Sep 19, 2016

लोगन राम खिलौना जाना

 2016-09-15 लोगन राम खिलौना जाना 

कोई भी रचनाकार अपनी रचना का सन्देश या कविता का मंतव्य लिख कर नहीं जाता |यह भी ठीक है कि उस पर अपने काल और परिवेश की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का प्रभाव भी रहता है लेकिन वह अपनी कल्पना और बिम्ब विधान से जिस मानव-मन की असीमित और नित नूतन किन्तु साथ ही पुरातन दुनिया में भी पाठक को ले जाता है |इसलिए हर पाठक उसमें अपने अनुसार कल्पना की गुंजाइश पा जाता है और अपने अनुसार उसके अर्थ से साक्षात्कार करता है और आनंदित होता है | इसी अर्थ में हर श्रेष्ठ रचना किसी काल विशेष की होते हुए ही  कालजयी और कालातीत भी होती है |

हो सकता है कि हम अपने प्राचीन ग्रंथों के काल निर्धारण में कुछ भूल कर जाएँ या उससे संबंधित विवाद में उलझ जाएँ लेकिन यह भी सच है कि बहुत समय तक उन्होंने हमारे मन को गढ़ा है, रचा है और आज भी किसी न किसी रूप में हमारे अवचेतन को साहित्य और सृजन के वे रूप प्रभावित करते हैं |हम यहाँ उस सृजन और उसके पठन की उस वर्ग की दृष्टि से बात कर रहे हैं जो निरपेक्ष और निःस्वार्थ है, किसी भी पूर्वाग्रह को लेकर नहीं चलता है |पढ़ते और उसका आनंद लेते समय उसके मन में कहीं भी, किसी भी प्रकार का ओछापन नहीं होता |वह विशाल हृदय और विराट चिंतन के साथ सृजन के इस अतल जल में उतरता है |

आज इस दृष्टि से न तो लोग उस प्राचीन सृजन को पढ़ रहे हैं और न ही उसका आनंद ले रहे हैं | आज तो अधिकतर तथाकथित पाठक पहले से कोई न कोई बहुत ओछी अवधारणा लेकर उन्हें पढ़ना शुरू करते हैं और आनंद और मानव-मन के विचित्र लोक में उतरने की बजाय कोई न कोई पूर्व नियोजित अर्थ या निष्कर्ष लेकर आते हैं | जब धर्म और राजनीति का गठजोड़ हो जाता है जो कि प्रायः हो ही जाता है, तो फिर उसकी ज़द में सभी धर्म ही नहीं, धर्म, नीति, मानव-जीवन और  चिंतन का सभी पुराना सृजन भी जाता है |

आजकल ऐसे लोगों द्वारा कोई नया सृजन कर सकने की कमी को पुराने सृजन के साथ छेड़छाड़ करके पूरा किया जाता है |अभी किसी अक्षत वर्मा की महाभारत के पात्रों को प्राचीन वेशभूषा में दिखाते हुए द्रौपदी के बँटवारे के द्वंद्व को बड़े फूहड़ और मजाकिया ढंग से दिखाया गया है जो किसी भी रूप में हमें उस समस्या की गहराई तक नहीं ले जा सकता | वह युधिष्ठिर को मात्र एक घटिया जुआरी तक दिखाने में ही विश्वास करता है |खैरियत है कि इसमें कृष्ण नहीं है अन्यथा उसकी भी दुर्गति कर दी जाती | बहुत कुछ ऐसा है जो पढ़ने और कल्पना का ही विषय हो सकता है और कुछ मात्र दिखाने का ही | इन दोनों विधाओं का अपना महत्त्व है और अपनी-अपनी सीमाएँ भी |लगता है, आजकल दोनों विधाएँ अपनी-अपनी क्षमताओं का सदुपयोग करने की बजाय एक दूसरे का अतिक्रमण करने में अपना विकास और वर्चस्व खोज रही हैं |

अभी एक और चुनावी विज्ञापन आया है- भाजपा अध्यक्ष ने वामन जयंती पर लोगों को बधाई देते हुए एक पोस्टर प्रकाशित किया है जिसमें वामन को बलि के सिर पर पैर रखे हुए दिखाया गया है और साथ में खुद का फोटो भी है इन दोनों से बड़ा |मतलब यह इन दोनों के बहाने खुद को किसी न किसी रूप में स्थापित करने का प्रयत्न है |यह किसी भी तरह केरल के लोगों की खुशी में शामिल होने का उपक्रम तो कतई नहीं है |आजतक न तो विद्यालयों में वामन जयंती मनाई गई, न ही कभी वामन जयंती की छुट्टी हुई |फिर यह वामन जयंती कहाँ से ले आए ? क्या इस अवसर पर ओणम की बधाई नहीं दी जा सकती थी ? और चित्र भी क्या पारंपरिक वेशभूषा में सजी धजी,फूलों की रंगोली बनती महिलाओं का नहीं हो सकता था ?  यह कहीं भी केरल के लोगों की ख़ुशी में शामिल होने के इरादे से किया विज्ञापन नहीं है  | इसके बहाने केरल के समरस जीवन में वैमनस्य और व्यर्थ का कोई विवाद फ़ैलाने का षडयंत्र अधिक नज़र आता है |

यह ठीक है कि कथा में बलि का पाताल में चले जाने का वर्णन कथा में आता है लेकिन कथा में आना और इस प्रकार उसके सिर पर वामन का पैर रखे चित्र, हो सकता है उन्हें अपने राजा, जिसकी वे पूरे वर्ष भर प्रतीक्षा करते हैं और उसकी प्रसन्नता के लिए अपनी खुशियों और वैभव का प्रदर्शन करते हैं कि उनका राजा उन्हें देखकर प्रसन्न हो तो ऐसे में उन्हें बधाई देने का यह तरीका उचित नहीं कहा जा सकता |इससे पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा के अध्यक्ष और तथाकथित मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी को कृष्ण के रूप में चीर बढ़ाते हुए दिखाया गया और अन्य पार्टियों के नेताओं को जनता रूपी द्रौपदी का चीरहरण करते हुए दिखाया गया था |

अपने छोटे और घटिया स्वार्थों के लिए प्राचीन प्रतीकों और आस्था बिन्दुओं का दुरुपयोग करने पर  चुनाव आयोग और अदालत की ओर से प्रतिबंध होना चाहिए | इसी तरह से प्राचीन पुस्तकों और व्यक्तियों पर भी बात हो तो वह कानूनी और अकादमिक स्तर पर होनी चाहिए |किसी भी ऐरे-गैरे को इनका अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए मनमाना दुरुपयोग करने की छूट नहीं होनी चाहिए |वे हमारे अध्ययन और चिंतन मनन के विषय होने चाहिएँ न कि घटिया मनोरंजन और स्वार्थ-सिद्धि के |ऐसे ही बहुत से विज्ञापन और तमाशे समय-समय पर होते रहते हैं जैसे धोनी को विष्णु के रूप में दिखाना, एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के सी.ई.ओ. को विष्णु के रूप में दिखाना या अभी एक ऑनलाइन सामान बेचने वाली कंपनी 'मिन्त्रा' ने जन्माष्टमी पर अपने विज्ञापन में कृष्ण का उपयोग किया था |जब हमारे राजनीतिक और व्यापारी अपने फायदे के लिए इनका तमाशा बनाएँगे  तो किसी और को भी यह तमाशा बनाने से हम नहीं रोक सकते  |

ऐसे कृत्य व्यर्थ में शांत पानी में पत्थर फेंकना है |

ऐसे लोगों के लिए ही कबीर जी ने कहा था-
लोगन  राम खिलौना जाना |


Sep 15, 2016

अटक गए अच्छे दिन

  अटक गए अच्छे दिन 

बड़े लोग जब ७५वें वर्ष में प्रवेश करते हैं तो चमचे या घर वाले खाते-पीते हुए तो अमृत-महोत्सव की तैयारी करने लग जाते हैं |ज़िन्दगी भर के फोटो ढूँढ़े जाते हैं और लोगों से झूठे-सच्चे संस्मरण लिखवाए जाते हैं | जैसे ही हम भी पचहत्तरवें वर्ष में घुसे, बच्चों ने कहा- बाबा, अब आप भी फुल-बॉडी चेकअप करवा लो, कहीं अन्दर-अन्दर  राजनीतिक पार्टियों की तरह कुछ गड़बड़ न चल रही हो | खैर, आठ हजार रुपए झटककर जब डाक्टरों को कुछ नहीं मिला तो कह दिया- चिकनाई, चीनी और नमक कम खाया करें |

आजकल के बच्चे पता नहीं क्यों, दूध-दही की मलाई से परहेज करते हैं |इसका यह फायदा हुआ कि सारी मलाई हमारी चाय में शामिल हो जाया करती थी |कुछ हिस्सा तोताराम को भी मिल जाया करता था |लेकिन अब चाय में चीनी और दूध दोनों कम हो गए और मलाई का तो प्रश्न ही नहीं | चाय का घूँट मुँह में लेते ही तोताराम रुक गया और कई देर तक उस घूँट को मुँह में ही घुमाता रहा |

हमने छेड़ा- क्यों, कहीं अच्छे दिनों की तरह चाय गले के गुडगाँवा के ट्रेफिक में अटक तो नहीं गई  ? 

बोला- संवेदनशील लोगों के गले में तो साँस भी अटक जाती है | नाक में खुशबू अटक जाती है, स्मृतियाँ अटक जाती हैं | मैं तो यह सोच रहा हूँ कि कहाँ तो वे दिन थे जब चाय में फुल क्रीम मिल्क हुआ करता था, डबल चीनी और कभी-कभी मलाई भी |चाय में ही मिठाई का आनंद आ जाता था | 

और आज यह चाय ! जैसे सहाबुद्दीन राशन की लाइन में खड़ा हो |पतन की भी कोई सीमा होती है | संसार में तीन ही तो स्वाद होते हैं- घी, चीनी और नमक |तीनों ही लगभग बंद | इस संन्यास आश्रम में ये दिन भी देखने को लिखे थे |क्या बताऊँ बन्धु, सचमुच इस चाय का यह घूँट वास्तव में गले से नीचे नहीं उतर रहा है जैसे अडवानी के गले निदेशक मंडल की सदस्यता |

हमने कहा- तोताराम, जीवन में बहुत कुछ गले के नीचे उतारना पड़ता है |जब सारा जीवन सही-सलामत बीत जाए, कुर्सी पर रहते हुए मृत्यु हो जाए, अखबारों में पूरा कवरेज हो जाए, टी.वी. पर अंतिम यात्रा का आँखों देखा हाल प्रसारित हो जाए, भस्म देश के सभी तीर्थों में बिखरा दी जाए, अंतिम दर्शनों के लिए आए सभी विदेशी मेहमान चले जाएँ, पाठ्यपुस्तकों में पाठ शामिल हो जाए और जगह-जगह मूर्तियाँ स्थापित हो जाएँ तब समझना मोक्ष हो गई अन्यथा तो राजनीति में पता नहीं कब, आदमी की हालत कुत्ते से बदतर हो जाए | कब संसद में कुर्सी तो दूर, संसद के दरवाजे से भी दरबानों द्वारा भगा दिया जाए |

बोला- वैसे मेरा विश्वास है कि नेताओं का गला बहुत बड़ा और चौड़ा होता है उसमें से जाने क्या-क्या बह जाता है और गले के गटर से गंगा में होता हुआ जाने कब गंगासागर  पहुँच जाता है |लोग तो थूककर चाट लेते हैं और पकड़े जाने पर साफ़ कह देते हैं- क्यों, तुझे क्या परेशानी है ? मेरा थूक है |थूकने के बाद विचार बदल गया तो थूक को पुनः यथास्थान पहुँचा दिया तो क्या हुआ ? यह या तो मेरा व्यक्तिगत मामला है या फिर मेरे और पार्टी के बीच का |और कभी-कभी अंतरात्मा  का कहना भी तो मानना पड़ता है |

फिर भी अब देख ना, किस तरह 'अच्छे दिनों' का जुमला भाजपा के गले में हड्डी की तरह अटका हुआ है |गड़करी जैसे बात-बात में दो-से चार, चार से छः लेन हाई वे से ट्रेफिक को स्मूथ बना डालने वाले व्यक्ति के गले में भी यह जुमला फँसा हुआ है तो यदि मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति के गले में यादों की मलाई वाली चाय फँसी हुई है तो तुझे कुछ तो मदद करनी ही चाहिए |जब डाक्टर मुझे मना करेगा तब देखूँगा , फिलहाल मेरे लिए तो थोडा -सा दूध और चीनी मँगवा दे |

हमने कहा- तू भी क्या याद करेगा |छोड़ दूध और चीनी, ले पेड़े खा, हमारे समधी साहब ने भिजवाए हैं |




Sep 9, 2016

ताऊ चेकिंग करा ले

  ताऊ चेकिंग कराले 

हम तोताराम से उम्र में छः महिने बड़े हैं, एम.ए. में उसके सेकण्ड डिवीज़न है और हमारे फर्स्ट लेकिन यह सब  माथे  पर थोड़े  ही लिखा रहता है |महत्त्व तो जो दिखता है उसका होता है जैसे तोताराम को साइकल चलाना आता है, हमें नहीं | वैसे यदि सड़क खाली हो और कोई हमें बैठाकर धक्का दे दे तो हम भी थोड़ा बहुत  चला लेते हैं लेकिन उतरने में कभी-कभी गिर जाते हैं |

आज तो ऐरे-गैरे के पास बी.एम. डब्लू. मिल जाएगी लेकिन हमारी किशोरावस्था में तो गाँव में साइकल की ही अपनी शान हुआ करती थी | किसी किसी दूल्हे को ही दहेज़ में साइकल मिला करती थी | आज तोताराम अपने पोते की साइकल लेकर आया और बोला- आजा मास्टर, आज साइकल से हनुमान जी के दर्शन करने चलते हैं |

हमने कहा- तोताराम, केन्द्रीय विद्यालय संगठन ने केवल दिल्ली के ही कुछ बड़े अफसरों को सी.जी.एच.एस. की सुविधा दी है | अपने पास  भामाशाह कार्ड भी नहीं है |साइकल से तू भी गिरेगा और हमें भी गिराएगा |हड्डी टूट गई तो कम से कम दो महिने की पेंशन में माचिस लग जाएगी |हाँ, तेरा ज्यादा ही मन है तो साइकल का रौब जमाने के लिए साथ ले चल |हम तो बिलकुल नहीं बैठेंगे |मुलायम सिंह जी की तो मज़बूरी है |चुनाव चिह्न होने के कारण, और नहीं तो चुनावों में तो एक दो बार साइकल पर बैठना ही पड़ता है |हमारी कोई मज़बूरी नहीं है |

खैर, तोताराम साइकल का हैंडिल पकड़े-पकड़े चला और हम उसके साथ-साथ | 

जैसे ही जयपुर रोड़ पर चढ़े, चार-पाँच युवाओं ने रोक लिया, बोले- ताऊ, चेकिंग करवाले |

तोताराम ने कहा- क्या चेकिंग करवालें ? दिन है इसलिए लाईट की ज़रूरत नहीं है, घंटी बजती है, साइकल सवार को हेलमेट लगाना अनिवार्य नहीं होता | 

युवक बोले- चेकिंग तो करवानी है |

अब हमने कहा- क्यों भाई, साइकल की भी प्रदूषण चेकिंग होती है क्या ? तुझे ये ईंट भट्टे की तरह धुआँ उगलते, रोड़ टेक्स न देने वाले पत्थर ढोते ट्रेक्टर नहीं दिखते |

अब तक जो युवक हमारी आशा के विपरीत शालीन बने हुए थे, अपने असली रूप में आगए, बोले- ज्यादा चीं-चीं करोगे तो तुम्हारे थैले से गौमांस बरामद कर लेंगे |

इस ब्रह्मास्त्र के सामने तोताराम ढीला पड़ गया, बोला- भैया , साफ़-साफ़ बताओ क्या चेक करना चाहते हो ?हम तो आज बीस बरस में पहली बार साइकल लेकर हाई वे पर आए हैं |

अब तो युवक भी कुछ सामान्य हुए, बोले- देशभक्ति की चेकिंग कर रहे हैं | हमने पूछा - इसका क्या कोई शुगर या ब्लड प्रेशर नापने जैसा यंत्र होता है ? 

बोले- जो पूरा बन्दे मातरम गा देता है, भारत माता की जय तीन बार जोर-जोर से बोल देता है उसे हम क्लीन चिट दे देते हैं |फिर चाहे वह देश को बहुराष्ट्रीय या देशी कंपनियों को सारे जंगल और नदियाँ ही क्यों न बेच दे |

हमने कहा- हमने तो ज़िन्दगी भर स्कूल में गाया और बच्चों से वन्देमातरम और जन गण मन गवाया है लेकिन जो दो तिहाई सांसद जन गण मन तक नहीं गा सकते उनको कौन सर्टिफिकेट देता है ?

बोले- हमारी उन तक पहुँच नहीं है | हम तो सड़क छाप छुटभैये हैं |जो ऐसे ही शाम की दारू के पैसे जुटाते हैं |

खैर, आप जाओ लेकिन देशभक्ति जाँच कर्ताओं से बहस न करोगे तो सुख पाओगे | सबमें हम जितना धीरज नहीं होता |

हम दोनों हनुमान जी के दर्शन किए बिना ही लौट आए |

ठीक भी है जान है तो पेंशन है | जिसे भी देश भक्ति, विकास और सेवा का नशा चढ़ जाता है वह कुछ भी कर गुजरता है |पगलाए कुत्ते और हरियाए ऊँट किसी के कंट्रोल में नहीं आते |

Sep 8, 2016

शरारती बन्दर : संसद के अन्दर

 शरारती बन्दर : संसद के अन्दर 

समाचार पढ़ा- संसद की लाइब्रेरी में बन्दर घुसा, वहाँ उसने आधा घंटा बिताया | 

बन्दर वास्तव में बहुत खुराफाती जीव होता है | तभी कहा गया है- बन्दर की बला तबेले के सिर | करे कोई भरे कोई |और फिर यह भी कहा गया है कि बन्दर के हाथ में उस्तरा | पता नहीं क्या कर बैठे ? आजकल तो लोकतंत्र है और बंदरों के हाथ में उस्तरा ही क्या, देश आ गया है | पता नहीं, क्या कर बैठेंगे | भगवान ही मालिक है |

एक फिल्म थी सत्यकाम और उसका गाना था- आदमी है बन्दर, रोटी उठा के भागे, कपड़ा चुरा के भागे, कहलाए वो सिकंदर |

वाकई में ऐसा ही ज़माना आ गया है कि जो दूसरों का रोटी-कपड़ा चुरा कर भागता है वही बन्दर सिकंदर कहलाता है |बाकी अपनी मेहनत की कमाई खाने वाला तो आदमी होते हुए भी गधा ही कहलाता है जो जी.एस.टी. में अब बीस परसेंट टेक्स देगा और खाएँगे टेक्स न देने वाले और ये बन्दर |

जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, अब तक तो बन्दर रोटी-कपड़ा उठाकर भागते थे अब तो ये संसद में पहुँच गए हैं और कल तो एक बन्दर संसद की लाइब्रेरी में घुस गया और वहाँ कोई आधे घंटे रहा और फिर वापिस चला गया | बंदरों से निबटना तो रावण की सेना के वश में भी नहीं था तो संसद में कौन सूरमा भोपाली बैठे थे जो इस बन्दर से बचाते | वहाँ तो सब बुलेट प्रूफ शीशे के पीछे से दहाड़ने वाले वाक्वीर हैं | 
हमें तो यही चिंता हो रही है कि कहीं यह बन्दर संविधान में ही तो कोई खतरनाक संशोधन न कर गया हो |

बोला- संविधान को कौन पढ़ता है और कौन आचरण करता है संविधान के अनुसार ?
सब जाति-धर्म और परिवार-पार्टी से आगे सोच ही नहीं पाते |और पार्टी के बारे में भी तभी तक सोचते हैं जब तक पार्टी उन्हें देश का खज़ाना लूटने की छूट देती रहती है अन्यथा तो आत्मा को दूसरी पार्टी में जाने के लिए आवाज़ देने में कितनी देर लगती है |

हमने कहा- तोताराम फिर भी संविधान हमारी कुरान है, बाइबल है, गीता है | आज भी इसके बल पर ही यह देश टिका हुआ है | कभी न कभी समझ में आने पर और मौका लगने पर यह अनपढ़ जनता भी इन बंदरों को इनकी सही जगह दिखा देती है |

तोताराम कहने लगा- सच पूछे तो मुझे इन बंदरों से सबसे बड़ा डर यह लगता है कि ये देश का इतिहास बदलने में लगे हुए हैं |और जब किसी देश का इतिहास इस तरह से बदल दिया जाता है कि वह सबक लेने की चीज होने की बजाय एक दूसरे से लड़ने के बहाने खोजने लगता है तो फिर उस देश को नष्ट होने से कोई नहीं बचा सकता |पाकिस्तान को देखा नहीं- जिसका इतिहास सिन्धु घाटी की सभ्यता से शुरू होना चाहिए था वह मोहम्मद बिन कासिम से शुरू होता है |और फिर कट्टरता के जंगल में भटकता-भटकता शिया-सुन्नी, अहमदिया-मुहाजिर आदि में बँटकर अपने ही कपड़े फाड़ता और लहू-लुहान होता रहता है |यदि ये बन्दर इसी तर्ज़ पर इतिहास से छेड़छाड़ करते रहे तो भारत का हाल भी पाकिस्तान जैसा हो जाएगा | 

इन बंदरों से तो दुश्मनी और दोस्ती दोनों बुरी | बया ने इन्हें बरसात से बचने के लिए अपना घर बनाने की शिक्षा दी तो उसका बेचारे का घर ही तोड़ दिया |और जिस राजा ने इसे अपना सेवक नियुक्त किया उसके नाक पर बैठी मक्खी उड़ाने के लिए तलवार से बेचारे राजा की नाक ही काट डाली |

हमने कहा- तोताराम, अभी तक तो इस देश की जनता के पास अपनी साझी विरासत बची हुई है लेकिन जैसे रस्सी यदि बार-बार आती-जाती रहे तो पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं, अतिशय रगड़ करने से चन्दन से भी आग पैदा हो जाती है  | आशा करनी चाहिए कि चन्दन से आग पैदा होने से पहले ही जनता इन बंदरों को इनकी असली जगह दिखा देगी | 

बोला- लेकिन हनुमान जी भी तो बन्दर थे और बन्दर-भालुओं के बल पर ही तो राम ने रावण जैसे महाबली को हरा दिया था |

हमने कहा- लेकिन वे बन्दर समर्पित थे |ये तो ऐसे बदमाश बन्दर हैं जो लंका जाएँगे ही नहीं,  इधर-उधर घूमघाम कर आ जाएँगे और टी.ए.;डी.ए. का झूठा बिल बना देंगे |

















Sep 1, 2016

राजनीति का दाढ़ी-युग

  राजनीति का दाढ़ी-युग 



 बैंक का  कोई कर्मचारी नहीं चाहता कि उसे किसी ग्राहक की शक्ल दिखाई दे | वे तो चाहते हैं कि लोग ए.टी.एम.से पैसा निकालें, ईबैन्किंग अपनाएँ लेकिन हम जैसे पेंशनर उनका पीछा छोड़ने वाले नहीं हैं |तोताराम और हमने तय किया था कि ३१ अगस्त २०१६ को  अपने  पेंशन  खाते में आए हुए  सातवें  पे कमीशन का एरियर और नई पेंशन  राशि देखने  के लिए  बैंक में सबसे पहले पहुँचेंगे  | हालाँकि पिछले चार  दिनों  से हमारा तोताराम से संपर्क नहीं हुआ  लेकिन वादे के अनुसार तोताराम ठीक नौ बजे हाज़िर होगया |

यह क्या  ? आज का  दिन तो पेंशनरों के लिए  १५ अगस्त से कम नहीं मगर तोताराम तीन मिलीमीटर बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ प्रकट हुआ |पुरानी  फिल्मों के गम में डूबे हुए नायक जैसी छवि  हो रही थी |बस, हाथ में एक बोतल  या जाम की कमी थी |

आते  ही  बोला-  देख,  कैसा  लग  रहा हूँ ?

हमने कहा- समझ ले, लखनऊ लग रहा है ?

बोला- यह क्या उत्तर है ?

हमने कहा- पटना में नीतीश कुमार जी हैं जिनकी  दाढ़ी दो मिलीमीटर की है और दिल्ली में मोदी जी हैं जिनकी दाढ़ी पाँच मिलीमीटर लम्बी है |और तेरी दाढ़ी तीन मिलीमीटर तो पटना और दिल्ली के  बीच लखनऊ हुआ कि नहीं ? लेकिन यह बता, आज ख़ुशी के मौके पर दाढ़ी बढ़ाकर यह रोनी सूरत क्यों बना रखी है ? 

बोला- पहले की बात और थी जब कैसे भी काम चल जाता था |अब ज़माना बहुत आगे बढ़ गया है |आजकल तंत्र-मन्त्र तथा छल-छद्म ही नहीं बल्कि और भी कई तरह के नाटक करने पड़ते हैं |पहले पटेल, नेहरू,मोरारजी, चरणसिंह, राजीव गाँधी, देवे गौड़ा, अटल जी आदि  का  क्लीनशेव्ड से ही  का चल गया  | राजेंद्र बाबू, गोविन्दवल्लभ पन्त, जगजीवन राम, कामराज आदि का केवल  मूँछों से ही काम चल गया लेकिन आजकल हर काम के विशेषज्ञ हैं | वे बताएँगे कि आप दाढ़ी रखें, दाढ़ी-मूँछ दोनों रखें या क्लीन शेव्ड रहें |  पहले नरेन्द्र भाई के, फिर नीतीश कुमार के और अब राहुल गाँधी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत कुमार ने तय किया है कि उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों में राहुल गाँधी को दाढ़ी में प्रोजेक्ट किया जाएगा | 

इसी शताब्दी के शुरू में दाढ़ी वाले मनमोहन सिंह जी दस साल प्रधान मंत्री रहे |उनके बाद मोदी जी आए जो लगता है कम से कम अगले बीस-तीस साल तो प्रधान मंत्री रहेंगे ही |अमित शाह भाजपा के अतुलित बलशाली अध्यक्ष हैं |नीतीश कुमार की दाढ़ी के बल पर ही बिहार में अमित शाह की दाल नहीं गली | बाल ठाकरे जी को अपने उत्तर काल में दाढ़ी के महत्त्व का अहसास हुआ और उन्होंने भी दाढ़ी रखी और एक राज्य को राष्ट्र ही नहीं, महाराष्ट्र बना दिया और आजीवन शेर की तरह दहाड़ते रहे | अमिताभ बच्चन इस उम्र में भी जवानों से ज्यादा फ़िल्में कर रहे हैं, कैसे |दाढ़ी के बल पर |रामविलास पासवान दाढ़ी के बल पर ही हर मंत्रिमंडल में पाए जाते हैं |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, कुछ भी हो दाढ़ी में आदमी कुछ उदास-सा नहीं लगता ?

बोला- उदास नहीं, बल्कि व्यक्ति अधिक गंभीर और अधिक जिम्मेदार लगता है | लगता है देश के विकास के लिए चिंतित है या देश के विकास में इतना मग्न है कि दाढ़ी बनाने तक का समय नहीं मिलता या इतना देश भक्त है कि देश का धन दाढ़ी बनाने जैसे फालतू कामों में खर्च नहीं करता |और फिर दाढ़ी रखने से आदमी का चेहरा भरा-भरा लगता है |यदि दाढ़ी को ढंग से सेट करवा लो तो एक गुठली जैसे चेहरे वाले का भी शेर जैसा लुक आ जाता है | बहुत से शानदार व्यक्तित्त्व वालों की यदि दाढ़ियाँ मुंडवा दो तो चेहरा चूसी हुई आम की गुठली जैसा निकल आएगा |

दाढ़ी का अपना रौब है | यह भारतीय राजनीति का दाढ़ी-युग है |

हमने कहा- लेकिन दुनिया में बहुत से बड़े लोग हुए हैं जिन्होंने बिना दाढ़ी के ही बड़े-बड़े काम कर दिए | वैसे तोताराम, एक बात बता, आजकल के दाढ़ी-युग के इन कलाकारों की दाढ़ियाँ बढ़ती क्यों नहीं ? हमेशा उतनी की उतनी ही रहती है |

बोला- यह सबसे कठिन दाढ़ी है |क्लीन शेव वाला बिना शीशा देखे ही आँख मीचकर दाढ़ी बना लेता है |चला दी घास काटने वाली मशीन |और पूरी दाढ़ी रखने वाले को तो कुछ सोचने की ज़रूरत वैसे ही नहीं |बारानी भूमि है, जो होता रहे सो ठीक है |सबसे कठिन है यह दो-पाँच मिलीमीटर वाली दाढ़ी | दिन भर में एक मिलीमीटर बढ़ती और उसे काटने के लिए एक विशेष नाई रखा जाता है |नेताजी सोते रहते हैं और नाई रात भर नाप-नापकर हर बाल को एक-एक मिलीमीटर छोटा करता रहता है |

तभी तुझे पता है फ़्रांस के राष्ट्रपति के बालों की सँभाल के लिए एक लाख रुपए महीने का एक विशेष नाई रखा हुआ है | इनका नाई का खर्चा कितना है,पता नहीं | 

हमने कहा- तो फिर क्यों यह राजनीतिक दाढ़ी की बला पालता है |इतने खर्च लायक पेंशन नहीं बढ़ी है सातवें पे कमीशन में |

हमने उसके हाथ में रेजर देते हुए कहा- ले, साफ कर ले, फिर ज़रा ढंग से चलते हैं पे कमीशन के एरियर की एंट्री करवाने |