Oct 27, 2020

उल्लू और उल्लू के पट्ठे


उल्लू और उल्लू के पट्ठे 


हम तो लक्ष्मी का अर्थ मानते हैं- श्रम |पहले जब मूल्य काम की चीजों में केन्द्रित थे तो हीरे, जवाहरात, सोना-चाँदी सब व्यर्थ थे |आज भी क्या कोई भूखा व्यक्ति इन्हें खा सकता है ?क्या ये किसी बीमारी की दवा हैं ? बैंक बेलेंस का क्या अर्थ है ? पहले जब बैंक निजी थे तो कभी-कभी बैंक वाले ग्राहकों का पैसा लेकर चम्पत हो जाते थे |अपने लोगों को खाली गोदाम पर ताला लगाकर कर्जा दे देते थे |राष्ट्रीयकरण के बाद यह बदमाशी रुकी लेकिन अब पता नहीं, पिछले दो सालों से किस कला के तहत बैंक दिवालिया होने लगे |

हमने अपने बचपन में लक्ष्मी पूजन में कभी, कहीं, किसी रूप में बाज़ार को नहीं देखा |दिवाली के बाद अन्नकूट मनता था जिसमें मंदिर में अर्पित कृषि सामग्री से प्रसाद बनता था और बंटता था |हमें तब पता नहीं था कि उल्लू का लक्ष्मी से कोई संबंध था |विद्यालय में गुरूजी जब किसी को 'उल्लू का पट्ठा' कहते थे तो हम उल्लू को मूर्खों का उस्ताद समझकर खुश हो जाते थे कि इसका निहितार्थ गुरूजी को ही 'उल्लू' के पद पर अभिषिक्त कर रहा है | 

वैसे लक्ष्मी के कई वाहन माने जाते हैं- कमल, हाथी, मगरमच्छ, उल्लू आदि |जब विष्णु के साथ लॉन्ग ड्राइव पर जाती हैं तो गरुड़ पर |और शयन करती हैं तो शेष नाग पर | वैसे ही जैसे पैसे वालों के पास तरह-तरह की कारें होती हैं और वे शौक के लिए घोड़े, बग्घी आदि की सवारी भी करते हैं जैसे ब्रिटेन की महारानी, राष्ट्रपति |एक बार मुलायम सिंह जी के लिए भी इंग्लैण्ड से बग्घी मंगवाई गई थी |जैसे लालू जी ब्रोकली का सूप पसंद करते थे |वैसे गाँव वालों का खाना, नाश्ता और उसे करने का तरीका हम अच्छी तरह से जानते हैं |हम खुद सवेरे रात की ठंडी रोटी सर्दियों में दूध और गरमियों में दही के साथ खाते हैं |

हमारे यहाँ मासूम लोगों को समझाया जाता है कि उल्लू का अर्थ होता है बेवकूफ |जब किसी मूर्ख को उल्लू का पट्ठा कहा जाता है तो हम समझते हैं कि उल्लू तो हम से भी बड़ा बेवकूफ होता होगा और संतुष्ट हो जाते हैं |

अभी-अभी नेट पर एक समाचार पढ़कर हमने तोताराम से कहा- तोताराम, अभी ट्रंप की एक प्रशंसक अमेरिकन कंजर्वेटिव कमेंटेटर और टेलीविजन होस्ट टोमी लैरेन ने ट्रंप के लिए समर्थन जुटाने के प्रयास में भारतीय लोगों को ट्रंप के कैम्पेन 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' को भारी समर्थन देने के लिए धन्यवाद देते हुए कह रही थीं कि ट्रंप 'उल्लू' की तरह तेज और समझदार हैं |ख़ुशी है कि उसने हिंदी शब्द 'उल्लू' का उपयोग और उच्चारण करके हिंदी को सम्मान दिया जैसे फरवरी २०२० में ट्रंप ने अहमदाबाद में 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम में स्वामी विवेकानंद को स्वामी विवेकामॉनन्न, सचिन तेंडुलकर को ‘सुच्चिन तेंडुलकॉर’, विराट कोहली ‘विराट कोली’, चायवाला को 'चीवाला', शोले को  ‘शोजे’ और वेद  ‘वेस्ताज’ उच्चारित करके भी हिंदी को सम्मान तो दिया ही था |लेकिन टेमी के उच्चारण में कोई गलती नहीं थी |उसे सभी हिंदी भाषियों ने 'उल्लू' ठीक ही सुना और समझा |

Viral: समर्थक ने ट्रंप को बताया 'उल्लू' जैसा तेज दिमाग, Social Media पर उड़ा मजाक

तोताराम बोला- स्कूल के बाद कई दिनों तक मैं भी उल्लू का मतलब मूर्ख समझता रहा लेकिन बाद में समझ में आया कि बात ऐसी नहीं है |जो जीव लक्ष्मी के इतना निकट रहता हो और उसके पास ही स्थापित गणेश जी के चूहों पर हाथ साफ़ कर जाता हो और उन्हें पता ही नहीं लगाने देता हो |ऐसा जीव क्या चीज होगा, सोच लीजिए |हमें ऐसे जीवों में बड़ी संभावनाएं नज़र आती हैं |लालू जी की गँवई बातों से लोगों का मनोरंजन होता था |लोग उन्हें भोला और सीधा-सादा समझते थे लेकिन उन्होंने मनेजमेंट का जो जादू दिखाया वह बहुत रेयर है |बहुत से ज़मीन से जुड़े लोग दीमक भी हो सकते हैं | दुनिया का तो पता नहीं लेकिन भारत में आजकल दीमक बहुत बड़ी समस्या है |सब कुछ खा भी जाती है और पता ही नहीं चलता |यही हाल रात्रि-चर चमगादड़ का है |वह भी उल्लू का ही भाई है |दोनों ही पता नहीं कब-क्या गुल खिला जाते हैं ?

इसी तरह ट्रंप भी भोले और बावले होने का नाटक करते हैं |लाइजोल का इंजेक्शन लगवाने की बात करके वे अपनी मासूमियत से तथाकथित बुद्धिमान लोगों को गर्व करने का मौका देकर अपना पट्ठा बना लेते हैं जिसका हिंदी में अर्थ होता है मूर्ख बनाना |

हमने कहा- हाँ तोताराम, सच उल्लू किसी को उल्लू नहीं बनाता |वह जिसको भी बनाता है अपना पट्ठा बनाता है |उल्लू इन्हीं पट्ठों के बल पर अपना उल्लू सीधा करता है |खुद भला बना रहता है और अपने पट्ठों से कहीं भी लिंचिंग करवा देता है, ट्रोल करवा देता है, अपहरण और बलात्कार करवा देता है | क्या किसी अपराध में आपने किसी उल्लू को दण्डित होते देखा-सुना ? हर शासनोत्सुक या शासक उल्लू को पट्ठों की ज़रूरत पड़ती है |कभी वे पार्टी के नाम पर होते हैं तो कभी स्वयंसेवी संस्थानों में |तरह-तरह की कल्याणकारी योजनाओं में भी वे ही पाए जाते हैं |

तोताराम बोला- यदि लोग उल्लू समझकर ही सही, सत्ता सौंप देते हैं तो यह सौदा सस्ता ही है |
एक किस्सा सुन- एक छोटा बच्चा लाला की दुकान पर कुछ सामान लेने आया और बोला- ऐ लाला, इतनि-इतनी फलां चीज दे |

वहीँ कुछ सामान खरीदने आए एक मास्टर जी भी खड़े थे |बच्चे के जाने के बाद बोले- लाला जी, यह कल का छोकरा आपको 'ऐ लाला' बोल रहा था, आपको बुरा नहीं लगा ?

लाला ने कहा- मास्टर जी, हमें 'जी' से नहीं, दो पैसे कमाने से मतलब है |आप भी चाहे तो गधे का बच्चा कह लो लेकिन मोटी बिक्री तो करवाओ |

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Oct 22, 2020

राजधानी का मोर : गाँव का मोर


राजधानी का मोर : गाँव का मोर 


आज तोताराम बड़ा खुश था |बोला- मास्टर देखा,  मोदी जी के कारण लोग पक्षी, पर्यावरण और प्रकृति में कितना रुचि लेने लगे हैं ? एक दिन में ही सोलह लाख लाइक्स और व्यूज मिल गए हैं मोर वाले वीडियों को |वैसे यह मोर है भी कितना सभ्य और फ्रेंडली |

