Sep 30, 2019

१९९८ का प्याज संकट और ड्रोपसी की जुगलबंदी



१९९८ का प्याज संकट और ड्रोपसी की जुगलबंदी 


(आशा है पाठकों को १९९८ में दिल्ली का प्याज संकट याद होगा और उसके चलते भाजपा की करारी हार भी |इन्हीं दिनों सरसों के तेल में अर्जीमोन की मिलावट से ड्रॉप्सी नामक खतरनाक बीमारी का आतंक भी फैला था | उस समय की कुछ कुंडलियों का पुनर्पाठ करें ) 

१. प्याज का इत्र
(प्रधानमंत्री अटल जी ने केबिनेट सचिव से प्याज की कीमतें घटाने के उपाय सुझाने को कहा-८-१०-१९९८)

साठ रुपय्या प्याज है, बीस रुपय्या सेव ।
कैसा कलियुग आ गया हाय-हाय दुर्दैव ।
हाय-हाय दुर्दैव, हिल उठी है सरकारें ।
बिना प्याज के लोग जन्म अपना धिक्कारें ।
कह जोशी कविराय प्याज का इत्र बनाओ ।
इज्ज़त कायम रहे मूँछ पर इसे लगाओ ।

२. प्याज और ड्राप्सी
आसमान में चढ़ गए तुच्छ प्याज के दाम ।
साहिब सिंह से अटल तक सब की नींद हराम ।
सब की नींद हराम, तेल-फेक्ट्री में जाओ ।
ड्राप्सी वाला वो ही नुस्खा लेकर आओ ।
कह जोशी कविराय ड्राप्सी 'गर हो जाये ।
कीमत अपने आप प्याज की नीचे आये ।

३. प्याज -ध्वज
(समन्वय समिति की मीटिंग में प्याज का मुद्दा छाया रहा- ९-१०-१९९८)

व्यर्थ मनुज का जन्म है नहीं मिले 'गर प्याज ।
रामराज्य को भूलकर, लायँ प्याज का राज ।
लायँ प्याज का राज, प्याज की हो मालाएँ ।
छोड़ राष्ट्रध्वज सभी प्याज का ध्वज फहराएँ ।
कह जोशी कविराय स्वाद के सब गुलाम हैं ।
सभी सुमरते प्याज, राम को राम-राम है ।

४. दलित-उद्धार
(प्याज की कीमत एक सप्ताह में ६० रुपये किलो होने की संभावना- ८-१०-१९९८ )
छिलके-छिलके देह है, रोम-रोम दुर्गन्ध ।
सात्विक जन के घरों में था इस पर प्रतिबन्ध ।
था इस पर प्रतिबन्ध, बिका करता था धड़ियों ।
अब दर्शन-हित लोग लगाते लाइन घड़ियों ।
कह जोशीकविराय दलित-उद्धार हो गया ।
कल का पिछड़ा प्याज आज सरदार हो गया ।

५.प्याज और मज़े
(मुज़फ्फरनगर के पास लोगों ने प्याज से भरा एक ट्रक लूटा- २८-८-१९९८)

जैसा जिसका मर्ज़ है वैसा करे इलाज ।
आप लूटते मज़े औ' लोग लूटते प्याज ।
लोग लूटते प्याज, उतरेंगे कल छिलके ।
ए मेरी सरकार! रहें अब ज़रा सँभल के ।
कह जोशी कविराय भले ही अणुबम फोड़ें ।
पर भूखों के लिए प्याज-रोटी तो छोड़ें ।


६. नई सदी में
पाँच दशक में हो गया सारा राज सुराज ।
घुसी तेल में 'ड्राप्सी', दुर्लभ आलू-प्याज ।
दुर्लभ आलू-प्याज, दूध पानी से सस्ता ।
पतली होती कभी तो कभी हालत खस्ता ।
कह जोशी कविराय देखना नई सदी में ।
मछली बचे न एक, ग्राह ही ग्राह नदी में ।


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Sep 29, 2019

हँसूँ या रोऊँ



  हँसूँ या रोऊँ    

आज आते ही तोताराम ने बड़ा विचित्र प्रश्न किया- हँसूँ या रोऊँ ?

हमने कहा- अभी तो इस देश में इतना लोकतंत्र बचा हुआ है कि तू चाहे तो रो सकता है, चाहे तो हँस सकता है |चाहे तो अपना सिर फोड़ सकता है, अपने कपड़े फाड़ सकता है |कुँए में कूदकर जान दे सकता है | हाँ, दूसरों के कपड़े फाड़ने या दूसरों का सिर फोड़ने के लिए या किसी को ट्रक से कुचलवा देने के लिए ज़रूर सत्ताधारी का हाथ सिर पर होना चाहिए | अभी दुःखी लोगों के रोने पर प्रतिबन्ध लगाने का संशोधन संविधान में नहीं किया गया है | अभी तो अस्थायी चीजों के हटाने की योजना चल रही है जैसे धारा ३७० | 

बोला- मैं अपने रोने या हँसने की बात नहीं कर रहा हूँ |मैं तो मोदी जी की दुविधा के बारे में बात करना चाह रहा था लेकिन तूने मेरी बात पूरी ही नहीं होने दी |

हमने कहा- मोदी जी, वैसे भी बहुत साहसी नेता रहे हैं और अब तो माशा अल्लाह विश्व-नेता का दर्ज़ा पा चुके हैं | वे जो चाहे कर सकते हैं |चाहें तो रो सकते हैं, चाहें तो हँस सकते हैं |चाहें तो सारे देश को रुला सकते हैं |उनका तो जंगल के राजा शेर वाला मामला है- अंडा दे या बच्चा |चाहे तो वैसे ही पेट फुलाकर दिखा  और कुछ भी न दें |
वैसे वे दुविधा में रहने वाले जीव नहीं हैं |वे तो अपने स्टेटमेंट से दूसरों को दुविधा में डाल देते हैं |लेकिन क्या उनका फोन आया था ? तुझे उनकी इस दुविधा का कैसे पता चला ? 

बोला- क्यों मज़ाक करता है ? मेरे पास मोदी जो का फोन क्यों आने लगा ?अभी मैं इतना बड़ा आदमी नहीं हूँ | मैंने तो पढ़ा था कि उन्होंने फ़्रांस में अपने भाषण में कहा है- अस्थाई ३७० हो हटाने में ७० साल लगे |मुझे समझ नहीं आता कि रोऊँ या हँसूँ ? 

हमने कहा- यहाँ भी फिर मेरा कहना है कि मोदी जी हैं तो मुमकिन है |वे चाहें तो एक साथ हँस और रो सकते हैं |एक आँख हँसती हुई और एक रोती हुई | वे नेता, द्रष्टा, वक्ता, वैज्ञानिक ही नहीं ऊंचे दर्जे के कलाकार भी हैं- कृष्ण की तरह सोलह कला अवतार |लेखक यशपाल ने अपने एक संस्मरण में उस समय के केरल के एक कलाकार का वर्णन किया है जो अपनी अभिनय-क्षमता से एक आँख से हँसता और दूसरी आँख को रोता हुआ दिखा सकता था |मोदी जी एक होकर भी बहुस्यामि हैं जैसे भागवत में महारास के वर्णन में आता है कि सभी गोपियों को खुश करने के लिए कृष्ण हर गोपी को अपने साथ नृत्य करते हुए नज़र आते थे |उनके लिए यह ज़रूरी भी क्योंकि सफल नेता वही है जो एक साथ रो और हँस सके, सबसे अलग और सबके साथ नज़र आ सके |

बोला- इस नाटक की क्या ज़रूरत है ? जब रोना आए तो जम कर रो लो और जब हँसने का मन हो तो जम कर हँस लो |राजा भी मनुष्य होता है, उसे भी कम से कम अपनी मर्ज़ी से हँसने-रोने की सुविधा तो होनी ही चाहिए |

हमने कहा- देश-दुनिया में एक ही साथ कई तरह की घटनाएँ होती रहती हैं |ऐसे में कभी गहरा दुःख प्रकट करना पड़ता है, रोते हुए दिखाई देना होता है तो कभी ख़ुशी प्रकट करने की ज़रूर आ पड़ती है |जैसे मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार से मरे बच्चों के सिलसिले में स्वास्थ्य मंत्री को रोते हुए नज़र आना था लेकिन उसी समय क्रिकेट रूपी राष्ट्रीय धर्म के तहत स्कोर जानना भी ज़रूरी था |ऐसे में एक साथ दो-दो भावों का निष्पादन बहुत ज़रूरी होता है |या फिर सेवक ऐसा कलाकार हो कि हँसता-रोता नज़र आए |या फिर बिना किसी आवाज़ के,आँखें बंद करके केवल मुँह फाड़ दे कि लोग समझ ही न पाएँ कि बंदा रो रहा है या हँस रहा है | 

बोला- लेकिन मोदी जी को क्या उत्तर दूँ ? हो सकता है वे फ़्रांस में रोने या हँसने के लिए मेरे उत्तर का इंतज़ार कर रहे हों ?

हमने कहा- बात फ़्रांस की है |इसका उत्तर देने की ज़िम्मेदारी फ़्रांस में कार्यक्रम में भाषण सुनने वाले लोगों की है |उन्होंने बता दिया होगा या मोदी जी ने खुद तय कर लिया होगा कि हँसें या रोएँ ? उनके पास इतना समय कहाँ है ? 


मोदी को दिया गया सम्मान


अब तो वे संयुक्त अरब अमीरात में वहाँ का सर्वोच्च सम्मान ले रहे होंगे |जहाँ हँसी के साथ-साथ ख़ुशी के आँसू भी छलक रहे होंगे | और जेटली जी के जाने का ग़म भी हो रहा होगा |बहुत बार ऐसे विचित्र अवसर सभी के जीवन में आते हैं जब आदमी वास्तव में तय नहीं कर पाता कि वह रोए या हँसे | बस, यही समझ कि भगवान हर हालत में आदमी को अपना विवेक बनाए रखने की शक्ति दे | 

बोला- यह तो हुई मोदी जी की बात |अब यह बता कि तेरे इस 'कभी ख़ुशी : कभी ग़म' प्रवचन पर मैं क्या करूँ ? हँसूँ या रोऊँ ?

हमने कहा-हमने एक निस्पृह-सी हँसी के साथ कहा- तोताराम, जीवन बड़ा विचित्र है और इसी तरह हँसना-रोना भी और वह भी विशिष्ट लोगों का ! कबीर तो कहते हैं-

जब हम आए जगत में, जगत हँसा हम रोय | 
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोय ||


और फिर सबकी हँसी और रोना अलग अलग होते हैं | इसी सन्दर्भ में प्रसाद के चन्द्रगुप्त नाटक के चौथे अंक में कात्यायन चाणक्य से कहता है- तुम हँसो मत चाणक्य | तुम्हारा हँसना तुम्हारे क्रोध से भी भयानक है |  

इसी तरह से बिल्ली और कुत्तों का रोना भी अशुभ माना गया है |लकड़बग्घे की हँसी एक मुहावरा है जिसका अर्थ होता है- क्रूर कर्म करके हँसना |

बोला-तेरी हँसी भी लकड़बग्घे से कम नहीं है | तेरा इतना लम्बा प्रवचन सुनकर मुझे तो  सिर दर्द होने लगा है |  

हमने कहा- तो ठीक है | आज का प्रवचन यहीं समाप्त करते हैं |अभी तो चाय पी |कल सुबह ज़रा समय से आ जाना, नहा-धोकर | पहले मंदिर चलेंगे और फिर तुझे बढ़िया सा नाश्ता कराएँगे |

बोला- आदरणीय, हो सके तो इस अयाचित कृपा का कारण और उपलक्ष्य तो बता दें |

हमने कहा- इस सपाट ज़िन्दगी में तो कुछ संपेंस रहने दिया कर |

बोला- नाश्ता तो ठीक है लेकिन तूने मुझे सारी रात के लिए लटका दिया है |
इब्तदा-ए-इश्क़ में सारी रात जागे, अल्ला जाने क्या होगा आगे ?' 




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Sep 24, 2019

महान वस्तुएं अमूल्य होती हैं




महान वस्तुएं अमूल्य होती हैं


कल शाम को एक जगह सवामणी के जीमण में चले गए। हम हनुमान जी के निस्वार्थ भक्त हैं। बजरंग दल की तरह राजनीतिक महत्त्वाकांक्षी नहीं। इसलिए मना नहीं कर सके। वैसे हम जानते हैं कि आजकल सबसे ज्यादा फूड पॉईजनिंग प्रसाद में ही होती है क्योंकि प्रसाद बनाने वाले ठेकेदार व्यापारी होते हैं, हनुमान जी के भक्त नहीं। इसलिए उन्हें स्वर्ग नहीं, इसी धरती पर स्वर्ग के सुख भोगने के लिए अधिक से अधिक मुनाफा चाहिये।
जैसी कि आशंका थी, आधी रात को पेट में जलन शुरू हो गई। दो बार ‘तरल दीर्घ शंका’ के लिए भी जाना पड़ा। बड़ी मुश्किल से कहीं ब्रह्म-मुहूर्त में जाकर आंख लगी। सुबह अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार उठ नहीं सके। जब उठे तो देखा, बरामदे में एक रस्सी बंधी हुई है जिस पर कुछ सस्ती शालें लटकी हैं और एक बेंच पर कुछ सस्ते से तथाकथित स्मृति-चिह्न रखे हुए थे।
शाल की बात तो फिर भी समझ में आती है कि चद्दर के रूप में ओढ़ने-बिछाने के काम आ सकती है, न हुआ तो लुंगी की तरह लपेटा जा सकता है लेकिन इन स्मृति-चिह्नों का उद्देश्य कभी समझ नहीं आया। कबाड़ी दो रुपए किलो के भाव से भी नहीं लेता। जो पहले दिन सोने-चांदी सा चमकता था वह पत्तर दस दिन में जंग लगा टिन का टुकड़ा निकल आता है।
हमने पूछा- क्या तोताराम, क्या अखबार वालों की तरह किसी से मिलकर इस कबाड़ की महामेगा सेल लगा रहा है?
बोला- सेल में तो रद्दी और घटिया माल निकालने का उपक्रम होता है। हम तो गंगा सफाई के लिए इन उपहारों को नीलाम करके पैसा जुटाएंगे।
हमने कहा- क्या गंगा सफाई के लिए तय किया गया बजट कम पड़ गया?
बोला- बजट तो पर्याप्त ही मिला था लेकिन उसमें गंगा की आरती के खर्च का प्रावधान नहीं था। जबकि गंगा और उसकी सफाई सब आस्था का मामला है और आस्था में सबसे अधिक खर्च पूजा-आरती और प्रसाद वितरण में होता है। अलौकिक काम लौकिक तरीके से नहीं हो सकते। देखा नहीं, पिछली बार गंगा के किनारे लाखों दीये जलवाए गए थे और कई दिनों तक गंगा के घाटों पर लोग फिसल कर गिरते रहे थे।
अब भी आज देखा नहीं, मोदी जी ने अपने जन्मदिन पर सरदार सरोवर बांध पूरा भर जाने की खुशी में कैसे करोड़ों रुपए खर्च करके जलसा करवाया है? और तितलियां छेड़कर अपना जन्मदिन मनाया।
हमने कहा- सबसे पहले तो तू अभी कान पकड़कर माफी मांग क्योंकि समाचार यह था- मोदी जी ने बटरफ्लाई पार्क में तितलियां छोड़कर अपना जन्मदिन मनाया। और उसके बाद बता कि बजट की कमी के कारण अब गंगा की सफाई का क्या होगा?
तोताराम ने कान पकड़कर तीन बार उठक-बैठक लगाते हुए माफी मांगी और बोला- होगा क्या? मोदी जी ने खुद को मिले उपहारों की नीलामी का निर्णय लिया है। उससे जो रुपए मिलेंगे उनसे गंगा की सफाई होगी।
हमने कहा- इस समय मोदी जी तो पावर में हैं। विश्व के एकमात्र गतिशील और प्रभावशाली नेता हैं। ट्रंप तक उनसे मिलने के लिए तड़पते हैं। अब तो वे मोदी जी की रैली में ह्यूस्टन भी जा रहे हैं। सुना है, मोदी जी का तो गमछा भी करोड़ों में बिकने वाला है। जबकि गांधी जी का तो सारा सामान भी दो-चार करोड़ में नहीं बिका।
बोला- ऐसी खरीददारी वस्तु के हिसाब से नहीं होती बल्कि उससे जुड़े व्यक्ति के द्वारा लाभ पहुंचा सकने की क्षमता के अनुसार होती है। व्यक्ति वही महान होता है जो आपको फायदा पहुंचा सके। अब गांधी जी कमाई का साधन तो रहे नहीं। इसलिए उनके सामान की जब लन्दन में नीलामी होने लगी तो कोई नहीं पहुंचा। गीता भी लन्दन में बसे मनु भाई माधवानी ने 19000 पौंड में खरीदी और इसी तरह 2013 में गांधी जी का कुछ सामान विजय माल्या ने टोनी बेदी से 18 लाख में खरीदवाया लेकिन किसी कांग्रेसी और आजकल के गांधी के प्रति नई-नई भक्ति दिखाने वालों में से किसी ने नहीं खरीदा। अब जो मोदी जी का गमछा 1 करोड़ में खरीद रहे हैं वे गमछे का दाम नहीं लगा रहे हैं बल्कि मोदी जी की प्रसन्नता से लाभान्वित होने का खेल खेल रहे हैं। मोदी जी ने बड़े सही समय पर यह निर्णय लिया है। देख लेना, 15 लाख का सूट पांच करोड़ में खरीदने वाले की तरह बहुत से मिलेंगे जो खेल जाएंगे दांव। इसीलिए अंग्रेजी में कहा गया है- मेक हे व्हाइल द सन शाइंस। मैं तो कहता हूं कि मोदी जी को अपने पुराने कुर्ते-पायजामे, जूते-चप्पल, सफाई अभियान वाले झाड़ू-पोछे सभी नीलामी पर चढ़ा देने चाहिए। सब के ग्राहक मिल जाएंगे।
हमने कहा- स्वार्थी जमाने के खुशामदी लोगों के चरित्र की इस व्याख्या से हम पूरी तरह सहमत हैं लेकिन हमारे बरामदे में तूने यह क्या कबाड़खाना लगा दिया?
बोला- यह भी मोदी जी के उपहारों की नीलामी का ही कार्यक्रम तो है।
हमने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा- क्या तू कभी मोदी जी से मिला है? या ये उपहार उन्होंने चुनावों के दौरान ‘चाय पर चर्चा’ की तरह तेरे पास डिजिटली पहुंचा दिए?
बोला- नहीं, ये तो मैं अपने घर से लाया हूँ।
हमने कहा- तो फिर ये मोदी जी के उपहार कैसे हो गए?
बोला- मैंने इन्हें मोदी जी को देने का संकल्प ले लिया था। अब मेरा इन पर कोई अधिकार नहीं है। अब ये मोदी जी के ही हैं, भले ही उन तक पहुंचे या नहीं।
हमने कहा- यह तो भक्तों के साथ धोखा है। यदि किसी ने शिकायत कर दी तो लेने के देने पड़ जाएंगे।
बोला- मैं तो चाहता हूं कि बात ऊपर तक जाए। तुझे पता है, गुजरात में एक व्यक्ति ने अपने शादी के कार्ड पर मोदी जी को वोट देने का सन्देश छपवा दिया था तो उसके पास मोदी जी की व्यक्तिगत बधाई आई थी।
हमने कहा- इनकी नीलामी की बेस प्राइस तो इनके साथ लिख दे।
बोला- ये कोई सामान्य वस्तुएं नहीं हैं। महान वस्तुएं अमूल्य होती हैं इसलिए हम इनका दाम खरीदने वाले भक्त की श्रद्धा पर छोड़ते हैं। जैसे कि जिस किताब के बिकने की कोई संभावना नहीं होती तो उस पर मूल्य के स्थान पर लिखा जाता है- मूल्य सप्रेम पाठ।
हमने कहा- ब्रिटेन के संग्रहालय में सोने का एक कमोड रखा था जिसे संग्रहालय वाले ट्रंप को भेंट करना चाहते थे।
अब वह चोरी हो गया है। क्या कोई तेरे ‘मोदी जी के उपहारों’ की तरह यह समाचार बना सकता है कि ‘ट्रंप का सोने का कमोड ब्रिटेन के संग्रहालय से चोरी’?
बोला- बना तो सकता है लेकिन इसमें एक भाषाई लोचा है।
हमने पूछा- क्या ?
तो बोला- इससे ध्वनि निकलती है जैसे ट्रंप इस कमोड पर बैठकर सोते हैं। दूसरे यदि शौचालय से संबंधित कोई सामग्री ही भेंट करनी हो तो मोदी जी से बड़ा कोई सुपात्र नहीं हो सकता जिन्होंने भारत के १३० करोड़ लोगों को पांच साल तक शौचालय से बाहर ही नहीं निकलने दिया।

 





















    





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Sep 21, 2019

मोदी जी की अंग्रेजी और ट्रंप की हिंदी



मोदी जी की अंग्रेजी और ट्रंप की हिंदी 


आज आते ही तोताराम हम पर उसी तरह हावी हो गया जैसे नोटबंदी करके मोदी जी ने आतंकवादियों की कमर तोड़ दी और काले धन वालों को सड़कों पर भीख माँगने पर मज़बूर कर दिया |

बोला- अब तो मान गया मोदी जी का जलवा |खुद ट्रंप ने जी-७ सम्मिट में सबके सामने मोदी जी की अंग्रेजी की तारीफ़ की |और अपने यहाँ के खुद को कुछ ज्यादा ही पढ़ा लिखा समझने वाले लोग जिन्हें चार लाइनें हिंदी तक में सही बोलना नहीं आता, मोदी जी की डिग्रियां देखना चाहते हैं |

हमने कहा- तोताराम एक बार तो मोदी जी भी ट्रंप के इस अप्रासंगिक मज़ाक से हकबका गए थे |

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फिर 'अब हम दोनों निजी बातें करेंगे' (पता नहीं, अंग्रेजी में या हिंदी में )कह कर पत्रकारों को टरका दिया |लेकिन हमें समझ नहीं आता कि इस प्रशंसा के लिए ट्रंप साहब का एहसान मानें या मोदी जी की अंग्रेजी पर गर्व करें |हमारा तो यह मानना है कि भाव और कर्म अच्छे होने चाहियें फिर भाषा चाहे कैसी भी हो, कोई फर्क नहीं पड़ता | 

बोला- भैंस-गाय कैसी भी सुन्दर हो लेकिन दूध न दे तो कौन उसे पालना चाहेगा |अपने शशि थरूर भी अंग्रेजी बहुत अच्छी बोलते हैं |उनको सुनने के बाद पत्रकार घर जाकर थरूर फोर्ड डिक्शनरी देखते हैं |लेकिन शशि थरूर की पार्टी के पास विपक्षी दल बनने जितनी भी सीटें नहीं हैं तो उनकी अंग्रेजी को कौन पूछेगा ? मोदी जी के पास स्पष्ट बहुमत है और अमरीका से हथियार खरीदने के लिए बड़ा बजट तो ट्रंप शशि थरूर नहीं, मोदी जी की अंग्रेजी को सुनेंगे, मोदी जी ही हिंदी को सुनेंगे, मोदी जी को गुजराती को सुनेंगे, मोदी जी के मन की बात को सुनेंगे, मोदी जी की कविताएँ सुनेंगे |एक बार नहीं दस बार सुनेंगे |

याद करके बता कि आज तक किस भारतीय नेता की अंग्रेजी की किस अमरीकी राष्ट्रपति ने तारीफ़ की है | गाँधी-नेहरू की अंग्रेजी बहुत अच्छी थी लेकिन क्या उनके पास इसका कोई प्रमाण-पत्र है ? हाँ, इस बारे में फ़िराक गोरखपुरी का एक चुटकुला ज़रूर है जो कहा करते थे कि इस देश में तीन जन ही अंग्रेजी जानते हैं- एक गाँधी जी, दूसरे नेहरू जी और तीसरे वे खुद |

हमने कहा- तो क्या ट्रंप अंग्रेजी के कोई बहुत बड़े जानकर हैं ? उनके तो खुद के ही गलत उच्चारण के बहुत से किस्से अमरीका में प्रचलित हैं |कोई अंग्रेजी का बड़ा विद्वान ऐसा कहता तो भी एक बात थी |

बोला- भले ही ट्रंप अंग्रेजी के बड़े विद्वान न हों लेकिन वे किसी की तारीफ़ बहुत मुश्किल से करते हैं |बहुत से अच्छे-भले लोगों की स्टेज पर ही टोपी उतार देते हैं |ऐसे नखरे वाले और तुनकमिजाज़ ट्रंप जब किसी की तारीफ़ करते हैं तो कोई विशिष्ट बात होती ही है |

हमने कहा- तोताराम, अभी तक तो हम इस बात के अन्य पक्षों पर बात कर रहे थे लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि मोदी जी ने पत्रकारों द्वारा अंग्रेजी में पूछे गए प्रश्नों का हिंदी में उत्तर दिया था |पता नहीं, ट्रंप साहब को उस समय कोई पुराना किस्सा याद आ गया या फिर मोदी जी को खुश करके कोई नई डील करने की योजना उनके मस्तिष्क में चल रही थी या फिर मोदी जी के हिंदी वक्तव्य के दुभाषिये द्वारा अंग्रेजी में किए गए अनुवाद से मोदी जी की वक्तृत्व कला की चतुराई से प्रसन्न होकर उन्होंने अंग्रेजी के नाम से उनकी प्रशंसा कर दी हो |फिर भी यह उनका भारत पर बहुत बड़ा एहसान हो गया |क्या इस एहसान का बदला चुकाने के लिए हथियारों की कोई दो-पाँच हजार  करोड़ डालर की डील करनी पड़ेगी ? 

बोला- नहीं | मोदी जी 'हाउ डी मोदी' कार्यक्रम में ह्यूस्टन जाएँगे |वहाँ ट्रंप भी आएँगे तो मोदी जी ट्रंप की हिंदी की प्रशंसा कर देंगे |हिसाब बराबर | 

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हमने कहा- ठीक है |एक किस्सा सुन |१९७५ में राजकोट गुजरात में हमारे साथ विज्ञान के एक अध्यापक थे |वे गुजराती विद्यार्थियों से अंग्रेजी में और हम हिंदी भाषियों से गुजराती में बात करते थे |मज़े की बात यह कि सभी उनके भाषा-ज्ञान की प्रशंसा करते थे | 

 




 

 

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Sep 20, 2019

देशभक्ति का मापदंड



देशभक्ति का मापदंड  

आजकल कमर और घुटनों में थोड़ा दर्द रहने लगा है, विशेषकर काफी देर तक बैठने के बाद जब उठते हैं। वैसे ही जैसे कई वर्षों तक सत्तासीन रहने के बाद किसी को निर्देशक मंडल में बैठाते समय होता है। डॉक्टर ने कहा- सुबह-सुबह थोड़ा घूम लिया करोगे तो कंट्रोल में रहेगा। सो डरता, क्या न करता? हम और तोताराम कीचड़, गड्ढों और सांडों से बचते-बचाते किसी तरह आधा किलोमीटर घूमकर लौट रहे थे कि कुछ गौरक्षक टाइप युवाओं ने रास्ता रोक लिया। और फिर वही अधिसूचना जारी करते हुए बोले- ताउओ, आ जाओ देशभक्ति चेक करवालो।
हमने दोनों ने एक साथ पूछा- एक बार चेक करवाई हुई देशभक्ति का सर्टिफिकेट कितने दिन चलता है? हमने तो अगस्त 2016 में चेक करवा ली थी देशभक्ति। क्या फिर रिन्यू करवानी है?
युवक बोले- जब भी नई सरकार आती है तो उसी के मापदंडों के अनुसार देशभक्ति चेक की जाती है।
हमने कहा- पिछली बार भी जब तुम लोगों ने देशभक्ति चेक की थी, मोदी जी की सरकार थी और अब भी मोदी जी की ही सरकार है तो फिर नई चेकिंग का क्या चक्कर आगया ?
बोले- अब देश भक्ति के मापदंड बदल गए हैं जैसे कश्मीर में धारा 370 समाप्त होने पर मापदंड बदल गए हैं। पुराने नियमों के अनुसार महबूबा मुफ़्ती के साथ बीजेपी सरकार बना सकती थी। फारुक अब्दुल्ला को अटल जी की सरकार में शामिल किया जा सकता था और उमर अब्दुल्ला कांग्रेस के मंत्रिमंडल में मंत्री बन सकते थे लेकिन अब वे सब जेल में डालने योग्य हो गए हैं।
हमने पूछा- तो अब देशभक्ति के लेटेस्ट नियम क्या है ?
बोले- कम बच्चे और अधिक धन।
तोताराम ने कहा- पहले तो मोदी जी के मित्र संगठन विश्व हिंदू परिषद वाले तोगड़िया जी और बीजेपी के बहुमुखी नेता साक्षी महाराज ने भगवान का वास्ता देकर आठ-आठ बच्चे पैदा करने के लिए कहा था। यह तो हम दोनों ने नसबंदी करवा रखी थी, नहीं तो अब तक कई बार मातृत्त्व सुरक्षा पैकेज उठा चुके होते। अगर आज हमारे आठ-आठ बच्चे होते तो क्या फांसी चढ़ा देते? रही धन की बात, सो हम तो कबीर जी की तरह पाप से बचने के लिए आधी और रूखी खाते रहे और धन से बचते रहे-
आधी और रूखी भली, सारी तो संताप।
जो चाहेगा चूपड़ी तो बहुत करेगा पाप।।
ईसा ने भी कहा है- सुई के छेद में से ऊंट निकल सकता है लेकिन धनवान का स्वर्ग जाना मुश्किल है।
हमने पूछा- तो अब हम घर जाएं या यहीं से जेल ले चल रहे हो ?
युवा बोले- हमारे पास सजा तय करने के आदेश नहीं आए हैं। हम तो सर्वे कर रहे हैं।
तोताराम ने कहा- तब तो मोदी और अंबानी-अडाणी से बड़ा देशभक्त कोई है ही नहीं। मोदी जी बच्चे होने की  दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं और अम्बानी-अडाणी के पास पैसे की कोई गिनती नहीं। हम दोनों तो इस हिसाब ने कुंभी पाक नरक में डाले जाने के योग्य हैं। अब जो बच्चे हो चुके उनका क्या करें? और जहां तक हमारे धन-दौलत की बात है तो वह मोदी जी के हाथ में है। जब हमारा पे कमीशन का 31 महीने का एरियर ही नहीं दिया तो फिर किस धन-संपत्ति का स्वप्न देखें?

युवा बोले- खूंसटो, वैसे तुम दोनों भी कोई कम नहीं हो। जाओ। जैसे मोदी जी ने बेयर ग्रिल को पका दिया वैसे तुम लोग हमें मत पकाओ। ‘अपने मन की बात’ अपने पास ही रखो।

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Sep 14, 2019

हिंदी वाले ही हैं हिंदी से बेपरवाह



नवभारत टाइम्स 

 



लेखक: रमेश जोशी
आज हिंदी दिवस है। इस उपलक्ष्य में आज अनेक कार्यक्रम होंगे और हिंदी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाएंगी, फिर अगले दिन से सब कुछ सामान्य ढर्रे पर चलने लगेगा। हिंदी अपनी गति से आगे बढ़ रही है और बढ़ती रहेगी। दुर्भाग्य बस यह है कि हिंदीवाले ही उसके लिए कुछ नहीं कर रहे। भारत के हिंदीभाषियों को उन समुदायों से सीखना चाहिए जिन्होंने विस्थापित होकर भी, तमाम तरह के संकट झेलकर भी अपनी भाषा-संस्कृति को बचाया। यहूदियों को देखिए। अत्याचारों के मारे वे जाने कहां-कहां विषम परिस्थितियों में दर-ब-दर भटकते रहे हैं लेकिन दुनिया में जहां भी यहूदी रहे उन्होंने नए देश की भाषा सीखते हुए भी अपनी भाषा हिब्रू को जीवित रखा।
अफ्रीकी अश्वेतों ने अमेरिका जाकर न जाने कितना दुख सहे पर उन्होंने अपने गीतों को बचाए रखा। अपने ही पूर्वजों का उदाहरण लीजिए। सन 1824 से 1911 के बीच लाखों भारतीयों, खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के निरक्षर, गरीब, मेहनती किसानों को गन्ने और चावल की खेती करने के लिए मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, जमैका आदि देशों में ले जाया गया। मौखिक रूप से ही सही, पर इन्होंने भी अपनी भाषा को बचाए रखा। उनके बीच हिंदी आज भी सुरक्षित है। अंग्रेजों के राज में करियर के लालच में बिना किसी सरकारी सहायता के हमने हिंदी, अपनी मातृभाषा और अंग्रेजी सब सीख लीं। क्या हमारी नई पीढ़ियां इतनी अक्षम हैं कि एक अतिरिक्त भाषा, वह भी अपनी भाषा सीखने का श्रम करने पर जीविका और ज्ञान के अन्य क्षेत्रों में पिछड़ जाएंगी।
दिलचस्प तो यह है कि कुछ अभिभावक करियर के नाम पर चीनी जैसी बहुत मुश्किल भाषा सीखने के लिए बच्चों को झोंक देते हैं। मतलब हमारे बच्चों में क्षमता की कमी नहीं है। रही बात हिंदी की संभावनाओं की तो वे अपार हैं क्योंकि इस भाषा के पास विरासत के रूप में दुनिया की कुछ सबसे बड़ी सभ्यताओं का इतिहास है, चिंतन की एक विविध और लंबी परंपरा है। यदि हम अपनी संभावनाओं को तलाशते और मार्केटिंग करते (मार्केटिंग आज के सस्ते अर्थ में नहीं) तो बात कुछ और ही होती। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ नोबेल पुरस्कार की दौड़ में इसलिए शामिल हुई कि उसका अंग्रेजी अनुवाद हुआ और प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार डब्लूबी येट्स ने उसका प्राक्कथन लिखा था। प्रेमचंद निश्चित रूप से विश्व के महान कथाकार हैं, लेकिन उन्हें अनूदित करके दुनिया के सामने नहीं रखा जा सका।
इसी तरह महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु की मार्केटिंग भी ठीक से नहीं हुई। उनके काम का पेटेंट न हो पाने के कारण उन्हें वह स्थान और मान्यता नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी। संभवत: इसके पीछे हमारे देश का ब्रिटेन के अधीन होना एक प्रमुख कारण रहा हो। लेकिन क्या आज भी हम मजबूती से अपनी बात कह पा रहे हैं? भले ही आज हम एक बड़ा बाजार बन गए हों, पर हममें इतना आत्मविश्वास नहीं है कि हम अपना सारा काम अपनी भाषा में कर सकें। कभी हिंदी की सबसे प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित पत्रिका रही ‘सरस्वती’ के संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी का मानना था कि हमें हिंदी की शक्ति बढ़ाने के लिए विभिन्न विषयों का अधिक से अधिक लेखन हिंदी में करना चाहिए। हिंदी की श्रेष्ठ रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद करना चाहिए और अन्य भाषाओं की श्रेष्ठ रचनाओं का भी हिंदी में अनुवाद करना चाहिए। बड़े विद्वान होते हुए भी उन्होंने सामान्य विषयों पर छोटी-छोटी पुस्तकें लिखीं।
जापान में विश्व के किसी भी शोधपत्र का जापानी में अनुवाद एक सप्ताह में उपलब्ध हो जाता है। क्या हिंदी में हम ऐसी तत्परता का दावा कर सकते हैं? हमने हिंदी को केवल कविता-कहानी तक ही सीमित कर दिया है। उसे साहित्य की अन्य विधाओं में भी सक्रिय करना है। कहते हैं, देवकीनंदन खत्री के तिलस्मी उपन्यास पढ़ने के लिए कई लोगों ने हिंदी सीखी। क्या आज हम हिंदी में ऐसा कुछ नया और रोचक दे पा रहे हैं? भले ही हम मुंबइया सिनेमा को फार्मूला टाइप और सस्ता मनोरंजन कह कर खारिज करना चाहें, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सिनेमा ने अपनी मनोरंजन की शक्ति से हिंदी को दुनिया के एक बहुत बड़े वर्ग तक पहुंचाया है। हिंदी की क्षमताओं और संभावनाओं को विकसित करने के लिए क्या हम उसे सीखने की प्रक्रिया को और रोचक तथा वैज्ञानिक नहीं बना सकते? आज भी शुरुआत हम ‘अ’ से ‘अनार’ से ही करना चाहते हैं।
हमारा शिक्षण आज भी ‘व्यासपीठ’ पर बैठकर भाषण देने से आगे नहीं बढ़ पाया है। हमारे पास नेताओं और पार्टियों के विज्ञापन के लिए हजारों करोड़ का बजट है, विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी खर्चे से सेवकों को विश्व भ्रमण करवाने के लिए पैसा है, लेकिन हिंदी की शक्ति और क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ नहीं है। हमें खुद ही अपनी भाषा की क्षमता पर विश्वास नहीं है। चीनी और जापानी भाषाएं विस्तार पा रही हैं तो इसका कारण उन देशों की शिक्षा, ज्ञान, औद्योगिक उत्पादन क्षमता और शक्ति है। शक्तिशाली देश की भाषा भी शक्तिशाली हो जाती है। अंग्रेजी की हैसियत के पीछे उस भाषा की क्षमता से अधिक ब्रिटेन की आर्थिक और सैनिक शक्ति रही है। तभी एक कहावत है- शक्तिशाली का तिनका भी लट्ठ होता है।
सब तरह से देश शक्तिशाली बने तो वह बल उसकी भाषा में भी प्रतिबिंबित होगा। हिंदी की शक्ति तब बढ़ेगी जब उसमें ज्ञान और सूचना की सामग्री का विशाल भंडार होगा और विभिन्न दिशाओं में उसका विस्तार होगा। कहते हैं- फर्स्ट डिजर्व देन डिजायर। डिजर्व करने के बाद शायद बिना डिजायर के भी वह सब मिल जाएगा जिसकी हम अपेक्षा करते हैं। इसलिए हम जगद‌्गुरु होने की कुंठा त्यागकर, भारतीय भाषाओं विशेषकर हिंदी के गुणानुवाद से आगे जाकर उसमें ज्ञान-विज्ञान और आर्थिक विषयों का समावेश करें और उसे एक समृद्ध भाषा बनाएं।

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मोदी जी ने ग्रिल्स को ही ग्रिल कर दिया होगा



मोदी जी ने ग्रिल्स को ही ग्रिल कर दिया होगा 



तोताराम ने चाय की चुस्की लेते हुआ कहा- मास्टर, इन गोरे लोगों के नाम भी बड़े अजीब होते हैं। अब मोदी जी पर फिल्म बनाने वाले का नाम ही देख- बेयर ग्रिल्स। बेयर माने भालू, उजड्ड, खूंख्वार और ग्रिल्स मतलब पकाता है, भूनता है।
हमने कहा- यह अपने हिसाब से खूंख्वार दिखने की एक्टिंग करता है, वास्तव में तो यह एक स्काउट है जो लोगों को यह सिखाता फिरता है कि जंगली और बीहड़ इलाकों में जहां कुछ भी साधन उपलब्ध नहीं हो वहां कैसे काम चलाया जाए? जैसे हमारे यहां स्काउटों के कैम्प लगाए जाते हैं जहां उन्हें विषम परिस्थितियों में काम चलाना सिखाया जाता है। यह बात और है कि ऐसे कैम्प किसी सुरक्षित स्थान पर बड़े आराम से लगाए जाते हैं।
इस इंग्लिश भालू का वास्तविक नाम एडवर्ड माइकल ग्रिल्स है। हो सकता है इसके पूर्वज मांस भूनने का धंधा करते रहे हों। वैसे इसके नाम की स्पेलिंग (GRYLLS) जैसा कोई शब्द कोश में नहीं मिलता।
बोला- लेकिन यह है तो खूंख्वार। कहते हैं सांप के सिर-पूंछ काटकर उसे कच्चा चबा जाता है।
हमने कहा- इसमें क्या है? अपना-अपना भोजन है। हम भी तो गाजर-मूली को कच्चा चबा जाते हैं कि नहीं? फिर भी हम समझते हैं कि मोदी जी को इसके चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। बिना बात घनघोर जंगल, हिंसक जानवरों का खतरा।
बोला- इसकी चिंता मत कर। सब कुछ फिल्मों और सर्कस की तरह व्यवस्थित था। यदि कोई स्टंट जैसा कुछ दिखाया जाता तो हीरो की तरह मोदी जी का भी कोई डुप्लीकेट ले लिया जाता हालांकि वे तो अवतारी पुरुष हैं। उनका विकल्प तो हो नहीं सकता।
हमने कहा- फिल्म बनाता है तो रीटेक करा-कराकर ही मोदी जी को ग्रिल कर दिया होगा।
बोला- उसकी फिक्र मत कर। मोदी जी को कौन डायरेक्ट कर सकता है? उन्होंने तो ग्रिल्स को ही ग्रिल कर दिया होगा। देखा नहीं, जब उस बालचर ने एक लकड़ी से चाकू बांधकर मोदी जी को दिया और कहा- यदि कोई जंगली जानवर मिल जाए तो उससे बचाव के लिए इसे रख लें। तो मोदी जी ने कहा- हम अहिंसक हैं। हमें शस्त्र की जरूरत नहीं है।
उसे पता नहीं हम भारतीय भरत के वंशज हैं। वह भरत जो अपने बचपन में जंगल में बाघों का सर्वे किया करते थे। यहां तक कि शेरों के दांत तक गिनकर पूरा रिकॉर्ड रखा करते थे। क्या भारत के अतिरिक्त किसी देश में शेर की सवारी करने वाली कोई देवी है? और भाषण, कविता और मन की बात के द्वारा शेर क्या उसके बाप को भी पकाया जा सकता है। और फिर खतरे जैसा कुछ था भी तो नहीं।
हमने कहा- जब वास्तविक कुछ था ही नहीं तो इस नाटक की क्या जरूरत थी?

बोला- यही तो तुझे पता नहीं। आजकल दुनिया में ‘माचो मैन’ की छवि का फैशन है जैसे फिल्मों में सिक्सपैक बॉडी के प्रदर्शन का। तभी तो रूस का राष्ट्रपति अपने मसल्स का प्रदर्शन करते हुए घोड़ा दौड़ाते हुए फोटो खिंचवाता है।









 

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Sep 8, 2019

राजनीति का नव-ग्रह पूजन



 राजनीति का नव-ग्रह-पूजन 

आज जैसे ही तोताराम आया, हमने देश सेवकों की तरह अपना आस्था चेनल शुरू करते हुए कहा- तोताराम, प्रत्येक जीव हर हालत में अपने प्राणों की रक्षा करता है |तभी शास्त्रों में कहा गया है- 'शरीरमाद्यम् खलु धर्मसाधनम्' इस प्रकार शरीर धर्म से भी बड़ा हो गया |इसी का हूबहू अनुवाद लोक में खूब प्रचलित है- काया राख धरम है मतलब काया की रक्षा करो क्योंकि काया के बिना धर्म का पालन कौन करेगा |लेकिन इसी लोक में कुछ ऐसे सिरफिरे लोग भी होते हैं जो धर्म के लिए प्राण दे देते हैं |कर्ण, दधीचि, शिवि, रंतिदेव आदि ऐसे ही कुछ नाम हैं |जब भगतसिंह को जेल से छुड़ाकर ले जाने की बात आई तो उन्होंने इसलिए मना कर दिया कि आज जो मेरे नाम पर सिर झुकाते हैं, कल थूकेंगे |यश को अपना जीवन मानने वाले लोगों को ही शास्त्रों ने यशःकाय कहा जाता है |

बोला- बात को इतना घुमाता क्यों है ? ज़माना बदल गया है |आज यश के लिए काया को कष्ट देने की ज़रूरत नहीं है | पैसे के बल पर मीडिया में विज्ञापन देकर यश कमाया जा सकता |यह यश कमाना भी एक प्रकार का निवेश है |पहले निवेश के बल पर यश कमाओ फिर उस यश से पद प्राप्त करो |पद से धन प्राप्त होगा |फिर उस धन को और यश;  और फिर और बड़ा पद; फिर और धन प्राप्त करने के लिए निवेश करो |यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है | जहाँ तक धर्म के प्राणों से संबंध की बात है तो पहले यशःकाय लोग धर्म के लिए प्राण तक दे दिया करते थे लेकिन आजकल धर्म के लिए किसी के भी प्राण लेने का फैशन है |

यदि धन जनता का हो तो फिर उसे अपने यश विस्तार के लिए निर्दयतापूर्वक खर्च करने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए |  यही तो हो रहा है आजकल हर क्षेत्र में |अभी १५ अगस्त को देश के सभी अखबारों में जल संरक्षण के नाम से, हजारों करोड़  रुपए के,  छोटी-छोटी ग्राम पंचायतों के सरपंच और ग्राम सेवक के नामों के उल्लेख के साथ विज्ञापन छपे कि नहीं ?  लेकिन आचरण तो दूर, इन्हें किसी ने पढ़ा तक नहीं | पढ़े भी तो क्या ? एक अखबार में छपे लगभग सभी विज्ञापन एक जैसे क्योंकि सरपंचों को क्या पता ? उन्होंने तो अखबार वाले को कह दिया- इतने का बजट है |इसमें जैसा विज्ञापन लग सके, लगा दो |बड़े स्तर पर देखें तो हर पेट्रोल पम्प पर मोदी जी का बड़ा-सा फोटो निगरानी कर रहा है |



शर्मनाक!  मोदी, शाह और योगी के साथ छपी उन्नाव रेप आरोपी कुलदीप सेंगर की फोटो, स्वतंत्रता दिवस पर दी शुभकामनाएं





हमने कहा- ऐसा ही एक विज्ञापन उन्नाव जनपद की ऊगू ग्राम पंचायत के अध्यक्ष अनुज कुमार दीक्षित द्वारा छपवाया गया है  जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह तथा उप्र विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित की तस्वीरें हैं और इनके साथ, जिसके कारण भाजपा बदनाम हो रही है उस सेंगर और उसकी पत्नी के फोटो भी हैं |इससे प्रधानमंत्री तक की छवि ख़राब होती है |जैसे पहले नीरव मोदी के साथ फोटो पर लोगों ने ऐतराज किया था |

बोला- इसमें पंचायत अध्यक्ष की कोई गलती नहीं है |सुरक्षा की दृष्टि से यह उसी तरह आवश्यक है जैसे अवैध कॉलोनी का नाम किसी तत्कालीन बड़े नेता के नाम पर रखने से कॉलोनी के टूटने का खतरा कम रहता है और भविष्य में कॉलोनी के नियमित होने की संभावना भी रहती है |

हमने कहा- और सब तो ठीक है, लेकिन सेंगर वाली बात समझ में नहीं आई |

बोला- अभी सेंगर पर कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ है और यदि आरोप सिद्ध हो भी जाए तो उसकी शक्ति और  प्रभाव में कोई कमी, न कल थी और न ही आज |राजनीति में संकटों से बचने के लिए इन नौग्रहों का पूजन ज़रूरी है |और फिर राहु,केतु, शनि आदि का विशेष ख्याल रखना पड़ता है |इसी कारण तो कहा गया है-

बसे बुराई जासु तन ताही को सनमान |
भलो भलो कहि छाँडिए, खोटे गृह जप-दान ||

और ये महाशय तो ग्रह ही नहीं बल्कि आकाश में निर्बंध उड़ते उल्का पिंड हैं जो कहीं भी लैंड कर जाते हैं |












 

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Sep 5, 2019

और करो दरवाजा बंद



और करो दरवाज़ा बंद 


जब तक तोताराम का हमारे यहाँ अवतरण होता है तब तक प्रायः बरामदे में हमारी प्राण-प्रतिष्ठा हो चुकी होती है |चाय आने वाली थी कि लगा तोताराम कुछ बड़बड़ा रहा है |ध्यान से सुना तो शब्द कुछ स्पष्ट हुए- .. दरवाज़ा बंद... दरवाज़ा बंद... |ऐसे में यही तो होगा |और करो दरवाज़ा बंद |

हमने कहा- बंधु, दरवाज़ा बंद करना तो बहुत बड़ी बात है, हम तो आपके स्वागत में पहले से बरामदे में पलक-पाँवड़े बिछाए रहते हैं |फिर यह ताना किसको मार रहे हो ?

बोला- मैं स्वच्छ-भारत योजना की बात कर रहा हूँ |पूरे चार साल अमिताभ बच्चन से 'दरवाज़ा बंद' गवाते रहे |अब देख लिया न दरवाज़ा बंद करने का  नतीज़ा |

हमने कहा- मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने से पहले की बात और थी कि लोग बेशर्मी से खुले में गर्दन झुका कर कहीं भी निवृत्त हो लिया करते थे |

बोला- तभी तो ऐसी घटनाएं नहीं हुआ करती थीं |अब देखो, जब चाहे कोई न कोई अपराधी शौचालय जाने के बहाने फरार हो जाता है |



अब तो अगस्ता हेलिकोप्टर वाला रतुल पुरी भी खिसक लिया |यह बात और है कि फिर पकड़ लिया गया है |वैसे उसके बारे मुझे तो यही पता है कि वह कांग्रेसी नेता कमलनाथ का भांजा है |अब उसके खिसकने और पकड़े जाने में कानून व्यवस्था की कितनी भूमिका है और राजनीतिक पार्टी की कितनी ?

हमने कहा- लेकिन बन्धु यह भी तो उचित नहीं कि कश्मीर में इंटरनेट-बंदी की तरह अपराधी का टट्टी-पेशाब बंद कर दो |ये तो नेचुरल कॉल हैं |इन पर किसी का जोर नहीं चलता |

बोला- लेकिन सावधानी तो बरती जा सकती है |एक बार सावरकर को पानी के जहाज से ब्रिटेन से भारत लाया जा रहा था | रास्ते में फ्रांस का समुद्री तट पड़ता था |

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सावरकर ने  सोचा यदि वे किसी तरह फ़्रांस पहुँच जाएँ तो उन पर ब्रिटेन के नियमों की बजाय अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार मुक़दमा चलेगा |इसलिए जब फ़्रांस नज़दीक आया तो सावरकर जहाज के शौचालय के कमोड के छेद में से निकलकर फरार हो गए |यह बात और है कि फ़्रांस ने नियमों का उल्लंघन करते हुए उन्हें ब्रिटेन को सौंप दिया |अपराधस्वरूप सावरकर को काले पानी की सज़ा हुई |लेकिन अंग्रेज सावधान हो गए |फिर कोई ऐसी घटना अंग्रेजों के राज में घटना नहीं हुई |

हमने कहा-हम तेरी बात नहीं कर रहे हैं |हम तो पुलिस वालों की अकल का रोना रो रहे हैं | सुना है लालू जी का होमोग्लोबिन कम हो गया है तो जेल में उन्हें सुबह नाश्ते में चार अंडे, बादाम और भी न जाने क्या-क्या दिया जा रहा है |खैर, वे तो बड़े आदमी हैं |आजकल तो साधारण अपराधी को भी कोर्ट में लाएंगे तो हथकड़ी नहीं लगा सकते हैं | पुलिस और अपराधी हाथ में हाथ डाले कोर्ट में 'हाथों में तेरे मेरे हाथ रहे...' की मुद्रा में आते हैं |हमारे शास्त्रों में तो सप्तपदी के बारे में कहा जाता है कि किसी के साथ सात कदम चल लो तो प्रेम हो जाता है |ऐसे में सिपाही और अपराधी में भी इतना लगाव हो जाता है कि दोनों एक ही बीड़ी शेयर करते नज़र आते हैं |

हमने कहा- अब तू आज़म खान  'इधर-उधर की बात'  कर रहा है |बात बंद दरवाजे की हो रही थी ?

बोला- ऐसे में यदि अपराधी को लघु या दीर्घ शंका हो जाए तो क्या उसे शौचालय में जाने से कैसे रोका जा सकता है ? और अंग्रेजों के जहाज में छेद की बात करता है तो हर सरकार एक जहाज ही है |सबमें छोटे-बड़े छेद होते ही हैं |



अपने यहीं देख लो |क्या पहले भोपाल गैस त्रासदी का भारत का अपराधी एंडरसन कांग्रेस के समय में दिल्ली में बाकायदा राष्ट्रपति जी से मिलकर हवाई जहाज में बैठा था |और अब माल्या, नीरव और चौकसे सभी चौकसियों के बावजूद विदेश में मज़े कर रहे हैं या नहीं ? क्या छेदों को बंद नहीं किया जा सकता ? 


हमने कहा- कर तो सकते हैं पर तब खुद कहाँ से निकलेंगे ?  

 




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Sep 2, 2019

आप न चाहें तो भी.......

 आप न चाहें तो भी ..... 


हम सोच रहे थे कि राजनीति में लोग कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ते रहते हैं, एक दूसरे को गालियाँ निकालते रहते हैं, एक-दूसरे के बारे में झूठी अफवाहें उड़ाते रहते हैं | साथ ही यह भी कहते रहेंगे कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त और दुश्मन नहीं होता |राजनीति न हुई अपराध की ईमानदार दुनिया हो गई जिसमें सभी धर्म-जाति और पार्टी के लोग बड़े प्रेम से मिलजुलकर अपराध करते हैं और सभ्यता से बँटवारा कर लेते हैं |यदि कभी कुछ ऊंँच-नीच हो भी गई तो कभी पुलिस-थाना और कोर्ट-कचहरी नहीं करते |हाँ, कभी-कभी कुछ बिल्लियाँ न्याय-व्यवस्था में विश्वास करके बँटवारे के लिए बन्दर के पास जाने की मूर्खता कर बैठती हैं और रोटी गँवाकर पछताती हैं |

तभी तोताराम एक लम्बे-चौड़े, लाल मुँह वाले सज्जन के साथ प्रकट हुआ |

हमने पूछा- ये 'वानर' कौन हैं ?

बोला- एक बड़े और धनवान लोकतंत्र से बड़े नेता हैं और तू इन्हें 'वानर' कहता है ?

हमने कहा- हम इन्हें स्पष्ट रूप से वानर नहीं कह रहे हैं | ये हमारे यहाँ के नरों जैसे नहीं लगते हैं |इनका मुँह हमारे यहाँ के नरों से अधिक लाल है, बाल सुनहरे हैं | इसलिए शंका हो गई |तभी तो 'कपि' न कह कर वानर कहा |

बोला- कपि और वानर में क्या फर्क है ?

हमने कहा- कपि का मतलब 'बन्दर' और वानर मतलब 'वा' 'नर' अर्थात शायद नर |हम इनके बारे में अपनी शंका ज़ाहिर कर रहे हैं |वैसे ये यहाँ कर क्या रहे हैं ?

बोला- 
बड़ी दूर से चलकर आए हैं 
मध्यस्थता का संदेसा लाए हैं |

हमने कहा- कहीं ये ट्रंप जी तो नहीं हैं ?

बोला- पता नहीं, लेकिन पूछ रहे हैं वे दो बिल्लियाँ कहाँ गईं जो हमारे पास रोटी का बँटवारा करवाने आया करती थीं |

हमने कहा- इनसे कह दे, भले ही एक बिल्ली को समझ नहीं आई हो लेकिन दूसरी बिल्ली ने ऐसा इंतज़ाम कर दिया है कि अब दोनों बिल्लियों को आपस में ही बातचीत करके समझौता करना पड़ेगा |कोई तीसरा बीच में नहीं आएगा |

लाल मुँह वाले सज्जन बोले- यदि बिल्लियाँ चाहें तो हम मध्यस्थता करने को तैयार हैं |

हमने कहा- आप तो बिना चाहे भी मध्यस्थता करने को तैयार हैं और ऐसा भी हो सकता है कि आप ज़बरदस्ती भी मध्यस्थता कर देंगे |लेकिन अब वह बात नहीं रही |

सज्जन बोले- वह कौनसी बात ?

हमने कहा- पहले हमारे यहाँ अंग्रेज आए थे, आपके ही पुरखे |यहाँ से राजा-नवाबों के बेटों में समझौता करवाने के लिए मध्यस्थता किया करते थे |एक की तरफ फ्रांसीसी और दूसरे की तरफ अंग्रेज | सहायता के नाम पर उन राजपुत्रों के पैसों पर दोनों की सेनाएँ पलती-लड़ती थीं |जो भी राज्य प्राप्त करता उसी की तरफ से इनाम-इकराम |ऐसा करते-करते सारे हिंदुस्तान पर लाल मुंँह वालों का कब्ज़ा हो गया |और जैसा कि इनकी कूटनीति रही है जाते-जाते उस देश का बँटवारा |मतलब देश छोड़ने के बाद भी चौधराहट बरकरार |इनसे कह दो- हम सब जानते हैं उन बिल्लियों को जिन्हें आप ढूँढ़ रहे हैं |

वे सज्जन जाने लगे |चार कदम जाने के बाद फिर मुड़े और बोले- वैसे हम आपके मोटा भाई के अच्छे मित्र हैं, स्मार्ट पर्सन | अभी न सही, कोई बात नहीं; जब मन करे हमें याद कर लेना | हम हमेशा तैयार हैं |









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