Feb 28, 2020

भाभी, ज़रा फीता तो लाना



भाभी, ज़रा फीता तो लाना 


जैसे मौसम खराब होने की स्थिति में ट्रंप साहब के अहमदाबाद से आगरा जाते हुए जयपुर उतरने की रिमोट पोसिबिलिटी (दूरस्थ संभावना) की जा रही थी वैसे ही तोताराम को आने में थोड़ा विलंब होने पर हमने सोचा, शायद दिल्ली में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए प्रार्थना करने के लिए हनुमान जी के मंदिर चला गया होगा |अकेले ही चाय पीने वाले थे कि बड़े निक्कर और ओछी पेंट के बीच की कोई चीज पहने पाँच फुट की एक कद्दावर, साँवली आकृति प्रकट हुई |यह पहनावा अमरीका का आविष्कार है जिसे गरीब की राज कपूर टाइप पेंट या धनवान का निक्कर कहा जा सकता है |

आकृति बोली तो पता चला कि इस सिक्स पेक बॉडी में तोताराम है |बोला- भाभी, अन्दर से फीता तो लाना | लगता है, सीना कम से कम दो इंच तो बढ़ ही गया है |

हमने उसे कोंचा- लगता है तुझे कहीं का राज्यपाल बना दिया गया है या भाजपा ने  राज्यसभा का टिकट दे दिया ?यदि प्रधानमंत्री बन गया होता तो छप्पन नहीं तो पचास इंच का तो हो ही गया होता तेरा सीना |

बोला- हम ऐसे छोटे-मोटे पदों पर फूलने वाले नहीं हैं |हम तो माँ भारती के विनम्र सेवक हैं |आज हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी को जो गौरव प्राप्त हुआ है वह अपूर्व हैं, अद्भुत है |कांग्रेस के छल कपट के कारण आज तक हिंदी को उसका प्राप्य नहीं मिला |मिलता भी कैसे ? नेहरू मन से हिन्दू, भारतीय थे ही कहाँ ? वे तो अंग्रेजी संस्कृति के दीवाने थे |सारी शिक्षा-दीक्षा इंग्लैण्ड में ही हुई |

हमने कहा- इससे क्या फर्क पड़ता है ? गाँधी जी, पटेल, सावरकर, सुभाष आदि सभी इंग्लैण्ड में पढ़े हुए थे |खैर, ऐसा क्या हुआ जो इतना खुश है ? क्या देश के सभी स्कूलों में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा कर दिया है ? क्या कोर्ट के सभी काम भारतीय भाषाओं में होने लगे हैं ?

बोला- ऐसा तो कुछ नहीं हुआ लेकिन पता चला है कि ट्रंप ने भारत की धरती पर अपने पवित्र चरण धरने के पूर्व दो बार हिंदी में ट्वीट किया है |


हम भारत आने के लिए तत्पर हैं । हम रास्ते में हैँ, कुछ ही घंटों में हम सबसे मिलेंगे!

हमने कहा- आजकल तो ऐसे-ऐसे सोफ्टवेयर आने लगे हैं जो किसी भी भाषा का  विश्व की किसी भी भाषा में अनुवाद कर सकते हैं |अब मोदी जी हिंदी में बोलते हैं और ट्रंप को अंग्रेजी में सुनता है |तभी तो जब मोदी जी ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' में हिंदी में बोले तो ट्रंप को अंग्रेजी में सुना जिसे सुनकर उन्होंने मोदी जी की अंग्रेजी की प्रशंसा भी कर  दी | 

बोला- कुछ भी हो लेकिन ट्रंप को इतना तो ख्याल आया कि हिंदी में ट्वीट करें |वरना वे स्वाहिली भाषा में ट्वीट कर देते तो क्या अहमदाबाद वाले 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम में कोई कमी कर देते ? और फिर तुझे पता होना चाहिए कि उन्होंने सचिन, विराट कोहली, विवेकानंद आदि के नाम भी लिए |हालाँकि उन्होंने विवेकानंद का नाम इस तरह लिया जैसे राहुल गाँधी ने बंगलुरु में 'विश्वेश्वरैय्या' का नाम लिया था |लेकिन मोदी जी की शालीनता देख कि उन्होंने ट्रंप का मज़ाक नहीं उड़ाया क्योंकि दोनों ही लोकतंत्र का सम्मान करने वाले महान नेता हैं |

हमने कहा- अब तो केन्द्रीय हिंदी संस्थान आगरा को चाहिए कि ट्रंप को 'प्रवासी हिंदी साहित्यसेवी सम्मान' दे ही दे |जैसे पुर्तगाल के एंटोनियो गुतेरस को बंगलुरु में 'प्रवासी रत्न सम्मान' से नवाज़ा गया था |

बोला- सरकारी सम्मान के लिए सरकार के अपने-अपने गणित होते हैं |हाँ, यदि ट्रंप सारा खर्च वहन करें तो अपने 'तोता-मैना अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सेवी सम्मान समिति' की और से 'विश्व हिंदी रत्न' दिलवा सकते हैं |

हमने कहा- ट्रंप गुजराती गाँधी से भी बड़ा बनिया है जो मुफ्त में सम्मान भी करवाता है और जाते-जाते तीन बिलियन डालर का माल भी बेच जाता है |और तेरे जैसे 'मुंगेरी लालों' को खुश भी कर जाते हैं | अब फुलाए फिर अपना तीस इंच का सीना |कहीं ज्यादा मत फुला लेना लेना नहीं तो मेंढकी की तरह पेट फट जाएगा |













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Feb 24, 2020

हाउडी मोदी' की तरह ऐतिहासिक इवेंट 'नमस्‍ते ट्रंप'



हाउडी मोदी' की तरह ऐतिहासिक इवेंट 'नमस्‍ते ट्रंप' 

 

