Nov 27, 2008

तोताराम के तर्क - बसंती की इज्ज़त का सवाल



जब हेमा मालिनी ने अपनी किशोरावस्था में ड्रीम गर्ल के रूप में सपनों का सौदागर की नायिका की भूमिका में फिल्मी दुनिया में प्रवेश किया था उस समय हमारी और तोताराम की उम्र आश्रम-व्यवस्था के अनुसार गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की थी । यह बात और है कि तब तक बालविवाह के कारण हम दोनों के दो-दो बच्चे हो चुके थे । हेमाजी का जादू कुछ ऐसा चला था कि किशोरों से लेकर वृद्ध तक दोषपूर्ण सपने लेने लगे थे । सपने तो सपने हैं । कोई भी हजारों लोगों के सपने में एक साथ आ सकती है । वास्तविक जीवन में तो यह सौभाग्य केवल एक को ही मिल सकता है । सो यह सौभाग्य अपने समय के ही मैन धर्मेन्द्र को मिला । दोनों की सर्वाधिक प्रसिद्व फ़िल्म थी- शोले जिसमें हेमा जी बसंती बनी थीं और धर्मेन्द्र वीरू । गंगा-जमुना में नायिका का नाम था धन्नो पर शोले तक आते-आते धन्नो घोड़ी हो गई । पर रुतबे की बात है, ३०-३२ वर्षों बाद भी किसी ने घोड़ी का नाम बसंती रखने की हिम्मत नहीं की ।

आज जब तोताराम आया तो दौड़ने वाले जूते पहने हुए था और हाथ में थी एक लाठी । बैठने को कहा तो बैठा भी नहीं । बोला- जल्दी तैयार हो जा, डीग-कुम्हेर चलेंगे, बसंतीकी इज्ज़त खतरे में है । हमने कहा- गब्बर सिंह तो मर चुका । अब कौन नया गब्बर सिंह पैदा हो गया? वैसे असल बात यह है कि ज़िम्मेदारी वीरू की है । हम कहानी को नहीं बदल सकते । कहानी के अनुसार इज्ज़त ज़रूर बचेगी और बीरू ही बचायेगा ।

तोताराम को गुस्सा आ गया, बोला- यह कुतर्क करने का समय नहीं है, कर्म करने का समय है । डीग-कुम्हेर में चुनाव हो रहे हैं । हेमा जी ने कहा है- मेरी इज्ज़त के लिए दिगंबर सिंह को जिताओ । सो चल हेमा जी इज्ज़त के लिए चाहे लाठी चलानी पड़े, चाहे नकली वोट डालना पड़े पर दिगंबर सिंह को ज़रूर जिताएँगे । हमने कहा- तुझे पता है सामने कौन है? राजा विश्वेन्द्र सिंह हैं । बंदूक रखते हैं । जँच गई तो टपका देंगे । धरी रह जायेगी सारी मर्दानगी । फिर छठे वेतन आयोग के पेंशन का एरियर कोई और ही लेगा । और फिर हम कहाँ-कहाँ जायेंगे? आज बसंती की इज्ज़त दाँव पर लगी है, कल जयाप्रदा की दाँव पर लगेगी, परसों मायावती, नरसों जय ललिता । किस-किस के लिए सर फुड़वाते फिरेंगे? ये जानें इनका काम । और पहले भी तो इसी इलाके से पुकार आ रही थी- भरतपुर लुट गया हाय मेरी अम्मा । तब किसीने क्या कर लिया? गरम पानी थैली भर रखी है, आ घुटने सेंक ले । खड़े-खड़े दुखने लगे होंगे ।

तोताराम झल्ला गया, बोला- लानत है तेरी मर्दानगी पर! और दौड़ता हुआ डीग-कुम्हेर की तरफ भाग लिया । हमें उसकी सकुशल वापसी का इंतज़ार है ।

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२५ नवम्बर २००८



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Nov 26, 2008

बंधुआ मज़दूरी के लिए विधवा-विक्रय


आंध्र और कर्नाटक की सीमा पर की ढाणियों (हेमलेट्स) में सूअर पालने वाले कंचालू कोरचा या हंडी कोरचा नामक समुदाय में आज भी एक पुराना स्त्री-विरोधी, अन्यायपूर्ण रिवाज 'रुका' कायम है । इसमें विधवा स्त्री को उसकी ससुराल वाले किसीको भी बंधुवा मज़दूरी के लिए उसके बच्चों समेत बेच देते हैं जहाँ वे सूअर पालती हैं, झाड़ू बनाती हैं और घर के अन्य काम भी करती हैं और जो भी अन्याय, यंत्रनाएँ और शोषण हो सकते हैं उन्हें भोगती हैं ।

चार वर्ष पूर्व सोदगु वेंकटेश नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा नागम्मा नामक एक ३६ वर्षीया की त्रासदी तत्कालीन मंत्री बी.डी.ललिता नायक के सामने रखी तो मंत्री ने नागम्मा के लिए एक घर, सूअर पालन के लिए ऋण एवं अन्य लाभों का वादा किया । किंतु जैसा कि होता है, अभी तक कुछ नहीं हुआ । अब जब यह मामला पुनः समाज कल्याण मंत्री डी. सुधाकर के सामने लाया गया तो फिर घर, ऋण और बच्चों की मुफ्त शिक्षा का वादा किया गया है जो पता नहीं कब पूरा होगा या होगा भी कि नहीं ।

आज ४० बरस की हो चुकी नागम्मा की १४ वर्ष की उमर में नारायणप्पा से शादी हुई जिससे नागम्मा को चार बच्चे हैं । चार बरस पूर्व नारायणप्पा की मृत्यु हो गई । इसके बाद ससुराल वालों ने नागम्मा को सम्पत्ति में कोई हिस्सा नहीं दिया और उसे बच्चों सहित ३२ हज़ार रुपयों में मद्दलेती नामक सम्पन्न सूअर पालक को बेच दिया । घटना प्रकाश में आने पर मद्दलेत्ती और उसके रिश्तेदारों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया जिन्हें छुड़ाने के लिए नागम्मा को १२ हज़ार का इकरारनामा भरना पड़ा । नागम्मा को अपने आप को बंधन से छुड़ाने के लिए अपने नए मालिक द्वारा ससुराल वालों को दी गई ३२ हज़ार की राशिः भी उधार लेकर चुकानी पड़ी । इस प्रकार नागम्मा पर ४४ हज़ार का कर्जा हो गया । जिसे वह आज भी चुका रही है ।

नागम्मा को रहने के लिए झोंपड़ी बनाने के लिए एक किसान ने बंजर भूमि का एक टुकड़ा दे रखा है । जहाँ नागम्मा झाड़ू बनाती है । चार रुपये की एक झाड़ू बिकती है । चार बच्चों का पालन पोषण । कब तक चुकेगा नागम्मा का कर्ज़ा? घर में न पानी है और न बिजली । नागम्मा ने किसी तरह दो बेटियों का विवाह कर दिया है । सबसे छोटी ने पढ़ना छोड़ दिया है, एक बेटी दसवीं में पढ़ रही है जिसे सरकार से एक साईकिल मिली हुई है ।

नागम्मा के जीवन, संघर्षों और कष्ट की क्या हम कल्पना करना चाहेंगे? क्या रोजाना हजारों रुपये दारू में बहा देने वाले और नए साल के स्वागत में लाखों रुपये नाच गान में फूँक देने वाले इस पर विचार करेंगे? क्या राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश की दलित महिला कलावती की तरह नागम्मा के घर पधारेंगे? क्या विन्धेश्वर पाठक अब भी कलावती के मामले जैसी उदारता दिखाएँगे?

अभी तो सभी सेवक लोकतंत्र की रक्षा के लिए खून, पसीना और पैसा बहने में व्यस्त हैं ।

एक शे'र सुनिए-
बंधुआ है मज़दूर अभी तक
मगर मुक्त व्यापार हो गया ।

पाप बहुत बढ़ गए धरा पर,
पर मुश्किल अवतार हो गया ।

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२३ नवम्बर २००८



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Nov 23, 2008

तोताराम के तर्क - ओबामा की प्राथमिकता और अपने अपने लादेन


ओबामा के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बनने की घटना को व्यापार जगत भुना रहा है । प्रकाशक ओबामा की किताबें मँहगे दामों में बेच रहे हैं तो वस्त्र व्यापारी ओबामा के फोटो वाली टी शर्ट । व्यापारी दाह संस्कार में भी व्यापार कर लेता है तो यह तो एक अभूतपूर्व घटना है । पर हम कोई व्यापारी तो हैं नहीं जो धंधा करें । हम तो निस्वार्थ शुभचिंतक हैं और तिस पर ओबामा हमारे बेटे की उम्र का । उसे सही मार्गदर्शन देना हमारा कर्तव्य है । सो आज जैसे ही तोताराम आया हमने उसके सामने स्थिति रखी । देखा, बालक फँस गया न बुशवाले चक्कर में? अच्छा होता इस अवसर का सदुपयोग कालों के शैक्षणिक और सामाजिक विकास के लिए करता, नस्लीय भेदभाव को मिटा कर सद्भाव बढ़ाता, देश को मितव्ययिता की सीख देकर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता पर यह तो पड़ गया ओसामा के पीछे बुश की तरह । कहता है ओसामा को जिंदा या मुर्दा पकड़ना मेरी पहली प्राथमिकता होगी । सोचते हैं एक पत्र उसे समझाने के लिए लिख ही दें ।

