Oct 29, 2022

वही दाम : वही स्वाद, बस .......

वही दाम : वही स्वाद,  बस .......  


आज जैसे ही तोताराम आया, हमने उसे चाय का गिलास थमाते हुए कहा- पिओ, वही दाम, वही स्वाद। 

बोला- लेकिन इस स्वाद का क्या चाटूँ। ज़रा सा स्वाद अनुभव होना शुरू हुआ नहीं कि चाय ख़त्म।  इससे तो अच्छा है चाय पी ही नहीं जाए।  तनिक से ईंधन से अग्नि शांत नहीं होती, भड़कती है। मैं अनुभव कर रहा हूँ कि दिन पर दिन गिलास में चाय की मात्रा कम होती जा रही है।  

हमने कहा- लेकिन वही स्वाद, वही दाम।  मात्रा का क्या है ? चाय कोई पेट भरने के लिए थोड़े होती है वह तो एक प्रकार का सम्मान, एक प्रकार का कर्मकांड, एक बहाना, एक टाइम पास होता है। खैनी खाने या बीड़ी पीने से कोई ताकत आती है ? बस, तनिक सुस्ताने का एक बहाना होता है। 

बोला- मैं तो सामान्य आदमी हूँ। मेरे लिए तो यही मिठाई है, यही ऊर्जा का स्रोत है।  मात्रा इतनी तो कम मत कर कि ओंठ और गले के बीच ही समाप्त हो जाए। अपने गंतव्य आँतों तक ही न पहुंचे।  

हमने कहा- हर भोजन-पानी का गंतव्य आंतें नहीं गटर होता है।  मोरिंगा के परांठे और ४० हजार रुपए किलो के मशरूम सब अंततः गटर में ही जानें हैं। हमारे पास कौन सरकार की तरह मुफ्त अनाज बांटने नाम पर गैस और पेट्रोल के काम बढ़ाने का बहाना है या कौन रोटी-प्याज तक पर जीएसटी लगाने का अधिकार है। अब यदि तुझे वही मात्रा चाहिए तो फिर चाय बिना दूध और चीनी की बनेगी।  

बोला- बिना दूध और चीनी की चाय तो केवल जुमले फेंकने और आस्था का खेल खेलने वाली सरकार या बिना स्तनों की युवती की तरह होती है। 

हमने कहा- वैसे सुबह-सुबह गरम पानी पीना चाय पीने से अधिक स्वास्थ्यवर्द्धक होता है।  मोदी जी के स्वास्थ्य का रहस्य मोरिंगा के परांठे नहीं, गरम पानी है।  

बोला- तू तो बिस्किट, साबुन वालों की तरह करने लग गया है।  आजकल बिस्किट के पैकेट और साबुन के दाम अधिक नहीं बढ़े हैं बस, उनका वजन काम कर दिया जा रहा है।  

हमने कहा- यह तकनीक कोई नई नहीं है।  हम तो १९७१ से १९७७ तक के अपने गुजरात प्रवास से ही इसे जानते हैं. आज जब तूने पूछा तो बता रहे हैं कि वहाँ हम देवजी भाई भरवाड़ नाम के एक व्यक्ति से दूध लिया करते थे। उसी दौरान बांग्लादेश बना। भारत के उसमें शामिल होने से तथा उसके बाद अकाल पड़ने से महंगाई बढ़ी। यहां तक कि लिफाफों तक पर 'सेस' के नाम से कोई पांच पैसे का अतिरिक्त टिकट लगाया जाता था।  गुजरात सरकार भी हमसे दारूबन्दी के नाम पर १० रुपया महिना वसूलती थी। लेकिन देवजी भाई ने अपने दूध के दाम कभी नहीं बढाए। हाँ,पानी की मात्रा ज़रूर महंगाई के अनुपात में बढ़ती गई।  ईमानदारी की बात यह कि देवजी भाई ने कभी झूठ भी नहीं बोला। साफ़ कहते थे- साहेब, भले ही सरकार कितने भी दाम बढ़ा दे लेकिन देवजी आपका बजट नहीं बिगाड़ेगा। 

बोला- कोई बात नहीं। गरम पानी पिलायेगा तो वह भी भगवान की कृपा मानकर पी लूँगा। दान की बछिया के दांत नहीं देखे जाते। 

हमने कहा-  केजरीवाल ने गुजरात में घोषणा कर दी है कि गाय पालने पर प्रति गाय, प्रति दिन ४० रुपए  दिए जाएंगे। ऐसे में अगर सेटिंग हो तो बछिया के दांत ही क्या, कोई बछिया भी नहीं देखेगा बस, केवल कागज देखे जाएंगे।  

बोला- यह बात अलग है कि फिर २०२७ में 'गौ ग्रांट घोटाले' सामने आएंगे।  




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Oct 28, 2022

नोटों पर हो तोताराम


नोटों पर हो तोताराम 


तोताराम के आने में थोड़ा समय बाक़ी है। चाय बन गई सो पीने बैठ गए। जब तोताराम आएगा तो उसके लिए फिर बनवा देंगे।  जब तक चाय ख़त्म करते, गली के मोड़ से कुछ बच्चों का सम्मिलित स्वर सुनाई दिया- 

क़र्ज़, कमी का काम तमाम 

नोटों    पर   हो     तोताराम 

अभी तो केजरीवाल का नोटों पर गणेश लक्ष्मी वाला हिंदुत्त्ववादी जुमला संबित पात्रा के गले में उलझा हुआ है, सांप छछूंदर की तरह न उगले बन रहा है, न निगले। यह केजरीवाल भी बहुत शैतान है। लोग तो नोटों पर गाँधी की जगह गोडसे या सावरकर का फोटो लगाने की सोच रहे थे और इसने सारे समीकरण गड़बड़ा दिए। ऐसे में नोटों पर मोदी जी तस्वीर की हमारी दलील को कौन सुनेगा ? और अब तोताराम के नाम का असमय का यह विवादी स्वर ? 

 फिर भी तोताराम की महत्वाकांक्षा ने हमें प्रभावित किया। 

दो मिनट में ही जुलूस बरामदे के आगे से गुजरा। पीछे-पीछे तोताराम। बच्चों से बोला- इंडस्ट्रियल एरिया मोड़ तक चक्कर लगा आओ उसके बाद जाते हुए अपनी आइसक्रीम के पैसे लेते जाना। 

हमने पूछा- तोताराम, यह क्या है ? 

बोला- क्या है ? जनता के दिल की आवाज़ है।  

हमने कहा- यह तो रिश्वत देकर निकलवाया गया जुलूस है और राहुल गाँधी की तरह बच्चों का राजनीतिक दुरुपयोग है।  इससे तुझे मिलना-मिलाना कुछ नहीं। स्मृति ईरानी को खबर लग गई तो उनका विभाग तुझ पर एफआईआर ज़रूर दर्ज़ कर लेगा। 

बोला- क्यों केजरीवाल गणेश लक्ष्मी की सिफारिश कर सकता है,  कोई शिवाजी तो कोई आम्बेडकर की तस्वीर नोटों पर चाहता है। कोई बुद्ध, महावीर, नानक और जीसस और अल्ला की तस्वीर चाहता है तो तोताराम में क्या कांटे उगे हुए हैं। मोदी जी जब जनता की बेहद मांग पर 'राजीव गाँधी खेलरत्न' का नाम 'ध्यानचंद खेलरत्न' कर सकते हैं तो देश के ये नौनिहाल नोटों पर तोताराम के फोटो की मांग क्यों नहीं कर सकते ? हालांकि मोदी जी ने मांग करने वाले एक भी आदमी का नाम नहीं बताया। 

 सभी नेता लोग जनता के पैसे से अपना विज्ञापन करते हैं जबकि मैं सारा खर्च अपनी पेंशन में से कर रहा हूँ।   

