Dec 12, 2022

ये भी कोई चाय का टाइम है


ये भी कोई चाय का टाइम है  


आज कई देर तोताराम का इंतज़ार करने के बाद उसके हिस्से की चाय भी हमने ही पी ली जैसे कि बहुत सी कल्याण योजनाओं में बचे हुए सामान को किसी के नाम से भी एंट्री करके निबटा दिया जाता है।  

अभी कोई दस बजे हैं।  हमारे शहर सीकर को प्रकृति का यह उपहार है कि रात चाहे कितनी भी ठिठुराने वाली हो लेकिन दस से तीन-चार बजे का तक की धूप मौसम को सुहावना बना देती है बशर्ते कि धुंध, बदल या कोहरा न हो। अभी कोहरे वाले दिन शुरू नहीं हुए हैं।  धूप में चारपाई पर बैठकर कढ़ी के साथ सुबह के ताज़ा निकाले मक्खन से चुपड़ी बाजरे की रोटी खा रहे थे कि  'प्रथम ग्रासे मक्षिका पातः' की तरह तोताराम आ गिरा।  

हमने नाराज़ होते हुए कहा- यह घर है कोई होटल या स्टेशन पर की चाय की दुकान नहीं है कि पहले से बनी हुई ठंडी चाय गरम करके फटाफट केतली में डालकर 'चाय गरम' की आवाज़ लगाने लगें।  यह कोई चाय का टाइम है ? 

बोला- मेरी बात सुनेगा या मौका मिलते ही अपने 'मन की बात' पेले जाएगा ? यह नहीं पूछेगा कि मुझे आने में देर क्यों हुई ?

हमने कहा- तेरे ऊपर कौन मोदी जी की तरह दुनिया का मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी है या जी २० का अध्यक्ष होने के नाते जब चाहे कभी बाइडेन तो कभी पुतिन का फोन आ जाता है।

बोला- ठीक है।  मोदी जी और मेरी व्यस्तता में ज़मीन आसमान का अंतर है। फिर भी इंसानियत के कारण मेरा भी तो अन्य सभी का ध्यान रखने का फ़र्ज़ बनता है ? 

हमने कहा- तेरा क्या फ़र्ज़ है ? पेंशन पेल और मौज कर।  

बोला- मैं किसी नागरिक के सामान्य फ़र्ज़ और नीति की बात कर रहा था जैसे किसी ज़रूरतमंद का ध्यान रखना।  जिसे जल्दी हो उसे रास्ता दे देना। अपने शास्त्रों में भी कहा गया है कि शवयात्रा, राजा, दूल्हा, भारवाहक, बीमार आदि को  जाने के लिए पहले रास्ता देना चाहिए।  मोदी जी ने भी तो अपने जुलूस में एम्बुलेंस को रास्ता दिया था कि नहीं।  क्या तू मुझे इतना अशालीन और उद्दंड समझता है कि मैं किसी एम्बुलेंस को रास्ता तक न दूँ ?  

हमने कहा- लेकिन तेरा क्या मोदी जी की तरह लाखों लोगों का ५४ किलोमीटर लम्बा रोड़ शो थोड़े था ? और फिर एम्बुलेंस को गुजरने में कितनी देर लगती है ?

बोला- एम्बुलेंस को गुजरने में तो देर नहीं लगती लेकिन क्या ज़रूरी है कि आने के समय एम्बुलेंस आ ही जाए। अब  यह संयोग की बात है कि मेरे रोड़ शो में एम्बुलेंस आई ही चार घंटे बाद।  


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Nov 22, 2022

मास्टर ने खाये पकौड़े, तोताराम ने पी चाय

मास्टर ने खाये पकौड़े, तोताराम ने पी चाय 


आज तोताराम ने आते ही हमारे सामने अपना स्मार्ट फोन कर दिया और बोला- देख।  

हमने देखा, यह तो हमारा ही फोटो था। परसों तोताराम २०-२० क्रिकेट में इंग्लैण्ड की जीत के उपलक्ष्य में पकौड़े  लाया था।  फोटो में हम पूरी मुट्ठी भरकर पकौड़े उठाये हुए थे और मुंह में भी पकौड़े भरे हुए थे।  ऐसा लग रहा था जैसे पेटू ब्राह्मणों द्वारा कहा गया वाक्यांश सार्थक हो रहा है-

परान्नं दुर्लभं लोके मा शरीरे दया कुरु।  

हमने कहा- यह भी कोई फोटो है ? क्या उपयोगिता है ऐसे फोटो की ? लगता है मुफ्त का माल है और पेले जा रहे हैं।  

बोला- आजकल ऐसा ही ज़माना है।  अब एक काम कर, तू मेरा चाय पीते हुए एक फोटो ले ले।  कल कोशिश करते हैं किसी अखबार के लोकल संस्करण में घुसाने की।  शीर्षक होगा- मास्टर ने खाये पकौड़े, तोताराम ने पी चाय।  

वैसे भी आजकल अखबार वालों के पास कोई समाचार होते भी नहीं।  ऐसे समाचार यश के आकांक्षी और फोटोजीवी खुद ही दे जाते हैं और छपने पर आभार भी मानते हैं और मौके बे मौके कुछ भेंट पूजा भी कर देते हैं।  वैसे कोई भी अखबार कोई भी ढंग की खबर छपने की जोखिम नहीं लेता।  क्या पता किस समाचार से किसकी कोई भावना आहत हो जाए या कौन सा समाचार सरकार के विरुद्ध चला जाए। पता नहीं, कब कौन ऍफ़ आई आर दर्ज़ करवा दे या सरकारी विज्ञापन खतरे में पड़ जाएँ। गंगा में तैरती लाशें दिखाने पर पता नहीं ईडी वाले अखबार को ही गयाजी न पहुंचा दें।  

हमने कहा- तो यही रह गया है लोकतंत्र का चौथा खम्भा !

बोला- जब राजनीति ही ऐसी रह गई है जिसमें एक दूसरे पर निराधार और घटिया आरोप लगाने और नाटक करने के अलावा कोई मुद्दा ही नहीं रह गया है तो अखबार भी क्या करें। 

हमने कहा- मुद्दे तो एक नहीं हजारों हैं।  घोटाले, बलात्कार, बेरोजगारी, अपराध, कुप्रबंधन। किसी के पास कोई इलाज, कोई विजन, कोई समाधान नहीं है।  इसलिए सब इधर-उधर की नौटंकी कर रहे हैं।  

उधर केजरीवाल गुजरात में ऑटो रिक्शे में घूम रहे हैं, उधर राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा में डांस कर रहे हैं, इधर स्मृति ईरानी आणंद में गोलगप्पे खा रही है।  और उधर मोदी जी ! यहां जनता का बैंड बजा-बजा कर मन नहीं भरा तो जी-२० सम्मेलन में इंडोनेशिया का कोई पारम्परिक वाद्य बजा बजाने के लिए चले गए हैं।  मैंने तो उनका एक फोटो गुरूद्वारे में वाश बेसिन में हाथ धोते हुए भी देखा था।  

हो सकता है कल को बड़े लोगों का मल-मूत्र त्याग करते हुए फोटो भी जनता को उपलब्ध होने लग जाए।  

तोताराम बोला- तो ऐसे में  मास्टर का पकौड़े खाते हुए और तोताराम का चाय पीते हुए फोटो छाप जाए तो क्या गुनाह हो गया। 

ले ले मेरा चाय पीते हुए फोटो।  इसके बाद खाना खाकर चलेंगे किसी अखबार में यह ब्रेकिंग न्यूज देने।  




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Nov 18, 2022

दुआओं का असर

दुआओं का असर 


आज तोताराम को आने में कुछ विलम्ब हो गया।  

तमाम सुबह क़यामत का इंतज़ार किया लेकिन जब नहीं आया तो उसके चाय वाले गिलास को जैसे ही ठिकाने लगाने के लिए हाथ बढ़ाया पता नहीं, कहाँ से तोताराम प्रकट हुआ और बोला- अरे, दस-पांच मिनट की देर क्या हुई कि तेरा ईमान डोल गया।  अपनी वाली के बाद मेरे वाली चाय पर भी नीयत ख़राब कर ली।  तेरा हाल भी नेताओं जैसा हो रहा है।  खुद तो जितनी बार भी विधायक या सांसद बन जाते उतनी ही पेंशनें  पेलेंगे और चालीस-चालीस साल वालों को एक पेंशन देने में हजार नखरे।  डीए भी ऐसे रुला-रुलाकर देंगे जैसे कोई भीख दे रहे हों।  चाय ढककर रख दे।  पहले ये पकौड़े खा।  मैं तो चाय और पकौड़े दोनों सूँत कर आया हूँ। चाय बनेगी तो एक और पी लूँगा नहीं तो कोई बात नहीं। 

हमने कहा- आज तो बड़ा मेहरबान हो रहा है जैसे कि आजकल नेता हिमाचल और गुजरात में तरह-तरह की रेवड़ियां बाँट रहे हैं।  

बोला- आज पहली बार दोनों भाइयों की दुआएं एक साथ फली हैं ना ।  

हमने कहा- हमने तो तेरे साथ कोई दुआ नहीं मांगी।  

बोला- तू मेरे साथ कब से आने लगा।  तेरा तो मुझसे नेहरू और मोदी जी वाला रिश्ता है।  मैं तो भारत और पाकिस्तान की दुआओं के फलने की बात कर रहा हूँ। 

हमने कहा- पाकिस्तान तो मुस्लिम देश है, हमारा भाई कैसे हो सकता है ? 

बोला- क्या कौरव और पांडव भाई भाई नहीं थे।  इस २०-२० क्रिकेट में उसने हमारे हारने की और बाद में हमने उसके हारने की दुआ मांगी और मज़े की बात देख मालिक ने दोनों की सुन ली।  दोनों ही हार गए।  

हमने तोताराम के लाये अधिक से अधिक पकौड़े मुट्ठी में भरते हुए कहा- इसी पर तो बन्दर और दो बिल्लियों की कहानी बनी है।  इसी भ्रातृप्रेम के चक्कर में तो अंग्रेज दो सौ साल हम दोनों को रगड़ते रहे।जैसे कि आज भी भारत की हिन्दीतर भाषाओं और हिंदी की लड़ाई में अंग्रेजी ने कब्ज़ा जमा रखा है।   

यह वैसा ही आशीर्वाद है जैसा एक विधवा अपने पैर छूने वाली सुहागिन को देती है- हो जा बहना, मुझ जैसी।   

बोला- फिर भी अब हमें ब्रिटेन के जीतने में भी संतोष है। क्या तू इतनी उदारता नहीं दिखा सकता। अब तो ब्रिटेन पर भी अपने ब्राह्मण भाई,सुनक का राज है।  कल हम जिसके उपनिवेश थे वह आज अपने अंडर में आ गया है।  यह सुनक उसी  शौनक ऋषि का बाप है जो सप्तऋषियों में शामिल है और जो कभी भारत में १० हजार शिष्यों का गुरुकुल चलाता था। इस प्रकार ज्योतिषियों की भविष्यवाणी सच सिद्ध हो गई और एक प्रकार से भारत २०-२० वर्ल्ड कप जीतेगा।  

हमने कहा- इस हिसाब से तो पाकिस्तान भी खुश हो सकता है कि सुनक के पूर्वजों की जड़ें कभी गुजरांवाला में थी।  

बोला- इसी तरह सोचेगा तो कभी न कभी विश्वबन्धुत्त्व तक भी पहुँच जाएगा।  पाकिस्तान बाबरी मस्जिद का ध्वंस करवाने वाले आडवाणी जी और महान अर्थशास्त्री मनमोहन जी पर भी गर्व कर सकता है।ये दोनों भी वर्तमान पाकिस्तान से ही भारत आये थे। और तो और चाणक्य पाकिस्तान स्थित तक्षशिला विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र थे और संस्कृत का आदि वैयाकरण पाणिनी भी वर्तमान पाकिस्तान का ही था।  

हमने कहा- और इसमें यह भी जोड़ ले कि सिक्ख धर्म का पवित्रतम स्थान ननकाना साहिब पाकिस्तान में है और मोदी जी के चुनाव क्षेत्र काशी के विश्वनाथ का ओरजिनल स्थान 'कैलाश' चीन में है।  

बोला- तभी तो एक शंकरचार्य जी मक्का तक में 'मक्केश्वर महादेव' बता रहे हैं।  

हमने कहा- इस प्रकार तो धर्मद्रोही कुछ भी कहें ज्ञानवापी वाला फव्वारा पक्कम पक्का शिवलिंग है ।  




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Nov 17, 2022

कुछ खाया भी कर


कुछ खाया भी कर 


कूड़ा फेंककर आये और सीढ़ियों पर चढ़ने लगे तो पैर लचक गया।  तोताराम ने हमारा हाथ थाम लिया।  जैसे ही अंदर आकर बैठे, बोला- कुछ खाया कर। 

हमने कहा- खाते तो हैं दो रोटी सुबह, दो रोटी शाम को।  दोपहर में चाय और दो बिस्किट। और क्या खाएंगे इस बुढ़ापे और महंगाई में।  

बोला- मेरा मतलब कुछ पौष्टिक। 

हमने कहा- अब इस पेंशन में कौनसा शिलाजीत या हिमालय का ४० हजार रुपए किलो का मशरूम खा लें।  बाड़े में जो सैंजने का पेड़ लगा है उसके फलियां तो आती नहीं सो जितने भी पत्ते आते हैं उन्हीं को तोड़कर, सुखाकर पाउडर बना रखा।  कभी-कभी उसकी रोटियां बनवा लेते है, डाक्टर ने परांठे खाने से तो मना कर रखा है। और क्या खाएं ?

बोला- बुरा न माने तो एक सस्ता, सुन्दर और टिकाऊ उपाय है तो सही।  मोदी जी ने कल ही हैदराबाद में कहा है कि मैं रोजाना दो-अढ़ाई किलो गालियां खाता हूँ जिससे मुझे ताकत मिलती रहती है। वैसे इस देश में गालियां तरह-तरह की होती हैं। किस प्रकार की, किस भाषा की, कितनी, कब, किसके साथ सेवन करनी चाहिए यह तो नहीं बताया।  फिर भी जनहित में यह खुलासा करने के लिए उनसे निवेदन किया जा सकता है। 

सबका तो ५६ इंच का सीना होता नहींजो इतनी गालियां पचा सकें। वैसे सामान्य आदमी के लिए तो सौ-दो सौ ग्राम ही बहुत है। तेरा काम तो ५० ग्राम में ही हो जाएगा।  

मोदी जी ने बताया है कि उनके शरीर में एक विशेष व्यवस्था है जो गालियों को पौष्टिक ऊर्जा में बदल देती है जैसे फोटो वाल्टिक सेल धूप को बिजली में। यह पता करना पड़ेगा कि तेरे आमाशय में वह व्यवस्था है या नहीं।  नहीं है तो क्या इम्प्लांट हो सकती है ? 

