि तक पूरे-पूरे मोदी जी तक  पहुँच ही नहीं पाते । जैसे कि मधुमक्खी के छत्ते पर रेंगती हुई सभी मधुमक्खियों को शहद का स्वाद नहीं मिलता । मेरा तो 'मोदी जी' तू ही है । तुझी से चाय के साथ नमकीन या तिल का लड्डू मिल सकते हैं । 

हमने कहा-  लेकिन तूने मोदी जी वाले इस गाने को ही क्यों चुना हम पर पैरोडी बनाने के लिए ?

बोल- यह आसान है । रमेश जोशी और नरेंद्र मोदी दोनों में वजन समान है इसलिए अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती । 

हमने कहा- कैसी बात करता है ? कहाँ हमारा वजन और कहाँ मोदी जी का वजन ! वे तो एक अकेले ही सब पर भारी पड़ते हैं । वर्तमान नेता ही नहीं बल्कि भूतकाल के गांधी, नेहरू, भगत सिंह, सुभाष, विवेकानंद सभी पर भारी पड़ते हैं ।उनकी तुलना में यदि आते भी है तो राम-कृष्ण के अलावा और कोई नहीं । उनका छप्पन इंच का सीना  तो खैर जगजाहिर है, उनका वजन भी 80-90 किलो से क्या कम होगा ?  उनका एक नारा, उनका एक गरबा एक ही दिन में लाखों करोड़ों लोग दोहराने लगते हैं । 

बोला- कर दिया ना सारे छंद-अलंकार शास्त्र का एक ही झटके में सत्यानाश । मैं तेरे और मोदी जी के शारीरिक और राजनीतिक वजन की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं तो छंद और बहर के वजन की बात कर रहा हूँ । 



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Dec 7, 2023

2023-12-07 मेरे अन्नदाता चल


मेरे अन्नदाता चल 

आज थोड़ा जल्दी उठ गए थे । दूध तो खैर, आजकल दूधवाला  घर पर ही दे जाता है । अपनी 'पेट' को भी घुमा लाए  अर्थात विकास के लिए सनकी सरकार की तरह सारे टारगेट समय से पहले ही हासिल कर लिए । भले ही जनता को इन उपलब्धियों का पता केवल विज्ञापनों से ही चलता हो जो कि सभी लगभग एक जैसे ही होते हैं । 

तभी दरवाजे पर एक बहुत ही आर्त स्वर में सुनाई दिया- 

मेरे अन्नदाता चल।

तेरे साथ है भारत खड़ा ।  

खुशियों का अब तू हल चला । 

जब भी कोई ऐसा व्यक्ति जिसने गाने का बिल्कुल भी रियाज़ नहीं किया हो, गाने का साहस करता है तो हास्य का कम  और दया का पात्र अधिक बन जाता है । गाने के मामले में हमारा और तोताराम दोनों का एक जैसा ही हाल है । फ़र्क बस इतना है कि हम साहस नहीं करते और तोताराम दुस्साहस कर जाता है । 

यह आर्त स्वर तोताराम का ही था । 

हमने दरवाजा खोलते हुए कहा- तोताराम, तू गलत तथ्यों के साथ गलत जगह गुहार लगा रहा है । हम तेरे अन्नदाता नहीं, और भारत अन्नदाता के साथ नहीं खड़ा हुआ है । यदि खड़ा हुआ होता तो क्या तीन काले कानून वापिस करवाने के लिए 13 महिने सड़कों पर पड़े खड़े 700 किसान मर नहीं जाते ।आज तक उनकी दुगुनी नहीं हुई है, न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिला है । स्वामीनाथन आयोग लागू नहीं हुआ है । 

आज भारत यदि किसी के साथ खड़ा हुआ है तो वे हैं मोदी जी । मोदी जी सबको साथ लेकर सबका विकास करते हैं इसीलिए उन्हें सबका विश्वास हासिल है । मोदी जी के एक इशारे पर भारत ताली-थाली बजाने लगता है ।घर घर तिरंगा फहराने लगता है ।  भारत आज तक किसी के साथ खड़ा नहीं हुआ । यहाँ तक कि जिस गांधी पर कांग्रेसी इतना हल्ला मचाते हैं उसके पीछे भी कभी सारा भारत खड़ा नहीं हुआ था । थोड़े से काँग्रेसियों को छोड़ दें तो सनातनी, मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे बहुत से संगठन उनके खिलाफ थे । कुछ तो आज भी गांधी की हत्या का जश्न मनाते हैं । 

