Apr 30, 2015

१५-०१-२०१५ खोतारम की पतंग

   15-01-2015 खोताराम की पतंग

और प्रदेशों का पता नहीं, लेकिन राजस्थान में संक्रांति के एक दो दिन पहले और बाद में छतों पर पतंग उड़ाई जाती है | जब चीन में बनी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तक चल पड़ी हैं तो माँझे में ही क्या बुराई है ? चीन का माँझा पता नहीं, स्वास्थ्य के लिए कैसा होता है लेकिन होता बहुत सस्ता और उसके अन्य सामानों के विपरीत मज़बूत भी | पहले की तरह काँच पीसने, लेही बनाने और फिर गली में इस सिरे से उस सिरे तक ट्रेफिक जाम करके माँझा सूँतने का कोई झंझट नहीं | सुँता-सुँताया तैयार मिलता है | सावधान न रहने पर कबूतर ही क्या, बच्चों तक गर्दन तक पर चीरा लग जाता है |जिन्हें कोई मुद्दा नहीं मिलता वे छुटभैय्ये नेता चीनी माँझे को लेकर विरोध प्रदर्शन करते हैं और शाम को उसी चीनी माँझे से पतंग उड़ाते हैं |

कल संक्रांति को तोताराम आया, एक हाथ में पतंग लूटने के लिए झाड़ी का एक छड़ा, एक हाथ में दो-तीन अधफटी पतंगें और कन्धों पर बेतरतीब लिपटा कई रंग का माँझा | बड़ी अज़ब सजधज थी |हमें हँसी आ गई तो नाराज़ हो गया,बोला- इसमें हँसने की क्या बात है ? बड़े-बड़े लोग पतंग उड़ाते हैं |मोदी जी का काला चश्मा लगाए पतंग उड़ाते का फोटो अभी तक मेरी आँखों में बसा है | और अब अमित जी का 'शमिताभ' फिल्म में पतंग उड़ाते का फोटो छपा है | 

हमने कहा- लेकिन वे तेरी तरह ऐसे पतंगें नहीं लूटते फिरते | 

बोला- उन्हें क्या पता लूटी हुई पतंग उड़ाने का मज़ा ? और किसे पता यदि बचपन में पतंगें लूटी हों तो | मुफ्त के माल का स्वाद ही कुछ और होता है | कई एम.पी. अपने आवंटित आवास में रहने की बजाय पाँच सितारा होटल में रह रहे हैं | मुफ्त का जो है | यदि अपने पैसे से रहना पड़े तो एक कमरे में पाँच-पाँच रह लेते हैं |

हमने कहा- लेकिन तेरी यह उम्र कोई पतंग उड़ाने की है क्या ? कहीं माँझे से गला कट गया या छत से गिर पड़ा तो सरकार से इलाज़ का पैसा भी नहीं मिलेगा |

कहने लगा- तो अमित जी की उम्र कौन सी पच्चीस की है ? होंगे तो मुझसे दो महीने छोटे होंगे |

हमने कहा- ठीक है लेकिन उन्होंने तो पतंग किसी 'शमिताभ' फिल्म में उड़ाई है | फिल्म में तो कहानी की माँग के अनुसार जैसे निर्देशक कहे वैसे कपड़े पहनने पड़ते हैं और वही करना पड़ता है | बेचारी कई हीरोइनों को तो कहानी और रोल की माँग को देखते हुए कपड़े तक उतारने पड़ जाते हैं, सर्दी में मन न होते हुए भी ठंडे पानी से नहाना पड़ता है |और फिर ग्लेमर और राजनीति में मीडिया में रहने की मज़बूरी भी तो होती है | फ़िल्में चलवाने के लिए विवाद उठवाने पड़ते हैं, अफेयर की खबरें उड़वानी होती हैं | वैसे ही जैसे नेता को जब मीडिया घास नहीं डालता उसे धर्म-जाति के विवादास्पद बयान देने पड़ते हैं |लेकिन तेरी क्या मज़बूरी है ?

बोला- तो यह समझ ले कि मैं अपनी फिल्म की माँग के अनुसार यह कर रहा हूँ |
'फिल्म'- हमें आश्चर्य हुआ, पूछा- 'तू किस फिल्म में काम कर रहा है' ?

बोला मैं- 'खोताराम' फिल्म में काम कर रहा हूँ |

हम फिर दुविधामें,पूछा- यह भी कोई नाम है ?