हम तोताराम का इंतज़ार कर रहे थे लेकिन उसकी बजाय उसका फोन आया, बोला- पहुँच गए?
जब सामने वाला कोई प्रसंग-सन्दर्भ न दे तो पूछने की क्या ज़रूरत? हमने भी उसी तरह उत्तर दे दिया- पहुँचे हुए हैं?
बोलाः क्या ? पहुँचे हुए हैं? कब पहुँचे?
बोला- तू मेरी बात समझ नहीं रहा है। मैं ट्रंप साहब के अहमदाबाद पहुँचने की बात कर रहा हूँ।
हमने उत्तर दिया: हमें मालूम है। आज भारत के १३५ करोड़ लोग और क्या पूछ सकते हैं? इस समय देश के दिल, दिमाग और मन में ट्रंप के सिवा और क्या हो सकता है? कोई बेरोजगारी, सीएए, एनआरसी, महंगाई, जीडीपी, शाहीन बाग आदि की बात नहीं कर रहा है। करोड़ों लोग सरदार पटेल हवाई अड्डे से मोटेरा स्टेडियम के रास्ते में दर्शन के लिए अभी से कट्टा बिछाकर बैठे हुए हैं। हो सकता है अहमदाबाद में गरमी अधिक हो इसलिए बहुत से लोग अपने हाथों में ट्रंप को झलने के लिए हाथ वाला पंखा भी लेकर आए हुए हैं। जैसे आजकल माननीय किसी मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो पुजारी उनकी कृपा पाने के लिए भगवान को मंदिर के गेट पर ही ले आते हैं वैसे ही हो सकता है ट्रंप को विष्णु का अवतार मानाने वालों ने कहीं गाँधी जी को ही साबरमती आश्रम से उठा कर लाइन में न लगा दिया हो।
बोलाः लेकिन कार्यक्रम तो २४ फरवरी को साढ़े ग्यारह-बारहा बजे दोपहर का था।
हमने कहाः लेकिन बड़े लोग सुरक्षा की दृष्टि से किसी को सही कार्यक्रम नहीं बताते। हो सकता है लोगों को २४ का बताकर २३ को ही पहुंचे गए हों।
बोलाः लेकिन मेरी सूचना के अनुसार तो मौसम खराब होने की हालत में वे जयपुर भी उतर सकते हैं। कहाँ पहुंचे, कब पहुंचे?
हमने कहाः हमारा कहने का मतलब था कि मेज़बान और मेहमान दोनों ही पहुंचे हुए हैं?
बोलाः तुझे पता है, ‘पहुंचे हुए’ का मतलब क्या होता है? कहीं मोदी जी बुरा मान गए तो? वैसे वे तो कुछ नहीं कहेंगे लेकिन भक्तों का कोई भरोसा नहीं।
हमने कहाः तुम हमारी बात नहीं समझे। मोदी जी के मन में ट्रंप और ट्रंप के मन में मोदी जी २०१६ से ही पहुंचे हुए हैं।
बोलाः तो ओबामा जी का क्या हुआ?
हमने कहाः अब ओबामा जी से क्या मतलब। यदि २०२० में ट्रंप आगए तो ठीक, नहीं तो किसी और को दिल में बसा लेंगे। राजनीति का यही मतलब है। व्यक्ति नहीं, मतलब महत्त्वपूर्ण होता है। जैसे अटल जी के मन्दिर का शिलान्यास करके लोग अब उसमें मोदी जी की मूर्ति स्थापित कर चुके हैं। सब जानते हैं इसलिए कोई ऐसी बातों का बुरा नहीं मनाता।
बोलाः वैसे मास्टर, तेरा मन क्या कहता है, इतने स्वागत से तो पत्थर भी पिघल जाता है। ज़रूर ट्रंप कुछ बड़ा करके जाएंगे।
हमने कहाः ये पहाड़ इतने चिकने नहीं है। यदि होते तो कुत्ते कभी का चाट जाते |हाँ, एक संभावना ज़रूर है।
बोलाः क्या?
हमने कहाः ‘हाउ डी मोदी’ में जैसे ट्रंप ने मोदी जी को ‘भारत का बाप’ बता दिया था वैसे ही ‘नमस्ते ट्रंप’ में मोदी जी उन्हें ‘अमरीका का बाप’ बता देंगे। हिसाब-किताब बराबर। बाकी तो जनता के पैसे पर दंड पेलना है। वहाँ भी भारत मूल के लोगों का पैसा लगा और यहाँ भी तेरे-मेरे टेक्स का पैसा लगना है।


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2020-02-24 मेलानिया स्कूल में क्या करेंगी



मेलानिया स्कूल में क्या करेंगी 


हमने पूछा- तोताराम, ये मेलानिया ट्रंप स्कूल में क्या करेंगी ?

बोला-  वही करेंगी जो स्कूलों में मुख्य अतिथि बनकर आने वाले अधिकारी की पत्नी करती है- पुरस्कर वितरण | इनसे पहले ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा भी तो दिल्ली के एक स्कूल में गई थीं |मोदी जी और ट्रंप की गूढ़ गहन बातों से मेलानिया को क्या मतलब ? मोदी जी की पत्नी होती तो शायद उसके साथ कोई गुजराती रेसिपी शेयर कर लेतीं लेकिन वह तो संभव नहीं |इसलिए समय बिताने के लिए कुछ कार्यक्रम तो होना चाहिए कि नहीं ?भारत में स्कूल तुलनात्मक रूप से सुरक्षित जगह होती है, अमरीका की बात और है |

हमने पूछा- वे स्कूल में क्या करेंगी-देखेंगी ?

बोला- वे दिल्ली के सरकारी स्कूलों की 'हैप्पीनेस क्लास' देखना चाहती हैं ?

हमने कहा-वास्तव में हैप्पीनेस इस दुनिया में दुर्लभ हो चुकी है जिसे देखने के लिए ट्रंप की पत्नी चलकर दिल्ली आ रही है |इससे यह तो सिद्ध हुआ कि केजरीवाल के शासन में अभी बच्चों और वह भी सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए हैप्पीनेस की कुछ गुंजाइश बची हुई है |यदि हैप्पी नहीं हैं तो भी बच्चों को उनके सामने हैप्पी होकर दिखाना पड़ेगा जैसे कि दीवार बनाकर अहमदाबाद को झुग्गी विहीन दिखाया जा रहा है |

बोला- इसमें क्या बुराई है ? सभी ऐसा ही करते हैं |कौन अपनी फटी बनियान और गँधाते मौजे मेहमान के सामने बरामदे में सुखाएगा ? ट्रंप को क्या पता नहीं, जब लोसएंजिलस में ओलम्पिक हुए थे तो फ्लाई ओवरों के नीचे सोने वाले और भिखारियों को ट्रकों में भरकर दूर छोड़ दिया गया था जिससे कि अमरीका की गरीबी छुपी रहे | अमरीका में भी करोड़ों घरहीन और बेकार हैं |

हमने फिर पूछा- लेकिन मेलानिया जब दिल्ली के स्कूल में  जा रही हैं तो दिल्ली के  मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को वहाँ क्यों नहीं बुलाया गया ?

बोला- इसमें क्या है ? गुजरात के एक कार्यक्रम में वहाँ के मुख्यमंत्री को भी तो नहीं बुलाया |

हमने कहा- लेकिन योगी जी तो ताज-दर्शन के समय ट्रंप के साथ उपस्थित होंगे |

बोला- लेकिन केजरीवाल के साथ एक समस्या है |वह आतंकवादी है और तुझे पता होना चाहिए कि अमरीका को आतंकवाद से सख्त नफ़रत है |क्या पता, बच्चे  केजरीवाल और सिसोदिया को देखकर घबरा जाएं |ऐसे में पता नहीं, किसी और का कुछ बिगड़ेगा या नहीं लेकिन मोदी जी की चमत्कारी छवि को तो धक्का लग सकता है ना |

हमने कहा- लेकिन केजरीवाल न तो मुसलमान है और न ही उसके दाढ़ी है फिर वह आतंकवादी कैसे हुआ ? क्या हनुमान का भक्त आतंकवादी होता है ? वह बेचारा तो खुद ही राजनीति के आतंकवादियों से अपनी रक्षा के लिए हनुमान चालीसा जपता रहा है |

बोला- है केजरीवाल आतंकवादी क्योंकि प्रवेश वर्मा और प्रकाश जावडेकर ने क्या बिना किसी प्रमाण के ही कह दिया ? जिससे दिल्ली की केंद्र में सत्ता पर काबिज़ पार्टी आतंकित हो उसके आतंकवादी होने में क्या शक है |

हमने कहा- फिर भी केजरीवाल को बुलाना तो चाहिए क्योंकि मेलानिया ने तो अब तक ओसामा जैसे दढ़ियल आतंकवादी का फोटो ही देखा होगा |अब उन्हें एक ऐसा आतंकवादी भी देखना चाहिए जो पढ़ा-लिखा, विनम्र, हनुमान भक्त, जनता का दुलारा है फिर भले ही उससे राजनीति के चाणक्य ही क्यों न आतंकित हों |

बोला- वैसे यदि कोई सच्चा देशभक्त और अनुशासित स्कूल ही दिखाना हो तो क्यों न किसी 'आदर्श विद्यालय' में ले जाएं लेकिन वहाँ दो समस्याएँ हैं |एक- सरकारी स्कूलों के मास्टरों के वेतन के आधे से भी कम पर काम करने वाले अध्यापकों के चेहरों पर कहाँ से हैप्पीनेस मिलेगी |दूसरे कहीं बच्चे भारत के पुरातन विज्ञान के अनुसार कुछ बताने लगे तो बड़ी भद्द पिट जाएगी | 

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Feb 21, 2020

पश्चाताप की भाषा



पश्चाताप की भाषा 


आज दोपहर में अरविन्द केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली |कोई भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनने के बाद किसी पार्टी का नहीं रह जाता बल्कि पूरे प्रदेश या देश का हो जाता है | यह बात और है कि कुछ लोग राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बनने के बाद भी अपनी परिवारी-पार्टी से मुक्त नहीं हो पाते |हो भी कैसे सकते हैं क्योंकि उन्हें यह पद अब्दुल कलाम की तरह अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा के बल पर नहीं बल्कि पार्टी के शक्तिशाली शीर्ष नेतृत्त्व की कृपा से मिला हुआ होता है |भाजपा का कोई भी विधायक समारोह में नहीं पहुंचा |यह घृणा और ईर्ष्या का कैसा भद्दा प्रदर्शन है ? सामान्य शिष्टाचार का भी उल्लंघन है |ऐसे विधायकों से जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका की कोई आशा नहीं की जा सकती |

तोताराम भी हमारे साथ कार्यक्रम देख रहा था |बोला- कैसा लग रहा है ?

हमने कहा- बहुत अच्छा लग रहा है |घृणा, बड़बोलापन और अहंकार पराजित हुआ तथा सादगी, विनम्रता और सकारात्मकता की जीत हुई |

बोला- लेकिन तुम भाजपा को को दोष नहीं  दे सकते |चुनाव में तो कुछ ऐसा-वैसा हो ही जाता है |और फिर अमित जी ने कह तो दिया- हो सकता है पार्टी नेताओं द्वारा दिए गए नफरत भरे बयानों के कारण भाजपा को चुनावों में नुकसान उठाना पड़ा हो |

हमने कहा- क्यों हो जाता है चुनाव में ऐसा-वैसा कुछ ? चुनाव क्या कोई युद्ध है या नशे में किया गया कुकृत्य है ? होली में भी यौन कुंठाओं की परोक्ष अभिव्यक्ति हो जाती है लेकिन तब भी क्या आदमी माँ-बहिन को भूल जाता है ? और यह माफ़ी ?  यह तो उसी प्रकार माफ़ी मांगना हुआ जैसे नमकहराम फिल्म में अमिताभ बच्चन राजेश खन्ना से माफ़ी मांगता है |यदि दिल्ली चुनावों में दिए गए बयान अनुचित थे तो तत्काल अमित जी उन्हें रोकते, अपने बदजुबान साथियों की ओर से माफ़ी माँगते | तब किसी प्रकार का कोई घटिया बयान चुनाव में सुनाई नहीं देता |लेकिन ऐसा नहीं हुआ |यहाँ भी उनका आशय यह नहीं है कि ऐसे विघटनकारी, विकृत और वैमनस्य से भरपूर शब्दों का प्रयोग गलत था |यहाँ वे केवल चुनावी नुकसान की बात कर रहे हैं और कटु शब्दों के लिए नहीं, चुनाव हार जाने से दुखी लग रहे हैं | अपशब्दों के लिए किसी प्रकार की लज्जा या पछतावे वाली बात नज़र नहीं आती |

बोला- चलो कोई बात नहीं, उनके सहयोगी दल के रामविलास पासवान ने तो कहा है कि इस वर्ष के अंत में होने वाले बिहार चुनावों में जुबान पर नियंत्रण रखना चाहिए |

हमने कहा- वे भी मन से घृणा समाप्त करने की बात नहीं सोचते-करते |यहाँ भी जीत हार का गणित ही मुख्य है, शालीनता नहीं |कल्पना कर .......

बोला- अब अगले पांच साल तक कल्पना करने और अरविन्द केजरीवाल को काम नहीं करने देने पर ही ध्यान केन्द्रित करना है |फिर भी बता क्या कल्पना करूं ?

हमने कहा- कल्पना कर, भाजपा को सभी सत्तर सीटें मिल जातीं तो अमित शाह क्या कहते-समझते ? अनुराग ठाकुर को उनकी दो महाकाव्यात्मक पंक्तियों के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार घोषित कर दिया गया होता | और राष्ट्रहित में उन पंक्तियों के आयाम को विस्तृत करते हुए, तुक सुधारकर कुछ इस प्रकार संशोधित कर दिया गया होता-

सभी विपक्ष वालों को
असहमत होने वालों को 
गोली मारो सालों को   

अब तक तो शाहीन बाग़ से लोगों को डंडे मारकर भगा दिया गया होता और आज से ही चाहे जिस को सी ए ए के नाम पर कंसंट्रेशन कैम्प में डाल दिया गया होता |और जहां तक भाषा का सवाल है तो वह माँ-बहन पर आ गई होती |

पश्चाताप और प्रायश्चित की भाषा मन से निकलती है मस्तिष्क से नहीं |  














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Feb 18, 2020

राजनीति में हीनोपमा अलंकार

 राजनीति में हीनोपमा अलंकार


गिरिराज सिंह जी

गिरिराज सिंह (फाइल फोटो)हम नेता नहीं हैं जो किसी को भी, कभी भी आधा-अधूरा जैसे मन चाहें उद्धृत कर दें |हम तो मास्टर हैं और वह भी हिंदी के |छंद-अलंकार से अधिक हमारे पास क्या है ?  सही पूछें तो नेताओं जैसे ढंग के दो जोड़ी कुरते पायजामे भी नहीं हैं |दोनों हाथों में चार-चार अंगूठियों की तो बात ही क्या करना ? अकेले छंद से बात नहीं बनती जब तक उसके साथ 'छल' न हो |जैसे साहित्य में छंद-अलंकार होते हैं वैसे ही राजनीति में छल-छंद होते हैं |

वैसे हम आपको पात्र लिखने से पहले अतिरिक्त सावधानी बरत रहे हैं और उसका कारण शुरूमें ही आपके नाम के अक्षरों की संख्या और उसमें अवस्थित कई बड़ी-बड़ी संज्ञाएँ | हम तो साढ़े पाँच फुट के दुबले-पतले व्यक्ति हैं और कहाँ आप शुरू ही 'गिरि' (पहाड़ ) से होते हैं |बात यहाँ तक ही नहीं ठहरती |गिरि ही नहीं गिरि के भी राज |हिमालय |भारत की रक्षा करने वाला पर्वतराज | और भाई साहब ऊपर से 'सिंह' (जंगल का राजा ) हो सकता इसी कारण आपको मोदी जी ने पशुपालन विभाग दिया है |उसमें पता नहीं आप पशुओं की रक्षा करते हैं या मनुष्यों को पशु बनाते हैं |लेकिन जहां तक दुर्दशा की बात है तो गाय से लेकर गधे तक सबका एक जैसा हाल है |हाँ, नर-पशु मज़े में हैं फिर चाहे वे राजनीति में हों या व्यापार में या संसद से सड़क और सड़क से संसद तक छुट्टे घूमने वाले सांड |

हम ही क्या सारा देश आपके बयानों से भलीभाँति परिचित है |यह तो गनीमत है कि लोगों में थोड़ी बहुत अकल बची है अन्यथा या तो अपना सिर फोड़ लें या सामने वाले का |आप तो जनता की पहुँच से दूर हैं |शायद नेताओं को इसीलिए विशेष सुरक्षा प्रदान की जाती है |

आपका ताज़ा बयान है कि देवबंद आतंकवाद की गंगोत्री है |अब कहाँ तो आतंकवाद और कहाँ गंगा ? आप तो गंगाजल में शराब मिला रहे हैं |ठीक है उपमाओं-रूपकों और प्रतीकों से भाषा और बात प्रभावशाली  हो जाती है लेकिन सही प्रयोग के बिना बात का सत्यानाश हो जाता है |तभी कहा गया है कि शूद्र अर्थात अज्ञानी या अधकचरे ज्ञान वाले को वेद नहीं सुनाने चाहियें नहीं तो अर्थ का अनर्थ कर डालेगा |आपने भी वैसा ही किया है |आजकल सारे देश में अपनी राष्ट्रवादी पार्टी की देव वाणी तुल्य अनुप्रासात्मक शब्दावली राजनीति में इस कदर प्रवेश कर गई है कि लोग गंगा, गाय, गीता, गाँधी के साथ गोडसे और गू तक जोड़ देते हैं |आप ने भी वही कर दिया |

तो बात अपन ने छंद-अलंकर से शुरू की थी |अलंकार दो प्रकार के होते हैं- अर्थालंकार और शब्दालंकार |अभी हम जिस गोडसे, गू अदि की चर्चा कर रहे थे वह है शब्दालंकार |मतलब की बिना अर्थ जाने भी उसका मज़ा लिया जा सकता है जैसे कि मोदी जी के नारों का |लगता है अनुप्रास से सजी कोई कविता-धारा बह रही है- स्वच्छ भारत : स्वच्छ भारत;  सबका साथ : सबका विकास, हर हर महादेव की तरह घर-घर मोदी, अबकी बार : मोदी सरकार |

जहां तक अलंकार दोष की बात है तो वह सभी में मिल जाता है |जोश में ऐसा ही होता है |नायिका भी नायक के आने का समाचार सुनकर उत्वाली में चेहरे पर महावार और पैरों में काजल लगा लेती है |मोदी जी का १५ मार्च २०१९ का वह मंत्र-वाक्य देखिए-

चुनाव यज्ञ होता है |
क्या कहें ? कहाँ यज्ञ और कहाँ चुनाव जिसमें सभी नैतिक मूल्यों की बलि दे दी जाती है |एक से एक गर्हित कर्म चुनाव जीतने के लिए किए जाते हैं |किसी अच्छी चीज की साथ तुलना या समानता में कोई घटिया चीज (उपमान .उपमेय ) लगा देने से जो विकार पैदा होता है उसे 'हीनोपमा' कहते हैं |इसी तरह केशवदास ने एक जगह समानधर्मिता के कारण राम के साथ उल्लू का उपमान लगा दिया- वे कहते हैं राम दूसरों की संपत्ति को उसी प्रकार देखना तक पसंद नहीं करते जैसे उल्लू दिन की सम्पदा (रोशनी) को |आपने भी यही गलती कर दी है जब आप कहते हैं कि देवबंद आतंकवाद की गंगोत्री है |

अरे भाई, कोई और उपमा दे सकते थे |कह सकते थे- देवबंद आतंकवाद का शराबखाना है |क्या गंगाजल का पान किसी को कट्टर या उन्मादी बनाता है ? वह तो मन-प्राण को शीतल करता है |यदि इस उपमा में इस समय गन्दा नाला बन चुकी गंगा आपके दिमाग में हो तो बात ठीक है |लेकिन गंगोत्री में तो अब भी गंगाजल अमृत समान है |

इतने पर भी गलती रह ही जाती है क्योंकि देवबंद से पहले 'देव' शब्द आता है |देवों में तो आतंकवाद जैसी बात नहीं होनी चाहिए |इन्द्र लम्पट था और सदैव अपने सिंहासन के लिए खतरा बन सकने वाले के साथ छल-छद्म करता था पर आतंकवाद नहीं फैलाता था |योगी जी को चाहिए कि कम से कम देवबंद का नाम तो ठीक कर दें क्योंकि जब आपके न चाहने और  'देवबंद' नाम होते हुए भी जब वहाँ आतंकवाद की गंगोत्री स्थित है तो क्यों न उसका नाम तो कम से कम 'दानव बंद' रखा ही जा सकता है |कम से कम लोग नाम से भ्रमित तो नहों होंगे |










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Feb 15, 2020

भक्तों से भयभीत भगवान



 भक्तों से भयभीत भगवान 


आदरणीय कैलाश जी 


आज नेट पर केजरीवाल के बारे में आपकी नेक सलाह और सद्वचनों के साथ आपका फोटो भी देखा |सच में आनंद आगया |बिलकुल पेशेवर कथावाचक लग रहे हैं |वैसे यदि पेशेवर कथावाचक होते तो शायद जिस पद पर हैं उससे भी बड़ा कोई पद मिल सकता था |योगी जी को ही देख लीजिए, महंताई का कितना बड़ा पुरस्कार ! कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा |अब यह बात और है कि पिछले साढ़े आठ महीनों में जहां-जहां भी आप जैसे संतों और महंतों के चरण पड़े लगातार पार्टी का बंटाढार ही होता आ रहा है |

अब आपका प्रेम केजरीवाल पर प्रकट हो रहा है |इस प्रेम का पता नहीं क्या कारण है ?वैसे जब केजरीवाल नामांकन भरने गया था तो हनुमान भक्ति का नाटक नहीं किया था और न ही वाराणसी की तरह सारे शहर की सांस रोक दी थी |हमें नेहरू जी, इंदिरा जी, राजीव, मनमोहन सिंह, सोनिया आदि का नामांकन याद है और राजीव, संजय, प्रियंका की शादियाँ सब याद हैं |किसी ने आजकल के नामांकनों की तरह नाटक नहीं किया |सब कुछ शांति और शालीनता से हुआ |




अब भी जब तरह-तरह के भूत पिशाच कभी आतंकवादी, तो कभी पाकिस्तान का समर्थक कहते हुए बालक केजरीवाल के पीछे पड़ गए तब उसके पास इनसे निबटने के लिए हनुमान चालीसा के अतिरिक्त और उपाय ही क्या था ? और देखिए,  हनुमान जी की कृपा से भूत पिशाचों से उसे ही नहीं दिल्ली की जनता को भी मुक्ति मिल गई | 

NBT

आप इस फोटो में शायद रामचरितमानस बांच रहे हैं |अच्छा है, कभी मानस को गुन भी लिया कीजिए |राम ने कभी रावण के प्रति भी अपशब्द नहीं कहे लेकिन दिल्ली के चुनावों में तथाकथित 'राष्ट्रीय' सेवकों ने जिस प्रकार की असंसदीय, अलोकतांत्रिक और अभद्र भाषा का प्रयोग किया उससे लगता है कि आपकी यह सलाह भी कोई 'नेकसलाह' नहीं है |

जिस प्रकार अपने यहाँ तेतीस करोड़ देवी देवता हैं उनमें कोई किसी को भी पूजता है तो क्या फर्क पड़ता है ? हरि को भजे सो हरि का होई |हमें तो राम और हनुमान में कोई फर्क नज़र नहीं आता |वैसे यदि आप कुछ पढ़ें तो पता चलेगा कि उस काल में यज्ञों में सभी देवताओं को भाग नहीं मिलता था |जब उमा अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में गई तो वहाँ उसने शिव का 'यज्ञ-भाग' वहाँ नहीं देखा तो उन्हें बहुत दुःख हुआ |और यह दुःख आगे चलकर किस रूप में परिणत हुआ, यदि अपने मानस को ध्यान से पढ़ा होगा तो पता होगा अन्यथा आजकल  राम का नाटक करने वाले बहुत से लोग बाजा-पेटी लेकर गाते घूमते रहते हैं |राम तो खुद कहते हैं-

