Mar 31, 2022

आ बहस करें


आ बहस करें


तोताराम ने आते ही कहा- चल मास्टर, बहस करें .

हमने कहा- कुछ काम की बात कर. बहस में क्या रखा है ? लोग अलाव तापते, हुक्का पीते, चबूतरे पर बैठे, चाय  सुड़कते हुए बहस के सिवाय और करते क्या हैं ?  ७५ साल से संसद में सेवक बहस के अलावा और कर क्या रहे हैं. संयुक्तराष्ट्र संघ में सभी देशों के प्रतिनिधि क्या खेती करने जाते हैं ? लेकिन बहस का नतीजा क्या निकला ? वही गरीबी, वही गैरबराबरी, वही बेरोजगारी, वही शोषण, वही युद्ध और लड़ाइयाँ. बहसों से कभी कुछ हुआ है ?

बोला- कुछ न कुछ करना तो पड़ेगा. बहस नहीं तो विचार-विमर्श कर लेते हैं. यदि तेरा स्टेंडर्ड ज्यादा ऊंचा हो गया है तो मंथन कर लेते हैं. 

हमने कहा- हमें पता है सभी बहसों, विमर्शों और मंथनों की असलियत. सभी धर्म कहते हैं- ईश्वर एक है, सभी मनुष्य उसकी संतानें हैं, सभी धर्म उसी की तरफ ले जाते हैं. वास्तव में एक बार विपरीत स्वभाव के पशु-पक्षी भी मिलजुल कर रह लेते हैं लेकिन जहां भी चार धर्म के ठेकेदार मिलते हैं तो सिर फुटौव्वल किये बिना नहीं उठते. कभी मिलजुल कर नहीं रहते.

बोला- सभी उसकी संताने हैं तभी तो लड़ना ज़रूरी, सगे भाई ही तो ज्यादा लड़ते हैं. मौसेरे भाई लड़ते भी है तो या तो दिखावे के लिए और दुबारा गठबंधन की गुंजाइश छोड़कर.

हमने कहा- खैर, बता किस विषय पर बकवास मतलब बहस करनी है ?

बोला- वास्तव में मेरा तो कोई मुद्दा नहीं है लेकिन कल राजस्थान लोकसेवा आयोग के सदस्य रामूराम राइका ने कहा है कि जिन सवालों के एक से अधिक नज़दीकी उत्तर हो सकते हैं उन्हें राजस्थान लोकसेवा आयोग हटाएगा.

हमने कहा- तो फिर समझ ले इस बहस और समस्या का कोई अंत नहीं है. कुछ भी ऐसा नहीं है जिसके एक-दो ही क्या अनेक नज़दीकी उत्तर नहीं होते.  

बोला- हम अध्यापक रह चुके हैं. रिटायर हो चुके तो क्या सरकार पेंशन भी तो देती है. यदि हम कुछ ऐसे प्रश्न तैयार कर दें जिनके एक से अधिक नज़दीकी उत्तर नहीं होते तो भविष्य में राजस्थान लोकसेवा आयोग की परीक्षाएं सफल और पारदर्शी तरीके से हो सकें.

हमने कहा- तो चल कुछ ऐसे तथ्यपरक वाक्य बता जिनके आधार पर ऐसे प्रश्न बनाए जा सकें जिनके एक से अधिक नज़दीकी उत्तर नहीं हो सकते. फिर हम तुझे बताएँगे कि इसके एक से अधिक नज़दीकी उत्तर हो सकते हैं या नहीं ?

तोताराम ने बड़े आत्मविश्वास के एक वाक्य कहा- भारत ने १५ अगस्त १९४७ को स्वतंत्रता हासिल की.

हमने कहा- कंगना के अनुसार भारत ने स्वतंत्रता २६ मई २०१४ को हासिल की जिस दिन नरेन्द्र मोदी जी ने  प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. इस तथ्य को सरकार का मौन समर्थन भी प्राप्त है. १९४७ में जो कुछ था वह हासिल नहीं किया गया था, वह भीख में मिला था. 

तोताराम ने अगला वाक्य कहा- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का नाम योगी आदित्यनाथ है.

हमने कहा- यदि कोई अजयसिंह बिष्ट या 'बुलडोज़र' बताये तो क्या उसे फेल कर दोगे ?

बोला- नहीं.

हमने कहा- तो यह भी नहीं चलेगा.

बोला-  मोहनदास करमचंद गाँधी को किस उपनाम से जाना जाता है ? 

हमने कहा- इसका भी एक उत्तर नहीं हो सकता. वे रवीन्द्रनाथ ठाकुर के अनुसार महात्मा, सुभाष के अनुसार राष्ट्रपिता, अमित शाह के अनुसार चतुर बनिया, चर्चिल के अनुसार नंगा फकीर.

बोला- मोदी जी एक महान पुरुष हैं. 

हमने कहा- नहीं, राम जेठमलानी के अनुसार वे विष्णु के अवतार हैं.

बोला- तो क्या अवतार पुरुष नहीं होते ?

हमने कहा- अवतार तो मछली, कछुआ, सूअर आदि के रूप में भी मिलते हैं.और यदि अवतार को पुरुष मानोगे तो फिर राम और कृष्ण  को भी मनुष्य मानना पड़ेगा. उस स्थिति में तो राम-कृष्ण की राजनीति और मंदिरों का धंधा ही ख़त्म हो जाएगा. कुछ और सोच.

बोला- मुसलमान पश्चिम की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ते हैं.

हमने कहा- स्पेन का मुसलमान पूर्व की ओर मुंह करके नमाज पढ़ता है क्योंकि मक्का स्पेन से पूर्व में है जबकि हमारे यहाँ से पश्चिम में.  

बोला- महात्मा गाँधी देशभक्त थे.

हमने कहा- तो फिर नाथूराम गोडसे जी देशभक्त, थे, हैं और रहेंगे वाले स्टेटमेंट का क्या होगा ? अभी तक भाजपा सरकार ने उसे खारिज नहीं किया है.  

बोला-  रामूराम जी के अनुसार केवल एक ही उत्तर हो सकने वाले प्रश्न बनाने के चक्कर में प्रश्न पत्र ही नहीं बन पायेगा. ऐसे में लगता है राजस्थान लोकसेवा आयोग को या तो सिक्का उछालकर चयन करना पड़ेगा या फिर पदों की खुली नीलामी करनी पड़ेगी. 

 


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Mar 30, 2022

ज़माना बहुत ख़राब है


ज़माना बहुत ख़राब है


आज ठिठुरन कुछ कम है. बरामदे में बैठा जा सकता है, सो बैठे थे. कल की कल देखी जाएगी. अब हम और तोताराम सुपर सीनियर सिटिजन की श्रेणी में आने वाले हैं. करे तो हमें ही कोई राम-राम, श्याम-श्याम करे. हम जिन्हें आगे से चलकर राम-राम करें ऐसे बुज़ुर्ग लोग बहुत कम बचे हैं मोहल्ले में. जो एक दो बचे हैं सड़क पर कम निकलते हैं. संयोग से एक निकले. तोताराम ने उन्हें बड़े अदब से राम-राम की तो उत्तर देने की बजाय बोले- तेरा आधार कार्ड कहाँ है ?

हद हो गई. यह ठीक है कि सरकार ने पेंशनरों को आधार कार्ड के बिना पेंशन बंद हो जाने का डर दिखाकर सारी जानकारियाँ ले लीं और उन्हें जिस तिस को बेच दी. लेकिन 'राम-राम' करने पर भी आधार कार्ड मांगना तो ज्यादती की हद है. यदि ऐसा ही है तो आधार कार्ड को सभी लोगों के माथे पर छाप दिया जाना चाहिए. जैसे पुलिस और सेना में सबके सीने पर उनके नाम की एक छोटी सी प्लेट सी लगी रहती है.जब तक यह देशभक्तिपूर्ण नाटक शुरू हो उससे पहले और कुछ नहीं तो सभी अपने आधार कार्ड के डिटेल्स छपा एक झंडा लेकर चलें जिससे व्यक्ति के नकली होने की संभावना कम से कम रहे और उसकी असलियत दूर से ही पहचानी जा सके. 

हमने पूछा- भाई साहब, 'राम राम' में भी इतना खतरा ?

बोले- मास्टर जी, आपको पता नहीं. ज़माना बहुत खराब है. जाने किस वेश में नारायण मिल जाय और बैंक बेलेंस साफ़ कर जाए.

हमने कहा- ज़माना इतना भी खराब नहीं आया है कि 'राम राम' लेने में भी इतना डर लगे. 

बोले- मास्टर जी, ज़माना कब खराब नहीं था ? यह तो अतीत के गर्व की कुंठा है वरना रामायण, महाभारत और यहाँ तक कि सतयुग में भी भरी सभा में कुलवधू को नंगा करने की, वेश बदलकर सीता के हरण की, सपने के बहाने सत्यवादी हरिश्चंद्र का राज हड़पने की साजिश हमारे गौरवमय अतीत की ही घटनाएँ तो हैं. पता नहीं, कब कोई, किस खुसफुस के बहाने आपके फोन या खाते में कोई पेगासस घुसा दे और विनोद काम्बली के बैंक खाते की तरह आपका बैंक खाता साफ हो जाए. 

तोताराम ने बीच में ही लपक लिया, बोला- विनोद काम्बली तो बेचारा भोला है वरना उसके साथ वाले तो क्रिकेट के भगवान बन गए और वह एक धूमकेतु की तरह कुछ समय चमककर सीन से लुप्त हो गया. क्या किया जाए, देश को विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए सब कुछ डिजिटल करना भी तो ज़रूरी है.

हमने कहा- यदि डिजिटल धोखाघड़ी रोकने की समझ और व्यवस्था नहीं है तो चलने देते वही पुराना तरीका. कम से कम कोई भी के. वाई. सी. के चक्कर में भोले और बुज़ुर्ग लोगों को ठगेगा तो नहीं. कोई भी सुरक्षित नहीं है.अब  तो पता चला है कि पी.एम. ओ. का ट्विट्टर अकाउंट भी हैक हो गया है.

बोला- जो लालची, आलसी और लापरवाह होता है वही ज्यादा ठगा जाता है. नहीं तो क्या किसी को पता नहीं है कि कोई रुपये दुगुना नहीं कर सकता. फिर भी लालच के कारण लोग चक्कर में आ ही जाते हैं.   

हमने कहा- कम से कम इतना तो किया जा सकता है कि आगे से 'माई गुव' के नाम से मोदी जी के 'मन की बात' सुनने का जो मेसेज आता है उसे भी इग्नोर करें. क्या पता, उसे खोलते ही हमारा बैंक बेलेंस साफ हो आये. वैसे  लोग कहाँ तक बचें. अब रास्ते में कोई खाकी वर्दी वाला किसी को पकड़कर पूछताछ करने लग जाए तो क्या कोई उससे पूछेगा कि तू असली पुलिस वाला है या नकली ? मान ले कोई ज्यादा साहस दिखाए और पहचान पत्र मांग ले तो भी क्या गारंटी है कि उसका पहचान पत्र असली ही होगा. जब नोट तक नकली छप सकते हैं तो कुछ भी नकली बनवाया जा सकता है. 

भाई साहब बोले- तभी तो मैं कहता हूँ ज़माना बहुत खराब है. 

हमने कहा- तब तो तोताराम, यह भी असंभव नहीं है कि यू. पी. के चुनावों के बाद सरकार को पता चले कि कोई  बहुरूपिया मोदी जी का वेश धारण करके किसानों से माफ़ी मांगकर उन्हें उल्लू बना गया हो. तीनों कृषि कानून वापिस हुए ही नहीं हों.क्योंकि लोकतंत्र में वेश, वादों और विचारधारा का कहीं कोई रिश्ता नहीं बचा है.   

तोताराम बोला- लेकिन बाद में पुलिस की सक्रियता से काम्बली की एंट्री रिवर्स तो हो गई.

भाई साहब बोले- तो क्या हम लोग काम्बली, सचिन और गांगुली हैं ? 


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Mar 24, 2022

यह केजरीवाल आखिर चाहता क्या है ?


यह केजरीवाल आखिर चाहता क्या  है ?       


आज तोताराम ने आते ही बड़ा आध्यात्मिक प्रश्न उछाला- मास्टर, यह केजरीवाल आखिर चाहता क्या है ? 

हमने कहा- बहुत बार आदमी को ही खुद को पता नहीं होता कि आखिर वह चाहता क्या है ? जो चतुर होते हैं वे यह नहीं बताते कि वे वास्तव में क्या चाहते हैं. कोई पूछता है तो भी आँय बाँय साँय कुछ भी बता देते हैं लेकिन सच नहीं बताते कि आखिर वे चाहते क्या हैं ? तो फिर केजरीवाल ही क्यों बताये कि वह क्या चाहता है ? 

बोला- फिर भी बताने में क्या बुराई है ? 

हमने कहा- जब कोई किसी विशेष उद्देश्य से प्रेरित होकर कुछ करता है तो भले ही वह अपने मुंह से कुछ नहीं कहे फिर भी सब को पता चले बिना नहीं रहता कि यह बन्दा क्यों चक्कर काट रहा था.जैसे अडवानी जी रामनामी ओढ़कर अयोध्या चल पड़े लेकिन बाद में पता चला कि मन में तो राम नहीं थे. २ से २०० हो गए तो पता चला कि बोल कुछ और रहे थे और चाह कुछ और रहे थे. जैसे मोदी जी पहले अडवानी के रथ के सारथी बने 'अयोध्या-अयोध्या.. एक सवारी अयोध्या ... की आवाजें लगाते थे और अब..रथी बरामदे में बैठे हैं और सारथी सिंहासन पर. जैसे रामदेव पहले राजीव दीक्षित को सिर पर उठाये फिरता था, फिर अन्ना के आन्दोलन में घुसा और अब सरकार के स्वास्थ्य मंत्री से मिलकर कोरोना का काढ़ा बेच रहा है. वैसे केजरीवाल भी अन्ना-आन्दोलन से लाभान्वित हुए ही. जीते जी निर्वाण को प्राप्त तो अन्ना और अडवानी हुए. अब कोई नोटिस ही नहीं ले रहा है. 

बोला- अब तो केजरीवाल को शांत बैठ जाना चाहिए लेकिन जाने कहाँ-कहाँ फ्री बिजली-पानी की डुगडुगी बजाता फिर रहा है. 

