Jul 31, 2015

बेचारा तोताराम

    बेचारा तोताराम

दावत-ए-इफ़्तार के नाटक के बाद, बीते रविवार को तोताराम धर्म-परिवर्तन के लिए चर्च जा रहा था | उसके बाद अचानक जीते हुए नेता की तरह पता नहीं, कहाँ गायब हो गया ? हमारी उत्सुकता चरम पर | कहीं अपनी ईसाइयत पर पक्की मोहर लगवाने के लिए वेटीकन तो नहीं चला गया |

बरामदे में बैठे सोच-विचार कर ही रहे थे कि किसी ने हमारे सामने सूखी घास का एक बड़ा-सा गट्ठर पटक दिया | हम घबराकर  पीछे खिसककर बोले- कौन है बे ! क्या तमाशा है यह ?

तभी गट्ठर पटकने वाले ने गमछे से अपना चेहरा झाड़ा और हमारे पास आ बैठा- बोला, कोई नहीं, मैं हूँ तोताराम |

हमने पूछा- तो ईसाई बनने के उपलक्ष्य में पुरस्कार स्वरूप यह घास डाली  है पोप साहब ने ?

बोला- न तो मैं वेटिकन गया था और न ही यह घास किसी ने मुझे डाली है | यह तो वह घास है जो मैं बिहार लेकर गया था |

हमने आश्चर्य से पूछा- बिहार ! वहाँ का चारा तो पहले से बहुत प्रसिद्ध है | एक हजार करोड़ के चारे के बाद भी वहाँ अब चारे की क्या ज़रूरत आ पड़ी ?

कहने लगा- मैंने तो समाचार पढ़ा था कि भाजपा की उमा भारती जी द्वारा नव  नियुक्त 'विष्णु' अमित जी एक साथ ही सौ-दो सौ रथ लेकर निकल पड़े हैं | पहले की बात और थी | रामावतार में विभीषण ने राम को रथ पर सवार होने को कहा तो उन्होंने न्याय, संतोष, शील का रथ अधिक महत्त्वपूर्ण होने की बात कही | बाद में ज़रूरत पड़ी तो इंद्र ने रथ भिजवाया जिसे रावण वध के तत्काल बाद इंद्र ने वापिस मँगवा लिया | कृष्णावतार में तो प्रभु को अर्जुन का रथ ही हाँकना पड़ा | सुबह शाम घोड़ों को खिलाना-पिलाना और खरेरा करना सो अलग | एक रथ में यदि चार घोड़े भी हुए तो हजार-पाँच सौ हो जाएंगे | लालू का इलाका | पता नहीं, चारे की कैसी व्यवस्था हो ? सो  मूलचंद के खेत में से कुछ चारा खोद कर ले गया था | देश को अगले २५ वर्ष में जगद् गुरु बनाने में मेरा भी तो कुछ योगदान होना चाहिए कि नहीं ?

हमने कहा- तोताराम,जैसे आजकल भारत ही क्या विश्व भर के विकास का ठेका लोगों ने ले रखा है वैसे ही तूने भी दुनिया भर की अकल का ठेका तो ले रखा है लेकिन वास्तव में है नहीं धेले भर भी | अरे, आजकल कौन घोड़ों वाले रथ रखता है ? आजकल तो दो-पाँच करोड़ की बड़ी वातानुकूलित बस होती है जिसमें बेड रूम, शौचालय, किचन  के साथ-साथ संचार  की समस्त नई से नई तकनीक होती है और ऊपर से बुलेटप्रूफ | तेरे जैसों को तो संदेहास्पद मानकर इन रथों के पास तक नहीं फटकने दिया जाता | और फिर उन रथों का नाम है 'परिवर्तन-रथ' मतलब कि ज़माना परिवर्तित हो गया है | अब राम के 'मर्यादा-रथ' और कृष्ण के 'धर्म-रथ' नहीं रहे, सब 'सत्ता-रथ' हो गए हैं | 

सत्ताधारी कभी बेचारे नहीं होते | बेचारे तो होते हैं तेरे जैसे अतिउत्साही सेवक | क्या हालत हो रही है ? जा अन्दर जाकर अपना मुँह धो, तब तक मैं चाय बनवाता हूँ | 

वास्तव में सूखे चारे के गट्ठर के पास बैठा तोताराम आज बहुत ही बेचारा लग रहा था |


Jul 28, 2015

....इंसाँ होना

   .....इंसाँ होना 

ग़ालिब का एक प्रसिद्ध शे'र है-
बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना 
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना |

कल रात समाचारों में सुना कि कलाम साहब नहीं रहे | हमेशा रहने को तो कौन आता है लेकिन कुछ लोगों को जाना बहुत मायूस कर जाता है | तुलसीदास जी के अनुसार दुष्ट और संत दोनों की दारुण दुःख देते हैं- दुष्ट मिलने पर और संत बिछड़ने पर | आज ऐसा ही दुःख हो रहा था |
आज जब छोटे-मोटे नेता भी किसी भी पुलिस वाले या कर्मचारी को थप्पड़ मार देते हैं, गलियाँ देते हैं, हर समय दूसरों की निंदा करते हैं, छोटे मुँह बड़ी बातें करते हैं, अपने छोटेपन की कुंठा के कारण खरबों के महल,अरबों की शादियाँ और लाखों के कपड़े और घड़ियाँ पहन अकड़ कर घूमते हैं, जनता के धन को निर्दयता पूर्वक अपने मौज़-शौक पर खर्च करते हैं तब रामेश्वरम (राम के ईश्वर अर्थात शिव) के इस शिव-सदृश संत का गुज़र जाना समस्त दुनिया की क्षति है जिसे उनके आदर्शों को थोड़ा सा भी अपना कर ही पूरा किया जा सकता है यदि कोई अपना सके तो |

आज तोताराम आया तो न हम कुछ बोले और न वह | दोनों एक दूसरे की मनःस्थिति समझ रहे थे |

कुछ देर बाद बोला- मास्टर, आज जब लोग अपने झूठे-सच्चे कष्टों का राग गा-गा कर उसे पता नहीं, कब तक भुनाते रहेंगे; ऐसे में कभी भी अपनी चर्चा न करने का कमाल करने वाले कलाम वास्तव में युगों में एक पैदा होते हैं |एक बार पंच बन जाने वाला ज़िन्दगी भर 'भूतपूर्व पंच' का तमगा लगाकर या जिसकी पत्नी पञ्च बन जाती है तो 'पंचपति' बना घूमता है ऐसे समय में एक भारत-रत्न, राष्ट्रपति अपने आपको 'अध्यापक' के रूप में याद किए जाने की तमन्ना रखता है | क्या आने वाले समयों में कोई विश्वास करेगा ? 
हमने कहा- तोताराम, कलाम ने कभी निजी या सरकारी खर्चे पर तीर्थयात्रा करके धर्म का आडम्बर नहीं किया | इफ्तार के नाम पर राजनीति करने के इस घटिया दौर में कभी इफ्तार की दावत नहीं दी | उसके बदले इफ्तार के नाम से राष्ट्रपति को मिलने वाले पैसे में अपनी तरफ से एक लाख रुपया मिलाकर अनाथालय के बच्चों के लिए कम्बल और मिठाई भिजवाना बड़ी बात है, उससे भी अधिक आज के छोटे मन के बड़े नेताओं के लिए एक बड़ा कमेंट भी | 

तोताराम उठते हुए बोला-मास्टर, अब रहने दे |किन लोगों की बात ले बैठे हम भी | | कुछ समय तो माहौल को कलाममय रहने दे |

आज पहला मौका था जब तोताराम ने चाय नहीं पी |और सच हमें भी आज चाय की तलब नहीं है |

कलाम साहब के नाम दो पत्र

 कलाम साहब के कार्यकाल में लिखे उन्हें दो पत्र  विनम्र श्रद्धांजलि स्वरुप प्रस्तुत हैं



१८२. कलाम-कुटिया


( कलाम साहब ने राष्ट्रपति भवन के परिसर में मणिपुर के कारीगरों से एक कुटिया बनवाई )


आदरणीय कलाम साहब,
नमस्कार | समाचार पढ़ा कि आपने राष्ट्रपति भवन में मणिपुर के कलाकारों से बाँस और बेंत से एक कुटिया बनवाई है | इसमें बैठकर आपका चाँदनी रात में कविता लिखने का इरादा है | अच्छा विचार है |

आपकी कुटिया का नाम हमने सोच लिया है- 'कलाम-कुटिया' | इसका समस्त-पद-विग्रह इस प्रकार से किया जा सकता है- कलाम की कुटिया | यह तो खैर, सर्वविदित और सामान्य अर्थ है किन्तु आप स्वयं कलाम हैं और इसमें बैठकर 'कलाम' लिखेंगे तो इसे 'कलाम लिखने के लिए बनवाई गई कुटिया' कहना ठीक रहेगा | कलाम मतलब कविता |