शिवद्रोही मम दास कहावा |
यह मत मोहि सपनेहुँ नहिं भावा |

और आप देवताओं में भी बड़-छोट करते हैं |अब आपके अनुसार या तो केजरीवाल हनुमान को अपना आराध्य न माने या फिर दिल्ली के सभी स्कूलों, मदरसों में हनुमान चालीस पढ़वाए |और आपकी तरह धर्म के आधार पर प्रपंच खड़ा करे |आस्था, धर्म और विज्ञान मनुष्य के चिंतन के अलग-अलग स्वरूप हैं |उन्हें लेकर भ्रम और विवाद न फैलाएं |याद रखिए जब धर्म धंधा बन जाता है तो वह ईश्वर के विभिन्न नामों और रूपों को लेकर भ्रम, घृणा और विद्वेष फैलाता है |और यह दुनिया के सभी धर्मों पर लागू होता है |अन्यथा जब ईश्वर एक ही है, सभी उसकी संतानें हैं तो दुनिया में सबसे अधिक झगड़े और खून-खराबा धर्म के नाम पर ही क्यों हुआ और हो रहा है ?हमारे देश में भी शिव और विष्णु के भक्तों में संघर्ष हुआ है |उसके अवशेष आज भी दक्षिण भारत में मौजूद हैं |और इसीलिए तुलसी से राम के मुंह से उक्त चौपाई कहलवाई है |

और जहां तक हनुमान जी की बात है तो याद रखिए कि वे कहीं अशिष्ट और बड़बोले नहीं होते |सर्वत्र शांत, तार्किक और न्याय की बात कहने वाले |खुद को उनका अनुयायी और भक्त कहने वाले हम अपने बेटों तक को किसी अधिकारी से शिष्टता से बात करने की बजाय बल्ला चला देने पर, शर्मिंदा होना तो दूर, मुस्कराते हैं |यह तो हनुमान जी की भक्ति नहीं है |

जहां तक मदरसों में हनुमान चालीसा गवाने की बात है तो यही कह सकते हैं कि शिक्षा एक विज्ञान है जिसका किसी की व्यक्तिगत आस्था और धर्म से कोई लेना-देना नहीं है |वह प्रयोग और प्रमाण से पुष्ट सत्य के आधार पर होनी चाहिए |यदि आपने रामचरित मानस ध्यान से पढ़ा होगा तो उसके उत्तरकांड में तुलसी काकभुशुण्डी से कहलवाते हैं-

तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी। तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी॥
तिन्ह महँ प्रिय बिरक्त पुनि ग्यानी। ग्यानिहु ते अति प्रिय बिग्यानी॥3॥
भावार्थ
उन मनुष्यों में द्विज, द्विजों में भी वेदों को (कंठ में) धारण करने वाले, उनमें भी वेदोक्त धर्म पर चलने वाले, उनमें भी विरक्त (वैराग्यवान) मुझे प्रिय हैं। वैराग्यवानों में फिर ज्ञानी और ज्ञानियों से भी अत्यंत प्रिय विज्ञानी हैं॥

केजरीवाल को शिक्षा को धर्माडम्बरों से जोड़ने की सलाह देने की बजाय मोदी जी और शाह जी को सलाह दीजिए कि देश की शिक्षा व्यवस्था को निजी क्षेत्र और सभी धार्मिक संस्थानों यथा मंदिर, मस्ज़िद, चर्च, गुरुद्वारा आदि से निकाल कर समस्त देश में समान, निःशुल्क और विज्ञान आधारित बनाएं जिससे देश में स्वार्थो के लिए फैलाई जा रही फूट, अज्ञान और कट्टरता अपने आप दूर हो जाएंगे |हमारे लोकतंत्र का बड़ा होना जनसंख्या के आधार पर नहीं; जीवंत, न्याय और समानता के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए |
यदि हनुमान भक्ति से ही दुनिया का कल्याण छुपा है तो कोई बात नहीं |यहाँ के हनुमान मंदिर आप और हम संभाल लेते हैं |हम तो तैयार हैं यदि आप सत्ता का सुख छोड़ने को तैयार हों तो ? और मोदी जी से भी कहें कि वे ट्रंप. पुतिन, शी जिन पिंग को हनुमान भक्ति सिखाएं जिनसे वे प्रायः मिलते और गले मिलते रहते हैं | और उससे पहले योगी जी से पूछ कर हनुमान जी की जाति तो तय कर लीजिए |क्योंकि हमारे यहाँ तो किसी की समस्त स्वीकार्यता जाति और धर्म पर ही आधारित है |
जहां तक भगवान की बात है तो वह बेचारा खुद ही नेताओं से परेशान है | पता नहीं, ये उसे कब, कहाँ फंसा दें |









 


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Feb 11, 2020

तो बात पेंशन तक आ गई



तो बात पेंशन तक आ गई 

३१ जनवरी और १ फरवरी को बैंकों की हड़ताल |इसके बाद २ फरवरी को रविवार |इस कारण ३ फरवरी को बहुत भीड़ रहने वाली |अब बचा एक दिन क्योंकि ५ फरवरी को हमें ६-७ फरवरी को होने वाली एक सेमीनार में भाग लेने के लिए हैदराबाद जाना |

तोताराम ने ४ फरवरी को बैंक चलने को कहा तो हमने उसे १० फरवरी तक के लिए टाल दिया |इसके कई कारण हैं- एक तो हमारे पास दो ही कुर्ते पायजामे हैं जिन्हें धोना-सुखाना, इस्त्री करना और ऐसे पैक करना कि इस्त्री ज्यादा खराब न हो, कम से कम दो दिन का काम तो है ही |मोदी जी की तरह दो-चार सौ जोड़ी कुरते-पायजामे होते तो बात और थी | दूसरे हम घाटे का बजट बनाने वाली सरकार की तरह इतने दरिद्र नहीं हैं कि घर में दस दिन का अनाज भी न हो |हमें सरकार की तरह घाटे का बजट बनाने की सुविधा भी तो नहीं है |सरकार तो देश हित और सबके विकास के लिए जीवन बीमा निगम, इन्डियन एयर लाइन, स्टील अथोरिटी ऑफ़ इण्डिया की हिस्सेदारी बेचने जैसा घर फूँकू तमाशा देख सकती है |उसका क्या ? आगे आने वाले भुगतेंगे | ८ फरवरी शाम  को हैदराबाद से लौटे तो फिर वही संयोग |अगले दिन रविवार |

सोमवार १० फ़रवरी को जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- चाय पी और घर जा |आज कोई चर्चा करने की ज़रूरत नहीं | पेंशन लेने चलेंगे |चर्चा कल ११ फ़रवरी को दिल्ली चुनावों का रिजल्ट सुनते-सुनते करेंगे |

बोला-चर्चा नहीं करनी है तो कोई बात नहीं लेकिन बैंक जाने का कोई फायदा नहीं |अभी पेंशन नहीं आई है |

हमने कहा- यू पी में मदरसा मास्टरों को तीन महीने से वेतन न मिलने की बात समझ में आती है |वहाँ तो योगी जी ने अयोध्या विकास का ५० हजार करोड़ का बहुत बड़ा प्रोजेक्ट सोच लिया है |कोई बात नहीं,जब अयोध्या का विकास हो जाएगा तो 'रामराज' आ जाएगा तब सभी समस्याएँ और जनम-जनम के दुःख एक ही झटके में दूर हो जाएंगे लेकिन हमारी पेंशन में क्या विघ्न आ गया ?

बोला- कभी तो देश की फ़िक्र भी कर लिया कर |अभी दस दिन ही तो हुए हैं |क्या थोड़ा बहुत इंतज़ार नहीं कर सकता ? मोदी जी बेचारे देश की रक्षा में व्यस्त हैं |आ जाएगी |पेंशन भी आ जाएगी |लेकिन सोच यदि मुसलमान दुबारा देश पर काबिज़ हो गए तो क्या होगा ? 

हमने पूछा- यह कौन कह रहा है ? हमें हल्का सा याद है जब पाकिस्तान की शै पर कश्मीर में कबायली घुस आए थे |१९६५ में और १९७१ में तो बाकायदा युद्ध हुए थे लेकिन तब भी इतना डर और आशंका नहीं थे |सब सामान्य था |जिसका जो काम था कर रहा था |हमने जी जान से सेना के लिए डिफेन्स फंड में योगदान देकर मदद की और सैनिकों ने बहादुरी से मुकाबला किया |१९६५ के युद्ध में उत्तर प्रदेश के अब्दुल हमीद और राजस्थान के अय्यूब खान की वीरता को कौन नहीं जानता ?

बोला- लेकिन शाहीन बाग़ जैसा पाकिस्तान उस समय कहाँ बना था ? योगी जी ने बताया नहीं कि यह युद्ध औरतों को आगे करके लड़ा जा रहा है |मर्द लोग घरों में रजाइयों में घुसे रहते है और औरतें-बच्चे धरने पर बैठे हैं |मज़े से बिरयानी खा रहे हैं |

हमने कहा- लेकिन इसमें तो पंजाब से सिक्ख भाई मदद करने के लिए आए हुए हैं |हिन्दू भी बैठे हैं, तो कश्मीरी पंडित भी |गायत्री मन्त्र का जाप हो रहा है, यज्ञ किया जा रहा है, भारत माता का जैकारा लग रहा है |वन्दे मातरम बोला जा रहा है |

बोला- यही तो ऐतराज़ और आशंका वाली बात है |हमारे ही हथियार से हमें काटा जा रहा है |

हमने कहा- तुम्हें तो खुश होना चाहिए |देखो महिलाओं का कितना सशक्तीकरण हो गया कि वे आन्दोलन चलाने लगी, वन्दे मातरम न बोलने वाले मुसलमान यज्ञ कर रहे हैं | हिन्दू राष्ट्र का सपना बस साकार हुआ ही चाहता है |जो काम पिछले सौ सालों में हिंदुत्त्ववादी संस्थाएं नहीं कर सकीं वह काम ज़रा से एन पी आर और सी ए ए ने कर दिखाया |

बोला- यही तो समस्या है |फिर हम राजनीति किस मुद्दे पर करेंगे |तभी तो भागवत जी ने कहा था कि मुसलमानों के बिना हिंदुत्व की कल्पना नहीं की आ सकती |इसी प्रकार ओवैसी भी अपनी इस्लामी राजनीति के लिए हिंदुत्व को ज़रूरी मानते हैं |

हमने कहा- लेकिन पेंशन का क्या होगा ?

बोला- कल दिल्ली का रिजल्ट देख लेते हैं |हार के कारणों के विश्लेषण के बाद पेंशन वाला काम ही करेंगे |

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Feb 10, 2020

ठाकुर का अनुराग और तिवारी जी की शरीयत



ठाकुर का अनुराग और तिवारी जी की शरीयत


एक ठाकुर थे |उनका लट्ठ पुजता था |लट्ठ पुजता था इसलिए ठाकुर थे या ठाकुर थे इसलिए लट्ठ पुजता था |बात एक ही है |जिसका लट्ठ पुजे वह ठाकुर हो ही जाता है |फिर तो तिनका भी शहतीर का काम करने लग जाता है |

सो ठाकुर जी का लट्ठ पुजता था लेकिन वे सभी के प्रति अनुराग रखते थे इसलिए लोग उन्हें अनुराग ठाकुर भी कहते थे |वे लोकतांत्रिक भी थे |अपने 'तंत्र' से 'लोक' को साधे रहते थे |वे 'लोक' और 'तंत्र' दोनों के खिलाड़ी थे |खेल के नियमों को सूक्ष्मता से जानने वाले क्योंकि एक ऐसे ही सूक्ष्म और वैज्ञानिक खेल के बड़े अधिकारी भी रह चुके थे |लोक और तंत्र में विश्वास होने के कारण वे सभी निर्णय 'लोक' की सहमति से लेते थे |वैसे वित्त विभाग भी उनके पास ही रहता था क्योंकि वित्त के बिना न तो 'लोक' कल्याण किया जा सकता और न ही लट्ठ पुजने लायक भक्त रखे जा सकते हैं |

वे किसी को भी दंड देने के लिए भी लोक को शामिल करते थे और अपने विचार बताकर फैसला लोक पर छोड़ देते थे |




एक बार उन्होंने खेल भावना अपनाते हुए अपनी न्यायप्रिय प्रजा के सामने एक स्थिति रखी-

देश के गद्दारों को ....

जनता भी ठाकुर जी की तरह न्यायप्रिय और न्यायविद; सो बहुत सोच-विचार के बाद फैसला दे ही दिया

गोली मारो सालों को

अब इसमें ठाकुर जी क्या करें ? लोकतांत्रिक व्यक्ति |जनता की सर्वसम्मत राय का अपमान कैसे करें ?
और जब जनता से सर्वसम्मति से फैसला दे ही दिया तो यह सोचने का भी प्रश्न कहाँ उठता है कि देश के प्रति गद्दारी क्या होती है ? और वास्तव में गद्दारी हुई या नहीं ? क्योंकि इसमें उन्होंने अपने ही नहीं, दूसरे धर्म का भी पालन किया था | कहा भी गया है-आवाज़े खल्क को नक्कारा-ए-ख़ुदा समझो |
ख़ुदा के हुक्म के आगे किसकी क्या बिसात ?

उनके कुलगुरु थे तिवारी जी |तिवारी जी भी पक्के लोकतांत्रिक, जिज्ञासु, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले |सब कुछ शास्त्र सम्मत करने वाले |वे सब कुछ शास्त्र सम्मत करने वाले एक मुल्ला जी के पास भी बैठा करते थे |एक दिन मुल्ला जी के पास एक व्यक्ति आया और बोला- मुल्ला जी, मुझे रास्ते में एक सुई पड़ी मिली है |मुझे क्या करना चाहिए ?
मुल्ला जी बोले-  तीन बार आवाज़ लगाओ |यदि कोई दावेदार आ जाए तो उसे दे देना नहीं तो अपने पास रख लेना |मुल्ला जी पास आया व्यक्ति तीन बार बोला- जिसकी हो, यह सूई ले जाए |एक आदमी आया और उसने कहा- यह सूई मेरी है |
वह सूई उसे दे दी गई |धर्म की रक्षा हो गई |

तिवारी जी को सत्य और न्याय की एक नई दृष्टि मिली |

जब लोग ठाकुर जी के गोली मारने के न्याय की बात लेकर तिवारी जी के पास गए तो तिवारी जी ने कहा- इसमें ठाकुर साहब की कोई गलती नहीं है |उन्होंने तो लोगों से केवल पूछा था - देश के गद्दारों को .....|अब जनता ने फैसला दिया तो इसमें ठाकुर साहब की क्या गलती ? मतलब कि अब कोई भी किसी को गद्दार कहकर गोली मार भी दे तो ठाकुर साहब क्या करें ? यह निर्णय तो जनता का था |भुगतें- गोली खाने और मारने वाले |ठाकुर साहब ने तो अपनी लोकतांत्रिक भूमिका निभा दी |


अब तो ठाकुर साहब का न्याय और तिवारी जी की शरीयत चल निकली |एक दिन ठाकुर साहब और तिवारी जी दोनों सब्जी की एक बाड़ी के पास से गुज़र रहे थे |बाड़ी का मालिक बाड़ी में कहीं अपने काम में लगा हुआ था |ठाकुर साहब न्यायप्रिय और लोकतांत्रिक तथा तिवारी जी भी पक्के धार्मिक और न्याय के लिए मनुस्मृति ही नहीं,   शरीयत तक को मानने वाले |

बाड़ी में लगे कच्चे-कच्चे बैंगनों को देखकर दोनों का मन डोल गया |खर्च दोनों में से कोई नहीं करना चाहता |दोनों एक से बढ़कर एक मुफ्तखोर |तिवारी जी ने तरकीब निकाली |

बोले- ठाकुर साहब, बाड़ी वाला तो दिखाई नहीं दे रहा है |क्या करें ? बिना किसी से पूछे कुछ लेना भी तो उचित नहीं |क्यों न इस बाड़ी से पूछ लेते हैं |

तिवारी जी ने धीरे से कहा- बाड़ी रे बाड़ी !

ठाकुर साहब ने उत्तर दिया - हाँ, मन्नू तिवाड़ी !

तिवारी जी ने कहा- रींगणा (बैंगन) ले लूँ दो-चार ?

ठाकुर साहब ने बाड़ी का प्रतिनिधित्त्व करते हुए उत्तर दिया- ले, ले ना दस-बार (बारह)

दोनों सज्जनों ने बैंगनों से थैला भर लिया और घर आ गए |

अब तो रास्ता खुल गया |न्याय और धर्म की ध्वजा लहराने लगी |रोज़ 'जन संपर्क' के बहाने सब्जी की बाड़ी की तरफ जाने लगे |बाड़ी वाला परेशान |छुप कर बैठ गया |

जैसे ही दोनों बैंगनों के थैले भरकर चलने लगे, बाड़ी वाले और उसके घर वालों ने धर्म और लोक के दोनों सेवकों को पकड़ लिया |ये दोनों हराम का खाने वाले, कामचोर और ऊपर से रँगे हाथों पकड़े गए  | फिर भी दोनों पक्के बेशर्म, ढीठ और कुतर्की |तिवारी जी ने कहा- हमने तो बाड़ी से पूछ लिया था |हमारी कोई गलती नहीं है |


बाड़ी के मालिक का नाम था-  बिसराम भूवा | वह भी तिवारी जी और ठाकुर जी के प्रभाव के कारण  लोकतांत्रिक और न्यायप्रिय बन गया था | इसलिए उसने तिवारी जी की तरह ही बाड़ी में स्थित अपने कूए से पूछा- कूआ रे कूआ  !

कूए ने उत्तर दिया-  हाँ, बिसराम भूवा |

बिसराम ने फिर पूछा- दोनों को खिलाऊँ डुबकी दो-चार |

कूए ने उत्तर दिया- खिलाओ ना, दस-बार (बारह)

दोनों सज्जनों को जनमत और शरीयत के समर्थन और सम्मति से दस-बीस डुबकियां खिलाई गईं |फ़िलहाल दोनों अस्पताल में हैं निमोनिया से ग्रसित |

अब पता नहीं, प्रचंड बहुमत और सर्वोच्च न्यायालय क्या फैसला लेगा ?

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