Jun 30, 2020

ये लोकल वोकल क्या है



 ये लोकल-वोकल क्या है ?


कल तोताराम ने हमारी उत्सुकता उसी तरह बढ़ा दी जिस प्रकार मोदी जी के 'राष्ट्र के नाम सन्देश' के समाचार से एक साथ १३५ करोड़ लोग यह सोचकर चौकन्ने हो जाते हैं कि पता नहीं, क्या हो जाए ? यमराज के आने का समाचार भी उतना नहीं डराता जितना मोदी जी का 'राष्ट्र के नाम सदेश' | पता नहीं किस सन्देश में चार घंटे के नोटिस पर नोटबंदी या तालाबंदी कर दें |

यमराज तो प्राण ही लेगा ना | और सच पूछा जाए तो कोई भी भला आदमी जिंदगी के समाप्त होने से नहीं डरता |वह तो यमराज का स्वागत करने को तैयार ही रहता है |उसे तो डर तो इस  बात का लगता है कि पता नहीं मरते समय कितना कष्ट होगा ? वहाँ ऊपर स्वर्ग या नरक जैसा कुछ है भी या नहीं ? यदि है तो क्या वहाँ कोई सिफारिश चलती है या नहीं ?किसी प्रकार का कोई रिज़र्वेशन है या नहीं ? नेताओं की तरह क्या वहाँ जेल में मोबाइल, पार्टी, विशेष भोजन की व्यवस्था है या नहीं ? यदि ठीकठाक व्यवस्था हो जाए तो किसी को यमराज के साथ जाने और इस दुनिया को छोड़ने में कोई ऐतराज़ नहीं है | 

लेकिन ऐसे में तोताराम द्वारा मोदी जी के गीत को संगीत देने का नितांत नया जुमला | यह तो १५ लाख से बड़ा जुमला हो गया | वैसे हमें यह तो पता है कि मोदी जी हर बात में अनुप्रास की ऐसी छटा बिखेरते हैं कि गद्य भी पद्य हो जाता है |कानों में राग शिवरंजनी बजने लग जाता है | तोताराम तो चला गया लेकिन हमारी तो हालत खराब | मोदी जी ने कौनसा गीत लिखा होगा ? दोगाना, रैप या गुलज़ार जैसा ' तुम्हारे पास मेरा कुछ सामान पड़ा है' या वियोग शृंगार का कोई गीत ?  
जब बात हज़म नहीं हुई तो रात को कोई दस बजे तोताराम के घर जा पहुंचे |घर के दरवाजे पर खड़े होकर सोचा- क्या खटखटाना ठीक रहेगा ?  
तभी अन्दर से तोताराम के गुनगुनाने की आवाज़ आई- ये ईलू ईलू क्या है ? ये ईलू ईलू क्या है ? 

हम तो आश्चर्यचकित ! रुक नहीं सके,  घुस गए और बड़ी हिकारत से पूछा- इस उम्र में ईलू ईलू | क्या चक्कर है ?

बोला- चक्कर तो तेरा लगता जो रात को दस बजे किसी भले घर का दरवाजा खटखटाता है |हम तो गाने की धुन बना रहे हैं |

हमने पूछा- तो क्या सेवक-फकीर-शालीन-ब्रह्मचारी  मोदी जी ने  मोदी जी ने यह गीत लिखा है ? उन्हें तो देश सेवा, कांग्रेस मुक्त भारत बनाने और और अपने वस्त्रों से ही पहचाने जा सकने वाले देशद्रोहियों को ढूँढ़-ढूँढ़कर निबटाने से ही फुर्सत नहीं है |

बोला- यह तो नहीं लिखा लेकिन यह तो बेसिक धुन है |मोदी जी ने नारा दिया है- लोक-वोकल |अब इस पर कोई महाकवि गीत भी लिखेगा | और इस पर ईलू-ईलू के अतिरिक्त और कौनसी धुन फिट बैठेगी |

सुन-
ये ईलू ईलू क्या ?
ये लोकल वोकल क्या है ? 

कितना अद्भुत संयोग है 'ईलू ईलू' में भी आठ मात्राएँ और 'लोकल-वोकल' में भी आठ |मतलब ठाठ ही ठाठ | 

 तुझे याद है अटल जी की कविता को अलीशा चिनॉय ने गया था और उमा शर्मा ने उन पर नृत्य किया था | हो सकता है कल को मेरे द्वारा संगीत दिए इस गीत को कोई खेसारी लाल गाये और सपना चौधरी इस पर नृत्य करे 

और बाद में  यदि ज़रूरत पड़ी तो 'हाउ डी मोदी' के उत्तर में 'मजा छे' की तर्ज़ पर इसका दस  भाषाओं में अनुवाद भी सरलता से किया जा सकता है- जैसे 'आई लव यू' या 'अमी तमाके भालो बासी' |  अगर अंग्रेजी की ज्यादा ज़रूरत पड़ेगी तो फिर 'डाइंग, जाइंग वाला स्टाइल तो है ही | 


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Jun 25, 2020

मोदी जी के गीत की धुन




मोदी जी के गीत की धुन 


फटी हुई जींस, छज्जा पीछे की तरफ रखते हुए उलटी करके लगाई गई टोपी, धूप का चश्मा, 'क्रुद्ध हनुमाना' छपी टी- शर्ट, बिना मोजों के पहने रंग-बिरंगे जूते |आते ही सीढियों की बजाय सामने से  उछलकर बरामदे पर चढ़ा और कमर मटकाकर जोर-जोर से गाने लगा-  ईलू-ईलू क्या है ?


पहले तो हम ध्यान से देखते रहे कि यह प्राणी तोताराम ही है या कोई और ? जब कन्फर्म हो गया तो उसके प्रश्न का विस्तृत उत्तर दिया- हे बुढ़ापे में युवावस्था की बीमारी से ग्रसित प्राणी, यह 'ईलू-ईलू'  एक ऐसी बीमारी है जो प्रायः युवावस्था में होती है | वैसे यह १९९१ में बनी, सुभाष घई द्वारा निर्देशित  'सौदागर' नाम की एक फिल्म का गीत है जिसे आनंद बक्षी ने लिखा और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीतनिर्देशन में कविता कृष्णामूर्ति, पंकज उदास नहीं उधास, और सुखविंदर सिंह ने गाया है | भारत में आर्थिक सुधार और उदारीकरण से प्रारंभिक समय में आया यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ | इसमें जो मुख्य ध्वनि  'ईलू' है वह 'आई लव यू' का संक्षिप्त रूप है जैसे आजकल बच्चे पूरा शब्द लिखने की बजाय 'आर are' माने 'हैं' को केवल 'R' या 'बॉय फ्रेंड' को केवल 'BF' लिखकर काम चला लेते हैं |समय और शक्ति की बचत |



चश्मा ऊँचा करके माथे पर चढाते हुए बोला- याह, जैसे 'प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना' को रोमन में लिखते हुए 'PRADHAN MANTRI JAN AROGY YOJANA'  के सभी प्रथमाक्षरों को ले कर एक संक्षिप्त शब्द 'PM-JAY' बना  |


हमने भी टी वी सीरियल 'भाभी जी घर पर हैं' की भोलीभाली नायिका की तरह कहा- सही पकड़े हैं |


बोला- पहले तो यह समझ ले कि मैंने तुझसे इसका मतलब नहीं पूछा है |दूसरे ऐसे  प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं होता |ये शब्द एक कान से सुनकर दूसरे से निकालने के लिए होते हैं |ये शब्द किसी आत्ममुग्ध व्यक्ति के प्रलाप की तरह होते हैं | मेरा इस समस्या से कोई संबंध नहीं है |मैं तो बस, एक नए गीत की धुन बना रहा था और तूने उसका आनंद लेने की बजाय, फिल्मों के विश्वकोष जयप्रकाश जी चौकसे जी की तरह पूरा इतिहास ही सुना दिया |आजकल आम खाने के बारे में इंटरव्यू में आम का इतिहास, उसकी फसल उगाने और विक्रय-व्यवस्था के बारे में पूछने-बताने का समय नहीं होता |


हमने पीछा छुड़ाने के अंदाज़ में कहा- लेकिन आज तेरी कमर को क्या हो गया जो भारत की विदेश नीति की तरह लचक-मचक हो रही है ?कहीं योग-दिवस के उपलक्ष्य में कोई नया 'कमरतोड़ आसन' तो नहीं ईजाद किया है |


बोला- मुझे दुनिया-जहान से क्या लेना ? दुनिया जहान से संवाद करने और नए शब्द और नारे गढ़ने के लिए तो मोदी जी अकेले ही पर्याप्त हैं |


मैं तो मोदी जी के एक गाने की धुन बनाने की प्रक्रिया में खोया हुआ था |


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Jun 23, 2020

संकल्प से सिद्धि



संकल्प से सिद्धि    





आज जैसे ही तोताराम आया तो हमने पूछा- तोताराम, आजकल कोरोना की वेदर रिपोर्ट देने के लिए लव अग्रवाल जी टीवी पर आना कैसे बंद हो गए ?

तो बोला-  खबरें एक ही सोर्स से नहीं आनी चाहिएँ अन्यथा उस समस्या की जड़ में जो सेवक है उस पर दबाव बढ़ जाता है |यदि उससे संबंधित जानकारी अलग-अलग स्रोतों से आती है तो दबाव बँट जाता है |
कूटनीति के इसी सिद्धांत के तहत एक नई प्रकार के सर्वे के सुखद परिणामों को लेकर भारतीय आयुर्वेदिक अनुसन्धान परिषद् के महानिदेशक डा. बलराम भार्गव का स्टेटमेंट आया है |

उन्होंने बताया है कि देश के ८३ जिलों में कराए गए ताजा सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि हॉट स्पॉट शहरों की संक्रमित आबादी का एक तिहाई हिस्सा अपने आप ठीक हो गया |देश के ८३ जिलों में ०.७३% आबादी ही संक्रमित हुई है | इसी प्रकार यह भी एक सुखद खबर है कि प्रति लाख आबादी के हिसाब से मरीजों की संख्या और मृत्यु दर भी दुनिया में सबसे कम है |  

अब चूंकि वे 'बल' वाले हैं और 'राम' का सपोर्ट भी है तो शंका या प्रश्न करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता |

हमने कहा- इसका मतलब यह है कि यह कोरोना तो एक दम फुस्स और सुरसुरी बम निकला |इतनी कम  मौतें और वे भी स्वास्थ्य कर्मियों के पास सुरक्षा किट न होने, कोरोना की कोई दवा न होने और गुजरात में नकली वेंटिलेटर सप्लाई होने के बावजूद |





तोताराम, हमें तो इसमें कोई बड़ा चक्कर नज़र आता है |जब कोरोना कोई बड़े खतरे वाली बात ही नहीं थी तो २३ मार्च २०२०  को एक ही झटके में १३५ करोड़ लोगों को नज़रबंदी में क्यों डाल दिया | २२ मार्च को तो संक्रमित लोगों की संख्या मात्र २०६ ही थी |

बोला- जब अहमदाबाद में २५ फरवरी २०२० को मज़े-मज़े में 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम हो रहा था तभी तुझे समझ लेना चाहिए था कि कोरोना कोई समस्या नहीं है और यदि है तो कोई बड़ी समस्या नहीं है |

हमने फिर पूछा- तो फिर २१ दिन का महाभारत, ताली-थाली-दिवाली और कोरोना वीरों पर पुष्प वर्षा वाला नाटक भी क्या ऐसे ही था ?

बैतूल: रिटायर थानाध्यक्ष ने बनावाया कोरोना महादेव मंदिर, खुद बताई इसके पीछे की वजह

बोला- राजा और पति को समय-समय पर प्रजा की पतिभक्ति का टेस्ट लेते रहना चाहिए |मोदी जी ने इस बहाने वही टेस्ट लिया था | उसमें उन्हें ९०% समर्थन मिल गया जबकि संसद में स्पष्ट बहुमत के लिए ३१% ही पर्याप्त है |

हमने कहा- लेकिन हमारे यहाँ संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ तो तेजी से रही है |

बोला- १३५ करोड़ का एक प्रतिशत  १.३५ करोड़ होता है |अभी तो .३५ करोड़ मतलब साढ़े तीन लाख भी नहीं हुए |१ प्रतिशत के हिसाब भी अभी एक करोड़ की गुंजाइश और है |जब तक एक करोड़ संक्रमित होंगे तब तक 'हर्ड इम्यूनिटी' विकसित हो जाएगी |

हमने पूछा- यह 'हर्ड इम्यूनिटी' क्या होती है ?

बोला- हर्ड का मतलब होता है झुण्ड या रेवड़ |भेड़ बकरियों के रेवड़ होते हैं |उनका मरना-जीना कोई विशेष महत्त्व नहीं रखता |वे सहज भाव से जनमती और मरती रहती हैं | यदि नहीं मरती तो काटकर खा ली जाती हैं |उनकी बीमारियों, इलाज, सुरक्षा और संरक्षण की कोई चिंता नहीं की जाती |इनमें बीमारियाँ भी कम फैलती हैं | होती भी हैं तो मर मराकर अपने आप ही ठीक हो जाती हैं |इसे ही 'हर्ड इम्यूनिटी' कहते हैं |  तुझे पता होना चाहिए कि अब संक्रमितों के मामले में हम दुनिया में चौथे नंबर पर आ गए हैं |शीघ्र ही नंबर वन भी हो जाएंगे और फिर यह 'हर्ड इम्यूनिटी'  बढाते-बढाते हम अपने संकल्प से सिद्धि भी प्राप्त कर लेंगे |

दुर्लभों की बात और है |कहा गया है-

सिंहों के लहंडे नहीं, हंसों की नहिं पाँत |
लालों की नहिं बोरियां, साधु न चले जमात ||
मतलब ये दुर्लभ होते हैं इसलिए इनकी रक्षा-सुरक्षा के लिए प्रबंध करने पड़ते हैं |जैसे बीमार होने पर मुलायम सिंह जी का इलाज और संक्रमित होने पर संबित पात्रा जी का इलाज मेदान्ता में होता है |सामान्य जन का काम तो ताली-थाली-दीवाली से हो जाता है | थोड़ा बहुत मध्य प्रदेश में नव अवतरित 'कोरोना महादेव' कर देते हैं |और अब तो बिहार के कई जिलों में 'कोरोना माई की पूजा भी चल निकली है |


बिहार में शुरू हुईं कोरोना माता की पूजा, अंधविश्वास का Video वायरल

हमने कहा- लेकिन पात्रा जी ने तो कहा है कि वे परिवार के स्वयंसेवकों की शुभकामनाओं से ठीक हुए हैं |

बोला- शुभकामनाएं तो उनके लिए होती हैं जो भेड़-बकरी होते हैं | दुर्लभ प्रजाति वालों का काम साधन, सुविधा के बिना नहीं चलता अन्यथा बड़े लोग मेदान्ता की बजाय  रतलाम के हाथ चूमकर असाध्य बीमारियों के साथ-साथ कोरोना का भी इलाज करने वाले असलम उर्फ़ अनवर शाह उर्फ़ कोरोना बाबा के पास नहीं जाते |ध्यान रहे कोरोना बाबा आज कोरोना से मर गए हैं |

अब भगवान के लिए और प्रश्न मत करना |बहुत मगजमारी हो गई अब तो चाय मँगवा ले |आत्मनिर्भर भारत के बीस लाख करोड़ के पॅकेज के बिना भी तेरी आर्थिक स्थिति इस लायक तो बची ही हुई है |


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Jun 18, 2020

वे नैना कछु और हैं.....




वे नैना कछु और हैं.....




जैसे कभी रामजेठमलानी रोज दस सवाल पूछ-पूछकर राजीव गाँधी को परेशान किया करते थे वैसे ही तोताराम आजकल हमें कुछ बोलने का मौका ही नहीं देता है |आज आते ही पूछने लगा- कोरोना के लिए कौन जिम्मेदार है ?

हमने कहा- बन्धु, इसके लिए कोई भी जिम्मेदार हो सकता है लेकिन हम तो इसके लिए बिलकुल भी जिम्मेदार नहीं हैं |पिछले एक साल से विदेश नहीं गए हैं और पिछले पांच महीने से घर में हैं | मोदी जी की तरह विशिष्ट  विदेशियों को आलिंगनबद्ध भी नहीं करते |जो काम के लोग हैं वे हमसे दूरी बनाकर रखते हैं और जो फालतू हैं उनसे हम दूरी बनाकर रखते हैं | हाँ, अखबारों में नेताओं के एक दूसरे पर थूक उछालने वाले पवित्र वचन अवश्य पढ़ लेते हैं |अगर उससे देश में कोरोना फैला हो तो तू हमें घुमा फिराकर जिम्मेदार  ठहरा सकता है जैसे कि कोई नेहरू जी को कोरोना के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए कहे कि वे १९५० में चीन गए थे और वहाँ से कोरोना ले आए | और अब सत्ता छिन जाने पर झुंझलाई हुई कांग्रेस ने मोदी जी को बदनाम करने के लिए वह वायरस देश में फैला दिया

बोला- मैं तुझ पर कोई आरोप थोड़े लगा रहा हूँ | मैं तो तेरा विचार जानना चाहता था |

हमने कहा- भारत में लोकतंत्र है इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से अपने विचार व्यक्त न करना ही श्रेयष्कर है | वैसे  ट्रंप कहते हैं कि कोरोना की जड़ में चीन है | नेपाल के प्रधानमंत्री कहते हैं भारत के कारण नेपाल में कोरोना फैला है |हम भी पहले तबलीगियों के सिर इसका ठीकरा फोड़ रहे थे लेकिन जब संयुक्त अरब अमीरात ने हड़का दिया तो कहने लगे- 'हमें बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं'  | एक आध बार किसी छुटभैये ने चीन की तरफ इशारा किया था |फिर शायद ऊपर से चुप रहने के निर्देश आगए  |

हाँ,  दो दिन पहले भाजपा का एक युवा, ओजस्वी, तेजस्वी और भाषाविद सांसद प्रवेश वर्मा ज़रूर एक नए शोध के साथ उदित हुआ है | उसका कहना है- 'क' से केजरीवाल और 'क' से कोरोना |इस आधार पर तू चाहे तो बेचारे केजरीवाल को जिम्मेदार मान ले |


बोला- कुछ भी कह लेकिन संयोग बड़ा विचित्र हुआ |उधर प्रवेश वर्मा ने यह भाजपा स्टाइल जुमला फेंका और इधर केजरीवाल को खाँसी आने लगी |

हमने कहा- चलो, अच्छा हुआ जो केजरीवाल को कोरोना नहीं निकला |लेकिन हम व्यक्तिगत रूप से ऐसे बचकाने वक्तव्यों के खिलाफ हैं |वैसे इस बालक का वक्तव्य ध्वनि और भाषा शिक्षण के हिसाब से भी ठीक नहीं है |जब बच्चे को किसी भाषा की ध्वनियाँ सिखाई जाती हैं तो उस भाषा की वर्णमाला के क्रमशः सभी अक्षरों से शुरू होने वाले सामान्य और सरल संज्ञा शब्द सचित्र दिखाए और बुलवाए जाते हैं जैसे 'अ' से अनार; 'आ' से आम |बच्चा पहले से ही इन संज्ञाओं से परिचित है और चित्र देखकर कहीं न कहीं 'आम' और अनार का मज़ा लेता हुआ सीख भी जाता है ||

बोला- लेकिन 'क' से केजरीवाल में क्या बुराई है ?