हम तेरे अन्नदाता नहीं हैं । 

बोला- कोई बात नहीं। चायदाता तो है ना । 

हमें संकोच हुआ । अपनी छोटी सी बात का सारी दुनिया में ढिंढोरा पीटना सबके बस का काम नहीं है । कहा- कौन किसी को देता है, देने वाला तो प्रभु है । फिर भी तू रोज हमारे साथ चाय पीता यदि इस आधार पर हमें चायदाता कहता है तो ठीक है । 

बोला- तो समझ ले जो चाय देता है वह सब कुछ दे सकता है । वह अन्नदाता ही क्या, सब कुछ दाता है । वह साक्षात भगवान है । रेलवे स्टेशन पर लोगों को चाय पिलाते-पिलाते मोदी जी भारत के अस्सी करोड़ लोगों के अन्नदाता हो गए कि नहीं ? विश्वगुरु और सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता हो गए कि नहीं ? 

हमने कहा- लेकिन आज यह गीत गाने का क्या आशय है ? पहले की बात और थी जब बच्चों को  किसान के बारे में कविताएं पढ़ाई जाती थीं ।   

नहीं हुआ है अभी सवेरा पूरब की लाली पहचान।

चिड़ियों के जगने से पहले, खाट छोड़ उठ गया किसान।।

 खिला-पिलाकर बैलों को ले, करने चला खेत पर काम। 

नहीं कभी त्योहार, न छुट्टी, है उसको आराम हराम ।।  

लेकिन अब तो गीत, संगीत, नृत्य सब में मोदी जी ही मोदी जी हैं । जैसे- 

1.है देश दिवाना मोदी का। 

2. पी एम हो मोदी जैसा जो धाकड़ काम करे 

देश का जो दुनिया में ऊंचा नाम करे 

3. मेरे मोदी जी तुम्हारे चरणों में 

यदि प्यार किसी का हो जाए 

दो चारों की बात ही क्या 

सारा जग उसका हो जाए--- आदि आदि । 

बोला- भले ही नाम अन्नदाता का हो लेकिन यह गीत है 'मोदी गीत' है । 

हमने पूछा- कैसे ? 

बोला- मोदी जी के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को 'मोटा अनाज वर्ष' घोषित किया है । यह गीत उन्हीं मोटे अनाजों को उगाने के लिए किसानों को प्रेरित करने के लिए मोदी जी के शब्दों का पद्यानुवाद है । सुन कैसे अद्भुत, अलौकिक बिम्ब हैं। 




मोटे अनाज की कर लो तुम खेती 

पोषण से भरपूर हैं, इनकी यह खूबी 

इनको अपना करें स्वास्थ्य अपना निरोगी 

ज्वार बाजरा मक्का मड़ुआ इनमें आते हैं  

तपती सी धूप कम पानी में भी उग जाते हैं 

इन्हीं भावों को गुजरात मूल की अमरीकी नागरिक गायिका फाल्गुनी शाह और उनके पति गौरव शाह ने भी गाया है । बोल हैं- 

ये अन्न खाकर जियो हजारों साल 

सारे गुण से भरे हैं ये हैं बेमिसाल 

और 16 जून 2023 को रिलीज यह गीत ग्रॅमी अवार्ड के लिए भी नामांकित हुआ है । 

हमने कहा- कोई ये अनाज खाकर हजारों साल नहीं जीया ।हमने बचपन में बाजरा ही खाया है लेकिन क्या तीर मार लिए । घुटनों में दर्द और हार्ट में स्टेंट । सूखे इलाकों में और कुछ हो ही नहीं सकता था । यहाँ के लोग गेहूं के फुलके और चावल को ही बड़ी नेमत समझते थे । जब हम छोटी कक्षाओं में दुनिया के अनाजों के बारे में पढ़ते थे तो मुख्य रूप से चावल और गेहूं ही आते थे । इन आठ दस मोटे अनाजों को तो एक शब्द 'मिलेट' के नाम से ही निबटा देते थे ।जिस मक्के की रोटी का पंजाब दीवाना है उसे विकसित देशों में जानवरों को खिलाते हैं । अगर भारत में चावल और गेहूं की खेती और उन्नत किस्में विकसित नहीं होतीं तो आज लोगों का पेट भरना मुश्किल हो जाता । 

बोला- लेकिन आजकल डॉक्टर बताते हैं कि मोटे अनाज खाने से मोटापे और शुगर की बीमारी से बचा जा सकता है । जी 20 में सम्मेलन में मोटे अनाजों के व्यंजनों का जलवा देखा नहीं ? क्या क्या तो  नाम थे अंग्रेजी में । 

