Showing posts with label तोताराम के तर्क. Show all posts
Showing posts with label तोताराम के तर्क. Show all posts

Aug 7, 2017

कीचड़ का कारोबार

 कीचड़ का कारोबार 

हमारे इलाके में नगर परिषद् द्वारा जल निकासी के लिए नालियों का जो निर्माण हुआ है संभवतः उसका ठेका उसी आदमी को दिया गया होगा जिसने इन्द्रप्रस्थ में युधिष्ठिर का महल बनाया था | उस महल की विशेषता थी कि उसमें जहाँ पानी दिखाई देता था वहाँ ज़मीन या फर्श होता था और जहाँ ज़मीन या फर्श दिखाई देते थे, वहाँ पानी होता था |हमारे इलाके में भी जिन नालियों द्वारा जल की निकासी होनी चाहिए उनमें जल संग्रहण का कार्य होता है |

लोगों ने अपने-अपने घरों के सामने जल संग्रहण से बचने के लिए मिट्टी या मलबा डलवा लिया है इसलिए सारा पानी सड़क के बीचोंबीच जमा रहता है |जल भराव का यह क्षेत्र कोई पाँच फीट चौड़ा है |इधर-उधर आना-जाना युवाओं के लिए तो सरल है लेकिन महिलाओं और बुजुर्गों को परेशानी होती है |आज तोताराम को हमारे बरामदे में आने के लिए इसी पाँच फीट चौड़ी वैतरणी को पार करना पड़ा |छलाँग थोड़ी छोटी रह गई इसलिए कुछ कीचड़ उछलकर उसके पायजामें पर भी लग गया |हमें संकोच हुआ; कहा- क्या करें बन्धु, सरकारी निर्माण है |विकास की जल्दी है | ऐसे में कोई कुछ बोल भी नहीं सकता |बोले तो विकास-विरोधी कहलाता है |

तोताराम हमेशा की तरह सामान्य भाषा की जगह आंग्ल भाषा में बोला- इट्स आल राइट |

हमने कहा- क्या आल राइट ? 

बोला- यह ब्लेसिंग इन डिस्गाइज़ है |इसका अगला स्टेप है- रेग्स टू रिचेज |मतलब कूड़े से करोड़पति |

हमने कहा- बन्धु, हम तो इस कीचड़ और मक्खी-मच्छर से परेशान हैं और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है |

बोला- मजाक नहीं कर रहा हूँ | कल को यदि तुम्हें कोई बड़ा निर्यात आर्डर मिल गया तो वारे-न्यारे समझ |

हमें उलझन हो रही थी |पूछा-कैसा निर्यात |साफ-साफ़ बता |

बोला- न्यूजीलैंड ने दक्षिणी कोरिया से अपने वहाँ आयोजित होने वाले मडटोपिया फेस्टिवल के लिए ४० लाख का 'मड पाउडर' आयात किया है |हालाँकि वहाँ के प्रबुद्ध लोगों ने इसका विरोध किया है |लेकिन जब तक सत्ताधारी दल के पास बहुमत है तब तक भौंकने दो भौंकने वालों को |क्या फर्क पड़ता है ? 

यदि कल को अपने यहाँ भी इसकी नक़ल पर ऐसा कोई फेस्टिवल चल पड़ा तो मज़ा आ जाएगा |वैसे मेरा एक मित्र है न्यूजीलैंड में |उसके थ्रू बात चलाते हैं |दक्षिण कोरिया वालों ने चालीस लाख में जितना कीचड़ बेचा है उतना हम उन्हें उपहार में दे देंगे |दक्षिणी कोरिया ने तो पाउडर दिया है हम तो बना-बनाया कीचड़ देंगे |नाम का नाम और दाम के दाम |

हमने कहा- भले आदमी, जब फ्री में देगा तो दाम कहाँ से मिलेंगे ?

बोला- आज तक तूने नौकरी की है |कभी कारोबार और सेवा नहीं की |हर सेवा में मेवा है फिर क्या गौ सेवा, गंगा सफाई और क्या जी.एस.टी. हो |कमाई कारोबार में ही है |फिर चाहे कारोबार कूड़े का हो या कस्तूरी का हो |कारोबार दुधारी तलवार है |आते और जाते दोनों तरफ काटती है |जैसे कोई माल बेचे या खरीदे, सरकार को तो दोनों तरफ से २८ प्रतिशत जी.एस.टी. मिल जाएगा |किसी चीज की दो बार खरीद-फरोख्त का कारोबार हो गया तो पूरी कीमत सरकार की |

यहाँ की नगर परिषद् से नालियों के कीचड़ की सफाई का ठेका ले लेंगे |उठाकर ले जाएँगे न्यूजीलैंड वाले और सफाई के ठेके के पैसे अपने |

हमने पूछा- तो फ़िलहाल हम क्या करें ?

बोला- रात को जागकर पहरा देता रह | कहीं कोई कीचड़ उठा न ले जाए | सुना है ऊर्जा बनाने के लिए स्वीडन में भी कूड़े की कमी पड़ रही | ऐसे में सब की निगाह हमारे देश की ओर ही ओर लगी हुई है | हम दुनिया की सबसे तेज़ बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं | हमारे जितना कूड़ा और किसके पास है ? 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jul 21, 2017

नामांकन की नौटंकी

 नामांकन की नौटंकी 


तोताराम ने हमारे सामने अखबार रखते हुए कहा- ठीक है, बुढ़ापे में घर का कंट्रोल बच्चों के हाथों में चला जाता है लेकिन किसी बुजुर्ग को इस तरह दुःखी करना भी कहाँ की शराफत है ?

क्यों क्या हुआ ? बेटे-बहू ने कुछ कह दिया क्या ?- हमने सहानुभूति प्रकार करने के उद्देश्य से पूछा |

बोला- अभी तो मेरे हाथ पैर चल रहे हैं और पेंशन की चादर से बाहर पैर निकालता नहीं ? अपन ने कभी कोई उम्मीद पाली ही नहीं |अपेक्षा ही सब दुखों का कारण होता है |फिर संसार तो नाम ही सरकने का |पता नहीं सरक-सरक कर किस ब्लेक होल में चली जाती है दुनिया ? मैं तो ताऊ की बात कर रहा था |

हमने पूछ-ताऊ को क्या हुआ ?

बोला- हुआ क्या ? अरे, जब बन्दे को चबूतरे ही बैठा दिया तो अब दुनिया को दिखाने के लिए जबरदस्ती नए कपड़े पहनाकर घोड़ी के आगे नचाकर क्यों जुलूस निकाल रहे हो ?

हमने कहा- तोताराम, साफ-साफ कह, हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा है |

तोताराम ने हमारे सामने नामांकन भरने के लिए जाते सभी छोटे-बड़े सेवकों के बीच सर झुकाए चल रहे अडवानी जी का फोटो रख दिया और कहने लगा- अरे, जब तुम्हें पता है, तुम्हारे पास बहुमत है, तुम्हरी जीत पक्की है तो इस नौटंकी की क्या ज़रूरत है ?
और यदि पुलिस के फ्लेग मार्च की तरह शक्ति प्रदर्शन करना ही है तो करो लेकिन बेचारे बुजुर्ग को शांति से घर में पड़ा रहने देते | किसी परित्यक्ता को करवा चौथ के व्रत में घसीटना कौन सा प्रेम या सम्मान है ? यह तो उसके घावों पर नमक छिड़कना है |जच्चा को कुआँ-पूजन के लिए ले जा रहे हो, ले जाओ लेकिन किसी बाल-विधवा को उसमें शामिल करके उसका दिल क्यों जलाते हो ? 

हमने कहा- घर के बुजुर्ग हैं, इतने बड़े काम में उनकी मौजूदगी से शोभा बढ़ेगी | 

बोला- कोई शोभा-वोभा का मामला नहीं है |ताऊ तो बेचारे एक बार थोड़ा पिछड़े भी थे कि खिसक लें लेकिन लोगों ने फिर आगे कर लिया |बार-बार उनके फोटो खींचने का मतलब यही है कि फिर कभी यह न कह दें मेरी सहमति नहीं थी |देखो, रोजों के समय इस्लामिक देशों में दिन के समय खाने-पीने के सामानों की दुकानें बंद रखी जाती है |बड़ी मुश्किल से धर्म का निर्वाह करने वाले का धर्म-भ्रष्ट करने की कोशिश क्यों की जाए ? 

हमने कहा- जब ताऊ ने कुछ नहीं कहा तब तुझे क्या परेशानी है ? आजकल तो पंचायत या छात्र संघ का सदस्य नामांकन भरने जाता है तो जुलूस में बीस जीपें होती हैं | यह तो राष्ट्रपति का नामांकन पत्र है |खैरियत है, रास्ते में गलीचा नहीं बिछाया गया, हेलिकोप्टर से फूल नहीं बरसाए गए, जी.एस.टी. बिल की तरह इस नामांकन को तीसरी आज़ादी का नाम नहीं दिया, टी.वी. पर आँखों देखा हाल प्रसारित नहीं किया |वरना आज के दिन जो चाहे करने की स्थिति में हैं |आखिर ३० साल बाद किसी पार्टी को देश में पहली बार बहुमत मिला है, भले ही वोट ३१% मिले हों |

बोला- मास्टर, एक बात बता |जब पार्टी में बड़े-बड़े काबिल लोग भरे पड़े हैं तो नामांकन पत्र के ये चार सेट भरने का क्या अर्थ है ?

हमने कहा- यह तो सुरक्षा की दृष्टि से ज़रूरी है क्योंकि अति-उत्साह में किसी से भी कोई बड़ी चूक सो सकती है |आदमी जल्दी में गुलाबजामुन की जगह मींगणे भी खा जाया करता है |तूने पढ़ा नहीं कि बहुत लम्बे प्रवास के बाद प्रिय के आने का समाचार सुनकर नायिका जल्दी और उत्साह में आँखों में महावर और पैरों में काजल लगाने लग जाती है |

तोताराम ने एक बार फिर हमारे सामने नामांकन-जुलूस की फोटो रखी और बोला- एक तस्वीर सौ शब्दों के बराबर होती है |बस, एक बार ताऊ की झुकी नज़र और उदास सूरत को फिर ध्यान से देख ले |और कह कि सब ठीक है |

हमने कहा- तोताराम, आशा बलवती राजन....अभी 'भारत-रत्न' का चांस बाकी है |




पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Sep 2, 2014

रोटियाँ कैसे फूलती हैं



(सन्दर्भ: क्लिंटन ने जयपुर की रसोई 'अक्षय-पात्र' रसोई में पूछा- ये रोटियाँ फूलती कैसे हैं ?)

हमेशा राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और उच्च स्तर के प्रश्न करने वाले तोताराम ने आज नितांत निम्न स्तर का, माया-मोह में लिपटा प्रश्न किया- मास्टर, रोटियाँ कैसे फूलती है ?

अब क्या उत्तर दें ? अरे, यह रोज़ का काम है | करोड़ों घरों में रोटियाँ बिलती हैं, सिकती हैं, कुछ कच्ची रह जाती हैं, कुछ ढंग से सिक जाती हैं, कुछ जल जाती हैं |कुछ फूल जाती हैं, कुछ नहीं फूलती हैं | हर रोटी का अपना-अपना भाग्य है | कुछ तवे से उतरने से पहले ही उतावले हाथों में आकर कच्ची पक्की का विचार किए बिना ही पेट में पहुँच जाती हैं | कुछ फूली हुईं भी एक के ऊपर एक पड़ी किसी खाने वाले का इंतज़ार करते-करते सूख या सड़ जाती हैं |

यदि वैज्ञानिक उत्तर दें तो यह कि जब नीचे से बहुत तेज़ आंच लगती है तो अपनी प्राण रक्षा करने के लिए रोटी फूलकर आग को डराती है या अपना आकार बढाकर उस गरमी को इधर-उधर विस्तारित करके बचने की कोशिश करती है जैसे कि कुछ जानवर खतरा सामने आने पर कभी अपने बालों , काँटों को खड़ा करके, अपना आकार बढाकर शत्रु को डराने की कोशिश करते हैं जैसे बिल्ली, सेही | ज़मीन पर अंडा देने वाली कुछ चिड़ियाँ भी अपने अण्डों के आसपास से गुज़रने वालों को अपने पंख फुलाकर डरती हैं |

लेकिन हमने एक सामान्य और स्वाभाविक उत्तर दिया- तोताराम, रोटी का उद्देश्य है किसी भूखे की भूख मिटाना | यही उसकी सार्थकता है | और जब रोटी देखती है कि कोई अपनी भूख मिटाने के लिए उसके सिकने का इंतज़ार कर रहा है तो रोटी को अति प्रसन्नता होती है और वह ख़ुशी के मारे फूल जाती है | इसी भाव से नजीर अकबराबादी ने लिखा है -

जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियाँ |

 फूली नहीं बदन में समाती हैं रोटियाँ ||

तोताराम को इससे संतोष नहीं हुआ | बोला- बन्धु, प्रश्न इतना साधारण नहीं है | यदि ऐसा ही होता तो विज्ञान में इतने अग्रणी देश अमरीका का भूतपूर्व राष्ट्रपति यह प्रश्न पूछने के लिए दल-बल सहित जयपुर में मिड डे मील बनाने वाली संस्था 'अक्षय पात्र' की रसोई में रोटियों के फूलने के बारे में शोध करने के लिए नहीं आता |भले ही क्लिंटन ने वहाँ खाना परोसा, खाया; लेकिन न नाचा न कूदा बस, एक ही महत्त्वपूर्ण और काम का प्रश्न पूछा- ये रोटियाँ फूलती कैसे हैं ?

हमने कहा- इसमें आश्चर्य करने की क्या बात है ? अमरीका में रोटियाँ बनती ही कहाँ है ? पिज़्ज़ा, ब्रेड, बर्गर मिलते हैं जो बड़े-बड़े कारखानों में बनते हैं और दुकानों में पड़े रहते हैं | खरीदो और खाओ | जिस देश में बच्चे दूध देने वाले पशु के रूप में फ्रिज और अंडे के बारे में इतना ही जानते हैं कि अंडे पेड़ों पर लगते हैं, उन्हें रोटी के फूलने का क्या पता | उनके लिए तो जो कुछ बाज़ार खिला दे सो ठीक है |

अमरीका में तो दो ही तरह के फूलने की चिंता है- एक तो मोटापे के कारण वयस्कों के शरीर फूलने की और दूसरे स्कूलों में निरोध का उपयोग करने में लापरवाही करने पर वाली कुंवारी किशोरियों के पेट फूलने की |


कहने लगा- बात इतनी सरल नहीं है | तू नहीं समझेगा इस चतुर देश की दूरगामी योजना | रोटी फूलने की इस तकनीक को जानकर अब यह ऐसी चीजें बनाएगा जो दिखने में बहुत फूली और बड़ी होंगी | फिर उन्हें हमारे जैसे बेवकूफ देशों को बेचेगा लेकिन तोल कर नहीं बल्कि गिनती से | जब तक घर पहुंचोगे तब तक बीस किलो समझकर ख़रीदा माल ५०० ग्राम का हो जाएगा या जैसे यहीं के पानी में एक रूपए का पाउडर मिला कर उसमें झूठा उफान लाकर दस रूपए में बेच दिया जाता है जिससे शरीर को कीटनाशक के अलावा मिलता कुछ नहीं |

१९ जुलाई २०१४


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 14, 2014

चमत्कार को नमस्कार उर्फ़ मोदी का कुर्ता


तोताराम को बोलने का अवसर न देते हुए आज हमने ही शुरुआत की- देखा तोताराम, इसे कहते हैं चमत्कार । लगा ना अमरीका नमस्कार करने, अपने नरेन्द्र भाई को ? कल तक जो मादी को वीजा न देने पर अड़ा हुआ था आज अपनी उपविदेश मंत्री से कहलवा रहा है कि मोदी भारतीय जनता की आशाओं-आकांक्षाओं के प्रतीक हैं और अमरीका उनके साथ मिलकर भारत की जनता की आशाओं को पूरा करना चाहता है । वहाँ का मीडिया और फैशन जगत मोदी के आधी आस्तीन के कुर्ते पर फ़िदा हुआ जा रहा है । अब अधिकतम चुनावी रैलियाँ करने के कारण उनका नाम गिनीज बुक में शामिल करने को उतावला है ।


यह ठीक है कि पहले अमरीका ने मोदी को वीजा देने से इंकार किया । करता भी कैसे नहीं ? मोदी जी बिना चुने ही, गुजरात के मुख्य मंत्री जो बन गए थे । ऐसे में अमरीका कैसे उन्हें वीजा देता । यदि मोदी पाकिस्तान के अयूब, याह्या, जियाउल हक़, मुशर्रफ या मध्य-पूर्व के शेखों या हैती के शासक की तरह जनता के चुने हुए हृदय-सम्राट होते तो अमरीका वीजा दे भी देता लेकिन किसी डिक्टेटर को वीजा कैसे दे सकता था ? अब चुने गए तो स्वागत के लिए तैयार है । अमरीका सच्चे अर्थों में लोकतांत्रिक देश है ।

तोताराम बोला- पिछले साठ बरस से अखबार पढ़ रहा है, बुद्धिजीवी की पूँछ बना घूमता है और इतना भी नहीं समझता । सब मतलब की मनुहार है । पहले मनमोहन सिंह जी बिक्री करवाते थे दुनिया के पाँच स्थायी पंचों को, तो वे उनसे मिलने को उतावले रहते थे । जब कभी थोड़े से इधर-उधर हुए तो कभी 'अंडर अचीवर' और कभी 'सोनिया जी का गुड्डा' कहकर बदनाम करने लगते थे । अब खजाने की चाबी मोदी जी के पास आ गई है सो उनसे मिलने को बेचैन है । जिसकी जेब से हजार के नोट झाँकते है, लाला उसी को स्टूल पर बैठकर चाय पिलाता है । जो तेरी तरह दस चीजों के भाव पूछता है, हर चीज को दस बार उलट-पुलट कर देखता है और खरीदता कुछ नहीं, उसकी तरफ कौन दुकानदार देखेगा ?

हमने कहा- तू तो हर बात में किन्तु, परन्तु लगाता है लेकिन मोदी के आधी बाँह के कुर्ते पर फ़िदा होने में अमरीका को क्या फायदा हो सकता है ?

कहने लगा- है, इसमें भी कुछ रहस्य है । हो सकता है अगर सावधान नहीं रहे तो हल्दी और नीम की तरह वह अब मोदी के कुर्ते और दाढ़ी के स्टाइल को भी पेटेंट करा लेंगे । और यदि यह भी नहीं हुआ तो वह मीडिया में 'कुर्ता-कुर्ता' का हल्ला मचा-मचाकर मोदी का ध्यान अपने विकास कार्यक्रमों से हटाकर कुर्ते में ही उलझा दे । जैसे १९८५ में राजीव गाँधी तीन चौथाई बहुमत मिलने के कारण, भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही परेशान करने वाली बहुत सी समस्याओं को संविधान में संशोधन करके हमेशा के लिए सुलझा सकते थे लेकिन भाई लोगों ने उन्हें आदिवासियों में घुमा-घुमाकर ही पाँच वर्ष निकाल दिए । कुछ करने का मौका ही नहीं दिया और उसके बाद में किसी को कुछ करने लायक बहुमत ही नहीं मिला । जैसे मीडिया हर जगह 'सुंदरी' ढूँढ़ता है । कोर्ट में सैंकड़ों कैमरे लगे रहते हैं जो विभिन्न कोणों से फोटो खींचते हैं और जो सबसे उत्तेजक फोटो होते हैं उन्हें बेचकर पैसा कमाया जाता है । सानिया के खेल से ज्यादा उसकी छोटी स्कर्ट प्रचारित होती है । महिला टेनिस खिलाड़ी नहीं बल्कि 'टेनिस-सुंदरियां' कही जाती हैं । ऐसे ही यह कुर्ता और दाढ़ी का प्रेम है । विकसित देश लोगों को उलझाने के विशेषज्ञ हैं ।

जिस दिन मोदी जी भारत-हित को प्रमुखता देने लग जाएँगे, आयात की बजाय निर्यात बढ़ाने लग जाएँगे, योरप-अमरीका को ठेके देने कम कर देंगे, देश-प्रेम और स्वालंबन के काम करने लग जाएँगे उस दिन पता चलेगा इस 'कुर्ता-प्रेम' का ।

हम तोताराम को सच सिद्ध होते देखना चाहते हैं ।

१३ जून २०१४

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 10, 2014

तोताराम के तर्क और लालच की हद


पहले तो कोई खास रोमांच नहीं होता था और न कोई खटका लेकिन जब से चुनाव खिसक-खिसका कर मई में आ रहे हैं उससे थोड़ा टेंशन हो जाता है । निवर्तमान सरकार जाते-जाते आधा-अधूरा सा बजट घोषित करने के साथ ही महँगाई भत्ते की भी विगत जनवरी से लागू होने वाली एक क़िस्त घोषित कर जाती है । दिल में यह धुकधुकी लगी रहती है कि क्या पता नई सरकार उसे मानेगी या नहीं ? अबकी बार यह धुकधुकी कुछ अधिक थी । इसलिए भी कि मोदी जी मितव्ययी हैं, जब अपने लिए पूरा-सा ब्लेड का खर्चा भी नहीं करते तो क्या पता विकास के लिए संसाधन जुटाने के लिए मास्टरों के महँगाई भत्ते पर ही कैंची न चला दें ।

इसी टेंशन में मार्च, अप्रैल और मई निकल गए, साँसें अटकी रहीं । जुलाई से मिलने वाली क़िस्त का तो बैंक में जाकर पता कर आते थे कि क्रेडिट हुआ या नहीं लेकिन आजकल गरमी के मारे हिम्मत ही नहीं पड़ रही है । तोताराम के पास नहीं है लेकिन हमारे पास एक लेपटोप है । उसी पर हमारी एसोसिएशन के महासचिव ने मेल भेज दी कि डी.ए. क्रेडिट हो गया है । सो आज आते ही हमने तोताराम को सरप्राइज़ दिया- तोताराम, मुँह मीठा करवा, अपना डी.ए. क्रेडिट हो गया ।


खुश होना और मुँह मीठा करवाना तो दूर की बात, सड़ा-सा मुँह बनाकर कहने लगा- पहले तो चालीस बरस तनख्वाह पेली, साढ़े चार हजार पेंशन पर रिटायर हुआ जो बैठे-बिठाए अब तक बढ़कर अठारह हज़ार हो गई तिस पर भी जब देखो - हाय डी.ए., हाय पे कमीशन । अरे, संन्यास आश्रम में घुसने की उम्र आ गई लेकिन यह लालसा, तृष्णा ख़त्म नहीं हुई । कहाँ ले जाएगा इतना धन ? स्विस बैंक में भी जमा करना सुरक्षित नहीं रहा । पता नहीं, कब जेतली जी के महात्मा गाँधी (बाबा रामदेव) अनुलोम प्राणायाम के बल से स्विस बैंक के काला धन भारत खींच लाएँ । फिर क्यों मरा जा रहा है डी.ए.-डी.ए. करके ।


अब तो हमें बर्दाश्त नहीं हुआ । कौन जनसेवक और धर्म सेवक ऐसा है जो आती लक्ष्मी को छोड़ देता है । भले ही संसद में जाए या न जाए, एक दिन भी मुँह नहीं खोले, खोले तो प्रश्न पूछने के भी पैसे ले ले, सांसद-निधि में से बीस प्रतिशत कमीशन खाए, अपने फर्स्ट क्लास के रेल के पास बेच दे, केन्द्रीय विद्यालय के दो एडमीशन भी नीलाम कर दे, मौका लगे तो मुफ्त फोन से पी.सी.ओ. खोल ले, सांसद वाला मकान खाली करना पड़े तो पंखे और परदे उतार कर ले जाए । एक साल भी सांसद या एम.एल.ए. रह जाए तो ज़िन्दगी भर पेंशन पेलता है । हमने तो चालीस बरस नौकरी की है ईमानदारी से ।



तोताराम ने हमें टोकते हुए कहा- मैं जनसेवकों की बात नहीं कर रहा हूँ । इन्हें कौन नहीं जानता । ये सब तो मौसेरे भाई हैं । न किसी लम्पट नेता को आज तक फाँसी हुई है और न ही होगी । जेतली जी ने मोदी जी के शादीशुदा होने के मुद्दे पर कांग्रेस के हल्ला मचाने पर कहा नहीं था, कि राजनीति का एक अघोषित एजेंडा होता है । यह अघोषित एजेंडा क्या है ? यही तो मौसेरा भ्रातृत्त्व है । मैं तो मुकेश अम्बानी की बात कर रहा हूँ । बन्दे का जिगरा देखा, चाहता तो सारा मुनाफ़ा अपनी तनख्वाह में जोड़ लेता लेकिन पाँच साल से उसी तनख्वाह पर काम कर रहा है । डी.ए. तो डी.ए., इन्क्रीमेंट तक नहीं लिया । है कोई ऐसा सादगी पसन्द और मितव्ययी ?

हमने हाथ जोड़ते हुए कहा- नहीं, भैया नहीं । उलटे, बेचारे ने खुद ही घटाकर अपनी तनख्वाह ३९ करोड़ से मात्र पंद्रह करोड़ वार्षिक कर ली है । पता नहीं, कैसे काम चलता होगा बेचारे का ?


तोताराम भी कौन सा कम है, उसी सुर में बोला- मैं सब समझता हूँ तेरा व्यंग्य । लेकिन तू यह क्यों नहीं सोचता कि उसे इसमें कितने बड़े-बड़े खर्चे मेंटेन करने पड़ते हैं । कभी पत्नी को चार सौ करोड़ की नाव, कभी दो सौ करोड़ का पत्नी का पचासवाँ जन्म-दिन, जब भी कहीं जाना हो तो हवाई जहाज में तेल भरवाना, एंटीलिया का सालाना पाँच करोड़ का बिजली का बिल, और तिस पर इतने बड़े मकान का झाड़ू-पोचा । तेरी तरह थोड़े है कि एक ही हवाई चप्पल को पूरे साल फटकारता रहे, दो कुरते-पायजामे में दो साल निकाल दे । कहने को भारत का सबसे धनी व्यक्ति है लेकिन काम चलाता है केवल १५ करोड़ सालाना में ।

हमने कहा- बन्धु, तुमने जो हिसाब बताया है उससे हमारा दिल वास्तव में भर आया है इसलिए तू भी क्या याद करेगा । जा, जब तक सरकार मुकेश अम्बानी की गैस के दाम नहीं बढ़ाती तब तक हम इस बार का डी.ए. मुकेश राहत कोष में देने का वादा करते हैं ।


८ जून २०१४


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 17, 2014

तोताराम के तर्क और चाय पर चर्चा


हमने तोताराम के सामने चाय रखते हुए कहा- आज तुम्हारे लिए पचास प्रतिशत का विशेष कन्सेशन है । केवल ५२ रु में पूरा पॅकेज । मोदी जी चाय पर चर्चा सुनने वालों से एक सौ रुपए लेते हैं और चाय के चार रुपए अलग । हम तुम्हें पचास रुपए में कविता सुनाएंगे और दो रुपए में चाय पिलाएंगे । निकाल बावन रुपए ।

तोताराम ने ठहाका लगाते हुए कहा- सब झूठ है । हमने नेहरू जी, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी , अटल जी, आडवाणी जाने कितनों के भाषण सुने हैं । न कभी एक पैसा दिया और न हमसे किसी ने माँगा । आजकल तो चुनाव के समय भाषण सुनने वालों की भीड़ दिखाने के लिए छुटभैय्ये प्रति व्यक्ति दो सौ रूपए, दारु का एक पव्वा और बस का किराया देते हैं । ये सौ रूपए के टिकट वाली सब बातें थोथा प्रचार हैं, अपने भाव बढ़ा कर दिखाने का नाटक है ।

चुनाव में इतना खर्च हो रहा है । क्या पता, कल को चुनाव आयोग खर्च किए गए धन का हिसाब न माँग ले, इस डर के भाषण सुनने वालों से हुई 'दर्शन-श्रवण-दक्षिणा' के बहाने आमदनी दिखाने की ट्रिक है यह । मोदी तो फिर भी प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार है सो हो सकता है छुटभैय्ये नेता उसकी निगाह में चढ़ने के लिए अपनी मनरेगा और भूमि घोटालों की कमाई फूँक रहे हों । लेकिन तेरी हैसियत तो एक सरपंच की भी नहीं है । तेरी कविता सुनने के लिए देना तो दूर, कोई कुछ लेकर भी आने वाला नहीं है । वैसे यह फितूर तेरे दिमाग में आया कैसे ?

हमने कहा- हम सोच रहे हैं कि डेढ़ महीने की पेंशन का ही तो मामला है । यह तमाशा भी देख ही लेते हैं । और यह भी समझ ले कि हम चुनाव मोदी के खिलाफ लड़ेंगे । जैसे राहुल के खिलाफ लड़ने से विश्वास को पब्लिसिटी मिल रही है वैसे ही अपने को भी मिल जाएगी । जैसे वह अपनी कविताएँ पेल रहा है हम भी पेल देंगे । और कुछ नहीं तो इसी बहाने लोग जान जाएँगे कि मास्टर भी कविता लिखता है । नेतागीरी का नहीं तो, क्या पता कवि सम्मेलन का धंधा ही चल निकले ।

और फिर इस देश की क्या, कहीं की भी जनता की यह विशेषता है कि वह किसी भी सामान को उत्सवी छूट के नाम पर खरीद ही लेती है, भले ही माल कितना भी घटिया क्यों न हो ।

तोताराम ने उठाते हुए कहा- मुझे देना-दिवाना कुछ नहीं है । तू मेरा बाल सखा है इसलिए अधिक से अधिक इतना कर सकता हूँ कि एक चाय में छोटी बहर की केवल चार शे'र की एक ग़ज़ल सुन सकता हूँ और उस पर भी यह शर्त है कि मंचीय शायरों की तरह एक लाइन को चार बार नहीं पढ़ेगा या हास्य कवियों की तरह चार लाइन की कविता से पहले दस घिसे-पिटे चुटकले नहीं सुनाएगा ।

हमने तोताराम के सामने चाय रखते हुए कहा- मंजूर हैं । यहीं बैठ, हम डायरी लेकर आते हैं । कहीं चाय के कप समेत ही गायब न हो जाना ।

१७ फरवरी २०१४ पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jan 14, 2014

रिश्ता


तोताराम ने आते ही प्रश्न किया- सोनिया गाँधी तुम्हारी क्या लगती है ?

हँसी के मारे लड़खड़ाते चाय के कप को बचाते-बचाते हमने कहा- यह बात आज पैंतालीस बरस बाद पूछता है ? यह तो उसी दिन तय हो गया था जब वे अपने राजीव भाई की दुल्हन बनकर भारत आई थी | हालांकि उन्होंने भारत की नागरिकता सन १९८३ में ली मगर इससे क्या फर्क पड़ता है | अपने छोटे भाई को ब्याही तो हो गई भारत की बहू | हम तो आज भी उसे घर की बड़ी बहू मानते हैं | तभी तो विश्वास करके चाबी सौंप दी और हो गए निश्चिन्त | अब यह उसकी समझदारी पर निर्भर है कि वह झूठे भक्तों से बचकर, भारत की सामान्य जनता के स्वभाव, आकांक्षा, अपेक्षा और सीमाओं को समझते हुए उनकी कितनी सेवा करती है |

तोताराम बोला- तो फिर यह सलमान खुर्शीद क्या राहुल की उम्र का है जो उन्हें माँ बता रहा है और अपनी ही नहीं सारे भारत की |

हमने कहा- तोताराम, इसे अभिधा में नहीं, लक्षणा में ले | महात्मा गाँधी और नेहरू क्या उम्र के हिसाब से बापू या चाचा थे | लोग तो उन्हें आदर और प्यार से इस नाम से पुकारते थे | सुभाष चन्द्र बोस के कांग्रेस अध्यक्ष बनने को गाँधी जी ने पसंद नहीं किया इसलिए सुभाष ने कांग्रेस छोड़ दी | लेकिन वे देश के लिए गाँधी जी का महत्त्व जानते थे और उनका सम्मान करते थे |उन्होंने गाँधी जी को सम्पूर्ण श्रद्धा से 'बापू' नाम से संबोधित किया और वह भी भारत से दूर | यही कारण था कि इसे सारे देश ने स्वीकार कर लिया | गाँधी जी सदैव के लिए देश के ही नहीं, सारी दुनिया के बापू हो गए | मगर तेरे खुर्शीद में न तो इतनी श्रद्धा है और न ही उस स्तर का व्यक्ति है कि देश इसे सुने | ऐसे लोग इंदिरा-कालीन देवकान्त बरुआ की श्रेणी में आते हैं जो अपने से ज्यादा मज़ाक अपने तथाकथित श्रद्धेय का उड़वाते हैं | ये मतलब के लिए गधे को बाप और बाप को गधा बनाने वाले लोग हैं | इनकी बातों से सस्ते मनोरंजन के अलावा कुछ नहीं होना | ऐसे ही लोगों ने अटल, अडवाणी और वेंकैय्या नायडू को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा वसुंधरा राजे को दुर्गा का अवतार बताया था | ऐसे लोग अपने श्रद्धालुओं को ले डूबते हैं और खुद डूबती नाव छोड़कर और कोई किनारा देख लेते हैं |

बोर होते हुए तोताराम ने कहा- अच्छा, छोड़ इस पुराण को | घोड़ा खाए घोड़े के धणी को | तू तो यह बता यदि कोई अपने को सम्मानित और सम्बोधित करे तो किस तरह करेगा ?

हमने कहा- सत्तर से भी अधिक बरस ले लिए इस देवभूमि में रहते हुए और तुझे अब तक समझ नहीं आया कि भले और आम आदमी की हालत, यहीं क्या कहीं भी एक जैसी ही है | वह तो गरीब की जोरू है जिसे कोई भी छेड़ ले । बेचारी उम्र में कितनी भी बड़ी या छोटी हो मगर रहती है हर लफंगे की भाभी ही ।

इस लेख के लिये सुझाए गये 
कुछ अन्य शीर्षक - 

  • रिश्ता वही जो सलमान खुर्शीद बनाये
  • रिश्ते ही रिश्ते, एक बार मिल तो लें
  • रिश्ते में हम तुम्हारी माँ लगती हैं
  • मतलब के रिश्ते और रिश्ते का मतलब 


१२ दिसंबर २०१३

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Aug 15, 2013

तोताराम के तर्क और मतिअंध गंधी


मतिअंध गंधी


आज आते ही तोताराम ने कहा- यार मास्टर, इन नेताओं को क्या हो गया है ? बिना सोचे-समझे जो मुँह में आया बोल देते हैं । नरेंद्र मोदी ने ( १२-७-२०१३ को रायटर द्वारा लिए गए एक इंटरव्यू में २००२ के दंगों के बारे में पूछे जाने पर- यदि कोई पिल्ला भी आपकी कार के नीचे आ जाए तो दुःख होता है ) मुसलमानों को 'पिल्ला' कह दिया और कल दिग्विजय सिंह ने २५-७-२०१३ को स्वयं को जौहरी और कांग्रेस की एक भली सांसद मीनाक्षी नटराजन को सौ टंच 'माल' कह दिया । किस सीमा तक गिर गया है राजनीति का स्तर !

हमने कहा-तोताराम, बिहारी का एक दोहा है -
रे गंधी मतिअंध तू अतर दिखावत काहि ।
करि फुलेल को आचमन मीठो कहत सराहि ।।

और इसी पीड़ा को संस्कृत के कवि ने इस प्रकार कहा है -
अरसिकेषु कवित्त निवेदनं
सिरसि मा लिख, मा लिख, मा लिख ।

यह जो हल्ला मच रहा है वह लोगों के भाषा अज्ञान के कारण मच रहा है । अब चुनाव आ रहे हैं और मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में नहीं बल्कि कांग्रेस और नरेन्द्र मोदी में है । वैसे भी भाजपा में मोदी के अलावा और किसी के बोले हुए को आजकल सुन भी कौन रहा है ? इधर कांग्रेस में दिग्विजय सिंह जैसा परखी जौहरी तथा भाव और भाषा का धनी और कौन है ? और फिर प्रवक्ता होने के कारण बोलना उनकी विवशता है । यह बात और है कि दोनों ही मीठा कहकर सराहने वालों को इत्र को दिखा रहे हैं । भाषा की व्यंजना न समझने वाले इस समय में किसी भी साहित्यिक भाषा बोलने वाले के साथ ऐसा हो जाता है ।

बात १९७४ की है । हम स्टाफरूम में बैठे ऐसे ही सोच रहे थे कि कुछ अवसर होते हैं जब प्रायः उपेक्षित रहने वाले साधारण व्यक्ति के प्रति भी सबका ध्यान चला जाता है जैसे कि जन्म, विवाह, ट्रांसफर और मृत्यु । तभी हमारे मित्र शर्मा जी आ गए । हमने उसी भाव धारा में बहते हुए उनसे कह दिया- देखो शर्माजी, भगवान की क्या लीला है कि वह गधे को भी, एक दिन के लिए ही सही, हीरो बनने का अवसर दे ही देता है । और हमने वे चार अवसर गिना दिए ।

हमारे एक साथी जो हमारे दुश्मन तो नहीं हैं लेकिन उनकी विनोदवृत्ति ने उस दिन दुश्मन की भूमिका निभा दी । बोले- देखा शर्माजी, जोशी आपको गधा कह रहा है । हुआ यूँ कि शर्मा जी का कीनिया के एक इन्डियन स्कूल में सलेक्शन हो गया था और तीसरे दिन वे रिलीव होकर जाने वाले थे । हमें इस बात का पता नहीं था । इस सन्दर्भ में यह मजाक इतना फिट बैठा कि उन्होंने प्राचार्य से हमारी बाकायदा शिकायत की । खुद हमें ज़िंदगी भर अपना दुश्मन मानते रहे और प्राचार्य महोदय हमें ‘लूज़ टाक’ करने वाला । किसी ने हमारा कोई स्पष्टीकरण नहीं सुना ।

इसी तरह १९९५ का दिल्ली कैंट के केन्द्रीय विद्यालय का एक वाकया है । ऐसे ही स्टाफ रूम में हिंदी ज्ञान की चर्चा चल रही थी । हमने कह दिया- उत्तर प्रदेश का तो कुत्ता भी हिंदी जानता है । बस, फिर क्या था, उत्तर प्रदेश के हमारे एक युवा साथी भड़क उठे । कहने लगे- आप उत्तर प्रदेश वालों को कुत्ता कहते हैं ! अब हम उनसे क्या कहते ? बड़ी मुश्किल से हाथ-पाँव जोड़कर पीछा छुड़ाया । प्रतिज्ञा की कि ऐसे भाषा वैज्ञानिकों के सामने चुप ही रहेंगे । मगर आदत पड़ी हुई क्या कभी छूटती है ?

मोदी जी के साथ भी यही हुआ । बिना सोचे समझे जिसे देखो पीछे पड़ गया । किसी ने भी इस 'भी' पर ध्यान नहीं दिया । उनकी व्यंजना थी कि कुत्ते के बच्चे के मरने पर 'भी' दुःख होता है तो इंसान के मरने पर दुःख न होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता । दिग्विजय सिंह जी ने अपनी बात कहने से पहले ही कहा था कि वे एक जौहरी हैं । और फिर मीनाक्षी नटराजन को 'सौ टंच माल' कहा । अब जौहरी के लिए सौ टंच माल से श्रेष्ठ चीज और क्या हो सकती है ? एक टाइपिस्ट से सुहागरात को उसकी पत्नी ने पूछ- तुम मुझे कितना प्यार करते हो ? टाइपिस्ट ने उत्तर दिया- जितना अपने नए टाइप राइटर से । अब यदि पत्नी उससे इस बात पर झगड़े कि उसे टाइप राइटर क्यों कहा तो आप इसे क्या कहेंगे ? यह आपके भाषा-ज्ञान पर निर्भर करता है ।

चुनाव आ रहे हैं । किसी के पास कोई कल्याणकारी कार्यक्रम और सद्दिच्छा नहीं है । किसी के पास भी सत्कर्मों की दौलत तो है नहीं और न ही जनता के पास कोई विकल्प । अब ले देकर बयानों, आलोचनाओं और गाली-गलौच का ही सहारा रह गया है । एक कहता है- तू चोर है, तो दूसरा कहता है-तू भी तो चोर है । सर्वोच्च न्यायलय यह संज्ञान लेने में सक्षम नहीं है कि जब दोनों ही चोर हैं तो क्यों न इन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाए और जनता को इन्हीं चोरों में से किसी को चुनना है । यदि किसी ने भी वोट नहीं दिया तो सिक्का उछालकर हैड-टेल करके इन्हीं में से कोई न कोई सिंहासन पर बैठ जाएगा । जिस मीडिया को इमेज बनाने का ठेका दिया गया है वही इन्हें, बयानों से ऐसे ही जनहितकारी कीचड़ निकालकर उछालने की, राय देता है । लोकतंत्र का समुद्र-मंथन चल रहा है जिससे निकलने वाले अमृत, कल्पवृक्ष, कामधेनु, लक्ष्मी, कौस्तुभ मणि, ऐरावत आदि देवगण ले जाएँगे; वारुणी पीकर बूथ लेवल के कार्यकर्ता असुर उत्पात मचाएँगे और बचा हलाहल विष जिसे जनता के सिवा और कौन पिएगा ?

जहाँ तक मोदी जी, दिग्विजय जी या किसी और राजनीतिक संत के शब्दों की बात है तो क्या अन्यथा लेना । जिसकी जैसी औकात और नीयत होती है उसके शब्दों का बिना कहे भी वही अर्थ निकलता है जो निकलना चाहिए । जब कबीर स्वयं को 'राम का कुत्ता' कहता है तो कुछ भी अन्यथा समझ में नहीं आता । और इन संतों के कर, मुख, चरण किसी को भी कमल कहे जाने पर कीचड़ के अलावा और कुछ ध्यान में ही नहीं आता ।

इतने प्रवचन के बाद जैसे ही हमने एक कामर्सियल ब्रेक लिया तो देखा कि तोताराम वैसे ही उठकर जा चुका है जैसे कि सत्ताविहीन हो चुके दल को छोड़कर रामविलास पासवान या अजित सिंह चले जाते हैं ।

हमें विश्वास है कि मोदी जी और दिग्विजय सिंह जी हमारे इस आलेख से अपने को 'मतिअंध' कहा गया मानकर नाराज़ नहीं होंगे ।

२६-७-२०१३



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jan 19, 2013

तोताराम को भारत रत्न


तोताराम को भारत रत्न

वैसे तो तोताराम को भारत रत्न बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था लेकिन न तो लोगों ने सोचा और न सरकार ने ध्यान दिया । और तोताराम तो खैर मान-अपमान से सर्वथा असम्पृक्त रहता है । पर आज कई दिनों के बाद सवेरे-सवेरे एक लँगोटी धारण किए हमारे घर के आगे से गुजरा ।

यह आज पहली बार हो रहा है कि वह हमारे घर के आगे से बिना चाय पिए जा रहा था । जनवरी के इस पहले सप्ताह में पारा जमाव बिंदु से नीचे ही चल रहा है । हम अमरीका से भयंकर ठण्ड से जान बचाकर भारत आए और यहाँ भी कुछ वैसी ही ठण्ड पाई, जैसे कि कहावत है - जहाँ जाए भूखा, वहीं पड़े सूखा । किसी तरह रजाई में लिपटे दिन गिन रहे थे । इन दिनों में तोताराम नहीं आया और न ही हमने उसे एक्सपेक्ट किया । दोस्ती अपनी जगह और जान-पहचान और बैठकबाजी अपनी जगह ।

हमने घर के आगे से गुजर रहे तोताराम को भाग कर पकड़ा । पूछा- क्यों आत्महत्या करने का विचार है क्या ?

उसने कहा- आत्महत्या तो मैं कभी नहीं कर सकता क्योंकि महँगाई जीने नहीं देती और महँगाई भत्ते की घोषणा मरने नहीं देती । मैं तो आजीवन दोनों के बीच झूलता रहा हूँ जैसे कि जनता नागनाथ और साँपनाथ के बीच भटकती रहती है । फिर अब तो अपने जयपुर में चिंतन-मनन-मंथन शिविर चल रहा है । वैसे तो बहुत से शिविर लगते हैं और प्रशासन हमारे द्वार पर आकर जम जाता है लेकिन होता-हवाता कुछ नहीं । फिर भी यह चुनावी वर्ष है, क्या पता कुछ निकल ही आए । कीचड़ में से कमल भी तो निकलता है ।

हमने उसे टोका और कहा- बात मत बदल । यह भारत रत्न और तेरे कपड़े उतारने का क्या संबंध है ?

बोला- पहले की बात छोड़, आजकल पंचायत सदस्य का टिकट तक कपड़े उतारे बिना नहीं मिलता तो यह तो भारत रत्न है । मुझे पता चला है कि शर्लिन चोपड़ा ने अमरीका जाकर किसी 'प्ले बॉय' पत्रिका के लिए कपड़े उतारे हैं और अब वह भारतरत्न के लिए दावेदारी करने वाली है । सोचता हूँ, महिलाओं का बड़ी तेज़ी से सशक्तीकरण हो रहा है । क्या पता उनके कल्याण के लिए कोई 'प्ले गर्ल' नामक पत्रिका भी निकलने लगी हो । उसके लिए मुझ से बेहतर कौन हो सकता है । ये तो कपड़े उतार रखे हैं वैसे अपना तो कपड़े उतारे बिना भी सब कुछ पारदर्शितापूर्ण है ।

हमने उसे पकडकर अंदर लिया और उसके न चाहते हुए भी रजाई में घुसेड़ दिया । जीवित तो नहीं, मरणोपरांत भी भारतरत्न, पता नहीं मिलेगा या नहीं लेकिन कल के अखबार में ज़रूर आ जाएगा कि सीकर की भयंकर ठण्ड से पीड़ित, केवल पट्टेदार जाँघिया पहने मंडी के पास सत्तर वर्षीय एक वृद्ध का शव मिला ।

१८ जनवरी २०१३

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Apr 6, 2012

तोताराम का अर्थ आवर

दो दिन से तोताराम नहीं आ रहा था सो हम ही उसके घर चले गए | देखा तो तोताराम टखने पर क्रेप बेंडेज बाँध कर लेटा है | न आने का कारण तो पता चल गया मगर इस बेंडेज का कारण पूछा तो बोला- ३१ मार्च को ८.३० पर लाइट बंद कर दी थी | जैसे ही गेट का ताला बंद करने गया तो पैर मुड़ गया और आगे का हाल देख ही रहे हो |

हमने कहा- ठीक है, बचत करनी चाहिए मगर ऐसी भी क्या बचत ? एक-दो मिनट में कितनी बिजली जल जाती ?

