May 31, 2022

ऊधो, मोहि ब्रज बिसरत नाहिं.

ऊधो, मोहि ब्रज बिसरत नाहिं. 


तोताराम के आते ही हमने कहा- बधाई हो, तोताराम. 

बोला- ठीक है. वैसे इसमें बधाई जैसी क्या बात है ? यह तो एक शाश्वत सत्य है कि भारत विश्वगुरु था, है और रहेगा. पिछले लोगों में न तो राष्ट्राभिमान था और न ही महान हिन्दू राष्ट्र की समृद्ध परंपरा पर गर्व. 

अब मोदी जी के प्रयासों से भारत की वास्तविक छवि स्थापित हो रही है. देखा, कैसे अमरीका के राष्ट्रपति और आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मोदी जी का अनुसरण कर रहे थे मानों बुद्ध के पीछे-पीछे भिक्षुगण चल रहे हों. जापान के प्रधानमंत्री की तो निगाहें मोदी जी के जूतों पर ही टिकी हुई थीं.  

और जनता ! उसकी तो बात ही मत पूछ. लोग बावले हुए जा रहे थे. 'क्या एयर पोर्ट और क्या वह होटल जहाँ वे ठहरे थे, जहाँ जहाँ मोदी जी वहाँ वहाँ नारे लगाती उनकी दीवानी जनता. स्वामी विवेकानंद की भी अमरीकी जनता क्या दीवानी हुई होगी. 

हमने कहा- क्या भारत के गोदी मीडिया का कवरेज और भाजपा के मंत्रियों और नेताओं  के ट्वीट ही देखता है या फिर कुछ और भी ?जापान में पिछले २५ वर्षों से बसे, वहाँ के नागरिक और वहाँ की राजनीति में सक्रिय पुणे मूल के योगेन्द्र पुराणिक के अनुसार यह भीड़ वहाँ के भारतीय दूतावास के प्रयत्नों से जुटाई गई थी जो हवाई अड्डे पर 'हो ही हो ही' चिल्लाने के बाद फ़टाफ़ट होटल पहुँच कर यही कर्मकांड करने के लिए खड़ी हो गई.  

जब जवाहरलाल नेहरू जापान गए थे तो हजारों जापानी उन्हें देखने सुनने आये थे. वे जुटाए गए लोग नहीं थे. ऐसे ही १९४९ में जब नेहरू जी अमरीका गए थे तो राष्ट्रपति ट्रूमैन उनके स्वागत के लिए हवाई अड्डे पहुंचे थे. नेहरू जी का विमान कुछ लेट था. राष्ट्रपति हो सलाह दी गई कि अभी लौट चलें. बाद में आ जायेंगे. राष्ट्रपति ने उत्तर दिया- नहीं, वापिस नहीं चलेंगे. मैं नेहरु को प्लेन से उतरते देखना चाहता हूँ. 

 तू साँस ले तो बताएं कि हम तुझे जापान में मोदी जी के नेतृत्त्व में भारत के विश्वगुरु बनने की नहीं बल्कि गीतांजलि श्री की पुस्तक 'रेत समाधि' को बुकर मिलने की बधाई देना चाहते थे लेकिन तू बात को घुमाकर मोदी जी द्वारा भारत को विश्वगुरु बना दिए जाने की तरफ ले गया. 

बोला- कौन है यह ? कभी नाम नहीं सुना. 

हमने कहा- 'कश्मीर फाइल्स' के अंधों को घृणा के अलावा और सूझता ही क्या है.  तूने नाम नहीं सुना, इससे क्या ?तूने तो कृष्णा सोबती, भीष्म साहनी, महीप सिंह, मोहन राकेश किसी का भी नाम नहीं सुना होगा. मंटो की 'टोबा टेकसिंह' भी तेरे क्या समझ में आएगी. पढ़ने के लिए संस्कार चाहियें, फिल्म देखकर गाली निकालने वाले, उर्दू बोलने वालों को पकिस्तान जाने की सलाह देने के अलावा और कर ही क्या सकते हैं. 

लेखिका को इससे पहले भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं. वैसे तो बुकर अंग्रेजी में लिखी पुस्तक को दिया जाता है लेकिन अभी २००५ से किसी अन्य भाषा की पुस्तक के ऐसे अंग्रेजी अनुवाद को जो ब्रिटेन में छपा हो, 'अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार' के नाम से एक पुरस्कार देना भी शुरू किया है. इसका बढ़िया अनुवाद एक अमरीकी महिला डेज़ी रॉकवेल ने  किया है. पुरस्कार अनुवादक और लेखक के बीच आधा-आधा बंटेगा.

बोला- वैसे किस-किस ने बधाई दी है ?

हमने कहा- प्रियंका, राहुल, शशि थरूर और बहुत से लेखकों ने बधाई दी है.

बोला- मोदी जी ने बधाई दी या नहीं ? अमित शाह जी गृहमंत्री हैं और राजभाषा विभाग उनके पास है. उनके इस बारे में क्या विचार हैं ? 

हमने कहा- इसमें मोदी जी और अमित जी कहाँ से आ गए ?  किसी भारतीय भाषा में लिखी पुस्तक को पहली बार यह सम्मान मिला है और हिंदी की रचना को मिला है तो यह हिंदी भाषा और भारत के लिए गर्व की बात है. अब भविष्य में भारतीय भाषाओं के साहित्य के लिए भी वैश्विक मान्यता के द्वार खुलेंगे. 

बोला- आजकल ये साहित्यकार और बुद्धिजीवी बहुत गंध मचाये हुए हैं. इन्हें हिंदुत्व और हिन्दू राष्ट्र से पता नहीं क्या परेशानी है. एक और भी तो है वह अरुंधती राय. शायद उसे भी तो मिला हुआ है यही पुरस्कार. पता नहीं, उसकी हरकतें ? जो चाहे बोलती रहती है. इस नई लेखिका का भी क्या पता, ऐसी ही कोई हो. 

हमने कहा- लेकिन यह देश के लिए गर्व का क्षण है. बधाई देने में क्या जाता है ? मोदी जी तो किसी फिल्म वाले या वाली तक को छोटी-छोटी बातों पर बधाई देते रहते हैं.

बोला- फिर भी इसे बधाई नहीं दी तो कोई तो कारण होगा ? जब मोदी जी ने बधाई नहीं दी है तो दलाई लामा वाले मामले की तरह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जी ने भी बधाई नहीं दी होगी.  बिना जाने-समझे किसी संदेहास्पद मामले में बधाई देकर रिस्क लेना ठीक नहीं. 

वैसे इस किताब में है क्या ?

हमने कहा- इसमें विभाजन के बाद भारत में रह रही एक ८० वर्षीय और पर्याप्त बीमार महिला की कहानी है जो  अचानक ठीक होकर पाकिस्तान पहुँच जाती है. 

बोला- यह भी कोई कहानी है ? जिसे अब भी पाकिस्तान से मोहब्बत है उसकी यहाँ ज़रूरत ही क्या है ? जाए पाकिस्तान. 

हमने कहा- देखो, सामान्य जनता न तो आपस में घृणा करती है और न ही उसे किसी युद्ध में कभी कोई रुचि होती. वह तो शासकों द्वारा रचे गए प्रपंचों के कारण व्यर्थ के कष्ट झेलती है. उसका मन तो हमेशा एक साथ बिताये सुखद दिनों की याद में ही जीना चाहता है. दो देश बन गए तो क्या ? जहां जो जीवन जिया जाता है वह वहाँ की सुगंध से भरा होता है, और आदमी उसी के लिए किलसता है.  मोदी जी तो खैर, गुजरात आते जाते रहते हैं फिर भी उन्होंने कहा-  पता होना चाहिए मोदी 'गुजरात' की मिट्टी से बना है.  अपने जन्म का, बचपन का, यादों का स्थान आदमी की रगों में बहता है.तभी तो मोदी जी 'भारत की मिट्टी' की बजाय 'गुजरात की मिट्टी' कहा. अच्छा है. क्या बुराई है इसमें.

क्या 'विभाजन विभीषिका' मनाकर हम शांति प्राप्त कर सकते हैं ? अडवानी जी, मनमोहन सिंह जी के जीवन से क्या पाकिस्तान में उनके जन्म स्थान से अलग किया जा सकता है ?

यदि मन का मैल हटाकर सोचेंगे तो घृणा का कोई कारण नहीं मिलेगा. इतिहास और भूतकाल की गलतियों से सीखा जाना चाहिए. उनका अचार डालना ठीक नहीं. 

कृष्ण मथुरा में रहते हुए अपने मित्र उद्धव से कहते हैं-

ऊधो, मोहि ब्रज बिसरत नाहिं. 


 



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May 28, 2022

अमरीका से कट्टी


अमरीका से कट्टी  


आज तोताराम का मूड ऑफ था वैसे ही जैसे मोदी जी के टैगोरत्त्व को बंगाल चुनावों में अस्वीकृत कर दिए जाने से राष्ट्रभक्तों का मूड ऑफ हो गया था. बोला- मास्टर, अब तो अमरीका से कट्टी करनी ही पड़ेगी. 

हमने कहा- क्या तेरे क्लासफेलो बाईडेन साहब ने भाव नहीं दिया ?

बोला- कर ले मजाक. कौन किसी की आहत भावना को समझता है ?  बाईडेन मेरे क्लासफेलो न सही लेकिन ट्रंप तो मोदी जी के जिगरी यार हैं. कैसे दौड़कर मिले थे, ह्यूस्टन में 'हाउ डी मोदी' और नरेद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम में 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम में ! एक प्राण दो देह. उन्होंने तो मोदी को 'राष्ट्रपिता' तक का दर्ज़ा ही दे दिया था. 

हमने कहा- तो क्या हुआ ?  किस नामाकूल अमरीकी ने हमारे प्रिय अनुज का दिल खंडित कर दिया ?

बोला- इसके कई कारण है. पहला तो यह कि जब हम यहाँ भारतीयता और हिंदुत्व की पवित्रता की रक्षा के लिए  धर्म और मांसाहार के बीच दूरियाँ बनाने के लिए झटका और हलाल तथा रामनवमी और ईद पर मांस विक्रय बंदी  जैसे ज़रूरी कार्यक्रम सम्पूर्ण राष्ट्र में चला रहे हैं वहाँ अमरीका में उन जगहों में भी तरह तरह के मांस, तरह तरह के पैकिंग में बेचे जाते हैं जहां धर्म-प्राण हिन्दू भारतीय व्रत के लिए अपने फलाहार खरीदने जाते हैं. यहाँ तक कि उन स्टोरों में बड़े मज़े से मांस भून-भान कर वहीँ खाने के लिए उपलब्ध भी करवा देते हैं. हिंदुत्त्व की कैसी निर्दय उपेक्षा ? 

हमने कहा- तो फिर सच्चे हिन्दुओं को अमरीका छोड़कर आ जाना चाहिए. धर्म से बड़ा तो धन और धंधा नहीं होता. या फिर वहीँ अमरीका में नई शाकाहारी पार्टी बना लें, या किसी भी मांसाहारी को वोट न दें. वैसे 'परिवर्तित हृदय'  सम्राट अशोक जैसे किसी राजा के अतिरिक्त तो सभी राजा मांस खाया ही करते थे.   

बोला- लेकिन वे तो गौमांस भी खाते और खुले में बेचते हैं. आखिर धर्म की इतनी ग्लानि तो बर्दाश्त नहीं की जा सकती ना.  ऐसे में तो कोई न कोई 'संभवामि युगे युगे' होना ही चाहिए.

हमने कहा- लेकिन पक्के मित्रों से मात्र इतनी बात से ही तो संबंध नहीं तोड़े जा सकते. अब तो जापान में हुए क्वाड सम्मेलन में बाईडेन ने भी मोदी जी के नेतृत्त्व को स्वीकार कर लिया. फोटो नहीं देखा, कैसे मोदी जी के नेतृत्त्व में आस्ट्रेलिया, अमरीका और जापान के राष्ट्राध्यक्ष मोदी जी के पीछे-पीछे चल रहे थे. प्रगतिशील, निष्पक्ष और विश्वसनीय पत्र 'पांचजन्य' की हैड लाइन नहीं देखी-

'विश्व गुरु भारत...नेतृत्त्व करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी'....

देश की विशिष्ट बुद्धिजीवी, तटस्थ विचारक और विद्वान स्मृति ईरानी जी का ट्वीट भी पढ़ लेता- 

प्रधान सेवक नोज द वे, गोज द वे एंड शोज द वे.

वैसे हमारे हिसाब से वे इस प्रकरण का एक ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण एंगल तो भूल ही गईं. उन्हें अंत में चौथा अनुप्रास 'पोज़' भी फिट करना चाहिए था. 

बोला- ठीक है, मास्टर, वे मोदी जी को मान्यता देते हैं, और मांसाहार भी सभी कालों में, सभी धर्मों और देशों में रहा है लेकिन हिंदुत्व तथा हमारे आराध्यों, भावनाओं और आस्था का अपमान तो सहन करना संभव नहीं. हमसे तो किसी का 'मोहम्मद' नाम होना ही बर्दाश्त  नहीं होता. हमारा तो 'मोहम्मद' की आशंका में 'भंवर लाल जैन' पर ही हाथ चल जाता है. 

यहाँ हम हर मस्जिद की खुदाई करवाने में लगे हैं और वहाँ अमरीका में  कोई तीसेक साल पहले साक्षात् शिवलिंग के लिए भी अमरीका ने मंदिर बनाने के लिए जगह नहीं दी. 

हमने कहा- हमने भी कुछ ऐसा समाचार पढ़ा तो था. 

बोला- पढ़ा क्या, बड़ी खबर थी. सीएनएन ने भी उसका कवरेज किया था. सेंफ्रंसिसिको में गोल्डन गेट पार्क में अचानक कलात्मक पत्थरों और स्तंभों के बीच बाबा प्रकट हुए, लोगों ने दूध, दही, जल आदि से अभिषेक किया, पूजा-पाठ शुरू कर दिया. जब आस्था और भावना हो तो किसी में भी 'प्राण-प्रतिष्ठा' हो ही जाती है. 

हमने कहा- कहीं वह कुछ और तो नहीं था.

बोला- अनास्थावान तो अडंगा लगायेंगे ही जैसे कि ज्ञानवापी में शिवलिंग को लोग फव्वारा बता रहे हैं, वैसे ही वहाँ के कुछ कर्मचारियों ने कहा कि यह एक रोड ब्लोकर है जो कभी किसी काम के चलते रोड ब्लोक करने के लिए रखा गया था और इसके पास जो कलात्मक पत्थर और खम्भे हैं वे किसी स्पेनिश व्यक्ति के द्वारा १९३७ में यहाँ कुछ निर्माण करने के लिए जहाज से मंगवाए गए  स्पेन की १२ वीं शताब्दी की किसी क्रिश्चियन मोनास्ट्री ने अवशेष हैं .  लेकिन मास्टर, वह खम्भा तो ऊपर से एकदम गोलमटोल, चिकना और सुन्दर साक्षात् लिंग जैसा ही दिखाई दे रहा था. और फिर तिलक लगने और दुग्धाभिषिक्त होने के बाद तो साक्षात् बाबा विश्वनाथ लगने लगा था. लेकिन उन दुष्ट यवनों ने एक न सुनी. अब बाबा वहाँ पार्क के एक कोने में प्राण-प्रतिष्ठा के इंतज़ार में पड़े हैं. बाबा की उपेक्षा से कलेजा फटा जाता है. 

मोदी जी बहुत उदार और सहिष्णु व्यक्ति हैं. वे यहाँ भी चल रही खुदाई-फुदाई और फव्वारा और शिवलिंग के बारे में मौन रहते हुए विकास को सही दिशा में अग्रसर करने में संलग्न है. हो सकता है वे बाबा के इस अपमान के बावजूद शायद अमरीका से संबंध न तोड़ें लेकिन मैंने तो सोच लिया है कि किसी अमरीकी राष्ट्रपति से कोई संबंध नहीं रखूँगा. 

हमने कहा- बरामदा निर्देशक मंडल के सदस्य होने के नाते हम इस भीष्म प्रतिज्ञा में हम तेरे साथ हैं लेकिन तुझे मोदी जी से निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि अभी मई के शुरू में ही अपनी जर्मनी यात्रा में अपने स्वागत में उन्होंने भगवा झंडा लहरवाकर हिंदुत्व के लिए सकारात्मक संकेत दे तो दिया है और तिरंगे को उसकी औकात बता दी है.


 

  


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May 27, 2022

व्हाइट हाउस के नीचे राम मंदिर


व्हाइट हाउस के नीचे राम मंदिर   


तोताराम ने चाय का गिलास उठाते हुए कहा- बाद में झिकझिक मत करना.

हमने कहा- तू कौनसे चाय के पैसे देता है जिसे लेकर झिकझिक करेंगे. घंटे आध घंटे परनिंदा करनी है, चाय पर चर्चा करनी है और अपने-पराये 'मन की बात' की बात करनी है और हाथ झाड़कर कर चले जाना है. झिकझिक करेंगे तो भी दो चार मिनट. फिर रात गई, बात गई. कल फिर कोई ऐसी-वैसी नई झिकझिक. हम नेताओं की तरह मन में दुश्मनी पालकर कभी नहीं कहेंगे कि...कभी भूलता नहीं. 

वैसे आज यह 'झिकझिक' की बात तेरे दिमाग में आई कैसे ?

बोला- आजकल जगह-जगह खुदाई, कमरे-खुलाई, फोटो उतराई का दौर-दौरा पड़ा हुआ है. कोई ताजमहल के कमरे खुलवा रहा है तो कोई ज्ञानवापी की विडियोग्राफी करवा रहा है.  

हमने कहा- ये लोग उस संस्कृति के उपासक है जो न खुद जीते हैं और न किसी को जीने देते हैं. घृणा और दुश्मनी  के बिना इनका हीनभावनाग्रस्त पौरुष संतुष्ट ही नहीं होता.

बोला- लेकिन कोर्ट ने ताजमहल वाले मामले में तो फरियादियों को डांट पिला दी लेकिन ज्ञानवापी की वीडियोग्राफी चालू है.

हमने कहा- यह तो ताजमहल के कमरे खुलवाने वालों को भी पता था. सरकार को भी ताजमहल की यथास्थिति बरकरार रखनी है. सो कोर्ट ने एक में डांटकर संतुलन बना दिया वास्तव में जो कुछ ज्ञानवापी में करवाना था वह तो चालू है ही.  'ज्ञानवापी' का मतलब है 'ज्ञान की वापी' (बावड़ी) यदि उसमें से 'ज्ञान का जल पीना' है तो पी लो. 

बोला- फिर भी झिकझिक तो चल ही रही है. जयपुर राजघराने की दिया कुमारी ने ताजमहल को अपना बता दिया है. वैसे झिकझिक तो मैं भी कर सकता था कि जब मेरे पूर्वज कुम्भनदास के साथ अकबर के पास गए थे तो उन्हें, जहां आजकल ताजमहल बना हुआ है, वहाँ की ज़मीन दिखाकर अकबर ने कहा था कि आप चाहें तो यहाँ मज़े से खेती कर सकते हैं. फिर हमारे पूर्वज राजस्थान आ गए लेकिन अधिकार तो बनता ही है.  

हमने कहा- यदि ऐसा है तो तोताराम, हमारा भी एक मामला बनता है. अमरीका के 'व्हाइट हाउस' की खुदाई करवाई जानी चाहिए. उसमें हमारे पूर्वजों के अधिकार वाला एक राम मंदिर निकलेगा.

तोताराम बोला- मास्टर, तो बोलता कम है लेकिन जब बोलता है तो कफ़न फाड़. वाशिंगटन में व्हाइट हाउस के नीचे राम मंदिर ? वायरल होते ही दुनिया भर के चेनल वालों की लाइन लग जायेगी. वैसे तेरे इस दावे का आधार क्या है ?

हमने कहा- ऐसे दावों के आधार भी ऐसे ही होते हैं. जब अहिरावण राम और लक्ष्मण को देवी की बलि देने के लिए  पाताल में गया था तो उनकी खोज में हनुमान जी वहाँ गए थे. उन्होंने अहिरावण को मारकर वहाँ का राज अपने 'विचित्र पुत्र' को दे दिया था.

बोला- दत्तक पुत्र, औरस पुत्र, क्षेत्रज पुत्र, मानस पुत्र आदि तो सुने थे. वैसे पुत्र तो पुत्र होता है लेकिन यह  'विचित्र-पुत्र' क्या हुआ ? 

हमने कहा- लंका दहन के बाद जब हनुमान जी ने समुद्र में अपनी पूंछ बुझाई तो उनके टपके पसीने की एक बूँद एक मछली पी गई और गर्भवती हो गई. उससे जो बच्चा हुआ वही मकरध्वज कहलाया और उसे हनुमान जी का पुत्र माना जाता है. 

तोताराम उत्सुकता से बोला- लेकिन लंका जलाने के एक महीने बाद तो रावण मारा गया था. तो क्या एक महीने में ही हनुमान जी का पुत्र पैदा होकर अहिरावण के यहाँ चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर भी बन गया. बहुत फ़ास्ट मामला है.

हमने कहा- पुराणों पर शंका करके क्यों धर्मप्राण देशभक्तों के द्वारा अपनी हत्या को निमंत्रण देता है. सुना नहीं, पट्टाभि सीतारामैया की एक कहानी सुनाने पर तो लखनऊ यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर की जान पर बन आई है. और तू हनुमान-पुत्र पर शंका कर रहा है. पुराणों पर प्रश्न करना ही पाप और प्राणदंड का अपराध बनता है. 

बोला- फालतू बातें छोड़ और शीघ्र 'वाशिंगटन के राम मंदिर' की बात बता.

हमने कहा- रामजी के अयोध्या लौट जाने के बाद कुछ दिन उनके साथ रहकर हनुमान जी भी लौट गए. वे कभी- कभी अपने विचित्र पुत्र के यहाँ पाताल में भी चले जाते थे. वहाँ उनके पुत्र मकरध्वज ने उनके पूजा करने के लिए राम-मंदिर बनवा दिया. कालान्तर में हमारे पूर्वजों को उसका पुजारी नियुक्त किया गया. हमारे पूर्वजों को अमरीका की ठण्ड बर्दाश्त नहीं हुई तो वे भारत लौट आये. हजारों साल बाद योरप के कुछ गोरे लोग वहाँ गए और कब्ज़ा कर लिया. कालान्तर में आज के अमरीका ने उस स्थान पर बने मंदिर को गिराकर अपने राष्ट्रपति का निवास स्थान 'व्हाइट हाउस' बना लिया. 

पहले उस राममंदिर का नाम हनुमान जी के एक पर्यायवाची 'शंकरसुवन' के नाम पर 'शंकरसुवन राम मंदिर' रखा गया था जिसे बदलकर गोरों ने 'वाशिंगटन' रख दिया.

बोला- तो बता, अब मुझे क्या करना है ? 

हमने कहा-अगर हो सके तो एक अर्जी किसी 'हिन्दू गौरव रक्षा सेना' के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम से लगवा दे. क्या पता, कल को चुनाव में विधायक का टिकट ही मिल जाए. हम मोदी जी की तरह दो-दो बार प्रधानमंत्री बनने के बाद भी संतुष्ट न होने वाले नहीं हैं. हम तो एक बार विधायक हो जाएँ उसके बाद भले ही शपथ-ग्रहण करते ही ख़ुशी से हार्ट फेल हो जाए. कम से कम भूतपूर्व विधायक तो कहलायेंगे. घर वालों को मुफ्त इलाज तो मिलेगा.

बोला- वैसे यह तो सच है ही कि अहिरावण रावण का रिश्तेदार था और अपनी किसी देवी को राम-लक्ष्मण की बलि देने के लिए ले गया था. इससे यह तय होता है कि वहाँ देवी का मंदिर था. दूसरे जब वह रावण का रिश्तेदार था तो शिव का भक्त भी होगा. शिव और देवी में एक चीज कॉमन है- त्रिशूल. इसलिए वहाँ त्रिशूल या शिवलिंग में से एक तो निकलेगा ही. और उस स्थिति में अमरीका में बसे बीस लाख हिन्दू पूजा पाठ शुरू कर देंगे. 

हमने कहा- लेकिन क्या कैपिटल हिल ( व्हाइट हाउस ) में घुसना इतना आसान है ?

बोला- क्यों नहीं, जनवरी २०२० में व्हाइट हाउस पर कब्ज़ा करने के लिए, 'मेक अमरीका गेट अगेन' वाले ट्रंप के समर्थक गुंडे नहीं घुस गए थे ? अमरीका में रहने वाले हमारे धर्म-प्राण भाई हिंदुत्व की रक्षा के लिए यदि कैपिटोल हिल में नहीं घुस सकते तो कम से कम उसके सामने सड़क पर बैठकर वहाँ हनुमान चालीसा या शिव तांडव स्तोत्र का पाठ तो कर ही सकते हैं.  'अबकी बार : ट्रंप सरकार' के नारे से मुग्ध हम सच्चे हिन्दू तो अब भी २०२४ में ट्रंप की वापसी का स्वप्न देख रहे हैं. 

हमने कहा- लेकिन खुदाई के लिए  जे.सी.बी. का प्रबंध तो वहीं से करना पड़ेगा क्योंकि हम तो स्पेयर कर नहीं  सकेंगे.  हमारी तो सारी जे.सी.बी. भारत को 'मेक अमरीका ग्रेट अगेन' की तरह 'हिन्दू राष्ट्र' बनाने के लिए मस्जिदों की खुदाई में व्यस्त हैं.    




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May 24, 2022

हनुमान जी का मनोबल

हनुमान जी का मनोबल  


धर्म और लोकतंत्र हमेशा संकट में रहते हैं. जिस भी नेता से बात करो; पक्षी हो या विपक्षी, लोकतंत्र हमेशा खतरे में बताता है. जो कुर्सी से दूर है उसका तो लोकतंत्र खतरे में है ही. पता नहीं दूसरा कब तक उस पर बैठा रहेगा ? जब तक उसका नंबर आएगा वर्तमान में बैठा हुआ आदमी पता नहीं, बैठ-बैठ कर लोकतंत्र का क्या हाल कर देगा ? किसी और के बैठने लायक भी छोड़ेगा या नहीं लोकतंत्र को ? जो बैठा है उसे भी डर सताता रहता कि पता नहीं कब, कौन चरण छूने के बहाने नीचे से लोकतंत्र को खिसका कर ले जाए. 

जो पक्षी, विपक्षी कुछ नहीं है. बस, लोकतंत्र का बोझा ढो रहा है,उसे भले ही लोकतंत्र का खतरा सताए या नहीं, लेकिन धर्म उसका भी संकट में रहता ही है. बार-बार सोचता है- 
 मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं
बड़ी मुश्किल में हूँ मैं किधर जाऊं

या फिर सोचता है,नमक या रूई कुछ भी लदा हो पीठ पर, बीच नदी में लोट ही जाऊं. जो होगा सो देखा जाएगा. या तो रूई भीग कर दोगुनी भारी या फिर नमक पानी में घुलकर बोझ से मुक्ति.

हमने सुबह उठाने के लिए पांच बजे का अलार्म लगा रखा है. यदि साढ़े चार बजे भी आँख खुल जाती है तो हम फिर सोते नहीं क्योंकि जब तक दुबारा नींद आएगी तब तक उठने का टाइम हो जाएगा. पांच बजे उठते हैं तो भी लगभग साढ़े पांच बजे तक दूध लेने के लिए निकल लेते हैं. वैसे भी दूधवाली ने कह रखा है- मास्टर जी, जब मुल्ला बोले तब आ जाया करो. आज मुल्ला ५.३९  पर बोला.

आज हमें निकलने में देर हो गई. हमारा उठना, मुल्ला का बोलना मतलब अज़ान और तोताराम का आना एक साथ हुए.
 
आते ही बोला- जल्दी से लगा यह स्पीकर छत पर. 

हमने पूछा- बात क्या है ? लाउड स्पीकर की क्या ज़रूरत आ पड़ी ? क्या जनता को किसी आंधी-तूफ़ान, भूकंप की कोई सुरक्षात्मक सूचना देनी है या किसी कोरोना को भगाने के लिए ताली-थाली बजाने का वैज्ञानिक टोटका करने का सन्देश देना है ? ? 

 बोला- ऐसा तो कुछ नहीं फिर भी ज़रूरत है. तुझे कुछ पता नहीं. सुन नहीं रहा, अजान शुरू हो गई. हमें भी फ़टाफ़ट मुकाबले में हनुमान चालीसा शुरू कर देना है. 

 हमने कहा- क्या परेशानी है ? यह तो आज क्या, हम तो रोज ही सुनते हैं. यही टाइम होता है दूध लेने जाने का और यही टाइम होता है मुल्ला के अज़ान देने का . 

बोला- पुरानी बातें भूल जा. अब तो ईंट का ज़बाब पत्थर से देना होगा. आखिर कब तक बर्दाश्त करेंगे. ऐसे तो ये हिन्दू धर्म को नष्ट ही कर देंगे. 'लव जिहाद' करके जल्दी की बहुमत में आने की तरह अब 'लाउडस्पीकर जिहाद' चला रखा है. हनुमान जी का मनोबल बनाए रखने के लिए भी लाउडस्पीकर बहुत ज़रूरी है. 

हमने कहा- हनुमान जी महावीर हैं. उनका मनोबल कौन कम कर सकता है ? और ऐसे क्या कोई धर्म नष्ट होता है ? दो मिनट में अजान पूरी हो जायेगी. बहुत से मुसलमान सुबह-शाम की नमाज पढ़ते हैं. उन्हें सूचना देनी है. हमारा तो ऐसा कोई नियम है नहीं. जिसका मन हो पूजा करे, जो व्रत चाहे रखे. न मन हो तो कुछ भी न करे. हमारे यहाँ पूरी छूट है. यही तो मज़ा है हिदू धर्म का. 

बोला- इस मज़े-मज़े में ही तो धर्म नष्ट हुआ जा रहा है. ये तीन मिनट अजान देंगे तो हम तीस मिनट हनुमान चालीसा पढेंगे तब पता चलेगा. इस ध्वनि और अधर्म प्रदूषण का डटकर मुकाबला करना है.

हमने कहा- इस मुकाबले में क्या ध्वनि-प्रदूषण कम होगा ? इससे तो जाने कितना बढ़ जाएगा ? हम सुधार के चक्कर में सब सत्यानाश कर लेंगे. और फिर सुबह-सुबह इतना समय किसके पास है. सबको अपने-अपने काम हैं, पोते-पोतियों को स्कूल के लिए तैयार करना, बेटे-बहुओं को ड्यूटी के लिए तैयार होना, दूध लाना, पानी भरना, कुत्ते को घुमाना-खाना देना, हजार काम हैं. जब समय मिलेगा तब आराम से हनुमान चालीसा भी पढ़ लेंगे. अभी कौनसा हनुमान चालीसा का समय निकला जा रहा है. न हुआ तो हनुमान जी को मेसेज कर देंगे या वीडियो भेज देंगे.वे भी फुर्सत से देख-सुन लेंगे. आजकल तो पूजा भी ऑनलाइन होने लगी है. भेंट-पूजा डिजिटल क्रेडिट कर देंगे. लेट एवरीबडी टेक हिज/हर ओन टाइम. 

बोला- तेरी बात है तो ठीक लेकिन फिर भी ज़माने की हवा को समझा कर. कल को कोई कह देगा कि ये दोनों मास्टर, देशद्रोही हैं, मुस्लिम समर्थक हैं, अज़ान के समय धार्मिक संतुलन बनाने के लिए हनुमान चालीसा नहीं पढ़ते. इसके बाद कोई शिवभक्त तेरे-मेरे घर के नीचे शिवलिंग देख लेगा, कोई याचिका दायर कर देगा. प्रमाणित होने से पहले लोग घर खोदकर मंदिर बना देंगे. कोई नहीं सुनेगा कोर्ट का आदेश है कि १५ अगस्त १९४७ की स्थिति हर हालत में बहाल रखी जाए. इसलिए हनुमान जी के लिए नहीं तो धर्म के इन भूत-पिशाचों से बचने के लिए सही, लगा ही दे पांच मिनट के लिए हनुमान चालीसा.

हमने कहा- हालात को देखते हुए लगता है कि हनुमान जी खुद इन पिशाचों से परेशान हैं. हमने तो कभी हनुमान जी को लाउड स्पीकर पर 'श्री रामचंद्र कृपालु भज मन....'  गाते नहीं सुना. लोगों को नमाज़ का समय होने की सूचना ज़रूर लाउड स्पीकर द्वारा या मीनार पर चढ़कर ऊँची आवाज़ में दी जाती लेकिन जहां तक नमाज (प्रार्थना) की बात है तो वह तो मन ही मन की जाती है. अपने अंतरतम में बैठे उस परमात्मा से बात करने के लिए क्या कोई रेडियो, टी.वी. या लाउड स्पीकर का सहारा लेता है ? 

बोला- तू कह तो सही रहा है लेकिन कोई बात नहीं, इसे आपद्धर्म मान कर ही स्वीकर कर ले. 

हमने कहा- सच्चा धर्म अपवाद और आपदा की आड़ नहीं लेता. प्रेम प्रदर्शन होते ही लम्पटता बन जाता है. क्या जटायु ने सीता को रावण से बचाने का वीडियो 'आर.एम.ओ. ' ऑफिस पहुंचाया था ? और आज ! लोग मोदी जी के 'मन की बात' सुनते हुए स्थानीय अखबार में फोटो छपवाते हैं, उसकी फाइल बनाकर रखते हैं जिससे चुनाव में  पार्टी अध्यक्ष से टिकट माँगने में कुछ वजन बढ़ जाए. 

आज हनुमान, राम और शिव की आड़ में सरे आम भले आदमियों की लिंचिंग का भय फैलाते लोगों ने क्या राम से यही सीखा है ? राम ने अपने ज़माने में न तो मंथरा पर यूएपीए लगाया और न ही सीता की निंदा करने वाले धोबी पर एन.एस.ए. लगाया और न ही भक्तों को इतनी छूट दी कि वे राम की आड़ में, भावना को ठेस लगने के बहाने, किसी का भी सिर फोड़ दें. 

बोला- इनकी भी मज़बूरी है. तब चुनाव भी तो नहीं हुआ करते थे. यदि जनता इनके नाम भी अनंत काल के लिए गद्दी लिख दे तो शायद ये भी ऐसे फसाद न करें. 

हमने कहा- कोई ठिकाना नहीं. कहा है- प्रभुता पाय काहि मद नाहीं ? 

बोल- कुछ ज्यादा छोटे होते हैं वे मदांध ही नहीं, पागल भी हो जाते हैं. 



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May 21, 2022

चुनावी कर्मकांड

चुनावी कर्मकांड 


१८ अप्रैल २०२२ के 'विश्वसनीय अखबार' का समाचार है इसलिए उसे आधार बनाकर लिखा जा सकता है. वैसे इस बात की भी पूरी संभावना है कि बयान देने और छापने वाला दोनों ही बड़ी सफाई से बदल भी सकते हैं. बलात्कारी, भड़काऊ बयान देने वालों को जमानत और सुरक्षा मिल सकती है तो एक बुजुर्ग मास्टर को झुठलाना क्या मुश्किल है ? लेखक के आलेख लिखने से पहले ही, भारत के किसी सुदूरतम भाग की पुलिस, किसी की भावनाएं आहत होने  की संभावना पर एडवांस में टिकट बुक करवाकर, प्लेन से जाकर उसे गिरफ्तार कर सकती है.

खैर, फिर भी समाचार इस प्रकार है-

अखिल भारतीय चिंतन बैठक (भास्कर १८ अप्रैल २०२२)

भोपाल. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत में जो गैर हिन्दू हैं वे हिन्दू पूर्वजों की ही संतान हैं. वे लोग मानें या न मानें. न राष्ट्र बदला और न पुरखे, सिर्फ गैर हिन्दुओं की पूजा पद्धति, तौर-तरीके और परम्पराएं बदली हैं. 

हिंदुत्व को लेकर भागवत ने कहा कि हिंदुत्व का कर्मकांड सिर्फ वोटों के लिए है. सारे राजनीतिक दल ऐसा कर रहे हैं. 


हमने तोताराम से कहा- तोताराम, भले ही हमारे विचार भागवत जी से नहीं मिलते हों लेकिन हमें उनके जैसा स्पष्ट वक्ता दुनिया में कहीं दिखाई नहीं देता.हालांकि वे शुद्ध सांस्कृतिक व्यक्ति है, राजनीति से उनका दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है फिर भी राजनीति के बारे में उन्होंने जो कहा है वह एक कटुसत्य है. क्या बात है ! हिंदुत्व का कर्मकांड सिर्फ वोटों के लिए है.

बोला- तो तुझे अब पता चला है. यह तो अंधे को भी दिखाई दे रहा है कि २०२४ में चुनाव हैं. दक्षिण भारत में हिन्दीभाषी अंधभक्तों की दाल गल नहीं रही है क्योंकि दक्षिण भारत वालों की अपनी संस्कृति, भाषा और इतिहास है. वे हमारी तरफ गोमूत्र और गोबर से नहीं बहल सकते. इसलिए उधर घुसपैठ करने के लिए कर्नाटक को चुना गया है. वहीँ हिजाब, हलाल, अज़ान सब कुछ हो रहा है.

हमने कहा- हमें भी लगता है कि इस समय हिन्दू राष्ट्र, अखंड भारत, हनुमान चालीसा, लाउड स्पीकर आदि जो कुछ हो रहा है उसका किसी के भले-बुरे से कोई संबंध नहीं है. उससे किसी का कोई लाभ-हानि नहीं होने वाला है. हिजाब, बुर्के, घूँघट या खुले मुंह, झटका या हलाल का किसी के स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार, सुख-दुःख से कोई संबंध नहीं है. यह सब चुनाव जीतने के लिए वोटों का ध्रुवीकरण करने का षड्यंत्र ही  नहीं बल्कि खुल्लम खुल्ला खेल है. इससे अधिक कोई व्यक्ति कितना साफ़ बोल सकता है ?

कर्मकांड धर्माचार्यों का लोगों को उलझाने का नाटक है. ईश्वर सभी जगह है तो किसी खास दिशा की तरफ मुंह करना, किसी ख़ास समय, ख़ास तरीके से पूजा करना या न करना सब कुछ बराबर है क्योंकि ईश्वर आपके कर्मों-कुकर्मों सब को जानता है. आपकी आवश्यकताओं और पात्रता को भी जानता है तो फिर लाउड स्पीकर से उसको सुनाने से क्या फायदा है ? वह तो मौन मूक जीवों की भी सुनता ही होगा.

बोला- किसी के मरने पर चाहे कितना ही लम्बा जुलूस निकालो, कितने की शोक सन्देश पढो, मरने वाले की कितनी ही ऊची मूर्तियाँ बनाओ कोई फर्क नहीं पड़ता. मरने वाला वापिस नहीं आता. सभी को एक दिन मरना ही है. यदि उसकी देह का मेडिकल कालेज को दान आकर दिया जाए तो मिट्टी कुछ तो काम आएगी. लेकिन ऐसा होने लगे तो कफ़न,काठी, श्मशान वालों के धंधे का क्या होगा, इस धंधे से श्मशान से मंदिर और चुनाव तक की राजनीति जुड़ी हुई है. किसी की हत्या करवाकर उसी की मूर्तियाँ बनवाना धर्म और राजनीति का प्रिय कर्मकांड  है.

हमने कहा- और क्या ?  जिस बुद्ध ने मूर्ति पूजा का विरोध किया, जो निरीश्वरवादी था उसीकी मूर्तियाँ बनाकर उसका कुंडा कर दिया. अब अम्बेडकर का कर्मकांड करके उसे भी प्रभावहीन करने का अभियान चल रहा है.

बोला- इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है गाँधीनगर रेलवे स्टेशन पर बना वह होटल जिसके टेरेस पर बैठकर गाँधी के साबरमती आश्रम को देखते हुए चिल्ड बीयर, बोद्का और शैम्पेन कुछ भी पी जा सकती है.भले ही इसे देखकर आश्रम में बापू की आत्मा, यदि अब तक वहाँ बने रहने का साहस जुटा पाई हो तो, चरखे से अपना सिर पीट रही होगी.

हमने कहा- तभी जब किसी धर्म में कर्मकांड की अति हो जाती है तो उसका विनाश तय है. जब किसी कृत्य के बाद 'कांड' लग जाता है तो वह 'आपराधिक' कृत्य हो जाता है जैसे हत्याकांड, गोलीकांड, शराबकांड ,जीपकांड, गोधराकांड, ओक्सीजनकांड, पेगाससकांड, बोफोर्सकांड, राफालकांड आदि.

अब पता नहीं, भागवत जी जिस कर्मकांड की ओर संकेत कर रहे हैं वह चुनाव जीतने के चक्कर में कौन-कौन से 'कांड' करवाएगा ?

कृष्ण अर्जुन को कर्मकांड का नहीं 'कर्म' का उपदेश देते हैं. संसार निस्वार्थ 'कर्म' से चलता है कर्मकांड के नाटकों से नहीं.  

कबीर कहते हैं-

जिवत पितर को अन्न न ख्वावैं

मूआं    पीछे     पिंड     भरावै  


  

 



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May 18, 2022

दिल अभी भरा नहीं....


 दिल अभी भरा नहीं....


तोताराम गुनगुनाता हुआ प्रकट हुआ- दिल अभी भरा नहीं....

हमने कहा- जब मुफ्त का माल मिले तो किसका दिल भरता है. पैसे लगे तो आदमी कभी-कभी उपवास भी कर लेता है. हमारा आधी शताब्दी पुराना एक शे'र सुन-

'गर मुफ्त में मिलता हो तो खा जाएँ ज़हर भी

पैसे लगें तो चार दिन खाना नहीं खाते.

बोला- यह तू मुझे ही क्यों सुना रहा है ? यह तो सामान्य मानव स्वभाव है. और भारत में तो पक्का ही.  शादियों में नकली चीज़, मावे और पनीर खा-खाकर सबसे ज्यादा दस्त इस देवभूमि के लोगों को ही लगते हैं. प्रसाद खाकर भी मरने वाले प्रायः यहीं पाए जाते हैं. लेकिन इस गीत का तेरी इस घटिया चाय के लिए नहीं है. हाँ, यदि मोदी जी के हाथ की 'शी जिन पिंग या ओबामा वाली चाय' होती या 'वाइट हाउस वाला ब्रेकफास्ट' होता तो बात और थी. वैसे यह गीत तो मैं मोदी जी के भरूच, गुजरात में लाभार्थियों से एक वीडियो कांफ्रेंसिंग में बात करते हुए दिए गए बयान के सन्दर्भ में गुनगुना रहा हूँ जिसमें उन्होंने कहा है- 'दो बार प्रधानमंत्री बनना काफी नहीं है'. 

हमने कहा- यदि मोदी जी की बात है तो फिर और बात है. यदि उन्होंने कहा है तो यह सत्ता के लालची और किसी भी तरह जोड़तोड़ करके कुर्सी से चिपकने वाले सामान्य व्यक्ति की बात नहीं है. इसका ज़रूर कोई गहरा आध्यात्मिक अर्थ है. वे कुर्सी और सत्ता के लालची नहीं हैं. वे तो कई बार कह चुके हैं कि हम तो फकीर हैं. जब मन होगा, झोला उठाकर चल देंगे. जब चाहे बुद्ध की तरह आधी रात को गंगा के किनारे या किसी गुफा में जा बैठते हैं. जब जनता बार बार गाती है- 'अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं. अभी नहीं, नहीं नहीं'.  तब कहीं बड़ी मुश्किल से लौटते हैं.

बोला- हाँ, यह बात तो है. कोई दूसरा होता तो कह सकता था- मोदी किसी और ही सोने-चांदी का बना हुआ है लेकिन नहीं, जीवन की नश्वरता और क्षणभंगुरता से भरा हुआ क्या शाश्वत सत्य कहा है- मोदी किसी और मिट्टी का बना हुआ है. गुजरात की मिट्टी का.  

हमने कहा- वैसे सभी संतों ने जीव को मिट्टी का पुतला कहा है. वे मिट्टी का मतलब 'मिट्टी' ही मानते थे. फिर उसमें भेदभाव नहीं करते थे. सूरदास का पद है ना-

इक लोहा पूजा में रखत, इक घर बधिक परो

पारस गुण अवगुण नहिं चितवत कंचन करत खरो 

और अंत में 

समदरसी प्रभु नाम तिहारो अपने पन हि करो.

लेकिन मोदी जी अपने राज्य गुजरात का मोह छोड़ नहीं सके. गुजरात की विशिष्टता पर उन्हें गर्व है. भारत के प्रधानमंत्री हैं तो भारतीय होने पर गर्व कर सकते थे. कह सकते थे मोदी भारत की उस मिट्टी का बना है जिसमें बुद्ध, कबीर, नानक, गाँधी ने जन्म लिया है. हम तो सारी ज़िन्दगी विद्यार्थियों को प्रार्थना में शपथ दिलवाते रहे कि भारत हमारा देश है. हम सब भारतयवासी आपस में भाई बहन हैं. हमें इसकी विविध संस्कृति पर गर्व है; आदि आदि. कहीं कोई राज्य और कोई धर्म नहीं. संतों में भी ऐसा कोई गर्व नहीं था. 

बोला- गर्व के बिना कोई बड़ा काम नहीं हो सकता. शताब्दियों से हीन भावना ग्रस्त हिन्दुओं में आज जो जोश उबला पड़ रहा है वह 'गर्व से हिन्दू कहने' से ही तो आया है. गर्व के बिना गौरक्षक सेना, विप्र सेना, धर्मसेना, दलित सेना, आदि तरह-तरह की सेनाओं जैसा कोई जोशीला संगठन नहीं बन सकता है. इसीलिए सभी धर्म भले ही ईश्वर को एक और सबको उसकी संतान मानें लेकिन सुपीरियर धर्म और भगवान अपने वाला ही रहेगा. 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, क्या गर्व हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध, यहूदी आदि कहने से आता है ?  क्या मनुष्य होना गर्व की बात नहीं है ? संत तो मनुष्य जन्म को सौभाग्य मानते थे क्योंकि इसके द्वारा हम दूसरों की सेवा कर सकते हैं. गुजरात के संत नरसी तो कहते थे- पर दुक्खे उपकार करे ते मन अभिमान न आणे रे.  दो बार प्रधानमंत्री बन जाने की गर्वोक्ति नहीं बल्कि सेवा करने का अवसर देने के लिए भगवान को धन्यवाद देना चाहिए. वैसे मोदी जी जितने लोकप्रिय हैं उसे देखते हुए तो जनता आजीवन उन्हें छोड़ने वाली भी नहीं है. 

बोला- पहली बार 'सेवक-सेव्य-भाव' का ऐसा अद्वितीय मेल मिला है. मोदी जी कहते हैं- दो बार प्रधानमंत्री बनना काफी नहीं है. और जनता कह रही है- नहीं, नहीं; अभी नहीं. अभी तो दिल भरा नहीं. 

या फिर जनता रूपी चित्रलेखा का भी तो यही आग्रह है- 

ए री जाने न दूँगी, ए री जाने न दूँगी

मैं तो अपने रसिक को नैनों में रख लूँगी ' 

हमने कहा- तभी उन्होंने कहा है, मेरा सपना 'सेच्यूरेशन' है. 

अब सेवा का 'सेच्यूरेशन' कब आता है ? और इसके 'सेच्यूरेशन' के निहितार्थ क्या हैं ? सेच्यूरेशन के बाद ?  यह तो केवल मोदी जी ही बता सकते हैं. 

खैर, अपन तो एक-दो साल के और हैं. जो जियेगा सो भुगतेगा. 

 


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May 16, 2022

मोदी जी किस धातु के बने हैं ?


मोदी जी किस धातु के बने हैं ? 


आज तोताराम ने आते ही प्रश्न किया- मास्टर, मोदी जी किस धातु के बने हुए हैं ? 

हमने कहा- यह सच है कि मोदी जी असामान्य, असाधारण, अद्भुत और अलौकिक हैं. उमा भारती ने उन्हें  'विष्णु' कहा था,  २०१५ में वेंकैया जी ने उन्हें 'राष्ट्र के लिए ईश्वर का तोहफा' कहा था, तो सुषमा स्वराज ने उन्हें 'राष्ट्र की पूंजी' बताया था. २०२२ में मध्यप्रदेश के एक मंत्री कमल पटेल ने 'भगवान् का अवतार', मुख्यमंत्री शिवराज ने भगवान के अवतार में योगी जी का नाम भी जोड़ दिया था. लेकिन वे किस धातु के बने हुए हैं यह किसी भी भक्त, प्रशंसक या धातु शास्त्री ने नहीं बताया. वे हमारे प्रधान मंत्री हैं, ऐसे प्रधानमंत्री जैसे १९४७ से लेकर आज तक कोई हुआ ही नहीं, और न ही भविष्य में ऐसा प्रधानमंत्री होने की कोई संभावना दूर-दूर तक नज़र आ रही है. 

क्या धन्य होने के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है कि वे हैं और हमारे प्रधानमंत्री हैं. उनकी सलाह और मार्गदर्शन पर यह दुनिया चल रही है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अन्न संकट में उनके नेतृत्त्व में भारत दुनिया का पेट भरने में सक्षम है. जहां भारत में ८० करोड़ लोगों के लिए  'प्रधानमंत्री गरीब अन्नदान योजना' चला रहे हैं, वहाँ दुनिया के भूखे देशों के लिए भी 'अन्नदान' कर देंगे पहले पीड़ित विश्व को 'वेक्सीन-दान' भी तो किया था. 

ईश्वर भी जब अवतार लेता है तो भले ही वह मछली, कछुआ, सूअर आदि या फिर मनुष्य राम-कृष्ण के रूप में अवतार ले लेकिन होता वह कोई हाड़-मांस का जीव ही है. धातु से तो मशीनें, खिलौने, रोबोट आदि निर्जीव वस्तुएं बनती हैं. लेकिन तेरे दिमाग में मोदी जी के किसी धातु से बने होने का कुप्रश्न आया कहाँ से ?

बोला- मेरी इसमें कोई गलती नहीं है. मैंने तो हमारे यहाँ आने वाले और अपने को 'विश्वसनीय' बताने वाले अखबार में पढ़ा था कि मोदी जी ने भरूच, गुजरात के किसी 'उत्कर्ष समारोह' में लाभार्थियों को वीडियो कांफ्रेंसिंग से संबोधित करते हुए कहा- उन्हें पता नहीं, मोदी किस धातु का बना हुआ है. मुझे पता नहीं था और मोदी जी ने भी नहीं बताया. चुनाव के लिए नामांकन भरते समय जन्म की तारीख़, शिक्षा, संपत्ति, शादी-विवाह आदि में बारे में तो जानकारी होती है लेकिन चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार किस धातु का बना हुआ है यह कहीं नहीं पूछा जाता है. इसलिए कोई कैसे जान सकता है ? यह तो जब मोदी जी खुद ही बताएँगे तभी पता चलेगा. तुझसे तो इसलिए पूछ लिया कि तू कई वर्षों तक गाँधी जी की जन्मभूमि पोरबंदर में रहा है, उस समय मोदी जी भी वहीं सौराष्ट्र में  नवनिर्माण आन्दोलन में सक्रिय थे, तो क्या पता, तुझे मालूम हो कि कौन गुजराती किस धातु का बना हुआ है ?  

हमने कहा- एक तो वैसे ही संसद से सड़क तक चुनाव जीतने के चक्कर में लफंगे कार्यकर्ताओं ने भाव, भाषा और संस्कारों का सत्यानाश कर दिया है. रही-सही कसर अखबारों के चमचा टाइप और भाषा की घटिया समझ रखने वाले पत्रकारों ने पूरी कर दी है. कोई होश नहीं, कुछ भी लिख मारते हैं. यह ठीक है कि मोदी जी महान हैं लेकिन हैं तो मनुष्य ही. और सभी मनुष्य 'मिट्टी' के बने होते हैं. हो सकता है पत्रकारों ने उनको विशिष्ट बताने के लिए ' किस मिट्टी का बना' की जगह 'किस धातु का बना' लिख दिया हो. हमने तो जहां पढ़ा वहाँ मोदी जी कह रहे थे- उन्हें पता नहीं, मोदी 'किस मिट्टी' से बना है.  भाषा की दृष्टि से यही सही है.

वैसे भी संत मनुष्य को 'मिट्टी का पुतला' ही तो मानते हैं. कोई 'अभिमानी' अपने को 'खुदा' समझ ले और अपने मानवीय सीमाओं से परे मान ले तो यह उसका अज्ञान की कहा जाएगा. 

बोला- तो फिर सरदार पटेल को 'लौह-पुरुष' क्यों कहते हैं. 

हमने कहा- वैसे तो मनुष्य के शरीर में भी लोहा, ताम्बा, जस्ता आदि धातुएं होती हैं लेकिन इतनी कम मात्रा में कि अगर उसके शरीर की सभी धातुओं को किसी प्रकार निकाला जा सके तो उसकी कीमत २०-२५ रूपए से अधिक नहीं होगी. 

हाँ, जहां तक किसी को लौह-पुरुष कहने की बात है तो इसका प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि वह व्यक्ति ढुलमुल नहीं बल्कि दृढ़ विचारों वाला है.

बोला- अडवानी जी भी गुजरात के गांधीनगर से छह बार सांसद बने हैं तो उन्हें भी सरदार पटेल की तरह 'लौह पुरुष' कहा जाता है. इस हिसाब से मोदी जी भी अपनी दृढ़ता के कारण सरलता से 'लौह-पुरुष' माने जा सकते हैं. लेकिन जब तक मोदी जी खुद यह न कहें तब तक मैं ऐसा स्टेटमेंट देकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता क्योंकि आजकल किसी की भी भावना को ठेस लग सकती है और ऐसे स्थिति में किसी भी 'साले' को 'फ़ास्ट ट्रेक अदालत' लगाकर गोली मारी जा सकती है.

वैसे मास्टर ये 'लौह पुरुष'  गुजरात में ही क्यों पाए जाते हैं ? गाँधी जी जैसे संवेदनशील व्यक्ति को भी सीने में तीन तीन गोलियां उतारकर कुछ हद तक 'लौह पुरुष' बना ही दिया गया. 

हमने कहा- गुजरात और लौह पुरुष का एक कनेक्शन यह हो सकता है कि गुजरात में सोमनाथ पर मोहम्मद गज़नवी ने १७ बार हमला किया लेकिन वहाँ के वीरों ने सोने और रत्नों के बदले में उससे लोहा लेकर उसे भगा दिया.

लोहा लेने वाले ही तो 'लौह-पुरुष' होते हैं.  


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May 14, 2022

दो-दो अमृत महोत्सव एक साथ

दो-दो अमृत महोत्सव एक साथ 


आज तोताराम आते ही हमसे प्रश्न किया, बोला- क्या प्रोग्रेस है तेरे अमृत महोत्सव की ?  

इस प्रश्न से हमें कोई आर्थिक लाभ तो नहीं हुआ लेकिन एक बार को लगा जैसे हम ही आज़ादी के अमृत महोत्सव की आयोजन समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. 

हमने कहा- कौन सा अमृत महोत्सव ? अभी कहाँ ? आज़ादी के आठ साल पूरे होने में ही सवा महिना पड़ा है. ३० मई २०१४ से गिन ले, जब मोदी जी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी. 

बोला- मैं कंगना वाली, भाजपा के महान बलिदान से प्राप्त हुई आज़ादी की बात नहीं कर रहा हूँ. देशभक्ति के ठेकेदारों की यही स्पीड रही तो शीघ्र ही इतिहास में संशोधन हो जाए. फिलहाल तो 'भीख में मिली' आज़ादी का अमृत महोत्सव चल रहा है जिसकी आयोजन समिति के अध्यक्ष हैं अपने मोदी जी. 

हमने कहा- हमें क्या पता ?  आजकल एक और अमृत महोत्सव भी तो चल रहा है ? बीजेपी (अ) का 

बोला- बीजेपी (अ) ? यह नाम तो पहली बार सुन रहा हूँ.  पहले देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारियों के अतिरिक्त लगभग सभी लोग कांग्रेस में ही थे जिन्होंने बाद में कांग्रेस से छिटक-छिटक कर अपनी-अपनी कांग्रेस बना ली थी और उनके नामों के आगे ब्रेकेट में ए, बी, सी, डी. आदि लगा करते थे. लेकिन भाजपा में तो अभी तक ऐसा नहीं हुआ है. यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा आदि भाजपा से निकले तो सही लेकिन किसी ने कोई भाजपा  (एस/सिन्हा) नहीं बनाई. यह भी ठीक है कि अटल जी भाजपा के पहले अध्यक्ष थे लेकिन उन्होंने कभी अपने नाम का 'ए फॉर अटल' नहीं जोड़ा. वैसे ही अमित जी भी अडवानी के बाद सबसे शक्तिशाली अध्यक्ष रहे लेकिन उन्होंने भी अपना 'अ फॉर अमित' नहीं लगाया. फिर यह बीजेपी (अ) कहाँ से आगया ? और इसका फुल फॉर्म क्या है ? 

हमने कहा- बन्धु, यह तो पता नहीं, लेकिन इधर जैसे ही जहांगीरपुरी में सरकार ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में जेसीबी से अपने राष्ट्रीय शौर्य और सद्भाव का प्रदर्शन किया वैसे ही उधर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जोनसन ने गुजरात में बड़ोदरा के पास हलोल में जेसीबी के एक कारखाने का उदघाटन किया. और उछलकर जेसीबी (बुलडोज़र) पर चढ़ गए. इस कंपनी ने भारत में अपना पहला कारखाना  १९४५ में खोला लेकिन इसमें उत्पादन १९४७ में शुरू हुआ. इसलिए एक प्रकार से भारत में यह वर्ष इस बुलडोज़र कंपनी का भी 'अमृत महोत्सव' है.

जोसेफ सिरिल बेम्फोर्ड नामक एक अंग्रेज ने खुदाई करने वाली इस मशीन का निर्माण ब्रिटेन में किया. इसके मालिक के नाम के पहले अक्षरों के अनुसार इसे 'जेसीबी' के नाम से जाना जाता है. इस मशीन की उपयोगिता और महानता इसी बात से समझी जा सकती है कि इसका व्यक्तिवाचक संज्ञा से बना नाम जातिवाचक संज्ञा की तरह चल पड़ा जैसे  मोहनदास गाँधी से 'गाँधी टोपी', जवाहरलाल नेहरू से 'नेहरू जैकेट' रूस के नेता बुल्गानिन से 'बुल्गानिन कट दाढ़ी' जिसका पेटेंट अब सहस्राब्दि के महानायक ने ले लिया है और अब नरेन्द्र मोदी से आधी बांहों वाला 'मोदी कुरता'.
 
बोला-  सो तो ठीक है लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी की टक्कर में तू यह और किस बीजेपी (अ) की बात कर रहा है ? 

हमने कहा- पक्का तो नहीं कह सकते लेकिन हमारा अनुमान निराधार भी नहीं है. सीधा-सीधा तो 'बोरिस जोनसन पार्टी' के आद्यक्षरों से 'बीजेपी' हो गया और ब्रिटेन का अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव रहा है. उसके उपनिवेश पूरी दुनिया में रहे हैं इसलिए कोष्ठक में 'अ' है. इस 'अ' का अटल जी और अमित जी से कोई संबंध नहीं है. 

दूसरे आजकल जनकल्याण और सुशासन के लिए 'बुलडोज़र' का महत्त्व बहुत बढ़ गया है लेकिन वह वास्तव में है  जेसीबी ही. इसलिए भी इस 'बीजेपी' का फुल फॉर्म 'ब्रिटिश जेसीबी पार्टी' भी हो सकता है. बोरिस जोंसन ने जिस उत्साह से जेसीबी पर चढ़कर 'बुलडोज़र' के लोकतांत्रिक महत्त्व के साथ जिस वैचारिक एकता का परिचय दिया है उसके कारण इसका नाम 'बोरिस जेसीबी पार्टी' (अंतर्राष्ट्रीय) 'बीजेपी (अ) भी समझा जा सकता है. 

बोला- हमारी तो भीख वाली ही सही, आज़ादी के ७५ साल हो रहे हैं लेकिन देखा जाए तो भारत की ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्ति एक प्रकार से दुनिया में उपनिवेशवाद की समाप्ति का अमृत महोत्सव भी है. गाँधी जी के असहयोग एवं सत्याग्रह द्वारा आज़ादी प्राप्ति से प्रेरित होकर ही सभी अफ्रीकी और एशियाई देश योरप की गुलामी से आज़ाद हुए थे. एक प्रकार से यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद की समाप्ति का अमृत महोत्सव भी हो सकता है. 

लेकिन इन दोनों 'अमृत महोत्सवों' में यह जेसीबी या बुलडोज़र की उपस्थिति की समानता का क्या निहितार्थ है ?

हमने कहा- हो सकता है तोताराम, उपनिवेशवादी शक्तियों ने जहां-जहां अपने उपनिवेश बनाए वहाँ-वहाँ धर्म और शिक्षा की आड़ में उन देशों की सभ्यता, संस्कृति और अर्थव्यवस्था को बुलडोज़र से खोद-खोद कर वैसे ही गाड़ दिया जैसे 'मामा' ने माफियाओं को बिना जेसीबी के ही दस फुट नीचे गाड़ दिया. एकाधिकार और सम्पूर्ण प्रभुत्त्व के लिए निर्माण की आड़ में पहले विनाश ज़रूरी है. गिराया जाता है, गाड़ा जाता है, दफनाया जाता है और जब, जैसे ज़रूरत हो; गड़े मुर्दों को उखाड़ा भी जाता है.

बोला- लेकिन क्या ऐसे तोड़ना, गाड़ना ही तो उपनिवेशों की समाप्ति का कारण नहीं बना.  

हमने कहा- और क्या ? जैसे बीज डाले जायेंगे, फल उससे भिन्न कैसे आ सकते हैं ?

बोला- तभी कहा है- जैसी नीयत, वैसी बरक़त. तभी कवि वृन्द कहते हैं-

होय बुराई तें बुरो, यह कीन्हो निरधार 
खाई खोदे और को ताको कूप तयार












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May 9, 2022

सेवइयां : हलाल या झटका


सेवइयां : हलाल या झटका 


आते ही तोताराम ने मौखिक ट्विटर फेंका- मुबारक हो, भाई साहब. 

हमने कहा- आज ब्राह्मणों का पवित्र दिन है- अक्षय तृतीया. परशुराम जयंती. 'बधाई' दे तो स्वीकार कर सकते हैं लेकिन 'मुबारकबाद' नहीं. और ईद की तो बिलकुल भी नहीं. हमारी अक्षय तृतीय तो परमानेंट है. यह ईद तो इन लोगों ने 'उत्सव जिहाद' के षड्यंत्र में पता नहीं कैसे भिड़ा दी है. नव संवत्सर में रमजान को ठेल दिया था.

मोदी जी से कुछ तो सीख. उन्होंने देशवासियों को बधाई-संदेश में कहा, 'ईद-उल-फितर की ढेर सारी शुभकामनाएं. यह शुभ अवसर हमारे समाज में एकजुटता और भाईचारे की भावना को बढ़ाए. सभी के उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करता हूं.' 

कहीं भी मुसलमानों का नाम नहीं, कहीं भी मुबारकबाद नहीं. शुद्ध तत्समप्रधान हिंदी में राष्ट्रवादी शुभकामनाएँ. 

बोला- अपने राजस्थान में अक्षय तृतीया को 'आखा तीज' भी कहते हैं. इसका महत्त्व इसलिए है कि यह दिन शादी का अबूझ मुहूर्त होता है. किसी पंडित-पुजारी का कोई चक्कर नहीं. इसीलिए इस दिन राजस्थान में सबसे ज्यादा शादियाँ होती है. 

यह परशुराम जयंती होती तो पहले भी होगी लेकिन इसकी चर्चा पिछले पांच-सात वर्षों से ही सुन रहे हैं. ब्राह्मणों ने दक्षिणा के चक्कर में क्षत्रियों को तो पुजवा दिया. खुद की भूमिका प्रसाद बटोरने वाले द्वारपाल से आगे नहीं बढ़ी. तुलसीदास जी ने तो पता नहीं किस लालच में बूढ़े परशुराम का धनुष भंग के समय लक्ष्मण से भरपूर मज़ाक उड़वाया है. मज़े की बात यह कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी मज़े ले रहे हैं.

तुलसीदास जी यहीं नहीं रुके. उन्होंने परशुराम से अपना धनुष भी राम को भेंट करवा दिया और अंत में परशुराम जी ने अपनी पार्टी का सत्ताधारी पार्टी में विलय कर दिया. उन्हें अरुणाचल का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया. वहाँ उन्होंने अपना फरसा लोहित कुंड में धोया और वहीँ तपस्या करने लगे.  आजकल वहाँ 'परशुराम कुंड' विकसित किया जा रहा है जिस पर ३८ करोड़ रुपए खर्च किये जायेंगे. इस प्रकार ब्राह्मण राजनीति का अंत हुआ.  

अब जब सभी जाति वालों ने अपने-अपने भगवान खोज लिए तो ब्राह्मणों ने भी परशुराम को आगे कर दिया. यदि ब्राह्मण परशुराम की तरह शक्ति-प्रदर्शन करते तो इतिहास में दस-बीस ब्राह्मण राजा तो हुए ही होते. लेकिन अब तो यह हाल है कि जो भी ज़रा-सा भी प्रेम से बोल लेता है उसी से चिपट जाते हैं.परशुराम जी की मूर्ति में अपना भविष्य तलाश रहे फिर चाहे उसे योगी जी बनवाएं या अखिलेश यादव. 

हमने कहा- तू चाहे तो हमें शादी की बधाई दे सकता है जो १० मई १९५९ को हुई थी उस दिन अक्षय तृतीया भी थी.  चूंकि विक्रम संवत और ईस्वी सन में यह घपला हो जाता है. इसलिए १५ अगस्त और २६ जनवरी की तरह हम अपनी शादी की वर्षगाँठ १० मई को ही मनाते हैं जिसमें अभी ७ दिन शेष हैं. फिर भी चल, तुझे इस उपलक्ष्य में सेवइयां खिलवाते हैं.

बोला- यह मुसलमानों का व्यंजन है और मुसलमान तो मांस के अतिरिक्त कुछ खाते ही नहीं. और गाय तो अगर रास्ते में दिखाई भी दे जाए तो भूखे शेर की तरह उस पर टूट पड़ते हैं और कच्चा ही खा जाते हैं.

हमने कहा- तुझे पता होना चाहिए कि पाकिस्तान चार करोड़ गायों के साथ दुनिया में चौथे नंबर पर है. कोई भी भारत की तरह सड़कों पर डंडे और गालियाँ खाती नहीं घूमती. जहां तक दूध की बात है तो वहाँ की गायों का औसत दूध उत्पादन भारत से अधिक है. अज्ञानी राष्ट्रभक्तों के चक्कर में रहेगा तो क्या-क्या छोड़ेगा ? वैसे तुझे पता होना चाहिए कि सेवइयां भारतीय व्यंजन है.

बोला- तो फिर कोई बात नहीं. ले आ दो कटोरी लेकिन ध्यान रहे, सेवइयां हलाल की न हों.

हमने कहा- किसी भी धर्म का मानने वाला हो या किसी भी धर्म को न मानने वाला हो, खाना तो सभी खाते ही हैं. खाना खाना होता है. इसमें क्या 'हलाल' और क्या 'हराम'.

बोला- गड़बड़ मत कर . 'हलाल' का विलोम 'झटका' होता है. 

हमने कहा- तोताराम, तू चाहे तो अपनी भावना आहत होने के नाम पर हमारे खिलाफ ऍफ़ आई आर दर्ज भी  करवा सकता है. किसी हिन्दू की भावना आहत होने पर पुलिस तत्काल एडवांस में टिकट बुक करवाकर रखती है जिससे कभी भी आहत भावनाओं का उपचार करने के लिए तत्काल आसाम से गुजरात पहुँच सके. लेकिन सच तो यह है कि 'हलाल' का विलोम तो 'हराम' ही होता है. जहां तक आहत होने की बात है तो हमेशा 'भावनाएं' ही आहत होती हैं.  कभी भी 'विवेक' आहत नहीं होता क्योंकि विवेक ज्ञान और लोक में भावनाएं अज्ञान और अंधश्रद्धा पर आधारित होती हैं. हाँ, राजनीति में ये षड्यंत्र और कुटिलता पर भी आधारित होती हैं.  

बोला- हमें तेरे उर्दू-हिंदी कोश के कोई मतलब नहीं है. हम तो अपने 'भाई साहब' वाले 'कोश' और 'कोष' ( भाई साहब केयर फंड ) से चलते हैं. 

हमने कहा- हम मांसाहारी तो नहीं हैं फिर भी बता दें, हलाल और झटका क्रियाएं हैं, साधन हैं लेकिन इनका साध्य तो एक ही है और वह है मांस भक्षण. दोनों ही क्रियाओं में बकरे को ही दर्द और अन्त में मृत्यु की प्राप्ति होती है. 

बोला-  यह ठीक है कि दोनों धर्म वालों को शक्ति और स्वाद के लिए मांस भक्षण करना है. लेकिन सभी अपने को दयालु मानते हैं इसलिए किसी भी जीव के प्राण लेते समय वे यह ध्यान रखते हैं कि जीव को कम से कम कष्ट हो. मुसलमान कहते हैं कि उनकी विधि से धर्म के लिए बलिदान होने में बकरे को कम कष्ट होता है. बकरे को जन्नत मिले इसके लिए वे इस पुण्य कार्य को करते हुए अपने पवित्र ग्रंथों से मन्त्र भी पढ़ते हैं. हिन्दू कहते हैं कि बकरे को स्वर्ग प्राप्त करवाने में उनकी विधि कम कष्टकारक है. वे भी बकरे को काटने से पहले उसकी पूजा करते हैं जैसे कि चुनाव से पहले पार्टियां वोटर को मक्खन लगाती हैं. भले ही उसके अगले दिन ही गैस और पेट्रोल के दाम बढ़ा देती हैं.

हमने कहा-  कभी समय निकाल कर बकरे से भी पूछ लेते कि उसका क्या अनुभव है ? यह तो वही बात हो गई कि एक नर्स एक बेहोश व्यक्ति को नर्स मुर्दाघर में ले जाने लगी. 

तभी उस व्यक्ति को होश आ गया. उसने नर्स से पूछा- मुझे कहाँ ले जा रही हो ? 

नर्स ने उत्तर दिया- मुर्दाघर. 

व्यक्ति बोला- लेकिन मैं तो जिंदा हूँ. 

नर्स ने डांटा- चुप, डॉक्टर तू है या वह ?

इस बात को इस तरह भी समझा जा सकता है कि यदि मोदी जी गैस के दाम एक दिन में प्रति सिलेंडर के ५० रुपए बढायें तो यह हिंदुत्व का राष्ट्रवादी 'झटका' है और यदि कोई १ रुपया प्रति सिलेंडर प्रतिदिन बढ़ाए तो वह देशद्रोही मुसलमानों वाला 'हलाल'. ग्राहक रूपी बकरे के लिए तो परिणाम एक ही होगा- मृत्यु. मारीच वाली दुविधा है स्वर्ण मृग बनकर पंचवटी न जाए तो रावण मारेगा और जाए तो राम. 

तोताराम बोला- मास्टर, जैसे गरीब माँ दूध के अभाव में बच्चे को झुनझुना पकड़ा देती है या सरकार जनता को सुख-शांतिमय जीवन न दे सकने की स्थिति में उसे तमाशों से बहलाने का नाटक करती है वैसे ही मैं भी अपनी झुंझलाहट से ध्यान हटाने के लिए तुझसे बात, बिना बात जाड़ा-जिगदी कर रहा हूँ वरना कबीर वाली बात को कौन नहीं जानता.

साधो, देखो जग बौराना ।
साँच कहूँ तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।
हिन्दू कहता,राम हमारा, मुसलमान रहमाना ।
आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।
बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना ।
आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना ।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना ।
पीपर-पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना ।
माला पहिरे, टोपी पहिरे छाप-तिलक अनुमाना ।
साखी सब्दै गावत भूले, आतम खबर न जाना ।
घर-घर मंत्र जो देन फिरत हैं, माया के अभिमाना ।
गुरुवा सहित सिष्य सब बूड़े, अन्तकाल पछिताना ।
बहुतक देखे पीर-औलिया, पढ़ै किताब-कुराना ।
करै मुरीद, कबर बतलावैं, उनहूँ खुदा न जाना ।
हिन्दू की दया, मेहर तुरकन की, दोनों घर से भागी ।
वह करै जिबह वो झटका मारे,आग दोऊ घर लागी ।
या विधि हँसत चलत है हमको आप कहावै स्याना ।
कहै कबीर सुनो भई साधो, इनमें कौन दिवाना ।

हमने कहा- तो दो लाइनें हमारी एक रमैनी की भी सुन ले-

झटका या कि हलाल भगत जी 

बकरे  का  तो  काल  भगत जी 

मतलब तुझे सेवइयां खिलाएं या चाय पिलायें. भुगतना तो हमें ही पड़ेगा. हमें कौन मंत्रियों-  विधायकों की तरह कई-कई पेंशनें मिलती हैं या कौन हमें कर्नाटक वाले ईश्वरप्पा की तरह मठ वालों तक से तीस प्रतिशत मिल जाता है.






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May 7, 2022

बल, नो बल और नोबल


बल, नो बल और नोबल 


जैसे ही तोताराम आया हमने कहा- देखा तोताराम, इसे कहते हैं कानून और व्यवस्था के प्रति संवेदनशील शासन. भले ही हमारे गौरवपूर्ण इतिहास में शकुनी और कंस नाम के मामाओं ने बहुत ही क्रूर, कुटिल और घरफोडू भूमिका निभाई हो लेकिन अपने मध्यप्रदेश वाले 'मामाजी' और उनकी सजग और कानून प्रिय जनता इस समय बहुत ही सकारात्मक भूमिका निभा रही है.और पुलिस भी बहुत तत्पर नज़र आ रही है.

बोला- चलो तुझे कुछ तो अच्छा नज़र आया. लेकिन हुआ क्या यह तो बता ?

हमने कहा- भोपाल निवासी किसी राकेश पांडे नामक व्यक्ति ने दिग्विजय सिंह उर्फ़ दिग्गी राजा का का एक ट्वीट पढ़ा और उसके साथ लगी फोटो देखी, उसकी पड़ताल की और तत्काल थाने पहुँच गए कि यह फोटो मध्यप्रदेश के खरगौन का नहीं है. इस फोटो को देखकर मध्यप्रदेश में किसी भी क्षण गृहयुद्ध छिड़ सकता है. पुलिस ने जो प्रायः  प्राथमिकी लिखने तक में आनाकानी करती है, सक्रियता दिखाई और तत्काल  कार्यवाही शुरू कर दी. 

इसके तत्काल बाद मामाजी ने ट्वीट पर कहा कि दिग्विजय सिंह ने गलत जानकारी दी है। फोटो मध्य प्रदेश का नहीं है।यह धार्मिक उन्माद फैलाने का षड‌्यंत्र है.

तोताराम ने कहा-  सही बात है, परम देशभक्त राकेश पांडे, पुलिस और मामाजी सब सही हैं. समाज और राष्ट्र के सच्चे शुभचिंतक हर समय ट्वीट करते हैं, ट्वीट पढ़ते और ट्वीट का संज्ञान लेकर राष्ट्रहित के कामों में सक्रिय हो जाते हैं. आजकल राष्ट्रभक्त युवा भी इतने लाउड स्पीकर, तलवार, तमंचे, गंडासे, भाले आदि लेकर जोश और जल्दी में रहते हैं कि यदि थोड़ा सा विलंब हो जाए तो पता नहीं कब, कहाँ, किसके घर और सिर का भंजन कर बैठें. ट्विटर वालों के पास सोचने-समझने का समय कहाँ होता है ? उन्हें तो शाम तक हिन्दू राष्ट्र बना-बनू कर काम निबटाना है.  

राम काज कीन्हे बिना इनहिं कहाँ बिस्राम. 

हमने कहा- तोताराम, इस बारे में तो राष्ट्र और धर्म के भक्तों की सक्रियता के शिकार हम भी होते-होते बचे थे और एक बार चक्कर में भी आ गए थे.

तोताराम को उत्सुकता हुई, बोला- क्या हुआ था ? 

हमने कहा- एक बार हमारे पास किसी मुस्लिम राष्ट्र में बनने वाले हिन्दू मंदिर का फोटो आया कि मंदिर का निर्माण और उदघाटन हो चुका है और मुस्लिम भक्तगण केले के पत्तों पर प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं. जबकि प्रसाद का फोटो किसी होटल का था और मंदिर अभी बना नहीं था. हमने अपनी धर्मप्रियता के कारण इस सूचना का उपयोग कर लिया लेकिन ये दोनों अर्द्धसत्य थे लेकिन शुक्र है  घातक नहीं थे.

दूसरी घटना- एक फोटो आया,केप्शन था हैदराबाद में किसी मुस्लिम लड़के से विवाह न करने पर मुसलमान एक मारवाड़ी हिन्दू लड़की को परेशान कर रहे हैं. साथ में सलाह भी थी कि इस वीडियो को इतना वाइरल किया जाए कि सरकार कार्यवाही करने के लिए बाध्य हो जाए. जांच से पता चला कि फोटो पनामा नहर के पास कोलंबिया नामक एक छोटे से देश का है जहां ड्रग्स माफिया सक्रिय हैं और उनके गैंगवार चलते रहते हैं.  

बोला- अच्छा हुआ जो तूने इसे नहीं छापा ?

हमने कहा- वैसे छाप देते तो भी इसमें राष्ट्रप्रेमियों का तो कोई अपराध सिद्ध होता नहीं, निशाने पर भी आते तो वे ही जो अपनी वेशभूषा से पहचान लिए जाते हैं. 

बोला- कुछ भी हो मास्टर, मुझे इस मामले में सेवकों की एक ईमानदारी भी नज़र आई.

हमने कहा- सेवक और ईमानदारी ? बात हजम तो नहीं हुई फिर भी ...

बोला- मामाजी चाहते तो दिग्गी राजा द्वारा खरगौन के नाम से ट्वीट की गई फोटो की रामभक्ति का श्रेय ले सकते थे लेकिन नहीं, साफ़ कह दिया यह पुण्य कार्य किसी और भक्त का है. कोई वरदान दिया जाए तो उसे ही दिया जाए. हाँ, बुलडोज़र की बहादुरी वाली बात होती तो बात और थी. जो किया उसका श्रेय लेने में कैसा संकोच.  इसी तरह किसी ने मस्जिद पर भगवा झंडा लगाने की फोटो को राजस्थान की करौली का बताया लेकिन उन्होंने भी मौका होते हुए भी इसका श्रेय झटकने का प्रयास नहीं किया. अब पता चला है कि साम्प्रदायिक सद्भाव फ़ैलाने वाला यह काम उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में किया गया था. राम-कृष्ण और शिव के परमधामों की भूमि के अतिरिक्त ऐसा साहस और कहाँ के लोग जुटा सकते हैं ? 

हमने कहा- लेकिन विवेक अग्निहोत्री ने तो किसी मुस्लिम आतंकवादी संगठन के नाम से कश्मीर में गड़बड़ करने की सूचना देने वाला एक नकली पत्र ही जारी कर दिया. जबकि उसमें न तो 'लोगो' सही था, न संगठन का नाम सही और अंत में किसी के हस्ताक्षर भी नहीं थे. उस पर तो कोई कार्यवाही या ऍफ़ आई आर दर्ज नहीं हुई. कोई पाण्डेय और कोई 'मामा' सक्रिय नहीं हुआ. 

मज़े की बात तो यह कि यह पत्र डाक से आया और पत्र प्राप्त कर्त्ता को यह भी पता नहीं कि कौन लाया था. ऐसे तो हम भी कह सकते हैं कि कोई हमारे दरवाजे के नीचे से कोई एक पत्र खिसका गया, जिसके नीचे किसी के हस्ताक्षर नहीं थे लेकिन उसमें लिखा हुआ था कि रमेश जोशी को २०२२ का  शांति का नोबेल दिया जाएगा. . 

बोला- देख मास्टर, यदि तू नोबल की बात करे तो मानने से पहले बहुत सोचना पड़ेगा क्योंकि यह कोई 'फिलिप कोटलर' जैसा पुराना और प्रतिष्ठित अवार्ड तो है नहीं. लेकिन विवेक अग्निहोत्री वाले पत्र पर शंका नहीं की जा सकती क्योंकि भारत में कोई भी गलत काम मुसलमानों के अलावा और कर ही कौन सकता है ? 

इट इज ऐज़ क्लीयर ऐज़ डे लाइट. 

जिसको भी गोली लगती है वह आतंकवादी ही होता है या हो जाता है. जिस पर भी जीप अपने आप चढ़ जाती है वह किसान नहीं अपराधी ही होता है, जिसके घर की तरफ बुलडोज़र चल पड़ता है समझ लो वह अपराधी ही है. अदालत और कानून का कोई चक्कर ही नहीं. हमारे यहाँ तो मशीनें भी ऑटोमेटिक न्याय करने वाली होने लगी हैं.  

हमने कहा- एक निशानेबाज़ एक गाँव में गया. वहाँ उसने देखा कि हर तीर शूटिंग बोर्ड के ठीक बीच में लगा हुआ है. उसे बहुत आश्चर्य हुआ. उसने किसी से पूछा- तुम्हारे गाँव में तो सभी बड़े तीरंदाज हैं. हर तीर हंड्रेड परसेंट सही. ऐसा कैसे होता है ?

उस व्यक्ति ने कहा- इसमें क्या बड़ी बात है. हम पहले तीर चलाते हैं और वह  तीर जहां भी लगता है उसी के चारों तरफ शूटिंग बोर्ड बना देते हैं. 





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