Nov 27, 2018

दिवाली, हिन्दू और ट्रंप



दिवाली, हिन्दू और ट्रंप 


आज तोताराम ट्रंप से कुछ खफा था |आते ही कहने लगा- भले का तो ज़माना ही नहीं है |यहाँ हम चुनाव में उसकी जीत के लिए यज्ञ करते रहे, अमरीका में भारत मूल के खुशामदी 'अबकी बार : मोदी सरकार' की तर्ज़ पर 'अबकी बार : ट्रंप सरकार' का नारा देकर लोटपोट हो रहे थे और ये महाशय दिवाली में उपलक्ष्य में बधाई देते समय हिन्दुओं का नाम तक भूल गए |

हमने कहा- अपने राजस्थान में कहावत है- 'मानै ना तानै ना, मैं लाडो की बुआ' | तो समझले हम लोगों का वही हाल है |बिना बात इधर-उधर मुँह निकालते रहते हैं |ऐसे ही उत्साहीलाल बिहार में उसी समय हिलेरी की जीत के लिए भी यज्ञ कर रहे थे | इससे पहले एक पंडित जी ने ओबामा को हनुमान जी की एक छोटी-सी मूर्ति भेजने की खबर छपवाई थी |

बोला- यह तो हमारी महानता, उदारता और सर्वधर्मसमभाव है कि हम अमरीका और ब्रिटेन के भी सभी त्यौहार मानते हैं |

हमने कहा- महानता नहीं, बिना बात बड़े देशों के मुँह लगने वाली बात है |वे तो इस तरह तुम्हारे त्यौहार नहीं मनाते |जैसे कि मोदी जी तुम्हारी कोई फरियाद नहीं सुनते लेकिन तुम लोग उनके 'मन की बात' रेडियो या टीवी पर सुनते हुए फोटो खिंचवाकर प्रचारित करते हो |जैन, बौद्ध और सिक्ख धर्म के कुछ नियम-कायदे और सिद्धांत हैं जिनके कारण उन्हें धर्म का दर्ज़ा दिया गया है | ठीक है कि इन धर्मों के सब लोग मूलतः भारत के ही लोग हैं लेकिन अब वे अपने को हिन्दू नहीं मानना चाहते |इसी तरह से दलित, आदिवासी भी अपने को उपेक्षित अनुभव करते हैं |हो सकता है कल को वे भी इनकी तरह अपना कोई नया धर्म बना लें |ट्रंप से बधाई की बजाय सभी भारतीयों को तो एकता और प्रेम के सूत्र में बाँध लो |वैसे ट्रंप की बधाई को ही क्या चाटोगे ? अरे, जब घर में खाने को दाने हों तो दिवाली है नहीं तो दिवाला |

पूर्णिमा और अमावस्या दो प्रमुख तिथियाँ हैं- एक में पूरा चाँद और दूसरी में घोर अँधेरा |ये तिथियाँ अच्छी तरह याद रह जाती है |इसीलिए अधिकतर महापुरुष इसी दिन पैदा होते हैं |वैसे यदि राम न हुए होते या वन में नहीं गए होते या अन्य भारतीय धर्मों के महापुरुष दिवाली के दिन नहीं जन्मे होते तो भी दिवाली मनती क्योंकि यह फसलों के घर आने का पर्व है |मनुष्य के परिश्रम का पुरस्कार है |मनुष्य का श्रम ही उसकी लक्ष्मी है |यही दीपों में तेल है |यही तेल जलाकर हम उजाला पाते हैं |

अमरीका में इसका नाम दिवाली न सही लेकिन वहाँ का हैलोवीन या  थैंक्स गिविंग डे भी तो फसल घर आने के दिन ही हैं |

इसलिए झूठी बधाइयों की औपचारिकता से निकलो |परिश्रम करो, मितव्ययिता से रहो और अपने श्रम को सब के साथ साझा करो यही दिवाली है, यही रामराज है, यही धर्म है और यही धर्म सृष्टि को धारण करने की क्षमता रखता है |

बोला- और श्रम के फल के रूप में दिवाली मनाने वालों को किसी नेता की ओर से बधाइयों का इंतज़ार करने की भी ज़रूरत नहीं है | 










 


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Nov 23, 2018

बन्दर भगाने का नुस्खा




बन्दर भगाने का नुस्खा 

हमारे घर के सामने टेलीफोन का एक टावर है |जब बादल उस पर से गुजरते हैं तो लगता है टावर हिल रहा है |वास्तव में टावर बदस्तूर जमा हुआ जैसे कि मोबाइल कम्पनियाँ जमी हुई हैं |दुनिया उनकी मुट्ठी में आगई है |बहुत सस्ता मोबाइल सेट और लगभग मुफ्त टॉक टाइम देकर भी रोज करोड़ों रुपए कमा रहे हैं |आसपास के कबूतर जो सुनसान हवेलियों और पेड़ों के अभाव में परेशान थे अब रात को टावरों पर रैन-बसेरा करते हैं |कभी-कभी काले मुँह वाले कई बन्दर एक साथ आकर टावर पर काफी ऊँचे चढ़कर इधर-उधर निगाहें दौड़ाते है जैसे कि अच्छे दिनों को आते हुए औरों से पहले ही देख लेना चाहते हों |अगली सुबह उतरकर दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान कर जाते हैं |वैसे उत्तर प्रदेश हमसे पूर्व दिशा में है |

कभी-कभी घूमकर लौटते हुए हमारा और तोताराम का समागम हो जाता है |आज भी ऐसा ही हुआ |लेकिन तभी देखा, कोई पचास कदम पर दो बलिष्ठ लंगूर टावर से उतरकर दीवारों और पेड़ों पर नहीं, निधड़क सड़क पर चहलकदमी करते हुए हमारी ओर आ रहे हैं | हमें देखकर वे और उन्हें देखकर हम रुक गए |लंगूर तो सहज थे लेकिन हमारी और तोताराम की टाँगें काँप रही थीं | 

जैसे देश की हर समस्या का हल आजकल दो-चार विशिष्ट नेताओं के पास है वैसे ही तोताराम भी हमारे लिए संकटमोचक है |हमने तोताराम की ओर देखा और इशारे से पूछा- अब ? 

बोला-  अब क्या ?  दिल्ली के बहुत से लोगों की तरह वेंकैया नायडू जी तक बंदरों से परेशान हैं |लेकिन इसमें केंद्र की भाजपा सरकार दखल नहीं दे सकती | इसके लिए तो केजरीवाल जिम्मेदार हैं | हाँ, उत्तर प्रदेश के बन्दर पीड़ितों के लिए योगी जी ने नुस्खा बताया है कि हनुमान जी की आरती उतारो |

हमने कहा- लेकिन यहाँ आरती, धूप-दीप की व्यवस्था कैसे हो ?

बोला- तो हनुमान चालीसा का पाठ कर |

डर के मारे ज़ोर से बोलने की हिम्मत नहीं हुई लेकिन जैसे ही हमने हनुमान चालीसा फुसफुसाना शुरू किया तो बड़े वाला लंगूर भी मुँह चलाने लगा मानों हमारी नक़ल उतार रहा हो |हम चुप हो गए और कहा- तोताराम, कहीं हमारे फुसफुसाने से यह नाराज़ हो गया तो मुश्किल हो जाएगी |हनुमान जी लाल मुँह वाले हैं और यह काले मुँह वाला है इसीलिए इस पर हनुमान चालीसा का असर नहीं हो रहा है |

बोला- वैसे तो लाल और काले मुँह वाले दोनों एक ही होते हैं |बस, परिस्थितिवश  कुछ परिवर्तन आ जाते हैं जैसे शाखाओं पर रहने वाले बंदरों का मुँह काला और पूँछ लम्बी होती हैं |जब ये ही शाखाओं से उतरकर कुर्सी पर बैठ जाते हैं तो इनकी पूँछ छोटी और मुँह का रंग लाल हो जाता है |फिर भी रिस्क लेना ठीक नहीं | कहीं योगी जी के नुस्खे के चक्कर में ये आक्रामक न हो जाएँ |चल, वापिस चलने का नाटक करते हैं |

जैसे ही हम दोनों वापिस लौटे, वे लंगूर भी अगली गली में मुड़ गए |और हम अपने घर की ओर |

शिक्षा मिली कि वास्तविक खतरे से न सरकार बचा सकती है और न ही उसे चलाने वाले योगियों के मन्त्र |खतरों से बचने में ही भलाई है |

हमने पूछा- तोताराम,  क्या योगी जी ने गायों से बचने का भी कोई मन्त्र बताया है ? 

बोला- बताया होता तो पाटन से संसद सदस्य लीलाधर वाघेला आई सी यू में क्यों होते ?

हमने पूछा- उन्हें क्या हुआ ? 

बोला- वाघेला जी सवेरे-सवेरे अपने गाँधीनगर स्थित आवास से घूमने निकले |वे अपने साथ कुछ रोटियाँ भी ले गए थे |जब वे एक गौमाता को रोटियाँ खिलाने लगे कि गौमाता ने उन पर हमला कर दिया |

हमने कहा-  गाँधीनगर में तो गाय रखने पर भी प्रतिबन्ध है तो सड़क पर गाय कहाँ से आगई ? उसे तो किसी गौपालक के यहाँ या गौशाला में होना चाहिए था |

बोला- गौ पालक गाय से नहीं यूरिया से दूध बनाते हैं और गौशाला में गायें नहीं, गौशाला की ग्रांट के कागजात रहते हैं |


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Nov 21, 2018

छलाँग : ऊँची या लम्बी




  छलाँग : ऊँची या लम्बी 

 आज तोताराम ने आते ही एक बहुत उत्साहवर्द्धक प्रश्न किया | प्रश्न के प्रकार से व्यक्ति के एनर्जी लेवल का पता चलता है | इस उम्र में प्रायः आदमी किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हो जाता है |इसीलिए बुज़ुर्ग सेलेब्रेटीज़ को भी अधिक उम्र होने पर जावेद अख्तर की तरह डाक्टर ओर्थो के विज्ञापन ही मिलते हैं |अमिताभ बच्चन की बात और है कि वे अब भी अनारदाना की गोली खाकर आँख मार लेते है लेकिन उसके बाद टेंशन दूर करने वाले तेल की ज़रूरत पड़ जाती है |कुछ युवाओं को भी बीमारियाँ हो जाती हैं जैसे राजू श्रीवास्तव को कब्ज़ |

तोताराम का प्रश्न था- छलाँग कौन सी मुश्किल होती है ?

हमने कहा- अब तुझे छलाँग से क्या करना है ? हमारा कहा माने तो अब सीढ़ियाँ भी ध्यान से उतराकर |इस उम्र में तो यदि सावधानी न रखी जाय तो खाट से गिर कर भी आदमी कूल्हे ही हड्डी तुड़वा बैठता है | 

बोला- तेरे जैसे लोगों ने ही इस देश का मनोबल तोड़कर रख दिया |अरे, कभी तो मर्दों वाली बात किया कर |कभी तो सकारात्मक सोचा कर |मैं अपनी नहीं भारत की 'ईज़ ऑफ़ डूइंग बिजनेस' की रेंकिंग के बारे में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मूल्याङ्कन की बात कर रहा हूँ | जब से मोदी जी आए हैं भारत 'ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस' में १४२ से ७७ वें पायदान पर पहुँच गया है |मैं तो तुझे वैसे ही पूछ रहा था कि इस छलाँग को ऊँची छलाँग कहेंगे या लम्बी छलाँग |

हमने कहा- यह तो अपनी-अपनी सहनशक्ति की बात है कि आप ऊँची छलाँग बर्दाश्त कर सकते हैं या लम्बी |

बोला- क्या मतलब ?

हमने कहा- छलाँग ज्यादा ऊँची हो और फर्श पक्का हो तो चोट ज्यादा लगती है |नीचे गिरने पर लगने वाली चोट लम्बी छलाँग में कम लगती है |एड़ी या घुटने छिलने में ही पीछ छूट जाता है |

बोला- गिरेंगे क्यों ? हम विकासवादी हैं |और विकास के मामले में स्काई इज द लिमिट |अगले पाँच साल में तो नंबर वन से भी ऊपर पहुँच जाएँगे |  

हमने कहा-  बिजनेस करने के मामले में तुमने ही कोई विशेष उन्नति की है क्या ? इससे पहले भी लोग आते रहे हैं और पचास पैसे का कार्बोनेटेड पानी दस रुपए में बेचकर आसानी से बिजनेस करते रहे हैं |आज भी ६०० करोड़ का विमान लोग मजे से १५०० करोड़ में बेच जाते हैं |इससे ज्यादा ईज क्या होगी ?

बोला- ऐसी बात नहीं है |मैं तो मोदी जी की नई क्रन्तिकारी योजना के बारे में बता रहा था कि जिसमें ५९ मिनट में एक करोड़ का ऋण मिल जाएगा |

हमने कहा- अच्छा लगता है | मिनटों में कम हो जाएगा |एक घंटा कहते तो ज्यादा लगता |यह वैसे ही है जैसे किसी चीज की कीमत एक सौ रुपए न बताकर ९९ रुपए ५० पैसे बताई जाए | हमने तो एक बार बेटी की पढ़ाई के लिए बैंक के कई चक्कर लगाए लेकिन बात नहीं बनी |चलो अच्छा है, किसी का तो भला होगा |हमें तो बेचारे नीरव मोदी पर तरस आता है कि यदि यह योजना पहले आ गई होती तो उसे ११ हजार करोड़ का लोन लेने में सात वर्ष नहीं लगाने पड़ते |प्रति ५९ मिनट में एक करोड़ के हिसाब से डेढ़ साल में ही ११ हजार करोड़ का ऋण ले लेता |

बोला- कोई बात नहीं, नीरव मोदी न सही,  कोई कोलाहल मोदी फायदा उठाएगा |


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Nov 12, 2018

अपराधी पहचानने वाली गोली



 अपराधी पहचानने वाली गोली 

लखनऊ में देर रात को अपनी एक साथी को उसके घर छोड़ने जाते हुए एपल के एरिया मैनेजर विवेक तिवारी उत्तर प्रदेश के एक पुलिसमैन प्रशांत चौधरी की गोली से मारे गए |किसी भी व्यक्ति को संदेहास्पद पाए जाने पर उसे हिरासत में लेकर उस पर कार्यवाही की जाती है |पता नहीं, क्या हुआ कि सीधे गोली ही चला दी गई ?क्या और कोई उपाय नहीं था ? जब कि मृतक के पास कोई बंदूक भी नहीं थी |हालाँकि हम तो दिन में भी कम ही निकलते हैं |लेकिन अपने ही देश में, अपने ही राज में आदमी इतना असुरक्षित है ? किसी अपराधी द्वारा हत्या की बात और है लेकिन पुलिस के हाथों.......| बड़ी चिंता की बात है |

इसी उधेड़बुन में थे कि तोताराम आगया |हमने पूछा- तोताराम, क्या ज़माना आगया |कोई कुख्यात अपराधी तो कोर्ट और जेल में से भी भाग जाता है | बड़े राजनीतिक अपरधियों के लिए जेल में भी पुलिस अधिकारी जश्न की व्यवस्था करते हैं | उन्हें सलाम बजाते हैं | सामान्य आदमी कहीं भी लपेटे में ले लिया जाता है |

बोला- बेचारे पुलिस वाले भी क्या करें |'अर्द्ध सत्य' जैसे अपराधी नेताओं को सलाम बजाते-बजाते, उनके अंगरक्षक की भूमिका निभाते-निभाते घटिया से घटिया पुलिस वाले की आत्मा भी उसे कचोटती है |  ऐसे ही माननीयों के हाथों सरे आम पिटने पर कानून के इन रखवालों को कैसा लगता होगा ? वर्दी ही नहीं, सारी शख्सियत कीचड़ में सन जाती होगी |बस, पुलिस की यही कुंठा भले आदमियों पर निकलती है |

हमने कहा- अपनी कुंठा अपने जैसे ही सामान्य लोगों पर निकालने की बजाय पुलिस को बिना बात अपमानित और लज्जित करने वालों पर निकालनी चाहिए |जब अपनी प्राण रक्षा के बहाने की आड़ में किसी सामान्य नागरिक पर गोली चलाने में डर नहीं लगता तो अपनी बेइज्जती करने वाले इन नीच माननीय जी को भी अनावश्यक इज्जत नहीं देनी चाहिए |

बोला- लेकिन तुम कैसे कह सकते हो कि मारा गया विनय तिवारी अपराधी नहीं था ?

हमने कहा- लेकिन तुम भी कैसे कह सकते हो कि पुलिसमैन प्रशांत तिवारी की कोई गलती नहीं थी ?

बोला- क्या योगी सरकार में सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह झूठ बोलते हैं ?उनका नाम ही धर्म से शुरू होता है |वे अधर्म और अन्याय की बात न कह सकते हैं और न कर सकते हैं |उन्होंने स्पष्ट कह दिया है कि गोली उन्हीं को लग रही है जो अपराधी हैं |धर्म-प्राण सरकार ने ऐसी गोली का आविष्कार कर लिया गया है कि जिसे कोई किधर भी मुँह करके, कैसे भी चलाए लेकिन वह गोली लगती अपराधी को ही है |मतलब जिसे भी गोली लगे समझो वही अपराधी है |जैसे कम्प्यूटर से बना बिल गलत नहीं हो सकता, सत्ताधारी नेता का वक्तव्य कुटिलता से प्रेरित नहीं हो सकता वैसे ही धर्म-प्राण सरकार द्वारा निर्मित धर्म-प्राण गोली भी किसी निरपराध को नहीं लग सकती |

हमने कहा- तो फिर न्यायालय की क्या ज़रूरत है ? गोली चलाओ, जिसे भी लगे वही अपराधी |और अपराधी को दंड देना कोई गलत नहीं |

बोला- यही बात है | इन न्यायालयों के चक्कर में तो करोड़ों मुकदमे पेंडिंग पड़े हैं | न्यायालयों के चक्कर में तो चार सौ साल से रामलला अयोध्या के आउटर सिग्नल पर रुके हुए हैं | १९९२ में त्वरित-न्याय कर दिया वैसे ही कुछ करना पड़ेगा |






 



   


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Nov 10, 2018

नेहरू की प्रतिमा



 नेहरू की प्रतिमा 


ग़ालिब ने कहा है- 

हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया पर याद आता है 
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता

हम भी सोचते रहते हैं कि 'यूँ' होता तो क्या होता ? जब 'यूँ'  हुआ तो सवाल उठता है- 'त्यूँ'  हुआ होता तो क्या होता ? अगर 'त्यूँ'  हुआ होता तो भी वही सवाल उठता- 'यूँ' होता तो क्या होता ? मतलब किसी करवट चैन नहीं | 

जैसे ही तोताराम आया, हमने उसे अपना कष्ट बताते हुए कहा- तोताराम, हम १९६१ में अध्यापक बन गए थे |१९६२ में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया |तत्काल सेना में वृद्धि की आवश्यकता महसूस हुई और खूब भर्तियाँ हुईं |इंटर पास थे, रोजगार कार्यालय में नाम दर्ज था |सीधा इंटरव्यू लेटर आ गया कि नायब सूबेदार के साक्षात्कार के लिए आइए |हमें चश्मा लगता था ? मेडिकल में फेल होना ही था इसलिए नहीं गए |आज सोचते हैं, चले गए होते तो क्या पता थल सेनाध्यक्ष बन गए होते |और फिर वी.के. सिंह जी की तरह राजनीति में भी ले लिए जाते तो आज मंत्री होते |

बोला- तू कई वर्षों तक दिल्ली में रहा लेकिन स्कूटर के अभाव में कनाट प्लेस के आसपास स्थित अखबारों और पत्रिकाओं के दफ्तरों के चक्कर नहीं लगा सका |यदि  चार लाइनें लेकर कनाट प्लेस के चक्कर लगा लिए होते तो क्या पता, ज्ञानपीठ नहीं तो, अकादमी अवार्ड ही मिल गया होता |तू कॉलेज में यूनियन का महासचिव था |यदि कुछ अतिरिक्त उछल-कूद करता तो छात्र नेता से होते हुए जेतली जी की तरह आज वित्त मंत्री बन गया होता |वे बी.कॉम. हैं तो तेरे भी हाईस्कूल में कॉमर्स था |लेकिन अब 'यूँ' होता तो क्या होता, करने से क्या फायदा ?

 हमने कहा- अब हम संन्यास की उम्र में हैं |चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं और जीत सकें ऐसा आपराधिक रिकार्ड नहीं |फिर भी यदि कोई हमें जेतली जी और मनमोहन सिंह जी की तरह वाया राज्य सभा उपकृत करना चाहे तो मोदी जी का 'निर्देशक मंडल सिद्धांत' आड़े आ जाता है |वैसे २०१९ के लोकसभा चुनावों में राष्ट्रहित में मोदी जी इस नियम में ढील दे सकते है | लेकिन अडवानी जी की तरह निर्देशक मंडल में बैठकर कुढ़ना हम ठीक नहीं समझते | अब हमने ग़ालिब की तरह यह 'यूँ होता तो क्या होता....' का चक्कर छोड़ दिया है | 

बोला- इस जाल में पड़कर छूटना असंभव है | 'यूँ' होता वाली यह बीमारी है बहुत खराब |खुजली की तरह न आदमी मरता है , न चैन से सो पाता है |बस, इस-उस दवाई के नाम पर डाक्टरों को फीस देता रहता है | मरीज कान खुजाने जैसी आदत की तरह इसे ढोता रहता ही | आपकी यह आदत यदि सामान्य आदमी हुए तो कुलक्षण और बड़े आदमी हुए तो विशिष्टता बन जाती है | लेकिन तू इससे उबरा कैसे ?

हमने कहा- हमने यह 'यूँ' होता वाला महान काम मोदी जी को सौंप दिया है |अब वे सोचते रहते हैं और जनता के सामने यह 'यूँ' होता तो...रखते रहते हैं- जैसे पटेल देश के प्रधान मंत्री हुए होते तो.... ?

तोताराम ने कहा- अब कल्पना कर यदि पटेल प्रधान मंत्री बन गए होते तो ? तो मोदी जी नेहरू परिवार को देश की सभी समस्याओं के लिए किसे दोषी ठहराते ?  यदि पटेल प्रधान मंत्री बन गए होते तो वे भी कांग्रेस के ही होते | उस समय कांग्रेस के नेताओं के अतिरिक्त कोई समूह या पार्टी थी ही नहीं मंच पर तो किसी और दल के व्यक्ति के प्रधान मंत्री बनने का प्रश्न ही नहीं था |चूँकि रास्ते का काँटा कांग्रेस ही है तो उस स्थिति में कांग्रेस को नीचा दिखाने का काम नेहरू के नाम से किया जाता जो आज पटेल के नाम से लिया जा रहा है |उस स्थिति में नेहरू जी की प्रतिमा बनाई जाती और कहा जाता- यदि पटेल की जगह नेहरू जी देश के प्रधानमंत्री बने होते तो......|

अपने पास जब कोई है ही नहीं कांग्रेस के सामने खड़ा करने के लिए तो फिर कांग्रेस के मुकाबले खड़ा करने के लिए कांग्रेस में से ही किसी को चुनना मजबूरी है |इसीलिए इंदिरा के सामने शास्त्री जी को खड़ा किया जाता है लेकिन जब मुगलसराय का नाम बदलने की बात आती है तो लाल बहादुर शास्त्री याद नहीं आते |

हमने कहा- इस खिच-खिच से तो अच्छा होता कि मोदी जी ही भारत के प्रधान मंत्री बन गए होते | न कोई समस्या होती और विकास के मामले में भारत दुनिया में नंबर वन होता |

बोला- क्या किया जाए |उस समय वे पैदा ही नहीं हुए थे | खैर, कोई बात नहीं |जिस स्पीड से मोदी जी चल रहे हैं उस हिसाब से  २०२४ तक सब कवर कर लेंगे |

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Nov 6, 2018

प्रदूषण-प्रतिरोध-प्रन्यास



प्रदूषण-प्रतिरोध-प्रन्यास  

आज तोताराम ने आते ही हमारे चेहरे के सामने करके एक डिब्बा खड़खड़ाया |वैसे ही जैसे बस अड्डे पर या ट्रेन में बिना कुछ अतिरिक्त बोले भिखारी कुछ देने का संकेत करता है |

हमने कहा- भीख माँगते हुए शर्म नहीं आती ? क्यों एक तेज गति से विकास की छलाँग लगाते हुए देश की इमेज का कचरा कर रहा है |यदि पेंशन से पेट नहीं भरता तो कोई छोटा-मोटा बिजनेस कर ले |और नहीं तो सड़क के किनारे चाय-पकौड़े का ठेला ही लगा ले | यदि पकौड़े बनाने नहीं आते तो देख कर सीख ले- आमेर में बूथ अभियान कार्यक्रम के तहत अपने राजस्थान से सांसद राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़  एक दुकान पर पकौड़े तलने का डिमोंस्ट्रेशन दे रहे हैं |

बोला- पहली बात तो मैं भीख नहीं माँग रहा |दूसरे कबीर ने कहा है- 
मर जाऊँ, माँगूँ नहीं, अपने तन के काज |
परमारथ के कारणै मोहि न आवै लाज ||

जैसे मोदी जी को 'स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' के लिए सेस (उपकर) लगाते हुए संकोच नहीं होता वैसे ही मुझे परमार्थ के लिए भीख भी माँगनी पड़े तो माँगूँगा |वैसे फिलहाल मैं 'प्रदूषण-प्रतिरोध-प्रन्यास' के लिए आर्थिक सहयोग जुटा रहा हूँ |अभी दिल्ली जा रहा हूँ अरविंद केजरीवाल और मोदी जी से शुभकामनाएं लेने |सोचा, शुभारम्भ तुझसे ही कर लूँ |लेकिन तू कभी भी, किसी भी शुभ काम में सहयोग नहीं करता और कम से कम मेरे साथ तो बिलकुल भी नहीं |

हमने कहा- तोताराम, और कुछ हो न हो लेकिन इस योजना का तेरे द्वारा दिया गया नामकरण वास्तव में बड़ा धाँसू है |आजकल देश में चल रही योजनाओं और यहाँ तक कि गाली-गलौज तक में जो संस्कृतनिष्ठता और सामासिकता आ गई है, तेरा यह नाम उसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है |शब्द के उच्चारण से ही एक परिनिष्ठित वातावरण का निर्माण हो जाता है |भले ही गंगा गन्दी हो गई है पर तेरे इस शब्द से लगता है कहीं आसपास ही प्रसून जोशी के स्वच्छता गीत की तरह पवित्रता की नदी कल-कल, छल-छल करती बह रही है |

पता है डाक्टरों के अनुसार दिल्ली में इतना प्रदूषण है कि वहाँ रहने वालों के फेफड़ों में रोज १०-१५ सिगरेट जितना धुआँ चला जाता है |केजरीवाल खुद दिल्ली के प्रदूषण के कारण दमे से परेशान हैं |मोदी जी तो योग और देश सेवा करने की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण मेंटेन किए हुए हैं |अन्य देश सेवक भी बिचारे क्या करें ? देश सेवा के लिए संकट सहकर भी दिल्ली में रह रहे हैं |दिल्ली तो देश की राजधानी है |यदि सरकार वहाँ भी प्रदूषण नियंत्रण नहीं कर सकती तो देश के अन्य भागों का क्या रोना रोएँ ? 

बोला- सरकार कर तो बहुत कुछ रही है लेकिन गाँधी-नेहरू परिवार ने पिछले  सत्तर वर्षों से इतना प्रदूषण फैला दिया है कि कंट्रोल में ही नहीं आ रहा है | 

हमने कहा- तोताराम, कुछ लोग नब्बे वर्षों से देश की चार पीढ़ियों को यही सत्य और इतिहास पढ़ाते आ रहे हैं कि देश की हर समस्या की जड़ गाँधी-नेहरू परिवार है |पिछले चार साल से तो रोज ही हर सरकारी, गैर सरकारी कार्यक्रम में इस-उस बहाने से देश की हर समस्या के लिए एक ही परिवार को दोष दिया जा रहा है | अब तो गाँधी-नेहरू परिवार का शासन नहीं है फिर दिल्ली में इतना प्रदूषण क्यों है ? कहीं इस प्रदूषण का कारण लोगों के कुंठाग्रस्त विचार तो नहीं ? 

तोताराम ने अपनी जेब से स्मार्ट फोन निकाला |हम आश्चर्यचकित | यह क्या ? पूछा- कहाँ से मारा ? 

बोला- मारा नहीं | पार्टी ने पाँच सौ रुपए में दिया है |मुझसे तो वे भी नहीं लिए |रोज एक जी बी डाटा भी |सब कुछ मुफ्त |कहा गया है कि मैं देश में सकारात्मकता फ़ैलाने वाले वीडियो लोगों को दिखाऊँ |

ऐसा कह कर उसने अपना स्मार्ट फोन चालू किया |चालू करते ही उसमें नेहरू जी का सिगरेट का धुआँ छोड़ते हुए एक ब्लेक एंड व्हाईट फोटो दिखा | 

हमने कहा- यह तो कोई सत्तर साल पुराना फोटो है |क्या अभी तक उस सिगरेट का धुआँ दिल्ली, देश और तुम्हारे जैसों के दिलो-दिमाग पर छाया हुआ है ?

बोला- यही तो रोना है |पता नहीं, कितनी और कैसी सिगरेटें पीता था कि अब तक दिल्ली और दिल्ली में बैठे सेवक परेशान हैं |

हमने कहा- क्या नेहरू ने सिगरेट पीने अलावा कुछ किया ही नहीं ? 

बोला- किया क्यों नहीं ? 

और तोताराम ने वीडियो आगे चलाया |उसमें बताया गया था कि नेहरू जी के पूर्वज मुसलमान थे | नेहरू जी गाय और सूअर का मांस खाते थे |  

नेहरू जी के बारे में यह आविष्कार करने वाले सज्जन हैं -




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 राजस्थान के अलवर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुने गए श्री श्री १०८ ज्ञानदेव आहूजा | ऋषि तुल्य, बड़ी सौम्य और विद्वत्तापूर्ण मुखाकृति |हालाँकि जिन दिनों का यह फोटो था उस समय उनका जन्म भी नहीं हुआ होगा लेकिन जब उनके नाम में ही ज्ञान जुड़ा हुआ है तो फिर शंका का प्रश्न ही नहीं |वैसे यदि कोई शंका करने का साहस करे भी उनकी मूँछों को देखकर संभव नहीं |

हमने पूछा- यह वीडियो तुझे कहाँ से मिला ?

बोला- मिला क्या ? देश के दिल्ली से निकालने वाले प्रतिष्ठित हिंदी समाचार पत्र की  ईपेपर साईट पर ११ अगस्त २०१८ से पड़ा हुआ |

हमने कहा- क्या नेहरू जी के बारे में सिगरेट पीने की एक नितांत और सामान्य बात देश के लिए इतनी महत्त्वपूर्ण जानकारी हो गई कि हटाई ही नहीं जा रही है या फिर ज्ञानदेव और उनके जैसे खोजी इतिहासकारों की मुहिम में अखबार भी अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर रहा है ?  

बोला- मुझे क्या पता ? मुझे तो देश हित में इसे प्रचारित करना है 

हमने कहा- ठीक है तोताराम |तेरी मर्ज़ी | हमारा तो यही मानना है कि कोई भी जीव पूर्ण नहीं है |क्या उनकी आलोचना करने वालों में कोई कमी नहीं है ? सभी मनुष्य धीरे-धीरे विकसित होते हैं |व्यक्ति का समग्र मूल्यांकन होता है |रामचरित मानस में 
'ढोल गँवार सूद्र पसु नारी' के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ? और क्या यह अर्थ सही भी है ? अर्थ शब्दों का ही नहीं होता |उसकी ध्वनि और व्यंजना भी होती है |सब कुछ देश काल सापेक्ष भी होता है | सत्य-अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी ने भी अपने बचपन में मांस खाया था, बीड़ी भी पी थी |अटल जी भी मछली खाते थे, व्हिस्की पीते थे |उनका एक स्टेटमेंट है- मैं कुँवारा तो हूँ, ब्रह्मचारी नहीं |राजकुमारी कौल के लिए उनके मन में एक 'सॉफ्ट कोर्नर' था |लेकिन क्या यही सब कुछ अटल जी हैं |बुद्ध बिना बताए अपनी पत्नी को छोड़कर चले गए तो क्या पत्नी के प्रति अन्याय के अतिरिक्त बुद्ध कुछ भी नहीं है |हिटलर ने साठ लाख यहूदियों की हत्या करवा दी |वह क्या इसीलिए क्षम्य है कि वह कुँवारा, शाकाहारी और आस्तिक था |यह एक एकांगी और कुंठाग्रस्त मूल्यांकन है |
बोला- मैंने तुम्हारी बात सुन ली यह क्या कम है ? वैसे हम किसी की सुनते नहीं |और मानने का तो सवाल ही नहीं है |

हमने कहा- जिस भारत को जगद्गुरु कहा जाता है उसमें हर प्रकार की जिज्ञासा, प्रश्न, तर्क और संवाद की जगह थी |पता नहीं, तुम्हारा कैसा 'जगद्गुरु भारत' बनाने का इरादा है ?

5th November 2018 










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Nov 3, 2018

नेताजी की वापसी



 नेताजी की वापसी 





LIVE: आजाद हिंद फौज का 75वां साल, PM ने फहराया झंडा




स्वतंत्रता प्राप्ति के कोई तीस-पैंतीस साल बाद तक कभी-कभार अखबारों में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से मिलती-जुलती शक्ल वाले किसी बाबाजी को किसी आश्रम में देखे जाने की खबरें पढने को मिल जाया करती थीं |चूँकि सुभाष एक बुद्धिमान, साहसी, सुन्दर और युवा नेता थे |जोशीले भाषण और रोमांचक काम |  सेना बनाना, अंग्रेजों से युद्ध करना | ऐसे में विमान दुर्घटना में उनकी दुखद मृत्यु का समाचार लोगों को पच नहीं रहा था | हम युवा उनके लौट आने की कल्पना मात्र से रोमांचित हो जाते थे |अब चूँकि उनके जन्म को एक सौ से भी अधिक  वर्ष हो चुके हैं तो उनके जिंदा न होने को स्वीकार कर लिया गया |

आज अचानक उत्साह से भरा तोताराम आया और हमारे सामने अखबार रखते हुए बोला- नेताजी लौट आए हैं |देख,  लाल किले में तिरंगे को सलामी दे रहे हैं |

हमने फोटो देखा और कहा- क्या बात करता है ? लगता है तेरे चश्मे का नंबर बदल गया है |ये नेताजी नहीं हैं  | नेताजी दाढ़ी थोड़ेे ही रखतेे थे अफगानिस्तान के रास्ते फरार हुए थे तो उनकी दाढ़ी काली थी |इनकी दाढ़ी तो एकदम सफ़ेद है |

बोला- सौ बरस से भी ज्यादा के हो गए इसलिए दाढ़ी सफ़ेद हो गई |

हमने कहा- जब जिंदा थे तो इतने वर्षों तक आ क्यों नहीं गए ?