कहने लगा- जैसे 'शमिताभ' नाम अमिताभ से निकाला गया है वैसे ही यह 'खोताराम' नाम तोताराम से निकाला गया है |

अब इस बूढ़े-बच्चे को कौन समझाए कि बड़े आदमी जो करें वह लीला होती है वही काम छोटा आदमी करे तो वह लफंगई कहलाती है |

१५-०५-२०१५




 ?

Apr 28, 2015

पत्नी और प्रेरणा

   
27-02-2015  पत्नी और प्रेरणा  उर्फ़ शादी की पचासवीं वर्षगाँठ


आज पत्नी ने कुछ जल्दी चाय बनाली,  वैसे तोताराम भी आज कुछ विलंब से ही आया | आते ही पत्नी ने हमारे साथ ही उसे भी प्याला थमाना चाहा तो बोला- नहीं भाभी, अब मैं आपके यहाँ चाय नहीं पिऊँगा | हमें और पत्नी दोनों को आश्चर्य हुआ | तोताराम और हमारे यहाँ चाय नहीं ? 

कारण पूछा तो कहने लगा- बड़ा खराब ज़माना आ गया है | हर काम में राजनीति, हर काम में स्कूप, हर काम में घोटाला खोजना एक मनोरंजन हो गया है- जनता का भी और मीडिया का भी | होना-हवाना तो क्या है लेकिन बिना बात का तमाशा तो बन ही जाता है | चाय का क्या है ? दो घूँट यहाँ पी या वहाँ- क्या फ़र्क पड़ता है |

हम दोनों की उत्सुकता और बढ़ी | किसने, क्या ऐसी-वैसी बात तोताराम को कह दी जिस पर चालीस वर्ष से बिना नागा चाय पीता आ रहा तोताराम आज मना कर रहा है |
खोद-खोद का पूछा तो बोला- बेचारे गडकरी जी ने किसी के क्रूज़ में ज़रा सी लिफ्ट क्या ले ली, लोग हैं कि राई का पहाड़ बना रहे हैं |जब कि उस समय बेचारे भाजपा अध्यक्ष तो दूर सांसद भी नहीं थे | अगर किसी जान-पहचान वाले ने कुछ मुलाहिजा निभा दिया तो कौन सा पाप हो गया | क्या आदमी से आदमी का इतना भी रिश्ता नहीं होना चाहिए ?

हमने कहा- तेरी चाय और गड़करी जी का क्या संबंध है ? 

कहने लगा- है नहीं तो क्या, कल को हो भी तो सकता है |

हम और भी आश्चर्यचकित | बड़ी मिन्नत से पूछा तो बोला- मान ले, कल को मैं मंत्री बन गया तो लोग मेरी भी खाल खींचेंगे | कहेंगे कि तोताराम मास्टर के यहाँ चाय पिया करता था |पता नहीं अब उसको क्या फायदा पहुँचा रहा होगा | तू भी बिना बात लपेटे में आ जाएगा |

हमें हँसी आ गई, कहा- चाय पी या नहीं लेकिन मंत्री तो बन |वैसे याद रख तू भी बहत्तर का हो गया है | नई ऊर्जा के प्रतीक मोदी जी ने जब अडवाणी जी और मुरली मनोहर जी तक को चबूतरे पर बैठा दिया तो तुझे भी उम्मीद नहीं रखनी चाहिए |अब हमारे लिए भी अडवाणी जी की तरह ही शादी की पचासवीं वर्षगाँठ के नाम पर ही चर्चा में आने या कुछ बड़े लोगों के साथ फोटो खिंचवाने का मौका बचा है |

हम दोनों भी तो शादी की पचासवीं वर्षगाँठ पाँच साल पहले मना चुके हैं तो क्यों न पचासवीं वर्षगाँठ मना चुके लोगों का एक क्लब बना लें और उसका उद्घाटन करने के लिए अडवाणी जी  को निमंत्रित कर लें |

बोला- यही सही | वैसे प्रधान मंत्री भले ही न बन पाए हों लेकिन इतना तो मानना ही पड़ेगा कि अडवाणी जी ने देशसेवा और गृहस्थ दोनों निभा दिए वरना तो आजकल पंच बनते ही लोगों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है | और पत्नी के साथ-साथ 'प्रेरणा' की ज़रूरत पड़ने लग जाती है |

Apr 22, 2015

१२-०१-२०१५ एक ही डी.एन.ए.