हमने कहा- है |पहले तो यह कि आप 'क' की ध्वनि सिखा रहे हैं न कि 'के' या 'को' की |दूसरे छोटा बच्चा 'क' से 'कबूतर' के द्वारा अच्छी तरह समझेगा या 'क' से 'कटाक्ष' या 'क' से 'कफ़न' से ज्यादा सरलता से समझेगा ?
जब आप 'ब' से 'बतख' बता रहे हैं तब आप बच्चे को जीव जगत से जोड़ रहे हैं लेकिन जब आप 'ब' से 'बंदूक' बता रहे हैं तब आप बच्चे को प्रकारांतर से एक हिंसक मनोजगत में ले जा रहे हैं |पाकिस्तान में तालिबानों के प्रशिक्षण काल में 'बे' से 'बंदूक' की पढाया जाता था |

इस प्रकार के अर्थानर्थ से व्यक्ति का खुद का ओछापन भी प्रकट होता है |




Arvind Kejriwal Meets Home Minister Amit Shah, Says Had A Fruitful ...











ध्वनिसाम्य के हिसाब के 'क' से कांग्रेस का 'कर' बना लो; 'क' से भाजपा का 'कमल' भी बना लो | 'अ' से  'आप' का  'अरविंद' बना लो और चाहो तो उसी 'अ' से भाजपा का 'अमित' बना लो |मज़े की बात यह भी है कि अरविंद का मतलब 'कमल' होता है जो भाजपा का ही नहीं, भारतीय वांग्मय का एक सशक्त प्रतीक है |  'न' से नेहरू और 'न' से नरेन्द्र दोनों बन सकते हैं |लेकिन जिसकी नीयत में खोट है और दृष्टि कमीनी है  वह 'ग' से गंगा, गाँधी और गुड़ बनाने की बजाय गू, गटर और गोडसे बनाएगा |'स' से साहिब, सिंह, सहज, सरल, समर्थ, समता शब्द बनाते हैं लेकिन कोई सूअर पर ही अटक जाए तो उसकी मर्ज़ी |
जा की रही भावना जैसी |

जोड़ने की भाषा कुछ और होती है और तोड़ने की कुछ और |

तभी बिहारी कहते हैं-

अनियारे दीरघ दृगन किती न तरुनि समान |
वे नैना कछु और हैं जिहिं बस होत सुजान |

अर्थात बहुत सी तरुणियाँ हैं जिनके नुकीले और बड़े-बड़े नेत्र हैं लेकिन रसिक जन जिन नयनों के वश में हो जाते हैं वे नैन कुछ और ही होते हैं |

इस  'कछु और' पर 'गौर'  करें |





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Jun 13, 2020

'कफ़न' का पुनर्पाठ



'कफ़न' का पुनर्पाठ 


तोताराम ऐसे-ऐसे प्रश्न करता है जिनका ज़वाब संविधान विशेषज्ञों तक के पास भी नहीं होता तो हम क्या ज़वाब दे सकते हैं |हाँ, पोलिटिकल साइंस एक ऐसा साइंस ज़रूर है जिसमें कोई भी बचकाना या कूढ़ मगज 'माननीय' अर्थात विधायक या सांसद जो कह दे उसे आइन्स्टाइन के बाप को भी मानना पड़ता है |

आज तोताराम ने पूछा- मास्टर, राज्यपाल किसलिए होता है ?

क्या बताएं ? अगर अम्बेडकर से पूछा जाता कि 'सी. ए. ए. का क्या औचित्य है' तो वे भी मुँह फाड़कर देखते रह जाते | यदि हर प्रश्न का परनिंदापरक,  तथाकथित देशभक्तिपूर्ण उत्तर ही देना होता तो हम भी भाजपा के प्रतिभाशाली भाषाविद, साहिब सिंह जी के सुपुत्र प्रवेश वर्मा की तरह, ध्वनिसाम्य के आधार पर कोरोना का कारण केजरीवाल को बता सकते थे |हालाँकि 'क' से केजरीवाल ही नहीं 'केशव-कुञ्ज' भी बनता है |'अ' से 'अरविंद केजरीवाल' ही नहीं, 'अमित शाह' भी बनता है |  

उत्तर तो देना ही था, सो अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार दे दिया- यदि राज्यपाल न हो तो किसी राज्य के राजभवन में कौन रहेगा ? उस राज्य के विश्वविद्यालयों का मानद कुलपति कौन होगा ? केंद्र में काबिज़ पार्टी से इतर पार्टी के मुख्यमंत्री की टांग कौन खींचेगा ? हाँ, यदि इस पद से पहले 'उप' उपसर्ग लग जाए तो यह प्यादे से फर्ज़ी हुए की तरह, 'उप' उपसर्ग लगी 'उपपत्नी' की तरह, नीम पर चढ़े करेले की तरह और शातिर हो जाता है |

बोला- यह तो कोई बात नहीं हुई |यदि किसी राज्य में संविधान का उल्लंघन हो रहा हो तो राज्यपाल का फ़र्ज़ बनता है कि वह संविधान की रक्षा करे |

हमने कहा-  जैसे कि केजरीवाल ने दिल्ली में कोरोना की गंभीर स्थिति को देखते हुए  बाहर वालों से दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव न बनाने के लिए कह दिया तो उपराज्यपाल ने संविधान की रक्षा के लिए उसके आदेश को ही पलट दिया | क्या जुर्म कर दिया, केजरीवाल ने ? लोग अपने-अपने राज्यों में अपना इलाज़ करवाएं | क्या राज्यों के अपने-अपने एम्स नहीं हैं ? केजरीवाल ने ही तो सारे देश के इलाज का ठेका नहीं ले रखा |सब अपनी-अपनी नाक खुद पोंछें |

बोला- लेकिन दिल्ली तो देश की राजधानी है |हर देशवासी का अधिकार है वहाँ इलाज़ करवाने का |

हमने कहा- संविधान के हिसाब से तो हर पड़ोसी देश के प्रताड़ित नागरिक का भारत में शरण लेने का अधिकार बनता है |वहाँ मुसलमानों को जात बाहर क्यों कर दिया ?

बोला- बात मत बदल |वैसे इस मामले में चुप रहेगा तो सुख पाएगा ?नहीं तो इस कोरोना- काल में कोई भी पुलिसिया अर्बन नक्सल बताकर जेल में डाल देगा |और बरसों जमानत भी नहीं होगी |मेरा तो मानना है कि यदि काबिलियत हो तो आदमी एक छोटी सी दिल्ली ही क्या, सारे देश की ज़िम्मेदारी ले सकता है और चेहरों पर मुस्कान ला सकता है |

हमने पूछा- जैसे ?

अपना स्मार्ट फोन निकालकर दिखाते हुए बोला- देख, 'अब पीएम जय' |

हमने कहा- इसमें दिखाने की क्या ज़रूरत है ? सारा संसार जानता है कि पीएम की तो अब क्या, जब चाहें तब 'जय' ही है |जो चाहे करें या कुछ भी न करें | एक ही दिन में 'सारे घर के बदल सकते'  हैं |जय तो उनकी  हर हालत में पक्की है जैसे हड़बड़ी में लॉक डाउन कर दिया तो उनकी जय क्योंकि उन्होंने देश को महाविनाश से बचा लिया | और अब हड़बड़ी में अनलॉक कर दिया तो गड़बड़ी के लिए मुख्यमंत्री ज़िम्मेदार |वे खुद तो हर हाल में विजेता हैं |

बोला- मैं तो तुझे वह मैसेज दिखाना चाहता था जो मोदी जी ने मुझे भेजा है लेकिन तू है कि अपनी ही गाए जा रहा है | देख, AB PM JAY मतलब 'आयुष्मान भारत प्रधान मंत्री जन आरोग्य  योजना' | लिखा है 'एक करोड़ आयुष्मान : करोड़ों मुस्कान' |

हमने कहा- बन्धु, जब नोट बंदी हुई या जी एस टी आया तो उसे मोदी जी और जेतली जी के अलावा कोई नहीं समझ पाया |शेष तो देखा-देखी मुंडी हिलाने लगे |वैसे ही यह आयुष्मान भारत,   लॉक डाउन, अब यह अनलॉक और यह 'बीस लाख करोड़ का आत्मनिर्भर भारत' वैसे ही है जैसे-अच्छी लिखावट और श्रेष्ठ कविता वह होती है जो पढ़ने वाले ही नहीं, लिखने वाले को भी समझ न आए |

बोला- तो तू कैसे मानेगा कि मोदी जी ने कोरोना के सन्दर्भ में देश के आयुष्य के लिए कुछ किया है ? 

हमने कहा- मान ले, किसी का जन्म भारत में हुआ है, उसके पास कोई कार्ड-बीमा कुछ नहीं है, न वर्क है, न होम है, तो क्या उसके लिए भारत के किसी भी अस्पताल में  बिना पैसे के कोरोना की जाँच, इलाज़ और उस दौरान खाना खाने की कोई व्यवस्था है ?

बोला- इस बारे में तो मैं क्या, मोदी जी और यहाँ तक कि उनके मन्त्रों के मुखर भाष्यकार जावडेकर जी भी कुछ नहीं कह सकते |

हमने कहा- कुछ दिनों पहले एक समाचार पढ़ा था कि अहमदाबाद में एक ए एस आई को कोरोना के कारण नगर निगम के अस्पताल में भर्ती करवाया गया |वहाँ उसकी मौत हो गई |इलाज के दौरान घर वाले तीन लाख रुपए दे चुके थे | इसके बाद शव देने के लिए अस्पताल वालों ने एक लाख पैंतीस हजार रुपए और मांगे |पुलिस ने हस्तक्षेप किया |आगे क्या हुआ, खबर में नहीं बताया गया |

अब पता नहीं, यह मामला  'एक करोड़ आयुष्मान : करोड़ों मुस्कान' के शामिल है या नहीं ?

बोला- लेकिन गरीबी की रेखा से नीचे वाले और किसी भी कल्याणकारी स्कीम में नहीं आने वाले के अंतिम-संस्कार के लिए स्थानीय निकाय द्वारा २००० रुपए की सहायता का प्रावधान तो अवश्य है |और आज ही उत्तरप्रदेश सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर ५००० रुपए कर दिया है |


अंतिम संस्कार से पहले लाश ने खोल दी ...


