Apr 30, 2016

पृथ्वी दिवस, मोम का पुतला और तोताराम

  पृथ्वी दिवस, मोम का पुतला और तोताराम 

चूँकि इंटरनेशनल सूखा सेवा समिति का अध्यक्ष तोताराम तो पानी की बोतल पहुँचाने के लिए लातूर गया हुआ है इसलिए उसकी प्रतीक्षा किए बिना हम अकेले ही चाय पी रहे थे कि बगल से आवाज़ आई- अकेले-अकेले ही....|

हमने पलटकर देखा तो तोताराम !क्या गडकरी या मोदी जी की तरह चार्टर्ड या पर्सनल प्लेन से गया, आया क्या जो चौबीस घंटे में ही वापिस |पूछा- बड़ी जल्दी आ गया लातूर से !

बोला- गया ही कौन था |रात को समाचार सुना कि कल पृथ्वी-दिवस है और मैडम तुसाद में म्यूजियम में मोदी जी का पुतला रखा गया है तो सोचा एक तो तेरे साथ भारत की इस अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धि को सेलेब्रेट कर लेंगे और फिर एक लातूर की ही फ़िक्र क्या करें जब पूरी पृथ्वी ही संकट में हैं तो सोचा, पृथ्वी की भी साथ-साथ फ़िक्र कर लेंगे |पृथ्वी में लातूर भी शामिल है ही | 

हमने कहा- तोताराम, तेरा भी ज़वाब नहीं है |जाना हो तो एक बहाना और बीच में ही लौट आना तो दूसरा बहाना |वैसे पृथ्वी-दिवस के बारे में तो मेरा मानना है कि हम भारतीय अपने घर,परिवार, मोहल्ले,गाँव-गली के होने से पहले ही अंतर्राष्ट्रीय हो जाना चाहते हैं |साल में ३६५ दिन होते हैं लेकिन नाटकबाजों ने ७३० दिवस खोज लिए हैं और हवा में लट्ठ चलाते हुए,बिना सूत-कपास के चदरिया बुनते नज़र आते हैं |अरे, अपनी नाक ही ढंग  से पोंछ लो तो 'स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' हो जाएगा |पैरों जलती नहीं दिखती, पहाड़ पर जलती के साथ सेल्फी लेंगे और तुझे पता ही है कि आजकल लोग सेल्फी लेने में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि सेल्फी लेते-लेते छत से गिर जाते हैं |इसलिए हमारा तो मानना है कि इन नाटकों की बजाय हम सब अपने आसपास साफ़ सफाई रखें, पानी, बिजली का दुरुपयोग न करें, पेड़-पौधों से प्यार करें,जीवों पर दयाभाव रखें,एक दूसरे की मदद करें और धर्म-जाति का भेदभाव न करते हुए मिलजुल कर रहें |मेरे ख्याल से 'पृथ्वी-दिवस' का यही मतलब है |बाक़ी तो ये सब दिवस सरकारी पैसे को माचिस लगाने के काम हैं |
अब जब तक तेरे लिए चाय बने तब तक तू चाहे तो हम मोदी जी के मोम के पुतले के बारे में बात कर सकते हैं |

बोला- मोदी जी का पुतला तुसाद के म्यूजियम में लगना बहुत बड़ी उपलब्धि है |लेकिन सभी अखबारों को पढ़ने और इधर-उधर से ढूँढ़ने पर भी पूरी जानकारी नहीं मिली |बीबीसी वालों ने भी यह तो बता दिया कि पुतला बनाने में १२ करोड़ रु. का खर्चा आएगा लेकिन यह नहीं बताया कि ये रुपए लगेंगे किस के ?  अमिताभ, ऐश्वर्या, सलमान, शाहरुख, ऋतिक, कैटरीना कैफ के पास तो बहुत पैसे हैं, अपने पास से पैसे देकर भी पुतला लगवा सकते हैं लेकिन मोदी जी के पास तो इतना बैंक बेलेंस है नहीं |क्या भारत सरकार देगी ? और यदि यह उपलब्धि केवल १२ करोड़ में ही हासिल होती है तो फिर माल्या, दाऊद इब्राहीम,और हाफिज सईद के पुतले भी लग सकते हैं |लोग उस म्यूजियम में गाँधी के पास गोडसे की मूर्ति लगवाने के लिए १२ क्या १२० करोड़ देने को तैयार हैं |और फिर मोदी जी की मूर्ति कैटरीना के पास लगा दी जाएगी तो कैसा लगेगा ?
अलग-अलग थीम के पुतले अलग-अलग विभागों में लगाने चाहिएँ जिससे एक ख़ास वातावरण बने |वैसे मोम के एक पुतले के १२ करोड़ रुपए ज्यादा नहीं है ?इतने में तो जयपुर के कारीगर संगमरमर के १२० पुतले बना देंगे |यदि कोई मोम अपने घर से लाकर दे दे तो पुतला कितने का पड़ेगा ? वैसे भी कभी म्यूजियम में लाईट चली गई तो मोम के पुतले तो पिघल जाएँगे |और पिघल कर उन पुतलों की शक्ल कैसी हो जाएगी मुझे तो यह सोचकर ही हँसी आती है |

हमने कहा- जहाँ तक मोदी जी के पुतले की बात है तो हमारा मानना है कि उसका खर्चा ब्रिटेन की सरकार ने उठाया होगा क्योंकि मोदी जी साक्षात् विकास हैं और आजकल दुनिया का विकास बहुत मुश्किल से हो रहा है | अधिकतर देशों की विकास दर एक दो प्रतिशत से ज्यादा नहीं है जब कि जेतली जी चाहें तो इसे दो क्या तीन अंकों में ले जा सकते हैं |यदि मोदी जी का पुतला ब्रिटेन के लोग देखेंगे तो देख-देखकर ही उनका दस प्रतिशत विकास तो हो ही जाएगा |

तोताराम, कभी-कभी तेरी बातें सुनकर हमें लगता है कि कहीं तू पुतला लगाने या लगवाने का मज़ाक तो नहीं उड़ा रहा ? जब पुतला लगवाना है तो मोल भाव क्या करना |वैसे तू जो मोल-भाव कर रहा है उसका क्या कारण है  ?

बोला- मैं सोचता हूँ कि मेरा सीना २८ इंच का है और ऊँचाई साढ़े चार फीट तो मेरा पुतला तो मोदी जी वाले से आधे में ही बन जाएगा |यदि मोम भी मैं ही दे दूँ  तो और सस्ता पड़ जाएगा |कोई जानकारी हो तो पता कर | और तो कोई काम अमर होने लायक किया नहीं लेकिन क्या पता, तुसाद वाले म्यूजियम में पुतला लगने से ही अमर हो जाऊँ |वैसे मोदी जी के साथ यदि मेरा पुतला नहीं लगा तो यह एक अधूरी छवि होगी |

हमने पूछा- ऐसी क्या बात है तो जो तेरे बिना मोदी जी की छवि अधूरी रहेगी ?

बोला- विकास की छवि के साथ विकास का प्रमाण भी तो चाहिए और मुझसे बढ़कर भारत के विकास का और क्या प्रमाण हो सकता है ?




Apr 19, 2016

जल-जागृति

  जल-जागृति

हमसे तो सुबह-सुबह अखबार पढ़ने और चाय पीने के अतिरिक्त कोई ढंग का काम होता नहीं लेकिन लोग हैं कि न खुद सोते हैं और न ईश्वर और खुदा को सोने देते हैं |सूरज निकलने से पहले ही अपनी-अपनी भाषाओं में आर्तनाद करने लग जाते हैं |जैसा दो रेडियो स्टेशन एक साथ मिल जाने पर होता वही हाल इन प्रार्थनाओं का होता है |किसी को कुछ समझ में नहीं आता |भगवान का पता नहीं, क्या होता होगा |सुना है, वह 'बिनु पग चले, सुने बिनु काना' है तो कुछ न कुछ समझ में आ ही जाता होगा | और हमें भी ये प्रर्थानाएँ, जैसी भी सुनें, सुनकर विश्वास हो जाता है कि यदि एक बार अपने पुत्र नारायण को पुकारने से अजामिल का उद्धार हो सकता है तो हमें भी स्वर्ग न मिले, कम से कम नरक से तो मुक्ति मिल ही जाएगी |

आज की सुबह कुछ भिन्न-सी थी |इन प्रार्थनाओं में एक स्वर और भी मिल गया था |लगा, कोई हमारे बरामदे में ही बैठकर गा रहा है |कई प्रकार के भजन और प्रेरक दोहे थे जैसे- रहिमन पानी रखिए, पानी बिच मीन पियासी, पानी रे पानी तेरा रंग कैसा आदि-आदि |बाहर निकल कर देखा तो तोताराम इकतारा तुनतुना कर गा रहा है |

हमने उसे अन्दर लिया पूछा- क्या बात है ?आज तेरे यहाँ नल नहीं आया क्या ?

बोला- मैं तेरी तरह स्वार्थी नहीं हूँ |मेरे यहाँ तो पानी की कमी नहीं है |मैं तो लातूर के जल-संकटग्रस्त लोगों में 'जल-जागृति' के लिए गा रहा हूँ |मेरे पास महाराष्ट्र जल संपदा विभाग, नीर फाउंडेशन और जैन इरिगेशन की तरह कोई बड़ा बजट तो है नहीं कि जल समस्या सुलझाने के लिए चालीस एकड़ में ७५० विद्यार्थियों से ४० मिनट में दुनिया की सबसे बड़ी रंगोली बनाने का आयोजन कर सकूँ |मैं तो प्रभु से प्रार्थना ही कर सकता हूँ |वैसे महाराष्ट्र में एक प्रभु और भी हैं जो पता नहीं क्या कर रहे हैं ?

हमने कहा- कर क्यों नहीं रहे हैं |उनके विभाग की रेलें पानी लेकर लातूर जा तो रही हैं |
हमने कहा- खैर, इसके बारे में तो बात बाद में करेंगे लेकिन यह बता इन भजनों, रंगोलियों, रेलियों आदि के नाटकों से क्या हो जाएगा ? यदि आरतियों से ही कुछ हो जाता तो अब तक गंगा कब की साफ़ हो गई होती | श्री श्री के नाच-गानों से यमुना कितनी स्वच्छ हो गई ?

बोला- साफ़ तो करने वाले करेंगे लेकिन इन आयोजनों से प्रेरणा तो मिलती ही है |एक वातावरण तो बनता ही है |मोदी जी के 'स्वच्छ भारत :स्वस्थ भारत' से कितने लोग झाडू हाथ में लेकर फोटो खिंचवाने लगे |सफाई नहीं तो सफाई की बातें तो होने लगी |आज बातें हो रही हैं तो कल को सफाई भी होने लगेगी |

हमने कहा- लेकिन लातूर के लोग क्या मूर्ख है जो पानी का इतना अपव्यय कर रहे हैं कि पीने को भी पानी नहीं बचा ?महाराष्ट्र में तो धरती का पानी गन्ने की खेती करने वाली सुगर लॉबी ने चूस लिया, कुछ क्रिकेटऔर गोल्फ वालों ने निबटा दिया और बचाखुचा बीयर,दारू,कोल्डड्रिंक बनाने वाली कंपनियों ने सलटा दिया | अब पानी आएगा भी तो कहाँ से ? 

तो कहने लगा- तो फिर महाराष्ट्र सरकार अपने यहाँ गन्ने की जगह ऐसी फसलें क्यों नहीं उगवाती जो कम पानी में हो सकें ?बीयर, शराब, और कोल्ड ड्रिंक के कारखाने बंद क्यों नहीं करवा देती ? अन्ना हजारे के गाँव वाला वाटर हारवेस्टिंग का तरीका क्यों नहीं अपनाती ?

हमने कहा- ये सब धंधे सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के ही हैं | इसलिए कोई भी इसका समर्थन नहीं करेगा | इनके खुद के लिए पानी की कौन सी कमी है |सब के घरों,बँगलों और फार्म हाउसों में स्विमिंग पूल हैं |जब पानी की ट्रेनें और टेंकरों का सिलसिला चलेगा तो उसमें भी ये ही सप्लायर होंगे |पैसे के कमाने के साथ-साथ अपना प्रचार भी करेंगे और सेवक कहलाएँगे सो अलग |

भैया, सुधार तो तब होगा जब पानी का अधिक उपयोग और अपव्यय करने वाले तथाकथित बड़े लोग सुधरेंगे | और ऐसे लोग बातों से नहीं मानते |

Apr 17, 2016

घुसपैठ का इलाज़

  घुसपैठ का इलाज़ 

भारत की सबसे बड़ी समस्या है- घुसपैठ | वैसे तो घुसपैठ हर क्षेत्र में होती है |लोग नौकरियों में नकली सर्टिफिकेट देकर घुस जाते हैं, निक्कर और टोपी में फोटो खिंचवाकर पार्टी में घुस जाते हैं |कुछ ऐसे होते हैं जो थोड़ी देर में लिए घुसते हैं और काम होते ही गायब हो जाते हैं जैसे चोर |या फिर आवाज़ देने वाली आत्मा वाले नेता जो नई पार्टी के सत्ता में आते ही उसमें घुस जाते हैं और फिर जब कोई और पार्टी सत्ता में आती है तो उनकी आत्मा आवाज़ देती है और वे उसमें घुस जाते हैं |

लेकिन हम यहाँ जिस घुसपैठ के बारे में विचार कर रहे हैं वह है सीमापार से घुसपैठ |कुछ घुसपैठ तो वोट बैंक के लिए की जाती है जिसका मुद्दा विपक्षी पार्टी उठाती है और कुछ घुसपैठ ऐसी हैं जिनमें घुसपैठिये क्रिकेट या ख्वाजा साहिब या फिर ऐसे ही किसी और बहाने से थोड़े समय के लिए आते हैं फिर या तो गायब हो जाते हैं या गड़बड़ करके वापिस चले जाते हैं |सच्चे घुसपैठिए वे होते हैं जो 'घुस कर' 'पैठ' या बैठ ही जाते हैं |

देश ही हर सरकार इसी समस्या के इलाज़ के लिए कभी सीमा पर बाड़ बनवाती है, कभी कैमरे लगवाती है,कभी सीमा सुरक्षा बल की संख्या बढ़ाती है, कभी भारत प्रशासित कश्मीर की सरकार को विशेष पैकेज देती है | इस प्रकार निरंतर खर्चा बढ़ता रहता है | एक बार तो हमने एक प्रधान मंत्री जी को सुझाव भी दिया था कि इतना खर्च करने की बजाय क्या यह उचित नहीं रहेगा कि इसका ठेका उसके आधे में पाकिस्तान को ही दे दिया जाए |सस्ते में काम हो जाएगा और फिर यदि सेवा में कुछ कमी रहेगी तो हम पाकिस्तान के विरुद्ध उपभोक्ता अदालत में तो जा सकेंगे |लेकिन हमारे इस क्रांतिकारी सुझाव पर विचार नहीं किया गया; खैर,माँगे-बिना माँगे,हमारा तो काम है सुझाव देना, सो दे दिया |

आज जैसे ही तोताराम आया हमने उसके सामने इस घुसपैठ का ज़िक्र किया तो बोला- चिंता की कोई बात नहीं है |अब अपने अमित जी मतलब भाजपा के महानायक अमित शाह जी ने इसका उपाय खोज लिया है |

हमने आश्चर्य से कहा- अच्छा ? क्या उपाय है ?

बोला- बस, जनता केंद्र और राज्य दोनों में ही भाजपा की सरकारें बनवा दे तो यह समस्या हल हो जाएगी |

हमने कहा- भई, इस बात का तो कोई अंत नहीं है | जब दोनों जगह बनवा देंगे तो कहेंगे नगरपालिकाओं  और   पंचायतों  में हमारी  सरकार बनवाओ, वहाँ भी बनवा  देंगे तो कहेंगे अब उस पार्टी से भारत को मुक्त करो जिसने अब तक देश का सत्यानाश करने के अलावा कोई काम किया ही नहीं |इस तरह से तो पूरी शताब्दी निकाल देंगे |हाँ, एक बात हो सकती है कि यदि भारत की जनता पाकिस्तान में भी भाजपा की सरकार बनवा दे तो शायद समस्या हल कर दें |

कहने लगा- बन्धु, मैं तो वैसे ही बात कर रहा था |पाकिस्तान का काम तो और भी विकट है |उसके यहाँ तो आतंकवाद में हमसे ज्यादा लोग मारे जा रहे हैं |जब वह खुद ही अपने यहाँ का आतंकवाद समाप्त कर नहीं पा रहा है तो वहाँ का चुनाव जीत कर हम क्या टाँके तोड़ लेंगे |हमसे तो अपनी ही नाक साफ़ नहीं हो पा रही है |

ये काम ऐसे बच्चों वाले बहाने और 'अगर', 'यदि' से नहीं होने वाले | सबसे पहले तो हम अपने यहाँ के बिना बात भड़काने वाले बयानों को बंद करवाएँ और सब को विश्वास में लेकर कोई दृढ़ संकल्प वाला कदम उठाएँ तो कुछ बात बन सकती है अन्यथा तो यह भी अन्य जुमलों की तरह एक जुमला मात्र ही है | 

Apr 12, 2016

मास्टर, ग़ज़ल सुना कर

  मास्टर, ग़ज़ल सुना कर 

आजकल ग्राम पंचायत से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक विकास की महामारी फैली हुई है |ऐसे में हमारी नगर परिषद् कैसे पीछे रह सकती है | जहाँ देखो, मार नालियाँ और सड़कें बनाने में लगे हुए हैं |हमारी कॉलोनी में भी विकास की इस आँधी का झपट्टा आ ही गया | सड़कें और नालियाँ बना दी गईं | यह किसी ने नहीं सोचा कि यह पानी जो अब तक यहाँ के कच्चे रास्तों की रेत से होकर ज़मीन में चला जाता था अब जाएगा कहाँ ? अब आलम यह है कि मोदी जी की मन की बात के अनुसार हमारे यहाँ के  सारे पानी की हार्वेस्टिंग हो रही है मतलब कि 'खेत का पानी खेत में' की तर्ज़ पर 'गली का पानी गली में' ही रहता है |और तो और, पीछे की एक अन्य कॉलोनी का पानी भी हमारे यहाँ का भूजल स्तर बढ़ाने के लिए आ जाता है |  नालियाँ विभिन्न प्रकार के गुटकों के खाली पैकेटों,पत्तों और पोलीथिन से अटी पड़ी रहती हैं |कागजों में वे ज़रूर साफ़ होती होंगी लेकिन ग्राउंड रियलटी का सामना तो हमें ही करना पड़ता है |जब नालियों का पानी सड़क पर पदार्पण करने लगता है और सहनशीलता समाप्त हो जाती है तो खुद ही फावड़ा लेकर नाली साफ़ करने लग जाते है लेकिन मज़े की बात यह है कि 'स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' अभियान के प्रारंभिक दिनों की तरह कोई भी पत्रकार और फोटोग्राफर इधर नहीं फटकता |

हम जानते हैं कि कल तक यह कूड़ा फिर नाली में वापिस चला जाएगा जैसे कि निर्दलीय रूलिंग पार्टी में चला जाता है फिर भी हम अभी-अभी नाली साफ़ करके चबूतरे पर बैठे सुस्ता रहे थे कि तोताराम प्रकट हुआ, बोला- मास्टर, बेगम अख्तर की ग़ज़लों का केसेट लाया हूँ | आजकल सब कुछ वाट्स ऐप पर हो गया है तो किसी ने केसेट कूड़े में फेंक दिए थे, मैं उठा लाया | 

हमें बहुत गुस्सा आया- इन्हें भी फेंक दे नाली में |यहाँ ससुर कमर की बारह बजी हुई है और तुझे गज़लें सूझ रही हैं | गज़लें सुनना निठल्ले और भरे पेट वालों का काम है | या फिर नेता सुनेंगे जिनके घर के सामने रोज नगर परिषद् की तरफ से सफाई होती है | यहाँ तो नाली निकालने से ही फुर्सत नहीं है |

बोला- ग़ज़ल सुनना भरे पेट वालों के लिए भी उतना ज़रूरी है जितना दुखी और खाली पेट वालों के लिए | दारू या तो दुखी आदमी गम गलत करने के लिए पीता है या फिर सुखी आदमी अपनी ख़ुशी को दुगुना करने के लिए पीता है |इसलिए तू अपना दर्द और गम भुलाने के लिए गज़लें सुन ले | 

और फिर शायर कहता है-
एक दो रोज का सदमा हो तो रो लें 'फ़ाकिर'
हम को हर रोज के सदमात ने रोने न दिया |

इसलिए लोकतंत्र में साधारण और भले आदमी को तो रोज का रोना है |इसलिए रोने का क्या है, एक नहीं हजार कारण हैं |इसलिए इस तनाव से मुक्ति पाने का उपाय सोच | और वह उपाय है- गज़लें सुनना |

हमने पूछा- यह थैरेपी तू कहाँ से सीखकर आया है ?

बोला- मेरा हाल तो ग़ालिब वाला है- 'दर्द का हद से गुज़र जाना है दवा होना' या फिर 'पहले आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी, अब किसी बात पर नहीं आती' |मुझे किसी थैरेपी की ज़रूरत नहीं है |यह नुस्खा तो तनाव दूर करने के लिए गडकरी जी ने मोदी को बताया था |

हमने कहा- तब तो इस नुस्खे में दम हो सकता है क्योंकि इतनी व्यस्तता, झंझटों और तनावों में भी वे हास्य का मौका निकाल ही लेते हैं, भले ही उनका निशाना एक विशेष दल ही होता है | और उससे मुक्त हुए बिना देश के और उनके अच्छे दिन नहीं आ सकते क्योंकि वही दल तो सत्तर साल से इस देश के दुखों का कारण है |लेकिन हमने तो इतिहास में पढ़ा है कि नवाब, राजा और ठाकुर बाइयों और डोमनियों से गज़लें और 'केसरिया बालम' सुनते रहे और योरप के लोगों ने यहाँ आकर कब्ज़ा कर लिया |अब चला रहे हैं लखनऊ में रिक्शा या मूँछे रँग कर रहे हैं चौकीदारी | 

इसलिए हमारा तो मानना है कि मोदी जी को गडकरी जी के कहने से ग़ज़लों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए |

हाँ, गडकरी जी की बात और है |वे तो मंत्री बनने से पहले भी अपना बढ़िया धंधा चला रहे थे |मंत्री नहीं भी रहेंगे तो अपना धंधा तो है ही | वे चाहें गज़लें सुनें या मुज़रा- उन्हें तो शांति ही शांति ही है | तनाव का कोई कारण ही नहीं |

इधर हम बोले जा रहे थे कि पता नहीं, कब तोताराम ने कैसेट प्लेयर पर कैसेट लगा दिया, बेगम अख्तर गा रही थीं-
आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया |

 

Apr 9, 2016

दुर्गा : एक प्रतिक की परिणति

 दुर्गा : एक प्रतीक की परिणति

नवसंवत्सर |प्रकृति के एक वनस्पति-वर्ष की समाप्ति |जीवन का एक और नया चक्र प्रारंभ |कहीं यह उगादी (युगादि) है तो कहीं चेटीचंड, कहीं संवत्सर |योरप का नया वर्ष भी लगभग इसी समय और इसी सिद्धांत के अनुसार अप्रैल में शुरु हुआ करता था |इसी दिन दुर्गापूजा (चैत्र नवरात्रा ) का शुभारम्भ होता है | दुर्गा- शक्ति का प्रतीक | शारदीय नवरात्र में रावण का वध करने के लिए राम नौ दिन तक शक्ति की आराधना करते हैं और दसवें दिन शक्ति की कृपा से रावण का वध करते हैं |

दुर्गा प्राकट्य की कथा है कि जब महिषासुर ने ब्रह्मा से अमरता का वर माँगा तो ब्रह्मा ने कहा- यह तो संभव नहीं है लेकिन तुम कुछ और वर माँग सकते हो |महिषासुर ने कहा सोचा कि स्त्री तो कोमल होती है |वह मेरा क्या वध कर सकती है |इसलिए उसने वर माँगा कि स्त्री के अतिरक्त कोई मेरा वध न कर सके | यह वर पाकर वह अपने को अजेय समझने लगा |उसके अत्याचारों से यह सृष्टि त्रस्त हो गई |

उससे निस्तार का कोई उपाय न देखकर देवता विष्णु के पास गए |विष्णु ने कहा- संसार में कोई स्त्री ऐसी नहीं है जो महिषासुर का वध कर सके |अब तो एक ही उपाय है कि सब अपने अपने सम्मिलित तेज से एक स्त्री की सृष्टि करें और उसे अपनी-अपनी शक्तियाँ प्रदान करें | सभी देवों के सम्मिलित तेज और अस्त्र-शास्त्रों से सज्जित जिस शक्ति-विग्रह का सृजन हुआ वही थी दुर्गा जिसने महिषासुर का वध किया |

यह एक प्रतीक कथा है जिसे हमारे कवि-हृदय मनीषियों ने सबकी सम्मलित शक्ति के महत्त्व को प्रतिपादित करने के लिए रचा |

चूँकि हमारे पूर्वजों का समस्त चिंतन-मनन और दर्शन कविता में ही है इसलिए वह प्रतीक,रूपक और अन्य अलंकारों से बच नहीं सकता | इनकी व्याख्या में मतान्तर हो सकते हैं |इसीलिए भारतीय चिन्तन से प्रसूत दर्शन और जीवन में एकरूपता नहीं है |वह जीवन के विभिन्न रंग रूपों की तरह एक बहुरंगी छटा है | दुनिया के अन्य धर्मों में जीवन तथा उसके दर्शन की विविधता नहीं है क्योंकि उसमें न तो कहीं कविता है और न ही किसी तरह के रूपक और प्रतीक की गुंजाइश |सब कुछ दंड संहिता की तरह है जिसकी व्याख्या उसके वकीलों और न्यायाधीशों के विवेक और आवश्यकता पर निर्भर करती है |इसलिए वहाँ धर्म व्यक्ति के अपने विवेक से आचरणीय नहीं बल्कि किसी फरमान की तरह है |इसलिए वहाँ या तो मूक अनुयायी हैं या अविश्वासी (नॉन बिलीवर) हैं |

हिन्दू धर्म के स्वयंभू  ठेकेदारों को लगता है कि संहिताबद्ध और अपने अनुयायियों पर पकड़ रखने वाले हैं धर्मों में अधिक एकता है | इसलिए हम भी अपने धर्म को, जिसे एक जीवन शैली ही कहा जा सकता है क्योंकि वह प्रचलित अर्थों में संहिताबद्ध धर्मो से भिन्न और विविध है;  अनुशासित करें या नियंत्रित करें तो शायद धर्म, देश और समाज का कल्याण होगा |इस चक्कर में वे भारतीय चिंतन और दर्शन की मूल परिकल्पना और भावना से बहुत दूर हो गए और एक विविध और बहुरंगी जीवन शैली को रूढ़ बनाने का प्रयत्न करने लगे |यही कारण है कि हमारे प्रतीकों का चिंतन और प्रेरणा से कोई संबंध नहीं रहा |चिंतन प्रतीकों और फिर उनके चित्रण और मूर्तन तथा विधि-विधानों,आरतियों और भव्य आयोजनों से होता हुआ अंततः पत्थर और जड़ हो गया |

दुर्गा की कथा को पढ़ते, सुनते, गाते हुए भी हम उसे एक अलौकिक स्त्री के अतिरिक्त कुछ नहीं मान सकते जो हमारी हर कामना पूर्ण करेगी |हम उससे अपने व्यक्तिगत काम निकलवाना चाहते हैं लेकिन उसके पीछे समाज की सामूहिकता की आवश्यकता और शक्ति से कहीं भी परिचित नहीं हो पाते |ऐसे में हमारे मनीषियों की दुर्गा-शक्ति की अवधारणा ही निरर्थक सिद्ध हो जाती है |

ऐसे में नवरात्रा, दुर्गा की नौ दिन तक पूजा, जागरण, उपवास-फालाहार, विसर्जन, उसके नाम से बलि देना, उसके नाम पर शराब का सेवन करना, पूजा के लिए चंदा करना और धर्म की आड़ में राजनीति की सीढ़ियाँ चढ़ना बहुत ही बचकाने काम लगते हैं |

यह एक शक्तिशाली और सार्थक प्रतीक की एक दुखद परिणति है |

आज के इस समय में विभिन्न संकटों और खतरों से जूझती दुनिया में आतंकवाद, संसाधनों पर अवैध कब्ज़ा, संसाधनों का दुरुपयोग सब महिषासुर ही तो हैं |इसका वध या इससे परित्राण सब के मिले और अपनी समस्त शक्ति से प्रतिरोध किए बिना संभव नहीं है |

क्या इस परिस्थिति में दुर्गा के इस प्रतीक को समझने-समझाने और आचरण करने की आवश्यकता नहीं है ?







Apr 8, 2016

रिक्शे पर 'राजा'

 रिक्शे पर 'राजा'


 आज तोताराम ने आते ही ब्रेकिंग न्यूज दी- देखा, लोकतंत्र का कमाल ! राजा रिक्शे पर | हमने कहा- इसमें क्या ख़ास  बात है |लखनऊ में तो साइकल रिक्शा चलाने वाला हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी नवाबी घराने से जुड़ा है |और हमने तो कई बरसों पहले यह समाचार भी पढ़ा था कि बहादुर शाह ज़फर का वंशज बल्लीमारान में कपड़ों पर इस्त्री करता है | जब निजी हवाई कंपनियों राष्ट्रीयकरण हो गया था तो एक महाराजा उसमें द्वारपाल अर्थात गेटकीपर का काम करने लगे थे और सभी आने वालों को सलाम बजाया करते थे |अब जब दाढ़ी बनाने वाले ब्लेड का विज्ञापन करने के लिए भी सुन्दर युवती की ज़रूरत आ पड़ी है तो उस लम्बी मूँछ वाले महाराजा की  छुट्टी तो होनी ही थी |

बोला- यह लोकतंत्र का कमाल थोड़े ही था , यह तो मजबूरी थी | जब राज गया तो पेट भरने के लिए कुछ तो करना ही था |बेचारे पढ़े लिखे तो थे नहीं और न ही कमा कर खाने की आदत |और आज भी भले ही उन्हें क्षत्रिय होने के कारण आरक्षण न मिले लेकिन सब की हालत तो भूतपूर्व राजाओं जैसी है नहीं सो आज भी बहुत से क्षत्रिय चौकीदारी करते नज़र आ जाएँगे |और जो बड़े-बड़े हैं उनकी भी हालत कौनसी सम्मानजनक है |वे भी अपने महलों को 'टेंट हाउस' या 'विवाह-स्थल' बनाकर काम चला रहे हैं |मैं तो आज और अभी अभी की बात कर रहा हूँ |मोदी जी नॉएडा वाले कार्यक्रम में ई रिक्शा से मंच तक गए है |चाहते तो हैलीकोप्टर को ही सीधा मंच पर उतार सकते थे |

हमने कहा- लेकिन मोदी जी कोई राजा थोड़े ही हैं |वे तो जनसेवक हैं |उन्होंने खुद को प्रधान मंत्री नहीं बल्कि 'प्रधान सेवक' घोषित कर रखा है |और फिर वे तो शुरू से ही एक सामान्य व्यक्ति हैं |अपने राजस्थान में तो वे अपने प्रचारक काल के दौरान रिक्शा क्या, ऊँटगाड़ी, बैलगाड़ी और यहाँ तक कि रेतीले टीलों में, गरम रेत में पैदल भी चले होंगे |और अब भी चाय बनाना और ढोल बनाना नहीं भूले हैं जब कि बहुत से नेताओं को तो गाय और भैंस तक में फर्क नहीं मालूम |यह लोकतंत्र नहीं, मोदी जी की व्यक्तिगत शैली है |

बोला- खैर, मत मान लेकिन याद कर १९६० में जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी और महारानी गायत्री देवी ने 'स्वतंत्र पार्टी' बनाई थी उससे पहले क्या तूने जयपुर के राजा मानसिंह और महारानी गायत्री देवी को देखा था |यदि जयपुर भी जाता तो दर्शन मुश्किल थे लेकिन लोकतंत्र की शक्ति के कारण ही तो अपने गाँव के बाजार में उन्हें लकड़ी के तख़्त पर बैठे कितने नज़दीक से देखा था |

हमने कहा- लेकिन उस समय गायत्री देवी रिकार्डमतों से जीती थी और कई गाँवों में लोगों ने उन्हें वोट ही नहीं दिया बल्कि 'जोहार' करके चाँदी के रुपए भी दिए थे |

कहने लगा- मेरी बात को न मानने के लिए तू कुतर्क कर रहा लेकिन यह सब जानते हैं कि हवाई जहाज में चलने वाले चुनाव के समय बुलेट ट्रेन, मेट्रो ट्रेन, मुम्बई की लोकल ट्रेन, बस, जीप तक आ जाते हैं |जिनके परिवार का हर सदस्य मंत्री,एम.पी.,एम.एल.ए. है वे मुलायम सिंह जी भी साइकल पर चलने लग जाते हैं, अटल जी राजीव गाँधी के कम्प्यूटर कार्यक्रम के विरुद्ध में बैलगाड़ी से संसद गए थे कि नहीं ? बड़े-बड़े नेताओं ने लोकतंत्र की इस शक्ति के कारण रथ यात्राएँ और पदयात्राएँ कीं कि नहीं ? भले ही पाँच साल में एक बार ही सही लेकिन कल इसी लोकतंत्र के कारण ही 'राजा लोग' कनक दंडवत करते नज़र आएँगे |

हमने कहा- बन्धु, हमारी आँखों में तो वह दृश्य बसा हुआ है जिसमें मध्यप्रदेश के एक छुटभैये नेता जी एक ग्रामीण की पीठ पर चढ़कर नाला पार कर रहे थे |
कैसा भी लोकतंत्र आ जाए लेकिन लोक-विक्रम के कंधे से यह सत्ता-बेताल उतरने वाला नहीं है |





Apr 5, 2016

पाकिट में प्रधानमंत्री

  पाकिट में प्रधानमंत्री



पता नहीं, आज सुबह तोताराम क्यों नहीं आया ?

आजकल सुबह नौ-दस बजे ही धूप तेज़ हो जाती है | हमने तो  दोपहर दस से चार बजे शाम तक कमरे में शीत-समाधि लेने का गरमी वाला स्थाई कार्यक्रम शुरू कर दिया है |अभी कोई दो बजे होंगे |बाहर पारा कम से कम ३९-४० डिग्री पहुँचा हुआ है | अमरीका में तो इतनी गरमी में कई बुज़ुर्ग अपने लॉन की घास काटते हुए मर जाते हैं और एक हम हैं कि चोहत्तर साल से इसे निर्विघ्न झेल रहे हैं |आदत की बात है |

तभी किसी ने दरवाज़ा भड़भड़ाया |खोला तो पसीने से तरबतर तोताराम |हमने उसे अन्दर लिया |लगा, जैसे अन्दर आते हुए कुछ लँगड़ा भी रहा है |

पूछा- इस बरसती आग में कहाँ निकल गया था ? ऐसी आग में तो बम रखने के लिए आतंकवादीऔर चुनाव सभा को संबोधित करने के लिए नेता भी नहीं निकलते |और फिर तू लँगड़ा क्यों रहा है ? गरमी से बेहाल होकर कोई लड़खड़ा तो सकता है लेकिन तेरी यह तैमूरलंगी मुद्रा कैसे हो गई ?