हमने कहा- लेकिन तेरा देश-दुनिया के लिए ऐसा क्या योगदान है जिसके बल पर तू यह दावा कर रहा है।  

बोला- जहां तक योगदान और औचित्य की बात है तो इन सबके बारे में स्पष्टीकरण सुन ले।  अल्लाह, गॉड, मुहम्मद साहब आदि की कोई फोटो नहीं होती।  ईसा, बुद्ध और महावीर का कभी धन दौलत से कोई संबंध नहीं रहा बल्कि वे तो जो था उसे भी छोड़छाड़कर चले गए। नानक आदि निर्गुण के उपासक है तो किसी फोटो का प्रश्न ही कहाँ उठता है ? और मोदी जी तो फकीर है। कभी भी झोला उठाकर चल देंगे। पहले भी जो थे उन नोटों की भी बंदी कर दी।  इसलिए ऐसे आदमी का नोटों के मामले में भरोसा ठीक नहीं।  

मेरा दावा इसलिए भी बनता है कि मैनें कभी कोई कर्ज़ा नहीं लिया। भले ही कंजूसी कर ली लेकिन कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। इससे बढ़िया ट्रेक रिकार्ड और क्या हो सकता है।  

हमने कहा- लेकिन गणेश और लक्ष्मी जी की बात और है। वे तो विघ्नों को दूर करने वाले और धनधान्य के दाता हैं।  

बोला- लोगों को लक्ष्मी जी की असलियत मालूम नहीं है। तिरुपति के बालाजी मतलब उनके पतिदेव विष्णु पर अभी तक भी कुबेर का कर्ज़ा है। पहले उन्हें अपना क़र्ज़ तो चुका लेने दो  उसके बाद ही उन्हें कष्ट देना। और फिर अपना देश तो धर्मनिरपेक्ष है ऐसे में केवल हिन्दुओं के देवी देवताओं को नोटों पर छापना कहाँ तक उचित है ?  

हमने कहा- लेकिन इंडोनेशिया में तो हिन्दू केवल ४-५% हैं  फिर भी उनके गणेश लक्ष्मी के फोटो नोटों पर छपे हुए हैं। उसीसे उसकी प्रतिव्यक्ति आय और ह्यूमन इंडेक्स हमसे अच्छा है।

बोला- मास्टर, मेरा तो मानना है कि यदि भाजपा सही अर्थों में हिन्दू धर्म में श्रद्धा रखती है तो इस मुद्दे पर भले ही उसकी केंद्र और सभी राज्यों की सरकारें गिर जाएँ लेकिन उसे नोटों पर गणेश-लक्ष्मी के फोटो नहीं छापने चाहियें क्योंकि इसी आधार पर कल को देश के मुसलमान कहने लगे कि जब ४-५% वालों के देवताओं के फोटो इंडोनेशिया के ८५% वालों के नोटों पर छप सकते हैं तो हम १४% वालों के धार्मिक चिह्न ८४% वालों के नोटों पर क्यों नहीं ? 

तब क्या उत्तर होगा ? 

हमने कहा- तोताराम, तुझे तो भाजपा के थिंक टैंक में होना चाहिए। इस संबित पात्रा को तो बेकार ही रख रखा है। कुछ समझ में नहीं आता तो केजरीवाल के यू टर्न पर सवाल उठा रहा है। 

वैसे अब जब तेरा फोटो नोटों पर ही आने वाला है तो ऐसे में क्या यह उचित लगता है कि तू मुफ्त की चाय पिए ?और नहीं तो कम से कम एक चाय का लागत मूल्य चार रुपए पचास पैसे तो दे दिया कर।  

तोताराम ने अपनी जेब में हाथ डाला और एक कागज का टुकड़ा निकालकर बोला- यह ले साढ़े चार रूपए का नोट।  

हमें बड़ा अजीब लगा, साढ़े चार रुपए का नोट !

हमने कहा- यह तो नकली है। अभी तक मोदी जी ने साढ़े चार रुपए का कोई नोट जारी नहीं किया है। यह बात और है कि 'काला धन संग्रह' को कठिन बनाने के अचूक उपायस्वरूप एक हजार रुपए की जगह दो हजार रुपए का नोट ज़रूर चला दिया था। हो सकता है भविष्य में एक लाख करोड़ रुपए का नोट भी चला दें जिससे धन का लेन-देन, परिवहन और गणना सरल हो जाए तथा नोटों की छपाई का खर्च भी कम और काम त्वरित हो सके।  

हमने देखा, तोताराम ने जो साढ़े चार रुपए का नोट दिया उस पर तोताराम का फोटो चिपका था और उसीकी लिखावट में लिखा था- मैं मास्टर को चाय के मूल्य स्वरूप साढ़े चार रुपए अदा करने का वचन देता हूँ।  

पूछा- तू रिजर्व बैंक का गवर्नर कब से हो गया जो गारंटी दे रहा है ? 

बोला- मास्टर, अब वह ज़माना नहीं रहा।  बैंक और उसके अधिकारी सब अविश्वसनीय और अस्तित्त्वहीन हो गए हैं।  पता नहीं कोई बैंक कब फेल हो जाए या कौन, किस बैंक का खजाना खाली करके ब्रिटेन भाग जाए और सरकार खिसियाकर उन्हें खरगौन का खटीमा में खोजती फिरे। और ईडी प्रश्न पूछने वाले का ही दरवाजा खटखटाने लग जाए।  

अब तो सब कुछ आदमी की व्यक्तिगत साख पर चलेगा।  इसलिए अब जनता को न तो नोटों पर किसी दिवंगत महापुरुष पर भरोसा है और न ही नोटों पर गणेश-लक्ष्मी का फोटो छापकर देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने वाले वैज्ञानिक सोच के नेताओं पर। अब तो खुद का ही फोटो, खुद की ही गारंटी और खुद का ही वचन चलेगा।  

वैसे ही जैसे पहले लोग अपनी मूँछ का बाल गिरवी रखकर क़र्ज़ ले आते थे।  

अब तो झूठ और जुमलों का ज़माना है। कुछ करोड़ में बिकने वाले और एक घुड़की में पायजामा गीला कर देने वाले वीर बचे हैं।  

जुबान पर जान देने वाले और 'प्राण जाय पर वचन न जाई' वाले विश्वसनीय लोग कहाँ  ?  




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Oct 24, 2022

अभी बाबा सेवकों कब्ज़े में हैं


                  


अभी बाबा सेवकों कब्ज़े में हैं 


आज दिवाली है।  घर के सभी स्वयंसेवक लस्त-पस्त पड़े हैं।  कई दिनों से 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के तहत सभी लगे हुए थे सफाई कार्यक्रम में अपने आप ही। चूँकि अब यहां भी अमरीका की तरह 'सामान सस्ता और मजदूरी महँगी' वाली विकसित स्थिति आने लगी है तो सदन ने खुद ही बहुमत से  श्रमदान करने का निर्णय लिया । हमने मतदान में भाग नहीं लिया इसलिए इस वास्तविक श्रमदान में भाग लेने की बाध्यता नहीं थी। 

यह कोई 'स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' जैसा  पहले से साफ़ जगह पर 'डिसइन्फैक्टेड झाड़ू फिराते हुए फोटो खिंचवाने का फ़िल्मी सूटिंग वाला काम तो था नहीं, 'भारत जोड़ो पदयात्रा' की तरह वास्तव में थका देने वाला काम था। कल इस सफाई  मेराथन का अंतिम राउंड था जो देर रात तक चला।  सो सभी धावक 'प्रसाद जी' के आंसू वाली स्थिति में थे- 

मादकता से तुम आए
संज्ञा से चले गए थे
हम व्याकुल पड़े बिलखते
थे उतरे हुए नशे से।

 इसलिए हमने भी किसी स्वयंसेवक को कष्ट देने का पाप करना उचित नहीं समझा। 


निर्देशक मंडल के आजीवन अध्यक्ष की तरह बरामदे में अकेले ही बैठे थे। तथाकथित पट्ट शिष्यों को कहाँ फुर्सत दिवाली की राम-राम करने की या 'साल मुबारक' कहने की।  होंगे कहीं दीये जलाने का विश्व रिकार्ड बनाने में व्यस्त। अखबार वाला भी दिवाली के चक्कर में आज जल्दी ही अखबार दे गया। हम अखबार में दिवाली के विज्ञापनों के बीच कोई खबर ढूँढने के असफल प्रयास में खोये हुए थे कि तोताराम के मुखर-मुग्ध स्वर ने मधुमती भूमिका को भंग किया, बोला- अब तो खुश, मिल गया दिवाली का तोहफा ?

हमने कहा- कैसा तोहफा ? दो  महिने से अखबार वाले हल्ला मचाये हुए हैं- मोदी जी ने दिया केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों को दिवाली का तोहफा। अभी तक तो अच्छे दिन की तरह मृगतृष्णा साबित हो रहा है। नेताओं के वादे हैं, जब पूरे हो जाएँ तब विश्वास करना। बल्कि हमारा तो मानना है कि तसल्ली करने के लिए बैंक पासबुक दो-चार लोगों को दिखा लेनी चाहिए। कहा है ना- मियाँ मरा तब जानिये जब चालीसा होय।  

बोला- और बातें सब बाद में पहले तो तू अपनी जुबान संभाल।  किसी ने तेरे इस मुहावरे से 'भावनाएं आहत होने' को लेकर एफआई आर दर्ज़ करवा दी तो तेरी दिवाली का दिवाला निकल जाएगा। आगे कई छुट्टियां हैं, कई दिनों तक जमानत भी नहीं  होगी।  

हमने कहा-  इसकी फ़िक़र मत कर। यह किसी हिन्दू की भावना नहीं है जो किसी मुसलमान के अपने मरीज के लिए दुआ स्वरूप अस्पताल के किसी कमरे में नमाज पढ़ने तक से आहत हो जाए और जिसका पुलिस नोटिस भी ले ले और एफआईआर भी दर्ज कर ले। सच पूछे तो मुसलमानों की तो कोई भावनाएं ही नहीं होतीं। यदि कोई युवा नेता उन्हें गोली मारने या कोई संत उनकी महिलाओं से बलात्कार करने की धमकी दे दे तो भी उनकी भावनाएं आहत नहीं हो सकतीं। तो फिर मियाँ वाले इस मुहावरे से भी कुछ नहीं होगा। लेकिन तू तोहफा कौन सा बता रहा था।  क्या मोदी जी वाले चर्चित लेकिन अभी भी लंबित तोहफे से अलग कुछ है ? 

बोला- और क्या ? कल छोटी दिवाली को विराट ने ऑस्ट्रेलिया में पाकिस्तान को हराया, यह क्या किसी तोहफे से कम है ? 

हमने कहा- ये सब झुनझुने हैं जो दूध न पिला सकने वाली माँ हर रोते हुए बच्चे को थमाती है।  कल अयोध्या में १५ लाख ७६ हजार दीयों का रिकार्ड बनाया लेकिन क्या उससे किसी की दाल में छोंक लगेगा या उन दीयों से यमुना खड़े इनामोत्सुक किसी ब्राह्मण को गरमी मिलेगी ? 

 बोला- आज सोमवार है। जब तक भाभी उठे तब तक 'गहलोत मोटर्स' के सामने वाले शिव-हनुमान मंदिर ही हो  आते हैं।  

हमें बिना किसी अतिरिक्त समय खर्च किये मुफ्त में दो बड़े  देवताओं को आभारी बनाने का सुझाव पसंद आया और हम दोनों भोले बाबा के दर्शनों के लिए चल पड़े।  

जैसे ही मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचे तो देखा,एक अत्यंत शांत और शालीन महिला वहीँ रखी पत्थर की एक बेंच पर बैठी थी। पता नहीं क्यों, हमें उसकी शक्ल पहचानी सी लगी । हमने जब तोताराम को अपना अनुमान बताया तो   बोला- इसमें सोचने की  क्या बात है, पूछ ही लेता हूँ। और उसने पूछा ही लिया-  माते, क्या आप पार्वती जी हैं ? 

वह महिला कुछ अनखाती  सी बोली- तो और कौन इतनी सुबह यहां आकर बैठेगा ? 

हमने कहा- माते, अब थोड़ी ठण्ड होने लग गई है। अच्छा हो, आप अंदर ही बैठें।  

बोलीं- अंदर ही तो बैठे थे लेकिन क्या करें, कोई बड़े नेता आ गए हैं दर्शन करने।  

तोतराम ने कहा- लेकिन माते, ऐसा कौन इतना बड़ा नेता आ गया जो आपको वहाँ नहीं बैठने दे ?

पार्वती जी बोलीं- पता नहीं कौन है ? उसके साथ कई फोटोग्राफर हैं, तरह-तरह से बाबा के साथ नेता के फोटो खींच रहे हैं। हम एक बार आगे से निकल गए तो नेता ने ही हमें बांह पकड़कर एक तरफ कर दिया और बोला- हम अपने और कैमरे के बीच किसी भगवान को भी बर्दाश्त नहीं करते ।  

हमने कहा- तो फिर माते, जब तक नेता की यह फोटो नौटंकी चले तब तक क्यों न हमारे घर पधारें और एक कप चाय पियें  ?

बोलीं- बेटा, थोड़ी देर में यह काम भी निबट ही जाएगा। दिन में दस ड्रेसें बदलने वाले नेताओं को  इस बूढ़े दिगंबर बाबा से क्या मतलब है ? चुनाव हैं तो प्रकारांतर से वोट का गणित बैठा रहे हैं। फिर कहीं और जाकर मंच सजायेंगे।तुम दोनों अपने घर जाओ।  

और हाँ, शाम को मास्क ज़रूर लगा लेना। संस्कृति के नाम पर पटाखे फोड़ने का भोंडा प्रदर्शन अपने चरम पर होगा। वैसे ही इस उम्र वालों के फेफड़े पंचर हुए रहते हैं।  

 





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Oct 23, 2022

रूपचौदस : रूप का नरक


रूपचौदस : रूप  का  नरक 

कल धनतेरस थी। दो महीने से अख़बारों में कर्मचारियों और पेंशनरों को सरकार के तोहफे, दिवाली के उपहार , खाते में आएंगे एक-एक लाख जैसे जुमले उछल रहे  हैं लेकिन आया कुछ नहीं। गया ही गया है। फिर चाहे दूध के दाम हों या सब्जी के। हाँ, ज्योतिषी खरीददारी के लिए अनेक शुभ और श्रेष्ठ मुहूर्त बता रहे हैं। इसलिए उनकी धन तेरस ज़रूर होनी है।  उनके लिए कोई महंगाई नहीं है।  हर सौदे पर २०-२५ प्रतिशत मुनाफा पक्का। 

सो धनतेरस जिन के लिए रही होगी वे जानें, हमारे लिए सामान्य दिन जैसा ही रहा है।  आज जैसे ही उठे पत्नी ने एक ही रट लगा रखी है-  दो हाथ सरसों के तेल के लगा लो, ऐसे ही नहीं चुपड़ना, रगड़ना भी।  

हमने कहा- रगड़ाई के लिए हमें कुछ नहीं करना।  वह तो सेवक लोग जब, जिसको मौका लगता है हमें ही रगड़ रहा है।  व्यापारी और गुंडे तो उनके वश में आते नहीं हैं। 

बोली- ये हर बात में सेवक, व्यापारी, राजनीति लाना बंद करो।  आज रूपचौदस है।  कम से कम आज तो तेल मालिश करके गरम पानी से ढंग से नहा लो। उसके बाद तो सर्दी का बहाना बना कर कभी नहाओगे नहीं, तो कभी ऐसे ही दो लोटे पानी डालकर नहाने का कर्मकांड कर लोगे जैसे सरकारें चुनाव आने पर जगह-जगह शिलान्यास और घोषणाएं कर देती हैं और उसके बाद करना-धरना नहीं।विकास में हिस्सदेदारी के बतौर छुटभैय्ये शिलान्यास के पत्थर उखाड़कर ले जाएंगे।  

इसी बीच पता नहीं कब तोताराम आगया, बीच में ही बोल उठा- अरे मास्टर, नहा ले। क्या इस मैल को लिए-लिए ही यमराज का स्वागत करेगा ?

हमारी जगह पत्नी ने ही उत्तर दिया- आज के दिन तो कम से कम शुभ-शुभ बोलो लाला, रूपचौदस का दिन है ।  तुम्हारी चाय कहीं भागी थोड़े ही जा रही थी। आज तो कम से कम नहा-धोकर आते। 

अब तो हमें भी हस्तक्षेप करना ही पड़ा। एक बार को अज्ञानी चुप रह सकता है लेकिन जिसे सर्वज्ञता का बहम हो जाए वह टांग अड़ाए बिना नहीं रह सकता। वैसे किन्हीं दो की बात में बीच में बोलना मूर्खता कहलाती है।  

हमने कहा- यह रूप ही तो सभी समस्याओं की जड़ है। जिस रूप को लेकर हम खुद को अलौकिक समझते हैं वह भी हर अन्य नश्वर जीव और वस्तु की तरह तरह-तरह से नारकीय ही होता है। हर जन्म लेने वाले को बीमार होना और बूढ़ा होकर मरना ही है। किमाश्चर्यं ? सबको मरते हुए देखकर भी मनुष्य सोचता है कि और जीव अपनी गलतियों-कमियों या अभावों के कारण मरते हैं लेकिन मैं नहीं मरूँगा, मेरे पास क्या कमी है ? 

इसीलिए इस रूपचौदस नामक आकर्षक लेकिन भरमाने वाले पर्व को नरकचौदस भी कहा गया है।  

तोताराम ने ऐतराज जताया, बोला- फिर भी आदमी मानता कहाँ है ? दिन में दस बार नई-नई ड्रेसें बदलता है, जहां जाता है अपने साथ कई-कई फोटग्राफर ले जाता है, तरह-तरह की फोटो खिंचवाता है, उन्हें हर जगह चिपकवाने का इंतज़ाम करता है। धर्म-कर्म की बजाय हर क्षण कैमरे पर ही निगाह टिकाये रहता है। 

अंतिम यात्रा में भी यह सोचकर पूरे मेकअप और दल-बल सहित ऊपर जाना चाहता है कि ऊपर भी उसे वी वी आई पी ट्रीटमेंट मिलेगा।  इसका वश चले तो मरने के बाद भी खुद को भुस भरकर भी गद्दी पर स्थापित रखे। तभी तो मिस्र के फराह खुद को पिरामिड में रखवाते थे और साथ में अपने दास-दासी, गहने भोजन आदि।   

हमने कहा- इसमें क्या झूठ है ? कहने को पांच तत्त्व माने जाते हैं और मरने के बाद यही कहा जाता है कि अमुक-अमुक सेवक की देह पंचतत्त्व में विलीन हो गई लेकिन ऐसा होता कहाँ है ? ऐसे माया मोह में फंसे लोगों में एक छठा तत्त्व भी होता है जो कभी विलीन नहीं होता। वह है खुराफात। 

बोला- तभी तो रामसुखदास जैसे संत  कहते हैं कि उनका कोई स्मारक नहीं बनवाया जाए।  वे तो फोटो भी नहीं खिंचवाते थे, चरण छुआना तो बहुत दूर की  बात। और ये खुद और कैमरे के बीच भगवान तक को नहीं आने देते।  इनका वश चले तो ये अपने स्मारक और मूर्ति के ठेके का कमीशन भी जीते जी ही वसूल लें।  

हमने कहा- तभी तो ! क्या तूने कभी सुना है कि किसी नेता ने मेडिकल के छात्रों के अध्ययन के लिए अपना 'देह दान' किया हो ? रूप के नरक में फंसे इन लोगों के लिए ऐसा संभव नहीं। ऐसा भी कोई ज्योति बसु जैसा तत्त्वज्ञानी ही कर सकता है।  

तोताराम बोला- तो दिवाली की छुट्टी के बाद देहदान पर गंभीरता से विचार करते हैं।    


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Oct 13, 2022

अब क्या किसी की जान लेगा

अब क्या किसी की जान लेगा 


आज तोताराम ने आते ही बधाई दी। 

बधाई हो भाई साहब, बिना कुछ किये धरे, बिना आंदोलन-धरने-धमकी के हो गई बल्ले-बल्ले; ऐसे जैसे निर्देशक मंडल में बैठे-बैठे आडवाणी जी पर राष्ट्रपति या भारतरत्न का छींका टूट पड़े।  

हमने कहा- मोदी जी केजरीवाल की तरह नहीं हैं जो बिना कुछ करे धरे रेवड़ियां बाँट कर जनता की आदतें खराब करें। रेवड़ियां तो अंधा बांटता है। मोदी जी तो दो आखों से ही सहस्रनेत्र हैं। हालांकि नाम अब्दुल नहीं है लेकिन सबकी खबर रखते हैं। वे खुद मेहनत में विश्वास करते हैं, ८ घंटे की जगह उसी वेतन में, बिना किसी ओवर टाइम के २४-२४ घंटे काम करते हैं। उनके रहते कोई मुफ्त का नहीं खा सकता।  उन्होंने तो शुरू में ही कह दिया था- न खाऊँगा, न खाने दूँगा।इसलिए बिना किये धरे वे किसी को कुछ देने वाले नहीं हैं।  मेहनत की कमाई भी बहुत रगड़-रगड़ कर देते हैं जिससे लेने वाले को अपने श्रम की सार्थकता भली भांति अनुभव हो जाए।  

पता नहीं, बहुप्रचारित डीए कब आएगा। बनियों ने तो अखबार देख-देखकर ही दाम बढ़ा दिए हैं।  १८ महिने  के एरियर का तो कहीं दूर दूर तक पता नहीं है।  

बोला- आ जाएगा, डीए  भी आजायेगा। एरियर भी आ जायेगा। सबर कर।  अभी ८० का होने पर २०% बेसिक भी तो बढ़ गई होगी।  उससे पेट नहीं भरा क्या ?

हमने कहा- सर्विस रिकार्ड के अनुसार ५ जुलाई को ८० साल के हो गए हैं और आज २ अक्टूबर है।  २०% बेसिक तो बढ़कर कब की आ जानी चाहिए थी ।  कल ही बैंक जाकर पूछ कर आये थे लेकिन- इल्ले। गुजराती  में  नथी ? 

बोला- अच्छा है, एक साथ आएगी तो कोई बड़ा काम सरेगा।  

हमने कहा- लेकिन यह तो सिस्टम में फीड है। जब एक दिन के लेट पेमेंट पर पेनल्टी अपने आप जुड़ जाती है तो देने वाला काम ऑटोमेटिक क्यों नहीं होता ? देते समय अर्थव्यवस्था डिजिटल नहीं रहती क्या ? 

बोला- वैसे मोदी जी ने कल ५ जी का उदघाटन करते हुए ४००० रूपए महिने की बचत का गणित समझा तो दिया था।

हमने कहा- हाथ में तो कुछ आना नहीं।  बस, गणित समझते-समझाते रहो। फिर भी क्या गणित समझाया है, सुनें तो।  

बोला- उन्होंने कहा है-डेटा के माध्यम से अब आम आदमी चार हजार रुपये महीना बचा रहा है। पहले एक जीबी डेटा 300 रुपये में मिलता था, लेकिन आज यह दस रुपये में है। उन्होंने बताया, औसतन एक आदमी महिने में 14 जीबी डेटा खर्च करता है। इससे उसकी लागत 4200 रुपये महीना आती, लेकिन अब यह 150 रुपये से भी कम में मिल रहा है। यानी आदमी अब 4000 रुपये महीना बचा रहा है। 

तू तो कम से कम ५० जीबी डेटा यूज करता होगा तो तेरी तो बचत १०-१२ हजार रुपया महिना हो गई कि नहीं ?  

इतना तो कर दिया। अब क्या किसी की जान ही लेगा !

हमने कहा- यह ग़ालिब वाली बात है- यूं होता तो क्या होता-----? इस हिसाब से तो १५-२० साल पहले बच्चों से फोन पर अमरीका बात किया करते थे तो एक मिनट के ७२ रुपए लगा करते थे लेकिन अब मोदी जी की कृपा से वाट्स ऐप पर घंटों बात कर लो तो भी कोई ख़ास खर्च नहीं आता।  इस गणित के हिसाब से तो महीने की ४००० रुपए ही नहीं, लाखों की बचत हो सकती है।  

बोला- सोच का फ़र्क़ है। जिसको खुश होना ही नहीं तो उसका कोई क्या करे। पहले किसी को व्यक्तिगत रूप से खैर-खबर लेने के लिए भेजा जाता तो सोच कितना महंगा पड़ता होगा । कोई सेठ-साहूकार, राजा-महाराजा ही अफोर्ड कर सकते थे। अब रुपए-आठ आने में काम हो जाता है। 

जब तक २०% बेसिक और ४% डीए और १८ महीने का एरियर नहीं आता तब तक इस गणित से ही मन बहला।  

दिल के बहलाने को मास्टर यह  ख़याल अच्छा है कि नहीं ? 

हमने कहा- तोताराम, ५ जी वाले उद्घाटन समारोह में मोदी जी मोटा काला चश्मा लगा रखा है। 

कहीं मोतियाबिंद का ऑपरेशन तो नहीं करवाया है ? 

बोला- नहीं,  वे बहुत संयमी और अनुशासित व्यक्ति हैं।  उनकी आँखें तो अब भी अनादि और अनंत भूत-भविष्य को बिना किसी दूरबीन के देख सकती हैं। कोई सामान्य आदमी की आँखें थोड़े ही हैं जिनसे उसे आसपास घूमते-फिरते अच्छे दिन भी दिखाई नहीं देते। 

यह तो विशेष दृष्टि प्रदान करने वाला विशेष प्रकार का चश्मा है जो ५ जी की मदद से 'आभासी' को भी 'वास्तविक' जैसा दिखाता है।  यह अभी बड़े और ख़ास लोगों के लिए ही है।  बाद में अआधार कार्ड की तरह सबके लिए ज़रूरी कर दिया जाएगा जिससे सब आभासी विकास का वस्तविक  आनंद  ले सकें।    

तेरी तरह थोड़े ही हैं जिससे अपना एक 'जी' ही नहीं सँभल रहा है। जिसे 'वास्तविक' भी 'आभासी' जैसा नज़र आता है।  


  







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Oct 10, 2022

तुझे किसने भेजा है ?


तुझे किसने भेजा है ?


दो दिन से बरसात हो रही है।  वैसे पानी मात्रा में तो अधिक नहीं गिरा लेकिन वातावरण तो ख़राब कर ही दिया जैसे निजी यू ट्यूब चैनल वाले अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए और सरकार के भक्त अखबार प्रभु-कृपा प्राप्त करने के लिए दो महिने से हल्ला मचाये हुए हैं- मोदी जी का कर्मचारियों को दीवाली का तोहफा, केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों की होने वाली है बल्ले-बल्ले, खाते में आएगी बड़ी रकम आदि-आदि। दुकानदार तो ऐसी खबरें सुनकर दाम बढ़ाकर विकास के लिए प्रतिबद्ध सरकार को बदनाम करने के लिए रहते ही हैं।    

फसलों को नुकसान कितना हुआ, यह मुआवजा कबाड़ने वाले छुटभैय्ये नेता जानें।  किसानों के आय-व्यय और नुकसान की खबर किसानों के हित में तीन कानून बनाने वाली और फिर वापिस लेने वाली सरकार तक काम ही पहुंचती हैं। हाँ, सेवक एक स्टेटमेंट सुनकर ही जनसँख्या का संतुलन सुधारने के लिए अपने समुदाय को हथियार उठाने का आह्वान ज़रूर कर रहे हैं।  

हम इस बेमौसम की बरसात की रात में पंखा चलकर सोने के फलस्वरूप सर्दी खाकर बरामदे की बजाय आडवाणी जी की तरह कमरे में बैठे हैं। 

तोताराम आकर जैसे ही कुर्सी पर बैठने को हुआ, हमने पूछा- तुझे किसने भेजा है ? 

बोला- भेजेगा कौन ? जैसे रोज आता हूँ वैसे ही आ गया।  

हमने कहा- हर आने वाले को कोई न कोई भेजता भी है जिसे यहां कोई न कोई रिसीव करता है। तभी तो बच्चा पैदा होने को 'डिलीवरी' कहा जाता है। तेरी भी डिलीवरी हुई थी तो ज़रूर कोई भेजने वाला अर्थात 'प्रेषक' और  अंग्रेजी में सेंडर भी तो रहा होगा ? 

बोला- मैं तो ८० साल पहले ही आगया था। आज तक तो तूने कभी नहीं पूछा। मै तो पाला बदलकर तेरी सत्ताधारी, राष्ट्रवादी पार्टी छोड़कर गया भी नहीं। अनुशासित स्वयंसेवक की तरह सब कुछ सहकर बौद्धिक करता रहा।    फिर शंका की इस 'ईडी' और 'डीएनए'  की क्या ज़रूरत आ पड़ी ? जो मुझसे प्रश्न कर रहा है कि तुझे किसने भेजा ? आज तक तो किसी बच्चे के साथ कोई ऐसा टैग लगा हुआ आया देखा नहीं कि यह पैकेट फलां-फलां ने भेजा है। वैसे यदि मेरे साथ भी आया होगा तो बताने के लिए अब बचा कौन है ?  न माँ है, न दादी, न कुंती नर्स। उस सरकारी अस्पताल की इमारत में पहले पशु चिकित्सालय खुला था और अब तहसील का कार्यालय है। 

वैसे यदि तू आस्तिक है तो मुझे उसी ने भेजा है जो सबको भेजता है।  

हमने कहा- सबको भेजने वाला एक नहीं होता।  मुसलमान को अल्लाह भेजता है, हिन्दू को भगवान भेजता है, ईसाई को गॉड भेजता है, सिक्ख को एक ओंकार भेजता है।   

हमने कहा- लेकिन कल गुजरात में केजरीवाल ने कहा है कि मुझे भगवान ने भेजा है कंस की औलादों का संहार करने के लिए।  

बोला- लेकिन कंस तो मथुरा में था। उसकी औलादें गुजरात में कैसे पहुँच गईं ? 

हमने कहा- हो सकता है कंस की सरकार गिराने के लिए कृष्ण कंस के असंतुष्ट और पद के लालची विधायकों को चार्टर्ड प्लेन से द्वारिका ले गए हों।

बोला- क्या किसी ने केजरीवाल के पैकेट के साथ 'प्रेषक' के रूप में भगवान् का टैग देखा था ? 

हमने कहा- इस देश की जनता बहुत भली और भोली है।जब मोदी जे कहा था कि मुझे माँ गंगा ने बुलाया है तब भी बनारस के लोगों ने गंगा का अथॉरिटी लेटर कहाँ देखा था। 

बोला- जैसे केजरीवाल को भगवान ने भेजा है वैसे मोदी जी को किसने भेजा ?

हमने कहा- मोदी जी ऐसे मामलों में बहुत संकोची हैं। वे केजरीवाल की तरह अपनी प्रशंसा खुद नहीं करते। उनके लिए तो वेंकैय्या नायडू जी ने कहा था कि मोदी जी राष्ट्र को ईश्वर का तोहफा हैं।  

बोला- लेकिन गुजरात में तो केजरीवाल के स्वागत में बहुत से पोस्टर लगे हैं जिनके अनुसार केजरीवाल ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण को ईश्वर नहीं मानता।  

हमने कहा- वैसे हमारे शास्त्रों में भी इन सबको शक्ति संपन्न तो माना है लेकिन इन्हें 'ईश्वर' तो कहीं नहीं कहा गया है।अन्य धर्मों में  भी गॉड या अल्लाह का कोई धार्मिक स्थान नहीं मिलता। ईश्वर, गॉड, खुदा तो सर्वशक्तिमान है जिसे किसी एक स्वरूप, विग्रह, शब्द में समेटा ही नहीं जा सकता है। वह एक ही हो सकता है। अलग-अलग धर्मों, देशों, कालों आदि में भी अलग-अलग नहीं।  

बोला- राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु, महेश को न मानने वाला संस्कारहीन होता है। यदि कोई व्यक्ति नास्तिक हो, ईश्वर को नहीं मानता हो तो वह देश, दुनिया और समाज के लिए हानिकारक होता है। 

हमने कहा- फिर तो भारत और नेपाल के अतिरिक्त सभी देश संकट में ही समझो।  तुझे पता होना चाहिए कि हिटलर जेब में हर समय बाइबिल रखता था लेकिन निर्दय कितना था यह सारी दुनिया जानती है। हमारे ख़याल से तो जो जितना बुरा होता है उसे खुद को भला दिखाने का उतना ही अधिक और झूठा नाटक करना पड़ता है।वैसे कोई माला, तिलक, छाप करते हुए भी तो अंदर से लम्पट हो सकता है। ऐसे में किसे ईश्वर ने भेजा है, कौन संस्कारवान है; कौन गरबा में अवैध रूप से घुस आया; कैसे पहचाना जाए ?

बोला-  ईवीएम का बटन ज़ोर से दबाने से जिसे करंट लगता हो वह संस्कारहीन होता है। संस्कारवान को उसके कपड़ों से पहचाना जा सकता है। देखा नहीं, गुजरात में पोस्टरों में केजरीवाल कैसी टोपी पहने हुए हैं ? 

हमने कहा- यदि गोडसे ऐसा कहता कि मुझे गाँधी की हत्या करने के लिए ईश्वर ने भेजा है, तो ?

बोला- देश में जैसे हालात और हवा चल रहे हैं उन्हें देखते हुए यह असंभव भी नहीं लगता ?

हमने कहा- और इस ड्रामेबाजी में कबीर, नानक, गाँधी, भगत सिंह और अम्बेडकर कहाँ फिट होंगे ? 

बोला- अब भी ये सब कौन से फिट हैं ? सब मिसफिट हैं। कुछ दिनों की बात है।  सब 'आउट ऑफ़ कोर्स'  जाएंगे। 


  


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Oct 7, 2022

तोताराम का अद्भुत अपूर्व स्वप्न

तोताराम का अद्भुत अपूर्व स्वप्न 


आज भी तोताराम समय से कुछ पहले ही आगया जैसे कि उत्कंठिता नायिका समय से बहुत पहले ही बार-बार छत पर जाकर नायक का रास्ता देख-देख आती है. या जैसे सच्चा भक्त दिन के ग्यारह की बजाय दस बजे ही से   'मन की बात'  सुनने के लिए रेडियो से कान चिपका देता है. 

हमने छेड़ा- तोताराम, हमने तेरी चाय को जी एस टी और गैस की मूल्य वृद्धि की तरह अपरिहार्य मान लिया है. जब भी आएगा मिल जायेगी. लेकिन चाय के लिए इतनी उतावली और वह भी अस्सी साल की इस उम्र में. शोभा नहीं देती. 

बोला- और तू तो इस उम्र में जैसे बहुत ही परिपक्वता का परिचय दे रहा है. यहाँ तो जब से देखा है, रोमांच के मारे रात तीन बजे से नींद नहीं आ रही है.  तुझे बताने के लिए बड़ी मुश्किल से करवटें बदल बदलकर किसी तरह साढ़े पांच बजाये हैं. याद करते ही रोमांच हो आता है. रोम रोम में झुरझुरी होने लगाती है. एक भावावेश सा छा जाता है. 

हमने पूछा- ऐसा क्या दुस्वप्न देख लिया ?

बोला- दुस्वप्न नहीं, साक्षात शिवलिंग. ज्ञानवापी के फव्वारे जैसे लगने वाले नहीं बल्कि बिलकुल उज्जैन और काशी वाले जैसे. 

हमने कहा- पहले भी तू व्हाईट हाउस के नीचे राममंदिर का नाटक लाया था. 

बोला- वह भी नाटक नहीं था . तर्क पर आधारित निष्कर्ष था. जब हनुमान का पुत्र पाताल (अमरीका) का राजा बना था तो अमरीका में राम मंदिर न होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. लेकिन आज तो साक्षात् देखा है. 

हमने कहा- कभी कभी जब मन में कोई बात गहरे पैठ जाती है तो फिर आदमी को एक प्रकार  का दृष्टि-भ्रम भी हो जाता है. उसी स्थिति के लिए कहा गया- सावन के अंधे हो हरा ही हरा. अमरीका में आज से कोई तीसेक साल पहले भी भारत के कुछ शिव भक्तों ने एक रोड़ ब्लोकर को शिव लिंग समझ लिया था. वे वहाँ पूजा पाठ करने लगे और 'मंदिर वहीं बनायेंगे' की तर्ज़ पर मंदिर बनाने का आग्रह करने लगे लेकिन वहाँ के प्रशासन ने उस रोड़ ब्लोकर को वहाँ से हटवा दिया. और काम ख़त्म. 

बोला- आज का अखबार देख. गोवर्धन पुरी के पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है- हमारी दृष्टि केवल मथुरा, काशी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मक्का के मक्केश्वर महादेव तक है. इसका मतलब उन्होंने भी देखा है. तभी कहा है- 

जा की रही भावना जैसी , प्रभु मूरत देखी तिन तैसी. 

हमने कहा- वे विद्वान नहीं, आचार्य हैं, उनके नाम के साथ शंकर भी जुड़ा हुआ है. और उनका नाम है निश्चल आनंद . अपने मत और निर्णय पर निश्चल रहने वाले. तेरी तरह अनुमान से नहीं फेंकते या वैसे ही ऊलजलूल सपने नहीं देखते. उन्होंने साफ़ कहा है- कोरोना काल में नौ महीने रिसर्च की है. 

नौ महिने में, कहीं कोई अस्तित्व न हो तो भी एक जीता जागता मनुष्य पैदा हो जाता है. तब तो मक्का में मक्केस्वर महादेव की बात का आधार बनता है. 

बोला- तो फिर अमरीका में क्यों नहीं. वहाँ तो रावण के वंशजों का राज था. वे सभी शिव भक्त थे. और फिर राम भी तो शिव भक्त थे, पक्के शिवभक्त. तभी कहा था-

शिव द्रोही मम दास कहावा 

यह मत मोहि सपनेहुँ नहिं भावा. 

और फिर हनुमान को तो शंकर सुवन कहा गया है तो अमरीका में 'अमरीकेश्वर महादेव' के होने में कोई संदेह ही नहीं है. 

और आगे पढ़, शंकराचार्य जी का इसी के साथ एक और स्टेटमेंट भी पढ़. वे कहते हैं भारत के हिन्दू राष्ट्र घोषित होते ही और १५ देश अपने आपको हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देंगे.  दुनिया के २०४ देशों में से ५३ देशों में हिन्दू रहते हैं.

हमने कहा- अरब देशों में तो एक करोड़ के लगभग भारतीय रहते हैं. अमरीका में ही ४० लाख भारतीय रहते हैं. वहाँ वे बहुत प्रभावशाली हैं. कल को कमला राष्ट्रपति भी बन सकती है. फिर तो अमरीका के हिन्दू राष्ट्र बन जाने में कोई संदेह ही नहीं. 

बोला- और क्या ? तब मेडिसन स्क्वायर और व्हाईट हाउस सभी जगह शिवलिंग ही शिवलिंग. 

हमने कहा- तोताराम, कल्पना कर, तब क्या दृश्य होगा जब लाखों कांवड़िये 'अमरीकेश्वर महादेव' से कांवड़ लाने के लिए बम बम बोलते हुए अमरीका पहुँच जायेंगे. अमरीका का पुलिस कमिश्नर हेलिकोप्टर से शिव भक्तों पर पुष्प वर्षा कर रहा होगा. लौटते समय मक्का में वहाँ के बड़े-बड़े लोग थके हुए कांवड़ियों की चरण सेवा कर रहे होंगे. 

अमरीका से अफगानिस्तान तक के रास्ते जाम हो जायेंगे शिव भक्तों की रेलमपेल से.  

बोला- मास्टर, यह स्वप्न और कल्पना नहीं है, शीघ्र ही साकार होने वाली एक हकीकत है. 

हमने कहा- तोताराम, हम तो तेरा मन रखने के लिए हाँ में हाँ मिला रहे थे. इन शंकराचार्य ने एक बार पहले भी  बहुत ऊंची फेंकी थी. कहा था-  चंद्रयान-२ में आ रही दिक्कतों को लेकर वैज्ञानिक उनके पास आये थे और उन्होंने वैदिक गणित से उनका समाधान किया था.  

जबकि सचाई यह है कि कोई वैज्ञानिक उनके पास नहीं आया था.  




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Oct 5, 2022

चीतायन या चीतागमन

चीतायन या चीतागमन 


आज दुर्गाष्टमी है।


राम ने रावण को मारने के लिए ‘शक्ति’ की आराधना की थी। आज ‘व्यक्ति पूजा’ के इस युग के ‘शक्ति’ की आराधना की बजाय ‘व्यक्ति’ की आराधना में व्यस्त रहना पड़ता है। व्यक्ति की आराधना के बाद इतनी शक्ति ही नहीं बचती कि शक्ति की आराधना कर सकें। फिर भी चूँकि तोताराम की ‘चीतायन महाकाव्य’ लेखन की सलाह ने कुछ प्रेरित ज़रूर किया। सोचा, हो सकता है, चीता-चर्चा के बहाने देश में ‘गति-शक्ति’ की १०० लाख करोड़ रुपए की मतलब देश की जीडीपी के पांचवें हिस्से से बनने वाली अब तक की विशालतम योजना के प्रज्ञा-पुरुष मोदी जी के कान तक हमारी राष्ट्रभक्ति की भनक पहुँच जाए तो, न सही आडवाणी जी के लिए ‘भारत रत्न’ लेकिन इस अंत काल में हमारे लिए कोई दो-चार लाख का छोटा-मोटा पुरस्कार ही टपक पड़े। ‘रत्न पुरस्कारों’ में हमें कोई रुचि नहीं क्योंकि जिसमें धन-राशि न हो वह कितना भी बड़ा सम्मान हो, किसी काम का नहीं। जिनके पास पहले से बहुत पैसा है उनकी बात अलग है।

सुबह जल्दी उठकर हम अपने घर के सामने बने आइडिया के टावर की तरफ एकटक दृष्टि गड़ाए घूर रहे थे। सुबह-शाम इस टावर पर बहुत चहल-पहल रहती है। कोई हजार-पांच सौ कबूतर एक साथ उड़कर भोजन की तलाश में निकलते हैं और शाम को लौटते हैं। बड़ा अद्भुत दृश्य होता है।

पता ही नहीं चला कि तोताराम कब आकर पीछे खड़ा हो गया. बोला- ज़्यादा आँख मत फाड़। किसी कबूतर की बीट आँख में गिर पड़ी तो तेरे कमल नयनों का ज्योति कलश पंचर हो जाएगा।

हमने कहा- हम तो ‘चीतायन’ लेखन की प्रेरणा के लिए देख रहे थे कि कोई बिल्ली या लंगूर किसी काम मोहित कबूतर को लपक ले और उसे देखकर हमारे मुख से वाल्मीकि की तरह कोई ‘अनुष्टुप’ फूट पड़े।

रामायण ग्रंथ के पहले सर्ग में इस बात का उल्लेख है कि देवर्षि नारद महर्षि बाल्मीकि के तमसा नदी तट पर अवस्थित आश्रम पर पधारते हैं और उन्हें रामकथा का संक्षिप्त परिचय देते हैं । देवर्षि के चले जाने के बाद महर्षि अपने शिष्यों के साथ तमसा नदी तट पर स्नानार्थ जाते हैं । तभी वे अपने वस्त्रादि अपने प्रिय शिष्य भरद्वाज को सौंप पेड़-पौधों से हरे-भरे निकट के वन में भ्रमणार्थ चले जाते हैं । उस वन में एक स्थान पर उन की दृष्टि क्रौंच पक्षियों के रतिक्रिया में लिप्त एक असावधान जोड़े पर पड़ती है । कुछ ही क्षणों के बाद वे देखते हैं कि उस जोड़े का एक सदस्य चीखते और पंख फड़फड़ाते हुए जमींन पर गिर पड़ता है । और दूसरा उसके शोक में चित्कार मचाते हुए एक शाखा से दूसरे पर भटकने लगता है । उस समय अनायास ही निंदात्मक वचन उनके मुख से निकल पड़ते हैं-

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।

हे निषाद, तुम अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सको, क्योंकि तुमने क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला है ।

बोला- मास्टर, अब वह ज़माना नहीं जब ‘एको रसः करुण एव’ माना जाता था। अब तो मोदी जी ने कूनो नॅशनल पार्क में नामीबिया से लाये गए चीते छोड़ने के उपलक्ष्य पर साफ़ कह दिया है- आज हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। पहले हम कबूतर छोड़ते थे, आज चीता छोड़ रहे हैं।

यदि तुझे करुण रास की प्रेरणा चाहिए तो बिलकिस बानो पर हुए अत्याचार या अभी-अभी उत्तराखंड में एक एक मंत्री-पुत्र द्वारा एक उन्नीस साल की किशोरी की हत्या की कल्पना कर ले। आँखों से अनुष्टुप क्या, आग न टपकने लगे तो कहना। वैसे संस्कारी और राष्ट्रभक्तों पर संदेह कर पाना बहुत साहस का काम है। जेल या जुर्माना कुछ भी हो सकता है।

हमने कहा- याद रख तोताराम दुनिया घृणा और मार-काट से नहीं, प्रेम और करुणा से चलती है। यही सच है कि यदि मानवीय करुणा नहीं होती तो यह सृष्टि बची नहीं होती। राजनीति के निहितार्थ और व्यंजना तो उसके घाघ लोग जानें लेकिन हमें तो मोदी जी के इस वक्तव्य से लगता है कि चीतों के बहाने से शांति के कबूतर उड़ाने वाले नेहरू जी पर व्यंग्य कर रहे हैं। पता नहीं वे क्यों भूल जाते हैं कि आज भी दुनिया को बम नहीं, ब्रेड चाहिए। दुनिया में भारत के बुद्ध, अशोक और गाँधी के देश के रूप में जाना जाता है। बाहर मोदी जी संयुक्त राष्ट्र संघ में ‘भारत ने विश्व को युद्ध नहीं, बुद्ध दिए हैं’ कहकर युद्धोन्मादी पुतिन से यही कहकर प्रशंसा बटोरते हैं- यह युद्ध का समय नहीं है.

ऐसे में इस कबूतर-चीता का क्या मतलब है ?

बोला- यह ‘चीता-छोड़ अभियान’ मोदी जी के १०० लाख करोड़ के ‘गति-शक्ति प्रोजेक्ट का ‘मंगलाचरण’ है. इसका उद्देश्य है देश में एक जगह से सामान जल्दी से जल्दी दूसरी जगह पहुंचाना। जैसे अहमदाबाद में चाय बनाकर फटाफट बुलेट ट्रेन से मुम्बई पहुँचाना। पंजाब की मक्का फटाफट मदुराई पहुँचाना।

हमने कहा- इस बात का क्या तुक है. प्रकृति ने हर स्थान के मौसम और परिस्थितियों के अनुसार सब कुछ बनाया है। वही उस स्थान के लिए उपयुक्त होता है। तमिलनाडु या बंगाल वाला बाजरा या मक्का खाकर बीमार हो सकता है और पंजाब हरियाणा राजस्थान वाले का चावल से पेट नहीं भर सकता। इस बिना बात के इधर-उधर से क्या फायदा ? बिना बात शक्ति और समय का अपव्यय है. प्रदूषण फैलेगा सो अलग.

बोला- इससे किसानों को फायदा होगा।

हमने कहा- किसानों को कोई फायदा नहीं होगा। फायदा होगा व्यापारियों को जो इंदौर में किसानों से एक रुपये किलो में लहसुन खरीदकर दिल्ली में ५० रुपए किलो बेचते हैं. कुछ व्यापारी तो गुस्साए किसानों द्वारा मंडी में ले जाकर फेंके गए लहसुन का निर्यात कर रहे हैं। और जिस चीते को तुम लोग गति-शक्ति का प्रतीक कहते हो वह चीता १०० किलोमीटर की स्पीड से एक बार में अधिक से अधिक ३०० मीटर ही दौड़ सकता है। इस तरह की रिले रेस से वह नासिक का केला लेकर बनारस कब पहुंचेगा इसका हिसाब लगाओगे तो इस ‘गति-शक्ति’ का गणित समझ में आ जाएगा।

बोला- लेकिन चीतों में कुछ तो बात होगी जो मोदी जी ने गिरती अर्थव्यवस्था के समय में भी सैंकड़ों करोड़ का यह चीता प्रोजेक्ट शुरू किया है ? इसका कारण भी तो मोदी जी ने खुद ही बता दिया है। चीता-विमोचन के समय उन्होंने कहा तो था- हमने अतीत की गलतियों को सुधारा है. मतलब नेहरू जी ने अपने समय में चीतों को मरवा दिया था. १९५२ में भारत के ‘चीता-विहीन’ होने की विधिवत घोषणा हो गई थी। तब मोदी जी की उम्र दो वर्ष थी। उन्होंने तभी यह तय कर लिया था कि मैं फिर से उन चीतों को वापिस भारत लाऊँगा जो नेहरू जी ‘चीता मारो’ अभियान से किसी तरह बचकर गुजरात के किसी तट से किसी जहाज में बैठकर गुजराती व्यापारियों के साथ नामीबिया चले गए थे। गुजरात के व्यापारी शताब्दियों से अफ्रीका जाते रहे हैं।

हमने कहा- लेकिन पता चला है कि ये चीते भारत मूल के नहीं है। ये तो अफ्रीका मूल के ही हैं। ऐसे में तो हमें अपने महाकाव्य का नाम ‘चीतायन’ की बजाय ‘चीतागमन’ करना पड़ेगा।

रामायण दो शब्दों की संधि से बना है- राम और अयन । अयन का अर्थ यात्रा होता है अत: रामायण का शाब्दिक अर्थ है राम की यात्रा। रामायण में राम की दो यात्राएं हैं। पहली राम लक्ष्मण की किशोरावस्था में जब वे विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए गए। उनके इस ‘अयन’ में यज्ञ-रक्षा, अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान, ताड़का-वध, अहिल्या उद्धार, धनुष भांग, परशुराम विमर्श, सीता से विवाह के बाद अयोध्या आगमन।

दूसरा ‘अयन’ अर्थात यात्रा में राम वन गमन, सीताहरण, बालि वध, लंका दहन, समुद्र तरण, रावण वध, अयोध्या आगमन और राज-तिलक। यह है दूसरा अयन. लेकिन तोताराम, इन चीतों का वनवास तो राम और पांडवों के वनवास के भी कोई पांच गुना हो गया।

बोला- नाम बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है। ये चीते भारत मूल के थे और हिन्दू थे, तभी तो किस तरह मोदी जी का आभार व्यक्त करते हुए पिंजरों से निकले थे। यदि ये चीते भारत मूल के हिन्दू नहीं होते सी. ए. ए. के नियमान्तर्गत इन्हें शरण दी ही नहीं जा सकती थी।

हमने कहा- लेकिन क्या चीते इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि नौकरी, शिक्षा और महंगाई के कठिन समय में सब्सीडी देकर जनता की समस्याएं कुछ काम करने की बजाय ये चीते लाये गए हैं ?

बोला- पहले कुछ राजा लोग शिकार करने के लिए चीतों की मदद लिया करते थे।जैसे आजकल शासक अपने भक्तों से विरोधियों को बात बिना बात ट्रोल करवाकर जेल में डाल देते हैं। और फिर किसी के साथ चीता देखकर बिना कुछ कहे ही उसकी वीरता का रोब पड़ जाता है।

हमने कहा- यदि चीते ही रोब, वीरता और महानता के प्रमाण हैं तो फिर अकबर को ठीक ही महान कहा जाता है।कहते हैं उसके पास १००० चीते थे। महाराणा प्रताप के पास चीतों का उल्लेख नहीं मिलता शायद इसीलिए इतिहास में उसे महान नहीं कहा गया।

बोला- लेकिन अकबर के चीते उसके व्यक्तिगत शौक के लिए जनता पर डाला गया आर्थिक बोझ थे। वे ईरान से लाये गए मुसलमान चीते थे और उनके पालक भी मुसलमान ही थे। जबकि इन चीतों से मध्यप्रदेश के उस इलाके के सभी वर्गों के लोगों को रोजगार मिलेगा।

हमने कहा- और अगर ऐसे में किसी ‘आशा’ (मोदी जी की प्रिय चीती ) ने देखभाल के लिए नियुक्त किसी ‘चीतावीर’ को लपक लिया तो ‘अग्निवीरों’ की तरह इन ‘चीतावीरों’ को कोई पेंशन या मुआवजा कुछ नहीं मिलने वाला।

बोला- सोच ले, मैंने तो इस महंगाई की आपदा में तुझे एक अवसर बताया था। नहीं लिखना तो साफ़ बता। मेरे दिमाग में एक ‘चीता-चालीसा’ घूम रहा है।



 




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