तोताराम हँसा, बोला- बच्चा ओबामा नहीं तू है । उम्र भले कम हो पर है पक्का घाघ । राज करने के लिए ओसामा ज़रूरी है । ओसामा का डर दिखा कर बुश आठ साल राज कर गये और अब यह इसी मुद्दे पर आराम से चार साल राज करेगा और अगर इस मुद्दे को आगे भी जिंदा रख सका तो एक टर्म और पेल जाएगा । ओसामा न पकड़ा गया और न पकड़ा जाएगा । जैसे समझदार डाक्टर न तो मरीज़ को मरने देता है और न ठीक ही होने देता है । बस जीवन भर कमाई करता रहता है । चतुर ट्यूटर कभी परीक्षा से पहले कोर्स पूरा नहीं करवाता है । राजनीति में सबके अपने-अपने ओसामा होते हैं जिन्हें सत्ता के लिए जिंदा रखना ज़रूरी होता है । पाकिस्तान के लिए कश्मीर एक ओसामा है तो भाजपा के लिए समान नागरिक संहिता, धारा ३७० और राम मन्दिर मुद्दा एक ओसामा है । तभी तो सत्ता मिलने पर भी इन मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाल दिया । अब जब लोकसभा चुनाव आएगा तो फिर इन मुद्दों को बाँस पर टाँग कर घूमेंगे । कांग्रेस के पास धर्मनिरपेक्षता और गरीबी हटाओ के ओसामा हैं भले ही वोट के लिए अल्पसंख्यक तुष्टीकरण करें । मायावती के ओसामा सवर्ण मनुवादी है । जयललिता और करूणानिधि एक दूसरे के ओसामा हैं ।

हमने पूछा- तो फिर ओबामा के जीतने से अमरीका में कोई परिवर्तन नहीं आएगा? तोताराम ने उत्तर दिया- यह भ्रम तुझे और संसार के सारे मतदाताओं को अपने मन से निकल देना चाहिए कि सरकारें उनका उद्धार करेंगी । चुनाव लड़ना ,सरकारें बनाना भी अन्य व्यवसायों की तरह एक व्यवसाय है और कौन व्यवसायी चाहेगा कि उसका ग्राहक समझदार हो या ग्राहक का भला हो । उसे तो अधिक से अधिक लाभ कमाना है । इसलिए भइया, अगर सुख शान्ति चाहते हो तो जाति, धर्म,नस्ल के झगड़े भुला कर प्रेम से रहो और टी.वी.और बाज़ार के बहकावे में मत आओ।

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१८ नवम्बर २००८

इंडियन एक्सप्रेस बीबीसी


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तोताराम के तर्क - वे देश चलाते हैं


सवेरे-सवेरे अखबार में कपिल सिब्बल का वक्तव्य पढ़ा तो बड़ी कोफ़्त हुई । जनाब ने फ़रमाया- सरकार का काम देश चलाना है । हमें किसी विमानन कम्पनी के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देना है ।

जैसे ही तोताराम आया,हम उसी पर पिल पड़े- देख लिया अपने जन सेवकों का दायित्व-बोध! शेयर बाज़ार के जुआरियों को बचाने के लिए तो जनता के टेक्स के हजारों रुपये लुटा रहे हैं और महँगाई और कर्मचारियों की छटनी पर जुबान नहीं खुलती । तोताराम ने हमारी बात का उत्तर नहीं देकर उल्टा हमें ही लपेटना शुरू कर दिया- तुझसे चालीस बच्चों की क्लास नहीं संभलती थी । पाँच-सात पोते-पोतियाँ तुझे नचा देते हैं और भाभी तो खैर पचास वर्षों से तुझे नचा ही रही है । तू आज तक किसी को भी चला सका? ये लोग देश को चलाते हैं । हमने कहा- देश तो अपने आप चलता है । वह बोला- यह देश अपने आप चलने वाला नहीं है । सबसे बड़ा देश फिर लोकतंत्र ऊपर से । कभी किसी सांसद को खरीदो, कभी किसी को मुख्यमन्त्री का पद देकर पटाओ, कभी इन अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करो, कभी उन अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करो । यह तो इन्ही का जिगर है जो देश को चला रहें हैं । ये न होते तो यह देश कभी का बैठ गया होता ।

हमने कहा- तोताराम, दखल तो देते हैं । शाहबानो वाले मामले में सर्वोच्च न्यायालय की मिट्टी कूटी थी या नहीं? तोताराम बोला- एक आध मामले की बात छोड़, इतिहास उठा कर देख कि कब देश चलाने वालों ने दखल दिया । पंचशील के अनुयायी हैं- कोई यहाँ घुस आए, कोई धर्म परिवर्तन करवाले, कोई अतिक्रमण कर ले, कोई आतंक फैला दे, कोई कानून को अपने हाथ में ले ले - ये सुशील बने रहते हैं । कितने उदाहरण चाहियें? शक, हूण, तुर्क, मंगोल, मुग़ल आए, अंग्रेज, फ्रांसीसी, पुर्तगाली आए, करोड़ों बंगलादेशी-पाकिस्तानी घुस आए, क्या किसीसे कुछ कहा? कोई दखल दिया? कश्मीर से पंडित भगाए गए, अमरनाथ यात्रियों को मारा गया, कश्मीर में पाकिस्तानी झंडा लहराया गया, शंकराचार्य को गिरफ्तार किया गया, क्या इन्होंने कोई अड़चन डाली? योरप-अमरीका यहाँ के बीज, संस्कृति, खान-पान, भाषा को खदेड़ रहे हैं तो क्या ये कुछ रुकावट दाल रहें हैं ? सो भइया, यदि तुझे कोई तक़लीफ़ है तो अपनी निबेड़ । इनके पास देश चलाने से ही फुर्सत नहीं है ।

हमें लगा- ख़ुद मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलाता । बहुओं के हाथ चोर नहीं मरवाए जाते ।

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१६अक्टूबर २००८



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मधुशाला पर फ़तवा और मोबाइल मैखाने


मौलाना कादरी जी,
अस्सलाम वालेकुम । हम आपको केवल मौलाना कादरी के नम से ही संबोधन कर रहे हैं । वैसे आपका पूरा नाम जो अंग्रेज़ी के अखबार में छ्पा था वह था- मौलाना मुफ़्ती अबुल इरफ़ान अहमद जैमुल अलीम कादरी । हमें लगा मौलाना शब्द सब के साथ कॉमन है और बाकी छः आपके सप्त ऋषि मंडल के सदस्य हैं । यदि ऐसा है तो ठीक है वरना हमें क्षमा करना । यदि यह सारा आप ही का नाम है तो गज़ब है साहब! इतने लंबे नाम तो अरब के शाहों के भी नहीं होते । ठीक भी है जितना बड़ा आदमी, उतना बड़ा नाम । हमारे यहाँ तो राम, शिव जैसे छोटे-छोटे नाम होते हैं ।

१० नवम्बर २००८ को मध्य प्रदेश के एक मुस्लिम संगठन ने आपकी अदालत में, हरिबंश राय बच्चन की मधुशाला की एक प्रति के साथ विचारार्थ एक मामला रखा । मधुशाला जैसी कृति का मूल्यांकन करने के लिए आपसे बेहतर साहित्य प्रेमी और हो भी कौन सकता था । आपने इस पुस्तक को इस्लाम विरोधी पाया और शैक्षणिक संस्थाओं के पाठ्यक्रम में रखे जाने के अनुपयुक्त पाया । वैसे यह कोई धार्मिक पुस्तक नहीं है । गुजरात को छोड़ कर भारत के सभी राज्यों में शराब का व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है । मिलाने को तो सब तरह की शराबें गुजरात में भी खूब मिलती हैं पर शराब-बंदी होने के कारण थोड़े दाम ज़्यादा देने पड़ते हैं । इतिहास पर नज़र डालें तो महान न्यायप्रिय बादशाह जहाँगीर रोजाना एक बोतल शराब पीता था । ऐसा संतोषी संत कैसा न्याय करता होगा ये तो अनुमान ही लगाया जा सकता है । बाबर जब राणा सांगा के साथ युद्ध में हारने लगा तो उसने मन्नत माँगी कि यदि वह युद्ध में जीत गया तो वह शराब पीना छोड़ देगा । इसका मतलब की वह पहले पीता था । बाद में उसने छोड़ी कि नहीं पता नहीं । अपने यहाँ नवाबी युग में तो शराब की नदियाँ बहती थीं । यहाँ के राजाओं, नवाबों ने शासन चलाने का काम तो अंग्रेज़ों को सौंप दिया था तो शराब पीने के अलावा और काम ही क्या रह गया था ।

स्थिति यह है कि न तो आप देश में शराब बनानेवालों को रोक सकते हैं और न बेचने वालों को । हमारे हिसाब से तो करनेवाले की बजाय किसी काम की प्रेरणा देनेवाला ज़्यादा बड़ा गुनाहगार होता है । एक युद्ध में कुछ सैनिकों को बंदी बना लिया गया । सबकी पेशी हुई और पूछताछ की गई । अंत में जिसका नंबर आया उसके पास कोई हथियार नहीं था । थी तो मात्र एक ढोलक थी । पूछा गया कि तू सेना में क्या काम करता था तो बोला- हुज़ूर मैं तो ढोलक बजा कर गाता था उससे जोश में आकर सैनिक लड़ते थे । पूछताछ करनेवाले अधिकारी ने कहा- सैनिकों को छोड़ दो और इस ढोलक बजाने वाले को फाँसी दे दो । यही सारी खुराफ़ात की जड़ है । सो बनाने, पीने, पिलाने और बेचनेवालों को छोड़ कर आपने इस सारी खुराफात की जड़ को धर दबोचा, अच्छा किया ।

वैसे दंड तो पीनेवालों को भी मिलना चाहिए । अरब में एक ख़लीफा हुए हैं । वे शराब को बहुत बुरा मानते थे । शराब पीने वालों को एक सौ कोड़ों की सज़ा तय कर रखी थी । शराबियों की आफ़त । उन्होंने एक योजना बनी । किसी तरह उन्हीं के बेटे को शराब पिला दी, गिरफ़्तार भी करवा दिया और अंत में सिफ़ारिश भी करने पहुँच गए- हुज़ूर बच्चा है, माफ़ कर दीजिये । पर ख़लीफा उनकी चाल समझ गए । बोले- नहीं, कोड़े लगेंगे और पूरे एक सौ । और कोड़े भी हम लगायेंगे । पचास कोड़ों में ही साहबजादे बफ़ात पा गए । उसी दिन दफ़ना भी दिया गया । अगले दिन ख़लीफा को ख्याल आया कि कोड़े पचास ही लगाये थे । सो लाश को कब्र से निकलवाया गया और पचास कोड़े और लगाये ।

सो कादरी साहब, फ़तवा हो तो ऐसा, सज़ा हो तो ऐसी और क्रियान्वयन हो तो भी ऐसा ही । वैसे मधुशाला लिखनेवाले बच्चन साहब तो इस दुनिया में हैं नहीं । यदि आप कोड़े लगाने कि सज़ा देते भी तो किसे, वे तो पंचतत्त्व में विलीन हो चुके । यह सुविधा तो दफ़नाने वाले समाजों में ही है । सैंकडों साल बाद भी चाहो तो कब्र में से कंकाल निकलवा कर उसकी मिट्टी पलीद कर दो । अब देखिये ना, पॉप साहब ने केरल की एक नन को संत का दर्जा दिया तो उसकी मिट्टी खुदवा कर वेटिकन में मँगवा ली । किसी हिंदू को मृत देह के अभाव में संत का दर्जा नहीं दिया जा सकता है कि भारत में कोई हिंदू संत बनने के काबिल है ही नहीं ।

आप इन साहित्य वालों की एक मत सुनना । ये कुछ कह देते हैं और फिर कहते हैं यह तो प्रतीक था या यह तो रूपक था । हम आपको कुछ उदहारण देते हैं आप इन पर भी विचार करके बैक डेट से फ़तवे सुना दीजियेगा । कबीर का एक पद है- पीले ना प्याला, हो मतवाला । उमर खैयाम ने तो जो रुबाइयाँ लिखी हैं उनसे तो आप वाकिफ़ होंगे ही । दारू के अलावा कुछ नहीं । गुरु नानक जी जब एक बार मक्का-मदीना की यात्रा पर जा रहे थे तो रस्ते में उनको एक रईस ने शराब पेश की तो गुरु बोले- हम ने तो ऐसी शराब पी रखी है जिसका नशा कभी उतरता ही नहीं । अब आपको और क्या प्रमाण चाहिए । ग़ालिब तो पक्का शराबी था ही । एक बार ग़ालिब दरी बिछा कर नमाज़ पढ़ने की तैयारी कर रहा था । लोगों को आश्चर्य । ग़ालिब और नमाज़? तभी ग़ालिब ने दरी समेटी और चल दिये । लोगों ने पूछा- मियाँ यह क्या? ग़ालिब बोले- जिसके लिए नमाज़ पढ़ रहा था वह तो ख़ुदा ने अता फरमा ही दी तो नमाज़ पढ़ कर क्या करना । लोगों ने देखा की गली के नुक्कड़ पर ग़ालिब का दोस्त शराब की बोतल हिला-हिला कर ग़ालिब को बुला रहा था । लाहौल विला कुव्वत! उसी ग़ालिब की कब्र दिल्ली में है । खुदवा कर उसकी मिट्टी पलीद करें । हम आपके साथ हैं । यदि आधुनिक युग में सुधार करना चाहें तो बड़े-बड़े सूफियों का खून टेस्ट करवाएँ । अल्ला कसम! सबके खून में लाल परी दौड़ती मेलेगी । वैसे ये शराब का धंधा करने वाले, पीने और पिलाने वाले हैं बड़े जालिम । शरबती आँखों से ही पी पिवा लेते हैं । ऐसे मोबाइल मैखानों को कहाँ तक कंट्रोल करेंगे? अच्छा हो कि अपन भी एक-एक पैग दबा लें । फिर दुनिया जाए भाड़ में ।

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मधुशाला की जिन पंक्तियों पर एतराज़ जताया गया है वो इस प्रकार हैं —

शेख कहाँ तुलना हो सकती मस्ज़िद की मदिरालय से,
चिर विधवा है मस्ज़िद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला ।

बजी नफीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीने वाला ।

शेख बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को,
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला ।

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१७ नवम्बर २००८

बी-बी-सी की ख़बर - कराची में तो शराब पीने वालों में अधिकतर मुसलमान हैं, पत्रिका की ख़बर


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तोताराम के तर्क - दीदी का चांटा


आज जब तोताराम आया तो उसने शाल से सिर और चेहरा ढक रखे थे । हमने हँस कर पूछा- तोताराम अभी तो नवम्बर का पहला सप्ताह ही है और तूने शाल ओढ़ना शुरू कर दिया, दिसम्बर-जनवरी में क्या करेगा । तोताराम ने कोई उत्तर नहीं दिया । बस हूँ हाँ करके ही कम चलाता रहा । तोताराम सामने हो और चर्चा न हो, यह कैसे हो सकता है । अजीब बात है ना? इसके बाद जब चाय आई तो भी वह चेहरा ढके-ढके ही चाय पीने की कोशिश करने लगा । हमने उसकी शाल खींच ली और कहा- यह क्या नव वधू की तरह लजा रहा है? पर यह क्या? आँख के पास से तोताराम का चेहरा सूजा हुआ था । हमें कुछ चुहल करने की सूझी,पूछा- क्या ओबामा की जीत के कारण खुशी से फूल रहा है या फिर बंटी की दादी ने तेरा नागरिक अभिन्दन कर दिया? तोताराम ने धीरे से कहा- नहीं, अभी उसका इतना सशक्तीकरण नहीं हुआ है । और जहाँ तक ओबामा के जीतने बात है तो उसमें क्या खुशी की बात है । उसके जीतने से कौनसी भारत में महँगाई कम हो जायेगी । मैं तो भैया दूज पर दीदी के यहाँ गया था, पता नहीं बात-बात में क्या हुआ कि दीदी ने कसकर एक चाँटा मार दिया । बस उसी से आँख के पास थोडा नील पड़ गया । हमने कहा- तूने कोई गलती की होगी । बोला- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं थी पर हो सकता है दीदी को कुछ ज़्यादा ही प्यार आ गया हो । जब दीदी को ज़्यादा प्यार आता है तो अक्सर ऐसा हो जाता है । अब भई, जो दीदी इतना प्यार करती है उसे चाँटा मारने का भी तो अधिकार हो ही जाता है । खैर कोई बात नहीं ।

हमें बड़ा अजीब लगा, कहा- फिर भी भई, तुम इतने छोटे बच्चे थोड़े ही हो कि जो चाँटा ही मार दें । तोताराम बोला- मास्टर, यह तो खैरियत है कि दीदी को ज़्यादा गुस्सा नहीं आया वरना तुझे पता है उनके पास रिवाल्वर भी है । यदि गोली मार देती तो कौन, क्या कर लेता ।

हम तय नहीं कर पाये कि जब उमा भरती ने अपनी पार्टी के महामंत्री अरुण राय को सबके सामने चाँटा मार दिया तो वे बहिन के वात्सल्य के कारण चुप रहे या रिवाल्वर के डर से । हमारे कोई बहिन नहीं है । पहले हम इस बात को लेकर दुःखी रहा करते थे पर आज लगा कि बहिन नहीं तो कोई बात नहीं, थोबड़ा तो सलामत है ।

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६ नवम्बर २००८

जागरण लिंक

( लेख पहले ही लिख दिया था, पाठकों के समक्ष पहले नहीं रख पाया, उसके लिए क्षमार्थी हूँ )