हमने कहा- प्रेमचंद की कहानी 'कफ़न' का भी तो एक वाक्य है- 'कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते जी तन ढाँकने को चीथड़ा न मिले, उसे मरने पर नया कफन चाहिए' |















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Jun 10, 2020

रंग बरसे उर्फ़ संवेदनशील सरकार



रंग बरसे उर्फ़ संवेदनशील सरकार 


पता नहीं,  लोगों को किस नई आशा और विश्वास के चलते रोमांच हो रहा है ? जैसे  कि इस पाँचवें लॉक डाउन के बाद ८ जून को हो रहे इस पहले अनलॉक में कौन-सा अवतारी वीर बालक प्रकट होगा जो कष्टों से घिरी इस पृथ्वी का उद्धार करेगा ? कौन पिछले ७० सालों से रसातल में ले जाई जा रही इस पुण्यभूमि को बचाने के लिए वराह अवतार लेगा ? कौन देश  रूपी प्रह्लाद को कोरोना के हिरण्यकश्पप से बचाने के लिए अचानक खम्भे को फाड़कर नृसिंह भगवान की तरह प्रकटेगा | हम तो जानते हैं और हमारे यहाँ तो कहावत भी है कि बिटौरे में से कंडे के अलावा और क्या निकलेगा ? कल जो लोकतंत्र या राष्ट्रवाद के नाम से सड़कों पर थूक उछालता फिर रहा था और फिर कोरोना के चलते २२ मार्च को मजबूरी में बनारसी गमछे या मास्क में घुस गया, अब लॉक डाउन-५ के बाद अनलॉक- १ में से वही लफंगा तो निकलेगा |  


तोताराम को भी शायद कुछ ऐसे ही किसी चमत्कार का मुगालता रहा होगा |तभी  ठुमकता हुआ आया |गुनगुना रहा था- रंग बरसे....|

हमने कहा- अब और कौनसा रंग बरसना शेष रह गया है ? काले रंग ने गोरे रंग के  घुटने के नीचे नौ मिनट दबकर दम तोड़ दिया | 


Anushka Sharma, Vidya Balan, Madhuri Dixit Lockdown On Domestic ...


बफैलो नियाग्रा में इस अन्याय के विरुद्ध शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले एक ७५ वर्षीय श्वेत बुज़ुर्ग को सड़क पर गिराकर उसका सिर फोड़ दिया गया |अमरीका  के शहरों की सड़कों पर  लाल रंग के छीटें छिटके हुए हैं |यहाँ भी एक ख़ास रंग से बसों, इमारतों को रंगकर देशप्रेम पैदा किया जा रहा है |वनस्पति अपने हरे और आकाश अपने नीले रंग के कारण संदेहास्पद लगने लगा है | लेकिन याद रखो बन्धु, सृष्टि है | रंग-बिरंगी और विविधरूपा |

एक रंग में रंग न सकोगे 
दुनिया रंग-बिरंगी भगतो !

बोला- मास्टर, बिना बात ज्यादा दार्शनिक होने की ज़रूरत नहीं है |हर काम में रंग देखो, रंगीनी देखो |पानी का कोई रंग नहीं होता लेकिन क्या कोई बेरंग पानी देखा है | दारू में मिलकर नारंगी होकर नशा देता है, दूध में मिलकर पचास रुपए लीटर बिक जाता है |किसी पार्टी में मिलकर नीला, किसी में भगवा, किसी में हरा, किसी में सफ़ेद हो जाता है |रामविलास जी की पार्टी के निशान और झंडे का क्या रंग है ? पता है ? नहीं |जिसमें मिला दो लगे उस जैसा |

मस्त रहो तुम मस्ती में, 
चाहे कोरोना फैला हो बस्ती में |

हमने पूछा- फिर भी तेरे इस 'रंग बरसे'  का क्या सन्दर्भ है ?

बोला- निसर्ग चक्रवात की वजह से मध्य प्रदेश के अनेक जिलों में हुई जोरदार बारिश ने शिवराज सरकार के दावों की पोल खोलकर रख दी है। सरकार द्वारा खरीदा गया 300 करोड़ से ज्यादा का गेहूं पानी में भीग गया है।

हमने कहा- तो यह क्या कोई ठुमकने का विषय है ?यह तो दुःख और शर्म की बात है |

बोला- रंग तो इसमें भी है |पहले इस भीगे गेहूँ की फिंकवाई का बजट बनेगा |फिर इसी गेहूँ को थोड़ा साफ़-सूफ करके आटा बनवाकर प्रवासी मजदूरों को किसी योजना के तहत खिला दिया जाएगा |कल्याण का कल्याण और कमाई की कमाई |जब देश आज़ाद हुआ था तब अमरीका से जाने कैसा-कैसा गेहूँ आया करता था और लोग कैसे-कैसे उसे भी खा जाया करते थे |

हमने कहा- यदि उसे खाकर कुछ लोग मर गए तो ?

बोला- तो क्या तेरे हिसाब से अब कोरोना के अलावा और बीमारियों से लोग मरना बंद हो गए हैं ?यदि ख़राब गेहूँ से कुछ लोग मर गए तो विपक्ष पर भी एक मुद्दे रूपी रंग के कुछ छींटे पड़ जाएंगे | 

 

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 5, 2020

आई कांट ब्रीद



आई कांट ब्रीद 


कुछ भी हो, बड़ों की बड़ी बात होती है |अमरीका यूँ ही दुनिया का थानेदार नहीं है |शुरूआत कैसे भी हो लेकिन अंततः नंबर वन बन ही जाता है |आज भी कोरोना के संक्रमितों और मरने वालों की संख्या के हिसाब से दुनिया में नंबर वन है |लेकिन अब टेस्ट के मामले में भी सबसे आगे निकल रहा है | इतना पिछड़ने के बाद भी अंततः वह हालात को कंट्रोल में कर ही लेगा |

हम भी जनसंख्या के मामले में जल्दी ही चीन से आगे निकल सकते हैं | कोरोना के मामले में शुरू में तो हमारी गति धीमी थी लेकिन अब तेजी पकड़ रही है |  लेकिन यह कोई गौरव की बात है ? नहीं, चिंता और शर्म की बात है |

तोताराम के आते ही हमने उसके सामने अपनी यही चिंता व्यक्त की तो बोला- यह तो मोदी जी ने बचा लिया, भाई ! नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता ? क्या पता, आधा भारत की साफ़ हो जाता | मोदी जी 'नमस्ते ट्रंप' से निवृत्त होते ही कोरोना के मोर्चे पर आ डटे |और उसके बाद कभी यह, तो कभी वह |कोरोना की साले की साँसें फुला दी |सोच रहा होगा, कहाँ फँस गया |और बीस लाख करोड़ का पॅकेज आने पर तो सब कुछ भूल-भालकर अपने खाते में १५ लाख रुपए आने का हिसाब लगाने लग गया होगा |

हमने कहा- भ्रम मत पाल | कभी किसी छोटा-मोटा काम-धंधा करने वाले या मजदूर से पूछोगे तो वह भी यही कहेगा- क्या बताएँ मास्टर जी, इस लॉक डाउन के चक्कर में तो साँस ही नहीं आ रही है |और तू कह रहा है मोदी जी ने कोरोना की साँस फुला दी |

बोला- कोरोना की छाती पर इतनी तालियाँ और इतनी थालियाँ बजने से उस की क्या हालत हो गई होगी यह केवल कल्पना ही की जा सकती है | कोरोना जब शुरू-शुरू में आया था तब देखा नहीं कैसे, बिहारी के दोहे की तरह  'श्याम हरित द्युति' हो रही थी |और अब,  नीला-पीला, चितकबरा हुआ जा रहा है |पहले कितना अकड़ता हुआ आया था |तुझे पता है, इसका कोरोना नाम क्यों पड़ा ? लगता है जैसे इसके सिर पर कोई 'क्राउन' (ताज ) है |तभी तो इसे क्राउन वाला कोरोना कहा गया है |अब तो कोरोना  खुद ही मुँह छुपा रहा है |तभी अब बिना लक्षण वाला हुआ जा रहा है |

ताली-थाली सुनकर और दीयों की रोशनी से चकाचौध होकर पगला सा गया है |कभी मंदा पड़ जाता है, कभी तेज; कभी किसी जगह से निकल जाता है तो कभी फिर-फिर वहीँ आ जाता है |कभी यहाँ प्रवासी मजदूरों में घुस जाता है तो कभी तबलीगियों में |अब अमरीका में घबराकर काले लोगों में घुस रहा है |

हमने कहा- लेकिन अब तो मोदी जी खुद कह रहे हैं कि कोरोना के साथ रहना सीखना होगा |

बोला- तभी तो श्रद्धालु लोग कोरोना को देखते ही सोशियल डिस्टेंसिंग भूल जाते हैं और दौड़कर कोरोना की ऐसे झप्पी भर लेते हैं जैसे 'नमस्ते ट्रंप' में मोदी जी ने लपककर ट्रंप को बाँहों में भर लिया था | ऐसे में कोरोना खुद जार्ज फ्लायड की तरह चिल्ल्ला रहा है- आई कांट ब्रीद |



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हमने कहा- तो फिर देश में कोरोना के केस इतनी तेज़ी से क्यों बढ़ रहे हैं ?

बोला- कोरोना के मामले में भारत की हालत दुनिया के अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस जैसे देशों से बेहतर है |ये तो कुछ विपक्षी और देशद्रोही लोग हैं जो कोरोना-कोरोना चिल्ला रहे हैं |यदि हालत ठीक नहीं होती तो क्या लॉक डाउन खोल दिया जाता ? बस, भारत सरकार के महाधिवक्ता तुषार मेहता की बात मान और सकारात्मकता बनाए रख | सब ठीक हो जाएगा | इतने पर यदि तुझे कुछ समस्या लगे तो बता देना, जैसे सपरिवार कोरोना ग्रस्त हो गए  आर्मीनिया के प्रधानमंत्री के लिए स्वास्थ्य लाभ की कामना कर दी, वैसे तेरे लिए भी कर देंगे |

तुझे पता होना चाहिए शुभकामनाओं में बड़ी शक्ति होती है, वेक्सीन से भी ज्यादा |

























 


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