Dec 12, 2022

ये भी कोई चाय का टाइम है


ये भी कोई चाय का टाइम है  


आज कई देर तोताराम का इंतज़ार करने के बाद उसके हिस्से की चाय भी हमने ही पी ली जैसे कि बहुत सी कल्याण योजनाओं में बचे हुए सामान को किसी के नाम से भी एंट्री करके निबटा दिया जाता है।  

अभी कोई दस बजे हैं।  हमारे शहर सीकर को प्रकृति का यह उपहार है कि रात चाहे कितनी भी ठिठुराने वाली हो लेकिन दस से तीन-चार बजे का तक की धूप मौसम को सुहावना बना देती है बशर्ते कि धुंध, बदल या कोहरा न हो। अभी कोहरे वाले दिन शुरू नहीं हुए हैं।  धूप में चारपाई पर बैठकर कढ़ी के साथ सुबह के ताज़ा निकाले मक्खन से चुपड़ी बाजरे की रोटी खा रहे थे कि  'प्रथम ग्रासे मक्षिका पातः' की तरह तोताराम आ गिरा।  

हमने नाराज़ होते हुए कहा- यह घर है कोई होटल या स्टेशन पर की चाय की दुकान नहीं है कि पहले से बनी हुई ठंडी चाय गरम करके फटाफट केतली में डालकर 'चाय गरम' की आवाज़ लगाने लगें।  यह कोई चाय का टाइम है ? 

बोला- मेरी बात सुनेगा या मौका मिलते ही अपने 'मन की बात' पेले जाएगा ? यह नहीं पूछेगा कि मुझे आने में देर क्यों हुई ?

हमने कहा- तेरे ऊपर कौन मोदी जी की तरह दुनिया का मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी है या जी २० का अध्यक्ष होने के नाते जब चाहे कभी बाइडेन तो कभी पुतिन का फोन आ जाता है।

बोला- ठीक है।  मोदी जी और मेरी व्यस्तता में ज़मीन आसमान का अंतर है। फिर भी इंसानियत के कारण मेरा भी तो अन्य सभी का ध्यान रखने का फ़र्ज़ बनता है ? 

हमने कहा- तेरा क्या फ़र्ज़ है ? पेंशन पेल और मौज कर।  

बोला- मैं किसी नागरिक के सामान्य फ़र्ज़ और नीति की बात कर रहा था जैसे किसी ज़रूरतमंद का ध्यान रखना।  जिसे जल्दी हो उसे रास्ता दे देना। अपने शास्त्रों में भी कहा गया है कि शवयात्रा, राजा, दूल्हा, भारवाहक, बीमार आदि को  जाने के लिए पहले रास्ता देना चाहिए।  मोदी जी ने भी तो अपने जुलूस में एम्बुलेंस को रास्ता दिया था कि नहीं।  क्या तू मुझे इतना अशालीन और उद्दंड समझता है कि मैं किसी एम्बुलेंस को रास्ता तक न दूँ ?  

हमने कहा- लेकिन तेरा क्या मोदी जी की तरह लाखों लोगों का ५४ किलोमीटर लम्बा रोड़ शो थोड़े था ? और फिर एम्बुलेंस को गुजरने में कितनी देर लगती है ?

बोला- एम्बुलेंस को गुजरने में तो देर नहीं लगती लेकिन क्या ज़रूरी है कि आने के समय एम्बुलेंस आ ही जाए। अब  यह संयोग की बात है कि मेरे रोड़ शो में एम्बुलेंस आई ही चार घंटे बाद।  


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach