Jan 29, 2020

लोभात्क्रोधः प्रभवति



लोभात्क्रोधः प्रभवति


यह कोई उल्लेखनीय बात नहीं कि आज तोताराम थोड़ा विलंब से आया | जब बड़े-बड़े कार्यक्रमों में तथाकथित बड़े-बड़े,
लेकिन वास्तव में टुच्चे नेता, घंटों-घंटों विलंब से आते हैं तो तोताराम को क्या दोष दें |वैसे उसे कौन-सा गणतंत्र दिवस
की परेड में सलामी लेनी थी या झंडा फहराना था |  ऐसे दिवस हमारे लिए वास्तव में आत्ममंथन और कृतज्ञता अनुभव
करने के होते हैं | हम अपने पूर्वजों का आदरपूर्ण स्मरण करते हैं जिन्होंने हमें इतना उदार दर्शन दिया कि सभी तरह
के कुचक्रों और तूफानों में भी इस राष्ट्र नौका को खेते आ रहे हैं |बरामदे में ऊंचे वोल्यूम में ट्रांजिस्टर बज रहा है | 
हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के……


  विशिष्ट अवसरों पर यही तो हमारी लक्ज़री है |


 पत्नी ने आवाज़ लगाई - चाय ले जाओ |


हमने जैसे ही तोताराम को चाय का गिलास पकड़ाया, पता नहीं उसने कैसे झटके से गिलास लिया कि चाय
छलकते-छलकते बची |


हमने पूछा- क्या बात ? क्यों गुस्सा हो रहा है ? यदि किसी बात पर गुस्सा है भी तो कम से कम आज के दिन
तो गुस्सा थूक दे | खैरियत मना कि पूर्वजों के सत्कर्मो के सुफल से अभी इस देश में इतनी तमीज़ बची हुई कि
यह टुच्चे नेताओं के बहकावे में आकर कुत्तों की तरह लड़ नहीं रहा है |




बोला- हाँ, गुस्से में ही हूँ |अब यह देश गुस्से से ही सुधरेगा |तभी तो बादली में एक जनसभा को संबोधित करते हुए
अमित शाह जी ने कहा है-  'देश विरोधी ताकतों को कोई कंट्रोल कर सकता है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं।
इस चुनाव में कमल के निशान पर बटन जरूर दबाना और इतने गुस्से से बटन दबाना कि इसका असर शाहीन बाग तक हो।'


हमने कहा- लेकिन यहाँ कौन-सा चुनाव हो रहा है ?  यह चाय का गिलास है कोई ई वी एम मशीन का बटन नहीं है |
और फिर गुस्से में बटन दबाने से मशीन टूट भी तो सकती है |क्रोध के लिए हमारे शास्त्रों में कहा है- क्रोध एक अस्थाई
पागलपन है |क्रोध में कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लेना चाहिए |


जब लालची व्यक्ति के लालच और स्वार्थ में कोई बाधा आती है तो उसे क्रोध आता है | निःस्वार्थ व्यक्ति तो शांत चित्त
से बात करता है 


हितोपदेश में  कहा गया है- 


लोभात्क्रोधः प्रभवति  लोभात्कामः प्रजायते ।
लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम् ।।
(हितोपदेश, मित्रलाभ, २७)
अर्थात् लोभ से क्रोध का भाव उपजता है, लोभ से कामना या इच्छा जागृत होती है, लोभ से ही व्यक्ति मोहित हो
जाता है, यानी विवेक खो बैठता है, और वही व्यक्ति के नाश का कारण बनता है । वस्तुतः लोभ समस्त पाप का कारण है ।



हमने कहा- हमने तो तुझे ज्ञान की बात बता दी |अब आगे तेरी मर्ज़ी है कि तू गुस्से में अपने कपड़े फाड़े या दूसरों के;

गुस्से में पत्थर फेंकने लगे या अपना ही सिर दीवार से टकरा ले |


भारत के विभिन्न धर्म-जाति, नस्ल-लिंग और भाषा के लोगों की तरह हमें हमेशा साथ रहना है और जब साथ
ही रहना है तो गुस्से से नहीं; प्रेम और संवाद से काम चलेगा |


तू क्या कोई नेता है जिसे लोभ और स्वार्थ के कारण गुस्सा आ रहा है ?


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Jan 27, 2020

भाई साहब अजीर्ण हो रहा है



भाई साहब, अजीर्ण हो रहा है 

आज तोताराम ने आते ही घोषणा कर दी- भाई साहब, आज तो अजीर्ण हो रहा है |

हमने कहा- तोताराम, अब समझ में आया कि देश में ६८% बच्चे कुपोषित क्यों हैं ? दुनिया
में हर तीसरा बच्चा वज़न के निर्धारित मानदंडों के अनुसार सामान्य से कम वज़न का क्यों है ?
इससे अधिक आँकड़े न तो हमें मालूम हैं और यदि मालूम हों तो भी न तू और न ही सरकार में बैठे
लोग समझ सकेंगे |उन्हें अभी तक प्राप्त आँकड़ों से यही पता नहीं चल पाया कि नोटबंदी और
जी एस टी से फायदा हुआ या नुकसान ? यह भी समझ में नहीं आ रहा है जी डी पी घट रही है
या बढ़ रही है ? वास्तव में कितनी रहेगी ? लेकिन तेरी इस अजीर्ण वाली बात से हम यह कह सकते
हैं कि देश में भुखमरी का एक बड़ा कारण तू भी है |वैसे ही जैसे एक बार चर्चिल ने अपने से मिलने
आए बर्नार्ड शॉ से कहा था- लगता है आपके देश में भोजन की कमी है |तो शॉ ने ज़वाब दिया था- और
आपको देखकर भोजन की उस कमी के कारण का भी पता चल जाता है |
सो तुझे देखकर भी यह पता चलता है कि देश में सभी लोगों को पर्याप्त भोजन क्यों नहीं मिल रहा है ?
तेरा पेट और सिर हमें आकार में कुछ बड़े-से नज़र आ रहे हैं | छाती भी  २८ से ३० इंच की ओर विकसित
होती सी लग रही है |२०२४ तक जैसे देश की अर्थ व्यवस्था ५ ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी या
किसानों की आय दुगुनी हो जाएगी वैसे ही तेरी छाती भी तब तक ३२ इंच की तो हो ही जाएगी |

बात को आगे बढ़ने से पहले हमने एक छोटा-सा कोमर्शियल ब्रेक लेते हुए पत्नी से कहा- सुनती हो,
आज तोताराम के लिए चाय मत बनाना |इसे अजीर्ण हो रहा है |और हाँ, पकौड़े भी रहने दे फिर
कभी बना लेना |तिल के लड्डू भी किसी और दिन दे देना जब इसे अजीर्ण न हो |

बोला- भाई साहब, आप किसी और की भी सुन लिया करें | आप जो मेरा यह फूला हुआ पेट देख रहे
हैं वह अधिक भोजन से नहीं बल्कि विचारों की अधिकता और उसके कहीं व्यक्त न हो पाने के कारण
से है |लगता है यदि कुछ दिन और यही हालत रही तो फट जाऊँगा |

हमने कहा- जब तेरे अजीर्ण का संबंध भोजन से नहीं बल्कि अभिव्यक्ति से है तो इसकी घोषणा
यहाँ चाय के समय करने की क्या ज़रूरत थी |मोदी जी की बात और है |उन्हें तो मजबूरी में देश
भर से अपने मन की बात करनी पड़ती है | तू  तो यहाँ हमारे प्राण खाने की बजाय अपने मन की बात
बंटी की दादी मैना को सुनाकर अपना आजीर्ण ठीक कर लिया कर |
बोला- भाई साहब, क्यों मेरा मुँह खुलवाते हैं ? यदि पत्नियां ही पतियों की सुनतीं तो लोग देश सेवा
के बहाने घर छोड़कर भागते ही क्यों ? क्या कोई और उपाय नहीं है इस बीमारी का ?


हमने कहा-तोताराम,तेरी ही नहीं, इस देश की ही सबसे बड़ी समस्या न तो बेरोजगारी है,
न गरीबी, न अशिक्षा |इस देश की सबसे बड़ी समस्या है ज्ञान का अजीर्ण |जिसे देखो ब्रह्म,
ब्रह्माण्ड, आत्मा-परमात्मा से नीचे बात ही नहीं करता |सुनने वाला मिलते ही यह देश शौच जाना
तक भूलकर भाषण झाड़ना शुरू कर देता है | इसका तो एक ही उपाय है |  कहीं से एक पुराना-धुराना
माइक्रोफोन और ईयर फोन कबाड़ ले और कमरा बंद करके उसके आगे अपने मन की जितनी चाहे
बात कह डाल |    

बोल- लेकिन इस नाटक से क्या मेरी बात सारा देश सुन सकेगा ?

हमने कहा- इससे तुझे क्या मतलब ?सुनती तो यह जनता मोदी जी की भी नहीं
लेकिन क्या उन्होंने अपना ‘मन की बात’ का मासिक धर्म निभाना बंद कर दिया ? 
सो तू भी अपने मन की कर डाल |

तोताराम हमारी पत्नी को जोर से आवाज़ लगते हुए बोला- भाभी, अब मन की बात
२३ फरवरी को करेंगे |अजीर्ण है तो ज्ञान का है, भोजन का थोड़े ही है | चाय ही नहीं;
लड्डू, पकौड़े जो कुछ है, सब ले आइए |



  




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Jan 21, 2020

नया चाय दिवस



नया चाय-दिवस 

तोताराम ने घर में घुसते ही गुहार लगाई- आदरणीय, नए चाय-दिवस की बधाई |

हमने कहा- तोताराम, हमें अब इन बधाइयों, संदेशों, अर्पणों आदि से गौरव, प्रेरणा, चेतना इत्यादि जैसा कुछ नहीं होता बल्कि कभी-कभी तो चिढ़ होने लगती है |एक तो वैसे ही इस देश में दुनिया भर के धर्म और फिर ३६५ दिनों में ७३० त्यौहार, फिर गली-गली, गाँव-गाँव के अपने-अपने महापुरुष, देवता आदि ऊपर से जिसका जो मन चाहे दिवस बना,मना लेता है |कोई ढंग का काम तो किसी को करना नहीं है | अब यह चाय-दिवस कहाँ से आगया ? वैसे तेरे लिए तो रोज ही चाय-दिवस है, हमारे बरामदे में |

बोला- भाई साहब, मैं अंतर्राष्ट्रीय और सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्रीय वर्चस्व की बात करना चाहता हूँ और आप हैं कि मेरे व्यक्तिगत सम्मान पर कमेन्ट कर रहे हैं |

हमने कहा- तोताराम, जब तू इस प्रकार की राष्ट्रीय सम्मान वाली तत्सम शब्दावली में बोलता है तब हमें भी बड़ा परायापन लगने लग जाता है |जो कहना है वह बिना किसी औपचारिकता और नाटकबाजी के कह दे |हमें तो नए-पुराने किसी चाय-दिवस के बारे में कुछ नहीं मालूम |हम तो यही जानते हैं कि मोदी जी ने २०१४ के लोकसभा के चुनाव में खुद को और अपने चाय-विक्रय को भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के केंद्र में ला दिया था |तो मोदी का जन्मदिन या उनकी पिछले चुनाव में पहली 'चाय पर चर्चा' को चाय-दिवस माना जा सकता है |या फिर कुछ और चाय दिवस भी हो सकते हैं जैसे- दुनिया में आदमी में सबसे पहले चाय कब पी या मोदी जी ने पहली बार चाय किस दिन बेची ? 

बोला- वैसे तो १५ दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस मनाया जाता है लेकिन चाय उत्पादन तो सबसे अधिक, चीन, भारत, कीनिया, वियतनाम और श्री लंका आदि में होता है इसलिए भारत की सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने १५ मई को चाय दिवस घोषित कर दिया है |
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हमने कहा- तो फिर २१ मई को देता बधाई |

बोला- इसमें क्या है ? कोई भी बड़ा काम बड़े नाम से जुड़ना चाहिए जैसे जी एस.टी. को भाजपा ने दूसरी आज़ादी कहा, वैसे ही 'अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस' के स्थान पर हमने 'अपना चाय दिवस' शुरू करवा दिया, क्या यह छोटी बात है ? यह तो मोदी जी के रिकार्डों में एक और विश्व रिकार्ड है; योग दिवस की तरह |

हमने कहा- क्या इसे दो दिन और आगे खिसकाकर २३ मई या ३० मई नहीं किया जा सकता था जिस दिन मोदी जी ने क्रमशः पहली और दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी ? 

बोला- करने को तो कुछ भी किया जा सकता था |  मोदी जी द्वारा १५ लाख का अपना नाम कढ़ा सूट पहनकर ओबामा जी को चाय पिलाने  या चीन के राष्ट्रपति द्वारा मोदी जी को चीन में एक विशेष समारोह में चाय पिलाने को भी चाय दिवस घोषित किया जा सकता था | लेकिन मोदी जी इतने स्वार्थी नहीं हैं |वे तो निस्पृह फकीर हैं |


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हमने कहा- चाय किसी के भी साथ हो लेकिन फायदे में तो दूसरे ही रहते हैं |जो भी आता है कुछ न कुछ बेचकर ही जाता है |हम तो उस दिन को विशेष मानेंगे जब भारत दो पैसे कमाने वाला काम करेगा |योग-दिवस और चाय-दिवस से पेट नहीं भरता |


 


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Jan 11, 2020

मफलर मैन



मफलर मैन


राजधानी तो राजधानी होती है |उसका इतिहास होता है, उसी का भूगोल भी होता है |उसी का सुख होता है और दुःख भी उसी का होता है |जब राजधानी को दस्त होते हैं तो देश को ईसबगोल लेना होता है |जब राजधानी को कब्ज़ होता है तो सारे देश को जुलाब दिया जाता है भले ही उसे चार दिन से खाना न मिला हो |बिना जाने-समझे जोर-जोर से उन नारों को लगाना होता है भले ही उनका अर्थ-अनर्थ, भाव-स्वभाव, सद्भाव-दुर्भाव नारे ईजाद करने वालों को भी न मालूम हो |

हमें रात को रजाई में भी ठण्ड लगी इसका कोई रोना-गाना नहीं है लेकिन यह पढ़ना पड़ता है कि आज राजधानी में ठण्ड ने पिछले १०० साल का रिकार्ड तोड़ दिया |राजधानी ने तो बलात्कारों के रिकार्ड भी तोड़ दिए, शिक्षण संस्थाओं में अनुशासन स्थापित करने की तीव्र गति और अपनाए गए नए-नए तरीकों के भी रिकार्ड तोड़ दिए |हम इस मामले में अधिक नाक नहीं घुसेड़ना चाहते क्योंकि कहीं रिकार्ड के साथ-साथ कोई हमारा सिर भी न तोड़ दे |

यह भी समाचार बन जाता है कि राजधानी ने आज किस रंग की जैकेट पहनी या किस रंग का कुरता पहना | वैसे हम देखते हैं राजधानी में सेवा करने वाले किसी सेवक को ठिठुरन नहीं हो रही है बल्कि जोश, गर्व और उत्साह में उबल रहे हैं और हमारा यह हाल है कि ‘राम-राम’ बोलते हैं तो लोगों कंपकंपी के मारे घर वालों को ’हाय-हाय’ सुनता है |अब दिसंबर के अंतिम और जनवरी के प्रारंभिक दिनों में रात का तापमान माइनस चार और दो डिग्री के बीच झूलता रहा लेकिन किसी सेवक ने हमारे लिए कोई गरमाहट भरा जुमला तक नहीं फेंका | 

कल दिन भर ठंडी हवा चलती रही |लगा ही नहीं कि दिन निकल आया |सूरज की नेता जैसी हालत हो रही थी जो अपने चुनाव क्षेत्र की बजाय राजधानी में अधिक दिखता है |हालाँकि अपने क्षेत्र में रह कर भी वह कितना उपयोगी होता है यह देश के हर भाग की जनता जानती है |

आज सुबह भी ठण्ड थी |साथ में ठिठुरन और हवा |खिड़कियों के अखबार लगा दिए हैं फिर भी ठंडी हवा घुसपैठियों की तरह खिड़कियों के साथ सेटिंग करके घुस ही आती है |रजाई के ऊपर कम्बल जोड़कर उसी तरह से दुबके बैठे थे जैसे नकाबपोशों या पुलिस के आने की खबर से विद्यार्थी लाइब्रेरी या अपने कमरों में जा छुपते हैं |अब यह बात और है कि वहाँ भी वे सुरक्षित नहीं रहते |

तभी गेट पर ठकठक की आवाज़ हुई |गेट लोहे का है इसलिए आवाज़ ज़रा ज्यादा होती है |लोहे के गेट की विशेषता यह है कि उस पर होने वाली चोट से उस पदार्थ का भी अनुमान हो जाता जिससे गेट ठोकने वाली वस्तु का निर्माण हुआ है |हमें लगा कि अच्छी किस्म की लकड़ी से बनी किसी चीज से गेट ठोका जा रहा है |आश्वस्त होने के लिए पत्नी से भी अनुमान लगाने के लिए कहा | वह बोली- मुझे तो लगता है जैसे कोई लोहे के पाइप या मोटे सरिये से ठोंक रहा है | 

हमने एन.आर. सी., सी. ए. ए., जे. एन. यू., सी. ए. बी. आदि किसी विषय पर अपना मुंह नहीं खोला था  | वैसे यह विषय ऐसा है जिसके बारे में इसकी घोषणा करने वाले भी नहीं समझ पाए इसलिए अब व्यक्तिगत रूप से और पुस्तिकाएँ बाँट-बाँटकर लोगों को समझा रहे हैं |ऐसे में हम कैसे इन विषयों पर बात कर सकते थे |किसी भी मुद्दे पर बात करने के लिए उससे नितांत अनभिज्ञ होना बहुत ज़रूरी होता |जानने के बाद तो व्यक्ति मौन हो जाता है जैसे कि ईश्वर, प्रेम और देश को जानने वाला |न जानने वाला ही अधिक चिल्लाता है |तभी कहा जाता है- नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है |यह कहावत तब की है जब प्याज आजकल जितना महत्त्वपूर्ण नहीं हुआ था कि जनता ही नहीं, सरकारों को भी रुला दे | फिर भी ज़माना खराब है |पता नहीं, कब किसे कोई भ्रम हो जाए या देशभक्ति का दौरा पड़ जाए और वह गर्वित और उत्साही हमारी कपाल क्रिया कर दे | 

हालाँकि हम डरे हुए थे लेकिन पत्नी के सामने यह कैसे स्वीकार कर लेते जैसे कि कोई सरकार कैसे मान ले कि आगामी चुनाव में वह सत्तर में से पाँच सीटें ही प्राप्त कर पाएगी |सो हमने पत्नी से कहा- हमें आज ठंड कुछ अधिक ही लग रही है इसलिए तुम ही जाकर देखो कि गेट पर कौन है ?

पत्नी गेट पर गई और साइड के सींखचों से झाँककर देखा और बोली- साफ़ दिखाई नहीं दे रहा है |कोई मफलर से मुँह ढंके दरवाजे पर खड़ा है |हाथ में लकड़ी का एक डंडा भी है |

हमें निश्चय हो गया कि कोई नकाबपोश ही है |जिन नकाबपोशों को सरे शाम राजधानी की पुलिस भी, न तो सहज भाव से घुसते समय देख और रोक सकी और न ही अपने कर्त्तव्य पूर्ण करके शांत भाव से टहलते हुए बाहर जाने के समय रोक सकी तो हमारे सीकर की पुलिस ही ऐसी कौन सी स्कोटलैंड की पुलिस है जो नकाबपोशों को ऐसी ठण्ड में सुबह-सुबह देख और रोक सकेगी |

हमने पत्नी से कहा- वैसे तो अपने पास हनुमान चालीसा है और थोड़ा-बहुत याद भी है लेकिन ये लोकतांत्रिक ‘भूत बाधा’ हैं | हनुमान चालीसा से नहीं वश में आएँगे |यदि तुझे याद हो तो ‘वन्दे मातरम..’, ‘जन गण मन….’,  ‘रामचन्द्र कृपालु भज मन…’ जैसा कुछ शुरू कर |हम भी पीछे-पीछे गा लेंगे |शायद कुछ लिहाज कर लें |यदि कोई कुछ पूछे तो कह देना- हम छपाक फिल्म भी नहीं देखेंगे |हम राजधानी की हर ‘ए बी सी डी’ का समर्थन करते हैं |  वैसे भी यदि गेट नहीं खोला तो क्या पता गेट ही तोड़ डालें |

पत्नी ने हिम्मत करके गेट खोला |गेट खुलते ही एक काँपती सी गुस्साई वाणी सुनाई दी- मास्टर,आठ बज गए और तू अभी तक सो रहा है |राष्ट्र खतरे में हैं, लोग उसके टुकड़े-टुकड़े करने पर तुले हुए हैं, राजधानी परेशान है और तू नेपोलियन की तरह तोप के साए में सो रहा है |

देश के बारे में तो हमें कुछ बोलने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि कोई भी हमारी देशभक्ति को चेलेंज कर देगा लेकिन नेपोलियन को मार गोली |यह बता कि आज तूने यह नकाब क्यों लगा रखा है ? और क्या आवाज़ नहीं लगा सकता था ? किसी होस्टल के कमरे के दरवाजे की तरह डंडे से गेट क्यों ठोंक रहा था ? जब से नकाबपोशों के बारे में सुना है हमारी तो साँस रुकी हुई है  |

बोला- मास्टर, हम तो वह पहलवान हैं जो बुढ़ापे में भी उतना ही शक्तिशाली है जितना जवानी में था |

हमने पूछा- मतलब ? इसमें पहलवानी कहाँ से आगई ?

बोला- मतलब कि मारपीट का यह पत्थर न जवानी में हमसे उठा और न ही बुढ़ापे में उठ रहा है |हम अब भी पहले जितने साहसी हैं | नकाब के अन्दर और नकाब के भीतर समान रूप से दब्बू हैं |अरे, जब जवानी में ही कोई तीर नहीं मारा तो अब इस संन्यास आश्रम में क्या नकाबपोशों की तरह लाठी, डंडा, सरिया चलाएंगे ?

हमने कहा- तो फिर इस मफलर, डंडे का क्या मतलब है ? हम तो डर ही गए थे |

बोला- बाहर निकलेगा तो पता चलेगा | ठंडी हवा चल रही है |अखबार में देख, पारा फिर शून्य से नीचे चला गया |बिना मफलर के मरना है क्या ? और जयपुर रोड़ पर एक कुत्ता पगला गया |पता नहीं कब पिंडली पकड़ ले ? इसलिए डंडा रखना भी ज़रूरी है |वैसे मैं जानता हूँ कि जब किसी पागल ने ठान ही लिया तो कोई डंडा- सरिया काम नहीं आएगा |पागलों से तो गाँधी तक नहीं बच पाए, मेरी तो औकात ही क्या ? 

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Jan 7, 2020

भूत बाधा



भूत बाधा 


आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- ले सँभाल, अपने अटल जी को एक वैज्ञानिक श्रद्धांजलि |

बोल- क्या हुआ ? हमारा देश तो हमेशा से ही वैज्ञानिक दृष्टि वाला रहा है |शून्य का आविष्कार हमने ही तो किया था  |

हमने कहा- लेकिन केवल शून्य से काम नहीं चलता |उससे पहले कोई संख्या तो होनी चाहिए |इसे चाहे तो तू इस तरह समझ सकता है कि केवल थ्योरी नहीं, उसका कार्यान्वयन भी होना चाहिए |जैसा कि तुम कहा करते हो कि जर्मनी वाले हमारे वेदों से सारा ज्ञान निकाल कर ले गए | जब कोई केवल गर्व और बातें करता है तो उसकी यही हालत होती है |दुनिया जाने कहाँ से कहाँ पहुँच गई और तुम अपने विश्वविद्यालयों में पढ़ाओ 'भूत बाधा' | क्या इसी के लिए उस ब्राह्मण ने देश भर में घूम-घूमकर चंदा मांगकर विश्वविद्यालय बनवाया था ? 

बोला- क्या बात है ? आज तो ऐसे धुआँधार हो रहा है जैसे मोदी जी पर कन्हैया कुमार या कांग्रेस पर मोदी जी |

हमने कहा- हम ज्ञान-विज्ञान की बात कर रहे हैं और तू राजनीति की बातें करके बात को घुमा रहा है |

बोला- राजनीति क्या कोई विज्ञान की विरोधी होती है ? ध्यान से समझेगा तो तुझे पता लगेगा कि केवल हमारी पार्टी ही वैज्ञानिक विचारधारा वाली है |गाँधी जी ने क्या किया ?अच्छे भले मशीनी कपड़े जलाकर लगे चरखा चलाने | उसके बाद उनके चेले आए तेरे नेहरू जी जिन्होंने नारा दिया- आराम है हराम |अरे भाई, क्या सारा जीवन ऐसे ही हाय तौबा में निकाल दें ? आराम करने के लिए क्या दूसरा जन्म लेंगे |और फिर आए 'जय जवान : जय किसान' वाले  शास्त्री जी | या तो सीमा पर शहीद होवो या फिर खेत में धूल में सिर दो | कहीं भी कोई वैज्ञानिक बात नहीं | लेकिन अटल जी ने आते ही नारा दिया-जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान |और मोदी जी यही तक नहीं रुके और पंजाब की एक निजी यूनिवर्सिटी में इस नारे में एक और  आयाम जोड़ दिया- जय अनुसन्धान |बिना अनुसंधान के विज्ञान का क्या मतलब ? 

हमने कहा- तभी जिस मंत्री को देखो लगा हुआ है अनुसन्धान करने में - कोई बतख के पखों से ओक्सीजन निकाल रहा है तो कोई डार्विन को झूठा सिद्ध कर रहा है |कोई मन्त्रों से रक्तचाप और डाइबिटीज का इलाज़ कर रहा है |जब कि असलियत यह है आयुर्वेद, योग और स्वदेशी से कुछ भी कर सकने वाले योगी बालकृष्ण की तबियत देशी गाय के शुद्ध घी-दूध से बनी मिठाई खाने से हुए 'फूड पोइजनिंग' के कारण बिगड़ गई |अब कौनसे विज्ञान पर क्या विश्वास करें ?

बोला- तुझ में यही खराबी है कि बात को समझे बिना भाषण देने लग जाता है | बिना ठीक से समझे और बिना उचित प्रसंग-सन्दर्भ के नोट बंदी, जी एस टी, एन आर सी, सी ए ए या सी ए बी की तरह कुछ भी शुरू कर देता है | अखबार वाले टी आर पी बढ़ाने  के लिए किसी भी समाचार को अनावश्यक रूप से रोचक बनाने के लिए उछल-कूद करते रहते हैं |ज़रा पूरा समाचार पढ़कर, समझकर बात किया कर |

हमने कहा- तो फिर तू ही बता दे सही बात |

बोला- पहली बात तो यह कि केवल हिन्दू धर्म वाले ही भूत प्रेतों की बात नहीं करते |इस्लाम वाले भी झाड-फूंक और गंदे ताबीज से शैतानी बाधाओं का इलाज़ करते हैं |वेटिकन में तो बाकायदा भूत भगाने का कोर्स करवाया जाता है |अपने यहाँ आदिवासी इलाकों में तो योरप में ईसाइयों द्वारा 'विच हंटिंग' की तरह औरतों को चुड़ैल बताकर जला देने की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं |

हमने कहा- इसका मतलब सभी धर्म विज्ञान विरोधी होते हैं |भले ही अपने यहाँ सरकार द्वारा समर्थित धर्म हो या योरप में तथाकथित रूप से सत्ता से अलग किया गया धर्म ईसाइयत हो |

बोल- हमारे बी एच यू वाले जिस बीमारी की बात कर रहे हैं वह वास्तव में सिज़ोफ्रेनिया नामक एक मानसिक बीमारी है |यह तो राष्ट्रभक्त विद्वानों ने इसे संस्कृत नाम दिया है |

हमने कहा- लेकिन हमें तो इसमें चालाकी लगती है |इसमें उन काल्पनिक, अदृश्य और अस्तित्त्वहीन शक्तियों का भ्रम फैलता है जो अंधविश्वास और झूठ हैं |सीधा-सीधा सिजोफ्रेनिया क्यों नहीं कह देते ?

बोला- यह संसार भौतिक है, पञ्च भूतों से बना है इसलिए इसकी सभी बाधाएं 'भूत बाधाएं' ही तो हैं |इसलिए मेरे हिसाब से इस नाम में कोई बुराई नहीं है |

हमने कहा- दुनिया भर की राजनीति और धर्मों में भूत जिन्न, शैतान जैसे सभी मामलों में हमें तो एक ही बात समान नज़र आती है कि सभी अपने-अपने समाजों और जनता का वर्तमान सँवारने और समस्याएँ सुलझाने की बजाय ईश्वर,अल्ला,गॉड, नस्ल, धर्म-ग्रन्थ, ईश-निंदा, धार्मिक-स्थान, मूर्तियों, दाढ़ी-पायजामे-जनेऊ आदि में या फिर अपने-अपने देश, भाषा, धर्म और भूतकाल को सर्वश्रेष्ठ ठहराने में लगे हुए हैं |किसी के पास दुनिया के सुखद और सुरक्षित भविष्य की न तो कोई योजना है और न ही नीयत |

हमें तो लगता है इस दुनिया के सभी नेता अपनी नाकामी को छिपाने और स्वार्थ सिद्धि के लिए अपने-अपने देशों-समाजों में  'भूतकाल' की यह  'भूतबाधा' फ़ैला रहे हैं |हो सके तो हमें अपनी सुरक्षा के लिए इनकी इस चाल से बचना चाहिए |

बोला- ऐसे लोग को पहचाने का सरल तरीका क्या है ?

हमने कहा- ऐसे लोगसामान्य रूप से यही कहते हैं कि पिछली सरकार खज़ाना खली कर गई |काम कुछ नहीं किया | इस देश में पिछली सरकारों ने कुछ नहीं किया बल्कि सब कुछ बिगाड़ कर गई हैं | अब हम उसे ठीक करने में लगे हुए हैं |बिगड़े काम को सँवारने में समय तो लगेगा ही | हैं अपने पूर्ववर्तियों को गालियाँ 


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