Jun 27, 2011

श्री रमेश जोशी की दो व्यंग्य पुस्तकों का विमोचन

साहित्य समाचार 
श्री रमेश जोशी की दो व्यंग्य पुस्तकों का विमोचन



‘बेगाने मौसम’ का विमोचन - (बाएँ से ) शायर श्री शेख हबीब ; लेखक व कवि रमेश जोशी ; कवि डॉ रणजीत ; कर्नाटक के भूतपूर्व मुख्य संयुक्त सचिव और यूनेस्को में भारत के भूतपूर्व राजदूत श्री चिरंजीव सिंह ; साहित्यानुरागी श्री श्याम गोइन्का |

१९ जून २०११, बंगलुरु, कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति का सभागार, नगर के चुने हुए हिंदी प्रेमियों और साहित्यकारों की उपस्थिति; अवसर था कवि, लेखक, केंद्रीय विद्यालय के सेवानिवृत्त उपप्राचार्य एवं हिंदी के वरिष्ठ व्यंग्य साहित्यकार रमेश जोशी की दो व्यंग्य पुस्तकों का विमोचन – ‘बेगाने मौसम’(गज़लें-गीतिकाएँ) और ‘माई लेटर्स टु जार्ज बुश’ ।

‘बेगाने मौसम’ का परिचय देते हुए कवयित्री सुश्री मंजू वेंकट ने बताया कि इस में वर्तमान की संवेदनहीनता, कुंठाओं व मुख्य सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक विडंबनाओं का छोटी बहर में मार्मिक चित्रण किया है । जैसे -

उनका साया जहाँ-जहाँ पर ।
तिनका तक ना उगा वहाँ पर ।


गर्दन, आँखें, कमर झुक गईं
जो भी हो आया दरबार ।


छुप कर लोग मचानों में ।
छोड़ें तीर ढलानों में ।


एक गज़ल – “परिंदा डर रहा है आसमाँ से । चमन सहमा हुआ है बागबाँ से ।” को प्रसिद्ध शायर शेख हबीब ने अपने मधुर स्वर से श्रोताओं के दिल में उतार कर महफ़िल का सा माहौल बना दिया । ‘बेगाने मौसम’ का विमोचन साहित्यानुरागी श्री श्याम गोइन्का ने किया ।

‘माई लेटर्स टु जार्ज बुश’ का विमोचन - (बाएँ से ) लेखक व कवि रमेश जोशी ; कवि डॉ रणजीत ; कर्नाटक के भूतपूर्व मुख्य संयुक्त सचिव और यूनेस्को में भारत के भूतपूर्व राजदूत श्री चिरंजीव सिंह ; साहित्यानुरागी श्री श्याम गोइन्का |

‘माई लेटर्स टु जार्ज बुश’ का परिचय देते हुए प्रसिद्ध मानवतावादी, सोवियत भूमि नेहरू अवार्ड से सम्मानित कवि डा. रणजीत ने कहा- “जोशी का व्यंग्य कहीं भी कटु नहीं है मगर उसने न तो अमरीकी ‘उदारीकरण’ को ही बख्शा है और न ही भारतीय विडंबनाओं को । आज के विश्व की सोचनीय स्थिति सर्वत्र उजागर हुई है । ”

‘माई लेटर्स टु जार्ज बुश’ का विमोचन कर्नाटक के भूतपूर्व मुख्य संयुक्त सचिव और यूनेस्को में भारत के भूतपूर्व राजदूत और धुरंधर विद्वान श्री चिरंजीव सिंह ने किया । उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के साहित्य में व्यंग्यात्मक रचनाओं की कमी है । क्षेत्रीय भाषाओं का अधिकतर साहित्य क्लिष्ट तथा गंभीर विषयों तक सीमित है । ऐसी स्थिति में हिंदी भाषा में रमेश जोशी जैसे व्यंगकार ने यह साबित कर दिया है कि व्यंग्य के माध्यम से भी समाज की गंभीर समस्याओं तथा विसंगतियों पर प्रहार किया जा सकता है । चाहे गद्य हो या पद्य लेखक ने दोनों विधाओं में एक विशिष्ट शैली में सराहनीय साहित्य का सृजन किया है ।

मध्याह्न ११.३० से १.३० तक चले इस कार्यक्रम का आतिथ्य और संचालन ‘एटीट्यूड शिफ्ट – आधुनिक जीवन के लिए संस्कृत न्याय’ के लेखक और ‘थिंकिंग हार्ट्स’ प्रकाशन के शशिकांत जोशी ने किया । रविवार को ‘फादर्स डे’ था सो उन्होंने रमेश जोशी के कविता संग्रह ‘पिता’ से एक कविता ‘घर का नक्शा’ का भी पाठ किया । शशिकांत ने ‘पिता’ पुस्तक का ‘Musings of a Father’ के नाम से अनुवाद भी किया है जो अमेजोन के वेबसाईट पर ‘किंडल’ पर डिजिटल पुस्तक के रूप में उपलब्ध है ।

हिन्दी साहित्य के पठन पाठन को प्रोत्साहित करने के लिये दोनों पुस्तकें एक के मूल्य पर दी जा रही हैं । कृपया लाभ उठायें ।  अधिक जानकारी के लिए देखें – ThinkingHeartsOnline.com/books

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 10, 2011

कुछ भी रखा न याद, बाबा



कुछ भी रखा न याद,बाबा ।
कर बैठे कुचमाद, बाबा ।

अब तो समझ आ गया होगा
कूटनीति का स्वाद, बाबा ।

राजनीति में सच तो केवल
होता है अपवाद, बाबा ।

दिन में होटल, एरोड्रम पर
करते ये संवाद, बाबा ।

और स्वयं ही करवाते ये
आधी रात फसाद, बाबा ।

जान-बूझ सोए शासन से
क्या करना फ़रियाद, बाबा ।

जन-आकांक्षा का कर्मों में
किए बिना अनुवाद, बाबा ।

योगासन से ठीक न होगा
काले धन का दाद, बाबा ।

८-६-२०११

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 9, 2011

हुसैन का नग्नता-विभूषण

मियाँ मकबूल,
आपका पूरा नाम है मकबूल फ़िदा हुसैन । मकबूल का अर्थ है लोकप्रिय, फ़िदा का अर्थ है न्यौछावर और हुसैन एक बलिदानी महापुरुष हुए हैं जिनकी याद में ताजिये निकले जाते है और सारा मुस्लिम जगत उनके लिए शोक मनाता है । इस प्रकार यदि आपके नाम का समस्त-पद-विग्रह किया जाए तो अर्थ होगा- ऐसा लोकप्रिय व्यक्ति जो हुसैन साहब के सिद्धांतों या व्यक्तित्व पर फ़िदा हो ।

पिछले पैंतीस-चालीस सालों से विभिन्न कारणों से चर्चित रहे हैं, लोकप्रियता का पता नहीं । इस दौरान हम आपके चित्रों को देखते रहे हैं और आपके बारे में पढ़ते रहे हैं । पर आप लेश मात्र भी हुसैन साहब पर फ़िदा नज़र नहीं आए । आपकी यह उम्र अल्लाह के पास पहुँच जाने की होती है । बहुत कम लोग इतनी आयु पाते हैं । महान आत्माएँ तो बहुत थोड़े समय के लिए इस दुनिया में आती हैं और अपना काम कर जाती हैं । शंकराचार्य, विवेकानंद, भगत सिंह आदि तो चालीस साल से पहले ही करिश्मा कर गए । ठीक है, आप नब्बे पार कर गए हैं, हो सकता है सेंचुरी भी बना दें । पर आपने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे संसार का भला हो ।

सच है कि आपने बहुत पैसा कमाया है पर पैसा तो रंडी, रिश्वतखोर और घोटालिए भी बहुत कबाड़ लेते हैं । आपको भारत सरकार ने पद्म विभूषण से अलंकृत किया पर आज सब जानते हैं कि पुरस्कार और अलंकरण बिकते हैं या राजनीतिक कारणों से दिए जाते हैं । यदि पुरस्कार प्रामाणिक होते तो महात्मा गाँधी को नोबेल पुरस्कार अवश्य मिलता पर नोबेल के बिना भी गाँधी जी विश्ववंद्य हैं । आपको पद्मविभूषण इसलिए मिला कि आपने इंदिरा गाँधी को दुर्गा के रूप में चित्रित किया । वहाँ आपने कलाकारी नहीं दिखाई, अभिव्यक्ति की आज़ादी का नाज़ायज उपयोग नहीं किया वरना पद्म विभूषण तो दूर आपका किसी और तरह ही अभिनन्दन कर दिया गया होता ।

मियाँ, यह हिंदू समाज ही है जो आपकी नग्नता विभूषणता को झेल रहा है । पहले आपने सरस्वती को नंगा चित्रित किया अब भारत माता को नंगा चित्रित कर दिया । आपके जैसे सपूत को पाकर बेचारी पहले ही शर्मसार थी, उसे नंगा करके और लज्जित क्यों किया ? यदि यही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इस्लाम के प्रति दिखाते तो अब तक चालीसा हो गया होता । नहीं तो, मोहम्मद साहब का कार्टून छापने वाले और उसका पक्ष लेने वाले देशों की हालत देख ही रहे हैं । वे भी आपकी ही तरह हैं । दुर्गा को व्हिस्की की बोतल पर, गणेश को गोमांस पर, काली को कमोड पर, जूतों पर गाँधी और शिव को स्थापित कर रहे हैं । ऐसी कलात्मकता और सौंदर्यबोध वे ईसा मसीह और मरियम पर नहीं दिखाते । जैसे शराबी भले आदमी को गाली निकालता है पर थानेदार को नशे में भी सेल्यूट मारता है । यह नशा बड़ा समझदार होता है । वैसे ही आपकी और यूरोपीय देशों की अभिव्यक्ति भी बड़ी सयानी है ।

यदि आपको भारतीय संस्कृति से ज्यादा प्रेम है और उसी को अपनी कला का विषय बनाते है तो ज़रा किसी सिख गुरु को अपनी कला का विषय बना कर दिखाइए । आप जानते हैं कि कृपाण क्या होती है ? यदि कोई कुत्ता शिवलिंग पर पेशाब कर दे तो वह क्षम्य है पर आप कुत्ते नहीं हैं अतः क्षम्य भी नहीं हैं । भले ही आपके कर्म कुत्ते से भी गए गुजरे हों । आपकी एक-एक पेंटिंग करोड़-करोड़ रुपए में बिकती है तो मोनिका की 'वह' ड्रेस भी तो करोड़ों में बिकी थी । सो, रुपयों का ज्यादा महत्त्व नहीं है । आपकी पेंटिंग खरीदने वाले भी वैसे ही लोग हैं जैसे कि मोनिका की 'वह' ड्रेस खरीदने वाले ।

पर आपकी एक विशेषता को हम मानते हैं कि आप निरंतर काम करते रहे हैं । पर कैसा काम ? यह तो समय ही तय करेगा । यदि इसी लगन और निरंतरता से आप कोई अच्छा काम करते तो यह देश आपको सर-आँखों पर बैठाता । अभी भी समय है कुछ अच्छा काम करने का । कला-गुरु अवनीन्द्रनाथ को आपने देखा होगा । क्या उनका काम आपसे घटिया था ? पर वे ऋषि थे, तपस्वी थे । ऋषियों को कोई भाग्यशाली ही समझ सकता है । लंपटों के बारे में तो गली के भड़वे भी जानते हैं । एलिजाबेथ टेलर, मर्लिन मुनरो, ब्रिटनी के कुख्यात होने का मतलब यह नहीं है कि वे अलबर्ट श्वाइत्जर से बेहतर हैं । दूध पन्द्रह रुपए लीटर और प्रसिद्ध शराब की एक बोतल हजारों रुपए में बिकने का मतलब यह नहीं है कि शराब दूध से ज्यादा ज़रूरी है । गली-गली में कजरारे-कजरारे गूँजने से 'जय जगदीश हरे' का महत्व कम नहीं हो जाता । वैसे यदि आपको नग्नता अच्छी लगती है तो सरस्वती और भारत माता तो दूर की बात है, क्या आप अपनी माताजी को इस रूप में देखना या दिखाया जाना पसंद करेंगे ? कभी नहीं । यह तो हम झोंक में लिख गए वैसे हम तो आपकी ही क्या, किसी की भी माताजी का पूरा सम्मान करते हैं । माता तो माता ही होती है ।

मीडिया और विज्ञापन मूर्ख लोगों को विष्ठा खाने तक लिए भी तैयार कर सकता है तो लंपटों में आपके चित्रों को चर्चित करवा देना कौन सा मुश्किल काम है ।

१५-२-२००६

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 6, 2011

ये तो होना ही था बाबा

(४ जून २०११ की 'ब्रेक'इंग न्यूज़ - आधी रात को पुलिस ने अचानक तोड़-फोड़ करके बाबा रामदेव के आन्दोलन स्थल को उजाड़ दिया )


बाबा रामदेव जी,
नमस्ते । पता नहीं आप इस समय कहाँ हैं और क्या कर रहे हैं ? वैसे हमारा मित्र तोताराम जो आपके समर्थन में उपवास करने दिल्ली गया था, आज शाम को घर लौट आया है । सकुशल है बस, भगदड़ में उसकी बत्तीसी थोड़ी क्रेक हो गई है और मोबाइल खो गया है ।

हम आपसे उम्र में लगभग २५ साल बड़े हैं और जब आप पैदा भी नहीं हुए तब से हमने लोकसभा और विधान सभा के चुनावों के पोलिंग अफसर की ड्यूटी देनी शुरु कर दी थी इसलिए हम इस लोकतान्त्रिक और कायदे-कानून की पक्की सरकार को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं । हमने आपको ३ जून को ही लिखा था कि 'अपना रस्ता लो बाबा' पर आपने अपना रस्ता लेने की बजाय दिल्ली का रस्ता पकड़ लिया और वही हुआ जिसकी हमको आशंका थी । कपिल सिब्बल जी ने भी संकेत दे दिया था कि हम अकोमोडेटिव हैं मगर फर्म भी हो सकते हैं और अब ४ मई को ही रात को फर्मनेस दिखा दी ।

आपको पता होना चाहिए कि हमारी सरकार नियम और कानून कायदे की बहुत पक्की है । उसे ज़रा सी भी अनियमितता बर्दाश्त नहीं है । वह सारे काम विधि-विधान और कानून सम्मत तरीके से ही करती है, जैसे कि नियमानुसार राजधानी से चले १०० पैसों में पाँच पैसे लाभार्थी तक पहुँचाती ही है । जब तक कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक अफज़ल और कसाब तक को फाँसी नहीं देती, भले ही वे इस इंतज़ार में अपनी स्वाभाविक ज़िंदगी ही पूरी कर लें और उनकी सुरक्षा में करोड़ों रुपए की क्यों न खर्च हो जाएँ । बंगलादेश से तय हुए दो करोड़ से एक भी ज्यादा आदमी को भारत में नहीं आने दिया । आपने पाँच हजार की परमीशन लेकर पाँच हज़ार एक आदमियों को इकठ्ठा कर लिया । अब इतना बड़ा अपराध सरकार कैसे बर्दाश्त कर सकती थी ? कश्मीर में गिलानी ने सरकार से जितने पत्थर फिंकवाने की परमीशन ली थी उससे ज्यादा एक भी पत्थर नहीं फिंकवाया और तय हुए दो सौ रुपए भी पत्थर फेंकने वालों को श्रम कानूनों के तहत ईमानदारी से दिए । पर आपने तो आन्दोलन में आने वालों को कोई मजदूरी भी नहीं दी । पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादियों ने जितने लोगों को मारने की परमीशन ली उससे ज्यादा को नहीं मारा । इसलिए जो करो परमीशन लेकर करो और उसका उल्लंघन न करो । राजा ने १ लाख ७६ हजार करोड़ का घपला करने की परमीशन ली थी मगर उससे एक रुपया ज्यादा का घपला कर दिया तो फिर जेल में तो जाना ही था । कलमाड़ी ने भी स्वीकृत सीमा से ७५ पैसे अधिक का घोटाला कर दिया तो फिर सजा तो मिलेगी ही ना । नियम कानून की बहुत पक्की है सरकार ।

