Feb 2, 2013

कोतवाल सैंया


कोतवाल सैंया

आज जैसे ही तोताराम आया हमने कहा- पढ़, रात को ही लिखा यह नया व्यंग्य निबंध । तोताराम ने हमारी आशा के विपरीत उस कागज को मुचड़ कर फेंक दिया । हमारी इतने दिनों की दोस्ती और चाय का कोई लिहाज़ नहीं किया । गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसे पी गए । हम कोई नेता तो हैं नहीं कि किसी भी अधिकारी और कर्मचारी को थप्पड़ मार दें या किसी भी ट्रेन को कहीं भी मनमर्जी से रुकवा दें या आरक्षित सीट वाले यात्रियों को उठाकर अपने चमचों सहित उनकी सीटों पर कब्ज़ा कर लें । फिर भी हमने कहा- बंधु, तुझे आज यह क्या हो गया है ? यदि पढ़ने का मन नहीं था तो हमारा लेख लौटा देता ।

अब तोताराम असली मुद्दे पर आया, कहने लगा- यह सब तेरी सुरक्षा के लिए कर रहा हूँ । इस व्यंग्य को छोड़ और "हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई । सब आपस में भाई-भाई" लिख । भले ही ये भाई अपनी मूर्खतावश आपस में लड़ रहे हों या देश-सेवक इन्हें लड़वा रहे हों ।

फिर सतर्क होकर कहने लगा- यह भी छोड़, क्या पता इस लोकतांत्रिक देश में इस पर भी विवाद हो जाए कि सबसे पहले हिंदू का नाम क्यों रखा या इसमें जैन, बुद्ध, पारसी, यहूदी या बहाई क्यों नहीं आया ? तू तो यह लिख कि दूध पीना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है । फिर पलटा- क्या पता मेनका गाँधी ही तुझे लपेट ले कि गाय का दूध तो उसके बछड़े के लिए होता है या दूध निकालना गाय पर अत्याचार है या दूध क्या है- गाय के खून पर चढ़ा मवाद ।

हमें उबकाई सी आने लगी । हमने कहा- ये क्या जुगुप्सा की बातें कर रहा है लेकिन उसने प्रतिवाद किया- मैं अपनी ओर से कुछ नहीं कह रहा हूँ । ये शब्द स्वयं मेनका जी के ही हैं ।

खैर, तोताराम ने लेखन के लिए अन्य सुरक्षित विषय बताने शुरु किए-छोड़, दूध । नहीं तो यह लिख कि गाय के चार टाँगें होती हैं । फिर उलझ गया- यार, यह भी हो सकता है कोई यह आरोप लगा दे कि यह ब्राह्मण मास्टर चार के बहाने चार वर्ण और चार वेदों की बात करके दलितों और पिछडों पर मनोवैज्ञानिक दबाव डाल रहा है या उन्हें उन पर अन्य तीन वर्णों द्वारा किए गए अत्याचारों की याद दिला रहा है ? अच्छा, तू तो 'झंडा ऊँचा रहे हमारा' गाया कर । नहीं, नहीं इसे भी छोड़ । क्योंकि इसमें अंत में आता है - 'देश-धर्म पर बलि-बलि जाएँ' हो सकता है इससे सरकार की धर्म निरपेक्ष छवि को नुकसान पहुँचे और अगले चुनाव पर कोई असर पड़े ।

तेरी तरह के बड़बोले लोगों का इस देश में जो हाल होता रहा है उससे तो कुछ सीख । कबीर ने एक कड़वा सच कहा था धार्मिक आडम्बर के बारे में-
कांकड पाथर जोड़ कर मस्जिद लई बनाय ।
ता चढ़ मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय ॥ या
पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पुजूँ पहार ।
ताते या चक्की भली पीस खाय संसार ॥