हमने कहा- ये लाइक्स मोर को नहीं, मोदी जी को मिले हैं | हमें तो यह कोई फ़िल्मी मोर लगता है जो निर्देशक के इशारे पर साउंड, लाइट, कैमरा, एक्शन करता है | फिल्मों में नायिका के आसपास जो हिरन, कबूतर, बतख और तोते आदि दिखाए जाते हैं वे सब फ़िल्मी होते हैं |उन्हें सहज भाव से पोज देने का अनुभव होता है |यदि आज भी शकुंतला-भरत और दुष्यंत पर कोई फिल्म बनाएगा तो ज़रूर कोई भरत से चुपचाप अपने दाँत गिनवाने वाला शेर भी मिल जाएगा |

 बोला- मास्टर, मोर तो अपने राजस्थान में अधिक पाए जाते हैं |अरावली की पर्वत श्रेणियाँ  राजस्थान को दक्षिण-पश्चिम नैऋत्य कोण से उत्तर-पूर्व ईशान कोण पर काटती हुई दिल्ली को पार कर जाती है |हो सकता है यह मोर राजस्थान से ही दिल्ली गया हो  | 

हमने कहा- याद रख राजधानी जाकर कोई भी कहीं का नहीं रहता |वह बस, राजधानी का हो जाता है | गाँव, गली, घर, रिश्ते-नाते सब भूल जाता है |राजधानी का मतलब समझता है ना ? राजधानी मतलब सत्ता से निकटता |हमें नहीं लगता कि वह हमें अपनी राजस्थानी पहचान के कारण कोई घास डालेगा |

बोला- मोर तो मोर मोर होता है |उसमें क्या राजधानी और क्या गाँव |राजधानी के मोर के क्या कुछ अतिरिक्त पंख उग आते हैं ?


prime minister narendra modi playing with peacocks in residence lawn photos



हमने कहा- देखने में तो दोनों एक जैसे ही लगते हैं लेकिन व्यवहार में अलग-अलग | राजधानी का मोर बहुत सभ्य होता है |वह नेता का पद, प्रभाव, पार्टी और उसकी संभावनाएँ देखकर तदनुसार नाचता हैं, पोज देता है, सभ्यता से दाना चुगता है |और गाँव का मोर तो हमारी फोटोग्राफर चाची के मोर की तरह दादागीरी छाँटता है |

बोला- यह क्या प्रसंग-सन्दर्भ है ?

हमने कहा- हमारी सबसे बड़ी चाची आजकल कानपुर में रहती है |चाचा फोटोग्राफर थे इसलिए हम उन्हें फोटोग्राफर चाची कहते हैं |१९५० के आसपास वे गाँव में ही रहती थीं |घर के दालान पर लोहे की चद्दर का छाजन था |चाची रोज पक्षियों के लिए उस छाजन पर दाने डालती थी |सुबह-सुबह कोई आधे घंटे तक टीन पर विभिन्न पक्षियों की टक-टक-टन-टन का संगीत बजता था |कभी चाची दाना डालने में लेट हो जाती तो मोर बड़े जोर से टीन पर ठक-ठक करता जैसे कोई दबंग और देशभक्त नेता वोटर पर रंगदारी जमाता है |

बोला- यह दादागीरी वाली बात तो आजकल सभी नेताओं में देखने को मिलती है |वही जिताऊ उम्मीदवार होता है |भले आदमी को कोई पार्टी टिकट ही नहीं देती |अच्छा, राजधानी वाले मोर में और क्या ख़ास बात होती है ?

हमने कहा- राजधानी वाले मोर में यह विशेषता होती है कि वह  बड़े नेता के कहे अनुसार ताली-थाली तो बजाता ही है बल्कि तत्काल प्रमाणस्वरूप फोटो भी अखबारों में छपवा देता है |और तो और वह बड़े नेता की इच्छा के विरुद्ध किसी को बधाई भी नहीं देता |संवेदना, ख़ुशी और चिंता भी नेता के पद चिह्नों पर चलते हुए ही देता है |वह रिस्क नहीं लेता |     



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Oct 15, 2020


श्री गणेशाय मास्कं समर्पयामि 



आज तोताराम बिना मास्क लगाए बिंदास तरीके से आकर हमारे पास बैठ गया.

हमने कहा-  यह ठीक है कि चतुर लोग बड़े लोगों के निकट दिखाई देकर, उनके साथ फोटो खिंचवाकर स्वार्थ सिद्धि कर लेते हैं जैसे नीरव मोदी ने मोदी जी के साथ ग्रुप में दिखा कर और अम्बानी ने जियो के विज्ञापन में मोदी जी का फोटो छापकर अपनी गोटी लाल कर ली. जब फेसबुक वाला जकरबर्ग और मुकेश अम्बानी मोदी जी  के साथ अपना आलिंगनबद्ध फोटो किसी को दिखाते होंगे या लोग अखबार या नेट पर देखते होंगे तो क्या असर पड़ता होगा यह बताने की ज़रूरत नहीं है. 

इसी तरह अमरीका में ट्रंप के एक मिलने वाले ने माइग्रेन ठीक करने वाले तकिये बेच लिए. झूठे विज्ञापन देने के अपराध में पकड़ा गया और जुर्माना देकर छूटा.  वही संत अब ट्रंप से सिराफिश करवाकर पीले कनेर के फूलों से बनी पतंजलि टाइप कोरोना के खिलाफ इम्यूनिटी बढाने वाली दवा बेचने की फ़िराक में है.  अमरीका की खाद्य पदार्थ और दवाइयों की नियामक संस्था से हड़का दिया है, जैसे वैज्ञानिकों ने रामदेव हो हड़का दिया था. 

लेकिन हम इतने बड़े आदमी नहीं हैं. तुझे तो इस निकटता से कुछ नहीं मिलेगा लेकिन अगर हमें कोरोना हो गया तो मुश्किल हो जाएगी. आजकल कोरोना बड़े-बड़ों को चपेट में लेने लगा है. 








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हम अस्पृश्यता को बुरा मानते हैं फिर भी सरकार के आदेशानुसार दो गज नहीं तो कम से कम दो फुट तो दूर रह. फिर आज तो तूने मास्क भी नहीं लगा रखा. 


अब इस मास्क-वास्क की कोई ज़रूरत नहीं है |जिस बीमारी की अब तक कोई दावा नहीं है. जिसके लक्षण अभी तय नहीं हुए और दिल्ली में जितने लोग रिकॉर्ड में संक्रमित हैं उनसे ज्यादा तो संक्रमित होकर अपने आप ठीक भी हो चुके हैं. ऐसे में किसके और क्यों डरना ? राष्ट्रपतियों, प्रधान मंत्रियों, गृहमंत्रियों को कोरोना हो चुका है. कुछ मर भी चुके हैं. लोग भाभीजी पापड़ खाकर इम्यूनिटी प्राप्त कर चुके हैं. और फिर अब तो सभी विघ्नों का विनाश करने वाले गणपति जी को सौंप दिया है यह विभाग. उनसे बड़ा कौन है ? अब चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है. 

हमने पूछा- गणेश जी के कार्य भार कब संभाला ?

बोला- मज़ाक मत कर. नहीं तो किसी की आस्था को चोट लग गई तो बिना कोरोना ही तेरी कपाल-क्रिया कर देगा. 

हमने फिर कहा- फिर भी ?

बोला- फिर भी क्या, यह देख.  हमारे सामने स्मार्ट में दो फोटो दिखा दिए. 


ganesha doctor1




  
doctor ganesha2










हमने देखा कि एक में गणेश जी अपने कंपाउंडर मूषक जी के साथ कोरोना पीड़ित की जांच कर रहे हैं और दूसरे में कोरोनासुर का वध कर रहे हैं. 


बोला-जब कोरोनासुर का वध हो जाएगा तब दुनिया से कोरोना समाप्त हो जाएगा. फिलहाल संक्रमित हो चुके मरीजों का इलाज़ चालू है ही. 

हमने कहा- लेकिन मूषक जी और गणेश जी दोनों ने मास्क तो नहीं लगा रखा है. 

बोला- जब ट्रंप ही मास्क नहीं लगाते तो ये तो देवता लोग हैं.  

हमने कहा- तो ले यह हमारा मास्क भी गणेश जी को समर्पित कर दे.  








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Oct 13, 2020

गाँधी का एक और चश्मा

गाँधी का एक और चश्मा 


आज तोताराम ने फिर ब्रेकिंग न्यूज प्रसारित कर दी, बोला- गाँधी जी का चश्मा  बिक गया |एक अमरीकी ने अढाई करोड़ रुपए में ख़रीदा है |

हमने कहा- क्या देश पूरी तरह स्वच्छ हो चुका जो चश्मे की ज़रूरत नहीं रही |

बोला-  देश की स्वच्छता पर तो बात न करे तो ही ठीक है |जब अपना सीकर अपनी श्रेणी के स्वच्छता सर्वे में प्रथम आ सकता है तो पटना की दशा की तो कल्पना करके ही बदबू आने लगती है |  जहां तक गाँधी जी के चश्मे का सवाल है तो वह सरकार के पास था ही कब ? वह तो फोटो से ही काम चला रही थी |गाँधी का चश्मा ही क्या,  जनता को सब कुछ डिजिटल और वर्चुअल ही परोसा जा रहा है |कर ले वाट्स से कोरोना का टीका या इम्यूनिटी बढ़ाने वाला 'भाभीजी पापड़'  डाउन लोड |



गांधी का चश्मा

हमने फिर पूछा- तो क्या माल्या से वह चश्मा किसी को बेच दिया |

बोला- कुछ भी हो जाए, लोग कुछ भी कहें लेकिन माल्या ने कभी कोई घटिया बात नहीं कही |यहाँ भी ठसके से रहा और इंग्लैण्ड में भी बन्दे का वही जलवा है |वह चश्मा ही क्या और भी बहुत से ऐतिहासिक चीजें खरीदकर रखे हुए है |वह बेचा-खोची का ऐसा सस्ता धंधा करने वाला नहीं है |

हमने पूछा- तो अब यह कौनसा चश्मा आ गया जिसे अमरीकी ने ख़रीदा है ?

बोला- यह गाँधी जी का पहला चश्मा है |जब दूसरा मिल गया तो कहीं रखकर भूल गए होंगे |उन्हें भी क्या पता था कि कभी उनके चश्मे, कटोरे, घड़ी, चप्पलों के इतने रुपए मिलेंगे |नहीं तो वे भारत को पाँच ट्रिलियन की इकोनोमी बनाने के लिए लाखों चश्मे, घड़ियाँ खरीदकर रख जाते |

हमने कहा- ये चीजें सीमित हैं इसलिए कीमती हैं |यदि जयललिता की तरह हजारों जूते होते तो कौन खरीदता करोड़ों में |आजकल के नेता दिन में तरह-तरह के कुरते चार बार बदलते हैं |अब इनका कोई खरीददार नहीं |एक तो सभी मोदी जी की नक़ल पर, दूसरे आजकल कोरोना जिस तरह से नेताओं को चपेट में ले रहा है उसे देखते हुए तो इनके नाम से भी दूर रहने में ही खैरियत है |लेकिन तोताराम, अब बिना चश्मे के  गाँधी जी  का काम कैसे चलता  होगा ?

बोला- उनके पास आत्मा का चश्मा था जो बाहरी धार्मिक आडम्बरों के पार इंसानियत को देखता था |आजकल के नेताओं की तरह नहीं जो मात्र कपड़ों, नामों और जाति-धर्मों से लोगों के दंगाइयों, देशद्रोहियों और अन्य अपराधियों की पहचान करते हैं |ऐसों के कपड़ों को घर लाना तो दूर, उनके साथ ही श्मशान में जला दिया जाना चाहिए |

हमने कहा- हमें तो लगता है कि अब आगे समय गाँधी के चश्मे और चप्पलों का नहीं,  गोडसे की पिस्टल का आ रहा है |   





 



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Oct 9, 2020

कोरोना की स्पीड और दिशा


कोरोना की स्पीड और दिशा 


आज तोताराम ने आते की ब्रेकिंग न्यूज फेंकी- मास्टर, गाज़ियाबाद पहुँच गया है |

हमने कहा- बिना प्रसंग-सन्दर्भ क्या समझें ? 

बोला- अब लोगों के 'अच्छे दिन' और '१५ लाख रुपए'  वाले बहम निकल गए हैं |देश के एक सामान्य व्यक्ति तक को विश्वास हो गया है कि वह एक जुमला ही नहीं बल्कि एक धोखा था |इसलिए तेरे जैसे तथाकथित बुद्धिजीवी को अच्छे दिन आने जैसी मूर्खतापूर्ण कल्पना तो करनी ही नहीं चाहिए |आजकल तो कोरोना का फैशन है सो उसके अतिरिक्त और किसके आने की खबर हो सकती है ?

हमने कहा- लेकिन भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी तो कह रहे हैं कि राहुल गाँधी की जाँच की जानी चाहिए क्योंकि वे इटली होकर आए हैं |इटली अपने राजस्थान से पश्चिम दिशा में है और गाजियाबाद पूर्व में |यदि इटली से आ रहा होता तो जोधपुर की तरफ से आता |यह गाजियाबाद की तरफ से क्यों आ रहा है ?

बोला- हो सकता है वह पार्टी का आधिकारिक वक्तव्य न हो |बिधूड़ी जी की अपनी व्यक्तिगत राय हो |वैसे जहाँ तक समाचारों की बात है तो सबसे पहले कोरोना वायरस के प्रकोप का पता चीन के वुहान शहर में लगा था | तो इस बात का औचित्य समझ में आता है कि कोरोना गाज़ियाबाद की तरफ से आ रहा है |

हमने पूछा- तो तेरे हिसाब से अपने सीकर तक पहुँचने में उसे कितना समय लगेगा ?

बोला- यह तो साधन पर निर्भर करता है |यदि प्लेन या बुलेट ट्रेन या हेलिकोप्टर से चले तो अब तक तो पहुँच गया है |यदि पैदल आए तो भी एक हफ्ते में तो पहुँच ही जाएगा |

हमने पूछा- लेकिन बिधूड़ी जी का इटली वाला भी आ पहुँचा तो ? कैसे पहचानेंगे ?



कार्टून


बोला- देख, यदि चीन की तरफ से गाज़ियाबाद होता हुआ आ रहा है तो बहुत संभव है उसका रंग भगवा हो |क्योंकि चीन का राजनीतिक रंग लाल है और नस्लीय रंग पीला है |कुछ रास्ते की थकान और कुछ योगी जी के प्रदेश के ऊपर से आने के कारण, बहुत संभव है उसका रंग भगवा होगया हो |

हमने फिर प्रश्न किया- यदि इटली वाला कोरोना हुआ तो ?

बोला- तो फिर बहुत संभव है उसका रंग हरा होगा  |क्योंकि एक तो वह पश्चिम से आ रहा है और पाकिस्तान के ऊपर से आएगा तो हरा हो ही जाएगा |और जहाँ तक  राजनीतिक रंग की बात है तो इटली हमें उतना ही प्रिय है जितना भाजपा को राहुल गाँधी |और फिर कुछ विद्वान केजरीवाल और राहुल में पाकिस्तान परस्ती भी देखते हैं तो निश्चित है कि इटली की तरफ से आने वाले कोरोना वायरस का रंग हरा ही होगा |

हमने कहा- तो फिर तो इनके उपचार भी अलग-अलग ही होंगे ?

बोला- ज़रूर |यदि चीन वाला कोरोना है तो अपने घर की सजावट चीनी सामान से करो, उसके साथ झूला झूलते हुए चीनी कप-प्लेट में चीन की चाय पिओ |और यदि इटली-पाकिस्तान वाला हरा वायरस हो तो किसी के बहकावे में आकर उसे देशभक्ति के काढ़े से ठीक करने में समय बर्बाद मत करना |नहीं तो, हो सकता है केस बिगड़ जाए और तुम्हारी जान पर बन आए |उसे तो सीधे गोली ही मार देना जैसे लोकतंत्र की रक्षा के लिए देश को  'कांग्रेस मुक्त' करना  |

हमने पूछा- मोदी जी का तो चीन से बहुत गहरा संपर्क और संबंध है |उनकी जाँच के बारे में क्या ख़याल है ?

बोला- जाँचें तो सामान्य लोगों की होती हैं |मोदी जी तो सच्चे योगी हैं |उन पर किसी प्रकार का कोई भी वायरस असर नहीं कर सकता |  

हमने कहा- तो फिर चाय बंद |आज से रामदेव जी का नाम लेकर गिलोय का काढ़ा शुरू |अपने नीम पर से उतारी हुई है |

बोला- अपने लिए च्यवनप्राश और जनता के लिए गोमूत्र और नीम गिलोय ! क्यों इस नश्वर शरीर के चक्कर में सुबह का मज़ा किरकिरा करता है ?चिंता मत कर |इस देश का कोई वायरस कुछ नहीं बिगाड़ सकता |यह मरता है तो अपनों के मारे ही मरता है |

हमने कहा- तोताराम, प्राचीन भारत के शास्त्रों में सब प्रकार का ज्ञान-विज्ञान बताते हैं तो फिर इस कोरोना का भी कोई न कोई इलाज़ ज़रूर होना चाहिए |

बोला- है ना, है क्यों नहीं ? यदि कोरोना के वायरसों में से कुछ को हिन्दू और कुछ को मुसलमान बना दिया जाय तो वे आपस में लड़ते रहेंगे और हम, मतलब सेवक सुरक्षित रहेंगे |



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Oct 6, 2020

कोरोना के बहाने






कोरोना के बहाने 


सरकारी रिकार्ड के अनुसार ५ जुलाई को ७८ वर्ष पूरे हो गए |अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से कल १८ अगस्त २०२० को यह महान क्षण आ गया |विक्रम संवत के अनुसार  २७ जुलाई २०२० को तुलसी जयंती के दिन यह महान उपलब्धि इतिहास में दर्ज हो गई |

किसी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधान मंत्री ने बधाई नहीं दी |जब उन्हें नोबल पुरस्कार विजेता, दुनिया भर बौद्धों के एकमात्र धर्मगुरु दलाई लामा को ही उनके जन्म दिन की बधाई देने का समय नहीं मिला तो हमें ऐसी उम्मीद करनी ही नहीं चाहिए |वास्तव में हमने कोई उम्मीद की भी नहीं थी |

हाँ, कल हमारे ४०-५०-६० साल पुराने कुछ विद्यार्थियों के बधाई वाले फोन ज़रूर आए |उन्होंने बड़ा उत्साह बढ़ाने वाला कमेन्ट दिया- सर, आपकी आवाज़ अब भी कड़क है | मन में कुछ 'गुड फील' हुआ |अब उन्हें क्या बताएं कि केवल कड़कनेस से क्या होता है ? कोई मन की बात सुने भी तो ? वैसे कौन किसी के मन की बात सुनता है ?हमें तो लगता है मोदी जी भी मुगालते में हैं कि सारा देश उनके मन की बात सुन रहा है |इस दुनिया में कोई किसी के मन की बात नहीं सुनता | वैसे झूठी बातों का भी अपना कुछ महत्त्व ज़रूर होता है |आज 'अच्छे दिन' और 'खाते में  १५ लाख रु.'  के नाम से उल्लू बन जाने वालों पर हमें तरस नहीं आया |











पत्नी को तो अपनी तरफ से बताना पड़ा कि आज से अस्सी साल का होने में दो बरस ही रह गए हैं |

बोली- तो क्या अस्सी बरस के होने पर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या भारत रत्न बन जाओगे ?

बात तो अडवानी जी की तरह बहुत अपमानजनक थी लेकिन क्या बोलें और किस हैसियत से बोलें ? कई बरसों से निर्देशक मंडल में पड़े-पड़े घुटने जाम हो गए हैं | इतने में एक सहारे की तरह तोताराम की आवाज़ आई |पता नहीं कब आकर बैठ गया था ? बोला- जब अडवानी जी के लिए ही कोई स्कोप नहीं रह गया तो हम किस खेत की मूली हैं | लेकिन अस्सी साल का होने पर पेंशन ज़रूर २५% बढ़ जाएगी |

पत्नी ने कहा- लेकिन यह तभी संभव है जब सरकार ने कोरोना के बहाने, पेट्रोल के दाम बढ़ाने की तरह कोई धूर्तता न करे |नहीं तो महँगाई भत्ते की तरह पेंशन को भी फ्रीज़ कर दिया तो क्या कर लोगे ? 

हमने कहा-  क्या कर लेंगे ? उसके बाद पेंशन के नब्बे साल में डेढ़ गुना होने का इंतज़ार करेंगे |

बोला- और तब भी किसी और कोरोना के नाम पर यही मोरिटोरियम  चालू रखा तो ? 

हमने कहा- तो एक सौ साल का होने पर पेंशन के दुगुना होने का इंतज़ार करेंगे |

बोला- इसका मतलब अडवानी जी की तरह सरकार को 'शिला पूजन समारोह में आमंत्रण देने न देने जैसे असमंजस' से निकलने नहीं देगा |

हमने कहा- सरकार भी तो किसी मामले में अपनी नीयत साफ़ नहीं कर रही |कोरोना की तरह देश को हवा में लटकाए हुए है |न टीका, न इलाज, न नौकरी; बस लॉक डाउन ही लॉक डाउन |






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