  12-01-2015  एक ही  डी.एन.ए. 

सुबह ही अखबार देखा तो एक दुखद,अजीब और अच्छा समाचार पढ़ा | वजीरपुर कस्बे के एक सज्जन (!) के तीन बीवियाँ हैं और एक उन्नीस वर्षीय लड़की से इश्क चल रहा है | पत्नियों को पता चला लेकिन दो तो शायद बर्दाश्त कर गई होंगी लेकिन तीसरी ने नज़र रखी और कल अपने शौहर को शिक्षा भवन के सामने घेर लिया | पीछे बैठी लड़की और संभावित चौथी बीवी तो बचकर भाग गई लेकिन शौहर पकड़ में आगया | बीवी ने सेंडिलों से उसकी जमकर धुनाई की | इस पुण्य कार्य में राह चलते लोगों ने भी सहयोग किया |

समाचार दुखद इसलिए कि एक पुरुष की सार्वजनिक रूप से पिटाई हुई वैसे तीन बीवियों वाले की पिटाई कोई आश्चर्यजनक बात नहीं लेकिन यह बेईज्ज़ती घर तक ही सीमित रहे तो संस्कृति पर संकट नहीं आता | अजीब इसलिए कि यह शिक्षा भवन के सामने हुआ | हम तो शिक्षा का अर्थ और कुछ ही समझते थे लेकिन अब पता चला कि मराठी में शिक्षा को दंड क्यों कहते हैं |अच्छी बात इसलिए कि वास्तव में महिलाओं का सशक्तीकरण हो रहा है |

हमने अखबार तोताराम के सामने रखते हुए कहा- तोताराम, इस समाचार में शौहर का नाम-धर्म नहीं दिया गया | तू बता इसका नाम और धर्म क्या हो सकता है ?

बोला- यह भी कोई बात हुई | यह अनुमान तो कोई पुलिस वाला भी नहीं लगा सकता |

हमने कहा- इसका नाम तो नहीं लेकिन धर्म हम बता सकते हैं | यह कोई मुसलमान है क्योंकि इसके तीन पत्नियाँ नहीं, बीवियाँ हैं और चौथी के चक्कर में है तथा यह पति नहीं, शौहर है |

कहने  लगा- पता नहीं, इस देश-दुनिया को क्या हो गया है |उर्दू देखी तो मुसलमान | यह भी तो हो सकता है कि संवाददाता कोई उर्दू पृष्ठभूमि का हो | बीवी और शौहर तथा पत्नी और पति एक ही तो बात है |हिन्दू के घर का मच्छर हिन्दू और मुसलमान के घर की मक्खी मुसलमान | अजीब पहचान है |अगर हिन्दू को हैजा हो जाए तो इस्लामिक आतंकवाद और मुसलमान को मलेरिया हो जाए तो भगवा आतंकवाद |

हमने कहा- लेकिन चार बीवियाँ तो मुसलमान ही रख सकते हैं ना ?

बोला- पता नहीं, किस समय की बात है और क्यों शुरू हुई थी लेकिन आज तो सबको एक बीवी और उसके बच्चों को निभाना ही कठिन हो रहा है | रईसों और लम्पटों की छोड़, साधारण आदमी की बात कर | वैसे सुब्रमनियम स्वामी तो कहते हैं कि हिन्दू और मुसलमान दोनों का डी.एन.ए. एक ही है |

हमने शंका की- यह कैसे हो सकता है ?

कहने लगा- हो क्यों नहीं सकता ? दोनों हजारों साल से एक ही देश में एक ही रोटी-पानी से  पलते रहे हैं तो कुछ तो फर्क पड़ेगा ही |सच पूछे तो मुझे तो लम्पटता के मामले में दोनों ही एक जैसे नज़र आते हैं |मुसलमान बादशाह ही क्या, हिन्दू राजा भी कई कई बीवियाँ रखते ही थे | आज भी कई चर्चित हिन्दू दूसरी शादी करने के लिए कोर्ट में मुसलमान बने ही थे |कई ऐसी ही लम्पटता के चक्कर में गिरफ्तारी से बचते फिर रहे हैं |

लम्पटता के मामले में इन दोनों का ही क्या, दुनिया भर का डी.एन.ए. एक ही है | विश्व बैंक के भूतपूर्व गवर्नर, अमरीका, इटली, फ़्रांस के कई बड़े-बड़े नेता और अपने तथा पाकिस्तान के कई नेता ऐसी ही डी.एन.ए. की रसिक समानता का परिचय दे चुके हैं |

हमने पूछा- तो फिर इस बीमारी का इलाज़ क्या है ?

-इलाज़ ? कर तो दिया मोहतरमा ने शिक्षा भवन के सामने सेंडिल से -तोताराम का उत्तर था |


तोताराम की नसधंधी

  १९-०१-२०१५ 
तोताराम की नसधंधी 

चबूतरे पर बैठे थे | तोताराम आया और हमारी तरफ उड़ती सी नज़र डाल कर बोला- यदि सच्चा हिन्दू है तो पहन जूते और चल मेरे साथ |

हमने पूछा- यहाँ बैठे-बैठे हमारे हिंदुत्व को कोई खतरा है क्या ?

बोला-  हाँ, है | और यह खतरा तब तक नहीं टलेगा जब तक हिन्दू दस-दस बच्चे पैदा नहीं करेगा |सो मैं नसधंधी  करवाने जा रहा हूँ |

हमने पूछा- हमने तो सरकार के आह्वान पर कोई चालीस वर्ष पहले ही नसबंदी करवा ली थी | क्या तेरी इतने वर्षों बाद असफल हो गई ?

कहने लगा- लगता है तेरे दिमाग की तरह तेरे कान भी खराब हो गए हैं | नसबंदी नहीं, नसधंधी करवाने जा रहा हूँ |

हमने यह शब्द कभी सुना नहीं था, पूछा- यह नसधंधी क्या होती है ? 

बोला- नसबंदी होती है बच्चे बंद करने के लिए और नसधंधी होती है फिर से बच्चे पैदा करने की क्षमता प्राप्त करने के लिए |

हमने कहा- अंग्रेजी में इसे वेसोवेसोस्टामी कहते हैं |हिंदी में इसके लिए कोई शब्द हमने नहीं सुना है |

बोला- अब भाषा की टाँग मत तोड़ | चलना है तो चल, नहीं तो मैं जा रहा हूँ |

हमने कहा- लेकिन तुझे पता है यह ओपरेशन 'नसबंदी' जितना आसान नहीं है | जनरल एनस्थीसिया दिया जाता है, चार-पाँच घंटे लगते हैं और दस साल बाद इसके ठीक होने की संभावना भी एकदम कम होती है | और फिर जिस देश में सरकारी कैम्पों में नसबंदी करवाने वाली महिलाओं की नकली दवाओं से इन्फेक्शन होकर मौत हो जाती है, नेत्र-चिकित्सा शिविर में थोड़ी रोशनी के लिए इलाज करवाने गए लोग सपट अंधे बन कर लौटते हैं वहाँ तू इतना बड़ा ओपरेशन करवाने जा रहा है ?

कहने लगा- कुछ भी हो कम से कम धर्म के लिए कुछ न कर पाने का पछतावा तो नहीं रहेगा  कि इतने बड़े हिंदुत्व प्रेमियों का कहना नहीं माना |

हमने कहा- सब दूर बैठे-बैठे उलटे-सीधे मन्त्र पढ़ते रहते हैं और लोगों को साँप की बाँबी में हाथ डालने को कहते हैं | खुद तो छुट्टे घूमते हैं और दूसरों को गरीबी के नरक में और गहरे धकेलना चाहते हैं | अगली दाल को तो पानी नहीं  |इतना ही हिन्दू प्रेम है तो खुद गृहस्थ क्यों नहीं बन जाते |और जब हिन्दुओं की संख्या बढ़ाना ही हिंदुत्व-प्रेम है तो लालू जी को भारत-रत्न क्यों नहीं दिया ? 

बोला- तेरे तर्क में दम तो है लेकिन यह भी  सच है कि कितना भी प्रगतिवादी समाज हो लोग जाति, धर्म, नस्ल को दिमाग से निकाल पाते | इसलिए लोकतंत्र में संख्या बल भी मायने तो रखता ही है | और फिर बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती जी के अनुसार मोदी जी दुबारा प्रधान बनाने के लिए हिन्दुओं के दस बच्चे करना ज़रूरी है |

हमने कहा- यह ज़रूरी नहीं है कि हिन्दू भाजपा को वोट दे ही | यदि ऐसा होता तो भाजपा को ३१ प्रतिशत वोट ही क्यों मिले ? ८२ प्रतिशत मिलने चाहिएँ थे |और मान ले इन महान आत्माओं के ब्रह्मवाक्यों  को  सभी हिन्दू मान भी लें तो वह बच्चा वोटर तो वह १८ बाद ही बन पाएगा | और तब तक मोदी जी क्या जवान ही बने रहेंगे ?तुझे पता है उन्हें बूढ़े पसंद नहीं है | बहुत खिचखिच करते हैं | वे प्रधान मंत्री नहीं बल्कि निदेशक मंडल में ही ठीक हैं |
बोला- फिर तो कोई फायदा नहीं | छोड़ दिया इरादा | अब चाय मँगवा |

Apr 7, 2015



 ०७-०४-२०१५
ले सँभाल, अच्छे दिन 

आते ही तोताराम बोला- ले, सँभाल अच्छे दिन |

हमने कहा- रुक, कोई बड़ा-सा थैला या भगोना लाता हूँ |सँभाल कर डालना क्योंकि बहुत बार ऐसा होता है कि ख़ुशी के मारे छलक जाने का डर रहता है |

मुस्कराते हुए कहने लगा- अच्छाई कोई वस्तु नहीं,  वह तो एक अनुभूति होती है जो थैलों में नहीं भरी जाती बल्कि मन में सँजोई जाती है और गूँगे के गुड़ के समान आत्मा में घुलती रहती है और आनंद देती रहती है |  

'तो फिर जैसे चाहे कर'-मन मारकर ठंडे दिल से बैठते हुए हमने कहा |

बोला- एक समाचार है- दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ विद्यार्थियों ने कहा है कि दिल्ली की तेज गति से चलने वाली मेट्रो ट्रेनों से उत्पन्न हवा को बिजली में बदला जा सकता है |

हमने कहा- लेकिन मेट्रो ट्रेन तो भारत में बहुत कम हैं और फिर हमारे यहाँ तो मेट्रो ट्रेन तो क्या सीकर से लोहारू तक की बड़ी लाइन ही वर्षों से रुकी पड़ी है |लोग भूल ही गए हैं कि इस रूट पर कभी कोई ट्रेन चला करती थी |और यदि मेट्रो ट्रेन से बिजली बन भी गई तो वह कोलकाता, मुम्बई और दिल्ली वालों को ही मिलेगी |हमारे यहाँ तो सड़कों पर युवा कार्यकर्त्ताओं की तेज़  दौड़ती, लोगों को डराती जीपों, मनमाने ढंग से दौड़ती गधा गाड़ियों और कृषि-कार्य की बजाय पत्थर ढोते,सड़क तोड़ते  ट्रेक्टरों से बिजली बनाई जा सके तो कुछ बात बने |

बोला- वैसे बिजली की आवश्यकता हमारे जैसे लोगों को बहुत ज्यादा है भी नहीं |सुई में धागा डाल सकने जितनी तो आ ही जाती है ||बिजली की आवश्यकता तो २७ मंजिले भवनों के मालिकों को है जो एक महीने में ७० लाख रूपए की बिजली फूँकते हैं या उन मितव्ययी नेताओं को है जिनके घरों में चालीस-चालीस ए.सी. चलते हैं |वैसे हम जैसे लोगों के लिए तो मोदी जी ने सस्ता, सुन्दर और टिकाऊ नुस्खा बताया है कि पूर्णिमा की रात को सुई में धागा डालने का अभ्यास करने से आँखों की ज्योति बढ़ती है और तब बिजली की अधिक ज़रूरत नहीं पड़ती |इसी तरह बिजली की बचत करने के लिए उन्होंने पूर्णिमा को सड़कों की लाइट नहीं जलाने का सुझाव भी दिया है |इससे भी बचत होगी और बचत होगी तो अच्छे दिन आएँगे ही |

हमने कहा- वैसे बिजली की तो आवश्यकता है ही नहीं, अँधेरे से क्या डरना जब दिन दहाड़े महिलाओं की चेन छीनी जा सकती और चोरी डाका हो जाते हैं |बिजली तो उन्हें चाहिए जिन्हें कम दिखता है, हमारी दृष्टि तो इतनी तेज़ है कि रात क्या, दिन तक में तारे नज़र आते हैं |

कहने लगा- तू बात को बदलकर तेज़ हवा से बिजली बनाने का मज़ाक तो नहीं उड़ा रहा ?  तुलसी दास जी ने कहा- 'गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा' |हवा के वेग से धूल भी आकाश तक पहुँच जाती है फिर यह तो मेट्रो की हवा है |

हमने कहा- इसमें क्या शक है | देखता नहीं, कैसे तेज़ दौड़ती जीप के साथ सूखे पत्ते कुछ दूर तक उसके साथ दौड़ते हैं | हवा हो तो एक साधारण आदमी भी रेलवे प्लेटफार्म से उड़कर दिल्ली तक पहुँच जाता है लेकिन याद रख, हवा ख़त्म होते ही वहीं का वहीं आ जाता है |हवा बहुत देर तक नहीं रहती |कवि बिहारी (बिहार के नहीं, मथुरा वाले ) ने भी कहा है- कल-बल जल ऊँचो चढ़ै, अंत नीच को नीच |

खैर, इसी बात पर एक कहानी सुन- एक साधु की मस्ती को देखकर खाते-पीते घर का एक लड़का साधु बन गया |संयोग से दो दिन तक कोई भिक्षा नहीं मिली |तीसरे दिन एक मुट्ठी चने मिले |साधु बाबा और चेले ने आधी-आधी मुट्ठी खाकर एक-एक कमंडल पानी पिया |चेला बोला- बाबा, आज तो मज़ा ही आ गया | बाबा ने कहा- बेटा, हमारे साथ रहेगा तो ऐसे ही मज़े आएँगे |


Apr 6, 2015

मैं कैसा दिखता हूँ

   2015-04-03 मैं कैसा दिखता हूँ  

हमेशा की तरह सूर्योदय के समान नियत समय पर तोताराम हाजिर हुआ |बैठने के लिए कहने पर मना कर दिया बोला- मुझे ध्यान से देख और बता मैं कैसा दिखता हूँ ?

हम क्या उत्तर देते, कहा- जैसा सत्तर साल से दिखता आ रहा है, वैसा ही दिखता है |वही पाँच फुट का ऊँचा पूरा क़द, वही छब्बीस इंच का विशाल सीना, वही भगवान कृष्ण और राम जैसा श्याम रंग, वही दयनीय मुस्कराहट जो सन १९४७ के देखते आ रहे हैं |बस, थोड़ा सा अंतर यह आया है कि ऊपर वाले जो दो दांत मुँह बंद करने पर भी  दिखाई दे जाया करते थे अब दंतचिकित्सक की कृपा से सामान्य हो गए हैं, सिर के बाल कुछ अधिक उड़ गए हैं |

सुनकर तोताराम झुँझलाया और बोला- मैं बाह्य रूप की नहीं, आतंरिक गुणों की बात कर रहा हूँ | 

हमने उतनी ही तत्परता से उत्तर दिया-  ईश्वर को किसी भी एक गुण में समाहित नहीं किया जा सकता इसलिए उसे निर्गुण कहा जाता है वैसे ही तू भी निर्गुण है |

तोताराम और उखड़ गया- मैं जानता हूँ कि तू मेरे लिए कोई अच्छी बात न सोचना चाहता है , न ही देखना | रामचरितमानस में तुलसी बाबा कहते हैं - सच्चा मित्र 'गुण प्रकटे अवगुनहि दुरावा ' और एक तू है कि जिसे मुझमें कोई भी विशिष्टता नज़र नहीं आती ?मोदी जी को देख- अपने से १४ वर्ष छोटे अमित शाह में महात्मा गाँधी और राम मनोहर लोहिया जैसे चामत्कारिक गुण देख लिए और तुझे सत्तर वर्ष के सत्संग में मुझमें एक भी चमत्कार नज़र नहीं आया | यह या तो तेरा  मेरे प्रति दुराग्रहपूर्ण दृष्टिकोण है फिर तुझे आदमी की पहचान ही नहीं है | इतने वर्ष अगर किसी और के चरण छुए होते तो उसे मुझमें अपना बाप नज़र आने लगता | वैसे तेरी भी क्या गलती, यह तो संसार का नियम ही है कि वह महान लोगों को बड़ी देर से पहचानती है |

हमने कहा- तोताराम, ऐसी बात नहीं है | संसार उतना मूर्ख नहीं है जितना तू समझता है | अटल जी के प्रधान मंत्री बनते ही इंदौर के एक वकील को उनमें भगवान नज़र आने लगा, गुजरात में एक भक्त को मोदी का मंदिर बनाने का ख्याल क्या वैसे ही आ गया, बिहार के एक तुक्कड़ को लालू और राबड़ी में धीरोदात्त नायक-नायिका के गुण ऐसे ही तो दिखने लगे | अगर तू भी नक़ल करवाने वाला या प्रेक्टिकल में पूरे नंबर देने वाला साइंस टीचर होता तो तुझमें भी बच्चे आदर्श गुरु देख लेते |

बोला- लेकिन जब एक साथ ही गाँधी और लोहिया अमित शाह में ही समाहित हो गए तो फिर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का क्या होगा ?

हमने कहा- कांग्रेस में बहुत से गाँधी हैं | मुलायम सिंह जी तो स्वयं ही साक्षात् लोहिया हो  गए हैं वैसे अगर देश सेवा के लिए अमित शाह में लोहिया-दर्शन करना ज़रूरी हुआ तो उसमें क्या देर लगती है ? आतंकवादियों और पाकिस्तान की कृपा से शांति पूर्ण चुनाव के बाद भाजपा और पीडीपी मिलकर कश्मीर की सेवा कर रहे हैं या नहीं ?संस्कृत में कहा गया है- 'परम अर्थी दोषं न पश्यति' |

पूछने लगा- फिर भी क्या तुझे मुझमें कोई चमत्कार नज़र नहीं आता ?

हमने कहा- आता है, चमत्कार नज़र आता है कि इस बढ़ती महँगाई में इस थोड़ी सी पेंशन में , इस आतंककारी समय और जाति-धर्म द्वेषी समाज ईमानदार होकर तेरे जीवित रहने में, नकली खाद्य पदार्थो और नकली दवाइयों के युग में तेरे इस उम्र में भी चलते-फिरते दिखने में वास्तव में एक चमत्कार नज़र आता है |

वैसे तू दिखने की बजाय इस बात का मंथन क्यों नहीं करता कि वास्तव में तू कैसा है ?दिखने की फ़िक्र तो वे करते हैं जो चोर, लम्पट और बदमाश होते हैं | वे ही लम्बे तिलक, लम्बे चोगे और दाढ़ी की फ़िक्र करते हैं जो मालिक नहीं माल के भगत होते हैं |जो अपने आप में कुछ नहीं होता वही किसी की तरह दिखने के लिए मुखौटा लगाता है |हर शै भगवान की अनुपम कृति है |ईश्वर प्रदत्त उसी रूप में अपने व्यक्तित्त्व को विकसित कर |










Apr 3, 2015

लार्ड मैकाले बोले

 






































२०१५-०१-१२ 
लार्ड मैकाले  बोले 

राजस्थान और विशेषकर हमारे इस इलाके की हालत तो कश्मीर जैसी हो रही आजकल, जब कि मकर संक्रांति दो दिन दूर है | यदि वसुंधरा जी हमें राजस्थान ट्यूरिज्म का ब्रांड अम्बेसडर बना दें तो हम यही कहेंगे- कुछ दिन तो सीकर में बिताइए , रेगिस्तान में कश्मीर का मज़ा उठाइए |

आज विकास के लिए विकल सरकार की कृपा से धूप निकली है | 'अच्छे दिनों' की राम जाने लेकिन धूप के कारण सुबह तो अच्छी हो ही गई थी | चाय का कप उठाया ही था कि एक बहुत ही बुज़ुर्ग सज्जन छड़ी टेकते हुए गुज़रे |उम्र के विपरीत बड़ी धाँसू पर्सनेलिटी, गोरा रंग,जूते-मोज़े, पेंट, शर्ट-टाई, कोट और उसके ऊपर ओवर कोट, गले में मफलर जैसा कुछ,कमीज़ के कॉलर खड़े किसी दादा की तरह लेकिन वह दादा नहीं लग रहा था | किसी पुराने आई.सी.एस. ऑफिसर की तरह लग रहा था |

हम दोनों अपना-अपना कप छोड़कर खड़े हो गए | तोताराम ने कहा- गुड मोर्निंग सर, हव अ कप ऑफ़ टी | सज्जन रुके,बैठे और बोले- थैंक यू |

हमने बचपन में लार्ड मैकाले का फोटो देखा था, लगा कहीं वही तो नहीं है | पूछ लिया- सर, इफ आई ऍम नोट मिस्टेकन, आर यु लार्ड मैकाले ?

बोले- यस, ऑफकोर्स |

हमारी हिम्मत बढ़ी, पूछा- सर, हमने तो पढ़ा है था कि आप तो हमारे जन्म से एक सौ वर्ष पहले ही गॉड के पास चले गए थे और अब यहाँ ?

बोले- देखो, व्यक्ति जिसको सर्वाधिक प्यार करता है उसे मरने के बाद भी भूल नहीं सकता | मेरा भारत से यही संबंध है | भारत ने मुझे जितना प्यार दिया है संसार में मुझे कहीं नहीं मिला | तुम लोगों ने हमारी भाषा और जीवन शैली के लिए अपना मन-मस्तिष्क सब कुछ अर्पित कर दिया | अपना धर्म, भाषा, संस्कृति, खान-पान सब कुछ | इतना तो भक्त भी भगवान के लिए नहीं छोड़ता | हम बहुत खुश हैं |तुमने हमें अमर कर दिया |

तोताराम बोला- सर, आप अंग्रेजी को इस देश की राष्ट्र भाषा बनवा दीजिए |

मैकाले कुछ चिढ़कर बोले- तुम्हें पता है राष्ट्र क्या होता है ? बात-बात में राष्ट्र -राष्ट्र करते रहते हो और बात बिना बात आपस में लड़ते रहते हो | किसी बात में एक राय नहीं होते | जिन मामलों में देश की एक आवाज़ होनी चाहिए वहाँ भी तुम लोग पार्टी-पोलिटिक्स करने लग जाते हो | जिन्हें तुम 'राष्ट्रीय' बनाते हो उन्हीं का अपमान और दुर्गति करते हो | तुम चाहोगे तो भी हम ऐसा नहीं होने देंगे | 

तोताराम फिर कहने लगा- सर, अंग्रेजी  के बल पर आपने दुनिया पर राज किया | भारत में अंग्रेजी का विकास होने से हमारा देश और विकसित हो जाएगा |

वे कहने लगे- विकास मेहनत और साहस से होता है | वह तुम लोगों में नहीं है | तुम तो दुनिया के एक नंबर के नकलची हो |इतनी अंग्रेजी पढ़कर भी तुम्हारी सोच मौलिक नहीं हुई | अंग्रेजी तो एक भाषा है | भाषा साध्य नहीं, साधन होती है | और तुमने उसे साध्य बना लिया | बिना अंग्रेजी के भी जर्मनी, जापान, फ़्रांस, चीन प्रगति कर रहे हैं |तुम लोगों के लिए अंग्रेजी के आठ शब्द ही काफी हैं |   विदेशियों के सामने यस, सर, गुड,थैंक यू, ओके और अपनों के सामने नो,गेट आउट आदि |अपनी अकल, मेहनत लगाओगे तो तुम्हारी भाषा में भी सब कुछ है | तुम्हारे पूर्वजों ने अंग्रेजी के बिना भी  बहुत कुछ कर लिया था |

तोताराम  कहाँ चूकने वाला था, बोला- यदि अंग्रेजी को राष्ट्र भाषा नहीं तो रोमन को ही हिंदी की लिपि बनवा दीजिए | अब तो चेतन भगत ने भी इसका समर्थन कर दिया है |

मैकाले कुछ नाराज़ नज़र आए, कहने लगे- पाणिनि के देश में अब चेतन भगत जैसे विद्वान ही रह गए हैं |जिसे दुनिया सबसे सरल और पूर्ण लिपि मानती है उसमें  भी तुम ठीक नहीं लिख सकते तो रोमन में तो बहुत लोचे हैं | उसमें एक ध्वनि के लिए कई चिह्न होते हैं | क्यों देश को और कन्फ्यूज़ करना चाहते हो |

हम दोनों ने कहा- सर, हम तो हिंदी के मास्टर रहे हैं | जो कुछ सरकार ने पढ़ाने को दिया,पढ़ाते रहे | यह तो आपको इम्प्रेस करने के लिए डरते-डरते दो वाक्य बोल दिए वरना अंग्रेजी ही जानते होते तो यहाँ बैठकर टाइम खोटी करते क्या ? कोई कोचिंग सेंटर नहीं चलाते ?

मैकाले साहब जा चुके थे | हम दोनों  इतना घबरा गए थे कि इस डाँट के बदले थैंक यू कहना भी भूल गए | पता नहीं, उन्होंने हमारे देश की सभ्यता के बारे में क्या सोचा होगा ?