यूँ तो 'पेड़ों के नीचे' से लेकर 'महलों के अंदर' तक कलाम लिखे गए हैं पर इनके भाव अलग-अलग होते हैं | महलों में शेयरों के भाव और हवेलियों में घी, तेल और अनाज के भावों की चर्चा होती है | चूँकि कुटिया में ये दोनों ही प्रकार के भाव उपलब्ध नहीं हैं इसलिए यहाँ लिखी गई रचना में मन के भाव होंगे | मन के भावों को ही जनता भाव देती है | तभी तो कुटियों में रहने वाले ऋषि-मुनियों, साधु-संतों-फकीरों के भाव जन-जन के हृदय-हार बन गए | वेद, पुराण,उपनिषद, गीता, रामायण, सबद, पद बिना किसी प्रचार और विज्ञापन के लोगों की साँस में बस गए |

महलों में षडयंत्र होते हैं, सृजन नहीं | वहाँ सिंहासन पर चढ़े, उतरे, उतारे गए, चढ़ने के आकांक्षी लोगों की लालसाएँ और कुंठाएँ मँडराती रहती हैं | वहाँ कैसा सृजन और कैसा चिंतन |

लोगों ने पाँच-सात सौ करोड़ की शादियाँ कीं, हजारों करोड़ के घर बनवा रहे हैं पर वहाँ किसी प्रकार का सृजन नहीं होगा | आपने तो न तो शादी करने में खर्च किया और न ही महल बनवाने में | जो कुछ बचा उससे यह कुटिया बनवा ली |

यदि महलों में कुछ रचा भी जाता है तो वह राजा के साथ ही मर जाता है क्योंकि राजा धन और पद के हाथी पर चढ़ कर लोगों के सर पर सवार होना चाहता है | वह कभी भी प्यार की मीठी बतळावण की तरह दिल में प्रवेश नहीं कर सकता |

हमने सारी जिंदगी सरकारी क्वार्टरों में काट दी जो गरमी में गरम और सर्दी में ठंडे रहते हैं | जब कि कुटिया सर्दी में गरम और गरमी में ठंडी रहती है | पर क्या बताएँ सर्दी में ठिठुरते हुए और गरमी में पसीने से भीगे हुए कविता नहीं लिखी जा सकती | सर्दी में लिखावट काँपती हुई, अस्पष्ट हो जाती है और गरमी में पसीने से स्याही फ़ैल जाती है | न तो झोंपड़ी बनवा सके और न ही एयर कंडीशंड बँगला | इन दोनों में ही आराम से लिखा जा सकता है, सरकारी क्वार्टर में नहीं |

कविता लिखने की बड़ी हसरत रही पर क्या बताएँ उपयुक्त स्थान ही उपलब्ध नहीं हुआ | आप तो कुटिया में चाँदनी रात में कविता लिखेंगे सो दिन में तो कुटिया खाली ही रहेगी | यदि हमें दिन में कुटिया में बैठकर कविता लिखने दें तो बड़ी कृपा होगी | और जब तक आप हैं तब तक हम आपके 'केयर आफ' ही रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में भेजते रहेंगे | इससे रोब पड़ेगा और छपने में सुविधा रहेगी |

३-५-२००७

८४. दूसरा-तीसरा

( मुशर्रफ कलाम साहब से मिले | कलाम साहब ने उन्हें खाना खिलाया, कविता सुनाई, ग्राम विकास के बारे में कम्प्यूटर पर फिल्म दिखाई और दोनों देशों के बीच 'तीसरे' से भी सावधान किया )

आदरणीय कलाम साहब,
नमस्कार । आप महामहिम हैं । किसी राष्ट्रपति को पत्र लिखने का तरीका हमें तो पहली क्लास से लेकर एम.ए.तक कहीं भी नहीं सिखाया गया । इसलिए यदि पत्र लिखने में कोई भूल हो जाए तो क्षमा करियेगा । वैसे यह पत्र हम आपको राष्ट्रपति, महामहिम आदि के रूप में नहीं लिख रहे हैं । हम तो आपको एक सच्चा इंसान, खरा भारतीय, अध्यापक, कवि और बड़ा भाई मानकर लिख रहे हैं ।

मियाँ मुशर्रफ़ आप से मिलने आए । अच्छा किया । यह भेंट उनके लिए बड़े काम की रहेगी । ये वर्दी वाले चाहे पुलिस के हो, चाहे कोई अन्य कुछ, पर होते कुछ उलटी खोपड़ी के ही हैं । इन्हें सावधान, विश्राम, दायें घूम, बाएँ घूम, तेज चल, कदम ताल आदि शब्द ही समझ में आते हैं । वे बिना रिवाल्वर के आए, मुक्त बाजार के महाजन के निर्देश पर आए । इसलिए शालीनता भी आवश्यक थी । भगवान जाने, यह उनका असली रूप था या नकली । राम करे असली ही हो । और हमेशा यही रूप बना रहे । वैसे लगता असंभव है ।

आपने उन्हें खाना खिलाया । खिलाना भी चाहिए । बुश साहब तो लोगों को केवल नाश्ता करवा कर ही टरका देते हैं । पर अपनी तो भारतीय परम्परा है - अतिथि देवो भव । बड़े प्यार से खाना खिलाते हैं । ज़बरदस्ती आग्रह कर-कर के, ठूँस-ठूँस कर खिलाते हैं ।  आपने उनकी मनपसंद चीजें बनवाईं । यह आपकी महानता है कि स्वयं शाकाहारी होते हुए भी उनके लिए हैदराबादी बिरयानी, कबाब कश्मीरी बनवाए । बाई द वे यह बिरयानी सिंध हैदराबादी थी या निजाम हैदराबादी । ईरान के राष्ट्रपति अयातुल्ला खुमैनी कभी किसी पार्टी में शराब सर्व नहीं करवाते थे क्योंकि शराब इस्लाम के खिलाफ है । हमें पूरा विश्वास है कि आपने भी शराब सर्व नहीं करवाई होगी । मुशर्रफ़ साहब ने इडली तो क्या खाई होगी । यह आप-हमारे जैसे लोगों की पसंद हो सकती है ।

आपने भोज का बड़ा अच्छा उपयोग किया । खाना खाते समय चाहे कविता सुनाओ, चाहे ज्ञान की कोई और बात बताओ, आदमी उठ कर तो भाग नहीं सकता, मज़बूरन सुनना ही पड़ता है । आपने उन्हें गावों के विकास के लिए  कम्प्यूटर पर अपना फार्मूला दिखाया । यह तो उनके लिए नई बात रही होगी । उन्हें तो बम, तोप, गोले, राइफल का ही शौक रहा है । आप जैसे कितने हैं जिन्होने मिसाइल और मानवीय ममता को साथ साथ जिया है । आशा है कि वे अपने यहाँ जाकर आतंकवादी शिविरों के विकास की बजाय अपने वहाँ के ग्रामीण भाइयों के दुःख दूर करने की सोचेंगे ।

आपकी सबसे बड़ी बात रही 'तीसरे वाली' जो हमें सबसे अच्छी लगी । आप तो अद्वैत में विश्वास करते हैं इसलिए जीवन में भी 'द्वैत' नहीं अपनाया । एक से दो भी नहीं हुए | बहुष्यामः तो बहुत दूर की बात है | वैसे ज्ञान, भक्ति,कर्म, प्रेम सभी एकनिष्ठता की माँग करते हैं । मीरा ने तभी कहा- 'दूसरो न कोई' । क्रिकेट में 'दूसरे' को लेकर हरभजन परेशान है । प्रेम में यदि कोई दूसरा या दूसरी आ जाए तो कितनी परेशानी हो जाती है । और फिर 'तीसरा' । इससे तो भगवान ही बचाए । अब तक मुशर्रफ़ साहब 'तीसरे' के चक्कर में पड़े थे । और तीसरा तो चाहता ही यही है कि कहीं फटी दिखे और वह अपनी टाँग फँसाये । दो बिल्लियों की कहानी तो मुशर्रफ़ साहब ने भी पढी होगी । पर पढ़ने और गुनने में फर्क है । मुशर्रफ़ ही क्या पाकिस्तान के तो सभी नेता 'तीसरे' के चलाये ही चलते आ रहे हैं । तभी तो न उनका विकास हुआ और न ही पड़ोस से रिश्ते सुधरे । सारे वकील, नेता, चौधरी यही चाहते हैं कि लोग लड़ें और उनका धंधा चलता रहे । धर्म, भाषा, जाति- किसी भी बहाने से लड़ें, पर लड़ें । पर यह तो लड़ने वालों की समझ पर निर्भर है ।