हमने कहा- तोताराम, हिंदी का अध्यापक होकर भी तू मोदी जी की बात नहीं समझा।  अरे, गाली कोई वस्तु थोड़े ही होती है। मोदी जी इतने शालीन हैं कि किसी को 'हत्तेरे की' भी नहीं कहते। उनके अनुसार तो आलोचना भी गाली ही होती है।जो किसी भी देश समाज के विकास में बाधा डालती हैं।  सच्चे और अच्छे नागरिक का कर्तव्य है कि वह 'जय-जय' के अतिरिक्त कुछ न बोले।   

जैसे गाँधी जी ने एक अंग्रेज द्वारा लिखे गए गालियों वाले पत्र में से काम की एक चीज 'आलपिन' निकालकर रख ली और कागज फेंक दिया। वैसे ही वे तो अपनी सेवा की लगन की बात कर रहे थे कि वे लोगों की आलोचना की परवाह नहीं करते बल्कि  उससे प्रेरणा लेकर देश की और अधिक सेवा करते हैं।

जो कुछ करते नहीं, या करने योग्य नहीं होते उन्हें कोई गाली भी नहीं देता।  हमें न कोई गाली देता है और न ही कोई हमें देखकर 'मोदी-मोदी' की तरह 'जोशी-जोशी' या 'तोता-तोता' चिल्लाता है।  

बोला- तो इसका मतलब है कि गाँधी और नेहरू ने वास्तव में बहुत काम होगा जो आज भी भक्त लोग अपने आराध्य के साथ गाँधी के लिए गोडसे और सावरकर की आड़ में तथा नेहरू के लिए सुभाष और पटेल की आड़ में नित्य प्रति गाली सहस्रनाम का पाठ करते रहते हैं।  

तभी तो  'चलती का नाम गाड़ी' में कहा गया है- 

खून-ए-जिगर पीने को, लख्ते जिगर खाने को, 

ये ग़िज़ा मिलती है लैला तेरे दीवाने को।  

हमने कहा- गालियों और समाज की ट्रोलिंग के इसी महत्त्व को समझते हुए हमारे विद्वानों ने कहा- 

घटं भिन्द्यात्पटं छिन्द्यात्कुर्याद्रासभरोहणम्।
येन केन प्रकारेण प्रसिद्धः पुरुषो भवेत्॥

चाहेअपना घड़ा फोड़कर, अपने कपड़े फाड़कर या गधे पर सवार होकर ही सही लेकिन पुरुषों को कोई भी उल्टा-सीधा काम करके प्रसिद्ध होने का प्रयत्न करना चाहे। 

क्योंकि 'बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा'।  

नाम होगा तो कुछ न कुछ काम भी हो ही जाएगा। 

पूजा ढिंचेक नाम की मधुर गायिका का नाम सारे दिन नेट पर झख मारने वाले ज़रूर जानते होंगे कि वह अपने बकवास रैप गीतों से भी अपना स्थान बना चुकी है और यूट्यूब पर अपने वीडियो से ठीकठाक कमाई भी कर रही है।  


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Nov 16, 2022

स्टीव जॉब्स की चप्पलें


स्टीव जॉब्स की चप्पलें 


सभी लतें बोरियत से शुरू होती हैं। और बोरियत के साथ बढ़ती भी जाती हैं। जैसे बोर होने पर बीड़ी पीने वाला ज्यादा बीड़ी पीता है और खैनी खाने वाला ज़्यादा खैनी खाता है।  कोई बड़ा नेता या राजा हुआ तो कोई ऊल जलूल कानून बना देगा। और कुछ नहीं तो नोटबन्दी ही कर देगा। लॉक डाउन ही लगा देगा।  

चूँकि जानवर के पास ये सुविधाएं और अधिकार नहीं होते तो वह जैसी भी संभव हो तो कोई तोड़-फोड़ करता है।  कई वर्षों से घर में कोई न कोई पालतू जानवर कुत्ता-बिल्ली, तोता आदि रहे हैं इसलिए हम कह सकते हैं कि ये भी  बोर होने पर काट-पीट, कुतरना जैसा कुछ न कुछ कर ही डालते हैं।  

हम अपने पालतू कुत्ते 'कूरो' को रात को खुला छोड़ते हैं तो वह भाग-दौड़, उछल-कूद कर लेता है।  कल रात को उसे खोलना भूल गए तो उसने अपना काम कर दिया।  मतलब पास में पड़ी हमारी पुरानी चप्पलों का एक पट्टा काट दिया।  वैसे चप्पलें दो साल पुरानी हैं। महँगी भी नहीं हैं। अपने मूल्य के अनुसार सेवा भी दे चुकी हैं। अब उन्हें हमारी तरह निर्देशक मंडल में रखा जा सकता है।  लेकिन चूँकि कभी कभार बरसात में उन्हें अब भी पहना जा सकता था इसलिए 'विश्व विरासत' और सनातन संस्कृति की तरह संभाले हुए थे। अब तो वे मरम्मत के लायक भी नहीं बचीं तो कूड़े के साथ उन्हें भी फेंकने जा रहे थे कि तोताराम आ गया।  

बोला- चप्पलें क्यों फेंकने जा रहा है ? 

हमने कहा- अब कब तक संभालकर रखें। दो साल पहले मंडी के सामने कानपुर वालों की 'दिवाली धमाका' सेल लगी थी तो १५०/- रुपए में लाये थे।  अब और कब तक घसीटेंगे ? 

बोला- आजकल नई नहीं, पुरानी चीजों का बड़ा क्रेज चल रहा है। आज ही समाचार है कि स्टीवजॉब्स की पुरानी  चप्पलें नीलम होने वाली हैं जो उसने १९७०-८० में पहनी थीं ।ब्राउन लेदर बार्किस्टॉक वाली इन एरिजोना सेंडल को जूलियन ऑक्सन्स ने नीलामी के लिए  ४८ लाख रुपए की  शुरुआती कीमत पर रखा है।  

और अंततः ११७ लाख रुपए में बिकी।   

हमने कहा- ये सब भरे पेट के, कुंठाओं का धंधा करने वाले लोगों के तमाशे हैं।  बुद्ध मूर्ति पूजा को नहीं मानते थे लेकिन उन्हीं के दाँत को मंदिर में रख रखा है।  यह ठीक है कि स्टीवजॉब्स एप्पल का सहसंस्थापक था लेकिन इसी से उसके जूते राम की पादुका नहीं हो जाते।  कैंसर होने पर वह मन्त्र-तंत्र में चक्कर में भारत के तांत्रिकों के संपर्क में भी रहा बताते हैं। उसकी चप्पलों से लोग कौन सी महान प्रेरणा लेंगे। 

ऐसे में हमारी चप्पलें !

बोला- हमारी चप्पलें व्यर्थ नहीं हैं।  उनका अब भी अर्थ है।  वे सरल और सुविधाजनक रास्तों पर चलकर नहीं घिसी हैं।  उन्होंने जीवन के कंटकाकीर्ण रास्तों पर अस्सी साल का सफर किया है। अपने विद्यार्थियों को भी हमने तर्क और बौद्धिकता के रास्ते पर चलना सिखाया है।  

हमने कहा- लेकिन अब 'जय अनुसन्धान' के युग में इंग्लैण्ड से सेमीफाइनल खेलने से पहले ही पाकिस्तान को फाइनल में रगड़ देने के लिए टी वी स्टूडियो में क्रिकेट पर चर्चा करने के लिए शंखध्वनि के साथ ज्योतिषियों का सम्मलेन शुरु हो जाए तो उस देश में 'समुझि मनहि मन रहिये'।  

बोला- और फिर देख भी लिया विश्वगुरु की ज्योतिषीय वैज्ञानिकता का हश्र। जुबान तालू से चिपकी हुई है। बोलती बंद है।   

हमने कहा- जब निकल ही पड़े हैं तो कूड़ा फेंक ही आते हैं।  उसके बाद बैठेंगे।    


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Nov 8, 2022

कोरोना काल में हजामत

कोरोना काल में हजामत 

कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने लोकतंत्र को अधिक सक्रिय और जनोन्मुख बनाने की गरज से ‘सूचना के अधिकार’ के रूप में सामान्य जन को एक बड़ा हथियार दे दिया। जब तक आप जनता और शासित रहते हैं तब तक आपको हर बात को जानने की उत्सुकता रहती है लेकिन जैसे ही आप सरकार और सत्ता का हिस्सा बन जाते हैं तब आपको लगता है कि जनता का कर्तव्य शासन के पीछे-पीछे चलना अर्थात अनुशासन है। तब आप उससे केवल सुनने की अपेक्षा करते हैं। प्रश्न आपको बेचैन कर देते हैं।

कुछेक अपवादों की बात और है लेकिन अधिकतर सत्ता में आते ही कुछ दिनों में ही जवान, स्वस्थ, सुन्दर और रोबदार हो जाते हैं। पूज्यपाद हो जाते हैं, उनके पाद में साहित्यकरों, कवियों, मीडिया, अखबारों को खुशबू आने लगती है। नास्तिकों को भी उनमें भगवान की छवि दिखाई देने लगती है। उनके शब्द मन्त्र बन जाते हैं। वे तर्कातीत हो जाते हैं। ऐसे में लोगों की उत्सुकता और बढ़ जाती है विशेषरूप ऐसे नर से नारायण बने सेवकों के बारे में जानने की।

कोरोना ने अपने फ़टाफ़ट एक्शन से जनता को डरा दिया। जैसे कि आजकल सामान्य आदमी डरा हुआ है कि पता नहीं कोई कब उसकी दाढ़ी, पायजामा आदि देखकर लॉन्चिंग के लायक समझ ले। कब उसके फ्रिज में रखे मांस को किसी पूज्य जीव का मांस समझकर धर्मप्राण लोग उसका तीया-पांचा कर दें। सुबह जिससे फोन पर बात हुई, पता लगा उसे कोरोना हो गया और अस्पताल पहुँचते-पहुंचते राम नाम सत्य हो गई। श्मशानों में चिताएं और लकड़ियां काम पड़ गईं। रक्त संबंधों वालों ने डर के मारे लाशें लेने से मना कर दिया। जाने किन किन दूसरे धर्म के अज्ञात कुलशील लोगों ने इंसानियत के नाते साहस कर लाशों को निबटाया। जिनका कोई हिसाब किताब नहीं बैठा उन्हें शववाहिनी गंगा में शरण मिली और इस बारे में लिखने-छापने वालों को लताड़ और ट्रोलिंग। व्यापार और सत्ता में बैठे असंवेदनशील लोगों ने नकली दवाओं और नकली वेंटिलेटर में पैसे कमा लिए। आपदा में अवसर खोज सकने वाले लोगों ने बिना टीके लगाए ही लाखों टीकों का बिल बनाकर भुगतान उठा लिया।




ऐसे में कुछ को तालाबंदी में बचाव नज़र आया तो कुछ ने ताली-थाली बजाकर अपना कर्तव्य निभाया लेकिन यह तय है कि सब ने तरह तरह के मास्कों के पीछे छुपने का सहारा लिया। लाखों मरे, करोड़ों बेरोजगार हुए, लाखों ने पलायन किया और हजारों रास्ते में ही स्वर्गारोहण कर गए । स्वार्थी सत्ताएं दिन में बंगाल में लाखों की रैली करके रात में दिल्ली में कोरोना कर्फ्यू का पालन करवातीं। अब जैसे जैसे लोगों ने कोरोना के साथ उसी सहज भाव से रहना सीख लिया जैसे नेता बनते ही किसी को भी खुदा स्वीकार कर लेना। अब कुछ लोगों में कोरोना काल के बारे में कई जिज्ञासाओं का ध्यान आने लगा है। कुछ साहस कर जानने की कोशिश करते हैं तो अधिकतर उनके द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं के बारे में अखबारों में पढ़कर की संतुष्ट हो जाते हैं।

अभी एक सज्जन ने कोरोना काल में जब तालाबंदी थी, सैलून बंद थे तब बंगाल चुनाव तक गुरुदेव रवीन्द्रनाथ जितनी लम्बी हो चुकी या होने दी गई दाढ़ी और १५ अगस्त २०२१ तक लम्बी ही छोड़ दी गई मोदी जी की श्वेत दाढ़ी जो पुनः अमरीका जाते समय ट्रिम दिखाई दी गई दाढ़ी के बारे में जिज्ञासा प्रकट की और सूचना के अधिकार के तहत विस्तार से जानना चाहा तो संबंधित अधिकारियों ने इस प्रश्न को ही मूर्खतापूर्ण मानकर उत्तर देना उचित नहीं समझा।

जब हमने इस अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के समाचार पर तोताराम से चर्चा की तो बोला- कौन हैं ये ज्ञानपिपासु सज्जन ?

हमने कहा- अधिक तो नहीं जानते लेकिन कोई हैं कोई नीलेश प्रभु। वैसे पहले एक सुरेश प्रभु नाम के सज्जन भी हुआ करते थे। पता नहीं, अब कहाँ और किस हालत में हैं ?

बोला- मतलब कि मोदी जी की दाढ़ी इतनी महत्वपूर्ण हो गई कि अब स्वयं प्रभु भी उसके बारे में जानने को उत्सुक हैं। और यह मामला सरकार ने भी इतना राष्ट्रीय महत्व का और गोपनीय समझा कि प्रश्न को मूर्खतापूर्ण बताकर पीछा छुड़ा लिया। वैसे मूर्खता और चालाकी में गहरा संबंध होता है। चालाक लोग बहुत बार मूर्खता की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं। हो सकता है यह व्यक्ति देशद्रोही हो और भारत की सुरक्षा में सेंध लगाने की सोच रहा हो।

हमने कहा- मनुष्य के पास गर्दन से ऊपर का यह जो इलाका है वही महानताओं और सारी खुराफातों की जड़ है। इसी इलाके में षड्यंत्र करने वाला दिमाग है तो इसी इलाके में बहुरुपियापन है। यहीं सारी कुंठाएं हैं। प्रभु भी जब इसके बारे में कुछ नहीं समझ सके तो सूचना के अधिकार का सहारा लिया लेकिन वहाँ भी सफलता नहीं मिली।

दाढ़ी जहां नीचे की ओर जाकर अतल तल पाताल और रसातल की गहराई तक जाकर सक्रीय हो सकती है तो वहीँ ऊर्ध्वमुखी मूँछों की उच्चता अनंत आकाश, अंतरिक्ष और शून्य तक में है। हे तोताराम, इन्हें साक्षात् ब्रह्म समझ।

बोला- मास्टर, वास्तव में यह तो बहुत रोचक और महत्त्वपूर्ण विषय है। इस बारे में थोड़ा और प्रकाश डाल।

हमने कहा- संसार में मनुष्य के अतिरिक्त जितने भी प्राणी हैं वे उस स्वरूप से संतुष्ट हैं। वे उसे लेकर किसी प्रकार की कुंठा नहीं पालते। वे उसी रूप-स्वरूप को विकुण्ठ और उल्लास भाव से जीते हैं। किसी जानवर के मूँछें होती हैं किसी के नहीं। सभी के रंग आकर भिन्न भिन्न हैं और रंग भी लेकिन वे उन्हें किसी कुंठा के तहत न बदलते हैं और न उसे लेकर किसी निंदा-स्तुति में पड़ते हैं। और मनुष्य समाज में सारी शक्ति इसी में लग जाती है कि कौन किस जाति-धर्म का व्यक्ति किससे ऊँचा-नीचा, श्रेष्ठ और निकृष्ट है। किसके वस्त्र और किसकी दाढ़ी देशद्रोह का प्रमाण है और किसकी जाति और धर्म इतने श्रेष्ठ और संस्कारवान हैं कि उसे जघन्य दुष्कर्म के बावजूद समय पूर्व रिहा किया जा सकता है।

मनुष्य ही दाढ़ी रखता है और उसे कई कई रूपों और रंगों से सजाता है। गीदड़ होने पर भी किसी वीर जाति वाला किसी ख़ास तरह की मूँछें और दाढ़ी रखता है। वीरता और शारीरिक अक्षमता का संतुलन दाढ़ी और मूँछों से बनाता है। कमजोरों को एक ख़ास तरह की दाढ़ी और मूँछें रखने से रोकता है। अपने नाम के आगे ‘सिंह’ लगाकर खुद को शेर समझता है। जबकि कोई भी जानवर कोई सरनेम तो दूर नाम भी नहीं रखता। अपना परिचय वह स्वयं ही होता है। वह अपने साथ न तो कोई वर्तमान पद या भूतपूर्व लगाता है। उसे कोई पानी भी नहीं पिलाता। उसे अपनी रक्षा के लिए किसी कमांडो की ज़रूरत नहीं होती। सही अर्थों में मानवेतर जीव ही आत्मनिर्भर हैं। वे कुंठाहीन जीवन जीते हैं। मनुष्य तो पता नहीं दाढ़ी मूँछों जैसी किस किस चीज की कमाई खाता है।

बोला- और मास्टर, मनुष्य तो इन दाढ़ी मूँछों में छुपकर कई प्रकार के अपराध भी करता है। दाढ़ी, मूँछें, बुरका चश्मा लगाकर पुलिस, लोगों को या प्रेमिका के घर वालों को धोखा देता है। कभी दाढ़ी लगाकर संत बनकर लम्पटता करता है। कुछ लोग अपनी खास तरह की दाढ़ी के कारण पहचाने जाते हैं। फिर जब ते दाढ़ी-मूँछें जब पहचान बन जाती हैं तो पहचान के संकट के कारण दाढ़ी-मूंछों से पीछा भी नहीं छुड़ा सकते। रवीन्द्रनाथ, मार्क्स, हो ची मिह्न, लेनिन आदि यदि क्लीन शेव्ड हो जाएँ तो लोग तो लोग वे खुद ही खुद को नहीं पहचान सकेंगे। इसी तरह शी जिन पिंग चाहें तो भी दाढ़ी रखने का रिस्क नहीं ले सकते हैं।

हमने कहा- लेकिन हो सकता है दाढ़ी मूँछें रखने से किसी ख़ास प्रकार का साहस आ जाता हो ?

