Mar 29, 2021

हाजमोला है ?

हाजमोला है ?


आज जैसे ही तोताराम बरामदे में बैठने को हुआ, हमने कहा- तोताराम, तेरे पास हाजमोला है ?

बोला- होली की संध्या अभी तो १० घंटे दूर है और तूने उठते ही ऐसा क्या गरिष्ठ माल पेल दिया जो हाजमोला चाहिए ?

हमने कहा- मामला माल को पचाने का नहीं है बल्कि एक रहस्यमय ऐतिहासिक अर्द्ध-असत्य या पूर्ण असत्य को पचाने का है.

बोला- भारत चुनावों का देश है इसलिए सत्य-असत्य के चक्कर में मत पड़ और जुमलों, नाटकों और चुटकलों का मज़ा ले. पुराण किसे समझ में आते हैं लेकिन अपने मजेदार किस्सों के लिए लोग पढ़ते-सुनते हैं कि नहीं ? पुराणों में आता है कि जब विष्णु ने समुद्र-मंथन के बाद दानवों को धोखे से दारू और देवों को अमृत पिलाने के लिए भुवनमोहिनी बनकर हनीट्रेप रचा था तो उनके सौन्दर्य पर शिव आकर्षित हो गए थे. फलस्वरूप अयप्पा का जन्म हुआ. पाठकों को तो इसी में मजा आ जाता है कि विष्णु पर क्या बीती होगी. पार्वती और लक्ष्मी पर इस सत्संग की क्या प्रतिक्रिया हुई होगी. आज तुझे कौनसा रोचक असत्य पचाने की नौबत आ गई ?

हमने कहा- हम तो चमत्कारों में विश्वास करते हैं लेकिन कुछ देशद्रोही कहते हैं कि बांग्लादेश के ५० वें स्वाधीनता दिवस पर मोदी जी ने बांग्लादेश की स्वाधीनता के लिए आन्दोलन करने और जेल जाने की वाली गप्प ज्यादा की भारी हो गई.








बोला- कभी-कभी मौके के माहौल में और होली के गप्प-मस्ती के तुक में तुक मिला दी जाती है. शास्त्र कहते हैं- मज़ाक में, जुए में, स्त्रियों के बीच, प्राणों पर संकट आने पर झूठ बोलने में कोई पाप नहीं है. चाहे तो इसमें 'चुनाव जीतने के लिए' भी जोड़ सकता है. और मोदी जी तो हमेशा ही 'चुनावी मूड'  में रहते हैं. यह तो उनकी शालीनता देख कि उन्होंने उलटे मन से ही सही इंदिरा गाँधी को याद तो कर लिया. यदि वे यह भी कह देते कि इंदिरा गाँधी बांग्लादेश को आज़ाद नहीं करवाना चाहती थी. मैंने उनका विरोध किया इसलिए मुझे जेल में डाल दिया. अंत में अटल जी के नेतृत्त्व में जनसंघ के देशव्यापी आन्दोलन के करण इंदिरा गाँधी को बांग्लादेश को आज़ाद करना पड़ा. 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, हम तो जब भारत के सहयोग से बांग्लादेश  का स्वाधीनता संग्राम लड़ा जा रहा था तब गुजरात में पोरबंदर में थे. करांची से हवाई जहाज उड़कर जामनगर और पोरबंदर के समुद्र में बम गिरा जाते थे. हमने बच्चों से चंदा इकठ्ठा किया और खुद भी प्रधानमंत्री कोष में एक दिन का वेतन दिया था. कॉलोनी में शाखा के स्वयंसेवकों के साथ मिलकर ब्लेक आउट करवाते फिरते थे.  ऐसे में जनसंघ इंदिरा जी या सरकार के विरुद्ध किस बात के लिए आन्दोलन कर सकती थी. सभी बांग्लादेश की आज़ादी चाहते थे.

बोला- मास्टर, तुझे  पता नहीं. उस समय मोदी जी युवा थे. वैसे तो आज भी वे साहसिक निर्णय लेने में किसी युवा से कम नहीं हैं. उस समय वे जोश में आकर अकेले ही बांग्लादेश को आज़ाद करवाने के लिए चल पड़े. अकेले ही लंका जलाने की क्षमता रखने वाले रुद्रावतार हनुमान के साक्षात् विग्रह मोदी जी का यह रूप देखकर इंदिरा जी घबरा गईं. सोचने लगीं कि यदि यह युवक अकेले ही बांग्लादेश को आज़ाद करवा देगा तो फिर उन्हें श्रेय कैसे मिलेगा. इसलिए इंदिरा गाँधी ने मोदी जी को जेल में डाल दिया और तब तक रिहा नहीं किया जब तब बांग्लादेश आज़ाद नहीं हो गया. 

हमने कहा- तो फिर उस समय की बड़नगर, अहमदाबाद या तिहाड़ जेल में उस तारीख़ को बंदी बनाए गए लोगों की लिस्ट में मोदी जी का नाम क्यों नहीं है ?

बोला- मोदी जी यश के इतने भूखे नहीं हैं. उन्हें तो काम से मतलब है श्रेय के लिए जुगाड़ लगाना, बीच-बीच में फोटो खिंचवाने के लिए मुंह निकालना छोटे आदमियों का काम है. उन्होंने पकड़े जाने पर अपना नाम 'नरेन्द्र मोदी' बताने की बजाय 'रामसिंह' लिखवा दिया था. 

मेरा तो मनाना है कि जिस प्रकार मोदी जी इस कोरोना काल में रिस्क लेकर भी बांग्लादेश के ५० वें स्वतंत्रता दिवस में शामिल हुए वैसे तुझे भी द्वितीय विश्व युद्ध के ७५ वें विजय दिवस में शामिल होना चाहिए था. उसमें तो कोई रिस्क भी नहीं थी. ज़ूम पर आयोजन हुआ था.

हमने कहा- लेकिन हमारा तो जन्म ही १८ अगस्त १९४२ को हुआ है. जब जापान और जर्मनी ने सरेंडर किया था तो हम तीन साल के ही थे. 

बोला- इससे क्या फर्क पड़ता है ? तू कह सकता है कि जब द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा जा रहा था तब 'वर्क फ्रॉम होम' की तरह मैं भारत में रहकर भी इस युद्ध को अपने समर्थन से शक्ति प्रदान कर रहा था. इसी तरह यह भी कह सकता है कि जैसे ही  १८ अगस्त १९४२ को नेताजी सुभाष का निधन हुआ तो मैं आज़ाद हिन्द फौज का नेतृत्त्व करने के लिए इस दुनिया में आ गया. 

तू चाहे तो अपने आप को भारतीय स्वाधीनता सेनानी भी सिद्ध कर सकता है.

हमने कहा- वह कैसे ?

बोला- कह सकता है कि जैसे ही गाँधी जी ९ अगस्त १९४२ को 'अंग्रेजो भारत छोडो' का नारा दिया तो मैं जेल  तोड़कर १८ अगस्त १९४२ से आन्दोलन में शामिल हो गया. और उससे पहले स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने के कारण नौ महीने में रह चुका था. 

सभी मानव जन्म से पहले यह जेल काटते ही हैं.

हमने कहा- तोताराम, क्या इतना ऊंचा भी फेंका जा सकता है ?

बोला- क्यों नहीं, बहुत से 'अवतारी' कई युगों में व्याप्त होते हैं जैसे जामवंत और परशुराम का उल्लेख रामायण और महाभारत दोनों में मिलता है. द्रौपदी के पाँच पुत्रों का हत्यारा अश्वत्थामा तो अमर है.


-रमेश जोशी 

  



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Mar 26, 2021

जींस, निक्कर और संस्कार


 जींस, निक्कर और संस्कार 


सर्दियों में रात को सोते समय होजरी वाले कपड़े की पजामी पहनकर सोने से थोड़ी गरमाहट रहती है. दो पजामियाँ दो सर्दियों तक चल जाती हैं. इस सर्दी में दोनों घुटनों पर से घिस गई हैं. संयोग से आज जब तोताराम आया तो हम वही पजामी पहने हुए थे.

तोतारामने कमेन्ट किया- तेरे घुटने  फटे हुए हैं. अच्छा नहीं लगता इस उम्र में इस तरह संस्कारहीन दिखना.

हमने कहा- हिंदी का मास्टर रहा है, पहले तो भाषा की फ़िक्र कर. घुटने नहीं फटे हुए हैं, घुटनों पर से पायजामा घिसा हुआ है. तुझे हमारे घिसे पायजामे से कोई परेशानी है तो अपना कोई नया पायजमा दे दे. हमें क्या फर्क पड़ता है, उसे पहन लेंगे. वैसे जहां तक संस्कारों को खतरे की बात है तो वह जींस से होता है, पायजामे से नहीं. और तू कौन उत्तराखंड का मुख्यमंत्री रामतीरथ रावत है जो गम बूट से घुटनों तक आँखें घुमा रहा है.

बोला- हम संस्कारी पार्टी के लोग हैं. हम ही संस्कारों की फ़िक्र नहीं करेंगे तो कौन करेगा. 

हमने कहा- घुटनों का संस्कारों से क्या संबंध. हमने तो सत्तर-अस्सी साल के बूढों तक को निक्कर में घुटने दिखाते हुए पथ सञ्चलन करते देखा है. 

बोला- कभी तो आरएसएस ही क्या, कांग्रेस सेवा दल वाले भी निक्कर पहनते थे लेकिन जींस कोई नहीं पहनता था.  अब सामान्य कपड़े की फुल पेंट पहनने लगे हैं कि नहीं ? 

हमने कहा- लेकिन संस्कारों से हम पुरुषों का क्या संबंध ? यह जिम्मेदारी तो महिलाओं की बनती है.  शिव दिगंबर हैं लेकिन पार्वती जी नहीं, महावीर दिगंबर हैं. उन्होंने वस्त्रों का त्याग कर दिया लेकिन उनकी पत्नी ने नहीं. ग्रीस और यूनान में पुरुषों के निर्वस्त्र शिल्प है महिलाओं के नहीं. कुछ तो कारण रहा होगा.

महाभारतकार ने निर्वस्त्रता से अपमानित द्रौपदी को किया किसी पांडव को नहीं.

बोला- पुरुष तो ससुर वैसे ही नंगे होते हैं. तीरथ सिंह ही क्या, समय-समय पर बड़े-बड़े माननीय महिलाओं के बारे में संसद तक में ऐसी ही शालीन (!) टिप्पणियाँ करते रहते हैं. तभी तो उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए अभ-अभी शाखा से शिखर पर पहुंचे हुए रामतीरथ जी ने घुटनों पर फटी जींस पहने महिला को टोका.

हमने कहा- बिलकुल ठीक किया. जींस, वह भी घुटनों पर से फटी हुई तिस पर एन. जी. ओ. चलाती है. ऐसी महिलाएँ बहुत खतरनाक होती है. देखा नहीं पिछले दिनों बंगलुरु की एक एन.जी.ओ. चलाने वाली लड़की ने कैसे ट्वीट करके देश को खतरे में डाल दिया था. वह तो समय पर जेल में डाल दिया नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता ?

बोला- मास्टर, अब तू ज्यादा ही खिंचाई कर रहा है.

हमने कहा-  जब कंगना ने फटी जींस पहनी तो रामतीरथ  जी की निगाह नहीं पड़ी. तब तो लक्ष्मण की तरह-

नाहं जानाम‌ि केयूरे, नाहं जानाम‌ि कुण्डले। नूपुरे त्वभ‌िजानाम‌ि न‌ित्यं पादाभ‌िवन्दनात्।।

हे प्रभु! मैं ना तो देवी सीता के बाजूबंद को पहचानता हूँ और ना ही उनके कुंडल को पहचानता हूँ।  मैं नित्य चरण वंदना के कारण उनके पैरों की पायल को अवश्य पहचानता हूँ।

और अब पहले गम बूट देखे और फिर घुटनों पर घूमते हुए और ऊपर भी पहुंचे.

इसी तरह प्रियंका चोपड़ा जब निक जोनस के साथ अपने अन्तरंग फोटो पोस्ट करती है तो संस्कारों को कोई खतरा नहीं होता ! 

बोला- वह तो उन बेचारियों की मजबूरी है. यह तो अभिनय की दुनिया में होने कारण उनका धर्म बनता है. 

हमने कहा- २००९ में एक फैशन शो में मोदी जी से साक्षात्कार में आम को खाने का 'ख़ास' तरीका पूछने वाले अक्षय कुमार द्वारा ट्विंकल खन्ना से अपनी जींस के बटन खुलवाना कौन सा संस्कार है. 

बोला- उनका मोदी जी के कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाने में योगदान तो देखो. और फिर वे पुरुष हैं. पुरुष तो फटी जींस भी देखेंगे, देखकर विचलित होंगे और ज़रूरी हुआ तो भरी कौरव सभा में कुल वधू का चीरहरण भी करेंगे. महिला की कोई नहीं सुनेगा, धर्मराज भी नहीं, महामहिम भी नहीं. और फिर अक्षय कुमार की जींस घुटनों पर से फटी हुई भी कहाँ थी ? इसलिए संस्कारहीनता का कोई मामला नहीं बनता. 

पुरुष तो महिला के संस्कारों का मूल्यांकन करते हैं.

  


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Mar 22, 2021

भविष्य के भगवान और भगवान का भविष्य 


 जैसे ही दरवाजा खोला, संयोग ऐसा हुआ कि मालखेत बाबा के स्वयंसेवक की तरह कमर मटकाता तोताराम नज़र आया. 

हमारे जिले झुंझुनू में एक तीर्थ स्थल है- लोहार्गल. कहा जाता है कि यहाँ आकर पांडवों के हथियार गल गए थे.यहीं चार सौ सीढ़ियाँ चढ़कर संत मालखेत बाबा (मालकेतु) का मंदिर है. बचपन में उनके स्वयंसेवक (भक्त ) आया करते थे . लाल निक्कर और ऊपर लाल बंडी. कंधे पर कांवड़. कमर में बड़े-बड़े घुंघरू. स्वयंसेवकों की कमर निरंतर मटकती रहा करती थी जिससे एक खास तरह की ध्वनि होती रहती. इसका मतलब होता था- हमारे पास खड़े होने का टाइम नहीं है, जो भी भेंट-पूजा है तत्काल ले आओ.

हमने कहा- यहीं खड़ा मालखेत बाबा के स्वयंसेवक की तरह कमर मटकाता रहेगा या अन्दर भी चलेगा.

बोला- न सही मालाखेत बाबा का सेवक लेकिन निट्ठल्ला थोड़े हूँ. चलना है तो तैयार हो जा, 'नेत्र-कुम्भ' में जा रहा हूँ. 

हमने कहा- जिस तरह चार अलग-अलग स्थानों पर राशियों के अनुसार कुंभ आयोजित किया जाता है. ठीक उसी तरह अलग-अलग वर्षों में आयोजित होने वाले कुंभ के नाम भी अलग-अलग हैं. इन्हें क्रमशः महाकुंभ मेला, पूर्ण कुंभ मेला, अर्ध कुंभ मेला और कुंभ मेला कहा जाता है. यह 'नेत्र-कुम्भ' कहाँ से आगया ? दो बातों को मिला मत.  शायद तू शक्ति पीठों वाली कहानी से तो कन्फ्यूज नहीं हो रहा है ?जहाँ सती के नेत्र गिरे वहाँ 'नैना देवी शक्तिपीठ' तो है लेकिन 'नेत्र-कुम्भ' कुछ जमा नहीं. 

बोला- यह 'नेत्र कुम्भ' आँखों के इलाज का एक कार्यक्रम है जिसका हरिद्वार में उद्घाटन उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री  तीरथ सिंह रावत ने  कल किया है. जिसमें ५० से एक लाख तक लोगों की आँखों का मुफ्त  इलाज किया जाएगा और चश्मे भी दिए जाएंगे. हरिद्वार के लिए सीधी बस 'अस्थि विसर्जन एक्सप्रेस' फिर चलने लगी है. आँख भी दिखा आएँगे और चश्मा भी ले आएँगे.  

हमने कहा- तोताराम, जब देश में पूरे पैसे देकर भी असली दूध, दवा, घी, मावा, नेता नहीं मिलते. कोरोना के टीके में भी घोटाला पकड़ा जा चुका है. आँखों के बहुत से कैम्पों में मुफ्त के चक्कर में कई लोग अंधे हो चुके हैं. आँखें जैसी भी हैं ठीक हैं. अब और दिन ही कितने बचे हैं. और मरने के बाद तो आँख वाले और अंधे सब एक समान हो जाते हैं. 

बोला- नहीं मास्टर, बात ऐसी नहीं है. मुख्यमंत्री का नाम तीरथ सिंह है. 'तीरथ' तो पापों को धोते हैं. जिस बन्दे का नाम ही 'तीरथ' हो उस पर इतनी शंका ठीक हैं. जहाँ तक ओपरेशन में आँखों की रोशनी जाने की बात है तो उसका तो प्रश्न ही नहीं उठता. उद्घाटन करते ही तीरथ सिंह रावत जी को ऐसी दिव्य दृष्टि प्राप्त हो गई कि उन्हें भविष्य साफ़-साफ़ दिखाई देने लगा. तभी तो उन्होंने बताया है- आने वाले समय में लोग मोदी जी को भगवान की तरह देखेंगे. 

हमने कहा- इसे दिव्य दृष्टि नहीं कहते बल्कि 'पासवानी कैलकुलेशन' कहते हैं. इससे पहले एक बार उमा भारती को अटल, आडवानी और वेंकैया में ब्रह्मा,विष्णु और महेश दिखाई दिए थे. जैसे ही मोदी जी ने इन्हें निर्देशक मंडल में बैठा दिया तो उमा जी को मोदी, अमित शाह और अरुण जेटली में ब्रह्मा, विष्णु, महेश दिखाई देने लगे. 

बोला- अगर मोदी जी तुझे साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बना दें तो तू भी रात भर में 'मोदी चालीसा'  लिख मारेगा. 

हमने कहा- और यदि मायावती जी प्रधानमंत्री बन जाएँ तो ऐसे लोगों को उनमें 'जगज्जननी' दिखाई देने लगेगी. और भक्त उन्हीं का 'जगराता' करने लगेंगे.  क्योंकि 'नरेन्द्र' के लिए कोई भी 'चंचल' हो सकता है . 




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Mar 15, 2021

राहुल गाँधी की फिटनेस


राहुल गाँधी की फिटनेस 

आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, चाय बाद में पियेंगे पहले तुझे एक वीडियो दिखाते हैं. 

बोला- मास्टर, वास्तव में यह देश जगद्गुरु है. टके की कमाई नहीं और मिनट की फुर्सत नहीं. यह स्मार्ट फोन क्या आगया, लोगों को ज्ञान और सूचनाओं का अजीर्ण हो गया है. जैसे ही फोन खोलो दस-बीस मेसेज और वीडियो घुसे मिलेंगे. एक बार किसी को किसी तरह ईमेल मिल गया तो लगा प्राण खाने. और नहीं तो मोदी जी की मन की बात की सूचना ही आ जाएगी. ऊपर से यह और कि यदि इसे पढ़ने या सुनने में कोई समस्या आ रही हो तो यहाँ संपर्क करें ऊपर से. ज़रूरी सुविधाओं का कोई हिसाब किताब नहीं. 

बिना कुछ सुने, देखे चाय पिलानी हो तो पिला दे, नहीं तो जैरामजी की.

हमने कहा- छोटा-सा वीडियो है. अच्छा लगेगा. 

बोला- ठीक है, लेकिन एक मिनट से अधिक नहीं देखूँगा. एक चाय में इससे अधिक शोषण करवाना संभव नहीं है. वैसे है क्या ?

हमने कहा- राहुल का तमिलनाडु में छात्रों के सामने पुश अप्स करते हुए एक वीडियो है.

हमने जैसे ही लैपटॉप चालू किया तो 'नेट' नदारद. हुआ यह कि 'जियो' महरी गली में केबल डाल रहे हैं सो हमारा बीएसएनएल का केबल कट गया.  

बोला- यही होना था. मोदी जी का प्रिय 'जियो'  बीएसएनएल के केबल नहीं कटेगा तो कौन कटेगा. अच्छा हुआ जो वीडियो देखने से बच गए. उधर कांग्रेस की हालत खराब है और इधर ये महाशय दंड बैठक लगा रहे हैं. 