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अमरीका के अगले राष्ट्रपति के नाम


सारा पालिन मैडम,

जय सियाराम ।
आप सोच रही होंगी कि पिछली बार राम-राम लिखा था और अबकी बार जय सियाराम क्यों? बात यह है कि आज भले ही हमारे यहाँ कन्या भ्रूण हत्या या दहेज़ हत्याएं होती हों पर हमारी परम्परा में नारी का बड़ा सम्मान है । सो नारी का नाम पहले है जैसे कि सीताराम, गौरी शंकर, राधेश्याम आदि । धन, ज्ञान और शक्ति की देवियाँ भी लक्ष्मी, सरस्वती और काली भी स्त्रियाँ हैं । हमारे यहाँ राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, पार्टी अध्यक्ष, राज्यपाल, मुख्यमन्त्री, एम. एल.ए., जिलाप्रमुख, कलक्टर सब महिलायें हैं । आपके यहाँ महिलाओं को मताधिकार भी आजादी के सैंकडों साल बाद मिला ।

वैसे तो अब आप अलास्का पहुँचकर बाल बच्चों को संभाल रही होंगी । अब अखबार वालों ने भी आपका चेप्टर बंद कर दिया है । चढ़ते सूरज को सब नमस्कार करते हैं । अब ओबामा के खाँसने-थूकने की खबरों से अखबार लिथड़े होंगे । पर हम कुर्सी नहीं, गुणों की कदर करते हैं । हम आपमें अमरीका का अगला राष्ट्रपति देख रहे हैं । कनाडा के मसखरों ने तो आपको सरकोजी की आवाज में वास्तव में मूर्ख बनाया । हमारे यहाँ भी अब कई ज्योतिषी मुँह निकाल रहें हैं कि उन्होंने ओबामा के जीतने की भविष्यवाणी कर दी थी । अब सबूत क्या है? पर हम तो आपको लिख कर दे रहे हैं । जिस दिन आप राष्ट्रपति बन जाएँ उस दिन हमें याद कर लीजियेगा । अब उन मँहगे कपड़ों को धोकर, प्रेस करके रख दीजियेगा । चार साल बाद काम आयेंगे ।

पहले हमने ओबामा के जीतने के बारे में नहीं सोचा था क्योंकि अमरीका में काले राष्ट्रपति की परम्परा ही नहीं है । जब एक परम्परा टूट गयी तो दूसरी भी टूटेगी । मतलब कि महिला भी राष्ट्रपति भी होगी । तब आपसे बेहतर कौन है इस पद के लिए । बस अभी से भिड़ जाइए ।

आपकी एक बात हमें बहुत पसंद है कि आप तलाक़ के चक्कर में नहीं पडीं, बच्चों के उत्पादन में गंभीरता से योगदान दिया । अमरीका में लोगों को तलाक़ से फुरसत नहीं है तो बच्चे कब पैदा करें । अगर यही हाल रहा तो विद्वानों का मानना है कि २०४२ तक अमरीका में गोरे लोग अल्पमत में आ जायेंगे । हमारी तो सलाह है कि आप लोगों को अपना उदाहरण देकर अधिक से अधिक बच्चे पैदा कराने के लिए प्रेरणा दें । अन्यथा एक दिन अमरीका पर रंगीन लोंगो का राज हो जायेगा । हमारे यहाँ के एक महान विचारक तोगडिया जी ने इसीलिए हिन्दुओं को आठ-आठ बच्चे पैदा कराने की सलाह दी थी पर इन नासमझ हिन्दुओं ने कोई ध्यान नहीं दिया । कहते हैं आठ-आठ बच्चों को खाना कौन खिलायेगा ।

इतना भी नहीं समझते कि जिसने चोंच दी है वह चुग्गा भी देगा । आप के यहाँ तो वैसे भी अनाज की क्या कमी है । सूअरों तक को अनाज खिलाया जाता है । फिर भी बच जाता है तो उससे बिजली बना ली ज़ाती है । इसलिए पाप को प्रणाम करके इस पुण्य काम में लग जाइए और भविष्य के लिए गोरा राष्ट्रपति ही सुरक्षित करें ।

अमरीका की सभी गोरी महिलाओं के लिए दूधों नहाने और पूतों फलने का आशीर्वाद और आपके लिए राष्ट्रपति बनने की अग्रिम शुभकामनाएँ ।

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७ नवम्बर २००८



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Nov 18, 2008

तोताराम के तर्क - कलावती के कारण



एन गाना था- 'ये जो तन मन में हो रहा है, ये तो होना ही था।' लोग बताते हैं कि बड़ा मादक और उल्लासपूर्ण गाना था। वैसे हमको इसका कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है क्योंकि पिताजी ने इस महामारी से हमें बचाने के लिए सत्रह साल पूरे होने से पहले ही शादी कर दी थी। अब सड़सठ पार कर गए हैं सो घुटने में दर्द रहने लग गया है। और कुछ हो न हो पर ये तो होना ही था। जब प्रधानमंत्री के घुटनों में दर्द रहने लग गया हो तो हम तो एक साधारण रिटायर्ड मास्टर हैं। घुटनों में दर्द होने से उठते बैठते समय भले आदमियों के मुँह से हे राम निकलता है पर हमारे मुँह से निकालता है- ये तो होना ही था।

आज सवेरे जब तोताराम आया तो पोते पोतियाँ स्कूल जा चुके थे। पत्नी रसोई में थी, बोली- चाय ले जाओ। हम घुटनों पर हाथ रखकर उठने लगे तो मुँह से निकल गया- ये तो होना ही था। पर तोताराम ने न तो सहानुभूति कटाई और न ही ख़ुद चाय लेने के लिए उठा। उलटे बड़े व्यंगपूर्ण लहजे में बोला- ये तो होना ही था ! जैसे कोई बाढ़ ,सूखे या बम विस्फोट की तरह अपने आप हो गया है। अरे, इसके लिए बुश, मनमोहन, श्यामशरण, प्रणवमुखर्जी, राईस, मेनन, नारायणन ने दिन रात एक कर दिए। बुश ने तो आर्थिक संकट के समय भी रात-रात भर भाग-भाग कर किसी तरह सीनेट में पास करवा ही लिया। मनमोहन जी ने तो अपनी सरकार तक दाँव पर लगा दी। अमर सिंह ने तो सारी बेइज़्ज़ती भूल कर संप्रग को सहयोग दिया।

हमने कहा- कोई नेता देश और जनता के लिए कष्ट नहीं उठाता। सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं। बुश अमरीका की डूबती अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए और भारतीय विशेषज्ञों द्बारा अमरीका में कमाए गए डालरों को वापस लेने के लिए कोई न कोई फायदे का सौदा जाते-जाते कर जाना चाहते थे। अगर मनमोहन जी थोडा इंतज़ार करते तो बुश ख़ुद दिल्ली में आकर डेरा डाल देते और सौदा करके ही जाते। जब हजारों करोड़ की मेहंदी बट रही हो तो कौन हाथ पीले नहीं करना चाहेगा। पर भैया, जब दूल्हे को ही लार टपक रही हो तो कोई क्या कर सकता है। अमरसिंह तो मायावती से डरकर संप्रग के साथ आए हैं। मनमोहनजी को भी चुनाव से पहले कुछ कर दिखाना था। वैसे यह कोई उपलब्धि नहीं है बल्कि चौथाये उठाये खर्चे में ही हम सौर ऊर्जा का उपयोग करके भारत को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बना सकते हैं। और यदि तू किसी को श्रेय ही देना चाहता है तो अटलजी को इसका श्रेय दे जिनके कार्यकाल में इस समझौते की योजना बनी थी। यदि थोड़ा समय और मिल जाता तो वे यह समझौता कर भी जाते। हाँ, आज राजनीति के कारण भाजपा विरोध कर रही है तो उस स्थिति में कांग्रेस भी ऐसे ही विरोध करती।

तोताराम बोला- यदि एक ही व्यक्ति को श्रेय देना हो तो मैं इसका श्रेय राहुल बाबा को देना चाहूँगा। जैसे सत्यनारायण की कथा में सत्यनारायण भगवान ने कलावती के दुःख दूर किए वैसे ही राहुल बाबा ने भी कलावती नाम की एक दलित महिला के घर में बिजली की रोशनी पहुँचाने के लिए पूरा ज़ोर लगा कर यह परमाणु समझौता करवाया।

हमें बड़ी कोफ़्त हुई । हमने व्यंग्य किया- तब तो तोताराम,यह चंद्रयान भी शायद इसलिए भेजा गया है कि चंद्रमा से पानी लाकर कलावातियों की पानी की समस्या हल की जा सके। तोताराम ने बिना किसी झिझक के, बड़ी बेशर्मी से कहा- और नहीं तो क्या? तू समझता होगा चाँद पर घूमने के लिए चार सौ करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

