Dec 30, 2020


खूबसूरती की कद्र 


हे अमरीका के लोकतंत्र द्वारा सताए गए, गलत तरीके से हराए गए, तथाकथित झूठे बताए गए, अब भी खुद को अमरीका का राष्ट्रपति मानने वाले, रसिक और साहसी ट्रंप जी,

नमस्ते. हैप्पी न्यू ईयर भी.

चूंकि पत्र आपको लिख रहे हैं, न कि आपके अनुसार अमरीका की सबसे खूबसूरत 'राष्ट्रपत्नी' अर्थात फर्स्ट लेडी ५५ वर्ष की आयु में भी कहर ढाती मेलानिया को, इसलिए आप उन्हें भी हमारी तरफ से नये वर्ष की शुभकामनाएं दे दें. हमें उनसे सहानुभूति है कि उन्हें आपके राष्ट्रपति रहते हुए किसी बड़ी मैगज़ीन ने अपने कवर पेज पर स्थान नहीं दिया और आपको वहाँ की लोकतांत्रिक संस्थाओं ने जीतने के बाद भी वाइट हाउस से विदा करवाने का एहसानफ़रामोशी वाला काम किया है, आपको देश का हित करने मतलब अमरीका को ग्रेट बनाने से ज़बरदस्ती रोक दिया, तो खुद भुगतेगी. 

हमारे यहाँ तो 'सरपंच पति' या 'सरपंच पत्नी' का भी उतना ही पॉवर होता है जितना उसके अर्द्धांग का. लालू जी जितना साहस दिखाते तो मेलानिया को ही राष्ट्रपति बना सकते थे. एक बार तो धमाका किया ही जा सकता था. फिर की फिर देखी जाती.  

यदि हमारे यहाँ होते तो आप जैसे दृढ़ संकल्पित जन हितैषी को जनता का हित करने से कोई नहीं रोक सकता था. अब देखिये ना, हमारे यहाँ सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में तीन कानून बनाकर ज़बरदस्ती हित किये जाने से दुःखी किसान देश के कई भागों से आकर इस ठण्ड में दिल्ली की सीमाओं पर पड़े हैं लेकिन सरकार उनका हित करने से बाज़ नहीं आ रही है. आपको भी ऐसा ही कोई जनहित का कदम उठा लेना चाहिए था. लेकिन क्या करें आप जैसे दयालु और लोकतांत्रिक व्यक्ति से ऐसा होना संभव नहीं था.  





हीरे की परख जौहरी ही जानता है. अमरीका के टटपूंजिए पत्रकार क्या जानेंगे ! हमारे यहाँ होते तो बड़े-बड़े मीडिया वाले मेलानिया से उनके पिज़्ज़ा खाने की तकनीक जैसे जाने किस-किस गंभीर विषय पर चर्चा कर सकते थे, उनका फोटो अपने अखबारों और पत्रिकाओं के मुखपृष्ठ पर छापकर धन्य हो जाते. हमारे यहाँ तो अब भी मलाइका अरोड़ा बड़े-बड़े अखबारों के पाठकों को मास्क पहनने का सही तरीका सिखाती है. सत्तर वर्ष की हेमामालिनी 'स्वप्नसुंदरी' सिद्ध की जाती है. मेलानिया और आप भारत की नागरिकता ले लें. हमारे यहाँ केवल पड़ोसी देशों से आए मुसलमानों को नागरिकता और शरण देने में थोड़ा लोचा है. फिलहाल ईसाइयों को नागरिकता देने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है. और फिर आप तो हमारे मोदी जी द्वारा सार्वजनिक रूप से घोषित मित्र हैं. कोरोना काल में भी अहमदाबाद में सौ-डेढ़ सौ करोड़ खर्च करके सम्मानित किये गए 'नमस्ते ट्रंप'  वाले परम प्रिय मित्र हैं. 


आप चाहें तो मेलानिया सहित क्या, अपनी दोनों पूर्व पत्नियों, बेटियों, दामादों और सम्पूर्ण परिवार सहित भाजपा में शामिल हो सकते हैं. आजकल हमारे यहाँ किसी को किसी भी पार्टी में शामल करने का 'आत्मा की आवाज़' और 'घर वापसी' का कायक्रम चल रहा है.  बस, इस बात का ध्यान रहिएगा कि यहाँ आकर किसी हिन्दू लड़की की ओर आकर्षित होकर उसे पटा मत लेना. वैसे हमारे यहाँ इस 'लव जिहाद' के लिए दस साल की सजा से लेकर मोब लिंचिंग तक की कठोर सजा का प्रावधान है लेकिन वह विशेषरूप से मुसलमानों के लिए है. कोई हिन्दू लड़का किसी मुसलमान लड़की से शादी कर ले तो नहीं. फिर भी कोई ईसाई हिन्दू लड़की से शादी करे इसे भी हमारी सरकार स्वीकार नहीं करेगी, भले ही फिलहाल कोई सजा न दे. यह हम इसलिए कहते हैं कि हम आपकी सौन्दर्य-प्रियता  को जानते हैं. तीन सुंदरियों को उलझा लेने के बाद भी आपके बारे में कई ऐसी-वैसी बातें सुनने में आती रही हैं.  


मेलानिया यदि यहाँ भगवा कपड़े पहन लें, तिलक लगाने लगें, राम नामी दुपट्टा डाल लें तो साध्वी मेलानिया कहलाने लगेंगी और कहीं से भी चुनाव जीत सकेंगी क्योंकि इस समय आपके मित्र की पार्टी कहीं से भी धडाधड चुनाव जीत रही है. मंत्रीमंडल में जगह भी पा ही जाएंगी. फिर तो रोज मुखपृष्ठ पर छपेंगी. हमारे यहाँ तो यदि वे रेडियो या टीवी पर अपना 'मन की बात' सुनते हुए फोटो खिंचवा लेंगी तो भी मुखपृष्ठ पर जगह मिल जाएगी.

और फिर आपके कार्यकाल में मेलानिया का फोटो टाइम मैगजीन के मुख पृष्ठ पर न छप पाने से दुखी न हों. टाइम मैगजीन कौन बड़ी बात है. उस पर तो हमारे यहाँ की परवीन बोबी, ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा आदि कई छप चुकी हैं. और तो और मलाला और ग्रेटा जैसी बच्चियां भी. और अब तो भारत मूल की एक पंद्रह वर्ष की लड़की गीतांजलि राव भी 'टाइम' के कवर पेज पर आ गई. भारत मूल की ही कमला व्हाईट हाउस  में घुसने से पहले ही 'टाइम' मैगजीन के कवर पर आ गई . 'टाइम' न हुआ तमाशा हो गया. ऐसी मैगजीन के कवर पर छपना कौन बड़ी बात रहा गई है. छोड़िये टेंशन लेना. हमारे मोदी जी की तरह मस्त रहिये. भले ही किसान दिल्ली के बाहर ठण्ड में  ट्रेक्टर ट्रोलियों के नीचे पड़े हैं लेकिन वे अपने मन की बात और मन की करने में मुग्ध हैं.  कोई स्टैण्डर्ड है टाइम मैगजीन का ? गाँधी, नेहरू, सचिन जाने कौन कौन छप चुके हैं. 


लगता है आपको विशेष कष्ट इस बात से भी है कि वह काली मिशेल कई बार, कई मैगजीनों के कवर पर छप चुकी है. हमारे हिसाब से तो कोई फर्क नहीं पड़ता. हाँ, बराबरी वालों के मामले में थोड़ी हेठी ज़रूर होती है.  मिशेल, ओपरा विनफ्रे की तस्वीरें कौन संजो कर रखता है लेकिन मर्लिन मुनरो और मेलानिया की तस्वीरें तो लोग अपने दिल में संजो कर रखते हैं.  वैसे मज़े की बात देखिये कि मर्लिन मुनरो, मिशेल और मेलानिया की राशि एक ही है. 

आपने अपनी अहमदाबाद यात्रा के दौरान हिंदी के कई शब्दों का उच्चारण करके हिंदी की जो सेवा की है उससे यहाँ के हिंदी सेवी बहुत धन्य हुए पड़े हैं. मेलानिया भी 'नमस्ते' बोल ही लेती हैं. अभी ९-१० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस आ रहा है, कहें तो हमारे यहाँ की किसी हिंदी सेवी संस्था द्वारा आप दोनों को 'विश्व हिंदी रत्न' का सम्मान दिलवा दें. आजकल तो सारे काम 'वेबीनार'  से हो रहे हैं. मंच शामियाने लाइट का कोई खर्च नहीं. आप दोनों के  शाल और श्री फल जब कभी यहाँ पधारेंगे तो ले लीजिएगा. 

मेलानिया को तो खैर किसी बड़ी मैगजीन ने अपने कवर पर नहीं छापा लेकिन आपके साथ तो अमरीका की जनता ही नहीं, नोबल कमिटी वालों ने भी बड़ा अन्याय किया है. न सही उत्तरी कोरिया से बात करने पर शांति का नोबल लेकिन कोरोना के लिए लाइजोल और डिटोल जैसी अचूक दवाओं की उपयोगिता बताने के लिए मेडिसिन का नोबल तो दिया ही जा सकता था. 


अब जनवरी २०२१ में शांतिपूर्वक व्हाईट हाउस छोड़ देने पर, यदि आप छोड़ देंगे तब, तो कोई न कोई पुरस्कार बनता ही है. 


कहीं कोई कम्यूनिस्ट आपको और पाठकों को आन्दोलनकारी भारतीय किसानों की तरह  खूबसूरती के मामले में भ्रमित न कर दे इसलिए हम यहाँ अमरीका की दो फर्स्ट लेडीज़  फ्रांसेस फाल्सम क्लीवलैंड और जैकलीन केनेडी के  फोटो देखने की सलाह देना चाहते हैं.देखें..   

आपका 

रमेश जोशी 

 

  


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Dec 25, 2020

सेन्ट्रल विष्ठा

सेन्ट्रल विष्ठा !


हमने पूछा- तोताराम, यह सेन्ट्रल विष्ठा क्या है ?

बोला- अपना उच्चारण तो सुधार. अच्छे भले अंग्रेजी शब्द को कहाँ शौचालय में ले जाकर पटक दिया. यह तो भला हो संस्कृत का जो इस शब्द में बदबू कम आ रही है. यदि तू 'गू' या 'नरक' कहता तो सारा बरामदा गंध मारने लगता. तेरी हर बात का ज़वाब दूंगा लेकिन पहले चाय तो सामान्य वातावरण में पी लेने दे. यह गू-मूत बाद में कर लेना. 

हमने कहा- इतनी संस्कृत तो हम भी जानते हैं. विष्ठा हमने जानबूझकर ही बोला है. शरीर के केंद्र में पेट होता है और पेट में क्या होता है ? मल-मूत्र. एक बार मुंह में जाने के बाद सब कुछ मल मूत्र बनने की प्रक्रिया में आ जाता है. यदि 'विष्ठा' बनने को अग्रसर भोजन  प्रक्रिया पूरी करके उचित समय पर, उचित मार्ग से निकले तो यह अच्छे स्वास्थ्य का प्रमाण हैं. यदि भोजन करने के बाद पाचन और निष्कासन अर्थात मल त्याग या विष्ठा- विसर्जन की प्रक्रिया किसी कारण से बाधित होने लगती है तो यह बीमारी का लक्षण है. सारी बीमारियाँ पेट से ही शुरू होती हैं. महानायक की पूरी फिल्म 'पीकू' की मूल समस्या 'विष्ठा-विसर्जन' में व्यवधान ही है. 

शास्त्रों में 'धन' की श्रेष्ठ गति 'दान' कही गई है. यदि भाव रूप में देखें तो यह दान एक प्रकार से अतिरिक्त धन का 'विष्ठा-विसर्जन' ही तो है. 

तोताराम हाथ जोड़ते हुए बोला- प्रभु, आपका भी ज़वाब नहीं. जैसे सभी किसानों को उनके सभी उत्पादों के वाजिब मूल्य 'न्यूनतम समर्थन मूल्य' की सीधी सी बात को मोदी जी के मंत्री और प्रज्ञा ठाकुर व कंगना जैसी चंडिकाएं तोड़-मरोड़ कर चीन, पाकिस्तान, आतंकवाद और खालिस्तान तक पहुंचा देते हैं वैसे ही आप भी अपनी कुंठा रूपी विष्ठा से बाहर ही नहीं निकल रहे हैं. 

मेरा तो इतना ही कहना है कि 'विष्टा' एक अंग्रेजी शब्द है जिसे मोदी जी ने देश की संसद, सर्वोच्च सेवकों और प्रशासकों के लिए बनने वाले एक परिसर के लिए दिया है. 

हमने कहा- लेकिन दुनिया में एक नहीं सैंकड़ों संसदें हैं जिनमें बहुतों के नाम संसद, असेम्बली, कांग्रेस आदि ही ज्यादा है. अपना तो पहले से ही 'संसद' है तो उसे ही चालू रखने में क्या परेशानी है. यदि सभी कार्यालय और महाप्रभुओं के लोकों को भी समाहित करना है तो 'संसद परिसर' नाम रख देते.वैसे नई ईमारत बनवाने की ज़रूरत ही क्या है ? दुनिया में अमरीका से लेकर नीदरलैंड तक की २००-२५० साल से लेकर ८०० साल तक की पुरानी इमारतों में सरकारें चल रही हैं. तो अपने संसद भवन को तो सौ साल ही हुए हैं. 

बोला- इस स्थान और नाम से ही बहुत सी बुरी यादें जुड़ी हुई हैं. यहाँ बैठने वालों के सिर पर गाँधी, नेहरू जैसे देश के असली दुश्मनों की आत्माएं मंडराती हैं. वे एक पवित्र और धार्मिक भारत का निर्माण करने में बाधा डालती हैं. इसलिए नाम और स्थान सब बदलना ही उचित है. 

हमने कहा- यदि किसी डिक्शनरी में देखेगा तो 'विस्टा' के कई अर्थ मिलेंगे जैसे- दृश्य, परिदृश्य, सिंहावलोकन, अनुदर्शन, प्रत्याशा, संदर्श आदि. और जब इन शब्दों के और आगे के अर्थ देखेगा तो पता चलेगा कि वायु पुराण और विष्णु पुराण में भी कई नरककुंडों का उल्लेख है जैसे- वसाकुंड, तप्तकुंड, सर्पकुंड और चक्रकुंड आदि। इन नरककुंडों की संख्या 86 है। इनमें से सात नरक पृथ्वी के नीचे हैं और बाकी लोक के परे माने गए हैं। उनके नाम हैं- रौरव, शीतस्तप, कालसूत्र, अप्रतिष्ठ, अवीचि, लोकपृष्ठ और अविधेय हैं। हालांकि नरकों की संख्या पचपन करोड़ है; किन्तु उनमें रौरव से लेकर श्वभोजन तक इक्कीस प्रधान माने गए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- रौरव, शूकर, रौघ, ताल, विशसन, महाज्वाल, तप्तकुम्भ, लवण, विमोहक, रुधिरान्ध, वैतरणी, कृमिश, कृमिभोजन, असिपत्रवन,कृष्ण, भयंकर, लालभक्ष, पापमय, पूयमह, वहिज्वाल, अधःशिरा, संदर्श, कालसूत्र, तमोमय-अविचि, श्वभोजन और प्रतिभाशून्य अपर अवीचि तथा ऐसे ही और भी भयंकर नर्क हैं। 

इस प्रकार सिद्ध होता है कि 'विस्टा' (VISTA) का मतलब संदर्श और संदर्श २१ प्रमुख नरकों में से एक. इसलिए यदि हमने विस्टा को 'विष्ठा' कह दिया तो क्या अनर्थ हो गया. शुक्र मना कि हमने लोक भाषा में 'गू' नहीं कहा. 

बोला- आज पता चला है कि तेरे जैसे महान व्यक्ति चाहें तो ज्ञान देकर भी किसी के प्राण ले सकते हैं जैसे कि महान सेवक सेवा करते-करते भी लोगों की जान ले सकते हैं. अब सोचता हूँ कि तुझसे ज्ञान लेने की बजाय तो किसानों के साथ जबरिया कल्याण के तीन कानूनों की वापसी के लिए आन्दोलन करते हुए पुलिस के डंडे या ठंडे पानी की बौछार खाकर मर जाऊं. 

हमने कहा- हम ज्योतिष में विश्वास नहीं करते. राम के विवाह का मुहूर्त वशिष्ठ जैसे पंडित ने निकाला था लेकिन क्या हुआ- वनवास, दशरथ का मरण, सीता-हरण और अंततः सीता का राम द्वारा त्याग. फिर भी मोदी जी तो सच्चे भारतीय और प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान में घोर विश्वास करने वाले हैं. उन्हें तो कम से कम सही मुहूर्त में काम करने चाहियें. लेकिन देखा,  ५ अगस्त २०२०को राम मंदिर का शिला पूजन पंचकों में दोपहर १२ से डेढ़ बजे के बीच दुर्मुहूर्त योग और राहु काल में किया. और संसद का शिलान्यास १२.३५ बजे दोपहर के अभिजित मुहूर्त को टाल कर १२.५५ बजे किया.  

बोला- मोदी जी एक धाँसू और दबंग नेता हैं. वे जो करें वही सही, जब करें वही मुहूर्त.

वैसे सच कहूँ तो मुझे अब तेरी इस विष्ठा वाली बात में दम नज़र आने लगा है. तभी तो कुछ बड़े देशों के नेता जब किसी दूसरे देश का दौरा करते हैं तो अपने साथ अपना मोबाइल शौचालय ले जाते हैं और अपना अमूल्य मल उस देश में छोड़ने की बजाय अपने साथ ही वापिस ले आते हैं. व्हेल की उलटी भी तो एक प्रकार से उसका मल ही तो है. वह बहुत महँगी बिकती है. गड़करी जी ने भी एक बार कहा था कि मनुष्य के मल में सोना पाया जाता है लेकिन यह नहीं बताया कि किस मनुष्य के मल में. दिनकर जी ने भी एक स्थान पर लिखा है- मूल्यवती होती सोने की भस्म यथा सोने से. 
इसका भी शायद यही अर्थ होता हो. पेट में जाने के बाद भक्षित पदार्थ चाहे ऊपर से निकले या नीचे से वह मल ही होता है. जब भक्षित पदार्थ ऊपर से निकलता है तो उसमें अकी गुना अधिक बदबू आती है. व्हेल मछली की की उलटी बहुत कीमती मानी जाती है. बिल्ली को कॉफ़ी के बीजा खिलाये जाते हैं. बाद में कुछ बीज बिन पचे साबुत ह उसके मल में आ जाते हैं. उन बीजों को पीसकर जो कॉफ़ी बनती है वह बहुत महँगी होती है. उसे 'सिवेट' कहते हैं. यह कॉफ़ी कर्णाटक के कुर्ग में बनती है और उसका भाव २०-२५ हजार रूपए किलो होता है.  

'विस्टा' (VISTA) का अर्थ संदर्श होता है और संदर्श नामक एक नरक होता है. इस नरक में पराई स्त्री और पराये अन्न का सेवन करने वाले जाते हैं. और संसद में भी कम से कम एक तिहाई अपराधियों में या तो पराई स्त्री का सेवन करने वाले हैं या पराये अन्न अर्थात भ्रष्टाचार-रिश्वत की कमाई खाने वाले हैं. इस स्थिति में भी हमारे ख़याल से 'विष्ठा' नाम उचित ही है.


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Dec 19, 2020

पीछे से ध्यान रखना


 पीछे से ध्यान रखना 


आज तोताराम ने आते ही कहा- मास्टर, मैं दिल्ली जाना चाहता हूँ. 

हमने कहा- दिल्ली क्या यहीं मंडी के कोने के पास जयपुर रोड़ पर है जो गया और  आया. दिल्ली बहुत दूर है. औलिया ने भी यही कहा था- 'हनूज दिल्ली दूर अस्त' , हालाँकि सन्दर्भ दूसरा था. फिर भी तेरे जैसे अतिसामान्य आदमी के लिए दिल्ली तो दिल्ली, जयपुर ही बहुत दूर है. राजधानियां चतुर और जुगाडू तथा सेवा का धंधा करने वालों के लिए होती हैं जहां सेंट्रली हीटेड कमरों से, दिल्ली बोर्डर पर अपनी फ़रियाद लेकर खुले में पड़े, बरगलाए गए खालिस्तानी तथाकथित किसानों के हित में ज़ारी तीन अध्यादेशों के भावार्थ समझाने के लिए बयान ज़ारी किये जाते हैं.

वैसे यदि ठण्ड से ही मरने का इरादा है तो अपने यहाँ भी रात को 'शीतमान' .५ डिग्री चल रहा है. यहीं रात को चौक में सो जा सवेरे बिना बंदूक के ही बाबा राम सिंह हुआ मिलेगा. 


 






बोला- आज मोदी जी ने अपने स्पष्टीकरण में बताया है कि यह किसान हितैषी कानून अटल जी के समय से ही पिछले २०-२२ वर्षों से विचाराधीन पड़ा हुआ था. किसी ने इसको लागू करने का कष्ट ही नहीं किया. कहीं कूड़े में पड़ा था. अब मोदी जी ने उसकी धूल झाड़-पोंछकर किसान हित में लागू किया है. यह कानून किसानों की ज़िन्दगी ही बदल देगा. सब किसानों की पौ-बारह हो जाएगी. हो जाएगी बल्ले-बल्ले. 

अब विरोधी दल परेशान हैं कि मोदी जी को इस बिल का श्रेय मिल जाएगा. इसलिए किसानों को बरगला कर इस बिल को लागू नहीं होने देना चाहते. लेकिन मोदी जी भी किसान हित के लिए प्रतिबद्ध हैं. कुछ भी हो जाए. पंचों का कहा सिर माथे, पर नाला यहीं गिरेगा. कानूनों में कोई बदलाव नहीं होगा. किसानों के हित का प्रण जो किया है. प्राण जाय पर वचन न जाई. 

हमने पूछा- ठीक है. मोदी जी किसानों का हित कर रहे हैं. कानून वापिस नहीं लेंगे. लेकिन तू वहाँ जाकर क्या करेगा ?

बोला- किसानों को समझाऊँगा. 

हमने कहा- रवि शंकर प्रसाद, राजनाथ सिंह, प्रकाश जावडेकर, नरेन्द्र सिंह तोमर जैसे मनीषी तक नहीं समझा सके तो तू ही क्या कर लेगा. मूरख हृदय न चेत जो गुरु मिले विरंचि सम. 

बोला- हो सकता है मुझ जैसे अनुभवी अध्यापक और गैरराजनीतिक व्यक्ति के समझाने से वे समझ जाएं. 

हमने कहा- तो फिर चला जा. साथ में कम्बल, टोपा, काढ़ा ले जाना. और देख वहाँ नहाने की कोई ज़रूरत नहीं है. मास्क लगाकर रखना. कैसा भी वी आई पी हो, दो गज की दूरी बनाकर रखना. आजकल कोरोना तबलीगियों से ज्यादा, दिल्ली से लेकर फ़्रांस के मेक्रों तक राष्ट्रवादी नेताओं को ही ज्यादा हो रहा है.

बोला- वह तो मैं सब पथ्य-परहेज रख लूंगा लेकिन तू मेरे पीछे से घर का ध्यान रखना.

हमने कहा- घर को क्या खतरा है. तेरे पास चार बर्तनों और गूदड़ों के अलावा और रखा ही क्या है ? और फिर अब तो देश में सुशासन चल रहा है.  

बोला- एक रजाई भी डेढ़-दो हजार की बनती है. जैसा सुशासन है वह तू भी जानता है. राज किसी का भी हो न तो बलात्कार कम होते हैं और न ही कोई चोर पकड़ा जाता है. मोदी जी की भतीजी के मोबाइल की बरामदगी या आज़म खान की भैंसों की बात और है.

सुना है, विश्व हिन्दू परिषद् के स्वयं सेवक १५ जनवरी २०२१ से १५ फरवरी २०२१ तक ११ करोड़ परिवारों के ५० करोड़ लोगों से चंदा इकट्ठा करने के लिए अढाई लाख गांवों में  जाएंगे. साथ ही गांवों के मंदिरों का सर्वेक्षण करेंगे, हर गाँव में जहां भी राम मंदिर नहीं है वहाँ राम मंदिर की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करेंगे. विकास को लाइन के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुँचना चाहिए. सबका साथ, सबका विकास. 

हमने कहा- तो चिंता की क्या बात है ? जो तेरी श्रद्धा हो, मैना से कह जाना, वह दे देगी. 

बोला- बात दो-पाँच रुपए की नहीं है. किसे पता, इन राम भक्तों के बहाने कोई चोर-उचक्का घर में घुसकर कुछ उठा ले जाए. किसी के माथे पर थोड़े ही लिखा है कि यह सच्चा राम भक्त है. भगवा पहनने वाले कई तथाकथित भगवान जेलों में नहीं पड़े हैं ? यह तक भी हो सकता है कि एक भक्त चंदा लेकर जाये और तभी दूसरा आए और कहे चन्दा दो, तो ? 

हमने कहा- कह देना, कल दे दिया मंदिर निर्माण के लिए.

बोला- और जब वह कहेगा कि कोई बात नहीं, उसे निर्माण के लिए दे दिया तो मुझे मंदिर की मरम्मत के लिए दे दो. आज नहीं तो कल मंदिर की मरम्मत भी तो करवानी ही पड़ेगी. बहुत मुश्किल है इनसे बचना. यदि तू मेरे पीछे से ध्यान रखने की गारंटी नहीं दे सकता तो मैं दिल्ली नहीं जाऊँगा. 

हमने कहा- यही ठीक रहेगा. निश्चिन्त रह मोदी जी कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे. जब नोट बंदी से ही कुछ नुकसान नहीं हुआ तो यह भी निबट जाएगा. बात से नहीं तो लात से. 

मोदी है तो मुमकिन है. 

 


 

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किसानों से चर्चा


किसानों से चर्चा 


आज तोताराम बहुत व्यस्त नज़र आ रहा था. गली के मोड़ पर ही दिखाई दे गया.  गरदन को दाईं तरफ झुकाए हुए कान और कंधे के बीच मोबाइल को टिकाये हुए बतियाता हुआ चला आ रहा था.  वैसे मोदी जी के डिजिटल भारत में तो सुबह-सुबह दूधवाला तक दोनों तरफ दो दो ड्रम दूध के लटकाए हुए  चलती मोटर साइकल पर स्मार्ट फोन पर नंबर मिलाते हुए चैट करता दिख जाता है. 


नज़दीक आकर हमारी तरफ हाल-चाल पूछने के अंदाज़ में हाथ को कार के वाइपर की तरह दो बार इधर-उधर हिलाया.

हमने कहा- ठीक है. 

बोला- मोदी जी से बात करनी है है ?

हमने पूछा- तो क्या अभी मोदी जी को ही कोई मार्ग दर्शन दे रहा है ?

बोला- उसके लिए तो उन्होंने २०१४ में ही एक निर्देशक मंडल बना दिया था लेकिन वे खुद इतने सक्षम हैं कि मार्ग दर्शन की जरूरत ही नहीं पड़ी. वे अपना मार्ग खुद बनाते हैं जो इतना नया होता है कि किसी 'चाणक्य के बाप' को भी पता नहीं होता कि यह मार्ग कहाँ जा रहा है ? इसलिए निर्देशक मंडल वाले किसी पद्म पुरस्कार की प्रतीक्षा में उबासियाँ ले रहे हैं. 

अभी तो मैं रवि शंकर प्रसाद जी से बात कर रहा था. 

हमने कहा- वे तो भोलेभाले किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने वाले देशद्रोहियों को दहाड़-दहाड़ कर चुनौती दे रहे हैं. उन्हें तेरे फोन का उत्तर देने के लिए समय कहाँ से मिल गया 

बोला- आजकल उन्हें किसानों को ओपन मार्किट की टेकनोलोजी समझाने और उसके अनुसार उन्हें अधिक से अधिक लाभ दिलाने का काम भी तो मिला हुआ है. सुना नहीं, कल ही उन्होंने पटना के एक किसान की गोभी दस गुना दामों में बिकवा दी. तो मैंने सोचा क्यों न मेरे यहाँ लगी दस-बीस मूलियाँ उनके थ्रू अमरीका में बेच कर कुछ डालर ही कमा  लूँ. 

हमने कहा- लेकिन तू जो मोदी जी से हमारी बात करवा रहा था उसका क्या हुआ ?






बोला- वैसे जहां मोदी जी से बात की बात है तो उनसे बात होती ही रहती है. पहले तो उन्हें अपने  'मन की बात' सुनाने से ही फुर्सत नहीं मिलती थी लेकिन अब उनसे ठण्ड में दिल्ली के बोर्डर पर कष्ट उठा रहे किसानों का दर्द देखा नहीं जाता. इसलिए वे लगातार किसानों से बात कर रहे हैं.  ११ दिसंबर को मन की बात में महाराष्ट्र और राजस्थान के दो किसानों से बात की, १५ दिसंबर को गुजरात में कच्छ के किसानों से चर्चा की और आज मध्य प्रदेश के किसानों से, कोरोना काल में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, वर्चुअल मीटिंग कर रहे हैं .

हमने कहा- तो फिर अपने दरवाजे पर आए हुए पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान के किसानों से बात क्यों नहीं कर लेते. वहाँ तो घूमते-घामते ही जा सकते हैं. यदि उनके लिए संभव नहीं है तो ज़रा पुलिस को अश्रु गैस, पानी की बौछार बंद करने को कह दें तो किसान अपने कल्याण के लिए खुद 'लोक कल्याण मार्ग' तक चलकर आ जाएंगे. राम मंदिर का शिला पूजन, बिहार में रैलियाँ और अब सेंट्रल विष्ठा परियोजना का शिलान्यास करने भी तो गए ही थे. किसानों से मिलने में कोई खतरा तो नहीं होना चाहिए. 

बोला- वे किसानों के हित चिन्तक है. उनका उद्धार करने की योजना बचपन से ही उनके दिल में थी. इसलिए उस चिरप्रतीक्षित किसान कल्याण योजना के तीन कानूनों को तो छोड़ नहीं सकते. इसलिए जब तक ये आतंकवादियों, अर्बन नक्सलियों और देशद्रोहियों द्वारा बहकाए गए किसान बात समझ नहीं जाते तब तक वे देश के अन्य किसानों को समझाने के बहाने इन किसानों को समझाते रहेंगे. ज़रूरत पड़ी तो भाजपा शासित राज्यों के किसानों को ही नहीं, ह्यूस्टन में जहां उनका 'हाउ डी मोदी' कार्यक्रम हुआ था वहाँ के किसानों को भी अपने तीनों किसान कल्याणअध्यादेशों के बारे में समझाते रहेंगे. 

हमने कहा- तोताराम, वास्तव में दूसरों का हित साधने वाले ऐसे दृढ संकल्पित लोगों से पीछा छुड़ाना कोई आसान काम नहीं है. सेवा करने वाला बहुत बुरा होता है. भले ही सेवा करवाते-करवाते  'सेव्य' (जिसकी सेवा की जाती है ) मर ही क्यों न जाए. लेकिन हम तो किसान नहीं हैं. हम उनसे क्या बात करेंगे ? 

बोला- है क्यों नहीं. क्या तू शारदीय और चैत्र नवरात्र में झावली में गेहूँ के झवारे उगाता है या नहीं ?   इनमें भी तो अधिकतर गेहूँ उगाने वाले किसान ही तो हैं. गेहूँ पर ही तो सबसे ज्यादा सबसीडी खर्च होती है. वही तो सबसे ज्यादा खाया जाता है. वही तो सरकारी गोदामों में सबसे ज्यादा सड़ाया जाता है.  कहे तो तुझसे किसी 'अंतर्राष्ट्रीय ब्राह्मण किसान सभा' के दुर्गादास कॉलोनी, सीकर अध्यक्ष के नाते बात करवा दें.

हमने कहा- लेकिन हम तो किसी ऐसी संस्था से पदाधिकारी नहीं हैं.

बोला- बात तो कर ले. संस्था का क्या है बनती रहेगी. अभी किसान कल्याण अध्यादेशों को किसान-हितैषी समझने वाली जिन दस किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों से केंद्रीय कृषि मंत्री से बात की है वे भी तो कल ही बनी हैं. 




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Dec 16, 2020

किछु कहिये, किछु सुनिए


किछु कहिये, किछु सुनिए 


आज तोताराम चुपचाप आकर बरामदे में बैठ गया. यह ठीक है कि हमारे साथ उसके संबंध नितांत अनौपचारिक हैं लेकिन इतने भी नहीं आजकल के पक्के मित्रों की तरह गाली-गलौज करे. कभी सुबह-शाम नमस्ते, प्रणाम कुछ नहीं करता. हम भी बुरा नहीं मानते. हम सब समझते हैं. 

वैसे मौन की भी एक भाषा होती ही है. जैसे कि चाहे गौ सेवकों द्वारा मोब लिंचिंग हो या 'गोली मारो सालों को' जैसा सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने वाला मन्त्र हो या किसी को वन्दे मातरम न कहने पर कब्रिस्तान भेजने जैसा प्रेम-सन्देश हो या पानी की बौछार सहकर और बेरिकेड और खंदक-खाइयां पार करके दिल्ली पहुंचे किसानों की समस्या हो मोदी जी मनमोहन जी से भी दो कदम आगे बढ़कर अपने मौन से ही उत्तर दे देते हैं. पता नहीं, वे वास्तव में कितना समझे हैं, समझते हैं या नहीं समझे; कुछ भी कह कर हम किसीको  उनकी संवेदनशीलता और समझ पर शंका का अवसर देकर अपने लिए आफत मोल नहीं लेना चाहते. ठीक भी है, हम कौन 'आई प्लस' सुरक्षा प्राप्त कंगना रानावत हैं.  

हमें मोदी और मनमोहन जी की तरह इस मौन की भाषा में संवाद करने का अभ्यास नहीं है सो अहंकार छोड़ अपनी ओर से ही शुरुआत की, कहा- क्या बात है ? क्या मौन  विरोध-प्रदर्शन के लिए आया हुआ है ? तुझे पता होना चाहिए कि संवाद ही लोकतंत्र का प्राण है. संसद के नए भवन का शिलान्यास करते हुए मोदी जी ने गुरु नानक को क्या खूब कोट किया है- 
जब लग दुनिया रहिये नानक 
किछु सुनिए , किछु कहिये.





बोला- कहना सरल है, आचरण बहुत कठिन है. कबीर कहते हैं- 

कथनी मीठी खांड सी करनी बिस की लोय
कथनी तज करनी करे तो बिस अमरित होय.

और तू कौन सा मोदी जी से कम है. उन्होंने किसानों के लिए अध्यादेश लाते समय किसी किसान से नहीं पूछा. यह कौनसा सर्जिकल स्ट्राइक की तरह अर्जेंट था. पूछ लेते, बात कर लेते और फिर यदि कोई ज़रूरी और देश हित की बात है तो बना लेते कानून. किसान भी तो इसी देश के नागरिक हैं. कोई दुश्मन थोड़े ही हैं. और दुश्मन से भी बात नहीं करोगे तो वह दुश्मन ही बना रहेगा. अरे, 'हंड्रेड ईयर्स वार' वाले फ़्रांस और इंग्लैण्ड दोस्त हो सकते हैं लेकिन अपने ही देश-भाइयों से बात करने का समय नहीं और अब भी कौन सुलह-संवाद का सन्देश दे रहे हैं. 

हमने कहा- लेकिन हमने ऐसा क्या कर दिया जो तू नाराज़ है ?

बोला- मैंने घर में घुसने से पहले सुन लिया, तू भाभी से कह रहा था कि आज से चाय में चीनी मत डाला कर. मेरी सहमति के बिना मेरे बारे में इतना बड़ा निर्णय ले लेना क्या छोटी बात है ? जब तक फीकी चाय के इस अध्यादेश को वापिस नहीं लिया जाएगा मैं इसी तरह बरामदे में सिर झुकाए बैठा रहूँगा.   

हमने पत्नी से कहा- हम तो सोचते थे कि अब चीनी बंद करने का टाइम आ गया लेकिन कोई बात नहीं डाल देना दो चम्मच, इस सत्याग्रही की चाय में. सरकार की तरह हमारे लिए यह कौन-सा नाक का सवाल है. 




 

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Dec 9, 2020

चक्कर उर्फ़ लोकतंत्र की घूमर


चक्कर उर्फ़ लोकतंत्र की घूमर 



सच्चा और प्रतिबद्ध धावक अपनी खेल भावना के कारण जिस चोर को पकड़ने के लिए दौड़ता है उससे आगे निकल जाता है. जनता को कन्फ्यूज़ करने वाला सेवक जब अपने सेवा भाव से आत्मसात हो जाता है तो वह खुद ही कन्फ्यूज़ होकर पूरे देश-काल को कन्फ्यूज़ कर देता है. इतिहास में दुनिया के सभी समाजों और देशों में  ऐसे कन्फ्यूज़न-काल आते-जाते रहते हैं. आजकल दुनिया में ऐसा ही अष्टग्रही अभिजित योग चल रहा है. अमरीका के राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप और बेडेन में से रूस और चीन किसके पक्ष-विपक्ष में क्या भूमिका निभा रहे हैं यह चीन-रूस और बेडेन-ट्रंप किसी को भी नहीं मालूम. और तो और, अमरीका की जनता को भी नहीं मालूम कि पहले ट्रंप क्यों जीत गया और अब मोदी जी के 'अब की बार : ट्रंप सरकार' के नारे के बावजूद बेडेन कैसे जीत गए. शायद अगले चुनाव तक अमरीका की जनता यह समझ न पाए कि अमरीका का राष्ट्रपति कौन है- बेडेन या ट्रंप. 

ऐसे में यदि तोताराम हमसे पूछे तो हम क्या ज़वाब दें. वैसे जहां तक ज़वाब की बात है तो मोदी जी प्रश्न पूछने वालों को मुंह नहीं लगाते फिर भी यदि कभी रात में नींद खुल जाती होगी और सोचते होंगे तो वे भी समझ नहीं पाते होंगे कि 'नोट बंदी' क्यों की ? 

सो तोताराम ने पूछा- मास्टर, यह क्या चक्कर है ? 

हमने कहा- तोताराम, चक्कर ही एक ऐसी पहेली है जो किसी को समझ नहीं आती. हम पूरी तरह श्योर तो नहीं हैं फिर भी यदि किसी भगवान ने यह दुनिया, गृह-नक्षत्र बनाए हैं तो वह भी सोचता होगा कि यह क्या चक्कर है ? चन्द्रमा अपनी धुरी पर घूमता हुआ भी पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा है.  पृथ्वी अपने चारों ओर घूमते चाँद को साथ  लिए-लिए अपनी धुरी पर घूमती हुई सूरज के चारों और भी घूम रही है. यही हाल सूरज का है. वह भी अपने सौर-मंडल के साथ किसी और के चारों तरफ घूम रहा है. अंततः यह आकाश गंगा भी पता नहीं किसके चारों ओर घूम रही है ? और फिर चक्र तो एक ही है. वही रास्ता, वे ही स्टेशन. घूमने-घुमाने वाले सब बोर लेकिन सिलसिला बदस्तूर चालू है. 





बस, यह चक्र ही चक्कर है. कोई एक सिरा नहीं, कोई अंत नहीं. जैसे शून्य. शून्य बनाओ तो कुछ पता ही नहीं चलता. कहीं से शुरू और कहीं भी ख़त्म. फिर भी ख़त्म नहीं. यह कोई भारतीय लोकतंत्र थोड़े ही है जो एक सेवक से शुरू होकर एक सेवक पर ही समाप्त हो जाता है. यह तो लोकतंत्र की अनंत घूमर है. लोग घूम-घूमकर चक्कर खाकर गिरते हैं, नए लोग शामिल होते है. घूमर चलती रहती है. कभी नायिका घूँघट में होती है तो कभी घूमते-घूमते घूँघट उघड़ जाता है. नायिका फिर घूँघट कर लेती है. 

तोताराम हमारे चरणों में गिर पड़ा, बोला- आदरणीय, आपके इस घुमावदार शब्दों के घाघरे की घूमर में मेरा तो दिल-दिमाग सब घूम गए हैं. अब यह जीवनचक्र आपके चरणों में अपने अंत को प्राप्त हुआ चाहता है. 

हमने कहा- बंधु, हम भारत के आध्यात्मिक प्राणी हैं. हम पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं. जैसे ही एक देह छूटी तत्काल दूसरी देह प्राप्त. और पुनः जीवन चक्र शुरू. अतः उठ और महानायक की तरह पुनः-पुनः 'अग्नि पथ.......अग्नि पथ....

बोला- लेकिन यह चक्राकार चक्कर ? 

हमने पूछा- कौन-सा चक्कर ? जन्म-मरण का, घूमर का, लोकतंत्र का, ट्रंप और बेडेन का, 

बोला- मेरा चक्कर इतना बड़ा नहीं है, मैं तो जानना चाहता हूँ कि पहले नोट बंदी, फिर तालाबंदी, फिर नज़रबंदी, और अब भारत-बंदी. आखिर किसे, क्या चाहिए ? 

हमने कहा- किसान इतना अनाज उपजाते हैं कि सरकार कितना ख़रीदे, कहाँ रखे. अब सरकार कहती है जहां चाहे बेचो, हमने तुमको मुक्त किया.  शास्त्री जी ने नारा दिया- जय जवान, जय किसान. फिर अटल जी जोड़ा 'जय विज्ञान' अब मोदी जी ने तुक मिलाई- 'जय अनुसन्धान' . अब इतने अनुसन्धान हो गए कि उत्पादन संभल ही नहीं रहा है. अब तो इसे बदलकर कर देना चाहिए-

जा किसान : छोड़ जान' . 

बोला- लेकिन किसान कोई यहीं थोड़े हैं, सारी दुनिया में किसान हैं. सभी उत्पादन करते हैं. उद्योग प्रधान देश भी अपने किसानों को सब्सीडी देकर अनाज उगाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. कोई भी देश हथियार, मोबाइल और कम्प्यूटर तो नहीं खा सकता. और भारत तो वैसे भी कृषि प्रधान देश है. कोई भी सरकार सभी लोगों को नौकरी नहीं दे सकती. खेती में छोटे-बड़े सभी का गुज़ारा हो जाता है. भगवान राम तक के राज्य में क्या सबको नौकरी मिल जाती थी ? अब ये किसान दिल्ली आकर बैठे हैं. सब अपनी-अपनी पेले जा रहे हैं. बात होती है, गतिरोध होता है, वार्ता भंग होती है, फिर शुरू होती है. कभी बात बंद, कभी भारत बंद. यह क्या चक्कर है ?आखिर यह कृषि बिल है क्या ? 

हमने कहा- हमने तो पहले ही तुझे कह दिया था यह खुद दोनों फरीकों तक को समझ नहीं आता.

बोला- फिर भी तू मास्टर है, तू ही नहीं समझ-समझा सकता तो किसी से क्या उम्मीद करें 

हमने कहा- नए कृषि कानून में किसानों के लिए क्या-क्या अच्छी बातें हैं उन्हें समझने के लिए कपिल सिब्बल का ४ दिसंबर २०१२ का संसद में दिया भाषण सुन ले और इस बिल में किसानों के लिए क्या नुकसानदायक है इसे समझने के लिए उसी दिन कपिल सिब्बल को दिया गया अरुण जेटली का ज़वाब सुन ले.

बोला- यह क्या बात हुई ? बात आज की और ज़वाब भूतकाल में. २०१२ में तो कांग्रेस की सरकार थी और यह बिल अब लाई है भाजपा.  कांग्रेस का ज़वाब भाजपा का ज़वाब कैसे हो सकता है ? 

हमने कहा- यही तो लोकतंत्र की घूमर के चक्कर की विशेषता है. पलट-पलट कर वे ही मुद्दे और वे प्रश्न. कभी भाजपा की ओर से तो कभी कांग्रेस की ओर से. उत्तर किसी के पास नहीं है. सबको अपनी प्रशंसा करनी है और दूसरे की निंदा. काम वही करना है क्योंकि कोई भी वास्तव में खेती नहीं करता. सब खेत में से चोरी का अन्न खाने वाले चूहे हैं. 

और चूहे कहाँ रहते हैं ?

बोला- बिल में. 

हमने कहा- यही इस चक्कर का उत्तर है. अगर अब भी समझ नहीं आता तो बैठ, एक कविता सुनाते हैं.

बोला- क्षमा करें, अभी २९ नवम्बर को सुनी 'मन की बात'  का भावार्थ समझना ही शेष है.  




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Dec 8, 2020

कुत्ता-क्रीड़ा

कुत्ता-क्रीड़ा


भेड़िये का वंशज आज का कुत्ता मनुष्य का सबसे पुराना साथी है. पत्नी और दोस्त साथ छोड़ दें लेकिन कुत्ता साथ नहीं छोड़ता. युधिष्ठिर के साथ चले चारों भाई और द्रौपदी सब बिछड़ गए लेकिन कुत्ता अंत तक उनके साथ रहा. कहते हैं वह कुत्ता धर्मराज था. धर्म की ऐसी दुर्गति भारत जैसे धर्म-प्रधान देश में ही देखने को मिल सकती है. राजा के साथ रहने के लिए देवता को भी कुत्ता बन जाना पड़ता है. पता नहीं, हर समय राजा के साथ बने रहने वाले मंत्रियों की क्या दुर्दशा होती होगी. हमें तो राजा के निकट रहने का अवसर कभी नहीं मिला. तब इसे दुर्भाग्य मानते थे. अब लगता है, मरना तो मंत्री ही क्या, राजा को भी पड़ता है तो फिर इस 'कुत्तापन' से क्या फायदा. भगवान ने उस भारत भूमि में जन्म दिया है जहां जन्म लेने के लिए देवता भी तरसते हैं तो फिर क्यों कुत्ता बनें. 

सुनते हैं अमरीका के सभी राष्ट्रपति प्रायः कुत्ता बिल्ली रखते ही हैं. बुश जूनियर की बिल्ली का नाम 'इण्डिया' था. कुछ देशभक्त भारतीयों ने इसे देश का अपमान समझकर एक-दो ने अपने शौचालय का नाम 'व्हाईट हाउस' रख लिया. हालांकि उस बिल्ली का नाम बेसबाल के प्रसिद्ध खिलाड़ी अल इन्डियो के नाम पर रखा गया था. लेकिन आस्था का धंधा करने वालों को इतना सोचने का समय कहाँ ? आस्था का धंधा सोच-विचार से नहीं होता. वह तो होश खोकर ही होता है. 

अमरीका में ट्रंप ही शायद ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं जिन्होंने कुत्ते-बिल्ली नहीं पाले. प्रेमिकाएं पटाने से ही फुर्सत नहीं मिली. और फिर कुत्ते-बिल्ली रखने की ज़रूरत ही क्या है, जब वे अपने मातहतों और विरोधियों को कुत्तों की तरह डांटने का साहस रखते हैं.

इस मामले में अपने मोदी जी भी का काम भी साफ़ सुथरा है. न कुत्ते पालते और न ही बिल्लियाँ. कभी मन हुआ तो मोर को दाना दे दिया. जब किसी को पाल लिया जाता है तो बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है. दुनिया घूमना तो दूर, दो दिन के लिए भी कहीं जाओ तो किसी जिम्मेदार आदमी को काम सौंपना पड़ता है. होने कोट को तो अमरीका की तर्ज़ पर यहाँ भी कुत्तों के होस्टल शुरू हो गए हैं लेकिन हर किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता. वैसे भी देश सेवा करने वाले को ये झंझट नहीं पालने चाहियें.   

जब हम किसी को पाल लेते हैं तो चाहे वह कुत्ता ही क्यों न हो, केवल रोटी का टुकड़ा फेंक देने से ही काम नहीं चलता. उसकी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक सभी प्रकार की ज़रूरतों का ध्यान रखना पड़ता है. यदि साहित्यिक रुचि का हुआ तो उसके लिए हास्य कवि गोष्ठी तक का प्रबंध करना पड़ता है.

अमरीका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति बेडेन ठहरे गंभीर व्यक्ति. ट्रंप साहब की तरह मजाक-मसखरी करके तो समय बिता नहीं सकते. दूसरी पत्नी भी पहली के निधन के बाद रखनी पड़ी. उसी के साथ ईमानदारी से पिछले ३३ वर्षों से शांति से निभा रहे हैं. अब कुत्तों के साथ न खेलेंगे तो क्या किसी मॉडल से मन बहलाएँगे ?  

जैसे ही तोताराम आया हमने कहा- तोताराम, आदमी को अपनी उम्र के हिसाब से खेल और शौक पालने चाहियें. अब खा बैठे ना मोच. 

बोला- कौन ? 

हमने कहा- और कौन ? बेडेन साहब. 

ट्रंप की बात और है. वे तो वैसे भी युवा हैं. और १ अक्तूबर को कोरोना से संक्रमित होने के बाद एक प्रयोगात्मक एंटीबाडी दवा के मिश्रण से उपचार के बाद खुद को स्वस्थ घोषित कर दिया. अब कह रहे हैं कि मुझे सुपर मैन की तरह महसूस हो रहा है. अब मुझमें रोग प्रतिरोधक क्षमता है और मैं नीचे आकर किसी को भी चूम सकता हूँ. 

बोला- इसीलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है  

लायक ही सों कीजिए ब्याह बैर अरु प्रीत 
काटे  चाटे  श्वान  के  दुहूँ  भाँति  विपरीत  

अब शपथ ग्रहण क्या क्या मज़ा रह गया ? किसी के कंधे का सहारा लेकर लंगड़ाते हुए जाएंगे पोडियम पर. अगर खुदा न खास्ता 'मेजर' (कुत्ते का नाम) काट लेता तो चौदह इंजेक्शन लगते. 

पाल ही लिया है तो कोई बात नहीं. अब उसके साथ खेलना, भागना दौड़ना उचित नहीं है. अब उन्हें यह सब करने की क्या ज़रूरत है. सैंकड़ों बड़े-बड़े अधिकारी उपलब्ध होंगे. कुत्ते-बिल्लियों की सेवा करने के विशेषज्ञ ही नहीं बल्कि मक्खी-मच्छर उड़ाने वाले कमांडो तक मिलेंगे. 

Biden dog

हमने कहा- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आजकल के राजा होते हैं और राजा के पास हर समय कोई न कोई दुम हिलाने वाला होना बहुत ज़रूरी है. इसीसे उसे अपने राजा होने का अहसास होता रहता है.  कुत्ता इज मस्ट. 

बोला- उसके लिए कुत्ते पालने की क्या ज़रूरत है. अपने मंत्रीमंडल में सभी व्यक्तित्त्वहीन मंत्री रखो जो हर समय कुत्ते से भी अधिक दुम हिलाएं. आप जो कहो उसे ही दोहराते रहें. हरदम हाँ में हाँ मिलाएं. 

हमने कहा- लेकिन ऐसे हाँ में हाँ मिलाने वाले कुत्तेनुमा मंत्री बड़े खतरनाक होते हैं. कहीं ज़रा सा भी लालच मिला तो ये सबसे पहले खिसकने वाले होते हैं. कुत्ता तो फिर भी मालिक के लिए जान लड़ा देगा. 











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Dec 7, 2020

उलटा जुआरी चौकीदार को डांटे


उलटा जुआरी चौकीदार को डांटे

जैसे ही तोताराम के हाथ में चाय का गिलास दिया तो बोला- क्या ज़माना आ गया है, उलटा जुआरी चौकीदार के डांटे. 

हमने कहा- लगता है आजकल तेरे जैसे हिंदी अध्यापक उत्तर प्रदेश में हिंदी पढ़ा रहे हैं जो वहाँ इस साल अंग्रेजी और गणित से भी अधिक बच्चे हिंदी में फेल हुए हैं. पता नहीं तू ने क्या पढ़ाया होगा बच्चों को चालीस साल ? इस मुहावरे को सुनकर तो सरकार को तेरी पेंशन बंद कर देनी चाहिए.

बोला- मुझे मुहावरे से ज्यादा सत्य की फ़िक्र है. हमारी सरकार का तो ध्येय वाक्य ही है- सत्यमेव जयते. मोदी जी ऐसे प्रतिबद्ध चिकित्सक हैं कि कोई मर्ज़ लेकर अस्पताल आए या नहीं लेकिन वे किसी को भी पकड़कर ज़बरदस्ती उसका ओपरेशन कर देते हैं. यदि व्यक्ति सावधान नहीं रहे तो दांत दर्द के मरीज के साथ आने वाले की ही दाढ़ निकला दें.   जब से चौकीदार बने हैं. किसी की हिम्मत नहीं कि इस देश की तरफ कोई आँख उठाकर भी देख सके. ऐसे भले चौकीदार को देशद्रोही राजनीतिक दल, विदेशी दुश्मन और हमारी उन्नति से जलने वाले विदेशियों के बहकाने पर ये जुआरी दिल्ली पर कब्ज़ा करने आ गए. अरे, जब जनता ने हमें सब कुछ कर सकने लायक बहुमत दिया है तो जो हम उचित समझते हैं कर रहे हैं. जब जनता तुम्हें बहुमत दे तो तुम भी कर लेना अपने मन की.

हमने कहा- तोताराम, मोदी जी प्रतिबद्ध सेवक हैं और ज़बरदस्ती सेवा भी कर रहे हैं और आगे भी हर हाल में सेवा करते ही रहेंगे लेकिन जो दिल्ली में आन्दोलन, धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं वे तो किसान हैं, जुआरी थोड़े ही हैं. 


 






बोला- तू ने पढ़ा नहीं, खेती को मानसून का जुआ कहा गया है और किसान कौन होता है. उस जुए को खेलने वाला. इन्हें तो जुआ खेलने के अपराध में जेल भेज देना चाहिए. चलो माफ़ भी कर दें लेकिन जुआ खेलेंगे खुद मगर उसमें कम से कम एक निश्चित कमाई ज़रूर होनी चाहिए. अब जुआ तो भाग्य की बात. हार जीत होती रहती है. जुआ खेला है तो भुगतो भी तुम खुद ही. कभी कोई दारू बनाने वाला, पीने वाला, फिल्म वाला, बिल्डर, मोबाईल वाला कभी समर्थन मूल्य के लिए नहीं आता. किसने कहा है खेती करो. कहते हैं सरकार ने उनसे बिना पूछे कानून बना दिए. और कोई पूछे, तुमने क्या सरकार से पूछकर खेती करना शुरू किया था ? 

हमने कहा- तोताराम, हमें लगता है यह सब नेहरू और इंदिरा की गलती है. जब देश आज़ाद हुआ था तब इतना अनाज पैदा ही नहीं होता था कि बेचने के लिए दर-दर भटकना पड़े. तब कभी किसी ने समर्थन मूल्य जैसी बात ही नहीं की. आन्दोलन की तो  बात ही दूर. उन्होंने सिंचाई के लिए बाँध, नहरें, खाद, कीटनाशक, उन्नत बीज आदि हजार खुराफातें करके किसानों को इतना अन्न उपजाने योग्य और समर्थ बना दिया कि ये ट्रेक्टरों, कारों में लद कर, छह महिने का राशन-पानी लेकर आ डटे हैं. ये तो भूखे मरते ही भले थे. जब इनको बाज़ार और बड़ी-बड़ी कंपनियों के हवाले कर दिया जाएगा तब नानी याद आ जाएगी.

बोला- मास्टर, तू वास्तव में जीनियस है. यह तर्क तो खुद मोदी जी के ध्यान में भी नहीं आया होगा. कहे तो बात करूं तुझे मंत्रीमंडल में शामिल करने के लिए. 

हमने कहा- हमसे बोले बिना रहा नहीं जाएगा तो मंत्रिमंडल कितने दिन टिक पाएंगे ? अच्छा है, यहीं बने रहें. जैसी भी है, इज्ज़त तो है बची हुई है. हाँ, यदि चाहे तो किसानों तक हमारी एक राय ज़रूर पहुंचा दे. शायद उन्हें समझ आ जाए.  सरकार और किसानों दोनों का भरम ढंका रह जाए. 

बोला- किसी ज़माने में अपने राजस्थान के भैंरोंसिंह शेखावत संकट मोचक हुआ करते थे, अब पीयूष गोयल हैं जिन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा है. हो सकता है, तेरी राय से सरकार का संकट दूर हो जाए तो वह निश्चिन्त होकर मनमाना विकास कर सके. 

हमने कहा- किसानों से कह दे कि वे गेहूँ और चावल की खेती बंद कर दें तो सब्सीडी का चक्कर ही नहीं रहेगा. ये दोनों अनाज नेहरू-इंदिरा के षड्यंत्र के कारण ज़रूरत से ज्यादा हो गए हैं. सरकार के पास गोदामों में रखने के लिए जगह नहीं है. बेकार सड़ा-सड़ा फिंकवाना पड़ता है. यदि कभी ज़रूरत हुई तो दुनिया में अनाज की कमी है क्या ? मंगवा लेंगे. 

बोला- तो फिर किसान किसकी खेती करें ?

हमने कहा- कमल की खेती करें. उसके लिए किसी तैयारी की ज़रूरत नहीं है. देश में जगह-जगह, तरह-तरह का कीचड़ फैला हुआ है. बस, उसे सूखने मत दो तो कमल अपने आप ही खिलने लगेंगे. देश के जिन राज्यों में कमल की खेती होती है वहाँ से कोई विरोध, आन्दोलन नहीं. लोग मज़े से लव-जिहाद प्रतिषेध, मंदिर-मूर्ति निर्माण, दीप प्रज्ज्वलन प्रतियोगिता कर रहे हैं. अपराध, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अशिक्षा, बीमारी सब समाप्त.  कमल पर लक्ष्मी आ बैठेगी तो समृद्धि का कोई ओर-छोर नहीं रहेगा. 

बोला- लेकिन कमल भी कई तरह के होते हैं. किस रंग के कमल की खेती ठीक रहेगी ?

हमने कहा- देखो हरा रंग तो देशद्रोहियों का है, नीला नीचों का है, लाल रंग नक्सलियों का है, सफ़ेद कोई रंग होता नहीं. मेरे ख़याल से भगवा रंग के कमल की खेती ठीक रहेगी. 

बोला- लेकिन भगवा रंग का कमल तो आज तक देखा-सुना नहीं. 

हमने कहा- जब काला गुलाब विकसित किया जा सकता है तो भगवा कमल विकसित करना क्या मुश्किल है. आदमी लगा रहे तो समुद्र और आकाश, वनस्पति सभी को नीले और हरे से बदल कर भगवा किया जा सकता है. 

बोला- तो चलता हूँ. अब तो चाय दिल्ली से लौटकर ही पिऊंगा. 

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तोताराम का नाम परिवर्तन

तोताराम का नाम परिवर्तन 

आज दिल्ली के किसान आन्दोलन की गरमाहट हमारे सीकर तक आ पहुंची. परिणामस्वरूप 'शीतमान' तीन डिग्री 'तापमान' की तरफ झुक गया. सुबह में ठिठुरन नहीं थी. तोताराम भी थोड़ा देर से आया. हम चाय पी चुके थे. 

वैसे सामान्य रूप से हमारा नाश्ते का समय नहीं हुआ. लेकिन बहू ने मूली के पराँठे बनाए; बोली- पिताजी, गरम-गरम ही खा लें. बाद में मज़ा नहीं आएगा. सो जैसे ही परांठे का एक कौर तोड़ा तो तोताराम ने व्यवधान डाल दिया, बोला-  मोदी जी को पंजाब के देशद्रोही किसान चैन नहीं लेने दे रहे हैं और तुझे सुबह-सुबह चटखारे सूझ रहे हैं. 

हमने कहा- यह कोई ३० हजार रुपए का हिमालय में होने वाला मोदी जी का प्रिय मशरूम थोड़े ही है. सबसे सस्ती सब्जी मूली के परांठे ही तो हैं.

हमने बहू को आवाज़ दी- बेटा, एक पराँठा सौभाग्य सिंह जी के लिए भी लाना.

तोताराम ने इधर-उधर झांकते हुए पूछा- क्या कोई मेहमान आया हुआ है ? 

हमने कहा- तेरे अलावा यहाँ आने की हिम्मत किसकी है ? यह सौभाग्य सिंह नाम तो हमने तेरा रख दिया है.

बोला- इससे क्या होगा ?

हमने कहा- हमें पता नहीं. यह तो योगी जी ही बता सकते हैं जिन्होंने फ़ैजाबाद का नाम अयोध्या और इलाहाबाद का नाम प्रयागराज रख दिया है और अब जीत गए तो हैदराबाद के लोगों का भाग्य जगाने के लिए उसका नाम 'भाग्यनगर' रखने जा रहे हैं. हाँ, तेरे नाम में हमारा एक स्वार्थ ज़रूर है. 

बोला- मेरे नाम में तेरा क्या स्वार्थ हो सकता है ?

हमने कहा- पहले इस नई शताब्दी के शुरू में जब हम अपने प्रिय अखबार में कालम लिखा करते थे तो एक आलेख के एक सौ रुपए मिला करते थे. इसके बाद से जब हमने  तेरे साथ संवाद के रूप में आलेख लिखना शुरू किया तो एक ही झटके में  ५०% की कटौती कर दी गई. यह तेरे नाम का दुष्प्रभाव नहीं तो और क्या है ? अब तेरी जगह 'सौभाग्य सिंह' के साथ संवाद करते हुए आलेख लिख कर भेजते हैं. यदि पेमेंट में कुछ सुधार हुआ तो तेरा नाम 'सौभाग्य सिंह' स्थायी कर देंगे. 

बोला- तो फिर मेरा नाम मुकेश अम्बानी रख दे. क्या पता, तेरे नहीं तो मेरे दिन ही फिर जाएं.  और जहां तक आलेख की बात है तो पारिश्रमिक नाम से नहीं आलेख की गुणवत्ता के अनुसार मिलता है. 

हमने कहा- और तू भी अपने बारे में सुन ले. तेरा नाम मुकेश अम्बानी रखने पर भी मोदी जी तुझसे गले मिलने वाले नहीं हैं.  वे भी दाम वाले या दम वाले से मिलते हैं फिर चाहे वह 'शी जिन पिंग' हो या ट्रंप. 

बोला- कहीं इसमें 'शी' का तो कोई रोल नहीं है.

हमने कहा- चुप, मोदी जी को ऐसी बातें पसंद नहीं. ट्रंप की बात और है. 



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Dec 3, 2020

सबसे बड़ा हितैषी और सबसे बड़ा मूर्ख


सबसे बड़ा हितैषी और सबसे बड़ा मूर्ख 


आज जैसे ही तोताराम आया, हमने उसके सामने उसी तरह फिटनेस चेलेंज फेंका जैसे विराट कोहली ने मोदी जी के सम्मुख निवेदित किया था. कहा- चाय तब मिलेगी जब मेरे दो प्रश्नों का सही-सही उत्तर दे देगा.

प्रश्न है, एक- संसार में सबसे बड़ा हितैषी कौन है ?  दो- संसार में सबसे बड़ा मूर्ख कौन है ?

बोला- ये बातें देश, काल, पार्टी, सरकार, भाग्य आदि सापेक्ष होती हैं. एक शब्द में उत्तर नहीं दिया जा सकता. जैसे हर कुत्ता अपनी गली में शेर होता है और दूसरे की गली में लेंडी कुत्ता. जैसे भाजपा शासन में कोई भी कंगना रानावत शेरनी और एक्टिविस्ट हो सकती है और सत्ता का समर्थन न हो तो अच्छी भली रिया चक्रवर्ती गोदी मीडिया द्वारा अपराधी बना दी जाती है. अस्सी साल के एक कवि को जेल में सड़ाया जा सकता है तो किसी को डेढ़ कविता पर पद्मश्री दी जा सकती है. वैसे ही देश-काल के अनुसार हितैषी, दुश्मन, मूर्ख और बुद्धिमान सिद्ध होते हैं. जैसे हवा का रुख पहचानने में रामविलास पासवान सबसे बुद्धिमान थे. सरकार किसी की रही पासवान जी उसके पास-पास ही पाए गए.  किसी ज़माने में १९६४ के बाद तारकेश्वरी सिन्हा जिस भी पार्टी में गई उसकी लुटिया डूबी. अब बता तू किसके सन्दर्भ में पूछ रहा है ?

हमने कहा- हमने तो सीधा सा प्रश्न पूछा था लेकिन तू भारतीय राजनीति का इतिहास सुनाने लगा. भूतकाल बीत गया. भविष्य ताली बजाने वाले देशभक्तों के अतिरिक्त सबका अंधकारमय है इसलिए आज के सन्दर्भ में ही बता.

बोला- सबसे बड़े हितैषी मोदी जी हैं और पंजाब के किसान तथा हिन्दू लड़कियां सबसे बड़ी मूर्ख.




हमने पूछा- कैसे ?

बोला- वे सबके मन की बात समझते हैं. लोग भले ही उनकी व्यस्तता और भलमनसाहत के कारण कुछ निवेदन नहीं करते लेकिन वे किसी न किसी तरह सब की आवश्यकता, इच्छा और भले के बारे में समझ जाते हैं. लोग मना करते रहते हैं तो भी वे उनका भला करके ही मानते हैं. जब तक भला नहीं कर देते तब तक न खुद चैन लेते हैं और न ही सामने वाले को चैन लेने देते हैं.

हमने कहा- मलतब सच्चे बालचर हैं, स्काउट. 

बोला- कैसे ?

हमने कहा- आजकल तो खैर, स्काउटों की गतिविधियाँ परिंडे बाँधते हुए फोटो छपवाने के अलावा कुछ रह नहीं गई हैं लेकिन आज़ादी के तत्काल बाद जब स्कूलों में स्काउटिंग शुरू हुई थी तब बच्चे परोपकार को बहुत गंभीरता से लेते थे. एक दिन स्काउट मास्टर ने बताया- रोज भलाई का एक काम किया करो. बच्चों को भलाई-बुराई का भी पता नहीं हुआ करता था. मास्टर ने बताया जैसे किसी बूढ़े, विकलांग को सड़क पार करवाना  आदि. 

दूसरे दिन एक बच्चा देर से स्कूल आया. मास्टर ने देर का कारण पूछा तो बच्चा बोला- सर, भलाई का काम कर रहा था. एक बूढ़े आदमी को सड़क पार करवा रहा था.
मास्टर ने कहा-लेकिन सड़क पर करवाने में इतनी देर थोड़े लगती है ! बच्चे ने कहा- लेकिन सर, वह बूढ़ा सड़क पार करना ही नहीं चाहता था. बड़ी मुश्किल से ज़बरदस्ती पार करवाई. 

तो ऐसा होता है सबसे बड़ा हितैषी.

बोला- सही पकड़े हैं. 

हमने कहा- गंभीर बातों को 'भाभीजी घर पर हैं' सीरियल की तरह मज़ाक में मत उड़ाया कर. अच्छा अब सबसे मूर्ख वर्ग की भी व्याख्या कर दे.

बोला- हिन्दू लड़कियां सबसे मूर्ख होती हैं. वे चाहे डाक्टर, इंजीयर, मंत्री, वैज्ञानिक, लेखक, कलाकार कुछ भी बन जाएं लेकिन उनमें कभी भी अपने लिए उचित वर चुनने की अक्ल नहीं आ सकती. वे चालाक मुस्लिम लड़कों के चक्कर में फंस जाती हैं जो  ज़बरदस्ती उनका धर्म परिवर्तन करवा कर अधिक से अधिक मुसलमान बच्चे पैदा करते हैं और राष्ट्र के जनसंख्या संतुलन को दुष्प्रभावित करते हैं. 

हमने कहा- तो क्या सिकंदर बख्त, एम.जे.अकबर, शाहनवाज़ हुसैन और मुख्तार अब्बास नक़वी के शादी करने वाली लड़कियां मूर्ख थीं ?

बोला- नहीं वे मूर्ख नहीं थीं क्योंकि उन्होंने देश भक्त मुसलमानों से शादी की थी या फिर अपने प्रभाव से उन्हें देशभक्त बना दिया. 

हमने कहा- अच्छा है, अब सरकार उनको संकट से बचाने के लिए 'लव जिहाद' विरोधी कानून ले आई है.  हाँ, अब यह भी बता दे कि पंजाब के किसान सबसे मूर्ख कैसे हैं ?

बोला- जो अपना भला-बुरा भी नहीं समझता वह मूर्ख नहीं तो और क्या है ? 

हमने कहा- यह तो वही बात हो गई कि एक मरीज को डाक्टर ने मृत बताकर मोर्चरी में ले जाने के लिए कह दिया. रास्ते में वह स्ट्रेचर पर उठ बैठा और पूछने लगा- मुझे कहाँ ले जा रहे हो ?

कर्मचारी ने कहा- मुर्दा घर.

-क्यों ?

-क्योंकि तुम मर गए हो.

-लेकिन मैं तो जिंदा हूँ.

कर्मचारी ने उसे ज़बरदस्ती लिटाते हुए कहा- डाक्टर वह है या तू ?

 तो किसानों को समझ लेना चाहिए कि प्रधान सेवक मोदी जी हैं, सेवा और हित करने की ज़िम्मेदारी उनकी है. अपना हित चुपचाप नहीं करवाएंगे तो ज़बरदस्ती करना पड़ेगा लेकिन किया ज़रूर जाएगा. 













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Dec 1, 2020

देव दिवाली की चकाचौंध

देव दिवाली की चकाचौंध 
 


आजकल हमारे यहाँ का शीतमान ५ डिग्री चल रहा है. शीतमान इसलिए कि ५ डिग्री में ताप कहाँ होता है ?  हमने कुछ तो अपनी उम्र और कुछ मोदी जी की नसीहत को ध्यान में रखते हुए घर से निकलना बंद कर रखा है. सर्दी का अतिरिक्त एहतियात बरतते हैं. क्या पता कब जुकाम की आड़ में कोरोना लपक ले. हालाँकि हम सीकर में रहते हैं.  हमारे लोक विशेषज्ञों ने बताया हुआ है- 

'सीयाळो सीकर भलो, ऊन्याळो अजमेर.' मतलब सर्दी सीकर की अच्छी और गरमी अजमेर की. कारण अजमेर में अनासागर के कारण गरमी अधिक नहीं होती और सीकर में दिन में बढ़िया धूप निकलती है तो ठण्ड ज्यादा परेशान नहीं करती.  

बड़े लोगों और यदि वे सेवक हों तो बात ही क्या, उनके लिए तो हर ऋतु सुहावनी होती है. हर मौसम मनमाना होता है और हमारे लिए हर मौसम बेगाना. बड़े-बड़े शेफ उन्हें बताते हैं कि किस ऋतु और मौसम में कौनसी डिश का आनंद लिया जा सकता है, किस मौसम में किस काट, रंग और डिजाइन का वस्त्र पहना जाना चाहिए. हमारे लिए तो वही भोजन श्रेष्ठ है जो समय पर मिल जाए और वे ही कपड़े सुन्दरतम हैं जो हमने बीस-पच्चीस बरस पहले सिलवाए थे. 

बड़े लोगों को संबंधित विशेषज्ञ बताते हैं कि इस मौसम में कहाँ का पर्यटन किया जाए. 

हम अपनी औकात के अनुसार आज कमरे में ही थे. पूर्व की तरफ की खिड़की से सुबह-सुबह की धूप आ चुकी थी. 

तोताराम भी कमरे में ही आ गया. बैठते ही बोला- भाई साहब, आप की आज्ञा हो तो खिड़की बंद कर दूँ ?

हमने कहा- कौन-सी हवा आ रही है जो खिड़की बंद कर दें. धूप का आनंद ले ले. 

बोला- सो तो ठीक है लेकिन धूप में आँखें चुंधिया रही हैं. 



हमने कहा- तू तो ऐसे कह रहा है जैसे बनारस की देव दिवाली देखकर कर आ रहा है. 

बोला- बनारस तो नहीं गया लेकिन टी वी पर ज़रूर देखी थी. क्या नज़ारा था ! लगता था जैसे आसमान की धरती पर उतर आया. 

हमने कहा- तब तो खिड़की बंद ही कर दे. बनारस की देव दिवाली की चमक देखकर अंधा नहीं हो गया यही गनीमत है. सुनते हैं इस दिन सभी देवता बनारस में इकट्ठे होते हैं. सो तेंतीस करोड़ देवताओं के तेज की चमक, मोदी जी के त्याग-तपस्या-देशप्रेम की सात्विक चमक, योगी जी का महंती तेज़ की चमक, देशी घी के १५ लाख दीयों की चमक. लगता है कई दिनों तक धूप का मोटे लेंस वाला चश्मा लगाना पड़ेगा. फिर भी ख़ुशी है कि तूने यह दृश्य देखा. अब तो तेरी स्वर्ग में सीट पक्की. 

वैसे एक बात समझ नहीं आई. पंद्रह दिन पहले दिवाली मनाई तो थी, छह लाख दीये जलाए तो थे. भारत में जन्म लेने वाला और वह भी हिन्दू के घर,  क्या देवता से कम होता है ?  ऐसे में यह देवताओं की दिवाली अलग से मनाने की क्या ज़रूरत आ पड़ी ? 

बोला- इन दो पांच दिन से न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर पंजाब के किसानों का आन्दोलन जो चल रहा है. यदि गुरु नानक के प्रकाश-पर्व पर दीये जला दिए तो हो सकता है इससे आन्दोलन का जोर कुछ कम पड़ जाए.  

हमने कहा- तोताराम, ये टोटके कब तक चलेंगे. रोटी-पानी की जगह माला-आरती काम नहीं आते. झुनझुने से भूखे बच्चे को कब तक चुप कराओगे. एक फकीर और एक महंत- सदा दिवाली संत के आठों पहर आनंद.  लेकिन किसान को तो खेती का ही सहारा है. मन की बात और मोबाइल से चुनाव तो जीते जा सकते हैं लेकिन पेट नहीं भरता. 

बोला- फिर भी एक बात तो माननी पड़ेगी. मोदी जी हैं बड़े खुशमिजाज़ और सकारात्मक व्यक्ति. खुश होने, उत्सव मनाने का कोई न कोई अवसर निकाल ही लेते हैं. लोग तो राम के वन से लौटने वाली दिवाली पर छह लाख दीये देखकर खुश हो ही लिए थे. अब जैसे ही कोरोना का संक्रमण और किसान असंतोष बढ़ा तो मोदी जी की कृपा से फिर खुश होने का बहाना मिल गया. देव-दिवाली.

हमने कहा- देखते जाओ. जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है. न कोरोना का डर. न बेकारी की चिंता. हो सकता है देव दिवाली की तरह ब्राह्मण दिवाली, क्षत्रिय दिवाली, वैश्य दिवाली, हरिजन दिवाली, दलित दिवाली आदि-आदि करते-करते ३६५ दिन में ७१० दिवालियाँ हो जाएँगी. 

नो दिवाला, दिवाली ही दिवाली. 





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