बोला- जैसे कमीज के नीचे दो-दो स्वेटर पहनने से आदमी का सीना कुछ बड़ा दिखाई देने लगे या दाढ़ी रखने से चेहरा कुछ भरा-भरा सा लगे लेकिन सच तो सच ही है। विग लगाने वाला या बाल रंगने वाला जानता तो है ही कि असलियत क्या है। अभिनेता राजकुमार जीवन भर विग लगाकर गंजे होने की कुंठा और अधिक अनुभव करते करते ही चले गए।

हमने कहा-राम, कृष्ण दोनों को ही मूँछें देखने को नहीं मिलती। पता नहीं, आई ही नहीं या फिर दिन में चार बार शेव करते थे । दोनों ने मूँछों वाले रावण और कंस को मार दिया था। अपने राजनाथ जी बिना दाढ़ी मूँछों के ही ‘राज’ कर रहे हैं। ‘नाथ’ भी हैं और ‘सिंह’ भी।

बोला- बड़े आदमियों की बात और है। वे कब क्या करते हैं यह सामान्य लोगों को कभी कुछ पता नहीं लगता। हमारा क्या, हमने तो दाढ़ी बनाई या नहीं, हजामत करवाई या नहीं। या फिर दो चार महीने में ट्रिमर से खुद ही खुद को मूँड लिया। मैं तो कभी कभी यह सोचकर ज़रूर परेशान हो जाता हूँ कि सामान्य जनता का कोरोना काल में हजामत का क्या हुआ होगा।

हमने कहा- होना क्या था ? जनता और भेड़ का तो कोरोना काल क्या, हमेशा ही रोना रहता है। कोई भी, कभी भी मूँड़ देता है। यह बात और है कि भेड़ के अच्छे दिन कभी नहीं आते लेकिन मूँड़ने वाले ज़रूर सत्तासीन हो जाते हैं। कोई और न मूँड़े तो सेवकों की बातें सुनकर झुंझुलाहट में वह खुद ही अपने बाल नोंच कर हजामत की समस्या का हल निकाल लेती है।

बोला- और जिसे कभी भी कोई भी मूँड सकता हो उसे किसी दाढ़ी-मूंछ या किसी खास केश-विन्यास का चक्कर ही नहीं रहता।


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Oct 29, 2022

वही दाम : वही स्वाद, बस .......

वही दाम : वही स्वाद,  बस .......  


आज जैसे ही तोताराम आया, हमने उसे चाय का गिलास थमाते हुए कहा- पिओ, वही दाम, वही स्वाद। 

बोला- लेकिन इस स्वाद का क्या चाटूँ। ज़रा सा स्वाद अनुभव होना शुरू हुआ नहीं कि चाय ख़त्म।  इससे तो अच्छा है चाय पी ही नहीं जाए।  तनिक से ईंधन से अग्नि शांत नहीं होती, भड़कती है। मैं अनुभव कर रहा हूँ कि दिन पर दिन गिलास में चाय की मात्रा कम होती जा रही है।  

हमने कहा- लेकिन वही स्वाद, वही दाम।  मात्रा का क्या है ? चाय कोई पेट भरने के लिए थोड़े होती है वह तो एक प्रकार का सम्मान, एक प्रकार का कर्मकांड, एक बहाना, एक टाइम पास होता है। खैनी खाने या बीड़ी पीने से कोई ताकत आती है ? बस, तनिक सुस्ताने का एक बहाना होता है। 

बोला- मैं तो सामान्य आदमी हूँ। मेरे लिए तो यही मिठाई है, यही ऊर्जा का स्रोत है।  मात्रा इतनी तो कम मत कर कि ओंठ और गले के बीच ही समाप्त हो जाए। अपने गंतव्य आँतों तक ही न पहुंचे।  

हमने कहा- हर भोजन-पानी का गंतव्य आंतें नहीं गटर होता है।  मोरिंगा के परांठे और ४० हजार रुपए किलो के मशरूम सब अंततः गटर में ही जानें हैं। हमारे पास कौन सरकार की तरह मुफ्त अनाज बांटने नाम पर गैस और पेट्रोल के काम बढ़ाने का बहाना है या कौन रोटी-प्याज तक पर जीएसटी लगाने का अधिकार है। अब यदि तुझे वही मात्रा चाहिए तो फिर चाय बिना दूध और चीनी की बनेगी।  

बोला- बिना दूध और चीनी की चाय तो केवल जुमले फेंकने और आस्था का खेल खेलने वाली सरकार या बिना स्तनों की युवती की तरह होती है। 

हमने कहा- वैसे सुबह-सुबह गरम पानी पीना चाय पीने से अधिक स्वास्थ्यवर्द्धक होता है।  मोदी जी के स्वास्थ्य का रहस्य मोरिंगा के परांठे नहीं, गरम पानी है।  

बोला- तू तो बिस्किट, साबुन वालों की तरह करने लग गया है।  आजकल बिस्किट के पैकेट और साबुन के दाम अधिक नहीं बढ़े हैं बस, उनका वजन काम कर दिया जा रहा है।  

हमने कहा- यह तकनीक कोई नई नहीं है।  हम तो १९७१ से १९७७ तक के अपने गुजरात प्रवास से ही इसे जानते हैं. आज जब तूने पूछा तो बता रहे हैं कि वहाँ हम देवजी भाई भरवाड़ नाम के एक व्यक्ति से दूध लिया करते थे। उसी दौरान बांग्लादेश बना। भारत के उसमें शामिल होने से तथा उसके बाद अकाल पड़ने से महंगाई बढ़ी। यहां तक कि लिफाफों तक पर 'सेस' के नाम से कोई पांच पैसे का अतिरिक्त टिकट लगाया जाता था।  गुजरात सरकार भी हमसे दारूबन्दी के नाम पर १० रुपया महिना वसूलती थी। लेकिन देवजी भाई ने अपने दूध के दाम कभी नहीं बढाए। हाँ,पानी की मात्रा ज़रूर महंगाई के अनुपात में बढ़ती गई।  ईमानदारी की बात यह कि देवजी भाई ने कभी झूठ भी नहीं बोला। साफ़ कहते थे- साहेब, भले ही सरकार कितने भी दाम बढ़ा दे लेकिन देवजी आपका बजट नहीं बिगाड़ेगा। 

बोला- कोई बात नहीं। गरम पानी पिलायेगा तो वह भी भगवान की कृपा मानकर पी लूँगा। दान की बछिया के दांत नहीं देखे जाते। 

हमने कहा-  केजरीवाल ने गुजरात में घोषणा कर दी है कि गाय पालने पर प्रति गाय, प्रति दिन ४० रुपए  दिए जाएंगे। ऐसे में अगर सेटिंग हो तो बछिया के दांत ही क्या, कोई बछिया भी नहीं देखेगा बस, केवल कागज देखे जाएंगे।  

बोला- यह बात अलग है कि फिर २०२७ में 'गौ ग्रांट घोटाले' सामने आएंगे।  




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Oct 28, 2022

नोटों पर हो तोताराम


नोटों पर हो तोताराम 


तोताराम के आने में थोड़ा समय बाक़ी है। चाय बन गई सो पीने बैठ गए। जब तोताराम आएगा तो उसके लिए फिर बनवा देंगे।  जब तक चाय ख़त्म करते, गली के मोड़ से कुछ बच्चों का सम्मिलित स्वर सुनाई दिया- 

क़र्ज़, कमी का काम तमाम 

नोटों    पर   हो     तोताराम 

अभी तो केजरीवाल का नोटों पर गणेश लक्ष्मी वाला हिंदुत्त्ववादी जुमला संबित पात्रा के गले में उलझा हुआ है, सांप छछूंदर की तरह न उगले बन रहा है, न निगले। यह केजरीवाल भी बहुत शैतान है। लोग तो नोटों पर गाँधी की जगह गोडसे या सावरकर का फोटो लगाने की सोच रहे थे और इसने सारे समीकरण गड़बड़ा दिए। ऐसे में नोटों पर मोदी जी तस्वीर की हमारी दलील को कौन सुनेगा ? और अब तोताराम के नाम का असमय का यह विवादी स्वर ? 

 फिर भी तोताराम की महत्वाकांक्षा ने हमें प्रभावित किया। 

दो मिनट में ही जुलूस बरामदे के आगे से गुजरा। पीछे-पीछे तोताराम। बच्चों से बोला- इंडस्ट्रियल एरिया मोड़ तक चक्कर लगा आओ उसके बाद जाते हुए अपनी आइसक्रीम के पैसे लेते जाना। 

हमने पूछा- तोताराम, यह क्या है ? 

बोला- क्या है ? जनता के दिल की आवाज़ है।  

हमने कहा- यह तो रिश्वत देकर निकलवाया गया जुलूस है और राहुल गाँधी की तरह बच्चों का राजनीतिक दुरुपयोग है।  इससे तुझे मिलना-मिलाना कुछ नहीं। स्मृति ईरानी को खबर लग गई तो उनका विभाग तुझ पर एफआईआर ज़रूर दर्ज़ कर लेगा। 

बोला- क्यों केजरीवाल गणेश लक्ष्मी की सिफारिश कर सकता है,  कोई शिवाजी तो कोई आम्बेडकर की तस्वीर नोटों पर चाहता है। कोई बुद्ध, महावीर, नानक और जीसस और अल्ला की तस्वीर चाहता है तो तोताराम में क्या कांटे उगे हुए हैं। मोदी जी जब जनता की बेहद मांग पर 'राजीव गाँधी खेलरत्न' का नाम 'ध्यानचंद खेलरत्न' कर सकते हैं तो देश के ये नौनिहाल नोटों पर तोताराम के फोटो की मांग क्यों नहीं कर सकते ? हालांकि मोदी जी ने मांग करने वाले एक भी आदमी का नाम नहीं बताया। 

 सभी नेता लोग जनता के पैसे से अपना विज्ञापन करते हैं जबकि मैं सारा खर्च अपनी पेंशन में से कर रहा हूँ।   

हमने कहा- लेकिन तेरा देश-दुनिया के लिए ऐसा क्या योगदान है जिसके बल पर तू यह दावा कर रहा है।  

बोला- जहां तक योगदान और औचित्य की बात है तो इन सबके बारे में स्पष्टीकरण सुन ले।  अल्लाह, गॉड, मुहम्मद साहब आदि की कोई फोटो नहीं होती।  ईसा, बुद्ध और महावीर का कभी धन दौलत से कोई संबंध नहीं रहा बल्कि वे तो जो था उसे भी छोड़छाड़कर चले गए। नानक आदि निर्गुण के उपासक है तो किसी फोटो का प्रश्न ही कहाँ उठता है ? और मोदी जी तो फकीर है। कभी भी झोला उठाकर चल देंगे। पहले भी जो थे उन नोटों की भी बंदी कर दी।  इसलिए ऐसे आदमी का नोटों के मामले में भरोसा ठीक नहीं।  

मेरा दावा इसलिए भी बनता है कि मैनें कभी कोई कर्ज़ा नहीं लिया। भले ही कंजूसी कर ली लेकिन कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। इससे बढ़िया ट्रेक रिकार्ड और क्या हो सकता है।  

हमने कहा- लेकिन गणेश और लक्ष्मी जी की बात और है। वे तो विघ्नों को दूर करने वाले और धनधान्य के दाता हैं।  

बोला- लोगों को लक्ष्मी जी की असलियत मालूम नहीं है। तिरुपति के बालाजी मतलब उनके पतिदेव विष्णु पर अभी तक भी कुबेर का कर्ज़ा है। पहले उन्हें अपना क़र्ज़ तो चुका लेने दो  उसके बाद ही उन्हें कष्ट देना। और फिर अपना देश तो धर्मनिरपेक्ष है ऐसे में केवल हिन्दुओं के देवी देवताओं को नोटों पर छापना कहाँ तक उचित है ?  

हमने कहा- लेकिन इंडोनेशिया में तो हिन्दू केवल ४-५% हैं  फिर भी उनके गणेश लक्ष्मी के फोटो नोटों पर छपे हुए हैं। उसीसे उसकी प्रतिव्यक्ति आय और ह्यूमन इंडेक्स हमसे अच्छा है।

बोला- मास्टर, मेरा तो मानना है कि यदि भाजपा सही अर्थों में हिन्दू धर्म में श्रद्धा रखती है तो इस मुद्दे पर भले ही उसकी केंद्र और सभी राज्यों की सरकारें गिर जाएँ लेकिन उसे नोटों पर गणेश-लक्ष्मी के फोटो नहीं छापने चाहियें क्योंकि इसी आधार पर कल को देश के मुसलमान कहने लगे कि जब ४-५% वालों के देवताओं के फोटो इंडोनेशिया के ८५% वालों के नोटों पर छप सकते हैं तो हम १४% वालों के धार्मिक चिह्न ८४% वालों के नोटों पर क्यों नहीं ? 

तब क्या उत्तर होगा ? 

हमने कहा- तोताराम, तुझे तो भाजपा के थिंक टैंक में होना चाहिए। इस संबित पात्रा को तो बेकार ही रख रखा है। कुछ समझ में नहीं आता तो केजरीवाल के यू टर्न पर सवाल उठा रहा है। 

वैसे अब जब तेरा फोटो नोटों पर ही आने वाला है तो ऐसे में क्या यह उचित लगता है कि तू मुफ्त की चाय पिए ?और नहीं तो कम से कम एक चाय का लागत मूल्य चार रुपए पचास पैसे तो दे दिया कर।  

तोताराम ने अपनी जेब में हाथ डाला और एक कागज का टुकड़ा निकालकर बोला- यह ले साढ़े चार रूपए का नोट।  

हमें बड़ा अजीब लगा, साढ़े चार रुपए का नोट !

हमने कहा- यह तो नकली है। अभी तक मोदी जी ने साढ़े चार रुपए का कोई नोट जारी नहीं किया है। यह बात और है कि 'काला धन संग्रह' को कठिन बनाने के अचूक उपायस्वरूप एक हजार रुपए की जगह दो हजार रुपए का नोट ज़रूर चला दिया था। हो सकता है भविष्य में एक लाख करोड़ रुपए का नोट भी चला दें जिससे धन का लेन-देन, परिवहन और गणना सरल हो जाए तथा नोटों की छपाई का खर्च भी कम और काम त्वरित हो सके।  

हमने देखा, तोताराम ने जो साढ़े चार रुपए का नोट दिया उस पर तोताराम का फोटो चिपका था और उसीकी लिखावट में लिखा था- मैं मास्टर को चाय के मूल्य स्वरूप साढ़े चार रुपए अदा करने का वचन देता हूँ।  

पूछा- तू रिजर्व बैंक का गवर्नर कब से हो गया जो गारंटी दे रहा है ? 

बोला- मास्टर, अब वह ज़माना नहीं रहा।  बैंक और उसके अधिकारी सब अविश्वसनीय और अस्तित्त्वहीन हो गए हैं।  पता नहीं कोई बैंक कब फेल हो जाए या कौन, किस बैंक का खजाना खाली करके ब्रिटेन भाग जाए और सरकार खिसियाकर उन्हें खरगौन का खटीमा में खोजती फिरे। और ईडी प्रश्न पूछने वाले का ही दरवाजा खटखटाने लग जाए।  

अब तो सब कुछ आदमी की व्यक्तिगत साख पर चलेगा।  इसलिए अब जनता को न तो नोटों पर किसी दिवंगत महापुरुष पर भरोसा है और न ही नोटों पर गणेश-लक्ष्मी का फोटो छापकर देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने वाले वैज्ञानिक सोच के नेताओं पर। अब तो खुद का ही फोटो, खुद की ही गारंटी और खुद का ही वचन चलेगा।  

वैसे ही जैसे पहले लोग अपनी मूँछ का बाल गिरवी रखकर क़र्ज़ ले आते थे।  

अब तो झूठ और जुमलों का ज़माना है। कुछ करोड़ में बिकने वाले और एक घुड़की में पायजामा गीला कर देने वाले वीर बचे हैं।  

जुबान पर जान देने वाले और 'प्राण जाय पर वचन न जाई' वाले विश्वसनीय लोग कहाँ  ?  




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Oct 24, 2022

अभी बाबा सेवकों कब्ज़े में हैं


                  


अभी बाबा सेवकों कब्ज़े में हैं 


आज दिवाली है।  घर के सभी स्वयंसेवक लस्त-पस्त पड़े हैं।  कई दिनों से 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के तहत सभी लगे हुए थे सफाई कार्यक्रम में अपने आप ही। चूँकि अब यहां भी अमरीका की तरह 'सामान सस्ता और मजदूरी महँगी' वाली विकसित स्थिति आने लगी है तो सदन ने खुद ही बहुमत से  श्रमदान करने का निर्णय लिया । हमने मतदान में भाग नहीं लिया इसलिए इस वास्तविक श्रमदान में भाग लेने की बाध्यता नहीं थी। 

यह कोई 'स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' जैसा  पहले से साफ़ जगह पर 'डिसइन्फैक्टेड झाड़ू फिराते हुए फोटो खिंचवाने का फ़िल्मी सूटिंग वाला काम तो था नहीं, 'भारत जोड़ो पदयात्रा' की तरह वास्तव में थका देने वाला काम था। कल इस सफाई  मेराथन का अंतिम राउंड था जो देर रात तक चला।  सो सभी धावक 'प्रसाद जी' के आंसू वाली स्थिति में थे- 

मादकता से तुम आए
संज्ञा से चले गए थे
हम व्याकुल पड़े बिलखते
थे उतरे हुए नशे से।

 इसलिए हमने भी किसी स्वयंसेवक को कष्ट देने का पाप करना उचित नहीं समझा। 


निर्देशक मंडल के आजीवन अध्यक्ष की तरह बरामदे में अकेले ही बैठे थे। तथाकथित पट्ट शिष्यों को कहाँ फुर्सत दिवाली की राम-राम करने की या 'साल मुबारक' कहने की।  होंगे कहीं दीये जलाने का विश्व रिकार्ड बनाने में व्यस्त। अखबार वाला भी दिवाली के चक्कर में आज जल्दी ही अखबार दे गया। हम अखबार में दिवाली के विज्ञापनों के बीच कोई खबर ढूँढने के असफल प्रयास में खोये हुए थे कि तोताराम के मुखर-मुग्ध स्वर ने मधुमती भूमिका को भंग किया, बोला- अब तो खुश, मिल गया दिवाली का तोहफा ?

हमने कहा- कैसा तोहफा ? दो  महिने से अखबार वाले हल्ला मचाये हुए हैं- मोदी जी ने दिया केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों को दिवाली का तोहफा। अभी तक तो अच्छे दिन की तरह मृगतृष्णा साबित हो रहा है। नेताओं के वादे हैं, जब पूरे हो जाएँ तब विश्वास करना। बल्कि हमारा तो मानना है कि तसल्ली करने के लिए बैंक पासबुक दो-चार लोगों को दिखा लेनी चाहिए। कहा है ना- मियाँ मरा तब जानिये जब चालीसा होय।  

बोला- और बातें सब बाद में पहले तो तू अपनी जुबान संभाल।  किसी ने तेरे इस मुहावरे से 'भावनाएं आहत होने' को लेकर एफआई आर दर्ज़ करवा दी तो तेरी दिवाली का दिवाला निकल जाएगा। आगे कई छुट्टियां हैं, कई दिनों तक जमानत भी नहीं  होगी।  

हमने कहा-  इसकी फ़िक़र मत कर। यह किसी हिन्दू की भावना नहीं है जो किसी मुसलमान के अपने मरीज के लिए दुआ स्वरूप अस्पताल के किसी कमरे में नमाज पढ़ने तक से आहत हो जाए और जिसका पुलिस नोटिस भी ले ले और एफआईआर भी दर्ज कर ले। सच पूछे तो मुसलमानों की तो कोई भावनाएं ही नहीं होतीं। यदि कोई युवा नेता उन्हें गोली मारने या कोई संत उनकी महिलाओं से बलात्कार करने की धमकी दे दे तो भी उनकी भावनाएं आहत नहीं हो सकतीं। तो फिर मियाँ वाले इस मुहावरे से भी कुछ नहीं होगा। लेकिन तू तोहफा कौन सा बता रहा था।  क्या मोदी जी वाले चर्चित लेकिन अभी भी लंबित तोहफे से अलग कुछ है ? 

बोला- और क्या ? कल छोटी दिवाली को विराट ने ऑस्ट्रेलिया में पाकिस्तान को हराया, यह क्या किसी तोहफे से कम है ? 

हमने कहा- ये सब झुनझुने हैं जो दूध न पिला सकने वाली माँ हर रोते हुए बच्चे को थमाती है।  कल अयोध्या में १५ लाख ७६ हजार दीयों का रिकार्ड बनाया लेकिन क्या उससे किसी की दाल में छोंक लगेगा या उन दीयों से यमुना खड़े इनामोत्सुक किसी ब्राह्मण को गरमी मिलेगी ? 

 बोला- आज सोमवार है। जब तक भाभी उठे तब तक 'गहलोत मोटर्स' के सामने वाले शिव-हनुमान मंदिर ही हो  आते हैं।  

हमें बिना किसी अतिरिक्त समय खर्च किये मुफ्त में दो बड़े  देवताओं को आभारी बनाने का सुझाव पसंद आया और हम दोनों भोले बाबा के दर्शनों के लिए चल पड़े।  

जैसे ही मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचे तो देखा,एक अत्यंत शांत और शालीन महिला वहीँ रखी पत्थर की एक बेंच पर बैठी थी। पता नहीं क्यों, हमें उसकी शक्ल पहचानी सी लगी । हमने जब तोताराम को अपना अनुमान बताया तो   बोला- इसमें सोचने की  क्या बात है, पूछ ही लेता हूँ। और उसने पूछा ही लिया-  माते, क्या आप पार्वती जी हैं ? 

वह महिला कुछ अनखाती  सी बोली- तो और कौन इतनी सुबह यहां आकर बैठेगा ? 

हमने कहा- माते, अब थोड़ी ठण्ड होने लग गई है। अच्छा हो, आप अंदर ही बैठें।  

बोलीं- अंदर ही तो बैठे थे लेकिन क्या करें, कोई बड़े नेता आ गए हैं दर्शन करने।  

तोतराम ने कहा- लेकिन माते, ऐसा कौन इतना बड़ा नेता आ गया जो आपको वहाँ नहीं बैठने दे ?

पार्वती जी बोलीं- पता नहीं कौन है ? उसके साथ कई फोटोग्राफर हैं, तरह-तरह से बाबा के साथ नेता के फोटो खींच रहे हैं। हम एक बार आगे से निकल गए तो नेता ने ही हमें बांह पकड़कर एक तरफ कर दिया और बोला- हम अपने और कैमरे के बीच किसी भगवान को भी बर्दाश्त नहीं करते ।  

हमने कहा- तो फिर माते, जब तक नेता की यह फोटो नौटंकी चले तब तक क्यों न हमारे घर पधारें और एक कप चाय पियें  ?

बोलीं- बेटा, थोड़ी देर में यह काम भी निबट ही जाएगा। दिन में दस ड्रेसें बदलने वाले नेताओं को  इस बूढ़े दिगंबर बाबा से क्या मतलब है ? चुनाव हैं तो प्रकारांतर से वोट का गणित बैठा रहे हैं। फिर कहीं और जाकर मंच सजायेंगे।तुम दोनों अपने घर जाओ।  

और हाँ, शाम को मास्क ज़रूर लगा लेना। संस्कृति के नाम पर पटाखे फोड़ने का भोंडा प्रदर्शन अपने चरम पर होगा। वैसे ही इस उम्र वालों के फेफड़े पंचर हुए रहते हैं।  

 





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Oct 23, 2022

रूपचौदस : रूप का नरक


रूपचौदस : रूप  का  नरक 

कल धनतेरस थी। दो महीने से अख़बारों में कर्मचारियों और पेंशनरों को सरकार के तोहफे, दिवाली के उपहार , खाते में आएंगे एक-एक लाख जैसे जुमले उछल रहे  हैं लेकिन आया कुछ नहीं। गया ही गया है। फिर चाहे दूध के दाम हों या सब्जी के। हाँ, ज्योतिषी खरीददारी के लिए अनेक शुभ और श्रेष्ठ मुहूर्त बता रहे हैं। इसलिए उनकी धन तेरस ज़रूर होनी है।  उनके लिए कोई महंगाई नहीं है।  हर सौदे पर २०-२५ प्रतिशत मुनाफा पक्का। 

सो धनतेरस जिन के लिए रही होगी वे जानें, हमारे लिए सामान्य दिन जैसा ही रहा है।  आज जैसे ही उठे पत्नी ने एक ही रट लगा रखी है-  दो हाथ सरसों के तेल के लगा लो, ऐसे ही नहीं चुपड़ना, रगड़ना भी।  

हमने कहा- रगड़ाई के लिए हमें कुछ नहीं करना।  वह तो सेवक लोग जब, जिसको मौका लगता है हमें ही रगड़ रहा है।  व्यापारी और गुंडे तो उनके वश में आते नहीं हैं। 

बोली- ये हर बात में सेवक, व्यापारी, राजनीति लाना बंद करो।  आज रूपचौदस है।  कम से कम आज तो तेल मालिश करके गरम पानी से ढंग से नहा लो। उसके बाद तो सर्दी का बहाना बना कर कभी नहाओगे नहीं, तो कभी ऐसे ही दो लोटे पानी डालकर नहाने का कर्मकांड कर लोगे जैसे सरकारें चुनाव आने पर जगह-जगह शिलान्यास और घोषणाएं कर देती हैं और उसके बाद करना-धरना नहीं।विकास में हिस्सदेदारी के बतौर छुटभैय्ये शिलान्यास के पत्थर उखाड़कर ले जाएंगे।  

इसी बीच पता नहीं कब तोताराम आगया, बीच में ही बोल उठा- अरे मास्टर, नहा ले। क्या इस मैल को लिए-लिए ही यमराज का स्वागत करेगा ?

हमारी जगह पत्नी ने ही उत्तर दिया- आज के दिन तो कम से कम शुभ-शुभ बोलो लाला, रूपचौदस का दिन है ।  तुम्हारी चाय कहीं भागी थोड़े ही जा रही थी। आज तो कम से कम नहा-धोकर आते। 

अब तो हमें भी हस्तक्षेप करना ही पड़ा। एक बार को अज्ञानी चुप रह सकता है लेकिन जिसे सर्वज्ञता का बहम हो जाए वह टांग अड़ाए बिना नहीं रह सकता। वैसे किन्हीं दो की बात में बीच में बोलना मूर्खता कहलाती है।  

हमने कहा- यह रूप ही तो सभी समस्याओं की जड़ है। जिस रूप को लेकर हम खुद को अलौकिक समझते हैं वह भी हर अन्य नश्वर जीव और वस्तु की तरह तरह-तरह से नारकीय ही होता है। हर जन्म लेने वाले को बीमार होना और बूढ़ा होकर मरना ही है। किमाश्चर्यं ? सबको मरते हुए देखकर भी मनुष्य सोचता है कि और जीव अपनी गलतियों-कमियों या अभावों के कारण मरते हैं लेकिन मैं नहीं मरूँगा, मेरे पास क्या कमी है ? 