हमने कहा- एक बार मज़ा आ जाने पर आदमी को पता नहीं चलता कि वह क्या करने आया था ?  वास्तव में चाहता क्या था ? और कर क्या रहा है ? अंत में कबीर वाली हालत हो जाती है- 

आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास.

यह ठीक है कि कबीर जी हरिभजन के लिए आये थे लेकिन जब जुलाहे का पुश्तैनी काम कर रहे थे तो  क्या उन्हें  पता नहीं था कि कपास भी ओटना पड़ेगा. वे तो खड्डी चलाते हुए भी निर्गुण में रम सकते थे तो फिर यह कपास ओटने का रोना क्यों ? 

बोला- जब ईश्वर एक है, समस्त सृष्टि उसी का पसारा है तो फिर यह हिन्दू-मुस्लिम का चक्कर क्या है, भजन-अजान का हल्ला क्या है और दया की बात करने वालों में हलाल और झटका किसने ला पटका ? इनकी शाश्वत  बदमाशियों से निबटने की 'मेंढ़क-तुलाई' कपास ओटना नहीं तो और क्या है ? कबीर को यही कपास ओटनी पड़ीं. मज़े की बात यह है कि जीव वस्त्रहीन ही आता है और वस्त्रहीन ही जाता है. उसे हर वक़्त यह अहसास भी बना रहता है कि दिन में दस ड्रेसें बदलने का 'फेंसी ड्रेस शो' करने के बाद भी कपड़ों के भीतर सभी नंगे हैं. पर यह  केजरीवाल आखिर चाहता क्या है ?

हमने कहा- पता नहीं.

बोला- तो फिर अयोध्या क्यों गया ?

हमने कहा- यही पता चल जाए तो बात ही क्या है ? आदमी की सारी भटकन ही समाप्त ना हो जाए.लेकिन कौन किसे समझाये. योगी जी निर्गुण पंथी हैं जो मूर्तिपूजक नहीं होते फिर सगुण राम की कपास क्यों ओटने लगे ?मोदी जी तो आत्मज्ञान और विश्व कल्याण के लिए हिमालय में चले गए थे फिर यह हिन्दू-मुस्लिम, गाँधी-नेहरू और टोपी-दाढ़ी में कहाँ उलझ गए ?

बोला- यह तो लोकतंत्र की मज़बूरी है. ऐसा किये बिना चुनाव नहीं जीते जा सकते और चुनाव जीते बिना जगत का कल्याण करने का एकाधिकार मिलाना संभव नहीं. इसलिए मोदी जी और योगी जी को गृहत्यागी और सन्यासी होते हुए भी यह पकास ओट रहे हैं.

हमने कहा- तो फिर केजरीवाल के अयोध्या जाने से क्या ऐतराज़ है ? उसे भी ओटने दो राम की कपास. समझ ले  जो मोदी जी चाहते हैं, जो योगी जी चाहते हैं, वही केजरीवाल चाहता है.  

बोला- लेकिन यह क्या 'कॉपीराइट' कानून के उल्लंघन का मामला नहीं बनता ? 



 


 

अरविंद केजरीवाल
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Mar 20, 2022

कौन सी चाय पत्ती है ?


कौन सी चाय पत्ती है ? 


तोताराम से जैसे ही चाय का घूँट लिया, अजीब सा मुंह बनाकर बोला- कौनसी चाय पत्ती है ? 

हमने कहा- क्या मतलब, वही जो तो पिछले साठ साल से पी रहा है. 

बोला- मेरा मतलब है किस कंपनी की ? 

हमने कहा- एम.जी.टी. है.

बोला- क्या 'मोदी जी टी' ?

हमने कहा- हमें क्या पता कि मोदी जी ने चाय पत्ती बेचने का काम भी शुरू कर दिया है. हमें तो उनके कथनानुसार यही पता है कि बडगांव के रेलवे स्टेशन पर तैयार चाय बेचा करते थे. एम.जी.टी. से हमारा मतलब है 'मूल जी टी'.  

बोला- यह कौनसी कंपनी है ?

हमने कहा- चाय, गुटखा, बीड़ी, साबुन, पापड़ आदि के नामों का कोई नियम नहीं होता. क्या बाघ-बकरी, काला- घोडा,लाल घोड़ा का चाय से कोई संबध है ? क्या 'ताजमहल' में चाय उगाई जाती है ? क्या तानसेन गुटखा खाते थे, या गणेश जी और तुलसीदास जी खैनी दबाते थे ?  मोदी जी के काशी में बिकने वाली 'शिव-पार्वती' बीड़ी का बाबा विश्वनाथ से क्या रिश्ता है ?  पान मसाले का नाम मानिकचंद हो सकता है तो गली के कोने वाली मूलचंद की दुकान की खुली चाय का नाम एम.जी.टी. (मूल जी चाय ) क्यों नहीं हो सकता है ?   

बोआ- तभी कुछ अजीब सी गंध आ रही है. 

हमने कहा- तू कोई मंत्री नहीं बना है जो इतने नखरे कर रहा है. कभी रेलवे प्लेट फॉर्म पर चाय पीता है तो पत्ती की कंपनी पूछता है ?  क्या मोदी जी ने कभी बताया कि वे किस कंपनी की चाय पत्ती बापरते थे ? 

बोला- गुजरात की बात अलग है. वहाँ तो इतना चाय मसाला डाल देते हैं कि कुछ पता ही नहीं चलता कि उसमें चाय पत्ती है या लकड़ी का बुरादा. 

हमने कहा- और क्या ? चाय एक विचार है, परंपरा है, संस्कृति है, चर्चा का बहाना है. क्या मोदी जी ने ओबामा को चाय पिलाई उसका ब्रांड किसी को पता है ? क्या अमरीका का राष्ट्रपति कुछ विशिष्ट लोगों को सम्मान देने के लिए वाइट हाउस में चाय के लिए बुलाता तो कोई खास ब्रांड की चाय पीने के लिए बुलाता है ? नहीं, वह तो एक सम्मान है. सो तू इसे अपने लिए एक सम्मान समझ, हमारी उदारता समझ. 

बोला- मैंने तो जब से समाचार पढ़ा है कि डिब्रूगढ़ में मनोहारी गोल्ड नाम की चाय ९९९९९ रु. किलोग्राम के भाव से नीलाम हुई है तब से हर चाय में बदबू आने लगी है. 

हमने कहा- इसीलिए कहा है कि गरीब आदमी को सपने भी अपनी औकात के अनुसार ही देखने चाहियें नहीं तो जीना मुश्किल हो जाता है. सब इतने भाग्यशाली नहीं होते कि बिना ब्रांड की चाय से ९९९९९ रु. किलो की चाय तक छलांग लगा सकें. 

बोला-  बिलकुल. थैंक गॉड इट इज स्टिल लेस देन वन लैक. 

       


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Mar 16, 2022

अनाज, नाज और हरनाज


अनाज, नाज और हरनाज 


आते ही तोताराम ने हमारे सामने अखबार पटकते हुए कहा- नाज है कि नहीं ?

हमने ध्यान से अखबार को देखा कि कहीं भारत को सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता तो नहीं मिल गई, कहीं माल्या, नीरव और चौकसे तो भारत नहीं ले आये गए, कहीं भारत की अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डोलर की तो नहीं हो गई, कहीं मोदी जी ने नैतिकता के आधार पर टेनी से इस्तीफा तो नहीं ले लिया, वैसे उसके संरक्षण में  काम तो अनैतिक ही हुआ है, कहीं भागवत जी ने मुसलमानों को भारत का स्वाभाविक नागरिक तो नहीं मान लिया, कहीं गोडसे को उसकी देशभक्ति के फलस्वरूप भारतरत्न तो नहीं दे दिया गया, कहीं आडवानी जी को राष्ट्रपति तो नहीं बना दिया गया, कहीं अनुराग ठाकुर ने गोली मारने का सांप्रदायिक सद्भाव वाला आदेश वापिस तो नहीं ले लिया, कहीं मोदी जी ने भारत के विनाश के लिए नेहरू-गाँधी और उनके वंशजों को क्षमा तो नहीं कर दिया ? लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था.

हमने कहा- हमें तो इसमें नाज करने जैसा कुछ भी दिखाई नहीं दिया .

बोला- गंगा में डुबकी लगाने के बाद तीसरी विशिष्ट सुनहरी पोशाक धारण किये काशी विश्वनाथ कोरिडोर के मेहराबदार द्वार से प्रवेश करते मोदी जी को देखकर तुझे नाज नहीं होता ?

हमने कहा- अब तो इस प्रकार के नाज रोजाना ही देखते-देखते आदत सी हो गई है. संसद की सीढियों पर माथा टेकते, १५ लाख का सूट पहने, पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा का उदघाटन करते, हाउ डी मोदी में स्वागतित होते, केदारनाथ की गुफा में ध्यान लगाते, ओबामा को चाय पिलाते, जिनपिंग के साथ झूला झूलते, सैंकड़ों करोड़ के निजी प्लेन से डिज़ाईनर छाता ताने उतरते हुए, आधी रात को सेन्ट्रल विष्ठा का निरीक्षण करते, गंगा में डुबकी लगाते हुए, अंगुली पर कमल का निशान बनाए हुए सेल्फी लेते जैसे सैंकड़ों अवसरों पर नाज करते-करते थक गए हैं. आदमी हंसते-मुस्कराते भी थक जाता है. जब सारे दिन हजारों फोटो खिंचते हों तब कब तक फोटोग्रफरीय 'स्माइल'का नाटक किया जा सकता है. अब नाज करने जैसा कुछ नहीं लगता. 

बोला- तो कोई बात नहीं, इसी अखबार के दाहिनी तरफ देख, एक सुंदरी, २१ साल बाद फिर बनी भारत की कोई युवती ब्रह्माण्ड सुंदरी. शीर्षक बनाया गया है- हर को नाज. तो चल इसी पर नाज कर ले. 

हमने कहा- जब भरपूर नाज हो तो नाज हो. अकेले यूपी में ही पंद्रह करोड़ लोगों की यह हालत है कि मोदी जी  और योगी जी के फोटो छपे घटिया अनाज के थैलों के लिए लोग लाइन लगा रहे हैं . विकास के सारे विज्ञापनों के बावजूद यह सिद्ध होता है कि यूपी में १५ करोड़ महागरीब हैं. ऐसे में इस देश का सामान्य आदमी किस पर और क्या 'नाज' करे. वह तो 'अ' नाज है. जहां सबके पास नाज हो मतलब 'धान्य लक्ष्मी' हो तो इस पंजाबी लड़की हरनाज पर ही क्या, पूरे देश पर, अपने देश और जीवन पर नाज होने लगे. 

कुछ लोगों को रात को गहने पहने १६ वर्ष की एक लड़की सुरक्षित घूमती दिखाई देती हो लेकिन वास्तव में बेटियाँ कहीं भी सुरक्षित नहीं है. 'बेटी बचाओ' का नारा कुछ और ही अर्थ देने लगा है. लगता है बेटियाँ बहुत असुरक्षित हैं. चारों तरफ दरिन्दे घूम रहे हैं. ऐसे में किसी भी तरह अपनी अपनी बेटियों को बचाओ. और किसी तरह बच जाएँ तो जैसे हो सके पढाओ. उनकी रक्ताल्पता और कुपोषण की तो बात ही बहुत दूर है.

हम तो चाहते हैं कि हर बेटी सुरक्षित हो, उसे खाने के लिए पर्याप्त नाज मिले. हर बेटी हरनाज बने. २१ वर्ष में कोई  एक भारतीय लड़की विश्व सुंदरी चुनी गई तो इसमें नाज करने की क्या बात है.करोड़ों कुपोषित और डरी हुई लड़कियों को देखो. हर साल कोई न कोई लड़की विश्व सुंदरी बनती ही है. यह किसी देश की महिलाओं के विकास का मापदंड नहीं है. 

बोला-  ला, मेरा अखबार वापिस दे. तेरे जैसे लोगों को ही अटल जी ने एक बार मनहूस कहा था. 

हमने कहा- तोताराम, हम मनहूस नहीं हैं. हमें भी उत्सव, त्यौहार, दीपोत्सव बहुत अच्छे लगते हैं. लेकिन महलों के दीयों से झोंपड़ियों का अँधेरा तो दूर नहीं होता. जब 'हर' 'नाज' करेगा तब हमें अपने आप ही 'नाज' होने लगेगा. जब करोड़ों 'अ' नाज हैं तो क्या 'नाज' करें. 



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Mar 14, 2022

आतंक के उद्गम


आतंक के उद्गम 


ठीक है, बसंत पंचमी भी बीत गई. ऋतु की बात अलग है, उसका फिर भी एक नियम होता है लेकिन मौसम ! नेता, चोर, स्वयंसेवक, चंदा-संग्राहक और आतंक की तरह पता नहीं, कब किधर से प्रकट होकर वार कर दे. 'नारायण की तरह कब, किस रूप में' 'मिल जाए. सो ऋतु तो बसंत की है लेकिन मौसम खराब है. जाते-जाते झपट्टा मार रहा है. बादल घिरे हुए हैं और हवा भी तेज हो रही है.

तोताराम कमरे में बैठा ही चाय पर व्यर्थ की 'चाय-चर्चा' कर रहा है. चर्चाओं से होता क्या है ? साल भर नरेन्द्र तोमर चर्चा ही करते रहे लेकिन अंत में मोदी जी ने अति नाटकीयता अपनाते हुए माफ़ी मांगकर मौसम की तरह सबको चौंका दिया. अब यह बात और है कि किसान आशंकित है कि पता नहीं, कब रूप बदलकर फिर तीन कृषि कानून आ जाएँ. गैस, पेट्रोल उपभोक्ताओं की तरह पांच राज्यों के मतदान के बाद मूल्य-वृद्धि की बिजली गिरने की आशंका से टेंशनित हैं.

तभी गेट पर कुछ हलचल सी हुई. हमने बाहर जाकर देखा तो एक पुरानी-सी साईकिल दीवार के साथ लगाकर खड़ी की हुई थी. हम उन्हीं पाँव लौट आये और तोताराम से पूछा- तोताराम, हमारा तो दिमाग काम कर नहीं रहा है. तुझे यदि याद हो तो पुलिस का नंबर बता. 

बोला- तू क्या कोई माननीय है जो पुलिस तेरी मक्खियाँ उड़ाएगी. अभी तो कंगना, राम-रहीम और कुमार विश्वास की सुरक्षा में व्यस्त होगी. ज़्यादा हाय-तौबा करेगा तो कल तक आ जायेगी लेकिन पहले कोई दुर्घटना या खतरा सिद्ध तो होने दे.

हमने कहा- जब फट जाएगा तो शिकायत करने के लिए जीवित कौन बचेगा. 

बोला- क्या फट जाएगा, कलेजा या कुछ और ?

हमने कहा- बम. 

बोला- तू इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है कि तेरे लिए बम का खर्चा किया जाए. 

हमने कहा- प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या ? हाथ कंगन को आरसी क्या ? गेट के पास एक पुरानी सी साइकल खड़ी है.

बोला- होगी किसी मजदूर की. पास ही कहीं दीवार ले लगा पेशाब कर रहा होगा. यहाँ कौन सार्वजनिक शौचालय या पेशाबघर बने हुए हैं. दीवार की ही ओट है.

हमने कहा- हमें तो याद नहीं था लेकिन जब मोदी जी ने हरदोई की चुनावी जनसभा में साइकिल को आतंकवादियों से जोड़ते हुए कहा है- ‘यहां समाजवादी पार्टी का जो चुनाव सिंबल है, शुरू के जो बम धमाके हुए वो सारे के सारे बम धमाके उन्होंने साइकिल पर रखे हुए थे. मैं हैरान हूं कि साइकिल को उन्होंने क्यों पसंद किया.’ अब साइकिल और आतंकवाद तो ऐसे जुड़ गए जैसे कीचड़ और कमल. 

बोला- पहले जब इनामी आतंकवादियों के फोटो छपते थे तो सभी दाढ़ी वाले होते थे तो क्या हर दाढी वाले को आतंकवादी मान लें ?

हमने कहा- हालांकि यह ठीक नहीं है फिर भी सच पूछे तो तोतारम, हमें दाढ़ी वाले गैर सिख अधिक विश्वसनीय नहीं लगते, विशेषरूप से काली दाढ़ी वाले.

बोला- कुछ वर्षों पहले ट्रेन में मित्रता के बहाने नशीली चाय पिलाकर लूट लेने की घटनाएँ बहुत होने लगी थीं. इसमें कई बार स्टेशन पर चाय बेचने वाले भी मिले हुए रहते थे. अपराधी चाय वाले को सीचित कर देता था कि मैं अमुक डिब्बे में हूँ. चाय वाला वहीँ आकर चाय की आवाज़ लगता. ऐसे में चाय में कोई नशीला पदार्थ मिला होने की संभावना कैसे हो सकती है. हमारे एक मित्र विदेश में जैन धर्म पर व्याख्यान देकर दिल्ली से ट्रेन से जयपुर लौट रहे थे.  जयपुर पहुँच कर ट्रेन की सफाई करने वाले ने जब पुलिस को सूचना दी तो लुट चुके बेहोश मास्टर जी को अस्पताल पहुँचाया गया. 

अब क्या स्टेशन पर चाय बेचने वाले हर आदमी को संदेहास्पद मान लिया जाए. 

हमने कहा- वैसे जब से रावण ने साधु के वेश में सीता का हरण किया तब से हमें तो हर भगवाधारी संदेहास्पद लगने लगा है. मोदी जी को इस पद पर बैठकर इतना साधारणीकरण नहीं करना चाहिए था. 

बोला- जब वोट के लायक गिनाने को कोई काम नहीं हो तो चुनाव जीतने के लिए इसे ही चुटकुलों का सहारा लेना पड़ता है.  



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Mar 11, 2022

मास्टर, योगी जी ने बचा लिया देश को


 मास्टर, योगी जी ने बचा लिया देश को 


हम अपनी पालतू 'कूरो' को सोने से पहले एक बार सड़क पर टहला रहे थे. टहला क्या, दिन की अंतिम लघु शंका के लिए लाये थे. तभी देखा सामने से तोताराम चला आ रहा है. 

तोताराम इस समय ! 

हम कुछ बोलें, उससे पहले ही तोताराम ने गुड़ की एक बड़ी से डली हमारे मुंह में ठूंस दी. 

हमने कहा- यह क्या तमाशा है ? 

बोला- तमाशा नहीं, ख़ुशी है, ख़ुशी. देखने को तो तूने भी समाचार देख लिया होगा. दुःख तो एक बार आदमी झेल भी ले लेकिन ख़ुशी को बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल है. तुझे पता है, आर्केमिडीज़ को जब अपने बाथ टब में नहाते- नहाते गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत समझ में आया तो निर्वस्त्र ही यूरेका यूरेका चिल्लाता हुआ राजमहल की तरफ भाग पड़ा था. 

हमने पूछा- तुझे ऐसा क्या मिल गया ?  और अगर ऐसा कुछ मिल गया है तो फिर तू निर्वस्त्र क्यों नहीं है ?

बोला- मैं सेवकों की तरह इतना साहसी भी नहीं हूँ. और फिर जब समाचार सुना था तब मैं यही पायजामा, कमीज और चप्पलें पहने हुए था. वैसे का वैसा चला आया. 

हमने कहा- जब इतना ही ख़ुशी का समाचार था तो क्या इस गुड़ की डली में ही निबटाएगा ?

बोला- कल तू जो मिठाई, जितनी खायेगा ले आऊंगा. लेकिन समाचार तो पूछ.

हमने कहा- बता.

बोला- अब तक की गणना से योगी जी की सरकार बनना तय हो चुका है.

हमने कहा- तो जनता पांच किलो राशन में बिक गई ? भूल गई गंगा में तिरती लाशें, ऑक्सीजन के अभाव में तड़पते लोग, हाथरस और कन्नौज की घटनाएँ. 

बोला-  सभी शासनों में ये सब तो कमोबेश चलते ही रहते हैं.

हमने कहा- तो अब तैयार हो जा और अधिक नफरती भाषणों के लिए, भयंकर महंगाई के लिए. बेरोजगारी के लिए. गाँव गाँव में बड़ी-बड़ी मूर्तियों और मंदिरों के लिए. जब-तब जगह-जगह लाखों दीयों की दीवाली के लिए. अब तो कभी भी हर वनस्पति, आकाश और इमारतों का रंग भगवा होने वाला है और हर गाँव-शहर का नाम शुद्ध संस्कृत में.  

बोला- महंगाई बेरोजगारी कब नहीं थी. तुझे याद होना चाहिए जब हमारी मास्टरी लगी थी तब घी, बादाम, किशमिश, काजू सब चार रुपए किलो थे और आज चार सौ. तो इसके लिए क्या अकेले मोदी जी ही जिम्मेदार हैं ?उत्सवों से मन बहल रहता है अन्यथा तो इस नश्वर दुनिया में रखा ही क्या है.थोड़ी बहुत महंगाई बढ़ भी जाएगी भी तो कौन सा आसमान टूट पड़ेगा ? धर्म तो बचा रहेगा.

हमने कहा- धर्म पर क्या संकट है ? कौन तुझे मंदिर जाने, व्रत-उपवास करने से, तिलक-छापा करने से रोक रहा है. 

बोला- अगर योगी जी की सरकार नहीं बनती तो यह भी हो जाता.

हमने कहा- अरे, जब पांच-सात सौ साल मुसलमानों का और दो सौ बरस ईसाइयों का शासन रहा तब भी हमारा धर्म संकट में नहीं पड़ा. अब तो लोकतंत्र है. सब अपना-अपना धर्म पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं. 

बोला- ये तो योगी जी समय पर चेत गए अन्यथा तो तैयारी पूरी थी. पहले महाराष्ट्र को चुपके से निबटाया, फिर बिहार में कोशिश की.   

हमने कहा- तोताराम, तू क्या कह रहा है, हमारी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा है. महाराष्ट्र और बिहार में क्या अनर्थ हो गया ?

बोला- भाजपा के अलावा सभी दल राजनीतिक स्वार्थ के लिए हिन्दू धर्म के विनाश में भी संकोच नहीं कर रहे हैं.

हमने कहा- हमें तो ऐसा नहीं लगता. 

बोला- लगता क्यों नहीं. इसी चक्कर में तो महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया. बिहार में भी यही तैयारी थी. वह तो सुशासन बाबू बचा ले गए किसी तरह लेकिन अब तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश से मिलकर साफ़-साफ़ घोषणा कर दी. एक तरह से ही नहीं तरह तरह से. पहले भाग १, फिर भाग २,३,४.  ऐसे में किसी भी तरह से उत्तर प्रदेश को तो बचाना ही था. खैर, मोदी जी तो सब कुछ भूलकर इतना बड़ा डमरू ही बजाते रहे लेकिन सुन ली भोले बाबा ने और बच गया हिन्दू धर्म. 

हमने कहा- तोताराम, अब यह सस्पेंस बर्दाश्त नहीं हो रहा है. पहले तू ख़ुशी से पागल हो रहा था और अब हमारा ब्लड प्रेशर बढ़ा रहा है. 

बोला- वह गाना नहीं सुना ? पहले मनोज वाजपेयी ने महाराष्ट्र में 'काबा', फिर वह लड़की नेहा सिंह बिहार में 'काबा' और अब तो बनारस में आकर ही डिक्लेयर कर रही है यू पी में 'काबा''.

अरे जब राम-कृष्ण और शिव की भूमि ही 'काबा' हो जायेगी तो बचेगा क्या ? 

हमने कहा- तोताराम, वह लड़की तो एक प्रतिभासंपन्न लोक गायिका है जो भोजपुरी बोली में प्रचलित लम्पटतापूर्ण गीतों से इस प्यारी भाषा की रक्षा कर रही है. उसे सही अर्थों में लोकचेतना की अभिव्यक्ति का माध्यम बना रही है. लोक कलाकार जनता की वाणी होता है. उसे सरकार से क्या मतलब ? और किसी धर्म को उससे क्या खतरा ?

कोरोना से लाखन मर गईले

लासन से गंगा भर गईले

टिकठी या कफन नोचे 

कुक्कुर बिलार बा  

ऐ चौकीदार बोलो 

के जिम्मेदार बा

क्या इन पंक्तियों में सत्ता का विरोध है ? नहीं, यह मनुष्य की हृदयहीनता से दुखी एक संवेदनशील आत्मा की गुहार  है. इससे किसी हिन्दू-इस्लाम-क्रिश्चियन धर्म को खतरा नहीं है बल्कि यह मानव धर्म को बचाने की गुहार है.   


   












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नाम में ही सब कुछ रखा है

नाम में ही सब कुछ रखा है 


आज उठने का मन नहीं हुआ, पारा भी शून्य के आसपास मंडरा रहा था, सो रजाई में ही घुसे हुए थे. तभी गेट पर गुहार लगी- प्रधानपुरुषेश्वर है ?

पत्नी रसोई में थी. उसने वहीँ से उत्तर दे दिया- यहाँ इस नाम का कोई नहीं रहता. यहाँ तो मास्टर जी रहते हैं.

उस आवाज़ ने अन्दर प्रवेश करते हुए कहा- मुझे भी पता है यह मास्टर का घर है. मैंने तो आज उसके पर्यायवाची का उपयोग कर लिया तो तुम लोग कन्फ्यूज हो गए. 

हमने कहा- इस नाटक की क्या ज़रूरत है. तुझे कौनसा हिंदू गौरव जागृत करना है ? कौनसा इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करके चुनाव जीतना है. 

बोला- बात चुनाव की नहीं अनुभूति की है. हालांकि तेरा 'रमेश' नाम भी है तो विष्णु का ही पर्यायवाची लेकिन इसका कुछ रुआब नहीं पड़ता. सुरेश, नरेश, दिनेश जैसा सामान्य नाम. और यह 'प्रधानपुरुषेश्वर' नाम ऐसे लगता है जैसे एक ही झटके में  वार्ड पञ्च, विधायक, सांसद आदि सभी योनियों को लांघकर हिंदी के रिटायर्ड मास्टर से सीधा    प्रधानमंत्री बन गया हो- नरेन्द्र. दो ही तो विशेषण है- एक नरेन्द्र और दूसरा ईश्वर.

हमने कहा- शेक्सपीयर ने तो कहा है-व्हाट्स देअर इन नेम ?

बोला- उसे क्या पता ? वह कहीं योरप जैसे पिछड़े देश में चार सौ साल पहले पैदा हुआ था. उसे नाम की महिमा  का क्या पता ? तुझे पता होना चाहिए यम के दूत अजामिल नाम के विपक्षी दुरात्मा के यहाँ ई डी का छापा मारने आये थे. जैसे ही उसने अपने पुत्र को आवाज़ लगाई- 'बेटा, नारायण' ज़रा देखना तो ये कौन लोग आये हैं दरवाजे पर ?  यमदूत समझे यह तो नारायण (जल पर रहने  वाले)  साक्षात् विष्णु का बाप है. बेचारे सॉरी बोलकर वापिस चले गए. सोच यदि उसके बेटे का नाम कलीमुद्दीन होता तो ? दो गालियां ज्यादा मिलती और केस ऐसा बना दिया जाता कि जमानत भी नहीं मिलती. हो सकता है नीरव को अपने सरनेम का कोई एडवांटेज मिल रहा हो. 

हमने कहा- तो क्या हर कोई निट्ठल्ला अंड, बंड,पाखंड के साथ आनंद लगा लेता है तो महात्मा हो जाता है ? या कोई चूहा भी अपनी पूंछा से ज्यादा लम्बी मूंछे रखकर और अपने नाम के बाद 'सिंह' लगाकर बहादुर हो जाता है ?  क्या कोई लफंगा जनसेवक अपने नाम से पहले हृदय सम्राट, लोक हितैषी, करुणावातार, योगी-वियोगी लगाकर गाँधी बन जाता है ? या जो बाप सेना में सिपाही तक नहीं बन पाया वह अपने बेटे का नाम मेजर सिंह रखकर फील्डमार्शल बन जाता है ? अंग्रेजी नहीं आती तो क्या, बेटे का नाम अंग्रेज सिंह रख लो. 

बोला- कुछ तो फर्क पड़ता ही होगा. 

हमने कहा- कोई फर्क नहीं पड़ता. अपने यहाँ तो दमड़ी राम, छदम्मीलाल, घूरेमल नाम के सेठ हो चुके हैं. अशर्फीलाल मनरेगा में काम करते मिल जाते हैं. 

बोला- लेकिन राम, कृष्ण, प्रसाद, लाल, चन्द्र, कुमार आदि मिडिल नेम के बिना स्वर्ग में एंट्री नहीं मिलती. तुझे याद है मध्यप्रदेश में एक हिंदी बाल साहित्यकार, हिन्दू ज़हूरबख्श के नाम से बनी लाइब्रेरी हिन्दू दंगाइयों ने इसलिए जला दी कि यह नाम उन्हें राष्ट्रविरोधी लगा. तुलसी ने राम को 'गरीब नवाज़' कह तो दिया लेकिन कट्टर भक्तों को यह विशेषण अभी तक स्वीकार नहीं हुआ. सत्तर बरस में क्यों कोई मोहम्मद प्रधानमंत्री या सेनाध्यक्ष नहीं बना ? राष्ट्रपति का क्या है, उसे तो प्रधानमंत्री का लिखा भाषण पढ़ना पड़ता है. आदेशानुसार ताली-थाली बजानी पड़ती है. तुझे पता होना चाहिए कि रूस में किसी बच्चे का नाम 'ब्लादीमीर पुतिन' और उत्तरी कोरिया में 'किम जोंग उन' नहीं रख सकते.ये तो ईश्वर की तरह एक ही हो सकते हैं. ऐसे तो कोई भी अपना नाम 'प्रधानमंत्री' या 'भारतरत्न' रख लेगा.  क्या ज़रूरत है बरामदे के निर्देशक मंडल में बैठकर अनंतकाल तक इंतज़ार करने की. 

बीबीसी में काम कर चुके हमारे एक वरिष्ठ परिचित भारतरत्न भार्गव 'भारतरत्न' सम्मान की स्थापना से पहले ही भारतरत्न बन चुके थे. आजकल दृष्टिबाधित बच्चों को अपने गुरुकुल में थियेटर सिखाते हैं. 

हमने कहा-जिसे हम वनराज, मृगराज, सिंह साहब कहते हैं उसे नहीं पता कि उसे जंगल का राजा माना जाता है. उसके साथ कोई कमांडो नहीं चलता, न उसके पास पर्सनल प्लेन है. प्यास लगती है तो खुद ही तालाब पर जाकर पानी पीना पड़ता है. उत्तरांचल का कोई बलवर्द्धक मशरूम चलकर उसकी प्लेट में नहीं जाता. 

बोला- तो क्या, नाम का कोई महत्त्व नहीं होता /

हमने कहा- नहीं. ये नाम तो खुराफात हैं. सब कहते हैं कि ईश्वर, खुदा, गॉड सब एक हैं और सभी उसकी संतान हैं लेकिन सबसे ज्यादा झगड़े उसी 'एक' के नाम पर होते हैं. 

बोला- तो नाम के नाम पर होने वाली इन खुराफातों का क्या इलाज़ है ? 

हमने कहा- मनुष्य के अतिरिक्त सभी जीवों का काम बिना नाम के चल रहा है.  तरह तरह के नाम रखना और नाम को ख़राब करना, 'नाम मात्र' की बात पर मरने मारने पर उतारू हो जाना आदमी का ही काम है.

बोला- तो क्या नाम रखा ही नहीं जाए ?

हमने कहा- रख सकते हो जैसे कम्प्यूटर, लैपटॉप, माउस, सिनेमा आदि.

बोला- ये तो क्रिश्चियन नाम है.

हमने कहा- गणक, गोदी गणक,मूषक,चलचित्र रख लोगे तो फिर संस्कृत-उर्दू; हिन्दू-मुसलमान शुरू हो जाएगा,

बोला- यह तो बड़ी मुश्किल हो गई. तुलसी ने तो कहा है- कलियुग केवल 'नाम' अधारा. 

हमने कहा- तो सब समस्याओं का इलाज 'आधार कार्ड' है ना. उसका नंबर ही सबका नाम बना दो. वैसे तोताराम, हम नाम की यह बकवास कर क्यों रहे हैं ?

बोला- बात यह है कि गुजरात के भावनगर में नीता बेन ने अपने कुत्ते का नाम 'सोनू' रख लिया. उसके पडोसी का नाम भी सोनू है. इसलिए सोनू ने गुस्सा होकर अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर नीताबेन को जिंदा जला दिया.

हमने कहा- तोताराम, जो जितना छोटा होता है उसका अहंकार उतना ही बड़ा होता है. हमारे यहाँ तो फिल्मों, कहानियों में नौकर का नाम प्रायः 'रामू' होता है, उसे डांटा भी जाता है तो कभी घर के बुज़ुर्ग की तरह सम्मान भी दिया जाता है लेकिन 'रामू' को कोई फर्क नहीं पड़ता. लोग अपने कुत्ते का नाम प्रायः 'मोती' रख लेते हैं तो क्या नेहरू परिवार के लोग दंगा करवा दें या कोर्ट चले जाएँ कि हमारे बाबा-पड़बाबा मोतीलाल नेहरू का अपमान हो गया. 

ज़बरदस्ती किसी खास धर्म के लोगों को पीट-पीटकर 'जय श्री राम' बुलवाने वाले इसे नहीं समझ सकते. 




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Mar 4, 2022

गंगा शरणम गच्छामि


गंगा शरणम गच्छामि 


आज तोताराम बहुत चिंतित था, बोला- मास्टर, लोग मोदी जी के मरने की कामना कर रहे हैं. 

हमने कहा- यह कोई नई बात नहीं है. अवतारी पुरुषों का जीवन कभी सुरक्षित नहीं रहा. राम, कृष्ण, बुद्ध,सुकरात, ईसा, गाँधी आदि सभी ने जीवन भर कष्ट ही उठाये हैं. बेचारे गाँधी को तो एक खांटी हिन्दू ने ही निबटा दिया. अब तक लोग उनके पुतले को गोली मारकर अपनी राष्ट्रभक्ति का सबूत दे रहे हैं. बहुत से प्रज्ञावान तो गाँधी की देशभक्ति पर ही प्रश्न उठा रहे हैं. 

शगुन शास्त्र में तो यह कहा जाता है कि जिसके मरने की खबर उड़ा दी जाती है या स्वप्न में जिसकी मौत देखो वह और दीर्घायु हो जाता है. 

वैसे कौन है वह दुरात्मा, विकास-विरोधी, देशद्रोही जो मोदी जी के मरने की कामना कर रहा है ? तुझे यह गुप्त और सनसनीखेज खबर कहाँ से मिली ?

बोला- २७ फरवरी को बनारस में कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में मोदी जी ने खुद ही बताया कि १३ दिसंबर २०२१ को जब मैं काशी विश्वनाथ कोरिडोर का उदघाटन करने आया था तब अखिलेश के एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था- "यह अच्छी बात है।मोदी जी को सिर्फ एक महीना ही क्यों, दो या तीन महीने वहीं रुकना चाहिए। वह रुकने के लिए अच्छी जगह है। अंत समय में लोग बनारस में ही रहना पसंद करते हैं।

अब बता यह मोदी जी के मरने की कामना नहीं तो और क्या है ? अभी क्या वे इतने बूढ़े हो गए जो गंगा के किनारे बैठकर मौत का इंतज़ार करें. अभी तो भारत को विश्वगुरु, विकसित, आत्मनिर्भर, सोने की चिड़िया और कांग्रेस मुक्त बनाना है. यह कोई निर्देशक मंडल में शामिल होकर गंगा किनारे बैठने का समय थोड़े हैं.अब यह बात और है कि उनके बिना गंगा मैय्या का मन नहीं लगता तो बार बार बुला लेती हैं. 

हमने कहा- तोताराम, चिंता की कोई बात नहीं है. कहावत भी है-

मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है

वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है.

