Feb 25, 2017

 तोते का धर्म 

आज जैसे ही तोताराम आया हमने पूछा- तोताराम, तोते का धर्म क्या होता है ?

बोला- जो चाय पिलाने वाले का धर्म होता है वही उसके यहाँ चाय पीने वाले तोताराम का होता है |

हमने कहा- हम मास्टर तोताराम की बात नहीं कर रहे हैं |हम तोता नाम के पक्षी की बात कर रहे हैं |

कहने लगा- पशु-पक्षी का क्या धर्म ? रोटी-पानी का क्या मज़हब ? सूरज-चाँद और धरती का क्या रिलीजन ? जिस भी नाम से चाहो पुकार लो |

हमने कहा- तो फिर मुहावरे में 'अपने मुँह मियाँ मिट् ठू  बनना' में मियाँ ही क्यों कहा गया है ? 'अपने मुँह पंडित मिट् ठू   बनना' क्यों नहीं कहा गया | 

बोला- किसी और की प्रशंसा करने में लोग हमेशा से ही कंजूस रहे हैं इसलिए आदमी को बेशर्म होकर खुद ही खुद की बड़ी करना पड़ती है |

'लेकिन अपनी प्रशंसा करने से कोई मुसलमान हो जाता है क्या, हमने कहा |

बोला- तेरे  'अपने मुँह मियाँ मिट् ठू बनने'  का उदाहरण सुनकर तो लगता है-हो सकता है हो जाता हो मुसलमान | तभी तो शुद्ध राष्ट्रीय हिन्दू सीधे-सीधे अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं करते |वे राम-कृष्ण के बहाने से अपनी प्रशंसा करते हैं |

हमने पूछा- जैसे ? 

तोताराम ने उत्तर दिया- जैसे, मोदी जी और राजनाथ जी |एक राम की तरह कह रहे हैं- चौदह वर्ष से बनवास भोग रहे हैं | हे उत्तर प्रदेश वालो,  अब तो गद्दी दे दो | उन्हें पता नहीं है कि राम को जनता ने भगाया नहीं था बल्कि राम खुद ही वनवास जाना चाहते थे रावण को मारने |और ये चौदह वर्ष कहीं नहीं गए |घर के पिछवाड़े छुपे रहे कि कब चौदह वर्ष पूरे हों और फ़टाफ़ट गद्दी पर विराजमान हों |राम के नाम पर गद्दी माँगते हैं और राम के लिए एक बेड रूम का फ्लेट भी नहीं |विभीषण ने जब देखा कि रावण रथ पर सवार है और राम पैदल, तो बोला- आप भी रथ पर सवार हो जाइए |राम ने कहा- विभीषण जिस रथ से विजय प्राप्त होती है वह धर्म का रथ होता है |और फिर राम ने उस रथ का पूरा रूपक स्पष्ट किया |इस प्रकार बहाने से उन्होंने विभीषण को रजा के धर्म का उपदेश दिया |और ये तो ज़मीन पर पाँव ही नहीं रखते |राम पग-पग वन में भटके और ये राम के नाम पर करोड़ों रुपए की सर्व सुविधायुक्त लक्ज़री बस को रथ बना कर चलते हैं |

हमने कहा- और मोदी जी जो रणछोड़ बनकर द्वारिका चले गए थे अब फिर उत्तर प्रदेश लौटे हैं कि उग्रसेन उन्हें गोद ले लें तो वे नरक में पड़े उत्तर प्रदेश का उद्धार करें |उनके बारे में भी कुछ बता दे |

बोला- बताना क्या है ? कृष्ण का इतिहास कौन नहीं जानता | चाहते तो मथुरा का राज्य ले सकते थे लेकिन नहीं अपने नाना उग्रसेन को ही सँभला दिया |द्वारिका गए चले गए |फिर मथुरा नहीं लौटे |लौटे तो महाभारत में पांडवों की सहायता के लिए न कि कहीं का राज्य कबाड़ने के लिए |राज्य के लिए किसी के गोद जाने का नाटक कृष्ण का काम नहीं हो सकता |वे तो महाभारत के युद्ध के बाद भी तो सब कुछ पांडवों के लिए छोड़ गए थे |और लोग हैं कि उनके नाम पर फिर मक्खन खानाऔर रास रचाना चाहते हैं |