हमने कहा- ये बड़े आदमियों मे चोंचले हैं । काम कुछ करो नहीं और सारे दिन खाते रहो तो मोटापा और शुगर की बीमारी नहीं होगी तो क्या होगा ? तेरे हमारे तो सब कुछ खाते खाते आज तक मोटापा तो दूर, हड्डियों पर माँस तक नहीं आया । 

और इन मोटे अनाजों के बारे में हम और तो नहीं जानते लेकिन कोई बीस दिन पहले बहू मोदी जी  के इसी फैशन के चक्कर में सीकर के 'नाबार्ड' के तहत किसी महिला उद्योग द्वारा बनाए गए बाजरे के बिस्किट 'जश्ने-बाजरा'; ले आई ।क्या शाही, लज़ीज़ और रुआब वाला नाम है ! आज उनका एक पैकेट खोला तो इल्ली पड़ी हुई थी। बिना तकनीक के आधे अधूरे 'मेक इन इंडिया' से ऐसा ही होगा । अन्यथा बड़ी कंपनियों के बिस्किट में कभी इल्ली नहीं निकली । 

अब क्या करें ऐसे लोकल पर वॉकल होकर ।  

फिर भी बता कि खुशियों का हल चलाने के लिए कहाँ चलना है ? 

बोला- तेरे भाषण ने अब कहीं चलने लायक छोड़ा ही कहाँ है ? अब चाय तो मँगवाले, चायदाता !वैसे एक बात तो है, मोदी जी द्वारा मोटे अनाज को 'ऋषि अन्न' या 'श्री अन्न' कहने से इन अन्नों में एक दिव्यता तो आ गई है । 

हमने कहा- वैसे ही जैसे विकलांग को 'दिव्यांग' कहने से एक भव्यता आ जाती है या कुत्ते को 'श्वान' कहने वह राष्ट्रीय पशु जैसा लगने लग जाता है ।  

 


 


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Dec 6, 2023

2023-12-04 हमारी अपनी पनोती


हमारी अपनी  पनोती 


बड़ा विचित्र संयोग हुआ ।  जैसे ही सुबह पाँच बजे दरवाजे का ताला खोलने को हुए बाहर से किसी ने खटखटाया । वैसे तो यहाँ कौन छत पर सोना सूख रहा है जो कोई खूँख्वार चोर-डाकू आएगा फिर भी एहतियातन पूछ ही लिया- कौन ? 

किसी सामान्य उत्तर की बजाय एक बड़ा ही विचित्र उत्तर दरवाजे की लोहे की चादर को फाड़कर हमारे सामने आ खड़ा हुआ-  मैं ।  पनोती । 

हालांकि हम इन बातों में विश्वास नहीं करते । अगर ऐसा ही होता तो सेना की क्या जरूरत थी । खड़े कर देते हजार-दो हजार राष्ट्रीय स्तर के पनोती सीमा पर ले जाकर और बिगड़ जाता पाकिस्तान-चीन जैसे किसी भी पड़ोसी का गणित । लेकिन सच यह है कि सब अपने कर्मों न का फल होता है । पनोती और भाग्यशाली कुछ नहीं होता । 

फिर भी लोग और कुछ नहीं तो किसी पर अपनी कुंठा निकालने के लिए ही पनोती कह देते हैं । वैसे हमारा कोई पनोती-मनौती क्या बिगाड़ेगी । न हमें चुनाव लड़ना और न ही कोई इंटरव्यू-परीक्षा । करवा चौथ माता से डरेगी कोई सौभाग्यवती । हमारे लिए तो जब तक मोदी जी की कृपा है तब तक डी ए मिलता रहेगा और जिस दिन वे ठान लेंगे तो किसी भी कोविद के टीके के बहाने हमारा डी ए का एरियर खा जाएंगे । उस स्थिति में किसी का बाप उन्हें अपने इस निर्णय से डिगा नहीं सकता ।  

आज तक हमने कोई भूत-प्रेत, देहधारी सौभाग्य-दुर्भाग्य नहीं देखा था । जो हुआ ऐसे ही हो गया ।  नियति चलाती रही और हम चलते रहे । कोरोना, तालाबंदी और नोटबंदी के बावजूद सही सलामत हैं । अब तो इतने वरिष्ठ हो गए हैं कि इस चुनाव में तो सरकार ने पूरी चुनाव पार्टी भेजी और घर से हमारा वोट डलवाया । सो किसी साक्षात पनोती को देखने की उत्सुकतावश हमने दरवाजा खोला तो एक श्वेत केशी मुखाकृति ने अंदर झाँका । चेहरा कुछ जाना पहचाना-सा लगा । उसके मुख से दो शब्द निकले- मेरे प्रियजन । 

हमारे दिमाग में तो एक बिजली सी कौंध गई । ये शब्द ही तो मोदी जी ने इस बार स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से कहे थे- मेरे प्रिय परिवार जनो ! 

हालांकि कुछ संकीर्ण दिमाग के लोगों ने समझा कि यह सम्बोधन देश के लिए नहीं बल्कि नागपुर वाले उनके परिवार के लिए है ।हमारा संविधान कहता है कि कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने के बाद किसी संगठन या पार्टी का नहीं बल्कि पूरे देश और 140 चालीस करोड़ जनता का हो जाता है । 

वैसे ही श्वेत श्मश्रु, वैसे ही श्वेत केश । सो इस संबोधन को अपने लिए एक आत्मीय संबोधन मानकर हमने आदर से कहा- आइए मोदी जी । 

आदरपूर्वक उन्हें कुर्सी पर बैठाया । गिलास की बजाय कप-प्लेट में चाय लाकर कहा- आपसे अच्छी चाय कौन बना सकता है ? ओबामा और जिन पिंग तक आपकी चाय के दीवाने हैं । न आपके अनुरूप कोई बैठने की व्यवस्था है । लगता है, शबरी के घर राम आए हैं। सुदामा के तंदुल का द्वारकाधीश भोग लगा रहे हैं । दो चार-दिन बाद आते तो आपको तिल के लड्डू भी खिलाते । पत्नी ने तिल धो करके सुखा रखे हैं। इस रविवार को लड्डू बनाएंगे । 

हम हाथ बांधे खड़े थे । तभी मोदी जी ने कहा- कोई बात नहीं मास्टर, तिल के लड्डू रविवार को खा लेंगे । अभी तो थोड़े से नमकीन ही ले आ । 

हम आवाज पहचान गए। अभी तक संभ्रम में हम न तो उसके मोदी जी के मुखौटे पर ढंग से ध्यान दे पाए थे । न ही उसकी 56 इंची की 1/2 छाती पर शक कर पाए । न ही उसकी मरियल देह यष्टि पर निगाह गई । 

हमने कहा- तोताराम, आज तो बहुत उल्लू बनाया । कुछ सवेरे का धुंधलका और कुछ मोदी जी के नाम का झटका । समझ ही नहीं आए । लेकिन तूने यह सब नाटक क्यों किया ?

बोला- नाटक नहीं । यही आज का सच है । क्या कहीं मोदी जी के चेहरे के अतिरिक्त कुछ दिखाई दे रहा है ?  काशी, मथुरा, अयोध्या में राम मंदिर के शिलापूजन, संसद के उद्घाटन, काशी कॉरीडोर, धरती, आकाश सभी जगह उनका चेहरा ही तो दिखाई दे रहा है ? और तो और  हर रेल को हरी झंडी दिखाने लायक भी क्या इस देश में कोई चेहरा दिखाई देता है ?  प्रह्लाद को तो केवल अपनी भक्ति के कारण खड्ग-खंभ सब जगह राम ही राम दिखाई दे रहे थे लेकिन अब तो सब को सभी जगह मोदी जी का ही चेहरा दिखाई दे रहा है । ऐसे में अगर मैंने मोदी जी का मुखौटा लगा लिया तो क्या हो गया । मैं क्या कोई मोदी जी के नाम से बैंक से लोन लेकर भाग रहा हूँ या मोदी जी के नाम से कश्मीर में वी आई पी गेस्ट बनकर मजे कर रहा हूँ । 

अगर तुझे मेरा मोदी जी का मुखौटा लगाना पसंद नहीं आया तो कोई बात नहीं, तू मुझे पनोती ही समझ ले । 

हमने कहा- नहीं तोताराम, तू पनोती कैसे हो सकता है ? तेरे साथ बतियाते तो इतना लंबा जीवन कट गया । और अगर पनोती है तो हमारी अपनी पनोती है।हमारी जाति की पनोती, हमारे अपने धर्म और देश की पनोती है । हमारी बरामद संसद की स्थायी पनोती है । कोई कटुआ, भड़ुआ पनोती तो है नहीं जिसे नई संसद के शुभारंभ में ही लतिया दिया जाए । 


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