Jul 30, 2018

आँख मारना और दिल का साइज़



आँख मारना और दिल का साइज़    


आज तोताराम आया तो हमने कहा- तोताराम, कल तूने राहुल के मोदी के गले लगने की बात तो बता दी लेकिन यह नहीं बताया कि राहुल ने आँख भी मारी थी |

बोला- तो क्या यह गौरक्षकों की भीड़ द्वारा किसी मुसलमान को मार देने या अंधविश्वासों की आलोचना करने पर स्वामी अग्निवेश की ठुकाई कर देने जैसा जघन्य काम हैं ? 

हमने कहा- इसमें क्या है ? यह तो एक आस्थावान और गौभक्त देश में कोई बड़ी बात नहीं है |यह तो खैर मना कि कलबुर्गी, दाभोलकर और गौरी लंकेश की तरह किसी भाई से टपकवा नहीं दिया |गौरव और जोश के अतिरेक में कुछ भी संभव है |लेकिन आँख मारने जैसा अश्लील काम और वह भी संसद में |बेचारी सुमित्रा महाजन का तो बैठे रहना भी मुश्किल हो रहा था |

बोला- आँख मारने का काम क्या अश्लील संकेत ही हो सकता है ? और कुछ नहीं ? जैसे कहा गया है- ब्यूटी लाइज इन द आईज ऑफ़ द बिहोल्डर वैसे ही अश्लीलता लाईज इन द आईज ऑफ़ द देखने वाला |

किसी भी महिला को डोकरी और युवती को छोकरी, किसी को पप्पू, नामदार आदि कहना क्या किसी आँख मारने से कम है ? राजनीति में सबसे अधिक शाब्दिक गिरावट शालीनता की ठेकेदार पार्टी में ही नज़र आ रही है |कोई भी ऐरा-गैरा छुटभैय्या किसी भी परिवार, व्यक्ति, धर्म और जाति के लिए कुछ भी कह देता है |क्या कोई मखौल उड़ाने की प्रतियोगिता हो रही है देश में ? |इस प्रकार की बातों से हम बच्चों को कौनसे संस्कार दे रहे हैं ? जीवन के लिए कोई पद, पैसा या नौकरी ही नहीं, सकारात्मक वैचारिकता और अनुशासित मानसिकता भी चाहिए |

हमने कहा- तोताराम, पार्टी पोलिटिक्स से परे हमें भी वह ज़माना याद है जब नेहरू जी ने भारत यात्रा पर आए ब्रिटेन के प्रधान मंत्री से अटल जी को  मिलवाते समय कहा था- इनसे मिलिए |ये हैं हमारे उभरते हुए सांसद  | मैं इनमें बहुत संभावनाएँ देखता हूँ |एक और विदेशी राजनयिक से कहा था- मैं इनमें भारत का संभावित प्रधान मंत्री देखता हूँ |कितना बड़ा दिल !

बोला- जो व्यक्ति या पार्टी व्यंग्य और हास्य बर्दाश्त नहीं कर सकते,  किसी का उत्साह नहीं बढ़ा सकते,  किसी के लिए शुभकामना नहीं कर सकते वे कुछ भी गर्हित कर्म कर सकते हैं |समस्त विरोधों के बावजूद शत्रुता,नीचता और कमीनापन न करना ही लोकतंत्र की खूबसूरती है |

छोटे लोगों से बड़े काम नहीं हो सकते |चूहे के चमड़े से नगाड़ा नहीं बनता |बड़े देश को सँभालना, चलाना है तो दिल बड़ा कीजिए |

और दिल का साइज़ है कि सिकुड़ता ही जा रहा है |

हमने कहा- अगर किसी दिन ट्रंप भारत के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए आँख मार दें तो ? तो शायद वह उनकी जिंदादिली करार दी जाए |ऐसे में यदि एक युवक ने गले लगने या आँख मारने जैसी बालसुलभ और सरल शरारत कर दी तो भी क्या उसे नेहरू जी की तरह उसे स्नेह और आशीर्वाद नहीं दिया जा सकता ? इसे 'गले पड़ना' कहना छोटे दिल की बात है |आदमी पद से नहीं, बड़े दिल से बड़ा बनता है |

अटल जी का आज भी देश की राजनीति में में एक ऊँचा क़द है जो मात्र प्रधान मंत्री बन जाने से नहीं बल्कि एक बढ़िया इंसान होने के कारण है |

बोला- मुझे तो आजकल दुनिया में हर आदमी किसी न किसी के गले पड़ता ही नज़र आ रहा है |








 


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Jul 29, 2018

गले मिलने के भेद और भाव

गले मिलने के भेद और भाव 

तोताराम ने आते ही कहा- कुछ भी हो मास्टर, तुझे मानना पड़ेगा कि मोदी जी ने अपनी विविधता, गतिशीलता, रोमांचकता और काव्यात्मक भाषणों के बल पर मात्र चार साल में ही विश्व राजनीति में जो मुकाम हासिल किया है वह कोई और भारतीय हासिल नहीं कर सका |जैसे गाँधी जी सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलन, नेहरू जी पंचशील और गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के लिए दुनिया में जाने जाते हैं वैसे मोदी जी देश में गाँधी जी के सत्याग्रह की तर्ज़ पर स्वच्छाग्रह के कारण और विदेश में 'आ गले लग जा' जैसी डिप्लोमेसी' के साहसिक कार्यान्वयन के लिए जाने जाने लगे हैं |हालाँकि हमने बहुत बार मनमोहन जी को बुश और ओबामा से गले मिलते देखा है | उससे पहले नेहरू जी को भी कई विश्व नेताओं से गले मिलते देखा है लेकिन मोदी ने इस कला को जिस ऊँचाई पर पहुँचा दिया है उसकी बात ही कुछ और है | देश में तो न वे किसी को गले लगाने लायक समझते और न ही किसी नेता में आगे बढ़कर उनके गले लगने या उनको गले लगाने का साहस है |कभी उनके आराध्य रहे आडवानी जी तक सामना होने पर दूर से हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं | 

कल अविश्वास प्रस्ताव पर अपने भाषण के बाद राहुल गाँधी ने अनपेक्षित रूप से मोदी जी के गले लगकर सबको चौंका दिया |मोदी जी भी अचकचा गए |तत्काल तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करें ? बालक ने बड़े साहस का काम किया |यदि उन्हें ज़रा सा भी अंदाजा होता तो शायद वे राहुल को दूर से ही ''ठीक है, ठीक है' कहकर निबटा देते |अब मोदी जी को समझ में आ गया होगा कि नाटकीयता देखकर और लोग भी धीरे-धीरे नाटकीय हो जाते हैं |अब भविष्य में मोदी जी बहुत सावधान रहेंगे | जब लोग उनके साथ फोटो खिंचवाकर ही बीस हजार करोड़ की चपत लगाकर विदेश भाग जाते हैं तो गले लगते हुए फोटो खिंचवाकर तो पता नहीं लोग क्या कुछ कर गुजरेंगे |सावधानी हटी और दुर्घटना घटी |

हमने कहा- बन्धु, अब और भूमिका नहीं |तत्काल अपना मंतव्य स्पष्ट करो कि तुम इस प्रकरण को निचोड़कर क्या निकालना चाहते हो ? सुब्रमण्यम स्वामी ने तो अपने संतत्त्व और दिव्य दृष्टि के बल पर इसमें विषैली सुई खोज निकाली है |बंदा बड़ा जीनियस है लेकिन है खुराफाती |

बोला- स्वामी जी की बात छोड़ |उन्हें तो अपने से भला और अपने से बुद्धिमान इस दुनिया में कोई नज़र आता नहीं  |हो सकता है कल को यह आरोप लगा दे कि राहुल ने गले मिलते समय मोदी जी का फोन मार लिया | उनके इन्हीं लक्षणों के कारण मोदी जी उन्हें अपनी केबिनेट में घुसने नहीं देते |पता नहीं,कब-क्या कलाकारी दिखा दे |आदरणीय भ्राताश्री, मैं तो वर्तमान भारतीय राजनीति के इस रोमांचक क्षण में गले लगने, गले लगाने, गले मिलने, गले मिलवाने, गले पड़ने आदि विभिन्न भेदों, भावों और भेदभावों के बारे में कुछ जानना चाहता हूँ |मुझे लाभान्वित करें |

हमने कहा- बन्धु, इस गलने लगने-लगाने या भेंटने या बाँहों में भर लेने के शास्त्र में सबसे पहले तो गले से संबंधित दोनों पक्षों के बारे में जान लो |जब किसी अज़ीज़ या आयुष्मन के मन में अपने आदरणीय का स्नेह प्राप्त करने का भाव आता है तो वह उनके गले लगता है |जैसे हनुमान के मन में राम के प्रति या भरत के मन में राम के प्रति |राम इसे समझते हैं और हनुमान को गले से लगाते हैं -

लाय सजीवन लखन जियाये |
श्री रघुवीर हरसि उर लाए ||

जब भरत राम से मिलने वन में पहुँचते है तो वे राम को देखते ही भाव विह्वल होकर भूमि पर गिर पड़ते हैं और उधर राम भी अपना ईश्वरतत्व बिसार कर दौड़ पड़ते हैं-

उठे राम सुनी प्रेम अधीरा |
कहुं पट कहुं निषंग धनु तीरा ||

दो समवयस्क मित्र बहुत समय बाद मिलते हैं तो दोनों ही इतने भाव-विह्वल हो जाते हैं कि सब औपचारिकताएँ समाप्त हो जाती हैं |मिलते समय चश्मे टूट जाने तक का होश नहीं रहता | द्वारपाल से सुदामा पांडे का नाम सुनकर-
द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पांय 
भेटे भरि अंक लपटाय दुःख साने को |

कुछ धृतराष्ट्र जैसे कपट वात्सल्य दिखाने वाले की भुजाओं में लोहे का भीम दिया जाता है या अफ़ज़ल खान जैसे सुलह का दम भरने वालों से बघनखा पहनकर मिला जाता है |

कुछ सच्चे मन से अपने आप ही गिले शिकवे दूर करने के लिए मिलते हैं |मन का मेल धोने के लिए मिलते है |वही सच्चा मिलना है | 

बोला- भाई साहब,  मनमोहन जी को भी बुश और ओबामा से गले मिलते तो कई बार देखा है लेकिन पता नहीं चला कि वह गले मिलना था या गले पड़ना ?

हमने कहा- भले ही मनमोहन जी बोलते कम थे लेकिन समझते सब थे |और इस बात को बुश और ओबामा दोनों भी समझते थे |इसलिए ज्यादा नाटकबाजी नहीं होती थी लेकिन अब तो इतने वर्षों से कभी गले मिलना, कभी झूला झूलना, कभी चाय पीना-पिलाना और कुछ नहीं तो कहीं चलते प्लेन से जन्म दिन की बधाई देने के बहाने ही टपक पड़ना | 

 हो सकता है अब मोदी जी संसद में भी किसी बुलेट प्रूफ केबिन में बैठें और वहीं से अपना भाषण दें | गले मिलने का सिलसिला ऐसे ही चल निकला तो हो सकता है विदेशी नेता भी भारतीय नेताओं से कहने लगेंगे- भैया, वार्ता कर या नहीं लेकिन यह बात-बात में गले मिलना ठीक नहीं है |किसे पता किसकी जूएँ किसके कान पर रेंगने लग जाएँ |हाथ मिलाकर ही काम चला हो |

बोला- मास्टर, मुझे लगता इन्हीं बातों को सोचकर हमारे पूर्वजों ने हाथ जोड़कर नमस्ते करने का तरीका शुरू किया था |अब यह बात और है कि हाथ नज़दीक से जोड़ें जाएँ या दूर से ही  |

हमने कहा- कुछ भी हो नाटक कम करना चाहिए और दिल बड़ा रखना चाहिए |



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Jul 25, 2018

ट्रेन का टाइम



 ट्रेन का टाइम 

रविवार को गाँव जाने का विचार है |ट्रेन सुबह कोई छः-सवा छह बजे यहाँ से चलती है |कभी-कभी ऑटो नहीं मिलते तो पैदल ही मार्च करना पड़ता है |सुबह का भ्रमण, दस रुपए की बचत; बस घर से आधे घंटे पहले निकलना होता है |इसलिए एहतियात के तौर पर तोताराम से ट्रेन का ठीक समय जानना चाहा तो बोला- ट्रेन का कोई समय नहीं होता |जिस समय ट्रेन चल दे वही ट्रेन का समय होता है | दुनिया की कोई दो घड़ियाँ कभी एक सामान समय नहीं देतीं | किसी माल की मैन्यूफेक्चरिंग डेट वही होती है जिस दिन कंपनी से बाहर निकलता है |कुछ तो यह तारीख़ इतने छोटे अक्षरों में छापते हैं या इस तरह किसी गुप्त से स्थान पर छापते हैं या इतनी अधिक स्याही लगा देते हैं कि वर्ष २०१७, २०१८, २०१९ तक में कोई फर्क करना मुश्किल हो जाता है |

हमने कहा- हमने केवल रविवार को सुबह जाने वाली ट्रेन का टाइम पूछा है, समस्त व्यापारिक जगत की बदमाशी का हिसाब नहीं |

बोला- यदि स्टेशन के बोर्ड से टाइम मैच नहीं करता तो स्टेशन मास्टर कह देगा- यह पुराना है |जहाँ तक रेलवे की घड़ी की बात है तो स्टेशन मास्टर के कमरे और प्लेटफोर्म को घड़ियों में पाँच मिनट तक का अंतर मिल सकता है |और फिर ट्रेन यहीं से बन कर चलती है |यदि ड्राइवर या टीटी की बीवी ने टिफिन पैक करने में देर कर दी हो तो उसी अनुपात में ट्रेन भी लेट हो सकती है |

हमने कहा- तू, तेरी सरकार और तेरी ट्रेनों के बारे में कुछ जानना-समझना आसान थोड़े है |और एक जापान है जहाँ की ट्रेनें अपनी समय की पाबन्दी के लिए दुनिया में प्रसिद्ध हैं |अभी एक ट्रेन २५ सेकण्ड पहले चल पड़ी तो रेलवे वालों ने माफ़ी माँगी | 

बोला- ये सब नाटक हैं |इतना समय भी कोई समय होता है |इतने समय में तो पानी की बोतल नहीं भरी जा सकती |इतनी देर में तो आदमी ढंग से गुटका तक नहीं थूक पाता |क्या, कोई २५-२५ सेकण्ड का हिसाब रखा जाता है ? इससे सौ गुना देर तो ड्राइवर सीट साफ़ करने में, नीबू-मिर्च का टोटका टाँगने, अगरबत्ती और बीड़ी सुलगाने में तथा सामने रखे देवी-देवताओं से आशीर्वाद लेने में लगा देता है |

और रेलवे को तो माफ़ी माँगनी ही नहीं चाहिए थी |अरे, जिसे जाना है उसे तो आधा घंटे पहले आकर सीट रोक लेनी चाहिए |इतनी गड़बड़ तो शिकायत करने वाले की घड़ी में भी हो सकती है |

हमने कहा- क्षमा करना बन्धु, हमें पता नहीं था कि तुझसे ट्रेन का टाइम जान सकना उतना ही कठिन है जितना कि आयकर विभाग से रिफंड लेना | जो करना है हम खुद तय कर लेंगे |

बोला-ट्रेन यहीं से बनकर चलती है |अच्छा हो शाम का खाना खाकर ट्रेन में जाकर ही सो जा |फिर मंत्रालय वाले और ट्रेन वाले जानें | जब उनकी मर्ज़ी हो चलें | वहीँ सुबह उठकर स्नान, मंजन, शंका समाधान कर लेना और चाय पी लेना |

हमने कहा- तोताराम, यह रिस्क नहीं ले सकते |ट्रेन के टाइम की तरह सरकार ने ट्रेन में सफाई और शौचालय में पानी होने की गारंटी भी कहाँ दे रखी है ? कहीं सुबह-सुबह जल्दी में चले गए, निबट लिए और शौचालय में पानी नहीं हुआ तो ?








 


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Jul 23, 2018

तोताराम का गले मिलना



तोताराम का गले मिलना 



समझ में ही नहीं आता कि सरकार की प्राथमिकताएँ क्या है ? कभी किसी अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले का भुगतान महिनों तक रोक लिया जाता है | वह सप्लाई बंद कर देता है और उस स्थिति में ५० बच्चे दम घुटकर मर जाते हैं |कभी किसी नेता की रैलियों और उसकी छवि बनाने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के सैंकड़ों-हजारों करोड़ रुपए खर्च कर दिए जाते हैं |कभी किसी किसी योजना की छोटी-सी अप्रमाणित उपलब्धि को प्रामाणिक दिखाने के लिए लाखों लोगों को , कुछ दबाव और कुछ लालच के सहारे इकठ्ठा करने में करोड़ों रुपए फूँक दिए जाते हैं | 

किसी के मन की बात को करोड़ों रुपए खर्च करके, फिल्म की तरह पहले से डायलाग और एक्टिंग तय करके सहज संवाद के रूप में मजबूरन दिखाया जाता है |किसी विज्ञापन विशेष को रेडियो टीवी पर दिन में सौ बार दिखाया-सुनाया जाता है |और कभी किसी अत्यंत लोकतांत्रिक कार्यक्रम को पता नहीं किस विकास के नाम पर सिरे से गायब कर दिया जाता है |कल यही हुआ |हमारे पास टीवी नहीं है |रेडियो से काम चलाते हैं | विश्वास या अविश्वास प्रस्ताव,जैसा भी लोग अपनी-अपनी राजनीतिक आस्थाओं के अनुसार कहें, सुनना चाहते थे |लेकिन राष्ट्र के नाम सन्देश की तरह, नितिन गडकरी जी के विभाग का कार्यक्रम 'हैलो हाइवे' और बिग बी का देश भक्ति गीत 'दरवाजा बंद तो बीमारी बंद' हर क्रिकेट मैच के बीच सौ बार सुनवाने वाले रेडियो ने कल की सारे दिन चली कार्यवाही अविरल नहीं सुनवाई |क्यों ? 

आँखों देखे हाल में और अखबार में बड़ा फर्क है |अखबार के इंतज़ार में बरामदे में बैठे थे |जैसे ही हम दीर्घ शंका के लिए अन्दर गए कि अखबार वाला बरामदे में अखबार छोड़ गया | तभी बरसात को आना था | आए तो अखबार गीला |उठाएँ तो लुगदी बन जाए |उठाकर एक तरफ रख दिया और सूखने का इंतज़ार करने लगे |तभी तोताराम आगया |हम उठें, सँभलें तब तक तोताराम ने हमें बाँहों में भरा लिया |



हम हड़बड़ा गए, कहा- आज कौनसा धनुष तोड़ आया या संजीवनी बूटी ले आया | क्या तमाशा है ? ढंग से बैठकर बात कर |

बोला- आज जब दुनिया में हर क्षेत्र और विषय में कटुता का बोलबाला है, लोग हर बात में एक दूसरे की निंदा करने का ही अवसर ढूँढ़ रहे हैं तब मेरे जैसा कोई भला आदमी तेरे गले लग रहा है तो तुझे वह तमाशा लगता है |जब राहुल गाँधी मोदी के गले लग सकते हैं तो मैं तेरे गले क्यों नहीं लग सकता ?

हमने कहा- हमने तो सुना है मोदी जी इसे गले पड़ना कह रहे हैं |

बोला- बन्धु, अब यह तो कैसे पता चले कि कोई गले मिल रहा है या गले पड़ रहा है |मोदी जी भी तो चाहे जिस-तिस विदेशी नेता से गले मिलते ही हैं |उनसे भी गले मिलते हैं जिनके यहाँ गले मिलने की प्रथा ही नहीं है | कई बार तो फोटो से ऐसा लगता है जैसे सामने वाला परेशान तो है लेकिन किसी शिष्टाचार के तहत प्रकट नहीं कर रहा है |ट्रंप तो किसी से ढंग से हाथ तक  नहीं मिलाना चाहते लेकिन जब कोई उनसे आगे चलकर लिपट जाता है तो बेचारा क्या करे |झेल जाता है | देश के लिए अरबों डालर का सौदा जो पटाना होता है |

हमने कहा- किसे पता राहुल के मोदी जी से मिलने, मोदी जी के ट्रंप से मिलने और तेरे हमसे गले मिलने में कितनी असलियत है और कितना नाटक ?

बोला- जब बड़ों को नाटक करते पूरा टर्म समाप्त होने को आगया तो एक छोटे ने एक बार नाटक कर भी लिया तो इतना अचकचाने या घबराने की क्या ज़रूरत है ?

हमने कहा- बन्धु, ज़माना खराब है |क्या पता किसने बघनखा छुपा रखा हो |

बोला- तो मैं तुझसे बघनखा लेकर गले मिलूँगा |

हमने कहा- बात की बात थी वरना एक दूसरे का सच हम दोनों जानते हैं |





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Jul 21, 2018

सैमसंग और हमारी गौरव-वृद्धि

सैमसंग और हमारी गौरव-वृद्धि 

आज तोताराम ने आते ही हमें टोका- क्या बात है ? चेहरे से  नूर कैसे लीक हो रहा है ? कहीं रात को पे कमीशन का एरियर खाते में आने की सूचना तो नहीं मिल गई |

हमने कहा- लेकिन तेरे चेहरे पर तो वही शाश्वत बारह बजने वाला भाव है |

बोला- वह तो निर्देशक मंडल में आने पर सबका हो जाता है |तू अपने इस नूरानी चेहरे का रहस्य बता |

हमने कहा- रात को हुआ ऐसे कि कोई सवा आठ बजे लाइट चली गई |


बोला- लाईट का इससे क्या संबंध है |यह तो वही बात हुई कि कोई 'मोब लिंचिंग' अर्थात 'भीड़-हत्या' की शिकायत करे तो मोदी जी कहें कि इमरजेंसी लोकतंत्र पर एक कलंक है और जावड़ेकर जी इमरजेंसी को  पाठ्यक्रम में पढ़ाए जाने का आश्वासन ददे दें |


हमने कहा- पूरी बात सुन |लाईट जाने के कारण हम गरमी से होने वाली बेचैनी को भुलाने के लिए समाचार सुनने लगे |मोदी जी बता रहे थे कि नॉएडा में पाँच हजार करोड़ रुपए का निवेश करके सैमसंग ने स्मार्टफोन असेम्बल करने का जो कारखाना लगाया है उससे देश का गौरव बढ़ा है |अब यह कैसे हो सकता है कि देश का गौरव बढ़े और हमारे चेहरे पर रौनक न आए |

बोला- लेकिन मेरे विश्वसनीय अखबार में तो यह समाचार नहीं छपा |

हमने कहा- उसका कारण यह रहा कि अखबार को वाट्सऐप का जाली समाचारों से बचने से संबंधित विज्ञापन जो मिल गया |विज्ञापन मिले तो अखबार अपना नाम तक छापना भूल जाए और नेता को वोट मिलने की गारंटी मिल जाए तो वह नाली में कूद पड़े |

बोला- लेकिन इसमें गौरव की क्या बात है ?जो देश खुद को जगद् गुरु कहता फिरता हो, वेदों और महाभारत में सभी वैज्ञानिक आविष्कार खोज लेता हो उसे एक ढंग की मोबाइल बनाने की यूनिट लगाने जितना भी सलीका न हो |वह भी एक छोटा-सा देश दक्षिण कोरिया लगाए |और उससे हमारा गौरव बढ़े |हमारे गौरव क्या ऐसे ही दूसरों के कंधे पर चढ़कर आते हैं |

हमने कहा- लगा तो हम भी लेते लेकिन क्या बताएँ दो यूनिट लगाने जितना बजट तो माल्या, चार यूनिट जितना नीरव मोदी लेकर भाग गया और दस-बीस यूनिट का बजट नोटबंदी में निबट गया |अब अगली टर्म में २०१९ के बाद देखेंगे |वैसे अंग्रेजी के एक अखबार ने बताया है कि इससे देश में हर महिने एक करोड़ स्मार्ट फोन बनेंगे और एक हजार लोगों को रोजगार मिलेगा |

बोला- यह भी सोचा है कि हर महिने एक करोड़ लोग अपनी बेकारी की बोरियत मिटाने के लिए फोन पर कितने श्रम दिवसों का सत्यानाश करेंगे ? रही बात एक हजार लोगों को रोजगार देने की तो समझ ले हमारा देश बहुत इन्नोवेटिव है |इतने लोग तो एक छोटे से मंदिर के आसपास भीख माँगकर, प्रसाद बेचकर और भजन गाकर पेट पाल लेते हैं |

और एक टेकनिकल युवक को क्या देंगे- ३०० रुपए रोज और दस घंटे की ड्यूटी |इतना तो एक अंगूठा-छाप मजदूर मनारेगा में अपने घर के आसपास बीड़ी पीकर कमा लेता है |

वैसे इसकी असलियत भी समझ ले कि यह कोई नया कारखाना नहीं है बल्कि पुराने कारखाने की क्षमता-वृद्धि की गई है |



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Jul 9, 2018

लाभान्वित, लाभार्थी और सकाम कर्म



लाभान्वित, लाभार्थी और सकाम कर्म

एक ज़माना था जब हम अखबारों, रेडियो और पत्र-पत्रिकाओं से मानक भाषा सीखते थे और अब आलम यह है कि बच्चों से कहना पड़ता है कि अखबारों की वर्तनी पर विश्वास मत करो |हो सके तो सच जानने के लिए शब्दकोश देखो |

हम अक्सर कोई गलती नज़र आने पर एक विश्वसनीय अखबार के संपादक को फोन कर दिया करते थे  |पहले तो एक-दो बार उन्होंने हमें इस बात के लिए धन्यवाद दिया |अब चिढ़ जाते हैं और हमारा नंबर देखकर फोन काट देते हैं |ठीक भी है, जब गलत वर्तनी और गलत शब्द प्रयोग के बावजूद अखबार की बिक्री बढ़ रही है तो बिना बात का 'हिंदी की हिंदी' का टेंशन क्यों लिया जाए |

आज जब अखबार में जयपुर में मोदी जी द्वारा सरकारी योजना का लाभ प्राप्त करने वाले दो-अढाई लाख लोगों से संवाद करने का समाचार पढ़ा तो माथा ठनका  |

और कोई तो हमारी सुनता नहीं तो जैसे ही तोताराम आया, हमने उसीको पकड़ लिया और पूछा- बता, मोदी जी कल जयपुर में 'लाभार्थियों' से मिले या 'लाभान्वितों' से ?

बोला-  लाभार्थी का अर्थ होता है - वह जिसे अभी लाभ मिला नहीं |वह लाभ के लिए प्रयत्नशील है |उसकी कामना कर रहा है, कोशिश में लगा है | जैसे अध्यापक पद का अभ्यर्थी |मतलब कि अभी उसने प्रार्थना-पत्र दिया है |अभी टेस्ट, साक्षात्कार आदि की प्रक्रिया चलेगी उसके बाद चयन होगा, नियुक्ति-पत्र मिलेगा , कार्यभार सँभालेगा तब अध्यापक बनेगा |तब उसे किसी अध्यापक भर्ती-योजना का 'लाभान्वित'  कहा जाएगा |एम.ए. की परीक्षा देने वाला परीक्षार्थी होता है |जब पास हो जाएगा तब एम.ए. कहा जाएगा |यदि किसी ने किसी योजना के तहत आवेदन दिया तो वह उस योजना का लाभार्थी है |जब उसे लाभ मिल जाएगा तो वह लाभान्वित हो जाएगा |कायदे से तो यह 'लाभान्वितों' से संवाद का कार्यक्रम था न कि 'लाभार्थियों' का |लेकिन इससे फर्क क्या पड़ता है ?

हमने कहा- मानो तो फर्क तो हर बात से पड़ता है |यह बात और है कि इस देश को किसी बात से फर्क नहीं पड़ता |कोई दो हजार करोड़ लेकर भाग जाए  या किसी लड़की से सरे आम बलात्कार हो जाए या भीड़ किसी को किसी भी बहाने से मार डाले तो भी |

बोला- ये जयपुर ले जाए गए लोग लाचार थे |लाभ-हानि से इनका कोई संबंध नहीं था |जिसे गैस कनेक्शन मिला उसे कहा- चल, नहीं तो तेरा कनेक्शन ख़त्म |जिसने अर्जी दे रखी थी उससे कहा- चल, नहीं तो कनेक्शन नहीं मिलेगा |
यह असल में चुनाव में पार्टी के टिकट और पद तथा प्रमोशन के लाभार्थी नेताओं और अधिकारियों का कार्यक्रम था | भाव को समझो, भंगिमा को पहचानो |जैसे सभी नदियाँ समुद्र में जाती हैं वैसे ही सब कुछ चुनाव-चक्र है |जब भेड़िया तिलक लगाने लगे तो समझो चुनाव नजदीक है |

हमने कहा-  किसी गरीब को जनता के पैसे से एक गैस कनेक्शन दे दिया तो उसके गले में पट्टा डालकर राजधानी में घुमाएँगे, फोटो उतारेंगे |

कहते हैं नेकी कर दरिया में डाल, निष्काम कर्म करो, विनम्र भाव से सेवा करो और यहाँ जनता के करोड़ों रूपए खर्च करके अपने छोटे से काम का ढिंढोरा पीटो |यह सकाम कर्म का निकृष्ट नमूना है |

बोला- याद रख, अब हर बुजुर्ग के माथे लिखवाया जाएगा- मोदी जी की कृपा से रेल में २५% छूट लेने वाला |


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Jul 7, 2018

मोदी, मगहर और तोताराम



   
मोदी, मगहर और तोताराम

आज तोताराम ने आते ही कहा- ज़रा, भाभी को बाहर तो बुला |

हमने कहा- अभी चाय लेकर आएगी तब बात कर लेना |यदि ज्यादा जल्दी है तो अन्दर जाकर मिल ले |

बोला- आज चाय नहीं पीनी | छह बजे की दिल्ल्ली वाली ट्रेन पकड़नी है | वहाँ से गोरखपुर की ट्रेन ले लूँगा |गोरखपुर से तो बस, ऑटो कुछ भी ले लो | घंटे पौन घंटे का रन है |  

हमने पूछा- तोताराम, यह क्या बात है ? वैसे तो तू हमसे हर छोटी-मोटी बात करता है लेकिन मगहर जाने का निर्णय कब ले लिया ?और क्यों ? कबीर तो  मरने से दो महिने पहले मगहर गए थे |काशी में मुक्ति का सस्ता सौदा बेचने वाले पाखंडियों को नंगा करने के लिए इस जिद पर गए थे कि जिसने अच्छे कर्म किए हैं उसकी मुक्ति में मगहर भी बाधा नहीं डाल सकता |फिर वे तो १२० वर्ष के लगभग होने को आए तब गए थे |उस उम्र तक पहुँचने में तो अभी चालीस-पैंतालीस साल बाकी है | यदि कबीर जी की तरह चालीस-पैतालीस साल और जीकर मोदी जी का विकास और जेतली जी बजट बिगाड़ना है तो कोई बात नहीं |लेकिन उससे पहले अस्सी में सवाई, नब्बे में ड्योढ़ी और सौ में दुगुनी पेंशन का जश्न तो यहीं हमारे साथ मना जा |

बोला- क्या मगहर जाने के लिए १२० वर्ष का होना ज़रूरी है ? मोदी जी भी तो गए हैं कि नहीं |अभी सत्तर के भी नहीं हुए हैं |

हमने कहा- अब चुनाव सिर पर आगे हैं इसलिए पूर्वी उत्तर प्रदेश और देश के विभिन्न भागों में फैले कबीरपंथियों, जिनमें दलित ही अधिक हैं, के वोट पटाने के लिए जाना पड़ा है |

बोला- वोट नहीं, कबीर के सादगी और सद्भाव के विचारों को फ़ैलाने के लिए उनके नाम पर अकादमी का शिलान्यास करने जाना ज़रूरी था |

हमने कहा- तोताराम, कबीर अकादमियों में पैदा नहीं होते |कबीर जन-सामान्य के बीच उनके दुःख-सुख में शामिल होकर सबकी मुक्ति में अपनी खोजने का नाम है | अपने अहंकार को मारकर, अपना सिर उतारकर भूमि पर रखने के बाद प्रेम के घर में प्रवेश करने का नाम है कबीर |

बोला- क्या समझते हो ? मोदी जी की कबीर के भक्त हैं | और हम मोदी जी के भक्त हैं |हम न तो मोक्ष के लिए अपना राज्य छोड़कर बनारस जाते हैं और न ही मोक्ष के लिए बनारस से चिपके रहते हैं |हम तो कर्म में विश्वास करते हैं |कर्म, कर्म और कर्म | कबीर जी ने भी तो कहा है- काल करे सो आज कर |

हमने कहा- जैसे कबीर का राम मंदिर और मंदिर की राजनीति में नहीं है वैसे ही कबीर न मगहर में है, न बनारस में है |वह तो चेतना के सतत जलते दीपक की रोशनी से जीव- जगत को प्रकाशित करते ज्ञान और उसके भक्तिपूर्वक आचरण में है |

बन्धु, जब और जहाँ तुम्हारी मर्ज़ी हो जाओ |अब कोई देश में इमरजेंसी थोड़े है | तुम्हारे कबीर के इस उद्धरण  के ज़वाब में हम तो यही कह सकते हैं कि सहज पके सो मीठा होय या रुत आए फल होय या जल्दी का काम शैतान का |ढंग से पका न होने पर खाना पेट ख़राब कर देता है |

बोला- और कितना इंतजार करें |सत्तर साल से तो लोगों ने विकास की टाँगें बाँध रखी है |आखिर देश कब तक विकास के लिए तरसता रहेगा ? हमें दशकों का काम वर्षों में करना है | 

हमने कहा- ठीक है | वैसे तूने जल्दी से जल्दी घास खुदवाने के चक्कर में लोहार से खुरपी अपने पंखों पर रखवा लेने वाले कौए की कहानी तो सुनी ही होगी |

बोला- कहानी लौटकर सुनेंगे |

और तोताराम चला गया |





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Jul 4, 2018

खुशामदी उत्साह के अतिरेकी प्रदर्शन की प्रतियोगिता



खुशामदी उत्साह के अतिरेकी प्रदर्शन की प्रतियोगिता 


आज तोताराम ने आते ही बड़ा अजीब प्रश्न किया- धींगामुश्ती वैद्यजी के क्या हालचाल  हैं ? 
हमने राज वैद्य, कविराज, भिषगाचार्य आदि शब्द तो सुने थे लेकिन यह 'धींगामुश्ती वैद्य जी' हमारे लिए नया शब्द था |अर्थ पूछा तो बोला- सुन-सुनाकर, बिना किसी उचित  और पूर्ण ज्ञान के काम करने वाले आधे-अधूरे लोगों के लिए है यह शब्द |इसे उर्दू में नीमहकीम भी कहते हैं|नीम भी त्रिफला की तरह रोगनाशक होता है |पर इस नीम का उस  नीम से कोई संबंध नहीं होता | 

ऐसे ही किसी वैद्य ने त्रिफला के अनन्त गुणों का वर्णन सुनकर किसी गाँव में जाकर अपनी बैदगी जमा ली | सबको हर बीमारी में त्रिफला दे देता |एक दिन उसके पास एक आदमी आया |उसकी भैंस खो गई थी |वैसे तो वैद्य जी ने ऐसी कोई बीमारी का नाम सुना नहीं था लेकिन लालच के मारे ग्राहक  को लौटाने का मन भी नहीं हुआ |सो उसे भी त्रिफला दे दी |और कुछ ज्यादा ही दे दी क्योंकि भैंस का मामला था |भैंस के मालिक को दस्त हो गए |

उन दिनों भारत अस्वच्छ नहीं था इसलिए 'स्वच्छ भारत' के तहत शौचालय वाली महामारी का फैशन भी नहीं चला था |इसलिए शुचिता के लिए घर से थोड़ा दूर जाना पड़ता था |संयोग ऐसा हुआ कि शाम को उसे गाँव के किसी खेड़े के पास खड़ी अपनी भैंस दिखाई दे गई |चमत्कारी इलाज | बैदगी जम गई |वैद्य जी पुज गए |

हमने पूछा- लेकिन इन नक्कालों को पहचानें कैसे ? 

बोला- आजकल देश में  'त्रिफला वैद्यंग' ही तो चल रही है | सभी समस्याओं- अराजकता, बेकारी और गरीबी के तीनों दोषों का 'त्रिदोषनाशक' एक ही इलाज चला हुआ है | अखबार,रेडियो, टीवी सबमें इन्हीं 'त्रिफला-वैद्यों' के विज्ञापन आते रहते हैं | स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' मतलब शौचालय और है क्या ?|सब कुछ कृष्णार्पणम की तरह सब कुछ शौचालयं | गाँधी जी के  'सत्याग्रह' जैसे महान शब्द को भी हथियाकर 'स्वच्छाग्रह' बना लिया |थोड़े दिनों में इसे 'शौचाग्रह' भी बनाया जा सकता है | 
कोई यह भी नहीं कह सकता कि शौचालय बनाना अच्छी बात नहीं है | कोई यह प्रश्न भी नहीं कर सकता कि जब खाने को ही कुछ नहीं होगा तो शौचालय की ज़रूरत ही क्यों पड़ेगी | यह देश अब तक इन बंद और कमरेनुमा शौचालयों के बिना कैसे  स्वस्थ और जीवित रह लिया ?|

कौन तर्क करे कि पहले मुर्गी थी या अंडा ? मनुष्य ने भोजन पहले किया या पहले शौच गया ?इसलिए बस एक ही काम चल पड़ा है- शौचालय |एक-एक दिन में लाखों शौचालय बन रहे हैं |ज़मीन पर या कागज पर, पता नहीं |

send photo with toilet, then get salary

हमने कहा- बात तो सही है |आज कल जिसे देखो शौचालय में ही घुसा हुआ है |उत्तर प्रदेश के सीतापुर के जिला मजिस्ट्रेट ने आदेश दे दिया कि जब शौचालय के साथ फोटो भेजोगे तभी तनख्वाह मिलेगी |जैसे कि तनख्वाह काम करने की नहीं, शौच जाने की मिलती है |अपनी सक्रियता के लिए नाम कमा चुकी किरण बेदी ने पुदुचेरी की राज्यपाल की हैसियत से शौचालय न बनवाने वालों का सस्ता अनाज बंद करने का फरमान जारी कर दिया |बिहार में उत्साही पंचायत और नगरपालिका के अधिकारियों ने गांवों में खुले में शौच करने वालों के विरुद्ध 'लुंगी खोल' अभियान चलाया जा रहा है |कूड़ा फ़ैलाने वाले सफ़ेद झक्क कपड़े पहनकर झाड़ू लगाते हुए फोटो खिंचवाकर ऊपर भिजवा रहे हैं |'मन की बात' सुनने के प्रमाणस्वरूप फोटो छपवाकर ऊपर भिजवाए जा रहे हैं |आचरण का कोई हिसाब-किताब नहीं है |

अब तो अनुष्का शर्मा का किसी लग्ज़री कार से प्लास्टिक का एक टुकड़ा फेंकते हुए व्यक्ति को डाँटते हुए वीडियो आया है जो उसके पति विराट कोहली ने उसी समय बनाकर डाल दिया था |वे ठहरीं मोदी जी के स्वच्छता अभियान की ब्रांड अम्बेसडर की पत्नी |और फिर मुंबई जैसे साफ शहर में प्लास्टिक के एक टुकड़े को वे कैसे बर्दाश्त कर सकती हैं | प्लास्टिक के इस छोटे के अतिरिक्त तो पूरी मुम्बई  बिलकुल साफ हो चुकी है |पता नहीं, इस देश के आसमान में उड़ती प्लास्टिक की थैलिया किस देश से आती हैं ?कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने अनुष्का का उत्साह बढाते हुए उसका पक्ष लिया है |

बोला- तो क्या हम वास्तव में इतने सफाई पसंद हो गए हैं ?क्या हम कूड़ा न फ़ैलाने और कूड़ा प्रबंधन में इतने विकसित और सक्षम हो गए हैं जो प्लास्टिक का एक टुकड़ा हमें चिढ़ा देता है ? फिर दिल्ली के गाजीपुर इलाके में कूड़े का एवरेस्ट कैसे और क्यों जमा हुआ है ? क्या वहाँ के इलाके के लोग इसे पसंद करते हैं या इसे उन्होंने जमा किया है ? यह सब लक्ज़री कार वाले इलाकों के घरों की सफाई करके फेंका हुआ कूड़ा है | 

हमने कहा- ऊपर वालों की खुशामद के बतौर उत्साह का अतिरेक दिखाकर अपनी गोटी लाल करने का नाटक है यह सब | रास्ता तो कूड़ा सृजित न करने वाली जीवन शैली अपनाने से ही निकलेगा | अन्यथा सफाई के नाम पर बड़े लोगों का कूड़ा छोटे लोगों के इलाके में आता रहेगा |कुछ घर और इलाके नहीं, पूरी दुनिया साफ हो तो सफाई है |


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Jul 2, 2018

इमरजेंसी और यूजीसी



इमरजेंसी और यूजीसी 

अभी बरामदे में जाने ही वाले थे कि एक मरियल और फटी-सी आवाज़ सुनाई दी- इमरजेंसी मुर्दाबाद, इंदिरा गाँधी मुर्दाबाद |

हमें बड़ा अजीब लगा |मरने के बाद तो कोर्ट भी केस बंद कर देता है | मरने वाले को स्वर्गीय कहने लग जाते हैं भले ही उसके कर्म कुम्भीपाक नर्क में डाले जाने योग्य रहे हों |लोग किसी की शव यात्रा को देखकर श्रद्धांजलि स्वरूप नमस्कार  करते हैं |और आज यह कौन है जो ३४ वर्ष पहले आतंकवादियों द्वारा मार दी गई देश की लोकप्रिय प्रधान मंत्री के बारे में आज मुर्दाबाद के नारे लगा रहा है ? करुणा, अहिंसा और क्षमा वाले आध्यात्मिक देश भारत में कौन है जो इस प्रकार शत्रुता और ईर्ष्या की आग में जल रहा है ? 

देखा तो तोताराम |

हमने पूछा- यह क्या तमाशा है ? इंदिरा जी ने तेरा क्या बिगाड़ा है ?

बोला- लोकतंत्र का गला घोंट दिया |संविधान की हत्या कर दी |मैं उसे कैसे माफ़ कर सकता हूँ |

हमने पूछा- नेताओं को जेल में डाल दिया |नसबंदी में ज्यादतियाँ हुईं; उसका दंड जनता ने उनकी पार्टी ही नहीं खुद उन्हें हरा कर दे तो दिया | उनके गलत काम का उचित दंड दे दिया |जब आलोचना करने वाले, लोकतंत्र के तथाकथित रखवाले दाल के लिए जूतम-पैजार करने लगे तो जनता ने फिर इंदिरा जी को चुन लिया |जनता ने सजा दी और जनता ने माफ़ कर दिया |अब उस पर फैसला देने वाला तू कौन होता है ?

बोला- मैं एक स्वतंत्र देश का नागरिक हूँ |अपनी बात कहने का मुझे हक़ है |

हमने पूछा- यह बता नेताओं को जेल में डालने के अतिरिक्त सामान्य आदमी को क्या कष्ट हुआ ? क्या किसी ने किसी को गौतस्करी और गौमांस के शक में मार डाला ? क्या सरे राह किसी दूसरे धर्म या नीची जाति के दूल्हे के हाथ पैर इसलिए तोड़ दिए गए कि उसने हरिजन होकर घोड़ी पर बैठने की जुर्रत की ? क्या कोई हजारों करोड़ लेकर भाग गया या संदेहास्पद रूप से कोई रात भर में करोड़पति बन गया ?  

बोला- इंदिरा ने जो चाहा अपनी मर्जी से कर लिया |जनता को विश्वास में लेना चाहिए था |जब खुद ही सब कुछ करना है तो लोकतंत्र का क्या मतलब ?

हमने कहा- लेकिन क्या दो साल पहले नोटबंदी तुझसे पूछकर की गई थी ? क्या बात-बिना बात किसी भी तरह का कोई भी सेस लगाकर पैसा खसोटकर उससे अपना प्रचार करने और छवि चमकाने का कार्यक्रम चुनाव अभियान में  बताया था ? तू इमरजेंसी के नाम से इंदिरा को ख़ारिज करना चाहता है लेकिन जब जनता ने उन्हें क्षमा कर दिया तो तू फतवा जारी करने वाला कौन होता है ? १९७७ में लोगों ने इंदिरा जी द्वारा गड़वाया हुआ काल पात्र इस शक में निकलवाया कि इंदिरा ने ज़रूर उसमें अपना और अपने परिवार का यशगान किया होगा |और मजे की बात कि उसमें इंदिरा का नाम ही नहीं था |और आज तुम जैसे लोग चमचों से खुद को राम और विष्णु प्रचारित करवा रहे हैं | 

बोला- भाई साहब , कुछ भी हो |हमारा तो 'साफ नियत और सही विकास' का फंडा है |चाहते तो यू जी सी को चुपचाप बदल देते और उसकी जगह कोई भी वैदिक या महाभारतकालीन विज्ञान और पद्धति लागू कर देते |लेकिन नहीं |  सच्चे लोकतांत्रिक लोग हैं तभी तो समाचार छपवाया है कि प्रबुद्ध लोग यू जी सी के स्थान पर, बेहतर शिक्षा और व्यवस्था के लिए प्रस्तावित नई संस्था के बारे में सरकार को ७ जुलाई तक अपने सुझाव भेजें | 

हमने कहा- तो दे ही दे सुझाव |नहीं हो तो दिल्ली चला जा जावडेकर जी को सुझाव देने के लिए |एक तरफ का किराया हम दे देंगे |आते समय यह भी पूछ आना कि अढाई वर्ष तरसाने के बाद जिस पे कमीशन का आदेश निकाला है, वह २०१९ के चुनाव परिणाम से पहले मिल जाएगा या कोई दूसरी सरकार  देगी |















 

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