ग़ालिब भी कहता है-

मौत का एक दिन मुअय्यन है 

नींद क्यों रात भर नहीं आती. 

मोदी जी को टेंशन नहीं लेना चाहिए. अपने राजस्थान में भी तो कहावत है- गीदड़ों की हाय से कभी ऊंट नहीं मरते .

बोला- मोदी जी चिंतित नहीं है. वे तो आज भी गाँधी जी की तरह पांच ही मिनट में गहरी नींद में चले जाते हैं.

हमने कहा- तोताराम, मोदी जी ने कहा है,अगर काशी की सेवा करते करते मेरी मृत्यु लिखी होगी तो इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा. 

बोला- यह बात तो है. कहते हैं काशी में मौत सौभाग्यशाली को ही मिलती है. गुजरात में तो कहावत ही है- 

सूरत नो जमण आने काशी नो मरण. मोदी जी वास्तव में भाग्यशाली हैं जिन्हें माँ गंगा ने खुद बुलाया. पहले बहुत से राजा और सेठ लोग अंतिम समय निकट जानकर गंगा के तट पर काशीवास करने लग जाते थे जिससे वहाँ देह त्याग कर सुनिश्चित स्वर्गारोहण कर सकें. आज भी वहाँ उनके घाट, आवास और धर्मशालाएं हैं.

क्या ख्याल है, मिल जाए तो प्रधानमंत्री आवास योजना में बनारस में कोई वन-रूम फ्लेट ले लें और गंगा किनारे देहत्याग करके स्वर्ग में पहुंचकर ऐश करें. 

हमने कहा- जिसे यहाँ स्वर्ग हैं उसे वहाँ भी स्वर्ग है.गरीब को तो स्वर्ग में भी कोई न कोई देवता बेगार के लिए पकड़ लेगा. सभी धर्म आदमी को यहाँ तो शांति से जीने नहीं देते लेकिन आश्चर्यजनक रूप से सभी ऊपर सातवें आसमान में कहीं स्थित स्वर्ग का सपना ज़रूर दिखाते हैं.

तभी मैथिलीशरण गुप्त के राम कहते हैं- 

मैं  यहाँ संदेशा नहीं स्वर्ग का लाया 

इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया 

शैलेन्द्र भी कहता है- 

तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत पर यकीन कर

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर 

बोला- जिनकी किस्मत में गंगा तट पर देहत्याग नहीं लिखा होता वे ऐसी नास्तिक बातें करते हैं. कबीर का जन्म हुआ गंगा किनारे बनारस में लेकिन मौत लिखी थी मगहर में सो चेलों के मना करने पर भी अंतिम दिनों में चला गया मगहर जहां मरने पर किसी को भी मोक्ष नहीं मिलती. 

हमने कहा- ऐसा नहीं है, तोताराम. कर्म की बजाय कर्मकांडों में स्वर्ग खोजने वाले पाखंडियों के लिए कबीर का जानबूझकर काशी को छोड़कर मगहर चले जाना एक बहुत बड़ा चेलेंज है. क्या कोई कबीर जैसा साहस कर सकता है ?सुन कबीर को, क्या कहता है-

जो कासी तन तजै कबीरा, रामहि कौन निहोरा.

 


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Mar 2, 2022

मन का आपा खोय


मन का आपा खोय 


आज तोताराम और पत्नी का चाय लेकर कमरे में आना एक साथ हुआ. तोताराम के कंधे पर एक थैला लटका हुआ था. चाय लेते हुए बोला- टांग दूँ ?

हमने कहा-  यह कैसी भाषा है ? यह ठीक है कि इस समय देश में आतंक और धमकी की भाषा ही अधिक चल रही है. कोई भी कभी भी किसी को भी पाकिस्तान जाने की धमकी दे देता है,कोई भी चुना हुआ जनता का सेवक सीधे-सीधे ठोकने और एनकाउन्टर का अल्टीमेटम दे देता,  सुधरने का संकेत देता है और दो दिन बाद उसकी जीप नहीं सुधरने वालों पर चढ़ कर उनको सुधार देती है,

बोला- लेकिन टांग देने में क्या बुराई है ? इसमें भाषा का क्या पतन है ? 'टांगना है' तो पूछ लिया  'टांग दूँ' ?  टांगने के लिए और क्या कहूँ ?

हमने कहा- क्या तुझे इतना भी याद नहीं कि पिछले दिनों में कई बार मध्यप्रदेश के अतिउत्साही मुख्यमंत्री जी ने अपनी सक्षम और सुधारात्मक कार्यशैली में 'गाड़ दूंगा', 'लटका दूंगा' जैसे प्रेमपूर्ण इरादों का संकेत दिया है. पता नहीं, फांसी और गाड़ने का सामान गेंती-फावड़ा साथ ही लिए चलते हैं क्या ?

और अब उन्हीं की लोकतांत्रिक सोच का अनुकरण करते हुए ग्वालियर के कलेक्टर कौशलेन्द्र सिंह जी ने सरकारी कर्मचारियों को यथासमय टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त करने के बारे में बोलते हुए कहा-लोगों के खेतों में जाओ, घरों में धरना दो, उनके पैर पड़ो, मगर टार्गेट पूरा करो. पूरा न होने की स्थति में  'टांग देने' का विकल्प दिया है. पढ़ा नहीं, समाचार था- कलेक्टर ने आपा खोया. हरियाणा में भी एक कलेक्टर ने पुलिसको किसानों का सिर फोड़ने की नेक सलाह दी थी. 

बोला- शब्दों पर मत जा. अर्थ और व्यंजना को ग्रहण कर.नीयत पहचान. मैं तो तुझे साहित्य का जानकर समझता था लेकिन सब व्यर्थ.मुख्यमंत्री जी और कलेक्टर की कर्तव्यपरायणता को समझ.
 
हमने कहा- हाँ, ठीक वैसे ही जैसे मोदी जी के किसानों के प्रति प्रेम को गलत समझा गया. 

बोला- और क्या ? अगर बच्चा एक तरह से दवा नहीं लेता तो इसी और तरह से दी जाती है. तो अब यू पी के चुनावों के बाद फिर किसानों के कल्याण का लक्ष्य किसी और तरह से पूरा किया जाएगा. लेकिन कल्याण से कोई नहीं बच सकता. 

हमने कहा- ठीक उसी तरह से जैसे मरे हुओं, कुम्भ में नहीं गए लोगों का भी कुम्भ में कागजों में टीकाकरण हो गया. 

बोला- तो प्रभु, यदि मेरे इस थैला टांगने का अनर्थ समझ में आ गया हो तो यह थैला इस खूँटी पर टांग कर चाय पी लूँ ?
  
हमने कहा- ठीक है, इसमें क्या पूछना है ? यहाँ तुझे सर्वाधिकार हैं. टांग या टंग .हमारा तो यही कहना है कि विशिष्ट लोगों को चाहे वे मुख्यमंत्री हों या कलेक्टर भाषा में अपना 'आपा' नहीं खोना चाहिए.

बोला- 'आपा' खोने में क्या बुराई है ? हमारे तो मनीषियों ने भी कहा है- 

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय 

सो शालीन और अनुशासित पार्टी के नेता और उनसे  प्रेरणा लेने वाले अधिकारी अगर  'आपा'  खोते हैं  तो बुरा क्या है ?  वे तो महान परंपरा को ही निभा रहे हैं.



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