हमें लगा, हमारे घुटनों से भी ज्यादा दर्द हमारे सिर में हो रहा है।

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Nov 16, 2008

प्रथम विश्व युद्ध के बेगाने शहीद


आज प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त हुए नब्बे वर्ष हो गए। ११ नवम्बर १९१८ को ११ बजकर ११ मिनिट पर युद्ध की समाप्ति के दस्तावेज़ों पर विधिवत हस्ताक्षर हुए। यह युद्ध योरप की साम्राज्यवादी शक्तियों में वर्चस्व के लिए था इसलिए इसका विस्तार योरप के साथ साथ एशिया, अफ्रिका के उन क्षेत्रों में भी फ़ैल गया जहाँ-जहाँ योरप के उपनिवेशवादी देशों का साम्राज्य था। इस युद्ध ने जहाँ इटली, जर्मनी और सोवियत रूस का नक्शा ही बदल कर रख दिया वहाँ रूस की साम्यवादी क्रान्ति के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया। इस युद्ध में जीवित बचे सैनिकों में अब कोई जीवित नहीं है।

आज इस युद्ध की समाप्ति की ९० वीं वर्षगाँठ योरप के कुछ देशों में मनाई जा रही है। ठीक है, भारत का इस युद्ध से कुछ लेना देना नहीं था किंतु ब्रिटेन का उपनिवेश होने के कारण यहाँ के लाखों सैनिकों को एशिया, अफ्रीका और योरप में झोंक दिया गया। ये सैनिक सस्ते थे, मुट्ठी भर चने खाकर लड़ सकते थे,पेंशन भी इनको ब्रिटिश सैनिकों से कहीं कम देनी पड़ती थी। मात्र नौकरी के लिए भारत के नब्बे हज़ार सैनिकों ने ब्रिटेन को युद्ध जिताने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। इसका ख्याल हमारी भागती दौड़ती जिंदगी और व्यक्तिवादी सोच में आता ही नहीं। चाहें तो दिल्ली के इंडिया गेट पर खुदे इन सैनिकों के नाम देख सकते हैं। ब्रिटेन ने यह स्मारक बना कर शिष्टाचार का परिचय दिया पर क्या आज़ाद होने के बाद हम अपने ही वीरों के लिए सामान्य सा शिष्टाचार भी निभा पाते है? नाचने-गाने वालों के गू-मूत के बड़े बड़े समाचार छापने-दिखाने वाले मीडिया के पास इन अनाम और बेगानी आग में कूदने वाले शहीदों के लिए कुछ स्थान और समय है?

बचपन में ननिहाल जाता था तो प्रथम विश्व युद्ध में भाग ले चुके नानाजी के कई मित्र उनके पास आते थे। कभी-कभी प्रथम विश्व युद्ध की चर्चा चलती थी जिसे सुनकर रोमांच हो आता था।

चलो और कोई नहीं तो आप और हम ही उन सैनिकों को याद करें।

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११ नवम्बर २००८



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तोताराम के तर्क - हाथ की सफाई


तोता राम के आते ही पत्नी चाय ले आई। तोताराम जैसे ही पकौड़ों पर झपट्टा मारने लगा, हमने कहा- पहले हाथ धो। तुझे पता नहीं, आज संयुक्त राष्ट्र संघ ने हस्त प्रक्षालन (हाथ-सफाई) दिवस घोषित किया है। हाथ न धोने से संसार के पिछडे देशों में हर साल लाखों लोग छूत की बीमारियों से मर जाते हैं। पकौड़ों के लालच में तोताराम हाथ धोने लगा। हमने उसे साबुन दिया और हाथ धोने का सही तरीका बताया। जब वह हाथ धो रहा था तो हमने हाथ-सफाई का गीत भी गाना शुरू कर दिया- 'वाश, वाश, हैण्ड वाश। खाने से पहले वाश, खाने के बाद वश। वाश, वाश, हैण्ड वाश।'

अब तो तोताराम चिढ़ गया- क्या तमाशा लगा रखा है? यह कोई स्कूल का प्रोग्राम चल रहा है क्या? क्या कोई टी.वी. या अखबारवाला यहाँ खड़ा है जो इतना नाटक कर रहा है? चार पकौड़ों के लिए क्यों इतना व्यायाम करवा रहा है? अरे, मरने वाले हाथ न धोने से नहीं बल्कि भूख और कुपोषण से मरते हैं। और जब खाने को ही कुछ नहीं है तो कैसा हाथ धोना और क्या मंजन करना। मुझे तो आश्चर्य इस बात का हो रहा है कि हमें हाथ धोने के बारे में पश्चिमवाले समझा रहे हैं जो ख़ुद शौच के बाद या खाना खाने के बाद धोने की बजाय कागज़ से पोंछ कर ही कम चला लेते हैं। अपने यहाँ तो बात-बात में हाथ धोते हैं और कुल्ले करते हैं अगर खाने को कुछ हो तो। पश्चिमवालों को किसीने हाथ धोने का महत्त्व बताया होगा तो उन्हें यह बात नई लगी होगी सो उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ से कह कर 'हाथ-धो दिवस' घोषित करवा दिया होगा। और तू जानता है कि अपने भारतवाले तो हैं ही उत्सवधर्मी। ये 'हाथ दिवस' तो क्या, घोषित हो जाने तो थूक दिवस, पाद दिवस, छींक दिवस, डकार दिवस कुछ भी मना सकता है।

हमने भाषण से बचने के लिए तोताराम को पकौड़ों तक पहुँचाया पर वह चुप नहीं न हुआ, बोला- अरे हाथ धोने के लिए तो सब तैयार हैं पर सामने कोई बहती गंगा तो हो। और फिर चाहे दिवस मनाएँ या नहीं पर बता क्या तूने किसी के हाथ गंदे देखे? कोलतार, चारा, यूरिया ताबूत- जाने क्या-क्या इधर-उधर हो गए पर क्या तूने किसी के हाथ पर कुछ लगा देखा? हाथ की सफ़ाई का क्या, वह तो साठ साल से देख ही रहे हैं। जिसे भी सत्ता मिलती है वही सब कुछ साफ़ कर जाता है। और सफ़ाई ऐसी सफ़ाई से करता है कि कोई पकड़ भी नहीं पाता। यदि हो सके तो हाथ की सफ़ाई बजाय अब दिल की सफ़ाई की बात कर। और वह भी एक दिन अख़बारों में समाचार छपवाने के लिए ही नहीं बल्कि वास्तव में चौबीसों घंटे, सातों दिन और बारहों महीने।

हमारा तोताराम से असहमत होने का प्रश्न ही नहीं था।

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८ अक्टूबर २००८



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Nov 15, 2008

तोताराम के तर्क - बुश की बिल्ली :ओबामा का कुत्ता



आज तोताराम ने आते ही पूछा- मास्टर, अपना मोती किस नस्ल का कुत्ता है? हमें हँसी आ गई, कहा- अरे, कुत्ते की भी कोई नस्ल होती है क्या? कुत्ता माने कुत्ता। सभी कुत्ते पूँछ हिलाते हैं, सभी कुत्ते तलवे चाटते हैं, सभी चोरों को देख कर चुपचाप पड़े रहते हैं और सज्जनों को भोंकते हैं। कुत्ते की अपनी कोई जाति, धर्म, नस्ल, भाषा, प्रांतीयता, राष्ट्रीयता नहीं होती। जैसा मालिक वैसा कुत्ता। नवाब का कुत्ता पूजनीय तो गरीब के कुत्ते को कोई भी पत्थर मार सकता है। बॉस का कुत्ता मुतिया नहीं, मोतीजी होता है। गरीब हीरा भी पहन ले तो काँच और अम्बानी काँच भी पहनले तो कोहिनूर। कुत्ते की नस्ल नहीं उसके मालिक का नाम पूछा जाता है। अपने देश में चुनाव में टिकट देते समय, स्कूल में प्रवेश, नौकरी में आरक्षण, सस्ता अनाज, मुफ्त बिजली देते समय भले ही जाति, धर्म पूछे जाते हों पर वैसे जाति धर्म की बात करना असंवैधानिक है। और अब जब ओबामा अमरीका के राष्ट्रपति बन गए तो समझले सारी दुनिया में नस्ल का प्रश्न बेमानी हो गया है। फिर भी आज तू कुत्तों की नस्ल के बारे में क्यों पूछ रहा है?

तोताराम बोला- भले ही ओबामा ने परिवर्तन के नाम पर जीत हासिल की हो पर व्हाइट हॉउस की परम्परा में परिवर्तन नहीं कर सकेंगे। उन्हें भी क्लिंटन और बुश की तरह कुत्ता पालना ही पड़ेगा। वैसे अभी बुश ने सलाह दी है कि कुत्ते की नस्ल जैसे महत्वपूर्ण मामले को अभी सार्वजनिक नहीं किया जाए। बुश ने अपनी बिल्ली का नाम 'इंडिया' रखा था मैं सोचता हूँ कि ओबामा को एक भारतीय नस्ल का कुत्ते भेंट करूँ और प्रार्थना करूँ कि वे उसका नाम 'भारत' रखें। इससे 'इंडिया की जगह 'भारत' की स्थापना की कामना कराने वालों की भी आत्मा शांत हो जायेगी। बुश के जाते-जाते 'इंडिया' को परमाणु समझौता मिला तो ओबामा के जाते-जाते भी भारत को भी कुछ न कुछ जरूर मिलेगा।

हमने कहा- फालतू की बातें मत सोच। कुत्ता कुत्ता ही होता है। हर कुत्ता टाँग उठाकर पेशाब करता है। कोई कुत्ता दूध नहीं देता। वे जाने उनके कुत्ते जाने। वैसे जहाँ तक इतिहास की बात है तो पिछले पचास साल में तो अमरीका ने पाकिस्तानी कुत्ते ही पसंद किए हैं। तोताराम बोला- पर यह भी तो सिद्ध हो चुका है कि पाकिस्तानी कुत्तों ने बिस्कुट तो अमरीका के खाए पर दुम हिलायी आतंकवादियों के आगे। ऐसे कुत्ते मौका लगने पर मालिक को भी काट सकते हैं। भारतीय नस्ल का कुत्ता भले ही पड़ोसी की मुर्गी चुरा कर न लाये पर मालिक को कटेगा तो नहीं। भारतीय कुत्ता अपना धर्म समझता है। खैर, ओबामा किसी भी नस्ल का कुत्ता पालें, कुत्ता पालें या गाय यह उनका आतंरिक मामला है। हमें तो इसी बात से खुश है कि तोताराम को भारतीय नस्ल के कुत्तों पर गर्व तो है।

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१२ नवम्बर २००८



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Nov 9, 2008

तोताराम के तर्क - ज़रदारी की बीमारी


जब से समाचार पढ़ा, हम तो भरे बैठे थे । जैसे ही तोताराम आया हम उस पर ही पिल पड़े- यार, यह ज़रदारी भी अजीब आदमी है । पहले नवाज़ शरीफ़ को चरका दिया और अब अमरीका यात्रा पर गया तो पालिन को देखते ही लार टपकाने लगा । कहता है- जितना सुना था उससे ज्यादा खूबसूरत पाया आपको । इसके बाद फोटोग्राफरों ने हाथ मिलाते हुए पोज़ देने को कहा तो क्या बोलता है- ये कहें तो गले लगा लूँ । कोई बात हुई ? ठीक है, विधुर है । मात्र तरेपन बरस का है पर शिष्टाचार भी कोई चीज़ है । तीन तीन बेटे-बेटियों का बाप है । बच्चे भी क्या सोच रहे होंगे? अपने मनमोहन जी को देखो, बेचारे आँख तक नहीं उठाते- पर दारेषु मातृवत ।

तोताराम ने तर्क फेंका- मनमोहनजी की भी भली कही । एक तो जन्मजात अध्यापक, दूसरे संयास की उम्र, तीसरे पौरुष ग्रंथि निकलवादी और चौथे मैडम साथ में । ज़रदारी की बात और है । एक तो उम्र 'अभी तो मैं जवान हूँ ', दूसरे ज़मींदारी खानदान, तीसरे चार-चार की परमीशन और फिलहाल एक भी नहीं । लोग तो पत्नी के मरने के बारह दिन के भीतर ही वैवाहिक विज्ञापन देखने लग जाते हैं । प्रेम का प्रतीक ताजमहल बनवाने वाले शाहजहाँ के हरम में पाँच हज़ार बेगमों का रेवड़ था । और तो और मुमताज़ महल के मरने के बाद भी कई और बेगमें कबाडी । ज़रदारी को दोष देने से पहले दुनिया के बड़े बड़े पत्नीशुदा लोगों का इतिहास तो देख ले । रीगन थेचर पर फ़िदा थे,सरकोजी समुद्र तट पर अठखेलियाँ करती ब्रूनी को देखते ही पत्नी को भूल गए, क्लिंटन महाराज की लम्पट लीलाएं तो जगजाहिर हैं ही । मियाँ भुट्टो का किस्सा भी अनजान नहीं है, नेहरू जी का भी अडविना पर माधुर्य भाव था । अटल जी ने भी अपने एक इंटरव्यू में कहा था की कुंवारा हूँ , ब्रह्मचारी नहीं । तो फिर ज़रदारी के पीछे ही दुधारी तलवार लेकर क्यों पड़ा है? और जब पालिन ने ही एतराज नहीं किया तो तू क्यों परेशान हो रहा है? और फिर ज़रदारी को तो भूलने की बीमारी है । मुशर्रफ़ के समय जाँच के दौरान ज़रदारी ने एक मनोचिकित्सक का प्रमाण पत्र भी पेश किया था की उन्हें भूलने की बीमारी है । तो हो सकता है कि भूल से पालिन को उसने कुछ और समझ लिया हो । और फिर यदि दो देशों के नेताओं में मधुर सम्बन्ध होंगें तो उन देशों के सम्बन्ध भी मधुर होंगे ही और इस प्रकार विश्वशांति को बढ़ावा मिलेगा ।

हमें तोताराम के दूसरे तर्क में दम लगा ।

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२७ सितम्बर २००८



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तोताराम के तर्क - खेलरत्न बिपाशा बसु


आते ही तोताराम चालू हो गया, बोला- यह सरकार भी अजीब है । जिस हाकी में भारत क्वालीफाई भी नहीं कर सका उसके अधिकारियों को तो बीजिंग घूमने भेज दिया पर बेचारी बिपाशा बसु को खेल रत्न भी नहीं दिया गया । हम चौंके । क्या? बिपाशा को खेल रत्न! भई जो खेल बिपाशा खेलती है वे विज्ञापन, मीडिया और सिनेमा में तो चर्चित् हो सकते हैं पर ओलम्पिक में तो नहीं ही खेले जाते । जान अब्राहम के साथ वह जो खेल खेल रही है या पर्दे पर रिकार्ड संख्या में चुम्बन दृश्य कर रही है वे किसी और ही खेल का हिस्सा हैं । हाँ नेताओं ने ज़रूर खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए लाखों करोड़ों के नक़द पुरस्कार देने की घोषणा की है ।

तोताराम हंसा- बन गया ना उल्लू। अरे! इन पुरस्कारों में नेताओं के बाप का क्या जाता है? जनता का पैसा है। लुटाने में किसी को क्या दर्द । अपनी कमाई में से देते तो भी एक बात । बिपाशा को देख । कांस्य पदक की घोषणा होते ही उसने बिजेंद्र को फोन कर दिया कि वह उसके साथ डेटिंग करके उसे पुरस्कृत कराने के लिए तैयार है । इसमें जो शारीरिक या मानसिक ख़तरा हो सकता था उठाने के लिए तैयार हो गई । यदि उसने यह प्रस्ताव पहले दे दिया होता तो बिजेंद्र कांस्य क्या, स्वर्ण पदक ले आता ।

हमने डाँटा - क्या बात करता है । अगर यह प्रस्तावा पहले दे देती तो पदक क्या क्वालीफाई भी नहीं कर पाता । और अब उसको जिस तरह से सेलेब्रिटी बनाया जा रहा है, देख लेना अगले ओलम्पिक में गया कांस्य पदक से भी । प्रस्ताव सुनकर ही छोरे के घुटनों में पानी पड़ जाता होगा । अब हो ली मुक्केबाजी ।

तोताराम बोला- सौंदर्य में बड़ी शक्ति होती है । देखता नहीं, हीरोइन के सौंदर्य के बल पर ही तो हीरो विलेन और उसके दस-दस हट्टे-कट्टे साथियों को पछाड़ देता है । बिजेंद्र नहीं तो और लाखों युवक इस प्रस्ताव को सुनकर सर और थोबडा तुड़वाने के लिए तैयार हो जायेंगें और हो सकता है, कोई न कोई पदक ले ही आए । यदि पदक नहीं भी आए तो भी बिपाशा के इस खेल प्रेम की तो प्रशंसा की ही जानी चाहिए ।

हम चुप हो गए, क्या करते ।

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२२ अक्टूबर २००८



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Nov 6, 2008

मोती का डर


मोती हमारी गली का एक वरिष्ठ कुत्ता है । हालांकि उसका रंग काला है पर मन मोती की तरह उजला । हो सकता है इसीलिए बच्चों ने उसे मोती नाम दिया हो । मोती शुरु में हमारे घर के आँगन के एक कोने में गड्ढा खोद कर सोता था| थोड़ा बड़ा होने पर उसने गली के एक नुक्कड़ पर बने बिना दरवाजे के पम्प हॉउस को अपना मुख्यालय बनाया| यहीं से वह गली में आने जाने वाले संदेहास्पद लोगों पर सतर्क दृष्टि रखा करता है। वह रोटी के टुकड़े के लिए कभी कुत्तों की तरह नहीं लड़ता । उसने कभी बंगलादेशी या पाकिस्तानी घुसपैठियों की तरह दूसरी गली में अवैध प्रवेश नहीं किया । अनावश्यक रूप से भौंकता भी नहीं । अनावश्यक रूप से दुम भी नहीं हिलाता । कोई आहट होती है तो थोड़ा सा आँखे खोल कर देख लेता है कि कहीं कोई अवांच्छित तत्व तो नहीं है, बस ।

आज जैसे ही हम घर में घुसने लगे तो मोती हमारे साथ ही दरवाजे में घुसने लगा । हमें कुछ अस्वाभाविक सा लगा पर हमने मोती को रोका नहीं । बरामदे में रखी स्टूल पर बैठे तो वह हमारे पैरों के पास आकर बैठ गया और हमें घूरने लगा । हमें लगा जैसे मोती कुछ कहना चाहता है । यह क्या? मोती मनुष्यों की बोली में बोलने लगा- मास्टरजी, आप कुछ दिनों के लिए मुझे अपने चौक के एक कोने में सोने की अनुमति प्रदान कीजिए । हमने पूछा क्या बाहर ठण्ड लगती है या डर लगता है? उसने उत्तर दिया- ऎसी कोई बात नहीं है पर ऐसा है कि शीघ्र ही चुनाव होने वाले हैं और मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता ।

हमें आश्चर्य हुआ । तुम्हें चुनाव से क्या मतलब? न तो तुम्हारा नाम वोटर लिस्ट में है और न तुम कुत्तों की तरह लड़ते हो फिर तुम्हे चुनाव से क्या ख़तरा? वह बोला- मैं कल घूमता घामता एक पार्टी के चुनाव कार्यालय में चला गया था । वहाँ कुछ कार्यकर्ता बातें कर रहे थे कि चाहे काले कुत्ते का गू ही क्यों न खाना पड़े चुनाव अवश्य जीतना है । सो गुरुजी, क्या पता गू के चक्कर में कहीं मेरी आंतें ही न फाड़ डालें । हमें हँसी आगई, कहा- मोती यह साहित्यिक भाषा है । तुमने इसका शाब्दिक अर्थ ले लिया । कुत्ते के गू का मतलब है कि नीच से नीच काम करना । वे चुनाव जीतने के लिए कुछ कराने के लिए तैयार हैं जैसे-जातिवाद, धर्म, भाषा, प्रांत भेद फैलाना, दारू और पैसे से वोट खरीदना, ह्त्या, अपराध, दंगे करवाना, नकली वोट डलवाना, बूथ पर कब्जा करना आदि ।

मोती उदास हो गया, बोला- गुरुजी फिर तो यह काले कुत्ते का गू खाने से भी गया गुजरा काम है । हम मोती की बात से सहमत थे पर क्या कर सकते थे । हमारा लोकतंत्र साठा होकर पाठा जो हो गया था ।

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२० अक्टूबर २००८


छः राज्यों में चुनावों की घोषणा



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Nov 5, 2008

सलाम अमरीका



हम अमरीका की भोगवादी, पूंजीवादी, नस्लवादी, गोरी कुंठाग्रस्त संस्कृति को देख और भुगत चुके हैं| इसीके दुष्परिणाम थे -हथियारों की होड़, आतंकवाद और बैंकों तथा अर्थव्यवस्था का लड़खड़ाना| आज ओबामा की जीत के साथ ही अमरीकी समाज ने अपने नस्लवादी पाप का प्रायश्चित कर लिया है| प्रायश्चित से पवित्रता आती है| योरप में यह भावना पता नहीं कब आयेगी पर अमरीका ने अपने लोकतंत्र का क्रांतिकारी उजला और सकारात्मक पक्ष दुनिया के सामने रख दिया है|

हालांकि हिलेरी क्लिंटन ने अपने लिए पार्टी की उम्मीदवारी जीतने के लिए ओबामा को अफ्रीकी मूल का मुसलमान प्रचारित करवाया, मेकेन ने उन्हें यूरोपियन समाजवादी कहते हुए हुसैन(मुसलमान) को रेखांकित किया| मेकेन की चुनाव सभा में ओबामा के लिए किल हिम, किल हिम के नारे भी लगे पर चुनाव परिणाम ने यह सिद्ध कर दिया कि यह अमरीकी बहुमत की आवाज नहीं थी|

हमने चुनाव सभाओं में आने वाले अस्सी-नब्बे साल के बुजुर्गों की आंखों में आंसू देखे हैं| उनको विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उस अमरीका में जहाँ कभी उनके साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया गया था, उस अमरीका में उनके सामने राष्ट्रपति पद का एक काला उम्मीदवार खडा है| अब ओबामा की जीत के जश्न में शामिल गोरों के चेहरों पर आक्रोश नहीं वरन सहजता थी| अब आशा की जानी चाहिए कि ओबामा ने जो समन्वयवादी और परिपक्व मुद्दे उठाये हैं उन पर कार्य करके अमरीका को एक कल्याणकारी और संवेदनशील राष्ट्र की छवि प्रदान करेंगे|

हम भी अमरीका की आलोचना करते रहे हैं पर इस क्षण पर हम अमरीकी लोकतंत्र को सलाम करते हैं और इस नई अमरीकी छवि के और उज्ज्वल होकर निखरने की कामना करतें हैं| आशा है कि संसार के कट्टरवादी और धर्म, जाति, भाषा के नाम पर विद्वेष फैलाने वाले कुछ शिक्षा लेंगे |

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जोन मकेन बनाम ओबामा उर्फ़ हम काले हैं तो क्या हुआ



जोन मकेन साहब ,

जय रामजी की। आपने अपना स्वयं का महत्व संक्षेप में बताते हुए कहा- 'आई हैव बीन टेस्टेड, सीनेटर ओबामा हजण्ट' ।

आपके पूर्ववर्ती बुश साहब को दुनिया ने आठ बरस झेला। अब यदि आपको भी अगले चार साल झेलना पड़ा तो क्या कर सकते हैं। भगवान की मर्जी। बुश साहब कैसे जीते यह तो अल गोर का जी जानता है। बुश के आते ही वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में आतिशबाजी हो गई और जाते-जाते सरकारी खजाने का भट्टा बैठा गए। ऐसा नहीं है कि बुश के ज़माने में धरती ने अनाज, फल-फूल नहीं दिए हों या अमरीकी मज़दूरों और कारीगरों ने काम नहीं किया हो या बादलों ने वर्षा नहीं की हो, या दुनिया के मूर्ख देशों ने हथियार नहीं खरीदे हों। कारण यह है कि टेक्सास की तेल लाबी ने अपने फायदे के लिए अफगानिस्तान, ईराक़ में टांग फंसाती और जनता की पसीने की कमाई सेना पर बहाई। पहले विनाश किया और फिर रम्सफील्ड जैसों ने निर्माण के नाम पर जम कर कमाई । अब अगर आपका नंबर आया तो क्या होगा इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है ।

जहाँ तक आपका टेस्ट होने की बात है तो अमरीका की सेना ने कभी अपने देश की रक्षा के लिए युद्ध नहीं किया। सैनिक नौकरी के चक्कर में झींकते-झींकते कभी कोरिया गए तो कभी वियतनाम, कभी कुवैत तो कभी अफगानिस्तान तो कभी ईराक़ जाना पड़ा। जैसे-तैसे टाइम पास करके वापस आ गये जान बचाते-बचाते। कुछ मारे गए यह बात और है।

जहाँ तक आपकी व्यकिगत वीरता का सवाल है, हम तो इतना जानते हैं कि सच्चे वीर पीठ दिखाने या बंदी होने की बजाय वीर गति को प्राप्त होना ज्यादा बेहतर समझते हैं। हमारे स्वतन्त्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद कहा करते थे कि मैं जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं आऊँगा। भगत सिंह जानबूझकर इस लिए गिरफ्तार हुए थे कि वे अंग्रजों की न्याय व्यवस्था का सच लोगों के सामने लाना चाहते थे। आप वियतनाम युद्ध जीत कर आते तो और बात । वैसे आपके पिताजी भी सेना में उच्चअधिकारी थे और आप भी। पता नहीं कैसे कैद कर लिए गए ।

ख़ैर जान बची और लाखों पाये, लौट कर सूरमा घर आए। अब आराम से फौज की पेंसन पेल रहें हैं। जहाँ तक अमरीका के द्वितीय विश्व युद्ध में विजयी होने की बात है तो जापान को अणु बम डालकर हथियार डालने के लिए विवश किया । ज़मीनी लडाई में हराते तो बात और थी। और हिटलर को अमरीका ने नहीं सोवियत रूस ने हराया था। अमरीका तो रूस की हार के इंतज़ार में तमाशा देख रहा । जब हिटलर हारता दिखा तो जहाँ मौका मिला कब्ज़ा कर लिया।

वैसे सेना में है मज़ा। अधिकतर तो मेस का खाना खाकर और सस्ती दारू पीकर ही रिटायर हो जातें है। युद्ध का मौका ही नहीं आता। फील्ड में रहो तो सब कुछ मुफ्त, तनख्वाह घर भेजो। पीस एरिया में रहो तो केन्टीन का सामान और दारू बाज़ार में बेचो। रिटायर होने पर पेंशन। बीच में मर जाओ तो पूरे कार्यकाल तक बच्चों को पूरी तनख्वाह और बाद में पेंशन। मुसीबत तो साधारण जनता की है- कभी बेकारी, कभी महंगाई, कभी छंटनी। आपको इसका क्या पता? आप तो खानदानी सरकारी दामाद रहें हैं ।

वैसे आपके अनुसार ओबामा का टेस्ट होना अभी बाक़ी । हमारे अनुसार तो उसने टेस्ट दे दिया साधारण स्थिति में रहकर, मेहनत की रोटी खाकर आपके सामने खड़ा है- यह क्या कम है। और फिर स्वप्न भी तो बड़ा देख रहा है, इसी बात की दाद दो बालक को । बड़ा सपना ईसा ने देखा, लिंकन ने देखा, गांधी ने देखा, मार्टिन लूथर ने देखा और अब ओबामा देख रहा है। आदमी का सपना ही उसकी पहचान होती है। त्वचा का रंग मत देखो उसके सपनों का रंग देखो।

बड़े घरानों की चमक और आतंक और गोरे रंग की कुंठा से बाहर आओ मियाँ मेकेन। अंत में एक हिन्दी गाने की पंक्ति- हम काले हैं क्या हुआ दिल वाले हैं ।

आपका,
रमेश जोशी

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४ नवम्बर २००८



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Jhootha Sach

Nov 3, 2008

पालिन मैडम! ..सावधानी हटी और दुर्घटना.........



सावधानी हटी और दुर्घटना.........


पालिन मैडम,

कल रात बी.बी.सी.से समाचार सुना की कनाडा के दो मसखरों ने फ्रांस के राष्ट्रपति की आवाज़ में बात करके आपको खूब उल्लू बनाया। ज्यादा महत्वाकांक्षी को मूर्ख बनाना सरल होता है। ये तो खैर मसखरे थे। जैसे भांड तमाशा दिखाने के बाद दाँत दिखाकर, अपनी पहचान बताकर इनाम माँगते हैं। इन्होने भी माफी मांग ली होगी।

आप अलास्का जैसे दूर-दराज़, शांत, सरल और विरल आबादी वाले प्रांत की भोली-भाली,सीधी सादी, घरेलू, बाल-बच्चों वाली महिला हैं। बच्चे पालने में ही समय गुज़र गया। दुनिया की धूर्ताताएं सीखने का मौका ही नहीं मिला। आप सबको अपने जैसा सीधा समझती हैं। पर ये दुनिया इतनी सीधी नहीं है। ये शहर वाले बड़े बदमाश होते हैं भोली-भाली महिलाओं को झूठे सच्चे फोन करके चक्कर में फँसा लेते हैं। ज़रा सोचिये सरकोजी आपको फोन क्यों करेंगे? ज़रदारी का ज़लवा तो आप देख ही चुकी हैं। अब ये सरकोजी भले ही नकली हों पर आपने तो शिकार का प्रोग्राम बना ही लिया ना, मिस्टर पालिन से पूछे बिना।

बिनासोचे समझे प्रोग्राम बनाना ठीक नहीं। आपको पता है भगवान राम भी बिना सोचे समझे शिकार पर निकल पड़े हिरण के शिकार के लिए। सीता ने भी आपकी तरह मारीच की आवाज़ को राम की आवाज़ समझ कर लक्ष्मण को पता करने के लिए भेज दिया था। और परिणाम सबको पता है- सीता हरण हो गया। हम तो कहते हैं कि अगर कभी असली सरकोजी का भी फोन आए तो भी अपने पति के साथ ही शिकार पर जाइयेगा। ज़माना बड़ा ख़राब है। महारानी एलिजाबेथ जब कभी भारत में शेर का शिकार करने आती थीं तो अपने पति ड्यूक के साथ आतीं थीं। एक फिल्मी गाना है-शिकार करने को आए, शिकार हो के चले। इस संसार में तरह-तरह के शिकार और शिकारी हैं। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी।

फ्रांस में क्या शिकार करेंगी? क्या आइफिल टावर पर चढ़ कर चिडियाँ मारेंगी? वहाँ की तो सारी चिडियाँ सरकोजी अब तक मार चुके होंगे। भारत पधारिये। तरह-तरह के जानवर मिलेंगे। शेरों की संख्या भी ठीक ठाक हो चुकी है। शेर के शिकार की एक तकनीक है -शेर के रास्ते में पेड़ से एक बकरे को बाँध दिया जाता है। जब शेर बकरे को खाने लगता है तो उसका शिकार कर लिया जाता है। इससे यह शिक्षा भी मिलती है कि बदमाश लोग भले आदमियों को फँसाने के लिए लालच और मीठी-मीठी बातों के बकरे बाँधते हैं।

सरकोजी ने आपको अमरीका की भावी राष्ट्रपति बताकर अच्छा मस्का मार दिया है। भविष्य में क्या हो किसे पता है। अभी तो चुनाव होना और परिणाम आना बाकी है। फिर भी यदि आपको राष्ट्रपति बनने का इतना ही शौक है तो भारत की नागरिकता ले लीजिये। यहाँ गोरे रंग का बड़ा महत्व है। फिर आपतो शुद्ध गोरी हैं।

छोटा बच्चा कैसा है? बिटिया की शादी कब तब कर रही हैं? हमारी मानो तो बच्चा होने से पहले ही काँटा काटो। शेष चुनाव के बाद।

आपका,
रमेश जोशी

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३ नवम्बर २००८

मूल समाचार के लिए - यू-ट्यूब पर सुनिए ख़बर पढिये BBC, Voices without Votes, News Track



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Jhootha Sach

Nov 1, 2008

मास्टर ब्लास्टर एंड मास्टर

प्रिय सचिन,
आशीष और पैंतीसवे जन्मदिन की बधाई | तुम क्रिकेट के मास्टर हो, और हिन्दी के भूतपूर्व मास्टर | तुम ब्लास्टर हो पर हमने ब्लास्ट करने जैसी कोई आतंकवादी गतिविधि अंजाम नहीं दी | तुमने पिच पर चौके लगाए और हमने बच्चों की कापियों में स्पेलिंग की गलतियाँ साफ़ करने के चोके लगाए | तुमने बहुत शतक लगाए तो हमने भी हमेशा शत-प्रतिशत परिणाम देकर चालीस वर्षों में सैंकडों शतक लगाए हैं | पिच पर लगे शतक और मिलनेवाली रकम का हिसाब लगाया जाए तो एक शतक करोड़ों का बैठता है | जबकि हमें सैंकडों शतकों के बावजूद एक भी एक्स्ट्रा इन्क्रीमेंट नहीं मिला | वही सूखी तनख्वाह |

तुमने साफ़ कह दिया कि अभी संन्यास लेने का कोई इरादा नहीं है, वरना तो जाने कितने लोग पवार सा'ब को घेर लेते और उनके अन्न उत्पादन के काम में बाधा डालने लग जाते | यूँ तो गली-गली में बच्चे धूप में दौड़-धूप करके सचिन बनने के सपने देखते हैं पर सबके जुगाड़ कहाँ फिट हो पाते हैं | तुम घायल हुए, ज़ीरो पर आउट हुए, अनफिट हुए, पर किसी प्रकार पिच से चिपके रहे | जामे ही रहना चाहिए | हमारी बात और है, फिट होते हुए भी, साथ के होते ही सरकार ने रिटायर कर दिया | अब किसी स्कूल में दो हज़ार की मास्टरी करो वह मज़ा कहाँ | वैसे ही जैसे तुम किसी स्कूल में पी.टी.आई. बन जाओ या अपने होटल में खाना परोसो |

तुम ही क्यों संन्यास लो? छियासठ बरस के अमिताभ 'मेरी मखणा' गा रहे हैं | अस्सी के अडवाणी प्रधानमंत्री बनने का ख़्वाब देख रहे हैं, संसद के सामने श्रंखला बना रहे हैं तो तुम श्रंखला खेलना क्यों छोडो? व्यक्ति को कमाई के धंधे कि पिच पर पिचक जाने के बाद भी चिपके रहना चाहिए| लोगों का काम है कहना, कुछ तो लोग कहेंगे | ऐसी बातों के समय हीयरिंग-एड निकाल कर जेब में रख लेनी चाहिए | लोग तो पैंसठ साल नौकरी करने के बाद भी मंत्री बन जाते हैं और तुम उनके पोतों की उमर्में संन्यास ले लो ! ख़ुद तो एक पेंशन पेल रहे हैं राजनीति में पिटने के बाद सांसद की पेंशन पेलेंगे | तुम्हारी कौनसी पेंशन है | जब तक खेलो तब तक दिहाड़ी और तभी तक विज्ञापन बाद में कौन पूछता है | वर्ल्ड कपविजेता कपिल देव को मैच देखने का पास तक नहीं दिया |

रन का क्या, बने, न बने | और वैसे भी आजकल मैच देखने कौन जाता है ? लोग तो चीयर-गर्ल्स को देखने ज़्यादा जाते हैं जैसे मेले में मूर्ति के दर्शन करने कम और जूते चुराने, जेब काटने, और गोलगप्पे खाने ज़्यादा लोग जाते हैं |

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(२५-अप्रेल-२००८ सीमा संदेश,श्रीगंगानगर से प्रकाशित )

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