राम और कृष्ण बनने की लालसा करना बहुत आसान है लेकिन उनकी तरह जीवन भर भटकने की हिम्मत और त्याग किसी में नहीं है |इसलिए अपने मुँह कितने ही राम कृष्ण बन लो कोई मानने वाला  नहीं | सब वही 'अपने मुँह मियाँ मिट् ठू' ही समझेंगे |



Feb 15, 2017

 उनका मिलना

सुना है, वे मिलने वाले हैं | यह नियति है तो आज नहीं तो कल, उन्हें मिलना ही है | कहीं ऐसा तो नहीं है कि कोई उन्हें ज़बरदस्ती मिला रहा है ? पर मिलने की ब्रेकिंग न्यूज है | वातावरण में बड़ा रोमांच, सस्पेंस और तनाव है | मिल पाएँगे कि नहीं ? मिलेंगे तो कब, कहाँ और कैसे ? कितनी देर तक मिलेंगे ? किस समय और किस मौसम में मिलेंगे ? मौसम बेईमान होगा या ईमानदार ? मिलेंगे तब पहले कौन मुस्कराएगा ? पहले कौन हाथ बढ़ाएगा ? हाथ मिलाएंगे या गले मिलेंगे ? खाली हाथ मिलेंगे या कोई गुलदस्ता होगा या कोई पात्र ? कहीं किसी के हाथ में कोई बघनखा तो नहीं होगा ? जैसे अफ़ज़ल खान से मिलते समय शिवाजी के हाथ में था | राम और सुग्रीव की तरह किसी हनुमान की उपस्थिति में अग्नि की साक्षी में मिलेंगे ? या राम और विभीषण की तरह मिलेंगे और मिलते ही राम की तरह विभीषण को लंका का राजा घोषित कर देगे ? कृष्ण और सुदामा की तरह मिलेंगे या धृतराष्ट्रऔर भीम के लौह-पुतले की तरह मिलेंगे ? पाठक भीम के प्रति धृतराष्ट्र के वात्सल्य भाव के बारे अच्छी तरह जानते हैं | सिकंदर और पोरस की तरह मिलेंगे या समधियों की तरह या मनमोहन और मुशर्रफ की तरह मिलेंगे या फिर चोर और सिपाही की तरह ? मोहम्मद गौरी और जयचंद की तरह वतन का सौदा करने के लिए मिलेंगे या फिर राणा प्रताप और भामाशाह की तरफ मेवाड़ की स्वतंत्रता का जतन करने के लिए मिलेंगे ?

वैसे जिनको मिलना होता है वे कब और कैसे मिल लेते हैं ? जब भंडा फूटता है तो पता चलता है कि अमुक-अमुक मिले थे | बुज़ुर्ग लोग आश्चर्य करते हैं कि किसी को पता तक नहीं चला | पता नहीं कब और कैसे मिल लिए ? वैसे कुछ बस स्टाप पर लाइन में खड़े-खड़े ही मिल लेते हैं | कुछ वेलेंटाइन डे पर अखबारों में छद्म नामों से सन्देश छपवाकर मिल लेते हैं | कुछ हीरो या हीरोइन की बहन या सखी के घर मिल लेते हैं | कुछ भरी दुपहरी, बीच सड़क पर मोटर साइकल रोककर मिल लेते हैं भले ही दूसरे वाहन चालक कुढ़ते रहें | कुछ रैदास के चन्दन और पानी की तरह मिलते हैं, कुछ तेल और पाअनी की तरह मिलते हैं तो कुछ दूध और काचर के बीज की तरह मिलते हैं | कुछ के मिलने पर केवल भौतिक परिवर्तन होते हैं जब कि कुछ के मिलने पर रासायनिक परिवर्तन होते हैं और कभी-कभी कुछ के मिलने पर जैविक परिवर्तन भी हो जाते हैं | कुछ टूट कर मिलते हैं तो कुछ छूटकर, और कुछ रूठकर मिलते हैं | कुछ लुट कर तो कुछ लूटकर मिलते हैं | कुछ साइकल, कुछ प्लेन, कुछ हेलीकोप्टर से जाकर मिलते हैं तो कुछ सुदामा की तरह पैदल ही द्वारका के लिए 'मांगत खात चले तहाँ मारग बाली-बूँट'चल पड़ते हैं |कुछ सोहनी और महिवाल की तरह कच्चे घड़े के सहारे ही नदी पार करते मिलने के लिए चल पड़ते हैं | कुछ का मिलना लोगों को सुखद लगता है तो किसी के मिलने में जातीय पंचायत ही बीच में लट्ठ अड़ा देती है और कभी-कभी तो सज़ा भी सुना देती है | कुछ का मिलना शाश्वत हो जाता है तो कुछ चौबीस घंटे भी नहीं निकालते |

कुछ चाहकर भी नहीं मिल पाते तो कुछ को ज़बरदस्ती मिला दिया जाता है और वे जीवन भर रस्सी तुड़ाने के लिए मौका देखते रहते हैं | कुछ को मिलने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है तो कुछ के मुँह पर सिद्धांतों की छींकी बाँध दी जाती है | कुछ जन्म-पत्री के आधार पर मिलते हैं तो कुछ संयोगवश | कुछ बिछुड़ कर कभी नहीं मिलते तो कुछ 'पाकीज़ा' की तरह बार-बार बिछड़-बिछड़कर मिलते रहते हैं |कुछ के मिलन में मंगल अमंगलकारी हो जाता है तो नंगे पाँव तीर्थ-यात्रा करनी पड़ती है | कुछ मध्यस्थ के थ्रू मिलते हैं तो कुछ स्वयं ही अपनी व्यवस्था कर लेते हैं | कुछ की जोडियाँ ऊपर से तय होती हैं तो कुछ की नाई-ब्राह्मण मिलाते हैं | कुछ का मिलना बेमेल मन जाता है तो कुछ का मिलना इसलिए अच्छा मन जाता है की चलो दो घर बिगड़ते एक घर ही बिगड़ा |

हम तो इतना ही जानते हैं की जिनमें मिलने की चाहत, लगन, ज़ज्बा, शिद्दत होते हैं वे कभी भी और कहीं भी मिल कर ही रहते हैं | ऐसे लोग समय व्यर्थ नहीं करते | हीरो मोबाइल पर मेसेज कर देता है कि डोली सजाकर रखना, मेहंदी लगाकर रखना , मैं मोटर साइकल स्टार्ट करके रखूँगा और बैठते ही छू | कृष्ण-रुक्मिणी का, अर्जुन-सुभद्रा का और पृथ्वीराज संयोगिता का अपहरण करके मिलते हैं | मिलने वाले ज्योतिषी से मुहूर्त निकलवाने में समय व्यर्थ नहीं करते | और न ही वास्तुशास्त्री से पूछते हैं कि उत्तर-पूर्व में मिलें या दक्षिण-पश्चिम में या कि फिर पिछवाड़े में | कुछ में मिलने की इतनी लगन होती है कि इस जन्म में मिलने की संभावना ख़त्म होते ही 'उस दुनिया' में मिलने के लिए चूहे मारने वाली दवा पी लेते हैं | तभी कहा है - नींद न देखे टूटी खाट, प्यास न देखे धोबी घाट |सच्चा पीनेवाला ८ पी.एम. का समय होते ही व्हिस्की या शैम्पेन का इंतज़ार नहीं करता | कुछ नहीं तो स्पिरिट ही पी जाता है फिर भले ही आँखें चली जाएँ या जान | मिलने की मन में हो तो फिर किसी स्थान विशेष के लिए आग्रह नहीं होता | मिलना है तो मिलना है फिर क्या झूमरी तलैया और क्या झोटवाड़ा |

अर्ज़ किया है-तेरा मिलना खुशी की बात सही , तुझसे मिलकर उदास रहता हूँ |

Feb 13, 2017

  अमरीका वाले क्या जानें राजनीति 


आज आते ही तोताराम ने कहा- देखा मास्टर, फँस गया ना चाचा | 

हमने पूछा- कौन चाचा ?

बोला-  ट्रंप |

हमने कहा- लेकिन वह तो हमसे पाँच साल छोटा है फिर चाचा कैसे हो गया ? 

कहने लगा- ठीक है मत मान चाचा लेकिन फँस तो गया ही ना ?तभी कहा है- नक़ल में भी अकल चाहिए |

हमने कहा- नक़ल किसकी ?ट्रंप तो अमरीकी राजनीति में एक नितांत मौलिक उद्भावना है, एक अनुपम चरित्र है |

बोला- मोदी जी के नारे - 'अबकी बार : मोदी सरकार'  की नक़ल पर 'अबकी बार : ट्रंप सरकार' का नारा देकर जीत तो गया लेकिन मात्र नक़ल से ही सारी अकल थोड़े आ जाती है | शपथ लेते ही दौड़ता हुआ पहुँच गया ऑफिस में और ताबड़तोड़ आदेश निकालने लगा जो बोला था उसका कार्यान्वयन करने के लिए |कुछ सोचकर ही तो  बुजुर्गों ने कहा है- जल्दी का काम शैतान का |

क्या जल्दी थी ? शपथ लेता, छह महीने लगा देता व्हाईट हाउस को सजाने में, छह महीने निकाल देता अपने वोटरों को धन्यवाद देने के लिए 'धन्यवाद यात्रा' में, फिर निकल जाता विदेश यात्रा पर |और जब वापिस अमरीका जाता और लोग पीछे पड़ ही जाते और वादे याद दिलाते तो फिर मेक्सिको की सीमा पर दीवार बनाने का चर्चा छेड़ देता |रेडियो पर लोगों से दीवार के बारे में चर्चा करता |दीवार बनवाने के लिए ग्लोबल टेंडर निकालता, फिर मुहूर्त निकलवाता, दीवार का शिलान्यास करता और फिर राष्ट्रीय एकता के नाम पर हर घर से एक-एक ईंट और एक-एक डालर इकट्ठे करता |दीवार जब बनती तब बनती लेकिन इस चक्कर में अपने लिए दो टर्म ही नहीं  बल्कि पार्टी के लिए अगले दस-पाँच टर्म पक्के कर लेता | इसके बाद भी यदि लोग इस्लामिक आतंकवाद की बात करते तो कह देता मुस्लिमों पर प्रतिबन्ध लगाना तो एक चुनावी जुमला था |और इससे भी बात नहीं बनती तो कह देता ओबामा मुसलमान है और इसीने दुनिया भर के मुसलमानों को आतंकवाद फ़ैलाने में मदद दी है |अब इसके और इसकी पार्टी के पिछले सैंकड़ों वर्षों से बिगाड़ी हुई व्यवस्था को सुधारने में कम से कम आठ-दस साल तो लगेंगे ही | वैसे सच तू भी जानता है कि पिछले ६५ वर्षों में से ३७ साल इन्हीं की पार्टी का राज रहा है और उस दौरान राष्ट्रपति रहे आइज़न हावर,निक्सन,फोर्ड, रीगन,सीनियर और जूनियर बुश की नीतियों के कारण ही मध्य-पूर्व एशिया की यह खुजली इस दुनिया को लगी थी | 

हमने कहा- तोताराम, कुछ भी हो बंदा है तो बात का पक्का |एक पल की भी देर नहीं की अपने कार्यक्रम को लागू करने में |किसी को याद दिलाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी |पर अमरीका के ये जज बड़े खुचड़ हैं |अरे, तुम्हें ही सब कुछ करना था तो राष्ट्रपति चुनने की ज़रूरत ही क्या थी |अब बंदा जो वादे अपने वोटरों से करके आया है उन्हें पूरा करना तो उसका फ़र्ज़ बनता ही है |वैसे आज तक ऐसा कोई देशभक्त राष्ट्रपति नहीं हुआ जिसने देश की सुरक्षा और बेरोजगारी दूर करने के लिए इतने साहसिक कदम उठाए हों |

बोला- अपने आप को बड़ा फन्ने खां समझता है लेकिन अकल धेले भर की नहीं |अरे, मुसलमानों के खिलाफ कुछ करना ही था तो पहले अपने मंत्रियों से उलटे-सीधे, घातक और घृणा फ़ैलाने वाले बयान दिलवाता, अल्पसंख्यकों को गालियाँ निकलवाता | जब हल्ला मचता तो कह देता- यह उस मंत्री की व्यक्तिगत राय है, यह पार्टी का आधिकारिक मत नहीं है |इससे भी बात नहीं बनती तो किसी के यहाँ सूअर का तो किसी के यहाँ गाय का मांस फिंकवा देता |उसके बाद जब वातावरण  बन जाता तब कुछ कर लेता |वैसे कुछ न करता तो भी अगले चुनाव के लिए एक राष्ट्रवादी भावभूमि तो तैयार हो ही जाती | 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, तू तो सबसे बड़े लोकतंत्र का एक सजग नागरिक है |कुछ तो कर जिससे ट्रंप का उद्धार हो और बेचारा इस कीचड़ से निकले |

बोला- अब तो एक ही उपाय है- उसे अमरीका में डालर-बंदी कर देनी चाहिए |

हमने कहा- उससे क्या होगा ? वहाँ न तो टेक्स चोरी होती है, न नकली डालर छपते हैं, न डेमोक्रेटिक पार्टी बेनामी चंदा लेती है फिर क्या बहाना बनाए डालर-बंदी का |

बोला- कह दे,जैसे भारत में नोट बंदी के बाद से आतंकवाद समाप्त  हो गया वैसे ही अमरीका में भी डालर बंदी के बाद इस्लामिक आतंकवाद  समाप्त हो जाएगा |आपको इस्लामिक आतंकवाद समाप्त होने से मतलब है, हम कैसे करते हैं इससे तुम्हें क्या मतलब ?

हमने पूछा- यदि फिर भी बात न बने तो ?

बोला- तब तो फिर देशद्रोह का मामला ही बनता है |




Feb 11, 2017

 सर्व संकट निवारक शल्य क्रिया 

आज तोताराम आया तो बहुत खुश था | कहने लगा- मास्टर, मिल गया सभी दुखों के निवारण का इलाज |

हमने कहा- क्या संजीवनी बूटी मिल गई या फिर कल्प वृक्ष या कामधेनु हाथ लग गई ?

बोला- इनमें से तो कुछ भी नहीं लेकिन जापान के टोयामा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के न्यूरोन से तकलीफदेह यादों को मिटाने में सफलता पा ली है |अब वे लेजर से दैनिक और ज़रूरी यादों को बचाते हुए तकलीफदेह यादों की सफाई कर देंगे | 

हमने कहा- वास्तव में अच्छी सूचना है |आज के समय में तो किसान, मजदूर, विद्यार्थी, गृहस्थ यहाँ तक कि साधु-सन्यासी तक सब परेशान हैं |किसी को नौकरी नहीं मिल रही,किसी को सूदखोर सता रहा है, किसी की आमदनी में गृहस्थी की गाड़ी नहीं चल रही, किसी की खेती पर पाला पड़ गया | हाँ, नेता सभी सुखी हैं चाहे सत्ताधारी पार्टी का हो या विरोधी दल का |नेता वर्तमान हो या भूतपूर्व या फिर भावी, मंत्री पद पर हो या सलाहकार मंडल में लेकिन सभी के लिए यह लोकतंत्र सभी साधन-सुविधाएँ जुटा ही देता है |किसी को कोई तकलीफ नहीं है |

बोला- क्यों नेताओं को कोई कष्ट नहीं है क्या ?अपने से पहले की सभी सरकारों को नाकारा और राष्ट्र विरोधी सिद्ध करना, उनके द्वारा किए गए सभी कामों को गलत सिद्ध करने की मानसिकता और उन्हें कुछ देखने, सुनने और करने ही नहीं देती | सारे दिन ईर्ष्या, चुगली, निंदा और छिद्रान्वेषण की मानसिकता में रहना क्या कोई छोटा कष्ट है ? अच्छे कपड़े, बढ़िया खाना, यात्रा के लिए दरवाजे पर खड़ा चार्टर्ड प्लेन, भाषण की भड़ास के लिए रेडियो, टी.वी. और अखबार और हाँ में हाँ मिलाने के लिए इधर-उधर चारों तरफ चमचे |फिर भी चैन नहीं है | यह चौबीस घंटे की मर्मान्तक पीड़ा है | 

हमने कहा- तो इसका उपाय क्या है ? अब कांग्रेस के नेतृत्त्व में देश आज़ाद हुआ, नेहरू जी पहले प्रधान मंत्री थे, उन्होंने देश में बड़े-बड़े कारखाने लगवाए, विज्ञान के उच्च शिक्षण संस्थान खुलवाए, बाँध बनवाए, उनकी बेटी ने देश को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया, पाकिस्तान पर नकेल लगा रखी थी, बांग्ला देश बनवाया, दुनिया में उसकी धाक थी |किसी भी सरकार ने कुछ भी किया तो वह देश के लिए ही तो किया |अब उसे पार्टियों में बाँटकर देखने और बिना बात गलत प्रचारित करने में शक्ति लगाने में क्या फायदा ? अरे, काम करो तो सही, अच्छा या बुरा सब को आज नहीं तो कल पता  चल ही जाएगा |देश की जनता अंधी तो नहीं है |बिना बात किसी को नीचा दिखाने के लिए क्यों परेशान हो रहे हो ? अपनी शक्ति किसी ढंग के काम में लगाओ |

बोला- मेरा भी यही विचार है | मनरेगा को बुरा भी बताएँगे और उसका स्मारक भी बनाएँगे बल्कि बढ़ चढ़कर बजट का प्रावधान भी करेंगे |जब बुरा कार्यक्रम था तो छोड़ क्यों नहीं देते |

हमने कहा- छोड़ कैसे दें |यही तो राजनीति की दुधारू गाय है |और मनरेगा का स्मारक ही क्या, किसी तथाकथित महान आत्मा का स्मारक बनवाना भी बढ़िया काम है |३० लाख पूजास्थलों वाले इस देश में कौन कहेगा कि महापुरुषों के स्मारक मत बनाओ लेकिन स्मारक बनाने से ही तो काम नहीं चल जाएगा और फिर इस देश ३६ करोड़ देवता हैं तो ७२ करोड़ महापुरुष भी हैं |इनके स्मारकों के बाद जिन्दा लोगों के लिए तो रहने की जगह भी नहीं बचेगी |

बोला- यही तो  मैं कहना चाहता था कि यदि मोदी जी के दिमाग से कांग्रेस की तकलीफदेह यादें खुरचकर हटा दी जाएँ तो उनके सभी कष्ट दूर हो जाएँगे और फिर शांतिपूर्वक काम कर सकेंगे |काम न भी करेंगे तो कम से कम दुखी आत्मा को शांति तो मिलेगी | 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, यह शांति उनके लिए बहुत महँगी पड़ेगी |फिर बचेगा क्या ? फिर चुनावी रैली और मन की बात में बोलेंगे क्या ?वैसे हमारा तो मानना है कि इस देश में एक मोदी जी ही सच्चे कांग्रेसी हैं |कोई कांग्रेसी भी कांग्रेस को इतना याद नहीं करता होगा जितना मोदी जी |इसलिए भले ही मोदी जी को कांग्रेस-स्मृति से कष्ट होता है लेकिन कांग्रेस के जीवन के लिए मोदी जी का यह कांग्रेस फोबिया बहुत ज़रूरी है |

Feb 9, 2017

डोली सजा के रखना...उर्फ़ ट्रंप का कार्यभार

  डोली सजा के .. उर्फ़ ट्रंप का कार्यभार 

तोताराम बहुत जोश में था, आते ही धाराप्रवाह मूसलाधार वर्षण- देखा, इसे कहते हैं काम करने का जज़्बा और लगन | 

हमने कहा- हो भी क्यों नहीं ? सत्तर साल से लोग देश का सत्यानाश किए जा रहे थे और ये घर-बार सब छोड़कर देश के लिए कुछ करने को उतावले हो रहे थे |आते ही तरह-तरह की योजनाएँ, तरह-तरह के खाते, यहाँ तक कि बिना बेलेंस वाले खाते जैसे कोई डिज़िटल डिनर करा दे, तरह-तरह के फॉर्म |हो सकता है कि बन्दे को खुद भी याद न हो कि किसका, कितना विकास कर दिया |हमें तो लगता है कहीं उस अतिउत्साही पुलिसमैन की तरह पीछा करते हुए कहीं चोर से भी आगे न निकल जाएँ |

बोला- तू क्या समझा ? मैं अपने मोदी जी की बात नहीं कर रहा हूँ |मैं तो सत्तर साल के बुज़ुर्ग अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जी की बात कर रहा हूँ |मानना पड़ेगा बन्दे की लगन को | पता नहीं ८ नवम्बर २०१६ से २० जनवरी २०१७ तक के ७० दिन कैसे निकले होंगे |'दिल वाले दुल्हनिया ले जाएँगे' फिल्म के नायक की 'डोली सजाके रखना, मेहंदी लगाके रखना' से भी बदतर हालत हो रही होगी बेचारे की |पता नहीं दुनिया की औपचारिकताएँ किस राहुकाल के कारण रुकावट डालती हैं या किस अभिजित मुहूर्त का इंतज़ार करती हैं |

हमने कहा- बात तो तुम्हारी सच है तोताराम | सोचो, कोई गौना करके नई-नई दुल्हन लाए और पंडित जी कह दें कि तुम अपनी दुल्हन का ७० दिन तक मुँह भी नहीं देख सकते |और वह उतावला दूल्हा घर की दीवार के पार अन्दर से दुल्हन के साथ अन्य लोगों की हँसी सुने |सोचो, क्या गुज़रती होगी उस दूल्हे पर ? सोचता होगा कि मेरी वाग्दत्ता पता नहीं किसके साथ चोंच लड़ा रही है ? 