बोला- १९४७ में  जब वे कलकत्ता आए तो उन्हें पता चला कि यदि वे दिल्ली गए तो नेहरू परिवार उनको मरवा देगा |इसलिए पैदल ही गुजरात चले गए और वहाँ छुपकर रहते रहे |अब जब देशभक्तों का शासन आया है तो कुछ हिम्मत पड़ी | बूढ़े आदमी हैं |बड़ी मुश्किल से पैदल चलकर किसी तरह साढ़े चार साल में पहुंचे हैं |

हमने कहा- लेकिन ये नेताजी नहीं है |ये मोदी जी ही हैं |ठीक है, मोदी जी ने नेताजी की आत्मा की शांति के लिए उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के ७५ वर्ष पूरे होने का उत्सव लाल किले में मनाया |
बहुत अच्छा किया लेकिन यदि किसी भी रूप में इस अवसर पर तकनीकी की सहायता से ही सही,नेताजी को , सलामी लेते हुए  दिखाते तो अधिक सुंदर लगता वैसे भी सुभाष में मिशन में मोदी जी की मातृसंस्था का कोई योगदान नहीं रहा |

बोला- लेकिन नेताजी की फोटो वगैरह में क्या मज़ा आता ? मुझे तो वैसे कोई फर्क नज़र नहीं आता | बिलकुल नेताजी लग रहे हैं |वही चमकता चेहरा, वही चश्मा, वही टोपी |

हमने कहा- यह तो मानना पड़ेगा |जब इन्होंने चरखा चलाया था तब भी बहुत से लोगों को गाँधी जी का धोखा हो गया था |
















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Nov 2, 2018

लोकार्पण का विज्ञापन



लोकार्पण का विज्ञापन 


हाथ में अखबार लिए तोताराम ने दूर से ही आवाज़ लगाईं- आजा मास्टर, गौरवान्वित हो जाएँ |

हमने कहा- हम शर्मिंदा तो वैसे भी नहीं हैं |फिर भी गौरवान्वित होने की क्या बात है ?

बोला- पता नहीं, स्टेच्यू ऑफ़ लिबर्टी का आज लोकार्पण हो रहा है |तेरे अखबार में विज्ञापन नहीं है क्या ?

हमने कहा- होगा क्यों नहीं ? हर अखबार में होगा |पूरे-पूरे पेज का होगा |अखबारों में विज्ञापन के अलावा और होता ही  क्या है ? आजकल काम तो किसी को करना नहीं है |किसी के पास काला धन है जिसे विज्ञापन में खर्च करके और कमाने की जुगत है तो कोई करदाता के पैसे को अपनी इमेज बनाने के लिए फूँक रहा है | जिसे देखो टिकट जुगाड़ने के लिए बात बिना बात अखबारों में पूरे-पूरे पेज के विज्ञापन दे रहा है |हर लफंगा सेवा के लिए मरा जा रहा है |वैसे सरदार पटेल की प्रतिमा के लोकार्पण के इस विज्ञापन में कई गलतियाँ हैं |

बोला- तू हिंदी का मास्टर है |भाषा और वर्तनी की गलतियाँ निकालने  के अलावा तुझे और आता क्या है ? फिर भी बता क्या गलत है ?

हमने कहा-एक-एक लाइन देख, लिखा है- 

स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी 
विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा 
१८२ मीटर 
का लोकार्पण |

लगता है अभी १८२ मीटर का ही लोकार्पण किया जा रहा है, कुछ शेष है जिसका लोकार्पण फिर कभी होगा |
क्या ऐसे नहीं हो सकता था-
१८२ मीटर ऊँची विश्व की सर्वोच्च प्रतिमा का लोकार्पण |

आगे देख- लिखा है- उनका योगदान विस्मरणीय है |होना चाहिए स्मरणीय है |
 आगे है-
पिरोने वाले शख्सियत 

होना चाहिए- पिरोने वाली शख्सियत |शख्सियत स्त्रीलिंग है |

इससे आगे भी  एक पंक्ति है-
प्रतिमा का लोकार्पण कर राष्ट्र को समर्पित करेंगे |

क्या लोक और राष्ट्र अलग-अलग है ? हमारे ख्याल से लोक में राष्ट्र ही क्या, समस्त संसार आ जाता है |वेंटेड करने से क्या कुछ ज्यादा भूतकाल हो जाता है ? क्या इतना ही पर्याप्त नहीं होता-
प्रतिमा का लोकार्पण करेंगे |

नाराज़ होते हुए तोताराम ने कहा- और कुछ ? 

हमने कहा- हाँ | 

बोला- वह भी बता दे |

हमने कहा- लिखा है-  ५५० से अधिक रियासतों का एकीकरण कर एक संगठित भारत.....|

यदि ठीक संख्या का पता नहीं था तो '५५० से अधिक' भी नहीं लिखते |यह हजारों-लाखों लिखने की तरह अनुमान का मामला नहीं है |लिखना था तो सही संख्या ५६३ लिखते |पहले बीबीसी वाले अपने समाचारों में बताया करते थे- अमुक हादसे में कम से कम एक व्यक्ति मारा गया |हो सकता है उनकी गिनती में कोई आधा भी मर सकता है |इसी तरह ५५० से अधिक तो कितने भी हो सकते हैं |खैर | 

अब तो तोताराम चिढ़ गया, बोला- और भी कुछ रहा गया हो तो वह भी बता दे |फिर मैं चलूँ |गलती हो गई जो तुझ से चर्चा कर बैठा |सारे गर्व का कचरा कर दिया |

हमने कहा- अब जो है वह वर्तनी और भाषा का नहीं, व्यंजना का मामला है |

बोला- वह भी बता दे |

हमने कहा- कृतज्ञ राष्ट्र आज एक महान शख्सियत को उन्हीं के विशाल व्यक्तित्त्व जैसी विशालकाय प्रतिमा का लोकार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है |

अब तक तो किसी व्यक्ति के व्यक्तित्त्व की विशालता का मूल्यांकन उसके कामों के प्रभाव क्षेत्र और कालावधि  के अनुसार होता था |प्रतिमा के आकार-प्रकार से व्यक्तित्त्व का क्या संबंध है ? क्या जिनकी कोई प्रतिमा नहीं है उनका कोई प्रभाव ही नहीं है ? राम-कृष्ण के प्रभाव को देखते हुए तो उनकी दो-चार किलोमीटर ऊँची प्रतिमाएँ कहीं खुदाई में मिलनी चाहिए थीं | क्या देश को संगठित करके मगध साम्राज्य की स्थापना करने वाले चाणक्य की कोई प्रतिमा है ? अगर सीने के नाप के अनुसार प्रतिमा बननी चाहिए तो गाँधी की प्रतिमा कैसी होगी ?क्या जब शिवाजी की सरदार पटेल की मूर्ति से भी बड़ी मूर्ति बन जाएगी तो सरदार पटेल का महत्त्व कम हो जाएगा ?   यदि किसी के पास हजारों करोड़ रुपए हों और वह अपने बाप की ५००० मीटर ऊँची प्रतिमा बनवा दे तो क्या उसके  बाप का व्यक्तित्त्व सबसे विशाल हो जाएगा ? 

वैसे व्यक्तित्त्व के साथ 'विराट' अधिक अच्छा लगता है |

खैर छोड़, तुझे ये बातें समझ नहीं आएँगीं |अभी तो दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा वाले देश का नागरिक होने के उपलक्ष्य में चाय की जगह कॉफ़ी पी और साथ में तेरी भाभी से पकौड़े भी बनवा देते हैं |

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Nov 1, 2018

चलता-फिरता चुटकुला



 चलता फिरता चुटकुला 


अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक शिक्षिका एवालिन लिजेट ने बच्चों से कोई चुटकला लिखने को कहा |  रात को बच्चों का असाइनमेंट जाँचते समय जब एक बच्चे का चुटकुला जब अध्यापिका के सामने आया तो उसकी प्रतिक्रिया थी- आज तो मेरी रात बन गई |मतलब मज़ा आ गया | बच्चे ने चुटकुले के रूप में में केवल दो शब्द लिखे थे- अवर प्रेसिडेंट अर्थात डोनाल्ड ट्रंप |


जैसे ही तोताराम आया, हमने उसे यह समाचार पढ़वाया तो बोला- मुझे पता है |बच्चे का क्या है ? बच्चा तो हर बात में कोई न कोई मनोरंजन का मसाला निकाल लेता है लेकिन मुझे तो  उआकी अध्यापिका और उसके द्वारा शेयर किए गए इस ट्वीट को पसंद करने वाले लोगों पर तरस आता है |और सबसे ज्यादा तरस तुझ जैसे बुद्धिजीवी बने फिरते बुज़ुर्ग पर आता है जो चुटकुलों पर मज़े लेता है |

हमने कहा- अपने सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है | यदि लोगों के विचारों की गैस नहीं निकलती है तो कुकर फट सकता है |इसलिए जिस अमरीकी बच्चे ने ट्रंप को चलता-फिरता साक्षात् चुटकुला कहा है वह अमरीका के लोकतंत्र की अभिव्यक्ति की आज़ादी का प्रमाण है कि उनका सेफ्टी वाल्व ठीक है |

बोला- ये चुटकुले, ये तमाशे दिखाकर चतुर लोग जनता को उल्लू बनाते रहते हैं |जनता खुश होती रहती है कि लोकतंत्र में नेता का भी मज़ाक बना सकती है लेकिन इस मज़ाक बनाने से मिलता क्या है ? लोग हँसते रहते हैं और चुटकुला बना नेता अपने मन की करता रहता है |राजनारायण, लालू और भी बहुत से फालतू बातें बनाने वाले नेता करते कुछ नहीं |बस, बचकानी बातें करते रहते हैं और चुनाव दर चुनाव जीतते रहते हैं |लोग ट्रंप के तमाशों का मज़ा ले रहे हैं और वह अपने पूर्ववर्तियों की सभी ढंग की योजनाओं और अमरीका की छवि का सत्यानाश किए जा रहा है |हमारे यह चुटकुलों की कौनसी कमी है ? दिल्ली से एक चुटकुला चलता है और गाँव के सरपंच तक उसीको पलते रहते हैं |जैसे चुटकुलेबाजों ने कविसम्मेलनों का सत्यानाश कर दिया वैसे ही नेताओं ने भी चुटकलों के चक्कर में राजनीति का सत्यानाश कर दिया है |

हमने कहा- लेकिन अब तो हमारा देश तो बहुत परिपक्व हो गया है |सब विकास, स्वच्छता, रोजगार और जनकल्याण के कामों में लगे हुए हैं |पिछले साठ वर्षों में कुछ नहीं हुआ जबकि पिछले चार वर्षों में देश कहाँ से कहाँ पहुँच गया | 

बोला-  देशद्रोह के आरोप और रक्षकों के डर के मारे कोई बोल नहीं रहा है लेकिन ये जुमले, गाली-गलौज, भ्रामक और विभाजक स्टेटमेंट क्या है ? क्या ये चुटकुले नहीं हैं ? क्या हासिल हो रहा है इनसे ? 

बोला-  ये ट्रंप की तरह कोई बचकानी बातें थोड़े ही हैं |ये तो हमारे प्राचीन ज्ञान, राष्ट्र की अस्मिता, आत्म-गौरव और शुद्ध देशी प्रतिभा के प्रमाण हैं |

हमने कहा-  कोई बात नहीं |चुटकुला मत मान लेकिन हमारे लोक में जो ढपोरशंख और लाल बुझक्कड़ नाम के पात्र और आजकल हो रहे उनके अवतार क्या किसी शाश्वत, जीवंत और चलते-फिरते चुटकुलों से कम हैं ? 


 







 


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