बोला- बोझ के कारण ऐसा हो जाता है |दाहिनी जेब में वज़न है इसलिए दाईं तरफ थोड़ा झुकाव हो रहा है |

हमने कहा- देखने में तो ऐसा कुछ बड़ा सामान नहीं लग रहा जेब में कि जिसके वज़न से आदमी लँगड़ाने लगे |

बोला- तू सामान की बात कर रहा है ? इसमें कोई सामान नहीं बल्कि स्वयं नरेन्द्र भाई हैं, अपने प्रधानमंत्री |

आश्चर्य से हमारा मुँह खुला का खुला रह गया |प्रधानमंत्री और तेरी जेब में |क्या बात कर रहा है अट्ठाईस इंच के सीने वाले मास्टर, छप्पन इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री और सो भी तेरी जेब में | खैर, निकालकर दिखा |
तोताराम ने एक मोबाइल फोन निकालकर हमारे सामने रख दिया |

हमने कहा- ये प्रधान मंत्री थोड़े ही हैं, यह तो मोबाइल है | लगता है किसी ने तुझे उल्लू बना दिया है |जितने का तेरा यह मोबाइल है उतने में तो उनकी एक ड्रेस तक नहीं बन सकती |वे देश के अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री हैं लेकिन यह कैसे हो सकता है कि वे दीपक वाले जिन्न की तरह मोबाइल में घुस जाएँ |

बोला- तू हर बात को शाब्दिक अर्थ में मत लिया कर |सुन, मोदी जी ने रियाद में वहाँ के भारतीयों को संबोधित करते हुए कहा है कि आप अपने मोबाइल पर MYGOV एप डाउनलोड करें, मैं आपकी जेब में हूँ |इससे अधिक और क्या चाहिए कि प्रधानमंत्री आपकी जेब में हो |इसलिए मैं आज जैसे ही बैंक खुला पेंशन निकालकर ग्यारह हजार रुपए में यह वाट्स ऐप ले आया |परसों तेरे पास से वाट्स ऐप माँगकर बिना बात शर्मिंदा होना पड़ा |

हमने कहा- तोताराम, वे तो स्वयं इस समय दुनिया को अपनी जेब में रखे घूम रहे हैं |ओबामा जी तक को 'बराक' कहकर संबोधित करने का साहस आज तक क्या कोई प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति कर सका है ? वे तो सब प्रकार के मायामोह से विरक्त व्यक्ति हैं उन्हें कौन अपनी जेब में रख सकता है ? वे किसी लालच या धौंस में आने वाले नहीं हैं |
बोला- बात समझाकर |जेब में होने का मतलब यह है कि जब भी कोई संकट हो, समस्या हो तो फट से अपना  वाट्स ऐप निकालो और उनसे संपर्क करो और वे हाज़िर हो जाएँगे |

हमने कहा- बन्धु, यह वैसी ही उपलब्धि है जैसे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति भारतवासियों को होली, दिवाली की बधाई देते हैं या राष्ट्र को कोई बाँध, पुल या सड़क समर्पित करते हैं और हम समझते हैं कि बस, मुझसे ही बतिया रहे हैं जैसे कि फिल्म में आइटम सोंग देखने वाला हर दर्शक यही समझता है कि यह छमकछल्लो मेरी तरफ ही आँख मार रही है |हाँ, इस भ्रम में दो-चार करोड़ वाट्स ऐप ज़रूर बिक जाएँगे |

बोला- ऐसा नहीं है | मैंने खुद खबर पढ़ी है कि एक महिला यात्री ने रेल मंत्री को वाट्स ऐप  किया कि मेरे बच्चे को दूध चाहिए तो अगले स्टेशन पर स्टेशन मास्टर दूध लेकर हाज़िर |और मैंने प्रधानमंत्री जी को एक सुझाव भेजा |पहले तो रजिस्टर्ड पत्र तक की रसीद नहीं आती थी लेकिन इसमें तो तत्काल मेरे पास ज़वाब आ गया कि आपका मेल मिला,धन्यवाद | अब और क्या चाहिए ?

हमने कहा- यह ज़वाब प्रधानमंत्री जी का नहीं है | यह तो स्वचालित सिस्टम से अपने आप चला जाता है |

अब एक किस्सा सुन |एक आदमी ने नया-नया मोबाइल फोन लिया | फोन का बेलेंस ख़त्म हो गया |उसने फोन लगाया तो दूसरी तरफ से आवाज़ आई- प्रिय ग्राहक, आपका बेलेंस समाप्त हो गया है |बात करने के लिए अपने फोन में बेलेंस डलवाएँ, धन्यवाद | ग्राहक ने उत्तर दिया- जी, बेलेंस डलवाने की क्या ज़रूरत है |मुझे तो आपकी मधुर आवाज़ सुननी थी और वह फ्री में ही सुनने को मिल गई |और क्या चाहिए ?

अब अपने फोन से हमारा एक फोटो खींच और बैंक वाले को भेज दे और कह दे कि इसे हमारी नई पासबुक पर लगा दे |प्रधानमंत्री तो छोड़, देखते हैं, बैंकवाला तेरी कितनी सुनता है ?

ले ठंडा पानी पी,और जहाँ तक हमारे जुमले के अर्थ की बात है तो घर जाकर फुर्सत से समझना |