इसीलिए इस रूपचौदस नामक आकर्षक लेकिन भरमाने वाले पर्व को नरकचौदस भी कहा गया है।  

तोताराम ने ऐतराज जताया, बोला- फिर भी आदमी मानता कहाँ है ? दिन में दस बार नई-नई ड्रेसें बदलता है, जहां जाता है अपने साथ कई-कई फोटग्राफर ले जाता है, तरह-तरह की फोटो खिंचवाता है, उन्हें हर जगह चिपकवाने का इंतज़ाम करता है। धर्म-कर्म की बजाय हर क्षण कैमरे पर ही निगाह टिकाये रहता है। 

अंतिम यात्रा में भी यह सोचकर पूरे मेकअप और दल-बल सहित ऊपर जाना चाहता है कि ऊपर भी उसे वी वी आई पी ट्रीटमेंट मिलेगा।  इसका वश चले तो मरने के बाद भी खुद को भुस भरकर भी गद्दी पर स्थापित रखे। तभी तो मिस्र के फराह खुद को पिरामिड में रखवाते थे और साथ में अपने दास-दासी, गहने भोजन आदि।   

हमने कहा- इसमें क्या झूठ है ? कहने को पांच तत्त्व माने जाते हैं और मरने के बाद यही कहा जाता है कि अमुक-अमुक सेवक की देह पंचतत्त्व में विलीन हो गई लेकिन ऐसा होता कहाँ है ? ऐसे माया मोह में फंसे लोगों में एक छठा तत्त्व भी होता है जो कभी विलीन नहीं होता। वह है खुराफात। 

बोला- तभी तो रामसुखदास जैसे संत  कहते हैं कि उनका कोई स्मारक नहीं बनवाया जाए।  वे तो फोटो भी नहीं खिंचवाते थे, चरण छुआना तो बहुत दूर की  बात। और ये खुद और कैमरे के बीच भगवान तक को नहीं आने देते।  इनका वश चले तो ये अपने स्मारक और मूर्ति के ठेके का कमीशन भी जीते जी ही वसूल लें।  

हमने कहा- तभी तो ! क्या तूने कभी सुना है कि किसी नेता ने मेडिकल के छात्रों के अध्ययन के लिए अपना 'देह दान' किया हो ? रूप के नरक में फंसे इन लोगों के लिए ऐसा संभव नहीं। ऐसा भी कोई ज्योति बसु जैसा तत्त्वज्ञानी ही कर सकता है।  

तोताराम बोला- तो दिवाली की छुट्टी के बाद देहदान पर गंभीरता से विचार करते हैं।    


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Oct 13, 2022

अब क्या किसी की जान लेगा

अब क्या किसी की जान लेगा 


आज तोताराम ने आते ही बधाई दी। 

बधाई हो भाई साहब, बिना कुछ किये धरे, बिना आंदोलन-धरने-धमकी के हो गई बल्ले-बल्ले; ऐसे जैसे निर्देशक मंडल में बैठे-बैठे आडवाणी जी पर राष्ट्रपति या भारतरत्न का छींका टूट पड़े।  

हमने कहा- मोदी जी केजरीवाल की तरह नहीं हैं जो बिना कुछ करे धरे रेवड़ियां बाँट कर जनता की आदतें खराब करें। रेवड़ियां तो अंधा बांटता है। मोदी जी तो दो आखों से ही सहस्रनेत्र हैं। हालांकि नाम अब्दुल नहीं है लेकिन सबकी खबर रखते हैं। वे खुद मेहनत में विश्वास करते हैं, ८ घंटे की जगह उसी वेतन में, बिना किसी ओवर टाइम के २४-२४ घंटे काम करते हैं। उनके रहते कोई मुफ्त का नहीं खा सकता।  उन्होंने तो शुरू में ही कह दिया था- न खाऊँगा, न खाने दूँगा।इसलिए बिना किये धरे वे किसी को कुछ देने वाले नहीं हैं।  मेहनत की कमाई भी बहुत रगड़-रगड़ कर देते हैं जिससे लेने वाले को अपने श्रम की सार्थकता भली भांति अनुभव हो जाए।  

पता नहीं, बहुप्रचारित डीए कब आएगा। बनियों ने तो अखबार देख-देखकर ही दाम बढ़ा दिए हैं।  १८ महिने  के एरियर का तो कहीं दूर दूर तक पता नहीं है।  

बोला- आ जाएगा, डीए  भी आजायेगा। एरियर भी आ जायेगा। सबर कर।  अभी ८० का होने पर २०% बेसिक भी तो बढ़ गई होगी।  उससे पेट नहीं भरा क्या ?

हमने कहा- सर्विस रिकार्ड के अनुसार ५ जुलाई को ८० साल के हो गए हैं और आज २ अक्टूबर है।  २०% बेसिक तो बढ़कर कब की आ जानी चाहिए थी ।  कल ही बैंक जाकर पूछ कर आये थे लेकिन- इल्ले। गुजराती  में  नथी ? 

बोला- अच्छा है, एक साथ आएगी तो कोई बड़ा काम सरेगा।  

हमने कहा- लेकिन यह तो सिस्टम में फीड है। जब एक दिन के लेट पेमेंट पर पेनल्टी अपने आप जुड़ जाती है तो देने वाला काम ऑटोमेटिक क्यों नहीं होता ? देते समय अर्थव्यवस्था डिजिटल नहीं रहती क्या ? 

बोला- वैसे मोदी जी ने कल ५ जी का उदघाटन करते हुए ४००० रूपए महिने की बचत का गणित समझा तो दिया था।

हमने कहा- हाथ में तो कुछ आना नहीं।  बस, गणित समझते-समझाते रहो। फिर भी क्या गणित समझाया है, सुनें तो।  

बोला- उन्होंने कहा है-डेटा के माध्यम से अब आम आदमी चार हजार रुपये महीना बचा रहा है। पहले एक जीबी डेटा 300 रुपये में मिलता था, लेकिन आज यह दस रुपये में है। उन्होंने बताया, औसतन एक आदमी महिने में 14 जीबी डेटा खर्च करता है। इससे उसकी लागत 4200 रुपये महीना आती, लेकिन अब यह 150 रुपये से भी कम में मिल रहा है। यानी आदमी अब 4000 रुपये महीना बचा रहा है। 

तू तो कम से कम ५० जीबी डेटा यूज करता होगा तो तेरी तो बचत १०-१२ हजार रुपया महिना हो गई कि नहीं ?  

इतना तो कर दिया। अब क्या किसी की जान ही लेगा !

हमने कहा- यह ग़ालिब वाली बात है- यूं होता तो क्या होता-----? इस हिसाब से तो १५-२० साल पहले बच्चों से फोन पर अमरीका बात किया करते थे तो एक मिनट के ७२ रुपए लगा करते थे लेकिन अब मोदी जी की कृपा से वाट्स ऐप पर घंटों बात कर लो तो भी कोई ख़ास खर्च नहीं आता।  इस गणित के हिसाब से तो महीने की ४००० रुपए ही नहीं, लाखों की बचत हो सकती है।  

बोला- सोच का फ़र्क़ है। जिसको खुश होना ही नहीं तो उसका कोई क्या करे। पहले किसी को व्यक्तिगत रूप से खैर-खबर लेने के लिए भेजा जाता तो सोच कितना महंगा पड़ता होगा । कोई सेठ-साहूकार, राजा-महाराजा ही अफोर्ड कर सकते थे। अब रुपए-आठ आने में काम हो जाता है। 

जब तक २०% बेसिक और ४% डीए और १८ महीने का एरियर नहीं आता तब तक इस गणित से ही मन बहला।  

दिल के बहलाने को मास्टर यह  ख़याल अच्छा है कि नहीं ? 

हमने कहा- तोताराम, ५ जी वाले उद्घाटन समारोह में मोदी जी मोटा काला चश्मा लगा रखा है। 

कहीं मोतियाबिंद का ऑपरेशन तो नहीं करवाया है ? 

बोला- नहीं,  वे बहुत संयमी और अनुशासित व्यक्ति हैं।  उनकी आँखें तो अब भी अनादि और अनंत भूत-भविष्य को बिना किसी दूरबीन के देख सकती हैं। कोई सामान्य आदमी की आँखें थोड़े ही हैं जिनसे उसे आसपास घूमते-फिरते अच्छे दिन भी दिखाई नहीं देते। 

यह तो विशेष दृष्टि प्रदान करने वाला विशेष प्रकार का चश्मा है जो ५ जी की मदद से 'आभासी' को भी 'वास्तविक' जैसा दिखाता है।  यह अभी बड़े और ख़ास लोगों के लिए ही है।  बाद में अआधार कार्ड की तरह सबके लिए ज़रूरी कर दिया जाएगा जिससे सब आभासी विकास का वस्तविक  आनंद  ले सकें।    

तेरी तरह थोड़े ही हैं जिससे अपना एक 'जी' ही नहीं सँभल रहा है। जिसे 'वास्तविक' भी 'आभासी' जैसा नज़र आता है।  


  







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Oct 10, 2022

तुझे किसने भेजा है ?


तुझे किसने भेजा है ?


दो दिन से बरसात हो रही है।  वैसे पानी मात्रा में तो अधिक नहीं गिरा लेकिन वातावरण तो ख़राब कर ही दिया जैसे निजी यू ट्यूब चैनल वाले अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए और सरकार के भक्त अखबार प्रभु-कृपा प्राप्त करने के लिए दो महिने से हल्ला मचाये हुए हैं- मोदी जी का कर्मचारियों को दीवाली का तोहफा, केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों की होने वाली है बल्ले-बल्ले, खाते में आएगी बड़ी रकम आदि-आदि। दुकानदार तो ऐसी खबरें सुनकर दाम बढ़ाकर विकास के लिए प्रतिबद्ध सरकार को बदनाम करने के लिए रहते ही हैं।    

फसलों को नुकसान कितना हुआ, यह मुआवजा कबाड़ने वाले छुटभैय्ये नेता जानें।  किसानों के आय-व्यय और नुकसान की खबर किसानों के हित में तीन कानून बनाने वाली और फिर वापिस लेने वाली सरकार तक काम ही पहुंचती हैं। हाँ, सेवक एक स्टेटमेंट सुनकर ही जनसँख्या का संतुलन सुधारने के लिए अपने समुदाय को हथियार उठाने का आह्वान ज़रूर कर रहे हैं।  

हम इस बेमौसम की बरसात की रात में पंखा चलकर सोने के फलस्वरूप सर्दी खाकर बरामदे की बजाय आडवाणी जी की तरह कमरे में बैठे हैं। 

तोताराम आकर जैसे ही कुर्सी पर बैठने को हुआ, हमने पूछा- तुझे किसने भेजा है ? 

बोला- भेजेगा कौन ? जैसे रोज आता हूँ वैसे ही आ गया।  

हमने कहा- हर आने वाले को कोई न कोई भेजता भी है जिसे यहां कोई न कोई रिसीव करता है। तभी तो बच्चा पैदा होने को 'डिलीवरी' कहा जाता है। तेरी भी डिलीवरी हुई थी तो ज़रूर कोई भेजने वाला अर्थात 'प्रेषक' और  अंग्रेजी में सेंडर भी तो रहा होगा ? 

बोला- मैं तो ८० साल पहले ही आगया था। आज तक तो तूने कभी नहीं पूछा। मै तो पाला बदलकर तेरी सत्ताधारी, राष्ट्रवादी पार्टी छोड़कर गया भी नहीं। अनुशासित स्वयंसेवक की तरह सब कुछ सहकर बौद्धिक करता रहा।    फिर शंका की इस 'ईडी' और 'डीएनए'  की क्या ज़रूरत आ पड़ी ? जो मुझसे प्रश्न कर रहा है कि तुझे किसने भेजा ? आज तक तो किसी बच्चे के साथ कोई ऐसा टैग लगा हुआ आया देखा नहीं कि यह पैकेट फलां-फलां ने भेजा है। वैसे यदि मेरे साथ भी आया होगा तो बताने के लिए अब बचा कौन है ?  न माँ है, न दादी, न कुंती नर्स। उस सरकारी अस्पताल की इमारत में पहले पशु चिकित्सालय खुला था और अब तहसील का कार्यालय है। 

वैसे यदि तू आस्तिक है तो मुझे उसी ने भेजा है जो सबको भेजता है।  

हमने कहा- सबको भेजने वाला एक नहीं होता।  मुसलमान को अल्लाह भेजता है, हिन्दू को भगवान भेजता है, ईसाई को गॉड भेजता है, सिक्ख को एक ओंकार भेजता है।   

हमने कहा- लेकिन कल गुजरात में केजरीवाल ने कहा है कि मुझे भगवान ने भेजा है कंस की औलादों का संहार करने के लिए।  

बोला- लेकिन कंस तो मथुरा में था। उसकी औलादें गुजरात में कैसे पहुँच गईं ? 

हमने कहा- हो सकता है कंस की सरकार गिराने के लिए कृष्ण कंस के असंतुष्ट और पद के लालची विधायकों को चार्टर्ड प्लेन से द्वारिका ले गए हों।

बोला- क्या किसी ने केजरीवाल के पैकेट के साथ 'प्रेषक' के रूप में भगवान् का टैग देखा था ? 

हमने कहा- इस देश की जनता बहुत भली और भोली है।जब मोदी जे कहा था कि मुझे माँ गंगा ने बुलाया है तब भी बनारस के लोगों ने गंगा का अथॉरिटी लेटर कहाँ देखा था। 

बोला- जैसे केजरीवाल को भगवान ने भेजा है वैसे मोदी जी को किसने भेजा ?

हमने कहा- मोदी जी ऐसे मामलों में बहुत संकोची हैं। वे केजरीवाल की तरह अपनी प्रशंसा खुद नहीं करते। उनके लिए तो वेंकैय्या नायडू जी ने कहा था कि मोदी जी राष्ट्र को ईश्वर का तोहफा हैं।  

बोला- लेकिन गुजरात में तो केजरीवाल के स्वागत में बहुत से पोस्टर लगे हैं जिनके अनुसार केजरीवाल ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण को ईश्वर नहीं मानता।  

हमने कहा- वैसे हमारे शास्त्रों में भी इन सबको शक्ति संपन्न तो माना है लेकिन इन्हें 'ईश्वर' तो कहीं नहीं कहा गया है।अन्य धर्मों में  भी गॉड या अल्लाह का कोई धार्मिक स्थान नहीं मिलता। ईश्वर, गॉड, खुदा तो सर्वशक्तिमान है जिसे किसी एक स्वरूप, विग्रह, शब्द में समेटा ही नहीं जा सकता है। वह एक ही हो सकता है। अलग-अलग धर्मों, देशों, कालों आदि में भी अलग-अलग नहीं।  

बोला- राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु, महेश को न मानने वाला संस्कारहीन होता है। यदि कोई व्यक्ति नास्तिक हो, ईश्वर को नहीं मानता हो तो वह देश, दुनिया और समाज के लिए हानिकारक होता है। 

हमने कहा- फिर तो भारत और नेपाल के अतिरिक्त सभी देश संकट में ही समझो।  तुझे पता होना चाहिए कि हिटलर जेब में हर समय बाइबिल रखता था लेकिन निर्दय कितना था यह सारी दुनिया जानती है। हमारे ख़याल से तो जो जितना बुरा होता है उसे खुद को भला दिखाने का उतना ही अधिक और झूठा नाटक करना पड़ता है।वैसे कोई माला, तिलक, छाप करते हुए भी तो अंदर से लम्पट हो सकता है। ऐसे में किसे ईश्वर ने भेजा है, कौन संस्कारवान है; कौन गरबा में अवैध रूप से घुस आया; कैसे पहचाना जाए ?

बोला-  ईवीएम का बटन ज़ोर से दबाने से जिसे करंट लगता हो वह संस्कारहीन होता है। संस्कारवान को उसके कपड़ों से पहचाना जा सकता है। देखा नहीं, गुजरात में पोस्टरों में केजरीवाल कैसी टोपी पहने हुए हैं ? 

हमने कहा- यदि गोडसे ऐसा कहता कि मुझे गाँधी की हत्या करने के लिए ईश्वर ने भेजा है, तो ?

बोला- देश में जैसे हालात और हवा चल रहे हैं उन्हें देखते हुए यह असंभव भी नहीं लगता ?

हमने कहा- और इस ड्रामेबाजी में कबीर, नानक, गाँधी, भगत सिंह और अम्बेडकर कहाँ फिट होंगे ? 

बोला- अब भी ये सब कौन से फिट हैं ? सब मिसफिट हैं। कुछ दिनों की बात है।  सब 'आउट ऑफ़ कोर्स'  जाएंगे। 


  


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Oct 7, 2022

तोताराम का अद्भुत अपूर्व स्वप्न

तोताराम का अद्भुत अपूर्व स्वप्न 


आज भी तोताराम समय से कुछ पहले ही आगया जैसे कि उत्कंठिता नायिका समय से बहुत पहले ही बार-बार छत पर जाकर नायक का रास्ता देख-देख आती है. या जैसे सच्चा भक्त दिन के ग्यारह की बजाय दस बजे ही से   'मन की बात'  सुनने के लिए रेडियो से कान चिपका देता है. 

हमने छेड़ा- तोताराम, हमने तेरी चाय को जी एस टी और गैस की मूल्य वृद्धि की तरह अपरिहार्य मान लिया है. जब भी आएगा मिल जायेगी. लेकिन चाय के लिए इतनी उतावली और वह भी अस्सी साल की इस उम्र में. शोभा नहीं देती. 

बोला- और तू तो इस उम्र में जैसे बहुत ही परिपक्वता का परिचय दे रहा है. यहाँ तो जब से देखा है, रोमांच के मारे रात तीन बजे से नींद नहीं आ रही है.  तुझे बताने के लिए बड़ी मुश्किल से करवटें बदल बदलकर किसी तरह साढ़े पांच बजाये हैं. याद करते ही रोमांच हो आता है. रोम रोम में झुरझुरी होने लगाती है. एक भावावेश सा छा जाता है. 

हमने पूछा- ऐसा क्या दुस्वप्न देख लिया ?

बोला- दुस्वप्न नहीं, साक्षात शिवलिंग. ज्ञानवापी के फव्वारे जैसे लगने वाले नहीं बल्कि बिलकुल उज्जैन और काशी वाले जैसे. 

हमने कहा- पहले भी तू व्हाईट हाउस के नीचे राममंदिर का नाटक लाया था. 

बोला- वह भी नाटक नहीं था . तर्क पर आधारित निष्कर्ष था. जब हनुमान का पुत्र पाताल (अमरीका) का राजा बना था तो अमरीका में राम मंदिर न होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. लेकिन आज तो साक्षात् देखा है. 

हमने कहा- कभी कभी जब मन में कोई बात गहरे पैठ जाती है तो फिर आदमी को एक प्रकार  का दृष्टि-भ्रम भी हो जाता है. उसी स्थिति के लिए कहा गया- सावन के अंधे हो हरा ही हरा. अमरीका में आज से कोई तीसेक साल पहले भी भारत के कुछ शिव भक्तों ने एक रोड़ ब्लोकर को शिव लिंग समझ लिया था. वे वहाँ पूजा पाठ करने लगे और 'मंदिर वहीं बनायेंगे' की तर्ज़ पर मंदिर बनाने का आग्रह करने लगे लेकिन वहाँ के प्रशासन ने उस रोड़ ब्लोकर को वहाँ से हटवा दिया. और काम ख़त्म. 

बोला- आज का अखबार देख. गोवर्धन पुरी के पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है- हमारी दृष्टि केवल मथुरा, काशी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मक्का के मक्केश्वर महादेव तक है. इसका मतलब उन्होंने भी देखा है. तभी कहा है- 

जा की रही भावना जैसी , प्रभु मूरत देखी तिन तैसी. 

हमने कहा- वे विद्वान नहीं, आचार्य हैं, उनके नाम के साथ शंकर भी जुड़ा हुआ है. और उनका नाम है निश्चल आनंद . अपने मत और निर्णय पर निश्चल रहने वाले. तेरी तरह अनुमान से नहीं फेंकते या वैसे ही ऊलजलूल सपने नहीं देखते. उन्होंने साफ़ कहा है- कोरोना काल में नौ महीने रिसर्च की है. 

नौ महिने में, कहीं कोई अस्तित्व न हो तो भी एक जीता जागता मनुष्य पैदा हो जाता है. तब तो मक्का में मक्केस्वर महादेव की बात का आधार बनता है. 

बोला- तो फिर अमरीका में क्यों नहीं. वहाँ तो रावण के वंशजों का राज था. वे सभी शिव भक्त थे. और फिर राम भी तो शिव भक्त थे, पक्के शिवभक्त. तभी कहा था-

शिव द्रोही मम दास कहावा 

यह मत मोहि सपनेहुँ नहिं भावा. 

और फिर हनुमान को तो शंकर सुवन कहा गया है तो अमरीका में 'अमरीकेश्वर महादेव' के होने में कोई संदेह ही नहीं है. 

और आगे पढ़, शंकराचार्य जी का इसी के साथ एक और स्टेटमेंट भी पढ़. वे कहते हैं भारत के हिन्दू राष्ट्र घोषित होते ही और १५ देश अपने आपको हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देंगे.  दुनिया के २०४ देशों में से ५३ देशों में हिन्दू रहते हैं.

हमने कहा- अरब देशों में तो एक करोड़ के लगभग भारतीय रहते हैं. अमरीका में ही ४० लाख भारतीय रहते हैं. वहाँ वे बहुत प्रभावशाली हैं. कल को कमला राष्ट्रपति भी बन सकती है. फिर तो अमरीका के हिन्दू राष्ट्र बन जाने में कोई संदेह ही नहीं. 

बोला- और क्या ? तब मेडिसन स्क्वायर और व्हाईट हाउस सभी जगह शिवलिंग ही शिवलिंग. 

हमने कहा- तोताराम, कल्पना कर, तब क्या दृश्य होगा जब लाखों कांवड़िये 'अमरीकेश्वर महादेव' से कांवड़ लाने के लिए बम बम बोलते हुए अमरीका पहुँच जायेंगे. अमरीका का पुलिस कमिश्नर हेलिकोप्टर से शिव भक्तों पर पुष्प वर्षा कर रहा होगा. लौटते समय मक्का में वहाँ के बड़े-बड़े लोग थके हुए कांवड़ियों की चरण सेवा कर रहे होंगे. 

अमरीका से अफगानिस्तान तक के रास्ते जाम हो जायेंगे शिव भक्तों की रेलमपेल से.  

बोला- मास्टर, यह स्वप्न और कल्पना नहीं है, शीघ्र ही साकार होने वाली एक हकीकत है. 

हमने कहा- तोताराम, हम तो तेरा मन रखने के लिए हाँ में हाँ मिला रहे थे. इन शंकराचार्य ने एक बार पहले भी  बहुत ऊंची फेंकी थी. कहा था-  चंद्रयान-२ में आ रही दिक्कतों को लेकर वैज्ञानिक उनके पास आये थे और उन्होंने वैदिक गणित से उनका समाधान किया था.  

जबकि सचाई यह है कि कोई वैज्ञानिक उनके पास नहीं आया था.  




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Oct 5, 2022

चीतायन या चीतागमन

चीतायन या चीतागमन 


आज दुर्गाष्टमी है।


राम ने रावण को मारने के लिए ‘शक्ति’ की आराधना की थी। आज ‘व्यक्ति पूजा’ के इस युग के ‘शक्ति’ की आराधना की बजाय ‘व्यक्ति’ की आराधना में व्यस्त रहना पड़ता है। व्यक्ति की आराधना के बाद इतनी शक्ति ही नहीं बचती कि शक्ति की आराधना कर सकें। फिर भी चूँकि तोताराम की ‘चीतायन महाकाव्य’ लेखन की सलाह ने कुछ प्रेरित ज़रूर किया। सोचा, हो सकता है, चीता-चर्चा के बहाने देश में ‘गति-शक्ति’ की १०० लाख करोड़ रुपए की मतलब देश की जीडीपी के पांचवें हिस्से से बनने वाली अब तक की विशालतम योजना के प्रज्ञा-पुरुष मोदी जी के कान तक हमारी राष्ट्रभक्ति की भनक पहुँच जाए तो, न सही आडवाणी जी के लिए ‘भारत रत्न’ लेकिन इस अंत काल में हमारे लिए कोई दो-चार लाख का छोटा-मोटा पुरस्कार ही टपक पड़े। ‘रत्न पुरस्कारों’ में हमें कोई रुचि नहीं क्योंकि जिसमें धन-राशि न हो वह कितना भी बड़ा सम्मान हो, किसी काम का नहीं। जिनके पास पहले से बहुत पैसा है उनकी बात अलग है।

सुबह जल्दी उठकर हम अपने घर के सामने बने आइडिया के टावर की तरफ एकटक दृष्टि गड़ाए घूर रहे थे। सुबह-शाम इस टावर पर बहुत चहल-पहल रहती है। कोई हजार-पांच सौ कबूतर एक साथ उड़कर भोजन की तलाश में निकलते हैं और शाम को लौटते हैं। बड़ा अद्भुत दृश्य होता है।

पता ही नहीं चला कि तोताराम कब आकर पीछे खड़ा हो गया. बोला- ज़्यादा आँख मत फाड़। किसी कबूतर की बीट आँख में गिर पड़ी तो तेरे कमल नयनों का ज्योति कलश पंचर हो जाएगा।

हमने कहा- हम तो ‘चीतायन’ लेखन की प्रेरणा के लिए देख रहे थे कि कोई बिल्ली या लंगूर किसी काम मोहित कबूतर को लपक ले और उसे देखकर हमारे मुख से वाल्मीकि की तरह कोई ‘अनुष्टुप’ फूट पड़े।

रामायण ग्रंथ के पहले सर्ग में इस बात का उल्लेख है कि देवर्षि नारद महर्षि बाल्मीकि के तमसा नदी तट पर अवस्थित आश्रम पर पधारते हैं और उन्हें रामकथा का संक्षिप्त परिचय देते हैं । देवर्षि के चले जाने के बाद महर्षि अपने शिष्यों के साथ तमसा नदी तट पर स्नानार्थ जाते हैं । तभी वे अपने वस्त्रादि अपने प्रिय शिष्य भरद्वाज को सौंप पेड़-पौधों से हरे-भरे निकट के वन में भ्रमणार्थ चले जाते हैं । उस वन में एक स्थान पर उन की दृष्टि क्रौंच पक्षियों के रतिक्रिया में लिप्त एक असावधान जोड़े पर पड़ती है । कुछ ही क्षणों के बाद वे देखते हैं कि उस जोड़े का एक सदस्य चीखते और पंख फड़फड़ाते हुए जमींन पर गिर पड़ता है । और दूसरा उसके शोक में चित्कार मचाते हुए एक शाखा से दूसरे पर भटकने लगता है । उस समय अनायास ही निंदात्मक वचन उनके मुख से निकल पड़ते हैं-

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।

हे निषाद, तुम अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सको, क्योंकि तुमने क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला है ।

बोला- मास्टर, अब वह ज़माना नहीं जब ‘एको रसः करुण एव’ माना जाता था। अब तो मोदी जी ने कूनो नॅशनल पार्क में नामीबिया से लाये गए चीते छोड़ने के उपलक्ष्य पर साफ़ कह दिया है- आज हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। पहले हम कबूतर छोड़ते थे, आज चीता छोड़ रहे हैं।

यदि तुझे करुण रास की प्रेरणा चाहिए तो बिलकिस बानो पर हुए अत्याचार या अभी-अभी उत्तराखंड में एक एक मंत्री-पुत्र द्वारा एक उन्नीस साल की किशोरी की हत्या की कल्पना कर ले। आँखों से अनुष्टुप क्या, आग न टपकने लगे तो कहना। वैसे संस्कारी और राष्ट्रभक्तों पर संदेह कर पाना बहुत साहस का काम है। जेल या जुर्माना कुछ भी हो सकता है।

हमने कहा- याद रख तोताराम दुनिया घृणा और मार-काट से नहीं, प्रेम और करुणा से चलती है। यही सच है कि यदि मानवीय करुणा नहीं होती तो यह सृष्टि बची नहीं होती। राजनीति के निहितार्थ और व्यंजना तो उसके घाघ लोग जानें लेकिन हमें तो मोदी जी के इस वक्तव्य से लगता है कि चीतों के बहाने से शांति के कबूतर उड़ाने वाले नेहरू जी पर व्यंग्य कर रहे हैं। पता नहीं वे क्यों भूल जाते हैं कि आज भी दुनिया को बम नहीं, ब्रेड चाहिए। दुनिया में भारत के बुद्ध, अशोक और गाँधी के देश के रूप में जाना जाता है। बाहर मोदी जी संयुक्त राष्ट्र संघ में ‘भारत ने विश्व को युद्ध नहीं, बुद्ध दिए हैं’ कहकर युद्धोन्मादी पुतिन से यही कहकर प्रशंसा बटोरते हैं- यह युद्ध का समय नहीं है.

ऐसे में इस कबूतर-चीता का क्या मतलब है ?

बोला- यह ‘चीता-छोड़ अभियान’ मोदी जी के १०० लाख करोड़ के ‘गति-शक्ति प्रोजेक्ट का ‘मंगलाचरण’ है. इसका उद्देश्य है देश में एक जगह से सामान जल्दी से जल्दी दूसरी जगह पहुंचाना। जैसे अहमदाबाद में चाय बनाकर फटाफट बुलेट ट्रेन से मुम्बई पहुँचाना। पंजाब की मक्का फटाफट मदुराई पहुँचाना।

हमने कहा- इस बात का क्या तुक है. प्रकृति ने हर स्थान के मौसम और परिस्थितियों के अनुसार सब कुछ बनाया है। वही उस स्थान के लिए उपयुक्त होता है। तमिलनाडु या बंगाल वाला बाजरा या मक्का खाकर बीमार हो सकता है और पंजाब हरियाणा राजस्थान वाले का चावल से पेट नहीं भर सकता। इस बिना बात के इधर-उधर से क्या फायदा ? बिना बात शक्ति और समय का अपव्यय है. प्रदूषण फैलेगा सो अलग.

बोला- इससे किसानों को फायदा होगा।

हमने कहा- किसानों को कोई फायदा नहीं होगा। फायदा होगा व्यापारियों को जो इंदौर में किसानों से एक रुपये किलो में लहसुन खरीदकर दिल्ली में ५० रुपए किलो बेचते हैं. कुछ व्यापारी तो गुस्साए किसानों द्वारा मंडी में ले जाकर फेंके गए लहसुन का निर्यात कर रहे हैं। और जिस चीते को तुम लोग गति-शक्ति का प्रतीक कहते हो वह चीता १०० किलोमीटर की स्पीड से एक बार में अधिक से अधिक ३०० मीटर ही दौड़ सकता है। इस तरह की रिले रेस से वह नासिक का केला लेकर बनारस कब पहुंचेगा इसका हिसाब लगाओगे तो इस ‘गति-शक्ति’ का गणित समझ में आ जाएगा।

बोला- लेकिन चीतों में कुछ तो बात होगी जो मोदी जी ने गिरती अर्थव्यवस्था के समय में भी सैंकड़ों करोड़ का यह चीता प्रोजेक्ट शुरू किया है ? इसका कारण भी तो मोदी जी ने खुद ही बता दिया है। चीता-विमोचन के समय उन्होंने कहा तो था- हमने अतीत की गलतियों को सुधारा है. मतलब नेहरू जी ने अपने समय में चीतों को मरवा दिया था. १९५२ में भारत के ‘चीता-विहीन’ होने की विधिवत घोषणा हो गई थी। तब मोदी जी की उम्र दो वर्ष थी। उन्होंने तभी यह तय कर लिया था कि मैं फिर से उन चीतों को वापिस भारत लाऊँगा जो नेहरू जी ‘चीता मारो’ अभियान से किसी तरह बचकर गुजरात के किसी तट से किसी जहाज में बैठकर गुजराती व्यापारियों के साथ नामीबिया चले गए थे। गुजरात के व्यापारी शताब्दियों से अफ्रीका जाते रहे हैं।

हमने कहा- लेकिन पता चला है कि ये चीते भारत मूल के नहीं है। ये तो अफ्रीका मूल के ही हैं। ऐसे में तो हमें अपने महाकाव्य का नाम ‘चीतायन’ की बजाय ‘चीतागमन’ करना पड़ेगा।

रामायण दो शब्दों की संधि से बना है- राम और अयन । अयन का अर्थ यात्रा होता है अत: रामायण का शाब्दिक अर्थ है राम की यात्रा। रामायण में राम की दो यात्राएं हैं। पहली राम लक्ष्मण की किशोरावस्था में जब वे विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए गए। उनके इस ‘अयन’ में यज्ञ-रक्षा, अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान, ताड़का-वध, अहिल्या उद्धार, धनुष भांग, परशुराम विमर्श, सीता से विवाह के बाद अयोध्या आगमन।

दूसरा ‘अयन’ अर्थात यात्रा में राम वन गमन, सीताहरण, बालि वध, लंका दहन, समुद्र तरण, रावण वध, अयोध्या आगमन और राज-तिलक। यह है दूसरा अयन. लेकिन तोताराम, इन चीतों का वनवास तो राम और पांडवों के वनवास के भी कोई पांच गुना हो गया।

बोला- नाम बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है। ये चीते भारत मूल के थे और हिन्दू थे, तभी तो किस तरह मोदी जी का आभार व्यक्त करते हुए पिंजरों से निकले थे। यदि ये चीते भारत मूल के हिन्दू नहीं होते सी. ए. ए. के नियमान्तर्गत इन्हें शरण दी ही नहीं जा सकती थी।

हमने कहा- लेकिन क्या चीते इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि नौकरी, शिक्षा और महंगाई के कठिन समय में सब्सीडी देकर जनता की समस्याएं कुछ काम करने की बजाय ये चीते लाये गए हैं ?

बोला- पहले कुछ राजा लोग शिकार करने के लिए चीतों की मदद लिया करते थे।जैसे आजकल शासक अपने भक्तों से विरोधियों को बात बिना बात ट्रोल करवाकर जेल में डाल देते हैं। और फिर किसी के साथ चीता देखकर बिना कुछ कहे ही उसकी वीरता का रोब पड़ जाता है।

हमने कहा- यदि चीते ही रोब, वीरता और महानता के प्रमाण हैं तो फिर अकबर को ठीक ही महान कहा जाता है।कहते हैं उसके पास १००० चीते थे। महाराणा प्रताप के पास चीतों का उल्लेख नहीं मिलता शायद इसीलिए इतिहास में उसे महान नहीं कहा गया।

बोला- लेकिन अकबर के चीते उसके व्यक्तिगत शौक के लिए जनता पर डाला गया आर्थिक बोझ थे। वे ईरान से लाये गए मुसलमान चीते थे और उनके पालक भी मुसलमान ही थे। जबकि इन चीतों से मध्यप्रदेश के उस इलाके के सभी वर्गों के लोगों को रोजगार मिलेगा।

हमने कहा- और अगर ऐसे में किसी ‘आशा’ (मोदी जी की प्रिय चीती ) ने देखभाल के लिए नियुक्त किसी ‘चीतावीर’ को लपक लिया तो ‘अग्निवीरों’ की तरह इन ‘चीतावीरों’ को कोई पेंशन या मुआवजा कुछ नहीं मिलने वाला।

बोला- सोच ले, मैंने तो इस महंगाई की आपदा में तुझे एक अवसर बताया था। नहीं लिखना तो साफ़ बता। मेरे दिमाग में एक ‘चीता-चालीसा’ घूम रहा है।



 




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Sep 29, 2022

चीतायन महाकाव्य


चीतायन महाकाव्य 


रात ढंग से नींद नहीं आई। सिर में थोड़ा दर्द भी था. उठ तो समय पर ही गए लेकिन कुछ करने को जी नहीं कर रहा था. समय से थोड़ा पहले ही बरामदे में आ बैठे। आँखें बंद किये सिर को दबा रहे थे. आराम मिल रहा था. पता ही नहीं चला कब तोताराम आकर हमारे बगल में बैठ गया. जब बोला तो पता चला. 

बोला- तू तो ऐसे बैठा है जैसे कोई योगी ईश्वर से साक्षात्कार करने के लिए ध्यानस्थ हो. यदि इलहाम हो गया हो, तत्त्व ज्ञान हो गया हो तो इस तन्द्रा से बाहर निकल और अपने अनुभव से इस नश्वर जगत को लाभान्वित कर. 

 हमने कहा- कैसा ज्ञान और कैसा इलहाम।रात का सारा चौथा पहर एक अजीब तनाव में गुजरा। कुछ समझ में नहीं आता।  

बोला- समझ के चक्कर में मत पड़।  समझ के चक्कर में पड़े रहने वाले परेशान रहते हैं। सभी बड़े-बड़े काम बिना योजना के, नासमझी और धुप्पल में ही हुए हैं। हनुमान जी ने बचपन में उगते हुए सूरज को क्या कोई योजना बनाकर मुंह में रखा था. लेकिन आज तक भक्त गाते है- बाल समय रवि लील लियो तब...... . महान लोग 'क्या कर रहे हैं' सोचने से पहले कर डालते हैं।  बाद में दूसरे दुखी लोग ही आकर उसे बताते हैं- भले आदमी, तूने यह क्या कर डाला। 

हमने कहा- हमने किया तो कुछ नहीं, बस ऐसे ही रात वाले ऊलजलूल सपने के बारे में सोच रहे थे. 

बोला- मैंने तो समझा कहीं तू मोदी जी की मदद करने के लिए चीतों के नाम सोच रहा था.

हमने कहा- मोदी जी नाम रखने के मामले में योगी जी के कोई काम थोड़े ही हैं. जब चाहें, जिसका जो नाम रख दें, जिसका चाहें नाम बदल दें.  क्या किसी को तनिक सा भी आभास  हुआ कि 'पटेल स्टेडियम' या  'राजीव गाँधी खेल रत्न' का नाम बदलने वाला है ? 

बोला- लेकिन मोदी जी सब कामों में सबका साथ लेते हैं. जैसे पिछली बार गणतंत्र दिवस की झांकियों को पुरस्कृत करने से पहले भी जनता से  ई वोटिंग करवाई थी. चाहते तो अभी नामीबिया से लाये गए सभी आठों चीते-चीतियों के नाम खुद ही रख देते लेकिन नहीं वे सभी राष्ट्रीय महत्त्व के कामों में जनता की पूरी भागीदरी चाहते हैं।  सबका साथ : सबका विकास।  इसीलिए एक प्रतियोगिता कर दी- चीते-चीतियों के नाम सुझाओ और इनाम पाओ. 

हमने कहा- मोदी जी ने एक चीती का नाम 'आशा' रखकर नामों के प्रकार का संकेत तो दे दिया।  अब सरलता से चीतियों के नाम 'आशा' की तर्ज़ पर प्रज्ञा, प्रेरणा, चेतना रखे जा सकते हैं. या फिर स्मृति, समृद्धि, प्रगति, उन्नति आदि.

बोला- और चीतों के नाम- विकास, विश्वास, प्रयास, उल्लास। अनुपम, अद्वितीय, अलौकिक, अनंत ।  वैसे तेरे सपने की बात तो रह ही गई।  बता, रात के अंतिम प्रहार में तुझे ऐसा क्या सपना आया था जिसने तुझे फिर सुबह तक सोने नहीं दिया। 

हमने कहा- था तो सपना चीतों के बारे में ही लेकिन मोदी जी की तरह पिछले ७५ साल से कांग्रेस के कारण नामीबिया के वनों में वनवास काट रहे चीतों को पुनः भारत लौटा लाने जितना बड़ा और चौंकाऊ सपना नहीं था. 

बोला- मोदी जी के सपने के बारे में तो बाद में बात करेंगे, पहले तू अपने सपने के बारे में बता.

हमने कहा- सपने का क्या। छोड़।  सपने तो आल-जंजाल होते हैं।  बुढ़ापे में ऐसे ही आते रहते हैं।  ऐसे ही था, बस। 

बोला- मास्टर, बता दे।  मन हल्का हो जाएगा। दुःख और तनाव का यही मनोविज्ञान है कि बता दो तो टेंशन ख़त्म हो जाता है। तभी तो गुरुदेव टैगोर कहते थे- यदि मुक्त होना है तो खुद को अभिव्यक्त कर दो। मोदी जी को कितने काम रहते हैं लेकिन उनको क्या कभी तनावग्रस्त देखा ? और सिरदर्द तो होने का सवाल ही नहीं। 

इसका कारण है कि वे नियमित रूप से हर महिने अपने 'मन की बात' करते रहते हैं।  यदि अधिक सिर दर्द होने लगता है तो बीच में भी एक बूस्टर डोज़ दे देते हैं। अपना सिर दर्द शेयर कर लेते हैं।  वैसे ही जैसे एक बार एक किरायेदार रात को दो बजे अपने मकान मालिक के पास गया और बोला- मैं इस महिने का किराया नहीं दे पाऊँगा। 

मकान मालिक ने कहा- यह बात तुम दिन में भी कह सकते थे।  

किरायेदार ने उत्तर दिया- मैंने सोचा- मैं अकेला ही टेंशन में क्यों रहूं।  

सो तू भी अपना सपना कह ही डाल।  

हमने कहा- कुछ ख़ास नहीं है फिर भी सुन।  रात को तीन साढ़े तीन बजे की बात रही होगी। हमने देखा- कई जंगली पशु दौड़ते हुए हमारे पास आए। ज़्यादा तो नहीं देख पाए लेकिन उनके शरीर पर चकत्ते, धब्बे, धारियां जैसा कुछ था। हम डर गए और भागने लगे। वे भी हमारे पीछे दौड़े। हम भी जान बचाने के लिए जी जान से वैसे ही दौड़े जैसे कूनो के जंगल में चीतों के भोजन के लिए राजस्थान से ले जाकर छोड़े गए चीतल दौड़े रहे होंगे। जब तक वे हिंस्र पशु हमें पकड़ पाते, हमारी आँखें खुल गईं। 

क्या बताएं तोतराम, था तो स्वप्न लेकिन डर वास्तविक जैसा ही लगा।  हम एकदम पसीने में तर-बतर। लगा जैसे सारे शरीर की जितनी भी थोड़ी बहुत जान थी, सब निचुड़ गई। उसी के मारे अब तक सिर दर्द हो रहा है।   

बोला- इसीलिए महान लोग सोते नहीं हैं।  बस, कोई न कोई खुराफात करते रहते हैं सोने वालो की नींद खराब करने के लिए। लेकिन तेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के लिए न सो पाना संभव नहीं।ऐसा महान सेवक तो युगों-युगों में कोई ही पैदा होता है जो बिना सोये जनता की सेवा करता रह सके। 

हमने कहा- तोताराम,  इस दुःस्वप्न का क्या अर्थ हो सकता है ? क्या अखबारों में रोज  'मोदी जी का केन्द्रीय कर्मचारियों को दिवाली का तोहफा' के नाम से बहुप्रचारित समाचार के सच होने से पहले ही हमें मृत्यु रूपी ये जंगली पशु फाड़ खाएंगे ? क्या किसी स्वप्न विचारक वैज्ञानिक से पूछा जाए ? 

बोला- आजकल हिन्दुत्त्व के चक्कर में बहुत से ज्योतिषी, तांत्रिक और लम्पट सक्रिय हो रहे हैं।  एक विश्वविद्यालय में तो ऐसे बदमाशों ने डॉक्टर से इलाज से पहले मरीजों की जन्मपत्री देखने का नाटक शुरू कर दिया है। लेकिन ये सब फालतू बातें हैं।  मुझे तो मोदी जी की तरह तेरी इस आपदा में एक अवसर दिखाई दे रहा है। 

जिन्हें तू कोई चित्तीदार, धारीदार या धब्बेदार प्राणी बता रहा है वे चीते ही थे।  यह बात और है कि टी वी और मीडया पर मोदी जी को खुश करने के लिए चीतामय हुए जा रहे भक्तों, एंकरों और मंत्रियों को उसी तरह चीता, शेर, तेंदुआ, बघेरा, बाघ और जगुआर में फर्क नहीं मालूम जैसे कि कृषिमंत्री को जौ और गेहूँ, गेंदे और गाजर घास में फर्क नहीं मालूम। 

लगता है,  ये चीते खुद को नेहरू जी द्वारा नामीबिया भगा दिए जाने के बाद की अपनी करुण-कथा तुझे सुनाना चाहते हों। और चाहते हों कि तू अपनी कविता में इनकी पीड़ा को वाणी देकर इन्हें अमर कर दे ।  मास्टर, हो सकता है ये चीते-चीतियाँ तेरे सपने में वैसे ही आये हों जैसे किसी भक्त को सपने में किसी खेत में कोई मूर्ति या किसी मस्जिद के नीचे मंदिर बनाये जाने हेतु शिव लिंग दिखाई दे जाता है।  

इसलिए अब तू इन चीतों की पीड़ा पर करुणरस का एक महाकाव्य लिख मार जिसके नायक हों उन्हें ७५ वर्ष के वनवास से नामीबिया से लाने वाले कल्कि अवतार मोदी जी. 

हमने कहा- देखते हैं।  कुछ बना तो।  वैसे आजकल ज़माना तो चुटकलों, जुमलों और मिमिक्री का है, फिर भी।  

बोला- फिर भी-विर भी कुछ नहीं।  लिख ही नहीं, पहले जल्दी से जल्दी 'चीतायन' नाम से इस महाकाव्य का रजिस्ट्रेशन भी करवा ले.  

हो सकता है अब तक प्रसून जोशी ने इस नाम से महाकाव्य का और अक्षय कुमार ने किसी फिल्म का नाम रजिस्टर न करवा लिया हो. 



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Sep 26, 2022

हिंदी करने के दिन आये


हिंदी करने के दिन आये 


चाय आ गई लेकिन तोताराम फव्वारे में शिव लिंग देखने वाले भक्तों की तरह अपनी ही मस्ती में गुनगुनाने में मगन था-  ...दिन आये . ध्यान से सुना तो अंत के चार-पांच शब्द समझ में आये- हिंदी करने के दिन आये.

हमने कहा- आज तो हिंदी के श्राद्ध पक्ष का समापन दिवस है. राष्ट्रभाषा की रुदालियों की दान-दक्षिणा के पेमेंट का अंतिम दिन. मतलब हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा सब समाप्त. अब तो जनवरी में प्रवासियों को हिंदी के तथाकथित प्रचार-प्रसार के लिए 'प्रवासी हिंदी सेवी सम्मान' के जुगाड़ का गाना गा. 

हाँ, यदि इसका अर्थ विश्व में उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान का हिंदी में अनुवाद करने से है तो बड़ी ख़ुशी की बात है. आज तक हिंदी के नाम से बजट बना और निबटाया गया है. कोई ठोस काम नहीं हुआ. ज्ञान दुनिया की सभी भाषाओं में उपलब्ध है लेकिन किसी के लिये भी सभी भाषाएँ जानना संभव नहीं है. इसीलिए लोग ज्ञान प्राप्ति के लिए दुनिया में भटके और अपनी भाषा में उस ज्ञान को अनूदित करके लाये. जापान में दुनिया की किसी भी भाषा में प्रकाशित ज्ञान-विज्ञान के शोध पत्र का जापानी अनुवाद महिने-पंद्रह दिन में उपलब्ध हो जाता है. और हम हैं कि 'इण्डिया' और 'हिंदिया' ही करते रह जाते हैं. हिंदी ही क्यों हमारा तो मानना है कि देश की हर भाषा में दुनिया भर का ज्ञान उपलब्ध करवा दिया जाए तो अंग्रेजी का साम्राज्य अपने आप ही समाप्त हो जाएगा. फिर अपनी असफलता को टांगने के लिए किसी मैकाले की खूँटी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. 

तोताराम ने हमारे पैरों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा- पता नहीं, मैं क्यों चुपचाप चाय पीकर चला नहीं जाता. कहते हैं जब गीदड़ की मौत आती है तो वह गाँव की तरफ भागता है. उसी तरह जब मेरा दिमाग खराब होता है तो मैं तुझसे कोई ज्ञान की बात कहता हूँ. मैं भूल जाता हूँ कि तेरा ब्रेक खराब है. एक बार बोलना शुरू करता है तो २०२२ से पीछे खिसकता-खिसकता गाँधी-नेहरू के काल में पहुँच कर उन्हें गरियाने से पहले रुकता ही नहीं.  

हमने कहा- 'हिंदी करने के दिन आये' गीत के शब्द तेरे हो सकते हैं लेकिन वास्तव में यह गीत 'चौदहवीं का चाँद' का है जिसे शकील ने लिखा, रवि ने धुन बनाई और गीता दत्त ने गाया है, बोल हैं-

बालम से मिलन होगा, शरमाने के दिन आये

मारेंगे नज़र सैंयाँ मर जाने के दिन आये 

तोताराम ने कहा- अब अगर तू चुप नहीं हुआ तो मैं चाय पिए बिना ही चला जाऊँगा. 

हमें लगा, यह कोई गुलाम नबी आज़ाद और अमरिंदर सिंह की तरह भाजपा की तरफ खिसकने जैसा सामान्य और पर्याप्त पूर्वानुमानित मसला नहीं है. हमारे लिए तोताराम पार्टी के एक 'खिसकूँ-खिसकूँ' सदस्य के जाने से अधिक बड़ा मामला है. इसलिए हमने उससे कहा- अब जब तक तेरी बात पूरी नहीं हो जायेगी हम कुछ नहीं  बोलेंगे. 

आश्वासन पाकर तोताराम ने कहा- 'हिंदी करने के दिन आये'  से मेरा मतलब इस हिंदी दिवस, सप्ताह, पखवाड़े और माह में दो विशिष्ट लोगों ने गणित की हिंदी कर दी. राहुल गाँधी ने अध्यापक दिवस पांच सितम्बर २०२२ को आवश्यक वस्तुओं के भावों की तुलना करते हुए बताया कि आटा पहले २२ रुपए लीटर था और आज ४० रुपए लीटर. 

हमने कहा- लेकिन राहुल ने उसी समय ध्यान आते ही सुधार तो लिया.

बोला- लेकिन जिनकी ऐसी बातें खोजने की ही नौकरी है उन्हें पूरे वाक्य से कोई मतलब नहीं है. उन्हें तो अपने काम के दो शब्द निकालकर वाइरल करवाने हैं. इसके बाद अमित शाह जी ने १२ सितम्बर २०२२ को नॉएडा में वर्ल्ड डेयरी सम्मेलन में बताया कि १९६९-७० में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता ४० ग्राम थी जो अब मोदी जी के राज में बढ़कर १५५ ग्राम हो गई. 

दूध लीटर में मापा जाता है और आटा किलोग्राम में तौला जाता है.  

हमने कहा- कोई बात नहीं. राहुल ने तौलने  के गणित की हिंदी की तो शाह साहब को भी उसके ज़वाब में दूध के माप के गणित की हिंदी करने कुछ अधिकार तो है ही. और फिर वे सबसे बड़ी पार्टी के बड़े नेता हैं, और नंबर टू भी. इसलिए वे ग्राम में दूध मापेंगे और अपनी भूल सुधार कर कायरता का परिचय भी नहीं देंगे. 

बोला- तो क्या हम इसी तरह ज्ञान विज्ञान का मज़ाक उड़ाते रहेंगे ?

हमने कहा- ज्ञान-विज्ञान नेताओं का विषय नहीं है. क्या कोई मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री अपने बिजली-पानी और फोन के मीटर का ध्यान रखता है ? उसके लिए तो सब फ्री होता है. यह गणित और हिसाब-किताब तो तेरे हमारे लिए है कि कितनी महंगाई बढ़ने पर कितना उपभोग कम करना है. 

वैसे हमें तो शाह साहब की बात में भी कोई गलती नज़र नहीं आती. भई, बेचने वाले की मर्ज़ी है चाहे जैसे बेचे. जिसमें फायदा हो उसी में बेचे. जैसे दूध हल्का होता है इसलिए लीटर में बेचते हैं लेकिन कोई भी दुकानदार शहद लीटर में नहीं बेचता क्योंकि एक लीटर के पात्र में कोई तीन किलो शहद आ जाएगा. हाँ, वह पांच ग्राम चिप्स को पांच लीटर के लिफाफे में हवा भरकर पैक करके आकार के हिसाब से बेच सकता है.  

क्या तू 'अच्छे दिन' को बेचने के माप तौल का गणित बता सकता है ? तब तो कुछ नहीं पूछा और खल्लास कर आया सारे घर के वोट.  

बोला- ठीक है, अमित जी के ग्राम में दूध तौलने को तो सही बता दिया लेकिन राहुल के लीटर में आटा मापने का क्या तुक है ? 

हमने कहा- अब कांग्रेस का सीटों की कंगाली का आटा इतना गीला हो चुका है कि तौलने में नहीं आ रहा है, सिंधिया, आज़ाद और अमरिंदर के रूप में बह-बहकर भाजपा के कीचड़ में मिल रहा है तो ऐसे में आटा लीटर में ही मापना पड़ेगा. 

एक चुटकुले में हलवाई को जल्दी ठंडा करने के लिए दूध को एक बरतन से ऊंचाई से दूसरे बरतन में उंडेलते देखकर एक गणितज्ञ ग्राहक ने आधा मीटर दूध का आर्डर नहीं दे दिया था ? 

 




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Sep 23, 2022

५६ इंच मोदी थाली


५६ इंच मोदी थाली 


आज इतवार है. हमारे लिए तो सभी 'वार' बराबर हैं. कुछ कर नहीं सकते. हर 'वार' को निहत्थे और नंगी पीठ सहना है फिर चाहे वह बाज़ार का वार हो या सरकार का. दोनों ही बिना पूर्वसूचना के इकतरफा निर्णय ले लेते हैं. ये तो मोदी जी हैं जो चाहे नोटबंदी हो या घरबंदी, कम से कम चार घंटे का नोटिस तो देते हैं. 

सोचा, आज घर में किसी को ड्यूटी जाने की जल्दी नहीं है सो दूध देर से लाया जा सकता है. और बरामदे में बैठकर तोताराम का इंतज़ार करने लगे. यह हम जानते हैं कि तोताराम की बात में नेताओं के जुमलों और बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणाओं की तरह कोई काम की चीज नहीं निकलने वाली फिर भी इनके चक्कर में छुटभय्ये नेता कुछ धंधा करने और फिर उसके माध्यम से नेतागीरी और दलाली करने ई मित्र के खोखे पर पहुँच जाते हैं. 

टीवी में किसी धारावाहिक को ऐसे मोड़ पर लाकर छोड़ा जाता है कि अगली कड़ी तक रोमांच बना रहे जैसे एक पात्र ने किसी पर बन्दूक तानी और 'कट' . अब आप सोचते रहिये कि गोली चली या नहीं, निशाना सही लगा या नहीं, पुलिस के बारे में तो खैर कुछ सोचने की बात ही नहीं क्योंकि वह तो विलंब से ही पहुंचेगी.हाँ, पीड़ितों के जाति-धर्म से दर्शक यह तो तय कर ही लेता है कि ऍफ़ आई आर लिखी जायेगी या नहीं. और लिखी जायेगी तो किस प्रकार. 

कल तोताराम ने मोदी जी के जन्मदिन पर दिल्ली का कार्यक्रम केंसिल कर दिया लेकिन २६ सितम्बर तक ज़रूर चलने का संकेत भी दे दिया तो सस्पेंस था कि क्या मोदी जी का जन्म दिन एक सप्ताह तक मनेगा ? क्या जन्म दिन का कोई विकल्प हो सकता है ? वैसे कुछ भी हो सकता है. बड़े आदमी और फिर मोदी जी जितने बड़े आदमी, कंगना के अनुसार विष्णु के अवतार. वैसे विष्णु को तो अजन्मा भी कहा गया है. फिर कैसा जन्म दिन ?

ज्यादा कन्फ्यूज होने से पहले ही तोताराम प्रकट हो गया. 

हमने पूछा- अब कब, क्यों और कहाँ चलना है. और जन्मदिन से हमारे चलने का क्या संबंध होगा ? क्या वहाँ मोदी जी के दर्शन संभव होंगे ?

बोला- दिल्ली में १७ से २६ सितम्बर २०२२ तक कनाट प्लेस स्थित 'आर्डार २.१' नाम के एक रेस्टोरेंट ने एक स्कीम शुरू की है जिसके अंतर्गत उनकी '५६ इंच मोदी थाली' को ४० मिनट में ख़त्म कर देने वाले को ८ लाख रूपए का ईनाम दिया जायेगा. और केदारनाथ की फ्री यात्रा भी करवाई जायेगी. 

हमने कहा- इसका क्या मतलब है ? क्या इस थाली का घेरा ५६ इंच है ? क्या मोदी जी दिन में रोज दो-तीन बार इतनी बड़ी थाली में भोजन करते हैं ? क्या इस थाली को खाने से किसी की छाती ५६ इंच की हो जायेगी ? क्या इस स्किल डेवलपमेंट या आत्मनिर्भर भारत या वोकल फॉर लोकल में मोदी जी की कोई पार्टनरशिप है ? 

बोला- तेरे जैसे आदमी न कुछ कर सकते हैं और न ही किसी को कोई निर्णय लेने दे सकते हैं. यदि मोदी जी तुझ जैसे किसी लीचड़ विचारक से पूछते तो आज तक देश की अर्थव्यवस्था को उछाल प्रदान करने वाले नोटबंदी, जीएसटी और लोक डाउन जैसा कोई क्रांतिकारी कदम नहीं उठा सकते थे. अरे, एक कोई सच्चा देशभक्त मोदी जी के जन्मदिन पर उत्साहित होकर एक ऑफर दे रहा है. और तू है कि बिना बात की मीन-मेख निकाल रहा है. 

चलते हैं दिल्ली. आने जाने का किराया ही तो लगेगा. यदि मोदी जी उपलब्ध हुए तो व्यक्तिगत रूप से बधाई दे आयेंगे, 'कर्तव्य पथ' से कर्तव्य की प्रेरणा ले आयेंगे. और यह भी देख आयेंगे कि मोदी जी द्वारा गुलामी का अंतिम चिह्न मिटा देने के सच्ची और सम्पूर्ण स्वतंत्रता की अनुभूति कैसी होती है ? 

हमने कहा- लेकिन बार के भोजन के लिए दो-तीन हजार का दिल्ली आने जाने का खर्च क्या उचित रहेगा ?

बोला- यह भी तो सोच अगर हमने ४० मिनट में थाली चट कर दी तो ८-८ लाख के हिसाब से १६ लाख रुपए भी तो जीत लेंगे. फिर १५-१५ लाख खाते में आने के चक्कर में भाजपा को वोट देने वाले अनन्त काल तक सर धुनते रहें लेकिन अपने तो न सही १५-१५ लाख ८-८ लाख तो वसूल हो ही जायेंगे. 

हमने कहा- तोताराम, जिस तरह मोदी जी के अभी कार्यक्रम किंग साइज़ के होते हैं वैसे ही यह ५६ इंच थाली भी कोई सामान्य थाली तो नहीं होगी. हम कैसे खा सकेंगे  ?

बोला- चलने से पहले दो दिन खाना नहीं खायेंगे. कहीं से मिल गई तो भांग का गोला लगा लेंगे. सोच अगर थाली चट कर दी तो ८-८- लाख खरे. खिलाड़ी भी तो इनाम और नौकरी के चक्कर में कितना पसीना बहते और रिस्क लेते हैं. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा. दो चार दस्त लग जायेंगे, उलटी हो जायेगी. दो तीन दिन उपवास कर लेंगे. डबल हाजमोला खा लेंगे. 

हमने कहा- तो फिर कर लेते हैं हिम्मत. खेल जाते हैं यह लाटरी भी. लेकिन चलने से पहले एक बार उस समाचार को फिर पढ़ लेते हैं. आजकल लोग ऐसे लालच के चक्कर में बड़े-बड़े लोगों को फंसा लेते हैं. तुझे पता नहीं कर्नाटक में सौ करोड़ में मंत्री बनवाने के चक्कर में कई लोग ठगे गए थे. 

बोला- मोदी जी के नाम पर है तो इसमें कोई धोखा नहीं हो सकता.  मोदी जी के नाम से है तो इस थाली में उनकी पसंद का ३०-४० हजार रुपए किलो वाला कम से कम सौ ग्राम मशरूम तो होगा ही. उसीमें अपना दिल्ली आने जाने का खर्च वसूल हो जाएगा. एक बार का खाया मशरूम पांच साल तो चलेगा. 

हमने कहा- फिर भी समाचार....

तोताराम ने अपने स्मार्ट फोन में संबंधित समाचार निकाला. लिखा था- एक थाली की कीमत होगी २९००/-रु.

हमने कहा- तोताराम, हम यह छह हजार की लाटरी खेलने के पक्ष में कतई नहीं हैं. 

इससे बेहतर तो हम इस राशि से गली के कुत्तों को दो-चार महिने रोटियाँ खिलाना समझते हैं. नरक यहाँ भोग रहे हैं, स्वर्ग में हमारा विश्वास नहीं. लेकिन इतना तय है कि कुत्ते नेताओं की तरह अहसान फरामोश नहीं होते. कभी रात-बिरात निकलना हुआ तो कम से कम काटेंगे तो नहीं.  

बोला- तो फिर दोनों परिवारों का एक वक्त का भोजन एक बड़ी परात में सजाकर उसके पास बैठे हुए फोटो खिंचवाकर फेसबुक पर डाल देते हैं या मोदी जी को ट्वीट कर देते हैं. 

और शीर्षक लगा देते हैं- दिल्ली में '५६ इंच मोदी थाली' का आनंद लेते बरामदा संसद के दो वरिष्ठ सदस्य. 

हमने कहा- क्या इसके साथ 'सेन्ट्रल विष्ठा' शब्द जोड़ा जा सकता है ?

बोला- नहीं, नखदंत विहीन उपेक्षित लोग 'बरामदा संसद' में ही बैठते हैं. लेकिन तू 'सेन्ट्रल विष्टा' की जगह बार-बार 'सेन्ट्रल विष्ठा' क्यों बोलता है. यह लोकतंत्र और संसद अपमान है. 

हमने कहा- लोकतंत्र और संसद का अपमान तब होता है जब जाति-धर्म और विचारधारा के आधार पर लोगों से भेदभाव किया जाता है, असहमत लोगों को इस-उस बहाने से जेल में डाला जाता है, उनकी जबानें बंद की जाती हैं. और जहां तक 'विष्ठा' की बात है तो पता नहीं क्यों हमें इस शब्द में 'निष्ठा' और 'प्रतिष्ठा' जैसा गर्व और रुतबा अनुभव होता है. 

बोला- कोई बात नहीं, मोदी जी वाला ३०-४० हजार रूपए किलो का मशरूम चखने का संयोग तो नहीं बना लेकिन कोई बात नहीं उसका सस्ता विकल्प तो है, मोरिंगा के परांठे. तेरे यहाँ बाड़े में लगा तो हुआ है. आज उसी के परांठे बनवाता हूँ. 

हमने कहा- ले जा जितना चाहे. हम तो उसे कोई दस बार काट चुके हैं लेकिन फिर फूट आता है. लेकिन आज तक एक भी फली नहीं लगी. पता नहीं कौन सी नस्ल है. 

बोला- किसी भी जीव की ऐसी नस्ल ही महत्त्वपूर्ण होती है जिसकी संतति नहीं चलती. सब कुछ अपने में ही समेटे हुए. अनुपम, अद्वितीय, अलौकिक. 





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