क्या हुआ उसका ? हिंदू पंडों और मुसलमान दोनों ने बारी-बारी से उसकी पिटाई का इंतजाम कर दिया । और अपने आज के महान व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई को ले ले । लोगों ने तुड़वा दी ना टाँगें । गाँधी जी ने बड़ी ऊँची सोच दिखाई और खा बैठे गोली । सुकरात बड़ा बुद्धिजीवी बना फिरता था उसको भी ज़बरदस्ती ज़हर पिला दिया गया कि नहीं ? मकबूल फ़िदा हुसैन ने भारत माता की निर्वस्त्र पेंटिंग बनाई तो आगे-पीछे देश निकाला भोगना ही पड़ा हालाँकि कम से कम इस मामले में तो सभी भारतीयों को बुरा लगाना चाहिए था लेकिन पता नहीं क्यों, न तो मुस्लिम कुछ बोले और न हिंदू । क्या भारत माता सबकी माता नहीं है ? धर्म चाहे कोई भी हो मातृभूमि तो यही है । जब कोई भी संकट आएगा तो कोई भी देश, धर्म के आधार पर हमें शरण नहीं देगा । वैसे हिंदू बुद्धिजीवियों की तो बौद्धिकता खैर टिकी ही हिंदू छीछालेदारी पर है । कोई और नहीं, ये खुद अपने दीर पर जूते मारकर वैश्विक बुद्धिजीवी बन जाएँगे । अन्य धर्मो का कोई विवादित मामला आते ही वे निरपेक्ष हो जाते हैं । जातियों को देखें तो सबके अपने-अपने देवता और अपने-अपने महापुरुष हो गए हैं और सबको उन्हीं के स्मारकों, मंदिरों और मानापमान की चिंता है । देश जाए भाड़ में । देश की इज्ज़त-बेइज्जती से किसी का कोई लेना-देना नहीं है । और भारत की यह पोल सभी देशों ने देख रखी है और उसका फायदा उठा रहे हैं । कुछ बोले तो मरे और चुप रहकर भी तो मरने से कम हालत नहीं है ।

तोताराम खुद ही अपनी बातों और तर्कों में उलझता जा रहा था । अंत में उसने अपने माथे पर जोर से हाथ मारा और सिर झुका कर बैठ गया । आखिर हमारा बचपन का दोस्त है और हमारा शुभचिंतक । हमने उसके सिर पर हाथ फेरा, पानी पिलाया और कहा- उदाहरण छोड़ । बस, इतना बता कि तू हमसे क्या चाहता है ? तू जो कहेगा, हम वही करेंगे ।

उसने हमारे दोनों हाथ थामे और बहुत ही दयनीय स्वर में कहने लगा कि तू यह लिखना और बोलना छोड़ दे । यह तो सच है कि कोई किसी के साथ जीता-मरता नहीं पर मैं यह नहीं चाहता कि तू बिना बात ही मारा जाए और असमय ही हमारा साथ छोड़ जाए ।

हमने कहा- ऐसी क्या बात है ? देश में लोकतंत्र है ? कश्मीर में गिलानी साहब कुछ भी बोल जाते हैं, आंध्र में ओवैसी साहब कुछ भी फरमा देते हैं और बहिन मायावती जी ने तो मान्यवर कांसीराम जी के चरण चिह्नों पर चलते हुए बहुत दिनों तक “तिलक-तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार” अर्थात ब्राह्मण, बनियों और क्षत्रियों को समान, निष्काम और प्रेमभाव से बहुत वर्षों तक जूते मारें । इस देश की सामासिक संस्कृति में और भी बहुत से महान लोग हैं और होते रहेंगे जो ऐसे ही पुण्य काम करते रहेंगे लेकिन उनका तो कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता । फिर मुझे ही क्या खतरा है ? और अभी जयपुर फेस्टिवल में आशीष नंदी ने भी तो एक विवादास्पद बयान दिया है कि एस.सी., एस.टी.आदि भ्रष्ट और अपराधी होते हैं ।

तो सुन, ये आशीष नंदी जी अब गिरफ़्तारी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण में गए हैं । और कोर्ट भी कहाँ तक बचाएगा जब समर्पित कार्यकर्त्ता नागरिक-अभिनन्दन करने की ठान लेंगे । सरकार भी तभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करेगी जब उस वर्ग के नेता माफ कर देंगे और उसके वोट बैंक को कोई खतरा नहीं होगा । वैसे तेरे लिए यह एक ताज़ा उदहारण है चुप रहने के पक्ष में ।

हमने कहा- भैया, सामान्य आदमी कानून और भगवान दोनों से डरता है और शांति पूर्वक जीना चाहता है । ये अपराध तो वे करते हैं जो शक्तिशाली हैं- चाहे सत्ता के बल पर, या वोट बैंक के बल पर । जिस भी जाति धर्म का आदमी मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या कुछ और बनता है तो उस जाति में एक तरह का गर्व आ जाता है । ओछे आदमियों को वह गर्व, अन्य जाति धर्म के लोगों का अपमान करने और अपराध करने पर भी दंड न दिए जा सकने का, एक अघोषित आश्वासन देता है । तभी तो भले आदमी के साथ दो आदमी भी सच्ची गवाही देने वाले नहीं मिलेंगे जब कि अपराधी के पक्ष में सैंकडों लोग थाने या कोर्ट में तोड़फोड़ करने पहुँच जाएँगें और कानून को प्रभावित करने के लिए दबाव डालेंगे । अफज़ल गुरु के लिए फारुक अब्दुल्ला और गुलाम नबी आजाद ने क्या वक्तव्य दिए थे कि उसे फाँसी देने पर कश्मीर में आग लग जाएगी । तो भाई, यह सुप्रीम कोर्ट किस मर्ज़ की दवा है ? किस के बल पर नेता और उनके छुटभैये फूल मालाओं से लदे, 'वी' का चिह्न बनाते हुए और हँसते हुए पुलिस की गाड़ी में सवार होते हैं ? यही जातिगत राजनीतिक बल ।

जब क्षत्रियों का राज था तो सारे क्षत्रिय अपने को राजा समझते थे और जो चाहे करते थे । राजा किस खुशी में सेठों को नज़राना देने पर मजबूर करते थे ? क्यों राजाओं की हाँ में हाँ मिलाने वाले ब्राह्मणों को अवध्य घोषित कर दिया जाता था ? क्यों राजा नन्द के अन्याय का विरोध करने वाले चणक ( चाणक्य के पिता ) को मरवा दिया गया ? कोई अपराधी नहीं होता है । जब किसी घटिया आदमी का सैंया कोतवाल बन जाता है तो उसका दिमाग फिर जाता है और फिर वह अभिमान में आकर सड़क पर मूतता फिरता है ।

और फिर भैया किसे सच मानें ? जब मायावती का राज होता है तो मुलायम सिंह जी कहते हैं कि गुंडों का राज आ गया । जब मुलायम सिंह जी का राज होता है तो मायावती जी कहती हैं कि गुंडों का राज आगया । जब जयललिता आती हैं तो करुणानिधि और जब करुणानिधि आते हैं तो जयललिता पर अत्याचार होता है । जब कांग्रेस आती है तो बी.जे.पी. के अनुसार भूख, भय और भ्रष्टाचार बढ़ जाता है और जब बी.जे.पी. आती है तो कांग्रेस के अनुसार देश पिछड़ने लगता है और धर्मनिरपेक्षता खतरे में पड़ जाती है । हमारे लिए तो दोनों ही पक्ष सत्य हैं और दोनों ही महान हैं । जिसे भी सच न कहें वही सिर फोड़ सकता है । बस, मूल बात यह है कि जिसका भी सैंया कोतवाल बन गया, वही परम स्वतंत्र है सब कुछ करने के लिए- जोहड़, सवाय चक भूमि और अन्य सार्वजनिक ज़मीनों पर नाजायज़ कब्ज़े करने के लिए, सरकारी नौकर होने पर भी ड्यूटी पर न जाने के लिए, मनचाही जगह पर तबादला पाने के लिए, खम्भे पर तार डाल कर मुफ्त की बिजली जलाने के लिए, बिना मान्यता के कालेज चलाने के लिए, नकली दूध और घी बेचने के लिए, मिलावट करने के लिए, अतिक्रमण करने के लिए, खाता-पीता होते हुए भी बी.पी.एल. का लाभ उठाने के लिए, दारू पीकर लोगों को परेशान करने के लिए और युवा और हीरो हुआ तो लड़कियाँ छेड़ने के लिए तथा वह और भी जो कुछ करणीय समझे । कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।

हमारी लंबी बात सुनते-सुनते तोताराम को झपकी और उबासी आने लगी थी लेकिन अब अचानक उचक कर पूछने लगा- तो फिर बता, तेरा सैंया कौन ? कौन है तेरा सैंया ? है कोई तेरा सैंया ?

हमने कहा- बंधु, ऐसा तो कुछ नहीं है ।

उसने अपनी हथेली हमारे मुँह पर रख दी और बोला- चुप, खबरदार जो यह व्यंग्य-फ्यंग का तमाशा किया तो ।
मनमोहन जी से प्रेरणा ले और बाकी बचा हुआ जीवन खैरियत से जी ले ।

०१-०२-२०१३

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