सरकार संविधान का भी अक्षरशः पालन करती है । संविधान में लिखा है कि सरकार धर्म, जाति, संप्रदाय से निरपेक्ष रहेगी । तो देख लीजिए कोई भी धार्मिक, जातीय और सांप्रदायिक आन्दोलन हो सरकार कोई बाधा नहीं डालती और पूरी तरह से निरपेक्ष बनी रहती है । भले ही कुछ आलोचक यह कहें कि सरकार वोट बैंक खिसकने से डरती है । अब आपका आन्दोलन धर्म-जाति और संप्रदाय का आन्दोलन तो था नहीं, फिर सरकार कैसे निरपेक्ष रह सकती थी । सो उसे तो सापेक्ष रह कर एक्शन लेना ही था सो ले लिये एक्शन और उखाड़ दिया आपका तम्बू । अब पता नहीं डंडों से डरे लोग दुबारा जुटें या नहीं ?


आपकी एक प्रमुख माँग थी कि विदेशी बैंकों में रखे धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए तो सुना है उस पर कपिल सिब्बल मान गए थे । तो आपको यह समझ जाना चाहिए था कि जब कुछ भी 'राष्ट्रीय' घोषित हो जाता है तो उस पर सरकार अर्थात कुर्सी पर बैठे लोगों, माफिया और अलगाववादियों का अधिकार हो जाता है जैसे कि राष्ट्रीय धन का दुरुपयोग का अधिकार नेताओं को है, राष्ट्रीय पशु-पक्षी को मारने का अधिकार पोचरों को है, राष्ट्रीय ध्वज जलाने का अधिकार अलगाववादियों को है । ‘गाँधी’ का भट्टा बैठाने का अधिकार कांग्रेस का है फिर चाहे वह इंदिरा का हो या मोहनदास का । राम की दुर्दशा करने का अधिकार सबसे पहले रजिस्टर्ड राम भक्तों का बनता है । अब जब स्विस बैंकों में रखा काला धन 'राष्ट्रीय घोषित' ही हो गया तो फिर उसमें आपकी टाँग कैसे बर्दाश्त की जा सकती थी । यदि वह धन वापिस आ भी गया तो उसका तीया-पाँचा करने का अधिकार सरकार का ही बनता है । रही बात पाँच सौ और हजार के नोटों को समाप्त करने की तो जब ज़रूरत होगी वह भी कर दिया जाएगा । आप तो तब शायद चड्डी भी नहीं पहनते होंगे, जब इंदिरा जी ने हजार रुपए के नोट बंद किए थे । पाँच सौ का नोट उस समय नहीं चलता था । बाद में ज़रूरत पड़ी तो फिर हजार का नोट चलाना पड़ा । अभी तो राष्ट्रहित में बड़े नोटों को समाप्त करने की ज़रूरत नज़र नहीं आ रही है । अब तो रुपए के गिरते मूल्य, बढ़ते घपलों के कारण एक-एक करोड़ के नोट चलाने की ज़रूरत महसूस हो रही है ।

और जहाँ तक पुलिस की सज्जनता की बात है तो वह अंग्रेजों के समय से ही सर्वविदित है । उसने कभी किसी को नहीं सताया । कभी किसी पर हिंसक कार्यवाही नहीं की । गाँधी, लाला लाजपतराय, नेहरू, पटेल आदि बड़े खूँख्वार सत्याग्रही लोग थे । बात-बात में ए.के.४७ निकाल लेते थे तो फिर पुलिस को भी अपनी रक्षा में एक्शन लेना ही पड़ता था । जालियाँवाला बाग में भी जितने लोग सत्याग्रह के नाम पर इकठ्ठा हुए थे, सब घातक हथियारों से लैस थे । तभी बेचारे डायर को अपनी जान बचाने के लिए एक्शन लेना पड़ा । अब आपके आन्दोलन में भी पुलिस ने कुछ नहीं किया । वह तो आन्दोलन स्थल पर सो रहे लोगों की चोरी-चकारी करने वाले असामाजिक तत्त्वों से रक्षा करने के लिए गई थी । और आपके आंदोलनकारियों की चालाकी देखिए कि वहाँ पहुँचते ही बेकसूर पुलिस पर पत्थरबाजी शुरु कर दी । फिर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया । इसके बाद आन्दोलनकारियों ने पुलिस को बदनाम करने के लिए पत्थरों से अपने ही सिर फोड़ लिए और पैर तोड़ लिए । इस देश की बेचारी पुलिस के साथ हमेशा ऐसी ही ज्यादती होती है । और फिर मान लो पत्थर ही मारने थे तो उन पत्थरों पर अलगाववादी नेता गिलानी का नाम तो लिखवा लेते जिससे सरकार को चोट कम लगती । नाम का बड़ा प्रभाव होता है । नाम के प्रताप से तो पत्थर तैर जाते हैं ।

यदि आप चुप रहते या कपिल सिब्बल की बात मान लेते तो बात भी बनी रह जाती और दो-एक साल में जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी पुरस्कार और भारत-रत्न भी मिल सकता था । अब राँची में चल रहे प्रोजक्ट से भी सरकार हाथ खींच लेगी, खातों और दवाइयों की भी जाँच चलेगी सो अलग । और कहीं ऐसा न हो कि पुलिस आपकी भगवा चद्दर में से आर.डी.एक्स. बरामद करवा दे ।

५-६-२०११

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

अमरीकी गधा


( इराक में २००८ में एक अमरीकी नेवल बेस के सैनिकों का एक इराकी गधे से परिचय हो गया जिसे अब कर्नल जॉन फोल्सम के विशेष प्रयत्नों से, उन्होंने हजारों डालर का खर्चा करके वहाँ से अमरीका मँगवा लिया है- एक समाचार, १६-५-२०११ )

कर्नल जॉन फोल्सम साहब,
नमस्ते । २००८ में ईराक में एक नेवल बेस पर नियुक्त एक सैनिक सिगरेट पी रहा था तभी एक इराकी गधा उसकी सिगरेट छीन कर चबा गया । सैनिकों को उसकी यह अदा बहुत पसंद आई और फिर तो वे उससे बहुत हिलमिल गए । सैनिक इराक से लौट आए । पता नहीं, उनको अपने उस प्रिय गधे की याद आती थी या नहीं मगर आप उसे नहीं भूल पाए । और कोई तीस हज़ार डालर का खर्च करके उसे मई २०११ में अमरीका बुलवा ही लिया । गधा आपकी ही नहीं, सब की आवश्यकता होता है । कुत्ते-बिल्ली भले ही मन बहला दें पर बोझ तो गधा ही ढोता है । इराक में आप उस गधे से बोझा ढुलवाते थे या नहीं, पता नहीं ।