कहने लगा- वैसे तो तू बहुत बड़ी-बड़ी बातें करता है लेकिन इतना भी पता नहीं उस दिन 'अर्थ डे' था और अर्थ डे पर पृथ्वी बचाओ वाले एन.जी.ओ. ने ८.३० से ९.३० तक सारे संसार में एक घंटे बिजली बंद रखने की घोषणा की थी | बात पैसे की नहीं है बल्कि इस नष्ट होने के कगार पर खड़ी पृथ्वी को बचाने की है | तू तो अपनी सुख-सुविधा में तनिक-सी भी कमी करना नहीं चाहता | तुझे क्या, पृथ्वी रहे या बचे |

हमने कहा- तोताराम, हम भी पृथ्वी क्या, समस्त ब्रह्माण्ड से उतना ही बल्कि अधिक प्यार करते हैं जितना कि तुम्हारे ये 'अर्थ डे' वाले | हाँ, यह बात और है कि हमारे पास कोई मिडिया नहीं है सो हमारे प्रयत्नों का किसी को पता नहीं चलता | और जिन लोगों को तू पृथ्वी को बचाने की जिम्मेदारी उठाए देख रहा है वे ही इस पृथ्वी के विनाश का कारण हैं | अमरीका विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए दबाव डाल रहा है लेकिन खुद सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है | १५० ट्रिलियन कैलोरी जितना भोजन अमरीका में जूठन के रूप में व्यर्थ कर दिया जाता है | क्या उसमें ऊर्जा नहीं लगती ? अमरीका में घरों के आगे-पीछे लगे लॉन्स का क्षेत्रफल कोई डेढ़ लाख किलोमीटर है जिसमें घास उगाने और सँवारने में सोचो कितनी बिजली और पेट्रोल जलता होगा | और नाटक अर्थ आवर का |

तोताराम कहने लगा- देख, बूँद-बूँद से घड़ा भरता है और बूँद-बूँद रिसने से रीत जाता है | राम जब पुल बना रहे थे तो एक गिलहरी भी अपनी पूँछ समुद्र में डुबोती और फिर बाहर आकार उसे छींट देती और फिर पूछ गीली करती | यही क्रिया वह बहुत देर से दुहरा रही थी | भगवान राम ने बड़े प्यार से उसे पूछा कि वह क्या कर रही है ? तो कहने लगी कि मैं इस समुद्र को ऐसे ही सुखा दूँगी | राम मुस्कराए और उसे प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा | तो हम भी उस गिलहरी की तरह अपव्यय के इस समुद्र को सुखाने का प्रयत्न कर रहे हैं |

खुद सारे संसाधनों का दुरुपयोग करने वाले चतुर लोग, पृथ्वी को बचाने की हमारी यह बचकानी कोशिश करके धन्य होने की मूर्खता पर अंदर ही अंदर हँस रहे होंगे | वे जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं ? और फिर भी ईश्वर उन्हें माफ कर रहा है | खुद ही दुनिया के जंगलों को काट कर हमें वनमहोत्सव में उलझा रहे हैं | हम कहाँ कोई हरा क्या, सूखा पेड़ भी काट रहे हैं | नेता खुद अपने कमीशन के लिए अपने देशों के संसाधन बेचे जा रहे हैं और जनता को मितव्ययिता का उपदेश दे रहे हैं |


और जहाँ तक बिजली की बात है, हम तो बिजली क्या, किसी भी साधन का बहुत सँभल-सँभल कर उपयोग करते हैं | हमें तो जो कुछ भी उपभोग करते हैं उसका पूरा पैसा देना पड़ता है | नेताओं से पूछ कि उनके बँगलों और फार्म हाउसों में कितनी फालतू बिजली जलती है ? क्यों, क्योंकि या तो उन्हें बिजली मुफ्त मिलती है या फिर चोरी करते हैं | क्यों बिजली द्वारा ज़मीन से खींचा हुआ बेशकीमती पानी स्विमिंग पूलों में भर कर तैरते रहते हैं जब कि देश डूब रहा है और खेत, पशु-पक्षी प्यासे हैं | मुकेश अम्बानी से पूछ कि क्या वह बिजली बनाता है जो एक महिने में अपने नए बँगले में ७० लाख रुपए महिने की बिजली फूँक देता है ?

तोताराम बोला- वह कोई बिजली चोरी थोड़े ही करता है वह तो पूरे पैसे देता है |

हमने कहा- तो कागज के टुकड़ों से बिजली बनती है क्या ? बिजली बनाने में इस धरती के बहुमूल्य संसाधनों का उपयोग होता है और वे संसाधन किसी एक बपौती नहीं हैं उन पर इस दुनिया के सभी लोगों का अधिकार है | मान ले कोई व्यक्ति कहे कि उसके पास बहुत पैसा है | वह सारी दुनिया का गेहूँ खरीद कर समुद्र में फेंक देगा तो क्या यह उचित है ? किसान गेंहूँ खाने के लिए उगाता है न कि समुद्र में फेंकने के लिए | रोटी खाने के लिए है न कि खेलने के लिए | अरे, यदि यह दुनिया बची हुई है तो हम ग़रीबों के कारण जिनके पास इस दुनिया को निचोड़ने के साधन नहीं है | यदि इस दुनिया में सारे ही धनी होते तो पता नहीं, ये कब का इस दुनिया को चूस कर खत्म कर देते | धर्म और सत्कार्य किसी एक दिन का नाटक नहीं होते वे तो हमारी जीवन शैली होने चाहिएँ तभी उसका लाभ दिखेगा | अच्छी बातें या तो शतप्रतिशत होती हैं या फिर बिलकुल नहीं |

ये ऐसे ही नाटक हैं जैसे कि जब किसी यूरोपीय या अमरीकी सुन्दरी की कपड़े उतारने की इच्छा होती है तो कह देती है कि वह पशु क्रूरता के विरुद्ध नग्न होकर प्रदर्शन कर रही है | अरे, मांस खाना छोड़ दो अपने आप बूचड़ खाने बंद हो जाएँगे | चिल्लाएँगे- विदेशी ब्रांड के ठंडे पेयों में केंसर कारक पदार्थ मिले हुए हैं | तो किसने कहा है कि पियो | छोड़ दो | गाँधी वाला उपाय ही चलेगा |

चतुर लोग हमें 'अर्थ आवर' में उलझा कर अनर्थपूर्वक अपनी अर्थ सिद्धि करने में लगे हैं | आँख खोल कर रहो | साधारण आदमी के लिए तो चाहे एक घंटे का अर्थ आवर हो या वर्तमान हो या भविष्य हो, अंधकार पूर्ण ही है | सावधानी से टटोल-टटोल कर चलो नहीं तो पैर ही क्या सिर और कमर भी तुड़वा बैठोगे |

खैर, चल उठ | बैंक चल कर पता कर लें कि नया डी.ए. पेंशन में जुड़ गया कि नहीं ?

२-४-२०१२


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

तोताराम के तर्क - संसद के माननीयों की मर्यादा

संसद में १८६ दागी मतलब कि एक तिहाई जेल जाने के योग्य हैं । वैसे किसी सांसद को पकड़ना, उस पर मुक़दमा चलाना और उस पर आरोप तय करना कोई साधारण काम नहीं है । इतना भी तब होता है जब या तो कोई कानून का रखवाला सर पर कफ़न बाँध लेता है या फिर किसी न्यायमूर्ति की आत्मा जिंदा हो जाती है । हालाँकि उस आत्मा को भी तरह-तरह से सुलाने और न माने तो शरीर से भगाने की कार्यवाही करने की तक धमकी दी जाती है । तिस पर भी किसी पर आरोप तय हो जाए तो मतलब कि दाल में काला क्या, सारी दाल ही काली है ।

हम लोकतंत्र की इस साठ-साला उपलब्धि पर कुढ़ रहे थे कि तोताराम आ गया । हम बिना किसी सन्दर्भ के ही उस पर बरस पड़े - तोताराम, इन सब को तो तत्काल जेल में डाल देना चाहिए ।

तोताराम ने उत्तर दिया- बिलकुल, दो-चार आदमियों ने दिल्ली में मज़मा लगाकर 'माननीयों' का जीना हराम कर रखा है । एक तो वैसे ही गठबंधन के मारे हाथ-पाँव फूले हुए हैं । चाहे जिस मंत्री को एक फोन पर हटाना पड़ रहा है । कभी कोई चुपचाप रिटायरमेंट लेने की बजाय, कभी जन्मतिथि तो कभी किसी ज्ञात-अज्ञात रिश्वत की पेशकश करने वाले की बात उड़ा कर, नींद हराम किए हुए है । और ये खोजी लोग दाढ़ी तो दाढ़ी, क्लीन शेव वालों में तिनके ढूँढ़ रहे हैं । बिलकुल, इन्हें तो संसद में लाकर लालू, मुलायम और शरद 'यादव त्रय' के सुपुर्द कर दिया जाना चाहिए । फिर ये चाहें तो इन्हें जेल भिजवाएँ या पागलखाने में डालें या वहीं डंडे या जूते मारें या एटा-इटावा के देसी कट्टे से तत्काल ढेर कर दें ।

हमने कहा- बंधु, हम अन्ना टीम और अन्य अन्नावादियों की बात नहीं कर रहे हैं । हम तो उन 'माननीयों' की बात कर रहे हैं जिन पर बीसियों केस लगे हुए हैं, जिनके नाम से ही भले लोगों की तो बात ही क्या, चम्बल के अच्छे-अच्छे शेर भी घबरा जाते हैं ।

तोताराम ने थोड़ा विलोम साँस छोड़ते हुए कहा- तो तुझे भी गंगा की सफाई जैसा कोई काल्पनिक जुकाम हो गया दीखे । क्या गंगा के उद्धार के लिए अनशन करने वाले का नाम जानता हैं ? नहीं ना ? और या तो वह मर जाएगा या फिर ज़बरदस्ती उसका अनशन तुड़वा दिया जाएगा । और सब कुछ पुनः वैसे ही चलने लग जाएगा । इस मुक्त बाजार में दो जून की रोटी जुटाने में ही आदमी को इतना व्यस्त कर दिया गाया है कि उसे देश क्या, खुद के जीने-मरने तक की खबर नहीं है । क्या गंगा और क्या संसद - किस किस की खबर रखेगा बेचारा ।

और फिर भई, इस देश में कानून का शासन है । आरोप का क्या है कोई भी, कभी भी, किसी पर भी लगा या लगवा सकता है ? अब भई, राम की तरह एक धोबी के कहने मात्र से सत्ता-सीता को त्याग दिया तो चल लिया लोकतंत्र । और मान ले, कोर्ट ने आरोप तय भी कर दिए तो क्या, आरोप सिद्ध तो नहीं हुए । बिना आरोप सिद्ध हुए किसी माननीय को दागी कहना कहाँ तक उचित है ? जब देश की सर्वोच्च संस्था उन्हें अब भी 'माननीय' कह कर संबोधित कर रही है तो तुझे क्या अधिकार है उन्हें चोर, हत्यारे, बलात्कारी कहने का । अरे, यह तो उनकी भलमनसाहट है कि अभी तक दिल्ली में धरने पर बैठकर आरोप लगवाने वालों और तेरे जैसे समर्थकों की अभी तक 'टें' नहीं बुलावा दी । वरना जो किसी डीजल का अवैध धंधा रोकने वाले या अवैध खनन में बाधा डालने वाले अधिकारी को सरे आम मरवा सकते हैं और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका, तो तेरे जैसे के लिए तो सौ रुपए की सुपारी भी बहुत । कोई भी छुटभैया रास्ते चलते स्कूटर भिड़ा कर तेरा काम तमाम कर जाएगा और पता भी नहीं चलेगा । 'माननीयों' को अपने लाइसेंसी हथियार या जनता द्वारा लोकतंत्र की रक्षा के लिए दिए गए धनुष-बाण, तलवार और गदाएँ निकालने की तो नौबत ही नहीं आएगी ।

और मान ले इन सबको संसद से निकाल भी दिया गया तो फिर कौन से राजा हरिश्चंद्र ले आएगा तू चुन कर । उन्हीं में से तो चुनना है । साँपसिंह, नागनाथ या फिर बिच्छू भैया । कोई भला आदमी न तो जीवन भर में चुनाव लड़ने लायक पैसे जुटा सकता और न ही इस अधर्म-युद्ध में उतरने का साहस कर सकता है । और मान ले यदि दिनमान उल्टा हुआ और खड़ा भी हो गया तो जीतेगा नहीं, या कोई 'भाई' एक धमकी में ही उसे बैठा देगा ।

ये एक तिहाई तो घोषित 'माननीय' हैं और जो अभी आरोपित होने से बच गए हैं, जो भूतपूर्व 'माननीय' हैं और जो सत्ता-मद में शीघ्र ही अपनी लीला दिखाने वाले हैं उनका तो हिसाब ही नहीं लगाया है तूने । अरे, जैसा भी है दुनिया को दिखाने को लोकतंत्र तो है । जैसे भी हैं चुनाव तो होते हैं । भले ही चुनाव में चालीस प्रतिशत मतदान ही होता हो और उसमें भी आधा नकली और आधा दारू के नशे में और उसमें भी जीतने वाले को बीस प्रतिशत वोट ही मिलें हों पर वह उस इलाके का चुना हुआ प्रतिनिधि ही माना जाएगा ना ? पति कैसा भी हो, पति ही होता है । उसके नाम से स्त्री माँग तो भरती है । अवैध संतान को भी नाम तो मिल जाता है । लफंगों से कुछ तो बचाव होता है । भले ही पिता ने पैसा लेकर बूढ़े के पल्ले बाँध दिया हो । तभी शास्त्रों में कहा गया है-

वृद्ध रोगबस जड़ धनहीना । अंध बधिर क्रोधी अति दीना । ।
ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना । नारि पाँव जमपुर दुःख नाना । ।

और फिर जनता के ये खसम तो माशा’अल्लाह हट्टे-कट्टे, घोषित आमदनी से हजार गुना अधिक धनवान हैं । ये तो जमपुर के दुःख भोगने का इंतज़ार करने तक का समय भी नहीं देंगे । इसी जन्म को नर्क बना देंगे । इसलिए इन सर्वशक्तिमान, तेजस्वी संतों का अपमान करने का साहस करके क्यों अपनी दुर्गति को निमंत्रण दे रहा है । शांति से रहेगा तो क्या पता, अस्सी बरस की उम्र भी पा जाएगा और तब पता हैं, पेंशन एक झटके में ही सवाई हो जाएगी ।

हमने कहा- तोताराम, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि ये जो सांसदों पर लगे आरोपों से अपने को मुक्त मानते हैं वे सभी दूध के धुले जन-सेवक अलग हो जाएँ और ईमानदारों की एक नई पार्टी बना लें । लोकतंत्र की गंगा की पूर्ण सफाई हो जाए ।

तोताराम बोला- लोकतंत्र की गंगा की तो बात नहीं जानता पर इन ईमानदारों की ज़रूर सफाई हो जाएगी । अब तो एक तिहाई ही गिनती में हैं, शेष एक तिहाई ढके छुपे हैं । यदि स्पष्ट विभाजन हुआ तो संसद में इन्हीं दागियों का तीन चौथाई बहुमत नज़र आएगा और तब ये संविधान ही बदल देंगे । अब तो जीतने के नाम पर ही अपराधियों को टिकट दिया जाता है फिर तो यह होगा कि अपराधों की गिनती और गंभीरता के आधार पर टिकट मिलेगा ।

हमने तोताराम के इस सकारात्मक चिंतन में बाधा डालते हुए कहा- और वह अरबों-खरबों का काला धन जो इन लोगों ने घपले करके कमाया है ?