आपने मुशर्रफ़ साहब को 'तीसरे' से सावधान करके अच्छा किया । हमें लगता है, आपने उन्हें कविता भी सुनाई होगी । अबकी बार आयें तो और अच्छी तरह क्लास लीजियेगा । जो किसी भी तरीके से बस में नहीं आता वह कविता के आगे हथियार डाल देता है । पिछली बार तो आगरा  में मुशर्रफ़ अटल जी की कविता से डर आकर भाग गए थे । अब हिम्मत जुटा कर फिर आए और ख़ुद उनके घर जाकर मिल कर आए । कविता सुनने की यह हिम्मत सत्साहस का प्रमाण है । हो सकता है सम्बन्ध सुधारने के लिए ये कुछ और भी साहस जुटाएँ और यह बिना बात की खाज मिटे तो दोनों देश प्रेम से जियें, मन लगाकर काम करें, और चैन की नींद सोयें । आपको मुशर्रफ़ की क्लास लेने के लिए पुनः धन्यवाद ।

२०-४-२००५

Jul 27, 2015

तोताराम का धर्मपरिवर्तन

  तोताराम का धर्मपरिवर्तन 

रविवार का दिन | भगवान की कृपा से गली का कीचड़ सूख चुका है |आने-जाने वाले रुक सकते या हम उन्हें रोक सकते हैं |पिछले हफ्ते की बाढ़ जैसी स्थिति नहीं है | आज बैठक देर तक जम सकती है लेकिन तोताराम नदारद |

कोई दस बजे | तोताराम अपना शादी वाला सूट ठांँसे, टाई और सिर पर एक अजीब सा हैट लगाए नमूदार हुआ | हमने सालम ठोकी- सर, गुड मोर्निंग | कहाँ चले ? चर्च ?

तोताराम हमारे पास आ बैठा, बोला- तुझे कैसे पता चला कि मैं चर्च जा रहा हूँ ?
हमने कहा- रविवार को तोताराम, सूट पहने और कहाँ जा सकता है ? हमारे यहाँ तो लोग मंदिर जाते हैं तो कोई नंगे पाँव, तो कोई मात्र धोती में, लगता है कोई भिखारी ड्यूटी पर जा रहा है | ये तो ईसाई हैं जो भगवान के दरवाजे बड़े मज़े से जाते हैं जैसे कोई वीक एंड पर दोस्त से मिलने जा रहा हो | भगवान भी खुश हो जाते होंगे |

बोला- मैं चर्च वैसे ही उत्सुकतावश नहीं जा रहा हूँ | मैंने एक फादर से बात कर ली है | मुझे ईसाई बनना है | 

हमने पूछा- चर्च कौनसा है और तू कौनसा ईसाई बनेगा ?

बोला- इसमें भी चक्कर है क्या ? मैं तो समझा था कि यह सब अपने हिन्दू धर्म में ही है |

हमने कहा- भैया, जब सारे धर्म ईश्वर को एक  बताते हैं और सभी मनुष्यों को उसकी संतान लेकिन कभी मिलकर नहीं बैठेंगे |सब धर्मों में छत्तीस फाँकें हैं | अपने-अपने हिसाब से सब तलवारें खींचे रहेंगे |जैसा भी है अपना धर्म है | सब घरों में  मिट्टी के चूल्हे हैं | स्वर्ग कहीं नहीं है | सबके अपने-अपने सुख-दुःख हैं |कब्र का हाल मुर्दा ही जानता है | अगर धर्म बदलने से संकट कट जाते तो जो पहले से उस धर्म में हैं क्या उन्हें कोई कष्ट नहीं है ?  अपना-अपना भाग्य है | जहां जाए भूखा, वहीं पड़े सूखा |और फिर ईसाई ही क्यों मुसलमान, सिक्ख,जैन,पारसी क्यों नहीं ?

बोला- मुसलमान बनने पर पता नहीं कोई क्या फतवा दे दे | कल को कोई यह भी फतवा दे सकता है कि मास्टर के साथ चाय पीना कुफ्र है तो क्या कर लूंगा ?और यदि सिक्ख बन गया तो पता नहीं कोई कार सेवा का फरमान कर दे तो गुरूद्वारे में जूते साफ़ करते-करते कमर टूट जाएगी |जैन ,पारसी पैसे वाली कौमें हैं वे मेरे जैसे गरीब को क्यों मिलाएँगी क्यों ? बौद्ध बनने पर बाबा अम्बेडकर को क्या एक्स्ट्रा मिल गया ? ईसाई धर्म में ऐसा कुछ नहीं और फिर अखबार में नाम-परिवर्तन की सूचना  देने का झंझट भी नहीं | कागजों में धर्म बदल जाएगा नाम वही रहेगा जैसे-अजित जोगी, अम्बिका सोनी, वाई.एस.आर.रेड्डी आदि | जब जहां जैसा फायदा हो पहुँच जाओ |

हमने कहा-लेकिन तू धर्म बदल ही क्यों रहा है ?

बोला- बनियों के पास धंधा है और रहेगा |किसी भी देश-धर्म के राजा का राज हो,इनसे तो सब को काम रहता है |क्षत्रियों के पास अब भी पुरानी तलवारें हैं |हालत तो हम ब्राह्मणों की खराब है | सब पार्टियों ने समझ लिया कि पतिपरायणा भारतीय पत्नी की तरह ब्राह्मण जाएगा कहाँ ? भले ही भूखा मारो या मनुवादी कहकर बदनाम करो |जब कि मनु ब्राह्मण नहीं था |ईसाई बनने पर कम से कम पोते-पोतियों को पढ़ने के लिए कर्ज़ा तो मिल जाएगा जो ब्राह्मण होने पर कम आय होने पर भी कभी नहीं मिला |

हमने कहा- और उससे पहले किसी 'महाराज' या 'योगी'  ने सभी मुसलमानों और ईसाइयों के साथ तुझे भी पकिस्तान या वेटिकन भेज दिया तो ?

बोला- वह कभी नहीं होना | यह सब तो पाँच साल तक टिके रहने के लिए ध्यान बटाने की शाश्वत कूटनीति है |


Jul 24, 2015

तोताराम की नई फिल्म की स्क्रिप्ट

  तोताराम की नई फिल्म की स्क्रिप्ट 

आज सुबह-सुबह तोताराम बड़े शास्त्रीय और राष्ट्रीय अंदाज़ में प्रकट हुआ- माथे पर तिलक, हाथ में पूजा की थाली, कलाई पर मोळी और नंगे पाँव |

हमने हँसते हुए पूछा- क्यों ? क्या नौ सौ चूहे खा लिए जो हज को जा रहे हो ?

बोला- यह ठीक है कि पाखंडी लोग अपनी धार्मिकता का हल्ला ज्यादा मचाते हैं लेकिन करोड़ों भले लोग एक भी चूहा खाए बिना हज़ को जाते हैं | अजमेर वाले ख्वाजा को चुनाव जीतने या फ़िल्में चलवाने के लिए चादर चढाने वाले नेताओं और अभिनेताओं की खबर अधिक आती है लेकिन उनसे हजारों गुना वे लोग हैं जो सच्ची श्रद्धा-भक्ति से जाते हैं |मैं तो आज तुझे हिन्दू रीति से गोपनीयता की शपथ दिलाने आया हूँ |

हमने कहा- तो क्या मुझे कहीं का राजदूत या राज्यपाल नियुक्त किया गया है ? 

