Jan 26, 2019

विश्व-रत्न सम्मान



 विश्व-रत्न सम्मान 

दिसंबर के अंतिम और जनवरी के पहले सप्ताह में सर्दी ने हमारे इलाके शेखावाटी में  सारे रिकार्ड तोड़ दिए |शून्य और ४.५ डिग्री माइनस के बीच पारा झूलता रहा |अब कहीं जाकर पाँच के आसपास आया है पारा |पता नहीं, यह सूर्य के उत्तरायण होने का प्रभाव है या लोकसभा के चुनावों की दस्तक का असर है या फिर उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन की गुनगुनाहट का कमाल कि कांग्रेस की सी मनः स्थिति हो गई है |सब कुछ सुहावना-सुहावना लग रहा है |आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन, मेरा मन |

पत्नी ने कहा- अब तो यह एक महिने का दल्लिदर धो ही डालो |और मौसम-परिवर्तन का प्रभाव कि हम बिना किसी विरोध और ना-नुकर के, मोदी जी, स्मृति ईरानी और अमित शाह की तरह संगम-स्नान तो नहीं लेकिन नहाने के लिए बाथरूम में घुस गए |

तभी बाहर से आवाज़ आई- विश्व-रत्न जी घर पर हैं ?

हलकी-सी भनक हमारे कान में भी पड़ी लेकिन न तो हमने 'विश्व' का ठेका ले रखा है और न ही हम 'रत्न' हैं |हम तो देश के वित्त मंत्री की छाती पर रखे पत्थर हैं जो हर महिने पेंशन के रूप में राजकीय खजाने को २८ हजार रुपए की चपत लगा रहे हैं |वैसे हमारे दो वरिष्ठ मित्र भी हैं एक  कवि और कहानीकार हैं विश्व मोहन जो खुद तो इस विश्व पर मोहित हैं लेकिन इस विश्व ने उनको कभी घास नहीं डाली | और दूसरे संपादक और निबंधकार जो विश्व के नाथ हैं, सच भी उनसे जुड़ा हुआ है और अंततः  देव तो हैं ही |फिर भी उन्होंने कभी विश्व-रत्न होने का दावा नहीं किया |अब यह 'विश्व-रत्न' कहाँ से आ गया ? हो सकता है कोई रास्ते में किसी को आवाज़ दे रहा हो क्योंकि अब फिर चुनाव आने वाले हैं तो समाज की सेवा के लिए बड़े-बड़े सेवक, जननेता, हृदय सम्राट, मसीहा, विकास-पुरुष सत्ता की शमा के चारों और बरसाती पतंगों की तरह मंडराएंगे |हो सकता है वैसा ही कोई जंतु मई २०१९ के चुनावों के पूर्वाभ्यास पर निकल पड़ा हो |

इस चिंतन में उसी आवाज़ ने अबकी बार थोड़े ऊँचे वोल्यूम में बाधा डाली- विश्व-रत्न जी घर पर हैं ?

अब  तो हमें तौलिया पहने ही दरवाजे पर जाना पड़ा |देखा तो तोताराम |

हमने कहा- क्यों चिल्ला रहा है ? यहाँ कौन विश्व-रत्न बैठा है ? 

बोला- आदरणीय भ्राताश्री, आपसे बड़ा और कौन रत्न है इस समय देश में ?

हमने कहा- ठीक है |तुम्हारी श्रद्धा है |हम उसके लिए आभारी हैं लेकिन इतना भी मत चढ़ा कि झाड़ से नीचे उतरना ही मुश्किल हो जाए |

बोला- अभी तो अवार्ड मिला नहीं और उड़ने भी लगा ? अरे, जब कोई अल्पज्ञात संस्था घर आकर मोदी जी कोअपना पहला फिलिप कोटलर प्रेसीडेंशियल अवार्ड दे सकती है तो क्या 'टी. एम. फाउंडेशन' तुम्हें अपना पहला विश्व रत्न अवार्ड नहीं दे सकती ?






अरे, जब कोई अल्पज्ञात संस्था घर आकर मोदी जी कोअपना पहला फिलिप कोटलर प्रेसीडेंशियल अवार्ड दे सकती है तो क्या 'टी. एम. फाउंडेशन' तुम्हें अपना पहला विश्व रत्न अवार्ड नहीं दे सकती ?

हमने कहा- हमने तो इस फाउंडेशन का कभी नाम भी नहीं सुना |

बोला- मोदी जी ने ही इस फिलिप का नाम कब सुना था जो तू 'टी.एम. फाउंडेशन' का नाम सुनता | आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है सो तुझे 'विश्व-रत्न' सम्मान देने के लिए तुम्हारे इस अनुज तोताराम और तुम्हारी बहू मैना ने बना ली- 'टी.एम. फाउंडेशन'  |

हमने कहा- तोताराम, मोदी जी जैसे डाईनेमिक और वाइब्रेंट व्यक्त्तित्व के लिए ही इतना बड़ा सम्मान शोभा देता है |हम तो भारत-रत्न क्या, पद्मश्री का भी सपना नहीं देख सकते और तू 'विश्व-रत्न' की बात कर रहा है |हो सके तो इस नए साल में हमारी एक छोटी-सी इच्छा पूरी करवा दे |
उत्साहित होकर तोताराम बोला- बता कौन-सी इच्छा ? इस समय हमारी सरकार आचार संहिता लागू होने से पहले-पहले, माँगे बिना ही लोगों की इच्छाएँ पूरी कर रही है |जैसे आठ लाख रु. सालाना आमदनी वाले गरीब सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण | 

हमने कहा- यदि आठ लाख रु.सालाना आमदनी वाले गरीब हो गए तो हम तीन लाख रु. सालाना पेंशन वाले तो महादलित की श्रेणी में आगए |बड़ी-बड़ी बातें छोड़ |हो सके तो किसानों की क़र्ज़-माफ़ी के साथ-साथ पे कमीशन का एक लाख रुपए का बकाया एरियर ही दिलवा दे |

बोला- एक अंतिम चांस और है | पहली फरवरी २०१९ के बजट में कुछ हो गया तो ठीक अन्यथा तो गई बात २०२४ पर | 



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Jan 23, 2019

समरसता खिचड़ी



 समरसता-खिचड़ी 


आज तोताराम यथासमय आया जैसे चुनावों की घोषणा होते ही भावी उम्मीदवार इलाके की जनता को इस-उस त्यौहार की बधाइयां देने लगते हैं या कार्यकाल-समाप्ति से पहले चुनावी ठण्ड लगनी शुरू होते ही भक्त-जन मंदिर मुद्दा सुलगा देते हैं या फिर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष भी जनेऊ दिखाने और गोत्र बताने लगते हैं |

हम आज बरामदे में नहीं थे  |तोताराम ने बरामदे में से ही आवाज़ लगाई- मास्टर, अभी तो चुनाव जीते एक महिना भी नहीं हुआ और तू जीते हुए नेताओं की तरह घर में घुस गया |

हमने कहा- आज बरामदे में आना संभव नहीं है |हम खिचड़ी पका रहे हैं |

बोला- इस देश में सब अपनी-अपनी खिचड़ी ही पकाने में लगे हुए हैं |कोई जनता के बारे में नहीं सोचता |इमरजेंसी में कुछ दिनों जेल में साथ रहकर नेताओं को एकता की ज़रूरत अनुभव हुई | उन्हें लगा कि खिचड़ी पकाई जा सकती है |फरवरी १९७७ में रामलीला मैदान में 'लोकतान्त्रिक खिचड़ी' की हंडिया चढ़ा दी गई बांसों पर |लेकिन पकने से पहले ही सब अपने-अपने चावल-दल, हल्दी, नमक और हंडिया ले भागे |हाँ, उसकी आड़ में कई हजार लोग, जिनमें उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्ट्री शीटर भी शामिल हैं, ' लोकतंत्र-सेनानी' के नाम की पच्चीस हजार रुपया पेंशन पेल रहे हैं जितनी हमें चालीस साल की नौकरी के बाद मिल रही है |एक देशभक्त पार्टी ने पृष्ठभूमि में रहकर रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के खिलाफ धरना दिया तो किसी ने यौगिक क्रिया द्वारा अपनी कंपनी जमा ली तो कोई पोलिटिक्स में चला गया और अन्ना हजारे अपने गाँव रालेगन |लोकपाल वहीँ के वहीं रामलला की तरह अयोध्या के आउटर सिग्नल पर |सो तेरी खिचड़ी का भी वही हाल होगा |

हमने कहा- हम कोई अपने स्वार्थ की व्यक्तिगत खिचड़ी थोड़े ही पका रहे हैं ?हम तो 'समरसता खिचड़ी' पका रहे हैं |

बोला- मास्टर, यह बात गलत है |यह तो प्रोफेशनल चोरी है |बौद्धिक संपदा का अपहरण है |समरसता तो हमारा दर्शन है |हमीं तो सच्चे धार्मिक हैं | तुम तो धर्म निरपेक्ष हो |तुम जो चाहो पकाओ लेकिन समरसता-खिचड़ी नहीं पका सकते |

हमने कहा- निश्चिन्त रहो |किसी की भी खिचड़ी नहीं पकने वाली |जब तक निहित स्वार्थों के बांसों पर ऊँची टंगी रहेगी तब तक प्रेम और भाईचारे की आँच वहां तक पहुंचेगी ही नहीं |और भाईचारे की आंच के बिना कैसी समरसता और कैसा खिचड़ी पकाना |जब सब साथ होते हैं तो दाल गलती है |अकेले-अकेले की दाल न कभी गली है और न गलेगी |

हमने इस खिचड़ी में सभी धर्मो के दाल-दलिया-चावल डाले हैं, सभ्यता के सभी केसरिया-लाल-नीले-हरे रंग मिलाए हैं और बिना पार्टी के भेद-भाव के सब आमंत्रित हैं |

बोला- तो फिर आ जा खुले आसमान के नीचे |क्यों घुसा बैठा है कुंठाओं की रसोई में |

हमने कहा- हम तुम्हारी तरह राजनीतिक स्वार्थ के लिए अपनी  समरसता का राम लीला मैदान में खिचड़ी पकाकर दिखावा नहीं करते |एक तरफ कोरेगाँव में दलितों की पिटाई करते हो और दूसरी तरफ उन्हें यह खिचड़ी बाँटने का नाटक | हमारे वाली तो जब बन जाएगी तब बरामदे में बैठकर सब के साथ खाएँगे-खिलाएँगे |

तभी पत्नी आई और बोली- जब तक खिचड़ी पके, दाल गले तब तक तसल्ली से चाय पीते-पीते और पकौड़ी खाते-खाते अपने-अपने मंत्रालयों क बँटवारा तो कर लो |समरसता को असली खतरा तो बँटवारे के समय ही होता है |

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Jan 9, 2019

कौन गोत्र हो भाई



 कौन गोत्र हो, भाई 


 तोताराम कल सुबह नहीं आया था |सो शाम को घर की घंटी पर अँगूठा रखकर बायोमीट्रिक हाजरी लगा दी |ठण्ड और दिनों से ज्यादा थी |वैसे भी कई दिनों से हमारे इलाके में रात को पारा शून्य से नीचे चला जाता है |और कुछ नहीं तो कम से कम देश में मैदानी इलाके में सबसे ठंडे शहर के रूप में हमारे जिले के फतेहपुर का नाम तो आ ही जाता है |

हम रजाई में घुसे हुए थे |तोताराम भी रजाई में पैर डालकर हमारे पैताने बैठ गया |

अब सेवक तो संसद में एक दूसरे को झूठा सिद्ध करने में लगे हुए हैं | किसी को पाँच विधान सभा के चुनावों में हार के कारणों की समीक्षा करने की फुर्सत नहीं है |जल्दी से संसद का अधिवेशन ख़त्म हो तो सेवा और निंदा मंडली लेकर मई २०१९ के लिए मज़मा जमाएँ |ऐसे में देश की फ़िक्र करने का काम हमारे और तोताराम के सिर आ पड़ा |विचार कर रहे थे कि पे कमीशन का एरियर मई २०१९ वाला लोकसभा चुनाव हारने के बाद मिलेगा या उससे पहले ही फरवरी २०१९ में आचार-संहिता लागू होने से पहले ही मिल जाएगा |

तभी बिजली चली गई |तोताराम ने बिजली आने पर ही घर जाने का निश्चय किया क्योंकि सीवर डालने वालों ने सड़क बीचों बीच से खोद रखी है |क्यों टांग टूटने का खतरा उठाया जाए |तभी दरवाजे पर दस्तक हुई |इस ठण्ड में कौन मरने के लिए घूम रहा है ?

हमने रजाई में घुसे-घुसे ही पूछा- कौन है ?

एक मरी सी आवाज़ ने उत्तर दिया- हम हैं सांता क्लाज |

अबकी बार तोताराम चिल्लाया- सांता क्लाज ! कौन-सा सांता क्लाज ?किस गोत्र का सांता ?

उत्तर आया- आप क्या बात करते हैं ? सांता का भी कोई गोत्र होता है क्या ? 

हमने कहा- बन्धु, आजकल हमारे यहाँ धर्म-सापेक्ष समय चल रहा है इसलिए धार्मिक दृष्टि से शुद्धता पर बहुत ध्यान दे रहे हैं |हमने तो हनुमान जी की भी केटेगरी पूछना शुरू कर दिया है जैसे आदिवासी, दलित आदि |अब जब यह गहन इन्क्वायरी वाला सिस्टम चला है तो पता चला है कि हनुमान मुसलमानों में भी पाए जाते हैं |यह सोचकर दिमाग ख़राब हो रहा है कि अब तक जिस हनुमान की पूजा करते रहे वह पता नहीं कौन था ?अब तक किया-कराया पूजा पाठ पता नहीं खाते में दर्ज होगा या नहीं |सो बन्धु, धर्म और गोत्र तो बताना ही पड़ेगा |

बोला- धर्म ईसाई और गोत्र कैथोलिक बता दिया तो भी क्या आप संतुष्ट हो जाएंगे ?आपको पता होना चाहिए कि हम ईसाइयों में भी बहुत से विभाजन हैं |कई तरह के चर्च हैं जैसे मुसलमानों में कई फिरके हैं और फतवे की एजेंसियां |'एक नूर ते सब जग उपज्या' वाले सिक्खों में भी कई वर्गीकरण हैं |अब तक ये बूटा सिंह को चूड़ा कहते हैं |१९७७ में जनता पार्टी में आपके राष्ट्रवादी लोग भी थे लेकिन जब एक हरिजन नेता ने राजघाट पर श्रद्धांजलि अर्पित की तो उन्होंने उसे गंगाजल से धोया था |अब भी महिलाओं के प्रवेश से अशुद्ध हुए सबरीमाला मंदिर का शुद्धीकरण चल रहा है कि नहीं ?

तोताराम बोला- कुछ भी हो गोत्र तो बताना ही पड़ेगा |

सांता बोला- और मान लो हम कहें कि हमारा गोत्र यादव है तो क्या आपको तसल्ली हो जाएगी ?तब आप पूछेंगे कि यादव तो ठीक लेकिन अखिलेश वाले हो या शिवपाल वाले ?कहेंगे- ब्राह्मण हैं तो आप पूछेंगे- गौड़ है या खंडेलवाल | गौड़ बता दिया तो फिर पूछेंगे- गौड़ ? कहीं गुज्जर गौड़ तो नहीं ?हम कहेंगे- हम राम भक्त हैं तो आप पूछेंगे- उद्धव ठाकरे संप्रदाय के राम भक्त हैं या फिर तोगड़िया-पंथी या योगी आदित्यनाथ वाले |

एक बार सुन लीजिए,हम सांता हैं |सांता क्लाज जो गिफ्ट लाते हैं |

हमने कहा- हमें राम-मंदिर,अच्छे दिन, एकता-प्रतिमा आदि जैसी कोई गिफ्ट नहीं चाहिए |पे कमीशन के एरियर की गिफ्ट लाए हो तो बोलो |

बोला- उसके लिए तो २०१९ के चुनावों में मोदी जी हार का इंतज़ार करना पड़ेगा | 


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Jan 6, 2019

मन की बात तो सुननी ही पड़ेगी



मन की बात तो सुननी ही पड़ेगी 


मिस्टर ट्रंप, 

जब आपके वहाँ 'महामहिम' और 'माननीय' जैसे शब्द चलते ही नहीं तो फिर हमारे लिए ही कौन सी मजबूरी है, यह औपचारिकता निभाने की |और फिर हम आपसे उम्र में भी तो बड़े हैं |खैर | 

भारत द्वारा अफगानिस्तान में एक पुस्तकालय को आर्थिक सहायता देने और मोदी जी द्वारा आपके सामने उसका उल्लेख करने को लेकर आपने उनका जो मज़ाक बनाया वह आपके पद के अनुकूल नहीं था लेकिन आपके स्वभाव के अनुरूप ज़रूर था |आदमी अपने स्वभाव से लाचार होता है |स्वभाव के चलते आदमी लचर भी हो जाता है और जहाँ-तहाँ अपना लीचड़पन दिखाने से भी बाज नहीं आता |महिला पत्रकारों के साथ आपके व्यवहार में और आपकेअपने ही बहुत से साथियों के आपको छोड़कर चले जाने में भी आपकी इस विशेषता का पता चलता है |तभी  हमारे यहाँ कहा गया है कि चोर चोरी से जाए लेकिन हेरा-फेरी से नहीं जाता |


आपने कहा कि मोदी जी अफगानिस्तान में जिस पुस्तकालय के वित्त पोषण की बात करते हैं उतना तो अमरीका अफगानिस्तान में ५ घंटे में खर्च कर देता है |बात खर्च के पैसों की नहीं है, बात यह है कि कौन किस भाव से, कैसे काम के लिए खर्च करता है |पैसे का हिसाब रंडी रखती है |उसे व्यक्ति से नहीं धंधे से मतलब होता है |धंधा करने वाला रंडी की तरह ही होता है |पैसे लेकर नाचने वाला भांड होता है भले ही वह एक रात के पचास करोड़ लेता हो या पचास |

आप प्रोपर्टी डीलर रहे हैं |भारत के सब लोग जानते हैं कि प्रोपर्टी डीलर किस प्रकार के लोग होते हैं, कैसी बातें कते हैं और कैसे-कैसे उलटे-सीधे काम करते हैं |अपने बाप से भी दलाली नहीं छोड़ते |मंदिर, मस्जिद, कब्र किसी की भी ज़मीन जाली कागज बनाकर बेच देते हैं |एक ही प्लाट को कई-कई बार बेच देते हैं |

और बातों को छोडिए, एक अमरीकी भारतीय ने आपको चुनाव-अभियान के दौरान बुलाया था, चंदा भी दिया था और नारा भी सुझाया था- अबकी बार, ट्रंप सरकार | अब यह तो पता नहीं कि आप उस नारे के बल पर जीते थे या अमरीकी वोटरों की मूर्खता के कारण | वैसे मूर्खता पर केवल अमरीकियों का ही अधिकार नहीं हो सकता |मूर्ख कहीं भी हो सकते हैं |हमने भी इसी नारे के कारण वोट दे दिया था |आपको पता होना चाहिए कि यह नारा मोदी जी ने ही दिया था | वाराणसी में लोगों ने आपके चुनाव में विजयी होने के लिए यज्ञ भी किया था |हम भारतीय बहुत चतुर होते हैं इसलिए हिलेरी क्लिंटन के लिए पटना में यज्ञ किया था |सुलभ शौचालय वाले विन्ध्येश्वरी दुबे  ने सफाई कर्मचारियों के लिए बनाई कॉलोनी का नाम किसी सहायता की आशा में  'ट्रंप-विलेज' रखा था  कुछ महिलाओं को भगवा कपड़े पहनाकर और कुछ मंत्र रटवाकर मोदी जी के पास भी ले गए थे |जहाँ से भी, जो भी मिल जाए |दे उसका भी भला, न दे उसका भी भला |

अमरीका ने जापान पर बम गिराए, वियतनाम में युद्ध में रोज करोड़ों रुपए फूँके लेकिन इस खर्च की सार्थकता क्या है ?जर्मनी ने भी साठ लाख यहूदियों को मरवाने और उनकी लाशों को जलवाने में करोड़ों रुपए खर्च किए थे लेकिन क्या वह उल्लेखनीय है ? अफगानिस्तान और ईराक का पुनर्निर्माण क्या है ? पहले अमरीका ने ही उन्हें  बमों से तहस-नहस किया और फिर पुनर्निर्माण के नाम पर धूल के भाव उनका तेल लेते रहने का समझौता कर लिया |हथियारों का धंधा ज़ारी रखने के लिए दुनिया में तनाव बनाए रखने के लिए अरबों रुपए खर्च करने का क्या औचित्य है ?

आपको पता होना चाहिए कि जब दुनिया में कट्टरवादियों का शासन आता है या वे कहीं आक्रमण करते हैं तो सबसे पहले बुद्धिजीवियों को मारते हैं और पुस्तकालयों को जलाते हैं |हर तथाकथित धर्म और घटिया शासक सबसे पहले शिक्षा को कब्ज़े में लेकर लोगों को कूढ़ मगज बनाते हैं |अनुशासन और राष्ट्रवाद के नाम पर संवाद की जगह मात्र आदेश की पालना की 'यस सर' वाली संस्कृति लादते हैं |इसीलिए तो आपकी प्राथमिकता गरीबों के लिए बनाई गई 'ओबामा केयर' को बंद करना और मेक्सिको सीमा पर दीवार बनवाना है, भले ही इसके लिए कर्मचारियों को छुट्टी पर ही क्यों न भेजना पड़े |

दुनिया मेंआप जैसे और भी बहुत से सिरफिरे हैं जो जाति-धर्म और गोत्र के नाम पर अपने-अपने देशों में तरह-तरह की दीवारें खड़ी कर रहे हैं लेकिन किसी को एक ही ट्रिक से दो बार बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता |

जहाँ तक अफगानिस्तान में भारत द्वारा बनाए पुस्तकालय की थोड़ी सी राशि के ज़िक्र पर आप द्वारा अपनी समृद्धि की आड़ में भारत का मज़ाक उड़ाने की बात है तो सुन लीजिए |जब आपके पूर्वज योरप में पिछड़ा जीवन जी रहे थे तब यह देश सोने की चिड़िया था |हम नहीं गए थे उन्हें खोजने |वे ही हमें खोजते-खोजते आए थे |हमारे ज्ञान और हमारी समृद्धि से अभिभूत होकर |यह बात और है कि आपने हमारी फूट का लाभ उठाकर हम पर ही राज किया और अब भी हमें उल्लू बना रहे हैं |

याद रखिए, इस देश में अब भी बहुत दम है |इस सीमेंट में जान है |आपके देश ने अपने जीवन काल में राम-राम करके लिबर्टी की एक प्रतिमा बनाई और इस देश ने मात्र चार साल में उससे दुगुनी ऊँची पटेल की प्रतिमा बना डाली |अब उससे भी ऊँची की प्रतिमा विचाराधीन है |उससे भी ऊँची राम की प्रतिमा की तैयारी है |अब देखते जाइए, प्रतिमाएँ ही प्रतिमाएँ हो जाएँगी देश में |आप कह सकते हैं कि इससे पैसे की बर्बादी होती है |यह भी कोई काम है ?कोई बात नहीं लेकिन इससे हमारी क्षमता और समृद्धि का तो पता चलता ही है |आप अपने बेकारों को सौ डालर के फ़ूड स्टाम्प पकड़ाकर बड़े कल्याणकारी राज्य बने फिरते हो |हमारे यहाँ तो सरकारें आज़ादी के बाद पैदा हुए को स्वतंत्रता सेनानी का दर्ज़ा देकर हजारों रुपया पेंशन दे सकती हैं |इमरजेंसी में सजा पाने के नाम पर जाने कितने नकली लोग पेंशन ले रहे हैं | कई हिस्ट्री शीटर लोकतंत्र सेनानी की पेंशन ले रहे हैं | अब आन्ध्र में चुनाव जीतने के लिए ब्राह्मण युवकों को कार देने की अफवाह है |चुनाव में वोटरों को टी वी, मोबाइल फोन देना तो सामान्य बात है |

आप इसे तर्क के आधार पर चुनाव जीतने के लिए दी गई रिश्वत कह सकते हैं |अरबों रुपए की खर्चीली शादियाँ होती हैं, आप उन्हें फिजूल खर्ची कह सकते हैं लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि यह देश गरीब नहीं है |

और फिर जब खर्चा किया जाए तो उसे गाया भी तो जाना चाहिए |पैसा फेंकें तो उसकी खनखनाहट का सुख भी तो लिया जाए जैसे जब अमरीका ने अफगानिस्तान में फूड पैकेट गिराए थे तो उसके साथ अमरीका का झंडा भी लगा हुआ था |क्या यह टुच्चा काम नहीं था ?

वैसे आपके चाल, चरित्र और चेहरे के बारे में तो दुनिया को तभी पता चल गया था जब सातवीं क्लास के एक बच्चे  से कोई चुटकुला लिखने को कहा गया था तो उसने आपका नाम लिख दिया था |

वैसे मोदी जी आपको हजारों करोड़ की हथियारों की बिक्री करवाते हैं तो आपको उनके 'मन की बात' सुननी ही पड़ेगी |

आपको बता दें कि आप जिसे पुस्तकालय कह रहे हैं वह वास्तव में अफगानिस्तान का संसद भवन है |वैसे प्रोपर्टी डीलर के लिए भावनाओं और प्रतीकों का कोई महत्त्व नहीं होता |वह तो ज़मीन और मकान के दाम और खुद को मिलने वाले कमीशन के बारे में सोचता है |

 



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