हमने कहा- ऐसा करना ज़रूरी है. जनता अपने नेता को फिट और स्मार्ट देखना चाहती है. तभी तो पहले चीन के प्रथम राष्ट्रपति माओत्से तुंग के कभी तारीकी करते हुए तो कभी साइकल चलाते हुए फोटो छपा करते थे. रूस के राष्ट्रपति पुतिन जब चाहे सलमान खान की तरह कमीज उतारकर घोड़ा दौड़ाते फोटो छपता है कि नहीं. मोदी जी भी कभी विराट कोहली का चेलेंज स्वीकार करके पञ्च तत्त्व योग करते हुए फोटो छपा था कि नहीं. एक बार बेयर ग्रिल के साथ कोर्बेट पार्क में एडवेंचर ट्रिप करते भी तो मोदी जी ने फिल्म बनवाई थी. 

बोला- लेकिन ये सब तो जीतने के बाद ये अदाएं दिखा रहे हैं. तुझे पता होना चाहिए कि तीस साल बाद किसी नेता की ब्रांड वेल्यू के बल पर लोकसभा में ३०३ सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत आया है. अब उन्हें सब कुछ शोभा देता है चाहे दिन में दस बार कुरते बदलें, मोर को चुग्गा डालें या 'अभी तो सूरज उगा है' लिखकर महाकवि बन जाएँ. राहुल कहीं दो-चार राज्यों में विधायक खरीदकर ही सही, सरकार बनाकर दिखाएँ तो. ऐसे खाली-पीली दंड लगाने से तो तमाशा ही बनता है. 

हमने कहा- लेकिन मोदी जी ने तो २०१४ में लोकसभा चुनाव जीतने से पहले ही ५६ इंच सीने की घोषणा कर दी थी.  लेकिन चीन को कभी दिखाया नहीं. 

बोला- हम दिखावे में विश्वास नहीं करते.

हमने कहा- फिर हर जगह अपना फोटो चिपकाने की क्या ज़रूरत है ? और तो और गुफा में तपस्या का फोटो अखबारों में छपवाने का क्या अर्थ है ? हमारा तो मानना है कि आपको जिस काम के लिए चुना गया है उसे ढंग से करो. 

हमें तो पुश अप्स  करना भी उतना ही तमाशा लगता है जितना मोर को चुग्गा देते वीडियो प्रचारित करना. ट्रूमैन और चर्चिल ने शरीरी पहलवानी के बल पर द्वितीय विश्वयुद्ध नहीं जीता था और न ही १९९१ में नरसिम्हा राव व मन मोहन सिंह ऐसे टोटकों से अर्थ व्यवस्था को पटरी पर ला पाए थे.  

 


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Mar 5, 2021

यूनिवर्सल चाय-चर्चा-स्थल


  यूनिवर्सल चाय-चर्चा-स्थल 


वैसे तो तोताराम कभी मज़ाक में भी साधारण बातों में समय व्यर्थ नहीं करता लेकिन आज कुछ अधिक ही गंभीर था, बोला- मोदी जी क्या-क्या करेंगे ? राष्ट्रीय समस्याओं में उनका हाथ बटाने का कुछ तो हमारा भी कर्तव्य बनता है. 

हमने कहा- क्यों नहीं. नियम से 'मन की बात' सुनते तो है. रसोई गैस की मनमाने तरीके से बढ़ाई जा रही कीमतों को बर्दाश्त कर तो रहे हैं. देशद्रोही किसानों के प्रति सहानुभूति दिखाने के लिए हम दिल्ली कब गए ? 

बोला- मैं इन छोटी बातों के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ. मैं तो भारत और भारत के लोकतंत्र की पहचान बन चुके  चाय और योगा को खालिस्तानियों के हमले से बचाने में सहयोग करने की बात कर रहा हूँ.  

हमने कहा- तो क्या करें ? सुरक्षा की दृष्टि से चाय अन्दर बैठकर पिया करें ? 

बोला- नहीं, मैं सोचता हूँ कि चाय के महत्त्व को रेखांकित करने के लिए तेरे इस बरामदे का नाम 'यूनिवर्सल चाय चर्चा स्थल'  रख दें. अब भारत के लिए इंटरनेशनल नाम बहुत छोटा लगने लगा है. यूनिवर्सल ही सही है. जब से मोदी जी ने मंगल यान भेजा है तब से 'नमस्ते ट्रंप' ही क्या, जाने किस-किस ग्रह से लोग भारत के 'विकास के मॉडल' का अध्ययन करने यहाँ आएँगे.

हमने कहा- लेकिन इस चर्चा स्थल पर हम कई दशकों से चाय के साथ चर्चा करते रहे हैं इसलिए हमारे योगदान को रेखांकित करते हुए इसके नाम से पहले 'रमेश जोशी' और जोड़ दिया जाए. 

बोला- मुझे तेरी छोटी सोच, आत्ममुग्धता और यशलिप्सा पर तरस आता है.  अरे, जब नाम ही जोड़ना था तो तोताराम को क्यों भुला दिया. क्या तोताराम के बिना तेरी यह 'चाय-चर्चा' पूरी हो सकती थी ? क्या अर्जुन के बिना गीता की कल्पना संभव है ? 

हमने कहा- इस आत्ममुग्धता और यशलिप्सा से तो खुद को फकीर कहने वाले भी नहीं बच सके. पहले से ही किसी और नाम से जाने जाने वाले स्टेडियम को अपने नाम से उद्घाटित करवा लिया. हम तो सामान्य इंसान हैं. और फिर हमारा बरामदा, हमारी चाय तो फिर स्थल हमारे नाम पर नहीं तो क्या तेरे नाम पर बनेगा ? 

बोला- यह तो मोदी जी की लोकप्रियता से जलने वालों का दुष्प्रचार है. 

हमने कहा- हम दो प्रमाण दे सकते हैं- "1983 में इस स्टेडियम को बनाया गया था. तब इसका नाम 'गुजरात स्टेडियम' हुआ करता था. उस वक़्त यह स्टेडियम रिकॉर्ड 9 महीने में बन कर तैयार हुआ था. तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जै़ल सिंह ने इसका शिलान्यास किया था."

"साल 1994-95 में इस स्टेडियम के नाम के आगे सरदार वल्लभ भाई पटेल जोड़ा गया था. उस वक़्त गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष नरहरि अमीन थे."

बोला- लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि मोदी जी ज़मीन से जुड़े व्यक्ति हैं. कांग्रेस की तरह जन भावनाओं का अपमान तो नहीं कर सकते. अब क्या करें. जनता पीछे ही पड़ गई तो विनम्रता पूर्वक स्वीकार करना पड़ा. तुझे याद होना चाहिए कि कुछ दिनों पहले ही उन्होंने कहा था- यदि मोदी का सम्मान ही करना है तो किसी कोरोना या लॉक डाउन पीड़ित की मदद करो. तुझे यह भी पता होना चाहिए कि उन्होंने दो एंड्स के नाम भी दो विनम्र देश सेवकों 'अडाणी और अम्बानी' के नाम पर रखे हैं. 

हमने कहा- तो कोई बात नहीं. तू भी क्या याद करेगा, जहां तू बैठा है उस कोने का नाम 'तोता कोर्नर' रख देते हैं.

बोला- तो इसी ख़ुशी में अब चाय के साथ नाश्ता भी हो जाए.  लेकिन ध्यान रहे, हम किराए पर भारत विरोधी ट्वीट करने वाली ग्रेटा और रियाना के बारे में कोई बात नहीं करेंगे. 

हमने कहा- लेकिन हम भी तो ट्रंप के लिए चुनाव प्रचार करने ह्यूस्टन गए थे. क्या यह दूसरों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नहीं है ?

बोला- ये बड़े लोगों की बड़ी बातें हैं. सामान्य लोगों पर तो देशद्रोह का आरोप लग सकता है. 




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Mar 2, 2021

आसोल पोरिबर्तन


आसोल पोरिबर्तन   


आज तोताराम आ तो गया लेकिन बरामदे में बैठा नहीं. खड़े-खड़े ही बोला- आमी आसोल पोरिबोर्तन चाही. 

हमने कहा- तोताराम, मंत्रियों और टिकटार्थियों  की तो मज़बूरी है कि अपनी सोच को बंद रखें और वही सब कुछ दोहरायें जो मोदी जी कहते हैं लेकिन तेरी क्या मज़बूरी है ? कल ही मोदी जी ने हुगली में कहा- 'आमरा आसोल पोरिबर्तन चाही'.  और तू आज वही जुमला दोहराने लगा. यह बंगाल नहीं और न ही तू बंगाल में चुनाव प्रचार के लिए आया है. अभी राजस्थानी को आठवीं सूची में शामिल नहीं किया गया है, इसलिए हिंदी में बात किया कर. 

बोला- ठीक है लेकिन पोरिबर्तन तो चाही. आसोल पोरिबर्तन. 

हमने कहा- ये कोई संसद में चतुराई से पास करवाए तीन कृषि बिल तो हैं नहीं कि पोरिबर्तन नहीं हो सकता. यह बरामदा संसद है जहां पूर्ण लोकतंत्र है. चल बता, क्या पोरिबर्तन चाहता है ? 

बोला- मैं अब तक चाय पीता रहा लेकिन भविष्य में आमी चाय पीबो नहीं, चाय खाबो.

हमने कहा- मोदी जी की नक़ल मत किया कर. उनका पोरिबर्तन तेरी तरह तमाशा नहीं है. वे वास्तव में 'आसोल पोरिबर्तन' चाहते हैं. 

बोला- मुझे तो पूरी बात पता नहीं. हो सकता है कि अब बंगाली मानुष अपने घर के पिछवाड़े के 'पुकुर' की मीठे पानी की रोहू माछ खाने की बजाय कीचड़ वाले कमल गट्टे खाने लग जाएं. या माछेर झोल सरसों के तेल में बनाने की बजाय गुजरात के 'सींग तेल' में बनाने लग जाएँ. 

हमने कहा- यह तो कोई आसोल पोरिबोर्तन नहीं हुआ. और इसमें जैसा कि मोदी जी ने कहा- 'जनता माफ़ नहीं करेगी' जैसे किसी बड़े मुद्दे और पोरिबोर्तन की बात समझ नहीं आती.

बोला- तो फिर तू ही बता, मोदी जी किस पोरिबोर्तन की बात कह रहे होंगे.  

हमने कहा- एक दो बार मुहर्रम और दुर्गा पूजा एक साथ आ गए तो ममता दीदी ने किसी अप्रिय स्थिति को टालने के लिए 'दुर्गा मूर्ति विसर्जन' को एक दिन बाद कर दिया. यह बंगाल की माँ दुर्गा का कितना बड़ा अपमान है. इसके लिए बंगाल की जनता ममता दीदी को कभी माफ़ नहीं करेगी. 

बोला- तो क्या राम और दुर्गा का झगड़ा समाप्त हो गया ?

हमने कहा- राजनीति में किसी भी बात पर झगड़ा किया जा सकता है और किसी भी बात पर समझौता किया जा सकता है. वह चालाकी चली नहीं तो अब मोदी जी ने बड़ी चतुराई से  'राम-दुर्गा विवाद' को 'मूर्ति विसर्जन और   ताजिया-विसर्जन' में बदल दिया है. ज़रूरत पड़ेगी तो गुजरात की 'माँ अम्बे' को बंगाल की 'माँ दुर्गा' से भी भिड़ाया जा सकता है.

बोला- तो इसका हल कैसे निकालेंगे ?इस पर तो किसी का जोर नहीं. चन्द्र वर्ष में गणना अंग्रेजी की सूर्य गणना की तरह तो होती नहीं. कभी भी ईद और दिवाली एक साथ आ सकते हैं, जैसे कि मुहर्रम और दुर्गा पूजा एक साथ आ गए. अब या तो दुर्गा भक्त और हुसैन भक्त अपने अपने हथियार उठा लें और मरणान्तक युद्ध लड़ें या शांति से उन दो समझदार बकरियों की तरह समझौता करके संकरे पुल को सुरक्षित पार कर लें. 

हमने कहा- मुसलमान तो बाहरी हैं. यह देश तो मूल रूप से हिन्दुओं का है तो समझौता हम क्यों करें ?

बोला- तो फिर उपाय क्या है ? 

हमने कहा- बंगाल में भाजपा की सरकार बनने के बाद मोदी जी सूर्य और चन्द्रमा की गति को इस प्रकार परिवर्तित कर देंगे कि किन्हीं दो धर्मों के त्यौहार एक दिन न आ सकें. 

 


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