तोताराम ने कहा- ज़रा ठंडे दिमाग से सोच । यदि इन्होंने धन कमाया है तो क्या उन नोटों को खाएँगे ? कभी भी खर्च करेंगे तो इसी जनता में आएगा ना ? यदि खर्च नहीं करेंगे तो एक प्रकार से देश की बचत ही तो हो रही है । और फिर इनमें अधिकतर का धन इसी देश में है । ये नए-नए सेवक हैं और शुद्ध देशी । अभी इनके इतने संपर्क सूत्र विदेशों में नहीं है कि किसी विदेशी बैंक में जमा कराएँ । और यदि चुनाव में खर्च करेंगे तो भी फिर इसी जनता में आएगा ना ? जुलूस, रैली, झंडे बैनर उद्योग का विकास होगा । यदि देसी दारू में लगेगा तो कुटीर उद्योगों का विकास होगा ।

हमने चिढ़ कर कहा- तो फिर पोर्न गेट कांड के बारे में भी अपने एक्सपर्ट कमेन्ट दे ही दे । तो बोला- उसमें तो कोई बात ही नहीं है । आजकल विज्ञापनों और टी.वी. में जो दिखाया जा रहा है वह किसी भी पोर्न फिल्म से कम नहीं है और फिर ‘डर्टी पिक्चर’ को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जा सकता है तो फिर देखने में ही क्या हो गया ? और तुझे क्या पता कि वह कोई पोर्न फिल्म ही देख रहे थे, किसी राज्यपाल या स्वामी की सी.डी. भी तो हो सकती है । किसी पूनम पांडे का वीडियो भी तो हो सकता है । वैसे आजकल राजनीति में ऐसे 'माननीयों' के पास कोई खास काम भी तो नहीं है । जहाँ तक विकास का सवाल है तो दिन में तो दूना ही होता है, चौगुना तो रात में होता है ।

हमने कहा- तोताराम, मान लेते हैं कि हम और ये अन्नावादी जो कह रहे हैं वह गलत है । सब बेकार में सांसदों पर आरोप लगा रहे हैं जब कि इनमें कोई दोषी नहीं हैं तो फिर ये अन्ना का लोकपाल विधेयक मान क्यों नहीं लेते ? बिल से सदाचारियों को डरने की क्या ज़रूरत है ?

तोताराम झुँझलाया- लोकपाल, लोकपाल । क्या है लोकपाल ? इससे पहले जाने कितने ही 'पाल' भरे पड़े हैं यहाँ । आठ दिक्पाल अर्थात दिग्गज पृथ्वी को थामे हुए हैं पर क्या भूकंप या भूचाल आने से रुक गए ? 'महिपालों' अर्थात पृथ्वी का पालन करने वालों के रहते पृथ्वी का कैसा पालन हो रहा है, देख ही रहे हो ? द्वारपालों के होते हुए क्या घुसपैठिए देश में, दलाल सेना में और पी.एम. ऑफिस में ‘मोल’ नहीं घुस गए ? डाकपाल, लेखपाल, लेखापाल जाने कितने 'पाल' हैं । राज्यपालों के रहते हुए लोकतंत्र की कितनी रक्षा हो गई ?

अरे, और कोई काम नहीं है क्या ? अभी तो बेअंत के हत्यारे को, कसाब को, अफज़ल को धार्मिक सद्भाव (?) और जन भावना के नाम पर क्षमा करना है जैसे कि पहले शाहबानो के केस में कानून का सत्यानाश किया था और संतुलन बनाने के लिए राम मंदिर का ताला खुलवाकर एक नई खाज लगा दी थी । और फिर अब तो महिलाओं के कल्याण के लिए 'लिव इन रिलेशनशिप' जैसे पवित्र कार्य को कानूनी बनाना है । बेचारे समलैंगिक जाने कितने वर्षों से अपने इस सहज, स्वाभाविक और अध्यात्मिक प्रेम को मान्यता मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं । भले ही धारा ३७० न हटे मगर इनके लिए धारा ३७७ को तो हटाना है ना । देश को विकसित बनाने के लिए अमरीका की तरह इन समलैंगिकों को विवाह का अधिकार देने का बिल भी पास कारवा है । हिंदुओं में तलाक को उसी तरह से सरल बनाना है जैसे कि इस्लाम में फोन पर तीन बार तलाक कहने से तलाक हो जाता है । और तू लोकपाल, लोकपाल की ही रट लगाए जा रहा है ।

और सुन ले अभी ये जो सुधारक समर्थकों की भीड़ देखकर जोश में आ रहे हैं बाद में ओम पुरी की तरह बयान बदलते फिरेंगे । खैर, गुस्सा थूक और एक किस्सा सुन-

एक गरीब आदमी थोड़ी सी देसी पिए हुए या फिर शायद भूख के कारण लड़खड़ाता हुआ सड़क पर जा रहा था । तभी एक नेताजी के सुपुत्र की गाड़ी तेज गति से उधर से निकली । उस व्यक्ति को कोई खास चोट तो नहीं लगी लेकिन उसके झपाटे से वह गिर ज़रूर गया और भयभीत होकर चिल्लाने लगा । लोग पूछते मगर वह चिल्लाए ही जा रहा था । तभी एक पुलिस वाला नेता जी के बेटे को सलामी देकर वहाँ पहुँचा तो वह भी उस दुर्घटना से बचे आदमी का तमाशा देखने लगा । आदमी था कि चिल्लाए जा रहा था । अंत में पुलिस वाले ने उसे एक ठोकर मारी और डाँटा- साले, क्या पें-पें लगा रखी है । बताता क्यों नहीं, कहाँ लगी है ?

आदमी ने ध्यान से रक्षक जी की तरफ देखा और कहा- पता नहीं, साहब । आप जहाँ कह दें, वहीं लगी है ।

३०-३-२०१२
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Mar 18, 2012

तोताराम का - उत्तिष्ठ जाग्रत....

आज सवेरे जब दरवाजे पर दस्तक हुई तो हमने समझा तोताराम होगा । हालाँकि दरवाजा बंद नहीं था फिर भी आगंतुक अंदर नहीं आया तो हमने पोती से कहा- जाओ बेटी, देखो कौन है ? यदि तोताराम दादाजी होते तो सीधे अंदर आ गए होते । बच्ची ने तत्काल आकर कहा- दादाजी कोई आदमी है ? हमने कहा- तो फिर अंदर ले आती । पोती फिर गई और एक प्राणी को अंदर ले आई । छोटी-छोटी दाढ़ी, पायजामा और लंबा कुर्ता, हाथ में मोबाइल, गले में सोने की मोटी चेन, खाया-पिया अघाया शरीर ।

हमने देखते ही पहचान लिया और पोती से कहा- ये आदमी कहाँ हैं ? ये तो सेवक जी हैं । तुमने अखबार में अक्सर इनकी तस्वीर नहीं देखी ? कभी गौपाष्टमी को गाय को पूड़ी और हलवा खिलाते हुए तस्वीर, कभी इस-उस नेता जी को जीत या जन्मदिन की बधाई देने वाली तस्वीर, कभी धरना देते तो कभी जुलूस की अगवाई करते तस्वीर । ये अपने इलाके के सेवक जी हैं । अगर आदमी होता तो अब तक चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई होतीं, कमर झुक गई होती या फिर कहीं मनरेगा में खट रहा होता या कहीं राशन की लाइन में लगा होता ।

पोती ने उन्हें नमस्कार किया और चाय लेने अंदर चली गई । हमने उनसे पूछा- कहिए, आज कैसे आना हुआ ? अभी तो कोई चुनाव भी नहीं है जो वोट का चक्कर होता । आपकी दया से हमें तो पेंशन मिलती है जिसे आप न घटवा सकते हैं और न बढ़वा सकते हैं । ट्रांसफर का भी हमारा कोई मामला नहीं बनता । इनकम टेक्स में मिलने वाली छूट कम हो या ज्यादा हमें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हमारी पेंशन कभी इतनी नहीं हो सकती कि टेक्स लगे । इसलिए हम सरकार के लिए व्यर्थ हैं । जवान होते तो लेपटॉप की लाइन में लगते । सरकार तो यह इंतज़ार कर रही है कि हम कब मरें और हम लोग हैं कि महँगाई के बावज़ूद जिंदा हैं और यदि कुछ अघटित नहीं हुआ तो क्या पता, सेंचुरी भी लगा दें सचिन की तरह; भले ही इस चक्कर में भारतीय टीम की तरह वित्त मंत्रालय चीं बोल जाए ।

आज शायद सेवक के लिए पहला दिन था जब उसे एक भी शब्द बोले बिना, एक साथ इतना लंबा भाषण सुनना पड़ा हो । वह हमें चुप करवाने के लिए बोला- सर जी, आप जो कहते हैं सब ठीक है । और फिर मेरे जैसे एक अदने से सेवक की क्या हस्ती कि आप जैसे विद्वान की कुछ सेवा कर सकूँ । वैसे आजकल गौशाला और मनरेगा से ही फुर्सत नहीं मिलती वरना ऐसी क्या बात कि आपके दर्शन करने नहीं आता ? मैं तो आपसे कल के बजट के बारे में कुछ जानने आया हूँ क्योंकि आप भाषा के बहुत बड़े विद्वान हैं । लिखे छपे शब्द के पीछे छुपे अर्थ को भली भाँति समझ सकते हैं ।

अब आप जानते हैं कि एक मास्टर इतना मक्खन लगने के बाद सीधा खड़ा रह सकता है क्या ? इतने में तो एक बागी उम्मीदवार की अपनी सत्ताधारी पार्टी में घर वापसी हो सकती है ।

हमने ताज़ा अखबार में छपे बजट के बारे में सारे समाचार और विश्लेषण उसके सामने फैलाते हुए कहा- कहो, कहाँ, क्या शंका है ?

बोला- जी, मुझे और सारे बजट से क्या लेना है । मुझे तो सेवा-कर पर लगने वाले टेक्स के बारे में पूछना है । अब देखिए, गाँधी जी के ज़माने से ही इस देश में 'सेवा कर', 'सेवा कर' की धुन गूँज रही है । तो खैर, गाँधी जी के बारे में ज्यादा नहीं जानता । मैं तो पैदा ही उनके मरने के कोई तीस बरस बाद हुआ हूँ फिर भी मैंने पढ़ा है कि गाँधी के ज़माने में बहुत से युवकों ने सेवा करने के लिए स्कूल-कालेज छोड़ दिए, जेल गए और देश को स्वतंत्र कराया । सो मैंने भी पढ़ने से ज्यादा सेवा को महत्त्व दिया । स्कूल से निकाला जाने वाला था सो मैंने खुद ही जाना बंद कर दिया और सेवा में लग गया और आपकी दया से आज एक छोटा-मोटा सेवक हूँ ।

हमने हँस कर कहा- हो सकता है कि तुम बड़े सेवक न हो मगर मोटे ज़रूर हो । इसी तरह चलते रहे तो बड़े सेवक भी बन जाओगे ।


वह थोड़ा शरमाया । हमें अच्छा लगा । किसी का ऐसी बात पर शरमाना आशा बँधाता है कि अभी सब कुछ नष्ट नहीं हुआ है ।

हमने बात आगे बढ़ाते हुए कहा- हाँ, तो बताओ तुम्हें क्या समझ में नहीं आया ?

बोला- पहले तो नेताओं ने सेवा करने के लिए उकसाया और जब किसी भी नौकरी के लिए 'ओवर एज' हो गया हूँ तो डराते हैं । अब प्रणव दा को ही देख लीजिए, कहा है कि अब सेवा पर भी दस की बजाय बारह परसेंट टेक्स लगेगा । लोग जब-तब राजीव जी के एक स्टेटमेंट को उछालते रहते हैं कि केन्द्र से चले सौ पैसे में से वास्तविक व्यक्ति तक केवल पन्द्रह पैसे ही पहुँचते हैं और पचासी पैसे बीच वाले खा जाते हैं । उन्हें क्या पता नहीं कि मनरेगा, मध्याह्न भोजन, उचित मूल्य सामग्री वितरण, आँगनबाड़ी, गौशाला आदि में पटवारी, पंच, ग्राम सेवक से लेकर मंत्री तक जाने कितने लोग घुसे हुए हैं ऊपर से लेकर नीचे तक ? ले-दे कर पचास साठ हजार महिने के पड़ते हैं उस पर हज़ार तरह के खर्चे अलग । कभी पार्टी की रैली के लिए आदमी जुटाओ, कभी स्वागत-द्वार बनवाओ, कभी चुनाव आ गया तो पार्टी को चंदा दो । जनता तो आप जानते हैं कि नेताओं के नाम से कटे पर पेशाब भी करने को तैयार नहीं । मेरे जैसों को ही भरना पड़ता है । और अब यह दो परसेंट टेक्स और बढ़ा दिया । इस महँगाई में सेवा करना भी मुश्किल हो गया ।

हमें सेवक की पीड़ा से दुःख हुआ । सोचा, भले ही कम हो मगर पेंशन में ये सब झंझट तो नहीं । अब जीवन में कभी भी कोई वित्त-मंत्री हमें टेक्स के दायरे में नहीं ला सकता ।

हमारी बातचीत चल ही रही थी कि तोताराम आ गया और सारा मामला सुन कर बोला- अरे बंधु, आप किस के चक्कर में आ गए । इस आदमी से न तो कभी कोई महान काम हुआ है और न होनेवाला । बहुत डरपोक है यह मास्टर । तुम्हें कोई खतरा नहीं है । जब हत्या, अपहरण, बलात्कार करने वाले लोग संसद और विधान सभाओं में बैठे हैं । जेल में पड़े हुए भी 'माननीय' हैं । किसी के चेहरे पर कोई शिकन है ? और अरबों की कमाई करके भी कोई टेक्स नहीं देते हैं तो तुम क्यों चिंतित हो रहे हो । तुम्हें सभी संकटों से बचाने की जिम्मेदारी तो उन्हीं की है । तुम तो उन कंगूरों की नींव के पत्थर हो । सेवक तो दिल्ली जयपुर में बैठते हैं । करोड़ों रुपए वेतन, सुविधाओं और सांसद निधि के रूप में पेलते हैं किसी पर लगा है कोई टेक्स ?

अपन काहे के सेवक हैं ? अपना तो धंधा है, और वह भी छोटा-मोटा । और धंधा भी ऐसा जिसका कागज पर कोई सबूत नहीं । तुम तो अब बी.पी.एल. कार्ड के लिए आवेदन करो, सुना है सारी सब्सीडी सीधे खाते में ट्रांसफर होगी । और मौका लगे तो यू.पी. में भी कार्ड बनवालो और लगे हाथ बेरोजगारी भत्ता और लेपटॉप भी पेलो । उत्तिष्ठ जाग्रत.....

और वे उठकर चल पड़े ।

१७ मार्च २०१२

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Mar 7, 2012

सम्पूर्ण भारत का धर्म परिवर्तन



तोताराम के बेटे प्राइवेट नौकरी करते हैं । प्राइवेट नौकरी में हालात क्या हैं यह किसी से छुपा नहीं है । मालिक का बस चले तो एक पैसा न दे और काम करवाए दिन में २५ घंटे । और तोताराम को पेंशन कितनी मिलती है यह भी हमें पता है । किसी तरह से घुटने मोड़ कर रजाई के छोटे दिखने के अहसास को भुलाए हुए हैं । २००९ में अगस्त के महिने में एक समाचार पढ़ा था कि जिनके अभिभावकों की वार्षिक आय अढ़ाई लाख रु. सालाना से कम है उनके बच्चों को उच्च अध्ययन के लिए बिना ब्याज ऋण मिलेगा । सो तोताराम के पोते को भी कालेज में भर्ती करवा दिया गया और तोताराम रोज उस योजना के आदेश आने के बारे में बैंक के चक्कर लगाने लगे ।

कुछ दिनों बाद तो हालत यह हो गई कि बैंक में घुसते ही चपरासी ही कह देता- मास्टर जी, आदेश नहीं आए । कुछ और दिन बीते तो तोताराम को पहली तारीख़ को पेंशन लेने जाने के अलावा यदि बैंक के आसपास के लोग तोताराम को देखते तो कह देते- मास्टर जी, आदेश नहीं आए । और अब मामला यहाँ तक पहुँच गया है कि यदि उसे बैंक के पास से गुजरना हो तो वह लोगों के मज़ाक से बचने के लिए पहले ही कह देता है कि बैंक नहीं, कहीं और जा रहा हूँ ।

अब तोताराम को विश्वास हो गया है कि या तो वह खबर झूठी थी या उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है जैसे कि किसी सत्ताधारी दल के नेता का भ्रष्टाचार का केस । इसके बाद जब से रेडियों और अखबारों में प्रधान मंत्री के अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए पन्द्रह सूत्री कार्यक्रम का प्रचार शुरु हुआ है तब से तोताराम को पक्का विश्वास हो गया है कि वह घोषणा वास्तव में धर्म निरपेक्ष सरकार का कोई गुप्त एजेंडा था । अब वह संतोष कर चुका है और उसने बैंक जाकर उस योजना के बारे में पूछना बंद कर दिया है ।



हमने कल रात को इंटरनेट पर जब अमरीका के एक खोजी पत्रकार हेलन रेडके द्वारा किए गए उद्घाटन के हवाले से पढ़ा कि अमरीका के साल्ट लेक सिटी के सबसे तेज़ी से बढ़ते 'जीसस क्राइस्ट ऑफ लेटर डे सेंट्स चर्च' वालों ने २७ मार्च १९९६ को महात्मा गाँधी का बपतिस्मा या दीक्षा समारोह करवा दिया है ।
और इसकी पुष्टि या कन्फर्मेशन १७ नवंबर २००७ को साओ पाउलो ब्राजील टेम्पल में हुई । दीक्षा और कंफर्मेशन के बीच कुछ समय का अंतर रखा जा सकता है क्योंकि क्या पता नहीं, जिसे संत का दर्ज़ा दिया जाए वह कहीं शैतान न निकल आए । 



चर्चों में ऐसे लम्पटों की बहुत संभावना रहती है । क्योंकि चर्च में उच्च पद पर तैनात होने वालों को विवाह करने की इजाज़त नहीं होती । वे आजीविका के लिए ब्रह्मचर्य की घोषणा तो कर देते हैं मगर बिना अधिक मेहनत के बढ़िया खाना और उनके जैसी ही पेट के लिए ब्रह्मचारिणी बनी भक्तिनियों का साथ । ऐसे में कुछ भी संभव है । चर्चों के पादरियों की लम्पटता की लाखों शिकायतें वेटिकन में विचाराधीन हैं । कुछ को दण्डित भी किया गया है । पोप भी कई बार इस बारे में माफ़ी माँग चुके हैं । उन्होंने तो पादरियों द्वारा शोषित बच्चों की पीड़ा की तुलना ईसा की क्रूसिफिकेशन की पीड़ा तक से की है । खैर, यह उन धर्माधिकारियों की निजता का मामला है । वे जाने या फिर ऊपर वाला । जो करेगा सो भरेगा । यहाँ नहीं तो वहाँ । वैसे अगर ऐसा नहीं सोचें तो कर भी क्या सकते हैं ।

आज जैसे ही तोताराम आया हमने कहा- तोताराम, आज तेरे बहुत पुराने मामले का निबटारा हो गया । तोताराम ने आश्चर्य से पूछा- क्या मामला और क्या निबटारा ?
हमने कहा- अब तू, तेरे बच्चे, पोते-पोती सभी क्या, भारत के सारे सवर्ण ईसाई हो गए हैं । अब मनमोहन जी को उन्हें भी अपने १५ सूत्री अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रम में शामिल कर लेना चाहिए ।


तोताराम ने कहा- ऐसा कैसे हो सकता है ? गाँधी जी को तो मरे हुए ६४ वर्ष हो चुके हैं और जब अमरीका में यह धर्म परिवर्तन का षडयंत्र रचा गया था तब भी उनको ऊपर पहुँचे हुए ४८ वर्ष हो चुके थे ।

हमने कहा- यह तो कानून की व्याख्या करने वालों के ऊपर निर्भर है । वे चाहें तो बैक डेट से भी कुछ भी कर सकते हैं । अपने को भी तो डी.ए. की किस्त बैक डेट से मिलती है कि नहीं ?

तोताराम ने फिर शंका उठाई- ठीक है मगर गाँधी को सभी भारतीय तो बापू नहीं मानते । वे कैसे ईसाई हो जाएँगे ? और फिर बाप के हिंदू होने पर जब खुद गाँधी जी का बेटा मुसलमान हो सकता है तो 'बापू' के ईसाई बनने पर क्या ज़रूरी है हमें ओटोमेटीकली ईसाई मान ही लिया जाए । वैसे मास्टर, गाँधी जी का नाम बदल कर क्या रखा गया होगा ? एम.के. गाँधी की जगह माइकल गिंडी कर दिया गया होगा । अपने देश की तरह तो है नहीं कि ईसाई बन कर अल्पसंख्यक होने का का लाभ भी ले लो और दिखाने के लिए हिंदू भी बने रहो जैसे कि अजित जोगी, अम्बिका सोनी, महेश भूपति, ओमन चांडी, जगन रेड्डी, माला सिन्हा, कल्पना कार्तिक, सिस्टर निर्मला, आचार्य के.के. चांडी, साधु सुन्दर सिंह, आदि ।

वैसे जहाँ तक हमने गाँधी जी के धर्म संबंधी विचार पढ़े हैं तो वे तो धर्म परिवर्तन के सख्त खिलाफ थे । वे कहते हैं कि संसार में जितने जीव हैं उतने ही धर्म हैं । इस प्रकार धर्म का अर्थ 'कर्त्तव्य' हो जाता है । अपना-अपना कर्तव्य ईमानदारी से करो और मस्त रहो, भगवान सब देखता है । फिर सब को एक धर्म में शामिल करने की सनक का क्या औचित्य है ?

हमने कहा- भैया, आज कल धर्म से बड़ा कोई धंधा नहीं है । आज भी दुनिया में विभिन्न देशों की सरकारों और धनवानों की सहायता से धर्म का प्रचार और धर्म परिवर्तन करवाने का धंधा बड़े ज़ोरों से चल रहा है अन्यथा सोचो कौन किस लिए अपने देश से हजारों मील दूर, विषम परिस्थितियों में जाकर; शिक्षा, चिकित्सा आदि के नाम पर लालच देकर लोगों का धर्म परिवर्तन करवाने के लिए भटकता फिरेगा ? धार्मिक स्थानों के पास करोड़ों अरबों के खजाने हैं । कई चर्चों ने तो कई करोड़ों के शेयर खरीद रखे हैं, ब्याज पर पैसे देने का धंधा करते हैं । भले ही ये श्रद्धालुओं को स्वर्ग नरक के चक्कर में डालते हों मगर ये अपने मन में जानते हैं कि स्वर्ग और नरक यही हैं । गरीबी नरक और अमीरी स्वर्ग है । और ये किसी न किसी तरह पैसे जुटा कर यहीं स्वर्ग भोग रहे हैं और भक्तों को मरने के बाद वाले स्वर्ग की आशा बँधा कर कमाई करते रहते हैं ।

तोताराम ने कहा- हिंदू धर्म तो धर्म परिवर्तन में विश्वास करता नहीं । उसके अलावा जो धर्म परिवर्तन करवाते हैं उन्हें अपने काम के अनुरूप ग्रांट मिलती होगी । इसलिए अपने ग्रांट बढ़वाने के लिए हो सकता है ये धार्मिक संस्थान झूठी लिस्टें बनाकर भी ऊपर भेज देते होंगे जैसे कि ‘मनरेगा’ में जिस-तिस का नाम लिखकर सरपंच, परवरि, ग्रामसेवक और बी.डी.ओ. पैसा उठा लेते हैं । तुझे याद नहीं, एक बार अपने एक साथी ने जनगणना में काम चोरी करते हुए स्कूल के विभिन्न क्लासों के रजिस्टर लेकर नाम उतार दिए थे और किसी को कुछ पता नहीं चला था । दुनिया के जाने किस-किस देश में यह धर्म परिवर्तन का धंधा चल रहा है और जाने कैसे-कैसे झूठे कागज बनाकर पैसा उठाया जा रहा है । हो सकता है किसी ने गाँधी का नाम भी ऐसे ही लिख दिया हो ।

हमने कहा- खैर अब तो सुनते हैं कि वे सारे कागज जल गए है या जला दिए गए हैं । चलो झंझट खत्म ।

तोताराम ने कहा- जाली काम के बाद अक्सर ऐसा ही होता है जैसे कि 'आदर्श हाउसिंग सोसाइटी' की फाइलों वाले कमरे में आग लग गई और सारी फाइलें जल गईं । और फिर इस खबर से कोई अधिक उत्साहित होने की ज़रूरत नहीं है । अनूसूचित जाति, जन जाति तो पहले से ही विशिष्ट श्रेणी में हैं । फिर अन्य पिछड़ा वर्ग का नंबर आया । अब सिक्ख, बौद्ध, ईसाई, मुसलमान, जैन, पारसी आदि शामिल हो गए । इन सब को ईसाई बने बिना ही फायदा मिलने लग गया है तो फिर तेरे यह ‘सारे भारत के ईसाई हो जाने’ की बात कुछ चलेगी नहीं ।

जो नाटक हो रहा है उसे एक सभ्य नागरिक की तरह सहन कर । अगर अधिक ही उचंग उठ रही है तो संविधान की एक प्रति खरीद कर ले आ, उसे कपड़े में लपेट कर एक पतरे पर रख ले और सुबह शाम उसकी मक्खियाँ उड़ाता रह । इसी में जो थोड़ी बहुत बची है वह कट जाएगी ।

१ मार्च २०१२

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 24, 2012

तोताराम का सूर्य नमस्कार

आज ठंड कुछ कम थी सो तोताराम जल्दी आ गया और कहने लगा- आज चाय बाद में पियेंगे । पहले छत पर चल कर सूर्य नमस्कार करेंगे । सूर्य नमस्कार करने से कमर नहीं झुकती ।

हमने कहा- बुढ़ापे में कमर झुकना स्वाभाविक है और फिर इस दुनिया में जीने के लिए कमर का थोड़ा झुका रहना ज़रूरी भी है । जो लोकतंत्र में कमर सीधी रखना चाहता है उसे बेकार में ही बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । कमर सीधी रखने के चक्कर में ही हमें धक्के खाने पड़े । यदि कमर झुका कर चलते तो अपने शहर में ही सारी सरकारी नौकरी पूरी कर लेते ।

तोताराम बोला- तू कभी भी अभिधा में बातें नहीं करेगा । जब देखो किसी भी बात में व्यंजना झाड़ने लगता है । अरे, मैं सीधी सी बात कह रहा हूँ- सूर्य नमस्कार करने चलें । इससे स्वास्थ्य ठीक रहता है , बस ।

तोताराम का कहना मान कर छत पर चले गए और जैसे ही दोनों हाथ जोड़ कर सूर्य नमस्कार करना शुरु किया तो एक जोर की आवाज़ आई- तुम कौन हो ?

हमने कहा- तोताराम, यह तो कमाल हो गया । स्वास्थ्य-वास्थ्य की तो बाद में देखी जाएगी मगर यहाँ तो हाथ जोड़ते ही भगवान से कनेक्शन जुड़ गया । हम दोनों ने गद्गद् होकर कहा- प्रभु, हम आपके भक्त हैं ।

उधर से आवाज़ आई- भक्त-वक्त कुछ नहीं, तुम दोनों का धर्म और जात क्या है ?

हमने कहा- भगवन, अमरीका से लेकर भारत तक सभी देश धर्म निरपेक्ष हैं इसलिए आप धर्म और जात की बातें करके संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन न करें । बिना बात कोई कार्यकर्त्ता आप पर जनहित याचिका डाल देगा और आप बिना बात तारीखें भरते फिरोगे । कोई वरदान-शरदान देना हो तो हम अपनी लिस्ट निकालें ।

सूर्य भगवान भी जिद पर आ गए, कहने लगे- यदि ब्राह्मण हो तो ठीक है, नहीं तो कोई न कोई फतवा या धर्माज्ञा ज़ारी हो जाएगी और तुम दोनों भागते फिरोगे ।

हमने कहा- प्रभु, आप तो सारी दुनिया के हो । आपको नमस्कार करके तो मनुष्य आप के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करता है और मान लीजिए यदि कोई इतना ही कृतघ्न हो कि आपको प्रणाम भी न करे तो भी इस ऊपर-नीचे होने से व्यायाम तो हो ही जाएगा । और ईश्वर तो सब को दिखाई नहीं देता और उसे अनुभव करना कृतज्ञता और ज्ञान के बिना संभव नहीं है मगर आप तो साक्षात् देवता हो । रोज सुबह शाम दिखाई देते हो । यदि रात को यहाँ दिखाई नहीं देते तो दुनिया के दूसरे भाग में चमकते हो । आप न हों तो यह दुनिया ठंड में जम कर खत्म हो जाएगी । यदि आप नहीं हों तो पृथ्वी पर जीवन ही नहीं होगा । आप तो सब के हो । किसी एक धर्म या जाति के थोड़े ही हो ।

सूर्य भगवान कहने लगे- यह मुझसे क्या पूछते हो ? जिन्हें सूर्य नमस्कार से ऐतराज़ है उनसे पूछो ।

हमने कहा- प्रभु, सारे धर्म मानते हैं कि ईश्वर एक है । और आप तो एक हो यह सब को दिखाई देता ही है । आपके बारे में तो शंका का प्रश्न ही नहीं है । यदि पानी हिंदू है, आब मुसलमान है और वाटर क्रिश्चियन है तो बात और है । वैसे इसका भी रास्ता निकला जा सकता है । हिंदू सूर्य नमस्कार कर लें, मुसलमान 'अफताब-आदाब' कर लें और क्रिश्चियन 'सन-सेल्यूटेशन' कर लें । फिर तो हमारे खयाल से कोई झगड़ा नहीं रहेगा ।

अब तो सूर्य भगवन को थोड़ा स गुस्सा आ गया और थोड़ी तेज आवाज़ में बोले- यह अपनी मास्टरी वाले नाटक छोड़ो और राजनीति को समझो । यदि लोग इसी तरह से अपने विवेक से निर्णय लेने लगे तो धर्म का धंधा करने वाले क्या खाएँगे और नेताओं का वोट बैंक कैसे बनेगा ? फिर तो देश-दुनिया के सारे काम ही उचित-अनुचित के आधार पर होने लगेंगे । लोग ऐसे ही सोच समझकर निर्णय करने लगे तो हथियारों के तो कारखाने ही बंद हो जाएँगे । दुनिया का सारा बना-बनाया सिस्टम ही होच-पोच हो जाएगा ।

बस, यदि हिंदू और ब्राह्मण हो तो नमस्कार करो वरना अपनी चटाई समेटो और नीचे जाकर चाय पिओ और फालतू की चर्चा करो ।

हम दोनों ने तत्काल नीचे चले जाने में ही भलाई समझी । आस्तिक होने के कारण हमें डर भी लग रहा था और टाँगें भी काँप रही थीं ।

२३-२-२०१२
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 22, 2012

तोताराम की टी.डी.पी.


आज तोताराम कागजों का एक बण्डल लेकर हाज़िर हुआ और हमसे पढ़ने का आग्रह करने लगा मगर दूसरों का लिखा पढ़े वह भी लेखक होता है ? और आजकल चूँकि हम अपने को लेखक मानने लगे हैं सो उसका आग्रह अनसुना कर दिया और बड़े बेमन से कहा- तू ही सुना दे क्या लिखा है ?

तोताराम ने भी अधिक कष्ट नहीं किया और कहा- बात यह है कि मैनें एक पार्टी बनाई है ।
हमने कहा-पार्टियों की क्या कमी है पहले से ही ए. से जेड. तक सैंकडों जनता, समाज, लोक, शक्ति और कांग्रेस आदि पार्टियाँ हैं । तेरे एक और पार्टी बनाने से क्या फर्क पड़ जाएगा ? फिर भी बता दे क्योंकि तू बताए बिना तो मानेगा नहीं ।

उसने कहा- मेरी पार्टी का नाम होगा टी.डी.पी. ।

हमने कहा- इस नाम की पार्टी तो पहले से मौजूद है- तेलगू देशम पार्टी ।

बोला- है मगर यह तो शोर्ट फॉर्म है मेरी पार्टी का पूरा नाम है 'तोताराम दारू पार्टी' और उसका चुनाव चिह्न होगा 'बोतल' ।

हमने कहा- यह तो समाज विरोधी और अनैतिक है । शराब तो आत्मा और शरीर दोनों का नाश करती है । गाँधी जी ने भी कहा था कि यदि मैं एक दिन के लिए भी देश का डिक्टेटर बन जाऊँ तो शराब बंद करवा दूँगा ।

तोताराम कहने लगा- तभी तो नहीं मिला कोई भी पद । बस, राष्ट्रपिता बना कर खुश कर दिया और आजकल घर में पिता की कितनी चलती है, सब जानते हैं । राहुल गाँधी ने भी कुछ वर्षों पहले कहा था कि युवा कांग्रेस में शराब पर प्रतिबन्ध और खादी की अनिवार्यता रहेगी मगर क्या किसी ने मानी ? और अब तो २२ जनवरी २०१२ को खबर आई है कि कांग्रेस की चुनाव सामग्री भी दारू के कार्टनों में बंद होकर लखनऊ जा रही थी सो पुलिस और दारू समर्थक पीछे लग लिए ।

हमने कहा- मगर उनमें दारू थी तो नहीं ना ? लोग काला धन पूजा घर में भगवान की मूर्ति के नीचे रखते है । अवैध वस्तु सब्जी और फलों के बीच दबाकर ले जाई जाती है । अरे, दारू के खाली डिब्बे सस्ते में मिल गए होंगे सो उनमें रखकर ले गए । उनके मन में चोर होता तो ऐसा क्यों करते ?

बोला- यह एक तकनीक भी तो हो सकती है कि अगली बार जब वास्तव में ही दारू के कार्टनों में दारू ही ले जाई जाएगी तो लोग समझेंगे कि चुनाव सामग्री होगी और कोई कुछ शक नहीं करेगा । और पुलिस तो हर सत्ताधारी की सेवा करती है वरना और सब सूफी हैं क्या ? भैया, भले ही फिर चाहे पाँच साल हराम की खाएँ मगर चुनाव के दिनों में सभी पार्टियों के कार्यकर्ता हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं । यदि दो घूँट न लें तो अगले दिन उठना भी मुश्किल हो जाए । हाथी से भी दिन भर काम लेने के बाद शाम को एक बोतल रम की दी जाती है । और फिर दारू इतनी ही बुरी है तो कौन मना करता है सभी पार्टियाँ अपने-अपने राज्यों में कर दें बंद । और बंद करने से ही कौन सा फर्क पड़ जाएगा । गुजरात में दारू बंदी है मगर जब, जहाँ जिस ब्रांड की चाहो ले लो । बस, दो पैसे ज्यादा लगेंगे । वैसे दारू से ही तो एक्साइज़ आता है जिससे जन-कल्याण के कार्य किए जाते हैं ।

हमने कहा- क्या ख़ाक जनकल्याण होता है ? अरे, दारू पीने से जितने अपराध और बीमारियाँ होती उनके इलाज में ही आमदनी से ज्यादा खर्च हो जाता है । और फिर जब हमेशा दारू बुरी नहीं है तो फिर चुनाव के समय में ही क्या खास बुराई आ गई ? बिना दारू के ही जनता कौन सी बढ़िया सरकारें चुन लेगी ? चाहे दारू पीकर चुनो, चाहे बिना पिए; आने तो वही नागनाथ के भाई साँपनाथ । फिर जनता को दो-चार दिन के लिए ही सही अच्छी दारू तो मिलेगी ।

अब तो तोताराम उछल पड़ा, बोला- देख ले, आ गया ना मेरी ही राह पर । क्यों चिंता करता है, चाहे जितने प्रबंध करने का दिखावा कर लें मगर दारू-बल, धन-बल, परिवार-बल और बाहु-बल के प्रभाव में कोई अंतर नहीं आने वाला है ।

हमने कहा- मगर चुनाव आयोग तेरी ऐसी पार्टी को मान्यता नहीं देगा जो सीधे-सीधे दारू की बात करती है ।

बोला- क्यों नहीं देगा ? जब अल्प संख्यकों को आरक्षण की घूस दी जा रही है, लेपटोप का लालच दिया जा रहा है, टी.वी., मुफ्त बिजली और पानी की बात की जा रही है तो दारू में ही क्या खराबी है ? यह तो इस देश में सच्ची शांति, सम-भाव और तनाव मुक्तता लाएगी । दारू पीने वाले कभी भी महँगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन नहीं करते, एक ही प्याले में हिंदू और मुसलमान पी लेते हैं और सारी समस्याओं को दो पेग लगाते ही भूल जाते हैं । तभी इसे मधु कहा है । मधु से ही जीवन में मधुरता आएगी ।

हमने कहा- एक तो वैसे ही अब चुनाव होने वाले हैं तो पार्टी बनाने का क्या फायदा, दूसरे यदि तेरी इस पार्टी को मान्यता मिल भी गई तो एक भी सीट तुझे नहीं मिलने वाली क्योंकि नाम से ही क्या होता है वास्तव में तेरे पास मतदाताओं को दारू पिलाने के लिए पैसे हैं क्या ?

फिर भी तोताराम ने हिम्मत नहीं हारी,बोला- रामविलास के पास कौन से बीस एम.पी. हैं मगर दिल्ली में कार्यालय तो मिला हुआ है । क्या पता, मेरी पार्टी को भी दिल्ली में कार्यालय ही मिल जाए ?

हमने अब कुछ न कहना ही उचित समझा क्योंकि ऐसे आशावादी का कोई कुछ नहीं कर सकता ।

२४-१-२०१२
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 21, 2012

तोताराम - कंडीशंस अप्लाई


कंडीशंस अप्लाई

सोच रहे थे कि बैंक में जाकर पासबुक पूरी करवा लें और यह भी पता कर आएँ कि नया डी.ए. इस महिने लग रहा है या नहीं मगर क्या करें,आज तोताराम नहीं आया । और अकेले जाने का मन नहीं किया सो तोताराम को साथ लेने उसके घर पहुँचे गए । पता चला कि आज तोताराम अपने कमरे में ही बंद है । न नहाया और न नाश्ता ही किया है । अजीब सा लगा ।

दरवाजा खुलवाया तो देखा तोताराम कुछ लिखने में व्यस्त है । पास में ही कैलक्यूलेटर पड़ा है और बीसियों कागज इधर-उधर बिखरे पड़े हैं । पूछा- क्या चक्कर है ? किसी को वेलेंटाइन डे का सन्देश लिख रहा है क्या ? इतना कन्फ्यूजन तो किसी पहले प्रेमपत्र के लेखन में भी नहीं होता है ।

तोताराम ने कोई उत्तर नहीं दिया मगर हमने अपने अनुमान जारी रखे,पूछा- क्या यू.पी. के चुनावों का हिसाब लगा रहा है कि राहुल बाबा कितने सफल होंगे या नए डी. ए. का कैलक्यूलेशन कर रहा है या कहीं अपने जन्म तिथि बदलने की कोई योजना बना रहा है कि अपने को सत्तर से अस्सी का सिद्ध करके एक ही झटके में अपनी पेंशन एक चौथाई बढ़वा लेगा ?

तोताराम ने कागज फेंक दिए और हमारी तरफ हिकारत की दृष्टि से देखते हुए बोला- बस,वही मास्टर वाली सोच । डी.ए. और पेंशन से आगे जाता ही नहीं । अरे,आज का अखबार देखा कि नहीं ? सी.बी.आई. के डाइरेक्टर ने बताया है कि भारत का २४ लाख करोड़ से भी ज्यादा रुपया स्विस बैंक में है । अन्य विदेशी बैंकों और घरेलू तहखानों में पड़े धन का हिसाब तो उन्होंने लगाया ही नहीं है । खैर,उसका हिसाब तो बाद में देखा जाएगा । अभी तो मैं इस २४ लाख करोड़ वाले का हिसाब लगा रहा हूँ कि अपने हिस्से में कितना आएगा ?

कभी इतना बड़ा हिसाब लगाया नहीं ना सो बार-बार शून्य लगाते,गिनते सिर में चक्कर सा आने लगता है । लगता है धरती घूम रही है । करोड़-अरब और खरब के बाद शंख तक आते-आते दिमाग में ढपोर शंख सा बजने लगता है । रामदेव तो खैर किसी खास योगासन के बल पर इससे भी बड़ा हिसाब लगाकर भी नोर्मल है । ये अधिकारी लोग भी विदेशी तरीके से गिनती करने लगते हैं । सीधे -सीधे तुलसीदास जी की तरह नहीं कह देते कि 'पदम अठारह जूथप बंदर' । पहले जब अडवाणी जी ने हिसाब लगाया था तो साफ बता दिया था कि काला धन आ जाने के बाद किसी को ३० वर्ष तक टेक्स नहीं लगाना पड़ेगा । अब भी सी.बी.आई. के डाइरेक्टर बता देते कि एक भारतीय के हिस्से में इतना रुपया आएगा तो कम से कम मेरा आधा दिन तो खराब नहीं होता ।

तभी तोताराम की पत्नी चाय ले आई । चाय की चुस्की लेकर हमने कहा- तोताराम,मान ले यदि यह असंभव संभव हो भी गया तो तू क्या समझता है कि तुझे तेरा हिस्सा मिल जाएगा ? फिर इस धन से कल्याणकारी योजनाएँ बनेगीं और फिर आधे से ज्यादा धन काला होकर फिर स्विस बैंक में जाएगा । जब इसे वहीं रहना है तो क्यों लाने,जमा करवाने के चक्कर में पड़ा जाए । बार-बार रुपए को डालर में बदलने में भी तो कम से कम दस प्रतिशत का फर्क पड़ जाता है ।

तोताराम ने कहा- भले ही मुझे अपना हिस्सा न मिले पर धन तो आना ही चाहिए क्योंकि इन देशों का कोई भरोसा नहीं ।

हमने कहा- तोताराम ऐसा नहीं सोचना चाहिए । जिन देशों का पैसा वहाँ रखा है वे अविकसित या विकासशील देश हैं और जहाँ रखा है वे सब विकसित देश हैं । उन्हें क्या कमी है जो बेईमानी करेंगे ?

तोताराम ने पलटी मारी- इन विकसित देशों की भी हालत बहुत खराब है । तभी न पहले हवाई जहाज देने में नाटक करने वाले इंग्लैड,अमरीका,फ़्रांस सब रेहड़ी पर हवाई जहाज रखे दिल्ली के चक्कर लगा रहे हैं । पैसा देखकर जब अमीरी में ही दिमाग ठिकाने नहीं रहता तो आज कल तो इन देशों में मंदी चल रही है । कहीं यह न कह दें हमारे यहाँ कोई कुछ नहीं रखकर गया । काले धन वाले भी फिर छाती ठोककर कुछ नहीं कह सकेंगे । और अब तो जर्मनी ने भी चीन से यूरोप की सहायता करने के लिए साफ़ साफ़ गुहार कर दी है । कहीं उनकी नज़र हमारे पैसे पर ना पड़ जाये ।

हमने कहा- तोताराम,फिर भी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर इतना विश्वास तो करना ही पड़ता है ।

तोताराम बोला- बहुत देखा है इन विश्वसनीयों को । प्लासी के युद्ध से पहले सेठ अमीचंद से समझौता किया था मगर युद्ध जीतते ही फिर गए अपनी जुबान से । और अमीचंद को आत्महत्या करनी पड़ी । ठीक है,अमीचंद ने गद्दारी की थी भारत से मगर समझौता तो समझौता ही होता हैं ना । और फिर ये सब काम अंग्रेजी में करते हैं । ऐसी अंग्रेजी लिखी होगी कि हमारे रामदेवों,लालुओं,मुलायमों और मायावतियों को कुछ समझ में नहीं आना । और यदि चिदंबरम और मनमोहन जी की मदद से कुछ समझ में आ भी गया तो कहीं,किसी कोने में,सूक्ष्मदर्शी यंत्र से भी न पढ़ी जा सकने वाली छपाई में,छपा हुआ दिखा देंगे- 'कंडीशंस अप्लाई' । और फिर उन कंडीशंस में देश की कंडीशन खराब हो जाएगी ।

बात तो तोताराम की ठीक ही है मगर जन-धन सेवकों को समझ में आए तब ना ।

१४-२-२०१२

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 13, 2012

तोताराम के तर्क - गुनाह बेलज्ज़त

तोताराम के आते ही हमने उसके सामने चाय के साथ लड्डू का एक टुकड़ा रखते हुए कहा- ले, सेलिब्रेट कर ।

खुश होने की बजाय तोताराम उफन पड़ा- क्या सेलिब्रेट करूँ? क्रिकेट में भारत का इंग्लैण्ड के बाद अब आस्ट्रेलिया में सूपड़ा साफ़ या भारत का फ़्रांस के साथ ५०४ अरब रुपए का विमान समझौता?

हमने कहा- ये सब अपने मतलब की बातें नहीं हैं । तू तो डी.ए. की सात परसेंट की एक नई किस्त सेलिब्रेट कर । रात को ही न्यूज थी । अभी अखबार आया जाता है, विश्वास नहीं हो तो पढ़कर कन्फर्म कर लेना ।

'अच्छा'- कहते हुए तोताराम झूमने सा लगा और फिर एक तरफ झुकता हुआ गिरने को हुआ । हमने उसे थामकर वहीं चबूतरे पर लिटाया और पोती को जल्दी से ब्लड प्रेशर नापने वाला यंत्र लाने को कहा तो तोताराम ने इशारे से मनाकर दिया । हमें लगा कोई बड़े खतरे की बात नहीं है । फिर भी कहा- कुछ बोल भी तो सही जिससे कुछ तसल्ली हो ।


तो बोला- एम.एम. का पाठ.... एम.एम.
हमनें सोचा- यह महामृत्युंजय का शोर्ट फॉर्म होगा, सो कहा-ठीक है, अभी शुरु करते हैं महामृत्युंजय का पाठ । 



तोताराम ने गर्दन हिला दी और चुप हो गया । तब तक पत्नी चाय ले आई । तोताराम ने चाय पी और खखार कर उठ बैठा ।

हमने सहानुभूति दिखाते हुए कहा- क्या पहले भी कभी ऐसा हुआ है? आज ही किसी अच्छे से डाक्टर के पास चलते हैं और पूरा चेकप कराते हैं । लापरवाही ठीक नहीं ।

तोताराम ने धीरे-धीरे बोलते हुए कहा- वैसे तो सब कुछ ठीक है । पर अचानक डी.ए. की किस्त की सुनकर आँखों के आगे अँधेरा छा गया और चक्कर आ गया ।
हमने कहा- खुश होने की बात पर चक्कर? तू भी अजीब है ।

बोला- अजीब का पता तो जब थोड़ी देर में लाला की दुकान पर जाएगा तब पता चलेगा । उसने पहले से ही पन्द्रह प्रतिशत भाव बढ़ाकर तैयार कर लिए होंगे । मीडिया को देने से पहले सरकार लाला को खबर देती है । सात प्रतिशत महँगाई बढ़ने का मतलब है हमारी ताकत पन्द्रह प्रतिशत कम होना । अब सोच ऐसे ही बैठे बिठाए साल में दो बार महँगाई भत्ता बढ़ता है और अपनी रिटायरमेंट की पोस्ट ऑफिस में जमा राशि की ताकत तीस प्रतिशत कम हो जाती है ।

हमने कहा- लेकिन महँगाई बढ़ने पर भत्ता भी तो बढ़ता है । क्या फर्क पड़ता है?
तोताराम ने ऐतराज़ किया- पड़ता है, बहुत फर्क पड़ता है । यह ठीक है कि कुछ नेताओं के चहेते, कुछ दादा टाइप, कुछ वोट बैंक के अम्मर बकरे सरकारी नौकरी में मौज कर रहे हैं, कुछ साहसी और नेताओं और अफसरों के चमचे घूस भी खाते हैं मगर अधिकतर ईमानदार कर्मचारी काम भी करते हैं, घर से दूर कठिन स्थानों में रहकर सेवा अंजाम दे रहे हैं । उनके लिए तो यह महँगाई भत्ते और वेतन आयोग का चक्कर ऐसी हड्डी है जिसे चबाते रहो और अपना ही खून चाटते रहो । यह बड़ा दुष्चक्र है । इसका कहीं अंत नहीं है । बस, समझो कि न तो मरीज़ ठीक होता है और न मरता है । डाक्टर और दवा वालों का धंधा चलता रहता है । जब नौकरी शुरु की थी तब जितना दूध लाते थे आज भी उतना ही दूध आता है । बस, फर्क इतना है कि अब पानी अधिक होता है । पानी तक भी ठीक है मगर अब तो उसके सिंथेटिक होने का भी खतरा रहता है यह एक प्रकार से नशीली चाय पिलाकर माल उड़ा ले जाने वाली हरकत है ।

और फिर तुमने कभी यह भी सोचा है कि जिन को इस वैश्वीकरण के समय में नौकरी या मज़दूरी नहीं मिलती, वे कहाँ जाएँ? । कौन सी सरकारी नौकरी है जो भत्ता बढ़ जाएगा । ऐसे लोगों के नाम पर जो अरबों-खरबों का दान-पुण्य करने वाली योजनाएँ बनती हैं उनका पैसा भी अधिकतर नेता लोग ही खा जाते हैं । ऐसे गरीब लोग कहाँ जाएँ? जब यह देश आज की तरह तथाकथित रूप से विकसित नहीं था तब कोई गरीब को दो मुट्ठी आटे से या और भी इसी तरह से कुछ मदद कर दिया करता था मगर अब तो हाल यह है कि बीस-तीस हज़ार रुपए महिने के कमाने वाले भी गिनकर रोटियाँ बनाते हैं । किसी की क्या मदद करेंगे । मेरे ख्याल से अपनी वह एक सौ रुपए महिने की नौकरी वाला समय ही अच्छा था । आज जब सरकार के आँकडे बताते हैं कि भारत में प्रतिव्यक्ति आय पचास हजार सालाना हो गई तो उसके साथ-साथ किसानों की आत्महत्या और भूख और कुपोषण से मरने के भी समाचार कम नहीं होते ।

यदि यह मुक्त अर्थव्यवस्था इसी गति से बढती चली गई तो वह दिन दूर नहीं जब हम बाज़ार से पाँच किलो आटा और पाँव भर सब्जी लेकर आएँगे और कोई उसे रस्ते में ही लूट लेगा । जहाँ तक कानून व्यवस्था की बात है तो वह हमेशा एक जैसी ही रहती है जैसी आज वैसी ही कल । बड़े लोगों को तो खैर, तब भी सुरक्षा मिल जाएगी पर अपना क्या होगा? हम तो कहते हैं भैय्या, छोड़ो यह महँगाई भत्ता और पे-कमीशन, क्रिकेट, कोकाकोला, मोबाइल, ट्विटर और छम्मक-छल्लो । बस, आप तो यह कर दो कि हर पेट को रोटी, पढ़ने वाले को स्कूल और मरीज को इलाज मिल जाए ।

हमारे पास तोताराम के प्रश्नों और शिकायतों का तो कोई हल नहीं था मगर फिर भी बात बदलकर माहौल ठीक करने के लिए कहा- तू वह महामृत्युंजय के जाप वाली क्या बात कर रहा था?

बोला- एम.एम. से मेरा मतलब मनमोहन का जाप करने से था क्योंकि देश में इस संवेदनहीन मुक्त बाजार की गंगा को लाने वाले भागीरथ वे ही हैं । क्या पता, जाप से प्रसन्न होकर केवल 'मन-मोहन' ही नहीं, कुछ 'तन-मोहन' का भी इंतज़ाम कर दें । वैसे पता तो जब कुछ होगा तभी चलेगा क्योंकि शक्ल और शब्दों से तो पता चलता नहीं कि रो रहे हैं या हँस रहे हैं? कृपा करेंगे या क़त्ल?

खैर, एक छोटी सी क्षणिका सुन ।
हमने पूछा- किसकी है?
बोला- खाकसार की है ।


हमने तोताराम को बहुत सी कविताएँ सुनाई हैं तो फिर उसे मना कैसे कर सकते थे और फिर कुछ उत्सुकता भी थी । क्षणिका इस प्रकार है-

मनमोहन जी,
आप सात प्रतिशत महँगाई भत्ते की खबर उड़ा देते हैं
और परचून वाले लालजी पन्द्रह प्रतिशत महँगाई बढ़ा देते हैं ।
आप देने वाले और वे लेने वाले,
हमें इस लेन-देन के बीच फँसाना छोड़ दीजिए
हो सके तो
हमारे इस महँगाई भत्ते को लालाजी की दुकान से जोड़ दीजिए ।


२-२-२०१२
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Feb 12, 2012

तोताराम का ट्वीट

आज तोताराम के आने के समय तोताराम तो नहीं आया मगर उसके स्थान पर उसका पोता बंटी हमारे नाम तोताराम का एक रुक्का लेकर आया जिस पर लिखा था- 'तोताराम का ट्वीट' | अभी तक तो हमने अमिताभ बच्चन, पूनम पांडे, मंदिरा बेदी, बिपाशा बासु, कबीर बेदी, राखी सावंत, दिग्विजय सिंह और अब रुश्दी के ही ट्वीट पढ़े थे कम्प्यूटर पर, मगर कागज की चिप्पी पर ट्वीट एक नई बात थी | वैसे ट्वीट एक सस्ता और उल्लू बनाने वाला साधन निकल आया है | पढ़ने वाला यह समझता है कि ट्वीट लिखने वाली हस्ती केवल उसी से मुखातिब है और उसे अपने जीवन की छोटी-छोटी बातों में शामिल कर रही है | जब कि वह हस्ती अपने फुर्सत के समय दो लाइनें यूँ ही लिखकर डाल देती है जैसे कि 'आज दिल्ली पहुँची हूँ | यहाँ मुम्बई से अधिक ठण्ड है | आज पिताजी का जन्म दिन है | बच्ची बहुत प्यारी है | आप सब को दिवाली की बधाई | आज कुछ करने का मन नहीं है | आज देर तक सोऊँगी | मुझे खाने में केवल खिचड़ी बनानी आती है | फलाँ हीरोइन मेरे सामने कुछ नहीं है | वह मुझसे जलती है | मैं नंबर की दौड़ में नहीं हूँ | अभी शादी का कोई इरादा नहीं है' |

अब इन बातों का क्या तो महत्त्व है और क्या ही पाठकों को इनकी ज़रूरत? अरे भई, तू खिचड़ी बना या पराँठा, ट्वीट पढ़ने वाले को तो कुछ मिलना नहीं | शादी करो न करो, पाठकों का इससे क्या संबंध है और न ही पाठक तुमसे शादी करने के उम्मीदवार | और यदि कोई पाठक ऐसा मान लेता ही तो उससे बड़ा गधा और कोई नहीं | पर साहब निठल्लों की कमी नहीं है इस दुनिया में | इन हस्तियों की सूक्तियों को पढ़ने के लिए रोज़ हजारों की संख्या में चले ही आते हैं |

हमने तोताराम के पोते बंटी से कहा- बेटा, यह कोई ट्वीट नहीं है | दादाजी से कहना कि यदि ट्वीट करने का शौक है तो कम्प्यूटर ख़रीदे | इस तरह किसी व्यक्ति के हाथ भेजे गए सन्देश को आजकल कूरियर कहते हैं | यह तो लोकल और घर का है सो कोई पैसा नहीं लगा वरना बिना बात पाँच रुपए लग जाते |

हमने उस पुर्जे को पढ़ा | बिलकुल वही सब कुछ था जो रुश्दी के ट्वीट में था, बस नाम का फर्क था- रुश्दी की जगह तोताराम और राजस्थान सरकार की जगह रमेश जोशी | लिखे का सार यह था कि मैं जयपुर साहित्य उत्सव में इसलिए भाग नहीं ले सका कि मास्टर रमेश जोशी ने मुझे डरा दिया था कि यदि तू वहाँ जाएगा और रुश्दी वाले कमरे में ठहरेगा तो हो सकता है कि रुश्दी के भ्रम में कोई तेरी हत्या न कर दे |

तभी तोताराम प्रकट हुआ, बोला- मैं भी इसके साथ हूँ | भले ही मेरे पास कम्प्यूटर नहीं है और मैनें इसे लिखित रूप में किसी सन्देश वाहक के हाथ भेजा है मगर फिर भी तू इसे वैसे ही ट्वीट मान जैसे कि भारत के साहित्य प्रेमियों, राजस्थान प्रशासन के नाम रुश्दी का ट्वीट | उसे भी गुमराह किया गया और तुमने भी मुझे गुमराह किया कि जयपुर जाने पर मेरी सुरक्षा को खतरा है | यदि रुश्दी को राजस्थान प्रशासन और मुझे तू नहीं डराता तो कोई एक तो जयपुर पहुँचता | अब न तो मैं पहुँच सका और न ही रुश्दी | अब आयोजकों का कमरे का किराया बेकार ही लगा ना? और रुश्दी के लिए बनवाया गया खाना भी बेकार गया होगा | और अगर उन्हें भेंट देने के लिए रजवाड़ी दारू की बोतल खरीद ली गई होगी तो उसका भी पता नहीं क्या हुआ होगा?

और मान ले पैसा आयोजकों के घर का नहीं था, अनुदान का रहा होगा या फिर दारू के विज्ञापनों से आया होगा, खाना भी किसी ने खा ही लिया होगा मगर रुश्दी जी के न आने से, उनके मार्ग-दर्शन के अभाव में भारतीय साहित्य का जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कैसे होगी? आज तक राजस्थान के साहित्यकार या तो राजाओं की प्रशंसा, युद्धों का वर्णन लिखते रहे या फिर नीति और वीर रस के दोहे-सोरठे लिखते रहे या फिर मीराबाई 'मेरे तो गिरधर गोपाल' गाती रही | कहीं कोई 'शैतानी आयतों' जैसी रस-वर्षा नहीं | भारतीय साहित्य में भी वही आत्मा-परमात्मा, पुराण, उपनिषद, और चरवाहों के वैदिक गाने | ठीक है, कहीं कहीं वस्त्र-हरण और चीर-हरण जैसे प्रसंग हैं मगर उनको भी अध्यात्म से जोड़ कर मज़ा किरकिरा कर दिया | कहीं रुश्दी के साहित्य और जीवन जैसा बिंदासत्त्व, रस-टपकाऊ मदहोश बनाऊ लम्पटत्त्व नहीं |

अब तक हम तोताराम के एकालाप से दुखी हो चके थे सो हमने उसे रोककर अपनी बात शुरु की- देखो तोताराम, साहसी और सच्चे लोग न तो सरकारों से सुरक्षा माँगते हैं और न ही किसी धमकी से घबराते हैं | कबीर ने न तो किसी 'उत्सव' के निमंत्रण का इंतज़ार किया और न धमकियों की परवाह की | लुकाठी लेकर बाज़ार में खड़े होकर गरजते रहे, पंजाबी के कवि पाश को क्या पता नहीं था कि उसकी जान को खतरा है? इंदिरा गाँधी को भी कुछ लोगों ने सलाह दी थी कि वे अपनी सुरक्षा से सिक्ख कर्मचारियों को हटा दें मगर उन्होंने इसे एक बचकानी बात माना | गाँधी जी की सभा में बम फेंका गया फिर भी न तो उन्होंने कोई सुरक्षा प्रबंध किए और न ही अपने कार्यक्रम में कोई परिवर्तन किया | मीरा को तो राणा ने साफ़ धमकी दे ही रखी थी पर क्या मीरा ने साधु संगत छोड़ दी या गिरधर गोपाल से नाता तोड़ लिया? रुश्दी का यह नाटक चर्चा में रहने के लिए है जैसे कि राखी सावंत, विपाशा बसु, पूनम पांडे बोलें तो खबर और न बोलें तो खबर | दीपिका रणवीर के साथ घूमे तो लोगों को चैन नहीं और यदि रणवीर उसके पैर छू ले तो भी हाय-तौबा | और लोग भी कुछ तो कहेंगे ही चाहे रुश्दी आए या नहीं आए |

और भैया, यदि यहाँ के साहित्य प्रेमियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रुश्दी से मिलने वाले साहित्यिक और शालीनता के मार्ग-दर्शन के अभाव का इतना ही दुःख है और रुश्दी भारतीय साहित्य का कोई मार्ग-दर्शन करना ही चाहते हैं तो कोई गुरु-मन्त्र अब लिख कर भिजवा दें | किसने मना किया है?

तोताराम ने अपना ट्वीट-पत्र हमारे हाथ से छीन लिया और बोला- बहुत हो गई बकवास, अब चाय तो बनवा ले |

२३-१-२०१२
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach