Apr 19, 2019

भारत भारती पुरस्कार



भारत भारती पुरस्कार  

आज सुबह-सुबह तोताराम ने आते ही हमारे सामने एक बड़ा-सा आलू और एक आम लाकर रख दिया और बोला- बता, इन दोनों में क्या फर्क है ?

हमें हँसी आगई, कहा- यह भी कोई पूछने की बात है ? इतना तो दो साल के बच्चे को स्कूल जाने से पहले ही मालूम होता है |हम तो सतत्तर साल के हो गए |तूने क्या हमें अब इन्हीं प्रश्नों के लायक समझ लिया है |भले ही भाजपा ने टिकट के लायक न समझा हो लेकिन इस प्रश्न का उत्तर तो आडवानी जी भी दे सकते हैं | फिर भी खैर,  सुन |

आलू एक कंद है जिसकी मूल रूप से दक्षिणी अमरीका के पेरू देश में कोई ७००० साल पहले भी खेती होती थी |इसका पौधा एक डेढ़-फुट ऊंचा होता है |भारत में यह जहाँगीर के ज़माने में पुर्तगालियों द्वारा गोवा में लाया गया था |आज भारत एक प्रमुख आलू उत्पादक देश है |आलू सब्जी बनाने के साथ-साथ भूनकर भी खाया जाता है |इसके चिप्स भी बनते हैं |

आम एक फल है जिसे फलों का राजा कहा जाता है | यह भारत का राष्ट्रीय फल है |इसका पेड़ बहुत ऊंचा होता है |आजकल छोटे कद के आमों की नस्ल भी विकसित कर ली गई है | इसके कई प्रकार होते हैं जैसे- लंगड़ा, दसेरी, हापूस, तोतापुरी, फजली, चौसा, आम्रपाली, मलीहाबादी आदि-आदि | कच्चे आम का अचार बनता है |

तोताराम बोला- बस, प्रभु |इतना ही बहुत है |इतना तो मूल रूप से प्रश्न पूछने वाले को भी मालूम नहीं होगा | तेरा उत्तर बिलकुल सही है सौ में से सौ नंबर | 

हमने पूछा- इस एक छोटे से प्रश्न के उत्तर में ऐसा क्या है ?

बोला- यह तो पता नहीं लेकिन योगी जी ने कहा है कि राहुल गाँधी को आम और आलू में फर्क नहीं मालूम |हो सकता है, यदि राहुल गाँधी को यह फर्क मालूम होता तो वे बिना किसी हील-हुज्जत के उन्हें भारत का प्रधानमंत्री बना देते |लेकिन अब जो रिटिन में ही फेल हो जाए उसे इंटरव्यू में कैसे बुलाएं |प्रधानमंत्री को तो बड़े-बड़े सौदे करने पड़ते हैं |

हमने कहा- लेकिन इसमें राहुल गाँधी की क्या गलती है |सर्वज्ञता का ठेका लिए बैठे बहुत से लोग जौ और गेंहूँ के पौधों में फर्क नहीं बता सकते, गाजर घास और गुलदाऊदी में कन्फ्यूज हो जाते हैं |कौआ सबसे चालाक होता है लेकिन कहते हैं कि कोयल अपने अंडे उसके घोंसले में रख देती है |कौआ उन अण्डों को सेता रहता है |जब बच्चे निकलते हैं तो असलियत का पता चलता है |

और फिर इसमें हिंदी के मास्टरों की भी गलती है |वे वर्णमाला सिखाते समय कभी 'आ' से आम पढ़ाते हैं तो कुछ 'आ' से आलू बताते हैं |कभी 'आ' से आडवाणी और कभी आज़ाद पढ़ाते हैं |और आजकल तो 'आ' से आदित्यनाथ पढ़ाने लगे हैं |ऐसे में बच्चा कन्फ्यूज होगा ही |इसी चक्कर में देश गोडसे और गाँधी तक के मामले में स्पष्ट नहीं हो पा रहा है |अब तू बता आज़ाद, आज़ाद, आज़ाद, आज़ाद, आज़ाद में क्या फर्क है ?

बोला- यह भी कोई प्रश्न है ? आज़ाद माने आज़ाद, स्वतंत्र |

हमने कहा- यह भारत है |इसमें इतने से ज्ञान से पार नहीं पड़ेगी |वैसे तो इस देश के १३५ करोड़ लोग आज़ाद ही हैं |यहाँ ये पाँच आजाद क्रमशः आज़ाद माने अबुल कलाम आज़ाद,  आज़ाद माने अब्दुल कलाम आज़ाद मिसाइल वाले, आज़ाद माने चन्द्रशेखर आज़ाद, आज़ाद माने भागवत झा आज़ाद वैसे उनका बेटा भी आज़ाद ही है , गुलाम नबी आज़ाद |  हमने अपनी शिक्षा में इन्हें अलग-अलग अर्थों में बताया है |और जो आलू और आम में अंतर नहीं कर सकता वह प्राचीन भारत के ज्ञान की खोज और उपयोग कैसे कर सकेगा ? छोटी-छोटी चीज के लिए विदेश भागेगा जब कि अपने यहाँ प्रक्षेपास्त्र, विमान, बम, प्लास्टिक सर्जरी, दूरदर्शन, इंटरनेट सब कुछ थे और ढूँढो तो अब भी हैं |कोई ठेका देकर तो देखे | 

बोला- अब मई में क्या देर है ? तू भगवा कुरता सिलवाकर तैयार रह | योगी जी से मिलवा देंगे |तेरा भारत भारती पुरस्कार पक्का |

हमने कहा-ज़र्रा नवाज़ी के लिए शुक्रिया |  जहाँ तक आम और आलू में फर्क की बात तो कोई ज्यादा फर्क नहीं है, अच्छे-अच्छे चकरा  जाते हैं | 'आ' तो दोनों में समान है |रही 'म' और 'ल' की दूरी की बात तो इन दोनों के बीच केवल दो ही व्यंजन पड़ते है- 'य' और 'र' |वैसे भी यदि आम फलों का  राजा है तो आलू सब्जियों का |






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Apr 17, 2019

चार दिन की चांदनी



चार दिन की चाँदनी   

तोताराम ने आते ही हमसे दरयाफ्त किया- और मास्टर, चाँदनी रात में नौका विहार कैसा रहा ?

हमने कहा- हमने तो कभी कोई नौका विहार नहीं किया ? फिर क्या बताएँ कैसा रहा ? हाँ, पन्त जी वाली 'चाँदनी रात में नौका विहार' कविता ज़रूर पढ़ी है |क्या कविता है ! क्या प्रवाह, क्या शब्द चयन ! घर में बैठकर पढ़ने वाले को भी लगता है जैसे वह खुद ही एक झूले में झूलता-सा मंथर गति से तिरता चला जा रहा है | 

कालाकांकर के राजमहल में निवास, राजा साहब के साथ उनकी शानदार नाव में चाँदनी रात में गंगा की लहरों पर नौका विहार, गप्प गोष्ठी, बढ़िया खाना, पेय भी हो तो पता नहीं | न अगले दिन ड्यूटी पर जाने की चिंता, न नाव वालों के किसी बिल की फ़िक्र | इसी मज़े में आकर पन्त जी के कंठ से यह कविता स्वतः फूट पड़ी थी |अंत में आकर तो पन्त जी ने उसे क्या आध्यात्मिक रंग दे दिया-
हे जग-जीवन के कर्णधार ! 
चिर जन्म-मरण के आर-पार, 
शाश्वत जीवन-नौका-विहार।

बोला- वैसे तो बड़ा व्यंग्यकार बना फिरता है लेकिन इस ज़रा से इशारे तक को नहीं समझा |मैं प्रियंका गाँधी की 'बोट पे चर्चा' की बात कर रहा हूँ | 

हमने कहा- तोताराम, राजनीति में चर्चा का यह नया ट्रेंड मोदी जी ने २०१४ में  'चाय पर चर्चा' से चलाया और बहुत सफलता पूर्वक चलाया |वैसे भी कितना बढ़िया अनुप्रास अलंकर है 'चाय पर चर्चा' | कुछ भी कहो तोताराम, बन्दा अनुप्रास का तो मास्टर ही है |क्या रोना, क्या गाना | प्रशंसा तो प्रशंसा, गाली भी अनुप्रास में ही देता है | 

ठीक है, चुनाव में बहुत कुछ देखा-देखी का भी करना पड़ता है लेकिन जो रवानी 'चाय पर चर्चा'  में है वह न तो पिछली बार उत्तर प्रदेश में राहुल के खाट पर चर्चा वाले खटराग में थी और न ही प्रियंका के इस 'बोट पे चर्चा' में है | बहुतों को तो यह समझ नहीं आएगा कि यह 'बोट पे चर्चा' है या 'वोट पे चर्चा' है |और फिर कोई भी चर्चा बिना चाय के हो भी तो नहीं सकती |पहले भी चौपाल में चर्चा होती थी तो चिलम-तम्बाकू पर होती थी या फिर चंडूखाने में ताड़ी पर होती थी |

बोला- इसमें गलती कार्यक्रम की नहीं समझने वाले की है |किसे राम की तरह सरयू पार करनी है |जिसे चुनाव की वैतरणी पार करनी है वह वोट के अलावा किसी और विषय पर चर्चा करेगा ही क्यों ? किस को परलोक की फ़िक्र है जो कीर्तन करेगा ? सबको सत्ता प्राप्त करके यह लोक सुधारना है |वैसे यदि चाय होती भी तो पीना आसान नहीं होता क्योंकि हिलते-डुलते बोट में चाय छलक नहीं जाती ? 

हमने कहा- क्यों ? यह कोई तुम्हारे-हमारे जैसे के लिए अस्सी घाट से रामनगर की तरफ जाने वाली कोई डोंगी थोड़े ही है |यह क्रूज शिप जैसा सर्व सुविधायुक्त बढ़िया मोटर बोट है |समय कम है इसलिए चाय-वाय का कोई चक्कर नहीं | छात्र-छात्राएँ फोटो खिंचवाकर और ज्यादा हुआ तो सेल्फी लेकर चले जाएंगे |

बोला- तो फिर संस्कृति मंत्री महेश शर्मा क्यों परेशान हैं ? डरकर 'पप्पू-पप्पी' की गंध फैला रहे हैं |

हमने कहा- इसके कई कारण है- एक,वे गौतमबुद्ध नगर में बोल रहे थे जो सत्य अहिंसा के प्रतीक माने जाते हैं; दूसरे वे केंद्र में संस्कृति मंत्री हैं और वह भी सांस्कृतिक पार्टी से |इसलिए उनके केंद्र में और परिधि में सभी जगह संस्कृति ही संस्कृति रहती है |प्यार से माँ-बाप बच्चों को पप्पू कहते हैं |हमारी संस्कृति में बच्चों का बहुत महत्त्व है |उनके लिए परिवार, समाज, विद्यालय सभी जगह वात्सल्य और स्नेह की आशा की जाती है | इसलिए वे इन्हें पप्पू-पप्पी कह रहे हैं |

बोला- सो तो संस्कृति वालों की 'वाट्सअप वाहिनी' में इसी वात्सल्य, सांस्कृतिकता और शालीनता की सरिता में आई हुई बाढ़ से ही पता चलता है |

हमने कहा- खैर, चाहे इनका 'नौका-विहार' हो या उनका 'चरण प्रक्षालन' सामान्य आदमी के लिए तो हर चाँदनी चार दिन की ही होती है |जीवन तो अँधेरे में ही कटता है |गरीबी हटाओ और शाइनिंग इण्डिया और अच्छे दिन सब एक ही जुमले के पर्याय हैं |  





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Apr 14, 2019

जय जवान से जय दुकान तक



जय जवान से जय दुकान तक 



चुनावों में नेताओं के फोटो तो बहुत पहले से देखते आ रहे थे |इसके बाद दक्षिण में बड़े-बड़े कट आउट का फैशन चला |फिर सभी जगह छोटे-बड़े झंडे बाँटने, लटकाने का दौर चला जिनका सदुपयोग लोगों ने झोले और चड्डी बनवाने में किया |धीरे-धीरे कपड़े की कीमत बढ़ी तो सिंथेटिक पन्नियों के झंडे, फ़र्रियाँ चल पड़े जो दो दिन में ही कूड़ा बनकर सड़कों पर उड़ते फिरते हैं |

इसके बाद मुखौटे आए | नेता तो हमेशा ही कोई न कोई मुखौटा रखते हैं लेकिन अब तो सभा में बैठी भीड़ भी मुखौटों में छुपी नज़र आती है |जैसे नेता वैसे भक्त | असली शक्ल के अभाव में दोनों ही गिरफ्त से बाहर | पिछले चुनाव में बनारस में मोदी साड़ियाँ बाँटी गईं |सूरत का साड़ी उद्योग विकसित हुआ |निर्माता उनके आभारी हैं | वैसे भी चुनाव सामग्री एक बड़ा मौसमी उद्योग है जैसे बारिश में भुट्टा, पकौड़ा, गरमी में गन्ने का रस | राखी, पटाखे, पिचकारी, दीये, मोमबत्ती भी त्योहारों में मौसमी व्यवसाय हैं |लेकिन साड़ी कई दिन तक काम आने वाली वस्तु है | अब तो साड़ियों पर मोदी जी के साथ-साथ अभिनन्दन, सर्जिकल स्ट्राइक और योगी जी तक आगए |

जब हमने तोताराम को नेट पर इन साड़ियों के फोटो दिखाए तो बोला- देखा, इसे कहते हैं इन्नोवेटिव लोकतंत्र |ऐसे पहुंँचते हैं घर-घर और अब तो साड़ियों पर छपकर रोम-रोम में रम रहे हैं |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, हमें इसमें कुछ सांस्कृतिक और नैतिक समस्या नज़र आती है |मोदी जी कहने को विवाहित हैं लेकिन देश सेवा और संसार के उद्धार के लिए ब्रह्मचर्य में दीक्षित | दूसरे योगी जी ब्रह्म से साक्षात्कार के लिए अखंड ब्रह्मचारी हैं |क्या इनका साड़ियों पर छपना और महिलाओं के अंगों पर सजना अच्छा लगता है ? क्या इसमें तुझे कहीं कोई नैतिक समस्या या विसंगति तो नहीं लगती ? इससे अच्छा तो यह रहता कि ये अपने नाम और फोटो वाली ध्वजाएँ छपवाते जो लोग अपने घरों, दुकानों, पर फहराते या फिर कोई तिरपाल छपवाते जिन्हें गरीब लोग अपने टपकते छप्पर पर लगा लेते |

बोला- यह सौदा दोनों ही पक्षों को महँगा पड़ता और फिर तिरपाल की बजाय साड़ी पर निगाह ज्यादा पड़ती है |अब यह पता नहीं कि वह नेताओं के फोटो के कारण पड़ती है या पहनने वाली के सौन्दर्य के कारण |यह तो बाज़ार है नेताओं का, साड़ियों, मुखौटों का, जुमलों का, कंडोम का, लंगोट का | इसे न किसी नेता से मतलब है और न किसी नैतिकता से |बाज़ार दवा और दारू, कफ़न और कॉफ़ी, लड़की और लौकी समान तत्परता और निस्पृहता से बेचता है |
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हमने कहा- वैसे हम भी यह जानते हैं कि दुकान में  हनी सिंह और हनुमान जी के कैलेण्डर और कैसेट साथ-साथ रखे रहते हैं |तुम अपने घर लाकर गीता-कुरान और बाइबल को आदर से सजाकर रखते हो लेकिन दुकानदार के लिए तो वह एक वस्तु है | उसे बिक्री और नफे के अनुसार महत्त्व मिलता है |हमें तो सबसे बड़ी चिंता यह है कि हर वस्तु को कभी न कभी पुरानी या बेकार होने पर नाली और कूड़े-कचरे में ही जाना पड़ता है |उस स्थिति में साड़ियों पर छपने वाली इन महान हस्तियों का कितना अपमान होगा ? 

बोला- इसीलिए तो अति को बुरा कहा गया है | मंदिर और मस्जिद के पास रहने वाले के लिए माइक की तेज़ आवाज़ भी सुनी-अनसुनी हो जाती है |पहले प्रसून जोशी के 'स्वच्छता की नदी' वाले सफाई-गीत से चिढ़ होती थी | अब पता नहीं उसे रोज बजाती हुई आने वाली कूड़े की गाड़ी कब आकर चली जाती है ? ऐसे ही इन साड़ियों और मुखौटों का होने वाला है |



  











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Apr 12, 2019

मैं चौकीदार नहीं हूँ



मैं चौकीदार नहीं हूँ 

हम कहीं कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं करते |रात में क्या, दिन में भी नहीं |हम तो इसी में खुश हैं कि दुनिया हमें ही शांति से जीने दे |किसी और को दुखी कर सकने की क्षमता तो हम में है ही कहाँ ? इसलिए यदि देश या विश्व-रक्षा जैसा कोई महान काम न आ पड़े, हम अधिक से अधिक साढ़े नौ बजे के उर्दू समाचार सुनकर सो जाते हैं |नींद कब आए यह 'अच्छे दिनों' की तरह खुद नींद पर ही निर्भर है |

नींद आने ही वाली थी कि घर के सिंहद्वार पर दस्तक हुई; देखा, तो तोताराम |हमने कहा- बन्धु, हम आपको एक बार पहले भी कह चुके हैं कि एक द्वार पर दिन में एक बार से अधिक भिक्षाटन पर नहीं जाना चाहिए |

तोताराम ने कहा- मैं समय-असमय किसी के घर में आ घुसने वाला, हाथ जोड़कर वोट माँगने वाला बेशर्म नेता नहीं हूँ  |मैं कुछ माँगने नहीं आया हूँ | मैं तो तुझे यह बताने आया हूँ कि मैं चौकीदार नहीं हूँ |आज रात साढ़े नौ बजे के बाद यदि चोरी की कोई वारदात हुई तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी |

हमने कहा- ठीक है |वैसे आज से पहले तो तेरे चौकीदारत्त्व में यह देश चैन की नींद सोता ही रहा है |लेकिन यह समाचार तो तू ट्विटर  से भी दे सकता था |बिना बात हमारी नींद ख़राब करने क्या ज़रूरत थी ? आजकल तो इस देश में सब कुछ ट्विटर और मेसेज के बल पर ही चल रहा है |सारी देशभक्ति, शुभकामनाएँ, शोकसंदेश सभी कुछ ट्विटर से ही निबटाए जा रहे हैं |बड़े लोग तो अपना ट्विटर भी खुद नहीं करते |यह काम उनके लिए उनके नौकर ही करते हैं | एक सर्वे के अनुसार देश में कोई ४५ करोड़ लोग स्मार्ट फोन का उपयोग करते हैं |हो सकता है मंदिर में जाने और पूजा करने की बजाय लोग भगवान को भजनों का ट्वीट कर देते हों |कर्जा लेकर ही सही सभी भारतीयों को स्मार्ट फोन खरीद लेना चाहिए |पता नहीं, कब सरकार ट्वीट द्वारा 'अच्छे दिन' भेज दे और हमें पता ही न चले |

बोला-  जैसे देशसेवी और समाजसेवी होते हैं वैसे ही 'टेक्नोसेवी'  भी होते हैं जैसे मोदी जी |लेकिन मनमोहन जी और प्रणव दा की तरह तेरे जैसे कुछ पिछड़े लोग भी होते हैं जिन्हें एस.एम.एस. तक करना आता, ट्वीट और किंडल तो बहुत दूर की बात है |ऐसों के लिए ही खुद आकर बताना पड़ता है |

हमने कहा- लेकिन चौकीदार बनने में क्या बुराई है ? मोदी जी ने तो कहा है- देश-दुनिया और समाज के लिए कुछ भी अच्छा काम करने वाला 'चौकीदार' ही होता है |

बोला- तो फिर आज उन्हें यह ढिंढोरा पीटने की क्या ज़रूरत आन पड़ी ? वे प्रधान सेवक थे, अब भी हैं | क्या सेवक का काम स्वामी की चौकीदारी करना नहीं होता ?

हमने कहा-क्या किया जाए ? आजकल राजनीति का स्तर बहुत गिर गया है | लोग पता नहीं चौकीदार के नाम के साथ और क्या-क्या जोड़कर मज़ाक उड़ाने लगे हैं |इसलिए उन्हें ही नहीं, सभी ईमानदार लोगों को कहना पड़ रहा है- मैं भी चौकीदार हूँ |

बोला- यह  बात है तो फिर सबको यह कहना चाहिए कि मैं चोर नहीं हूँ या मैं ईमानदार चौकीदार हूँ |  

हमने कहा- तो कोई बात नहीं तू अपने को 'एक ईमानदार चौकीदार'  घोषित कर दे |

बोला- इतने से ही बात थोड़े बनती है |मैं झूठी जिम्मेदारी नहीं ले सकता |मान ले, कल जोश में आकर किसी चोर को पकड़ लिया और वह निकल आया थानेदार या किसी जनसेवक का साला तो मेरी तो मुश्किल हो जाएगी |

हमने कहा- तोताराम, यह इतना सीरियसली लेने की बात नहीं है |ये कोर्ट में कोई हलफिया बयान थोड़े हो रहे हैं |कोर्ट की बहस की बात थोड़े ही है |यह तो चुनावों के लिए 'लपक-लाइन'  है | 

तोताराम चौंका, बोला- यह 'लपक-लाइन' क्या होती है ?  

हमने कहा- इसे अंग्रेजी में 'पंच-लाइन' कहते हैं | जैसे इंदिरा जी ने चुनाव लपकने के लिए 'गरीबी हटाओ' की पंच-लाइन दी थी या पिछली बार मोदी जी ने 'अच्छे दिन' की पंच-लाइन दी थी |हमने तो आजकल फैशन के हिसाब से इसे थोड़ा अनुप्रासात्मक बना दिया है |कहो तो 'पकड़-पंक्ति' बना दें ? 

 

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Apr 11, 2019

फ़्लाइंग किस का मनोविज्ञान



' फ़्लाइंग' किस का मनोविज्ञान' 


आज तोताराम ने पूछा- मास्टर, क्या तेरे पास कोई गुप्त खज़ाना है ?

हमने कहा- हाँ है, धर्य का, संतोष का, प्रेम का, शुभकामना का | 

बोला- मैं इन 'अमूल्य' चीजों की बात नहीं कर रहा हूँ |मैं तो मूल्यवान वस्तुओं, नकदी और गहनों की बात कर रहा हूँ |

हमने कहा- कवि के शब्दों में 'अपने जी से समझिए मेरे जी की बात' |तो बस, यही समझ ले कि हमारे पास उतना और वैसा ही गुप्त खज़ाना है जितना तेरे पास |

बोला- तो फिर रात को जब भी तीन-चार बार पेशाब करने उठता है तो टार्च लेकर घर के बाहर सड़क तक आकर किस खतरे को सूँघता है, किस शंका का समाधान करता है |तीन-चार बार खखार कर किसकी शंकास्पद उपस्थिति को हकालने या चेताने का नाटक करता है |

हमने पूछा- लेकिन तुझे कैसे पता ?

बोला- कल रात बंटी जयपुर से लेट नाइट बस से आया था |उसी को जयपुर रोड़ तक लेने गया था तभी तेरा यह नाटक देखा था |अब यह सब चिंता छोड़, निश्चिन्त होकर सोयाकर | तुझे पता होना चाहिए कि अब देश की और तेरी रखवाली के लिए देश के कण-कण में अनेकानेक चौकीदार पैदा हो गए हैं | 

हमने कहा- सब अपने स्वार्थ की चौकीदारी करते हैं |हम तो सभी सरकारों द्वारा घोषित किए गए एक ही वाक्य को सत्य को ब्रह्मवाक्य मानकर चल रहे हैं- 'यात्री अपने सामान की देखभाल  स्वयं करें' |चाहे तो इसमें जान भी जोड़ दे |आज तक पाँच रुपए से लेकर पचास हजार करोड़ तक की कोई भी चोरी पकड़ी गई है ? हाँ, किसी नेता की भैंस खोजने और किसी सांसद के कटहलों की रखवाली के लिए पुलिस ज़रूर तैनात हो जाती है |हमें तो एक चप्पल जोड़ी की चोरी भी भारी पड़ जाएगी |सस्ती से सस्ती जोड़ी भी दो सौ रुपए से कम में नहीं आती |

बोला- तो फिर आजकल यह- 'मैं भी चौकीदार', 'मैं भी चौकीदार' जैसा ट्वीट पर क्या आने लग गया है ? लोग अच्छा भला मंत्री पद छोड़कर पता नहीं चौकीदारी की नौकरी की तरफ क्यों भाग रहे हैं ?

हमने कहा- यह वास्तव में चौकीदारी की नौकरी नहीं है ? चौकीदारी की नौकरी में बारह-बारह घंटे की ड्यूटी होती है और तनख्वाह दस हजार रुपया महिना |इतने में तो एक मंत्री के कपड़ों की धुलाई का खर्चा नहीं निकलता |यह तो प्रतीकात्मक बात है | 

बोला- मैं तो सोच रहा था कि अब ये चौकीदार हमारा सातवें पे कमीशन का एरियर चोरी करके भागे हुए चोर को ज़रूर पकड लेंगे |

हमने कहा- यह मंत्रियों के संवेदना संदेशों की तरह है, उच्चारे गए चुनावी जुमलों की तरह है, चाय या खाट या अब बोट पर की गई चर्चा की तरह है, प्रशंसकों की तरफ फेंकी गई मालाओं की तरह है,  एक ट्वीट में १३५ करोड़ भारतीयों को दी गई होली-दिवाली की शुभकामनाओं की तरह है और किसी रोड़ शो पर निकली विश्व सुंदरी द्वारा उछाले गए 'फ़्लाइंग किस' की तरह है जो किसी तक नहीं पहुँचता | मज़े की बात यह है कि भीड़ में धक्के खाता हर फैन यही समझता है कि यह 'फ़्लाइंग किस' उसीकी तरफ उछाला गया है |और वह बिना बात दीवाना हुआ घूमता रहता है |

तेरी तू जाने लेकिन मैं अपनी चप्पलें किसी 'चुनावी चौकीदर' के भरोसे नहीं छोड़ सकता |और तो और अब रात ही नहीं दिन में भी सावधान रहना पड़ेगा क्योंकि जल्दी ही उचक्के 'संपर्क से समर्थन' के नाम पर 'रेकी' करने के लिए आना शुरू होने वाले हैं |



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Apr 7, 2019

समस्या की जड़



समस्या की जड़ 

आज तोताराम बहुत नाराज़ था |बोला-चीन को सोया हुआ अजगर कहा जाता था |यह तो अफीम खाकर ऊँघता ही भला था |अंग्रेज बड़े समझदार थे जो इन्हें अफीम सप्लाई करते थे |अब यह अजगर जाग गया है और दुनिया की नींद हराम किए हुए है | इस आग में घी डाला और इस अजगर को दूध पिलाया तुम्हारे प्रथम प्रधान मंत्री नेहरू ने |

हमने कहा- कुछ भी हो तोताराम, नेहरू जी का कुछ तो योगदान रहा होगा और फिर वे उम्र और कर्म में हमसे तो बहुत बड़े हैं ही | थोड़ा बहुत तो शिष्टाचार निभाना चाहिए |कुछ लोग हाफिज के नाम से पहले, पता नहीं भूल से, डर से  या आदतवश 'जी' लगा देते हैं तो कुछ उसका नाम हिकारत से लेने को ही देशभक्ति मानते हैं |लेकिन इस देश में इतना शिष्टाचार तो बचा हुआ है कि सामान्य लोग बात-बात पर  'जूता-कांड' वाले भाजपा सांसद की तरह 'माँ-बहन' नहीं करते |

बोला- यह मौसम है ही गाली-गलौज का |बड़े-बड़े पदों पर बैठे माननीय एक दूसरे को चोर-उचक्का कह कर बात कर रहे हैं | फिर नेहरू में ऐसा क्या ख़ास था |मेरे हिसाब से तो इस देश की सारी समस्याओं की जड़ नेहरू ही था |तभी तो पिछले सत्तर साल से देश का विकास रुका हुआ था |यह तो देश का सौभाग्य है कि उसे पहले अटल जी मिले जिन्होंने आते ही बम बना दिया और विस्फोट कर दिया |फिर मोदी जी मिले जो जी-जान से दिन में २०-२० घंटे विकास में जुटे रहते हैं | आते ही मंगलयान छोड़ दिया |लेकिन नेहरू जी के कुकर्म अब भी इस देश का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं और देश के अच्छे दिन लाने को कटिबद्ध मोदी जी और जेतली जी को परेशान किए हुए हैं |

हमने कहा- नेहरू जी तो उस समय ही दिवंगत हो गए थे जब मोदी जी और जेतली जी मिडिल स्कूल में पढ़ते थे |वे इन्हें कैसे परेशान कर रहे हैं |

बोला- परेशान कैसे नहीं कर रहे हैं ? ये जो आतंकवादी देश को परेशान किए हुए हैं उनकी जड़ में नेहरू ही  तो है |जेतली जी का स्टेटमेंट नहीं पढ़ा ?उन्होंने कहा है कि यदि नेहरू जी सुरक्षा परिषद में चीन की स्थायी सदस्यता का समर्थन नहीं करते तो आज चीन हाफिज को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने से नहीं रोक सकता था |

हमने कहा- तो क्या सर्जिकल स्ट्राइक के लिए चीन से इज़ाज़त ली थी ? क्या अमरीका ने ओसामा को पकड़ने के लिए चीन से पूछा था ? अब तो नेहरू जी नहीं हैं |अब तो जो देश का नेतृत्त्व कर रहे हैं उन्हें ही कुछ करना पड़ेगा |

बोला- करेंगे |करेंगे क्यों नहीं ? और क्या किया नहीं ? इन्नोवेटिव डिप्लोमेसी की, झूला झूले, चाय पी, झप्पी ली |हम तो तुझे इस समस्या की जड़ बता रहे हैं |

हमने कहा- इस प्रकार तो इस समस्या की जड़ नेहरू जी नहीं और भी बहुत से लोग थे  नेताजी सुभाष, भगत सिंह, बिस्मिल, आज़ाद, अशफ़ाक आदि जैसे बहुत से क्रांतिकारी  |पर  चूँकि कानूनी रूप से देश से अंग्रेजों से आज़ादी दिलाने का श्रेय गाँधी जी को दिया जाता है | इसलिए मेरे विचार से इस देश की सभी समस्याओं, विशेषरूप से चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से होने वाली समस्याओं के लिए नेहरू जी से अधिक दोष गाँधी जी को दिया जाना चाहिए |

अब चौंकने की बारी थी तोताराम की |

बोला- वह कैसे ?

हमने कहा- न गाँधी अंग्रेजों को भगाते, न हमें सत्ता मिलती और न इन समस्याओं का सामना करना पड़ता |अंग्रेज जानते और इस देश की समस्याएँ |सब ज़िम्मेदारी अंग्रेजों की बनी रहती |  और हम उनकी छत्रछाया में शांतिपूर्वक देश का सांस्कृतिक विकास करते रहते |चर्चिल ने तो कहा भी था कि यदि हम यहाँ से चले गए तो यह देश ऐसे घटिया लोगों के हाथों में चला जाएगा जो आपस में ही लड़ते रहेंगे |

बोला- यह तो तू अंधेर नगरी चौपट राजा वाला न्याय कर रहा है | 

हमने कहा- बिलकुल नहीं |भारतेंदु की उस प्रसिद्ध नाटिका में  तो चौपट राजा साधु की जगह खुद ही फाँसी पर चढ़ जाता है |इसप्रकार नाटिका सुखांत हो जाती है जबकि यहाँ तो नगरी चौपट हो रही और राजा मज़े ले रहे हैं |



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Apr 5, 2019

डोंट कॉल मी तोता



 डोंट कॉल मी तोता  

आज हम कुछ जल्दी ही बरामदे में जा जमे |दो कारण- पहला सर्दी कम हो गई है |दूसरा- पाँच बजे ही आँख खुल गई है तो अब फिर क्या सोना ? आठ घंटे की नींद बहुत होती है |जब आचार संहिता लगने से पहले चुनावी वैतरणी में राम का नाम लेकर संसद तक सेतु निर्माण के लिए ताबड़तोड़ आधारशिलाएं तैराने के बाद गालियों और निंदा के तीरों से भरे तरकश लेकर प्रधान और सामान्य सेवक पाक-विजय की दुन्दुभी बजाते हुए निकल पड़े हैं तो हमारा जागते रहना बहुत ज़रूरी है |क्या पता, कोई मनचला समर्थक बरामदे में रखी झाड़ू ही उठा ले जाए |नई झाडू पचास रुपए की आती है |

जैसे ही मुँह धोकर कुल्ला फेंका तोताराम प्रकट हुआ |यही गनीमत रही कि उस पर पानी के छींटे नहीं पड़े |बचते हुए बोला- क्या नेताओं की तरह पर-निंदा और आत्मप्रशंसा के छींटे उछाल रहा है |

हमने कहा- हाय तोता, सॉरी |

बोला- डोंट कॉल मी तोता |

हमने कहा- आजकल फॉर्मल तरीका यही है |जब मोदी जी अमरीका के राष्ट्रपति को बराक पुकार सकते हैं, अठारह-उन्नीस साल की एक लड़की उनचालीसवें साल में चल रहे राहुल गाँधी को 'हाय राहुल' पुकार सकती है तो हम तो तुझसे छह महिने बड़े हैं |लगता है तूने चेन्नई के स्टेला मैरिस वीमेंस कॉलेज में ३००० हजार महिलाओं के प्रश्नों का ज़वाब देते राहुल को नहीं सुना | 

बोला- वह तो बेचारी कन्या को राहुल के निर्देश पर पुकारना पड़ा लेकिन क्या तूने उस बालिका की प्रतिक्रिया नहीं देखी ? कैसे जीभ निकालकर लजा रही थी ?हालाँकि तत्काल ही उसका सशक्तीकरण हो गया और उसने सहज भाव से 'हाय राहुल' बोला |उसके बाद एक बार फिर उसने इरादतन 'राहुल' बोला |ठीक है, राहुल अभी भी युवक ही लगते हैं |तिस पर जींस-काली टीशर्ट में, क्लीन शेव्ड, और कुँवारे भी |भले ही मोदी जी वात्सल्य भाव से राहुल को 'पप्पू' कहते हैं लेकिन यह भी सच है कि वे ४९ वें में चल रहे हैं | इस उम्र में तू दादा बन गया था |वैसे यदि मोदी जी समाज सेवा के लिए संन्यास न लेते तो वे भी तेरी तरह ४९ वर्ष की आयु में दादा बन जाते क्योंकि उनकी शादी भी तेरी तरह १७ वर्ष की आयु में ही हुई थी |

हमने कहा- तो क्या हम तुझे 'हाय तोता' नहीं कह सकते ? उम्र के हिसाब से तो हम मोदी जी को भी प्यार से 'नरेन्द्र' कह सकते हैं |प्यार में छोटा संबोधन ही अच्छा लगता है |
बोला- यह तो ठीक है कि तू मुझसे बड़ा है |प्यार में मुझे गधा, उल्लू, बेवकूफ कुछ भी बुला सकता है | आगे पीछे कुछ भी विशेषण लगा सकता है लेकिन मुझे इस 'हाय तोता' से ऐतराज़ है |

हमने कहा- इसमें क्या खराबी है ?

बोला- तेरा नाम रमेश और राहुल तथा नरेन्द्र आदि  के फर्स्ट नेम भी पूरा अर्थ दे देते हैं और अजीब नहीं लगते लेकिन मेरा नाम ? तू तो प्रेम से कहेगा-  'हाय तोता' और लोग समझेंगे कि कोई अपने पिंजरे में बंद तोते से तो नहीं बतिया रहा ?  


 

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Apr 2, 2019

मूँछ और बल



मूँछ और बल 



वैसे तो तोताराम को जब भी कोई महत्त्वपूर्ण बात करनी होती है तो पहले हमारे सामने अख़बार रखता है और फिर कोई प्रश्न | लेकिन आज आते ही बिना किसी सन्दर्भ के एक छोटी सी फोटो हमारे सामने रखते हुए बोला- बता, यह कौन है ?

दोनों आँखों का मोतियाबिंद का ओपरेशन करवाने के बावजूद अब हालत यह हो गई है कि यदि कोई हमें हमारा ही जवानी का फोटो पहचानने को कह दे तो अकबका जाते हैं |दिमाग का हाल यह है कि जयशंकर  प्रसाद और रविशंकर प्रसाद में फर्क नहीं कर पाते, जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा में भेद नहीं समझ आता, हाफिज सईद और अज़हर मसूद दोनों एक से ही लगते हैं |लगता है यही हाल रहा तो अगले पाँच साल में  गाँधी और गोडसे भी गड्डमड्ड हो जाएँगे | ऐसे में कैसे पहचानें यह फोटो | 


In the two-minute video of Nirav Modi on Twitter, he can be seen dodging questions. (Photo:The Telegraph)

जब ध्यान से देखा तो पाया कि आँखों में अलौकिक दृढ़ता, ओठों पर एक गंभीर और शहीदी मुस्कान, कुछ-कुछ राजपूती झलक देती कोनों से तनिक मुड़ी मूँछें और किसी योद्धा के ज़िरह-बख्तर जैसी जैकेट |

हमने कहा- तोताराम, लगता है हमारा कोई वीर योद्धा है जिसे पाकिस्तान सरकार ने हमारी 'घर में घुसकर मारने' की धमकियों से डरकर ससम्मान छोड़ दिया है |

बोला- बस, खा गया न धोखा ! अरे, यह अपने नीरव भाई मोदी हैं |आजकल लन्दन में तशरीफ फरमा हैं | मूँछों का रोब ही कुछ ऐसा पड़ रहा है |महानायक अमित जी को फिल्म 'एकलव्य' में देखा नहीं अपनी राजस्थानी स्टाइल की दाढ़ी-मूँछों में ? एकदम भीष्म पितामह जैसे लग रहे थे | पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, भरतपुर वाले महाराजा सूरजमल और अब अपने अभिनन्दन |इनके बारे में कुछ न जानने वाला भी इनके व्यक्तित्त्व से प्रभावित हो जाता है |  

हमने कहा- लेकिन तोताराम, राम को तो हमने बिना दाढ़ी-मूँछों के ही देखा है जब कि रावण के बड़ी-बड़ी मूँछें | कृष्ण क्लीन शेव्ड और कंस के बड़ी-बड़ी मूँछें | सिकंदर भी मूँछें नहीं रखता था |द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता ब्रिटेन के चर्चिल, फ़्रांस के डगाल, अमरीका के आइज़नहावर भी क्लीन शेव्ड ही थे |

बोला- लेकिन असली विजेता तो मूँछ वाला रूस का स्टालिन ही था जिसने हिटलर को वापिस जर्मनी तक दौड़ा दिया था |

हमने कहा- लेकिन १९६५ में पाकिस्तान को मात देने वाले शास्त्री जी क्या मूँछें रखते थे ? वीरता दाढ़ी-मूँछों, हथियारों, गाली-गलौज, मुहावरेबाजी में नहीं बल्कि वह तो मन में स्थित लोकहित के हिमाद्रि से निरंतर और स्वतः संचरित होने वाली अलकनंदा है |युद्धवीर ही वीर नहीं होते; धर्मवीर और दानवीर भी तो वीर ही होते हैं | गाँधी और भगतसिंह की वीरता में मात्र स्वरूप का अंतर है |अभिनन्दन अपने साहस के कारण अभिनंदनीय हैं; न कि मूँछों के कारण |यह बात और है कि उनकी मूँछें भी बहुत शानदार हैं |

बोला- लेकिन एक शब्द 'वाग्वीर' भी तो होता है |

हमने कहा- इसी प्रकार के वीरों के 'बल' के बारे में ही रामचरित में तुलसी कहते हैं- कहते हैं-
लोभ के ईछा दंभ बल, काम के केवल नारि |
क्रोध के परुष बचन बल मुनिबर कहहिं बिचारि ||



अर्थात श्रेष्ठ मुनिगण विचार करके ऐसा कहते हैं कि लोभ को इच्छा और दंभ का बल है, काम को केवल स्त्री का बल है और क्रोध को कठोर वचनों का बल है |
इसीलिए वीरता का स्थायी भाव 'क्रोध' नहीं बल्कि 'उत्साह' माना गया है |उत्साही निरंतर उत्साहपूर्वक कर्म करता है जब कि क्रोधी केवल कठोर वचनों से काम चलाना चाहता है क्योंकि उसका वही 'बल' है |





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Apr 1, 2019

मास्टर, तू कहीं जाता क्यों नहीं



 मास्टर,  तू कहीं जाता क्यों नहीं ? 


तोताराम ने आते ही प्रश्न फेंका- मास्टर, तू कहीं जाता क्यों नहीं ?

हमने कहा- हम कहीं चले गए तो फिर तुझे यह हराम की चाय कहाँ मिलेगी ?

बोला- मास्टर, भले ही तू मेरी उसी तरह से अवमानना कर दे जैसे त्रिपुरा में बिप्लव कुमार देब के शपथ-ग्रहण समारोह में मोदी जी ने अडवानी जी की की थी | 'हराम' शब्द को लेकर खेद तुझे प्रकट करना पड़ेगा लेकिन वैसे नहीं जैसे सांसद शरद त्रिपाठी ने विधायक सतीश सिंह को जूता मारने के बाद प्रकट किया था |और फिर आज के ज़माने में किसके पास समय है जो एक कप चाय के लिए घंटा-दो घंटा खराब करे |चुनावों का सीज़न है | जैसे श्राद्ध पक्ष में जीमने वाले ब्राह्मणों का टोटा रहता है वैसे ही आजकल रैली में जाने वाले, मोटर साइकल पर 'विजय-संकल्प रैली निकालने वाले  पेट्रोल के अलावा खाना और पाँच सौ रुपए में भी जल्दी से नहीं मिल रहे हैं |

हमने कहा- ठीक है, हम खेद प्रकट करते हैं |लेकिन प्रश्न तो अपनी जगह है कि हम कहीं जाते क्यों नहीं ? तो यह बता कि तुझे हमारे यहाँ रहने से क्या परेशानी है ?

बोला- परेशानी कुछ नहीं लेकिन जब आदमी इधर-उधर जाता रहता है तो लगता है कि उसकी डिमांड है |

हमने कहा- जाते क्यों नहीं ? दिन में दो बार दीर्घ और पाँच-छह बार लघु शंका के लिए जाते हैं |महिने में एक बार पेंशन लेने बैंक और एक बार मासिक जमा योजना का ब्याज लेने पोस्ट ऑफिस जाते हैं | वर्ष में एक दिन जीवन-प्रमाण-पत्र देने बैंक जाते हैं |दिन में दो बार अपनी पालतू मीठी को घुमाने जाते हैं |

बोला-यह भी कोई जाना है ? बुढ़ापे में वर्षों से खटिया में पड़ा आदमी भी एक दिन यमदूतों के साथ जाता ही है लेकिन यह क्या आना-जाना ? यह तो शायर के अनुसार-
लायी हयात आए, क़ज़ा ले चली चले
न अपनी ख़ुशी से आए, न अपनी ख़ुशी चले |

जाना तो मोदी जी का है जो बनारस भी माँ गंगा और भोले के बुलाने पर ही जाते हैं |जिसमें कुछ दम होता है उसे जीव क्या,  ब्रह्म तक बार-बार बुलाते हैं |

हमने पूछा- तो गंगा और भोले ने तेरे थ्रू कोई मैसेज भिजवाया था ?

बोला- नहीं, मोदी जी ने खुद ही कहा है |पहले कांग्रेस के द्वारा ५५ साल में गन्दी बना दी गई गंगा ने सफाई के लिए पुकारा और अब जकड़े हुए भोले ने पुकारा |जब एक सामान्य हाथी की पुकार पर भगवान विष्णु नंगे पाँव दौड़ पड़ते हैं तो ये तो सवा करोड़ के प्रधान सेवक और किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी, दिव्यांग, महिलाओं सभी के दीनबंधु जो ठहरे |जाते कैसे नहीं |

एक तू है जिसकी किसी को ज़रूरत ही नहीं |कोई आखिर बुलाए भी तो किस काम के लिए |काम के न काज के, दुश्मन अनाज के |

हमने कहा- तोताराम, हम ज्यादा तो कुछ नहीं जानते लेकिन इतना कह सकते हैं कि ये जो चुटकी में दुनिया बदलने वाले चमत्कारी पुरुष घूम रहे हैं इन सबकी कारों का पेट्रोल, इन सब की जैकेट और कुर्तों की बनवाई और धुलाई, बाल-रंगवाई सब हमारे जैसे टेक्स पेयर की जेब से जाती है |इनकी बातों से एक गिलास पानी भी नहीं निकलने का | 

बोला- वैसे तेरा मन हो तो अपने मोहल्ले के भगत जी खाटू श्याम जी जा रहे हैं निशान  लेकर पद-यात्रा पर |प्रसाद, चाय फ्री और एक पीला पटका उपहार में मिलेगा |

हमने कहा- इस भीड़ के भय तो भगवान भी खिसक लिए होंगे |कभी फुर्सत में चलेंगे |वहाँ हमें कौन वी.आई.पी. दर्शन कराने बैठा है ?







 





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