इस गधे को अमरीका मँगवाने में काफ़ी खर्चा आया जिसे आपने चंदे से जुटाया । ठीक भी है, ऐसे कामों में कोई समझदार आदमी अपनी जेब से थोड़े ही खर्च करता है । उसे अमरीका लाने से पहले उसके खून की जाँच की गई और भी कई औपचारिकताएँ की गईं । अमरीका एक आर्थिक देश है जहाँ सब कुछ अर्थ को ध्यान में रख कर सोचा और किया जाता है । जब गोरे लोगों ने अमरीका पर कब्ज़ा किया था तो उस समय वहाँ ज़मीन बहुत थी और मशीने थीं नहीं सो उस ज़मीन को जोतने और अन्य विकास कार्यों के लिए गधों की बहुत आवश्यकता थी । तब अमरीका सीधे अफ़्रीका से गधे पकड़ कर लाता था । कुछ मुसलमान भी वहाँ से गधे पकड़ कर लाते और अमरीका को बेच देते थे । तब गधों को कीमत देकर ख़रीदा जाता था । इन गधों को मार-पीट कर काम लिया जाता था । और उन गधों को मालिक अपनी ओर से नया नाम दिया करते थे जैसे कि आपने भी इस गधे को 'स्मोक' नाम दिया । और उनका धर्म बदल कर ईसाई बना दिया जाता था और बिना कोई अतिरिक्त खर्चा किए ही धर्म-लाभ भी प्राप्त कर लिया जाता था । आप भी क्या इस 'स्मोक' नामक गधे का धर्म बदलवाकर उसे ईसाई तो नहीं बना रहे हैं ? वैसे ईसाई बनने पर भी वह रहेगा तो दो नम्बर का ईसाई ही जैसे कि दुनिया के और काले ईसाई दो नंबर के ईसाई हैं या जैसे कि अरब देशों में भारत के मुसलमान दो नंबर के मुसलमान माने जाते हैं । असली ईसाई तो गोरा ईसाई होता है । इन गधों की बदौलत अमरीका बहुत धनवान हो गया । फिर उसने मशीनें भी बना लीं और तब गधों को लाना और उनसे काम लेना महँगा पड़ने लगा तो उन्हें 'व्हाईट मैन्स बर्डन' कहा जाने लगा । ठीक भी है, काम निकल जाने पर गधा ही क्या, बाप तक बर्डन लगने लगता है ।

अब तो हालत यह है कि आपके देश को गधे पकड़ कर लाने या खरीदने की ज़रूरत ही नहीं है । अब तो सारे विकासशील देशों के गधे जी-जान लगाकर वह पढ़ाई करते हैं जिसकी आपके देश में माँग होती है । फिर मोटी फीस देकर आपके आगे वीजा के लिए लाइन लगाते हैं और आपसे दुनिया के आर्थिक स्वर्ग में प्रवेश देने के लिए घिघियाते हैं । तब आप उसे प्रवेश देते हैं । वहाँ जाकर वह हाड़-तोड़ मेहनत करता है और आपकी अर्थव्यवस्था को और विकसित करता है । गधा भूल जाता है कि गधा गधा ही रहता है फिर चाहे वह अमरीका में हो या भारत में, किसी धोबी का हो या किसी कुम्हार का । गधों को तो लदना ही पड़ता है । यदि गधा अपने देश में रहें तो कम से उसे किसी न किसी कानून के बहाने आसानी से फँसाया तो नहीं जा सकता । कहते हैं आपके यहाँ मेक्सिको के गधे चोरी-छुपे घुस आते हैं । वास्तव में बात यह है कि आपके जान-बूझ कर आँखें मूँद लेने पर ही वे आ पाते हैं । आपके यहाँ के माफिया कम पैसे में उनसे काम करवाते हैं । और कभी-कभी वे ही उन्हें लूट भी लेते हैं । चूँकि उनका दर्ज़ा आपके यहाँ अवैध प्रवासी का होता है तो बेचारे शिकायत भी नहीं कर सकते । जो दूसरे देश में स्वर्ग तलाशते हैं वे गधे ही होते हैं; भले ही वहाँ जाकर दो पैसे अधिक कमा लें ।

राजनैतिक उपनिवेश के ज़माने में विदेशी आक्रांता उस देश के गधों को पालकर ही बहुसंख्यक जनता पर शासन करते थे । अब वैश्वीकरण के कारण गधों का बाज़ार विस्तृत हो गया है । अब तो आपके यहाँ सभी देशों के चुने हुए गधे सेवा कर रहे हैं । 'स्मोकी' नामक इस गधे को अमरीका आने की इज़ाज़त देने से पहले इसका रक्त परीक्षण किया गया । ठीक भी है,संसार में केवल अमरीका में ही इस समय शुद्ध रक्त बचा है । इसकी तलाशी भी ली गई होगी । वैसे गधे का तो सब कुछ पहले ही पारदर्शी रहता है । कपड़े तो वह पहनता ही नहीं कि आपको उसकी तलाशी लेने की ज़रूरत पड़े । वैसे ९/११ के बाद कई गधों ने बड़ी चालाकियाँ कीं और वे अपने पेटों और अन्य गुप्त स्थानों में कई चीजें छुपा कर ले जाते पकड़े गए । हमारे यहाँ तो पड़ोस में से कई गधों के पेट से विस्फोटक बाँध कर उन्हें सीमा पार धकेल दिया जाता है । अब गधा तो गधा उसे क्या पता, चाहे जिधर निकल जाता है और ठीक समय पर उसके पेट से बंधी सामग्री विस्फोटित हो जाती है ।
यह गधा तो आपका विश्वसनीय रहा है इराक से ही । इसलिए इसकी उस तरह से तलाशी नहीं ली गई जैसे भारत के कई नेताओं की ली गई । जो गधों की तरह से बिना सोचे समझे आपका बोझा नहीं ढोते हों, उनकी तलाशी लेना बहुत ज़रूरी है । पहले तो जो आपके लिए पेट से विस्फोटक बाँधकर कहीं भी घुसने को तैयार थे, उन गधों की आप तलाशी नहीं लेते थे बल्कि उन्हें अतिरिक्त सुविधाएँ भी देते थे जैसे कि पड़ोस से भारत में घुसने वाले या अफगानिस्तान में रूसी सेनाओं पर हमले करने वाले । पर अब वे गधे विश्वसनीय नहीं रहे तो तलाशी क्या, एक-एक हड्डी पसली भी निकाल-निकाल कर देखी जाती है ।

कोई आदमी भी जब लालच में आ जाता है तो गधा बन जाता है और पूरा खाना न मिलने पर भी जी तोड़ काम करता रहता है और ऊपर से मार भी खाता है । ऐसे ही एक गधे का किस्सा है । दो गधे थे । एक धोबी के यहाँ और एक कुम्हार के यहाँ । एक बार संयोगवश दोनों का मिलना हो गया । कुम्हार वाले गधे ने धोबी वाले गधे के कमजोर स्वास्थ्य को देखकर पूछा- बंधु, क्या बात है ? इतने कमजोर कैसे हो रहे हो ? धोबी वाले गधे ने उत्तर दिया- भाई, मुझे दोनों तरफ लदना पड़ता है, आते-जाते । जाते तरफ गंदे कपड़े ले जाता हूँ और आते समय धुले हुए । कुम्हार वाले गधे ने कहा- मेरे यहाँ काम की इतनी मार नहीं है । बाज़ार जाते समय बर्तन ले जाता हूँ और आते समय कोई छोटा-मोटा सामान या फिर भी कुछ नहीं । मेरा मालिक एक गधा और रखने की बात कर रहा था । तू कहे तो बात करूँ ? धोबी वाले गधे ने कहा- यह ठीक है कि मेरे लिए काम ज्यादा है मगर फ्यूचर ब्राईट है । मेरा मालिक कहा रहा था कि वह भी एक गधा और लाएगा । जब वह एक गधा और ले आएगा तो फिर मेरा प्रमोशन हो जाएगा और मैं हैड गधा हो जाऊँगा । तेरे यहाँ तो तू सीनियर है सो मुझे तेरे अंडर में काम करना पड़ेगा । थोड़े दिन का ही तो कष्ट है । कोई बात नहीं, फ्यूचर प्रोस्पेक्ट्स को ध्यान में रखते हुए यह कष्ट कोई ज्यादा नहीं है । सो आपके विदेशों से गए यहाँ सारे गधे ब्राईट फ्यूचर की आशा में हाड़ तोड़ रहे है और बूढ़े हो रहे हैं ।

कुछ भी हो, इराक के लाया गया यह गधा आपकी कृपा से अब 'अमरीकी गधा' हो गया । अब वह अपने देश में एन.आर.आई. गधा कहलाएगा । विदेशी निवेश आमंत्रित करने के सम्मेलनों में उसे बुलाया जाएगा, उसे इराकी फूड खिलाया जाएगा, इराकी नृत्य दिखाए जाएँगे, उसे दोहरी नागरिकता दी जाएगी । उसे दामाद के रूप में पाकर इराकी लड़कियों के पिता धन्य हो जाएँगे भले ही अमरीका में वह एक गधा ही हो पर जब वह किसी अन्य देश में जाएगा तो महत्त्वपूर्ण हो जाएगा और रेमंड डेविस की तरह उसे बचाने के लिए सारा अमरीकी प्रशासन सक्रिय हो जाएगा ।

इसी गधे का एक और किस्सा है । धोबी ने एक दिन दूसरा गधा न लाने की घोषणा कर दी तो उसका सीनियर गधा बनने का स्वप्न चूर-चूर हो गया मगर फिर भी वह चिपका रहा क्योंकि एक दिन कुम्हार अपनी बेटी से नाराज़ होकर कह रहा था कि यदि वह उसका कहना नहीं मानेगी तो वह उसकी शादी किसी गधे से कर देगा । सो गधे के लिए एक और लालच पैदा हो गया कि कभी न कभी तो वह दिन भी आएगा जब धोबी नाराज़ होकर उसकी शादी किसी गधे से कर देगा । तब उसका नंबर पहला होगा क्योंकि वह उनका चिरपरिचित गधा है । दूसरे गधे उसकी इस आशावादिता पर हँसते थे । एक दिन ऐसा ही हुआ । धोबी ने अपनी बेटी की शादी उस गधे से कर दी और अब उस गधे पर कुम्हार के साथ-साथ उसकी बेटी का बोझ भी लद गया । मतलब कि अब वह डबल ड्यूटी करता है ।

अमरीका एक महान देश है । यदि वह न हो तो न तो इस दुनिया का विकास हो और न ही कहीं पर लोकतंत्र ही बचे । यही देश है जो दुनिया में लोकतंत्र की रक्षा के लिए कहीं भी अपनी सेनाएँ भेज देता है । इसलिए आपके शुभचिंतक होने के कारण हम आपको बता देना चाहते हैं कि ठीक है, गधा अपने सीधेपन के लिए सब को चाहिए, मगर जो ज्यादा सीधा होता है वह जब अपनी पर उतर आता है तो मुश्किल खड़ी कर देता है । कहते हैं कि गधे की दुलत्ती शेरों तक को नानी याद दिला देती है ।

देखा नहीं, एक हज़ार साल तक विदेशी शासन में रहे इस देश की एक दुलत्ती में ही अंग्रेज बहादुर उलटे हो गए । अब यह बात और है कि यहीं के कुछ पढ़े लिखे गधे प्रत्यक्ष रूप से वैश्वीकरण के नाम पर उन्हें ढोने को आमादा हैं और सारे देश से भी यही चाह रहे हैं, भले ही कुछ भी उल्टा-सीधा करना पड़े ।

१७-५-२०११
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 5, 2011

फेयर डील

ओबामा जी,
नमस्ते । बधाई तो हमने पहले ही दे दी थी आपको ओसामा को निबटाने की । हमारा कौन सा वोट बैंक है जो खिसक जाएगा । जिनको वोट बैंक खिसकने का डर है वे चुप्पी लगाए हुए हैं । आज जब पढ़ा कि अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति बुश साहब ने आज से कोई दस साल पहले ही यह 'डील' कर ली थी कि यदि ओसामा पाकिस्तान में हुआ तो अमरीका उसे पकड़ने या मारने की सीधी कार्यवाही कर सकेगा । इसे कहते हैं दूरदर्शिता । वैसे बुश साहब को पहले से ही यह विश्वास था कि ओसामा के खिलाफ़ कार्यवाही तो करनी पड़ेगी, आज नहीं तो कल और ओसामा जब भी मिलेगा, पाकिस्तान में ही मिलेगा । मतलब कि 'डील' करने से पहले सामने वाले का 'डौल' देख लेना चाहिए । आज 'डील-डौल' शब्द के इस नए अर्थ से हम खुद चमत्कृत हैं । पर क्या बताएँ, हमारा नेतृत्त्व इतना समझदार नहीं है कि सामने वाले का 'डौल' देख-समझ सके । तभी चीन और पाकिस्तान से बार-बार वार्ता करता है और धोखा खाता रहता है । आपकी इस दूरदर्शिता के लिए राजस्थानी में एक कहावत है- 'वड़ों से पहले तेल पीना' । जिसे लगता है कि क्या पता, वड़े मिलें या नहीं तो वह वड़े बनने का इंतज़ार नहीं करता बल्कि पहले ही तेल पी जाता है ।

हमें तो लगता है कि अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने, जब ओसामा को रूस के खिलाफ़ खड़ा किया था, तभी यह 'डील' कर ली होगी क्योंकि भस्मासुर को वरदान देने से पहले उसकी काट तय कर लेनी चाहिए । हमारे शिवजी इतने समझदार नहीं थे तभी उनकी रक्षा के लिए विष्णु भगवान को आना पड़ा । हमारे पुराणों में भी बहुत से किस्से आते हैं कि जब भी ब्रह्माजी किसी राक्षस को वरदान देते थे तो उसकी काट पहले से सोच लेते थे । जब हिरण्यकश्यप को वरदान दिया कि न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न आदमी से मरेगा न जानवर से, तभी सोच लिया था कि इसे मारने के लिए नृसिंह भगवान अवतार लेंगे और वे उसे संध्या के समय उसके महल की देहली पर मारेंगे । हमारे नेता तो जो कुछ सीखते हैं वह पश्चिम की अनुपयुक्त हो चुकी टेक्नोलोजी और फेल हो चुके सिद्धांतों से सीखते हैं । हमारे पुराणों का तो सही फायदा अमरीकी नेतृत्त्व ने ही उठाया है कि ओसामा के जन्म के साथ ही उसकी वध की योजना भी बना ली । लगता है कि अमरीकी नेतृत्त्व ने भोपाल में यूनियन कार्बाइड का कारखाना लगाते समय ही भारत सरकार से एंडरसन को ‘सेफ़ पैसेज’ देने का समझौता कर लिया था वरना यह कैसे हो सकता है कि वह इस आपराधिक कर्म के बाद भी मध्यप्रदेश के सरकारी तंत्र द्वारा विशेष विमान से दिल्ली पहुँचाया जाए और वह वहाँ राष्ट्रपति से मिलकर सकुशल अमरीका पहुँच जाए ?

वैसे यह भी सच है कि यदि अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने ओसामा को लेकर पकिस्तान से यह समझौता नहीं किया होता तो भी आप उसे पाकिस्तान में जाकर पकड़ सकते थे । पहले भी तो एक वांछित अपराधी को आपके जासूसों ने पाकिस्तान के एक होटल से गिरफ्तार किया था । इसी को कहते है- 'ठाडे का तो डोका भी डाँग होता है' मतलब कि शक्तिशाली का तो तिनका भी लट्ठ का काम करता है । प्रथम विश्वयुद्ध में हार के बाद जर्मनी पर बहुत सी अपमानजनक शर्तें लादी गई थीं मगर बेचारा कुछ नहीं बोल सका । फिर जब हिटलर शक्तिशाली हुआ तो उसने सारी संधियों को तोड़ डाला । और एक हमारा हाल है कि हम सबूत पर सबूत दिए जा रहे हैं मगर पकिस्तान मान ही नहीं रहा है । दाऊद इब्राहीम पाकिस्तान के एक क्रिकेटर के बेटे से अपनी लड़की की शादी करता है । दुनिया के बहुत से मेहमान, क्रिकेटर और यहाँ तक कि भारत के टी.वी. की रिपोर्टर भी उस शादी में जाती है मगर पाकिस्तान की सरकार को पता ही नहीं लगता कि दाऊद पाकिस्तान में है या नहीं । जैसे कि साधू यादव पर गिरफ्तारी का वारंट था तब भी वह संसद में आया, हाजरी लगाई और चला गया मगर पुलिस को पता ही नहीं चला । इसी तरह पाकिस्तान को क्या पता नहीं था कि ओसामा उसी के यहाँ रह रहा है मगर वह झूठ बोलता रहा ? मगर हम यह नहीं मान सकते कि बुश साहब को भी पता नहीं था कि ओसामा पाकिस्तान में नहीं है ।

हमें लगता है कि उन्हें पता था कि ओसामा पाकिस्तान में ही है पर उन्होंने उसे पकड़ने में कोई जल्दी नहीं दिखाई क्योंकि राजनीति में ऐसे मुद्दे बड़ी मुश्किल से हाथ आते हैं जो दीर्घकालिक हों और शर्तिया चुनाव जिताने वाले हों । पाकिस्तान का कोई भी राष्ट्रपति कश्मीर का मुद्दा हल नहीं करना चाहता । इसी तरह से आतंकवाद का मुद्दा भी पाकिस्तान की सेना और नेतृत्त्व के लिए दुधारू गाय है जिसे जितने समय तक हो सके, दुहते रहना चाहिए । हमारे यहाँ आरक्षण भी इसी तरह का मुद्दा है । वरना जिस दवा से पिछडों और दलितों का पूर्ण रूप से इलाज़ नहीं हुआ क्या उस दवा को बदल नहीं देना चाहिए ? पर जब तक डाक्टर को मरीज से और अधिक मुनाफ़ा कमाने वाली दवा न मिल जाए तब तक उसे पुरानी दवा ही चालू रखनी चाहिए । सो यह बेअसर दवा चालू है, मरीज की हालत बिगड़ रही है मगर डाक्टर की प्रेक्टिस चालू है । सो जब तक तेल भंडारों पर कब्ज़ा बनाए रखने के लिए आतंकवाद से बेहतर और कोई तरीका नहीं मिल जाता तब तक इसे ही पकड़े रखना चाहिए भले ही पाकिस्तान को हर साल दस-बीस अरब डालर देते रहना पड़े । धंधे के लिए बहुत से ओवरहैड खर्चे करने ही पड़ते हैं । इतने खर्चे के बाद भी तो कुछ तो बचेगा ही ।

अब हमारे नेतृत्त्व को ओसामा के पकड़े जाने पर लग रहा है कि आप जिस तरह से अपने लिए पाकिस्तान को गरिया रहे हैं वैसे ही इसके लिए भी उसे डाँटेंगे और सही रास्ते पर लाएँगे मगर वह यह भूल जाता है कि आप धंधा करने निकले हैं कोई जनकल्याण करने नहीं । हाँ, यदि भारत डरकर हथियार खरीदना चाहे तो आपको कोई ऐतराज़ नहीं है । ख़रीदे, शौक से खरीदे, भले ही कृषि, शिक्षा, चिकित्सा आदि के कल्याणकारी खर्चे कम करके ही ख़रीदे ।

वैसे हम अमरीका की इस बात के लिए भी प्रशंसा करते हैं कि उसने कुछ भी अनुचित नहीं किया । जो कुछ किया समझौते के तहत किया । 'डील' तो डील ही होती है और हमें तो अमरीका से अधिक 'फेयर डील' करने वाला कोई दूसरा दुनिया में लगा नहीं ?

११-५-२०११

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

तोताराम का उपवास


आजकल हमारे सीकर में पारा ४९ डिग्री को छू रहा है मगर इसकी कल्पना कोई ए.सी. में रहने वाला या शिमला, कुल्लू-मनाली या बैंगलोर का निवासी तो कर नहीं सकता और जो हमारे जैसे हालात में रहते हैं, उन्हें कल्पना करने की ज़रूरत नहीं और उससे कोई फर्क भी तो नहीं पड़ने वाला क्योंकि उनके हाथ में कुछ है नहीं । आजकल आठ नौ बजे तो लू ही चलने लग जाती है सो तोताराम का आगमन भी हमारे यहाँ सुबह सात बजे तक ही निबट जाता है । चाय पीने की हिम्मत न हमारी होती है और न तोताराम की । बस, रात में बाहर रखे मटके के ठंडे पानी से ही काम चल जाता है ।

आज तोताराम के कंधे पर विनोबा जी वाला थैला था और दाढ़ी भी बना कर आया था । लगता था कि कहीं जाने की तैयारी में है । पानी पीने से भी इंकार कर दिया । कहने लगा- चलना है तो जल्दी से तैयार हो जा, दिल्ली चलना है ।

हमने कहा- दिल्ली में मौसम कौन सा सुहावना है । वहाँ ४९ नहीं तो, ४५ डिग्री गरमी होगी । हो सकता है अन्ना हजारे और रामदेव के कारण गरमी ५० से ऊपर पहुँच गई हो । यदि गरमी और लू से ही मरना है तो अपना घर ही ठीक है । दिल्ली तो इतनी बेरहम है कि कोई श्मशान ले जाने वाला भी नहीं मिलेगा । यहाँ कम से कम चार भाई लोग तो कंधा देने के लिए जुट जाएँगे ।

तोताराम ने कहा- मैं न तो दिल्ली घूमने के लिए जा रहा हूँ और न ही मरने । मैं तो इस राष्ट्रीय संकट की घड़ी में देश को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए संघर्ष करने वालों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करने जा रहा हूँ । मैं भी बाबा रामदेव के साथ उपवास करूँगा । और इस शुभ कार्य में यदि जान भी चली गई तो कोई चिंता नहीं ।

हमें लगा, आज हम एक नए तोताराम के दर्शन कर रहे हैं । हमने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा और पूछा- तो क्या अब तक तू पूरा और संतुलित भोजन ही करता आ रहा था ? अरे, उपवास कोई दो- चार दिन में भूखे रहकर मर जाने का नाम ही नहीं है । उपवास कई प्रकार के होते हैं । हम अब तक जैसा और जितना भोजन करते रहे हैं वह भी उपवास की श्रेणी में ही आता है । और मरने में अब दिन ही कितने बचे हैं । यह शुभ काम यहीं हो जाने दे ।

कहने लगा- मरना तो सभी को एक दिन हैं मगर यदि मरने का कोई बड़ा उद्देश्य हो तो मरने का आनंद ही कुछ और है ।

हमने कहा- तोताराम, सर्दी में उपवास से आदमी यदि दस दिन में मरता है तो गरमी में यह काम तीन दिन में ही हो जाता है ।

बोला- अरे, वहाँ गरमी कहाँ है ? कूलर, पंखे लगे हैं । डाक्टरों और बिस्तरों की व्यवस्था है । आँधी और वर्षा से बचने का भी पूरा इंतजाम है । यहाँ तो जब तब आँधी आकर सारा घर और सिर धूल से भर जाती है ।



हमने बात को थोड़ा बदलने की कोशिश की, बोले- तोताराम, आज का अखबार देखा ? बाबा के उपवास स्थल पर बड़े-बड़े कड़ाहों में खाना बन रहा है । जब उपवास ही करना है तो फिर खाने का इंतज़ाम करने की क्या ज़रूरत थी ? हमें तो अखबार से ही देहरादून के बासमती चावल और हरियाणा के शुद्ध घी की खुशबू आ रही है । हमें तो पकते खाने की फोटो देखकर ही लार टपकने लगी है । वास्तव में जो वहाँ बैठ कर उपवास करेंगे उनके लिए तो अपनी रसना पर काबू रखना बहुत मुश्किल हो जाएगा । यदि शांति पूर्वक उपवास करना है तो कहीं जंगल में जाना चाहिए जहाँ दूर-दूर तक रोटी-पानी का कोई नामो-निशान न हो । इससे मन को कंट्रोल करने में सुविधा रहती है ।

तोताराम कहने लगा- अरे, जब खाने को कुछ हो ही नहीं तो उपवास करने का क्या अर्थ है ? जब कोई उर्वशी या मेनका तप भंग करने के लिए चारों तरफ नृत्य नहीं करे तब तक तपस्या का महत्त्व ही क्या ? मज़बूरी में तो सभी ब्रह्मचारी होते ही हैं । धन के बीच ही त्याग की, भोग-विलास के बीच ही संयम की और रसोई में पकते तरह-तरह के पकवानों की क्षुधावर्धक सुगंध के बीच ही उपवास की सच्ची परीक्षा होती है ।

हमने फिर टाँग खींची- तो फिर इतने बड़े पैमाने पर खाना बनवाने की क्या ज़रूरत थी ? बाबा और तेरे सामने एक-एक प्लेट बढ़िया खाने की रख देते ।

तोताराम ने कहा- भैया, उपवास तो हम और बाबा ही करेंगे, बाकी तो तमाशा देखने वाले हैं, भीड़ है । वे भूखे कितनी देर तक रहेंगे । उन्हें तो दिन में चार बार खाना, नाश्ता और ठंडा चाहिए और यदि मिल जाए तो ठंडी बीयर भी चाहिए ।

हमने फिर प्रतिवाद किया- तो फिर पैसा खर्च करके, केवल तमाशा देखने वालों की ऐसी भीड़ जुटाने से क्या फायदा ?

तोताराम ने हमारी समस्या का समाधान किया- मास्टर, यह केवल उपवास ही नहीं है । उपवास तो आधी दुनिया अपने-अपने घरों में जाने कब से कर रही है । यह तो परिवर्तन के लिए दबाव बनाने के लिए है और आजकल दबाव कार्य की महत्ता से नहीं बल्कि मीडिया और भीड़ से बनता है । खैर, अब बातों में मेरा समय खराब मत कर । यदि चलना है तो चल, नहीं तो समर्थकों को लेकर दिल्ली जाने वाली चार्टर बस निकल जाएगी ।

और तोताराम चला गया । और हम दरी पर बैठे, बढ़ी दाढ़ी और फूलमाला पहने तोताराम का फोटो अखबार में देखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

३-६-२०११

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Jun 2, 2011

अपना रस्ता लो बाबा

बाबा रामदेव जी,
आपकी उम्र मात्र ४५ वर्ष है और एक दम छड़े । न आगे नाथ, न पीछे पगहा । वैसे आपसे भी दुगुनी उम्र के लोग देश की सेवा कर रहे हैं मगर आज तक किसी ने इतना दुन्द नहीं मचाया । चुनाव हार गए तो घर बैठे हैं और फिर से सत्ता में आने की जुगत भिड़ा रहे हैं । जब जनता को और कोई विकल्प नहीं मिलेगा तो फिर सत्ता में आ जाएँगे और फिर अपने परिवार वालों, चमचों, दबंगों को लेकर सेवा के पवित्र कर्म में लिप्त हो जाएँगे ।

पर आप तो घरती-आसमान एक किए हुए हैं । अरे भई, सबके अपने-अपने रास्ते हैं कर्म-दुष्कर्म करने के, सेवा करने के, मेवा खाने के । आप अपने रास्ते जाइए और हमें अपने रास्ते जाने दीजिए । हम आपके कामों में टाँग नहीं अड़ाते तो आप क्यों हमारे काम-धंधे में टाँग अड़ा रहे हैं । जब जैसे चाहिए लोगों को देश-विदेश में योग सिखाइए, च्यवनप्राश बनाइए और मज़े कीजिए । हम ने तो कभी आपके कामों में टाँग नहीं अड़ाई । आप पर दवा में हड्डी मिलाने के आरोप लगे, अपने कारखानों में काम करने वालों को न्यूनतम मजदूरी न देने के आरोप लगे, थोड़े से समय में करोड़ों-अरबों रुपए कमाने के आरोप लगे मगर हमने कुछ कार्यवाही की हो तो बोलो ।

और भी बहुत से तथाकथित संत हैं, आयुर्वेदिक दवाएँ, अगरबत्तियाँ बेचते हैं, अरबों की सरकारी ज़मीन कब्जाए हुए हैं, देशी-विदेशी भगोड़ों को शरण देते हैं, मारीशस से काले धन को सफ़ेद करने के ठेके लेते हैं, चेलियों के साथ बलात्कार करते हैं, सेक्स रेकेट चलाते हैं, विभिन्न चैनलों पर किसी को न समझ में आने वाले भाषण झाड़कर पैसे और प्रसिद्धि कमाते हैं, जगह-जगह अपना-अपना आध्यात्मिक सर्कस लिए घूमते हैं, कई बाबा स्कूल चलाते हैं जिनमें किसी भी अध्यापक को पूरी तनख्वाह नहीं दी जाती, आश्रमों में बच्चों की हत्याएँ हो जाती हैं मगर हमने किसी पर भी ध्यान दिया हो तो कहो । सबके अपने-अपने धर्म हैं । और गीता में कहा गया है कि धर्म परिवर्तन गलत है, सबको अपने-अपने धर्म का पालन करना चाहिए ।
सो आप अपने धर्म का पालन करें और हमें अपने धर्म का पालन करने दें । शेर घास नहीं खाता, और गाय मांस नहीं खाती । कोई किसी के भोजन की तरफ देखता तक नहीं । इसीलिए जंगल की दुनिया मानवों की दुनिया की बजाय ज्यादा शांति से चलती है ।

यह ठीक है कि वृंदा करात ने आपकी दवाओं में हड्डी होने का मामला उठाया था, रामडोस ने आपके प्राणायाम से केंसर ठीक होने के दावों को अप्रामाणिक बताया, फिर दिग्विजय सिंह ने कहा कि कल तक तो रामदेव के पास साइकल का पंचर निकलवाने के पैसे नहीं थे और अब अरबों रुपए कहाँ से आ गए ? लोगों का क्या है । लोगों का काम तो कहना है । राजेश खन्ना ने एक फिल्म में कहा भी है- 'कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना' । हम भी तो लोगों के कहने की परवाह नहीं करते तो आप भी किसी की परवाह किए बिना अपना काम करते रहिए । एक संत हुए हैं- रामसुख दास जी । उन्होंने कभी ऐसा कोई चक्कर नहीं चलाया । आराम से आत्मा-परमात्मा की बातें करते रहे । उनके पास तो एक धोती, एक माला, एक जोड़ी खडाऊँ, एक कमंडल था । और अधिक जानना है तो उनकी वसीयत पढ़ लीजिए । पता चल जाएगा कि संत को किस तरह से रहना चाहिए । एक हुए हैं चंद्रगुप्त के गुरु और मंत्री- चाणक्य । जो सरकारी तेल का दिया तभी जलाते थे जब कोई सरकारी काम करना होता था वरना अपने घर के तेल का दिया जलाते थे । पर अब वह बात तो है नहीं । अब न तो रामसुख दास जैसे संत हैं और न चाणक्य जैसे मंत्री । अब तो वही कहावत लागू होती है-
'जो साँभर में पड़ा सो लूण' ।
मतलब कि जो भी कुछ राजस्थान की खारे पानी की साँभर झील में गिरा सो ही नमक बन गया । सो यह समय ही ऐसा है । कहाँ चील के घोंसले में माँस खोजने चले हैं ?

आपके ज्ञानवर्धन के लिए बताते चलें कि आजकल जो भक्त होते हैं वे भी कलियुगी भक्त हैं । हमारे राजनीतक दलों में भी अनुशासित कार्यकर्त्ता, अनुशासित सिपाही होते हैं- गाँधी जी, मार्क्स, लोहिया, अम्बेडकर और सावरकर जी के तथाकथित भक्त । मगर सब को शाम को दारू चाहिए, डिजाइनर कपड़े पहनते हैं, हवाई जहाजों में चलते हैं, ए.सी. में रहते हैं, बच्चे विदेशों में हैं, बोतल का पानी पीते हैं, जुकाम भी हो तो अमरीका में इलाज़ करवाते हैं । एक बार राहुल गाँधी ने कहा था कि युवा कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओं को खादी पहननी चाहिए और शराब नहीं पीनी चाहिए मगर किसने पालन किया बताइए । एक जनसेवक के बारे में तो अभी-अभी छपा है कि वे दो करोड़ की कुर्सी पर बैठते हैं । और अनुशासन और सिपाहीगिरी का हाल यह है जब तक किसी पार्टी में खाने को हराम का मिलता है तब तक उसमें रहेंगे अन्यथा उनकी आत्मा इतनी हरामी है कि तत्काल दल बदल करने की प्रेरणा देने लग जाती है ।

आपके के भी बहुत से अनुयायी हैं वे भी कलियुग के ही हैं । हम अपवाद की बात नहीं करते मगर बहुमत ऐसों का ही है । लोग आपके कार्यक्रम करवाते हैं । आधा चंदा आपको चढ़ा देते हैं और आधा खुद हजम कर जाते हैं । किसी भी आयकर विभाग वाले को पता नहीं चलता । और जो आपके कार्यक्रम करवाते हैं वे राखी सावंत और मीका के भी कार्यक्रम उसी भक्तिभाव से करवाते हैं । वे ही अपने-अपने इलाकों में भू माफिया हैं, दारू का धंधा करने वाले हैं, सट्टा खिलवाते हैं, उनके भी स्विस बैंकों में खाते हैं । इसलिए आप आज के युग में भक्तों पर ज्यादा विश्वास न करें । हम भी अपने कार्यकर्त्ताओं पर आँख मीच कर विश्वास नहीं करते । बुराई नहीं कर रहे , धंधे के गुर बता रहे हैं ।

आप विदेशों से काला धन लाने की बात पर अड़े हैं । क्या यहाँ धन की कमी है ? और फिर उस धन को विदेशों में ही पड़ा रहने दीजिए । वहाँ सुरक्षित रहेगा । यहाँ जो थोड़ा बहुत है वही ईमान खराब किए हुए है । विदेश वाला भी आ गया तो मारकाट मच जाएगी उसे भी खाने के लिए । और फिर धन तो धन ही होता है बाबा । क्या काला और क्या सफ़ेद । क्या आपने लक्ष्मी के कर-कमलों से गिरती मुद्राओं में कोई काले रंग की मुद्रा देखी ? सोना सुनहरा ही होता है । क्या अपने कभी काला सोना देखा है ? अरे, धन आने से तो कलुआ भी सोहन लाल हो जाता है । और फिर लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है जो अँधेरा पसंद करता है । इसीलिए पहले भी सेठ लोग धन को ज़मीन में गाड़ कर रखते थे । धन को हवा और धूप लगने से उसका क्षरण होने लगता है । इसलिए काला या सफ़ेद जैसा भी है उसे वहीं रहने दो । अभी देश पर कौन सा संकट आ रहा है ? देखते नहीं अर्थव्यवस्था कुलाँचे भर रही है । जब संकट आएगा तो देखेंगे । वैसे आपको बता दें आजकल तो बहुत से बाबा भी चेलों से डरकर अपना धन विदेशी बैंकों में रखने लग गए हैं ।

एक बात आपने और कही थी कि हजार और पाँच सौ के नोट बंद होने चाहिए । इसके बाद भी जब भ्रष्टाचार नहीं मिटेगा तो आप कहेंगे कि नोट बंद करके रेजगारी ही चला दो । बाबा, आजकल पैसे की कीमत ही क्या रह गई है ? सोचो, तब आप यदि विदेश जाएँगे तो एक टिकट के पैसे देने के लिए आपको कई बोरियाँ भरकर रेजगारी ले जानी पड़ेगी और इतनी धातुएँ भी कहाँ से आएँगी सिक्के बनाने के लिए । हम तो कहते हैं कि अब एक-एक करोड़ के नोट चलाए जाने चाहिएँ जिससे कागज कम खर्च हो, पेड़ कम कटें और धरती का पर्यावरण सुरक्षित रहे । और मान लो हम आपसे ही कह दें कि बाबा, आप ही अपने शिष्यों सहित जाइए और स्विस बैंक से सारा धन एक एक रुपए के सिक्कों में ले आइए । अब आप हिसाब लगाकर हमें बताना कि आप और आपके करोड़ों शिष्य कितने जन्मों में वह धन भारत ले आएँगे ? यह मामला अनंत और सर्वव्यापी ब्रह्म को जानने से कम नहीं है जिसे आज तक कोई नहीं जान पाया ।

आपने पिछले वर्ष कहा था कि यदि प्रदूषण नहीं होता तो आप तीन-चार सौ वर्ष जी सकते थे अन्यथा भी आप डेढ़ सौ वर्ष जिएँगे । आपके पास तो बहुत समय है इस देश की सेवा करने का । हमारा तो जीवन सही-सलामत निकल जाने दीजिए फिर कर लेना यह ‘हठ’-योग । और फिर हमारे ही पीछे क्यों पड़े हुए हैं । फिर आपकी योग शक्ति का क्या ठिकाना ? पहले योगी बिना खाए, बिना पिए, एक टाँग पर खड़े होकर हजारों वर्षों तक साधना करते रहते थे सो साल-दो साल भूखे रह कर भी पता नहीं आपका कुछ बिगड़े या नहीं मगर हमारी तो जान ले ही लेंगे ना । आप कहो तो आपको भारत-रत्न दे दें, राष्ट्र संत घोषित कर दें, योग के लिए हजार दो हजार करोड़ का अनुदान दे दें, जहाँ कहो वहाँ ज़मीन दे दें ।

और फिर आप तो सच्चे योगी हैं । पहले तो योगी उड़ कर कहीं भी चले जाते थे फिर आप क्यों हेलीकोप्टर उड़ा कर प्रदूषण फैलाते हैं । और यदि आप विदेश से काला धन लाने के लिए ही अड़े हुए हैं तो फिर हमारे ही पीछे क्यों पड़े हुए हैं । हमें तो कुछ समझ में आता नहीं । आप ही अपनी योग विद्या से चुपचाप देश में लाकर, जहाँ आपकी मर्जी हो रखवा दीजिए ।

हाँ, जो काला धन आप विदेश से लाएँ उसमें से, देश हित को ध्यान में रखते हुए, ३० प्रतिशत टेक्स प्रणव मुखर्जी जी के पास जमा करवा दीजिएगा ।

२-६-२०११

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach