Nov 26, 2015

तोताराम का जन्मदिन

  तोताराम का जन्म दिन

जिस प्रकार कवियों के वर्णन में ब्रह्ममुहूर्त में पूर्व दिशा में उषा की लाली छा जाती है, कमल विकसित हो जाते हैं, उनमें कैद भौंरे निकल गुंजार करने लग जाते हैं, वातावरण में पक्षियों का कलरव व्याप्त हो जाता है उसी तरह हमारी सुबह के तीन दृश्य हैं |पहला- कृषि मंडी में सब्ज़ी बेचने के लिए जाने वाली बैलगाड़ियों, मोटर साइकिलों, साइकिलों, ऑटो रिक्शाओं की धड़धड़ाहट मुखर हो जाती है |दूसरा- धार्मिक स्थानों के माइक अपने-अपने ईश्वरों को प्रसन्न करने या आलसियों को जगाने या भक्तों को लुभाने के लिए पूरे वोल्यूम में गरजने लगते हैं |लगता है जिसका शोर ज्यादा होगा वही विजयी होगा | दोनों की ध्वनियाँ एक दूसरी पर इस कदर हवी हो जाती हैं कि उनके शब्द और सन्देश समझ पाना असंभव हो जाता है |मेरे जैसे मज़बूरन श्रोता को पता नहीं इससे दोज़ख मिलेगा या नरक ?और तीसरा हमारा अपनी पालतू मीठी को घुमाने ले जाने का कार्यक्रम |

जैसे ही घर में घुसने लगे, एक गधा गाड़ी वाले ने हमारे बरामदे में एक गठरी और एक छोटी सी मानवाकृति को उतारा तो हमें आश्चर्य हुआ क्योंकि हमने इतनी सब्ज़ी के लिए किसी को भी आर्डर नहीं दिया था |नज़दीक जाकर देखा तो तोताराम |

पूछा- आज इस शाही सवारी में आने की ज़हमत कैसे फरमाई ?

बोला- जब मुलायम सिंह जैसे सरल, मितव्ययी और सच्चे समाजवादी अपने जन्म दिन पर इंग्लैण्ड से बग्घी मंगा सकते हैं तो मैं क्या इस गधा-बग्घी में क्यों नहीं आ सकता ?

हमने कहा- मुलायम जी से तुलना करने की तेरी हिम्मत कैसे हुई ? कहाँ तू एक साधारण पेंशन भोगी मास्टर और कहाँ वे पूर्व एम.एल.ए., मुख्यमंत्री, सांसद, रक्षामंत्री और सम्प्रति मुख्यमंत्री के पिताजी | उन्होंने तो मात्र ७६ किलो का केक, २  करोड़ का मंच, १२ करोड़ के नाचने और गाने वाले बुलाए हैं |चाहते तो क्या नहीं कर सकते थे ? लेकिन तुझे यह गाड़ी, यह केक का नाटक करने की क्या ज़रूरत थी |तुझे तो अपने कम्यूटेशन के समाप्त होने का हिसाब लगाना चाहिए कि कब समाप्त होगा और कब १५०० रूपए कटने बंद होंगे |

बोला- भाई साहब, गधा गाड़ी वाले ने मुफ्त में लिफ्ट दे दी थी और फिर मेरे लिए ५० किलो का केक उठाकर लाना संभव भी तो नहीं था |खैर, शेष ब्रेक के बाद | मुहूर्त निकला जा रहा है |

हम दोनों बरामदे में आगे बैठ गए | तोताराम ने अपना एक फोटो टांग दिया |जैसे ही कार्यक्रम शुरू हुआ दीप- प्रज्ज्वलन के बाद हमने फूलमाला फोटो पर डाल दी |

तोताराम उखड़ गया, बोला- इतना भी पता नहीं ? क्या उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मंत्री बंशीधर जी की तरफ फोटो पर फूलमाला डाल दी |कहीं जिंदा व्यक्ति के जन्म दिन पर माला डाल कर श्रद्धांजलि दी जाती है ?

हमने कहा- क्या जीते जी कोई श्रद्धास्पद नहीं हो सकता ? क्या श्रद्धा प्रकट करना गलत है ? शब्दों के चक्कर में मत पड़ |क्या 'अपेक्षा' और क्या 'उपेक्षा', होना तो वही है ना |

तोताराम ने केक से पर्दा हटाया- यह क्या, बड़े से पत्थर पर कोई एक किलो का केक |हमने कहा- तोताराम, यह क्या ? बोला- आपका लघु भ्राता हूँ | वास्तव में मितव्ययी |वैसे उम्र के हिसाब से मैं भी चोहत्तर किलो का केक ला सकता था लेकिन मैंने इसे अपने वज़न से जोड़कर ५० किलो का कर दिया और इसमें भी ४९ किलो का पत्थर का बेस और एक किलो का केक |

जैसे ही तोताराम ने केक का टुकड़ा हमारे मुँह में दिया, यह क्या  ? पहले थोड़ा सा केक का और फिर बाजरे का स्वाद | हमने पूछा- तोताराम, यह क्या चक्कर है ?

बोला- बन्धु, ऊपर-ऊपर केक और फिर अन्दर बाजरे का चूरमा | यह है अपना विकसित होने और महंगाई से लड़ने का तरीका |

हमने कहा- तोताराम, सरकार कुछ भी कर ले, महंगाई कितनी भी बढ़ जाए लेकिन तेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |







Nov 24, 2015

तोताराम का रेड कारपेट वेलकम

  तोताराम का रेड कारपेट वेलकम

कल कई दिनों के इंतज़ार के बाद कबाड़ी आया |हमने दिवाली पर रद्दी में मंदी को देखते हुए कबाड़ की क्लीयरिंग सेल नहीं की |उम्मीद थी कि दिवाली के बाद भाव कुछ चढ़ेंगे लेकिन वे सेंसेक्स, गाय और आम आदमी की तरह गिरते ही जा रहे थे |आखिर कब तक घर में कूड़ा रखे रहें, सो कहा- भैया,  आज हम रद्दी के भाव-पतन पर कोई मंथन या संवाद नहीं करेंगे |तोल भी तेरा और भाव भी तेरा |

पता नहीं, उसे हम पर कैसे और क्यों दया आई ? बोला- मास्टर जी, आज मैं आपसे  आपके फायदे का एक सौदा करना चाहता हूँ |

हमने कहा- ठीक है लेकिन यह तय है कि विदेशी निवेश या मेक इन इण्डिया तरह फायदा तो तुझे ही होगा फिर भी बता तो सही |

रेहड़ी पर रखे एक पुराने और कटे-फटे कारपेट की ओर इशारा करते हुए बोला-आज अपनी सारी रद्दी के बदले आप यह लाल रंग का कारपेट ले लें | बरामदे में पड़ा रहेगा |बरसात में भीग भी गया तो ख़राब नहीं होगा, सिंथेटिक है |सोचिए, आपके बरामदे की कितनी शोभा बढ़ जाएगी ? 

हमने कहा- यहाँ कौन से निवेशकों की मीटिंग हो रही है जो घर फूँक सजावट करेंगे |फिर भी कोई बात नहीं, बिछा दे बरामदे में |

उसने बरामदे में कारपेट बिछा दिया और हमारे बुढ़ापे का लिहाज़ करते हुए उस पर झाडू भी लगा दी |वाकई में बरामदे की रंगत बदल गई |

तभी तोताराम आया और आगे लगा- कारपेट के नीचे क्या है ?कारपेट के नीचे क्या है ?

हमने कहा- आज तक न तो बरेली के बाज़ार में खोया झुमका मिला और न ही चोली के नीचे के रहस्य का पता चला |राज़  को राज़ रहने दो |

बोला-मुझे पता है, कारपेट के नीचे बरामदे का फर्श है |

हमने कहा- इसमें क्या बात है ? बरामदे के नीचे फर्श ही तो होगा |

कहने लगा- और कुछ भी हो सकता है जैसे जब सफाई के लिए पर्याप्त समय नहीं हो और कार्यक्रम शुरू होने वाला हो तो कूड़े को कारपेट के नीचे ही सरकाया जाता है |और यदि बहुत जल्दी हो तो फटाफट टेकनोलोजी के एक्सपर्ट अधिकारी सजावट पूरी करने के लिए सब कुछ कारपेट से ढँक देते हैं |कौन देखता है ? बाद में समेटते रहेंगे |इसलिए समझदार व्यक्ति कारपेट पर कभी भी सबसे आगे नहीं चलता |क्या पता, कारपेट के नीचे नाली हो और उसका पैर फँस जाए |

तेरे यहाँ ऐसा कोई फटाफट के दिखावे का कार्यक्रम तो है  नहीं इसलिए बिना हिचक के सीधे-सीधे बैठा जा सकता है |

चल चाय मँगवा,तेरा रेड कारपेट और मेरा 'रिसर्जेंट राजस्थान में जयपुर में 'रेड कारपेट वेलकम' जो हुआ नहीं,  दोनों को सेलेब्रेट करते हैं |

Nov 23, 2015

वैज्ञानिकता : भविष्य के धर्म का आधार

 वैज्ञानिकता : भविष्य के धर्म का आधार 

जिस तरह अंतरिक्ष में सभी पिंडों को अंतरिक्ष ने घेर रखा है |इन पिंडों के लिए अंतरिक्ष के अतिरिक्त और कोई सत्य नहीं है |जल के समस्त जीवों के लिए जल में ही उत्पत्ति, जीवन और समापन हैं |उनके लिए इसके अतिरिक्त कोई गति नहीं है वैसे ही समस्त जीवों के लिए इस सृष्टि के अतिरिक्त कहीं कोई गति नहीं है |यदि जीवों के लिए इसके अतिरिक्त किसी लोक की कोई बात की जाती है तो वह विवादास्पद और अप्रामाणिक है |

अन्य जीवों की चेतना का पता नहीं लेकिन मनुष्य के लिए सुरक्षा, जीवनयापन के उपादान और विनाश के  सभी दृश्य/अदृश्य कारक इसी सृष्टि में व्याप्त हैं | वह उसके विनाशक, आश्चर्यकारक, मोहक सभी रूपों को समय-समय पर देखता और अनुभव करता है |वही उसके लिए परमशक्तिशाली और अनन्य है | उसने अपने इन अनुभवों, कृतज्ञता और भय को भांति-भांति से अभिव्यक्ति प्रदान की है |वेदों में विशेषरूप से सामवेद में प्रकृति/सृष्टि के इसी गीत-संगीत का भावलोक है |

इसके नियंता के रूप में जिस परम आत्म की संकल्पना है वह भी इस सृष्टि/प्रकृति से परे नहीं है |विभिन्न देवों और शक्ति केन्द्रों  (ब्रह्मा, विष्णु और शिव ) की कल्पना/स्थापना भी इसी ज्ञान/विज्ञान के रूप  हैं | सभी समाजों में यह सब किसी न किसी रूप में विद्यमान है | इसी क्रम में दृश्य के साथ अदृश्य जगत की अवधारणा भी सामने आती है |और इस अदृश्य लोक में वैचारिक लोगों की मनमानी चलती है जिसमें उनका अपना अज्ञान और स्वार्थ भी शामिल होता है |

चूंकि संचार और आवागमन के  साधनों के अभाव में तथा प्राकृतिक बाधाओं के कारण अलग-अलग द्वीपों में बंटे इस धरती के विभिन्न समाजों ने अपना-अपना  विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान विकसित किया | इसमें उनके विशिष्ट रिवाज, खान-पान, पहनावा भी शामिल थे जो उनके परिवेश और परिस्थितियों की उपज थे |उनका यह ज्ञान पूर्ण नहीं था लेकिन नितांत गलत भी नहीं था |विभिन्न समुदायों के संवाद के अभाव में उनका ज्ञान सीमित और एकांगी रहा आया |इसी कारण कालांतर में उसमें रूढ़ता, कट्टरता आती गई जिसे उन समुदायों ने अपनी अस्मिता और पहचान बना लिया और उसे कायम रखने के लिए संघर्ष करने को  ही धर्म मान लिया |ऐसे धर्म-युद्धों के अनेक वर्णन विश्व के सभी भागों से मिलते हैं |

जिस प्रकार आज बड़े आर्थिक व वर्चस्व के  हितों के लिए विभिन्न देशों में संघर्ष हैं वैसे अतिप्राचीन काल में भी पशुधन, खाद्य सामग्री, चारागाह अदि के लिए संघर्ष होते थे |विजित और विजेता होते थे |उनके अपने-अपने मनोविज्ञान होते थे |विजेता अपने को श्रेष्ठ और विजित को सब प्रकार से निकृष्ट सिद्ध करते थे |उनके साथ गुलाम और मालिक का रिश्ता रखते थे |विजित उनके प्रति घृणा और उपेक्षा भाव को जीवित रखने के लिए उन कुंठाओं को अपने धर्म और संस्कृति के मूल तत्त्वों में शामिल कर लेता था |कहीं -कहीं इन्हें संहिता-बद्ध भी कर दिया गया |

वास्तव में इनका मानव के विकास और सुख-दुःख से कोई संबंध नहीं होता |हाँ, अपने वर्चस्व, नेतृत्त्व के बल पर अपने निहित स्वार्थों की सिद्धि करने वालों के लिए ये अस्मिताएं/धर्म अधिक महत्त्वपूर्ण रहे हैं |सामान्य जन का कहीं भी, कभी भी , किसी से भी संघर्ष का कारण यदि रहा है भी तो वह जीवन यापन के सामान्य साधनों को लेकर ही रहा है अन्यथा सामान्य जन शांति और प्रेम से ही रहना चाहते हैं |उनकी जीवन से बहुत बड़ी आशाएँ और अपेक्षाएं नहीं होतीं |इसलिए वे किसी भी अशांति या युद्धों के कारण नहीं होते |उनके लिए तो धर्म का अर्थ कर्त्तव्य, जीवन का सहज उल्लास और उत्सव होता है |वे मिल बांटकर जीवन के सुखों-दुखों को भोगना चाहते हैं |अब यह समाज के विचारशील लोगों पर निर्भर है कि वे अपने समाज के सामने कैसे मूल्य और धर्म का कैसा स्वरुप प्रस्तुत करते हैं ?


विश्व के सभी क्षेत्रों और कालों के विभिन्न धर्मो और संप्रदायों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि उनमें सदाचार, नीति और कर्त्तव्य संबंधी सभी तत्त्व जैसे सहयोग, उदारता, करुणा, प्रेम आदि समान हैं |इनके बारे में कहीं विवाद और विरोध नहीं है लेकिन कुछ महत्त्वहीन मुद्दों जैसे खानपान, पहनावा, दाढ़ी-मूँछ, पर्दा प्रथा, धर्म-स्थलों, पूजा पद्धतियों आदि में बहुत भिन्नता है और प्रायः वही विवाद और झगडे का कारण भी दिखती हैं |
सभी धर्मों का अध्ययन करके उन्हें विवेक सम्मत और वैज्ञानिक बनाया जा सकता है |

सभी इस बात पर सहमत हैं कि ईश्वर एक है, उसका कोई निश्चित स्वरुप नहीं है, सभी जीव उसके उपजाए हुए हैं | इसलिए इस एकता को स्वीकार करते हुए, उसे आधार बनाते हुए, अब तक के विश्व के सभी धर्मो की कमियों को  इस ज्ञान और विज्ञान के आधार पर कसा जाना चाहिए |इसे विज्ञान ने तत्त्वदर्शन का नाम दिया है और भारत में जिसे आदि शंकराचार्य ने अपने अद्वैत-दर्शन के रूप में व्याख्यायित किया है |

रामचरित मानस के उत्तर कांड में भगवान राम काकभुशुण्डी को चेतना  की विभिन्न स्थितियों से क्रमिक विकास के बारे में बताते हुए कहते हैं- मुझे जीवों में मनुष्य, मनुष्यों में द्विज, द्विजों में वेदज्ञ, वेदज्ञों में विरक्त, विरक्तों में ज्ञानी और ज्ञानियों में विज्ञानी सबसे अधिक प्रिय हैं |इस प्रकार समस्त मानव चेतना का सर्वश्रेष्ठ और निर्विवाद रूप विज्ञान में मिलता है क्योंकि ज्ञान निरपेक्ष, निर्विवाद और सत्य होता है | वह ज्ञान की इतर, श्रेष्ट और तार्किक व्याख्या होने पर उसे बिना किसी विरोध और विवाद के स्वीकार कर लेता है |यही विज्ञान की श्रेष्ठता का आधार है |

इसी के आधार पर किसी सर्व स्वीकार्य धर्म, सिद्धांत या विचार या नियम की कल्पना की जा सकती है |संभवतः ईमानदारी से विचार किया जाए तो इसे कोई अस्वीकार नहीं करेगा |किसी के निजी या व्यक्तिगत स्वार्थों में बाधा आने की स्थिति में  बात और है जैसे कि सूर्य और पृथ्वी के बारे में तत्कालीन वैज्ञानिक स्थापनाओं में चर्च ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में दखल और अंततः अपनी सत्ता के खिसकने के डर के कारण इसका विरोध किया था |आज किसी को भी इस स्थापना के बारे में ऐतराज़ नहीं है |इसी लिएविज्ञान के सभी नियम सभी धर्मों वाले देशों में निर्विरोध स्वीकार्य हैं |कहीं की भी पुस्तकों में विज्ञान के दो तरह सिद्धांत नहीं होते |विज्ञान ईसाई,हिंदी, यहूदी, मुसलमान, जैन बौद्ध नहीं होता |वह रिलीजन या मज़हब के आधार पर किसी नस्ल, रंग, भाषा और जीवन के स्वरूप कमतर या बेहतर नहीं आँकता |वह जीवन की दृष्टि से अपने फैसले और प्राथमिकताएं निर्धारित करता है |वही सच्चा धर्म और दर्शन है |

आगे आने वाले समय में निश्चित रूप से विज्ञान का समावेश और उसे स्वीकार करके चलने वाला धर्म ही टिकेगा |अब धर्म का भविष्य अंधविश्वास, कुतर्क और धर्म के नाम पर घृणा के बल पर नहीं चल सकेगा | यह  बात और है कि सभी धर्मों के भले और शांति-प्रिय लोग आज असहिष्णुता और अपराधी वृत्ति के धर्मांध लोगों से डर कर चुप हैं लेकिन मन ही मन सभी ऐसे ही किसी विज्ञान और सत्य आधारित, तथ्यात्मक धर्म को पसंद करते हैं |इसी को मानव-धर्म भी कह सकते हैं |

आज के इस भयप्रद, अशांत और असहिष्णु समय में ऐसा विज्ञान सम्मत धर्म  ही शांति, सद्भाव और प्रेम का उजाला दिखा सकता है |ऐसे में सबको अपनी अपनी कट्टरता, पूर्वाग्रह, श्रेष्ठता और हीनता ग्रंथि, भौतिक स्वार्थ छोड़ने के बारे में ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से काम करना होगा |ऐसा नहीं चलेगा कि कुछ विश्व शांति की आड़ में हथियारों के व्यापार,जोड़-तोड़ और कूटनीति के नाम अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहे हैं और अन्यों से विज्ञान सम्मत धर्म के नाम पर अतिरिक्त उदारता और छूट की आशा करें |

किसी बड़े और पवित्र वैश्विक-यज्ञ में सब को उदार भाव से अपने स्वार्थों और कुंठाओं की आहुति देनी होगी |याद रहे, किसी भी जंजीर की ताकत उतनी ही होती है जितनी उसकी किसी सबसे कमजोर कड़ी की होती है |










Nov 21, 2015

तोताराम के साथ एम. ओ यू.

  तोताराम के साथ एम.ओ. यू. 

यह क्या ? उधर 'रिसर्जेंट राजस्थान ' शुरु और ठीक उसी समय मतलब १९ नवम्बर २०१५ की सुबह नौ बजे तोताराम हमारे बरामदे में हाजिर | हमने पूछा- क्या सम्मिट से पहले ही तेरा ड्रीम प्रोजेक्ट अप्रूव हो गया ? अब बता, पहले अपने प्रोजेक्ट का फुल फॉर्म बताएगा या प्रोजेक्ट के डिटेल्स या 'ला फ्यूरा' की कलाबाजियों के बारे में  ?

बोला- तू भी साँस ले और मुझे भी लेने दे और भाभी से एक कड़क चाय और पानी का गिलास मँगवा |

हमने पूछा- क्या वहाँ चाय भी नहीं मिली ?

बोला-मिली होती तो आते ही तेरे सामने हाथ फैलाता क्या ?

खैर, चाय आई और चाय पीते-पीते तोताराम में जो बताया वह इस प्रकार था- प्रोजेक्ट का नाम कल तो याद था लेकिन अब हड़बड़ी में मैं खुद ही  भूल गया हूँ | यही समझ ले बस; कैर, काचरी से संबंधित कुछ था | सुबह-सुबह  सिन्धी कैम्प उतरकर रिक्शे वाले से पूछा- रिसर्जेंट राजस्थान चलेगा ?

तो बोला- यह कहाँ है ?

मैंने कहा-यहीं है |जयपुर में |देश-विदेश के बड़े-बड़े  धुरंधर धनी उद्योगपति इकट्ठे हो रहे हैं |होटल में मिलेंगे और कलाबाजियां देखेंगे और कुछ धंधे-पानी की बात करेंगे |
  
तो पूछने लगा- क्या तू उनसे किसी गौशाला के लिए चंदा माँगने आया है ?

मैंने कहा- चंदा माँगने नहीं, राजस्थान के  जायके को विश्व पटल पर स्थापित करने आया हूँ |

तो बोला- बाबा, तेरी बात तो मुझे समझ में आती नहीं लेकिन यह पक्का है कि आज और दिनों जैसी बात नहीं है |शहर की सुरक्षा, व्यवस्था, यातायात आदि बड़े-बड़े अधिकारी सँभाल रहे हैं यहाँ तक कि सड़कों पर लटके हैंगिंग गार्डन में पानी भी वे ही दे रहे हैं |कल तो सड़कों पर से गाएं भी वे ही भगा रहे थे |परिंदा भी पर नहीं मार सकता |इसलिए अच्छा होगा कि चुपचाप निकल ले लौटती बस से | २१ तारीख़ को आना जब सब नार्मल हो जाए |किसी पुलिस वाले ने, किसी शक में अन्दर कर दिया तो मुश्किल हो जाएगी |सो लौट आया |

हमने पूछा- तो अब तेरे इस कैर-काचरी प्रोजेक्ट का क्या होगा ?

बोला- होगा क्या ? अब मैं स्थानीय स्तर विद्यालयों में काचर छीलने और कैर चूँटने की प्रतियोगिताएं करवाऊँगा और फिर इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक ले जाऊँगा | मैथ्स ओलंपियाड की तरह इनके भी ओलंपियाड करवाऊँगा | इससे राजस्थान के इस विशिष्ट स्वाद कैर के अचार और काचरी की चटनी का विश्व में प्रचार होगा जिससे राजस्थान में औद्योगीकरण होगा, ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को गति मिलेगी | गाँव-गाँव खुशहाली और समृद्धि आएगी |

हमने कहा- तोताराम, हम तुम्हारे इस प्रदेश-प्रेम से बहुत प्रभावित हैं |भले ही तुम्हें रिसर्जेंट राजस्थान में घुसने का मौका नहीं मिला लेकिन हम तेरे साथ 'मेमो ऑफ़ अंडर स्टेंडिंग'  साइन करते हैं | बैठ, आज तेरी भाभी ने देशी बाजरे की रोटी, लहसुन- काचरी की चटनी और मट्ठा बनाया है, उसी के साथ सेलेब्रेट करते हैं |

बोला- यही तो है 'रिसर्जेंट-राजस्थान' लेकिन बाज़ार की चकाचौंध के मारों को कुछ समझ में आए तो ? जल्दी ला | पता नहीं, विकास की इस दौड़ में गाँवों में फिर कैर और काचरी मिलें या नहीं |





Nov 18, 2015

रिसर्जेंट और वाइब्रेंट तोताराम

 रिसर्जेंट एंड वाइब्रेंट तोताराम 

हम बरामदे में बैठे चाय का इंतजार कर रहे थे कि सिर पर चूंदड़ी की राजस्थानी पगड़ी, घुमावदार मूँछे, दुलंगी धोती और पैरों में कढ़ाई वाली मोचड़ी पहने एक आकृति हमारे सामने आकर गिर पड़ी |हम तो घबरा गए |वस्त्रों से तो पहचान नहीं पाए पर जैसे ही उस काया को उलटा तो- तोताराम | हे राम, सुबह-सुबह यह क्या हुआ ? सात दशकों का साथी तोताराम | हमारी ही बाँहों में इसे अंतिम साँस लेनी थी |चिल्लाते हुए अन्दर गए पानी लेने कि इसके चेहरे पर छींटे मारकर होश में लाने की कोशिश करें |वापिस आए तो देखा तोताराम पालथी मारे बैठा है |हमने टेस्ट करने के लिए उठाया तो काँपता हुआ फिर गिर पड़ा |फिर उठाया तो दस सेकण्ड बाद फिर गिर पड़ा |
हमने पूछा- क्या पैर सो गया या मोच आ गई ?और काँप भी रहा है क्या सर्दी लग रही है ?
बोला- कुछ नहीं |डिक्शनरी देख |
हमें बड़ा अजीब लगा |हम बीमारी पूछ रहे हैं और यह डिक्शनरी की बात कर रहा है |दुबारा खड़ा किया तो फिर वही हाल |फिर बोला- डिक्शनरी देख |
हम डिक्शनरी लाए और पूछा- बता क्या देखना है ?
बोला-रिसर्जेंट और वाइब्रेंट के अर्थ देख |
हमने देखकर बताया- रिसर्जेंट अर्थात फिर उठ खड़ा होने वाला और वाइब्रेंट अर्थात झनझनाता हुआ |
बोला- मैं एक साथ रिसर्जेंट राजस्थान और वाइब्रेंट गुजरात का प्रतिनिधित्त्व कर रहा हूँ |
हमने माथा पीट लिया, कहा- अब तो उठ रिसर्जेंट और वाइब्रेंट तोताराम |बेवकूफ, तूने तो डरा ही दिया था |

बोला- चल, मैं तो रिसर्जेंट-राजस्थान में भाग लेने जयपुर जा रहा हूँ |यदि तेरा मन हो तो तू भी चल | 'ला फ्यूरा' देख आना |
हमने कहा- यह क्या है ? 
बोला- यह स्पेन का एक दल आया है जो इस कार्यक्रम में कलाबाजियाँ दिखाएगा |
हमने कहा- इसके लिए स्पेन से बुलाने का खर्चा करने की क्या ज़रूरत थी | दुनिया में कहीं भी निगाह डाल लो कलाबाजियाँ ही चल रही हैं |सब तीन को तेरह दिखाने के चक्कर में तीन-तेरह हुए जा रहे हैं | अरे, जब रसोई में सामान ही नहीं है तो कप-प्लेट और टेबल-कुर्सियों से काम थोड़े चलेगा ? और न ही कलाबाजियों से पेट भरेगा |बच्चे को दूध चाहिए, चुसनी से कब तक चुप रहेगा ? 


बोला- ऐसे समय में मज़ाक ठीक नहीं |दूर-दूर से मेहमान आए हैं |हँस-बोल कर स्वागत करो |
हमने कहा- सो तो करने वाले करेंगे ही लेकिन तुझे किसने बुलाया है जो मूँछों पर ताव दे रहा है ?
कहने लगा- अरे, हम राजस्थानी हैं, मेज़बान हैं |किसके बुलाने का इंतज़ार करेंगे ?
हमने कहा- लेकिन वहाँ तो इन्वेस्टमेंट करने वाले आए हैं |तू क्या इन्वेस्ट करेगा ? हाँ, भले लोगों का टाइम ज़रूर वेस्ट करेगा |यहीं रह |चाय आ रही है |
बोला- मुझे भी इन्वेस्ट करना है | अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक तकनीकी संस्थान स्थापित करना है |
हमने कहा- कोई ढंग का काम कर |हमारे राज्य और शहर में तो पहले से ही गली-गली में बस, होस्टल सुविधा वाले ऑक्सफोर्ड और केम्ब्रिज खुले हुए हैं |और कुछ तो बिना एडमीशन और परीक्षा के ही घर पर डिग्री की डिलीवरी दे देते हैं तो किसी संस्थान की ज़रूरत ही क्या है ?
बोला-  मेरा संस्थान इनसे भिन्न है | राजस्थान को विश्व पटल पर स्थापित कर देने वाला- के.के.ऍफ़.सी.इंटरनेशनल |
हमने पूछा- यह क्या है ?
बोला- यह सब एक लम्बे ब्रेक के बाद |अब चाय मँगवा |
हमें कल का इंतजार है |शायद पाठकों को भी |



Nov 10, 2015

लौटाने जा रहा हूँ

  लौटाने जा रहा हूँ 

आज तोताराम अन्दर नहीं आया, दरवाजे से ही आवाज़ लगाई- चल, जल्दी तैयार हो जा, लौटाना है तो |मैंने तो लौटाने का फैसला कर लिया है |

हमने घर के अन्दर से ही कहा- तेरे पास है क्या लौटने के लिए ? एक प्राण हैं जो तू नहीं लौटाएगा तो यमदूत अपने आप ही समय पर आकर ले ही जाएँगे और तेरी यह 'ज्यों की त्यों चदरिया' मुक्तिधाम में पञ्च तत्त्व में विलीन कर दी जाएगी | यदि बच्चों ने अखबार में तीये-उठावने की खबर नहीं छपवाई तो किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तोताराम कब फुर्र हो गया ?

तोताराम ने ऊँची आवाज़ में उत्तर दिया- अरे, इतने कठोर वचन तो कुर्सी के लिए देश का सत्यानाश कर डालने वाले सेवकों ने भी बिहार के चुनावों में एक-दूसरे को नहीं कहे होंगे, इतनी दुर्भावनापूर्ण बद् दुआ तो तंत्र-मन्त्र और हस्त रेखा में विश्वास करने वाले विकास-पुरुषों ने भी  नहीं की होगी |वैसे क्या तू मुझे मूर्ख समझ रहा है ? अभी तो जुलाई २०१५ से बढ़े डी.ए. का एरियर भी नहीं मिला, तिस पर २०१६ वाला पे कमीशन दरवाजे पर दस्तक दे रहा है ऐसे में भले ही शरशैया पर पड़ा रहना पड़े लेकिन यह तन-चदरिया नहीं छोडूँगा |पर मुझे लौटाने तो जाना ही है |यदि तू चले तो तेरी मर्ज़ी, अच्छा रहता साथ हो जाता |कल शाम तक वापिस लौट आएँगे | 

हमने कहा- तोताराम, तेरे पास कौनसा पुरस्कार है जो लौटाएगा ?

बोला- बन्धु, मेरे पास कोई पुरस्कार नहीं है |मैं तो अमित जी की तरह गैस कनेक्शन पर मिलने वाली सब्सीडी लौटाने जा रहा हूँ |मेरा भी अखबार में नाम आ जाएगा |

हमने कहा- आजकल जिसे देखो कुछ न कुछ लौटाने के लिए दिल्ली की तरफ भागा जा रहा है |ऐसे ही  लौटने वालों के विरुद्ध दिल्ली में अनुपम खेर जी ने मोर्चा खोल रखा है |इस बार वे कोमेडी नहीं, सुपर मैन वाला रोल कर रहे हैं |उनके सामने पड़ गया तो ऐसा उठाकर फेंकेंगे कि पकिस्तान में जाकर गिरेगा | फिर पता नहीं, कब गीता की तरह तेरी वापसी हो | इसलिए दिल्ली स्टेशन पर उतरते ही अपने हाथ में एक बैनर ले लेना- 'मैं पुरस्कार या सम्मान नहीं,गैस सब्सीडी लौटाने जा रहा हूँ |'

लेकिन तू गैस सब्सीडी क्यों लौटा रहा है ? जब सांसद ही सब्सीडी वाला खाना खाने में संकोच नहीं करते तो तू क्या क्रीमी लेयर वाला बना फिरता है ? अमित जी की बात और है |उन्होंने तो उत्तर प्रदेश सरकार की यश-भारती वाली अपनी ५० हजार रूपए महीने वाली पेंशन भी लौटा दी | वे अफोर्ड कर सकते हैं | वैसे जहां तक अखबार में नाम की बात है तो आजकल दुष्टों का नाम ज्यादा आता है |देखा नहीं, एक तरफ सारा देश और एक तरफ छोटा राजन की खबरें |लगता है, जैसे रावण को मारकर चौदह वर्ष बाद राम अयोध्या लौटे हों |

बोला- वैसे भी जब दाल है नहीं तो किसे गलाने के लिए गैस चाहिए ?और अब  आगे चार महीने की सर्दियाँ हैं सो नहाने के लिए पानी गरम करने का झंझट भी नहीं | इसलिए सोचता हूँ कि इस बहाने ही सही, त्यागी महानायकों में नाम लिखवा लूँ |

 बात लम्बी होते देख, हम बरामदे में आ गए | तोताराम को चाय का कप पकड़ाते हुए कंधे पर हाथ रखकर प्यार से पूछा- क्या वाकई तू सब्सीडी लौटना चाहता है ? सोच, हमें इस पेंशन और गैस सब्सीडी के अलावा और मिलता ही क्या है  ? बिना बात परमवीर चक्र की तरह गले में आधार कार्ड और राशन कार्ड डाले फिरते हैं | लगता है, बात कुछ और ही है |
बोला- भाई साहब, कल ही जेतली जी ने कहा है कि एक खास आमदनी के बाद गैस सब्सीडी बंद कर दी जाएगी |सो हमारा नंबर भी आया ही समझो |अच्छा है कोई आरोप लगाकर नौकरी से निकले, उससे पहले ही त्याग-पत्र दे दो |

हमने कहा- तो फिर रुक, हम भी तेरे साथ चलते हैं |
 कुम्भकर्ण का पुनर्जन्म

एक था कुम्भकर्ण- लंका के राजा रावण का भाई | उसने ब्रह्मा से वरदान माँगा कि मैं छः महिने जागूँ और एक दिन सोऊँ | ब्रह्मा उसकी फितरत जानते थे इसलिए उन्होंने उसकी मति फेर दी सो उसने माँग लिया- छः महिने सोऊँ और एक दिन जागूँ | ब्रह्मा ने तथास्तु कह दिया |

ब्रह्मा के वरदान से सृष्टि की रक्षा हो गई | यदि वह छः महिने जागता और एक दिन सोता तो इस सृष्टि की सारी खाद्य और अखाद्य सामग्री खा जाता | वह छः महिने सोता था सो कुछ पैदा करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता | इसके बावज़ूद सृष्टि पर संकट नहीं आया क्योंकि वह केवल एक दिन जागता था | भगवान राम ने उसका वध किया | पर जैसा कि सृष्टि का नियम है, जिसकी मोक्ष नहीं होती उसका पुनर्जन्म होता है | तब फिर प्रभु का अवतार होता है | अब की बार इस कुम्भकर्ण का पुनर्जन्म अमरीका में हुआ है | अबकी बार यह सावधान था इसलिए उसने वार माँग लिया कि मैं कभी न सोऊँ |

कभी न सोने वाला और केवल भोग ही करने वाला यह कुम्भकर्ण अपने को मनीषी भी कहता है | इसने एक नई संस्कृति, एक नया चिंतन दिया है जिसका नाम है- उपभोक्ता संस्कृति | इस संस्कृति के अनुसार मानव का जन्म अधिक से अधिक उपभोग करने के लिए हुआ है | जितना अधिक उपभोग किया जाएगा उतना ही अधिक उत्पादन करना पड़ेगा, उतना ही अधिक व्यापार होगा, उतना ही अधिक विकास होगा और उतने ही अधिक संबंध होंगे | हालाँकि भूख-प्यास सीमित होती है पर सीमित भूख-प्यास से उपभोग सीमित हो जाएगा | इसलिए मानव की भूख-प्यास बढ़ाने के लिए तरह-तरह के नुस्खे विकसित किए गए हैं | इन नुस्खों में सबसे महत्वपूर्ण है विज्ञापन | इसके द्वारा मानव की भूख-प्यास को बढ़ाया जाता है और इसमें सहायता करते हैं विभिन्न प्रकार के गंधर्व, किन्नर और अप्सराएँ | ये अपने हाव-भाव, देह और आचरण से यह विश्वास दिलाते हैं कि भोग ही जीवन का सार है और विवेकहीन लोग उनका अनुसरण करते हैं |

कुम्भकर्ण दुनिया की एक चौथाई ऊर्जा का उपभोग करता है और उतना ही अधिक प्रदूषण फैलाता है | यह चाहता है कि इसके संसाधन भविष्य के लिए सुरक्षित रहें और फ़िलहाल यह विश्व के अन्य संसाधनों पर अधिकार करके उनका उपभोग करना चाहता है | इसके लिए यह चाहता है कि सारा विश्व उदार हो जाए अर्थात अपने दरवाजे खुले छोड़कर सोए और इसे अपने यहाँ के संसाधनों का दोहन करने दें | जो संयम की बात करते हैं वे इसे अपने दुश्मन लगते हैं | मितव्ययिता की बात करने वालों को यह येन-केन-प्रकारेण हटाना चाहता है | उन्हें पिछड़ा हुआ तथा विकास और लोकतंत्र का विरोधी करार देता है | अब यही न्यायाधीश है तो अपराधियों को सजा होनी ही है |

दीपावली श्रम का उजाला है तो अति भोग कामचोरी का अँधेरा है | भगवान राम की विजय इसी उजाले की विजय का पर्व है, इसी का लोक-उल्लास है | केवल महलों में जन्म लेने वाले राम नहीं बनते- राम बनते हैं महलों के सुख-भोग को त्याग कर वनवास में जाने वाले |
बहुत कठिन है धरम राम का
बन-बन पड़े भटकना, भगतो |
भोग का कुम्भ्कर्ण संयम, त्याग और वैराग्य के अवतार द्वारा ही मारा जाता है अन्यथा यह सारी यज्ञ-संस्कृति का विनाश कर देगा |

यज्ञ श्रम से अर्जित कर, निष्काम भाव से लोक के लिए विसर्जित करने का नाम है | इन्हीं यज्ञों का ये कुम्भकर्ण विध्वंस करते हैं | यज्ञ ही जीवमात्र में संवेदना का सन्देश बनते हैं | केवल पशुवत स्वयं के लिए भोग, और भोग की अनंत तृष्णा वाले अकेले हो जाते हैं | इसका कुम्भकर्ण के लोक में आई प्राकृतिक विपदा के समय लोगों के आचरण से पता चला | जिसके पास साधन थे वे भाग लिए, अपने किसी भी साथी या पड़ोसी की चिंता नहीं की |

भोग की संस्कृति में भोग ही पुरुषार्थ है | भोग ही आदि और भोग ही अंत है | जब कि यज्ञ की संस्कृति में भोग का निषेध नहीं है किन्तु उसकी एक व्यवस्था है | धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का एक क्रम है | धर्म (उचित) को जानो, धर्माचरण करते हुए धनार्जन करो जिससे तुम्हें भोग का अधिकार मिलेगा और तभी तुम्हारा मोक्ष होगा | धर्महीन भोग से मोक्ष नहीं मिलता | और कुम्भकर्ण को बार-बार जन्म लेना पड़ता है | तभी ईशावास्य उपनिषद में कहा गया है- 'त्यक्तेन भुञ्जीथा' अर्थात त्यागपूर्वक भोग करो | प्यास के बिना जल, भूख के बिना भोजन, वियोग के बिना संयोग का कोई आनंद नहीं है | इस निरानंद भोग की परिणति बीमारियों और कुंठा में होती है और कुंठाओं का यही लोक कुम्भकर्ण का लोक है | विष्णु का लोक है- वैकुंठ | वैकुंठ के स्वामी विष्णु लक्ष्मी के अधिपति हैं | कल्पवृक्ष पर उनका अधिकार है क्योंकि उन्हें सृष्टि का पालन करना है | जिन्हें केवल स्वयं के लिए भोग चाहिए वे असुर हैं | वे अमृत चुराना चाहते हैं जिससे वे अमर हो सकें | इसी अमृत की रक्षा के लिए विष्णु को बार-बार अवतार लेने पड़ते हैं | अमृत यज्ञ करने वालों के हाथों में ही सुरक्षित है |

यह अमृत है हमारा संयम, हमारी तपस्या | तपस्या से ही ब्रह्मा सृष्टि का सृजन करते है , तपस्या से ही विष्णु उसका पालन करते हैं | आइये, दीपावली को श्रम की आराधना, आनंद का उत्सव और विसर्जन का यज्ञ बनाएँ | इसी से कुम्भकर्ण का मोक्ष होगा |

-रमेश जोशी
सीकर
(मो)९४६०१-५५७०० under publication. Jhootha Sach

Nov 8, 2015

कैसी रही गिफ्ट

   कैसी रही गिफ्ट 

आते ही तोताराम ने हमारे सामने अखबार रखते हुए कहा- ये गिफ्ट देने वाले भी बड़े  अजीब हैं |बिना सोचे समझे किसी को कुछ भी गिफ्ट दे देते हैं जब कि नेताओं को पाँच हजार से ज्यादा की गिफ्ट तो सरकारी तोशाखाना में जमा करवानी होती है और लोग समझते हैं कि फलाँ-फलाँ को फलाँ-फलाँ कीमती गिफ्ट मिली |बहुत कम ही ऐसे साहसी होते हैं जो इन्हें सरकारी तोशाखाना में जमा करवाने की बजाय घर ले जाते हैं यह बात और है कि जब हल्ल्ला मचता है तो मन मार कर जमा करवाना पड़ता है |आदमी को चाहिए कि सोच समझकर गिफ्ट ले और फालतू की गिफ्ट ले ही नहीं और न ही पाँच हजार से ज्यादा की ले |

हमने कहा- बन्धु, ज़रा स्पष्ट करो |

बोला-  क्या स्पष्ट करूँ, मोदी जी को झुमके, शीशा, केतली, चाय पत्ती, टोपी, चटाई, तीर-कमान आदि दिए |अब बता वे झुमके किसे पहनाएंगे ? वे तो ब्रह्मचर्य आश्रम में ही संसार की भलाई के लिए सीधे संन्यास ले चुके हैं | अब झुमके कहाँ तक सँभालेंगे ? यदि कहीं बरेली चले गए और झुमका खो गया तो शेष सारा कार्यकाल झुमका ही ढूँढ़ते रह जाएँगे और तिस पर भी मिलने की कोई गारंटी नहीं |साधना को तो झुमका आज तक मिला नहीं जो इन्हें मिलेगा |केतली, चाय पत्ती का भी क्या करेंगे ?अब चाय के लिए समय ही कहाँ बचा है ? जहाँ तक शीशे की बात है तो सेल्फी से बढ़िया आत्ममुग्ध करने वाला कोई शीशा हो नहीं सकता | टोपी वे किसी से पहनते नहीं तो फिर उनसे कौन पहनेगा ? चटाई साल में एक बार योग दिवस के अतिरिक्त कब काम आएगी ?अन्य कीमती सामान सरकारी तोशाखाना में जमा करवा दिया होगा |अच्छा रहा, जो घोड़ा मंगोलिया में ही छोड़ आए |वैसे जब तक उनके पास स्पष्ट बहुमत है तो घोड़े तो यहाँ भी मुफ्त में बिकने के लिए उनके बँगले के आसपास चक्कर लगा रहे हैं |इस ट्रेड की अब उन्हें कोई आवश्यकता नहीं |और तीर-कमान का तो कोई काम ही नहीं है |वे तो बातों-बातों में ही तीर चलाने का मौका निकाल लेते हैं |

हमने कहा- और मनमोहन जी को भी ऐसे ही अजीब तोहफे दिए गए हैं |उन्हें २१ लाख की तलवार दी गई है |उन्होंने तो अपने धर्म वाली तलवार का ही उपयोग नहीं किया |ऐसी कीमती तलवारें तो सजाने के लिए होती हैं जो कहीं सरकारी म्यूजियम में रखी होगी |और चाय की केतली दे दी लेकिन चाय-पत्ती नहीं दी |वैसे दे दी होती तो भी वे चाय के मामले में मोदी से जीत नहीं सकते |खैर, झुमके और नेकलेस तो मैडम के काम आ जाएँगे |

तोताराम ने आगे कहा- लेकिन सुषमा जी टाई का क्या करेंगी ? वे तो शुद्ध भारतीय परिधान पहनती हैं |एक महिला अधिकारी को तो शराब की बोतलें भी दी हैं |पता नहीं, वे उनका क्या करेंगी ?

हमने कहा- जून २०१४ में सोनिया जी को किसी ने पत्थर का एक कटोरा ही दे दिया |कटोरा तो उन्हें दिया जाना चाहिए था जिन्हें अब 'मेक इन इण्डिया' के लिए विदेशों से निवेश लाना है |

बोला- छोड़ ये सब बातें |जिन्हें मिला है वे जानें |मुझे तो यह बता, मुझे सेवा-निवृत्ति पर जो एक साफा पहनाया गया था उसका क्या करूँ ? कोई ग्राहक हो तो बता, दस रुपए में दे सकता हूँ |

हमने कहा- इससे तो अच्छा है, अपने वार्ड पार्षद को बुलाकर अभिनन्दन कर दें और साफा पहना दें |क्या पता, इसी बहाने गली की सफाई हो जाए |

बोला- ठीक है, देखेंगे लेकिन अब तू मध्यप्रदेश का एक सच्चा किस्सा सुन |किसी तिवारी को एक यजमान ने एक गाय दान में दी |अब उस गाय ने बछड़ा तो दे दिया लेकिन दूध नहीं दे रही है |तिवारी बाज़ार से दूध लाकर बछड़े को पाल रहे हैं |
कैसी रही यह गिफ्ट ? 

हमने वैसे ही पूछ लिया- तोताराम, यदि तू नेता हो और तुझे कोई गिफ्ट दे तो तू क्या लेना चाहेगा ?
बोला- दस-दस किलो दाल,प्याज और सरसों का तेल |तोशाखाना में जमा करवाने का झंझट नहीं, ये सर्दियाँ  तो मजे से निकल जाएँगी |आगे जिंदा रहे तो फिर सोचेंगे |इस उम्र में ज्यादा लम्बी प्लान नहीं बनानी चाहिए |



Nov 5, 2015

इनटोलरेंस कहाँ है

  इन टोलरेंस कहाँ है ?

आज सुबह-सुबह तोताराम एक डंडा लिए हाज़िर हुआ |डंडे को दो-चार बार हमारे पास बरामदे के फर्श पर ठकठकाया और बोला- इनटोलरेंस है ? 

हमने कहा- क्या तू कोई  पुलिसिया है और क्या किसी ने इनटोलरेंस की चोरी की रिपोर्ट लिखवाई है ? 

बोला- मज़ाक मत कर |इस समय इनटोलरेंस के कारण देश पर बड़ा संकट आ गया है |जेतली जी ने पूछा है- इनटोलरेंस कहाँ है ? हालाँकि वे भी अपने स्तर पर खोज रहे हैं लेकिन इतना बड़ा देश |कहाँ-कहाँ खोजेंगे ? तो सोचा क्यों न मैं ही कुछ मदद कर दूँ |सो तेरे यहाँ से ही शुरुआत कर रहा हूँ |

हमने कहा- हाँ, है | 

बोला-  तुझे पता है, तू क्या कह रहा है ?

हमने कहा- क्या हमें इतनी अंग्रेजी भी नहीं आती ? जैसे अंग्रेजी में लोग कहते हैं- 'आई एम इन लव' मतलब कि मैं प्रेम में हूँ सो वैसे ही मैं 'इन टोलरेंस' हूँ अर्थात टोलरेंस में हूँ |

बोला- भले आदमी ऐसी अंग्रेजी या तो तू बोल सकता है या फिर लालू जी |
तू जो कह रहा है उसका मतलब यह है कि तू असहिष्णु है |और इस समय बहुत से लोग असहिष्णु हो रहे हैं जिससे देश की एकता के लिए खतरा पैदा हो गया है |देश की एकता, समृद्धि  और विकास के लिए यह ज़रूरी है कि छोटी छोटी बातों को लेकर उद्विग्न न हों |आपस में नहीं, गरीबी से लड़ें |

हमने कहा-फिर साफ-साफ बताना चाहिए ना |ऐसे समय में भी अंग्रेजी छाँट रहा है |अगर असहिष्णुता यदि देखनी है तो राजनीति करने वालों के यहाँ जा |वे ही सबसे ज्यादा असहिष्णु है |ज़रा सा वोट बैंक खिसकता दिखा नहीं, या अपनी पार्टी हारती दिखी तो उनकी आत्मा फटाफट दल-बदल के लिए प्रेरणा दे देती है या छोड़ी हुई पार्टी में भविष्य दिखा तो घर-वापसी कर लेते हैं |बिहार में देखा नहीं कैसे गाली गलौच कर रहे हैं |

कहने लगा- मैं तुझे तेरी बात पूछ रहा हूँ कि क्या तू असहिष्णु है ?

हमने कहा- हम तो कभी असहिष्णु नहीं हुए |एक बार हमारे विषय में सभी विद्यार्थी पास हो गए- आधों को डिस्टिंगशन,शेष फर्स्ट डिवीजन और एक सेकण्ड डिवीजन लेकिन प्राचार्य के पुत्र को डिस्टिंगशन नहीं मिली तो उन्होंने हमें मेमो दिया कि आपका रिजल्ट गुणात्मक दृष्टि से ठीक नहीं है |हम तब भी असहिष्णु नहीं हुए और उत्तर दिया कि भविष्य में ध्यान रखूँगा |दो बार इनकम टेक्स का रिफंड नहीं मिला तो भी हमने सहिष्णुता बनाए रखी |हमारे घर के सामने की ट्यूब लाईट दो महीने से ख़राब पड़ी है |हमारी किसी ने नहीं सुनी तो भी हमने सहन कर लिया |एक बार बिजली वालों ने गलत बिल वसूल कर लिया जिसका साढ़े चार सौ रुपया आठ साल बाद भी नहीं लौटाया लेकिन हमने बर्दाश्त कर लिया |
निठारी कांड हुआ, स्वर्णिम चतुर्भुज वाले सत्येन्द्र दुबे की हत्या हो गई, कश्मीर से हिन्दू पंडितों को भगा दिया, किसी ने कश्मीर में आई एस का झंडा फहराया, किसी ने तिरंगा जला दिया, किसी ने तिरंगे पर रखकर शराब पी हमने कुछ नहीं कहा | जब से अरहर की दाल दो सौ पार कर गई तो हमने खाना छोड़ दिया लेकिन सहिष्णुता नहीं छोड़ी, डी.ए. की किश्त देर से मिली मगर चुप रहे और अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि २००२ के बाद वालों को पे कमीशन का लाभ २००६ से दिया जाए लेकिन हमारे डिपार्टमेंट वाले कुछ नहीं सुन रहे हैं लेकिन हम तब भी असहिष्णु नहीं हुए |दवाइयों की कीमत मनमाने रूप से वसूली जा रही हैं और सरकार चुप है तो क्या हमने सहिष्णुता खोई ? हम तो कहते हैं यदि सरकार पेंशन बंद कर देगी तो भी हम मरने को मर जाएंगे लेकिन असहिष्णु नहीं होंगे | 

और यह भी कि हमें कोई पुरस्कार मिला होता तो हम कभी नहीं लौटाते |और यदि सरकार चाहे तो हम उन पुरस्कारों को भी लेने से मना नहीं करेंगे जिन्हें कुछ लोगों ने लौटा दिया है |

बोला- तो ठीक है, मैं जेतली जी को लिख देता हूँ कि मास्टर के यहाँ 'असहिष्णुता' नहीं मिली | कहीं और ढूँढें |
अब चाय मँगवा तेरा स्पष्टीकरण सुनते-सुनते सिर दर्द हो गया |

Nov 2, 2015

पहले वाला हिसाब-किताब

  पहले वाला हिसाब-किताब 



 कुछ दिन पहले जब दिन जल्दी निकल आता था और गर्मी भी थी तो पानी आते ही नहाने का मन हो जाता था लेकिनआजकल सुबह-सुबह हल्की सी ठण्ड पड़ने लग गई है सो नहाने की बजाय इस समय का उपयोग घूमने जाने के लिए करना शुरू कर दिया है |सभी तरह के लोगों के दर्शन हो जाते हैं - कुछ घुटनों को सक्रिय रखने तो कुछ इस बहाने मंदिर में स्थापित भगवान को भी आभारी बनाने तो  कुछ युवा अपना ट्रेक सूट और जूतों का प्रदर्शन करने के लिए आते हैं | आज जैसे ही लौट रहे थे तो बड़ा अजीब नज़ारा देखने को मिला | कुर्ता पायजामा पहने एक अधेड़ सज्जन बड़ी विनम्र मुद्रा में सिर झुकाए खड़े थे और कुछ युवा उन्हें शब्दों से सम्मानित करते हुए धकिया रहे थे- साले, वापिस कैसे नहीं करेगा ? तेरा तो बाप भी करेगा वापिस |

हालांकि आजकल किसी के फटे में टांग फँसाने से बन्दर की तरह अपनी ही पूंछ लट्ठे में रह जाती है लेकिन क्या करें, आदत से लाचार | पूछ ही लिया- क्या हुआ भैया, कैसे इनका अभिनन्दन कर रहे हो ?

युवक बोले- ताऊ जी, इसकी हिम्मत तो देखिए |कह रहा है वापिस नहीं करेगा | कैसे नहीं करेगा वापिस ?

हमने पूछा- क्या आपने इन सज्जन को कुछ उधार दिया था क्या ?

बोले- उधार तो इस जैसे फटीचर को कौन देगा लेकिन हमने इसे अपनी संस्था 'वृद्धजन सम्मान समिति' द्वारा  सम्मानित किया था |अब हम इससे वह सम्मान वापिस माँग रहे हैं और यह कह रहा है कि वापिस नहीं करेगा |

हमने उन अधेड़ सज्जन से कहा- बन्धु, जब इन्होंने  ही तुम्हें सम्मानित किया था और अब ये आपको सम्मान के काबिल नहीं समझते तो वापिस कर दीजिए | क्या फर्क पड़ता है ? वैसे आजकल सम्मान और पुरस्कार वापिस करने और सम्मान वापिस करने वालों का विरोध  करने वालों का फैशन चल रहा है |कर दो वापिस |

बोला- बात सम्मान की नहीं है |बात उस राशि की है जो इन्होंने  मुझे दी थी |

हमने कहा- तो फिर दे दो |हम इन युवकों से कहेंगे कि ये उस पर बनने वाला ब्याज माफ़ कर देंगे |और यदि तुम एक साथ नहीं दे सकते तो हम इनसे यह भी प्रार्थना करेंगे की ये किश्तों में ले लें |

बोला- लेकिन वास्तव में इन्होंने मुझे कोई राशि नहीं दी |वह राशि मेरी ही थी | इन्होंने  तो उस सम्मान में होने  वाला माला, साफा, नारियल, शाल और नाश्ते तक का खर्च मुझसे लिया था |

हमने कहा- भले आदमी यह भी कोई सम्मान है, ऐसे भी कोई करता है ?

बोला- आपको पता नहीं, इस देश में ऐसी हजारों संस्थाएं हैं जो इसी तरह सम्मान बाँटने का धंधा करती  हैं |और कहीं से सम्मान नहीं मिला तो मैंने सोचा- यदि कुछ मिल नहीं रहा है तो जेब से मात्र उत्सव  का खर्चा ही तो हो रहा है सो भुगत लूंगा | समाज में कुछ चर्चा तो होगा |

हमने उन युवकों से कहा- आप ऐसा क्यों करते हैं ?

बोले- आजकल जो यह सम्मान वापिस करने वाला नाटक चल रहा है हम उसे हमेशा के लिए समाप्त करना चाहते हैं |अभी यह अकादमी से पुरस्कृत लोगों में चल रहा है, कल को स्थानीय स्तर तक आ जाएगा |

वैसे आगे से तो हम सम्मान-पत्र में साफ-साफ लिखवा देंगे- जैसे बिका हुआ माल वापिस नहीं होगा वैसे ही एक बार किया गया सम्मान किसी भी स्थिति में न संस्था वापिस माँगेगी और न ही प्राप्तकर्त्ता इसे वापिस नहीं करेगा  |हम तो पहले वाला हिसाब-किताब निबटा रहे हैं |