Aug 29, 2015

अच्छे दिनों की आस

  अच्छे दिनों की आस

पाँच-सात दिनों से इंद्रदेव  ने कृपा  कर रखी है , नहीं तो हफ़्तों से साँस ही नहीं लेने दे रहे थे |ठीक है, पीने के पानी की कमी है, गली में कीचड़ की कमी तो बिना बरसात के भी कभी नहीं रही | अब सुबह-सुबह का तापमान भी सहनीय ही नहीं सुहावना भी हो जाता है | रात को बिजली चली गई थी और सुबह तक नहीं आई सो अलसाए हुए से बरामदे में बैठे बादे सबा का लुत्फ़ ले रहे थे कि तोताराम आ गया |पूछने लगा- क्यों, अब भी अच्छे दिनों का इंतज़ार कर रहा है क्या ? 

हमने कहा- तोताराम, अच्छे दिनों का किसे इंतज़ार नहीं रहता ? अंत भला सो भला- मरता हुआ आदमी भी कुछ अच्छा देख-सुनकर इस दुनिया से जाना चाहता है |सो यदि मान ले, हम अच्छे दिनों का इंतज़ार कर रहे हैं तो तुझे क्या तकलीफ है ? 

बोला- तकलीफ मुझे क्यों होगी ? तू शबरी की तरह राम के आने का इंतज़ार करते हुए उनके आने का रास्ता बुहार या अहल्या की तरह शापग्रस्त होकर पड़ा रह मुझे क्या ? लेकिन तुझसे ज़िन्दगी भर का वास्ता रहा है इसलिए बताने आया हूँ कि बीजेपी ने कभी अच्छे दिन लाने का वादा नहीं किया |

हमने कहा- क्यों, क्या अमित शाह ने जिस तरह काले धन के १५ लाख रुपए हर भारतीय के खाते में आने वाली बात को चुनावी जुमला बता कर मामला रफा-दफा कर दिया था उसी तरह किसी ने अच्छे दिनों की भी हवा निकाल दी क्या ?

बोला- और क्या ? हर बात के लिए मोदी जी हो सफाई दें यह तो संभव नहीं है लेकिन केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर साहब ने कह दिया है कि बीजेपी ने कभी 'अच्छे दिन' लाने का वादा नहीं किया था |

हमने कहा- लाने का वादा तो नहीं किया था सिर्फ यही कहा गया था कि अच्छे दिन आने वाले हैं |तो फिर जनता की क्या गलती, वह भी इंतज़ार करने लगी |हम कौन सा किसी पर मुक़दमा करने जा रहे हैं | ज्योतिषी और तांत्रिक के कहने पर दुखी आदमी अनुष्ठान का खर्चा तो पेट काटकर भी कर ही देता है |सो हमने भी वोट दे दिया | वैसे अब भी यह थोड़े ही कह दिया है कि अच्छे दिन आएँगे ही नहीं | उम्मीद अब भी बाकी है और उम्मीद पर दुनिया कायम है | वैसे हम  तो थोड़ी ठंडी हवा का मज़ा लेने के लिए बरामदे में बैठे हैं |

हमें इतना बेवकूफ मत समझ |हमें १९५२ से अब तक के सारे वादों की असलियत मालूम है |यदि इन पर ऐतबार होता तो बकौल ग़ालिब-

तेरे वादे पे जिए हम तो ऐ जान झूठ जाना 
कि खुशी से मर न जाते 'गर ऐतबार होता |

बोला- तो फिर कोई बात नहीं |मैं तो यह सोचकर चिंतित हो रहा था कि कहीं ज़फर साहब की तरह चार दिन की ज़िन्दगी - दो आरजू में और दो इंतज़ार में- न काट दे |
चल, अब इस भ्रम-भंजन के उपलक्ष्य में एक बढ़िया सी चाय पिलवा दे, मठरी के साथ | 
 

Aug 25, 2015

प्याज-पौरुष

 प्याज-पौरुष

दलित-उद्धार
 (प्याज एक सौ रुपए किलो तक जा सकता है )
छिलके-छिलके देह है, रोम-रोम दुर्गन्ध ।
सात्विक जन के घरों में था इस पर प्रतिबन्ध ।
था इस पर प्रतिबन्ध, बिका करता था धड़ियों ।
अब दर्शन-हित लोग लगाते लाइन घड़ियों ।
कह जोशीकविराय दलित-उद्धार हो गया ।
कल का पिछड़ा प्याज आज सरदार हो गया ।

प्याज -ध्वज
व्यर्थ मनुज का जन्म है नहीं मिले 'गर प्याज ।
रामराज्य को भूलकर, लायँ प्याज का राज ।
लायँ प्याज का राज, प्याज की हो मालाएँ ।
छोड़ राष्ट्रध्वज सभी प्याज का ध्वज फहराएँ ।
कह जोशी कविराय स्वाद के सब गुलाम हैं ।
सभी सुमरते प्याज, राम को राम-राम है ।

प्याज और ड्राप्सी
आसमान में चढ़ गए तुच्छ प्याज के दाम ।
मोदी से अरविंद तक सब की नींद हराम ।
सब की नींद हराम, तेल-फेक्ट्री में जाओ ।
ड्राप्सी वाला वो ही नुस्खा लेकर आओ ।
कह जोशी कविराय ड्राप्सी 'गर हो जाये ।
कीमत अपने आप प्याज की नीचे आये ।
(दिल्ली में सरसों के तेल से ड्राप्सी नामक बीमारी का षड्यंत्र हुआ था )


प्याज का इत्र
अस्सी रुपया प्याज है, चालिस रुपया सेव ।
कैसा कलियुग आ गया हाय-हाय दुर्दैव ।
हाय-हाय दुर्दैव, हिल उठी है सरकारें ।
बिना प्याज के लोग जन्म अपना धिक्कारें ।
कह जोशी कविराय प्याज का इत्र बनाओ ।
इज्ज़त कायम रहे मूँछ पर इसे लगाओ ।

मिनिस्टर की स्पेलिंग


 मिनिस्टर की स्पेलिंग


आज तोताराम ने आते ही कहा- मिनिस्टर की स्पेलिंग क्या होती है ? 

हमने कहा- देख, अब हमें न किसी मिनिस्टर से कोई मतलब है और न किसी प्रधान मंत्री से | पेंशन के पैसे निकालने के लिए दस्तखत करने पड़ते हैं सो कर ही देते हैं और दस्तखत की कोई स्पेलिंग नहीं होती है |जब हाथ में दस्तखत करने लायक दम नहीं रहेगा तब अँगूठा लगा देंगे |तुझे पता होना चाहिए कि अँगूठा दस्तखत से भी बड़ा होता है |जब नौकरी शुरु की थी तो तब सरकार ने दसों अँगुलियों के छापे लिए थे |दस्तखत बदल जाएँ लेकिन अँगूठे की छाप नहीं बदलती |और जहाँ तक सरकार या किसी अन्य से कोई लाभ की बात है तो हमें कुछ भी नहीं मिलने वाला |बिना बात आधार कार्ड और राशन कार्ड सँभाल-सँभाल कर रखते हैं | हम ब्राह्मण हैं और भारत में ब्राह्मण की स्थिति उस सती-साध्वी नारी के समान है जो- अंध, बधिर, क्रोधी, अतिदीना- पति को भी नहीं छोड़ सकती |यदि किसी दिन कोई वित्तमन्त्री पेंशन आधी भी कर देगा तो  भी हम कुछ नहीं कर सकेंगे |

बोला- यह चुनाव सभा नहीं है जो बिना ब्रेक की बुलेट ट्रेन की तरह दौड़ा जा रहा है |यदि चोंच बंद करे तो कुछ कहूँ | देख, तू ठहरा लेखक की दुम |कुछ न कुछ लिखता रहता है |और कुछ सार्थक नहीं तो किसी न किसी नेता के नाम पत्र ही लिख मारता है इसलिए तुझे बता रहा हूँ कि किसी के भी कर्म चाहे कैसे भी हों लेकिन स्पेलिंग और ड्रेस टिपटॉप होनी चाहिए |एक बार जब एक निमंत्रण पत्र में राबर्ट वाड्रा की स्पेलिंग किसी क्लर्क से गलत लिखी गई तो बेचारे को लेने के देने पड़ गए थे |

हमने कहा-हम अंग्रेजी में नहीं लिखते और स्पेलिंग गलत तो अंग्रेजी में होती है और वह भी भारतीयों से |अंग्रेज, अंग्रेजी में कुछ भी लिख दे सही माना जाता है |एक बार एक भारतीय ने चर्चिल की गलत अंग्रेजी की और इशारा किया तो चर्चिल ने कहा -वही अंग्रेजी सही है जो हम बोलते हैं |हम अंग्रेजों की अंग्रेजी को चेलेंज नहीं कर सकते |न ही पूछ सकते कि यदि कहीं किसी आर,पी आदि अक्षरों का उच्चारण होता ही नहीं तो उन्हें स्पेलिंग में शामिल करने की ज़रूरत ही क्या है ? अ,आ,इ,ई,उ आदि स्वरों को अलग-अलग तरह से क्यों लिखते और उच्चारित करते हो ? आज तक शेक्सपीयर की सही स्पेलिंग तय नहीं हो सकी है |स्मृति ईरानी वाले लेटर हैड में तो मिनिस्टर की स्पेलिंग MINSTER ही तो की है MONSTER तो की नहीं |यह तो बेचारी भली महिला है हालांकि बहुत से मिनिस्टर तो  'मोंस्टर' से भी खतरनाक होते हैं |

और जहाँ तक हिंदी की बात है तो वह हमारी मातृभाषा है उसका सत्यानाश करने का हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है | जैसे विदेश में गन्दगी फ़ैलाने में डर लगता है लेकिन अपने देश में कहीं भी कूड़ा डालने के लिए हम स्वतंत्र हैं | सौ में से नब्बे भाषण-वीर शुरु में ही 'भाइयों,बहनों' बोलकर गलती करते हैं जब कि संबोधन कारक में अनुस्वार नहीं आता | करोड़ों रुपए के सरकारी विज्ञापनों में गलतियाँ आती हैं |उनके लिए तो कोई हल्ला नहीं मचाता |एक छोटे से क्लर्क टाइप आदमी पर सब पिले पड़ रहे हैं | इसमें मंत्री का क्या गलती है |और फिर आजकल परीक्षाओं में स्पेलिंग मिस्टेक के नंबर नहीं कटते |वैसे इसी लेटर में 'संसाधन' की जगह  'संसाधान' छाप गया तो कौनसा पहाड़ टूट पड़ा ? बात काम की है | 'पानी' को 'पानि' लिख दो तो भी यदि वह प्यास बुझाता है तो पानी ही है | एक शे'र सुन-
जो प्यासे की प्यास बुझा दे 
कतरा वही समंदर भगतो |

और फिर आजकल मानव भी ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति नहीं रहा | जैसे बिल्डिंग बनाने के लिए ईंट, सीमेंट, सरिये 'संसाधन' है वैसे ही आदमी भी 'संसाधन' मात्र रह गया है जिसका काम वोट देना और इस-उस से शासित होना है |बस, इस मानव रूपी संसाधन में यही एक कमी है कि किसी काम में नहीं आते हुए इसे दोनों टाइम खाना चाहिए |

हो सकता है किसी दिन रोबोटों में इसका भी विकल्प खोज लिया जाए |


Aug 19, 2015

सेक्स, सभ्यता और संस्कृति


 सेक्स,  सभ्यता और संस्कृति


मानव भी अन्य जीवों की भाँति मूलतः एक पशु ही है | उसमें भी वे सभी मूल प्रवृत्तियाँ विद्यमान हैं इसलिए आहार, निद्रा, भय और मैथुन तक दोनों समान हैं | मानवेतर सभी प्राणी आज भी उसी स्थिति में हैं जिसमें वे आदिम काल में थे | मनुष्य ने समूह में रह कर अपनी मेधा से स्वयं को सामाजिक प्राणी बनाया है | इसलिए वह सभ्य और संस्कृत बना | सभ्यता और संस्कृति का यह भेद, मानव के लाखों वर्षों के अनुभव और प्रयोग की कहानी है |

चूल्हा और दीपक मनुष्य की सभ्यता और संस्कृति के मुख्य आधार हैं | इधर-उधर भटकने वाले मानव ने जब खेती करना सीख लिया तो वह शाम को अपने परिवार  में लौट कर आने को लालायित रहने लगा | चूल्हे के चारों ओर बैठ कर भोजन करने ने उसके आपसी संबंधों को और दृढ़ किया | दीपक के प्रकाश में जब उसने पहली बार अपनी नग्नता का अनुभव किया तो उसने अपने गुप्तांगों को ढकने का उपक्रम किया | आज भी खुली से खुली समाज रचना में गुप्तांगों को ढकने का होश तो बचा ही है |

मानवता के इस होश को भी नष्ट करने वाली व्यापारिक सभ्यता अधिकाधिक स्वच्छंदता के नाम पर उसे आत्मकेंद्रित और केवल अपने लिए जीने का पाठ पढ़ा रही है | ऐसा संबंधविहीन प्राणी आसानी से उपभोक्ता संस्कृति का शिकार हो जाता है |आज पोर्न फिल्मों पर प्रतिबन्ध लगाकर फिर उसे हटाने में कोई अभिव्यक्ति या निजता की पक्षधरता नहीं है बल्कि इसी उपभोक्ता संस्कृति के आगे एक कायर समर्पण है |भले ही आज चीन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने का आरोप लगाया जाता है लेकिन उसने पोर्न साइटों पर जो प्रतिबन्ध लगाया है वह उचित ही है |चीन के अनुशासन का प्रभाव उसके ओलम्पिक खेलों में प्रदर्शन में दिखता है |स्वच्छंदता की जिस अमरीकी संस्कृति को जाने-अनजाने जो मान्यता दी रही है उससे पहले अमरीका के किशोरों में व्याप्त यौन और नशे की समस्याओं की तरफ भी निगाह डाल लेनी चाहिए |

अपने-अपने धर्म की श्रेष्ठता का गुणगान करने वाले सभी धर्मों के शुचितावादी लोग पता नहीं इस समय कहाँ है ?पता नहीं, किससे कुछ लेकर खा रखा है कि उनकी भी जुबां नहीं खुल रही है- विश्वा हिन्दू परिषद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भी नहीं |

पशु अपनी मैथुन की प्रवृत्ति में पूर्ण स्वच्छंद है | उसके लिए उस प्रवृत्ति को पूर्ण करना ही एकमात्र  प्रकृति चालित विधान है | मानव संतानोत्पत्ति के बाद अपनी संतान के बड़े होने तक पालन और आजीवन मार्गदर्शन की बात भी सोचता है | उसे अपनी समस्त प्रवृत्तियों की शालीन व मर्यादित पूर्ति की व्यवस्था देता है | विवाह एक ऐसा ही विधान है | विवाह एक अलिखित बीमा है जिसमें सभी पक्ष अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए आजीवन एक दूसरे का ख्याल रखते हैं | विवाह पूर्व सभी प्रकार की जाँच-परख के बाद यदि किसी पक्ष पर कोई शारीरिक, मानसिक या आर्थिक संकट आता है तो उस स्थिति में सारे पक्ष उसके साथ होते हैं | आज जिस यौन-स्वच्छंदता की आँधी चल रही है उसमें सबसे  अधिक उपेक्षित बच्चे और वृद्ध होते हैं | सभी संस्कृतियों में विशेष परिस्थितियों में तलाक का विधान था, और है भी, पर उसे कठिन बनाया गया जिससे कि विवाह नामक संस्था संकट में न पड़े | पर आजकल जिस प्रकार के टी.वी. सीरियल आ रहे हैं या ग्लेमर जगत से जुड़े लोगों के विवाह को मजाक बना कर रखा देने वाले किस्से आते हैं वे निश्चित रूप से विवाह नामक संस्था पर खतरा हैं | यौनेच्छा की पूर्ति को विवाह और विवाह को एक पवित्र संस्कार का रूप देने के मानवीय प्रयत्न, मानव की मूलप्रवृत्ति सेक्स को सभ्यता और संस्कृति का रूप देने की कहानी है |

मूल प्रवृत्तियों को सभ्यता और संस्कृति का रूप देने का प्रयत्न मानव के प्रत्येक क्षेत्र में मिलता है | उदाहरण के लिए अन्न (भूख) जीव की मूल आवश्यकता है पर पशु जितना खाएगा, खा लेगा, शेष को संरक्षित रखने का प्रयत्न नहीं करेगा | इसी प्रकार सुरक्षित न होने के कारण भी भोजन के लिए लड़ना, समय-असमय भोजन करना उसकी मजबूरी है | पर मनुष्य भोजन को भली प्रकार पकाकर, परोसकर, सबके साथ मिलकर खाता है | यह सभ्यता है | अन्न हमारे जीवन का आधार है | भूखे की भूख का आदर करना, उसे अन्न का दान देना, अन्न को व्यर्थ न करना, अन्न को भगवान या ब्रह्म मानना संस्कृति है | इस प्रकार बालक को निरंतर शिक्षा देकर उसकी ऐसी आदत बना देना कि वह अन्न का आदर करे- यह संस्कृति है | कुछ देशों में अन्न अधिक पैदा होने पर भाव न गिर जाएँ इस डर से अन्न नष्ट कर दिया जाता है- यह अपसंस्कृति है, पाप है |

हमारे यहाँ किसी भी मूल प्रवृत्ति को नकारा नहीं गया है क्योंकि ऐसा करना अमनोवैज्ञानिक है | शिवलिंग की पूजा होती है, काम को देवता माना गया है- यह सृजन शक्ति का सम्मान है | काम में मर्यादा हो, इसलिए सभ्यता (विवाह) का विधान है | विवाह जन्म-जन्मांतर का बंधन है ऐसा कहकर इस संबंध का सम्मान किया गया है | क्रोध आवश्यक है पर क्रोध किस पर किया जाए यह हमें शिक्षा हमने सभ्यता- संस्कृति से मिलती है | सदैव शांत रहने वाले राम राक्षसों द्वारा मारे गए ऋषियों की हड्डियों का ढेर देखकर क्रोध से भरकर राक्षसों के वध का व्रत लेते हैं | घृणा भी आवश्यक है पर किसके प्रति ? बुराइयों के प्रति घृणा का संस्कार हमें बुराइयों से बचाता है | जिन परिवारों में शराब और मांस के प्रति घृणा के संस्कार दिए जाते हैं उस परिवार के बच्चों पर विपरीत वातावरण में भी ये बुराइयाँ कोई असर नहीं करतीं | साहस, उत्साह वीर रस के स्थाई भाव हैं पर उत्साह किस कार्य में ? किसी कमजोर पर अत्याचार करने में या अन्याय, दीनता, अधर्म के विरुद्ध दानवीरता,शूरवीरता अपनाने में ?

इसलिए हम अपनी मूल प्रवृत्तियों को सभ्यता और संस्कृति की नहरों में प्रवाहित करें जिससे कि ये शक्तियाँ विनाशक न बन सकें | यही धर्म है, यही सभ्यता है, यही संस्कृति है |


Aug 15, 2015

स्वतंत्रता, स्वाधीनता और स्वच्छंदता

 स्वतंत्रता, स्वाधीनता और स्वच्छंदता


मनुष्य के अतिरिक्त सभी के लिए प्रकृति ने एक तंत्र की स्थापना की है और  सभी जीवों में वह तंत्र उनकी मूल प्रवृत्तियों में शामिल है | वे सब उसी के अनुसार आचरण करते हैं | एक चूहे को एक चूहे के रूप में कोई शर्म अनुभव नहीं होती | | वह एक अच्छा चूहा बनाने का प्रयत्न करता है और चूहे के रूप में सुखी रहता है | जब तक मनुष्य उसके तंत्र में बाधा नहीं पहुँचाए | अपने आप प्रकृति का तंत्र नहीं बिगड़ता है | किसी प्रजाति का विलुप्त होना या उसका आचरण बदलना अपने आप नहीं होता | जब मानव उनको अपने शौक या आर्थिक लाभ के लिए पालता है तो जीवों के खानपान और आदतें बदल जाती हैं | जंगल में स्वतंत्र रूप से विचरण करने वाली गायों में 'मैड काऊ डिजीज' नहीं होती | उन्हें तो जब फटाफट मांस बढ़ाने के लिए उल्टा- सीधा खिलाया जाता है तब गड़बड़ होती है | मुर्गियों में बर्ड फ्लू तब फैलता है जब उन्हें कम से कम जगह में ठूँस-ठूस कर भर दिया जाता है | पृथ्वी ने अपने हिसाब से नदियों और पहाड़ों के द्वारा अलग-अलग अंचलों का निर्माण किया है | उसी में शताब्दियों से रहते, मिलते-जुलते, रोते-हँसते, नाचते-गाते, मरते-जीते, सुख-दुःख भोगते एक समानता, एक सभ्यता, एक संस्कृति, एक दर्शन, एक जीवन पद्धति पनपती, विकसित होती है जो उन्हें सारी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के बावज़ूद एक बनाती है और बनाए रखती है |

भारत में विचारों की स्वतंत्रता होने के बावज़ूद एक आतंरिक एकता बनी रही क्योंकि अखंड भारत के रूप में प्रकृति ने उसे एक विशिष्ट अंचल और इकाई बनाया है | तभी विभिन्न राजाओं और राज्यों के होते हुए भी आसेतु हिमालय भारत एक था | इसकी एकता ने एक आर्यावर्त, एक भारत का रूप दिया, एक दर्शन दिया | भारतीय श्रद्धा ने माता, पिता और गुरु के साथ मातृभूमि को भी एक देवता  का दर्ज़ा दिया | मातृभूमि को माँ मानने से उसकी समस्त संतानों में सहोदरत्त्व का एक सूत्र आत्मा में होकर गुजरता रहा | मातृभूमि एक प्रकट, सगुण ईश्वर है | कालांतर में बाहर से आए आक्रमणकारियों के साथ आई विचारधाराओं में वह विराटता नहीं थी | एक व्यक्ति, एक पुस्तक, एक धार्मिक स्थान से जुड़ने के कारण हजारों वर्षों का साथ भी उन्हें चन्दन पानी की तरह मिला नहीं सका | फिर भी भारत की समन्वयवादी सोच ने उन्हें काफी हद तक अपने साथ मिलाया | यदि यही सब कुछ चलता रहता तो अच्छा था किन्तु कुछ अंग्रेजों की बाँटने की नीति, कुछ धर्मों की कट्टरता और लोकतंत्र  की आड़ में तुच्छ सोच वाले नेतृत्वों  ने इस तानेबाने को नुकसान पहुँचाया | इसके बाद धर्मों के कन्धों पर चढ़ कर आए शीत युद्ध, विदेशी घुसपैठ और विदेशी धन ने इस अलगावादी सोच को और हवा दी | अब लोकतंत्र ने नाम पर क्षुद्र जातिवादी राजनीति और उपभोक्ता संस्कृति ने इसे एक अग्नि भरा तूफ़ान बना दिया है | स्वतंत्रता दिवस इस पर विचार करने का क्षण है |

प्रत्येक समाज का, राष्ट्र का एक तंत्र होता है जो धीरे-धीरे विकसित होता है और वही उसके शासन तंत्र का आधार बनता है | हमारे पास व्यवस्था का एक लंबा इतिहास है | उसी को समयानुसार आवश्यक  परिवर्तन करके सुधारना चाहिए | आज भी मानवीय संबंधों, प्रकृति के साथ सामंजस्य के सूत्रों, मितव्ययिता और संयम की जीवन शैली ही हमारे तंत्र का आधार हो सकती है | आज की गैर जिम्मेदार उपभोक्ता संस्कृति और अंधे कानून हमारे मार्गदर्शक नहीं हो सकते | हमारी जीवन शैली ही हमारी हो सकती है | वही हमें  गति प्रदान कर सकती है और वही हमारा धर्म हो सकती है |

अंग्रेजो के जाने के बाद स्वतंत्र बनते समय हमने इस नींव को भुला दिया | स्वाधीनता का अर्थ है कि हम अपने नियंता और मालिक बनें | कानून के डंडे से संचालित जीवन की अपेक्षा स्वप्रेरित जीवन जिएँ | यहीं आकर संस्कारों का महत्त्व पता चलता है | संस्कार हममें एक ऐसी आदत का निर्माण कर देते हैं कि स्वतः ही एक समरसता का जीवन जीने लगते हैं | बिना किसी यश, पुरस्कार या मीडिया में आने की इच्छा के हम मानवीय संबंधों और संवेदनाओं को जीते हैं |

हम मानते  हैं कि कोई नहीं तो भगवान तो देखता है | हमारी आत्मा ही परमात्मा बन कर हमारा नियंत्रण करती है | आज तो हम पकड़े जाने तक अपने को दूध का धुला बताते हैं | पकड़े जाने पर भी धन, सत्ता आदि के बल पर सत्य को झुठलाने प्रयत्न करते हैं | ये किसी संगठित और संस्कारवान समाज के लक्षण नहीं हैं | बिजली चोरी, अतिक्रमण, भ्रष्टाचार, रिश्वत आदि इसी संस्कारहीनता के कुफल हैं | धनवान को आँख मींच कर आदर देना और गरीब को हीन मानना निश्चित तौर पर भारतीय संस्कार तो नहीं हैं | पहले मोहल्ले में किसी भी शंकास्पद व्यक्ति को कोई भी बुजुर्ग कहीं भी टोक लेता था | किसी युवा या बालक को गलत हरकत करते देखकर कोई भी बुजुर्ग उसे चेक करने का अधिकार रखता था | आज आदमी अपने बच्चों को टोकने से डरता है | यह सब स्वच्छंदता की अपसंस्कृति है | समाज का कोई भी प्राणी किसी भी तरह से स्वच्छंद नहीं है | वह जन्मना ही समाज का अंग है | स्वतंत्रता और स्वाधीनता का स्वच्छंदता में बदल जाना ही आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है | अपनी स्वच्छंदता को व्यवस्था और अनुशासन में ढालें और सही अर्थों में स्वाधीन बनें, स्वच्छंद नहीं | बिना सिग्नल के यातायात कैसे हो सकता है ? हर वाहन में गति ही नहीं, ब्रेक का विधान भी होता है | ज़रा बिना ब्रेक की गाड़ी की कल्पना तो कीजिए | यह सोच कर नियम पालन और अनुशासन की आदत डालें |

सब को सही अर्थों में भाषा, धन, पद, जाति, धर्म से परे समान मानने का आदर्श अपनाएँ तभी बात बनेगी क्योंकि लोकतंत्र में राजा और प्रजा ही नहीं वरन सभी एक राष्ट्र होते हैं | आवश्यकता 'माता पृथिव्यां, पुत्रोहम' मानने की  है न कि वंदेमातरम,सूर्य नमस्कार और सरस्वती पूजा  पर राजनीति करने की, रंग-नस्ल और धर्म के आधार पर दुनिया को बाँटने की  | मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, मठ या सिनेगाग से पहले देश,दुनिया और मानव मात्र की सुख-शांति-संतोष हैं |

१-८-२००६

Aug 7, 2015

संसद का डैडलॉक

  संसद का डेडलॉक 

घर में आजकल दो प्राणी और बढ़ गए हैं जो हर काम के लिए और अपनी हर आवश्यकता की पूर्ति के लिए हम पर ही निर्भर हैं | रोटी दें तो खा लें, पानी दें तो पी लें और अन्य प्राकृतिक आवश्यकताओं जिन्हें अंग्रेजी में नेचुरल कॉल कहा जाता है के लिए भी |हाँ, यदि प्रेशर रोक पाने की क्षमता समाप्त हो जाए तो जहाँ बँधे हैं वहीं निबट लें |ये दो प्राणी कोई विकलांग मानव नहीं बल्कि हमारे दो पालतू हैं- एक तीन साल की कुतिया 'मीठी' और दूसरा नौ महीने का बिल्ला 'स्मोकी' |

ब्रह्ममुहूर्त में संध्या वंदन की बजाय सबसे पहला काम होता है उन्हें बाहर ले जाना- लघु और दीर्घ शंकाओं के समाधान के लिए |यदि विलंब हो जाए तो दोनों घर में ही अपने आस-पास निबट लेते हैं |इनके लिए शौचालय (अटेच्ड लेटरीन ) जो नहीं है | हमारे ख्याल से किसी राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री के कुत्ते-बिल्लियों के लिए भी संभवतः यह प्रावधान नहीं है |और यदि किसी के पास यह गुप्त सूचना हो तो हमें पता भी नहीं है | अभी तो इनके खुले में शौच करने पर सरकार का प्रतिबन्ध नहीं है और न ही यह राष्ट्रीय या व्यक्तिगत  शर्म की बात भी मानी जा रही है |कल को विकास के नाम पर क्या हो जाए, पता नहीं |

जब भी बाहर लेकर निकलते हैं तो हर नया मिलने वाला सबसे पहले यही प्रश्न पूछता है- क्या ये दोनों आपस में लड़ते नहीं ? क्योंकि कुत्ते-बिल्ली का शाश्वत बैर माना जाता है | लेकिन ये कभी नहीं लड़ते |यह तो आदमी ही है जो रोटी निश्चित हो जाने के बाद अधिक लड़ता है |इनमें हमेशा सहमति रहती है जैसे वेतन भत्ते बढ़ाने के मुद्दे पर सभी दलों के सांसदों में | 

आज जैसे ही हम दोनों को लेकर निकले तोताराम मिल गया और हमारे साथ-साथ चलने लगा | अब यह तो होता नहीं कि जैसे ही कमांड दें वैसे ही ये नित्यकर्म निबटा लें | कभी-कभी तो बहुत देर लग जाती है | पता नहीं, ये हमारी भाषा समझते हैं या नहीं लेकिन हम इनसे बतियाते रहते हैं- मीठी, छी-छी कर लो | 
आज ज़रूरत से ज्यादा ही समय लग गया |खैर, अंततः मीठी ने दो-चार बार इधर-उधर सूँघा, फिर पिछले पैरों को थोड़ा झुकाया, फिर उठ खड़ी हुई | यही क्रिया तीन-चार बार हुई लेकिन अंततः निबट ही ली |हमने भी राहत की साँस ली और हमारी यह साँस कपालभाती की तरह इतनी लम्बी और सघोष थी कि तोताराम ने भी उसे सुन लिया  | 

बोला- क्यों क्या हुआ ?

हमने कहा- काम निबटा |अब इसे निश्चिन्त होकर घर में खुला छोड़ सकेंगे अन्यथा जब तक यह काम न हो तब तक एक अजीब सा टेंशन बना रहता है |

सच मनो तोताराम, जब ये दोनों निबट जाते हैं तो ऐसा सुकून मिलता है जैसे कश्मीर की समस्या हल हो गई हो या संसद का डेड लॉक ख़त्म हो गया हो |

बोला- धीरे बोल | यदि किसी ने सुन लिया संसद की अवमानना के आरोप में तलब कर लिया जाएगा |



Aug 6, 2015

बाबै नैं कुण लड़ै

  बाबै नैं कुण लड़ै

दिल्ली और कुर्सी से दूर रहकर एक आम आदमी जो कुछ देख-समझ सकता है उसी तरह से हमने इसे देश को देखा है |१९५२ से लेकर अब तक के सारे चुनाव हमारे समझते-देखते हुए |और १९६० से १९९९ तक हमने बाकायदा एक मतदान अधिकारी और निर्वाचन अधिकारी के रूप में काम भी किया है |कई सत्ताधारी दल हारे,नए गठबंधन बने, टूटे, और अब तो कहिए दलों का दलदल हो गया है जिसमें जनता रूपी गाय फँसी हुई है |जिसके पास एक सीट नहीं वह भी नई पार्टी बना रहा है |कोई बात नहीं, काम करो या न करो लेकिन लोकतंत्र में सबसे कमाई के इस धंधे में घुसने से कौन किसे रोक सकता है ? लेकिन जो सबसे अधिक अखरने वाली बात है वह यह है कि लोगों का, विशेष रूप से राजनीति में, प्रतिक्रिया देने स्तर इतना गिर गया है कि कुँजड़े भी इनसे बेहतर लगते हैं |

अभी दो -पाँच दिन पहले कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने राजस्थान में स्मृति ईरानी को जिस तरह से 'कामवाली' कहा वह नितांत अशालीन और घटिया था |धनार्जन के लिए श्रम करना कोई बुरा नहीं है |बुरा तो चोरी-डाका है | जयप्रकाश नारायण ने अमरीका में अपने अध्ययन के दौरान खर्चा चलाने के लिए होटल में बर्तन साफ़ किए तो क्या आप उन्हें बर्तन माँजने वाला कहेंगे ?क्या राजीव गाँधी का परिचय 'एक पायलट' मात्र है ?वैसे मोदी जी ने बचपन में कभी रेल में चाय सप्लाई की |और उन्होंने चुनावों में इसका भरपूर फायदा भी लिया लेकिन उनका अधिकांश जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक  संघ के एक प्रचारक के रूप में बीता | अब उनका परिचय 'चाय वाला' नहीं, भारत का प्रधान मंत्री है |

आज हमने जब तोताराम से भारतीय राजनीति के अशालीन होते जा रहे इस रुझान के बारे में कहा तो बोला- इन्हें ही क्यों देखता है ? जिन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम का पेटेंट  ले रखा है वे ही कौन से मर्यादित हैं ? उन्हें अपने वाले तो ब्रह्मा,विष्णु और महेश लगते  हैं, शेष सब देशद्रोही और हराम वाले लगते हैं |साध्वी जी की साधुता इतनी जल्दी भूल गया ?और जिन्हें  डाक्टरी पढ़कर लोगों का इलाज़ करना चाहिए था  वे राम के नाम पर  बीमारियाँ बाँटते फिर रहे हैं |और  उन्होंने  एक  वरिष्ठ  और  विशिष्ट  महिला  के  लिए जो  कहा वह  तो  दोहराने से  भी जीभ  गन्दी  होती  है | ऐसे ही एक और साधु पुरुष हुए हैं जिन्हें  कलाम साहब के बालों के स्टाइल के अलावा उनमें और कुछ दिखाई ही नहीं दिया |

हमने कहा-तोताराम, राम ने तो उत्तरकाण्ड में अयोध्या के लोगों से बात करते हुए कहते हैं - 
जो अनीति कछु भाखों भाई |
तो मोहि बरजेहु भय बिसराई  ||
और कहाँ उस राम के ये भक्त ? इन्हें कोई  समझाए  तो काटने दौड़ते हैं |सारी  नैतिकता, मर्यादा और देशभक्ति का ठेका  जैसे इन्होंने ही ले रखा है | 

बोला-कबीर कहते हैं-
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय |
जो दिल खोजा आपना मुझसा  बुरा न कोय  ||
और  इन्हें अपने अलावा दुनिया  में कोई  भला  ही दिखाई नहीं देता  |सच्चा और निष्कपट भक्त ही- 'मैं   मूरख  खल  कामी...'   गा  सकता  है |  जो  लम्पट  हैं  वे  हर  मिलने  वाले  को सबसे  पहले  जिस-तिस  से  ली हुई  क्लीन  चिट  दिखाते हैं  | 

हमने कहा- लेकिन कोई कुछ बोलता क्यों नहीं  ? 
कहने लगा- बोले कौन  ? इन्हें तो अपने लिए 'माननीय' से कम संबोधन स्वीकर नहीं | जेल में भी जाएँगे  तो चाहेंगे कि जेल-अधिकारी इनके पैर छुए और पाँच सितारा सुविधाएँ दे |

राजस्थानी  कहावत सुनी है ना-  
बाबो सैंनैं लड़ै  पण बाबै नैं कुण लड़ै |

Aug 5, 2015

जैसे कंता घर रहे..

 जैसे कंता घर रहे....

अखबार के पहले पेज पर संसद के न चल पाने का समाचार था और साथ में यह भी बताया गया कि संसद की कार्यवाही पर प्रति मिनट २९ हजार रुपए खर्च होते | ये पैसे किसी सांसद के तो होते नहीं, जनता के होते हैं और जनता के पैसे तो होते ही उड़ाने के लिए | यहाँ खर्च नहीं होंगे तो कहीं और होंगे-किसी नेता की छवि बनाने के विज्ञापन पर, किसी मंच-पंडाल पर, सांसदों को सब्सीडाईज्ड खाना खिलाने पर |फिर भी पता नहीं, क्यों मन मान नहीं रहा था | हमारी और तोताराम की एक महिने की पेंशन के बराबर राशि एक मिनट में स्वाहा |

जैसे ही तोताराम आया हमने अपना दुःख उसे बताया- यह क्या है तोताराम, हम तो यदि आधे घंटे लेट हो जाते थे तो प्रिंसिपल आधे दिन की सी.एल. माँग लेता था और यहाँ यह हाल है कि लोग संसद या विधान सभा में या तो जाते नहीं, जाते हैं तो बोलते नहीं, बोलते हैं तो आग लगाने वाली बातें,या फिर सो जाते हैं और जो अधिक ऊर्जावान होते हैं वे सदन में ही पोर्न देखने लग जाते हैं  | क्या होगा इस देश का ? अब विकास का क्या होगा ?

बोला- संसद चले या न चले कुछ होना-हवाना नहीं है |  तूने क्या वह कहावत नहीं सुनी-
जैसे कंता घर रहे, तैसे रहे बिदेस |

आज तक जब संसद विधिवत और पूरे समय चलती रही तब ही क्या हो गया ? लोकतंत्र में ये सभी औपचारिकताएँ वैसे ही हैं जैसे बकरे को काटने से पहले कोई कलमा पढ़ता है तो कोई मन्त्र | सबको स्वाद लगा हुआ है |कबीर ने तो बहुत पहले कह दिया है-

साधो, आग दुहूँ घर लागी  |
हिन्दू की दया, मेहर तुरुकन की दोनों घर से भागी |

सो भैया, जैसे अर्जन, वैसे फरजन |नाग काटे या साँप -मरना तो दोनों ही स्थितियों में है |मालिक इस्तीफा मांगे या डिसमिस करे- नौकरी दोनों ही हालत में जानी है |संसद चले या नहीं पैसों को तो बत्ती लगनी ही है |सेहत के लिए कोकाकोला पी या पेप्सी; दोनों ही सामान रूप से लाभदायक हैं | दारु देसी हो या विदेशी-स्वास्थ्य वर्द्धक हैं |
नेता जीता हुआ हो, हारा हुआ, भूतपूर्व हो या वर्तमान सदैव अविश्वसनीय और घातक होता है |
गधी को लादने वाले के जाति-धर्म से क्या मतलब ?

कबीर ने तुम्हारे जैसे बुद्धिजीवियों के ज्ञानवर्द्धन के लिए ही कहा है-
तू गधी कुम्हार की तुझे राम से क्या काम ?

इसी बात पर एक चुटकुला सुन और बात ख़त्म करके चाय मँगवा-
एक बकरी के बच्चे ने अपनी माँ से पूछा- माताश्री, एकादशी कब है ?
माँ ने उत्तर दिया-बेटा, तेरा काम तो अष्टमी को ही हो जाएगा | एकादशी की चिंता वह करे जो एकादशी तक बचेगा |

हमने पूछा- चाय घर वाली चलेगी या फिर संसद वाली कैंटीन से मँगवाएँ |

बोला- घर वाली चाय ही ठीक है |संसद वाली न हमें मिलेगी और न ही पचेगी |

Aug 4, 2015

गिफ्ट तो गिफ्ट है

  गिफ्ट तो गिफ्ट है 

आज आते ही तोताराम ने हमारे सामने अढाई इंच की एक चाबी रखते हुए कहा-भ्राता श्री, अनुज तोताराम की ओर से अपने चौहत्तरवें  जन्म दिन के उपलक्ष्य में यह तुच्छ उपहार स्वीकार कीजिए |

हमने कहा- वास्तव में यह एक तुच्छ उपहार ही है | अढाई इंच की लोहे की यह चाबी कबाड़ के भाव में दस-बीस पैसे से अधिक की नहीं है |

बोला- मैंने तो यह सब विनम्रतावश कहा है और तू है कि इसे अभिधा में लेकर मेरा अपमान कर रहा है | यह कोई साधारण चाबी नहीं है | यह कार की चाबी है |

हमने कहा- चाबी तो,वास्तव में अपनी असली कार की हो तो भी,  सौ-पचास रुपए में डुप्लीकेट बन सकती है लेकिन जब हमारे पास कार ही नहीं है तो इससे क्या कान खुजाएंगे ? कल को तू हमें आधी बाँह का कुर्ता, पायजामा, जैकेट और एक तिरंगा दुपट्टा देकर कहेगा- जा, ले ले प्रधान मंत्री पद की शपथ | तो इसका क्या अर्थ लिया जाए ? हम तो वार्ड मेंबर का चुनाव भी नहीं जीत सकते तो यह ड्रेस हमारे किस काम की ? कल को लोहे का एक टुकड़ा देकर कहेगा यह अंकुश है, अब जा इसके बल चढ़ जा हाथी  पर | यह भी कोई बात हुई ? खाली प्लेट-चम्मच से क्या कोई दावत होती है ? क्या सेल्फी मात्र लेने से बेटी का विकास हो जाएगा ? पेट में दाना नहीं तो योग क्या कर लेगा ?

बोला- तेरे जैसे टुच्चे आदमी को कौन समझाए | मोदी जी अभी पिछले दिनों तुर्कमेनिस्तान गए तो वहाँ के राष्ट्रपति जी को हाथ से बनी हुई घोड़े की जीन (काठी) भेंट में दी और उसे राष्ट्रपति जी बहुत प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया और एक तू है कि मेरे उपहार की कोई कीमत ही नहीं समझता |

हमने कहा- बन्धु, एक मास्टर और राष्ट्रपति में फर्क होता है | उन्हें क्या फर्क पड़ता है ? बहुत से घोड़े हैं, जब मन हुआ किसी पर भी कस देंगे जीन | लेकिन हम क्या करें इस चाबी का ? कल को तू कोई पुराना सड़ियल हेलमेट लाकर कहेगा- भ्राता श्री, लीजिए पहनिए इसे और बन जाइए स्कूटर-पति | 

कहने लगा- जब कोई बढ़िया से छल्ले में लगी इस चाबी को मस्ती में तर्जनी अँगुली पर घुमाता हुआ या जब कोई हेलमेट लेकर किसी ऑफिस में घुसता है तो फिर उसे कौन पूछता है कि तेरा स्कूटर या कार कहाँ है ? सब यही मानेंगे कि बंदा स्कूटर या कार बाहर खड़ा करके आया होगा | लेकिन तेरा अंदाज़ तो ऐसा है कि जहां जाएगा, लोग यही समझेंगे कि आ गया कोई भिखारी चंदा माँगने |अंदाज़ तो हो स्कूटर या कार वाला |

ला, मेरी चाबी वापिस | कबाड़ी आएगा तो और कबाड़ के साथ इसे भी बेच दूंगा |गिफ्ट तो गिफ्ट है वरना सुदामा के चावल क्या दो लोकों के बराबर थे पर तेरे जैसों की समझ में यह सब नहीं आएगा |

और तोताराम चला गया अपनी बिना कार की चाबी के साथ |

Aug 3, 2015

साधारण कलाम

 साधारण कलाम

एक समाचार पढ़ा जिसमें पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले अब्दुल कादिर खान ने कहा-भारत रत्न अब्दुल कलाम में कोई असाधारण बात नहीं थी |वे एक साधारण वैज्ञानिक थे |
हम तो उन्हें एक महान व्यक्ति मानते रहे हैं सो हमें बहुत बुरा लगा |

वैसे हम जानते हैं कि अब्दुल कादिर को  परमाणु बम बनाने की तकनीक की चोरी के अपराध में कई दिनों जेल में रखा गया था वैसे ही जैसे पाकिस्तान दुनिया को दिखाने के लिए खूँख्वार आतंकवादियों को पाँच सितारा सुविधाओं के साथ जेलों में रखता है | बाद में उनकी रिहाई के लिए उनके वकील ने जो दलीलें दीं उनमें बताया गया था कि उन्होंने परमाणु बम बनाने की यह तकनीक पत्रिकाओं और बारहवीं कक्षा की किताबों से नक़ल की थी | हालाँकि उन्हें इसके बदले में पकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान और बहुत से पदक प्रदान किए गए थे |पता नहीं, यह कादर खान की असाधारणता थी या साधारणता ?

कुल मिलाकर हमें उनकी यह बात हाजमोला खाने पर भी हजम नहीं हुई तो हमने बात तोताराम से कही |

 तोताराम बोला- हाँ, कलाम साहब साधारण ही तो थे | सृष्टि में सब कुछ साधारण ही तो  है |एक आदमी नाम का जीव ही है जो अपने वस्त्रों, बनावटी बातों और परनिंदा के बल पर असाधारण बनने की कोशिश करता है |जो साधारण नहीं है वही असाधारण बनने का नाटक करता है | जिसे अपनी कम ऊँचाई की कुंठा होती है वह आसमान में देखता हुआ चलता है | सूरज,चाँद,तारों का उगना, वर्ष,धरती से अंकुर फूटना, हवा का चलना, जन्म और मृत्यु सब साधारण रूप से ही होता है, बिना किसी सापेक्षता के |ईश्वर भी साधारण ही है, किसी को फ़रियाद के लिए नहीं बुलाता |जहाँ जो उसे सच्चे दिल से बुलाता है, पहुँच जाता है |जब कि मंत्री तो दूर, एक वार्ड पञ्च भी अपने बाप तक को मिलने के लिए , मीटिंग या पूजा में होने के बहाने इंतज़ार करवाता है |और बड़ों की तो बात ही मत पूछ- वे तो अकबर महान की तरह जनता-दर्शन का कार्यक्रम रखते हैं |

हमने पूछा- तो फिर पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम के जनक 'अब्दुल कादर खान' भी फिल्मों वाले कादर खान  की तरह साधारण ही हैं  |

बोला- नहीं, वे न साधारण हैं,न असाधारण; वे तो कुंठित हैं |अपराधी कभी- 'मैं मूरख,खल कामी...'  नहीं गाएगा |यह तो पवित्र ह्रदय- भक्त ही गा सकता है |  असाधारण ही अपने को साधारण कहेगा और सहज-सामान्य आचरण करेगा | जो किसी भी तरह से बेहतर नहीं, वही अपने अंतिम संस्कार तक में किराए की भीड़ जुटवाएगा |वरना कलाम जैसे संत के लिए तो अपने आप लोग आँखों में आँसू लिए सुबह से ही अंतिम दर्शन के लिए खड़े हो जाते हैं |वही कह सकता है कि मेरे निधन पर कोई छुट्टी न की जाए, सब अपना-अपना काम करें |वरना तो उत्साही कार्यकर्ता अपने तथाकथित नेता के लिए ज़बरदस्ती दुकाने बंद करवाते फिरते हैं |

छोड़, कहाँ कलाम और कहाँ कादिर |  |गाँधी के साथ गोडसे का नाम लेकर उसे व्यर्थ सम्मान क्यों दे रहा है |







जैसे ही तोताराम आया हमने

Aug 2, 2015

अपूछनीय प्रश्न

  अपूछनीय प्रश्न 

तोताराम ने आज आते की हमसे एक प्रश्न किया- वे कौन से चार प्रश्न हैं जो सदैव अपूछनीय हैं ?

हमने कहा- बन्धु, हम तो हमेशा ही उत्तर देने के लिए बाध्य और भाग्य के हिसाब से कहें तो अभिशप्त रहे हैं |प्रश्न पूछने का सौभाग्य और साहस कभी मिला ही नहीं |मंत्री चरण-वंदना न करने वाले अधिकारी से पूछ सकता है- तुमने सरकारी नौकरी में आने पर कब-कब,कहाँ से, कितनी और कौन-कौन सी झाडू खरीदीं |खरीदते समय उनमें  कितने-कितने तिनके थे ? उन सब के बिल प्रस्तुत करो अन्यथा तुम पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगा कर मुक़दमा चलाया जाएगा |लेकिन नेता जी से कौन पूछे कि कुर्सी पर बैठते ही पाँच साल में लल्लू से लाला कैसे बन गए ?

सो बन्धु, हमने तो हमेशा प्रिंसिपल के प्रश्नों के उत्तर ही दिए हैं |कभी यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि आप गणित के एम.ए.हैं तो गणित की बोर्ड की कक्षाएँ क्यों नहीं लेते ? जब निरीक्षण होता है तो टाइमटेबल में अपने नाम से गेम्स, एस.यू.पी.डब्लू. की कक्षाएँ ही क्यों दिखाते हैं ? पत्नी तक से नहीं पूछा- दाल में नमक ज्यादा या चाय में चीनी कम क्यों है ? इसलिए हमारे हिसाब से हमारे लिए तो सभी प्रश्न अपूछनीय ही हैं |

कहने लगा- अरे, कभी तो इन तुच्छ बातों से निकला कर |कुछ दिमाग लड़ाया कर | लेकिन चल, तेरे वश का नहीं है |मैं ही बता देता हूँ- वे चार प्रश्न है-
नेता से उसकी प्रतिबद्धता के बारे में प्रश्न मत पूछो क्योंकि वह सत्ताधारी पार्टी या सत्ता से पहले और  सत्ता के बाद बदल जाती है |इसी तरह से औरत से उसकी उम्र , पुरुष से उसकी तनख्वाह और जज से उसकी बीमारी के बारे में प्रश्न मत पूछो |

हमने कहा- तोताराम, शुरू वाले तीन तो हमें मालूम थे लेकिन यह चौथा पता नहीं था इसलिए उत्तर नहीं दिया |यह जजों की बीमारी वाला क्या चक्कर है ?जज भी तो सरकारी नौकर होते हैं, डाक्टर के पास जाते हैं, दवा और डाक्टर के बिल भी सरकारी खजाने से चुकाए जाते हैं तो फिर बीमारी के बारे में ही यह गोपनीयता क्यों ?

कहने लगा- मेरा तो आज तक कभी कोर्ट में जाने का काम पड़ा नहीं और भगवान करे पड़े भी नहीं लेकिन मैंने पढ़ा है- किसी ने सूचना के अधिकार के तहत जजों के मेडिकल बिल और बीमारी के बारे में जानना चाहा था तो बताया गया कि यह बीमारी एक गोपनीय सूचना है, नहीं दी जा सकती |

हमने कहा- इसमें क्या है ?शरीर है तो बीमारी भी असंभव नहीं है | यह भी नहीं कहा जा सकता कि शराब से अल्सर या तम्बाकू से कैंसर होता ही है |शाहजहाँ के हरम में पाँच हजार औरतें थीं लेकिन उसके एड्स से मरने के बारे में कोई उल्लेख नहीं है |चर्चिल खूब चुरुट पीता था लेकिन कैंसर नहीं हुआ लेकिन तम्बाकू का सेवन न करने वाले रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हो गया |और फिर भैया, कहाँ तक छुपाओगे- मूली खाओगे तो डकार में बदबू आएगी ही, संग्रहणी होगी तो बार-बार जाना ही पड़ेगा, भले ही संडास का नाम 'रेस्ट-रूम' हो क्यों न रख लो या नेता जी के दर्शनार्थियों से कब तक कहोगे कि नेता जी संडास में नहीं पूजा में हैं मीटिंग में हैं |पता तो चल ही जाएगा |

लेकिन इस तरह से तो जज कुछ भी बताए बिना, बिना बीमारी के भी बिल उठाते रहेंगे |कोई जाँच भी संभव नहीं |

बोला- हो सकता है ऐसे ही राष्ट्रहित के कारण बड़े-बड़े देशों के नेता किसी दूसरे देश के संडास में फ़ारिग़ नहीं होते |अपना मोबाइल शौचालय साथ ले जाते हैं | पता नहीं, किसी को उनकी असाध्य बीमारी का पता चल जाएगा तो फिर देश का मनोबल नहीं टूट जाएगा या क्या पता उस देश के कमोड में से ही व्यापक विनाश का हथियार कोई  प्रकट हो जाए |लेकिन मेरा मानना है कि नेताओं की तरह जजों को भी दो ही बीमारियाँ होती हैं- एक कब्ज़ और दूसरी लूज मोशन |

हमने पूछा -यह कैसे ?

बोला- जब किसी गरीब को न्याय न देना हो या किसी नेता के दिन-दहाड़े किए गए अपराध को भी ज़िन्दगी भर लटकाना हो तो जज जो करते हैं उसे कब्ज़ की बीमारी कहते हैं और यदि किसी दबंग को दो दिन में जमानत देनी हो या ईमानदार अफसर को सताना हो या किसी भाई का 'ज़ुलाबी' फोन आजाए  तो फटाफट फैसला सुना देने को जजों की 'लूज मोशन' की बीमारी कहते हैं |


Aug 1, 2015

सब धोखेबाज़ हैं

   सब धोखेबाज़ हैं  

बड़बड़ाता हुआ तोताराम प्रकट हुआ- सब धोखेबाज़ हैं, क्या नेता, क्या अभिनेता और मास्टर तू भी |

हमने कहा- बन्धु, हमने क्या धोखा दिया ? न ललित मोदी से मिले, न किसी प्रतियोगी परीक्षार्थी की जगह 'व्यापमं' की परीक्षा में बैठे, न किसी कोयले की खान का ठेका लिया, न स्पेक्ट्रम ख़रीदा और न ही अब विकास के लिए मोदी जी के 'लैंड बिल' में रुकावट डाल रहे हैं | फिर इस आरोप का आधार क्या है ?

बोला- हम आरोप लगाने के लिए आधार नहीं ढूँढ़ते फिरते |भले ही आजकल हमारी खुद की बोलती बंद हो गई हो लेकिन मनमोहन के मौन और कोई भी अवसर हो तो विपक्षी दामादों को उछालने का मौका नहीं छोड़ते |अपने वाले के ससुर भले ही कांग्रेसी हों लेकिन दूसरों की कांग्रेसी ससुराल या मैका हमें भगवान का नाम लेते और योग करते हुए भी नहीं भूलता, सुर्री छोड़ ही देते हैं |

जब तक कारण नहीं बताऊँगा तब तक तू पीछा नहीं छोड़ेगा |इसलिए सुन-जब तुझे पता था कि अमित शाह के चार घोड़ों के स्थान पर आठ पहियों वाले लोहे के रथों के दो दिन बाद ही लालू जी ने एक घोड़े वाले १००० टमटम-रथ निकालने की घोषणा कर दी है तो मुझे कल आते ही क्यों नहीं बता दिया ? यह धोखा नहीं तो और क्या है ? यह तो वैसे ही है जैसे दूर-दराज़ से सामान लेने आए किसी नए व्यापारी को पुरानी दिल्ली के सदर बाज़ार की बजाय दिल्ली कैंट के सदर बाज़ार का रास्ता दिखा देना |

हमने कहा- हमने तो यह सोचकर नहीं बताया कि थका-माँदा आया है |एक दो दिन आराम कर ले तो तसल्ली से बातें होंगीं |

बोला- क्या ख़ाक आराम ? कल बता देता तो लगे हाथ फिर पटना को चल पड़ता और अमित शाह की लग्ज़री बसों को नहीं तो लालू जी के घोड़ों को ही खिला आता | नेताओं का क्या भरोसा ? पता नहीं कौन, कब जेल से छूटकर सामान्य या असामान्य सेवक बन कर देश की छाती पर चढ़ बैठे | सो किसे पता, लालू जी के घोड़ों को खिलाई सूखी घास कब 'अच्छे दिनों' की तरह चन्दन बन कर लौट आए |

जो होता सो कर-कराकर इकठ्ठा ही आराम करता लेकिन अब एक हफ्ते की थकान उतर रही है सो मन ही नहीं कर रहा कुछ करने का |

हमने कहा- अच्छा है पटना जाने का एक चक्कर और बच गया वरना दुगुनी बेचारगी लेकर लौटता |

पूछा- क्यों क्या लालू के घोड़ों ने भी घास खाना छोड़कर ब्रोकली का सूप पीना शुरू कर दिया है ? 

हमने कहा- नहीं, यह बात तो नहीं है | नेता बना मनुष्य भले ही यूरिया, कोयला,सीमेंट, चारा,मेडिकल की सीटें आदि खा जाए लेकिन घोड़ा ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि उसके लिए भगवान ने एक ही खाद्य पदार्थ नियत कर दिया है- घास | इसलिए भले ही कोई ईमानदारी का झंडा उठाए पार्टी जीत के लिए किसी काले चोर से समझौता कर ले, भाजपा का कांग्रेस  में विलय हो जाए लेकिन घोड़ा घास से यारी नहीं कर सकता क्योंकि घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या ? सो घोड़ों को तो घास चाहिए ही , न सही हरी, तेरी सूखी ही सही |

गुस्साकर बोला- तो फिर बताया क्यों नहीं, मेरे बाप ?

-इसलिए कि लालू जी ने टमटम यात्रा के घोड़ों के लिए अपने चारे के पुराने स्टॉक में से पार्टी के नाम से सप्लाई कर दी है, हमने कहा |

तोताराम ने सिर पर हाथ मारा- धन्य हो जनसेवको ! ससुर,सूखी घास की सप्लाई में भी एक रिटायर्ड मास्टर को चांस नहीं दिया गया | उसमें भी आत्मवाद या परिवारवाद | अरे, हम कौन सा अभी और नकद माँग रहे थे | हम तो भविष्य के 'अच्छे दिनों' के लिए इन्वेस्ट कर रहे थे |