Dec 26, 2017

लोकतंत्र का ब्ल्यू व्हेल गेम



 लोकतंत्र का ब्ल्यू व्हेल गेम 

आजकल एक खेल चला है- ब्ल्यू व्हेल चेलेंज गेम |बच्चे चेलेंज के चक्कर में अपनी जानें गँवा रहे हैं |सरकारें, अभिभावक, अध्यापक उन्हें इससे बचाने के लिए चिंता कर रहे हैं |हमने अपने कम्प्यूटर पर खूब सर्च कर लिया लेकिन यह गेम नहीं मिला |उत्सुकता थी कि आखिर यह गेम है क्या ? हमें ऐसे खेलों के कोई डर नहीं लगता क्योंकि हम किसी चेलेंज के चक्कर में नहीं पड़ते | हमने कभी तिलक महाराज की तरह चेलेंज नहीं दिया कि स्वतंत्रता मेरा अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा, या गाँधी जी तरह अंग्रेजों को भारत छोड़ने का चेलेंज नहीं दिया, न इंदिरा जी की तरह गरीबी हटाने का चेलेंज फेंका और न ही मोदी जी की तरह कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने का संकल्प लिया |

आज जैसे ही तोताराम आया तो हमने पूछा- तोताराम, यह ब्ल्यू व्हेल गेम क्या है ?

बोला- मुझे भी कोई ख़ास पता नहीं लेकिन मोदी जी से पूछा जा सकता है |

हमने कहा- मोदी जी को क्या पता ? उन्हें तो विकास से ही फुर्सत नहीं है |

बोला- यह तो ठीक है कि उन्हें विकास से फुर्सत नहीं फिर भी वे बहुत स्मार्ट हैं और किसी भी युवा से अधिक टेक्नोसेवी हैं | फेसबुक, ट्विटर आदि जानें किस-किस पर सक्रिय हैं जब कि मनमोहन जी और प्रणव दा को मोबाइल पर मेसेज करना तक नहीं आता |वे ब्ल्यू व्हेल गेम के बारे में ज़रूर जानते हैं तभी तो गुजरात के चुनाव-प्रचार के दौरान पाटन में एक रैली में उन्होंने कहा है कि कांग्रेस ब्ल्यू व्हेल गेम में फँस गई और वह १८ दिसंबर को अंतिम एपिसोड खेलेगी | 

हमने कहा- इसका मतलब कांग्रेस १८ दिसंबर को आत्महत्या कर लेगी |

बोला- मोदी जी के स्टेटमेंट का तो यही मतलब लगता है |

हमने कहा- जब यह खेल खतरनाक है |बच्चों को इससे बचाने की कोशिशें की जाती हैं तो मोदी जी को चाहिए कि कांग्रेस को चेताते |

बोला- क्यों चेताते ? वे तो पहले ही भारत को कांग्रेस-मुक्त बनाने का संकल्प कर चुके हैं |तूने वह कहावत नहीं सुनी कि खसम मरे का धोखा नहीं, सपना सच्चा होना चाहिए |

हमने कहा- लेकिन कांग्रेस कोई व्यक्ति नहीं है |कांग्रेस एक पार्टी है जिसका इतिहास और योगदान मिटाया नहीं जा सकता |नहीं सही उसके पास भाजपा जितने राज्यों में सत्ता, लेकिन उसके पीछे भी करोड़ों लोग हैं |आज भी कांग्रेस का मतलब करोड़ों भारतवासी है |यदि देश के करोड़ों लोग किसी गलत दिशा में जा रहे हैं तो देश का प्रधान सेवक होने और सबसे पहले एक सच्चा, देशभक्त भारतीय होने के नाते उनका फ़र्ज़ बनता है कि वे देश और कांग्रेस को बताएँ कि वह क्या गलत कर रही है और उसे क्या करना चाहिए |और वे हैं कि मज़े ले रहे हैं कि कब १८ दिसंबर आए, कांग्रेस अंतिम एपिसोड देखे, आत्महत्या करे और उनका सपना पूरा हो |

बोला- मोदी जी को इतना ओछा न समझ |उनकी प्रतीकात्मक शैली को समझ |

हमने कहा- तो फिर क्या प्रतीक है ? कैसे कांग्रेस आत्महत्या की तरफ बढ़ रही है ?

बोला- हो सकता है कि राहुल को सोमनाथ मंदिर में गैरहिंदू की लिस्ट में डालकर, उन्हें शिवभक्त और जनेऊ के फंदे में फँसाकर वे कांग्रेस के नीचे से धर्मनिरपेक्षता की दरी खींचकर उसे अपनी धर्म की राजनीति के अखाड़े में लाना चाहते हों |ऐसा होने पर वे उसे बहुत अच्छे से परास्त कर सकते हैं क्योंकि धर्म की राजनीति में भाजपा का कोई ज़वाब नहीं |

हमने कहा- तोताराम, भारत में रहने वाला धर्म से अलग रह ही नहीं सकता |इतने धर्मों वाले देश को न तो आप नास्तिक बना सकते हैं और न ही एक धर्म वाला |उसके लिए तो सब धर्मों से ऊपर उठकर, सब के कल्याण की नीति ही काम करेगी |

यदि मोदी जी चुनाव जीतने के लिए देश के लोकतंत्र को किसी ब्ल्यू व्हेल के आत्मघाती  खेल में फँसते देखकर खुश हो रहे हैं तो यह बहुत खतरनाक बात होगी |सत्ता तो किसी को भी, कभी भी मिल सकती है और किसी के भी हाथ से भी जा सकती है लेकिन इस देश की यह बुनावट बड़े जतन से बनती |एक बार बिगड़ने पर पता नहीं, कब और कैसे सुधरेगी ? धर्म की राजनीति में चक्कर में दुनिया अभी क्या कम परेशान हो रही है ?

हमारा विश्वास है कि मोदी जी का ऐसा इरादा नहीं होगा |

तोताराम ने दोनों हाथ ऊपर उठाकर कहा- आमीन !  





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Dec 20, 2017

 मोदी जी का पौष बड़ा 

आज बड़ी पोती का जन्म दिन है |किसी महान व्यक्ति का जन्म दिन होता तो कोई न कोई 'दिवस' घोषित हो गया होता |वैसे आज के दिन को भी एक दिवस माना जा सकता है क्योंकि कई मायनों में यह विशिष्ट बन गया है |एक गुजरात में चुनाव प्रचार थम गया है, दूसरा मोदी जी संसद पर हमले की बरसी पर दिल्ली आने का समय निकाल पाए, तीसरा राहुल ने अडवाणी जी को मार्ग दिखाते हुए स्वागत किया, चौथा साल का पहला कोहरा पड़ा और पाँचवाँ आज पत्नी ने बिना आग्रह के पौष बड़ा मनाने की घोषणा की |

कोहरे के कारण बरामदे में नहीं  बैठे |रजाई में बैठे थे |तोताराम भी हमारे पैताने रजाई में पैर घुसाकर बैठ गया | हमने कहा- तोताराम, भले ही मोदी जी देश के विकास के नाम पर हम बुज़ुर्ग लोगों से रेल किराये की २०-२५%रियायत छीनना चाहते हैं, अच्छे दिन जुलमा सिद्ध हो चुका है, सातवें पे कमीशन को जेतली जी पचा ही गए हैं फिर भी भाग्य में थोड़ा बहुत दम बचा लगता है |

बोला- भ्राताश्री, इस आशावाद का कारण स्पष्ट करके मेरे रोमांच को शांत करने का कष्ट करें |

हमने कहा- देववाणी में नहीं सामान्य मनुष्यवाणी में बात कर और सुन, आज तेरी भाभी ने अपने आप ही पौष बड़ा महोत्सव की घोषणा कर दी और मुझे विश्वास है कि यह मोदी जी के जुमलों की तरह नहीं होगा |  

तभी पत्नी प्रकट हुई, बोली- बिलकुल नहीं |लेकिन हाँ, बड़े बनाए ज़रूर मोदी जी की पसंद के अनुसार हैं |

तोताराम उछला- क्या बात है भाभी | नहीं सही पे कमीशन; न सही गुजरात के गरीब के उस बेटे जैसा जलवा और ड्रेस स्टेटमेंट; कम से कम उसकी पसंद के पौष बड़े तो हैं |
हम दोनों ने पत्नी द्वारा बनाए गए, मोदी जी की पसंद के पौष बड़े मुँह में रखे |हम दोनों का रिएक्शन एक जैसा था |

तोताराम ने मुँह बनाते हुए कहा- भाभी, लगता है आज घर में एक साथ नमक, मिर्च और तेल सब निबट गए हैं |

पत्नी बोली- ऐसी बात नहीं है लेकिन चूँकि मोदी जी ने पहले नमक छोड़ा, फिर मिर्च और उसके बाद तेल भी छोड़ दिया |सो इनमें दाल के अलावा कुछ नहीं है |

हमने कहा- भागवान, हमें सरकार का एक सामान्य सेवानिवृत्त सेवक रहने दे; मोदी जी की तरह देश का प्रधान सेवक मत बना |हो सकता है मोदी जी को गृहत्याग के बाद कुछ भी खाकर देश-सेवा करने की आदत बन गई हो लेकिन हमारे लिए इन्हें खा सकना संभव नहीं है |वैसे मोदी जी के बारे में ये विचित्र तथ्य तुम्हें बताए किसने ?

बोली- हमने तो मोदी जी के शासन के तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में २६ मई २०१७ के अखबार में पढ़ा था |कोई एंडी मरीनो द्वारा मोदी जी पर लिखित 'नरेन्द्र मोदी : अ पोलिटिकल बायोग्राफी' से उद्धृत किया गया था | 

हमने कहा- तुमने अपने फायदे के हिसाब के सब छाँट लिया |मोदी जी १५ लाख रु.का सूट , ५० हजार रु. की मेवाडो घड़ी, १६ हजार रु. का माब्लांक का पेन, और बुल्गरी का साढ़े तेरह हजार रु. का चश्मा पहनते हैं और तुम हमें जोटर बाल पेन खरीदने से भी मना करती हो | कहती हो- महान साहित्य पेन के बल पर नहीं, अकल से लिखा जाता है |

तोताराम बोला- तुम मोदी जी का क्या खाकर मुकाबला करोगे ? वे तो ८०-८० हजार रु. के पाँच मशरूम रोज खाते हैं |इसीलिए इतने गोरे हो गए हैं |

पत्नी ने मोदी जी का पक्ष लेते हुए कहा- ये सब अफवाहें हैं | एक गरीब के बेटे का मजाक उड़ाने का गुजरात के युवा नेता अल्पेश ठाकोर का दुस्साहस है |लेकिन मोदी जी काम में व्यस्त रहने वाले व्यक्ति हैं इसलिए कांग्रेस के आरोपों की तरह इसका भी बुरा नहीं मानेंगे |

वैसे दुनिया में मोदी जी का एक अलग ही रुतबा है |ओबामा जी ने कहा था- सोच रहा हूँ मोदी-कुरता पहन लूँ |और सिंजो आबे ने तो उनका कुरता ही नहीं पायजामा और जैकेट भी पहन लिए |रुतबे से बिना खाए-पिए भी आदमी के चेहरे पर रौनक आ जाती है |तुम्हारे भाई साहब जो घुटनों पर हाथ रखकर उठते हैं, यदि इनके लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा हो जाए तो दो दिन में शशि थरूर तरह जुल्फें झटकते दौड़ने लग जाएँगे |


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Dec 15, 2017



महापुरुषों को क्लीन चिट

आज तोताराम ने आते ही कहा- देखा, न्याय के घर देर है, अंधेर नहीं |

हमने कहा- ऐसे न्याय को सिर पर रखकर नाचें क्या जो मुद्दई के मरने के बाद फैसला दे |खेती सूखने के बाद वर्षा का क्या अर्थ ?  का बरखा जन कृषी सुखानी |यशवंत सिन्हा जी ने भी अपने बेटे के जी.एस.टी. के बाद में अच्छे परिणाम मिलने वाले वक्तव्य पर कहा था- तब तक तो हम मर जाएँगे |बाद मरने के मेरे उनका सलाम आया तो क्या ?

बोला- न्याय तो न्याय है |और दंड भी दंड है |ये सब जब भी कार्यान्वित हों, अच्छा ही है |रावण ने जब जो किया उसका दंड उसे उस समय मिल गया |फिर भी हर साल उसका पुतला जलाया जाता है |यदि अब अदालत फैसला दे दे कि रावण ने कुछ गलत नहीं किया तो उसका पुतला जलाने पर प्रतिबन्ध लग सकता है |

हमने पूछा- तो क्या अदालत ने रावण के पक्ष में फैसला दे दिया  ?

बोला- रावण तो नहीं लेकिन राम, लक्ष्मण, बुद्ध, तुलसीदास और मोदी जी के पक्ष में ज़रूर फैसला दे दिया है |

हमने कहा- क्या बात कर रहा है ? ये सब तो हमारे देश के वे महान पुरुष हैं जिन पर हम गर्व करते हैं |जिन्हें हम देवता का दर्ज़ा देते हैं |इन पर क्या आरोप हैं जो इन्हें अदालत की क्लीन चिट की ज़रूरत आ पड़ी ?और जहाँ तक मोदी जी बात है तो उन्हें क्या कोई क्या खाकर क्लीन चिट देगा ? वे तो खुद ही सारी दुनिया को क्लीन या डर्टी चिट देने की स्थिति में हैं | वे जो कहें वही सत्य है |

बोला- जब से साहित्य में भक्ति काल समाप्त हुआ है तब से लोग किसी न किसी विमर्श में चक्कर में महापुरुषों में गलतियाँ निकालते रहते हैं |जिसका भी मन हुआ पूछने लगता है- राम ने सीता को क्यों त्याग दिया ? वनवास तो राम को हुआ था फिर लक्ष्मण उनके साथ क्यों गए ? यदि गए तो राम की तरह अपनी पत्नी को साथ क्यों नहीं ले गए ? सिद्धार्थ क्यों अपनी पत्नी यशोधरा को बिना बताए, गुपचुप रात में खिसक लिए ? तुलसीदास जी को भक्ति और कविता करनी थी तो पत्नी को क्यों त्यागा ? और अब तो इनके बहाने से मोदी जी को भी लपेट रहे हैं |कहते हैं जब देश-सेवा ही करनी थी तो शादी क्यों की ?क्या गाँधी की तरह पत्नी के साथ रहते हुए देश सेवा नहीं की जा सकती थी ?

हमने कहा- चलो; सीता, उर्मिला, यशोधरा के साथ तो रोटी-पानी की समस्या नहीं थी लेकिन तुलसीदास की पत्नी रत्नावली और मोदी जी की पत्नी जसोदा बेन ने तो वास्तव में ही कठिन परिस्थितियों में जीवनयापन किया होगा ?

बोला- जिसने चोंच दी है वह चुग्गा भी देता है |पोजिटिव सोच |जब सिर पर जिम्मेदारी आती है तो अबला का भी सशक्तीकरण हो जाता है |वैसे यदि ये महापुरुष इन छोटी-छोटी बातों के बारे में ही सोचते रहते तो देश-दुनिया के दुःख-दर्द कैसे दूर होते ? रावण अब तक तो अपहरण के चक्कर में दण्डकारण्य से दिल्ली तक पहुँच गया होता |बुद्ध के बिना सत्य-अहिंसा का सिद्धांत दुनिया को कौन देता ?

पिछले २५-३० वर्षों से गठबंधन की सरकारें बनती आ रही थीं |किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल रहा था |कांग्रेस देश को गड्ढे में डाले जा रही थी, देश का विकास अवरुद्ध हो गया था |यदि मोदी जी भी गृहस्थी के इस बंधन में चिपके रहते और देश सेवा के लिए पत्नी को त्यागकर घर से नहीं निकलते तो कौन देश को विकास के रास्ते पर ले जाता ? कौन बुलेट ट्रेन लाता ? कौन जी.एस.टी.के रूप में देश में दूसरी आजादी लाता |हर बार वही १५ अगस्त |नोटबंदी नहीं होती तो वे ही 'सोनम गुप्ता बेवफा है' वाले पुराने नोट लिए फिरते |

हमने कहा- तो क्या इन महान पुरुषों के त्याग और बलिदान से औरतें सुरक्षित हो गई हैं ? अमरीका से आसाम तक कहीं सत्य-अहिंसा के दर्शन हो रहे हैं ? क्या अर्थव्यवस्था सुधर गई ? और जहाँ तक तेरी जी.एस.टी. का सवाल है तो भले ही मोदी जी इसे 'गुड एंड सिंपल टेक्स' कहें लेकिन आई. आई. टी. और एम. बी.ए. करके कई फाइनेंस कंपनियों में काम कर चुके चेतन भगत को ही जब जी.एस.टी. समझ में नहीं आई तो इन महानताओं का क्या अचार डालें ?

तोताराम ने कहा- जब सर्वोच्च न्यायालय ने कह दिया है कि अदालतें पत्नी को साथ रखने के लिए पति को मज़बूर नहीं कर सकतीं तो फिर सारा चेप्टर ही क्लोज़ |अब यदि तुझमें हिम्मत है तो तू भी देश सेवा के लिए या फिर साहित्य सेवा के लिए भाभी से दूर रह सकता है |लेकिन याद रख, ये सब केवल कानून के मामले मात्र नहीं हैं |ऐसे कामों में लिए भी बड़ी हिम्मत की ज़रूरत होती है |

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Dec 5, 2017

सवेरे-सवेरे : शुभ-शुभ

 सवेरे सवेरे : शुभ शुभ 

विकास के मामले में हमारा सीकर भी पीछे नहीं है इसलिए यहाँ के मौसम विशेषज्ञों ने  पाँच सात दिन पहले बताया था कि दिल्ली वाला स्मोग कुछ-कुछ यहाँ भी आ गया है |फिर भी हम सकारात्मक सोच वाले हैं सो अच्छे दिनों के आगमन की तरह आशा लगाए हुए हैं कि स्वच्छ भारत की समस्त गन्दगी और ब्रांडेड राष्ट्रीय योगियों के खींच लेने के बाद भी सीकर की हवा में ज़रूर कुछ न कुछ आक्सीजन बची हुई अवश्य होगी |इसलिए सुबह-सुबह तोताराम के साथ घूमने के लिए निकल जाते हैं क्योंकि मोदी जी ने सातवें वेतन आयोग के अनुसार केंद्रीय विद्यालय के सेवानिवृत्त कर्मचारियों का बढ़ा हुआ मेडिकल भत्ता हज़म कर लिया है इसलिए अब घूमकर ही बुढ़ापे और बीमारियों से लड़ने का सहारा बचा है |

जो समय हमारे घूमने का होता है वही भारतीय गृहणियों का घर और बर्तनों की सफाई का होता है |लेकिनआज भी उनमें इतनी अक्ल और सभ्यता बची हुई है कि वे कूड़ा और बर्तन माँजने के बाद पानी इधर-उधर देखकर ही फेंकती हैं |सो आज तक कोई हादसा नहीं हुआ |लेकिन वाहन वालों में इतनी सभ्यता और धैर्य कहाँ ? वे तो 'विकास' की तरह पगलाए हुए हैं |न अपनी जान की फ़िक्र, न किसी और की जान की परवाह |और गली की स्थति यह है कि जहाँ पानी होना चाहिए वहाँ तो कई-कई दिन तक दिखता नहीं और जहाँ नहीं रुकना चाहिए वहाँ से निकलता नहीं |सो हुआ यूँ कि वीर-जाति के, नए-नए जीप चालक बने एक युवा ने ऐसे ही सड़क पर बने एक जल-संग्रहण केंद्र, जिसे लोक भाषा में गड्ढा कहते हैं, में से होते हुए अपनी जीप दौड़ा दी |

वही हुआ जो होना था |गड्ढे में का कीचड़, न चाहते हुए भी मोबाइल पर आने वाले अवांच्छित मेसेजों, टी.वी. के विज्ञापनों और नेताओं  के जनता के न चाहने पर भी रेडियो पर 'अपनी बात' की तरह हमारे पूरे पायजामे को अभिषिक्त कर गया |सड़क के किनारे चाय की दुकान पर बैठे दो सज्जन तो किसी दुर्घटना की आशंका से हमारे पास दौड़ भी आए |हमें सुरक्षित देखकर बोले- कोई बात नहीं मास्टर जी, पायजामे का क्या है धुल जाएगा |जान बची | सड़क से ज़रा दूर हटकर ही चला करें |सड़क जनता के लिए थोड़े है |और फिर विकसियाये हुए नेता, पगलाए कुत्ते और जीप वाले युवा का कोई ठिकाना नहीं |

तोताराम बोला- कोई बात नहीं |विकास और लोकतंत्र में यह सब होता ही रहता है |जैसे विकास से प्रदूषण फैलता है वैसे ही लोकतंत्र की गतिशीलता से कीचड़ भी उछलता ही है |मोदी जी ने तो पहले २५ अक्टूबर २०१५ को वैशाली,बिहार में और  अब भुज ,गुजरात में २७ नवम्बर २०१७ को कहा ही है कि जितना कीचड़ फेंका जाएगा उतना ही अधिक कमल खिलेगा |हालाँकि २०१५ में बिहार में कमल नहीं खिला लेकिन कमल जब भी खिलेगा, खिलेगा कीचड़ में ही |सो जैसे ही बिहार में भी किसी तरह से महत्त्वाकांक्षा के कीचड़ की व्यवस्था हुई तो कमल खिल ही गया |

कीचड़ में उगने के बावजूद कमल शुचिता का प्रतीक है |कमल पर लक्ष्मी विराजती है |इसलिए अपने पायजामे के इस प्रकार कीचड़ाभिषिक्त होने से दुःखी मत हो |यह तो सुबह-सुबह बहुत शुभ हुआ है | जितना भी और जैसा भी कीचड़ नौसिखिये राहुल गाँधी मोदी जी पर उछाल पा रहे हैं उसके भरोसे ही तो मोदी जी गुजरात में चुनाव जीतने की आशा लगाए हुए हैं |तू भी इस कीचड़ के भरोसे आशा कर सकता है कि शायद सातवाँ पे कमीशन मिल जाए |

हमने कहा- जब कीचड़ के भरोसे ही चुनाव जीता जा सकता है तो मोदी जी क्यों राहुल के गैर हिन्दू और उनकी दादी के फोटो पर गलत केप्शन लगवाकर छपवाने जैसी हरकतों का कीचड़ उछलकर राहुल की जीत का रास्ता खोल रहे हैं |

बोला- कीचड़ तो दूसरे उछालते हैं |मोदी जी को तो विकास से ही फुर्सत नहीं है |और लोग हैं कि गुजरात के एक गरीब के बेटे को नोटबंदी, जी.एस.टी. द्वारा किए गए  विकास का दंड देने पर तुले हुए हैं |


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Nov 26, 2017



 हरियाणा क्षेत्रे : कुरुक्षेत्रे


( पिछले दिनों कुरुक्षेत्र की यात्रा करके आए थे सो उसी सन्दर्भ में चौटाला जी को पत्र |अब खट्टर जी ने फिर गीता और कुरुक्षेत्र की चर्चा छेड़ दी इसलिए पताका हमारे साथ पुराणी यादें ताज़ा करें )

भाई चौटाला जी,
राम-राम । यह विश्व हिन्दू परिषद या भारतीय जनता पार्टी वाला राम नहीं है और न ही गाँधी या कबीर वाला राम है । यह तो बस अपना 'हैलो' वाला देसी राम है । पिछले महीने १२ मई को  एक शादी में शामिल होने के लिए चंडीगढ़ गए थे । वैसे भी हरियाणा हमारी ननिहाल हैं सो कभी न कभी जाना पड़ता ही है । हालाँकि हरियाणा में शांतिप्रिय लोगों के दो प्रमुख क्षेत्र हैं- पानीपत और कुरुक्षेत्र, पर हमें इन्हें देखने का सौभाग्य नहीं मिला था | कुरुक्षेत्र चंडीगढ़ के रास्ते में ही है सो अवसर मिल ही गया |

पानीपत में तीन निर्णायक लड़ाइयाँ लड़ी गईं । इतिहास के  विद्यार्थी जानते हैं कि इन लडाइयों ने भारतीय संस्कृति और इतिहास की दिशा ही बदल दी । पर महाभारत की बात ही कुछ और है । यह मारकाट का महाकुम्भ है, अस्त्र-शास्त्र प्रतियोगिता का ओलम्पिक है, वैमनस्य का विश्व-कप है । लोकतंत्र में जैसे धन का दुरुपयोग और प्रेम का पराभव होता है और सारी व्यवस्था गड़बड़ा जाती है वैसे ही महाभारत के बाद देश की दुर्दशा हो गई । ऐसी दुर्दशा कि फिर उबर ही नहीं पाया । महाभारत में इस उपमहाद्वीप और आसपास के युद्ध-प्रेमी शुद्ध युद्ध-भाव से एकत्रित हुए और वीर गति को प्राप्त हुए । उन्हें तो लड़ना था चाहे किसी की तरफ़ से लड़ते जैसे इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट में किसी भी देश का क्रिकेट खिलाड़ी किसी भी टीम की तरफ़ से खेल लेता है ।

नकुल, सहदेव के मामा शल्य इस टूर्नामेंट में भाग लेने आ रहे थे तो दुयोधन ने रास्ते में उनके खाने-पीने और रहने-सहने की इतनी अच्छी व्यवस्था की कि वे उसी की तरफ़ से लड़ने के लिए तैयार हो गए । हमें लगता है कि दुर्योधन ने उन्हें सस्ते में ही पटा लिया । कहाँ द्वारिका और कहाँ कुरुक्षेत्र, पर कृष्ण को भी इस में भाग लेना था वरना अर्जुन और दुर्योधन दोनों को मना कर सकते थे । कृष्ण अर्जुन के ममेरे भाई थे, शकुनी कौरवों और शल्य नकुल, सहदेव में मामा थे । लगता है कि कुरुक्षेत्र मामाओं का एक मनोरंजक आयोजन था । हरियाणा हमारी ननिहाल है सो सभी हमें भांजे वाला स्नेह देते हैं इसलिए जब भी भिवानी जाते हैं तो बिना किसी विवाद में फँसे ही लौट आने में भलाई समझते हैं ।

कुरुक्षेत्र में बिरला मंदिर में हमारे मामाजी का लड़का पुजारी है सो चंडीगढ़ से पहले उसी के पास रुके और अच्छी तरह से कुरुक्षेत्र देखा । सुनते आए थे कि कुरुक्षेत्र की मिट्टी अठारह अक्षौहिणी सेनाओं के रक्त से अभी तक लाल है पर ऐसा कुछ नहीं दिखा । वैसे तो कुरुक्षेत्र एक प्राचीन स्थान है पर वहाँ कोई भी वस्तु, मूर्ति और मन्दिर प्राचीन नहीं दिखाई दिया । जहाँ महाभारत जैसा युद्ध हुआ हो वहाँ किसी भी चीज़ का बचना कैसे संभव हो सकता है ?  कुरुक्षेत्र में महाभारत पेनोरमा और साइंस म्यूजियम हैं पर वहाँ कुछ भी समझाने वाला कोई भी गाइड नहीं है । यही हाल पेनोरमा का है । कहीं भी ध्वनि-प्रभाव में गीता-महाभारत के श्लोक नहीं हैं । बस, यहाँ-वहाँ थोड़ी सी आह,ओह करके युद्ध का प्रभाव पैदा करने की कोशिश की गई है । टिकट है दस रुपये ।

जैसे ही टिकट लेकर अन्दर घुसे बिजली चली गई । एक व्यक्ति ने बताया कि जेनेरेटर लगाया है धीरे-धीरे रोशनी होगी । भई , बिजली तो अपनी तेजी के लिए प्रसिद्ध है पर यहाँ धीरे-धीरे क्यों ? साढ़े पाँच बजे पेनोरमा बंद होने का समय है पर भाई लोगों ने सवा पाँच बजे ही 'निकलो-निकलो' की आवाजें लगाना शुरू कर दिया । नीम अँधेरे में जैसा दिखाई दिया देख-दाखकर आ गए । वैसे भी महाभारत में क्या देखना ? लोकतांत्रिक महाभारत से ही फुर्सत नहीं मिलती । एक ही थैली के चट्टे-बट्टे अर्थात 'कजिन ब्रदर' वर्ष के अंत में होनेवाले लोकतांत्रिक महाभारत के लिए अभी से अपने-अपने रथ और यात्राएँ लेकर कुरुक्षेत्र के लिए चल पड़े हैं ।

फिर चंडीगढ़ देखा । एक शहर और तीन-तीन दर्जे । पंजाब की राजधानी-चंडीगढ़, हरियाणा की राजधानी- चंडीगढ़, केन्द्रशासित राज्य चंडीगढ़ । चौथा नेकचंद का राक गार्डन वाला चंडीगढ़ । भले आदमी ने कबाड़ से एक अद्भुत सृजन किया है जहाँ प्रेमियों के लिए प्रायोगिक परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए अनेक एकांत कोने हैं । पर कई ऐसे भी होते हैं जो अच्छी-भली चीज का कबाड़ बना देते हैं । महाभारत में और क्या हुआ था ।

स्थान का प्रभाव भी कुछ होता है । अब आपने किसानों के मसीहा देवीलाल जी की प्रतिमाएँ जगह-जगह लगवाईं । कोई सपूत होता है तो लगवाता है । पर पता नहीं, क्यों लोगों के पेट में दर्द हो रहा है । अरे भई, तुम्हारा नंबर आए तो तुम भी लगवा लेना अपने-अपने बापों की मूर्तियाँ । अभी तो सभी सड़कों-चौराहों पर मूर्तियाँ लग भी नहीं पाईं हैं कि कहने लगे हैं कि जब मैं मुख्यमंत्री बनूँगा तो सारी मूर्तियाँ हटवा दूँगा । अरे, लगवाने का खर्चा लगा सो लगा अब तुम हटवाने का खर्चा और करोगे । छोड़ो यह महाभारत, कभी तो किसी जनोपयोगी काम का नंबर आने दो ।

लौटते समय भिवानी में किसी ममेरे भाई ने सीट हथिया ली | लगा, अभी महाभारत की भूमि में ही हैं । जहाँ महाभारत की संभावनाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं । खैर, किसी तरह ननिहाल-यात्रा का चक्रव्यूह बेधन करके तेरह घंटे की यात्रा के बाद सीकर पहुँचे । बेहद थके हुए थे इसलिए बिना इधर-उधर घर के लिए आटो पकड़ लिया ।

१७-६-२००४
  

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Nov 8, 2017

हैपी नोटबंदी जेतली जी

हैप्पी नोटबंदी, जेतली जी

जेतली जी
हैप्पी नोटबंदी | कुछ लोग नोटबंदी के इस पावन दिन को  भी 'काला-दिवस' के रूप में मना रहे हैं |क्या किया जाए, कुछ लोग मातम के मसीहा होते हैं |वे किसी भी स्थिति में में दुखी होने का कोई न कोई बहाना निकाल ही लेते हैं |

दार्शनिक कहते हैं जीवन एक उत्सव है |आदमी को हर हाल में खुश रहना चाहिए, मस्ती में मस्त रहना चाहिए चाहे बस्ती में आग ही क्यों न लगी हुई हो |हमारी संस्कृति में तो शव-यात्रा तक को एक विशिष्ट फंक्शन बना देते हैं |बनारस में श्मशान में ही इस यात्रा में जाने वालों को रसगुल्ले और रबड़ी खिलाए जाते हैं |खाते-पीते रहने से गम कम व्यापता  है |इसीलिए ज्ञानी लोग ख़ुशी और ग़म दोनों सेलेब्रेट करते हैं |

हो सकता है, कुछ लोगों को नोटबंदी से कष्ट हुआ होगा | हमें,आपको और मोदी जी जैसे सच्चे औरअच्छे लोगों को कोई कष्ट नहीं हुआ |जो काला धंधा करने वाले, आतंकवादी, रिश्वतखोर लोग थे उन्हें तो कष्ट होना ही था |उन्हीं को तो सीधा करने के लिए यह अभूतपूर्व और लोकहितकारी कदम उठाया गया था |

हम तो लोक-कल्याण के इस पावन दिन को आपके साथ मनाने के लिए दिल्ली आने वाले थे लेकिन नहीं आ सके |बात यह है कि कुछ तो उम्र बढ़ने से दवा का खर्चा बढ़ गया है और कुछ जी.एस.टी. में चक्कर में चीजों के दाम बढ़ गए हैं |नियमित सेवा वाले स्टाफ को तो सातवें पे कमीशन के अनुसार वेतन दे दिया लेकिन राष्ट्र हित और देश के द्रुत विकास के लिए संसाधन जुटाने के लिए हम रिटायर्ड लोगों को पे कमीशन नहीं दिया |तीन चार हजार रुपए पेंशन में बढ़ने वाले थे सो नहीं बढे |

वैसे हमें कोई शिकायत नहीं है |लोग तो राष्ट्रहित में अपने प्राणों का बलिदान तक दे देते हैं |हमसे तो आपने सातवें पे कमीशन के एरियर और फिक्सेशन का ही बलिदान लिया है |गीता सार में कहा भी जाता है-
'क्या ले के आए थे और क्या लेकर जाएँगे' | जिन प्रभावशाली लोगों के ऊपर वाले स्विस बैंक में खाता है, उनकी बात और है |हमसे तो यहाँ के पेंशन खाते में मिनिमम बेलेंस ही मुश्किल से मेंटेन होता है |

लोग कह सकते हैं कि नोटबंदी का क्या उत्सव मनाना ? क्यों भई, क्या शादी की वर्षगाँठ नहीं मनाते ? किसी मृतात्मा का श्राद्ध नहीं करते ? हर क्षण जीव मृत्यु की और बढ़ता जा रहा लेकिन फिर भी उसका जन्म दिन मनाते हैं |पर मीरा जैसी निराशावादी कवियत्री कहती है-
बढ़त पल-पल, घटत छिन-छिन
जात न लागे बार |

गाँधी जी ने अपनी आत्मकथा में अपनी कमियों का अपनी अच्छाइयों से अधिक बखान किया है |हिंदी के प्रसिद्ध लेखक बाबू गुलाब राय ने तो 'मेरी असफलताएं' नाम से एक पूरी पुस्तक ही लिख मारी |सभी के जीवन में सफ़लताएँ-असफलताएँ होती ही हैं |न तो उनसे घबराना चाहिए और न ही उन्हें छुपाना चाहिए |हर काम में कुछ गुण-दोष छुपे हुए होते हैं इसलिए हम प्रत्येक दिन और उत्सव को अपना और अपने कामों का मूल्यांकन करने का दिन बना सकते हैं |हमारा तो मानना है कि आदमी को अपने पिटने की भी वार्षिकी मनानी चाहिए |इससे आदमी को अपनी सहनशक्ति की याद बनी रहती है |क्षमताओं का विश्वास बना रहे |

कुछ लोग कहते हैं कि नोटबंदी के कारण अर्थ व्यवस्था में धीमापन आ गया |पता नहीं, उन्हें क्यों देश में बढ़ रहे अरबपतियों की संख्या, नित नई ऊँचाइयों पर चढ़ता हुआ सेंसेक्स और सौ करोड़ मोबाइल उपभोक्ता दिखाई नहीं देते ?

सभी तो मंत्री और बड़े आदमी होते नहीं कि नोटों को छुए बिना ही सारे काम हो जाएँ |सामान्य लोग जाने कैसे-कैसे धूल-मिट्टी और पसीने से सने हाथों से नोटों को छूते हैं | ऐसे में नोटों के गंदे होने और यहाँ तक कि काले होने की भी संभावना बढ़ जाती है |ऐसे में नोटों को बार-बार बदलते रहना चाहिए |स्वच्छ भारत अभियान की तरह नोटों की स्वच्छता के लिए इतना भगीरथ प्रयत्न आज तक किसी भी भारतीय नेता ने नहीं किया |और तो और अमरीका के इतिहास में भी कोई ऐसा राष्ट्रपति नहीं हुआ जो ऐसा साहसी और लोकहितकारी  कदम उठा सकता |आप सब जिन्होंने भी यह सत्कर्म किया है, वे बधाई के पात्र हैं |

सारे नोट पुनः बैंकों में आकर सफ़ेद और नए हो गए हैं , बधाई |

हमें तो महिने में दो-चार दिन के लिए ही सही, नोट छूने का अवसर मिलता है तो नए-नए और करारे नोट छूकर देश के विकास और 'नए भारत' की अनुभूति होती है |

इस सन्दर्भ में एक निवेदन है कि नोटबंदी के कारण कालेधन वालों, रिश्वतखोरों, देशद्रोहियों, आतंकवादियों और भ्रष्ट लोगों की कमर टूट गई है |ये देश में जगह-जगह रास्तों में घिसटते फिर रहे हैं | हो सके तो इन दुष्टों को पूर्णतः समाप्त करने और सड़क की सफाई के लिए फिर नोटबंदी का एक और राउंड हो जाए |

क्या ख्याल है ?


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Nov 4, 2017

विकासवाद बनाम परिवारवाद



 विकासवाद बनाम परिवारवाद  

जैसे ही हम बरामदे में पहुँचे, हमें देखते ही तोताराम बोला- बता कौन जीतेगा ? विकासवाद या परिवारवाद ? 

हमने कहा- विकास तो एक प्रक्रिया है जो निरंतर चलती रहती है |दिन-रात, प्रतिपल |यह प्रकृति का नियम है | विकास तो सूर्योदय, सूर्यास्त, ऋतु परिवर्तन की तरह स्वयमेव होता रहता है |डार्विन ने भी कुछ बनाया थोड़े ही था |उसने तो प्रकृति के इस परिवर्तन को विकासवाद के सिद्धात के नाम से परिभाषित मात्र किया था |और जहाँ तक परिवार की बात है तो उसमें भी क्या बुराई है ? वह भी विकासवाद की तरह सृष्टि में समानता और परिवेश से स्वतः बन जाता है जैसे एक ही परिवार या प्रजाति के फल, पशु-पक्षी आदि, एक नस्ल के मनुष्य |वैसे भी जो जीव-जंतु, वनस्पति एक ही स्थान या क्षेत्र में होते हैं तो वे एक ही परिवार के अंग जैसे हो जाते हैं |इसलिए हमारे अनुसार तो ये दोनों एक ही भाव के स्वरूप हैं |दोनों ही निर्बाध, निर्वैर और सहयोग से रहें |इसी में सृष्टि का कल्याण है |

बोला- एक छोटा-सा और सरल-सा प्रश्न किया था और तूने ज़वाब देने की बजाय 'मन की बात' की तरह झाड़ दिया दर्शन और अध्यात्म | मैं डार्विन के विकासवाद और जीवों के परिवार की बात नहीं कर रहा हूँ |मैं तो गुजरात के चुनाव में मोदी जी के विकासवाद और राहुल के परिवारवाद की बात कर रहा हूँ |मोदी जी के अनुसार वे खुद विकासवाद के समर्थक हैं और राहुल गाँधी परिवारवाद के |अब बता इनमें से कौन जीतेगा ?


हमने कहा- यदि यही कला आती तो हम क्रिकेट का सट्टा नहीं लगाने लग जाते ? चुनाव के एक्जिट पोल का धंधा नहीं कर लेते ? नेताओं, व्यापारियों और अभिनेताओं के व्यक्तिगत ज्योतिषी नहीं बन जाते ? अरे, यही तो एक चीज है जो कोई नहीं जानता |यदि आदमी भविष्य को ही जान लेता तो फिर जीवन में रोमांच ही क्या रह जाता ? 

हम भविष्य तो नहीं बता सकते लेकिन यह ज़रूर बता सकते हैं कि विकासवाद और परिवारवाद में कोई भेद नहीं है | परिवार भी विकास का एक स्वरुप है |जो परिवार का नहीं हो सका वह अपना और देश-समाज का क्या विकास करेगा ?

क्या कांग्रेस ने कुछ नहीं किया ? क्या जिस नींव पर मोदी जी विकास का पिरामिड खड़ा करने का स्वप्न दिखा रहे हैं वह कांग्रेस की रखी हुई नहीं है ? जिस देश में आजादी के समय लिखने के होल्डर का निब नहीं बनता था वहाँ विमान बनाने के कारखानों का स्वप्न नेहरु जी ने नहीं देखा था ? क्या जिन बैंक खातों का हल्ला मचाया जा रहा है उनमें आम आदमी के प्रवेश की नींव इंदिरा गाँधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके नहीं रखी थी ? क्या जिस आई.टी.क्षेत्र में भारत का ज़िक्र करते मोदी जी नहीं थकते उसकी शुरुआत राजीव गाँधी ने नहीं की थी ?क्या जिस आधार कार्ड पर मोदी जी सारे सुधार करने का दावा कर रहे हैं वह मनमोहन जी की योजना नहीं थी ? 

बोला- ठीक है लेकिन मोदी जी का कोई परिवार नहीं है |जो था उसे भी मानवता के कल्याण के लिए सिद्धार्थ की तरह त्याग नहीं दिया ?

हमने कहा- उनका 'संघ परिवार' नहीं है क्या ? 

बोला- यह परिवारवाद नहीं, वसुधैव कुटुम्बकम का महान चिंतन है | 

हमने कहा- फिर इसमें मुसलमान, ईसाई और दलित फिट क्यों नहीं हो रहे हैं ? जो नोटबंदी और जी.एस.टी. के क्रन्तिकारी कदम उठाए उन्हें देश अभी तक भुगत रहा है |जहाँ तक विकास की बात है तो अभी तक योजनाओं के नामों, बैंक खातों, जुमलों, नारों, विभिन्न योजनाओं के फॉर्म भरवाने का काम ही चल रहा है |

बोला- लेकिन तुझे मोदी जी के विकासवाद की तीव्रगति को तो मानना ही पड़ेगा कि जहाँ डार्विन के विकासवाद में लाखों वर्षों में राम-राम करके आदमी की पूँछ मात्र झड़ पाई वहाँ मोदी जी ने तीन साल में ही बन्दरों को शाखाओं से उतारकर विश्वविद्यालयों के कुलपति के काबिल बना दिया |

हमने कहा-सुना नहीं, स्पीड थ्रिल्स बट किल्स |


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Nov 2, 2017

जी.एस.टी. का जूता



 जी.एस.टी.का जूता 

आज तोताराम एक बड़ा-सा गत्ते का डिब्बा लिए हाज़िर हुआ |हिंदी फिल्मों में जब नायिका घर से भागती है तो एक बड़ा-सा सूटकेस हिलाती हुई मज़े से स्टेशन पहुँच जाती है क्योंकि वह वास्तव में खाली होता है |तोताराम की चाल से भी यही सिद्ध हो रहा था |लेकिन बंद डिब्बा तो बंद डिब्बा ही होता है |जब तक कुछ साफ़ दिखाई न दे तब तक उत्सुकता बनी ही रहती है जैसे घूँघट निकाले नायिका के प्रति |

हमने पूछा- इसमें क्या है ? तो बोला- पता नहीं, लेकिन प्रधान मंत्री ने भेजा है |हो सकता है सातवें पे कमीशन के बारे में कुछ हो |

हमने उसके हाथ से डिब्बा लेते हुए कहा- जल्दी खोल |

बरामदे में रखते हुए देखा कि उसके एक तरफ लिखा था- प्रेषक, कौशल विकास मंत्री, धर्मेन्द्र प्रधान, मध्य प्रदेश |

हमने कहा- क्यों हमें उल्लू बना रहा है |यह प्रधान मंत्री नहीं, धर्मेन्द्र प्रधान की तरफ से आया |


बोला- यही तो कौशल विकास है | मंत्री हैं और प्रधान भी तो 'प्रधान मंत्री' हुए कि नहीं ? और सब 'शोक' दूर करने वाले 'अशोक'  हैं और कुशलता से कौशल का विकास करने वाले भी |अब कमी क्या रह गई ?

हमने कहा- कुछ भी हो, जल्दी खोल |

खोलते ही डिब्बे में से एक बड़ा-सा जूता निकलकर गिर पड़ा |
जिस पर टैग लगा था- जी.एस.टी. का जूता |यह तीन दिन तक काटता है लेकिन चौथे दिन सब ठीक हो जाता है |

हमने कहा- तोताराम, बात कुछ समझ में नहीं आई |

बोला- इसमें समझ में न आने जैसा क्या है ?यह उदारीकरण के युग का आविष्कार है जिसका ड्राइंग बनाया मनमोहन सिंह जी ने, सीया जेतली जी ने और पहना मोदी जी ने और काटेगा तुझे-हमें |तीन दिन की कोई गारंटी नहीं है, तीन महिने और तीन साल भी काट सकता है |और फिर स्पष्ट बहुमत मिल गया तो २०२४ तक भी काट सकता है |इसकी विशेषता यह भी है कि यह न तो बनाने वाले को काटता है और न ही बेचने वाले को |यह सिर्फ उपभोक्ता को ही काटता है |

हमने कहा- लेकिन इसे तुम्हारे पास भेजने का क्या मतलब है ? हम कौनसे व्यापारी हैं ? हमें कौनसा जी.एस.टी. चुकाना है ? हमें तो जो व्यापारी माँग ले, चुपचाप दे देना है 'नए भारत' के नाम पर |जब २३० रुपए एम.आर.पी. लिखी चीज दुकानदार १६०/-रुपए में देता है तो तू और तेरे मोदी जी इस बेईमानी का गणित क्या समझ पाएँगे ? 

बोला- इसका मतलब प्रतीकात्मक है |हम जो अभी तक सातवें पे कमीशन के लिए मातम मन रहे हैं तो हमारे लिए भी इसके द्वारा एक प्रतीकात्मक संकेत है कि पे  कमीशन से हमारी जितनी पेंशन बढ़ सकती थी, समझ ले सरकार ने उतनी जी.एस.टी. के जूते के नाम पर काट ली |हिसाब-किताब बराबर |

हमारे लिए तो जी.एस.टी. का यही देशी चमरौधे वाला जूता है |वैसे एक जूता वह होता है जिसमें सत्ता की दाल बँटती है और एक जूता चाँदी का भी होता है लेकिन वह अपने लिए नहीं,  'परिवार' वालों के लिए है |




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Oct 19, 2017

तीन पीढ़ी, तीन साल और तीन महिने का हिसाब



 तीन पीढ़ी, तीन साल और तीन महिने का हिसाब 

परसों ९ अक्टूबर २०१७ को तोताराम ने हमसे प्रतिज्ञा करवाई थी कि जब तक चोर- लुटेरे और भ्रष्टाचारी मोदी जी के खिलाफ लामबंद होकर षड्यंत्र कर रहे हैं और जब तक मोदी जी अपने गृहनगर के हाटकेश्वर महादेव की कृपा से उन दुष्टों का विनाश नहीं कर देते तब तक भले ही हम आर्थिक तंगी झेल लें, दवा-दारू में कमी कर लें लेकिन सातवें पे कमीशन के बारे में चूँ तक नहीं करेंगे |

भले ही सरकारें अपने वादों को जुमला बताकर हमें धोखा दे दें लेकिन हम तोताराम को दिए वचन से नहीं फिरेंगे |

हम तो वचन से बँधे हुए हैं लेकिन नेता पर तो किसी भी प्रकार का नैतिक-अनैतिक बंधन नहीं होता | वह तो जन-हित और आत्मा की आवाज़ के नाम पर गटर में उतरकर गंगा में निकल सकता है |हमारा जीवन वैसे भी ज्यादा हिसाब-किताब वाला नहीं रहा | हिंदी के मास्टर |ट्रांसफर भी हुआ तो 'नो ड्यूज' में लाइब्रेरी की किताबों के अलावा कुछ नहीं होता था |न लैब, न कोई परचेजिंग कमिटी का रुपए पैसे वाला काम | उधार हमें किसी ने दिया नहीं और हमारी हैसियत भी इस लायक नहीं रही कि कोई उधार माँगने की हिम्मत कर सके |तनख्वाह जितनी मिलती, पत्नी को दे देते |वह जैसे भी होता काम चला लेती |सब कुछ सीमित और सरल, न हिसाब,ना किताब |यहीं सब कुछ लुटाना है |

आजकल हिसाब-किताब का मौसम है जैसे दिवाली पर पुराने खाते पटाकर नए खाते शुरू करते हैं |तभी कुछ दिनों से नेहरू-गाँधी परिवार से तीन पीढ़ियों का हिसाब माँगा जा रहा है और राहुल द्वारा अमित-मोदी गठबंधन से तीन साल का हिसाब माँग रहे हैं || 

आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- आजकल बहुत ज़ोरों से हिसाब-किताब चल रहा है |

बोला- फिर वही हिसाब-किताब वाली बात |अरे, छोड़ इस तृष्णा को |तुझे कहा नहीं था कि मोदी जी को शांति से देश का विकास करने दे |राम-राम करके स्वतंत्रता के बाद कोई विकास के प्रति प्रतिबद्ध होकर संकल्प से सिद्धि के लिए रात-दिन एक किए हुए है और एक तू है कि अपने दो पैसों के लिए बन्दे की तपस्या भंग करने पर तुला हुआ है |
हमने कहा- तोताराम, हम तो वैसे ही आजकल जो चल रहा है उसकी तनिक सी चर्चा कर रहे हैं | हम तुम्हें दिए वचन से थोड़े ही फिर रहे हैं |

बोला- तो फिर बता, क्या बात है ?

हमने कहा- अमित जी ने अमेठी में कहा है कि अमेठी की जनता ने कांग्रेस  के शाहजादे राहुल गाँधी की तीन पीढ़ियों को वोट दिया | अब अमेठी की जनता तीन पीढ़ी का हिसाब माँग रही है |

बोला- उत्तर देने से पहले मैं कुछ तथ्यात्मक गलतियाँ ठीक करना चाहता हूँ |तुझे पता होना चाहिए कि अमरीका में जब कोई कंपनी किसी से कोई क़र्ज़ वसूल नहीं कर पाती  तो वह उस कर्ज को सस्ते में किसी को बेच देती है |कंपनी को कुछ न कुछ मिल जाता है |आगे उस क़र्ज़ को खरीदने वाले की ताकत पर निर्भर होता है कि वह कितना वसूल कर पाता है |ऐसे ही जब कोई जेबकतरा किसी शिकार की जेब नहीं काट पाता तो वह  उस शिकार को उस रूट के किसी अन्य जेबकतरे को बेच देता है |तो क्या अमेठी की जनता ने इस हिसाब-किताब का ठेका अमित जी को दे दिया है ? वैसे यह सच है कि अमित जी 'शाह' हैं और उन्हें येन केन प्रकारेण क़र्ज़ वसूलने का अनुभव अवश्य रहा है |'शाहों' के पास बहियाँ भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आती हैं |लेकिन क्या यह उचित है कि उनके परदादा, दादी और पिता का क़र्ज़ उनसे वसूला जाए ? राहुल खुद तो आज तक किसी पद पर रहे नहीं |

दूसरी बात- राहुल 'गाँधी' हो सकते हैं लेकिन  'शाहजादे' नहीं क्योंकि राजीव 'शाह' नहीं 'गाँधी' थे |भारत की सरनेम परंपरा के अनुसार 'शाहजादे' तो जय 'शाह' ही हो सकते हैं क्योंकि वे अमित 'शाह' के पुत्र हैं |

हमने कहा- लेकिन हिसाब करने में क्या बुराई है ? हिसाब पाई-पाई का बख्शीश लाख  की |हिसाब तो बाप-बेटे का भी होता है |लेकिन इन राजनीति वाले लोगों का हिसाब-किताब बड़ा गन्दा और उलझा हुआ होता है |सबका चोरों वाला हिसाब है |आपस में लड़ेंगे लेकिन अदालत में नहीं जाएँगे क्योंकि सब एक दूसरे की असलियत जानते हैं |सब की दाढ़ियों में कई-कई झाडू फँसी हुई हैं |कोई पसीने की कमाई खाने वाला नहीं है |सब जनता के माल पर दंड पेल रहे हैं |

इसी बात पर एक सत्य घटना सुन | हमारे मंदिर के पास दो छोटे-छोटे दुकाननुमा कमरे थे |जो प्रायः बंद रहते थे |कभी कोई अस्थायी किरायेदार आ जाता था तो पाँच-दस दिन रह जाता था |हमने उन कमरों में ठहरे फतेहपुर की तरफ के दो बिसायतियों को कई बार देखा है |उन दिनों ओढ़नियों पर असली चाँदी का गोटा लगाया जाता था | वे घूम-घूम कर पुराना गोटा खरीदते थे |फिर उसे गलाकर चाँदी बनाकर बेच देते थे |दिन भर घूमकर आते, चटपटा तीखा खाना बनाते थे |दारू पीकर, खाना खाकर, फिर बीड़ी पीते हुए फुर्सत से बतियाते थे |

एक कहता- मैंने तुझे जो बीस रुपए दिए थे वे लौटा दे |दूसरा कहता- मैंने भी तो तुझे एक बार चालीस रुपए दिए थे | तू बीस काटकर, बीस लौटा दे |पहला कहता- बात बात के ढंग से होनी चाहिए |पहले मैंने तुझे बीस दिए थे तो तू पहले मेरे बीस लौटा फिर मैं तेरे चालीस लौटा दूँगा |  

सो यह किस्सा उन बिसायतियों वाला है |दोनों को एक ही धंधा करना है, बतियाना है और मनोरंजन करना है |कोई भी वसूली के लिए कोर्ट में नहीं जाएगा |भगवती चरण वर्मा के 'दो बाँके' कहानी के दादाओं की नूराकुश्ती देखो और लोकतंत्र का रोना रोओ |

तोताराम बोला- फिर भी हिसाब तो हिसाब ही होता है |क्यों जनता में बिना बात का कन्फ्यूजन पैदा करते हैं |और नहीं तो एक मोटा-मोटी आइडिया ही दे दें |

हमने कहा- तुझे बताया ना, ये सब संत हैं |शैलेन्द्र का 'तीसरी कसम' का गाना सुना कि नहीं- 

बही लिख-लिख कर क्या होगा
यहीं  सब कुछ लुटाना है |


सब कुछ यहीं लुटाएँ या नहीं लेकिन बही कोई नहीं लिखता |

बोला- मास्टर, वैसे मैंने तुझे मोदी जी को डिस्टर्ब न करने की शपथ तो दिला दी लेकिन मैं सोचता हूँ कि अपना तो तीन तिमाही का ही हिसाब है |सातवाँ पे कमीशन पहली जनवरी २०१७ से देने वाले थे | फिर अगस्त २०१७ की पे के साथ देने की बात थी  लेकिन रेगुलर कर्मचारियों को देकर चुप हो गए और पेंशनरों को टरका दिया |जितना जल्दी दे दें, ठीक है अन्यथा फिर अमित शाह और राहुल गाँधी वाले हिसाब की तरह मामला लटक जाएगा |

हमने कहा- अमित शाह राहुल से उनके जन्म से पहले का हिसाब माँग रहे हैं, राहुल अमित शाह से तीन साल का हिसाब माँग रहे हैं | मामला निबट नहीं रहा है | सो हमारा हिसाब तो २०१७ में जीते-जी कर दें तो ठीक है |अन्यथा जो जीते जी नहीं सुन रहे हैं वे मरने के बाद क्या निहाल करेंगे |मरने के बाद तो मामले को रुळाना और भी आसान हो जाएगा |

मनमोहन जी लाख गुना अच्छे थे जिन्होंने बूढों के साथ ऐसा कमीनापन कभी नहीं किया |हमेशा समय से डी.ए., पे कमीशन और एरियर दे दिए | और ये डाकघर वाली 'मासिक आय योजना' को जीवन बीमा में लाकर 'वय वंदन' के नाम से लोगों को उल्लू बना रहे हैं | 















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Oct 14, 2017



 प्रधान मंत्री बनने की ख्वाहिश

( आदरणीय प्रणव मुखर्जी ने एक टी.वी. इंटरव्यू में कहा- मेरी प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश नहीं, और फिर मुझे हिन्दी भी तो नहीं आती- ८ जून २००५ . यही बात अब उनकी पुस्तक के विमोचन पर भी आई है |उस समय उनके नाम लिखे हमारे एक पत्र का आनंद लें और पुरानी यादें ताज़ा करें |)

आदरणीय प्रणव दा,
नोमोस्कर । आपने एनडीटीवी को एक इंटरव्यू में बताया कि आपकी प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश नहीं है । कहीं ऐसा तो नहीं कि अंगूर खट्टे हैं । पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि आप भी हमारी तरह पक्के कांग्रेसी हैं । सदा से दिल्ली में रहे हैं अतः दिल्ली से दूर होने का तो प्रश्न ही नहीं । यह बात और है कि लोकसभा कम और राज्य सभा के माध्यम से अधिक आए हैं जैसे कि गुलाम नबी आजाद, नज़मा हेपतुल्ला, नटवर सिंह और मन मोहन जी आदि । जहाँ तक सर्वस्वीकार्यता की बात है तो उसे छोड़िए । पश्चिम में पहले डेटिंग होती है फिर प्रेम और संभव हो तो शादी वरना ट्राई एंड ट्राई अगेन । भारत में तो पहले शादी होती है और उसके बाद प्रेम भी हो ही जाता ही । उसी तरह प्रधानमंत्री बनने के बाद रोज-रोज टीवी और अखबारों में देखते-देखते जनता किसी को भी स्वीकार कर ही लेती है ।

दूसरी बाधा आपने हिन्दी न जानने की बताई । सो सीखने की कोई उमर नहीं होती जैसे कि लम्पटता और चमचागीरी की कोई उमर नहीं होती । विदेशी मूल की होते हुए भी सोनिया जी अब बिना कागज के भाषण देने लगी हैं । जय ललिता तक ने हिन्दी फिल्मों में काम किया है और एक बार तो उनके मुखारविंद से हमने हिन्दी का एक वाक्य भी सुना था । प्रयत्न करने पर तो जड़मति भी सुजान हो जाता है फिर आप तो पढ़े-लिखे, विद्वान आदमी हैं । यदि शुरू-शुरू में आत्मविश्वास की कमी लगे तो हम आपको ट्यूशन भी पढ़ा सकते हैं । आप रोजाना हेलिकोप्टर से सीकर आ जाइएगा या फिर एक हेलिकोप्टर हमें दिलवा दीजिये । हम रोजाना सीकर से अप-डाउन कर लिया करेंगे । जब मुलायम सिंह जी रक्षा मंत्री थे तो रोजाना डिफेंस के प्लेन से घर की छाछ मँगवाया करते थे । लालू जी के लिए रोजाना पटना से सत्तू, खैनी, झींगा और घर की भैंस का दूध आता ही है । वैसे वे चाहें तो अपनी भैंस संसद में भी बाँध सकते हैं । ताऊ देवीलाल जी भी तो राष्ट्रपति भवन में अपनी भैंस बाँधते ही थे  । हम आप से ट्यूशन का कुछ नहीं लेंगे बस आप तो दिल्ली में एक दो कवि सम्मलेन दिलवा दीजियेगा । हो सके तो एक-आध क्रेट व्हिस्की का भी मिल जाए तो जीवन सरलता से गुजरने लगे क्योंकि आजकल सौ चक्कर लगाने पर भी जो काम नहीं होता वह दारू के एक अद्धे में हो जाता है । कहा भी है- सौ दवा एक दारू ।

इस देश में सदैव से ही अंग्रेजी का वर्चस्व रहा है । जब हमने अपने एम.ए. हिन्दी में प्रथम श्रेणी और मेरिट में आने की सूचना पिताजी को दी तो वे कहने लगे- ठीक है, पर यदि अंग्रेजी में एम.ए.करते तो बात कुछ और ही होती । अब हमारे राजस्थान के शिक्षा मंत्री, राष्ट्रीयता और स्वदेशी के भक्त घनश्याम जी भाई साहब भी अंग्रेजी के गुण गाने लगे हैं । पिताजी तो खैर, अब इस दुनिया में नहीं हैं पर घनश्याम जी को तो हम कह ही सकते हैं कि देखो, हिन्दी में भी ट्यूशन का स्कोप है और वह भी भारत के वर्तमान रक्षा मंत्री और भारत के भावी प्रधान मंत्री की ट्यूशन का ।

आप महान हैं कि आप प्रधानमंत्री बनाए जाने की ख्वाहिश नहीं रखते वरना तो हर लल्लू-पंजू सांसद की यही इच्छा है । न बन पाए वह और बात है । इरादे तो बुलंद रखने ही चाहियें । यदि हिन्दी की ही बात है तो निःसंकोच इरादा बना लीजिये ।

हिन्दी कोई कठिन भाषा नहीं है । और फिर यह तो अपनी राष्ट्र भाषा है । और जो कुछ राष्ट्रीय हो जाता है उसकी दुर्गति करने का प्रत्येक देशवासी को पूरा-पूरा अधिकार है । अब देखिये ना, राष्ट्रीय पक्षी बनने के बाद मोर ज़्यादा मरने लगे हैं । राष्ट्रीय पशु बनने के बाद बाघ लुप्त होने के कगार पर हैं । हिन्दी का भी यही हाल है । जिसकी जो मर्ज़ी आये बोले, लिखे । शृंगार को श्रंगार, दवाइयाँ को दवाईयाँ, नीरोग को निरोग, अपेक्षित को अपेक्षाकृत लिखें । संबोधन में 'भाइयो' होता है पर अधिकतर लोग 'भाइयों' बोलते हैं । धर्मेन्द्र की तरह 'हम जाइन्ग','दारू पीइंग' भी बोल सकते हैं । स्पष्ट को 'सपष्ट' बोलने पर कोई चेलेंज नहीं कर सकता । हाँ, अंग्रेजी में गलती नहीं होनी चाहिए । हिन्दी के मामले में आपको एक सलाह दें कि 'श' का ज़्यादा प्रयोग न करें, बंगला की तरह ।

और हाँ, अंत में एक नितांत निजी बात कि यदि वास्तव में ही आप प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहते तो धीरे से हमारा नाम सरका दीजियेगा । हम हिन्दी में एम.ए.हैं और चालीस बरस हिन्दी पढ़ा चुके हैं । जहाँ तक हिन्दी की बात है तो वह तो आपकी और हमारी ही क्या, सारे देश की ही हो रही है ।

८-६-२००५

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Oct 12, 2017

हिटलर का ग्लोब



  हिटलर का ग्लोब 

ये बातें सन उन्नीस सौ पचास से पहले की हैं जब लोग पृथ्वी के आकार, उसके अपनी धुरी पर घूमते हुए सूरज के चारों ओर भी घूमने, दिन रात होने, ऋतुएँ बदलने, सूर्य-चन्द्र ग्रहण, चन्द्रमा के घटते-बढ़ाते दिखने आदि के बारे में नितांत अन्धविश्वासी बातें किया करते थे | उन दिनों पिताजी हमारे लिए कलकत्ता से ग्लोब लेकर आए थे |उन्होंने हमें ये सब बातें ग्लोब की सहायता से, अँधेरे कमरे में टोर्च जलाकर प्रयोग द्वारा बहुत अच्छी तरह से समझाई थीं |यह बात और है कि प्रतीकों को न समझ पाने के कारण आज भी बहुत से पढ़े लिखे लोग अज्ञान और अंधविश्वास की बातें करते हैं |कुछ तो अपनी उस आस्था पर बात तक नहीं करना चाहते और अपनी अवैज्ञानिक आस्था पर चर्चा करने वाले लोगों का सिर फोड़ने तक को तैयार हो जाते हैं |

आज उस ग्लोब की स्थिति वर्तमान दुनिया जैसी हो गई है |वह अपने स्टेंड पर कायम नहीं रह पाता, यदि उसे अपने स्टेंड पर फिक्स कर दो तो घूमता नहीं, तब फिर दिन-रात न बदलने की समस्या आ जाती है |जहाँ उजाला वहाँ हमेशा उजाला और जहाँ अँधेरा वहाँ हमेशा के लिए अँधेरा |यह भी कोई बात हुई ? इसलिए हमने उस ग्लोब का उपयोग करना बंद कर दिया है |हमें ऐसी विषम दुनिया पसंद नहीं |

इस ग्लोब के अलावा हमने फिल्मों में भी ग्लोब देखा था जो दिन-रात, चन्द्रमा की कलाएँ, अक्षांस-देशांतर आदि समझाने के लिए नहीं बल्कि किसी सेना के उच्च अधिकारी द्वारा तनाव के क्षणों में घुमाने के काम आता था |वह दर्शकों की तरफ पीठ किए हुए खिड़की से बाहर देखता रहता था और फिर तनाव में ही अचानक मुड़ता था और ग्लोब को घुमाने लगता था |इसके बाद सैनिकों को मोर्चे की स्थिति समझाता था और फिर अंततः आक्रमण की आज्ञा देता था |स्कूलों में कुछ प्रधानाध्यापक भी ग्लोब को अपने ऑफिस में सजाते थे लेकिन उसका कोई सार्थक उपयोग होते हमने कभी नहीं देखा |

आज आते ही तोताराम ने हमसे उसी ग्लोब की माँग की |बोला- अगर ढंग से प्रस्तुतीकरण हो गया तो समझ ले, मालामाल हो जाएँगे |

हमने कहा- कबाड़ी तो इसके पाँच रुपए भी नहीं दे रहा था |वैसे तू इसे किसे बेचेगा ?

कहने लगा- मेरे वश का तो नहीं लेकिन दुनिया में चालकों और मूर्खों की कोई कमी नहीं है |खोजने वाले खोज ही लेते हैं |क्या पता, हमें भी कोई मिल जाए |अब देख, हिटलर का कोई ७५ साल पुराना ग्लोब और उसके हाथ का लिखा एक पत्र किसी अमरीकी ने ६५ हजार डालर (कोई ४०-४२ लाख रुपए) में ख़रीदे हैं  | 

हमने पूछा-लेकिन कोई इसका करेगा क्या ?

बोला- दुनिया में अकल के अंधों और गाँठ के पूरों को कमी थोड़े ही है |जिसने ख़रीदा है वह अपने से बड़े किसी और मूर्ख को भिड़ा देगा |कुछ लोगों  के पास इतना पैसा है कि उन्हें यही समझ में नहीं आता कि इस पैसे का क्या करें ? वे ऐसी ही उलटी-सीधी चीजों का संग्रह करते हैं | माल्या ने गाँधी का चश्मा, टीपू की तलवार आदि ख़रीदे कि नहीं ? 

हमने कहा- इसमें उसका क्या गया ? वह पैसा तो तेरे-मेरे जैसे भले लोगों का था जिसमें से कुछ माल्या खा गया, कुछ बैंक के अधिकारी और कुछ उसे राज्य सभा में भेजने वाले कांग्रेस और बीजेपी के नेता खा गए |अब करते रहो कूँजड़ियों वाली काँव-काँव |
वैसे तोताराम, इतने पैसे में तो हजारों इससे भी बड़े, कीमती ग्लोब आ सकते हैं |इसी ग्लोब में ऐसा क्या है ?

बोला- तेरी समझ में ये बातें नहीं आएँगीं |वस्तु के साथ एक विचार, एक इतिहास जुड़ा होता है |तभी तो गाँधी जी के जन्म स्थान पर, उस कमरे में खड़े होकर जाने कैसा कुछ होने लगता है |लगता है, जैसे गाँधी की आत्मा हममें प्रवेश कर रही है |पोरबंदर में रहते हुए तू तो सैंकड़ों बार वहाँ गया है |क्या पता, आज भी अमरीका में कोई  हिटलर की तरह इस ग्लोब को उसी की तरह घुमा देने का सपना देख रहा हो |भले ही संख्या में कम हों लेकिन आज भी वहाँ, कालों का वैसे ही संहार करने का इरादा रखने वाले लोग भी हैं जैसी निर्दयता से हिटलर ने यहूदियों का कत्लेआम किया था |

अब बता, मर्लिन मुनरो की पुरानी चड्डी-चोलियों का कोई क्या हारेगा ? लेकिन नीलाम होती हैं और लोग खरीदते भी है | चर्चिल के पीए हुए सिगार की भी तो नीलामी हुई थी |

हमने कहा- इसी प्रकार तो दुनिया में विचार समाप्त होता है तथा अंधविश्वास और मूर्तिपूजा शुरू होती है |हालाँकि दयानंद सरस्वती, कबीर, नानक आदि ने इसका निषेध किया था लेकिन लोग हैं कि उन्हीं की पादुकाओं का पूजन करने लगे |सो यही बात हिटलर या किसी और के साथ हो सकती है |मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले निरीश्वरवादी बुद्ध को लोगों ने मूर्ति में कैद कर दिया जैसे कि गाँधी जी के समस्त दर्शन को चश्मे और चश्मे को शौचालय में कैद कर दिया गया है |

यदि इसी तरह से योजनाबद्ध प्रचार तंत्र सक्रिय रहा तो गाँधी के स्वावलंबन, सादगी, समरसता, अपरिग्रह, अहिंसा, सत्य समाप्त हो जाएँगे |फिर कोई किसी बच्चे से पूछेगा तो वह इससे अधिक कुछ नहीं बता सकेगा- गाँधी माने चश्मा या गाँधी माने शौचालय |




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Oct 10, 2017

धनुष किसने तोड़ा

 धनुष किसने तोड़ा ? 

आते ही हमने तोताराम से कहा- तोताराम, डिमेंसिया से बचने के लिए दिमागी व्यायाम बहुत ज़रूरी है सो आज हम तुम्हारे दिमाग को सक्रिय करने के लिए दशहरे के उपलक्ष्य में रामायण से संबंधित कुछ प्रश्न पूछते हैं |बता- धनुष किसने तोड़ा ?

बोला- जब यह प्रश्न आज तक नहीं सुलझा तो मैं कोई निश्चित उत्तर कैसे दे सकता हूँ | सीता के स्वयंवर में शिव के धनुष पर प्रत्यंचा चढाने की शर्त थी, तोड़ने की नहीं | पता नहीं, परशुराम ने क्यों पूछा कि शिव का धनुष किसने तोड़ा ?  लक्ष्मण ने कहा- 
छुअत टूट रघुपतिहि न दोसू |
खुद राम ने  भी उनसे कहा- 
छुअतहि टूट पिनाक पुराना |
इसलिए यह कहना ही गलत है कि धनुष किसने तोड़ा ? यह पूछ कि धनुष कैसे टूट गया ?
और स्कूल-निरीक्षक द्वारा किसी स्कूल के छात्र से धनुष टूटने के बारे में यही प्रश्न पूछे जाने पर छात्र ने कहा था- सर, पता नहीं |लेकिन मैंने नहीं तोड़ा | और उसके अध्यापक ने कहा- साहब, यह बहुत शैतान है |ज़रूर इसीने तोड़ा होगा |अभी तक उस किस्से का भी कोई पक्का उत्तर नहीं मिला है |

हम तोताराम पर रोब जमाना चाहते थे, लेकिन उसने तो हमें ही उलझा दिया |

हमने कहा- कोई बात नहीं, वैसे तेरी व्यक्तिगत मान्यता क्या है ? धनुष किसके हाथ से टूटा ?

बोला- मोदी जी हाथ से |

हम भौचक्के |मोदी जी का धनुष से क्या लेना-देना |कहा- क्या अजीब बात कर रहा है ?

बोला- मैं कुछ नहीं कह रहा हूँ |सबसे विश्वसनीय अखबार देख ले, पहले पेज पर ही फोटो छपा है | धनुष पर प्रत्यंचा पहले से चढ़ी हुई थी |जैसे ही मोदी जी ने रावण को मारने के तीर चढ़ाकर प्रत्यंचा को खींचा तो धनुष दाहिनी तरफ से टूट गया |लेकिन उत्साह से भरे हुए मोदी जी ने धनुष टूटने की कोई परवाह नहीं की और तीर को हाथ में लेकर जोर से फेंका जो सीधे रावण को लगा और उसका काम तमाम हो गया |भाई, एक तो बंदा बाल ब्रह्मचारी, दूसरे पिछले २५ साल में पहली बार मिला स्पष्ट बहुमत |इसकी ताकत का क्या ठिकाना ?

हमने कहा- हो सकता है धनुष बनाने वाले ने धनुष की बनवाई पर २८ प्रतिशत की बजाय ८० प्रतिशत जी.एस.टी. काट लिया हो |ऐसे में तो यह सब होना ही था |हाँ, जहाँ तक मोदी जी की क्षमताओं की बात है तो हमीं क्या सारी दुनिया दीवानी हो रही है |लेकिन यह एक ऐतिहासिक सच है कि रावण को मोदी जी ने नहीं, राम ने मारा था | वैसे भी रावण को मारने वाला राम बन में भटकने वाला राम था, गद्दी पर बैठा राम नहीं |

बोला- यह तो रावण है, गद्दी पर बैठा आदमी तो किसी को भी मार सकता है |यहाँ मोदी जी ने रावण को मारा तो उधर ऐशबाग में योगी जी ने रावण को मारा |

हमने कहा- इससे तो बहुत कनफ्यूजन हो जाएगा | यदि बच्चों से परीक्षा में पूछा गया कि रावण को किसने मारा तो वे क्या लिखेंगे ?और फिर रामायण और रामचरितमानस भी तुम्हारे इस नए तथ्य की पुष्टि नहीं करते  | 

बोला- कोई बात नहीं |उन्हें भी बदलवा दिया जाएगा | इतने बहुमत में इतिहास क्या, सूरज के उगने-छिपने की दिशा तक बदली जा सकती है |

हमने कहा- याद रख, बड़े लोग इतिहास बनाते हैं | जो इतिहास बना नहीं सकते वे उसे बदलने का दंभ भरते हैं |

वैसे एक बात बताएँ तोताराम, मोदी जी को धनुष-बाण का यह तामझाम करने की ज़रूरत ही नहीं थी |वे तो व्यंग्य-बाणों से ही किसी के भी प्राण ले सकते हैं |



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Sep 25, 2017

बाँध दिवस


बाँध-दिवस उर्फ़ मोदी जी का जन्म दिन 

१४ सितम्बर २०१७ को हमने तोताराम को बीजेपी ट्रेन अर्थात बुलेट ट्रेन की बधाई दी थी तो आज  तोताराम ने घर के बाहर से ही कोर्ट के हरकारे की तरह जोर से चिल्लाकर हमें बधाई दी- भाई साहब, बाँध-दिवस की बधाई हो |

आजकल पता नहीं, लोगों और सरकारों को कोई काम है या नहीं ? एक दिन में कई-कई दिवस मना डालते हैं | और कुछ नहीं तो हाथ धो दिवस, कान कुचर दिवस, नाक साफ़ कर दिवस, मच्छर-दिवस, मक्खी-दिवस |अरे भले आदमियो ! कभी 'काम-दिवस', कभी 'चुप-रह-दिवस', कभी 'अपनी प्रशंसा मत कर दिवस', कभी 'सामान्य रह दिवस' जैसा भी तो कुछ कर लिया करो |जिसे काम नहीं करना हो वह दुनिया को दिवसों में उलझाता है |कोई कहे बच्चियाँ सुरक्षित नहीं हैं | सरकार कुछ करे | तो सरकार कहती है- 'बालिका बचाओ दिवस' मना तो रहे हैं |अखबारों में विज्ञापन नहीं देखते ? रैलियाँ, जुलूस, गोष्ठियाँ कर तो रहे हैं |विद्यालयों में रंगोली, मेहंदी, चित्रकला, वाद-विवाद प्रतियोगिता आदि हो तो रहे हैं |

हमने कहा- बाँध-दिवस पर हमें हाथ-पैर बाँध कर पटकेगा क्या ? मोदी जी भी अपने भाषणों से मुसीबतों की मारी जनता को हिलने का मौका नहीं दे रहे हैं |बाँधे हुए हैं अपनी भाषण कला से जादू से |पता नहीं, यह सम्मोहन कब टूटेगा ?

बोला- मैं तुम्हारी इस प्रतीकात्मक भाषा में नहीं, वास्तव में कह रहा हूँ कि आज मोदी जी का जन्म दिन है और अब आगे से देश इस दिन को बाँध-दिवस के रूप में मनाएगा |
हमने कहा- ऐसी क्या बात है ? बाँध तो इस देश में बहुत पहले से बनते चले आ रहे हैं |आजादी से पहले भी सिंचाई के लिए बाँध बनते ही थे | नेहरू जी ने भी स्वतंत्रता मिलने के बाद बहुत से बाँध बनवाए, कृषि विश्वविद्यालय खुलवाए, खाद के कारखाने स्थापित करवाए |तभी तो आज हम इतनी बड़ी आबादी का पेट भर पा रहे हैं | यह बात और है कि प्रशासन अपनी क्षमता के बल पर गोदामों में अन्न सड़ा भी रहां है |

बोला- मोदी जी ने बताया है कि यदि पटेल और अम्बेडकर होते तो नर्मदा बाँध कब का बन गया होता | मेरे ख्याल से १९६० में ही बन गया होता | वैसे कांग्रेस तो इस बाँध को बनने ही नहीं देना चाहती थी | हमेशा अडचनें और डालती रही |

हमने कहा- बन्धु, किसी और को उल्लू बनाना | हम कोई बच्चे या अनपढ़ नहीं है |पटेल १९५० में गुज़र गए थे और अम्बेडकर १९५६ में |जब कि इस बाँध का प्रस्ताव १९५० में बना और १९६१ में नेहरू जी ने इसका शिलान्यास किया |यदि कांग्रेस इस बाँध को नहीं बनाना चाहती तो फिर शिलान्यास ही क्यों किया ?चलो कोई बात नहीं |बाँध बन गया |यदि एहसान नहीं मानना है तो न सही | लेकिन इस अवसर पर भी कांग्रेस को कोसना हमें तो ओछापन लगता है |

बोला- कोसें कैसे नहीं ? यदि कांग्रेस होती तो यह बाँध अब तक भी नहीं बनता |यह तो भगवान की कृपा से २०१४ में मोदी जी प्रधान सेवक बनकर आ गए और ताबड़-तोड़ मेहनत करके मात्र तीन साल में ही बाँध बनवा दिया |इतना बड़ा बाँध और इतनी जल्दी ! अब तो कई देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति उनके पास 'तत्काल टिकट' की तरह 'तत्काल बाँध बना' तकनीक सीखने के लिए आने लगे हैं |अब ऐसे में उनके जन्म दिन को 'बाँध-दिवस' के रूप में मनाने में क्या, क्यों और कैसा संकोच  ?

हमने कहा- तोताराम, यदि मोदी जी १८३७ में पैदा हो गए होते तो १८५७ में ही देश को आज़ाद करवा दिया होता और हमें गुलाम भारत में जन्म ही नहीं लेना पड़ता |

बोला-  लेकिन किया क्या जाए ? सब संयोग की बात है, बन्धु ! मैं तो कहता हूँ यदि मोदी जी चाणक्य के समय में पैदा हो गए होते तो अंग्रेज ही क्या यवन, शक, हूण, तुर्क, तातार, मुग़ल, फ्रांसीसी, पुर्तगाली आदि कोई भी इस देश कर कब्ज़ा तो दूर आँख उठाकर भी नहीं देखा सकता था |एक मज़े की बात तुझे पता है ? मोदी जी के आते ही अकबर ने बैक डेट से हल्दीघाटी के युद्ध में अपनी हार स्वीकार कर ली है |और देख नहीं लिया कि मोदी जी के डर से चीन कैसे डोकलाम से दुम दबाता, माफ़ी माँगता हुआ भाग खड़ा हुआ |पाकिस्तान की घिग्घी बँधी हुई है |और तुम्हें क्या बताऊँ, जब भी बाहर निकलता हूँ तो मुझे जगह-जगह सड़क पर कमर टूटे हुए आतंकवादी, काले धन वाले, घूसखोर और जमाखोर आदि मिलते हैं |

हमने कहा- सत्य वचन, महाराज |








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Sep 13, 2017

जहँ-जहँ चरण पड़े संतान के.....

 जहँ-जहँ चरण पड़े संतन के... 

हमारे सामने अखबार रखते हुए तोताराम इतना नज़दीक आगया जितना कि नीति, सिद्धांत और जनहित की रक्षा के लिए नीतीश जी भाजपा के निकट आ गए हैं |हमने पूछा- आज कोई ख़ास बात है क्या ?

बोला- ख़ास ही नहीं, बहुत ख़ास है | तू हमेशा भाजपा और उसकी पितृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना करता रहता है | उन्हें मनुवादी, सांप्रदायिक, जातिवादी और कट्टर बताता रहता है | लेकिन आजतक किस धर्मनिरपेक्ष सरकार ने कबीर का स्मारक बनवाया ? जब कि भाजपा ने यू.पी. में आते ही बनारस में दस करोड़ रुपए की लागत से कबीर का म्यूजियम बनवाने के प्रोजेक्ट को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी है |

हमने कहा- पंजाब के चुनावों से पहले वहाँ दलित से सिक्ख बने रविदासियों के आदिगुरु रैदास का स्मारक बनाने के लिए भी बड़े पॅकेज की घोषणा की थी लेकिन चुनाव हारते ही रैदास जी ठंडे बस्ते में |सो कबीर जी के म्यूजियम का भी वही हाल होगा |

बोला- नहीं, ऐसी बात नहीं है |उज्जैन में कुम्भ मेले में अन्य संतों के साथ बनारस के कबीर चौरा के गादीपति को भी बुलाया था |और अब उसी कबीर-भक्ति को आगे बढ़ाते हुए उनके म्यूजियम को भी सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी |

हमने कहा- यह सैद्धांतिक मंजूरी, कबीर के सिद्धांतों के प्रति श्रद्धा नहीं बल्कि कबीर के सिद्धांतों की हत्या है | 

बोला- तुझे तो हमारी पार्टी के किसी भी काम में कोई अच्छाई नज़र आती ही नहीं |कुछ करो तो मुश्किल और कुछ न करो तो मुश्किल |

हमने कहा- कबीर और रैदास ने कभी कोई स्मारक, मंदिर, अखाड़ा और आश्रम नहीं बनाया |लोग तो हरामखोरी के लिए साधु का बाना धारण करते हैं | लेकिन कबीर कहते हैं-
मूँड मुँडाए तीन गुण मिटी टाट की खाज |
बाबा बाज्या जगत में मिला पेटभर नाज ||
तुलसी भी कहते हैं-
नारि मुई घर सम्पति नासी |
मूँड मुण्डाय भये सन्यासी ||

कबीर और रैदास दोनों ने अपनी दिन भर की कमाई से खुद भोजन करके और अतिथियों को खिलाकर हरिभजन किया है |रैदास कहते हैं- मन चंगा तो कठौती में गंगा |
और कबीर भी कहते हैं- 

मौकों कहाँ ढूँढे बन्दे मैं तो तेरे पास में |
ना तीरथ में, ना मूरत में, ना एकांत निवास में |
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबा-कैलाश में |

ऐसे निर्गुण, सीधे-सच्चे संतों को स्मारक, म्यूजियमों में कैद करना उनके सिद्धांतों की हत्या नहीं तो और क्या है ? जब सरकारी पैसे से अड्डा बनेगा तो चार ठलुए वहाँ बैठक जमाएँगे, पुरस्कार-सम्मान और पद की राजनीति करेंगे | कबीर चौरा में तो पहले से ही कब्ज़ा किए हुए लोग भक्तों से कबीर की खडाऊँ और माला के आगे मत्था टिकवाकर चढ़ावा ले रहे हैं |अब पता नहीं, सरकार कबीर का और क्या तमाशा बनाना चाहती है ? कभी सोचा हैं, कबीर जिन लफंगों से धर्म को बचाना चाहते थे अब उन्हीं के हाथों में कबीर को सौंपने से उनकी आत्मा को कितना कष्ट होगा ?

बोला- तो क्या अपनी संस्कृति और परंपरा को ऐसे ही अनारक्षित छोड़ दें ?

हमने कहा- नोट और वोट की भूखी सरकारों और व्यक्तियों ने जब-जब धर्म, शिक्षा, सेवा, संस्कृति, भाषा, भाईचारा, गाय, गंगा आदि को बचाने धंधा शुरू किया तब-तब ये और अधिक संकट में फँस गए |   

सावधान रहें कि यह 'कबीर-चौरा-प्रेम' कबीर को एक क्षेपक न बना दें  |




   


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Sep 8, 2017

गड्ढा किसने खोदा

गड्ढा किसने खोदा 

२९ अगस्त २०१७ को मोदी जी ने एहतियात के तौर पर उदयपुर आकर कुछ योजनाओं का शिलान्यास और कुछ का लोकार्पण किया |कारण आप जानते ही हैं- आजकल उपलब्धियाँ बड़ी मनचली हो गई हैं |भेजो कहीं और चली कहीं और जाती हैं |और फिर चुनाव भी तो आ रहे हैं अगले वर्ष सो उपलब्धियों की डिलीवरी देने खुद ही आना पड़ा | इसका सीधा प्रसारण सीकर के पास एक गाँव गनेडी में भी होना था लेकिन ऐन वक्त पर बारिश ने काम बिगाड़ दिया | उस दिन तोताराम ने यह कह कर चाय पीने से मना कर दिया कि मोदी ने देख लिया तो हम दोनों पर जी.एस.टी. का कोई चक्कर चला देंगे |

आज तोताराम ने आते ही फिर वही २९ अगस्त वाली घोषणा कर दी कि चाय नहीं पीनी |हमने पूछा तो बोला- आज के मेरे भविष्य में लिखा है कि स्वास्थ्य के मामले में सावधानी बरतें |घर से बाहर कहीं कुछ न खाएँ |

हमने कहा- ये सब जनता को अन्धविश्वासी बनाने वाली बातें हैं |अवैज्ञानिक हैं |इसी के चक्कर में तो इस देश का सत्यानाश हो गया |पुरुषार्थ करने की बजाय झूठे और लम्पट बाबाओं में चक्कर में फँसने लगे हैं |दवा करने की बजाय झाड़-फूँक और गंडा-ताबीज करने लगे हैं |

बोला- ऐसी बात नहीं है |कुछ देशद्रोही और भारतीय संस्कृति के विरोधी झूठी अफवाहें फैलाते हैं |यदि ज्योतिष में कुछ बात नहीं होती तो बड़े-बड़े नेता नामांकन भरने और शपथ लेने के लिए ज्योतिषियों से मुहूर्त नहीं निकलवाते |

हमने कहा- कुछ कट्टर और अन्धविश्वासी लोग ऐसा करते हैं |

बोला- मैं सब समझता हूँ |तेरा इशारा भाजपा की ओर है |

हमने कहा- हमारा मतलब सभी अंधविश्वासियों से है |नरसिंहा राव भी सब काम राहुकाल और ज्योतिष के अनुसार किया करते थे |बाबरी मस्जिद के समय राहुकाल था इसलिए उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया |  

तोताराम ने हमारी नरसिंहा राव वाली बात से कांग्रेस को पकड़ लिया, कहने लगा- मोदी जी के चुने जाने के बाद जब पेट्रोलियम के दाम कम हुए तो कांग्रेस ने कहा था- यह तो नसीब की बात है कि मोदी जी के आते ही अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के भाव कम हो गए |मतलब कि वे भी नसीब को मानते हैं |कर्म की बजाय नसीब की बात करना ही तो वह बिंदु है जहाँ से ज्योतिष प्रारंभ होता है |

और तुझे याद होना चाहिए कि बिहार के चुनावों में महागठबंधन  के विरुद्ध प्रचार करते हुए मोदी जी ने कहा था- कांग्रेस कहती है कि मोदी के नसीब से तेल के दाम कम हो गए |तो आप भी फूटे नसीब वालों की जगह अच्छे नसीब वालों को क्यों नहीं चुनते ? जनता ने नसीब वालों को नहीं चुना |लेकिन नसीब में मोदी जी लिखे थे तो कुछ महीनों बाद चुने-चुनाए नीतीश जी जदयू के राजग हो गए |पायजामे से चड्डीधारी हो गए |भाग्य का लिखा कोई नहीं टाल सकता |

हमने कहा- यदि नेता के नसीब से सब कुछ होता है तो बिहार, उत्तर प्रदेश, आसाम में बाढ़ और अब मुम्बई में वर्षा का यह कहर किसके भाग्य से है ? जब सारे देश के अच्छे-बुरे दिन मोदी जी के भाग्य से ही जुड़े हैं तो यह बाढ़ भी उनके सौभाग्य-दुर्भाग्य का ही परिणाम मानी जानी चाहिए |

बोला- भविष्य हमेशा एक जैसा नहीं रहता |वैसे तूने उनका उदयपुर वाला भाषण ध्यान से नहीं सुना |मोदी जी ने कहा था कि कांग्रेस ने सत्तर साल से देश को गड्ढे में डाल रखा था |और गड्ढे में पानी तो भरेगा ही ना |

वैसे विश्वास रख, 'संकल्प से सिद्धि' अवश्य मिलती है |२०२२ तक यह गड्ढा भी भर ही देंगे |वैसे तुझे पता होना चाहिए कि बिहार के जल संसाधन मंत्री ललन सिंह और आपदा प्रबंधन मंत्री दिनेश चन्द्र यादव ने अपने एक्सपर्ट कमेंट्स में बता दिया है कि बाढ़ मोदी जी के दुर्भाग्य के कारण नहीं बल्कि चूहों द्वारा बाँधों के तटबंध खोद डालने से आई है |

हमने कहा- लेकिन इन चूहों ने ये तटबंध जदयू से भाजपा में आने से पहले खोदे या बाद में ?  

बोला- यह तो अमित जी भी नहीं बता पाएँगे क्योंकि पहले राजनीति में घोड़ों का धंधा चलता था आजकल चूहों का बड़ी मात्रा में आयात हो रहा है |अब कैसे पता चले कि कौनसा चूहा कब, कहाँ से आया है ? 


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Sep 1, 2017

प्रधान मंत्री वय वंदन योजना



प्रधानमंत्री वय वंदन योजना  

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आते ही तोताराम तनिक झुका और बोला- हे वयः प्राप्त, वरिष्ठ ! वंदन |

तोताराम जब कभी मूड में होता है तो हमें अपना राम कहता है और स्वयं को हनुमान |आज उसके स्वर में वही भाव अनुभव हुआ | सो हमने भी कहा- कहो मारुतिनंदन ?

बोला- यह वंदन और अभिनन्दन अपनी तरफ से नहीं बल्कि प्रधान सेवक जी की तरफ से कह रहा हूँ |

हमने कहा- प्रधान सेवक कौन ? मोदी जी ?

बोला- आज के इस बदतमीज़ और कृतघ्न संसार में मोदी जी जितना विनम्र और कौन हो सकता है ? क्या कभी किसी प्रधानमंत्री ने स्वयं को प्रधान सेवक कहा ?बैठे बिठाए हम जैसे सरकार के आजीवन नौकर रहे लोगों को स्वामी का दर्ज़ा दे दिया |और आज !
आज तो सीधे-सीधे हम वयः वृद्ध लोगों को सम्मानित करते हुए एक योजना भी शुरू कर दी है |और हमारे सामने अखबर पटकते हुए कहा-ले, पढ़ ले |
'प्रधानमंत्री वय वंदन योजना'  जिसका आज जेतली जी विधिवत लोकार्पण करेंगे |

हमने कहा- बन्धु, हमें तो तब से ही वंदन और अभिनन्दन से डर लगता है जब एक अभिन्दन समारोह में किसी ने हमारी नई चप्पलें पार कर दी थीं और एक बार एक शिष्य ने अचानक इस अदा से हमारे चरण-स्पर्श किए कि हम गिर पड़े थे |और फिर मोदी जी ने जब वंदन करते-करते अडवाणी जी को ही बर्फ में लगा दिया तो यह वंदन हमारा क्या हाल करेगा पता नहीं ?

बोला- तू कभी तो सकारात्मक सोचा कर |अडवाणी जी वाली तो राजनीतिक बात है |हमें उससे क्या लेना ? उनका 'पारिवार' का मामला है |

हमने कहा- बन्धु, हमें तो जेतली जी और मोदी जी की नीयत पर शक है |यदि वरिष्ठ जनों के प्रति इतनी ही श्रद्धा है तो हमारा सातवाँ वेतन आयोग क्यों दबाए बैठे हैं ? किसी का पैसा देना है तो समय से दे दो | हिज्र की रात लेकिन इतनी भी लम्बी क्या कि दुलहन इंतज़ार में ही बूढ़ी हो जाए |

बोला- अपना ही रोना रोएगा या आगे भी कुछ सुनेगा ?

हमने कहा- ठीक है सुना दे |

बोला- मोदी जी और उनके जनहितकारी वित्त मंत्री जेतली जी ने वृद्धों का विशेष ध्यान रखते हुए जीवन बीमा के माध्यम से एक योजना शुरु की है जिसमें दस वर्ष के लिए अधिक से अधिक साढ़े सात लाख रुपए की राशि स्वीकार की जाएगी और उस पर आठ प्रतिशत की दर से प्रतिमाह पाँच हजार रुपए ब्याज दिया जाएगा |दस वर्ष बाद राशि वापिस कर दी जाएगी |यदि बीच में कोई मर गया तो पूरी राशि वापिस कर दी जाएगी |यदि किसी संकट के समय आप अपनी राशि निकालना चाहें तो मूल का २ प्रतिशत कटेगा |ब्याज पर टेक्स लगेगा |

हमने कहा- तोताराम, इसमें नया क्या है ? इसके पहले से ही पोस्ट ऑफिस में वरिष्ठ नागरिकों के लिए मासिक आय योजना है |इसमें तो पैसा दस वर्ष के लिए जमा करवाना पड़ेगा जबकि उसमें तो पाँच साल के लिए ही जमा करवाना पड़ता है |पहले एक बार मनमोहन सिंह जी ने कहा था- मैं तो सेल्समैन हूँ |मुझे लगता है इस समय मोदी जी से बड़ा सेल्समैन भारत क्या, दुनिया में नहीं है |जो योजना पहले से है उसीका इस तरह से विज्ञापन मानों पता नहीं जनहित का कौन-सा बड़ा काम कर दिया |अधिकतर काम जैसे मनरेगा, जी.एस.टी., जन कल्याण औषधि भण्डार आदि सब नई पेकिंग में पुराना माल है |वैसे बन्दे की सबसे बड़ी खासियत है अंदाज़ |जैसे कि ग़ालिब का अंदाज़े बयाँ |

बोला- तो इसी पर दाद दे मगर दे तो सही |कवि भी तो कहता -
साक़ी ! शराब न दे, न सही
पर शराब की बात तो कर | 
और एक बात ध्यान से सुन ले |ज्यादा चूँ चपड़ मत किया कर |बन्दे के पास स्पष्ट बहुमत है |अगर पोस्ट ऑफिस में जमा तेरे पैसों पर ब्याज देने की बजाय रखवाली करने के नाम पर आठ प्रतिशत वार्षिक काट लेगा तो भी कोई हाथ पकड़ने वाला नहीं है | तुझे पता होना चाहिए कि नोटबंदी वाले कदम से देश-विदेश से सारा काला धन बैंकों में लौट आया है | अब सरकार के पास वैसे ही नोट रखने तक की जगह नहीं है |


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Aug 25, 2017

विकास-मुक्त भारत

 विकास-मुक्त भारत

आज फिर तोताराम हाज़िर |वही उत्सवी सज-धज |चलता-फिरता राष्ट्र और संस्कृति मंत्रालय |

हमने पूछा-आज क्या कार्यक्रम है उत्साही लाल ?

बोला- वही कल वाला कार्यक्रम, एक और संकल्प |

हमने कहा- बन्धु, हम सब घर-गृहस्थी वाले लोग हैं | सुबह-सवेरे चाय के साथ अखबार चबा लें, वहाँ तक तो ठीक है | सुबह-सवेरे सब को जल्दी रहती है, किसी को ड्यूटी तो किसी को स्कूल जाना होता है |इसलिए रोज-रोज ऐसे नाटक अजीब लगते हैं | जिन्हें अगले दस-बीस साल सत्ता में रहने का लालच है, जिन्हें जनता को बहलाए रखना है और कुछ करते हुए नज़र आना है उनकी तो मजबूरी है |उन्हें तो ऐसे नाटक करने ही पड़ेंगे | अब हम निदेशक मंडल में पहुँच चुके लोग हैं | हमें अब अडवानी जी की तरह शांत रहना चाहिए | यदि कोई ज्यादा ही पीछे पड़ जाए तो नामांकन-जुलूस में शामिल होने की औपचारिकता निभा देना चाहिए, बस |अब तू जल्दी-जल्दी बोल |हम तेरे पीछे फटाफट दोहरा देंगे |

तोताराम आगे-आगे बोला और हमने दोहरा दिया- हम सच्चे मन से भारत को विकास-मुक्त करने का संकल्प लेतें हैं |और तोताराम के पीछे जोर-जोर से तीन बार नारा लगाया- विकास भारत छोड़ो, विकास भारत छोड़ो, विकास भारत छोड़ो |

नारे लगाने के बाद जैसे ही साँस सामान्य हुई, हमें ख़याल आया- अरे, हमने यह क्या नारा लगा दिया, यह क्या संकल्प कर लिया |

हमने तोताराम को डांँटा- भले आदमी, हमसे यह क्या संकल्प करवा दिया |यदि भगवान ने स्वीकार कर लिया तो क्या होगा ? विकास के लिए ज़मीन आसमान एक कर रहे लोगों के मंसूबों का क्या होगा ? आज पहली बार कोई इस सिद्दत से विकास के कृतसंकल्प हुआ है |

बोला- जब सब संकल्प ले रहे हैं तो हमने भी ले लिया |वैसे इन नाटकों से कुछ नहीं होना-हवाना |इस देश के लोग १९४२ जैसे सीधे नहीं रहे | वे मौका देखकर नारे लगते हैं, मौका देखकर जय बोलते हैं, मौका देखकर पार्टी बदलते हैं | इस समय संकल्प में सिद्धि दीख रही है तो संकल्प ले रहे हैं |वैसे मन में हर क्षण सत्ता में बने रहने का विकल्प तैयार रहता है |

हमने कहा- फिर भी विकास हो जाए तो क्या बुरा है ? तुझे विकास से इतनी चिढ़ क्यों है ?

बोला- आजकल वह पहले वाला विकास नहीं रह गया |वह बहुत खतरनाक हो गया |आजकल वह महँगी कार में चलता है, रास्ते में बैठकर दोस्तों के साथ दारू पीता है, किसी भी लड़की का पीछा करता है, उसे छेड़ता है | कोई ठिकाना नहीं क्या कर बैठे |आजकल उसके डर के मरे लडकियाँ रात को घर से नहीं निकलतीं |नेता लोग भी कहते हैं कि लड़कियों को अपने आप को विकास से बचाने के लिए बुरका पहनना चाहिए और घर में ही रहना चाहिए |यह विकास जब आदिवासी इलाकों में या खेतों में पहुँच जाता है तो आदिवासी जंगल और किसान खेत छोड़कर या तो आत्महत्या कर लेते हैं या शहरों में रोटी-रोजी के लिए भिखारियों की तरह भटकते रहते हैं |

हमने कहा- तो फिर ठीक है तोताराम, ऐसे विकास से तो मुक्ति ठीक ही है |और नहीं तो किसान, आदिवासी और लड़कियाँ तो शांति से रह सकेंगे |



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Aug 16, 2017

संकल्प-दिवस



 संकल्प-दिवस 

आज तोताराम बड़ी सज-धज के साथ प्रकट हुआ |साफ़ धुला कुर्ता-पायजामा, धोकर चाक रगड़कर सफ़ेद बनाए गए पुराने कैनवास के जूते, हलकी-हलकी दाढ़ी, हाथ में मोटा-सा कलावा, माथे पर बड़ा-सा टीका मतलब देशभक्ति और राष्ट्रीयता का चलता-फिरता विशाल शो-रूम | 

आते ही आदेश देना चालू- क्या आज के दिन भी यह आलस्य और मुर्दनी | खड़ा हो | ढंग के कपड़े पहन | दिल में उत्साह जगा | और संकल्प के लिए तैयार हो जा | 

हमने कहा- हमारे संकल्पों से क्या होता है ? आज तक कोई संकल्प पूरा नहीं हुआ तो हमने विकल्पों में ही मन रमा लिया है |

बोला- मैं तेरे संकल्पों की बात नहीं कर रहा हूँ |मैं मोदी जी के संकल्प-दिवस के बारे में कह रहा हूँ |उन्होंने कहा है कि जैसे १९४२ में इस देश के लोगों ने एक संकल्प लेकर संघर्ष शुरू किया था- अंग्रेजो भारत छोडो |और देश को आज़ाद करवा लिया वैसे ही आज़ादी की सत्तरवीं वर्षगाँठ पर सब फिर संकल्प लें और अगले पाँच वर्षों में उन्हें पूरा कर दिखाएँ | अब यह तेरी मर्ज़ी है कि तू इस संकल्प में शामिल होता है या निर्देशक मंडल के सदस्यों की तरह मुँह फुलाकर बैठा रहता है | वैसे यह मोदी जी की महानता है कि उन्होंने समस्त देश के साथ तुझे भी संकल्प लेने के लिए आमंत्रित कर लिया वरना आज के दिन वे विश्व के एकमात्र ऐसे नेता हैं जो कोई भी संकल्प अपने अकेले के दम पर ही पूरा कर सकते हैं |

हमने कुर्ता-पायजामा पहनकर तैयार होने में ही भलाई समझी क्योंकि पता नहीं, कौन युवा अपना स्मार्ट फोन लिए हमें ट्रोल कर रहा हो और बात का बतंगड़ बन जाए |

तोताराम ने एक हाथ सीने पर रखा |हमने भी उसका अनुकरण किया |
तोताराम एक-एक करके बोलता गया और हम आँखें बंद किए हुए पूरे मन से उसके साथ दुहराते गए- 

-गन्दगी भारत छोड़ो, गरीबी भारत छोड़ो, भ्रष्टाचार भारत छोड़ो, आतंकवाद भारत छोड़ो, जातिवाद भारत छोड़ो, सम्प्रदायवाद भारत छोड़ो |

जैसे ही संकल्प समाप्त हुआ हमने आँखें खोली | आश्चर्य ! देश इन सभी समस्याओं से मुक्त | वास्तव में जब कोई सच्चा और महान व्यक्ति सच्चे मन से, श्रद्धा और विश्वास के साथ संकल्प लेता है तो चमत्कार हो जाता है |

हमने कहा- तोताराम |वास्तव में तुमने आज बहुत बड़ा काम किया है |एक ही झटके में सारे घर के बदल डाले |चल, इसी भाव से कुछ और संकल्प लेते हैं |

अबकी बार हमने कुछ संकल्प बोले और तोताराम ने उन्हें दुहराया- 

बीमारियो भारत छोड़ो, मिलावट भारत छोड़ो, बेरोजगारी भारत छोड़ो, धार्मिक कट्टरता भारत छोड़ो, आत्मप्रशंसा भारत छोड़ो, परनिंदा भारत छोड़ो, जुमलेबाजी भारत छोड़ो, यौनापराधियो भारत छोड़ो |

इसके बाद हमने पहले की तरह आँखें खोलीं लेकिन इनमें से एक ने भी भारत नहीं छोड़ा |हमने पूछा- तोताराम, यह क्या हुआ ?

बोला- संकल्प वाले में दम होना चाहिए |

हमने कहा- तोताराम, हमें चेलेंज मत कर |देख,अब हम एक संकल्प लेते हैं |तेरा मन हो तो दुहरा ले अन्यथा कोई फर्क नहीं पड़ता |और देखना पाँच साल तो बहुत दूर है, पाँच मिनट में ही यह संकल्प पूरा हो जाएगा |

हमने अपना संकल्प उच्चारित किया-
सच्चे लोकतंत्र के लिए सभी विपक्षी दलो, भारत छोड़ो |

और जब आँखें खोलीं तो देश में सच्चा लोकतंत्र आ चुका था |

  

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Aug 7, 2017

कीचड़ का कारोबार

 कीचड़ का कारोबार 

हमारे इलाके में नगर परिषद् द्वारा जल निकासी के लिए नालियों का जो निर्माण हुआ है संभवतः उसका ठेका उसी आदमी को दिया गया होगा जिसने इन्द्रप्रस्थ में युधिष्ठिर का महल बनाया था | उस महल की विशेषता थी कि उसमें जहाँ पानी दिखाई देता था वहाँ ज़मीन या फर्श होता था और जहाँ ज़मीन या फर्श दिखाई देते थे, वहाँ पानी होता था |हमारे इलाके में भी जिन नालियों द्वारा जल की निकासी होनी चाहिए उनमें जल संग्रहण का कार्य होता है |

लोगों ने अपने-अपने घरों के सामने जल संग्रहण से बचने के लिए मिट्टी या मलबा डलवा लिया है इसलिए सारा पानी सड़क के बीचोंबीच जमा रहता है |जल भराव का यह क्षेत्र कोई पाँच फीट चौड़ा है |इधर-उधर आना-जाना युवाओं के लिए तो सरल है लेकिन महिलाओं और बुजुर्गों को परेशानी होती है |आज तोताराम को हमारे बरामदे में आने के लिए इसी पाँच फीट चौड़ी वैतरणी को पार करना पड़ा |छलाँग थोड़ी छोटी रह गई इसलिए कुछ कीचड़ उछलकर उसके पायजामें पर भी लग गया |हमें संकोच हुआ; कहा- क्या करें बन्धु, सरकारी निर्माण है |विकास की जल्दी है | ऐसे में कोई कुछ बोल भी नहीं सकता |बोले तो विकास-विरोधी कहलाता है |

तोताराम हमेशा की तरह सामान्य भाषा की जगह आंग्ल भाषा में बोला- इट्स आल राइट |

हमने कहा- क्या आल राइट ? 

बोला- यह ब्लेसिंग इन डिस्गाइज़ है |इसका अगला स्टेप है- रेग्स टू रिचेज |मतलब कूड़े से करोड़पति |

हमने कहा- बन्धु, हम तो इस कीचड़ और मक्खी-मच्छर से परेशान हैं और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है |

बोला- मजाक नहीं कर रहा हूँ | कल को यदि तुम्हें कोई बड़ा निर्यात आर्डर मिल गया तो वारे-न्यारे समझ |

हमें उलझन हो रही थी |पूछा-कैसा निर्यात |साफ-साफ़ बता |

बोला- न्यूजीलैंड ने दक्षिणी कोरिया से अपने वहाँ आयोजित होने वाले मडटोपिया फेस्टिवल के लिए ४० लाख का 'मड पाउडर' आयात किया है |हालाँकि वहाँ के प्रबुद्ध लोगों ने इसका विरोध किया है |लेकिन जब तक सत्ताधारी दल के पास बहुमत है तब तक भौंकने दो भौंकने वालों को |क्या फर्क पड़ता है ? 

यदि कल को अपने यहाँ भी इसकी नक़ल पर ऐसा कोई फेस्टिवल चल पड़ा तो मज़ा आ जाएगा |वैसे मेरा एक मित्र है न्यूजीलैंड में |उसके थ्रू बात चलाते हैं |दक्षिण कोरिया वालों ने चालीस लाख में जितना कीचड़ बेचा है उतना हम उन्हें उपहार में दे देंगे |दक्षिणी कोरिया ने तो पाउडर दिया है हम तो बना-बनाया कीचड़ देंगे |नाम का नाम और दाम के दाम |

हमने कहा- भले आदमी, जब फ्री में देगा तो दाम कहाँ से मिलेंगे ?

बोला- आज तक तूने नौकरी की है |कभी कारोबार और सेवा नहीं की |हर सेवा में मेवा है फिर क्या गौ सेवा, गंगा सफाई और क्या जी.एस.टी. हो |कमाई कारोबार में ही है |फिर चाहे कारोबार कूड़े का हो या कस्तूरी का हो |कारोबार दुधारी तलवार है |आते और जाते दोनों तरफ काटती है |जैसे कोई माल बेचे या खरीदे, सरकार को तो दोनों तरफ से २८ प्रतिशत जी.एस.टी. मिल जाएगा |किसी चीज की दो बार खरीद-फरोख्त का कारोबार हो गया तो पूरी कीमत सरकार की |

यहाँ की नगर परिषद् से नालियों के कीचड़ की सफाई का ठेका ले लेंगे |उठाकर ले जाएँगे न्यूजीलैंड वाले और सफाई के ठेके के पैसे अपने |

हमने पूछा- तो फ़िलहाल हम क्या करें ?

बोला- रात को जागकर पहरा देता रह | कहीं कोई कीचड़ उठा न ले जाए | सुना है ऊर्जा बनाने के लिए स्वीडन में भी कूड़े की कमी पड़ रही | ऐसे में सब की निगाह हमारे देश की ओर ही ओर लगी हुई है | हम दुनिया की सबसे तेज़ बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं | हमारे जितना कूड़ा और किसके पास है ? 



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