अमरीका के इस रिवाज़ के पीछे क्या लोजिक है ? अरे, जब एक आदमी चुनाव जीत गया तो उसे उसी समय शपथ क्यों नहीं दिला देते |पूर्ववर्ती को पता तो होता ही है कि फलाँ तारीख़ को रिजल्ट आएगा तब उसे यहाँ से जाना ही पड़ेगा तो क्यों न अपना बोरिया बिस्तर बाँधकर रखे |अगले दरवाजे से नया दूल्हा घुसे और पिछले दरवाजे से पुराना दूल्हा खिसक ले |जब जाना ही है तो जाओ, क्यों बेचारे आने वाले को तरसाते हो |लेकिन नहीं जी, तरह-तरह के नाटक करेंगे |सत्तर दिन तक नए दूल्हे की जान जलाएँगे |बेचारे के धैर्य की परीक्षा लेंगे |

बोला- वास्तव में ट्रंप जैसे कर्मठ व्यक्ति के लिए इतना धैर्य बहुत कष्ट का कारण रहा होगा |मुझे तो लगता है बन्दे ने अपनी जेब में अपना पेन खोलकर रखा होगा और शपथ के रजिस्टर में के साइन करते ही उस विशेष पेन को खुला छोड़कर भाग लिया होगा अन्दर की ओर |क्योंकि ऐसे विकसोतुर व्यक्ति को कोई नहीं रोक सकता |मुझे तो लगता है यह बंदा रात को ही दीवार फाँदकर अन्दर घुस गया होगा और पुराना  रजिस्टर मेज पर रख आया होगा और फिर शपथ ग्रहण के साइन करते ही भागकर रजिस्टर में ओबामा के हेल्थ केयर जैसे जन-विरोधी कार्यक्रम पर कैंची चला दी | और देश की सुरक्षा के लिए मेक्सिको की सीमा पर दीवार बनाने और सात देशों के मुसलमानों पर प्रतिबन्ध लगाने जैसे विश्व-कल्याण के कामों में जुट गया |

हमने कहा- कुछ भी हो लेकिन मानना पड़ेगा बन्दे की स्पीड को |व्यापार-धंधा, बड़ा परिवार, तीसरी बीवी के नखरे फिर भी यह स्पीड |अपने भारत में तो देश और समाज की सच्ची सेवा कुँवारे रहने और बीवी को छोड़े बिना नहीं हो सकती |सच्चे सेवकों को दाढ़ी बनाने तक का समय नहीं मिलता |

बोला- लेकिन मास्टर, मुझे तो इस बात की चिंता है कि कहीं राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर हमारे यहाँ भी दीवार बनाने वाला सिद्धांत आ गया तो जैसे नोट बंदी के समय सब कुछ रुक गया था वैसे कहीं दीवार बनाने के चक्कर में अगले दस साल तक सब कुछ ठप्प न हो जाए ? 

हमने कहा- चिंता मत कर |हमारे लोकतंत्र में सेवक बातों से ही इतनी दीवारें उठाए दे रहे हैं कि जिन्हें गिराना किसी गौतम-गाँधी के वश का नहीं रह जाएगा |और फिर यदि ये दीवारें बनवाएँगे भी तो डिजिटल, जो न किसी को दिखाई देंगी और न उनके बनने, न बनने का प्रमाण |'स्वच्छ भारत :स्वस्थ भारत' की तरह अखबारों में विज्ञापन देख लो या फिर साफ़ जगह पर साफ़ कपड़े पहनकर सफाई करते सेवकों के फोटो | और खुश हो लो |जो हालत है उसे तो सामान्य जनता का जी जानता ही है |

बोला- फिर भी मास्टर, इश्किया गीतों में भी इश्क से कम नशा नहीं होता | तभी तो आजकल मोबाइल पर मोहब्बत की बातों का धंधा चल रहा है कि नहीं ?