बोला- नहीं, यह किसी पद की नहीं केवल गोपनीयता की शपथ है | इसका मतलब है कि इस शपथ के बाद आज मैं तुझे जो बात बताऊँगा उसे तू किसी को भी नहीं बताएगा, जब तक मैं न कहूँ |

हमने स्वीकृति दे दी | तोताराम ने लाल कपड़े में लिपटी एक पोथी निकाली | हमारे हाथ में जल और चावल दिए और एक दीपक भी जला दिया और बोला- अब मेरे साथ दुहरा - मैं मास्टर रमेश जोशी, अग्नि को साक्षी मानकर यह शपथ लेता हूँ कि वह उस बात जो अब तोताराम मुझे बताएगा, तब तक किसी को नहीं बताऊँगा जब तक कि तोताराम ऐसा नहीं चाहेगा' |

शपथ के बाद तोताराम ने पोथी को खोल कर कहा- इसमें वह कहानी और उसकी स्क्रिप्ट है जिसे मैं आज दो-चार फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को भेजने वाला हूँ | आज के बाद यदि कोई इस कहानी को चुराकर फिल्म बना ले तो तू गवाह रहेगा कि यह कहानी अमुक तारीख़ को मैंने  तुझे सुनाई थी |

हमारे हाँ कहने पर उसने जो कहानी सुनाई उसका नाम था- धारा-प्रवाह | उसमें तेहत्तर साल का एक बूढ़ा है जिसे 'संग्रहणी' की बीमारी है अर्थात वह थोड़ी-थोड़ी देर बाद सोच कर या बिना सोचे जैसी भी स्थिति होती है, शौचालय जाता है | सब कुछ उसके  'तरल पदार्थ' के चारों ओर घूमता है, मक्खियों की तरह | यहाँ तक कि युवा हीरो और उसकी जवाँ बेटी भी उसके चारों तरफ घूमते हुए एक दोगाना गाते हैं | उसकी बेटी को प्रसन्न करने के लिए युवक धारा-प्रवाह नामक बीमारी की दवा लाने के लिए किसी अन्य लोक में जाता है | अंत में नायक वह दवा ले आता है लेकिन तब तक नायिका का पिता इस प्रवाह में प्रवाहित होकर उस लोक में पहुँच जाता है | नायक और नायिका सभी धर्मों के मुख्य स्थलों की यात्रा करके गॉड /खुदा/ईश्वर से नायिका के पिता को लौटा लाते हैं और सांप्रदायिक सद्भाव के साथ फिल्म का सुखद अंत होता है |

हमने कहा- यह भी कोई कहानी  है ? कौन बनाएगा इस पर फिल्म ?

बोला- कौन ? अरे, मुझे तो आशंका है कि आर.बाल्की की 'चीनी कम' और सुजीत सरकार की 'पीकू' की तरह कहीं रामगोपाल वर्मा ने मेरे इस विषय पर फिल्म बनाने की घोषणा न कर दी हो |

और जब सर्वोच्च राजनीति अपना पायजामा कंधे पर रखकर विपक्षी के डायपर चेक करने लगे तो फिल्म वालों को ही दोष क्यों दिया जाए?


Jul 22, 2015

सेलेब्रिटी का संकट

  सेलेब्रिटी का संकट 

अभी रोज़र फेडरर और जोकोविच के फाइनल मैच के बाद सेलेब्रिटी की मानसिक स्थिति के बारे में अमिताभ बच्चन ने कहा- यह बहुत मुश्किल वक्त होता है जिसका सामना सेलेब्रिटी करता है | एक दिन अभूतपूर्व प्यार, सराहना और प्रशंसा और दूसरे ही दिन सब कुछ किसी और को चला जाता है |इस घटना क्रम को समझने के लिए बैल जैसी क्षमता, गैंडे जैसी खाल और शेर जैसी दहाड़ की ज़रूरत होती है |

अमिताभ एक सफल नायक रहे हैं और अब भी नायकों पर भारी पड़ते हैं |ज़रूर उनकी बात में कुछ सार तत्त्व तो होना ही चाहिए | थोथों को उड़ाकर सार-सार ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती तो क्या अब तक बने रहते रजत-पट के चमकीले परदे पर ? लेकिन जब  कुछ पल्ले नहीं पड़ा तो तोताराम की शरण में जाना ही पड़ा |

पूछा तो बोला- देखो, जिस तरह से बैल सुबह से लेकर शाम तक निर्विरोध और शांत भाव से, इस बात की परवाह किए बिना कि तेल किसका और कितना निकल रहा है, कोल्हू के चारों और घूमता रहता है वैसे ही सफल व्यक्ति को लगातार काम करते रहना चाहिए | पहले-दूसरे नंबर  और सेलेब्रिटी-वेलेब्रिटी के चक्कर में पड़े बिना | फिर चाहे फिल्म 'कब्ज़' के थीम पर हो या 'मधुमेह' पर  | लोगों के कहने की परवाह नहीं करनी चाहिए |लोगों का क्या, लोगों काम है कहना | अपनी चमड़ी गेंडे की तरह मज़बूत रखो | जब मौका मिले तो बुज़ुर्ग कवि तरह अपनी कविता पेल दो फिर चाहे लोग अपने बाल नोंचते रहें | 

और कभी-कभी शेर की तरह दहाड़ भी देना चाहिए | क्या पता, आवाज़ का वोल्यूम ही काम दे जाए जैसे कि 'विरुद्ध' फिल्म में अमिताभ अचानक चिल्ला पड़ते हैं और हमलावर भाग जाते हैं |

हमने कहा-लेकिन सब तो महानायक की तरह नहीं ना होते | अब उनको तो उनके हिसाब से फ़िल्में मिल रही हैं | वे कहें कब्ज़ है तो कब्ज़ पर कहानी लिखी जाएगी जैसे 'पीकू' |  यदि उन्हें शुगर की तकलीफ है तो 'चीनी कम' तैयार है | अब तेरे मेरे लिए रोज चबूतरे पर चाय पीने पर क्या फिल्म बनेगी?

तोताराम बोला- ऐसी बात नहीं है | हम यहाँ जो चर्चा करते हैं वह सारे दुनिया-ज़हान का दुःख-सुख होता है | उसमें कोई दिखावा और राजनीति नहीं होती | वे किसी भी सेलेब्रिटी के ट्विटर से बढ़कर होते हैं |किसी फिल्म से कम नहीं होते |लेकिन किया क्या जाए-लीला करने का अधिकार तो भैया, सतयुग -कलयुग सबमें बड़ों को ही रहा है |गरीब की क्या कहानी |दो आरजू में और दो इंतज़ार में कट जाते हैं |कला या देश की सेवा करनेका मौका ही नहीं मिलता |

Jul 18, 2015

लेन-देन में सावधानी


 लेन देन में सावधानी

दो दिन पहले जब रेहड़ी वाले से दो किलो आम लिए तो हमारी जेब में पैसे नहीं थे | तोताराम से एक सौ रुपए  उचंती लिए थे | आज जैसे ही आया तो हमने दस-दस के दस नोट उसे देते हुए कहा- ले भाई, परसों वाले तेरे एक सौ रुपए |

बोला- नहीं, देना है तो सौ का नोट दे | ये छोटे नोट लेना खतरे से खाली नहीं है | आज ही एक शोध का समाचार पढ़ा है कि छोटे नोटों के साथ चिपक कर कई तरह के बैक्टीरिया और कीटाणु आ जाते हैं |वैसे तो सौ का नोट भी आजकल कोई बड़ा नोट नहीं रहा गया है |फिर भी सावधानी ज़रूरी है |

हमने कहा-   नशा,लम्पटता और राजनीति में गन्दा-साफ़ जैसा कुछ नहीं होता | देखा नहीं, वैसे भले ही नेता जात-पाँत, ऊँच-नीच की बात करते हों, विधर्मियों को धर्म बदलने या देश छोड़ने की बात करते हों लेकिन इनका वोट किसी को बुरा नहीं लगता | ऊपर-ऊपर बुराई करेंगे और अन्दर-अन्दर लुभाने की कोशिश करेंगे | किसी भी सुंदरी को देखकर धर्माधिकारियों और नेताओं की समान रूप से लार टपकने लग जाती है |कोई जाति-धर्म नहीं पूछता | नशे की तलब के समय कोई नहीं सोचता कि शराब कितनी गन्दगी से बनती है | एक ही बरतन में रिंद और वाइज़ चालू हो जाते हैं | तभी कहा है- मंदिर-मस्जिद बैर कराते, प्यार कराती मधुशाला |

वैसे ही लक्ष्मी के बारे में कहा गया है-
उत्तम विद्या लीजिए जदपि नीच पे होय |
पर्यो अपावन ठौर में कंचन तजे न कोय ||

बोला- ये सब छोटे लोगों की बात है | वे सीधे-सीधे ,छोटे-छोटे नोट लेते हैं या चवन्नी मात्र के लिए अपावन ठौर में उतर जाते हैं और तरह-तरह की बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं | नोटों के बारे में इस शोध में यह भी कहा गया है कि ऐसे नोट लेने से  रोगप्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है | तभी बड़े बापुओं-संतों, नेताओं, बड़े अधिकारियों और बड़े सेठों को देख- कोई भी लक्ष्मी हो हाथ नहीं लगता | सब कहते हैं दान-पात्र में डाल दे, फलाँ व्यक्ति से मिल लो, अमुक जगह पहुंचा दो- कोई भी नोटों को हाथ नहीं लगाता | और छोटे नोटों को तो बिलकुल भी नहीं | अब दो हजार करोड़ की रिश्वत लेने-देने वाले  क्या सारी  उम्र नोट ही गिनते रहेंगे ? छोटे नोट गिनते रहे तो देश के विकास के लिए समय ही नहीं मिलेगा |मेरे ख्याल से तो अब एक-एक रुपए की बजाय एक-एक करोड़ के नोट छपने चाहिए | वैसे बड़े मामलों में न नोट चलते हैं और न आमने-सामने का लेन-देन | सीधे स्विस बैंक में जमा हो जाते हैं | कुछ उतावले लोग कैश में न लेकर, सुरा-सुंदरी के रूप में काइंड में लेकर स्टिंग ऑपरेशन का शिकार हो जाते हैं |कुछ मूर्ख हजार-दो हजार में ही फिसल जाते हैं |

साधारण लोगों में वैसे ही रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती है और फिर ऊपर से छोटे-मोटे लोगों से छोटे,गंदे और फफूंद लगे नोट ले लेते है | बहुत कम ही ऐसे होते हैं जो इस समस्या का सामना  सफलतापूर्वक  कर पाते  हैं अन्यथा तो अधिकतर को शीघ्र ही दस्त लगाने लग जाते हैं | सुरक्षित और सवाधानीपूर्वक लेन-देन करने वाले अरबों का लेन-देन कर लेते हैं लेकिन पता ही नहीं चलता | मल-मूत्र और बिसरे तक में कोई प्रमाण नहीं मिलता |

हमने पूछा- तो अब तुम्हारे दस-दस के इन दस नोटों का क्या करें ?

अपनी कमीज़ की ऊपर वाली जेब खोलते हुए बोला- हाथ नहीं लगाऊँगा, डाल दे इसमें |
 

Jul 16, 2015

फ्री का फंडा उर्फ़ फंदा

    फ्री का फंडा 

 फ्री | कितना प्यारा शब्द है !  इसके सामने क्या तो कल्पवृक्ष और क्या कामधेनु  ? बिलकुल सिंहासनारूढ़ सत्ताधारी नेता की तरह | सब कुछ फ्री |१२ रूपए में खाना, चाहे जितनी बिजली जले, स्विच बंद करने की भी चिंता नहीं, न चीजों के भाव पूछने की ज़रूरत, न किसी चीज के लिए भुगतान करने की फ़िक्र | धोना, प्रेस करना ही नहीं कपड़े तक फ्री | इसीलिए लोग सारे कष्ट उठाकर, जान देकर भी फ्रीडम चाहते हैं | लेकिन फ्रीडम मिलती तो केवल नेताओं और धूर्तों को ही है | फ्री की दारु के चक्कर में ही वाइज़ बेवड़े बनते देखे हैं | फ्री का सोने का खंजर हो तो पेट में घोंप लेने का जी करता है | फ्री में तो ज़हर भी मिले तो मन होता है, उदरस्थ कर ही लें | मरना तो बिना खाए भी है ही |
इसी पर अपना एक शे'र याद आता है-
'गर मुफ्त में मिल जाय तो खा जाएं ज़हर भी |
पैसे लगें तो चार दिन खाना नहीं खाते 

हमें वह ज़माना याद है जब एक लोकल कॉल के ५० पैसे लगते थे और इतने ही पैसे में ४०० ग्राम मावे की बर्फी आ जाती थी | १९९० में जब डालर १७ रुपए का मिलता था तब एक मिनट अमरीका बात करने के ७० रुपए लगा करते थे |  हम तब भी मितव्ययी थे और आज भी जब ५० पैसे प्रति मिनट में बात हो जाती है |

कई दिनों से रेडियो पर सुन रहे हैं- अपनों से जी भर कर बातें करें और वह भी फ्री में-रात ९ बजे से सुबह ७ बजे तक |सो जैसे ही महँगाई भत्ते की बढ़ी किश्त का पाँच महिने का बकाया मिला तो लैंड लाइन का कनेक्शन लगवा ही लिया |जब तक कनेक्शन लगा दोपहर के तीन बज गए थे |सुबह होने तक का किसे  सब्र ? तत्काल तोताराम के घर पहुँच गए |

बोला-क्यों 'मेक इन इण्डिया' में निवेश करवाने आया है क्या ?

हमने कहा- वह तो देशभक्तों और विकास-पुरुषों का काम है |हम तो तुझे यह बताने आए हैं कि आज रात को नौ बजे से पहले सो मत जाना | नौ बजते ही हम तुम्हें फोन करेंगे |
कहने लगा- क्यों रात को नौ बजे क्यों ?  और फोन क्यों ? तुझे जो मन की बात कहनी है सो अभी कह दे |

हमने कहा- तोताराम, आज हमने लैंडलाइन फोन लगवा लिया है जिस पर रात को नौ बजे रात से सुबह सात बजे तक फ्री में बातें हो सकती हैं | हमने पहले तो जब भी बातें कीं तो बिल बढ़ने के भय से बहुत डरते-डरते | इस चक्कर में बहुत बार मुख्य बात तक भूल जाते थे लेकिन आज हम बिस्तर में लेटे-लेटे निश्चिन्त होकर बात करेंगे | 

घर आए और नौ बजने का इंतज़ार करने लगे | किसी तरह राम-राम करके नौ बजे और हमने तोताराम के नंबर डायल किए लेकिन यह क्या ? कोई रिंग नहीं | कई बार कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ | 

सुबह पाँच बजे ही तोताराम आ धमका, कहने लगा- यह क्या तमाशा है ? मैं रात को बारह बजे तक जागता रहा लेकिन तेरा कोई फोन नहीं |

हमने कहा- बन्धु, कोशिश तो बहुत की थी लेकिन कुछ भी नहीं हुआ | बस, सूँ-सूँ की आवाज़ आ रही थी जैसे कि योग करते-करते कोई मंत्री सो गया हो |


बोला- बन्धु, फ्री में आजकल मौत भी नहीं आती | यमदूत भी टी.ए.,डी.ए. माँगते हैं | सर्वव्यापी भगवान के दर्शन की भी दरें निश्चित हैं | गाँठ में दाम हों तो ठीक वरना फूटो | सरकारें फ्री की दवाइयों की बात करती है लेकिन उनके भी पूरे पैसे, करदाताओं से उगाहे गए धन से, सप्लायरों को दिए जाते हैं | यह और बात है कि दवा में मिट्टी-पानी जैसे प्राकृतिक तत्त्वों के अतिरिक्त कुछ नहीं होता | तभी डेट एक्सपायर होने पर संबंधित विभाग को उन्हें फिंकवाने का खर्चा और करना पड़ता है | और यदि किसी उत्साही डाक्टर ने उनका उपयोग कर भी लिया तो विलासपुर के परिवार नियोजन कैम्प जैसा हाल होता है | इन्फेक्शन से बचाने वाले इंजेक्शनों से ही इन्फेक्शन हो जाता है | जब के.ऍफ़.सी. और मेक्डोनाल्ड के उत्पादों में ही मुर्गे की जगह चूहा और फफूंद लगा बर्गर सप्लाई हो जाता है तो तथाकथित फ्री के मिड डे मील में छिपकली निकलने से दुखी नहीं होना चाहिए |  फ्री का जो  'फंडा' होता है वह हिंदी में आकर 'फंदा' उच्चरित और सिद्ध होता है |

हमने आर्त स्वर में पूछा- तो बन्धु, इस लैंड लाइन नामक वस्तु का क्या करें ?
बोला- जाकर अपनी सेक्योरिटी वापिस ले ले और इसे किसी कबाड़ी को बेच दे | कल कोई आया तो तेरी तरफ भेज दूंगा |

दावत-ए-इफ़्तार

 दावत-ए-इफ़्तार

हमारी गली में पोस्टमैन तभी आता है जब किसी की कोई रजिस्ट्री, स्पीड पोस्ट या मानी आर्डर हो |अखबार, पत्रिका या चिट्ठी-पत्री के लिए वह इधर आने का कष्ट नहीं करता | भगवान की कृपा कि उसने आज मात्र एक पच्चीस पैसे वाले 'मेघदूत' पोस्टकार्ड के लिए हमारा दरवाज़ा खटखटाया, बोला- मास्टर जी, इस पर नाम और  कोलोनी तो आपके हैं  लेकिन यह 'वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रीट' कौन सी है ?

 हमने कहा- यह तो अबकी बार आओगे तब बताएँगे लेकिन यह चिट्ठी हमारी ही है |

पोस्टमैन के जाते ही हमने पढ़ना शुरू किया-
दावत-ए-.इफ्तार
ज़नाब
आज हमारे गरीब खाने पर दावत-ए-इफ्तार का प्रोग्राम है जिसमें ज़नाब दिल,जिगर, फेफड़ा, घायल,ज़ख़्मी, बेनूर, गमगीन शामिल होंगे और मेहमान-ए-ख़ुसूसी होंगी मोहतरमा हुस्नबानो |
हमें आपका इंतज़ार रहेगा |
दस्तबस्ता आपका
आशिक

नीचे पता तो तोताराम के घर का था लेकिन और सब कुछ नया-नया |उत्सुकता इस कदर बढ़ी की शाम से पहले ही तोतार्म के घर पहुँच गए |
देखा तोताराम नमाज़ वाली सफ़ेद टोपी लगाए दरवाजे पर हाज़िर | बड़ी नजाकत से झुकते हुए बोला- खुशामदीद , ज़हे किस्मत, तशरीफ लाइए |

हमने कहा- यह टोपी क्यों लगाईं है ?

बोला-क्यों, जब नीतीश कुमार लगा सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ? सभी मोदी जी की तरह थोड़े ही हैं जिन्हें कोई टोपी नहीं पहना सकता |

हमने आगे पूछा- और यह आशिक साहब कौन हैं ?

बोला- बन्दे को ही आशिक कहते हैं |

घर के अन्दर पहुँच कर देखा तो तोताराम की पत्नी हिज़ाब पहने और उसके बेटे-पोते सब तोताराम की तरह टोपी पहने हुए हैं | तोताराम ने सबका परिचय कराते हुए कहा- ये हैं हुस्न बानो, आपसे मिलिए ज़नाब दिल, ज़नाब घायल, जनाब फेफड़ा आदि-आदि |

हमने कहा- यह क्या नाटक है ? बोला नाटक क्या ? इफ्तार की सभी दावतों  में  लगभग  सभी गैर मुसलमान ही तो होते हैं | बस भाजपा में नक़वी, शहनवाज़ हुसैन और कांग्रेस में उम्र अब्दुल्ला और गुलाम नबी आज़ाद | अब जब कल इसका अखबार में समाचार देंगे  तो मेरे और तेरे नाम के अलावा सब मुस्लिम नाम होंगे तो मामला जम जाएगा |

हमने तोताराम की पत्नी से कहा- तो हुस्न बानो जी, लगता है आज फख्त दावत-ए-इफ्तार ही नहीं आपकी शायरी भी सुनने को मिलेगी |

बोली- भाई साहब, इन्हें पता नहीं क्या-क्या ख़ब्त सूझते रहते हैं |अब इन्हें कौन सा चुनाव लड़ना है जो ये नाटक करें |और फिर सत्तर साल से ऊपर वाले को कोई पद भी नहीं मिलने वाला |और मान लें किसी ने निदेशक मंडल का  सदस्य बना भी दिया तो वह क्या  कोई पोस्ट होती है  ?

तोताराम बोला- नाटक होते हैं जनता के पैसे पर | लेकिन यह तो सोच, मैंने खर्च क्या किया है ? सिर्फ एक पोस्टकार्ड और वह भी पच्चीस पैसे वाला | और भाई साहब का खाना कोई खर्चा है क्या ? कल अखबार में खबर छपेगी तो कुछ तो नाम होगा | लोग तो बदनाम होकर भी नाम चाहते हैं |

आज के मैले मन के समय में हम रमज़ान के पाक महीने में मिल-बैठ लें यह क्या कम सबाब का काम है ?

Jul 14, 2015

एक गंभीर वैश्विक समस्या

  एक गंभीर वैश्विक समस्या 

आज तोताराम कुछ दार्शनिक मूड में था | न चाय की माँग और न किसी की टाँग खिंचाई |सीधा-सीधा प्रश्न किया- इस विश्व की सबसे गंभीर समस्या क्या है ?

हमने कहा- इस विश्व का होना ही समस्या है | विश्व न होता तो जीव नहीं होता, जीव नहीं होता तो पेट नहीं होता, पेट नहीं होता तो भूख नहीं होती, भूख नहीं होती तो झगड़े नहीं होते | तब न आतंकवाद होता, न बंदूकें, न चाहे जहां धांय-धांय | न सुकाल की प्रार्थना,न दुकाल का डर | सब आराम से कहीं ठंडी छाया में बैठे गाने सुनते, मोबाइल पर बतियाते, सेल्फी लेते, ट्वीट करते, नए-नए कुरते जाकेट पहनते और मौज़ करते |

कहने लगा- जो है उसे कोई बदल नहीं सकता | इस दुनिया और पेट को मिटाना किसी के वश का नहीं | जो है उसकी बात कर |लेकिन ये बड़ी बातें तेरे वश की नहीं सो मैं ही बताए देता हूँ- विश्व की सबसे बड़ी समस्या है आयात-निर्यात का असंतुलन |

हमने कहा- असंतुलन तो रहेगा | बस, पक्ष का फर्क है | यह संतुलन हमेशा अमरीका,फ़्रांस,चीन, जर्मनी आदि के पक्ष में रहेगा और हमारे जैसे देशों के विपक्ष में |

बोला- नहीं  समझा | मैं उस संतुलन की बात कर रहा हूँ जो हर व्यक्ति में होता है | व्यक्ति जो पेट में लेता है वह आयात और जो बाहर निकालता है वह निर्यात | जितना खाओ, उतना निकालो तो संतुलन ठीक रहता है | कम-ज्यादा हुआ तो गड़बड़ |

हमने कहा- छोड़ तोताराम,  क्या वीभत्स-रस ले बैठा | 

बोला- क्यों ? यदि यह रस इतना बुरा होता तो महानायक अमिताभ बच्चन क्या 'पीकू' फिल्म में काम करते और क्या राष्ट्रपति जी के लिए उसका विशेष शो होता ? मंत्रियों को 'म्यूजिकल चेयर' के खेल से फुर्सत नहीं मिलती इसलिए कोई उनसे ऐसी वैश्विक समस्या पर ध्यान देने की आशा भी नहीं करता लेकिन राष्ट्रपति जी के पास समय भी है, संवेदनशीलता  और निश्चिन्तता भी |

हमने कहा- लेकिन यह वैश्विक समस्या कैसे है ?

कहने लगा- ऐसे है कि जिसके पास खाने को नहीं वह सोचता है कि व्यर्थ में ही शौचालय क्यों बनवा लिया | जिसके पास खाने को है और शौचालय भी वह इसलिए परेशान है कि आयात-निर्यात  का असंतुलन क्यों है ? कुछ संतुलन को अपने पक्ष में रखना चाहते हैं कि आयात ही होता रहे निर्यात न करें |कुछ बिना आयात किए केवल निर्यात ही करना चाहते हैं |

-तो फिर इस चक्कर से मुक्ति कैसे हो ?

-सीधा सा उपाय है जो फिल्म 'पीकू' के अंत में बताया गया  है- अमिताभ बच्चन गाँव में जाता है, साइकल चलाता है, जो मर्ज़ी आए खाता है और समस्या हल हो जाती है |

हमने कहा- लेकिन अंत में बात हमारे वाली ही सही ठहरती है कि इसके बाद नायक जिंदा कहाँ रहता है |

मतलब कि इस दुनिया को छोड़े बिना छुटकारा नहीं | यह समस्या जीते-जी पीछा नहीं छोड़ने वाली |

Jul 11, 2015

युधिष्ठिर का विकल्प

  युधिष्ठिर का विकल्प 

हमने कहा- भीष्म के मुँह पर सत्ता का ताला लगा हुआ है तो द्रोण को नौकरी का डर |कृष्ण तो लीलाधारी हैं कुछ भी करने को स्वतंत्र | दुर्योधन को कुर्सी दीखे तो कर्ण को प्रतिशोध |भीम को बोलने पर कम और गदा पर अधिक विश्वास |अब सच बोले तो कौन ? इसलिए पूरे महाभारत में युधिष्ठिर का कोई विकल्प नहीं है |

तोताराम बोला- वास्तव में युधिष्ठिर का विकल्प होता तो गजेन्द्र चौहान को क्यों लाते ? लाना तो वे अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, गुलज़ार या अनुपम खेर को चाहते थे लेकिन उनके पास अभिनय की शिक्षा देने से अधिक महत्त्वपूर्ण और कई काम हैं इसलिए वे पूरा समय नहीं दे सकते थे | स्कूल, कालेजों और अकादमियों में तो वे हीआएँगे जिन्हें अब और कहीं कोई काम नहीं मिलता जैसे कि चुनाव में हारे या जमानत ज़ब्त हुए या निदेशक मंडल के लायक हो चुके नेता राज्यपाल बनाए जाते हैं |

हमने कहा- हम तो वास्तव में युधिष्ठिर की बात कर रहे थे और तू उसे राजनीति में ले गया |

बोला- हम तो सार-सार को ग्रहण करते हैं और थोथा उड़ा देते हैं |अब इसमें काम की बात यह है कि हम दोनों फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इण्डिया के निदेशक के पद के लिए अप्लाई कर देते हैं | गजेन्द्र चौहान पूरा समय देगा इसकी क्या गारंटी है ? हम तो एक के साथ एक फ्री का ऑफर देंगे | सुविधा लेंगे एक की और काम करेंगे मैं और तू दोनों और वह भी दिन में आठ घंटे क्या, चौबीस घंटे - बारह घंटे तू और बारह घंटे मैं | और तनख्वाह कुछ नहीं | सोच, सरकार को कितना फायदा होगा और सिनेमा और टेलीविज़न का स्तर  एक ही झटके में कितना ऊँचा उठ जाएगा ? 

हमने कहा- सिनेमा के स्तर की चिंता तो व्यर्थ है | वह बिना किसी प्रशिक्षण के भी ऊँचा उठता ही जा रहा है | बस, विज्ञापन मिलते रहें | तेल, साबुन, शैम्पू, एक मुखी रुद्राक्ष के विज्ञापन न मिले तो सरकारें अपनी इमेज बनाने के लिए देंगी |आजकल व्यापार ही नहीं, सरकारें भी विज्ञापन के बल पर चलने लगी हैं | लेकिन यदि कोई पूछेगा कि अभिनय का क्या अनुभव है तो क्या ज़वाब देंगे ?

कहने लगा- अभिनय का मतलब है-वह करना जो आप नहीं हैं जैसे नेता सेवा का और हीरो एक आदर्श व्यक्ति होने का अभिनय करते हैं | वैसे सब जानते हैं कि कोई हीरो आयकर के फॉर्म में अपनी असली फीस नहीं दिखाता | गजेन्द्र चौहान ने तो युधिष्ठिर का पार्ट किया | उसमें क्या अभिनय हुआ ? अरे, सच तो कोई भी बोल सकता है | असली अभिनय तो झूठ बोलने में है | बड़े-बड़े 'लाई डिटेक्टर' से घबराते हैं |कुछ ही ऐसे होते हैं जो उस यंत्र को भी फेल कर सकते हैं |

हमने तो जीवन भर अभिनय ही किया है | घोंचू और दुष्ट प्रिंसिपल को महान शिक्षाशास्त्री बताया है | दुष्ट और लम्पट मुख्य अतिथियों के नीचता में लिथड़े हाथों को कर-कमल कहा है | तो हमसे बड़ा अभिनेता कौन हो सकता है ? 

हमने कहा- लेकिन जब तनख्वाह नहीं लेंगे तो केवल रहना और खाना यहाँ भी कौनसा भारी है | चार के साथ एक आदमी का खाना तो वैसे ही निकल आता है और रही बात रहने की तो यहाँ कौनसा मकान का किराया लगता है ? मेरे ख्याल से तो बिना बात मुम्बई में धक्के खाकर क्या करेंगे ?  

बोला- इसमें एक सबसे बड़ी बात यह है कि आजकल बॉलीवुड में बहुत सी अहिन्दी भाषी और विदेशी अभिनेत्रियाँ आती हैं और उन्हें हिंदी सिखाने के लिए अच्छे हिंदी-अध्यापकों की बड़ी माँग है | यदि सन्नी लियोन  जैसी किसी का ट्यूशन मिल गया तो बुढ़ापा सुधर जाएगा |

हम अपना क्रोध प्रकट करते तब तो तोताराम जा चुका था |

Jul 8, 2015

राष्ट्रगान में संशोधन

राष्ट्रगान में संशोधन

भारत सुधारों और संशोधनों का देश है | संविधान के तहत और चाहे कुछ भी नहीं हुआ हो लेकिन उसमें संशोधन पर्याप्त संख्या में हो गए हैं | इसी प्रकार जो संसद में नहीं पहुँच पाए वे समाज सुधारक बन जाते हैं | इन्हीं लोगों के कारण समाज की यह हालत होगई है | अब तो सुधार इस गति से होने लग गया है कि किसी के रोके नहीं रुक रहा है |

समाज को सुधारने के चक्कर में किसी ने 'राष्ट्रगान' की किसी ने सुध ही नहीं ली | यह तो भला हो एक वकील साहब का जिन्होंने राष्ट्रगान में से 'सिंध' को हटाकर 'कश्मीर' को शामिल करने की याचिका उच्चतम नयायालय में प्रस्तुत की है जिस पर फैसला अभी सुरक्षित है | अभी 'अधिनायक' की जगह 'मंगलमय' की बात भी उठ रही है  वैसे भविष्य के कानूनी दाँव पेचों को देखते हुए तो इस फैसले को सुरक्षित ही रखा जाना चाहिए | चीन अरुणाचल को अपने नक़्शे में दिखाता है, किसी दिन दावा भी ठोंक देगा | पर हम तो जो हमारे पास है उसे ही नहीं सँभाल पा रहे हैं तो किसी का हड़पने का तो प्रश्न ही नहीं है |

पर हमारी चिंता दूसरी है कि 'सिंध' की जगह 'कश्मीर' करने से लय बिगड़ जाएगी | चूँकि राष्ट्रगान की धुन एक अंग्रेज ने बनाई है अतः उसमें परिवर्तन करने का अधिकार हमें नहीं है | हम तो स्पेलिंग में भी परिवर्तन नहीं कर सकते | अमरीका की बात और है जिसने अमरिकन इंग्लिश बना ली | विशाल भारत की हिन्दुत्त्ववादी धारणा हो तो सिंध ही क्या म्यांमार, भूटान, पाकिस्तान, लंका, तक स्वयमेव ही भारत में शामिल हो जाएँगे पर अब तो वह एक ऐतिहासिक बात मात्र है |

सिंध को हटाने से हमें हड़प्पा और मोहनजोदडो से भी वंचित होना पड़ेगा | कश्मीर को जब शामिल कर रहे हैं तो राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, आंध्र आदि ने क्या गुनाह किया है ? वैसे तो भारत का चित्र घोटालों, दंगों, गुंडों, दल-बदलुओं, घुसपैठियों आदि के बिना पूरा नहीं होगा किन्तु उन सब को शामिल कर लेने पर राष्ट्रगान अखंड रामायण की तरह चौबीस घंटे का हो जाएगा | जब हम ५२ सेकिंड के लिए भी राष्ट्रगान में सावधान खड़े नहीं रह सकते तो फिर २४ घंटे की कौन कहे ?

राष्ट्रगान में 'बंग' मुख्य है क्योंकि रवि बाबू बंगाली थे | सारा गान 'बंग' की तुक पर ही है | इसलिए 'बंग' को प्रमुखता देते हुए हमने राष्ट्रगान में संशोधन किया है | इस बारे में उच्चतम न्यायालय, वकील साहब एवं सामान्य जनता भी अपने सुझाव भेजने के लिए स्वतंत्र है |संशोधित राष्ट्रगान कुछ इस प्रकार है-

जन,गण,मन अधिनायक जय हे,भारत भाग्य विधाता |
पंजाब,असम,गुजरात, द्रविड,यू.पी.,बिहार औ' बंग |
कर्नाटक, कश्मीर, आंध्रा, राज, उड़ीसा संग |
छतीसगढ़, उत्तराँचल, मणिपुर, त्रिपुरा, नगा अभंग |
गोवा,सिक्किम झारखण्ड, दिल्ली, मेघालय रंग |
पांडी, चंडी, अंडमान, हरियाण, मराठ, दबंग |
मध्यप्रदेश, हिमाचल, केरल, तामिल मस्त मलंग
सबकी अपनी अपनी ढपली, सबका अपना चंग |
ऐसा सागर जिससे लहरें तोड़ रही हैं नाता |
भारत भाग्य विधाता | जय हे, जय हे, जय हे .........

 

Jul 7, 2015

सेल्फी विद डॉटर

  सेल्फी विद डॉटर 

आज तोताराम ने आते ही हमारे सामने एक लिफाफा रख दिया | हमने पूछा- क्या है ?

बोला-खुद ही खोल कर देख ले |

देखा तो उसमें तोताराम की अपनी बेटी गुड्डू के साथ कोई बीस साल पुरानी एक ब्लेक एंड व्हाइट फोटो थी |

हमने पूछा- इसका क्या करें ?

बोला- तुझे कुछ करना नहीं है | तुझे तो इसे मोदी को भेजने से पहले वैस ही दिखा रहा था | मोदी जी ने आजकल 'सेल्फी विद डॉटर' का नारा दिया है ना | तो सोचा- मैं भी लड़कियों के विकास के लिए उठाए गए इस आधारभूत कदम का समर्थन कर ही दूँ |

हमने कहा- यह कोई सेल्फी थोड़े ही है | यह तो एक सामान्य ब्लेक एंड व्हाईट फोटो है |

बोला- तो सेल्फी में क्या होता है ? फोटो ही तो होती है | फोटो फोटो सब एक |

हमने कहा- सेल्फी में रंगीन फोटो आती है | बीस हजार रुपए के वाट्सऐप नामक एक मोबाइल द्वारा खींची जाती है और नेट से तत्काल भेज दी जाती है | उसे लिफाफे में रखने, टिकट लगाकर लेटर बोक्स में डालने की ज़रूरत नहीं होती | यदि वक्त हुआ तो सामने वाले को लिफाफा खोलने का झंझट नहीं, बस बटन दबाया, देखा और काम ख़त्म | 

-क्या वाट्सऐप के बिना लिया फोटो, फोटो नहीं होता ?  

हमने कहा- इस बारे में नियमानुसार जो करना है सो कर अन्यथा चुप बैठ नहीं तो तेरे पास भी श्रुति सेठ की तरह तरह-तरह के प्रशंसात्मक मेसेज आने लग जाएंगे | क्या बताएं, हमारे पास तो अपने पिताजी के पुत्र या पुत्री प्रेम का कोई उदाहरण भी नहीं है क्योंकि उस समय या तो बोर्ड की परीक्षा के समय या फिर नौकरी के लिए आवेदन देने के समय या लड़की हुई तो शादी के लिए लड़के वालों को दिखाने के लिए फोटो खिंचवाया जाता था |उस समय पासपोर्ट साइज़ के तीन फोटो के दो रुपए लगते थे | वह भी तब जब बादाम-गिरी चार रुपए की एक किलो आती थी | आजकल की तरह थोड़े ही था कि फोन और फोटो को तमाशा बना लिया | दे मार फोटो ही फोटो | अब क्या सारे दिन फोटो ही देखते रहें | और कोई काम ही नहीं है जैसे | वैसे इससे होगा क्या ? यदि बच्चियों के खाने, पढ़ने और उन्हें लम्पटों से बचाने के लिए कुछ किया जाता तो बात और थी | 

बोला-तुझे हो न हो लेकिन मुझे तो 'सेल्फी विद डॉटर' से लड़कियों का विकास होने का  पूरा विश्वास है | देखा, उधर 'सेल्फी विद डॉटर' शुरु हुआ और इधर यू.पी.एस.सी. में प्रथम चार स्थानों पर लड़कियों ने कब्ज़ा कर लिया |

हमने शौचालय वाली काकी की तरह कहा-सोचने की बात तो है |

कहने लगा- तो फिर सोचिए, सेल्फी लीजिए और भेजिए |





Jul 6, 2015

बढ़ती माँगें

 बढती माँगें
(केंद्र में सत्ता में लाकर कुर्ता दिया, अब बिहार में सत्ता में लाकर धोती या पाजामा देने का वक्त आ गया है- रामविलास पासवान- २३ जून २०१५ )
पासवान को कल मिला कुर्ते का उपहार
धोती-पाजामा मगर आज उन्हें दरकार
आज उन्हें दरकार पजामा अथवा धोती
बिन पाजामे कुर्ते से क्या इज्ज़त होती
कह जोशी कविराय विकट लालच की मकड़ी
परसों फिर माँगेंगे जूते छाता पगड़ी
०२-०७-२०१५

Jul 5, 2015

सच्चा स्वामी

सच्चा स्वामी


चौपट नगरी में वीकएंड की रात का दूसरा पहर बीत चुका है । चौपट महल के रखवाले ऊँघने लगे हैं । पर महाराज की आँखों में नींद नहीं । सारे सुखों को त्याग कर महाराज कक्ष से बाहर निकले । दबे पाँव चारदीवारी फाँदकर कर जनपथ पर आ गए और छुपते-छुपाते संसद के पिछवाड़े को जाने वाली पगडंडी पकड़ ली । दीवार तक पहुँचने पर चार ईंटें हटाकर गुप्त मार्ग से प्रवेश करके संसद के कुँए के पास जा निकले ।

बड़ी सावधानी से कुँए से 'सत्य का शव' निकाला और कंधे पर डाल कर गुप्त मार्ग से बाहर निकलने लगे । तभी शव में स्थित बेताल बोल उठा- राजन, जब सारी चौपट नगरी वीकएंड मनाती है तब तुम क्यों सारे सुखों को त्याग कर सत्य के शव को ठिकाने लगाने के लिए चल पड़ते हो ? जब कि तुम अच्छी तरह से जानते हो यह सत्य बड़ा चीमड़ है और किसी न किसी बहाने तुम्हारे चंगुल से निकल जाता है । आज फिर तुम इसे उठा कर चल पड़े हो ।

महाराज कुछ नहीं बोले तो बेताल ने कहा- पर तुम्हारी भी क्या गलती । राजा को हर समय सत्य के उठ खड़े होने का डर सताता रहता है । उसके लिए चैन की नींद सोना मुश्किल हो जाता है । मुझे तुमसे पूरी सहानुभूति है । तुम्हारा मन बहलाने और श्रम भुलाने के लिए, लो मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ ।

किसी देश में आध्यात्म का बहुत प्रचार थाजब साधारण आदमी को परेशानी होती है तो वह धर्म और धार्मिक स्थानों में जाता हैघंटे-घड़ियाल बजता है, जागरण- कीर्तन करवाता है, मंदिर में चढ़ावा चढ़ाता है, प्रसाद बंटवाता हैमगर आदमी जब थोड़ा बहुत पढ़-लिख जाता है, भर पेट खाने को मिलने लग जाता है तो फिर उसे साधारण आदमियों की तरह मंदिर में जाना ठीक नहीं लगतावह कुछ स्पेशियल ट्रीटमेंट चाहता हैऔर यदि यह सब इंग्लिश में हो तो उसका अहम् और भी संतुष्ट होता हैअगर आश्रम एयर कंडीशंड हो तो स्वर्ग की प्राप्ति शीघ्र होती हैयदि वहाँ सुन्दर महिला योग प्रशिक्षिका हो तो बस क्या कहना, स्वर्ग में गए बिना ही इन अप्सराओं के कारण स्वर्ग का नज़ारा दिखना शुरु हो जाता हैइसीलिए आजकल नए धनवान लोगों को ऐश करते हुए आध्यात्म और स्वर्ग की सैर करवाने के लिए कुछ अंग्रेजी बोलने वाले स्वामियों ने पाँच सितारा आश्रम खोले हैंस्वामीजी ब्यूटी पार्लर में संसाधित होकर, डिज़ाईनर ड्रेसों में सज्जित होकर पैसे वाले भक्तों की आत्मा को परमात्मा से एक-मेक करवा देते हैंऐसे ही एक स्वामीजी जब आपने व्यक्तिगत आत्मा-परमात्मा मिलन में समाधिस्थ थे तो किसी भक्त ने उनका वीडियो बना लियाअब लोग उसी को सबसे ज्यादा देख रहे हैंऔर धर्म को खतरे में मान कर चिंतित हो रहे हैंहे महाराज, आप बताओ कि इस वीडियो को ध्यान से देखकर बताओ कि क्या स्वामीजी की आलोचना की जानी चाहिए ? इससे जनता क्या समझे ? लोग भ्रम में हैंयदि सत्य जानते हुए भी तुमने अपनी राय व्यक्त नहीं की तो तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे

महाराज ने बड़े ध्यान से वीडियो क्लिपिंग देखी और कहा- बेताल, स्वामी की आलोचना करने वाले सभी अज्ञानी या कुंठित लोग हैं अरे, आज तक तथाकथित ज्ञानी लोग माया से दूर भागते रहे उसकी तरफ पीठ करे बैठे रहे वे क्या माया से मुकाबला करेंगे साधारण लोग माया के पीछे भागते हैं इसलिए माया का असली स्वरूप नहीं समझ पाते इसीलिए नायिका पूछती रही और लोग है कि आज तक यह भी नहीं बता पाए कि 'चोली के पीछे क्या है' जिस देश के लोग इतना भी नहीं बता पाए वे क्या खाकर ब्रह्म को जान पाएँगे ? और फिर ब्रह्म तो कण-कण में है क्या पता कि चोली के पीछे ही छुपा हुआ हो और स्वामी सर्वजनहिताय लाकर सबके सामने रख दें

अब ले-दे के कोई एक सच्चा स्वामी हुआ है जो माया से मुकाबला करने का साहस कर रहा है तो लोग उसकी टाँग खींच रहे हैं यह माया ठगनी है, लोगों को भटकाया है , चक्कर में डाला है अब यह उससे आमने-सामने संघर्ष कर रहा है तो अच्छा ही है हो सकता है कि यह माया को परास्त ही कर दे और लोगों को इस झंझट से छुट्टी मिले लोगों को इस स्वामी का साहस बढ़ाना चाहिए मैं तो इस स्वामी को अब तक के स्वामियों में सबसे महान मानता हूँ

महाराज चौपटादित्य के ऐसे आँख खोल देने वाले उत्तर को सुन कर बेताल की खोपड़ी टुकड़े-टुकड़े हो गई